MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण सन्धि

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण सन्धि

दो या दो से अधिक वर्षों के परस्पर मिलने से जो विकास या परिवर्तन होता है। उसे सन्धि कहते हैं।

जैसे–

  • विद्या + आलय = विद्यालय
  • रमा + ईश = रमेश
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
  • सत् + जन = सज्जन
  • एक + एक = एकैक

सन्धि तीन प्रकार की होती हैं

  1. स्वर संधि,
  2. व्यंजन संधि और
  3. विसर्ग संधि।

जब स्वर से परे स्वर होने पर उनमें जो विकार होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। दूसरे शब्दों में स्वर के बाद जब कोई स्वर आता है तो दोनों के स्थान में स्वर हो जाता है। उसे स्वर संधि कहते हैं;

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जैसे–

  • धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
  • रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
  • भानु + उदय = भानूदय
  • सुर + इन्द्र सुरेन्द्र
  • सदा + एव = सदैव
  • इति + आदि = इत्यादि
  • नै + अक = नायक

स्वर संधि के भेद–स्वर संधि के पाँच भेद हैं–

  1. दीर्घ संधि,
  2. गुण संधि,
  3. वृद्धि संधि,
  4. यण संधि, और
  5. अयादि संधि।

1. दीर्घ संधि–ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ, के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ इ, उ, ऋ क्रमशः आए तो दोनों को मिलाकर एक दीर्घ–स्वर हो जाता है।

जैसे–

  • परम + अर्थ = परमार्थ
  • राम + आधार = रामाधार
  • अभि + इष्ट = अभीष्ट
  • भानु + उदय = भानूदय
  • मही + इन्द्र = महीन्द्र
  • गिरि + ईश = गिरीश
  • महा + आशय = महाशय
  • अदय + अपि = यद्यपि

2. गुण संधि–अ अथवा आ के पश्चात् ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ आए तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ तथा अर् हो जाते हैं।

जैसे–

  • सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
  • सुर + ईश = सुरेश
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • महा + ऋषि = महर्षि
  • महा + उत्सव = महोत्सव
  • वीर + इन्द्र = वीरेन्द्र
  • राज + ऋषि = राजर्षि
  • हित + उपदेश = हितोपदेश

3. वृद्धि संधि–हस्व अथवा दीर्घ अ के पश्चात् ए अथवा ऐ आने पर “ऐ” और ओ अथवा औ आने पर दोनों के स्थान पर “औ” हो जाता है।

जैसे–

  • सदा + एव = सदैव
  • मत + ऐक्य = मतैक्य
  • परम + औषधि = परमौषधि
  • वन + औषधि = वनौषधि
  • महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
  • जल + ओध = जलौध

4. यण सन्धि–हस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ से परे अपने से भिन्न स्वर हो जाने पर इनके स्थान पर क्रमशः य, व और र होता है।

जैसे–

  • अति + उत्तम = अत्युत्तम
  • इति + आदि = इत्यादि.
  • प्रति + एक = प्रत्येक
  • यदि + अपि = यद्यपि
  • सु + आगत = स्वागत
  • अति + आचार = अत्याचार
  • पित्र + आदेश = पित्रादेश।

5. अयादि संधि–ए, ऐ, ओ, औ के पश्चात् स्वर वर्ण आने पर उनके स्थान .. पर अय, आय तथा अव हो जाते हैं।

जैसे–

  • पो + अन = पवन
  • पो + अक = पावक
  • नै + अक = नायक
  • न + अन = नयन
  • नै + इका = नायिका

जब व्यंजन और स्वर अथवा व्यंजन से मेल होता है, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे

  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + चारण = उच्चारण
  • जगत + नाथ = जगन्नाथ
  • दुस + चरित्र = दुश्चरित्र
  • शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
  • महत् + चक्र = महच्चक्र
  • षट् + आनन = षडानन
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • सद् + आचार = सदाचार
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • वाक् + ईश = वागीश
  • उत् + गमन = उद्गमन
  • उत् + हार = उद्धार
  • सम + कल्प = संकल्प
  • राम + अयन = रामायन

विसर्ग के साथ जब किसी स्वर या व्यंजन का मेल होता है, तब विसर्ग संधि होती है।
जैसे–

  • अति + एव = अतएव
  • निः + छल = निश्छल
  • धनु + टंकार = धनुष्टंकार
  • निः + कपट = निष्कपट
  • निः + पाप = निष्पाप
  • निः + धन = निर्धन
  • नमः +. कार = नमस्कार
  • तिरः + कार = तिरस्कार
  • पुरः + कार = पुरस्कार
  • मनः + योग = मनोयोग
  • मनः + रथ = मनोरथ
  • पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
  • दुः + तर = दुस्तर
  • सत + आनंद = सदानन्द

अभ्यास के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न

  1. संधि किसे कहते हैं?
  2. संधि के कितने प्रकार हैं?
  3. निम्नलिखित शब्दों में संधि करो और उनके नाम बताओ
  • मत + ऐक्य,
  • शुभ + इच्छु
  • धन + अभाव,
  • उत + लास
  • पितृ + अनुमति,
  • निः + सन्देह
  • जगत + नाथ,
  • जगत + ईश
  • हित + उपदेश,
  • सदा + ऐव
  • भोजन + आलय,
  • परम + ईश्वर
  • मनः + हर,
  • निः + बल
  • शिव + आलय,
  • उत् + गम
  • निः + रोग,
  • सम + कल्प
  • यदि + अपि,
  • पो + अन
  • नर + इन्द्र,
  • परम + अर्थ।

4. निम्नलिखित शब्दों का संधि–विच्छेद करो
व्यवसाय, दुरुपयोग, उद्योग, निश्चल, निर्जन, उज्ज्वल, सूर्योदय, इत्यादि, निर्भय, जगदीश, निश्चिन्त, मनोरथ।

5. नीचे लिखे प्रत्येक शब्द के आगे संधियों के उदाहरण और संधियों के नाम लिखे हैं, किन्तु वे गलत हैं। आप उन्हें सही क्रम में लिखिए–

  • मनोरथ – अयादि संधि
  • नायक – वृद्धि संधि
  • इत्यादि – गुण संधि
  • विद्यार्थी – व्यंजन संधि
  • महेन्द्र – विसर्ग संधि
  • सदैव – दीर्घ संधि
  • सज्जन – यण संधि
  • सम–कल्प – व्यंजन संधि
  • निष्फल – व्यंजन संधि
  • मनोयोग – विसर्ग संधि

6. निम्नलिखित शब्दों में से व्यंजन संधि का उदाहरण बताइएं।

  • मनोहर,
  • पवन,
  • जगन्नाथ,
  • महाशय।

7. परम + अर्थ, हित + उपदेश, सत् + जन, मनः + विकार उपर्युक्त संधियों में से किन–किन संधियों का उदाहरण है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को (व्यंग्य, डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त बरसैंया)

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कौन-से प्रसंग आत्मीयता को प्रमाणित करते हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार सुख-दुख के प्रसंग आत्मीयता को प्रमाणित करते हैं।

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प्रश्न 2.
कुत्ता काटने की घटना का वर्णन श्रोतागण भइया जी से किस-किस प्रकार सुनते हैं?
उत्तर:
कुत्ता काटने की घटना का वर्णन श्रोतागण भइया जी से इस प्रकार सुनते हैं –

भइया ने खचाखच भरे दरबार में अपना फटा कुरता और पाजामा तथा मलहम-पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को प्रदर्शित करते हुए सबकी जिज्ञासा-शांति के लिए बताया कि रात के अंधेरे में वह जब टॉर्च लेकर एक सामाजिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे, तभी निर्धन परिवार के एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया। वह कुत्ता कैसे पीछे से उन पर झपटा, कैसे उन्होंने दुतकारा, कैसे वे भागे, कैसे गिरे, फिर उठकर कुत्ते का मुकाबला कैसे किया और कहाँ-कहाँ कुत्ते ने काटा इस सबका पूरे अभिनय के साथ सविस्तार वर्णन जब भइया जी ने किया तो स्वाभाविक है कि सहानुभूति प्रदर्शकों ने भरे गले में अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की।

प्रश्न 3.
‘घर में इन्हीं की झंझट क्या कम है कि एक और मुसीबत मोल ले ली जाए।’ किसके द्वारा कहा गया वाक्य है?
उत्तर:
घर में इन्हीं की झंझट क्या कम है कि एक और मुसीबत मोल ले ली जाए।’ यह वाक्य भइया जी की धर्मपत्नी द्वारा कहा गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कुत्ते के काटने पर भइया जी को उनके शुभचिन्तकों ने किस तरह के सुझाव दिए?
उत्तर:
कुत्ते के काटने पर भइया जी को उनके शुभचिन्तकों ने निम्नलिखित तरह के सुझाव दिए –

  1. कुत्ता यदि पालतू है तो उसके मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करना चाहिए।
  2. कुत्ते को दस दिन तक अपने घर में बाँधकर वॉच करना चाहिए।
  3. भइया जी को दस कुएं झंकवा दिए जाएं।
  4. भइया जी को तीन हजार रुपए का एक इंजेक्शन लगवा देना चाहिए।
  5. भइया जी की झाड़-फूंक करवा ली जाए।

प्रश्न 2.
कुत्ते की उस मानसिक स्थिति का वर्णन कीजिए, जिससे उत्तेजित होकर उसने भइया जी को काटने का निश्चय किया।
उत्तर:
भइया जी अपने स्वभाव के अनुरूप झकाझक कपड़ों में थे ऊपर से कुत्ते पर टॉर्च की रोशनी मारी। कुत्ते को लगा कि मुझ निर्धन बस्ती के कुत्ते को यह संपन्न व्यक्ति अपनी चमक और रोशनी से चकाचौंध करना चाहता है। मेरा मालिक दिनभर परिश्रम कर पसीने से लथपथ फेटे, मैले-कुचैले कपड़ों पर आता है और इनके कपड़ों पर एक दाग भी नहीं? हम दर-दर की ठोकरें खाएँ और ये तथा इनके कुत्ते मालपुए खाएँ। गाड़ियों में घूमें।

झकाझक कपड़ों की शान बघारें। आदमी-आदमी तथा कुत्ते-कुत्ते में भेद पैदा करें। उसके भीतर की अपमान की व्यथा, आक्रोश की आग बनकर भड़क उठी और जैसे ही भइया जी उधर से निकले कि उसने आक्रमण करके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। हाथ-पाँव, कंधों को दाँत और नाखूनों से खरोंच डाला मानो घोषित कर दिया कि अवसर मिलते ही हम अपने अपमान का बदला लेने से नहीं चूकेंगे। निर्धन बस्ती का यह कुंत्ता एक दिन संपन्न बस्ती में अपना झण्डा अवश्य गाड़ेगा।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक साहित्यकारों को क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक साहित्यकारों को यह संदेश देना चाहता है कि –

  1. वे सत्ता और समर्थकों का गायक न बनें।
  2. वे पैसे के पीछे न भागें और दीन-हीन शोषितों की बिरादरी की तरह रहें।
  3. वे पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपने को पथभ्रष्ट न करें।
  4. वे सत्यमार्ग पर चलकर साहित्य-रचनाधर्म का पालन करें।
  5. वे जरूरतमंदों और शोषितों के साथ बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें।

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प्रश्न 4.
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है।” इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है।”

उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य यह है कि आज का साहित्यकार साहित्य-रचना के सत्यमार्ग को छोड़ चुका है। वह सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है। राजनेताओं, अधिकारियों और धनपतियों को देवता-भागवत के रूप में देख-समझ रहा है। फिर उनकी प्रशंसा, स्तुति और यशगान करने में ही वह रात-दिन लगा रहता है। यह इसलिए ऐसा करके ही वह सुख-सुविधामय जीवन बिता सकता है। वह यह अच्छी तरह से जानता है कि सत् साहित्य की रचना करके उसे कुछ नहीं मिलनेवाला है-न पद, न सम्मान और न पुरस्कार। उसे कुछ भी सुख-सुविधाएँ भी नसीब नहीं हो सकती हैं, बल्कि उसे तो शोषण, उपेक्षा और अभावों का शिकार होना पड़ेगा। इस प्रकार आजकल का साहित्यकार, साहित्यकार न होकर सत्ता और अधिकारियों का चापलूस, पिछलग्गू और उपासक पुजारी बनकर रह गया है जो हर प्रकार निंदनीय और हेय है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. हिन्दुस्तान में दूसरों की समस्या या तकलीफ दूर करने के लिए हर व्यक्ति ज्ञानी होता है।
  2. कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से भी ज्यादा खतरनाक है।

उत्तर:
1. उपर्युक्त वाक्य के द्वारा यह भाव प्रकट करने का प्रयास किया गया . है कि हमारे देश की बात और देशों की अपेक्षा अलग है। यहाँ के लोग अपनी चिन्ता कम करते हैं, दूसरों की अधिक करते हैं। यही कारण है कि एक जब दूसरे को दुखी या परेशान देखता है, तो वह उसके दुख और परेशानी को दूर करने के लिए हर प्रकार के सुझाव देने लगता है। उस पर अपने ज्ञान भंडार को उड़ेल देता है। उस समय वह अपनी समस्या या तकलीफ को एकदम भूल जाता है, मानो उसे कुछ भी तकलीफ नहीं है।

इस प्रकार वह किसी को किसी समस्या या तकलीफ में पड़े हुए देखकर दूसरा बिना बुलाए उसके पास पहुँचकर अपने ज्ञान और सुझाव की झड़ी लगाने लगता है, मानो उस समय उसे और कोई काम नहीं है। ऐसे लोग बिन बुलाए मेहमान की तरह स्वयं को अधिक महत्त्वपूर्ण मान लेते हैं। हकीकत यह होती है कि जब ऐसे लोग समस्या त्रस्त होने पर अपने होश तक खो देते हैं।

2. उपर्युक्त वाक्य के द्वारा यह व्यंग्य-भाव प्रकट करने का प्रयास किया गया है कि भ्रष्ट नौकर-कर्मचारी के अधिकारी और शासक भी कम भ्रष्ट नहीं होते हैं, अपितु वे तो अपने अधीन काम करने वालों से कई गुना भ्रष्ट होते हैं। उन्हीं के असाधारण बड़े भ्रष्टाचार से उनके अधीन काम करने वालों का भ्रष्टाचार करने की न केवल सीख मिलती है, अपितु उससे उनका हौसला भी बुलंद होता है। इससे वे कुछ भी उल्टा-सीधा करने से तनिक न डरते हैं और न संकोच ही करते हैं। वे भलीभांति जानते हैं कि वे किसी का भक्षक बन भी जाएँ तो उसका कोई भी बाल बाँका नहीं कर सकेगा। क्योंकि उसका रक्षक इस प्रकार सबल है ही। इस प्रकार ‘कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से ज्यादा खतरनाक’ इस व्यंग्य वाक्य के द्वारा लेखक ने आधुनिक भ्रष्ट कर्मचारियों और उनके भ्रष्ट अधिकारियों पर करारा व्यंग्य प्रहार किया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए अंग्रेजी भाषा के शब्दों की सूची बनाएँ और उनके हिन्दी अर्थ लिखें।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-1

प्रश्न 2.
‘अन्त’ शब्द का अर्थ है समाप्ति और ‘अन्त्य’ का अर्थ है, अन्तिम। ये शब्द समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं। ऐसे ही अन्य शब्द लिखकर उनके अर्थ लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद करें तथा संबंधित शब्दों में आई संधि का नाम भी लिखें –
सहानुभूति, चतुरेश, शिशिरानंद।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में आए समास का नाम लिखें –
तर्क-वितर्क, कुशल-क्षेम, कुरता-पाजामा, दीन-हीन।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-4

प्रश्न 5.
‘लायक’ शब्द में ‘ना’ उपसर्ग का प्रयोग करके उसका विपरीत शब्द ‘नालायक’ बनता है। इसी प्रकार अन्य उपसर्गों का प्रयोग करके विपरीत अर्थ वाले दस शब्द बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-5

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
मध्यप्रदेश से संबंधित चार व्यंग्य लेखकों का संक्षिप्त परिचय संकलित करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
अपने साथ घटित ऐसी ही किसी अन्य घटना का वर्णन हास्य-व्यंग्य शैली में कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
प्रस्तुत व्यंग्य, प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ से साभार लिया है। यह पत्रिका दिल्ली से प्रकाशित होती है। मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाली हिन्दी भाषा के समाचार पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
विभिन्न समाचार पत्रों में सप्ताहिक कॉलम में व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं, ऐसे व्यंग्य को पढ़ें तथा संकलित कर व्यंग्य लिखने का प्रयास करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भइया जी ने भी कुत्ते काटने की खबर क्यों फैला दी?
उत्तर:
भइया जी ने भी कुत्ते काटने की खबर फैला दी। यह इसलिए कि –

  1. लोग उनसे यह शिकायत न कर सकें कि उन्हें खबर ही नहीं मिली।
  2. भइया जी स्वयं खबर लेने-देने में गहरी दिलचस्पी लेते थे।

प्रश्न 2.
आजकल आत्मीयता और सहानुभूति कैसे प्रकट की जाती है?
उत्तर:
आजकल आत्मीयता और सहानुभूति दो मिनट की दरबार में हाजिरी, फिर प्रशंसा और समर्पण के दो बनावटी शब्दों के द्वारा प्रकट की जाती है।

