MP Board Class 11th Special Hindi विराम चिह्नों का उपयोग

1. विराम चिह्नों का उपयोग :

बोलना एक विशिष्ट कला है, जिसका आवश्यक गुण यह है कि सुनने वाला या सुनने वाले बोलने वाले के भाव को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए यह अनिवार्य है कि बोलने वाला बीच-बीच में आवश्यकतानुसार कुछ-कुछ ठहरकर बोले। यही क्रम बोलने में होता भी है। वह किसी पद, वाक्यांश या वाक्य को बोलते समय ठहरता जाता है। इस विश्राम को व्याकरण में ‘विराम’ कहते हैं। लिखते समय ऐसे स्थानों पर कुछ चिह्न लगा दिये जाते हैं। इन चिह्नों को ‘विराम चिह्न’ कहते हैं। शाब्दिक अर्थ के अनुसार ‘विराम’ का अर्थ है रुकाव, ठहराव अथवा विश्राम। बोलने में कहीं कम समय लगता है और कहीं ज्यादा। इसी दृष्टि से चिह्न भी कम समय और अधिक समय के अनुसार अलग-अलग होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी चिह्न होते हैं, जिनका अध्ययन साहित्य के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त अनिवार्य है।

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चिह्नों का महत्त्व इतना अधिक है कि भूल से गलत स्थान पर चिह्न लगा देने से वाक्य का अर्थ बदल जाता है, अतः चिह्न लगाने में पूर्ण सावधानी रखना आवश्यक है, जैसे
रुको मत जाओ। (कोई चिह्न नहीं) रुको, मत जाओ। (जाने का निषेध)

राष्ट्र भाषा हिन्दी में आजकल उसके विकास के साथ-साथ विराम चिह्नों की संख्या और प्रयोग बढ़ता जा रहा है। प्रमुख विराम चिह्न जिनका आजकल प्रयोग बहुतायत से होता है, निम्नानुसार हैं
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(1) अल्प विराम (,)
यह चिह्न उस स्थान पर लगाया जाता है, जहाँ वक्ता बहुत ही थोड़े समय के लिए रुके। जैसे
हेमलता, शारदा, वेदश्री और जयश्री उज्जैन, देवास और महू होकर आज ही लौटी हैं। वह आयेगा, परन्तु रुकेगा नहीं।

(2) अर्द्ध विराम (;)
अर्द्ध विराम के चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि अल्प विराम से कुछ अधिक समय तक रुकना हो। इसका प्रयोग प्राय: दो स्वतन्त्र उपवाक्यों को अलग करने के लिए किया जाता है। जैसे
मैंने गोली चलने की आवाज सुनी; चार पक्षी फड़फड़ाकर जमीन पर गिर पड़े।

(3) पूर्ण विराम (।)
वाक्य पूरा होने पर कुछ अधिक समय के लिए रुकना होता है, इसलिए प्रत्येक वाक्य की पूर्णता पर इस चिह्न का प्रयोग करते हैं। जैसे
बांग्लादेश आजाद हो गया।

संकेत-कुछ लोग इस चिह्न को पूर्ण विराम के स्थान पर केवल ‘विराम’ कहते हैं और पूर्ण विराम के चिह्न दो खड़ी लकीर ( ॥) को मानते हैं। साधारणतः दो खड़ी लकीर वाले इस चिह्न का प्रयोग पद्य की पूर्णता पर किया जाता है। जैसे

देख्यो रूप अपार, मोहन सुन्दर श्याम को।
वह ब्रज राजकुमार, हिय-जिय नैनन में बस्यो।।

(4) प्रश्न चिह्न (?)
प्रश्नवाचक चिह्न, प्रश्नसूचक वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर आता है। जैसे
1. यह किसका घर है?
2. वह कहाँ जा रहा है?

(5) विस्मयादि बोधक चिह्न (!)
इस चिह्न का प्रयोग विस्मयादि सूचक शब्दों या वाक्यों के अन्त में किया जाता है। सम्बोधन कारक की संज्ञा के अन्त में भी इसे लगाया जाता है। जैसे
1. अरे ! वहाँ कौन खड़ा है।
2. हाय ! इसका बुरा हुआ।
3. हे ईश्वर ! उसकी रक्षा करो।

(6) संयोजक चिह्न (-)
इसे सामासिक चिह्न भी कहते हैं। इस चिह्न का प्रयोग सामासिक शब्दों के मध्य में होता है। जैसे
हे ! हर-हार-अहार-सुत, मैं विनवत हूँ तोय।

(7) निर्देशक चिह्न (-) (:-)
इस चिह्न का दूसरा नाम विवरण चिह्न भी है। इसका प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है, जबकि किसी वाक्य के आगे कई बातें क्रम से लिखी जाती हैं। इसे आदेश चिह्न भी कहते हैं।
निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा लिखो
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया। कभी-कभी (:-)
इस चिह्न के स्थान पर डेश (-) का भी प्रयोग कर लिया जाता है।

