MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण कारक एवं उपपद विभक्ति प्रकरण
कारक-“साक्षात् क्रियान्वयित्वं कारकम्” अर्थात् जिस शब्द का क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध होता है, वह कारक कहलाता है।
हिन्दी में विभक्तियाँ (कारक) आठ होती हैं। संस्कृत में सम्बोधन को प्रथमा विभक्ति के अंतर्गत ही मानते हैं। इसलिए संस्कृत में विभक्तियाँ सात हुईं। संस्कृत में कारकों की संख्या छ: मानी गई है। षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक) को कारकों की संख्या में नहीं रखते हैं क्योंकि षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है।
जैसे-
इस वाक्य में ‘जाता है’ (क्रिया) से सीधा सम्बन्ध भाई। (कर्ता) का है न कि राम का। राम का सम्बन्ध तो भाई से है, ‘जाता है’ (क्रिया) से उसका सीधा सम्बन्ध नहीं है। इसलिए राम (सम्बन्ध) को ‘कारक’ नहीं कहेंगे। अतः संस्कृत में कारक छ: ही होते हैं तथा विभक्तियाँ सात होती हैं। कारक और विभक्ति में यही अन्तर होता है।
कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्साहुः कारकाणि षट्॥
हम कारकों को सरल रूप में निम्न चित्र के माध्यम से समझ सकते हैं-
♦ कारक चिह्न
१. कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति)
क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं अर्थात् वाक्य में जिस संज्ञा का सर्वनाम शब्द को कार्य करने वाला या होने वाला समझा जाए, उसे कर्ता कहते हैं। कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे-
- रामः पठति। राम पढ़ता है।
- गीता नृत्यति। गीता नाचती है।
२. कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)
जिस पर क्रिया का फल पड़ता हो, उसे ‘कर्म’ कहते हैं। अथवा कर्ता जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसे ‘कर्म’ कहते हैं। ‘कर्म कारक’ में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे-
- सुरेशः जलं पिबति। सुरेश पानी पीता है।
- बालकः चित्रं पश्यति। बच्चा चित्र देखता है।
उपपद विभक्ति
अभितः, परितः, समया, निकषा, हा, प्रति, विना इत्यादि शब्दों का प्रयोग होने पर द्वितीया विभक्ति होती है-
जैसे-
- ग्रामं अभितः वनम् अस्ति। गाँव के चारों ओर वन है।।
- कृष्णं परितः भक्ताः सन्ति। कृष्ण के चारों ओर भक्त हैं।
- नगरं समया नदी अस्ति। नगर के पास नदी है।
विशेष-‘विना’ इस उपपद के साथ में द्वितीया, तृतीया और पंचमी तीनों विभक्तियों में से कोई भी लगा सकते हैं।
उभयतः, सर्वतः, धिक्, उपर्युपरि, अधोऽधः इत्यादि के साथ भी द्वितीया विभक्ति होती है।
- कृष्णम् उभयतः गोपाः सन्ति। कृष्ण के दोनों ओर ग्वाले
- धिक् ! ज्ञानहीनम्। ज्ञानहीन को धिक्कार है।
३. करण कारक (तृतीया विभक्ति) –
कर्ता जिस वस्तु की सहायता से अपना कार्य पूरा करता है उसे ‘करण कारक’ कहते हैं। करण कारक में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे-
- प्रधानमंत्री विमानेन गच्छति। – प्रधानमंत्री विमान से जाते हैं।
- अध्यापकः सुधाखण्डेन। – अध्यापक चॉकसे लिखता लिखति।
- वृद्धः दण्डेन चलति। – बूढ़ा दण्डे से चलता है।
उपपद विभक्ति
सह, साकम्, सार्धम्, समम्-इन चारों शब्दों के योग में जिसके साथ कोई काम किया जाए, उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
- पुत्रः जनकेन सह गच्छति। पुत्र पिता के साथ जाता है।
- सीता गीतया साक्म/सार्धम्/ सीता गीता के साथ समम्/सह क्रीडति। खेलती है।
अलम् (बस), हीनः (रहित) इत्यादि शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
- अलम् विवादेन। विवाद से बस करो।
- धनेनः हीनः नृपः न धन से रहित राजा सुशोभित नहीं शोभते। होता।
जिस अंग के कारण शरीर में कोई विकार आया हो, – उस अंगवादी शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
- भिक्षुकः पादेन खञ्जः भिखारी पैर से लंगड़ा है। अस्ति।
- सः कर्णेन बधिरः वह कान से बहरा है। अस्ति।