प्रश्न 3.
भइया जी कुत्ता काटने का समाचार अखबारों में क्यों छपवाना चाहते थे?
उत्तर:
भइया जी कुत्ता काटने का समाचार अखबारों में छपवाना चाहते थे। यह इसलिए कि इस मौके को भुनाकर अपनी महानता और लोकप्रियता को और बढ़ाना चाहते थे।

प्रश्न 4.
अंत में सभी किस बात पर एकमत हुए?
उत्तर:
अंत में सभी इस बात पर एकमत हुए. कि दस दिन तक कुत्ते पर नजर . रखी जाए। तब तक झाड़-फूंक करवा ली जाए और कुएँ भी ऑकवा लिये जाएँ।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भइया जी के प्रति सहानुभूति और आत्मीयता प्रदर्शित करने वालों में कौन लोग शामिल थे?
उत्तर:
भइया जी के यहाँ सहानुभूति और आत्मीयता प्रदर्शित करने वालों का ताँता लगा था। वे लोग भी शामिल हैं, जो पहले ही सुनकर हँसी उड़ा चुके थे। वे इस प्रकार कहते थे, अच्छा हुआ, कुत्ते ने काट लिया बुड्ढे को। वहाँ कुत्ते के पास क्या करने गए थे? घर बैठे चैन नहीं तो कुत्ते तो काटेंगे ही। कुछ ऐसे लोग भी भइया जी के दरबार में सबसे अलग पंक्ति में मौजूद थे-जो बाहर दुखी और भीतर से प्रसन्न हैं। दरबार में भांति-भांति के प्रश्न और भांति-भांति के उत्तर।

अलग-अलग प्रकार की बातें, सुझाव और अपनी ओर आकर्षित करने के तरीके। भइया जी सभी के केंद्र बने हुए थे। वे सभी को देखते-पहचानते और न आने वालों के बारे में भीतर-ही-भीतर सोचते-समझते और हिसाब लगाते हुए सभी के प्रश्नों, जिज्ञासाओं, आशंकाओं, सुझावों का समाधान कर रहे थे। उनसे उस समय बार-बार लगभग वही-वही प्रश्न क्रमशः आने वालों द्वारा किए जाते हैं और भइया जी वही-वही उत्तर ग्रामोफोन के रिकॉर्ड की तरह दोहरा रहे थे।

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प्रश्न 2.
सहानुभूति प्रदर्शकों ने कब भरे गले से अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की?
उत्तर:
सहानुभूति प्रदर्शकों ने तब भरे गले से अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की जब भइया जी ने खचाखच भरे दरबार में अपना फटा कुरता और पाजामा तथा मलहम-पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को प्रदर्शित किया फिर सबकी जिज्ञासा-शांति के लिए बताया कि रात के अंधेरे में वह जब टॉर्च लेकर एक सामाजिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे, तभी निर्धन परिवार के एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया। उस समय वह कुत्ता कैसे पीछे से उन पर झपटा, कैसे उन्होंने दुतकारा, कैसे वे भागे, कैसे गिरे, फिर उठकर कुत्ते का मुकाबला कैसे किया और कहाँ-कहाँ कुत्ते ने काटा। इन सबका वे पूरे अभिनय के साथ सविस्तार वर्णन किए।

प्रश्न 3.
भइया जी पर किस प्रकार संवेदनाओं की झड़ी लग रही थी?
उत्तर:
भइया जी पर संवेदनाओं की झड़ी लग रही थी और वे उनमें पूरी तरह डूबे जा रहे थे, जैसे उनका प्रशस्ति-गान किया जा रहा हो। उस समय कई लोग कुरता-पाजामा और भइया जी के विभिन्न अंगों को छूकर ऐसे देख रहे थे जैसे किसी कीमती रत्न की परख कर रहे हों। कुछ लोग यह पूछ रहे थे कि कुत्ता पालतू है या सड़क छाप? किस रंग का है? काला या सफेद। उसे इंजेक्शन लगा है या नहीं? जिस दिन कुत्ते ने काटा उस दिन कौन-सा दिन था? रविवार या बुधवार तो नहीं था? ऐसा इसलिए कि हर दिन का अपना अलग असर होता है। भइया जी ने उन सभी के उत्तर दिए। अंत में धीरे-धीरे आगे की कार्यवाही और चिकित्सा पर बात आ गई।

प्रश्न 4.
‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ व्यंग्य का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर:
कुत्ते द्वारा काटे जाने की सामान्य-सी घटना के द्वारा लेखक ने समाज में व्याप्त विसंगतियों और असमानताओं पर गहरा प्रहार किया है। सहानुभूति और संवेदना प्रदर्शन के दिखावटी रूप, परामर्श देने के खोखले उतावलेपन और आत्म-विज्ञापन हेतु ज्ञान की झड़ी लगाने पर लेखक ने तिलमिलाने वाले व्यंग्य की सर्जना की है। सामाजिक स्तर पर फैली हई असमानताओं से उत्पन्न आक्रोश की सार्थक अभिव्यक्ति दी है। इसके लिए लेखक ने कुत्ते की विवेकशीलता को रेखांकित करके व्यंग्य की धार को और ही अधिक तीखा बना दिया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त का जन्म उत्तर-प्रदेश के बांदा जिला के भौंरी में 6 फरवरी, 1937 को हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अध्यापन से जीविकोपार्जन का कार्य आरंभ किया। इस सिलसिले में उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग में अध्यापन कार्य कई वर्षों तक किया। इस प्रकार कार्य करते हए उन्होंने अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर प्राचार्य पद को प्राप्त कर लिया। इस पद पर कुछ समय तक कार्य करते हुए वे सेवानिवृत्त हो गए। इस समय वे स्वतंत्र लेखन कर अपनी योग्यता और क्षमता का परिचय दे रहे हैं।

रचनाएँ:
हिन्दी साहित्य में निबंध और निबंधकार’, ‘हिन्दी के प्रमुख एकांकी और एकांकीकार’, ‘छत्तीसगढ़ का साहित्य और साहित्यकार’, ‘आधुनिक काव्य : संदर्भ और प्रकृति’, ‘रस-विलास’, ‘वीर-विलास’, ‘सुदामा चरित’, ‘चिन्तन-अनुचिन्तन’, ‘बुन्देलखण्ड के अज्ञात रचनाकार’ ‘अरमान वर पाने का’, ‘निंदक नियरे राखिए’ आदि डॉ. गुप्त की प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं।

महत्त्व:
गुप्त जी ने समीक्षा, व्यंग्य, काव्य आदि विधाओं में लेखन किया है। दुर्लभ पांडुलिपियों के प्रकाशन के साथ अज्ञात रचनाकारों को केन्द्र बनाकर डॉ. गुप्त ने लगातार शोध-कार्य किया है। गंगा प्रसाद गुप्त की भाषा सहज है, लोक बोलियों के शब्दों का प्रयोग उनके प्रवाह को संप्रेषणीय बना देता है। साहित्य के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए योगदान के लिए अनेक संस्थाओं के साथ-साथ महामहिम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा उनको ‘साहित्य श्री’ से सम्मानित किया गया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते भइया जी को’ के सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ एक ऐसा व्यंग्यात्मक निबंध है जिसमें सामाजिक विडम्बनाओं पर कड़ा प्रहार किया गया है। इस व्यंग्य का सारांश इस प्रकार है… जब भइया जी को कुत्ते ने काटा तो यह खबर चारों ओर आग की तरफ फैल गई। जहाँ नहीं पहुँची, वहाँ भइया जी ने स्वये पहुँचा दी। खबर पाते ही लोगों की सहानुभूति भइया जी के प्रति होने लगी।

भइया जी के यहाँ दोनों ही प्रकार के लोगों का जमघट लग गया-बाहर से दुखी और भीतर से प्रसन्न लोगों का जमघट और दूसरी ओर उनके प्रति सचमुच में दुख प्रकट करने वालों का जमघट आए हुए लोग अपने-अपने अलग-अलग सुझाव दे रहे थे। भंइया जी सभी के प्रश्नों, जिज्ञासाओं, आशंकाओं और सुझावों का समाधान कर रहे थे। यों तो सबके भाव और सबके विचार अलग-अलग थे। भइया जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भइया जी के दरबार में किसी प्रकार के तर्क-वितर्क की इजाजत नहीं। वह जो कहें, उसे सुनिए और उसे मानिए। भइया जी की हार्दिक इच्छा है कि इस घटना को अखबारों में छपवा दिया जाए, जिससे कुछ अधिकारी और कुछ नेता आकर उन्हें धन्य करें। उससे वह शानपूर्वक कह सकें कि अमुक-अमुक उन्हें देखने आए थे। ऐसा इसलिए कि रोज-रोज कुत्ता किसी को नहीं काटता है। और जब काट ही लिया है तो उसे पूरी तरह भुनाया जाए। तभी तो अपनी महानता और लोकप्रियता का कुछ पता लग सकता है। लोगों की जमघट के बीच भइया जी.फटा कुरता-पाजामा और मरहम पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को दिखाते हुए आपबीती सुना रहे थे-रात के अंधेरे में एक टार्च लिये हुए वह एक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे हो।

उसी समय उन्हें एक गरीब परिवार के कुत्ते ने काट लिया। उसने उन पर कैसे आक्रमण किया, वे उससे बचने के लिए क्या-क्या किए। फिर कुत्ते ने उन्हें कैसे काटा और कहाँ-कहाँ काटा, इन बातों को वे पूरे अभिनय के साथ बता रहे थे। उसे सुनकर सभी की सहानुभूति दिखाई देने लगी। फिर संवेदनाओं की ऐसा धारा उमड़ पड़ी कि भइया. उसमें कुछ देर तक बहते रहे। कोई उनके कुरते-पाजामे को रत्न की तरह परख रहा था तो कोई पूछ रहा था कि कुत्ता पालतू था या सड़क छाप। उसका रंग कैसा था। उसे इंजेक्शन लगा था या नहीं, उस दिन कौन-सा दिन था। कहीं रविवार या बुधवार. तो नहीं था। – भइया जी ने सबको एक-एक करके बतलाया। किसी ने सुझाव दिया कि अगर कुत्ता : पालतू है तो उसके मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए।

किसी ने उसे यह कहकर चुप करा दिया कि कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से भी अधिक खतरनाक है। तीसरे ने कहा कि कुत्ते को दस दिन तक अपने घर में बाँधकर ‘वाच’ करना चाहिए। माता जी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि घर में इन्हीं की झंझट अधिक है। घर में बक-बक करने से अच्छा है, ये खुद ही जाकर उसे रोज देख-आया. करेंगे। इसी प्रकार भइया जी को चौदह इंजेक्शन लगवाने, दस कुएँ झाँकने, तीन हजार का एक इंजेक्शन लगवाने, झाड़-फूंक करवाने आदि उपाय बताए गए।

भइयाजी को कुत्ते ने क्यों काटा? इस पर विचार करें तो यह अनुमाम लगाया जा सकता है कि भइया जी लकलक कपड़ों में थे। उन्होंने टार्च की रोशनी कुत्ते पर मारी होगी। कुत्ता भड़क गया होगा कि उसका मालिक दिन-भर खून-पसीना बहाकर फटे-मैले-कुचैले कपड़े पहनता है और ये इस तरह चमकते कपड़े। वे दर-दर की ठोकरें खाते हैं और इनके कुत्ते मालपुए। इसे सोचकर उस कुत्ते ने भइया जी को काट लियां होगा। लेखक का सुझाव है कि उसके साहित्यकार बंधु पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपना पथ भ्रष्ट न करें। वे समाज की विडम्बनाओं पर कड़ा प्रहार कर कुत्तों से बचने की कोशिश करें।

पुनश्च अभी-अभी पता चला है कि भइया जी की माता जी का प्रिय कुत्ता पीलू पर किसी बाहरी कुत्ते ने ईष्यावश जब आक्रमण कर दिया तो पीलूं डर से दुम दबा कर घर के भीतर घुस गया। लेकिन माता जी को उस बाहरी कुत्ते ने काट लिया। अब वह भी झाड़-फूंक आदि के चक्कर में भइया जी की बराबरी कर रही हैं। इसलिए भइया जी की बिरादरी के भाई-बहनो! अब सावधान हो जाओ। जमाना करवटें बदल रहा है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
सुख-दुख के प्रसंग ही आत्मीयता प्रमाणित करने के सबसे अनुकूल सार्वजनिक अवसर होते हैं। वह जमाना गया जब भीतर-ही-भीतर आत्मीयता, स्नेह और श्रद्धा की भावना रखी जाती थी। अब तो बाहर का महत्त्व है। भीतर का क्या भरोसा? भीतर कुछ, बाहर कुछ। इसीलिए आजकल बाहर मैदान में सामने खड़ा करके, लिखवाकर प्रमाणित किया जाता है कि आपके भीतर श्रद्धा, आस्था और आत्मीयता है अथवा नहीं। भीतर की भावना छाती फाड़कर दिखानी पड़ती है। बाहर के लिए दो मिनट की दरबार में हाजिरी, फिर प्रशंसा तथा समर्पण के दो बनावटी शब्द ही पर्याप्त होते हैं।

शब्दार्थ:

  • आत्मीयता – अपनापन।
  • समर्पण – भेंट।
  • पर्याप्त – अधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने आजकल के दिखावटी भावों पर व्यंग्य प्रहार किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
किसी के प्रति अपनापन या निकट का भाव प्रकट करने के कुछ खास मौके होते हैं। इस प्रकार के मौके व्यक्तिगत तौर पर होते हैं और सार्वजनिक तौर पर भी। यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि व्यक्तिगत तौर की अपेक्षा सार्वजनिक तौर पर प्रकट किए जाने वाले अपनापन के भावों को अधिक खुलकर सामने रखने का मौका बहुत अधिक मिल जाता है। इस प्रकार जमाना पहले नहीं था। पहले तो लोगबाग किसी के प्रति अपनापन के भावों को खुलकर या सबके सामने नहीं प्रकट करते थे। वे तो उसे अपने भीतर-ही-भीतर से धीरे-धीरे प्रकट करते थे। इस प्रकार के अपनापन के भाव कई प्रकार के होते थे, जैसे श्रद्धा के भाव, प्रेम और दुलार के भाव, श्रद्धा और विश्वास के भाव आदि।

लेखक आजकल के बदलते हुए समय में किसी के प्रति अपनापन, श्रद्धा, आस्था, विश्वास, स्नेह आदि के भावों को प्रकट करने के तौर-तरीके बदल गए हैं। इस प्रकार के भावों को प्रकट करना अब आंतरिक कम होकर बाहरी अधिक हो गया है। आजकल की आत्मीयता सार्वजनिक रूप में प्रकट करना आवश्यक हो गया है। यह आत्मीयता व्यक्तिगत आत्मीयता से कहीं आसान होती है। आंतरिक आत्मीयता को प्रकट करने में बड़ी दिक्कत होती है, क्योंकि यह हृदय से निकलकर बाहर आती है, जबकि वाहरी आत्मीयता थोड़ी-सी भेंट और थोड़ी-सी मुलाकात के समय कुछ ही शब्दों में प्रकट हो जाती है। इस प्रकार इसके लिए बनावटी शब्द ही समुचित होते हैं।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. दिखावटी अपनापन पर व्यंग्य प्रहार है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।
  4. भाव रोचक हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आत्मीयता कब प्रकट की जानी चाहिए?
  2. पहले की आत्मीयता कैसी होती थी?

उत्तर:

  1. आत्मीयता सुख-दुख के प्रसंग पर सार्वजनिक मौके आने पर ही प्रकट की जानी चाहिए।
  2. पहले की आत्मीयता सच्ची और भीतर-ही-भीतर होती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. बदले हुए जमाने में आत्मीयता कैसी हो रही है?
  2. आजकल आत्मीयता किस प्रकार प्रकट की जाती है?

