MP Board Class 11th Samanya Hindi व्याकरण, भाषा बोध Important Questions
1. उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
प्रश्न 1.
उपसर्ग की परिभाषा दीजिये।
उत्तर–
वे शब्दांश जो किसी शब्द में जुड़कर उसका अर्थ परिवर्तित कर देते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं। उपसर्ग का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता, फिर भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलकर एक विशेष अर्थ का बोध कराते हैं। उपसर्ग सदैव शब्द के पहले आता है। जैसे – (म. प्र. 2009)
प्रश्न 2.
वे शब्दांश जो शब्द के पहले जुड़कर उसका अर्थ बदल देते हैं
(क) संधि
(ख) समास
(ग) उपसर्ग
(घ) प्रत्यय।
उत्तर–
(ग) उपसर्ग। प्रत्यय
प्रश्न 3.
प्रत्यय की परिभाषा दीजिये। (म. प्र. 2010)
उत्तर–
जो शब्दांश किसी शब्द या धातु के अंत में जुड़कर नये अर्थ का बोध कराते हैं उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
जैसे –
कड़वाहट, लड़कपन में हट, पन प्रत्यय है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शब्द के अंत में प्रत्यय लगाने से उनके अर्थ में विशेषता एवं भिन्नता उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 4.
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये।
उत्तर–
प्रत्यय के दो प्रकार होते हैं –
(i) कृदन्त और
(ii) तद्धित।
(i) कृदन्त – कृदन्त प्रत्यय वे होते हैं जो धातुओं के अंत में लगाये जाते हैं। जैसे
1. राखन + हारा = राखनहारा, (Imp.)
2. कसना + ओटी = कसौटी,
3. सोता + हुआ = सोताहुआ,
4. चट + नी = चटनी,
5. टिकना + आऊ = टिकाऊ,
6. लड़ना + आका = लड़ाका,
7. थक + आवट = थकावट,
8. बच + आव = बचाव।
(ii) तद्धित – तद्धित प्रत्यय वे होते हैं जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के साथ लगाये जाते हैं।
जैसे –
प्रश्न 5.
आई अथवा इक प्रत्यय लगाकर (2 – 2)शब्द बनाओ।
उत्तर–
प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त उपसर्गों को छाँटिए और उनके प्रयोग से अन्य तीन – तीन शब्दों की रचना कीजिए – अलिप्त, गैर – जिम्मेदारी, निष्काम, सुलभता।
उत्तर–
प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय और उपसर्ग को अलग कर लिखिए
अज्ञात, विरक्त, ऐश्वर्यवान, अनदेखे, बेपहचान, बलवान, नि:स्तब्ध, सुलभ, सुन्दरता, वीरता।
उत्तर–
प्रश्न 8.
“नैपुण्य” शब्द का दूसरा रूप है “निपुणता” जिसमें ता प्रत्यय लगा है। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों के रूप बदलकर लिखिए – सुन्दरता, उदारता, चतुरता।
उत्तर–
सौन्दर्य, औदार्य, चातुर्य।
प्रश्न 9.
अध्यक्ष शब्द में ‘ईय’ प्रत्यय लगाकर बना अध्यक्षीय शब्द, इसका अर्थ है – “अध्यक्षका”। इसी तरह नीचे लिखे शब्दों से नये शब्द बनाइए – भोजन, राष्ट्र, वित्त, नाटक, पुस्तक, मनन, पठन, लेखक।
उत्तर–
भोजनीय, राष्ट्रीय, नाटकीय, पुस्तकीय, मननीय, पठनीय, लेखकीय।
प्रश्न 10.
‘अति’ उपसर्ग तथा ‘वट’ प्रत्यय लगाकर एक – एक शब्द लिखिए।
उत्तर–
‘अति’ उपसर्ग – अति + काल = अतिकाल
‘वट’ प्रत्यय – सजा + वट = सजावट।।
प्रश्न 11.
वे शब्दांश जो शब्द के पीछे जुड़कर उसका अर्थ बदल देते हैं – (म. प्र. 2010,11)
(क) संधि (ख) समास (ग) प्रत्यय (घ) उपसर्ग
उत्तर–
(ग) प्रत्यय
2. संधि
प्रश्न 1.
संधि किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार हैं? (म. प्र. 2010, 13)
उत्तर–
दो वर्णों के मेल को सन्धि कहते हैं। सन्धि का अर्थ जोड़ होता है। संधि करने में किसी शब्द का अंतिम अक्षर दूसरे शब्द के पहले अक्षर से जुड़ा रहता है। जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय। सूर्य + उदय = सूर्योदय।। संधि के तीन प्रकार हैं – 1. स्वर सन्धि 2. व्यंजन संधि और 3. विसर्ग संधि।
प्रश्न 2.
स्वर संधि किसे कहते हैं? (Imp.)
उत्तर–
दो स्वरों के मेल को स्वर संधि कहते हैं। जैसे –
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ।
भानु + उदय = भानूदय।
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र। (म. प्र. 2010)
प्रश्न 3.
