MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ

जीव और समष्टियाँ NCERT प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) से उपरति (डायपॉज) किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर
दोनों ही क्रियाएँ ताप अनुकूलन से संबंधित हैं । प्राणियों में जब जीव प्रवास (Migrate) नहीं कर पाता है तो वह पलायन करके शीत ताप से बचता है, जैसे शीत ऋतुओं में शीत निष्क्रियता (Hibernation) में जाना तथा उस समय पलायन से बचाव का तरीका है। प्रतिकूल परिस्थितियों में झीलों और तालाबों में प्राणी प्लवक (Zooplankton) की अनेक जातियाँ उपरति (Diapause) में आ जाती हैं जो निलंबित (Suspended) परिवर्धन की एक अवस्था है।

दोनों ही क्रियाओं में प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित बचे रहने में सहायता मिलती है। जैसे ही इन्हें उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध होता है, ये अपना सामान्य जीवन व्यतीत करने लगते हैं। इन अवस्थाओं में भोजन ग्रहण, वृद्धि, गतिशीलता तथा प्रजनन क्रियाएँ सुप्त (Dormant) हो जाती हैं।

प्रश्न 2.
अगर समुद्रीय मछली को अलवण जल (फ्रेश वॉटर) की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है तो क्या यह मछली जीवित रह पायेगी? क्यों और क्यों नहीं ?
उत्तर
समुद्रीय जल की लवणता 3% होती है, जो प्रायः सभी समुद्रों में एक समान होती है। इस गुण के कारण समुद्रीय प्राणियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवासन में कोई बाधा नहीं होती है। जबकि अलवणीय जल में लवणता परिवर्तनशील होती है। समुद्रीय व अलवण जलीय जल में रहने वाले प्राणियों को शरीर में पानी के नियमन की समस्या से सामना करना पड़ता है। शुद्ध जलीय (अलवणीय) प्राणियों को

अंत:परासरण (Endosmosis) से सामना करना पड़ता है, जबकि समुद्रीय प्राणियों को बहि:परासरण (Exosmosis) से सामना करना पड़ता है। जब अलवण जल प्राणी समुद्र के पानी में और समुद्रीय प्राणी अलवण जल में लंबे समय तक नहीं रह सकते क्योंकि उन्हें परासरणीय (Osmotic) समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः समुद्रीय मछली को अलवण जल की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखने पर कुछ समय बाद मर जायेगी।

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प्रश्न 3.
लक्षण प्ररूपी (फीनोटाइपिक) अनुकूलन की परिभाषा दीजिए। एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
आकारिकी लक्षण बाहर से दिखते हैं अत: ये लक्षण प्ररूपी (फीनोटाइपिक),अनुकूलन होते हैं। अत: ऐसे बाहरी लक्षण जिसके कारण वह जीव वहाँ के पर्यावरण में जीवित रहने में सक्षम होता है, उन्हें लक्षण प्रारूप अनुकूलन (Phenotypic adaptation) कहते हैं। उदा.-मरुस्थलीय पादप जैसे-नागफनी, कैक्टस में पत्तियों का अभाव होता है क्योंकि वे काँटों में रूपान्तरित होकर वाष्पोत्सर्जन को न्यून (कम) कर देती है। मरुस्थल में जल की कमी होती है अत: ये जल की कम-से-कम हानि करते हैं। पत्तियों का कार्य हरे चपटे तनों के द्वारा होता है। अत: काँटें पत्तियों का रूपांतरण है तथा तना चपटा व हरा पत्ती सदृश होता है।

प्रश्न 4.
अधिकतर जीवधारी 45° सेंटी. से अधिक तापमान पर जीवित नहीं रह सकते। कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोब) ऐसे आवास में जहाँ तापमान 100 सेंटी. से अधिक है, कैसे जीवित रहते हैं ?
उत्तर
सभी सजीवों में समस्त प्रकार की उपापचयी क्रियाएँ एक निश्चित न्यून तापक्रम पर प्रारम्भ हो जाती है । तापक्रम के बढ़ने के साथ-साथ उपापचयी क्रिया की दर भी बढ़ जाती है परंतु और अधिक तापमान के बढ़ने के साथ-साथ उपापचयी क्रियाएँ धीरे-धीरे मंद होना प्रारंभ हो जाती हैं। कुछ प्राणियों में जैविक क्रियाएँ अत्यधिक तापक्रम पर भी होती रहती हैं।

जीवाणुओं, कवकों व निम्न पादपों में विभिन्न प्रकार के मोटी भित्ति वाले बीजाणु बनते हैं, जिससे वे उच्च ताप को सह लेते हैं। बीजाणुओं में जनन के दौरान अन्त:बीजाणु (Endospore) बनता है। अन्त:बीजाणु की भित्ति मोटी होती है। बेसिलस एन्थ्रेसिस व क्लॉस्ट्रीडियम टिटैनी का जीवाणु 100°C तापमान को सहन कर सकता है। ताप के प्रति यह रोधकता भित्ति में उपस्थित कैल्सियम डाइपिकोलिक अम्ल की अधिकता के कारण होती है।

प्रश्न 5.
उन गुणों को बताइए जो व्यष्टियों में तो नहीं पर समष्टियों में होते हैं।
उत्तर
समष्टि में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो व्यष्टि जीव में नहीं होते। व्यष्टि जन्मता और मरता है लेकिन समष्टि में जन्म दरें और मृत्यु दरें होती हैं । समष्टि में इन दरों को क्रमशः प्रति व्यक्ति जन्म दर और मृत्यु दर कहते हैं इसलिए दर को समष्टि के सदस्यों के संबंधों में संख्या परिवर्तन (वृद्धि या ह्रास) के रूप में प्रकट किया गया है। समष्टि का दूसरा विशिष्ट गुण लिंग अनुपात यानि नर एवं मादा का अनुपात है। व्यष्टि या तो नर है या मादा है लेकिन समष्टि का लिंग अनुपात है (जैसे कि समष्टि का 60 प्रतिशत स्त्री है और 40 प्रतिशत नर है)।

प्रश्न 6.
अगर चरघातांकी रूप से (एक्सपोनेन्शियली) बढ़ रही समष्टि 3 वर्ष में दोगुने साइज की हो जाती है, तो समष्टि की वृद्धि की इन्ट्रिन्सिक दर (r) क्या है ?
उत्तर
चरघातांकी वृद्धि (Exponential growth)-किसी समष्टि की अबाधित वृद्धि उपलब्ध संसाधनों (आहार, स्थान आदि) पर निर्भर करती है असीमित संसाधनों की उपलब्धता होने पर समष्टि में संख्या वृद्धि पूर्ण क्षमता से होती है। जैसा कि डार्विन ने प्राकृतिक वरण सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुये प्रेक्षित किया था, इसे चरघातांकी अथवा ज्यामितीय वृद्धि कहते हैं। यदि N साइज की समष्टि में जन्मदर ‘b’ और मृत्यु दर ‘d’ के रूप में निरूपित की जाए, तब इकाई समय अवधि ‘t’ में समष्टि की वृद्धि या कमी होगी
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‘r’ प्राकृतिक वृद्धि की इन्ट्रिन्सिक दर (Intrinsic rate) कहलाती है। यह समष्टि वृद्धि पर जैविक या अजैविक कारकों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण प्राचल (Parameter) है। यदि समष्टि 3 वर्ष में दोगुने साइज की हो जाती है तो समष्टि की वृद्धि की इन्ट्रिन्सिक दर ‘3r’ होगी।

प्रश्न 7.
पादपों में शाकाहारिता (Herbivory) के विरुद्ध रक्षा करने की महत्वपूर्ण विधियाँ बताइये।
उत्तर
पादपों के लिये शाकाहारी प्राणी परभक्षी है। लगभग 25% कीट पादपभक्षी (Phytophagous) है अर्थात् वे पादप रस एवं पौधों के अन्य भाग खाते हैं। पौधों के लिये यह समस्या विशेष रूप से गंभीर है, क्योंकि वे अपने परभक्षियों से दूर नहीं भाग सकते जैसा कि अन्य प्राणी करते हैं। इसलिये पादपों ने अपने बचाव के लिये आश्चर्यजनक रूप से आकारिकी एवं रासायनिक रक्षाविधियाँ विकसित कर ली हैं।

रक्षा के लिये सबसे सामान्य आकारिकी साधन काँटे ( एकेशिया कैक्टस) है। बेर की झाडी में भी काँटे होते हैं । अनेक पौधे इस प्रकार रसायन उत्पन्न करते हैं जो खाए जाने पर शाकाहारियों को बीमार कर देते हैं। खेतों में उगे हुए ऑक (Calotropis) खरपतवार अधिक विषैले ग्लाइकोसाइड उत्पन्न करते हैं जिसके कारण कोई भी पशु इन पौधों को नहीं खाते हैं। पौधों में अनेक रसायन जैसे-निकोटिन, कैफीन, क्वीनीन, अफीम आदि प्राप्त होते हैं। वस्तुतः ये रसायन चरने वाले प्राणियों से बचने की रक्षा विधियाँ हैं।

प्रश्न 8.
ऑर्किड पौधा, आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। ऑर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया का वर्णन आप कैसे करेंगे?
उत्तर
आम की शाखा पर एक अधिपादप (Epiphyte) के रूप में उगने वाला ऑर्किड पौधा एक सहभोजिता (Commensalism) का उदाहरण है। सहभोजिता में एक जाति को लाभ होता है और दूसरे को न तो लाभ होता है और न ही हानि। यहाँ ऑर्किड को फायदा होता है जबकि आम को इससे कोई लाभ नहीं होता है। ऑर्किड का पौधा आम की शाखा पर उगकर प्रकाश, वायु व वातावरण से नमी का अवशोषण करता है।

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प्रश्न 9.
कीट पीड़कों (पेस्ट/इंसेक्ट) के प्रबंध के लिए जैव-नियंत्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धांत है ?
उत्तर
कीट पीड़कों (पेस्ट/इंसेक्ट) के प्रबंध के लिए जैव-नियंत्रण विधि के पीछे परभक्षी की शिकारनियंत्रण योग्यता पर आधारित पारिस्थितिक सिद्धांत है (based on the prey- regulating ability of the predator)।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित के बीच अंतर कीजिए
(क)शील निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एंड एस्टीवेशन)
(ख) बाह्योष्मी तथा आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एंडोथर्मिक)।
उत्तर
(क) शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एंड एस्टीवेशन) में अंतर शीत निष्क्रियता-कुछ जीव शीत ऋतु के कुप्रभाव से बचने के लिए कुछ समय के लिए अधिक अनुकूल क्षेत्रों में चले जाते हैं । इसे शीत निष्क्रियता कहते हैं। ग्रीष्म निष्क्रियता-कुछ जीव ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के कुप्रभाव से बचने के लिए अधिक अनुकूली क्षेत्रों में चले जाते हैं। जैसे गर्मी की अवधि में व्यक्ति दिल्ली से शिमला चला जाए। इसे ग्रीष्म निष्क्रियता कहते हैं।

(ख) बाह्योष्मी तथा आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एंडोथर्मिक ) में अंतर बाह्योष्मी-शीत रुधिर वाले जीवों में अपने वातावरण के अनुसार अपने शरीर का तापमान बनाए रखने की क्षमता होती है। बहुत सारे सक्रिय बाह्योष्मी जीव जैसे-मेढक, सर्प आदि अपने शरीर की ऊष्मा को बनाए रखने के लिए गतिशील रहते हैं। आंतरोष्मी-ऊष्म रुधिर धारी जन्तु जैसे, पक्षी तथा मनुष्य अपने शरीर की क्रिया क्रियात्मकता द्वारा एक निश्चित तापमान बनाए रखते हैं। बाह्य तापीय उतार-चढ़ाव का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी (नोट) लिखिए
(क) मरुस्थलीय पादपों और प्राणियों का अनुकूलन
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन
(घ) पादपों के लिये प्रकाश का महत्व
(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन।।
उत्तर
(क) मरुद्भिद पौधों में शुष्क वातावरण को सहने के लिये निम्न प्रकार के प्रकार्यात्मक अनुकूलन पाये जाते हैं
पत्तियों में अनुकूलन (Adaptations in leaves)