उत्तर:

  1. बदले हुए जमाने में आत्मीयता भी बदलती जा रही है। अब वह आंतरिक न होकर बाहरी हो गई है।
  2. आजकल आत्मीयता दो मिनट के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद चापलूसी और भेंट के कुछ बनावटी शब्दों के द्वारा प्रकट की जाती है।

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प्रश्न 2.
भइया जी की हार्दिक इच्छा है कि यह समाचार अखबारों में भी छप जाए और कुछ नेता और अधिकारी भी आकर उन्हें धन्य करें, ताकि वह शान से बतला सकें कि कौन-कौन देखने आए थे। आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं। अब जब काट ही लिया है, तो उसे पूरी तरह से भुनाया जाए। इससे महत्ता और लोकप्रियता का भी अनुमान लग जाता है।

शब्दार्थ:

  • भुनाया जाए – फायदा उठाया जाए।
  • लोकप्रियता – सर्वप्रियता।
  • महत्ता – महत्त्व।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने भइया जी को आजकल के अवसरवादी नेताओं की सोच-समझ के रूप में प्रस्तुत किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
भइया जी को कुत्ते ने काट लिया तो उन्हें अनेक प्रकार की इच्छाएँ . जोर मारने लगीं। उन इच्छाओं में एक हार्दिक इच्छा यह भी जोर मार रही थी कि कुत्ता काटने का समाचार आस-पास के लोगबाग तो जान ही गए हैं दूर-दूर के भी लोग इसे जान जाएँ, इसके लिए एक अच्छा तरीका यह भी हो सकता है कि इसे अखबारों में छपने के लिए दे दिया जाए। इससे यह खबर साधारण-से-साधारण लोग तो जान ही जाएँगे। उनके अतिरिक्त कुछ छोटे-बड़े नेता, समाजसेवी और छोटे-बड़े अधिकारी भी जान जाएँगे। फिर वे उनके पास आएँगे और उनके प्रति अपनी सहानुभूति और आत्मीयता को सबके सामने प्रकट करेंगे।

इससे वे बड़ी शान से सिर उठाकर सबसे कह सकेंगे कि कौन-कौन नेता और अधिकारी उनकी खैरियत पूछने आए थे। इस तरह इस मौके का क्यों न फायदा उठाया जाए! ऐसा इसलिए कि कुत्ता रोज-रोज तो नहीं काटता है। आज.काट लिया है, तो उसके बहाने लोगों की सहानुभूति और आत्मीयता को क्यों न बटोर लिया जाए। इससे जो महत्त्व, लोकप्रियता और जन-सम्पर्क प्राप्त होंगे वे शायद कभी फिर मिले। ऐसा इसलिए कि यह मौका बार-बार नहीं मिलता है और यह सबको नसीब भी नहीं होता है।

विशेष:

  1. भाषा में ताजगी और ओज है।
  2. व्यंग्य प्रहार की तीव्रता है।
  3. अवसरवादी लोगों पर व्यंग्य किया गया है।
  4. मुहावरों (शान से बतलाना, धन्य करना) के प्रयोग यथा स्थान हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘कछ नेता और अधिकारी आकर धन्य करें’ का आशय क्या है?
  2. भइया जी को हार्दिक इच्छा क्यों हुई?

उत्तर:

  1. ‘कुछ नेता और अधिकारी आकर धन्य करें’ का आशय है कि उन्हें साधारण लोग ही नहीं अपितु बड़े-बड़े अधिकारी भी जानते हैं। उनके आने से उनके प्रति बहुत बड़ी आत्मीयता प्रकट की जाएगी।
  2. भइया जी को हार्दिक इच्छा हुई। यह इसलिए कि उन्हें ऐसा लगा कि इस हार्दिक इच्छा को कार्य रूप देने से उनका कद और बढ़ जाएगा।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं’ का व्यंग्यार्थ लिखिए।
  2. अब जब काट ही लिया है, तो उसे पूरी तरह भुनाया जाए।’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. ‘आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं।’ का व्यंग्यार्थ है-‘रोज-रोज तो आत्मीयता और सहानुभूति बटोरने के लिए मुसीबत नहीं आती है।
  2. ‘अब जब काट ही लिया है तो उसे पूरी तरह से भुनाया जाए।’ का मुख्य भाव है-जब मुसीबत आ ही गई है तो उसका फायदा लोगों से सहानुभूति प्राप्त करके उठा लिया जाए। न जाने यह मौका फिर कभी आएगा या नहीं।

प्रश्न 3.
प्रश्न उठता है कि आखिर भाइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा? असल में भइया जी अपने स्वभाव के अनुरूप झकाझक कपड़ों में थे। ऊपर से कत्ते पर टॉर्च की रोशनी मारी। कुत्ते को लगा कि मुझ निर्धन बस्ती के कुत्ते को यह संपन्न व्यक्ति अपनी चमक और रोशनी से चकाचौंध करना चाहता है। मेरा मालिक दिनभर परिश्रम कर पसीने से लथपथ फटे-मैले-कुचले कपड़ों में आता है और इनके कपड़ों पर एक दाग भी नहीं।

हम दर-दर की ठोकरें खायें और ये तथा इनके कुत्ते मालपुए खाएँ। गाड़ियों में घूमें। झकाझक कपड़ों की शान बघारें। आदमी-आदमी तथा कुत्ते-कुत्ते में भेद पैदा करें। उसके भीतर की अपमान की व्यथा आक्रोश की आग बनकर भड़क उठी और जैसे ही भइया जी उधर से निकले तो उसने आक्रमण करके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। हाथ-पाँव, कंधों को दाँत और नाखूनों से खरोंच डाला मानो घोषित कर दिया कि अवसर मिलते ही हम अपने अपमान का बदला लेने से नहीं चूकेंगे। निर्धन बस्ती का यह कुत्ता एक दिन संपन्न बस्ती में अपना झण्डा अवश्य गाड़ेगा।

शब्दार्थ:

  • झकाझक – चमकते-दमकते।
  • संपन्न – सुखी।
  • शान बखारे – बड़प्पन दिखाएँ।
  • व्यथा – कष्ट, दुख, पीड़ा।
  • तार-तार करना – टुकड़े-टुकड़े करना।
  • खरोंच डाला – नोंच डाला।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक अमीरी-गरीबी में भेद रखने वालों पर कुत्ते के माध्यम से व्यंग्य प्रहार किया है। भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा इसे व्यंग्यात्मक रूप में प्रस्तुत करते हुए लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
यों तो कुत्ते किसी-न-किसी को काटते हैं और अलग-अलग कारणों से काटते हैं, लेकिन भइया जी को कुत्ता ने काय है तो किन कारणों से, यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस विषय में सोचने-समझने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस समय भइया जी को कुत्ते ने काटा, उस समय वे हमेशा की ही तरह चमकते-दमकते कपड़े पहने हुए थे। चूंकि उस समय अंधेरा था। इसलिए वे टार्च की रोशनी किए हुए एक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे। इसी दौरान उनके टार्च की रोशनी सामने एक कुत्ते पर पड़ी।

उस रोशनी से वह कुत्ता भड़क उठा। उसे क्रोध आ गया होगा कि यह सम्पन्न और चमक-दमक वाला आदमी गरीब बस्ती में रहने वाले कुत्ते पर अपनी शान दिखा रहा है। उसका मालिक दिन-भर खून-पसीना बहाने पर भी हमेशा फटा-पुराना और गंदे कपड़ों में रहता है। इसलिए उसके यहाँ रहकर हम इधर-उधर भटकते रहते हैं। फिर भी हमें भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है। लेकिन इनके कुत्तों की तो मौज ही मौज है। ये मालपुए खाते रहते हैं। अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर अपने मालिक के साथ गाड़ियों में इधर-उधर मस्ती छानते रहते हैं।

भइया जी को काटने वाले कुत्ते को इस बात पर भी क्रोध आया कि क्या इस प्रकार के आदमी को चाहिए कि आदमी आदमी के प्रति भेदभाव करे और कुत्ता कुत्ते के प्रति भेदभाव रखे। यह तो सचमुच अपनी जाति और बिरादरी के प्रति अत्याचार और अन्याय है। यह तो किसी समझदार प्राणी के लिए बर्दाश्त से बाहर है। इस प्रकार की बातों से वह कुत्ता उत्तेजित हो गया होगा। अपनी उस उत्तेजना का शिकार उसने भइया जी को बनाया। उसने उन्हें देखते ही उन पर ताबड़तोड़ काटना शुरू कर दिया।

उसने उनके चमकते-दमकते कुरते-पाजामे को काट-नोचकर तार-तार कर दिया। उनके हाथ, पैर और कंधे अपने नुकीले दातों और तेज नाखूनों से काट-नोंच डाला। ऐसा करके उसने यह साबित कर दिया कि वह और उसकी गरीब बिरादरी किसी से होने वाले अपमान को नहीं सहन करेंगे। जैसे ही कोई मौका मिलेगा, वे उस अपमान का बदला लेकर ही रहेंगे। इस तरह उसे विश्वास है कि निर्धन बस्ती का होकर भी वह अपनी विजय-पताका धनी बस्ती में कभी-न-कभी अवश्य फहराकर ही रहेगा।

विशेष:

  1. कथन रोचक और सरस है।
  2. व्यंग्यपूर्ण वाक्य-गठन है।
  3. उर्दू-हिन्दी की मिश्रित शब्दावली है।
  4. मुहावरों (दर-दर की ठोकरें खाना, शान बघारना, भड़क उठना, तार-तार कर देना और झण्डा गाड़ना) के प्रयोग सार्थक हैं।
  5. साधन-सम्पन्न व्यक्तियों द्वारा अमीरी-गरीबी में भेद करने के प्रयासों पर तीखा व्यंग्य प्रहार किया है।
  6. व्यंग्यात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा?’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
  2. भइया जी को कुत्ते के काटने का मुख्य कारण क्या रहा होगा?

उत्तर:
1. ‘भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा? ऐसा लेखक ने इसलिए कहा है कि भइया सज्जन, बुजुर्ग और विद्वान हैं। वे चींटी तक से डरते हैं। इसलिए जब उन्हें कुत्ते ने काटा तो उसकी कोई बहुत बड़ी खास वजह होगी। उसके बारे में अवश्य सोच-विचार या अनुमान लगाया जाना चाहिए।

2. भइया जी को कुत्ते के काटने को मुख्य कारण रहा होगा कि उस कुत्ते को यह लगा कि यह संपन्न आदमी अपनी शान-शौकत से निर्धन बस्ती के उस कुत्ते को अपमानित करना चाहता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कुत्ते ने भइया जी पर किस तरह का आक्रमण किया?
  2. कुत्ते ने भइया जी को काटकर क्या संदेश दिया?

उत्तर:

  1. कुत्ते ने भइया जी पर बुरी तरह से आक्रमण किया। उसने उन पर आक्रमण करके उनके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। यही नहीं, उनके हाथ-पैर और कंधे को अपने दांतों और नाखूनों से काट-खरोंच डाला।
  2. कुत्ते ने भइया जी को काटकर यह संदेश दिया कि करीब अपने अपमान का बदला अमीरों से भी लेने में नहीं चुकते हैं।

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प्रश्न 4.
आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थकों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है। दीन-हीन शोषितों की बिरादरी का यह रचनाकार सुखभोगी बनकर भ्रष्ट हो रहा है। अतः इसे सचेत कर सही मार्ग पर लाना जरूरी है। मुझे भइया जी को कुत्ते द्वारा काटे जाने का कारण और समाधान मिल गया। मैं कुत्तों की ओर से अपने साहित्यकार बंधुओं को आगाह करता हूँ कि वे पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपने को पथभ्रष्ट न करें। सत्यमार्ग पर चलें। जरूरतमंदों और शोषितों के साथी बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें अन्यथा उन्हें कुत्तों के प्रहार से नहीं बचाया जा सकता। झाड़-फूंक और इंजेक्शन भी उनकी रक्षा नहीं कर सकेंगे।

शब्दार्थ:

  • गायक – गाने वाला।
  • आगाह – सावधान।
  • विसंगतियों – विषमताओं, विडम्बनाओं।
  • प्रहार – चोट।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि वर्तमान समय में किस प्रकार साहित्यकार अपने साहित्य निर्माण की दिशा से भटककर पदलोलुप बन रहा है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
वर्तमान समय में साहित्यकार साहित्य-रचना छोड़कर सत्ताधारियों और सत्ता के समर्थकों की चापलूसी कर रहा है। इस चापलूसी के पीछे उसका एकमात्र उद्देश्य यही है कि उसे कोई पद-सम्मान मिल जाए। उसे पहले से अधिक साधन और सुविधा प्राप्त हो जाए। हालाँकि वह दीन-हीन और शोषित होने के साथ उपेक्षित है। लेकिन वह अपनी इस दुर्दशा को भूलकर मिली हुई सुख-सुविधा से साहित्य-रचना के सत्यमार्ग से भटक रहा है। उसे लगभग भूल चुका है। इसलिए अब यह आवश्यक लेखक का पुनः कहना है कि उससे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि भझ्या जी को कुत्ते ने क्यों काटा था और उसका इलाज क्या है।

इसलिए अपने साहित्यकार प्रेमियों-बंधुओं को इस बात के लिए सावधान करना चाहता हूँ कि वे अपने साहित्य-रचना के सत्यमार्ग का परित्याग कर पदलोलुप और सुविधाभोगी बनने से बाज आएँ। सत्य साहित्य-रचना में ही व्यस्त रहें। यही नहीं, जो शोषित और उपेक्षित हैं, उनके प्रति सहानुभूति रखें। उनका सच्चा साथी बनकर सामाजिक भेदभावों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कमर कस लें। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें सामाजिक कुत्तों के काटने से नहीं बचाया जा सकता है और न ही उन्हें इससे बचने का कोई मौका ही दिया जा सकता है। यह भी ध्यान रहे कि सामाजिक कुत्तों के काटने का कोई इलाज भी नहीं होता है, न झाड़-फूंक और न इंजेक्शन ही।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. शैली व्यंग्यात्मक है।
  3. मुहावरों (पीछे भागना, भ्रष्ट होना व आगाह करना) के प्रयोग यथास्थान हुए हैं।
  4. पदलोलुप और सुविधाभोगी पथभ्रष्ट साहित्य पर सीधा व्यंग्य प्रहार किया गया है।
  5. व्यंजना शब्द-शक्ति है।
  6. यह अंश मर्मस्पशी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आजकल के साहित्यकार क्या हो रहे हैं?
  2. आजकल के साहित्यकारों के प्रति लेखक का कौन-सा भाव प्रकट हुआ है?

उत्तर:

  1. आजकल के साहित्यकार पदलोलुप और सुविधाभोगी हो रहे हैं।
  2. आजकल के साहित्यकारों के प्रति लेखक का आत्मीय भाव प्रकट हुआ है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आजकल के साहित्यकारों को सही मार्ग पर लाना क्यों जरूरी है?
  2. आजकल के साहित्यकारों को लेखक ने क्या सुझाव दिया है?

उत्तर:

  1. आजकल के साहित्यकारों को सही मार्ग पर लाना जरूरी है। यह इसलिए कि वे साहित्य रचना के सत्यमार्ग को छोड़ सुखभोगी और पदलोलुप बन रहे हैं।
  2. आजकल के साहित्यकारों को लेखक ने सुझाव दिया है कि वे जरूरतमंदों और शोषितों के साथी बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें।

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MP Board Class 11th General Hindi हिन्दी साहित्य का इतिहास

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निबंध का उदय

आधुनिक युग को गद्य की प्रतिस्थापना का श्रेय जाता है। जिस विश्वास, भावना और आस्था पर हमारे युग की बुनियाद टिकी थी उसमें कहीं न कहीं अनास्था, तर्क और विचार ने अपनी सेंध लगाई। कदाचित् यह सेंध अपने युग की माँग थी जिसका मुख्य साधन गद्य बना। यही कारण है, कवियों ने गद्य साहित्य में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

हिंदी गद्य का आरम्भ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। वह कविता के क्षेत्र में चाहे परम्परावादी थे पर गद्य के क्षेत्र में नवीन विचारधारा के पोषक थे। उनका व्यक्तित्व इतना समर्थ था कि उनके इर्द-गिर्द लेखकों का एक मण्डल ही बन गया था। यह वह मण्डल था जो हिंदी गद्य के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हिंदी गद्य के विकास में दशा और दिशा की आधारशिला रखने वालों में इस मण्डल का अपूर्व योगदान है। इन लेखकों ने अपनी बात कहने के लिए निबंध विधा को चुना।

निबंध की व्युत्पत्ति, स्वरूप एवं परिभाषा

निबंध की व्युत्पत्ति पर विचार करने पर पता चलता है कि ‘नि’ उपसर्ग, ‘बन्ध’ धातु और ‘धर्म प्रत्यय से यह शब्द बना है। इसका अर्थ है बाँधना। निबंध शब्द के पर्याय के रूप में लेख, संदर्भ, रचना, शोध प्रबंध आदि को स्वीकार किया जाता है। निबंध को हिंदी में अंग्रेजी के एसे और फ्रेंच के एसाई के अर्थ में ग्रहण किया जाता है जिसका सामान्य अर्थ प्रयत्न, प्रयोग या परीक्षण कहा गया है।

निबंध की भारतीय व पाश्चात्य परिभाषाएँ कोशीय अर्थ।

‘मानक हिंदी कोश’ में निबंध के संबंध में यह मत प्रकट किया गया है-“वह विचारपूर्ण विवरणात्मक और विस्तृत लेख, जिसमें किसी विषय के सब अंगों का मौलिक और स्वतंत्र रूप से विवेचन किया गया हो।”

हिंदी शब्द सागर’ में निबंध शब्द का यह अर्थ दिया गया है- ‘बन्धन वह व्याख्या है जिसमें अनेक मतों का संग्रह हो।”

पाश्चात्य विचारकों का मत

निबंध शब्द का सबसे पहले प्रयोग फ्रेंच के मांतेन ने किया था, और वह भी एक विशिष्ट काव्य विधा के लिए। इन्हें ही निबंध का जनक माना जाता है। उनकी रचनाएँ आत्मनिष्ठ हैं। उनका मानना था कि “I am myself the subject of my essays because I am the only person whom I know best.”