स्वर संधि कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर–
(i) दीर्घ संधि – जब एक ही स्वर चाहे वह ह्रस्व हो या दीर्घ एक साथ आये अर्थात् अ, इ, उ, ऋके बाद ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ क्रमश: आये तो दोनों को मिलाकर एक दीर्घ स्वर हो जाता है। जैसे
परम + अर्थ = परमार्थ, (म. प्र. 2011)
भानु + उदय = भानूदय, (म. प्र. 2013)
मही + इन्द्र = महीन्द्र,
पितृ + ऋण = पितृण,
अभि + इष्ट = अभीष्ट,
महा + आलय = महालय।
(i) गुण संधि – यदि स्वर अ या आ के बाद इ, ई, उ, ऊ या ऋ आते हैं तो उस स्थान पर क्रमश: ए, ओ तथा अर् हो जाते हैं। जैसे
महा + इन्द्र = महेन्द्र, (संभावित)
देव + ऋषि = देवर्षि, (Imp.)
राका + ईश = राकेश,
बाल + उपयोगी = बालोपयोगी,
सुर + ईश = सुरेश,
वीर + इन्द्र = वीरेन्द्र।
(iii) वृद्धि संधि – यदि अ, आ के बाद ए, ऐ, ओ, औ आये तो इनके स्थान पर क्रमश: ऐ, औ हो जाता है –
जैसे –
सदा + एव = सदैव, (म. प्र. 2010, 13)
मत + ऐक्य = मतैक्य,
परम + औषधि = परमौषधि,
जल + ओध = जलौध।
(iv) यण संधि – यदि इ, ई, उ, ऊ तथा ऋ के बाद कोई असमान स्वर हो तो ये क्रमश: य, व, या, यु हो जाते हैं।
जैसे –
यदि + अपि = यद्यपि,
सु + आगत = स्वागत,
इति + आदि = इत्यादि, (म. प्र. 2011)
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार,
प्रति + एक = प्रत्येक,
अति + आचार = अत्याचार।
(v) अयादि संधि – ए, ऐ, औ के बाद किसी असमान भिन्न स्वर आने पर ए, ऐ, ओ के स्थान पर अय, आय, आव हो जाता है।
जैसे –
ने + अन = नयन,
नै + अक = नायक,
पौ + अक = पावक, (म. प्र. 2013)
पो + अन = पवन।
प्रश्न 4.
व्यंजन संधि की परिभाषा सोदाहरण दीजिये।
उत्तर–
जब व्यंजन और स्वर या व्यंजन से मेल होता है तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
जैसे –
सत् + जन = सज्जन, (म. प्र. 2010, 13)
वाक् + ईश = वागीश,
महत् + चक्र = महच्चक्र,
दिक् + गज = दिग्गज,
उत् + हार = उद्धार,
दुस + चरित्र = दुश्चरित्र,
राम + अयन = रामायण,
सम + कल्प = संकल्प,
जगत् + नाथ = जगन्नाथ,
उत् + गमन = उद्गमन,
सत् + आचार = सदाचार, (म. प्र. 2013)
सत् + आनन्द = सदानन्द,
दिक् + अम्बर = दिगम्बर, (म. प्र. 2011)
सत् + गति = सद्गति,
उत् + घाटन = उद्घाटन, –
शम् + कर = शंकर,
प्रश्न 5.
विसर्ग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिये।
उत्तर–
विसर्ग के साथ जब किसी स्वर या व्यंजन का मेल होता है तब विसर्ग संधि होती है।
जैसे –
निः + छल = निश्छल,
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार,
दुः + कर = दुष्कर,
मनः + हर = मनोहर, (म. प्र. 2011, 12)
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म,
निः + पाप = निष्पाप,
मनः + रथ = मनोरथ,
नमः + कार = नमस्कार,
मनः + योग = मनोयोग,
पुरः + कार = पुरस्कार,
दुः + शासन = दुःशासन, .
निः + झर = निर्झर,
निः + धन = निर्धन (म. प्र. 2010)
निः + रोग = निरोग,
बहिः + कार = बहिष्कार।
प्रश्न 6.
