MP Board Class 11th Samanya Hindi निबंध लेखन Important Questions

1. समाचार-पत्र (Imp.)
या
समाचार-पत्रों का महत्व
(म. प्र. 1997, 12, 13, 15)

सुबह बिस्तर छोड़ते ही आज का नागरिक एक कप चाय और समाचार-पत्र की माँग करता है। वह चाय की चुस्की लेकर शारीरिक स्फूर्ति का अनुभव करता है तथा समाचार-पत्रों के पृष्ठों पर आँखें दौड़ाकर देश-काल की घटनाओं, विचारों से वाकिफ होकर मानसिक रूप से वह अपने आपको तरोताजा अनुभव करता है। इस तरह समाचार-पत्र आज की दुनिया में एक निहायत जरूरी चीज बन गया है। .. समाचार-पत्र में अंग्रेजी न्यूज (NEWS) के N,E,W,S-N for North, E for East, W for West, S for South ये चार अक्षर जुड़े हैं जो क्रमशः उत्तर, पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण के प्रतीक हैं, अर्थात् समाचार-पत्र वह है जिसमें चारों दिशाओं के समाचार होते हैं।

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समाचार-पत्र का जन्म इटली के वेनिस नगर में 13वीं शताब्दी में हुआ। इससे पूर्व लोगों में समाचार-पत्र की परिकल्पना भी नहीं थी। 17वीं सदी में धीरे-धीरे अपनी उपयोगिता के कारण समाचार-पत्र इंग्लैण्ड पहुँचा, फिर धीरे-धीरे सारे संसार में फैला।

भारत में सर्वप्रथम कलकत्ता (कोलकाता) में इसका जन्म और विकास हुआ! 19 जनवरी 178) को ‘बंगाल गजट’ का कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ के प्रकाशन के साथ ही भारतीय पत्रकारिता का जन्म हुआ। 1857 से पूर्व ‘उदन्त मार्तण्ड’, ‘बंगदूत’, ‘प्रजामित्र’ आदि हिन्दी समाचार-पत्रों का प्रकाशन हो चुका था। धीरे धीरे वैज्ञानिक आविष्कार बढ़ते गये, मुद्रण यन्त्रों के विकास के साथ ही समाचार-पत्रों का विकास होता गया।

समाचार-पत्रों के महत्त्व का बखान जितना किया जाये उतना कम होगा। आधुनिक युग की प्रभावपूर्ण उपलब्धियों में समाचार-पत्र एक है। सामाजिक चेतना एवं समाज के उन्नयन में समाचार-पत्रों की भूमिका उल्लेखनीय है। सांस्कृतिक चेतना जगाने, छात्रों के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने में भी समाचार-पत्र उल्लेखनीय भूमिका अदा करते हैं।

राजनीतिज्ञों के लिए, राजनीतिक प्रौढ़ता बढ़ाने के लिए एवं लोगों में साहित्यिक चेतना जगाने की दृष्टि से भी समाचार-पत्र महत्त्वपूर्ण हैं। व्यापारियों के लिए तो यह आवश्यक चीज बन गया है। यह युग विज्ञापन का युग है, प्रचार का युग है और समाचार-पत्र प्रचार का सरल एवं सस्ता माध्यम है।

वैयक्तिक दृष्टि से भी विज्ञापनों का कम महत्त्व नहीं है। नौकरी का विज्ञापन, वर-वधु विज्ञापन, शुभकामनाएँ, आभार प्रदर्शन, निमन्त्रण आदि का काम समाचार-पत्र करता है।

समाचार-पत्र तो प्रजातन्त्र की रीढ़ कहे जाते हैं। जनमत बनाने का काम यही करते हैं। वैचारिक स्वतन्त्रता को प्रश्रय समाचार-पत्र ही देते हैं। इस तरह समाचार-पत्र आज के संसार में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुके

अच्छे समाचार-पत्रों के गुण-अच्छे समाचार-पत्र निष्पक्ष रहते हैं तथा स्वस्थ पत्रकारिता पर आधारित होते हैं। वे जनता एवं सरकार को सही दिशा और सलाह देते हैं। वे किसी के हाथ बिके नहीं होते। वे समाज हित और राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर ही समाचार छापते हैं। वे पीत पत्रकारिता से बचते हैं। वे चरित्रहनन वाली पत्रकारिता से बचते हैं।

उपसंहार-समाचार-पत्र मात्र घटनाओं का विवरण नहीं है, समीक्षण और चिन्तन भी है। वे लोकमत को प्रभावित करते हैं। अतएव समाचार-पत्रों को हमेशा लोकहित की भावना से काम करना चाहिये। विश्वसनीय समाचार देने चाहिये तथा उत्तेजक समाचार से बचना चाहिये। समाचार-पत्रों को सदैव देश-हित एवं लोक-हित की भावना से काम करना चाहिये।

2. राष्ट्र निर्माण में छात्रों का योगदान
(म. प्र. 2011, 15)

रूपरेखा-

  1. भूमिका,
  2. आधुनिक भारत में नव-निर्माण की विभिन्न दशाएँ और उनमें विद्यार्थियों का योग,
  3. उनका विवेकपूर्ण सहयोग,
  4. सहयोग से लाभ,
  5. उपसंहार।

सैकड़ों वर्षों की परतन्त्रता के बाद हमारा देश स्वतन्त्र हुआ। पराधीनता की स्थिति में भारतवासियों को स्वेच्छापूर्वक अपनी उन्नति करने का अवसर प्राप्त नहीं था। विदेशी सरकार के दबाव के कारण भारतीय अपनी योजना के अनुसार कार्य नहीं कर पाते थे। देश में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में सरकार का दबाव अवश्य बना रहता था। उस समय विद्यार्थियों का योग केवल उत्कृष्ट अधिकारी बनकर शासन को दृढ़ बनाये रखना था। आज की बदलती हुई परिस्थितियों में किसी भी देश का भविष्य उस देश के विद्यार्थियों के ऊपर निर्भर है। विद्यार्थी वर्ग ही एक ऐसा वर्ग है जो हर क्षेत्र में पहुँच सकता है। भारत का नव-निर्माण विद्यार्थियों के उचित और पूर्ण सहयोग के बिना सफलतापूर्वक पूर्ण नहीं हो सकता। इस देश के नव-निर्माण में विद्यार्थियों का योगदान आवश्यक है।