  • मरुद्भिद पौधों की पत्तियाँ छोटी (Small) होती हैं, जिससे वाष्योत्सर्जन (Transpiration) करने वाले क्षेत्रफल में कमी आती है। उदाहरण-केजूराइना (Casurina)।
  • कुछ पौधों जैसे-अकेसिया मेलैनोजाइलॉन (Acacia melanonylon) में पर्णफलक (Leaf lamina) अनुपस्थित होता है तथा पर्णवृन्त (Petiole) चपटा होकर प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है। इसे फिल्लोड (Phyllode) कहते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद पौधों जैसे-ऐलोय (Aloe), ऐगेव (Agave), यूक्का (Yucca) एवं बिगोनिया (Begonia) आदि में पत्तियाँ मोटी, गूदेदार एवं मांसल होती हैं। अत: इनमें जल की अत्यधिक मात्रा संचित रहती है।
  • नागफनी (Opuntia) एवं ऐस्पेरेगस (Asparagus) में पत्तियाँ काँटों (Spines) में रूपान्तरित होती हैं। इसी प्रकार पाइनस (Pinus) की पत्तियाँ लम्बी एवं सूच्याकार (Needle shaped) होकर जल की हानि को कम करते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद् पौधों में अनुपत्र (Stipules) काँटों (Spines) में रूपान्तरित होकर वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं। उदाहरण-यूफोर्बिया स्प्लेन्डेन्स (Euphorbia splendens), बेर (Zizvphus jujuba), अकेसिया (Acacia), कैपेरिस (Capparis) आदि।
  • इन पौधों की पत्तियों की बाह्य सतह चमकदार (Shiny) होती है, अतः ये प्रकाश को परावर्तित करके तापमान को कम करने में सहायता करती हैं। उदाहरण- कनेर (Nerium)।
  • कुछ एकबीजपत्री मरुद्भिद् पौधों की पत्तियाँ मुड़ी हुई (Rolled) अथवा वलयित (Folded) होकर रन्ध्रों को अन्दर की ओर छिपा लेती हैं, जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। उदाहरणएमोफिला (Ammophila), पोआ (Poa), सोमा (Psomma), एग्रोपायरॉन (Agropyron) आदि।

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(ख) मरुद्भिद् पौधों की आंतरिक संरचना के अनुकूलन

  • इन पौधों के तनों एवं पत्तियों की बाह्य त्वचा (Epidermis) के ऊपर एक मोटी उपत्वचा (Cuticle) पाई जाती है।
  • इनकी बाह्य त्वचा (Epidermis) बहुस्तरीय (Multilayered) भी हो सकती है। उदाहरणनेरियम (Nerium)।
  • बाह्य त्वचा की भित्तियों का मोटा होना, इससे वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
  • इन पौधों के पत्तियों की निचली सतह पर धंसे हुए रन्ध्र (Suncken stomata) पाये जाते हैं। यह रन्ध्र, रन्ध्रीय गुहाओं (Stomatal cavities) में स्थित होते हैं जिनमें रोम (Hairs) या रन्ध्रीय रोम (Stomatal hairs) उपस्थित होते हैं। उदाहरण- कनेर (Nerium), पाइनस (Pinus) |
  • इन पौधों की हाइपोडर्मिस (Hypodermis) मोटी भित्ति वाली स्क्लेरेनकायमी कोशिकाओं (Sclerenchymatous cell) की बनी होती है जो कि जल के वाष्पीकरण को रोकते हैं। उदाहरण–पाइनस (Pinus) की पत्तियाँ।
  • इनकी पत्तियों में मीजोफिल (Mesophyll), पैलिसेड ऊतक (Palisade tissue) एवं स्पंजी पैरेनकाइमा (Spongy parenchyma) में स्पष्ट तथा भिन्नित होते हैं।

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  • अन्तरकोशिकीय अवकाश (Intercellular spaces) आकार में बहुत छोटे होते हैं अथवा अनुपस्थित होते हैं।
  • इनमें शरीर को मजबूती प्रदान करने के लिए यान्त्रिक ऊतक (Mechanical tissue) कोलेनकाइमा (Collenchyma) के रूप में तथा स्क्ले रेनकाइमा (Sclerenchyma) के रूप में उपस्थित रहता है।
  • इनके तनों के वल्कुट (Cortex) में क्लोरेनकाइमा भी पाया जाता है।
  • इन पौधों में संवहनी ऊतक (Conducting tissue), दारु (Xylem) तथा पोषवाह (Phloem) के रूप में पूर्णतया विकसित होता है, जिससे जल व पोषक पदार्थों का संवहन (Conduction) आसानी से होता है।
  • इनकी बाह्यत्वचा (Epidermis) के ऊपर रोम (hairs) अथवा कण्टक (Spines) पाये जाते हैं, जो कि वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं।
  • रंध्रों की संख्या कम व पत्ती की निचली सतह में होती है।
  • तनों में धंसे हुए रंध्रों का पाया जाना।

मरुद्भिद पौधों में शुष्क वातावरण को सहने के लिये निम्न प्रकार के प्रकार्यात्मक अनुकूलन पाये जाते हैं
पत्तियों में अनुकूलन (Adaptations in leaves)

  • मरुद्भिद पौधों की पत्तियाँ छोटी (Small) होती हैं, जिससे वाष्योत्सर्जन (Transpiration) करने वाले क्षेत्रफल में कमी आती है। उदाहरण-केजूराइना (Casurina)।
  • कुछ पौधों जैसे-अकेसिया मेलैनोजाइलॉन (Acacia melanonylon) में पर्णफलक (Leaf lamina) अनुपस्थित होता है तथा पर्णवृन्त (Petiole) चपटा होकर प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है। इसे फिल्लोड (Phyllode) कहते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद पौधों जैसे-ऐलोय (Aloe), ऐगेव (Agave), यूक्का (Yucca) एवं बिगोनिया (Begonia) आदि में पत्तियाँ मोटी, गूदेदार एवं मांसल होती हैं। अत: इनमें जल की अत्यधिक मात्रा संचित रहती है।
  • नागफनी (Opuntia) एवं ऐस्पेरेगस (Asparagus) में पत्तियाँ काँटों (Spines) में रूपान्तरित होती हैं। इसी प्रकार पाइनस (Pinus) की पत्तियाँ लम्बी एवं सूच्याकार (Needle shaped) होकर जल की हानि को कम करते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद् पौधों में अनुपत्र (Stipules) काँटों (Spines) में रूपान्तरित होकर वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं। उदाहरण-यूफोर्बिया स्प्लेन्डेन्स (Euphorbia splendens), बेर (Zizvphus jujuba), अकेसिया (Acacia), कैपेरिस (Capparis) आदि।
  • इन पौधों की पत्तियों की बाह्य सतह चमकदार (Shiny) होती है, अतः ये प्रकाश को परावर्तित करके तापमान को कम करने में सहायता करती हैं। उदाहरण- कनेर (Nerium)।
  • कुछ एकबीजपत्री मरुद्भिद् पौधों की पत्तियाँ मुड़ी हुई (Rolled) अथवा वलयित (Folded) होकर रन्ध्रों को अन्दर की ओर छिपा लेती हैं, जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। उदाहरणएमोफिला (Ammophila), पोआ (Poa), सोमा (Psomma), एग्रोपायरॉन (Agropyron) आदि।

(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन-कुछ जीव अपने पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों का सामना करने के लिए व्यावहारिक अनुक्रियाएँ दर्शाते हैं। स्तनधारियों में अपने आवास के उच्च तापमान से निपटने के लिये जो कार्यकीय योग्यता होती है, मरुस्थल की छिपकलियों में इस योग्यता की कमी है, लेकिन वे व्यावहारिक साधनों द्वारा अपने शरीर के तापमान को काफी स्थिर बनाये रख सकती है। जब इनका तापमान सुविधा के स्तर से नीचे चला जाता है तब वे धूप सेंककर ऊष्मा अवशोषित करती है लेकिन जब परिवेश का तापमान बढ़ने लगता है तब वे छाया में चली जाती है। कुछ जातियों में भूमि के ऊपर की ऊष्मा से बचने के लिए मिट्टी में बिल खोदने की क्षमता बढ़ती है।

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(घ) पादपों के लिये प्रकाश का महत्व-प्रकाश पारिस्थितिक तन्त्र का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो सम्पूर्ण परितन्त्र को ऊर्जा देता है। हरे पौधे इसे अवशोषित कर प्रकाश संश्लेषण करते हैं। इसी कारण प्रकाश की तीव्रता, अवधि इत्यादि का पादपों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। प्रकाश तीव्रता की आवश्यकता के आधार पर पादप दो प्रकार के होते हैं-

(i) हेलियोफाइट्स-ये तेज प्रकाश में अच्छी वृद्धि करते हैं अर्थात् इनमें तेज प्रकाश में संश्लेषण की क्षमता होती है।

(ii) सायोफाइट्स-ये कम प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण करते हैं अर्थात् ये छायादार स्थानों में उगते हैं। इमरसन प्रभाव (Emmerson Effect)-रॉबर्ट इमरसन ने प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पर कार्य करते हुए विभिन्न तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश में क्वाण्टम उत्पादन (एक क्वाण्टम प्रकाश के अवशोषण से मुक्त हुए ऑक्सीजन के अणुओं की संख्या) ज्ञात किया और पाया कि 680 nm तरंगदैर्घ्य वाले लाल प्रकाश में क्वाण्टम उत्पादन सबसे अधिक होता है, लेकिन जब इस लाल प्रकाश का तरंगदैर्घ्य और अधिक बढ़ाया जाता है।

तब क्वाण्टम उत्पादन एकाएक एकदम गिर जाता है। इसे रेड ड्रॉप (Red drop) कहते हैं । इमरसन ने यह भी पाया कि जब पौधे का 680 nm तरंगदैर्ध्य वाले लाल प्रकाश के साथ-साथ कम तरंगदैर्घ्य वाला प्रकाश दिया जाता है तब क्वाण्टम उत्पादन पुनः बढ़ जाता है। इसे ही इमरसन का वृद्धिकारी प्रभाव (Emmerson enhancement effect) कहते

(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन–तापमान और जलजंतुओं के भौगोलिक वितरण को प्रभावित करता है हमारी पृथ्वी का तापमान मौसम के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। तापमान एन्जाइम्स की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है। इसमें प्राणी की कार्यिकीय प्रक्रियाएँ प्रभावित होती हैं। इसमें प्राणी के लिए आकारिकी तथा शारीरिक परिवर्तन होते हैं जैसे कि गर्म भागों में पाये जाने वाले स्तनियों की तुलना में ठंडे भागों में रहने वाले स्तनियों की पूँछ, थूथन, कान व टाँगें अपेक्षाकृत छोटी रहती हैं। ठण्डे क्षेत्रों में पाये जाने वाले पक्षी एवं स्तनधारी गर्म क्षेत्रों के पक्षी व स्तनियों की अपेक्षा बड़े आकार के होते हैं कम ताप वाले पानी में पायी जाने वाली मछलियों में गर्म जलीय मछलियों की तुलना में कशेरुकों की संख्या अधिक होती है।

रेगिस्तानी जंतुओं एवं पादपों को जल की कमी का सामना करना पड़ता है। रेगिस्तान में रहने वाले प्राणियों में जल संरक्षण हेतु विशेष अनुकूलन पाये जाते हैं । रेगिस्तानी जंतुओं में स्वेदग्रंथियाँ बहुत कम या अनुपस्थित होती हैं जिससे वाष्पन कम हो। ये प्राणी उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न जल का प्रयोग अपनी जैविक क्रियाओं में करते हैं । रेगिस्तानी प्राणी उत्सर्जी पदार्थों का भी अत्यधिक सांद्र स्थिति में परित्याग करते हैं।