‘राजेन्द्र’ तथा ‘विद्यालय’ शब्द का संधि विच्छेद कीजिए।
उत्तर–
राज + इन्द्र = राजेन्द्र (गुण संधि)
विद्या + आलय = विद्यालय (दीर्घ संधि)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों का संधि विच्छेद कर उनमें प्रयुक्त संधियों के नाम लिखिए धर्मोपदेशक, अधर्मासक्त, भिन्नतार्थ।
उत्तर–
3. समास
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं? समास के विविध प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर–
दो या दो से अधिक शब्दों के ऐसे मेल को जिसमें उन शब्दों के बीच सम्बन्ध बताने वाले अन्य शब्द लोप हो जाते हैं, समास कहते हैं।
यथा – भाई और बहिन = भाईबहिन।
(बीच का सम्बन्ध बताने वाला शब्द ‘और’ लोप है।)
सामासिक पदों के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए विभक्तियों को रखना ‘विग्रह’ कहलाता है। जैसे भाईबहिन सामासिक शब्द है, इसका विग्रह ‘भाई और बहिन’ हुआ।
समास के प्रकार – समास छ: प्रकार के होते हैं –
(1) अव्ययीभाव समास – जब दो पदों में एक पद अव्यय तथा दूसरा पद संज्ञा होकर मेल होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
इसी प्रकार – आजन्म, आमरण, अनुरूप, हररोज, भरपेट, अतिकाल, धीरे – धीरे, हाथों – हाथ, निर्भय, समूल आदि अव्ययीभाव समास हैं। (म. प्र. 2015)
(2) तत्पुरुष समास – यह ऐसे दो पदों का मेल है जिसमें बाद का पद प्रधान होता है। जैसे – पददलित, मार्गव्यय, ऋणमुक्त, बैलगाड़ी, निशाचर, राष्ट्रप्रेम, राममन्दिर, तुलसीकृत, गृहप्रवेश, शरणागत धर्मभ्रष्ट उपर्युक्त सामासिक शब्दों में बाद के पद प्रधान हैं। (म. प्र. 2009)
(3) कर्मधारय समास – यह ऐसे दो पदों का मेल है जिसमें एक विशेषण होता है। जैसे – नीलाम्बर, मृदुवाणी, श्वेताम्बर, कमलमुख।
नील + अम्बर = नीलाम्बर (म. प्र. 2013)
मृदु + वाणी = मृदुवाणी
श्वेत + अम्बर = श्वेताम्बर
कमल + मुख = कमलमुख
धर्म + नायक = धर्मनायक (म. प्र. 2011)
पीत + अम्बर = पीताम्बर। (म. प्र. 2011)
(4) द्विगु समास – यह ऐसे पदों का मेल है जिसमें प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण तथा दूसरा पद संज्ञा हो। जैसे – नवरत्न, त्रिभुवन, चतुष्पदी, चौमासा। पंचवटी (पाँच वटों का समूह), त्रिकाल, नवरात्रि, त्रिनेत्र, चुतर्वेद (चार वेदों का समूह)। नवनिधि (नौ निधियों का समूह) (म. प्र. 2011)
(5) द्वन्द्व समास – दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों के बीच और शब्द का लोप होता है।
जैसे –
मातापिता = माता और पिता (म. प्र. 2013)
राजरानी = राजा और रानी
गंगा – यमुना = गंगा और यमुना (म. प्र. 2009)
दयाधर्म = दया और धर्म
अन्नजल = अन्न और जल।
(6) बहुब्रीहि समास – यह ऐसे पदों का मेल है जिनसे बना तीसरा पद नवीन अर्थ देता है। जैसे लम्बोदर – लम्बा है उदर जिसका अर्थात् गणेश। नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शंकर। दशानन दस+ आनन् = रावण। पीताम्बर – जिसका वस्त्र पीला है अर्थात् श्रीकृष्ण। चतुर्मुख – चारमुख = ब्रह्मा। (म. प्र. 2010) गजानन – गज + आनन = गणेश। (म. प्र. 2009, 13)
प्रश्न 2.
नीचे दिए समास युक्त पदों का विग्रह कीजिए –
धर्मनायक, दिगंबर, महात्मा, तरुण – तरुणी, समुद्र – यात्रा।
उत्तर–
प्रश्न 3.
निम्नलिखित किन्हीं दो शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिये
(i) भरपेट,
(ii) राजपुत्र,
(iii) सप्ताह,
(iv) लेन – देन।
उत्तर–
प्रश्न 4.
जिस समास में प्रथम शब्द संख्यावाचक हो, उसे कहते हैं …. (म. प्र. 2010)
(क) द्विगु समास (ख) द्वन्द्व समास (ग) कर्मधारय समास (घ) तत्पुरुष समास।
उत्तर–
(क) द्विगु समास।
प्रश्न 5.
‘समास’ के …………. भेद होते हैं। (पाँच/छः) (म. प्र. 2015)
उत्तर–
छः।
4. लगभग समान रूप से उच्चरित किन्तु अर्थ में भिन्न शब्द
प्रश्न 1.
समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द किसे कहते हैं, उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर–
प्रत्येक भाषा में कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिनका उच्चारण एक जैसा होता है या लगभग समान होता है, किन्तु उनके अर्थों में अन्तर होता है। छात्रों को इन शब्दों का ज्ञान होना चाहिए।
नीचे श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्दों के उदाहरण दिये जा रहे हैं –
प्रश्न 2.
निम्नलिखित समोच्चरित भिन्नार्थक शब्दों में अंतर स्पष्ट कीजिए –
अन्न – अन्य, इति – ईति, कृपण – कृपाण, वात – बात।
उत्तर–
प्रश्न 3.
निम्नांकित समोच्चरित भिन्नार्थक शब्दों में अंतर स्पष्ट कीजिए –
वारिद – वारिधि, क्षात्र – छात्र, सुकर – सूकर, पथ – पथ्य।
उत्तर–
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के दो – दो अनेकार्थक शब्द लिखकर उसके सामने अर्थ स्पष्ट कीजिए –
अंक, अंबर।
उत्तर–
अंक – संख्या, गोद। (म. प्र. 2015)
अंबर – वस्त्र, आकाश।
5. विलोम शब्द
प्रश्न 1.