मानव अपनी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उसी की खोज में लगा रहता है। वर्तमान समय वैज्ञानिक तथा पूँजीवादी युग के नाम से जाना जाता है। भारत में वैज्ञानिक तथा आर्थिक उन्नति अत्यन्त आवश्यक है। भारत में प्राकृतिक साधन तो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, पर वैज्ञानिक दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में नव-निर्माण का कार्य आरम्भ हो गया है। पर इसकी अन्तिम सफलता विद्यार्थी वर्ग पर निर्भर करती है, विद्यार्थी को पूरी लगन व श्रद्धा के साथ देश के नव-निर्माण का कार्य करना होगा, तभी देश उन्नति की ओर अग्रसर होगा। वर्तमान समय में कारखानों का निर्माण हो रहा है। विद्युत् शक्ति का उत्पादन हो रहा है। कृषि, व्यवसाय, यातायात तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान स्थापित करने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी जा रही हैं, पर इन सबके बाद इसकी अन्तिम सफलता विद्यार्थी वर्ग पर ही निर्भर है।

सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। समाज में कुछ दुर्गुण हैं। उन्हें दूर करना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे समाज के ढाँचे को बिगड़ने से बचाया जा सके। कोई भी सुधार अन्धानुकरण के आधार पर नहीं होना चाहिए। सुधारों के भावी परिणामों को दृष्टि में रखकर बढ़ना आवश्यक है। भारतीय धर्म तथा संस्कृति की मूल विशेषताओं को ध्यान में रखकर उपयोगी सुधार होना चाहिए। इन सभी का अन्तिम परिणाम तो विद्यार्थी वर्ग को पूर्णतया भोगना पड़ेगा। अत: उन्हें बुद्धि से कार्य करना चाहिए। विद्यार्थी वर्ग ही सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में क्रान्ति ला सकते हैं।

संसार की राजनैतिक मान्यताएँ बदल रही हैं। प्रजातान्त्रिक भावना का विकास हो रहा है। व्यक्तिवादी दृष्टिकोण बदलता जा रहा है। एक पक्ष साम्यवादी विचारधारा का है, जिसमें व्यक्ति नहीं राष्ट्र सर्वोपरि है। सारा विश्व इन्हीं विचारधाराओं से प्रभावित है। आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज का विद्यार्थी और कल का नागरिक अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल राजनैतिक विचारों को अपनाये। उसका दृष्टिकोण समन्वयवादी होना चाहिए, जिसमें किसी विचारधारा का बहिष्कार केवल इसलिए न हो कि वह पुरानी है अथवा किसी विचारधारा को केवल इसलिए न स्वीकार किया जाय कि वह नई है।

संसार की राजनीति इतनी तीव्रता से गतिशील है कि यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि कौन-सी बात सही है, इस उलझन की स्थिति से निकलने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय की आवश्यकता है। आज विद्यार्थी पर बड़ा उत्तरदायित्व है कि वह अपने विवेक से सही व गलत का निर्णय करे और देश के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील हो। भारत एक ऐसा देश है जहाँ जनसंख्या का बड़ा भाग गाँव में रहता है। गाँव के विकास के बिना भारत के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के नवयुवक पर सबसे बड़ा उत्तरदायित्व गाँवों के विकास का है।

इसके लिए उन्हें शहर के विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर ग्रामीण अंचल में जाना होगा, उनको आधुनिक विचारधारा एवं सहकारिता की भावना का प्रचार करना होगा। हमारे गाँवों को अन्धविश्वास और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुक्त करना होगा। उन्हें प्रगतिशील बनाना होगा।

आज के विद्यार्थियों की पीढ़ी के हाथों में कल के देश की बागडोर आने वाली है, उन्हीं में से राजनीतिक नेता होंगे, अधिकारी होंगे, उद्योगपति होंगे और किसान, मजदूर भी होंगे। देश उनसे यह अपेक्षा करता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे नये उत्साह और नई विचारधारा के साथ प्रवेश करेंगे। देश को नई दिशा प्रदान करेंगे। सरकार ने देश के नवनिर्माण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं, उन कागजी योजनाओं का मूल्य नहीं यदि उनको पूरा जन-सहयोग न मिले। गाँवों की पिछड़ी जनता से अधिक आशाएँ नहीं की जा सकती। इन योजनाओं की सफलता के लिए देश की निगाहें विद्यार्थियों पर टिक जाती हैं। विद्यार्थी वर्ग यदि विद्यार्जन के साथ-ही-साथ देश की प्रगति की दिशा में नहीं सोचता तो यह उसका अनुत्तरदायित्वपूर्ण कार्य ही कहा जायेगा।

3. साहित्य और समाज (साहित्य का महत्व)
(म. प्र. 2009, 15)

“अन्धकार है, वहाँ जहाँ आदित्य नहीं है।
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है।”

वस्तुत: साहित्य राष्ट्र की, समाज की जीवनशक्ति की पहचान होता है। साहित्य के बिना राष्ट्र और समाज अज्ञानता के अन्धकार में मुर्दा बनकर जीवित रहते हैं।

साहित्य क्या है? इस पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि साहित्य रमणीय शब्द-अर्थों से गुम्फित ‘भावों की माला’ है, जिसमें सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् तीनों का समन्वय होता है। आचार्य जगन्नाथ ने साहित्य को परिभाषित करते हुए लिखा है— रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्’, अर्थात् रमणीय अर्थ के प्रतिपादक शब्द एवं अर्थों के साहित्य को ‘साहित्य’ कहते हैं।

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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार साहित्य समाज का दर्पण है। समाज का सृजन करता है। इस प्रकार साहित्य समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों की विवेचना करता है। उन्हें सुरक्षित रखता है। समाज से परे साहित्य और साहित्यकार का अस्तित्व नहीं होता। अतः समाज और साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं।

“ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम साहित्य है।” अर्थात् साहित्य में ज्ञान-विज्ञान संचित रहता है। इसका सेवन कर मनुष्य महान् बनता है। भर्तृहरि के अनुसार—“यदि मनुष्य साहित्य, संगीत और कला से रहित हो तो वह बिना पूंछ और सींग के पशु है। ”

समाज की घटनाओं के आधार पर साहित्य का निर्माण होता है-साहित्यकार कल्पना का मिश्रण कर समाज का मार्ग-दर्शन करता है। शिवि, दधीचि, हरिशचन्द्र, रूसो, गाँधी के जीवन से संबंधित घटनाएँ ऐसा ही आदर्श समाज के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। उससे समाज के मस्तिष्क में चिन्तन की दिशा में मोड़ उत्पन्न हो जाता है। समाज की त्रुटियों का निराकरण होता है। समाज के दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं। सद्गुणों का विकास होता है। इस प्रकार साहित्य समाज सुधार का साधन बनता है।