प्रश्न 12.
अजीवीय (एबायोटिक) पर्यावरणीय कारकों की सूची बनाइए।
उत्तर
पर्यावरण में मुख्य रूप से दो घटक जीवीय तथा अजीवीय होते हैं । अजैविक कारक निम्न होते हैं

  • जलवायवीय कारक-जैसे-प्रकाश, तापमान, वर्षा, पवन, वायुमण्डलीय गैसें तथा आर्द्रता आदि।
  • मृदीय कारक-जैसे-मृदा गठन, मृदा जीव, मृदा वायु, मृदा ताप, मृदा जल आदि।
  • स्थलाकृतिक कारक-जैसे-तुंगता, ढलान, अनावरण आदि।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित का उदाहरण दीजिए
(क) आतपोद्भिद् (हेलियोफाइट)
(ख) छायोद्भिद् (स्कियोफाइट)
(ग) सजीवप्रजक (विविपेरस)अंकुरण वाले पादप
(घ)आंतरोष्मी (एंडोथर्मिक) प्राणी
(ङ) बाह्योष्मी (एक्टोथर्मिक) प्राणी
(च) नितलस्थ (बेंथिक) जोन का जीव।
उत्तर
(क) आतपोद्भिद् (Heliophytes)-उदाहरण-सूरजमुखी, एमेरेन्थस।
(ख) छायोद्भिद् (Sciophytes)-उदाहरण-पाइसिया, ऐबीज, टेक्सस।
(ग) सजीवप्रजक (Viviparous)-उदाहरण-राइजोफोरा, सेलकोर्निया, सोनेरेशिया आदि ।
(घ) आंतरोष्मी (Endothermic) प्राणी-उदाहरण-भुंग, सरीसृप।
(ङ) बाह्योष्मी (Ectothermic) प्राणी-उदाहरण-ऊँट, कुत्ता, बिल्ली।
(च) नितलस्थ (Benthos)-उदाहरण-केकड़ा, भृग, ऐम्फिनोड, सीप, कोरल आदि।

प्रश्न 14.
समष्टि (पॉपुलेशन) एवं समुदाय (कम्युनिटी) की परिभाषा दीजिए।
अथवा
समष्टि एवं समुदाय में क्या अन्तर है?
उत्तर
समष्टि एवं समुदाय में अन्तर
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प्रश्न 15.
निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए तथा प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए
(क) सहभोजिता (कमेन्सेलिज्म)
(ख) परजीविता (पैरासिटिज्म)
(ग) छद्मावरण (कैमुफ्लॉज)
(घ) सहोपकारिता (म्युचुअलिज्म)
(ङ) अंतरजातीय स्पर्धा (इंटरस्पेसिफिक कंपीटिशन)।
उत्तर
(क) सहभोजिता (कमेन्सेलिज्म)-लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 13 एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 7 का अवलोकन कीजिए।

(1) परजीविता एवं सहजीविता में अंतर
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(2) सहजीविता एवं सहभोजिता (कमेन्सलिज्म) में अन्तर

(1) सहजीविता वह सम्बन्ध है, जिसमें दो जीव एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हुए जीवित रहते हैं, जबकि सहभोजिता या कमेन्सलिज्म वह सम्बन्ध है, जिसमें एक जीव लाभान्वित होता है दूसरा नहीं।

(2) सहजीविता में दोनों जीवों के बीच क्रियात्मक सम्बन्ध होता है, जबकि कमेन्सलिज्म में दोनों जीवों के बीच क्रियात्मक सम्बन्ध नहीं होता है।
उदाहरण-सहजीविता-लाइकेन तथा लेग्यूमिनोसी कुल के पादपों की जड़ों में पाये जाने वाले जीवाणु का सम्बन्ध। सहभोजिता-ऑर्किड तथा वृक्षों का सम्बन्ध, बंजर एवं चरती भूमि में चरती गाय की पीठ पर बैठे पक्षी का सम्बन्ध।

(3) हाइड्रोसियर एवं जिरोसियर में अन्तर

  • जल में होने वाले अनुक्रमण को हाइड्रोसियर कहते हैं, जबकि मरुभूमि में होने वाले अनुक्रमण को जिरोसियर कहते हैं।
  • हाइड्रोसियर में परिवर्तन अपेक्षाकृत तीव्रता से होता है, जबकि जिरोसियर में परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमी गति से होता है।
  • हाइड्रोसियर में जलीय पौधे बनते हैं, जबकि जिरोसियर में मरुस्थलीय पौधे बनते हैं। उदाहरण-झील पारितन्त्र का विकास (हाइड्रोसियर), मरुभूमि में झाड़ियों का विकास।

जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के बीच अन्तर्सम्बन्ध-किसी भी जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के सदस्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे पर निर्भर रहते हैं। एक समुदाय की विविध जातियों में निम्नलिखित प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है–

(1) परजीविता-जब एक जीव दूसरे जीव से पोषण प्राप्त करता है, तब इस सम्बन्ध को परजीविता कहते हैं।

(2) सहजीविता-दो जातियों का ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें दोनों एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हुए साथसाथ जीवित रहती हैं। जैसे-लाइकेन एक ऐसा जीव है, जिसमें एक कवक तथा एक शैवाल समूह के जीव साथ-साथ रहते हैं।

(3) सहभोजिता-जब दो सदस्य साथ-साथ इस प्रकार जीवित रहते हैं कि एक सदस्य को लाभ होता है, जबकि दूसरे सदस्यों को इस सम्बन्ध में न ही लाभ होता है और न ही नुकसान। जैसे-ऑर्किड उच्च पादपों पर उगता है।

(4) शिकार एवं शिकारी-दो जातियों के बीच ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें एक जन्तु दूसरे का शिकार कर अपना भोजन प्राप्त करता है। जैसे-जंगल के शेर और हिरन का सम्बन्ध ।

(5) अपमार्जिता- यह दो जातियों के बीच आहार प्राप्ति का अटूट सम्बन्ध है, जिसमें एक जाति के जीव दूसरे जीव जाति के मृत शरीर से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे-गिद्ध एवं चील मरे हुए पशुओं के शरीर से भोजन प्राप्त कर वातावरण की प्राकृतिक रूप से सफाई करते हैं।

(6) प्रतिस्पर्धा-वह सम्बन्ध है, जिसमें किसी समुदाय में एक ही जाति अथवा अलग-अलग जातियों के जीव जल, भोजन, आवास, प्रकाश आदि के लिए संघर्ष करते हैं। प्रतिस्पर्धात्मक सम्बन्ध किसी भी जैविक समुदाय को जीवन्त बनाये रखता है।

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(ख) (1) परजीविता-दो जातियों के बीच ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें एक सदस्य को लाभ तथा एक को हानि होती है। लाभ प्राप्त होने वाले सदस्य को परजीवी तथा हानि प्राप्त होने वाले सदस्य को पोषक कहते हैं। परजीवी सदस्य पोषक से भोजन तथा आवास प्राप्त करता है। कुछ परजीवी पोषक के शरीर के बाहर रहकर ही पोषण प्राप्त करते हैं, इन्हें बाह्य परजीवी कहते हैं, जैसे-लीच, , खटमल, मच्छर आदि, जबकि कुछ परजीवी सदस्य पोषक के शरीर के अन्दर रहकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं, इन्हें अन्त:परजीवी कहते हैं। जैसे-फीताकृमि, ऐस्केरिस आदि।

(2) जैविक स्थिरता–किसी जीव समुदाय की यथास्थिति बनाये रखने की क्षमता को जैविक स्थिरता कहते हैं। ऐसा देखा गया है कि किसी जैविक समुदाय में जितनी अधिक जातियाँ पायी जाती हैं, वह समुदाय उतना ही अधिक स्थिर होता है। जातियों की संख्या में अधिकता का सामान्य अर्थ जीव समुदाय में विविधता से है। प्रकृति का नियम है कि विविधता में ही स्थिरता होती है। इसे हम उदाहरण के द्वारा समझा सकते हैं। यदि किसी बड़े क्षेत्र में एक ही प्रकार के पौधे लगा लें और उनमें कोई बीमारी लग जाय तो पूरे क्षेत्र की वनस्पतियाँ नष्ट हो जायेंगी, इसके विपरीत प्राकृतिक जंगल में किसी जाति के पादपों में रोग लगता है, तो शेष वृक्ष तथा पौधे जीवित रहेंगे, क्योंकि उसमें हजारों प्रकार की जातियाँ पायी जाती हैं । इसी कारण कृत्रिम रूप से विकसित जंगलों की अपेक्षा प्राकृतिक जंगल अधिक स्थायी होते हैं।

(3) जाति प्रभाविता–प्रत्येक जीवीय समुदाय में एक अथवा कुछ जातियों के जीव अधिक संख्या में पाये जाते हैं, इस जाति अथवा जातियों की प्रभावी जाति तथा समुदाय के इस गुण को जाति प्रभाविता कहते हैं। इन जातियों का समुदाय की अन्य जातियों तथा वहाँ के वातावरण पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। उदाहरणउष्ण कटिबन्धीय (ट्रॉपिकल) प्रदेशों के अधिक वर्षा वाले जंगलों में लगभग 10 जातियाँ ही प्रभावी रूप में पायी जाती हैं।

जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के बीच अन्तर्सम्बन्ध-किसी भी जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के सदस्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे पर निर्भर रहते हैं। एक समुदाय की विविध जातियों में निम्नलिखित प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है-

  • परजीविता-जब एक जीव दूसरे जीव से पोषण प्राप्त करता है, तब इस सम्बन्ध को परजीविता कहते हैं।
  • सहजीविता-दो जातियों का ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें दोनों एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हुए साथसाथ जीवित रहती हैं। जैसे-लाइकेन एक ऐसा जीव है, जिसमें एक कवक तथा एक शैवाल समूह के जीव साथ-साथ रहते हैं।
  • सहभोजिता-जब दो सदस्य साथ-साथ इस प्रकार जीवित रहते हैं कि एक सदस्य को लाभ होता है, जबकि दूसरे सदस्यों को इस सम्बन्ध में न ही लाभ होता है और न ही नुकसान। जैसे-ऑर्किड उच्च पादपों पर उगता है।
  • शिकार एवं शिकारी-दो जातियों के बीच ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें एक जन्तु दूसरे का शिकार कर अपना भोजन प्राप्त करता है। जैसे-जंगल के शेर और हिरन का सम्बन्ध ।
  • अपमार्जिता- यह दो जातियों के बीच आहार प्राप्ति का अटूट सम्बन्ध है, जिसमें एक जाति के जीव दूसरे जीव जाति के मृत शरीर से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे-गिद्ध एवं चील मरे हुए पशुओं के शरीर से भोजन प्राप्त कर वातावरण की प्राकृतिक रूप से सफाई करते हैं।
  • प्रतिस्पर्धा-वह सम्बन्ध है, जिसमें किसी समुदाय में एक ही जाति अथवा अलग-अलग जातियों के जीव जल, भोजन, आवास, प्रकाश आदि के लिए संघर्ष करते हैं। प्रतिस्पर्धात्मक सम्बन्ध किसी भी जैविक समुदाय को जीवन्त बनाये रखता है।

(ग) छद्मावरण (Camonflage)–शिकारी जातियों के परभक्षण के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न रक्षा विधियाँ विकसित कर ली है। इन्हीं विधियों में से एक छद्मावरण है। कीटों और मेढकों की कुछ जातियाँ परभक्षियों से बचने के लिए गुप्त रूप से रंगीन हो जाती हैं। जिससे ये अपने वातावरण में सुगमता से पहचान में नहीं आतीं।