विलोम शब्द की परिभाषा सोदाहरण दीजिए।
उत्तर–
एक – दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ बतलाने वाले शब्द विलोम शब्द कहलाते हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि संज्ञा शब्द का विलोम संज्ञा ही होगा और विशेषण शब्द का विलोम विशेषण ही होगा।
जैसे –
अनुराग – विराग।
कुछ महत्त्वपूर्ण विलोम शब्द शब्द
प्रश्न 2.
“आदि और अंत” विलोम शब्द हैं। इसी तरह निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए –
वीर, प्राची, फूली, रण, घमण्ड, स्वच्छंद, पुलकित, दलित। (पा. पु. प्रश्न)
उत्तर–
प्रश्न 3.
नीचे लिखे शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
अज्ञात, अनजान, बलवान, अगम्य, बहुत – सा, वीर, सच्चा, गर्म।
उत्तर–
प्रश्न 4.
‘सम्पन्न’ एवं ‘नीति’ शब्द का विलोम लिखिए।
उत्तर–
सम्पन्न – विपन्न
नीति – अनीति।
6. पर्यायवाची शब्द
प्रश्न 1.
पर्यायवाची शब्द की परिभाषा सोदाहरण दीजिये।
उत्तर–
जिन शब्दों के अर्थ समान होते हैं उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। पर्यायवाची शब्दों को समानार्थक या प्रति शब्द भी कहते हैं।
जैसे –
संसार = जग, जगत, दुनिया, विश्व, लोक।
कुछ महत्त्वपूर्ण पर्यायवाची शब्द
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के दो – दो पर्यायवाची शब्द लिखिए सोना, आकाश।
उत्तर–
सोना = कंचन, कनक
आकाश = आसमान, अम्बर।
प्रश्न 3.
‘आनंद एवं ईश्वर’ शब्द के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर–
आनंद – प्रसन्न, हर्ष, प्रमोद।
ईश्वर – भगवान, ईश, परमेश्वर।
प्रश्न 4.
‘अमृत’ का पर्यायवाची है
(क) क्षीर (ख) अमर (ग) उपल (घ) सुधा।
उत्तर–
(घ) सुधा। (म. प्र. 2010, 12)
7. भाव – पल्लवन – भाव – विस्तार
विचार एवं भाव विस्तार की प्रक्रिया ‘पल्लवन’ भी कहलाती है। इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण कथन, सूत्र, सूक्ति, विचार अथवा लोकोक्ति में निहित भावों को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। इसे ‘विशदीकरण’, ‘विस्तारण’, ‘वाक्य विस्तार’ ‘भाव विस्तार’ आदि नामों से भी जाना जाता है। यह सारांश लेखन की प्रतिगामी प्रक्रिया है। भाव विस्तार के द्वारा विद्यार्थी की कल्पना और रचना शक्ति का परिचय मिलता है। इसमें मूल वाक्य में निहित भावों का ही विश्लेषण किया जाता है।
पल्लवन न तो बहुत छोटा होना चाहिए और न ही बहुत बड़ा। सामान्यत: छ: वाक्यों में या 50 से 60 शब्दों में भाव विस्तार करना चाहिए। पल्लवन या भाव विस्तार सम्बन्धी निर्देश निम्नलिखित हैं –
1.दी गई पंक्ति का अर्थ पूरी तरह समझने के लिए उसका एकाधिक बार ध्यान से एवं विचारपूर्वक वाचन करना चाहिए।
2. सम्पूर्ण विचारों में क्रमबद्धता होनी चाहिए।
3. भाव विस्तार अन्य पुरुष में ही लिखा जाना चाहिए।
4. वाक्य छोटे हों तथा सरल, स्पष्ट एवं मौलिक भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
5. मूल भाव से सम्बन्धित बातें ही लिखी जाएँ।
6. उदाहरण अपेक्षित हो तभी दिया जाना चाहिए।
7. पुनरावृत्ति या अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए।
उदाहरण
1. ‘दूर के ढोल सुहावने होते हैं।’ (Imp.)