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अंग्रेजी में सबसे पहले एस्से शब्द का प्रयोग बेकन ने किया था। वह लैटिन । भाषा का ज्ञाता था और उसने इस भाषा में अनेक निबंध लिखे। उसने निबंध कोबिखरावमुक्त चिन्तन कहा है।

सैमुअल जॉनसन ने लिखा, “A loose sally of the mind, an irregular, .. undigested place is not a regular and orderly composition.” “निबंध मानसिक जगत् की विशृंखल विचार तरंग एक असंगठित-अपरिपक्व और अनियमित विचार खण्ड है। निबंध की समस्त विशेषताएँ हमें आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में दी गई इस परिभाषा में मिल जाती है, “सीमित आकार की एक ऐसी रचना जो किसी विषय विशेष या उसकी किसी शाखा पर लिखी गई हो, जिसे शुरू में परिष्कारहीन अनियमित, अपरिपक्व खंड माना जाता था, किंतु अब उससे न्यूनाधिक शैली में लिखित छोटी आकार की संबद्ध रचना का बोध होता है।”

भारतीय विचारकों का मत

आचार्य रामचंद्र शक्ल-आचार्य रामचंद्र शक्ल ने निबंध को व्यवस्थित और मर्यादित प्रधान गद्य रचना माना है जिसमें शैली की विशिष्टता होनी चाहिए, लेखक का निजी चिंतन होना चाहिए और अनुभव की विशेषता होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त लेखक के अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता भी निबंध में रहती है। हिंदी साहित्य के इतिहास में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंध की परिभाषा देते हुए लिखा, “आधुनिक पाश्चात्य लेखकों के अनुसार निबंध उसी को कहना चाहिए जिसमें व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्तिगत विशेषता है। बात तो ठीक है यदि ठीक तरह से समझी जाय। व्यक्तिगत विशेषता का यह मतलब नहीं कि उसके प्रदर्शन के लिए विचारकों की श्रृंखला रखी ही न जाए या जान-बूझकर जगह-जगह से तोड़ दी जाए जो उनकी अनुमति के प्रकृत या लोक सामान्य स्वरूप से कोई संबंध ही न रखे अथवा भाषा से सरकस वालों की सी कसरतें या हठयोगियों के से आसन कराये जाएँ, जिनका लक्ष्य तमाशा दिखाने के सिवाय और कुछ न हो।”

बाबू गुलाब राय-बाबू गुलाबराय ने भी निबंध में व्यक्तित्व और विचार दोनों को आवश्यक माना है। वे लिखते हैं- “निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव, सजीवता तथा अनावश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।”

निबंध की परिभाषाओं का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि निबंध एक गद्य रचना है। इसका प्रमुख उद्देश्य अपनी वैयक्तिक अनुभूति, भावना या आदर्श को प्रकट करना है। यह एक छोटी-सी रचना है और किसी एक विषय पर लिखी गई क्रमबद्ध रचना है। इसमें विषय की एकरूपता होनी चाहिए और साथ ही तारतम्यता भी। यह गद्य काव्य की ऐसी विधा है जिसमें लेखक सीमित आकार में अपनी भावात्मकता और प्रतिक्रियाओं को प्रकट करता है।

निबंध के तत्त्व

प्राचीन काल से आज तक साहित्य विधाओं में अनेक बदलाव आए हैं। साधारणतः निबंध में निम्नलिखित तत्त्वों का होना अनिवार्य माना गया है
1. उपयुक्त विषय का चुनाव-लेखक जिस विषय पर निबंध लिखना चाहता है उसे सबसे पहले उपयुक्त विषय का चुनाव करना चाहिए। इसके लिए उसे पर्याप्त सोच-विचार करना चाहिए। निबंध का विषय सामाजिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक आर्थिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, साहित्यिक, वस्तु, प्रकृति-वर्णन, चरित्र, संस्मरण, भाव, घटना आदि में से किसी भी विषय पर हो सकता है, किंतु विषय ऐसा होना चाहिए कि जिसमें लेखक अपना निश्चित पक्ष व दृष्टिकोण भली-भाँति व्यक्त कर सके।

2. व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति-निबंध में निबंधकार के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति दिखनी चाहिए। मोन्तेन ने निबंधों पर निजी चर्चा करते हुए लिखा है, “ये मेरी भावनाएँ हैं, इनके द्वारा मैं स्वयं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ।” भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही विचारकों ने निबंध लेखक के व्यक्तित्व के महत्त्व को स्वीकार किया है। निबंध लेखक की आत्मीयता और वैयक्तिकता के कारण ही विषय के सम्बन्ध में निबंधकार के विचारों, भावों और अनुभूति के आधार पर पाठक उनके साथ संबद्ध कर पाता है। इस प्रकार निबंधकार के व्यक्तित्व को निबंध का केंद्रीय गुण कहा जाता है।

3. एकसूत्रता-निबंध बँधी हुई एक कलात्मक रचना है। इसमें विषयान्तर की संभावना नहीं होती, इसलिए निबंध के लिए आवश्यक है कि निबंधकार अपने विचारों को एकसूत्रता के गुण से संबद्ध करके प्रस्तुत करता है। निबंध के विषय के मुख्य भाव या विचार पर अपनी दृष्टि डालते हुए निबंधकार तथ्यों को उसके तर्क के रूप में प्रस्तुत करता है। इन तर्कों को प्रस्तुत करते हुए निबंधकार को यह ध्यान रखना पड़ता है कि तथ्यों और तर्कों के बीच अन्विति क्रम बना रहे। कई निबंधकार निबंध लिखते समय अपनी भाव-तरंगों पर नियन्त्रण नहीं रख पाते, ऐसे में वह विषय अलग हो जाता है। वस्तुतः लेखक का कर्तव्य है कि वह विषयान्तर न हो। अगर विषयान्तर हो भी गया तो उसे इधर-उधर विचरण कर पुनः अपने विषय पर आना ही पड़ेगा। निबंधकार को अपने अभिप्रेत का अंत तक बनाए रखना चाहिए।

4. मर्यादित आकार-निबंध आकार की दृष्टि से छोटी रचना है। इस संदर्भ में हर्बट रीड ने कहा है कि निबंध 3500 से 5000 शब्दों तक सीमित किया जाना चाहिए। वास्तव में निबंध के आकार के निर्धारण की कोई आवश्यकता नहीं है। निबंध विषय के अनुरूप और सटीक तर्कों द्वारा लिखा जाता है। लेखक अपने विचार भावावेश के क्षणों में व्यक्त करता है। ऐसे में वह उसके आकार के विषय में सोचकर नहीं चलता। आवेश के क्षण बहुत थोड़ी अवधि के लिए होते हैं, इसलिए निश्चित रूप से निबंध का आकार स्वतः ही लघु हो जाता है। इसमें अनावश्यक सूचनाओं को कोई स्थान नहीं मिलता।

5. स्वतःपूर्णता-निबंध का एक गुण या विशेषता है कि यह अपने-आप में पूर्ण होना चाहिए। निबंधकार का दायित्व पाठकों को निबंध में चुने हुए विषय की समस्त जानकारी देना है। यही कारण है कि उसे विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों पर पूर्णतः विचार करना चाहिए। विषय से संबंधित कोई ज्ञान अधूरा नहीं रहना चाहिए। जिस भाव या विचार या बिंदु को लेकर निबंधकार निबंध लिखता है, निबंध के अंत तक पाठक के मन में संतुष्टि का भाव जागृत होना चाहिए। अगर पाठक के मन में किसी तरह का जिज्ञासा भाव रह जाता है तो उस निबंध को अपूर्ण माना जाता है और इसे निबंध के अवगुण के रूप में शुमार कर लिया जाएगा।

6. रोचकता-निबंध क्योंकि एक साहित्यिक विधा है इसलिए इसमें रोचकता का तत्त्व निश्चित रूप से होना चाहिए। यह अलग बात है कि निबंध का सीधा संबंध बुद्धि तत्त्व से रहता है। फिर इसे ज्ञान की विधा न कहकर रस की विधा कहा जाता है, इसलिए इसमें रोचकता होनी चाहिए, ललितता होनी चाहिए और आकर्षण होना चाहिए। निबंध के विषय प्रायः शुष्क होते हैं, गंभीर होते हैं या बौद्धिक होते हैं।

अगर निबंधकार इन विषयों को रोचक रूप में पाठक तक पहुँचाने में समर्थ हो जाता है तो इसे निबंध की पूर्णता और सफलता कहा जाएगा।

निबंध के भेद

निबंध के भेद, इसके लिए अध्ययन किए गए हैं। विषयों की विविधता से देखा जाए तो इन्हें सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। अतः निबंध लेखन का विषय दुनिया के किसी भी कोने का हो सकता है। विद्वानों ने निबंधों का वर्गीकरण तो अवश्य किया है पर यह वर्गीकरण या तो वर्णनीय विषय के आधार पर किया है या फिर उसकी शैली के आधार पर। निबंध का सबसे अधिक प्रचलित वर्गीकरण यह है

1. वर्णनात्मक-वर्णनात्मक निबंध वे कहलाते हैं जिनमें प्रायः भूगोल, यात्रा, ऋतु, तीर्थ, दर्शनीय स्थान, पर्व-त्योहार, सभा- सम्मेलन आदि विषयों का वर्णन किया जाता है। इनमें दृश्यों व स्थानों का वर्णन करते हुए रचनाकार कल्पना का आश्रय लेता है। ऐसे में उसकी भाषा सरल और सुगम हो जाती है। इसमें लेखक निबंध को रोचक बनाने में पूरी कोशिश करता है।

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2. विवरणात्मक-इस प्रकार के निबंधों का विषय स्थिर नहीं रहता अपितु गतिशील रहता है। शिकार वर्णन, पर्वतारोहण, दुर्गम प्रदेश की यात्रा आदि का वर्णन जब कलात्मक रूप से किया जाता है तो वे निबंध विवरणात्मक निबंधों की शैली में स्थान पाते हैं। विवरणात्मक निबंधों में विशेष रूप से घटनाओं का विवरण अधिक होता है।

3. विचारात्मक-इस प्रकार के निबंधों में बौद्धिक चिन्तन होता है। इनमें दर्शन, अध्यात्म, मनोविज्ञान आदि विषयगत पक्षों का विवेचन किया जाता है। लेखक अपने अध्ययन व चिन्तन के अनुरूप तर्क-शितर्क और खण्डन का आश्रय लेते हुए विषय का प्रभावशाली विवेचन करता है। इनमें बौद्धिकता तो होती ही है साथ ही भावना और कला कल्पना का समन्वय भी होता है। ऐसे निबंधों में लेखक आमतौर पर तत्सम शैली अपनाता है। समासिकता की प्रधानता भी होती है।

4. भावात्मक-इस श्रेणी में उन निबंधों को स्थान मिलता है जो भावात्मक विषयों पर लिखे जाते हैं। इन निबंधों का निस्सरण हृदय से होता है। इनमें रागात्मकता होती है इसलिए लेखक कवित्व का भी प्रयोग कर लेता है। अनुभूतियाँ और उनके उद्घाटन की रसमय क्षमता इस प्रकार के निबंध लेखकों की संपत्ति मानी जाती हैं। वस्तुतः कल्पना के साथ काव्यात्मकता का पुट इन निबंधों में दृश्यमान होता है।

वर्गीकरण अनावश्यक

गौर से देखा जाए तो इन चारों भेदों की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये निबंध लेखन की शैली हैं। इन्हें वर्गीकरण नहीं कहा जाना चाहिए। अगर कोई कहता है कि वर्णनात्मक निबंध है या दूसरा कोई कहता है कि विवरणात्मक निबंध है तो यह शैली नहीं है तो और क्या है?

वस्तुतः इन्हें विचारात्मक निबंध की श्रेणी में रखा जा सकता है। विचारात्मक निबंधों का विषय मानव जीवन का व्यापक कार्य क्षेत्र है और असीम चिंतन लोक है। इसमें धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान आदि विषयों का गंभीर विश्लेषण होता है। इसे निबंध का आदर्श भी कहा जा सकता है। इसमें निबंधकार के गहन चिंतन, मनन, सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि और विशद ज्ञान का स्पष्ट रूप देखने को मिलता है। इस संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है, “शुद्ध विचारात्मक निबंधों का वहाँ चरम उत्कर्ष नहीं कहा जा सकता है जहाँ एक-एक पैराग्राफ में विचार दबा-दबाकर.टूंसे गए हों, और एक-एक वाक्य किसी विचार खण्ड को लिए हुए हो।’

आचार्य शुक्ल ने अपने निबंधों में स्वयं इस शैली का बखूबी प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इस प्रकार के अनेक निबंध लिखे हैं जिनमें उनके मन की मुक्त उड़ान को अनुभव किया जा सकता है। इन निबंधों में उनकी व्यक्तिगत रुचि और अरुचि का प्रकाशन है। नित्य प्रति के सामान्य शब्दों को अपनाते हुए बड़ी-बड़ी बातें कह देना द्विवेदीजी की अपनी विशेषता है। व्यक्तिगत निबंध जब लेखक लिखता है तो उसका संबंध उसके संपूर्ण निबंध से होता है। आचार्यजी के इसी प्रकार के निबंध ललित निबंध कहलाते रहे हैं। आचार्यजी ने स्वयं कहा है, “व्यक्तिगत निबंधों का लेखन किसी एक विषय को छेड़ता है किंतु जिस प्रकार वीणा के एक तार को छेड़ने से बाकी सभी तार झंकृत हो उठते हैं उसी प्रकार उस एक विषय को छुते ही लेखक की चित्तभूमि पर बँधे सैकड़ों विचार बज उठते हैं।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल व्यक्तित्व व्यंजना को निबंधों का आवश्यक गुण मानते हैं। उन्होंने वैचारिक गंभीरता और क्रमबद्धता का समर्थन किया है। आज हिंदी में दो ही प्रकार के प्रमुख निबंध लिखे जा रहे हैं, “व्यक्तिनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ। यों निबंध का कोई भी विषय हो सकता है। साहित्यिक भी हो सकता है और सांस्कृतिक भी। सामाजिक भी और ऐतिहासिक आदि भी। वस्तुतः कोई भी निबंध केवल वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकता और न ही व्यक्तिनिष्ठ हो सकता है। निबंध में कभी चिंतन की प्रधानता होती है और कभी लेखक का व्यक्तित्व उभर आता है।”

निबंध शैली

वस्तुतः निबंध शैली को अलग रूप में देखने की परम्परा-सी चल निकली है अन्यथा निबंधों का व करण निबंध शैली ही है। लेखक की रचना ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है। शैली ही उसके व्यक्तित्व की पहचान होती है। एक आलोचक ने शैली के बारे में कहा है कि जितने निबंध हैं, उतनी शैलियाँ हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि निबंध लेखन में लेखक के निजीपन का पूरा असर पड़ता है। निबंध की शैली से ही किसी निबंधकार की पहचान होती है क्योंकि एक निबंधकार की शैली दूसरे निबंधकार से भिन्न होती हैं।

मुख्य रूप से निबंध की निम्न शैलियाँ कही जाती हैं-
1. समास शैली-इस निबंध शैली में निबंधकार कम से कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विषय का प्रतिपादन करता है। उसके वाक्य सुगठित और कसे हुए होते हैं। गंभीर विषयों के लिए इस शैली का प्रयोग किया जाता है।

2. व्यास शैली-इस तरह के निबंधों में लेखक तथ्यों को खोलता हुआ चला जाता है। उन्हें विभिन्न तर्कों और उदाहरणों के ज़रिए व्याख्यायित करता चला जाता है। वर्णनात्मक, विवरणात्मक और तुलनात्मक निबंधों में निबंधकार इसी प्रकार की शैली का प्रयोग करता है।

3. तरंग या विक्षेप शैली-इस शैली में निबंधकार में एकान्विति का अभाव रहता है। इसमें निबंधकार अपने मन की मौज़,में आकर बात कहता हुआ चलता है पर विषय पर केंद्रित अवश्य रहता है।

4. विवेचन शैली-इंस निबंध शैली में लेखक तर्क-वितर्क के माध्यम से प्रमाण पुष्टि और व्याख्या के माध्यम से, निर्णय आदि के माध्यम से अपने विषय को बढ़ाता हुआ चलता है। इस शैली में लेखक गहन चिंतन के आधार पर अपना कथ्य प्रस्तुत करता चला जाता है। विचारात्मक निबंधों में लेखक इस शैली का प्रयोग करता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध इसी प्रकार की शैली के अन्तर्गत माने जाते हैं।

5. व्यंग्य शैली-इस शैली में निबंधकार व्यंग्य के माध्यम से अपने विषयों का प्रतिपादन करता चलता है। इसमें उसके विषय धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि भी हो सकते हैं। इसमें रचनाकार किंचित हास्य का पुट देकर विषय को पठनीय बना देता है। शब्द चयन और अर्थ के चमत्कार की दृष्टि से इस शैली का निबंधकारों में विशेष प्रचलन है। व्यंग्यात्मक निबंध इसी शैली में लिखे जाते हैं।