(घ) सहोपकारिता (Mutalism)-लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 13 एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 7 का अवलोकन कीजिए।

(ङ) अंतरजातीय स्पर्धा (Interspecific competition)-अंतरजातीय संघर्ष में निकटतम रूप से संबंधित जातियाँ विभिन्न संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण अमेरिका की कुछ उथली झीलों में आगंतुक फ्लैमिंगो और प्राणि प्लवक के लिये स्पर्धा करती है।

प्रश्न 16.
उपयुक्त आरेख (डायग्राम) की सहायता से लॉजिस्टिक (संभार तंत्र)समष्टि (पॉपुलेशन) वृद्धि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्रकृति में किसी भी समष्टि के पास इतने असीमित संसाधन नहीं होते कि चरघातांकी वृद्धि (Exponential growth) होती रहे। इसके कारण सीमित संसाधनों के लिये व्यष्टियों में प्रतिस्पर्धा होती है।
आखिर में ‘योग्यतम्’ व्यष्टि जीवित बनी रहकर जनन करेंगी। अनेक देशों ने इस तथ्य को समझा और मानव समष्टि वृद्धि को सीमित करने के लिए विभिन्न प्रतिबंध लागू किए हैं। प्रकृति में दिए गए आवास के पास अधिकतम संभव संख्या के पालन-पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन होते हैं, इससे आगे और वृद्ध संभव नहीं है। उस आवास में इस जाति के लिए इस सीमा की प्रकृति की पोषण क्षमता (Carrying capacity, K) मान लेते है।
MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 5
किसी आवास में सीमित संसाधनों के साथ वृद्धि कर रही समष्टि आरंभ में पश्चतता प्रावस्था (Lag phase) दर्शाती है। 5 उसके बाद त्वरण और मंदन (Acceleration and decleration) [ए
और अंततः अनन्तस्पर्शी (Asymptote) प्रावस्थाएँ आती हैं जब समष्टि घनत्व पोषण क्षमता तक पहुँच जाती है। समय (t) के संदर्भ N का आरेख (Plot) से सिग्माभ वक्र (Sigmoid curve) बन जाता है। इस प्रकार की समष्टि वृद्धि विर्हस्ट पर्ल लॉजिस्टिक वृद्धि (Verhulst-Pearl logistic growth) कहलाती है और निम्नलिखित समीकरण द्वारा वर्णित है
MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 6
जहाँ, N = समय ‘t’ पर समष्टि घनत्व, r= प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीन्सिक दर, K = पोषण क्षमता।
अधिकांश प्राणियों की समष्टियों में वृद्धि के लिए संसाधन परिमित (Finite) और देर-सबेर सीमित होने वाले हैं, इसलिए लॉजिस्टिक वृद्धि मॉडल को अधिक यथार्थपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित कथनों में परजीविता (पैरासिटिज्म ) को कौन-सा सबसे अच्छी तरह स्पष्ट करता है
(क) एक जीव को लाभ होता है,
(ख)दोनों जीवों को लाभ होता है,
(ग) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित नहीं होता है
(घ) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है।
उत्तर
(घ) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है।

प्रश्न 18.
समष्टि (पॉपुलेशन) की कोई तीन महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए और व्याख्या कीजिए।
उत्तर
समष्टि में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो व्यष्टि जीव में नहीं होते। व्यष्टि जन्मता और मरता है लेकिन समष्टि में जन्म दरें और मृत्यु दरें होती हैं । समष्टि में इन दरों को क्रमशः प्रति व्यक्ति जन्म दर और मृत्यु दर कहते हैं। इसलिए दर को समष्टि के सदस्यों के संबंधों में संख्या में परिवर्तन (वृद्धि या ह्रास) के रूप में प्रकट किया। उदाहरण के लिए, अगर किसी ताल में पिछले साल कमल के 20 पौधे थे और जनन द्वारा 8 नए पौधे और हो

जाते हैं जिससे वर्तमान समष्टि 20 हो जाती है, तो हम जन्म दर को 8/20=0.4 संतति प्रति कमल प्रतिवर्ष के हिसाब से परिकलन (कैल्कुलेट) करते हैं ! अगर प्रयोगशाला समष्टि में 40 फलमक्खियों में से 4 व्यष्टि किसी विशिष्टीकृत समय अंतराल में, मान लीजिए एक सप्ताह के दौरान मर जाते हैं । तो उस समय के दौरान समष्टि में मृत्यु दर 4/40=0.1 व्यष्टि प्रति फलमक्खी प्रति सप्ताह कहलाएगी। समष्टि का दूसरा विशिष्ट गुण लिंग अनुपात यानि नर एवं मादा का अनुपात है। व्यष्टि या तो नर है या मादा है, लेकिन समष्टि का लिंग अनुपात होता है (जैसे कि समष्टि का 60 प्रतिशत स्त्री है और 40 प्रतिशत नर है)।
MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 7
किसी दिए गए समय में समष्टि भिन्न आयु वाले व्यष्टियों से मिलकर बनती है। अगर समष्टि के लिए आयु वितरण (दी गई आयु अथवा आयु वर्ग के व्यष्टियों का प्रतिशत) आलेखित (प्लॉटेड) किया जाता है तो बनने वाली संरचना आयु पिरामिड कहलाती है (चित्र) मानव समष्टि के लिए आयु पिरामिड आमतौर पर नर . और स्त्रियों की आयु का वितरण संयुक्त आरेख को दर्शाता है। पिरामिड का आकार समष्टि की स्थिति
प्रतिबिंबित दर्शाता है
(क) क्या यह बढ़ रहा है
(ख) स्थिर है या
(ग) घट रहा है।
MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 8

जीव और समष्टियाँ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

जीव और समष्टियाँ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
संगठन के स्तर में स्पष्ट एवं आसानी से पहचाने जाने वाली इकाई है
(a) कोशिका
(b) ऊतक
(c) अंग
(d) व्यक्तिगत जीव।
उत्तर
(d) व्यक्तिगत जीव।

प्रश्न 2.
अन्तरजातीय संचार में उपयोगी रासायनिक यौगिक है
(a) एलोकेमिक्स
(b) कैरोमोन्स
(c) ऑक्जिन्स
(d) फेरोमोन्स।
उत्तर
(d) फेरोमोन्स।

प्रश्न 3.
एक प्रजाति एवं उसके पर्यावरण में अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन कहलाता है
(a) सामुदायिक पारिस्थितिकी
(b) स्वयं पारिस्थितिकी
(c) इथोलॉजी
(d) वन पारिस्थितिकी।
उत्तर
(b) स्वयं पारिस्थितिकी

प्रश्न 4.
वह कारक जो जनसंख्या के परिमाण को प्रभावित नहीं करता
(a) माइग्रेशन
(b) इमाइग्रेशन
(c) इमीग्रेशन
(d) नेटेलिटी।
उत्तर
(a) माइग्रेशन

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प्रश्न 5.
एक ही प्रजाति के जीवों का दो विभिन्न रूपों में पाया जाना कहलाता है
(a) द्विरूपता
(b) त्रिरूपता
(c) बहुरूपता
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।।
उत्तर
(a) द्विरूपता

प्रश्न 6.
इकाई समय में प्रति 1000 व्यक्तियों का प्रतिवर्ष जन्मदर कहलाता है
(a) मृत्युदर
(b) जैविक दर
(c) जन्मदर
(d) वृद्धि दर।
उत्तर
(c) जन्मदर

प्रश्न 7.
नर चीते (Tiger) व मादा सिंह (Lioness) की उर्वर संतति कहलाती है
(a) खच्चर
(b) लाइगर
(c) हिन्नी
(d) टिग्लायन।
उत्तर
(d) टिग्लायन।

प्रश्न 8.
वह देश जो ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि प्रदर्शित करता है
(a) आस्ट्रेलिया
(b) ग्रीनलैण्ड
(c) आस्ट्रिया
(d) यू.एस.ए.।
उत्तर
(c) आस्ट्रिया

प्रश्न 9.
सहजीविता शब्द का सर्वप्रथम उपयोग करने वाले वैज्ञानिक हैं
(a) डी-बैरी
(b) मैकडुगल
(c) लिनीयस
(d) ओडम।
उत्तर
(a) डी-बैरी

प्रश्न 10.
किसी समुदाय में ज्यादा संख्या या आकार में स्थित समष्टि को उस समुदाय का कहते हैं
(a) निर्दिष्ट जाति
(b) प्रभावी जाति
(c) समुदाय
(d) जाति विविधता।
उत्तर
(b) प्रभावी जाति

प्रश्न 11.
निश्चित क्षेत्र में रहने वाली समस्त समष्टियों को उस स्थान का कहते हैं
(a) जीवीय समुदाय
(b) झील समुदाय
(c) जलक्रम
(d) मरुक्रमक।
उत्तर
(a) जीवीय समुदाय

प्रश्न 12.
धंसे हुए रन्ध्र पाये जाते हैं
(a) मरुद्भिद् पौधों में
(b) जलीय पौधों में
(c) समोद्भिद् पौधों में
(d) तैरते हुए पौधों में।
उत्तर
(a) मरुद्भिद् पौधों में

प्रश्न 13.
स्पंजी जड़ें पायी जाती हैं
(a) जूसिया में
(b) ट्रापा में
(c) इकॉर्निया में
(d) पिस्टिया में।
उत्तर
(a) जूसिया में

प्रश्न 14.
वायवीय श्वसन मूलें या न्यूमैटोफोर पाये जाते हैं
(a) जलीय पौधों में
(b) दलदली पौधों में
(c) मरुद्भिद् पौधों में
(d) समोद्भिद पौधों में।
उत्तर
(b) दलदली पौधों में

प्रश्न 15.
मैंग्रूव पौधे का उदाहरण है
(a) राइजोफोरा
(b) इकॉर्निया
(c) ऐविसीनिया
(d) (a) एवं (c) दोनों में ।
उत्तर
(a) राइजोफोरा

प्रश्न 16.
अल्पविकसित संवहनी ऊतक पाये जाते हैं
(a) मरुद्भिदों में
(b) जलोद्भिदों में
(c) समोद्भिदों में
(d) हैलोफाइट्स में।
उत्तर
(c) समोद्भिदों में

प्रश्न 17.
नागफनी में फिल्लोक्लैड रूपान्तरण है
(a) तना का
(b) पत्ती का
(c) जड़ का
(d) उपर्युक्त सभी का।
उत्तर
(a) तना का

प्रश्न 18.
जड़ रहित संवहनी पादप है
(a) वॉल्फिया
(b) लेम्ना
(c) इकॉर्निया
(d) साल्वीनिया।
उत्तर
(a) वॉल्फिया

प्रश्न 19.
मुक्त प्लावी पौधों का उदाहरण है
(a) पिस्टिया
(b) ट्रापा
(c) इकॉर्निया
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 20.
विविपैरी पायी जाती है
(a) जलोद्भिदों में
(b) मरुद्भिदों में
(c) मैंग्रूव पौधों में
(d) उपरिरोही पौधों में।
उत्तर
(c) मैंग्रूव पौधों में

प्रश्न 21.
मूल पॉकेट पायी जाती है
(a) राइजोफोरा में
(b) इकॉर्निया में
(c) वॉल्फिया में
(d) सैजिटेरिया में।
उत्तर
(b) इकॉर्निया में

प्रश्न 22.
निम्नलिखित कथनों में परजीविता (पैरासिटिज्म) को कौन-सा सबसे अच्छी तरह स्पष्ट करता है
(a) एक जीव को लाभ होता है
(b) दोनों जीव को लाभ होता है
(c) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित नहीं होता है
(d) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है।
उत्तर
(d) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये

1. …………… एक जड़ रहित मुक्त प्लावी पौधा है।
2. श्वसन मूलें …………… पौधों में पाई जाती हैं।
3. मातृ पौधे के ऊपर बीजों का अंकुरित होना ……. कहलाता है।
4. मांसल होकर पत्तीनुमा संरचना धारक तने को …………… कहते हैं।
5. पिस्टिया की जड़ों में मूल टोप के स्थान पर …………… पाया जाता है।
6. पाइनस की जड़ों व कवकों के सह-सम्बन्ध को …………… कहते हैं।
7. रैफ्लेशिया एक …………… परजीवी कहलाता है।
8. भू-मण्डल का वह भाग जहाँ जीव रहते हैं …………… कहलाते हैं।
9. ऐसे जीव जो दूसरे के मृत शरीर का भक्षण करते हैं …………… कहलाते हैं।
10. काष्ठीय आरोही पौधों को …………… कहते हैं।
11. आर्किड एक …………… पादप है।
12. नर गधे और घोड़े की संतति को …………… कहते हैं।
13. चन्दन एक …………… परजीवी पादप है।
उत्तर

  1. वॉल्फिया
  2. मैंग्रूव (दलदली)
  3. जरायुजता
  4. पर्णकाय स्तंभ
  5. मूल पॉकेट
  6. सह-परोपकारिता
  7. पूर्ण मूल
  8. स्थलमंडल
  9. मृतोपजीवी
  10. लिआनास
  11. उपरिरोही
  12. खच्चर
  13. आंशिक मूल।

3. सही जोड़ी बनाइए

I. ‘A’ – ‘B’

1. जलक्रमक अनुक्रमण – (a) आस्थापन
2. अपरदन – (b) स्थिरीकरण
3. आक्रमण – (c) बड अनूप
4. चरम अवस्था – (d) झील
5. सिपेरस – (e) प्रारम्भिक काल।
उत्तर
1. (d), 2. (e), 3. (a), 4. (b), 5. (c)

II. ‘A’ – ‘B’

1. प्रतिजीविता – (a) चारण और चराई
2. सहभोजिता – (b) गुणात्मक गुण
3. परभक्षण – (c) लाइकेन
4. ऋतुजैविकी – (d) अधिपादप एवं अधिजन्तु
5. सहोपकारिता – (e) ऋणात्मक अन्योन्य क्रिया।
उत्तर
1. (e), 2. (d), 3. (a), 4. (b), 5. (c).

III . ‘A’ – ‘B’

1. इकॉर्निया – (a) मैंग्रूव पादप
2. राइजोफोरा – (b) स्थिर प्लावी पादप
3. जूसिया – (c) पर्णकाय स्तंभ
4. रैननकुलस. – (d) मुक्त प्लावी पादप
5. नागफनी – (e) उभयचर।
उत्तर
1. (d), 2. (a), 3. (b), 4. (e), 5. (c)

4. एक शब्द में उत्तर दीजिए

1. एक ऐसे जन्तु का नाम लिखिये जो कि अपने अण्डों को दूसरे जन्तु के घोंसलों में देता है।
2. जाति बहुरूपता का एक उदाहरण दीजिए।
3. सहपरोपकारिता एवं प्रोटोकोऑपरेशन के एक-एक उदाहरण दीजिये।
4. लाइकेनों में सहजीवी रूप से कौन-से दो जीव पाये जाते हैं ?
5. लाइकेनों में शैवाल एवं कवक के मध्य किस प्रकार का सहसम्बन्ध पाया जाता है ?
6. काष्ठीय आरोही पौधों को क्या कहा जाता है ?
7. वार्मिंग ने जल सम्बन्धों के आधार पर पौधों के कितने समूह बताये हैं?
8. एक ऐसे आवृत्तबीजी पादप का नाम बताइये जिसमें जड़ तंत्र अनुपस्थित होता है।
9. किन्हीं दो मुक्त प्लावी पौधों के नाम लिखिये।
10. किन्हीं दो उभयचर पौधों के नाम लिखिये।
11. जलकुंभी एवं सिंघाड़े के पौधों में पाये जाने वाले उस अनुकूलन को लिखिये जिसके कारण यह पौधा जल की सतह पर तैरने में सक्षम होता है।
12. किसी एक मैंग्रूव पौधे का नाम लिखिये।
13. न्यूमैटोफोर किन पौधों में पाये जाते हैं ?
14. किसी ऐसे पौधे का नाम लिखिये जिसमें तना पत्तीनुमा संरचना में तथा पत्तियाँ काँटों में रूपान्तरित होती हैं।
उत्तर

  1. कोयल
  2. मधुमक्खी
  3. सहपरोपकारिता-लाइकेन तथा प्रोटोकोऑपरेशन-सी एनीमोन तथा हार्मिट-क्रैब
  4. शैवाल एवं कवक
  5. सहपरोपकारिता
  6. लिआनास
  7. तीन समूह
  8. वॉल्फिया
  9. हाइड्रिला, साल्विया
  10. रैननकुलस, सैजीटेरिया
  11. जलीय
  12. राइजोफोरा
  13. दलदली
  14. नागफनी।

जीव और समष्टियाँ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक ऐसे आवृतबीजी का नाम लिखिए जिसमें जड़ तंत्र अनुपस्थित होता है।
उत्तर
वॉल्फिया।

प्रश्न 2.
जलकुंभी और सिंघाड़े में जल की सतह पर तैरने के लिये पाये जाने वाले अनुकूलन को लिखिए।
उत्तर
पर्णवृंत स्पंजी वायु से भरा रहता है।

प्रश्न 3.
वैण्डा में किस प्रकार की जड़ होती है ?
उत्तर
अपस्थानिक जड़।

प्रश्न 4.
किन पौधों में मूल गोप का अभाव होता है ?
उत्तर
जलीय पौधों में।

प्रश्न 5.
श्वसन मूलें किन पौधों में पायी जाती हैं ?
उत्तर
दलदली पौधों में।

प्रश्न 6.
सुन्दरवन डेल्टा में किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है ?
उत्तर
मैंग्रूव वनस्पति।

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प्रश्न 7.
उस एक पौधे/वृक्ष का नाम लिखिए जिसमें निमैटोफोर्स पाये जाते हैं।
उत्तर
एक्सिनीया।

प्रश्न 8.
मानव जाति की जनसंख्या के अध्ययन को क्या कहते हैं ?
उत्तर
डेमोग्राफी।

प्रश्न 9.
विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करने वाली प्रजातियों को क्या कहते हैं ?
उत्तर
एलोट्रॉपिक।

प्रश्न 10.
एक मृतोपजीवी आवृत्तबीजी पौधे का नाम बताइये।
उत्तर
मोनोट्रापा।

प्रश्न 11.
हर्मिट क्रेब और सी-एनीमोन के मध्य का संबंध कहलाता है।
उत्तर
सहजीवन (प्रोटो को-ऑपरेशन)।

प्रश्न 12.
इकाई समय में किसी जीवसंख्या में उत्पन्न नये जीवों की वास्तविक संख्या को क्या कहते हैं ?
उत्तर
जन्म दर।

प्रश्न 13.
दो वनस्पति क्षेत्रों के बीच का संक्रमण प्रदेश क्या कहलाता है ?
उत्तर
इकोटोन।

प्रश्न 14.
किसी समुदाय में उपस्थित सभी जातियों के विभिन्न जीवन रूपों का प्रतिशत वितरण क्या कहलाता है ?
उत्तर
जैव-स्पेक्ट्रम।

प्रश्न 15.
एक ऐसे जन्तु का नाम बताइए जो कि अपने अण्डे दूसरे जन्तु के घोंसलों में देता है।
उत्तर
कोयल।

प्रश्न 16.
जाति बहुरूपता का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
मधुमक्खी

प्रश्न 17.
कीटभक्षी पौधे कीटों का भक्षण क्यों करते हैं ?
उत्तर
N2 की कमी को पूरा करने के लिए।

प्रश्न 18.
प्रमुख अजैव कारक कौन-से हैं ?
उत्तर
तापमान, जल, प्रकाश व मृदा

प्रश्न 19.
एक कीटभक्षी का नाम लिखिये।
उत्तर
यूट्रीकुलेरिया, ड्रोसेरा आदि।

जीव और समष्टियाँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक प्रतिस्पर्धा किसे कहते हैं ?
उत्तर
एक निश्चित क्षेत्र में उपस्थित जीवों के बीच पारिस्थितिक कारकों के दोहन के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा को पारिस्थितिक प्रतिस्पर्धा कहते हैं।

प्रश्न 2.
किसी भी जनसंख्या की विशेषताओं के नाम लिखिए।
अथवा
समष्टि पर प्रभाव डालने वाले कारकों के नाम लिखिये।
उत्तर
किसी भी जनसंख्या में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

  • जनसंख्या घनत्व
  • जन्म दर
  • मृत्यु-दर
  • वयस या आयु वितरण
  • जैविक क्षमता
  • जनसंख्या वृद्धि फार्म
  • जनसंख्या में परिवर्तन
  • जनसंख्या का प्रकीर्णन।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से प्रत्येक को परिभाषित कीजिए (प्रत्येक को 25 शब्दों में)
(1) पॉपुलेशन
(2) जनसंख्या घनत्व
(3) जैव क्षमता
(4) जन्म-दर
(5) मृत्यु-दर।
उत्तर
1. समष्टि (पॉपुलेशन)-नाइट (1965) के अनुसार, “किसी निश्चित क्षेत्र तथा समय में एक जाति या आपस में घनिष्ट रूप से सम्बन्धित कई जातियों (जीव, जन्तु तथा पौधों) के समूह को समष्टि कहते हैं।” जैसे-घास के मैदान में टिड्डों का समूह।

2. जनसंख्या घनत्व-प्रति इकाई क्षेत्रफल या आयतन में उपस्थित एक जाति या आपस में सम्बन्धित कई जातियों की औसत संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।

3. जैविक क्षमता/जीवीय विभव-अनुकूलतम परिस्थितियों में किसी जनसंख्या या समष्टि में वृद्धि की अधिकतम क्षमता को जैव क्षमता कहते हैं। किसी समष्टि की जैव क्षमता उसके वास्तविक निष्पादन से अधिक होती है, वास्तविक दर में यह अन्तर जैव क्षमता के पर्यावरणीय प्रतिरोध के कारण होता है।

4. जन्म-दर-इकाई समय में किसी जनसंख्या द्वारा उत्पन्न कुल नए सदस्यों की संख्या जन्म-दर कहलाती है। किसी भी जनसंख्या में जन्म-दर की अधिकतम सीमा होती है, लेकिन वास्तविक जन्म दर अधिकतम अपेक्षित दर से कम होती है।

MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 9

 (5) मृत्यु-दर-इकाई समय में किसी समष्टि में मरने वाले जीवों की औसत संख्या को मृत्यु-दर कहते हैं।

MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 10

प्रश्न 4.
जनसंख्या नियंत्रण के लिए जन-जागृति हेतु आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर
जनसंख्या नियंत्रण के लिए जन-जागृति हेतु सबसे ज्यादा आवश्यक है-
(1) शिक्षा का प्रसार एवं प्रचार । इससे बहुत-सी भ्रांतियाँ दूर की जा सकती हैं, जैसे
(अ) संतान, भगवान की देन है
(ब) पुत्र से मोक्ष प्राप्ति
(स) अधिक संतान से अधिक आय आदि।

(2) जनसंख्या वृद्धि की भयावहता की वास्तविकता से परिचय कराना।
(3) परिवार नियोजन के तरीकों का उपयोग।
(4) एक-से-अधिक शादी पर प्रतिबंध।
(5) विवाह की आयु में वृद्धि करना।
(6) जन्म-दर कम करना।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित के दो-दो उदाहरण दीजिएसहजीवी, सहभोजी, फाइटोप्लैंक्टॉन, जूप्लैंक्टॉन एवं जड़युक्त तैरने वाले पौधे।
उत्तर
1. सहजीवी-

  • इश्चिरिचिया,
  • ट्राइकोनिम्फा (दीमक की आँत में)

2. सहभोजी

  • ऑर्किड और वृक्ष
  • हर्मिट क्रैब (मोलस्क कवच पर)