उत्तर–
दूर के ढोल सुहावने होते हैं’ इस कहावत का आशय है कि कोई भी चीज दूर से जरा ज्यादा आकर्षक लगती है, क्योंकि दूर की वस्तु यथार्थ से दूर होती है, इसलिए कर्कश नहीं होती। बूढ़ों को अतीत और तरुणों को भविष्य अच्छे लगते हैं वर्तमान से सभी घबराते हैं यहाँ भी वही प्रवृत्ति काम करती है। वर्तमान यथार्थ होता है, कर्कश होता है। अतीत और अनागत दूर के ढोल की तरह सुहावने लगते हैं। पास बजने वाला ढोल सुहावना नहीं कर्कश लगता है।
2. ‘न दोषों का अन्त है न सुधारों का।’ (म. प्र. 2013)
उत्तर–
‘गुण – दोषमय विश्व कीन्ह करतार’ संसार गुण दोषमय है। सुधार सामाजिक जीवन की निरन्तर आवश्यकता है। ऐसा कोई युग नहीं रहा जिसमें समाज सुधार न किया गया हो। मान्यताएँ बदलती हैं परिस्थितियाँ बदलती हैं। अतः कोई व्यवस्था अनन्त काल तक स्वीकृत नहीं हो सकती। प्रत्येक कदम जहाँ कुछ अच्छाई रखता है वहीं उसमें कुछ बुराई भी होती है। बुराई को दूर करने फिर नया कदम उठाना पड़ता है इस तरह बदलते समय के साथ सुधारों का सिलसिला जारी रहता है।
3. ‘धर्म के मूल में पार्थक्य नहीं, एकता का द्योतक है।’
उत्तर–
प्रस्तुत पंक्ति में धर्म का वास्तविक रहस्य स्पष्ट किया गया है। चाहे किसी भी धर्म का मानने वाला हो उसकी मूलभूत अवधारणाएँ लगभग समान होती हैं। विश्व के किसी भी धर्म में पृथकता की भावना नहीं है। प्रत्येक धर्म प्राणीमात्र के साथ मैत्री भाव रखने का संदेश देता है। धर्म की साधना पद्धति या कर्मकांड पृथक हो सकते हैं किन्तु मानव मात्र का कल्याण, भाई चारा उसके चरम लक्ष्य होते हैं। इसलिए धर्म एकता का परिचायक है।
4. “स्वाधीनता विकास की पहली शर्त है।” (म. प्र. 2006, 13)
उत्तर–
‘स्व + अधीनता’ अर्थात् अपने अधीन रहना। यद्यपि इसका अर्थ स्वतंत्रता के लिए लिया जाता है। बंधन मुक्त रहने का अपना सुख है। बिना स्वंत्रतता के जीवन निरर्थक है। तोते को सोने के पिंजरे में पाल लीजिए लेकिन उसे सुख नहीं मिलेगा। स्वाधीनता में ही व्यक्ति का भी विकास सन्निहित होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की तभी संभव है जब हम स्वाधीन एवं स्वतंत्र रहें।
5. “बचपन में पड़े हुए शुभ – अशुभ संस्कार बहुत जड़े जमाते हैं।” (म. प्र. 2006)
उत्तर–
व्यक्ति माता – पिता के संरक्षण में अपना बचपन व्यतीत करता है। उसकी स्थिति कुम्हार के कच्चे घड़े के समान होती है। उसको आकार – प्रकार, रंग – रूप कुम्हार प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार अबोध मन को संस्कारित करने का गुरुतर कार्य माता – पिता का होता है। बचपन में पड़े हुए संस्कार ही हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। शुभ संस्कार से व्यक्ति ऊँचाइयों को स्पर्श कर पाता है और अशुभ संस्कार उसे गर्त की ओर ले जाते हैं।
6. कार्य को पूजा की भावना से करो। (म. प्र. 2010,11)
उत्तर–
हम जो भी कार्य करें वह केवल औपचारिकता को पूर्ण करने के लिए नहीं, बल्कि उस कार्य में एक आत्मिक संतुष्टि का अनुभव हो किया गया कार्य पूर्ण रूप से तह दिल से किया गया है और जब ऐसा कार्य किया जाये तो वह किसी को दिखाने के लिए बल्कि आत्मिक शांति के लिए तब वह किया गया कार्य किसी पूजा से कम नहीं होता, इसके लिए कार्य के प्रति समर्पण भाव होना अनिवार्य है।
7. स्वतंत्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतंत्र सत्ता से है। (म. प्र. 2010)
उत्तर–
स्वतंत्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतंत्र सत्ता से इसलिए है क्योंकि हम इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से बंधन मुक्त होकर कर सकें किंतु स्वेच्छाचारिता या स्वच्छंदतावादी विचारधारा हो क्योंकि इसके प्रभाव से मनुष्य उच्छृखल प्रवृति का हो सकता है। हम वस्तु स्थिति को समझें, साथ ही अपनी सत्ता को पहचानें।
8. कर्ता से बढ़कर कर्म का स्मारक दूसरा नहीं। (म. प्र. 2010)
उत्तर–
किसी कार्य का सबसे बड़ा स्मारक उस कर्म को करने वाला अर्थात कर्ता होता है। जब हम किसी कर्म की प्रशंसा करते हैं तो हमारी दृष्टि उस कार्यकर्ता की ओर जाती है। कर्म को कर्ता से पृथक करके नहीं देखा जा सकता ! जब हमें उसी प्रकार के कार्य करने का सुअवसर प्राप्त होता है तो मार्गदर्शन के लिए कर्ता की ओर ध्यान चला जाता है। वह कर्ता हमारा आदर्श बन जाता है कर्मों द्वारा ही समाज में कर्ता की स्थिति सुदृढ़ और आकर्षक बनती है। भारतीय संस्कृति का पताका विदेशों में फैलाने की चर्चा होती है तो स्वतः ही हमारा ध्यान स्वामी विवेकानंद की ओर आकर्षित हो जाता है। अत: कर्म का स्मारक कर्ता के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हो सकता है।
9. ‘तुम देखते हो कि जीवन सौंदर्य है, हम जागते रहते हैं और देखते रहते हैं कि जीवन कर्त्तव्य है।’ (Imp.)