(8) कोष्ठक ()[ ]
कोष्ठक का प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है
1. किसी विषय के क्रम बतलाने के लिए अक्षरों या अंकों के साथ इसका प्रयोग होता है। जैसे
(क) व्यक्ति वाचक संख्या।
(ख) जाति वाचक संख्या।
(1) एशिया
(2) यूरोप

2. वाक्य के मध्य में किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है।
जैसे- हे कोन्तेय, (अर्जुन) तू क्लेव्यता (कायरता) को प्राप्त न हो।

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3. नाटकों में अभिनय को प्रकट करने के लिए भी कोष्ठकों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- महाराणा प्रताप-(क्रोध से) नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता।
मानसिंह-(नम्रता से) राणा ! हठ न करो। बात के मान लेने में तुम्हारा हित है।

(9) उद्धरण या अवतरण चिह्न ()(“”)
हिन्दी में इस चिह्न के अन्य नाम भी हैं। जैसे-उल्टा विराम, युगल-पाश, आदि। इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि किसी व्यक्ति की बात या कथन को उसी के शब्दों में लिखना होता है। यह चिह्न वाक्य के आदि और अन्त में लगाया जाता है। इकहरे और दोहरे चिह्नों में यह अन्तर है कि जब किसी उद्धरण को लिखना होता है तो दोहरे चिह्न लगाये जाते हैं, किन्तु वाक्य के मध्य में यदि आवश्यकता हुई तो इकहरे उद्धरण चिह्न को लगाया जाता है।

जैसे-
अकबर ने उस दिन प्रार्थना के स्वर में कहा, “हे विश्वनियन्ता ! तू सत्य है; तू ही राम; तू ही रहीम है।” उसने आगे कहा, “दुनिया में सच्चा ईमान ‘मानव धर्म’ है।”

(10) लोप निर्देशक चिह्न (x x x) (………)
इन चिह्नों का प्रयोग तब होता है, जबकि कोई लेखक किसी का उद्धरण देते समय कुछ अंश छोड़ना चाहता है। इनका प्रयोग निम्नानुसार किया जाता है

1. उस स्थिति में जबकि लेखक किसी लम्बे विवरण को छोड़कर आगे की बात लिखना चाहता है, तब वह चार-पाँच ऐसे निशान लगा देता है। जैसे
आग का वह दृश्य क्या था, सर्वस्व नाश की विभीषिका थी। चारों ओर से लोग दौड़ रहे थे। x x x सम्पूर्ण गाँव जलकर स्वाहा हो गया।

2. जब कुछ शब्द या वाक्य छोड़ने होते हैं, तो ‘……….’ इसका प्रयोग करते हैं। जैसे-मुम्बई ………… नगर है। रिक्त स्थान की पूर्ति करो।

(11) आदेश चिह्न (: -)
जब प्रश्न न पूछा जाकर आदेश दिया जाये वहाँ आदेश चिह्न लगाया जाता है, जैसे-किन्हीं पाँच चीनी यात्रियों का नाम लिखिए :

(12) लाघव चिह्न (०)
जब किसी प्रसिद्ध शब्द को पूरा न लिखकर संक्षेप में लिखा जाता है, तब उसका प्रारम्भिक अक्षर लिखकर लाघव चिह्न (०) लगा दिया जाता है। जैसे
हिन्दी साहित्य सम्मेलन-हि० सा० स०
मध्य प्रदेश राज्य-म० प्र० राज्य
नागरी प्रचारिणी सभा, काशी-ना० प्र० सं०, काशी

(13) हंस पद (^)
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि कोई शब्द या बात वाक्य लिखते समय मध्य में छूट जाय। उस स्थिति में नीचे इस चिह्न को लगाकर ऊपर वह शब्द लिख दिया जाता है। जैसे
वह
“मैंने पास जाकर देखा ^ गुलाब का फूल था।”

(14) बराबर सूचक चिह्न (=)
इस चिह्न को तुल्यता सूचक चिह्न भी कहते हैं। इसका प्रयोग समानता दिखलाने के लिए किया जाता है। जैसे-
विद्या + आलय = विद्यालय

(15) पुनरुक्ति बोध चिह्न (,)
उस स्थिति में जबकि ऊपर कही हुई बात अथवा शब्द को नीचे की ओर उसी रूप में लिखना होता है, तो इस चिह्न को लगा देते हैं, जिसका मतलब होता है-‘यह वही शब्द है जो
ऊपर लिखा हुआ है। जैसे
5 आदमी एक काम 15 दिन में करते हैं-
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(16) समाप्ति सूचक चिह्न (- : x : -)
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि कोई लेख, अध्याय, परिच्छेद, पुस्तक आदि समाप्त हो गई हो। जैसे-
और इस प्रकार भारत देश आजाद हुआ।
– : x : –

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