साहित्य और समाज में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है- साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है और साहित्य की रचना साहित्यकार समाज में रहकर ही करता है। वह समाज में जो कुछ देखता है तथा महसूस करता है, उसी को साहित्य में वाणी देता हैं। किसी समाज के बारे में जानना हो, उसकी सभ्यता व संस्कृति से परिचित होना हो तो आपको उस समाज के साहित्य से परिचित होना होगा, उसके साहित्य रूपी आइने में झांकना होगा।

समाज अपने अनुरूप साहित्य को बदलता है तो साहित्य समाज को बदलने का प्रयास करता है। साहित्य मनुष्य को गतिशीलता प्रदान करता है। वह अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं सड़ी-गली मानसिकता को दूर कर समाज को नयी रोशनी प्रदान करता है। यदि फ्रांस में रूसो का, रूस में मार्क्स का और भारत में गाँधी, तिलक,प्रेमचन्द आदि का साहित्य नहीं होता तो इन देशों में क्रान्तियाँ नहीं हुई होती और सम्भवतः इनका हाल बद्तर होता।

साहित्य और समाज में घना सम्बन्ध है-यह तथ्य सूचित करता है कि साहित्य समाज के लिए तो महत्वपूर्ण है ही व्यक्ति, राष्ट्र सबके लिए महत्वपूर्ण है। साहित्य राष्ट्र की या जाति की पहचान है। वाल्मीकि, कालिदापा, सूर, तुलसी, प्रसाद, निराला आदि की रचनाओं ने विश्व में भारत का सिर ऊँचा किया है तथा उसे एक विशिष्ट पहचान दी है।

साहित्य मस्तिष्क का भोजन है-अपने मस्तिष्क को तरोताजा रखने के लिए साहित्य का अध्ययन बहुत आवश्यक है। माना कि यह विज्ञान का युग है, किन्तु विज्ञान मनुष्य को शक्तिशाली बनाकर बाघ से भी भयंकर बना सकता है किन्तु प्रेम, दया, सेवा, उपकार जैसे मानवीय गुणों का संचार साहित्य ही कर सकता है, जिसके सामने सारी भौतिक समृद्धि तुच्छ है, इसलिए पाश्चात्य विद्वान कार्लाईल ने साहित्य की सर्वोपरि महत्ता को स्वीकार करते हुए लिखा है-“ मैं ब्रिटिश साम्राज्य छोड़ सकता हूँ, पर शेक्सपियर की रचना को नहीं छोड़ सकता।” यह है साहित्य की महत्ता। आज यूनानी साम्राज्य कहाँ है,पर यूनानी महाकवि होमर की वाणी आज भी विद्यमान है। प्लेटो और अरस्तू के साहित्य आज भी लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।

वस्तुतः साहित्य बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु है। अच्छे साहित्य के बिना समाज अधूरा है। अतः समाज को चाहिए कि वह अच्छे साहित्य एवं साहित्यकारों को सम्मान दे, प्रेरित करे। आजकल गन्दे किस्म के साहित्य बहुत पढ़े जाने लगे हैं। जासूसी उपन्यास तथा गन्दे साहित्य समाज के मस्तिष्क को विकृत बना रहे हैं, इनसे सावधान रहना तथा स्वस्थ साहित्य का निर्माण एवं अध्ययन करना हम सबका कर्त्तव्य होना चाहिए।

4. कम्प्यूटर आज की आवश्यकता
(म. प्र. 2009, 13)

प्रस्तावना-विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर अपने प्रभाव की वृद्धि कर रहा है। आज इसकी उपयोगिता भी बढ़ रही है। आज देश के अनेक क्षेत्रों में, जैसे-बैंक, उद्योग, अन्य प्रतिष्ठानों में इसका प्रयोग होने लगा है।

कम्प्यूटर का महत्व-वस्तुतः कम्प्यूटर एक यांत्रिक मस्तिष्क का रूपात्मक योग है। यह एक ऐसा गुणात्मक घनत्व है जो शीघ्र गति से, कम से कम समय में त्रुटिहीन गणना करता है। मनुष्य सदा से गणितीय हल करने में अपने मस्तिष्क का प्रयोग करता रहा है। इस कार्य के लिए सबसे पहले पहले किया जाना वाला यन्त्र ‘अबेकस’ (Abacus).प्रथम साधन था। आज के वैज्ञानिक युग में अनेक प्रकार के गणना यन्त्र बना लिए गये हैं, परन्तु इन सबसे अधिक तीव्र शुद्ध उपयोगी गणना करने वाला यन्त्र कम्प्यूटर है। यह कम्प्यूटर लम्बी गणना करके उसके परिणामों को स्पष्ट कर देता था। कम्प्यूटर स्वयं गणना करके जटिल समस्याओं को मिनटों में हल कर देता है। कम्प्यूटर की गणना के लिए विशेष भाषा को तैयार किया जाता है। निर्देशों और सूचनाओं को कम्प्यूटर का प्रोग्राम कहा जाता है।

कम्प्यूटर का उपयोग-इक्कीसवीं शताब्दी कम्प्यूटर का युग कहलायेगा। आज इसकी उपयोगिता बढ़ गयी है। हजारों मील दूर की सूचनाएँ इससे ज्ञात हो जाती है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इसका उपयोग हो रहा है।

  1. बैंकिंग के क्षेत्र में भारतीय बैंकों के बड़े कार्यालयों में खातों का हिसाब-किताब रखने के लिए इसका प्रयोग प्रारम्भ हो चुका है। कई राष्ट्रीयकृत बैंकों ने नयी चुम्बकीय संख्याओं वाली नई चेक बुक जारी की है। यूरोप तो कई में घर निजी कम्प्यूटर को अन्य कम्प्यूटर के साथ जोड़कर लेन-देन का कार्य किया जाता है।
  2. सूचना व समाचार प्रेषण के क्षेत्र में-कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा देश के बड़े नगरों को एक-दूसरे से जोड़ने का कार्य किया जाता है।
  3. प्रकाशन के क्षेत्र में पुस्तकों और समाचार-पत्रों के प्रकाशन में कम्प्यूटर का महत्वपूर्ण योगदान है। अब तो समाचार-पत्रों के सम्पादकीय विभाग में एक ओर कम्प्यूटर के मैटर भर जायेगा। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक प्रिन्टर शीघ्र ही मुद्रित सामग्री तैयार कर देंगे।
  4. डिजाइनिंग के क्षेत्र में-कम्प्यूटर के माध्यम से भवनों, मोटर, कारों, वायुयानों आदि के डिजाइन तैयार करने में कम्प्यूटर ग्राफिक का प्रयोग किया जा रहा है। वास्तुशिल्पी अपनी डिजाइन कम्प्यूटर के स्क्रीन पर तैयार करते हैं।
  5. कला के क्षेत्र में अब कम्प्यूटर कलाकार तथा चित्रकार का सहायक बन गया है। कलाकार कम्प्यूटर के सामने बैठकर अपने नियोजित प्रोग्राम के अनुसार स्क्रीन पर चित्र निर्मित करता है। वास्तविक रंगों के साथ प्रिन्ट छप जाता है।
  6. वैज्ञानिक खोज के क्षेत्र में विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर ने एक नई क्रान्ति ला दी है। अन्तरिक्ष के व्यापक चित्र अब कम्प्यूटर द्वारा उतारे जाते हैं। चित्रों का विश्लेषण भी कम्प्यूटर द्वारा ही किया जाता है। आधुनिक वेधशालाओं के लिए कम्प्यूटर की आवश्यकता है। विज्ञान का कोई भी क्षेत्र इससे अलग नहीं है।
  7. युद्ध के क्षेत्र में अमेरिका में पहला इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर एटम बम से संबंधित गणनाएँ करने के लिए था। जर्मन के गुप्त संदेश जानने के लिए अंग्रेजों ने कोलोसम नामक कम्प्यूटर का प्रयोग किया।