उत्तर–
माधव अपने मित्र शेखर से कहता है कि एक कवि और राजनीतिज्ञ में बहुत अंतर होता है। कवि जीवन में सौंदर्य देखता है। वह कल्पना की दुनिया में खोया रहता है। यहाँ तक कि वह अपने आप को भी भूल जाता है जबकि राजनीतिज्ञ सदैव जागता रहता है। वह एक पल के लिए भी वास्तविक दुनिया से अलग नहीं होता है। एक राजपुरुष के लिए कर्त्तव्य ही उसकी दुनिया है।
8. मुहावरे एवं लोकोक्ति
मुहावरे का अर्थ – मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश होता है जिसका सामान्य से हटकर विलक्षण अर्थ होता है। जैसे – वह लड़का नहीं शेर है शेर। इस कथन में शेर शब्द किसी वन्य पशु के लिए न होकर शेर के गुणों (साहसी) को प्रकट करने वाला है।
लोकोक्ति का अर्थ – इसका अर्थ होता है लोक में प्रचलित उक्ति। लोकोक्ति केवल वाक्यांश के रूप में नहीं होती, वह तो पूरा वाक्य होती है। किसी कथन का उदाहरण बात की पुष्टि होती है, जो इसमें दिया जाता है। वह अपने आप में पूर्ण होती है। (म. प्र. 2012)
प्रश्न 1.
मुहावरा व लोकोक्ति में अंतर स्पष्ट कीजिए। (Imp.)
उत्तर–
मुहावरा एवं लोकोक्ति में अंतर निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 2.
लोक प्रचलित उक्ति को लोकोक्ति कहते हैं यह कथन सत्य है या असत्य।
उत्तर–
सत्य। (म. प्र. 2011)
कुछ महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ तथा प्रयोग
1. अपना उल्लू सीधा करना – अपना स्वार्थ सिद्ध करना। (म. प्र. 2011)
प्रयोग – जो मनुष्य स्वार्थी होता है वह अपना उल्लू सीधा करता है।
2. अक्ल पर पत्थर पड़ना – अज्ञानता से काम करना। (म. प्र. 2009)
प्रयोग – उस समय न जाने क्यों मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे, जब मैंने अपने बड़े भाई को कटु शब्द कहे थे।
3. आँख का काँटा होना – अत्यधिक खटकना।
प्रयोग – चुनाव के समय विपक्षी दल के सदस्य एक – दूसरे की आँख के काँटा होते हैं।
4. आँखों का तारा – अत्यधिक प्रिय होना। (म. प्र. 2011, 15)
प्रयोग – माँ को अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं परन्तु मोहन सबसे छोटा होने के कारण वह अपनी माँ की आँखों का तारा है।
5. आँच न आने देना – सम्भावित हानि का स्पर्श भी न होने देना।
प्रयोग – रक्षाबन्धन का त्यौहार भाइयों के समक्ष बहनों के अस्तित्व पर आँच न आने देने का प्रतीक है।
6. आग लगाना – भड़काना।
प्रयोग – परदेशी ने अशोक का नाम लेकर शिशुपाल के हृदय में आग लगा दी।
7. आकाश से बातें करना – बढ़ – चढ़कर बोलना।
प्रयोग नगर निगम का सदस्य बनते ही वह आसमान से बातें करने लगा।
8. आटे दाल का भाव मालूम होना – सच्चाई का ज्ञान।
प्रयोग – कार्यक्षेत्र का पूर्ण अनुभव होने पर ही आटे दाल का भाव मालूम होता है।
9. ईद का चाँद होना – कठिनता से दिखाई देना। (म. प्र. 2010, 15)
प्रयोग – रमेश ने जब दो महीने के बाद अपने मित्र को सामने से आते हुए देखा तो कहा कि आजकल तुम तो ईद के चाँद हो गये हो।
10. काया पलट होना – पूर्ण रूप से बदल जाना। (म. प्र. 2011)
प्रयोग – ज्ञानेश के पार्षद बनते ही मुहल्ले की काया पलट गई।
11. गला छुड़ाना – कष्ट से छुटकारा पाना।।
प्रयोग – रमेश पड़ोसियों का झगड़ा शांत करने गया था लेकिन पुलिस स्टेशन जाना पड़ गया, वह बहुत मुश्किल से गला छुड़ाकर भागा।
12. गड़े मुर्दे उखाड़ना – पुरानी बातें याद करना। (Imp.)
प्रयोग – विद्वान व्यक्ति गड़े मुर्दे उखाड़ने की अपेक्षा वर्तमान में जीना पसंद करते हैं।
13. गाल बजाना – व्यर्थ की बात करना। (म. प्र. 2013)
प्रयोग – सुरेन्द्र की बातों पर विश्वास मत करना, उसकी तो गाल बजाने की आदत पड़ गयी है।
14. टेढ़ी खीर – कठिन कार्य। (म. प्र. 2013)
प्रयोग – हिमालय की चढ़ाई करना टेढ़ी खीर है।
15. तिनके को पहाड़ करना – छोटी बात बड़ी बनाना। (म. प्र. 2013)
प्रयोग – आम लोगों में तो तिनके को पहाड़ करना कोई असम्भव बात नहीं है।
16. नोन, तेल, लकड़ी के फेर में पड़ना – आजीविका कमाने के चक्कर में रहना। (Imp.)