पृथक् (अलग), विना (बिना), नाना (बिना) के योग में द्वितीया, तृतीया और पंचमी विभक्ति होती है।
जैसे-
- रामेण (रामं रामात् वा) राम के बिना दशरथ विना दशरथः न अजीवत्। जीवित नहीं रहे।
- सः मित्रेण (मित्रं मित्रात् वह मित्र से अलग वा) पृथक् स्थातुं न , नहीं रह सकता। – शक्नोति।
जिस चिह्न से कोई व्यक्ति पहचाना जाता हो उस चिह्नवाची शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
- स: जटाभिः साधुः अस्ति। वह जटाओं से साधु है।
- भिक्षुकः नेत्रेण काणः भिखारी आँख से काना – अस्ति।
४. सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति) : जिसके लिए कोई वस्तु दी जाए या जिसके लिए कोई कार्य। किया जाय वह सम्प्रदान कारक कहलाता है। सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे-
- शिक्षकः छात्राय पुस्तकं शिक्षक छात्र के लिए ददाति। पुस्तक देता है।
- नृपः निर्धनाय धनं यच्छति। राजा निर्धन के लिए धन देता है। उपपद विभक्ति
नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण हो) स्वाहा (बलि है- देवता के लिए), स्वधा (बलि है-पितरों के लिए),। अलम् (पर्याप्त) आदि, अव्यय शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
जैसे-
- श्री गणेशाय नमः। श्रीगणेश को नमस्कार।
- सर्वेभ्यः स्वस्ति। सभी का कल्याण हो।
क्रुध्यति (क्रोध करता है), द्रुह्यति (द्रोह करता है), ईय॑ति (ईर्ष्या करता है), असूयति (डाह करता है) के योग में जिसके प्रति क्रोध आदि किया जाए जिसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- दुष्टः सज्जनाय क्रुध्यति। दुष्ट सज्जन पर क्रोध करता है।
- रामः मोहनाय द्रुह्यति। राम मोहन से द्रोह करता है।
रुच् (अच्छा लगना) के योग में जिसको अच्छा लगे, – उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- सुरेशाय मोदकं रोचते। सुरेश को लड्डू अच्छा लगता है।
स्पृहयति (चाहता है, ललचाता है) के योग में जिस वस्तु या व्यक्ति के प्रति चाह या लालच हो उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- कृपणः धनाय स्पृह्यति। कंजूस धन को चाहता है।
५. अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)
जिस वस्तु से किसी का अलग होना पाया जाता है, उस वस्तु को अपादन संज्ञा होती है और अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है।
जैसे-
- वृक्षात् पत्रं पतति। पेड़ से पत्ता गिरता है।
- गङ्गा हिमालयात् प्रभवति। गंगा हिमालय से निकलती उपपद विभक्ति
भय, रक्षा, प्रसाद, जुगुप्सा, विराम इत्यादि धातुओं के साथ पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- शिशुः कुक्कुरात् विभेति। बच्चा कुत्ते से डरता है।
- धर्मः पापात् रक्षति। . धर्म पाप से रक्षा करता
६. सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)
जहाँ पर दो शब्द (संज्ञा या सर्वनाम) एक-दूसरे से। (स्वामी-विवेक, जन्य-जनक,कार्य-कारक आदि) सम्बन्ध रखते हों, वहाँ पर जिस वस्तु का सम्बन्ध होता है, उसमें षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे
- मोहनः रामस्य पुत्रः अस्ति। मोहन राम का पुत्र है।
- देवकीः कृष्णस्य माता देवकी कृष्ण की माता थीं। – आसीत्।
- गणेशः शिवस्य पुत्रः गणेश शिव का पुत्र है। – अस्ति।
- लवस्य पिता रामः। लव के पिता राम थे।
७. अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)
जो शब्द क्रिया का आधार हो, उसे अधिकरण कारक कहते। हैं। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।
जैसे-
- सिंहः वने अस्ति। सिंह वन में रहता है।
- पक्षी वृक्षे अस्ति। पक्षी वृक्ष पर है।
८. सम्बोधन
किसी को पुकारने या सावधान करने हेतु जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसे सम्बोधन कहते हैं। सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे-
- हे राम! तत्र गच्छ। हरे राम! वहाँ जाओ।
- भो छात्रा:! ध्यानेन अरे छात्रो! ध्यान से सुनो। – शृणुथ।
- हे सीते! कुत्र अस्ति ? हे सीता! कहाँ हो?