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6. निगमन और आगमन शैली-निबंधकार अपने विषय का प्रतिपादन करने । की दृष्टि से निगमन शैली और आगमन शैली का प्रयोग करता है। इस प्रकार की शैली में लेखक पहले विचारों को सूत्र रूप में प्रस्तुत करता है। तद्उपरांत उस सूत्र के अन्तर्गत पहले अपने विचारों की विस्तार के साथ व्याख्या करता है। बाद में सूत्र रूप में सार लिख देता है। आगमन शैली निनन शैली के विपरीत होती है। इसके अतिरिक्त निबंध की अन्य कई शैलियों को देखा जा सकता है, जैसे प्रलय शैली। इस प्रकार की शैली में निबंधकार कुछ बहके-बहके भावों की अभिव्यंजना करता है। कुछ लेखकों के निबंधों में इस शैली को देखा जा सकता है। भावात्मक निबंधों के लिए कुछ निबंधकार विक्षेप शैली अपनाते हैं। धारा शैली में भी कुछ निबंधकार निबंध लिखते हैं। इसी प्रकार कुछ निबंधकारों ने अलंकरण, चित्रात्मक, सूक्तिपरक, धाराप्रवाह शैली का भी प्रयोग किया है। महादेवी वर्मा की निबंध शैली अलंकरण शैली है।

हिंदी निबंध : विकास की दिशाएँ
हिंदी गद्य का अभाव तो भारतेंदुजी से पूर्व भी नहीं था, पर कुछ अपवादों तक सीमित था। उसकी न तो कोई निश्चित परंपरा थी और न ही प्रधानता। सन् 1850 के बाद गद्य की निश्चित परंपरा स्थापित हुई, महत्त्व भी बढ़ा। पाश्चात्य सभ्यता के संपर्क में आने पर हिंदी साहित्य भी निबंध की ओर उन्मुख हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि भारतेंदु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध लेखन में मिली। हिंदी निंबध साहित्य को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • भारतेंदुयुगीन निबंध,
  • द्विवेदीयुगीन निबंध,
  • शुक्लयुगीन निबंध
  • शुक्लयुगोत्तर निबंध एवं
  • सामयिक निबंध-1940 से अब तक।

भारतेंदुयुगीन निबंध-भारतेंदु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध में प्राप्त हुई। इस युग के लेखकों ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से निबंध साहित्य को संपन्न किया! भारतेंदु हरिश्चंद्र से हिंदी निबंध का आरंभ माना जाना चाहिए। बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र ने इस गद्य विधा को विकसित एवं समृद्ध किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन दोनों लेखकों को स्टील और एडीसन कहा है। ये दोनों हिंदी के आत्म-व्यंजक निबंधकार थे। इस युग के प्रमुख निबंधकार हैं-भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदि। इन सभी निबंधकारों का संबंध किसी-न-किसी पत्र-पत्रिका से था। भारतेंदु ने पुरातत्त्व, इतिहास, धर्म, कला, समाज-सुधार, जीवनी, यात्रा-वृत्तांत, भाषा तथा साहित्य आदि अनेक विषयों पर निबंध लिखे। प्रतापनारायण मिश्र के लिए तो विषय की कोई सीमा ही नहीं थी। ‘धोखा’, ‘खुशामद’, ‘आप’, ‘दाँत’, ‘बात’ आदि पर उन्होंने अत्यंत रोचक निबंध लिखे। बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार हैं। उन्होंने सामयिक विषय जैसे ‘बाल-विवाह’, ‘स्त्रियाँ और उनकी शिक्षा’ पर उपयोगी निबंध लिखे। ‘प्रेमघन’ के निबंध भी सामयिक विषयों पर टिप्पणी के रूप में हैं। अन्य निबंधकारों का महत्त्व इसी में है कि उन्होंने भारतेंदु, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र के मार्ग का अनुसरण किया।

द्विवेदीयुगीन निबंध-भारतेंदु युग में निबंध साहित्य की पूर्णतः स्थापना हो गई थी, लेकिन निबंधों का विषय अधिकांशतः व्यक्तिव्यंजक था। द्विवेदीयुगीन निबंधों में व्यक्तिव्यंजक निबंध कम लिखे गए। इस युग के श्रेष्ठ निबंधकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938), गोविंदनारायण मिश्र (1859-1926), बालमुकुंद गुप्त (1865-1907), माधव प्रसाद मिश्र (1871-1907), मिश्र बंधु-श्याम बिहारी मिश्र (1873-1947) और शुकदेव बिहारी मिश्र (1878-1951), सरदार पूर्णसिंह (1881-1939), चंद्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1920), जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी (1875-1939), श्यामसुंदर दास (1875-1945), पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ (1876-1932), रामचंद्र शुक्ल (1884-1940), कृष्ण बिहारी मिश्र (1890-1963) आदि उल्लेखनीय हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध परिचयात्मक या आलोचनात्मक हैं। उनमें आत्मव्यंजन तत्त्व नहीं है। गोंविद नारायण मिश्र के निबंध पांडित्यपूर्ण तथा संस्कृतनिष्ठ गद्यशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। बालमुकुंद गुप्त ‘शिवशंभु के चिट्टे’ के लिए विख्यात हैं।

ये चिट्ठे “भारत मित्र’ में छपे थे। माधव प्रसाद मिश्र के निबंध ‘सुदर्शन’ में प्रकाशित हुए। उनके निबंधों का संग्रह ‘माधव मिश्र निबंध माला’ के नाम से प्रकाशित है। सरदार पूर्णसिंह भी इस युग के निबंधकार हैं। इनके निबंध नैतिक विषयों पर हैं। कहीं-कहीं इनकी शैली व्याख्यानात्मक हो गई हैं। चंद्रधर शर्मा गलेरी ने कहानी के अतिरिक्त निबंध भी लिखे। उनके निबंधों में मार्मिक व्यंग्य है। जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी के निबंध ‘गद्यमाला’ (1909) और ‘निबंध-निलय’ में प्रकाशित हैं। पद्मसिंह शर्मा कमलेश तुलनात्मक आलोचना के लिए विख्यात हैं। उनकी शैली प्रशंसात्मक और प्रभावपूर्ण है। श्यामसुंदरदास तथा कृष्ण बिहारी मिश्र मूलतः आलोचक थे। इनकी शैली सहज और परिमार्जित है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रारंभिक निबंधों में भाषा संबंधी प्रश्नों और कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियों के संबंध में विचार व्यक्त किए गए हैं। उन्होंने कुछ अंग्रेजी निबंधों का अनुवाद भी किया।

इस युग में गणेशशंकर विद्यार्थी, मन्नन द्विवेदी आदि ने भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। शुक्लयुगीन निबंध-इस युग के प्रमुख निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं आचार्य शुक्ल के निबंध ‘चिंतामणि’ के दोनों खंडों में संकलित हैं। अभी हाल में चिंतामणि का तीसरा खंड प्रकाशित हुआ है। इसका संपादन डॉ. नामवर सिंह ने किया है। इसी युग के निबंधकारों में बाबू गुलाबराय (1888-1963) का उल्लेखनीय स्थान है। ‘ठलुआ क्लब’, ‘फिर निराश क्यों’, ‘मेरी असफलताएँ’ आदि संग्रहों में उनके श्रेष्ठ निबंध संकलित हैं। ल पुन्नालाल बख्शी’ ने कई अच्छे निबंध लिखे। इनके निबंध ‘पंचपात्र’ में संगृहीत हैं। अन्य निबंधकारों में शांति प्रेत द्विवेदी, शिवपूजन सहाय, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, रधुवीर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी आदि मुख्य हैं। इस युग में निबंध तो लिखे गए, पर ललित निबंध कम ही हैं।

शुक्लयुगोत्तर निबंध-शुक्लयुगोत्तर काल में निबंध ने अनेक दिशाओं में सफलता प्राप्त की। इस युग मं समीक्षात्मक निबंध अधिक लिखे गए। यों व्यक्तव्यंजक निबंध भी कम नहीं लिखे गए। शुक्लजी के समीक्षात्मक निबंधों को परंपरा के दूसरे नाम हैं नंददुलारे वाजपेयी। इसी काल के महत्त्वपूर्ण निबंधकार आच हजागे प्रसाद द्विवेदी हैं। उनके ललित निबंधों में नवीन जीवन-बोध है।

शुक्लयुगोत्तर निबंधकारों में जैनेंद्र कुमार का स्थान काफी ऊँचा है। उनके निबंधों में दार्शनिकता है। यह दार्शनिकता निजी है, अतः ऊब पैदा नहीं करती। उनके निबंधों में सरसता है।

हिंदी में प्रभावशाली समीक्षा के अग्रदूत शांतिप्रिय द्विवेदी हैं। इन्होंने समीक्षात्मक निबंध भी लिखे हैं और साहित्येतर भी। इनके समीक्षात्मक निर्बंधों में निर्बध का स्वाद मिलता है। रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने भी इस युग में महत्त्वपूर्ण निबंध लिखे। इनके निबंध विचार-प्रधान हैं। लेकिन कुछ निबंधों में उनका अंतरंग पक्ष भी उद्घाटित हुआ है। समीक्षात्मक निबंधकारों में डॉ. नगेंद्र का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उनके निबंधों की कल्पना, मनोवैज्ञानिक दृष्टि उनके व्यक्तित्व के अपरिहार्य अंग हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी के निबंध-संग्रह ‘गेहूँ और गुलाब’ तथा ‘वंदे वाणी विनायकौ’ हैं। बेनीपुरी की भाषा में आवेग है, जटिलता नहीं। श्रीराम शर्मा, देवेंद्र सत्यार्थी भी निबंध के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। वासुदेवशरण अग्रवाल के निबंधों में भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को विद्वतापूर्वक उद्घाटित किया गया है। यशपाल के निबंधों में भी मार्क्सवादी दृष्टिकोण मिलता है। बनारसीदास चतुर्वेदी के निबंध-संग्रह ‘साहित्य और जीवन’, ‘हमारे आराध्य’ नाम में यही प्रवृत्ति है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के निबंध में करुणा, व्यंग्य और भावुकता का सन्निवेश है। भगवतशरण उपाध्याय ने ‘ठूठा आम’, और ‘सांस्कृतिक निबंध’ में इतिहास और संस्कृति की पृष्टभूमि पर निबंध लिखे। प्रभाकर माचवे, विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, शिवप्रसाद सिंह, कुबेरनाथ राय, ठाकुर प्रसाद सिन्हा आदि के ललित निबंध विख्यात हैं।

सामयिक निबंधों में नई चिंतन पद्धति और अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, निर्मल वर्मा, रमेशचंद्रशाह, शरद जोशी, जानकी वल्लभ शास्त्री, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, नेमिचंद्र जैन, विष्णु प्रभाकर, जगदीश चतुर्वेदी, डॉ. नामवर सिंह और विवेकी राय आदि ने हिंदी गद्य की निबंध परंपरा को न केवल बढ़ाया है, बल्कि उसमें विशिष्ट प्रयोग किए हैं। समीक्षात्मक निबंधों में गजानन माधव मुक्तिबोध का नाम आता है। उनके निबंधों में बौद्धिकता है और वयस्क वैचारिकता तबोध के ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध’ नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, ‘समीक्षा की समस्याएँ’ और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ नामक निबंध विशेष उल्लेखनीय हैं। डॉ. रामविलास शर्मा के निबंध शैली में स्वच्छता, प्रखरता तथा वैचारिक संपन्नता है। हिंदी निबंध में व्यंग्य को रवींद्र कालिया ने बढ़ाया है। नए निबंधकारों में रमेशचंद्र शाह का नाम तेजी से उभरा है।

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महादेवी वर्मा, विजयेंद्र स्नातक, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना और रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ के निबंधों में प्रौढ़ता है। इसके अतिरिक्त विष्णु प्रभाकर कृत ‘हम जिनके ऋणी हैं’ जानकी वल्लभ शास्त्री कृत ‘मन की बात’, ‘जो बिक न सकी’ आदि निबंधों में क्लासिकल संवेदना का उदात्त रूप मिलता है। नए निबंधकारों में : प्रभाकर श्रोत्रिय, चंद्रकांत वांदिवडेकर, नंदकिशोर आचार्य, बनवारी, कृष्णदत्त पालीवाल, प्रदीप मांडव, कर्णसिंह चौहान और सुधीश पचौरी आदि प्रमुख हैं। आज राजनीतिक-सांस्कृतिक विषयों पर भी निबंध लिखे जा रहे हैं। अतः हिंदी निबंध-साहित्य उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है।

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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

कणों के निकाय तथा घूर्णी गति अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 7.1.
एक समान द्रव्यमान घनत्व के निम्नलिखित पिंडों में प्रत्येक के द्रव्यमान केंद्र की अवस्थिति लिखिए:

  1. गोला
  2. सिलिंडर
  3. छल्ला तथा
  4. घन।

क्या किसी पिंड का द्रव्यमान केंद्र आवश्यक रूप से उस पिंड के भीतर स्थित होता है?
उत्तर:

  1. गोला
  2. सिलिंडर
  3. छल्ला व
  4. घन.

चारों का द्रव्यमान केन्द्र उनका ज्यामितीय केन्द्र होता है। नहीं, जहाँ कोई पदार्थ नहीं है। जैसे वलय, खोखले सिलिंडर व खोखले गोले में द्रव्यमान केन्द्र पिंड के बाहर भी हो सकता है।

प्रश्न 7.2.
HCI अणु में दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच पृथकन लगभग 1.27 Å (1Å = 10-10 m) है। इस अणु के द्रव्यमान केंद्र की लगभग अवस्थिति ज्ञात कीजिए। यह ज्ञात है कि क्लोरीन का परमाणु हाइड्रोजन के परमाणु की तुलना में 35.5 गुना भारी होता है तथा किसी परमाणु का समस्त द्रव्यमान उसके नाभिक पर केंद्रित होता है।
उत्तर:
माना द्रव्यमान केन्द्र H परमाणु से x दूरी पर है। माना हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान, m1 = m
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 1
तथा क्लोरीन परमाणु का द्रव्यमान m2 = 35.5 m
माना द्रव्यमान केन्द्र (मूलबिन्दु) के सापेक्ष H व C1 \(\vec { r } \) 1 व \(\vec { r } \) 2 दूरी पर है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 2
= 1.235
= 1.24 Å
अर्थात् द्रव्यमान केन्द्र H – परमाणु से 1.24 A की दूरी पर Cl परमाणु की ओर है।

प्रश्न 7.3.
कोई बच्चा किसी चिकने क्षैतिज फर्श पर एकसमान चाल v से गतिमान किसी लंबी ट्राली के एक सिरे पर बैठा है। यदि बच्चा खड़ा होकर ट्राली पर किसी भी प्रकार से दौड़ने लगता है, तब निकाय (ट्राली + बच्चा) के द्रव्यमान केंद्र की चाल क्या है?
उत्तर:
प्रश्नानुसार, ट्राली एक चिकने क्षैतिज फर्श पर गति कर रही है। इसलिए फर्श के चिकना होने के कारण निकाय पर क्षैतिज दिशा में कोई बाह्य बल नहीं लगता है। परन्तु जब बच्चा दौड़ता है तब बच्चे द्वारा ट्राली पर व ट्राली द्वारा बच्चे पर लगाए गए दोनों ही बल आन्तरिक बल होते हैं।
∴ \(\overrightarrow { F_{ ext } } \) = 0
संवेग संरक्षण के नियमानुसार M \(\overrightarrow { V_{ cm } } \) = नियतांक
∴ \(\overrightarrow { V_{ cm } } \) = नियतांक
अतः द्रव्यमान केन्द्र की स्थित चाल होगी।

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प्रश्न 7.4.
दर्शाइये कि a एवं b के बीच बने त्रिभुज का क्षेत्रफल axb के परिमाण का आधा है।
उत्तर:
माना ∆AOB की संलग्न भुजाओं के सदिश \(\overrightarrow { a } \) व \(\overrightarrow { b } \) है।
∴ < AOB = θ
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 3
तथा माना त्रिभुज की ऊँचाई h है।
∴h = AC
समकोण ∆OCA में,
sin θ = \(\frac{AC}{OA}\)
या Ac = OA sin θ
h = b sin θ
हम जानते हैं कि त्रिभुज. AOB का क्षेत्रफल
= \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × OB × AC = \(\frac{1}{2}\) × a × b
= \(\frac{1}{2}\) × a × b sin θ
= \(\frac{1}{2}\) ab sin θ
पुनः सदिश गुणन के नियम से
\(\overrightarrow { a } \) × \(\overrightarrow { b } \) = ab sin θ \(\hat { n } \)
या |\(\overrightarrow { a } \) × \(\overrightarrow { b } \)| = |ab sin θ \(\hat { n } \)|
= ab sin θ [∴|\(\hat { n } \)| = 1]
∴समी० (ii) व (iii) से,
∆AOB का क्षेत्रफल = \(\frac{1}{2}\) |\(\overrightarrow { a } \) × \(\overrightarrow { b }\)|
= \(\frac{1}{2}\) \(\overrightarrow { a } \) × \(\overrightarrow { b } \) का परिमाणा

प्रश्न 7.5.
दर्शाइये कि a.(b × c) का परिमाण तीन सदिशों a, b एवं c से बने समान्तर षट्फलक के आयतन के बराबर है।
उत्तर:
माना OABCDEFG एक समान्तर षट्फलक है जिसकी भुजाएँ क्रमश: OA, OC व OE हैं।
माना कि
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 4
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 4a
जहाँ h = a cos θ = \(\overrightarrow { a } \) के शीर्ष द्वारा समचतुर्भुज OABC पर डाला गया लम्ब EE’ है = सदिश a की ऊँचाई।
पुनः माना V = समषट्फलक OABC = DEFG का आयतन है।
∴ V = तल OABC का क्षेत्रफल x OABC तल पर E से अभिलम्ब
= S × h
समी० (i) व (ii) से,
v = \(\overrightarrow { a } \) . (\(\overrightarrow { b } \) × \(\overrightarrow { c } \))