प्रयोग–नोन, तेल, लकड़ी के चक्कर में पड़ने के बाद मनुष्य को किसी वस्तु की सुध नहीं रहती।
17. नेत्र लाल होना – क्रोधित होना।
प्रयोग – लक्ष्मण की बातों को सुनकर परशुरामजी के नेत्र लाल हो गये।
18. नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना।
प्रयोग – पुलिस को देखकर चोर नौ दो ग्यारह हो गये।
19. पहाड़ खड़ा होना बहुत बड़ी कठिनाई आना।
प्रयोग – तुर्की में भूकंप के कारण विपत्तियों का पहाड़ खड़ा हो गया।
20. पिंड न छोड़ना – पीछा न छोड़ना।
प्रयोग – नशे की आदत एक बार लग जाने से वह पिंड नहीं छोड़ती है।
21. फूला न समाना – अत्यधिक खुश होना।
प्रयोग – प्रथम श्रेणी में पास होने पर राधा फूली न समायी।
22. बंदर के हाथ में मोतियों की माला – अयोग्य व्यक्ति के हाथ में श्रेष्ठ वस्तु।
प्रयोग – मुरारी लाल के हाथ में सरपंच का पद बंदर के हाथ में मोतियों की माला की तरह है।
23. आकाश के तारे तोड़ना – असंभव कार्य करना।
प्रयोग – निशांत का बोर्ड परीक्षा में अव्वल आना आकाश के तारे तोड़ने के समान है।
24. कमर कसना – तैयार रहना। (म. प्र. 2010)
प्रयोग – कारगिल युद्ध के लिए भारतीय सैनिकों ने कमर कस लिया था।
25. बाल बाँका न होना – कुछ भी हानि न होना।
ईश्वर जिसकी सहायता करता है, उसका कोई बाल बाँका नहीं कर सकता।
26. मिट्टी में मिला देना – नष्ट करना।
प्रयोग – मोहन को परीक्षा में नकल करते हुए जब अध्यापक ने पकड़ लिया तो उसकी सारी इज्जत मिट्टी में मिल गयी।
27. मिट्टी में मिलना – समाप्त होना।
प्रयोग – भारत में हुए घोटालों ने यहाँ की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला दी।
28. लहू सूखना – भयभीत होना।
प्रयोग – पुलिस को देखते ही चोर का लहू सूख गया।
29. हाथ के तोते उड़ना – घबरा जाना।
प्रयोग–अपराधी का जब पता नहीं लग रहा था तब शिशुपाल के हाथ से तोते उड़ने लगे।
30. ईंट से ईंट बजाना – टकराना। (म. प्र. 2009)
प्रयोग – चुनाव में ईंट से ईंट बज जाया करती है।
31. आँखों में धूल झोंकना – धोखा देना। (म. प्र. 2009)
प्रयोग – चोर आँखों में धूल झोंककर बैग लेकर फरार हो गया।
32. कब्र में पाँव लटकाना – मृत्यु करीब होना। (म. प्र. 2009)
प्रयोग – बुजुर्गों के पैर कब्र में लटके होते हैं।
33. कफन सिर से बाँधना – मरने के लिए तैयार रहना। (म. प्र. 2010)
प्रयोग – अभिमन्यु जब चक्र भेदन करने गया तब उसने कफन सिर से बाँधना शुरू किया।
34. उँगली उठाना – आलोचना करना। (म. प्र. 2015)
प्रयोग – मोहन की उन्नति देखकर उसके मित्रों ने उँगली उठाना शुरू कर दिया।
कुछ महत्त्वपूर्ण लोकोक्तियों के अर्थ एवं प्रयोग
1. आँख के अन्धे नाम नैनसुख – नाम और गुणों में अंतर।
प्रयोग—नाम तो करोड़ीमल, लेकिन पास में एक पैसा नहीं अर्थात् आँखों का अंधा और नाम नैनसुख।
2. अकल बड़ी या भैंस शारीरिक शक्ति से मानसिक शक्ति बड़ी होती है।
प्रयोग – उस आदमी ने बुद्धि के बल से एक पहलवान को पटक दिया वास्तव में अकल बड़ी कि भैंस।
3. आम के आम गुठलियों के दाम दोनों तरफ से लाभ होना। (Imp.)