3. फाइटोप्लैंक्टॉन-

  • नास्टॉक
  • एनाबीना

4. जूप्लैंक्टॉन-

  • पैरामीशियम
  • यूग्लीना

5. जड़युक्त तैरने वाले पौधे

  • वोल्फिया
  • लेम्ना।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए
(1) स्पीशीज एवं पॉपुलेशन
(2) जनसंख्या वृद्धि एवं जनसंख्या घनत्व
(3) मोनोस्पेसिफिक एवं पॉलिस्पेसिफिक पॉपुलेशन
(4) प्रतिस्पर्धा एवं प्रकीर्णन।
उत्तर
(1) स्पीशीज एवं पॉपुलेशन में अन्तर–आपस में संकरण सम्बन्ध रखने वाले एकसमान जीवों के समूह को स्पीसीज (जाति) कहते हैं, जबकि एक निश्चित समय में इकाई क्षेत्रफल में रहने वाली एक ही जाति की संख्या को समष्टि या पॉपुलेशन कहते हैं।

(2) जनसंख्या वृद्धि एवं जनसंख्या घनत्व में अन्तर-इकाई समय में किसी समष्टि या जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं, जबकि इकाई क्षेत्रफल में एक जाति के जीवों की औसत संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।

(3) एकजातीय (Monospecific) एवं बहुजातीय (Polyspecific) समष्टि में अन्तर–इकाई समय में किसी निश्चित क्षेत्र में एक जाति के जीवों की कुल संख्या को एकजातीय समष्टि कहते हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप में ऐसा नहीं होता, बल्कि कोई जाति अकेले न रहकर कई जातियों के समूह में रहती हैं। एक समय में किसी निश्चित क्षेत्र की सभी जातियों की संख्या को बहुजातीय समष्टि कहते हैं।

(4) प्रतिस्पर्धा एवं प्रकीर्णन में अन्तर-प्रत्येक जैविक समुदाय में एक ही जाति और सभी जातियों के सदस्यों के बीच जल, भोजन, आवास, प्रकाश आदि के लिए संघर्ष होता है, जिसे प्रतिस्पर्धा कहते हैं, जबकि समष्टि प्रकीर्णन वह साधन है, जिसके द्वारा विनिष्ट समष्टि पुनः स्थापित होकर साम्यावस्था में आती है या आने का प्रयास करती है। समष्टि प्रकीर्णन में जीव या उनके बीज एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आवागमन करते हैं।

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प्रश्न 7.
भारत में जनसंख्या वृद्धि के चार कारण दीजिए।
उत्तर
भारत में जनसंख्या वृद्धि के चार कारण निम्नलिखित हैं-

  • जन्म-दर में वृद्धि
  • मृत्यु-दर में कमी
  • शिक्षा का महत्व नहीं समझना व इसका पर्याप्त प्रचार व प्रसार न होना
  • रूढ़िवादिता।

प्रश्न 8.
समष्टि साम्यावस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
किसी समष्टि के वृद्धि स्वरूप को देखने पर पता चलता है कि किसी नये क्षेत्र में पहुँचकर प्रत्येक समष्टि तेजी से वृद्धि करके चरम सीमा पर पहुँच जाती है और लम्बे समय तक इसी चरम सीमा पर स्थित रहती है या स्थिर रहने का प्रयास करती है, इस अवस्था को साम्यावस्था कहते हैं। प्रत्येक समष्टि हमेशा इसी अवस्था में रहने का प्रयास करती है। साम्यावस्था में किसी समष्टि की जन्म तथा मृत्यु-दर बराबर होती है। साम्यावस्था में रहने के लिए समष्टि विभिन्न प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों से संघर्ष करती है और सफलता मिलने पर साम्यावस्था में बनी रहती है।

प्रश्न 9.
नई जाति की उत्पत्ति का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर
किसी नये जीव या जाति की उत्पत्ति पूर्व में अस्तित्व वाले जीव या जाति से ही होती है। किसी भी जाति का आवास एक बड़ा क्षेत्र होता है। जब इस क्षेत्र में किसी भौतिक अवरोध के कारण आवास के दोनों ओर के सदस्यों के बीच सम्पर्क टूट जाता है, तब दोनों ओर के जीवों में अपने-अपने वातावरण के प्रति अनुकूलन पैदा होने से गुणों में परिव.. आने लगता है। एक लम्बे समय के बाद यह परिवर्तन इतना अधिक हो जाता है कि इनमें जनन सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता। कालान्तर में यह अन्तर इतना बढ़ जाता है कि पृथक् हुआ समूह एक नयी जाति का रूप ले लेता है।

प्रश्न 10.
एक जाति के सदस्यों के परस्पर सहयोगात्मक सम्बन्धों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
एक जाति के जीवों में सहयोगात्मक सम्बन्ध-जब एक जाति के विभिन्न सदस्य विभिन्न कार्यों में एक-दूसरे की मदद करते हैं तो इसे सहयोगात्मक सम्बन्ध कहते हैं। एक जाति के जीवों में सहयोगात्मक सम्बन्ध के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • जनन के लिए-जनन के लिए एक ही जाति के नर एवं मादा सदस्य एक-दूसरे का सहयोग करते हैं, जिससे उनकी निरन्तरता बनी रहे। जैसे-कुछ जीव स्थायी कुछ अस्थायी जनन सम्बन्ध बनाते हैं।
  • भोजन के लिए-कुछ जाति के जीव भोज्य पदार्थ को सरलता से प्राप्त करने के लिए सामूहिक शिकार करते हैं। जैसे-अफ्रीकी सिंह।
  • सुरक्षा के लिए-शत्रुओं से सुरक्षा के लिए कुछ जातियाँ, जैसे-हिरन, खरगोश समूह में रहते हैं।
  • सामाजिक व्यवस्था-कुछ जीवों में सरलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए तथा काम के बँटवारे के लिए सामाजिक व्यवस्था पायी जाती है। जैसे-चींटियाँ।

प्रश्न 11.
जनसंख्या वृद्धि ग्राफ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
समष्टि के वृद्धि करने के ढंग को वृद्धि स्वरूप कहते हैं । समष्टियाँ प्राय: दो रूपों में वृद्धि करती हैं, जिन्हें क्रमश: ‘J’ आकार स्वरूप और ‘S’ आकार स्वरूप कहते हैं । ‘J’ आकार स्वरूप का अर्थ है कि जब किसी समष्टि के समय और वृद्धि का ग्राफ खींचते हैं तो यह Jआकार का प्राप्त होता है। इस प्रकार की वृद्धि
में शुरू में समष्टि का घनत्व तेजी से बढ़ता है, लेकिन वातावरणीय प्रतिरोध या अन्य कारकों के प्रभाव के कारण यह सहसा रुक जाता है। वृद्धि का यह ढंग कुछ शैवालों, कवकों और कीटों में देखा जा सकता है। S आकार के वृद्धि स्वरूप का अर्थ है कि जब किसी समष्टि की वृद्धि और समय का ग्राफ खींचते हैं तो यह S आकार का प्राप्त होता है। यह ग्राफ इस बात को व्यक्त करता है कि शुरू में समष्टि धीरे-धीरे वृद्धि करती है, इसके बाद तेजी से वृद्धि करती है और उसके बाद वातावरणीय प्रतिरोध के बढ़ने पर यह क्रमिक रूप से धीमी गति से वृद्धि करने लगती है। यह वृद्धि स्वरूप सामान्य रूप से अधिकांश समष्टियों में देखा जा सकता है।
MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 11

प्रश्न 12.
जन्तु सम्प्रेषण के कोई पाँच उदाहरण दीजिए।
उत्तर
जन्तुओं द्वारा आपस में सूचनाओं के आदान-प्रदान को जन्तु सम्प्रेषण कहते हैं इसके पाँच उदाहरण निम्नानुसार हैं-

  • सिंह, मोर, कोयल विशेष प्रकार की आवाजों को निकालकर नर या मादा की उपस्थिति का आभास कराते हैं
  • खरगोश अपने समूह के दूसरे सदस्य को अपनी पूँछ को जमीन पर पटककर खतरे की सूचना देता है।
  • मधुमक्खी विशिष्ट नृत्यों द्वारा भोजन के स्थान की सूचना देती है।
  • नर मेढक जननकाल में ‘टर्र-टाँ’ की आवाज के द्वारा मादा मेढक को अपनी उपस्थिति बताते हैं।
    कुत्ते, भय, याचना, मित्रता एवं आक्रमण की सूचना अपनी विभिन्न मुद्राओं से देते हैं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए
(1) परजीविता एवं सहजीविता
(2) सहजीविता एवं सहभोजिता
(3) हाइड्रोसियर एवं जिरोसियर।
उत्तर
(1) परजीविता एवं सहजीविता में अंतर
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(2) सहजीविता एवं सहभोजिता (कमेन्सलिज्म) में अन्तर

(1) सहजीविता वह सम्बन्ध है, जिसमें दो जीव एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हुए जीवित रहते हैं, जबकि सहभोजिता या कमेन्सलिज्म वह सम्बन्ध है, जिसमें एक जीव लाभान्वित होता है दूसरा नहीं।

(2) सहजीविता में दोनों जीवों के बीच क्रियात्मक सम्बन्ध होता है, जबकि कमेन्सलिज्म में दोनों जीवों के बीच क्रियात्मक सम्बन्ध नहीं होता है।
उदाहरण-सहजीविता-लाइकेन तथा लेग्यूमिनोसी कुल के पादपों की जड़ों में पाये जाने वाले जीवाणु का सम्बन्ध। सहभोजिता-ऑर्किड तथा वृक्षों का सम्बन्ध, बंजर एवं चरती भूमि में चरती गाय की पीठ पर बैठे पक्षी का सम्बन्ध।

(3) हाइड्रोसियर एवं जिरोसियर में अन्तर

  • जल में होने वाले अनुक्रमण को हाइड्रोसियर कहते हैं, जबकि मरुभूमि में होने वाले अनुक्रमण को जिरोसियर कहते हैं।
  • हाइड्रोसियर में परिवर्तन अपेक्षाकृत तीव्रता से होता है, जबकि जिरोसियर में परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमी गति से होता है।
  • हाइड्रोसियर में जलीय पौधे बनते हैं, जबकि जिरोसियर में मरुस्थलीय पौधे बनते हैं। उदाहरण-झील पारितन्त्र का विकास (हाइड्रोसियर), मरुभूमि में झाड़ियों का विकास।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(1) परजीविता
(2) जैविक स्थिरता
(3) जाति प्रभाविता।
उत्तर
(1) परजीविता-दो जातियों के बीच ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें एक सदस्य को लाभ तथा एक को हानि होती है। लाभ प्राप्त होने वाले सदस्य को परजीवी तथा हानि प्राप्त होने वाले सदस्य को पोषक कहते हैं। परजीवी सदस्य पोषक से भोजन तथा आवास प्राप्त करता है। कुछ परजीवी पोषक के शरीर के बाहर रहकर ही पोषण प्राप्त करते हैं, इन्हें बाह्य परजीवी कहते हैं, जैसे-लीच, , खटमल, मच्छर आदि, जबकि कुछ परजीवी सदस्य पोषक के शरीर के अन्दर रहकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं, इन्हें अन्त:परजीवी कहते हैं। जैसे-फीताकृमि, ऐस्केरिस आदि।