प्रश्न 7.6.
एक कण, जिसके स्थिति सदिश के x, y, z अक्षों के अनुदिश अवयव क्रमशः x, y, हैं, और रेखीय संवेग सदिश P के अवयव px, Py, Pz, हैं, के कोणीय संवेग 1 के अक्षों के अनुदिश अवयव ज्ञात कीजिए। दर्शाइये, कि यदि कण केवल x – y तल में ही गतिमान हो तो कोणीय संवेग का केवल :-अवयव ही होता है।
उत्तर:
माना OX, OY तथा OZ तीन परस्पर लम्बवत् अक्ष हैं। माना x – y तल में स्थिति सदिश
\(\overrightarrow { O } \)P = \(\overrightarrow { r } \) एक बिन्दु P है।
माना रेखीय संवेग \(\overrightarrow { P } \) का \(\hat { r } \) से कोण θ है व कोणीय संवेग \(\overrightarrow { L } \) है।
∴\(\overrightarrow { L } \) = \(\hat { r } \) × \(\hat { p } \)
यह एक संवेग राशि है जिसकी दिशा दाएँ हाथ के नियम से दी जा सकती है। चूँकि \(\hat { r } \) व \(\hat { p } \) तल OXY में हैं। अतः
\(\overrightarrow { r } \) = x\(\hat { i } \) + y\(\hat { j } \) + z\(\hat { k } \)
तथा
\(\overrightarrow { P } \) = px\(\hat { i } \) + py\(\hat { j } \) + pz\(\hat { k } \)
∴समी० (i) व (ii) से,
\(\overrightarrow { L } \) = (x\(\hat { i } \) + y\(\hat { j } \) + z\(\hat { k } \) ) ×
(px\(\hat { i } \) + py\(\hat { j } \) + pz\(\hat { k } \))
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 5
Px P, P.
तुलना करने पर,
Lx, = yPz – zPy
Ly, = zpx – xPz
Lz = xpy – yPx
समी० (iii) से, x, y व z – अक्षों के अनुदिश – के अभीष्ट घटक प्राप्त होते हैं।
हम जानते हैं कि xy – तल में गतिमान कण पर लगने वाला बलाघूर्ण
iz =xFy, – yFz.
जहाँ \(\hat { i } \)z = xy तल में गतिमान गण – अक्ष के अनुदिश लगने वाले बलाघूर्ण का घटक है।
माना xy – तल में \(\overrightarrow { v } \) वेग से गतिमान कण का द्रव्यमान = m इस वेग के vx, व vy, घटक क्रमश: x व – दिशा में हैं।
न्यूटन के गति के दूसरे समी० से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 6
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 6a
अतः समीकरण (vii) से यह निष्कर्ष निकलता है, कि. xy – तल में गतिमान कण का कोणीय वेग (\(\overrightarrow { L } \)) का केवल एक घटक अर्थात् z – अक्ष के अनुदिश है।

प्रश्न 7.7.
दो कण जिनमें से प्रत्येक का द्रव्यमान m एवं चाल v है d दूरी पर, समान्तर रेखाओं के अनुदिश, विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं। दर्शाइये कि इस द्विकण निकाय का सदिश कोणीय संवेग समान रहता है, चाहे हम जिस बिन्दु के परितः कोणीय संवेग लें।
उत्तर:
माना दूरी पर दो समान्तर रेखाओं के अनुदिश गतिमान प्रत्येक कण का द्रव्यमान m है।
माना v प्रत्येक कण विपरीत दिशा में चाल है। माना कि क्षण t व कण P1 व P2, बिन्दुओं पर हैं।
अब इन दोनों कणों द्वारा बनाए गए निकाय का किसी बिन्दु 0 के परितः कोणीय संवेग ज्ञात करते हैं। माना प्रत्येक कण का कोणीय संवेग \(\overrightarrow { L } \) 1 व \(\overrightarrow { L } \)2 है।
∴ \(\overrightarrow { L } \)1 = \(\overrightarrow { r } \)1 × m \(\overrightarrow { v } \) व \(\overrightarrow { L } \)2 = \(\overrightarrow { r } \)2 × m \(\overrightarrow { v } \)
माना कि निकाय का कोणीय संवेग \(\overrightarrow { L } \) है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 7

1. जहाँ θ1 व θ2, क्रमश: \(\overrightarrow { r } \)1, \(\overrightarrow { v } \) व \(\overrightarrow { r } \)2, (-\(\overrightarrow { v } \)) के बीच कोण हैं। (चित्र)।
चूँकि कण की स्थिति समय के सापेक्ष परिवर्तित होती है।
अतः \(\overrightarrow { v } \) की दिशा समान रेखा में होगी तथा OM – ON = r2 sin θ2, व ON =r2 sin 6 नियत रहेगा।
पुनः OM – ON = d = MN
∴ r1 sin θ1 – r2 sin θ2 = d

2. समी० (i) व (ii) से,
L = mvd
\(\overrightarrow { L } \) की दिशा भी \(\overrightarrow { r } \) व \(\overrightarrow { v } \) के तल के लम्बवत् होती है। जोकि कागज के तल में होगी। यह दिशा समय के साथ अपरिवर्तित रहती है।
अर्थात् \(\overrightarrow { L } \) परिमाण व दिशा में समान रहता है।

प्रश्न 7.8.
w भार की एक असमांग छड़ को, उपेक्षणीय भार वाली दो डोरियों से चित्र में दर्शाये अनुसार लटका कर विरामावस्था में रखा गया है। डोरियों द्वारा ऊर्ध्वाधर से बने कोण क्रमश: 36.9° एवं 53.1° हैं। छड़ 2 m लम्बाई की है। छड़ के बाएँ सिरे से इसके गुरुत्व केन्द्र की दूरी d ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 8
उत्तर:
माना एक समान छड़ AB का भार W, है। यह छड़ दो डोरियों OA व 0 B से लटकायी गई है। ऊर्ध्वाधर से OA छड़ से 36.9° व 0 B छड़ से 53.1° कोण पर है।
<OAA’ = 90° – 36.9° = 53.1°
इसी प्रकार, <O’BB’ = 36.9°
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 9
AB – 2M, AC = d मीटर
माना डोरी OA व O’B में तनाव क्रमश: T1, व T2, है। यहाँ वियोजित घटक चित्रानुसार होंगे।
चूँकि छड़ विराम में है, अत: A’ B’ अक्ष के अनुदिश व लम्बवत् लगने वाले बलों का सदिश योग शून्य है। अतः
– T1, cos 53.1° + T2 cos 36.9° = 0 … (i)
तथा T1 sin 53.1° + T2, sin 36.9° – W = 0 … (ii)
A के परितः बलाघूर्ण लेने पर व बलाघूर्णों के योग का शून्य रखने पर –
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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 11

प्रश्न 7.9.
एक कार का भाग 1800 kg है। इसकी अगली और पिछली धुरियों के बीच की दूरी 1.8 m है। इसका गुरुत्व केन्द्र, अगली धुरी से 1.05 m पीछे है। समतल धरती द्वारा इसके प्रत्येक अगले और पिछले पहियों पर लगने वाले बल की गणना कीजिए।
उत्तर:
माना आगे के पहिए का द्रव्यमान = m ग्राम
∴ (900 – m) kg = प्रत्येक पहिए का द्रव्यमान
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 12
∴m × 1.05 = (900 – m) × 0.75
या 1.8m = 900 × 0.75
या m = 375 kg
∴ 900 – m = 525 kg
आगे के प्रत्येक पहिये का भार,
w1 = mg = 375 × 9.8 = 3675 न्यूटन
पीछे के प्रत्येक पहिये का भार,
W2 = 525 × 9.8 = 5145 न्यूटन
पृथ्वी द्वारा पहिये पर आरोपित बल = पृथ्वी की प्रतिक्रिया
= W1 = 3675 न्यूटन
इसी प्रकार, प्रत्येक पीछे के पहिये पर पृथ्वी द्वारा आरोपित बल = पृथ्वी की प्रतिक्रिया
w2 = 5145 न्यूटन

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प्रश्न 7.10.

  1. किसी गोले का, इसके किसी व्यास के परितः जड़त्व आघूर्ण 2MR2/5 है, जहाँ M गोले का द्रव्यमान एवं R इसकी त्रिज्या है। गोले पर खींची गई स्पर्श रेखा के परितः इसका जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
  2. M द्रव्यमान एवं R त्रिज्या वाली किसी डिस्क का इसके किसी व्यास के परितः जड़त्व आघूर्ण MR2/4 है। डिस्क के लम्बवत् इसकी कोर से गुजरने वाली अक्ष के परितः इस चकती का जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।

उत्तर:

1. माना व्यास AB के परित: R त्रिज्या के गोले का जड़त्व आघूर्ण IAB है। जबकि गोले का द्रव्यमान m है।
IAB = \(\frac{1}{2}\) MR2
माना गोले के व्यास AB के समान्तर स्पर्शी CD है।
∴समान्तर x – अक्षों की प्रमेय से,
स्पर्श रेखा के परितः गोले का जड़त्व आघूर्ण
ICD = IAB + MR2
= \(\frac{2}{5}\) MR2 + MR2
= \(\frac{7}{5}\) MR2
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 13

2. माना M द्रव्यमान तथा Rत्रिज्या के गोले के दो कास AB व CD हैं। माना चकती के लम्बवत् इसके द्रव्यमान केन्द्र 0 से गुजरने वाली अक्ष EF है।

चकती के लम्बवत् अक्ष DG है जोकि चकती की परिधि पर स्थित बिन्दु D से गुजरती है।
अर्थात् DG, EF के समान्तर है। माना चकती का EF अक्ष के परित: जड़त्व आघूर्ण IEF है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 14
∴ लम्बवत् अक्षों की प्रमेय से,
IEE = IAB + ICD
= \(\frac { MR^{ 2 } }{ 4 } \) + \(\frac { MR^{ 2 } }{ 4 } \) = \(\frac { MR^{ 2 } }{ 2 } \)
∴समान्तर अक्षों की प्रमेय से,
IDG = IEF + MR2
= \(\frac{1}{2}\) MR2 + MR2 = \(\frac{3}{2}\) 2

प्रश्न 7.11.
समान द्रव्यमान और त्रिज्या के एक खोखले बेलन और एक ठोस गोले पर समान परिमाण के बल आघूर्ण लगाये गये हैं। बेलन अपनी सामान्य सममित अक्ष के परितः घूम सकता है और गोला अपने केन्द्र से गुजरने वाली किसी अक्ष के परितः। एक दिये गये समय के बाद दोनों में कौन अधिक कोणीय चाल प्राप्त कर लेगा?
उत्तर:
माना खोखले बेलन व ठोस गोले के द्रव्यमान व त्रिज्या क्रमश: M व R हैं।
माना खोखले बेलन का सममित के परित: जड़त्व आघूर्ण L1, है तथा ठोस गोले का केन्द्र के परितः जड़त्व आघूर्ण I2, है।
∴I1 = MR2
[I = \(\frac{1}{2}\) (R12 + R22 ~ MR2R 2 ~ R1 ~ R1)
तथा I2 = \(\frac{2}{5}\) MR2
माना प्रत्येक पर लगाया गया बलापूर्ण \(\hat { k } \)  है। माना a, व a, क्रमश: बेलन व गोले पर कोणीय त्वरण हैं।
∴\(\hat { i } \) = I1α1 = I2α2
∴\(\frac { \alpha _{ 1 } }{ \alpha _{ 2 } } \) = \(\frac { I_{ 2 } }{ I_{ 1 } } \) = \(\frac{2}{5}\)
∴ α2 = 2.5 α1
माना ω1, व ω2, किसी क्षण t पर बेलन व गोले की कोणीय चाल है।
∴ω1 = ω0 + α1t व
ω2 = ω0 + α2t
= ω0 + 2.5 α1t
समी० (iv) व (v) से
ω2 > ω1
अर्थात् गोले की कोणीय चाल बेलन से अधिक होगी।

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प्रश्न 7.12.
20 kg द्रव्यमान का कोई ठोस सिलिंडर अपने अक्ष के परितः 100 rad s-1 की कोणीय चाल से घूर्णन कर रहा है। सिलिंडर की त्रिज्या 0.25 m है। सिलिंडर के घूर्णन से संबद्ध गतिज ऊर्जा क्या है? सिलिंडर का अपने अक्ष के परितः कोणीय संवेग का परिमाण क्या है?
उत्तर:
दिया है:
m = 20 किग्रा
R = 0.25 मीटर
ω = 100 रेडियन प्रति सेकण्ड
माना बेलन की अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण I है
तब
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प्रश्न 7.13.
(a) कोई बच्चा किसी घूर्णिका (घूर्णीमंच) पर अपनी दोनों भुजाओं को बाहर की ओर फैलाकर खड़ा है। घूर्णिका को 40 rev/min की कोणीय चाल से घूर्णन कराया जाता है। यदि बच्चा अपने हाथों को वापस सिकोड़ कर अपना जड़त्व आघूर्ण अपने प्रारंभिक जड़त्व आघूर्ण का 2/5 गुना कर लेता है, तो इस स्थिति में उसकी कोणीय चाल क्या होगी? यह मानिए कि घूर्णिका की घूर्णन गति घर्षणरहित है।

(b) यह दर्शाइए कि बच्चे की घूर्णन की नयी गतिज ऊर्जा उसकी आरंभिक घूर्णन की गतिज ऊर्जा से अधिक है। आप गतिज ऊर्जा में हुई इस वृद्धि की व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:

(a) माना बच्चे का प्रारम्भिक व अन्तिम जड़त्व आघूर्ण क्रमशः I1 व I2 है।
अतः
∴I2 = \(\frac{2}{5}\) I1 दिया है।
V1 = 40 rev/min = \(\frac{40}{60}\) rev/min
V2 = ?
∴ω1 = 2 πv1
माना बच्चे को बाहर की ओर हाथ फैलाकर व सिकोड़कर घूर्णीय चाल क्रमश: ω1 व ω2 है। रेखीय संवेग संरक्षण के नियम से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 16

(b) घूर्णन की प्रा० गतिज ऊर्जा =
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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 17a
स्पष्ट है कि हाथ सिकोड़कर बच्चे की घूर्णन गतिज ऊर्जा, घूर्णन की प्रा० गतिज ऊर्जा से \(\frac{5}{2}\) गुना अधिक है।
अन्तिम स्थिति में गतिज ऊर्जा में वृद्धि, बच्चे की आन्तरिक ऊर्जा के कारण होती है।

प्रश्न 7.14.
3 kg द्रव्यमान तथा 40 cm त्रिज्या के किसी खोखले सिलिंडर पर कोई नगण्य द्रव्यमान की रस्सी लपेटी गई है। यदि रस्सी को 30 N बल से खींचा जाए तो सिलिंडर का कोणीय त्वरण क्या होगा? रस्सी का रैखिक त्वरण क्या है? यह मानिए कि इस प्रकरण में कोई फिसलन नहीं है।
उत्तर:
दिया है: बेलन का द्रव्यमान,
M = 3 kg
बेलन की त्रिज्या R = 0.4 m
स्पर्शरेखीय बल F = 30 N
α = ?
α = ?
माना खोखले बेलन का अक्ष के परितः जड़त्व घूर्णन है। अतः
τ = FR = 30 × 0.4 = 12NM
∴α = \(\frac { \tau }{ 1 } [latex] = [latex]\frac{12}{0.48}\) = 25 rads-2
∴α = Rα = 0.4 × 25

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प्रश्न 7.15.
किसी घूर्णक (रोटर) की 200 rads-1 की एकसमान कोणीय चाल बनाए रखने के लिए एक इंजन द्वारा 180 Nm का बल आघूर्ण प्रेषित करना आवश्यक होता है। इंजन के लिए आवश्यक शक्ति ज्ञात कीजिए। (नोट : घर्षण की अनुपस्थिति में एकसमान कोणीय वेग होने में यह समाविष्ट है कि बल का आघूर्णशून्य है। व्यवहार में लगाए गए बल आघूर्ण की आवश्यकता घर्षणी बल आघूर्ण को निरस्त करने के लिए होती है।) यह मानिए कि इंजन की दक्षता 100% है।
उत्तर:
दिया है:
ω = 200 रेडियन प्रति सेकण्ड
τ =180 न्यूटन मीटर
P = ?
सम्बन्ध P = τw से,
P = 180 × 200 = 36000 वॉट
= 36 किलो वॉट

प्रश्न 7.16.
R त्रिज्या वाली समांग डिस्क से R/2 त्रिज्या का एक वृत्ताकार भाग काट कर निकाल दिया गया है। इस प्रकार बने वृत्ताकार सुराख का केन्द्र मूल डिस्क के केन्द्र से R/2 दूरी पर है। अवशिष्ट डिस्क के गुरुत्व केन्द्र की स्थिति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक चकती की त्रिज्या = R
काटकर अलग की गई चकती की त्रिज्या = \(\frac{R}{2}\)
माना A व a चकतियों के क्षे० हैं।
अतः A = π(\(\frac{R}{2}\))2 = \(\frac { \pi R^{ 2 } }{ 4 } \)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 18