जीवन का हर क्षेत्र कम्प्यूटर की परिधि में आ गया है। वायुयान या रेल यात्रा के आरक्षण की व्यवस्था कम्प्यूटर द्वारा की जाती है। रेलवे तथा बस का टाइम भी आपको कम्प्यूटर ही बतलायेगा। इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में, परीक्षाफल निर्माण में, मौसम सम्बन्धी जानकारी में, चुनाव कार्य में कम्प्यूटर का महत्वपूर्ण योगदान है।

दैनिक जीवन में कम्प्यूटर क्षमताएँ एवं सम्भावनाएँ और बढ़ गई है। छात्रों के लिए प्रिंटिंग के बाद कम्प्यूटर ही सबसे बड़ा आविष्कार है। इससे छात्रों व आध्यापकों का समय बचता है। भारत में भूतपूर्व युवा प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गाँधी का कम्प्यूटर के प्रति अत्यधिक रुज्ञान था। भारत ने कम्प्यूटर टेक्नालॉजी प्राप्त करने के लिए अमेरिका की ओर दोस्ताना कदम बढ़ाये है। अब सरकार ने कम्प्यूटर पर कर घटाया है ताकि भारत में भी विदेशी टेक्नालॉजी वाली कम्पनियाँ स्थापित हो सकें। भारत इस प्रकार के अनेक विषयों पर विदेशों से सौदा कर रहा है।

कम्प्यूटर और मानव मस्तिष्क-कम्प्यूटर एक मानव यन्त्र है। इसमें न मानवीय संवेदनाएँ हैं और न रुचियां, परन्तु यह मानव द्वारा निर्देशित ऐसा यन्त्र है जो स्वयं के निर्णय लेने में असमर्थ है। वास्तव में यह मानव मस्तिष्क की रचना है जो कम समय में समस्याओं का हल कर सकता है।

6. उपसंहार-कम्प्यूटर टेक्नालॉजी भारत के आर्थिक जगत में क्रांति ला सकती है। यह प्रयोग समाजवादी आदर्शों के अनुसार किया जाय। अभी तक भारतीय पूँजीवाद तब का प्रत्येक तकनीक का प्रयोग केवल अपने काम के लिए करता रहा है। अत: आज साधारण जन इसे जानना चाहता है। यद्यपि आज का विश्व कम्प्यूटर के युग में साँस ले रहा है। कम्प्यूटर पर आज का विश्व निर्भर है। कम्प्यूटर कम समय में सब समस्याओं को हल कर सकता है। वह दिन दूर नहीं जब कम्प्यूटर सबके हाथ होगा।

5. जीवन में खेलों का महत्व
(म. प्र. 2012, 15)

मानव-जीवन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। सर्वांगीण विकास का तात्पर्य है कि व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, भावात्मक तथा नैतिक दृष्टि से पूरी तरह समर्थ हो। शारीरिक विकास हर मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है। कहा भी गया है

“A healthy mind is in a healthy body.”

स्वस्थ शरीर के साथ ही स्वस्थ मनोरंजन भी मनुष्य के लिए आवश्यक है। ‘खेल’ ऐसी क्रिया है जिससे न केवल शरीर का विकास होता है अपितु मनोरंजन भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि सभ्यता के आदिकाल से ही, मानव समाज में खेलों का प्रचलन रहा है। आज से पचास हजार वर्ष पूर्व की मानव सभ्यता को दर्शाने वाले भित्ति-चित्र प्राचीन गुफाओं में देखने को मिलते हैं। उन आड़ी-तिरछी रेखाओं से बने चित्रों में भी मनुष्यों को खेल खेलते दिखाया गया है। मनुष्य का प्राचीनतम खेल जानवरों का शिकार करना अथवा मछली मारना था। इससे मनोरंजन के साथ ही भोजन की समस्या भी हल होती थी।

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सभ्यता के विकास के साथ शारीरिक क्षमता को परखने के लिए मल्ल-विद्या अर्थात् कुश्ती, तीरंदाजी, घुड़दौड़ आदि खेल प्रारम्भ हुए। प्राचीन रोम के स्टेडियम में एक बड़ा भयंकर खेल खेला जाता था, इसमें मनुष्य को भूखे शेर के पिंजड़े में छोड़ दिया जाता था। भूखे शेर से बचने के लिए वह मनुष्य भागता था, चीखता चिल्लाता था और लोग तालियाँ बजा-बजाकर अपना मनोरंजन करते थे। इसी प्रकार फ्रांस में किसी मनुष्य की वीरता के परीक्षण के लिए उसे, शराब में मदमस्त बैल के साथ, लड़ने छोड़ दिया जाता था। इस खेल को ‘बुल फाइटिंग’कहते थे।

भारत का प्राचीन इतिहास भी बतलाता है कि यहाँ भी महाभारत काल में कुछ ऐसे भी खेल प्रचलित थे जो कमरे के भीतर खेले जाते थे, जैसे–चौपड़, शतरंज, द्यूत-क्रीड़ा आदि। इसमें पासे के आधार पर हार-जीत का निर्णय होता था। कुश्ती, तीरंदाजी, तलवारबाजी तथा कंदूक-क्रीड़ा ऐसे ही प्राचीन भारतीय खेल थे।

