MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 1 मेरी भावना
MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Chapter 1 पाठ का अभ्यास
बोध प्रश्न
Meri Bhavna MP Board Class 7th प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) हमें जीवों के प्रति किस तरह की भावना रखनी चाहिए?
उत्तर-
हमें जीवों के प्रति मित्रता व दया की भावना रखनी चाहिए।
(ख) ‘मेरी भावना’ कविता में कवि ने किन-किन पर साम्यभाव रखने की बात कही है ?
उत्तर-
इस कविता में कवि ने दुष्ट, निर्दयी व गलत रास्ते पर चलने वाले इत्यादि के प्रति साम्यभाव रखने की बात कही है। .
(ग) देशोन्नति से कवि का क्या आशय है ? कवि किस तरह की देशोन्नति में सम्मिलित होना चाहता है ?
उत्तर-
देशोन्नति से कवि का आशय-देश की उन्नति से है। कवि चाहता है कि सभी हृदय से युगवीर बनकर देश की उन्नति और विकास में सम्मिलित हों।
कक्षा सातवीं विषय हिंदी पाठ 1 MP Board Class 7th प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से सद्गुण और दुर्गण के लिए प्रयुक्त शब्दों की सूची अलग-अलग बनाइए अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या, उपकार, क्रूर, प्रेम, मोह।
उत्तर-
मेरी भावना के प्रश्न उत्तर MP Board Class 7th प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव जिस पंक्ति में आए हों, उस पंक्ति को लिखिए और सुनाइए ईर्ष्या, करुणा, लालच, कृतघ्न।
उत्तर-
विद्यार्थी निम्न पंक्तियों को कण्ठस्थ करें व कक्षा में सुनाएँ
- ईर्ष्या-देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ।
- करुणा-दीन-दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा-स्रोत बहे।
- लालच-अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आए।
- कृतघ्न-होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आए।
मेरी भावना कविता का सार MP Board Class 7th प्रश्न 4.
कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
पाठ के प्रारम्भ में दिये गए विभिन्न पद्यांशों की व्याख्याओं का अवलोकन करें।
भाषा अध्ययन
भाषा भारती कक्षा 7 MP Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित अशुद्ध शब्दों की वर्तनी शुद्ध करके लिखिए इष्या, स्त्रोत, दुजर्न, परिणती, द्रष्टी।
उत्तर-
Mp Board Class 7th Hindi Chapter 1 प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखकर अन्तर स्पष्ट कीजिएभाव-भव रात-रत। बैर-बेर गृह-ग्रह।
उत्तर-
-
- भाव (मूल्य)-भव (संसार)
अन्तर-भाव का अर्थ होता है किसी वस्तु का मूल्य जबकि भव का अर्थ है संसार । - रात (रात्रि)-रत (लगा हुआ)।
अन्तर-रात का प्रयोग रात्रि के समय के लिए किया जाता E है, जबकि रत का अर्थ होता है किसी कार्य में लगा हुआ। - बैर (द्वेष)-बेर (एक फल)
अन्तर-बैर शब्द का प्रयोग दुश्मनी अथवा द्वेष के लिए किया जाता है, जबकि बेर एक खाद्य-फल है।
- भाव (मूल्य)-भव (संसार)
- गृह (निवास स्थान, घर)-ग्रह (विशाल आकाशीय पिण्ड)।
अन्तर-गृह का अर्थ घर से है, जबकि ग्रह का प्रयोग विशालकाय आकाशीय पिण्डों (पृथ्वी, शनि, बृहस्पति इत्यादि) के लिए किया जाता है।
भाषा भारती कक्षा 7 पाठ 1 MP Board प्रश्न 3.
वर्ग पहेली में से नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द छाँटकर लिखिए
उपकार, कुमार्ग, कृतघ्न, जीवन, अन्याय, दु:ख।
उत्तर-
Bhasha Bharti Class 7 Solutions MP Board प्रश्न 4.