यहाँ 0 प्रारम्भिक चकती का केन्द्र है।
तथा 01 अलग किए गए गोल भाग का केन्द्र है।
व 02, बचे हुए भाग का केन्द्र है।
ρ = डिस्क का प्रति एकांक क्षेत्रफल द्रव्यमान है।
माना m, व m वास्तविक चकती व अलग किए गए चकती के द्रव्यमान है।
अतः
m1 = ρA = πR2ρ
तथा m = ρa = \(\frac { \pi R^{ 2 } }{ 4 } \) ρ
माना शेष बचे भाग का द्रव्यमान m है।
अतः m2 = m1 – m
= πR2ρ – \(\frac { \pi R^{ 2 } }{ 4 } \) = \(\frac{3}{4}\) πR2ρ
माना मूल बिन्दु 0 है।
माना Rcm बचे भाग का द्रव्यमान केन्द्र है।
अतः
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 19
दिया है: x1 = 001, OA – 0,
A = R – \(\frac { R }{ 2 } \) = \(\frac{R}{2}\)
m = \(\frac{π}{4}\) R2ρ
m2 = \(\frac{3}{4}\) πR2ρ
x2 = OO1, OA – O1
A = R – \(\frac{R}{2}\) = \(\frac{R}{2}\)
m = \(\frac{π}{4}\) R2ρ
m2 = \(\frac{3}{4}\) R2ρ
x2 = OO2
समी० (i) व (ii) से,
O = mx1 + m2m2x2
या x2 = \(-\frac { mx_{ 1 } }{ m_{ 2 } } \)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 20
ऋणात्मक चिह्न यह व्यक्त करता है कि बचे भाग का द्रव्यमान केन्द्र 0 से बाईं ओर है जोकि कटे भाग के केन्द्र के विपरीत ओर है।

प्रश्न 7.17.
एक मीटर छड़ के केन्द्र के नीचे क्षुर-धार रखने पर वह इस पर संतुलित हो जाती है जब दो सिक्के, जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान 5g है, 12.0 cm के चिह्न पर एक के ऊपर एक रखे जाते हैं तो छड़ 45.0 cm चिह्न पर संतुलित हो जाती है। मीटर छड़ का द्रव्यमान क्या है?
उत्तर:
माना m ग्राम = द्रव्यमान/छड़ की ल० सेमी
माना m मीटर का कुल द्रव्यमान व m = 100 ग्राम है।
जब मीटर केन्द्र पर सन्तुलित होता है, तब प्रत्येक भाग का द्रव्यमान = 50 मी/ग्राम
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 21
माना 12 सेमी चिह्न पर रखे दो सिक्कों का द्रव्यमान m2 है।
m2 = 5 × 2 = 10 ग्राम
द्रव्यमान केन्द्र = 45 सेमी के चिह्न पर (बिन्दु A)
चूँकि छड़ी सन्तुलन में है। अतः बिन्दु A के परितः अलग – अलग द्रव्यमानों का आघूर्ण समान है।
∴ 12m × 39 + 10 × 33 + 33m × \(\frac{33}{2}\)
= 55m × \(\frac{55}{2}\)
या \(\frac { (55)^{ 2 } }{ 2 } \) m – \(\frac { (33)^{ 2 } }{ 2 } \)m – 12 × 39m = 330
या (3025 – 1089 – 936) m = 330 × 2 = 660
या 1000m = 660
या m = 0.66 ग्राम

प्रश्न 7.18.
एक ठोस गोला, भिन्न नति के दो आनत तलों पर एक ही ऊँचाई से लुढ़कने दिया जाता है।

(a) क्या वह दोनों बार समान चाल से तली में पहुँचेगा?
(b) क्या उसको एक तल पर लुढ़कने में दूसरे से अधिक समय लगेगा?
(c) यदि हाँ, तो किस पर और क्यों?

उत्तर:
माना तल – 1 पर निम्न बिन्दु से शिखर तक चली दूरी व झुकाव क्रमश: I1 व θ2 है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 22
तथा तल – 2 पर निम्न बिन्दु से शिखर तक चली दूरी व झुकाव क्रमश: I2, व θ2 है।
∴sin θ1 > sin θ2
या \(\frac { sin\theta _{ 1 } }{ sin\theta _{ 2 } } \) > 1
प्रत्येक झुके तल की ऊँचाई,
λ = I1 sin θ1 = I2 sin θ2, (a) है।
तल के शिखर पर, गोले में केवल स्थितिज ऊर्जा होगी। i. e., PE = mgh
जहाँ m = गोले का द्रव्यमान है।
जब गोला शिखर से निम्न बिन्दु तक लुढ़कता है, तो स्थितिज
ऊर्जा, रैखिक ऊर्जा (\(\frac { 1 }{ 2 } I\omega ^{ 2 }\)) गतिज ऊपरिवर्तित हो जाती है। जहाँ I गोले का जड़त्वाघूर्ण है।
माना तल के निम्न बिन्दु पर रेखीय वेग v व कोणीय चाल ω है।
माना v 1 व 2 क्रमश: दोनों तलों (1 व 2) पर निम्न बिन्दु पर रेखीय वेग है।
अतः
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image tul
जहाँ K घूर्णन त्रिज्या है।
समी० (ii) व (iii) से स्पष्ट है कि प्रत्येक स्थिति में गोला निम्न बिन्दु पर समान वेग से लौटता है।

(b) हाँ, यह तल – 1 पर तल – 2 से अधिक समय लेगा। यह समय कम झुकाव वाले तल के लिए अधिक होगा।
व्याख्या: माना तल – 1 व तल – 2 पर फिसलने में लिया गया समय क्रमशः t1, व t2 है।
ठोस गोले के लिए,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image tul a
हम जानते हैं कि, झुके तल पर वस्तु का त्वरण निम्न है –
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image tul b
जहाँ θ = झुकाव
माना झुके तल – 1 व 2 पर गोले के त्वरण क्रमशः a<sub>1</sub> व a<sub>2</sub>
अतः
a1 = \(\frac { gsin\theta _{ 1 } }{ 7/5 } \)
= \(\frac{5}{7}\) g sin θ<sub>2</sub>
पुनः माना तल 1 व 2 पर फिसलने का समय क्रमश: t1 व t2 है।
अतः
सूत्र S = ut + \(\frac{1}{2}\)at से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image tul c
समय t, झुकाव कोण θ पर निर्भर करता है। अतः झुकाव कोण जितना कम होगा, गोला लुढ़कने में उतना ही अधिक समय लेगा।

प्रश्न 7.19.
2 m त्रिज्या के एक वलय (छल्ले) का भार 100 kg है। यह एक क्षैतिज फर्श पर इस प्रकार लोटनिक गति करता है कि इसके द्रव्यमान केन्द्र की चाल 20 cm/s हो। इसको रोकने के लिए कितना कार्य करना होगा?
उत्तर:
दिया है:
r = 2 मीटर
m = 100 किग्रा
द्रव्यमान केन्द्र का वेग,
v = 20 cms-1
= 0.20 मीटर/सेकण्ड
रोकने में व्यय कार्य = ?
माना वलय का कोणीय वेग ω है। अतः
ω = \(\frac{v}{r}\) = \(\frac{0.20}{2}\) = 0.10 सेकण्ड/से०
माना वलय का केन्द्र से गुजरती व तल के लम्बवत् अक्ष के परितः जड़त्वाघूर्णन I है।
I = mr2 = 100 × (2)2 = 400 kgm2
वलय की सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा = वलय की घूर्णन गतिज ऊर्जा + वलय की रेखीय गतिज ऊर्जा
या
E = \(\frac{1}{2}\) Iω2 + \(\frac{1}{2}\) mv2
या E = \(\frac{1}{2}\) × 400 × (0.10)2 + \(\frac{1}{2}\) × 100 × (0.20)2
= 200 × \(\frac{1}{100}\) + 2J
= 2 + 2 + 4J.
∴ कार्य ऊर्जा प्रमेय से,
रोकने में व्यय कार्य = वलय की सम्पूर्ण KE
= 4 जूल

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प्रश्न 7.20.
ऑक्सीजन अणु का द्रव्यमान 5.30 x 10-26 kg है तथा इसके केन्द्र से होकर गुजरने वाली और इसके दोनों परमाणुओं को मिलाने वाली रेखा के लम्बवत् अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण 194 x 10-46 kg m2है। मान लीजिए कि गैस के ऐसे अणु की औसत चाल 500 m/s है और इसकेपूर्णन की गतिज ऊर्जा, स्थानान्तरण की गतिज ऊर्जा की दो तिहाई है। अणु का औसत कोणीय वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है: ऑक्सीजन अणु का द्रव्यमान
m = 5.30 x 10-26 किग्रा
ऑक्सीजन अणु का जड़त्वाघूर्णन
I = 1.94 x 10-46 किग्रा – मीटर
अणु का मध्य वेग v = 500 ms-1
औसत कोणीय चाल ω = ?
प्रश्नानुसार, घूर्णन की गतिज ऊर्जा,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 23

प्रश्न 7.21.
एक बेलन 30° कोण बनाते आनत तल पर लुढ़कता हुआ ऊपर चढ़ता है। आनत तल की तली में बेलन के द्रव्यमान केन्द्र की चाल 5 m/s है।

  1. आनत तल पर बेलन कितना ऊपर जायेगा?
  2. वापस तली तक लौट आने में इसे कितना समय लगेगा?

उत्तर:
दिया है: θ =30°
तलों में बेलन के द्रव्यमान केन्द्र की चाल, u = 5 मीटर/सेकण्ड

1. आनत तल पर लुढ़कते बेलन का त्वरण = – a
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 24
= 3.83 मीटर

2. माना तली तक आने में बेलन को T समय लगता है।
∴T = 2t जहाँ t आने या जाने का समय है।
∴\(\frac { gsin\theta }{ 1+\frac { K^{ 2 } }{ R^{ 2 } } } \) = \(\frac{9.8}{3}\) मीटर/से2
s = 3.83 मीटर
दिया है: प्रा० वेग = 0
∴सूत्र s = ut + \(\frac{1}{2}\) at2से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 25
∴T = 2 x 1.53 = 3.06s = 3.0s

प्रश्न 7.22.
जैसा चित्र में दिखाया गया है, एक खड़ी होने वाली सीढ़ी के दो पक्षों BA और CA की लम्बाई 1.6 m है और इनको A पर कब्जा लगा कर जोड़ा गया है। इन्हें ठीक बीच में 0.5 m लम्बी रस्सी DE द्वारा बाँधा गया है। सीढ़ी BA के । अनुदिश B से 1.2 m की दूरी पर स्थित बिन्दु F से 40 kg का एक भार लटकाया गया है। यह मानते हुए कि फर्श घर्षण रहित है और सीढ़ी का भार उपेक्षणीय है, रस्सी में तनाव और सीढ़ी पर फर्श द्वारा लगाया गया बल ज्ञात कीजिए।(g = 9.8 m/s2 लीजिए) (संकेत : सीढ़ी के दोनों ओर के संतुलन पर अलगअलग विचार कीजिए)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 26
उत्तर:
दिया है: AB = AC = 1.6 मीटर
DE = 0.5 मीटर
AD = DB = AE = EC = \(\frac{1.6}{2}\) = 0.8 मीटर
BF = 1.2 मीटर
AF = 0.4 मीटर
माना रस्सी में तनाव = T
फर्श द्वारा सीढ़ी पर बिन्दु B व C पर आरोपित बल
= N’B Nc = ?
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 27
W = 40 kg wt = 40 x 9.8 N = 392 N
माना = A’ = DE का मध्य बिन्दु
∴DA’ = \(\frac{5}{2}\) = 2.5 m,
DF = 125 m
चित्र में स्पष्ट है कि,
NB = Nc = W = 392 N
माना सीढ़ी AB व AC अलग-अलग सन्तुलन में है। A के परितः विभिन्न बलों का आघूर्ण लेने पर
NB x BC’ = W x DF + T x AA’ (AB सीढ़ी के लिए)
या NB x AB cosθ
= W x 0.125 + T x 0.8 sin θ
इसी सीढ़ी AC के लिए,
Nc x CC’ = T x AA’ या
Nc x AC cos θ = T x 0.8 sin θ
∆DEF’ में,
cos θ = \(\frac{DF}{DF}\) = \(\frac{0.125}{0.4}\)
= 0.3125 = cos θ 72.8°
∴θ = 72.8′
∴sin θ = 0.9553
tan θ = 3.2305
∴समी० (ii) व (iv) से,
NB × 1.6 × 0.392 × 0.125 + T × 0.8 × 0.9553
या 0.5 NB = 225 N
या \(\frac{1}{2}\)
∴Nc = NB – 98
= 225 – 98 = 147 N
∴समी० (vi) व (viii) से,
0.5 x \(\frac{147}{0.764}\) = 96.2N

प्रश्न 7.23.
कोई व्यक्ति एक घूमते हुए प्लेटफॉर्म पर खड़ा है। उसने अपनी दोनों बाहें फैला रखी हैं और उनमें से प्रत्येक में 5 kg भार पकड़ रखा है। प्लेटफॉर्म का कोणीय चाल 30 rev/min है। फिर वह व्यक्ति बाहों को अपने शरीर के पास ले आता है जिससे घूर्णन अक्ष से प्रत्येक भार की दूरी 90 cm से बदल कर 20 cm हो जाती है। प्लेटफॉर्म सहित व्यक्ति के जड़त्व आघूर्ण का मान 7.6 kg m2 ले सकते हैं।

  1. उसका नया कोणीय वेग क्या है? (घर्षण की उपेक्षा कीजिए)
  2. क्या इस प्रक्रिया में गतिज ऊर्जा संरक्षित होती है? यदि नहीं, तो इसमें परिवर्तन का स्त्रोत क्या है?

उत्तर:
दिया है: प्रत्येक हाथ में द्रव्यमान = 5 किग्रा
r1 = 90 cm = 0.90 मीटर
r2 = 20 cm = 0.20 मीटर
आदमी तथा प्लेटफॉर्म का जड़त्व आघूर्ण,
I = 7.6 kgm2
माना r1 व r2 दूरी पर जड़त्वाघूर्ण क्रमश: ।’1 व I’2 है।
तब सूत्र I = mr2 से,
I’1 = 2m × r12
= 2 × 5 × (0.9)2
= 8.1 kgm2
तथा I’2 = 2m × r22
= 2 × 5 × (0.2)2
= 0.4kgm2
माना, r1 व r2 दूरी पर निकाय (व्यक्ति + भार + प्लेटफॉर्म) का जड़त्वाघूर्ण क्रमशः
I1 व I है।
तब –
I1 = I’1 + I = 8.1+7.6 = 15.7 kgm2
तथा I2 = I’2I
= 0.4 + 7.6 = 8.0 kgm2
v1 = 30 rpm = \(\frac{30}{60}\) = \(\frac{1}{2}\)ps
ω1 = 2πv1 = 2π × \(\frac{1}{2}\) = πrads-1
माना r2 दूरी पर नवीन कोणीय चाल ω2, है।
∴कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से,
या I1ω1 = I2ω2
15.7 × π = 8 × ω2
या ω2 = 15.7 \(\frac{π}{8}\)
= 1.9625 π rads -1
∴कोणीय आवृत्ति v2 निम्न है –
v2 = \(\frac { \omega _{ 2 } }{ 2\pi } \) = \(\frac{1.9625}{2π}\) × πrps
= \(\frac{1.9625}{2}\) × 60rpm
= 58.875rpm = 58.9 rpm = 59 rpm
नहीं, यहाँ गतिज ऊर्जा संरक्षित नहीं होगी? चूँकि घूर्णनी गति में कोणीय संवेग संरक्षित रहता है।
अत: यह आवश्यक नहीं है कि घूर्णनी गतिज ऊर्जा भी संरक्षित रहे जिसे निम्न रूप में समझाया जा सकता है –
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 28
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 28a
अर्थात् के घटने पर घूर्णनी KE बढ़ती है। KE में यह परिवर्तन (i.e., वृद्धि) वस्तु के जड़त्वाचूर्ण को कम करने में व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य के व्यय होने के कारण होता है।

प्रश्न 7.24.
10g द्रव्यमान और 500 m/s चाल वाली बन्दूक की गोली एक दरवाजे के ठीक केन्द्र में टकराकर उसमें अंतःस्थापित हो जाती है। दरवाजा 1.0 m चौड़ा है और इसका द्रव्यमान 12 kg है। इसके एक सिरे पर कब्जे लगे हैं और यह इनसे गुजरती एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः लगभग बिना घर्षण के घूम सकता है। गोली के दरवाजे में अंत:स्थापन के ठीक बाद इसका कोणीय वेग ज्ञात कीजिए। (संकेत : एक सिरे से गुजरती ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः दरवाजे का जड़त्व – आघूर्ण ML2/3है)
उत्तर:
दिया है: गोली का द्रव्यमान
m =10g = 0.01 किग्रा
गोली का वेग v = 500 मीटर/से०
दरवाजे की चौ० b = 1.0 मीटर
दरवाजे का द्र० M = 12 किग्रा
कोणीय चाल ω = ?
ऊर्जा संरक्षण के नियम से,
\(\frac{1}{2}\) mv2 = \(\frac{1}{2}\) Iω2
माना कब्जे वाली भुजा के परित: जड़त्वाघूर्ण है।
∴I = \(\frac{1}{3}\)(M + m)(\(\frac{b}{2}\))2
(∴द्रव्यमान केन्द्र से दूरी = \(\frac{b}{2}\) तथा गोली दरवाजे में है।)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 29
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 29a
= 49.98 रेडियन/सेकंड

प्रश्न 7.25.
दो चक्रिकाएँ जिनके अपने – अपने अक्षों (चक्रिका के अभिलंबवत् तथा चक्रिका के केंद्र से गुजरने वाले) के परितः जड़त्व आघूर्ण I2 तथा I2 हैं और जो, ω1 तथा ω2 कोणीय चालों से घूर्णन कर रही है, को उनके घूर्णन अक्ष संपाती करके आमने – सामने लाया जाता है?