आजकल खेलों को दो भागों में बाँटा जाता है-घर के भीतर खेले जाने वाले खेल, जैसे-ताश, कैरम, शतरंज, टेबल-टेनिस, लूडो, बिलियर्ड, आदि। दूसरे प्रकार के वे खेल हैं जो मैदान में खेले जाते हैं, जैसे हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल, बेसबाल, बास्केटबाल आदि।

भारतीय खेलों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बिना किसी खर्च के खेला जा सकता है। इन खेलों में कबड्डी, खो-खो आदि प्रसिद्ध हैं। प्रसन्नता की बात है कि कबड्डी व खो-खो को अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त होने लगी है। खेलों के महत्त्व पर अब सभी देशों की सरकारें ध्यान दे रही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रति चार वर्षों में ओलम्पिक खेलों का आयोजन होता है। एशिया महाद्वीपीय स्तर पर सर्वप्रथम 4 मार्च, 1951 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में एशियाड खेलों को प्रारम्भ किया गया। इसमें 491 प्रतियोगियों ने भाग लिया तथा भारत ने सबसे अधिक स्वर्ण पदक प्राप्त किये। इसके बाद मनीला, टोक्यो, बैंकाक, तेहरान आदि में एशियाड खेलों का आयोजन हुआ। सन् 1982 में पुन: दिल्ली में एशियाड का आयोजन किया गया जिसमें चीन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।

आजकल खेलों को शिक्षा का अनिवार्य अंग मान लिया गया है। दूरदर्शन के बढ़ते हुए प्रभाव ने भी खेलों के प्रति बच्चों के रुझान को विकसित किया है। आप कहीं भी निकल जाइये जहाँ भी खुली जगह मिलेगी बालक व किशोर क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी आदि खेलते नजर आयेंगे। यह एक शुभ लक्षण है, क्योंकि खेलों से शारीरिक विकास के साथ ही अन्य लाभ भी हैं, जैसे-स्वस्थ मनोरंजन, समय का सदुपयोग व भाई-चारे की भावना में वृद्धि, मिल-जुलकर काम करने की आदत का निर्माण, साहस, वीरता, सहनशीलता आदि नैतिक गुणों का विकास होता है।

खेलों के विकास के लिए भारत शासन ने एक खेल मन्त्रालय ही स्थापित कर दिया है। यह मन्त्रालय क्षेत्रीय, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है। उत्तम खिलाड़ियों का चुनाव करके उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करता है और खेल की उत्तम सामग्री के निर्माण के लिए अनुदान व ऋण प्रदान कर प्रोत्साहित करता है।

मध्य प्रदेश शासन ने भी खेलों के विकास के लिए प्रत्येक संभाग में ‘खेल संगम केन्द्र’ (Sports Complex) स्थापित किये हैं। इन केन्द्रों में प्रतिभाशाली खिलाड़ी छात्रों के लिए छात्रावास बनाये जायेंगे, वहाँ स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उन्हें विभिन्न खेलों में प्रशिक्षित किया जायेगा। आशा है शासन को इस दिशा में पर्याप्त जन-सहयोग मिला तो अवश्य ही 21 वीं शताब्दी में हमारा देश विश्व स्तर की किसी भी खेल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करेगा।

6. प्रदूषण की समस्या
(म. प्र. 2010,11, 15)

गंगा मैली हो गयी। आकाश विषैली धूलों और धुओं से भर उठा है। वायुमण्डल विषाक्त हो उठा है। प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल हो गयी है कि लोगों का जीना दूभर हो गया है।

यह प्रदूषण क्या है? जिसने लोगों का जीना हराम कर दिया है। प्रदूषण जल, वायु तथा भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है, जो विकृति को जन्म देता है। प्रदूषण वे सभी पदार्थ या तत्त्व हैं, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वायुमण्डल, जलमण्डल तथा पृथ्वीमण्डल को दूषित बनाकर, प्राणीमात्र के जीवन एवं संसाधनों पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन भयावह बनती जा रही है। शुद्ध जल और शुद्ध हवा का अभाव हो गया है। जिससे प्रतिवर्ष हजारों लोग मौत के मुँह में समाते जा रहे हैं। भोपाल गैसकाण्ड, नागासाकी, हिरोशिमा पर द्वितीय विश्व-युद्ध में गिराये गये बमों के द्वारा जो विनाश-लीला हुई, उसकी याद दिलाता है। कैंसर जैसे असाध्य रोगों का बढ़ता प्रकोप प्रदूषण की समस्या का ही दुष्परिणाम है।

इस समस्या के कारणों पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि अणु-परमाणु विस्फोटों से फैलने वाली धूलों से वायुमण्डल और पृथ्वीमण्डल सभी विषाक्त हो रहे हैं जिससे रक्त कैंसर होता है। आज सम्पूर्ण विश्व तेजी से औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप पग-पग पर, गाँव-गाँव, नगर-नगर में कल-कारखाने स्थापित होते जा रहे हैं। इन कारखानों से निकलने वाले सड़े-गले पदार्थ एवं गैसें, सभी मिलकर प्रदूषण की समस्या को भयावह बनाते जा रहे हैं। नदी, सरोवर, वायुमण्डल सभी दूषित होते जा रहे हैं। वृक्षों और वनों को काटकर बड़े-बड़े नगर बसाये जा रहे हैं, भवन और बाँध बनाये जा रहे हैं। ये सब प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। प्रदूषण के भेद निम्नलिखित हैं-

  1. जल प्रदूषण
  2. वायु प्रदूषण
  3. ध्वनि प्रदूषण
  4. मृदा प्रदूषण

कारण है, तो समस्या का समाधान भी है। सर्वप्रथम भारत सहित विकासशील राष्ट्रों को यह विचार करना होगा कि उसे कैसा विकास चाहिये। पाश्चात्य देशों का अन्धानुकरण छोड़कर इन देशों को अपने प्राकृतिक पर्यावरण तथा आवश्यकता के अनुकूल कल-कारखानों को लगाना चाहिये। कारखाने स्थापित करने से पूर्व उनसे निकलने वाली हानिकारक धूल-गैसों को उचित दिशा व स्थानों की ओर स्थानान्तरित करने के लिए उपाय कर लिये जाने चाहिये। परमाणु परीक्षणों पर रोक लगायी जाये। वनों की निर्ममतापूर्वक कटायी न की जाये। जितने वृक्ष काटे जायें, उनसे अधिक लगाये जायें। नगरों की बढ़ती जनसंख्या को रोका जाये।