नीचे लिखे शब्दों को ध्यान से पढ़िए और जिन वर्णों की आवृत्ति हुई है उसे लिखिए
उत्तर-
(क) सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
1. अहंकार का भाव न रक्खू,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ।
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ।।
रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल-सत्य व्यवहार करूँ।
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों का उपकार करूँ।।
मैत्री भाव जगत में मेरा,
सब जीवों से नित्य रहे।
दीन-दुखी जीवों पर मेरे,
उर से करुणा-स्रोत बहे।।
शब्दार्थ-अहंकार = घमण्ड; ईर्ष्या = द्वेष; करुणा-स्रोत = दया की धारा।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा भारती’ के ‘मेरी भावना’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता जुगल किशोर ‘युगवीर’ हैं।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ईश्वर से अपने लिए अच्छी भावनाओं की कामना करता है।
व्याख्या-हे ईश्वर ! कभी भी घमण्ड का भाव मेरे मन में न आये और न ही मैं किसी पर गुस्सा करूँ। दूसरों की उन्नति और विकास को देखकर मुझे प्रसन्नता हो, न कि कुढ़न।।
हे प्रभु ! मैं चाहता हूँ कि मेरी ऐसी भावना हो कि मैं सबके प्रति सरलता व सत्यता का व्यवहार करूँ और जहाँ तक सम्भव हो सके मैं अपने इस जीवन को परोपकार में लगा सकूँ, अर्थात् दूसरों की भलाई कर सकूँ। तेरे बनाये सभी जीव-जन्तुओं एवं पादपों से मेरा व्यवहार प्रतिदिन मित्रवत् हो तथा दुखी व परेशान प्राणि-मात्र के प्रति मेरे हृदय में दया की अविरल धारा बहती रहे।
2. दुर्जन-क्रूर कुमार्गरतों पर,
क्षोभ नहीं मुझको आए
साम्यभाव रक्खू मैं उन पर,
ऐसी परिणति हो जाए।।
गुणीजनों को देख हृदय में,
मेरे प्रेम उमड़ आए।
बने जहाँ तक उनकी सेवा,
करके यह मन सुख पाए।।
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं,
द्रोह न मेरे उर आए।
गुण ग्रहण का भाव रहे नित,
दृष्टि न दोषों पर जाए।।
शब्दार्थ-दुर्जन = दुष्ट; क्रूर = कठोर; कुमार्गरतों = बुरे रास्ते पर चलने वाले क्षोभ = कष्ट; साम्यभाव = समानभाव; परिणति = बदलाव; गुणीजन = गुणवान लोग; कृतघ्न = उपकार न मानने वाला; द्रोह = वैर; उर = हृदय।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ईश्वर से अपने लिए अच्छी भावनाओं का वरदान चाहता है।
व्याख्या-हे प्रभु ! मेरी सदैव ऐसी भावना रहे कि मुझे दुष्ट, कठोर और बुरे आचरण वाले लोगों के व्यवहार पर दुःख न हो। मेरे हृदय में उनके प्रति ऐसा बदलाव हो कि मैं उनके प्रति समानता का भाव रखने लगूं।
जब मैं गुणवान लोगों को देखू तो उनके लिए मेरे हृदय में प्रेम की भावना उत्पन्न होती रहे। जहाँ तक सम्भव हो सके मैं ऐसे लोगों की तन-मन-धन और कर्म से सेवा कर मन की शान्ति अर्जित कर सकूँ।
मैं कभी भी दूसरों के किये हुए उपकार को भूलने वाला न बनूँ और मेरे मन में किसी के प्रति भी वैर-भावना पैदा न हो। दूसरों के चरित्र में से मैं उसके अन्दर छिपे गुणों को स्वीकार करता रहूँ, किन्तु उनके दोषों की ओर मेरा ध्यान कदापि न जाये। हे ईश्वर ! मेरी प्रतिदिन यही भावना रहे।
3. कोई बुरा कहे या अच्छा,
लक्ष्मी आए या जाए।
लाखों वर्षों तक जीऊँ या,
मृत्यु आज ही आ जाए।
अथवा कोई कैसा ही भय,
या लालच देने आए।
तो भी न्यायमार्ग से मेरा,
कभी न पद डिगने पाए।।
फैले प्रेम परस्पर जग में,
मोह दूर पर रहा करे।
अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं,
कोई मुख से कहा करे।।
बनकर सब युगवीर हृदय से,
देशोन्नतिरत रहा करें।
वस्तु स्वरूप विचार खुशी से,
सब दुःख संकट सहा करें।।
शब्दार्थ-न्यायमार्ग = न्याय का रास्ता; पद = पैर, पग; परस्पर = आपस में; मोह = लालच; कटुक = कड़वा; देशोन्नतिरत = देश की उन्नति में लगे।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रतिकूल अथवा अनुकूल, दोनों परिस्थितियों में धैर्य रखने की शक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है।
व्याख्या-कोई मुझे बुरा कहे अथवा कर्ण-प्रिय शब्द बोले, मेरे पास धन आए अथवा जाता रहे, चाहे मैं लाखों वर्षों तक जीता रहूँ अथवा मेरी मौत नजदीक हो अथवा मुझे कोई कैसा भी बरगलाने या लालच देने का प्रयत्न करे, तो भी हे मेरे ईश्वर ! मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कर, जिससे न्याय के पथ से मेरे कदम हटने न पाएँ।
इस दुनिया के समस्त निवासियों के मध्य आपस में प्यार बढ़े, सभी लोभ, लालच से दूर रहें तथा कोई भी अपने मुँह से । किसी के लिए भी अप्रिय, कड़वे तथा कठोर शब्द न बोले। – सभी देशवासी मन से दृढ़ संकल्पित हो युगवीर बनें और सदैव राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दें। साथ ही, सभी दुखों पीड़ाओं और संकटों को वस्तु के समान आने जाने वाला सोचकर अर्थात् उन्हें जीवन का एक अंग मानकर खुशी से सहन किया करें।
शब्दकोश
अहंकार = घमण्ड; परिणति = बदलाव या परिवर्तन; ईर्ष्या = जलन; करुणा = दया; कटु = कठोर, कड़वा; . देशोन्नति = देश की उन्नति; स्रोत = धारा, साधन, उद्गम; क्षोभ = खेद, दुःख; क्रूर = निर्दयी।