(2) जैविक स्थिरता–किसी जीव समुदाय की यथास्थिति बनाये रखने की क्षमता को जैविक स्थिरता कहते हैं। ऐसा देखा गया है कि किसी जैविक समुदाय में जितनी अधिक जातियाँ पायी जाती हैं, वह समुदाय उतना ही अधिक स्थिर होता है। जातियों की संख्या में अधिकता का सामान्य अर्थ जीव समुदाय में विविधता से है। प्रकृति का नियम है कि विविधता में ही स्थिरता होती है। इसे हम उदाहरण के द्वारा समझा सकते हैं। यदि किसी बड़े क्षेत्र में एक ही प्रकार के पौधे लगा लें और उनमें कोई बीमारी लग जाय तो पूरे क्षेत्र की वनस्पतियाँ नष्ट हो जायेंगी, इसके विपरीत प्राकृतिक जंगल में किसी जाति के पादपों में रोग लगता है, तो शेष वृक्ष तथा पौधे जीवित रहेंगे, क्योंकि उसमें हजारों प्रकार की जातियाँ पायी जाती हैं । इसी कारण कृत्रिम रूप से विकसित जंगलों की अपेक्षा प्राकृतिक जंगल अधिक स्थायी होते हैं।

(3) जाति प्रभाविता–प्रत्येक जीवीय समुदाय में एक अथवा कुछ जातियों के जीव अधिक संख्या में पाये जाते हैं, इस जाति अथवा जातियों की प्रभावी जाति तथा समुदाय के इस गुण को जाति प्रभाविता कहते हैं। इन जातियों का समुदाय की अन्य जातियों तथा वहाँ के वातावरण पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। उदाहरणउष्ण कटिबन्धीय (ट्रॉपिकल) प्रदेशों के अधिक वर्षा वाले जंगलों में लगभग 10 जातियाँ ही प्रभावी रूप में पायी जाती हैं।

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प्रश्न 15.
समष्टि उच्चावचन किसे कहते हैं ?
उत्तर
किसी समष्टि के साम्यावस्था में पहुँचने के बाद इसके घनत्व में कमी या अधिकता होती रहती है। साम्यावस्था के घनत्व में कमी या अधिकता होने की क्रिया को समष्टि उच्चावचन कहते हैं। यह समष्टि का एक प्रमुख गुण है, जो जलवायवीय कारकों एवं समष्टि की आपसी सम्बन्धों या क्रियाओं के कारण होता है।

प्रश्न 16.
जनसंख्या प्रकीर्णन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
समष्टि परिक्षेपण या प्रकीर्णन वह साधन है, जिसके द्वारा विनिष्ट समष्टि पुनः स्थापित होकर साम्यावस्था में आती है या आने का प्रयास करती है। इसमें समष्टि जीव.या उनके बीज एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आवागमन करते हैं। वास्तव में समष्टि परिक्षेपण,वह क्रिया है, जिसके द्वारा कोई समष्टि अपने आवास में वृद्धि करती है। परिक्षेपण और प्रजनन में गहरा सम्बन्ध होता है, क्योंकि प्रजनन की अनुपस्थिति में परिक्षेपण नहीं हो सकता। समष्टि परिक्षेपण तीन विधियों के द्वारा हो सकता है

  • अग्रवासन-किसी समष्टि में बाहरी सदस्यों का आना अग्रवासन कहलाता है।
  • प्रवासन-किसी समष्टि के सदस्यों का दूसरे स्थान पर स्थायी रूप से बसना प्रवासन कहलाता है।
  • प्रवजन-किसी समष्टि के सदस्यों का दो तरफा प्रकीर्णन (जाना और आना) प्रवजन कहलाता है। जैसे-साइबेरियन पक्षी शीत ऋतु में दक्षिण दिशा में आते हैं लेकिन ग्रीष्म ऋतु में वापस लौट जाते हैं।

जीव और समष्टियाँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जलीय पौधों के विशिष्ट लक्षण लिखिए।
उत्तर
जलीय पौधों के विशिष्ट लक्षण-

  • इन पौधों में बाह्य त्वचा पर उपत्वचा का अभाव होता है।
  • इन पौधों में जड़ तन्त्र अल्पविकसित होता है तथा जड़ें प्रायः छोटी एवं शाखारहित होती हैं। वॉल्फिया नामक आवृतबीजी पादप में तो जड़ों का अभाव होता है।
  • इन पौधों के शरीर में बड़े-बड़े अन्तर कोशिकीय अवकाश पाये जाते हैं जो कि वायु के संचार में सहायक होते हैं एवं पौधों को तैरने में सहायता करते हैं।
  • इन पौधों का सम्पूर्ण पादप शरीर जल एवं खनिज पदार्थों के अवशोषण में सहायक होता है।
  •  इन पौधों में रन्ध्रों का अभाव होता है यदि रन्ध्र उपस्थित भी होते हैं तो वे अक्रिय होते हैं ।
  • इन पौधों में यांत्रिक ऊतक अल्प विकसित होते हैं।
  • इन पौधों में संवहनी ऊतक या तो अनुपस्थित होते हैं अथवा अल्प विकसित होते हैं।
  • जल निमग्न पौधों में पत्तियाँ पतली, लंबी एवं फीतेनुमा होती हैं।
  • प्लावी पौधों में पत्तियाँ बड़ी चपटी होती हैं । बाह्य सतह पर मोम का जमाव होता है।
  • पर्णवृन्त लम्बे, लचीले, स्पंजी एवं श्लेष्मीय होते हैं।

प्रश्न 2.
मरुद्भिद् पौधों की आंतरिक संरचना में पाये जाने वाले अनुकूलन का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर
मरुद्भिद् पौधों की आंतरिक संरचना के अनुकूलन

  • इन पौधों के तनों एवं पत्तियों की बाह्य त्वचा (Epidermis) के ऊपर एक मोटी उपत्वचा (Cuticle) पाई जाती है।
  • इनकी बाह्य त्वचा (Epidermis) बहुस्तरीय (Multilayered) भी हो सकती है। उदाहरणनेरियम (Nerium)।
  • बाह्य त्वचा की भित्तियों का मोटा होना, इससे वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
  • इन पौधों के पत्तियों की निचली सतह पर धंसे हुए रन्ध्र (Suncken stomata) पाये जाते हैं। यह रन्ध्र, रन्ध्रीय गुहाओं (Stomatal cavities) में स्थित होते हैं जिनमें रोम (Hairs) या रन्ध्रीय रोम (Stomatal hairs) उपस्थित होते हैं। उदाहरण- कनेर (Nerium), पाइनस (Pinus) |
  • इन पौधों की हाइपोडर्मिस (Hypodermis) मोटी भित्ति वाली स्क्लेरेनकायमी कोशिकाओं (Sclerenchymatous cell) की बनी होती है जो कि जल के वाष्पीकरण को रोकते हैं। उदाहरण–पाइनस (Pinus) की पत्तियाँ।
  • इनकी पत्तियों में मीजोफिल (Mesophyll), पैलिसेड ऊतक (Palisade tissue) एवं स्पंजी पैरेनकाइमा (Spongy parenchyma) में स्पष्ट तथा भिन्नित होते हैं।

MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 13 जीव और समष्टियाँ 13

  • अन्तरकोशिकीय अवकाश (Intercellular spaces) आकार में बहुत छोटे होते हैं अथवा अनुपस्थित होते हैं।
  • इनमें शरीर को मजबूती प्रदान करने के लिए यान्त्रिक ऊतक (Mechanical tissue) कोलेनकाइमा (Collenchyma) के रूप में तथा स्क्ले रेनकाइमा (Sclerenchyma) के रूप में उपस्थित रहता है।
  • इनके तनों के वल्कुट (Cortex) में क्लोरेनकाइमा भी पाया जाता है।
  • इन पौधों में संवहनी ऊतक (Conducting tissue), दारु (Xylem) तथा पोषवाह (Phloem) के रूप में पूर्णतया विकसित होता है, जिससे जल व पोषक पदार्थों का संवहन (Conduction) आसानी से होता है।
  • इनकी बाह्यत्वचा (Epidermis) के ऊपर रोम (hairs) अथवा कण्टक (Spines) पाये जाते हैं, जो कि वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं।
  • रंध्रों की संख्या कम व पत्ती की निचली सतह में होती है।
  • तनों में धंसे हुए रंध्रों का पाया जाना।

प्रश्न 3.
जलीय पौधों के आकारिकीय अनुकूलनों का वर्णन कीजिये।
अथवा
जलीय पौधों में पाए जाने वाले किन्हीं दो अनुकूलनों को लिखिए।
उत्तर
जलीय पौधों के आकारिकीय अनुकूलन निम्नलिखित हैं
(1) जड़ों के अनुकूलन

  • जड़ तन्त्र (Root system) अल्पविकसित होती है तथा ये अशाखित (Unbranched) होती हैं। कुछ प्लावी पौधों (Floating plants) उदाहरण-वॉल्फिया (Wolffia), यूट्रिकुलेरिया (Utricularia) तथा जल निमग्न पौधों (Submerged plants) उदाहरण-सिरेटोफिलम (Ceratophyllum) में जड़ें अनुपस्थित होती हैं।
  • कीचड़ में उगने वाले पौधों को छोड़कर अन्य सभी जलीय पौधों में मूलरोम (Root hairs) अनुपस्थित होते हैं, क्योंकि उनके शरीर की सम्पूर्ण सतह अवशोषण (Absorption) का कार्य करती है।
  • कुछ पौधों जैसे–इकॉर्निया (Eichhormia), ट्रापा (Trapa) एवं पिस्टिया (Pistia) आदि की जड़ों में मूल टोप (Root cap) का अभाव होता है तथा यह मूल पॉकेट (Root pocket) के द्वारा प्रतिस्थापित होती है।
  • यदि जड़ें उपस्थित रहती हैं, तो वे अपस्थानिक (Adventitious) होती हैं तथा ये लम्बाई में छोटी, अशाखित एवं अल्पविकसित होती हैं । लेप्ना (Lemna) में जड़ें पौधे के सन्तुलन (Balance) को बनाते हुए लंगर (Anchor) की भाँति कार्य करती हैं।

(2) तनों में होने वाले अनुकूलन (Adaptations in stems)

  • जलमग्न पौधों (Submerged plants) उदाहरण-हाइड्रिला (Hydrilla), पोटेमोजिटॉन – (Potamogeton) आदि में तना लम्बा (Long), पतला (Slender) एवं लचीला (Flexible) होता है।
  • स्वतन्त्र रूप से तैरने वाले पौधों (Free floating plants) में तना जल की सतह के समानान्तर उस पर तैरता रहता है। उदाहरण-ऐजोला (Azolla), साल्विनिया (Salvinia) आदि। जलकुम्भी (Eichhomia) में तना स्पंजी (Spongy), मोटा, स्टोलन युक्त (Stoloniferous) एवं छोटा होता है।
  • जल में तैरने वाले जड़ युक्त पौधे (Rooted floating plants) जिनमें पत्तियाँ जल की सतह पर तैरती रहती हैं तथा तना प्रकन्द (Rhizome) के रूप में पाया जाता है। उदाहरण-निम्फिया (Nymphaea), निलम्बो (Nelumbo)।
  • इन पौधों में प्रजनन रनर (Runner), स्टोलन (Stolon) एवं ट्यूबर (Tuber) आदि के द्वारा होता है। तने प्रायः बहुवर्षीय (Perennial) होते हैं।

(3) पत्तियों में पाये जाने वाले अनुकूलन (Adaptations in leaves)

(i) जलमग्न रूपों (Submerged forms) में पत्तियाँ पतली (thin), लम्बी (long) एवं फीतेनुमा (Ribbon shaped) होती हैं। उदाहरण-वैलिस्नेरिया (Vallisneria), सिरेटोफिलम (Ceratophyllum) एवं रैननकुलस एक्वेटिलिस (Ranunculus aquatilis) की पत्तियाँ पतली एवं कटी-फटी (Finely divided) होती हैं। जलमग्न पौधों में कटी-फटी पत्तियाँ जल के तरंगों (Waves) के प्रति कम प्रतिरोधक (Resistant) होती हैं और पौधों को सुरक्षित रखती हैं।