समय रहते यदि प्रदूषण की समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का विनाश निश्चित है। भोपाल गैसकाण्ड एक बड़ी चेतावनी है। सभी लोगों और देशों को चाहिये कि मानव जाति को सर्वनाश से बचाने के लिए पर्यावरण को स्वच्छ बनायें तथा ऐसा कार्य न करें जिससे प्रदूषण की समस्या बढ़े और पावन गंगा भी मैली हो जाये।

7. विज्ञान के नये आविष्कार
(म. प्र. 2010,11, 15)

प्रस्तावना-मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये आविष्कार किये हैं। इस शताब्दी में विज्ञान ने भारी प्रगति की है और संसार का नक्शा ही बदल दिया है।

विज्ञान ने हमारी बड़ी-से-बड़ी और छोटी-से-छोटी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की है। उसने मानव जीवन में अधिक आनन्द बढ़ाया है। अंधे को आँखें, बहरे को कान, पंगु को पैर दिये हैं और मनुष्य को पक्षियों के समान आकाश में उड़ने की सुविधा दी है। मनुष्य जल पर भी चल सकता है। वैज्ञानिक उपकरणों के सहारे आज हम सैकड़ों मील दूर बैठे हुए अपने किसी मित्र से बातचीत कर सकते हैं।

  1. मनोरंजन के क्षेत्र में मनोरंजन की आधुनिक वस्तुएँ विज्ञान की ही देन हैं। सिनेमा, टेलीविजन, टेपरिकार्डर, रेडियो आदि के माध्यम से हम मनोरंजनार्थ प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री देख-सुन सकते हैं। हमारी शिक्षा, संस्कृति, आचार-विचार पर भी इसका प्रभाव पड़ा है।
  2. चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने मानव को बड़ा लाभ पहुँचाया है। खतरनाक रोगों पर काबू पा लिया गया है। कई प्रकार के टीकों का आविष्कार हो चुका है। एक्स रे द्वारा तो शरीर का भीतरी भाग तक अच्छी तरह से देखा जा सकता है, शल्य चिकित्सा का भी अच्छा विकास हुआ है। अब तो विज्ञान मौत को भी जीतने का प्रयास कर रहा है।
  3. कृषि के क्षेत्र में कृषि और उद्योग-धन्धों के विकास में भी विज्ञान ने हमारी बड़ी मदद की है। उसने नलकूप, ट्रैक्टर, वैज्ञानिक खाद आदि ऐसे अनेक उपकरण निर्मित किये हैं जिनके कारण उत्पादन अनेक गुना बढ़ गया है। ट्रैक्टर, सिंचाई के पम्प, बीज बोने से लेकर काटने और साफ करने तक के यंत्र, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाईयाँ आदि विज्ञान के कारण सम्भव हो सकी हैं।
  4. आवागमन के क्षेत्र में आज संसार की दूरी कम हो गयी है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना साकार हुई है। आवागमन के द्रुतगामी साधनों के कारण आज मनुष्य दिल्ली में भोजन करता है, मुम्बई जाकर पानी पीता है और कोलकाता जाकर शयन करता है। इंग्लैण्ड, अमेरिका, रूस आदि देशों की यात्रा अब स्वप्न नहीं रह गयी है। यात्रा द्रुत, सुगम, सुखद और सुरक्षित हो गयी है।
  5. अन्य क्षेत्रों में विज्ञान ने मानव जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। गैस का चूल्हा, विद्युत् चूल्हा, रेफ्रीजरेटर, बिजली का पंखा आदि कई वस्तुएँ हमारे दैनिक जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। नई-नई मशीनों का चलन हो गया है। .
  6. अन्तरिक्ष में विज्ञान-वैज्ञानिकों ने आर्यभट्ट, भास्कर, रोहिणी, इन्सैट के उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित कर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित कर दी है। मानव चन्द्र यात्रा कर आया है अब मंगल और दूरस्थ ग्रहों की बारी है।

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अभिशाप-विज्ञान ने मनुष्य को अनेक प्रकार से लाभान्वित किया है, वहीं कई प्रकार से अहित भी किया है। अनेक लाभकारी आविष्कारों के साथ उसने भयंकर-से-भयंकर शस्त्रों का निर्माण किया है। ये अस्त्र शस्त्र इतने घातक होते हैं कि देखते-ही-देखते लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार सकते हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में अणु बम का दुष्परिणाम हम देख ही चुके हैं। अब तो अणु बम से भी अधिक भयंकर, अधिक विनाशकारी शस्त्रास्त्र बन चुके हैं, जिनका कि अभी हाल ही में हुए युद्ध में इराक तथा बहुराष्ट्रीय सेनाओं ने डटकर प्रयोग किया था। इस प्रकार इन अस्त्रों के कारण मानवता के लिए एक जबरदस्त खतरा पैदा हो गया है।

विज्ञान ने बड़ी-बड़ी मशीनों और कारखानों के द्वारा उत्पादन अवश्य बढ़ाया है, लेकिन बेरोजगारी, स्पर्धा, शोषण, अस्वास्थ्य आदि की समस्याएँ भी पैदा की हैं। उद्योगों का बड़े पैमाने पर केन्द्रीयकरण हो गया है, समाज पूँजीपति और श्रमिक वर्ग में बँट गया है। इन्हीं कारखानों ने बड़े-बड़े देशों में स्पर्धा की भावना पैदा की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध होते रहते हैं।

उत्पादन वृद्धि के साथ बेकारी भी बढ़ रही है। भोपाल में दिसम्बर 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसने के कारण 25000 से अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। विज्ञान के कारण समाज में भौतिकवाद और विलासिता की भावना भी बढ़ी है। आज का मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे पागल है। जितनी सुविधाएँ बढ़ रही हैं मनुष्य उतना ही विलासी बनता जा रहा है। विलासिता के कारण शक्ति का क्षय होता जा रहा है। आज मनुष्य शारीरिक दृष्टि से पहले की अपेक्षा बहुत कमजोर हो गया है। विभिन्न प्रकार के बढ़ते हुए प्रदूषण ने भी मानव जीवन को बहुत प्रभावित किया है।

उपसंहार-विज्ञान की उपलब्धियाँ एक ओर आनन्दकारी हैं, तो दूसरी ओर विध्वंसकारी भी। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी प्रवृत्तियों का परिमार्जन करें और विज्ञान द्वारा प्रदत्त वस्तुओं का उपयोग मानवता की रक्षा, खुशहाली और कल्याण के लिए करें। विज्ञान, विनाश का नहीं सृजन का साधन बनाया जाना चाहिए। विज्ञान दोषी नहीं, दोषी है मनुष्य जो इसका दुरुपयोग करता है।

18. परमाणु शक्ति और मानव जीवन (Imp.)