प्रयोग रमेश को सरकारी नौकरी के साथ ही अमेरिका जाने का निमंत्रण भी मिला इसी को कहते हैं आम के आम गुठलियों के दाम।
4. ऊँची दुकान फीका पकवान—दुकान तो बड़ी प्रसिद्ध परन्तु माल घटिया।
प्रयोग नगर के सबसे धनाढ्य सेठ की दुकान में घटिया मिष्ठान देखकर वह बोला, ऊँची दुकान फीका पकवान।
5. ऊँट के मुँह में जीरा—आवश्यकता से कम देना।
प्रयोग—एक व्यक्ति की खुराक दस रोटी है, लेकिन जब वह खाने बैठा तो केवल दो रोटी ही दी, जो ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।
6. थोथा चना बाजे घना गुणहीन आडम्बर अधिक करता है।
प्रयोग—पंडित जी बहुत बढ़ – चढ़ कर बातें कर रहे थे जब धर्म और दर्शन पर चर्चा हुई तो वे चुप्पी साध गये, इसे कहते हैं थोथा चना बाजे घना।
7. मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।
प्रयोग – एक अपरिचित व्यक्ति रात के समय घर आकर बोला मैं यहाँ ठहरूँगा, इसी को कहते हैं कि मान न मान मैं तेरा मेहमान।
8. सिर मुड़ाते ही ओले पड़े – काम शुरू करते ही विघ्न पड़ना।
प्रयोग इसी साल खेती शुरू की और सूखा पड़ गया इसी को कहते हैं कि सिर मुड़ाते ही ओले पड़े।
9. व्याकरण, भाषा – बोध पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नांकित उपसर्ग मिश्रित शब्दों की जोड़ियाँ बनाइए
अभि, उप, कम, नि, कु, कुकर्म, उपलक्ष्य, कमजोर, अभिमान, निकम्मा।
उत्तर–
प्रश्न 2.
थकावट, चटनी, बचाव, खटिया से प्रत्यय छाँटिए
उत्तर–
प्रश्न 3.
‘परमार्थ में कौन – सी संधि है?
उत्तर–
दीर्घ स्वर संधि।
प्रश्न 4.
‘सज्जन’ में कौन – सी संधि है?
उत्तर–
व्यंजन संधि।
प्रश्न 5.
‘दुष्कर में कौन – सी संधि है?
उत्तर–
विसर्ग संधि।
प्रश्न 6.
सही जोड़ियाँ बनाइए
उत्तर–
प्रश्न 7.
‘लक्ष – लक्ष्य का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
लक्ष – लाख।
लक्ष्य – उद्देश्य।
प्रश्न 8.
‘अवधि – अवधी’ का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
अवधि – निश्चित समय।
अवधी – एक बोली
प्रश्न 9.
निरक्षर, निर्लज्ज का विलोम लिखिए।
उत्तर–
निरक्षर – साक्षर।
निर्लज्ज – सलज्ज।
प्रश्न 10.
पेड़, हवा के दो – दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर–
पेड़ – वृक्ष, तरु।
हवा – वायु, समीर।
प्रश्न 11.
‘आग लगाना’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर–
भड़काना।
प्रश्न 12.
‘आँख का तारा’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर–
अत्यधिक प्रिय।
प्रश्न 13.
‘आँख के अन्धे नाम नयन सुख’ का क्या अर्थ होता है?
उत्तर–
नाम एवं गुण में अंतर।
प्रश्न 14.
‘थोथा चना बाजे घना’ का क्या अर्थ होता है?
उत्तर–
गुणहीन अधिक आडम्बर करता है।
प्रश्न 15.
भाव पल्लवन में क्या किया जाता है?
उत्तर–
किसी भी भाव का विस्तार।
प्रश्न 16.
संधि विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए (म. प्र. 2009)
(i) निश्चल – निः + छल = विसर्ग संधि
(ii) गायक – गै + अक = अयादि स्वर संधि
(iii) दिग्गज – दिक् + गज = व्यंजन संधि
(iv) इत्यादि – इति + आदि = यण स्वर संधि।
प्रश्न 17.
कौन – से समास में दोनों पद प्रधान होते हैं? (म. प्र. 2009)
उत्तर–
द्वन्द्व समास।
प्रश्न 18.
‘मेघ’ पानी बरसते हैं। वाक्य शुद्ध अथवा अशुद्ध? (म. प्र. 2009)
उत्तर–
अशुद्ध।
प्रश्न 19.
(अ) जिसका कोई शत्रु न हो’ उसके लिए एक शब्द है (म. प्र. 2009, 15)
(ब) कविता रचने वाला। (म. प्र. 2015)
(स) कलाओं का सृजन करने वाला। (म. प्र. 2015)
(द) अभिमान करने वाला। (म. प्र. 2015)
उत्तर–
(अ) अजातशत्रु, (ब) कवि, रचयिता, (स) कलाकार, (द) अभिमानी।
प्रश्न 20.
“आपने भोजन कर लिया है।” वाक्य प्रश्न वाचक वाक्य की श्रेणी में आता है। यह वाक्य शुद्ध है या अशुद्ध। (म. प्र. 2011)
उत्तर–
अशुद्ध।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए (म. प्र. 2015)
(i) सीता और राम आता है। शुद्ध वाक्य – सीता और राम आते हैं।
(ii) अपन जल्दी चलें। शुद्ध वाक्य – हम जल्दी चलें।
(iii) गुप्त रहस्य की बात है। शुद्ध वाक्य – रहस्य की बात है।
प्रश्न 22.
विधि वाचक एवं प्रश्न वाचक वाक्य के एक – एक उदाहरण लिखिए। (म. प्र. 2015)
उत्तर–
विधि वाचक वाक्य – अशोक राजनगर में रहता है।
प्रश्न वाचक वाक्य – क्या तुम आज ही वापिस जाओगे?