(ii) प्लावी पौधों (Floating plants) उदाहरण-निम्फिया(Nymphaea) एवं कुमुदनी (Nelumbo) की पत्तियाँ अपेक्षाकृत बड़ी (Large), चपटी (Flat), पूर्ण (Entire) एवं प्लावी (Floating) होती हैं। इनकी बाह्य सतह पर मोम (Wax) का जमाव (Coating) होता है। इन पौधों की पत्तियों के पर्णवृन्त (Petiole) लम्बे, लचीले (Flexible), स्पंजी (Spongy) एवं श्लेष्म (Mucilage) के द्वारा घिरे रहते हैं, जिसके कारण पत्तियाँ जल की सतह पर आ जाती हैं।

(iii) कुछ प्लावी पौधों उदाहरण-जलकुम्भी (Eichhornia) एवं सिंघाड़ा (Trapa) आदि पौधों में पत्तियों के पर्णवन्त (Petiole) फूले हुए (Swollen) एवं स्पंजी (Spongy) होते हैं, जिनमें हवा भरी रहती है। यह गुण पौधे को तैरने में सहायता करता है।

(iv) रैननकुलस (Ranunculus), सैजिटेरिया (Sagittaria), एवं लिम्नोफिला (Limnophila) आदि में विषमपर्णता (Heterophylly) पायी जाती है। इनमें कई प्रकार की पत्तियाँ पायी जाती हैं

  • जलमग्न पत्तियाँ (Submerged leaves)
  • प्लावित पत्तियाँ (Floating leaves) एवं
  • वायवीय पत्तियाँ (Aerial leaves)। निमग्न पत्तियाँ, रेखीय (linear), फीतेनुमा (Ribbon shaped) तथा कटी-फटी (Dissected) होती हैं । प्लावित पत्तियाँ पूर्ण (Entire) एवं पालित (Lobed) होती हैं।

प्रश्न 4.
मरुद्भिद पौधों के तनों एवं पत्तियों में पाये जाने वाले आकारिकीय अनुकूलनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मरुदभिद पौधों को उदाहरण सहित संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
मरुद्भिद पौधों में शुष्क वातावरण को सहने के लिये निम्न प्रकार के प्रकार्यात्मक अनुकूलन पाये जाते हैं
पत्तियों में अनुकूलन (Adaptations in leaves)

  • मरुद्भिद पौधों की पत्तियाँ छोटी (Small) होती हैं, जिससे वाष्योत्सर्जन (Transpiration) करने वाले क्षेत्रफल में कमी आती है। उदाहरण-केजूराइना (Casurina)।
  • कुछ पौधों जैसे-अकेसिया मेलैनोजाइलॉन (Acacia melanonylon) में पर्णफलक (Leaf lamina) अनुपस्थित होता है तथा पर्णवृन्त (Petiole) चपटा होकर प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है। इसे फिल्लोड (Phyllode) कहते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद पौधों जैसे-ऐलोय (Aloe), ऐगेव (Agave), यूक्का (Yucca) एवं बिगोनिया (Begonia) आदि में पत्तियाँ मोटी, गूदेदार एवं मांसल होती हैं। अत: इनमें जल की अत्यधिक मात्रा संचित रहती है।
  • नागफनी (Opuntia) एवं ऐस्पेरेगस (Asparagus) में पत्तियाँ काँटों (Spines) में रूपान्तरित होती हैं। इसी प्रकार पाइनस (Pinus) की पत्तियाँ लम्बी एवं सूच्याकार (Needle shaped) होकर जल की हानि को कम करते हैं।
  • कुछ मरुद्भिद् पौधों में अनुपत्र (Stipules) काँटों (Spines) में रूपान्तरित होकर वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं। उदाहरण-यूफोर्बिया स्प्लेन्डेन्स (Euphorbia splendens), बेर (Zizvphus jujuba), अकेसिया (Acacia), कैपेरिस (Capparis) आदि।
  • इन पौधों की पत्तियों की बाह्य सतह चमकदार (Shiny) होती है, अतः ये प्रकाश को परावर्तित करके तापमान को कम करने में सहायता करती हैं। उदाहरण- कनेर (Nerium)।
  • कुछ एकबीजपत्री मरुद्भिद् पौधों की पत्तियाँ मुड़ी हुई (Rolled) अथवा वलयित (Folded) होकर रन्ध्रों को अन्दर की ओर छिपा लेती हैं, जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। उदाहरणएमोफिला (Ammophila), पोआ (Poa), सोमा (Psomma), एग्रोपायरॉन (Agropyron) आदि।

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प्रश्न 5.
जैविक समुदाय से आप क्या समझते हैं ? किसी जैव समुदाय के विशिष्ट लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जैविक समुदाय-किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों के समूह को जैविक समुदाय या जीवीय समुदाय या पारिस्थितिकी समुदाय कहते हैं।
जैव समुदाय के विशिष्ट लक्षण-प्रत्येक जीवीय समुदाय में कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नानुसार हैं

1.जाति विविधता-प्रत्येक जीवीय समुदाय में अनेक प्रकार के जीव एक साथ रहते हैं और सभी एकदूसरे से किसी-न-किसी रूप में जुड़े होते हैं।

2. रचना एवं वृद्धि स्वरूप-प्रत्येक जीवीय समुदाय की एक निश्चित रचना होती है जिसमें तीन प्रकार के जीव पाये जाते हैं-

  • उत्पादन
  • उपभोक्ता एवं
  • अपघटक । इसके साथ ही प्रत्येक जीव समुदाय का एक निश्चित वृद्धि स्वरूप होता है।

3. अनुक्रमण-प्रत्येक जैविक समुदाय परिवर्तनशील होता है तथा इसमें होने वाले परिवर्तन को रोका नहीं जा सकता है।

4. आत्मनिर्भरता-प्रत्येक जीवीय समुदाय में स्वपोषी तथा परपोषी दोनों ही जीव रहते हैं तथा सभी जीव भोजन तथा अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। परपोषी तथा विषमपोषी जीव की उपस्थिति के कारण प्रत्येक जीव समुदाय आत्मनिर्भर होता है।

5. जीवों के बीच अन्तर्सम्बन्ध-जीवीय समुदाय के सभी जीव एक-दूसरे से घनिष्टतापूर्वक जुड़े होते हैं।

6. जाति प्रभाविता-प्रत्येक जैविक समुदाय में एक जाति प्रभावी रूप में पायी जाती है।

प्रश्न 6.
जन्तुओं की सहयोगात्मक क्रियाओं का वर्णन कर उनका किसी जाति के लिए महत्व बताइए।
उत्तर
एक ही जाति के जीवों में कई प्रकार के क्रियात्मक संबंध होते हैं
(A) सहयोगात्मक

  • सुरक्षा एवं भोजन के लिये सहयोग-इस सहयोग से जीवों को हिंसक जातियों से रक्षा प्रदान कर भोजन की खोज में मदद करता है। उदाहरण-बंदर, हिरण, जेब्रा, हाथी।
  • सामाजिक व्यवस्था-इस व्यवस्था के कारण शांति एवं अनुशासन बनाये रखने में मदद मिलती है। जिससे सुरक्षापूर्वक सरलता से जीवनयापन करते हैं। उदाहरण-चींटी, दीमक, मधुमक्खी।
  • प्रादेशिकता-कुछ जंतुओं में निश्चित क्षेत्र में अपने परिवार के शेष सदस्यों के साथ सहयोगात्मक रूप से जीवनयापन करते हैं । जंतुओं का स्थायी क्षेत्र बिल, घोंसला, झाड़ी, गुफा या दूसरे रूप में हो सकता है।
  • प्रजनन सहयोग-कई जंतु प्रजनन सहयोग के लिये आजीवन नर-मादा जोड़ा बनाते हैं इसे एक विवाही जीव कहते हैं। लोमड़ी, भेड़िया, एक नर के साथ कई मादाएँ हों तो बहु विषाही जीव कहते हैं। उदाहरण-हिरण, वालरस।
  • पैतृक संरक्षण या देखभाल-संतति तथा अंडों को सुरक्षा के लिये एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। उदाहरण-मनुष्य, बंदर, हाथी।
  • सूचनाओं का आदान-प्रदान-लैंगिक रूप से जनन करने वाले जातियों में इन सूचनाओं का विशेष महत्व होता है। दैनिक जीवन में भी विशेष महत्व होता है।

(B) प्रतिस्पर्धात्मक-एक ही जाति के विभिन्न सदस्य आपस में भोजन, प्रजनन, क्षेत्र, गृह क्षेत्र तथा सुरक्षा आदि के लिये संघर्ष करते हैं। आवास हेतु पक्षी, भोजन हेतु छिपकली में संघर्ष देखा जाता है। एक ही जाति के सदस्यों के बीच में स्पर्धा के कारण उपलब्ध संसाधनों का जाति के सदस्यों में वितरण संतुलन बना रहता है। एक जाति के लिए सहयोगात्मक क्रियाओं का महत्व–एक जाति के जीव आपस में प्रजनन, भोजन, सुरक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था के लिए सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित करते हैं। एक जाति के सदस्यों को इस सम्बन्ध में कई लाभ होते हैं।

अगर हम प्रजनन सम्बन्ध को ही देखें तो यह बिना दो जीवों के सहयोग के सम्भव ही नहीं है। कई जीव जैसे बन्दर प्रजनन के लिए एक बड़ा समूह बनाते हैं जिसमें एक नर होता है और कई मादाएँ। कई जीव भोजन को सरलता से प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप में शिकार करते हैं । इसी प्रकार जीव जब समूह में रहते हैं तब मांसाहारी जीव आक्रमण नहीं करते जिनसे समूह के कारण उनको सुरक्षा मिलती है। इसी प्रकार चींटियों तथा मधुमक्खियों में समूह के कारण भोजन इत्यादि प्राप्त करने में सरलता होती है और उनका हर काम ठीक ढंग से होता है।

प्रश्न 7.
किसी जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के बीच अन्तर्सम्बन्धों का उदाहरणों सहित विवरण दीजिए।
उत्तर
जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के बीच अन्तर्सम्बन्ध-किसी भी जैविक समुदाय की विभिन्न जातियों के सदस्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे पर निर्भर रहते हैं। एक समुदाय की विविध जातियों में निम्नलिखित प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है–

(1) परजीविता-जब एक जीव दूसरे जीव से पोषण प्राप्त करता है, तब इस सम्बन्ध को परजीविता कहते हैं।

(2) सहजीविता-दो जातियों का ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें दोनों एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हुए साथसाथ जीवित रहती हैं। जैसे-लाइकेन एक ऐसा जीव है, जिसमें एक कवक तथा एक शैवाल समूह के जीव साथ-साथ रहते हैं।

(3) सहभोजिता-जब दो सदस्य साथ-साथ इस प्रकार जीवित रहते हैं कि एक सदस्य को लाभ होता है, जबकि दूसरे सदस्यों को इस सम्बन्ध में न ही लाभ होता है और न ही नुकसान। जैसे-ऑर्किड उच्च पादपों पर उगता है।

(4) शिकार एवं शिकारी-दो जातियों के बीच ऐसा सम्बन्ध है, जिसमें एक जन्तु दूसरे का शिकार कर अपना भोजन प्राप्त करता है। जैसे-जंगल के शेर और हिरन का सम्बन्ध ।

(5) अपमार्जिता- यह दो जातियों के बीच आहार प्राप्ति का अटूट सम्बन्ध है, जिसमें एक जाति के जीव दूसरे जीव जाति के मृत शरीर से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे-गिद्ध एवं चील मरे हुए पशुओं के शरीर से भोजन प्राप्त कर वातावरण की प्राकृतिक रूप से सफाई करते हैं।

(6) प्रतिस्पर्धा-वह सम्बन्ध है, जिसमें किसी समुदाय में एक ही जाति अथवा अलग-अलग जातियों के जीव जल, भोजन, आवास, प्रकाश आदि के लिए संघर्ष करते हैं। प्रतिस्पर्धात्मक सम्बन्ध किसी भी जैविक समुदाय को जीवन्त बनाये रखता है।

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