प्रस्तावना-आज विज्ञान अपनी उन्नति के शिखर पर है। विज्ञान के क्षेत्र में अनेक आविष्कार हुए हैं उन सबमें परमाणु शक्ति का विशेष महत्त्व है। परमाणु शक्ति दो रूपों वाली है। इसका एक रूप जनजीवन के भयंकर संहार में लग सकता है। दूसरा रूप उनका शांतिमय उपयोग है जिसके द्वारा विश्व-मानव का जीवन कल्याणमय बन सकता है। – भारत में परमाणु परीक्षण का विकास-18 मई, 1974 का वर्ष भारत की वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठ माना जाएगा। यह वह पावन तिथि है जिसकी कल्पना डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ने की थी, जिसके लिए प्रयत्नशील डॉ. साराभाई हुए, जिनका क्रियान्वयन डॉ. सेठना के तत्वावधान में हुआ। 18 मई, 1974 को भारत ने शांति कार्यों के लिए भूमिगत अणु विस्फोट करके सारे संसार के हृदय में विस्फोट कर दिया। इसके पश्चात् 11 एवं 13 मई, 1998 को पाँच और परमाणु परीक्षण किए गए, जिससे भारत विश्व के परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की पंक्ति में शामिल हो गया। सारा संसार भारत की इस वैज्ञानिक उपलब्धि से चकित रह गया है।

परमाणु शक्ति का दुष्परिणाम-विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ विनाश की भयंकरता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। आज विश्व में यदि तृतीय युद्ध होता है तो वह परम्परागत अस्त्र-शस्त्रों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि चलित शस्त्रों का प्रयोग होगा और जनजीवन का भयंकर विनाश होगा। द्वितीय महायुद्ध में जापान के युद्ध का अंत एक छोटे एटम बम से हुआ। आज तो उसकी तुलना में बहुत विशाल एवं भयंकर परमाणु बमों से भरे हवाई जहाज चक्कर काटते रहते हैं। परमाणु शक्ति से चलित प्रक्षेपास्त्रों के अड्डे निरंतर आक्रमण के लिये सजग रहते हैं। इस प्रकार परमाणु शक्ति का युद्ध के लिये उपयोग करने से भयंकर विनाश सम्भव है जिसकी कल्पना करना सम्भव नहीं है।

लाभ-हाइड्रोजन बम और कोबाल्ट बमों के रोमांचकारी परिणामों से भयभीत विश्व-मानव का विवेक आज परमाणु शक्ति के शांतिमय उपयोग की बात सोच रहा है। इस शक्ति का उपयोग मानव कल्याण के लिये होने पर विश्व का नक्शा ही बदल जाएगा। यह असीम शक्ति है। इसके द्वारा मानव बहुत उन्नति कर सकता है। परमाणु शक्ति का जीवन के विविध क्षेत्रों में शांतिमय उपयोग सम्भव है। आज संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि परमाणु शक्ति के शांतिमय उपयोग से मानव का कल्याण होगा और उसको समृद्धि प्राप्त होगी। अणु-परमाणु शक्ति महान् शक्ति है। परमाणु शक्ति के औंस भर ईंधन से 15 लाख टन कोयले की शक्ति प्राप्त की जा सकती है।

परमाणु शक्ति के विकास से निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. वैज्ञानिकों का मत है कि यदि इसी रफ्तार से मानव प्राकृतिक ईंधन का प्रयोग करता रहा तो इन स्रोतों का कुछ समय बाद अंत आ जाएगा। ऐसी स्थिति में परमाणु शक्ति के द्वारा मानव, ईंधन की कमी पूरी करने में समर्थ होगा।
  2. परमाणु शक्ति से कम खर्च में सस्ती विद्युत् तैयार की जा रही है।
  3. इस शक्ति के द्वारा कम खर्च में पानी के जहाज एवं पनडुब्बियाँ चलाई जा रही हैं। फ्रांस, रूस और अमेरिका इस क्षेत्र में उन्नति कर रहे हैं। भविष्य में वायुयान, मोटरगाड़ियाँ और रेलें भी परमाणु शक्ति से चला करेंगी।
  4. परमाणु शक्ति का चिकित्सा के क्षेत्र में भी बड़ा उपयोग है। घातक रोगों के उपचार के लिए परमाणु शक्ति अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। परमाणु ऊर्जा से प्राप्त विभिन्न प्रकार के रेडियो आइसोटोपों से शरीर के आन्तरिक विकारों का ज्ञान हो जाता है। रेडियो आइसोटोपों द्वारा ही कैंसर जैसे भयंकर रोग की चिकित्सा हो सकती है। रेडियो कैल्सियम द्वारा हड्डी की बढ़ोतरी की जानकारी हो जाती है।
  5. परमाणु शक्ति किसानों और पशुपालकों की भी सहायता करती है। रेडियो कोबाल्ट के टुकड़ों को खेत में गाड़ देने पर बहुत उत्तम और अधिक मात्रा में खाद्यान्न पैदा होता है। फसलों को नष्ट करने वाले कीटाणुओं का ज्ञान भी रेडियो आइसोटोपों द्वारा होता है। यदि शाक-सब्जी, अन्न, फल, दूध और मांस आदि पदार्थों पर कुछ क्षणों के लिये रेडियो आइसोटोप सक्रिय छोड़ दिये जाएँ तो वे कीटाणुरहित हो जायेंगी और बहुत समय तक खराब नहीं होंगी।
  6. कोबाल्ट से बने छोटे-छोटे एक्स-रे यंत्रों की सहायता से प्राचीन मूर्तियों की जाँच-पड़ताल की जा सकती है। उनका रचनाकाल जाना जा सकता है।
  7. परमाणु ऊर्जा से पॉली एथीलीन (पॉलीथीन) नामक नया प्लास्टिक भी बनाया गया है। अन्य रासायनिक पदार्थों के निर्माण में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है।
  8. परमाणु ऊर्जा के द्वारा साइबेरिया के रेगिस्तान अब उपजाऊ मैदान बन चुके हैं। परमाणु शक्ति से बड़े-बड़े पहाड़ों को काटकर आवागमन के मार्ग बनाए गए हैं।

हानि इस प्रकार हम देखते हैं कि विश्व के अनेक देशों में परमाणु शक्ति का विनियोग मानव कल्याण के कार्यों में हो रहा है। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस और भारत आदि अनेक देशों में परमाणु शक्ति के मानव हित में शांतिमय उपयोग किए जा रहे हैं।

गत वर्षों में अणुबमों और उद्जन बमों के जो परीक्षण हुए हैं उनसे यह बात स्पष्ट हो गई कि यदि अब कोई विश्व-युद्ध हुआ तो समस्त संसार खत्म हो जाएगा। अणुबम युद्ध दोनों पक्षों का ऐसा विनाश कर देगा कि विजेता और विजित में कोई अन्तर नहीं रहेगा। यह भी सम्भव है कि बड़े परमाणु युद्ध में अणु एवं हाइड्रोजन बमों के विस्फोट के फलस्वरूप समस्त मानव जाति ही नष्ट हो जाए। रेडियो सक्रियता का प्रभाव सभी जीवित प्राणियों पर अत्यन्त घातक होता है।

उपसंहार-परमाणु शक्ति अपने आपमें कोई संहारक शक्ति नहीं है। इसके शांतिमय उपयोग से मानव कल्याण होगा। अणुशक्ति से परिचालित राकेटों के द्वारा मनुष्य चन्द्रमा तथा पृथ्वी से दूर अन्य ग्रहों तक पहुँच सका है। यदि इसका रचनात्मक कार्यों में उपयोग किया जाये तो यह मानव जाति के लिये वरदान सिद्ध होगा।

9. इक्कीसवीं सदी का भारत
(म. प्र. 2013, 15)

प्रस्तावना-21 वीं सदी का भारत एक नवजात शिशु की भाँति कुण्ठाओं से रहित निरंतर वृद्धिगत एवं विकासशील राष्ट्र होगा। वह एक ऐसा वट वृक्ष होगा जिसकी जडें गहरी होंगी। वे गौरवशाली परम्पराओं के ग्रहण करती हुई नित्य नई शाखाओं को प्रस्फुटित करने में समर्थ होंगी। वह वट वृक्ष प्रत्येक पक्षी और पथिक को आश्रय एवं व्यवहार प्रदान करने वाले स्थायी स्रोत होगा।

21 वीं सदी में प्रवेश-20 वीं सदी नित्य नये उतार-चढ़ाव परिवर्तनों एवं सघर्षों से परिपूर्ण रही है। इसके पूर्वार्द्ध में दो विश्व युद्ध हुए जिसके कारण भगवान और विधान दोनों के प्रति जन- सामान्य की आस्थाएँ डगमगा गयी। इसी कालावधि में भारत का विभाजन एवं साम्प्रदायिक रक्त- रंजित नरसंहार हुआ। सत्य और अहिंसा के अवतार महात्मा गाँधी की नृशंस हत्या भी इस सदी ने देखी।

21 वीं सदी के कर्णधार नागरिक बीसवीं सदी की विषमताओं से विहीन एवं समस्त कुण्ठाओं पूर्वाग्रहों आदि से मुक्त होंगे। वे नव-भारत के निर्माण में प्राणप्रण से संलग्न हो जायेंगे। यह नई पीढ़ी प्रगति के पथ पर अतीत के सुफल बटोरेगी, वर्तमान के फूल बिखेरेगी तथा भविष्य के बीज बोती हुई निरंतर गतिमान रहेगी।

विज्ञान एवं कम्प्यूटर-पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तथा कम्प्यूटर के सहारे भारत को 21 वीं शताब्दी में ले जाने को निरंतर प्रयत्नशील थे। वे इसी मार्ग से 21 वीं सदी में प्रवेश करना-कराना चाहते थे। वस्तुत: तकनीकी उन्नति की माँग ही है हम ज्ञानेन्द्रियों की क्षमता में वृद्धि करने वाले उपकरणों का नित्य नया विकास करें।

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आध्यात्मिकता-हमारी परिकल्पना है कि 21 वीं सदी के भारत में मनीषी, संत, श्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा शक्ति संपन्न राजपुरुष मानव होंगे। भारत की आत्मिक शक्ति नये रूप में प्रस्फुटित होगी और पूर्ण वेगं के साथ प्रवाहमान होगी। 21 वीं सदी के भारत के सम्मुख गौरवशाली परम्पराओं के वरदान के साथ परम्परागत समस्याओं के अभिशाप भी होंगे। सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदि सभी प्रकार की समस्यायें अपना समाधान नये सिरे से चाहेंगी। 21 वीं सदी के भारत में गाँधीवादी जीवन दर्शन कथनी की उपेक्षा करके, करनी का वरण कर चुका होगा। तब बापू के सुख स्वप्न को साकार करने वाला राम राज्य हमारा जीवनादर्श होगा। उनकी परम्पराएँ हमारे जीवन मूल्य होगी। तब राजनीति का धर्म होगा और धर्म की राजनीति होगी। प्रत्येक भारतवासी अपने गुण स्वभाव के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने के लिए स्वतंत्र होगा।

शिक्षा-दीक्षा-21 वीं सदी की शिक्षा नीति भारत को नया मानव प्रदान करेंगी। उस शिक्षा पद्धति के अंतर्गत बालक को भीड़ के अंग के रूप में नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में शिक्षित-प्रशिक्षित होने के अवसर प्रदान किये जायेंगे। उसको न तो कोरा कागज समझा जायेगा जिसमें चाहे जो कुछ लिखा जा सके और न उसको एक खाली बर्तन ही समझा जायेगा जिसमें चाहे कुछ भी हो भर दिया जाये। उसको एक विकासशील पौधे की तरह विकसित होने के लिए उन्मुक्त एवं उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जायेगा। इसका निर्माण समर्पित शिक्षकों के हाथों में होगा। प्रत्येक स्तर पर रोजगार-परक शिक्षा की व्यवस्था होगी। 21 वीं सदी के भारत की शिक्षा नीति का लक्ष्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना होगा जो अपने परिवार, समाज, देश और उसकी मिट्टी से प्यार करें और अपने आपको भारतीय कहने में आत्मगौरव का अनुभव करें।

उपसंहार-इस प्रकार 21 वीं सदी का भारत सही अर्थों में भारतीय मानव का देश होगा। इनमें छुआछूत, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, राजा-रंक का यहाँ नाम भी नहीं होगा। ईश्वर 21 वीं सदी में भारत का स्वरूप हमारी कल्पना से भी अधिक समृद्ध एवं श्रेष्ठ हो।

निम्नलिखित विषय पर रूपरेखा लिखिए (म. प्र. 2015)

स्त्री शिक्षा

  1. प्रस्तावना
  2. शिक्षा का महत्व
  3. बालिका शिक्षा प्रयत्न
  4. बालिका शिक्षा के लक्ष्य तक पहुँचने में बाधाएँ
  5. बाधाओं का निराकरण
  6. उपसंहार।

MP Board Class 11th General Hindi Important Questions