(a) इस दो चक्रिका निकाय की कोणीय चाल क्या है?
(b) यह दर्शाइए कि इस संयोजित निकाय की गतिज ऊर्जा दोनों चक्रिकाओं की आरंभिक गतिज ऊर्जाओं के योग से कम है। ऊर्जा में हुई इस हानि की आप कैसे व्याख्या करेंगे? ω1 ≠ ω2 लीजिए।

उत्तर:
माना I1 व I2 जड़त्व आघूर्ण वाली चकतियों की कोणीय चाल क्रमशः , ω1 व ω2, है। सम्पर्क में लाने पर दोनों चकतियों के निकाय का जड़त्व आघूर्ण I1 + I2 होगा।।
माना = पूरे निकाय की कोणीय चाल है।

(a) ∴ दोनों चकतियों के कुल प्रा० कोणीय संवेग,
L1 = I1ω1 + I2ω2
संयुक्त निकाय का कुल अन्तिम कोणीय संवेग,
L2 = (I1 + I2
कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 30
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 30a
अतः E1 – E2 > 0 या E1 > E2
या E2 > E1 अर्थात् पूरे निकाय की घूर्णनी गतिज ऊर्जा दोनों चकतियों की प्रारम्भिक ऊर्जाओं के योग से कम है।
अतः दो चकतियों को सम्पर्क में लाने पर, गतिज ऊर्जा में कमी आती है। यह कमी दोनों चक्रिकाओं की सम्पर्कित सतहों के बीच घर्षण के बल के कारण होती है।

प्रश्न 7.26.
(a) लम्बवत् अक्षों के प्रमेय की उपपत्ति करें। [संकेत (x, y) तल के लम्बवत् मूल बिन्दु से गुजरती अक्ष से किसी बिन्दु x – y की दूरी का वर्ग (x2 + y2) है]
(b) समांतर अक्षों के प्रमेय की उपपत्ति करें (संकेत: यदि द्रव्यमान केन्द्र को मूल बिन्दु ले लिया जाये तो Σmiri = 0)
उत्तर:
(a) समकोणिक (लम्ब) अक्षों की प्रमेयकिसी समतल पटल को उसके तल में ली गई दो परस्पर लम्बवत् अक्षों Ox तथा OY के परित: जड़त्व आघूर्णों का योग इन अक्षों के कटान बिन्दु 0 में को जाने वाली तथा पटल के तल के लम्बवत् अक्ष OZ के परितः जड़त्व आघूर्ण के बराबर होता है। पटल का अक्ष Oz के परितः जड़त्व आघूर्ण
Iz = Iz + Iy
जहाँ Iz तथा Iy पटल का क्रमश: अक्ष OX तथा OY के परितः जड़त्व आघूर्ण है।
सिद्ध करना – माना एक पटल है जिसके तल में दो परस्पर लम्बवत् अक्षं Ox तथा OY ली गई हैं अक्ष OZ पटल के तल के अभिलम्बवत् है तथा Ox व OY के कटान बिन्दु०से गुजरती है।
माना अक्ष OZ से r दूरी पर m द्रव्यमान का एक कण P है। इस कण का अक्ष OZ के परितः जड़त्व आघूर्ण mr2 होगा। अतः पूरे पटल का अक्ष OZ के परित: जड़त्व आघूर्ण
Iz = Σmr2
लेकिन r2 = x2 + y2
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 31
जहाँ x व y कण भी क्रमशः अक्षों OY व Ox से दूरियाँ हैं।
∴I2 = Σm(x2 + y2)
= Σmx2 + Σmy2
लेकिन Ix = Σmx2 तथा Iy = Σmy2
अतः Iz = Iz + Iy

(b) समान्तर अक्षों की प्रमेय – किसी पिंड का किसी अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण (I) उस पिंड के द्रव्यमान केन्द्र में को जाने वाली समान्तर अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण (Icm) तथा पिंड के द्रव्यमान व दोनों अक्षों के बीच की लम्बवत् दूरी के वर्ग के गुणनफल के योग के बराबर होता है।
I = Icm + Ma2
जहाँ M पिंड का द्रव्यमान है तथा a दोनों अक्षों के बीच लम्बवत् दूरी है।
सिद्ध करना – माना एक समतल पटल है जिसका द्रव्यमान केन्द्र C है। माना पटल का पटल के तल में स्थित अक्ष AB के परितः जड़त्व आघूर्ण 1 है तथा इसके द्रव्यमान केन्द्र C से गुजरने वाली समान्तर अक्ष EF के परितः जड़त्व आघूर्ण Icm है। माना AB तथा EF अक्षों के बीच लम्बवत् दूरी a है।
माना EF अक्ष से दूरी पर m द्रव्यमान का एक कण Pहै। P की AB से दूरी (r + a) होगी।
P का AB के परितः जड़त्व आघूर्ण m (r + a)2 होगा।
अतः पूरे पटल का AB अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 32
I = Σm(r+a)2
= Σm(r2 + a2 + 2ar)
I = Σmr2 + Σma2 + 2aΣmr
लेकिन I cm = Σmr2
तथा a2Σm = a2M
तथा Σmr = 0 क्योंकि किसी पटल के समस्त कणों का पटल के द्रव्यमान केन्द्र में से गुजरने वाली अक्ष के परितः आघूर्णी का योग शून्य होता है। अतः
I = Icm + Ma2

प्रश्न 7.27.
सूत्र v2 = \(\frac { 2gh }{ (1+k^{ 2 }/R^{ 2 }) } \)को गतिकीय दृष्टि (अर्थात् बलों तथा बल आघूर्णों के विचार) से व्युत्पन्न कीजिए। जहाँ v लोटनिक गति करते पिंड (वलय, डिस्क, बेलन या गोला) का आनत तल की तली में वेग है।आनत तल पर वह ऊँचाई है जहाँ से पिंड गति प्रारंभ करता है। सममित अक्ष के परितः पिंड की घूर्णन त्रिज्या है और R पिंड की त्रिज्या है।
उत्तर:
माना M व R क्रमश: गोलीय पिंड के द्रव्यमान व त्रिज्या है, यह एक ऐसे आनत तल पर A बिन्दु पर रखा गया है जिसका क्षैतिज से झुकाव θ है।
∴ इस पिंड में A बिन्दु पर पूर्णत: स्थितिज ऊर्जा होगी।
E = mgh
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 33
जब यह पिंड तल पर फिसलना प्रारम्भ करता है, पिंड द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष (i.e., c) से गुजरता है जो कि तल के समान्तर है। इसके भार व भार के घटक के कारण घूर्णनी गति नहीं होती है चूँकि इसकी क्रिया रेखा C से गुजरती है। इस प्रकार पिंड पर लगने वाला सम्पूर्ण बलाघूर्ण शून्य होगा। घर्षण बलाघूर्ण अर्थात् घूर्णन के कारण बल लगता है।
∴τ = FR
घूर्णन करते पिंड की सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा (E) में रैखिक गतिज ऊर्जा (Kt व घूर्णनी गतिज ऊर्जा (Kr) होती है।
i.e., E = K1+ Kr
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 34
तथा y = Rω = घूर्णन करते पिंड का रैखिक वेग
जहाँ ω कोणीय वेग है।
पिंड का जड़त्व आघूर्ण, I = \(\frac{1}{2}\)mK2 जहाँ K = घूर्णन त्रिज्या।
माना पृष्ठ सतह खुरदरी है तथा पिंड बिना फिसले ही घूर्णन करता है। बिन्दु B पर, पिंड में दोनों रैखिक व घूर्णनी गतिज ऊर्जाएँ होती हैं। बिन्दु B पर सम्पूर्ण ऊर्जा समी० (iii) के अनुसार होगी।
ऊर्जा संरक्षण के नियम से, बिन्दु A पर स्थितिज ऊर्जा = बिन्दु B पर सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 35

प्रश्न 7.28.
अपने अक्ष पर ω0 कोणीय चाल से घूर्णन करने वाली किसी चक्रिका को धीरे से (स्थानान्तरीय धक्का दिए बिना) किसी पूर्णतः घर्षणरहित मेज पर रखा जाता है। चक्रिका की त्रिज्या R है। चित्र में दर्शाई चक्रिका के बिन्दुओं. A, B तथा C पर रैखिक वेग क्या हैं? क्या यह चक्रिका चित्र में दर्शाई दिशा में लोटनिक गति करेगी?
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 36
उत्तर:
चक्रिका व मेज के मध्य घर्षण बल शून्य है। इस कारण चक्रिका लोटनिक गति नहीं कर पाएगी व मेज के एक ही बिन्दु B के सम्पर्क में रहते हुए अपनी अक्ष के परितः घूर्णनी गति करती रहेगी।
दिया है: बिन्दु A की अक्ष से दूरी R है।
अतः बिन्दु A पर रैखिक वेग, VA = Rω0 (तीर की दिशा में)
तथा बिन्दु B पर रैखिक वेग, VB = Rω0 (तीर की विपरीत दिशा में)
चूँकि बिन्दु C की अक्ष से दूरी \(\frac{R}{2}\)
अतः बिन्दु C पर रैखिक वेग vc = \(\frac{R}{2}\)ω0
(क्षैतिजत: बाईं ओर से दाईं ओर को) अर्थात् चक्रिका लोटनिक गति नहीं करेगी।

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प्रश्न 7.29.
स्पष्ट कीजिए कि चित्र (प्रश्न 7.28) में अंकित दिशा में चक्रिका की लोटनिक गति के लिए घर्षण होना आवश्यक क्यों है?

  1. B पर घर्षण बल की दिशा तथा परिशुद्ध लुढ़कन आरंभ होने से पूर्व घर्षणी बल आघूर्ण की दिशा क्या है?
  2. परिशुद्ध लोटनिक गति आरंभ होने के पश्चात् घर्षण बल क्या है?

उत्तर:

1. बिन्दु B पर घर्षण बल B के वेग का विरोध करता है। अतः घर्षण बल तीर की दिशा में होगा। घर्षण बल आघूर्ण के कार्य करने की दिशा इस प्रकार है कि वह कोणीय गति का विरोध करता है। ω0 व τ दोनों ही कागज के पृष्ठ के अभिलम्बवत् कार्य करते हैं। इनमें ω0 कागज के पृष्ठ के अंतर्मुखी व र कागज के पृष्ठ के बहिर्मुखी है।

2. घर्षण बल सम्पर्क – बिन्दु B के वेग को कम कर देता है। जब यह वेग शून्य होता है तो चक्रिका की लोटन गति आदर्श सुनिश्चित हो जाती है। एक बार ऐसा हो जाने पर घर्षण बल का मान शून्य हो जाता है।

प्रश्न 7.30.
10 cm त्रिज्या की कोई ठोस चक्रिका तथा इतनी ही त्रिज्या का कोई छल्ला किसी क्षैतिज मेज पर एक ही क्षण 10π rads-1 की कोणीय चाल से रखे जाते हैं। इनमें से कौन पहले लोटनिक गति आरंभ कर देगा। गतिज घर्षण गुणांक µ k = 0.21
उत्तर:
दिया है: छल्ले तथा ठोस चक्रिका की त्रिज्या,
R = 10 सेमी = 0.1 मीटर
µk = 0.2
छल्ले का जड़त्व आघूर्ण = MR2 …. (i)
ठोस चक्रिका का जड़त्व आघूर्ण = \(\frac{1}{2}\) mR2 … (ii)
प्रा० कोणीय वेग = ω0 = 10π रेडियन/सेकण्ड
घर्षण बल के कारण गति होती है तथा घर्षण के कारण द्रव्यमान केन्द्र त्वरित होता है। छल्ला शून्य प्रारम्भिक वेग से चलता है। प्रारम्भिक कोणीय वेग 00 में मन्दन घर्षण बलाघूर्ण के कारण होता है।
हम जानते हैं कि µkN = ma
या µkmg = m
या a = µkg
तथा बलाघूर्ण τ = -Iα
= FR = µkmgR
जहाँ R = चकती या वलय की त्रिज्या
ऋणात्मक चिह्न प्रदर्शित करता है कि मन्दन बलाघूर्ण है। यहाँ u = 0
∴v = u + at से
v = at or a = \(\frac{v}{t}\)
समी० (iii) से a = µkg
या \(\frac{v}{t}\) = µkg
या v = µkgt’ (चकती के लिए)
समी० (iv) से
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 37
माना छल्ले की t समय व चकती की t’ समय बाद कोणीय वेग
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 38
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 38-a
R = 0.1 m, ω = 10m rads-1, µ = 0.2
समी० (x) व (xi) में रखने पर,
g = 9.8 ms-2
∴t = \(\frac { 0.1\times 10\pi }{ 3\times 0.2\times 9.8 } \) = 0.8s
तथा t’ = \(\frac { 0.1\times 10\pi }{ 3\times 0.2\times 9.8 } \) = 0.53s
अत: समी० (xii) व (xiii) से स्पष्ट है कि t’ < t अर्थात् चकती पहले फिसलना प्रारम्भ करेगी।

प्रश्न 7.31.
10 kg द्रव्यमान तथा 15 cm त्रिज्या का कोई सिलिंडर किसी 30° झुकाव के समतल पर परिशुद्धत: लोटनिक गति कर रहा है। स्थैतिक घर्षण गुणांक = 0.25

  1. सिलिंडर पर कितना घर्षण बल कार्यरत है?
  2. लोटन की अवधि में घर्षण के विरुद्ध कितना कार्य किया जाता है?
  3. यदि समतल के झुकाव में वृद्धि कर दी जाए तो के किस मान पर सिलिंडर परिशुद्धतः लोटनिक गति करने की बजाय फिसलना आरंभ कर देगा?

उत्तर:
दिया है:
m = 10 kg, R = 0.15 m, θ = 30°, µk = 0.25
1. बेलन पर लगने वाला घर्षण बल –
F = \(\frac{1}{3}\) mg sinθ
= \(\frac{1}{3}\) × 10 × 9.8 × sin 30° = 16.3 न्यूटन

2. चूंकि परिशुद्ध लोटनिक गति में, सम्पर्क बिन्दु पर कोई सरकन गति नहीं है। इसलिए घर्षण बल के विरुद्ध कृत कार्य, w = 0 है।

3. लोटनिक गति के लिए,
\(\frac{F}{R}\) = \(\frac{1}{3}\) tan θ ≤ µs
∴ tan θ = 3 ≤ µs
= 3 × 0.25 = 0.75
∴θ = tan-1(0.75)
= 37°

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प्रश्न 7.32.
नीचे दिए गए प्रत्येक प्रकथन को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा कारण सहित उत्तर दीजिए कि इनमें से कौन – सा सत्य है और कौन – सा असत्य है –

  1. लोटनिक गति करते समय घर्षण बल उसी दिशा में कार्यरत होता है जिस दिशा में पिंड का द्रव्यमान केंद्र गति करता है।
  2. लोटनिक गति करते समय संपर्क बिंदु की तात्क्षणिक चाल शून्य होती है।
  3. लोटनिक गति करते समय संपर्क बिन्दु का तात्क्षणिक त्वरण शून्य होता है।
  4. परिशुद्ध लोटनिक गति के लिए घर्षण के विरुद्ध किया गया कार्य शून्य होता है।
  5. किसी पूर्णतः घर्षणरहित आनत समतल पर नीचे की ओर गति करते पहिए की गति फिसलन गति (लोटनिक गति नहीं) होगी।

उत्तर:

  1. सत्य, चूँकि स्थानान्तरीय गति घर्षण बल के कारण ही उत्पन्न होती है। इसी बल के कारण पिंड का द्रव्यमान आगे की ओर बढ़ता है।
  2. सत्य, चूँकि लोटनिक गति, सम्पर्क बिन्दु पर सी गति 1 के समाप्त होने पर प्रारम्भ होती है। इस प्रकार परिशुद्ध लोटनिक । गति में सम्पर्क बिन्दु की तात्क्षणिक चाल शून्य होती है।
  3. असत्य चूँकि घूर्णन गति के कारण, सम्पर्क बिन्दु की गति में अभिकेन्द्र त्वरण अवश्य ही विद्यमान होता है।
  4. सत्य चूँकि परिशुद्ध लोटनिक गति में सम्पर्क बिन्दु पर कोई सरकन नहीं होता है। इस कारण घर्षण बल के विरुद्ध किया गया कार्य शून्य होता है।
  5. सत्य, घर्षण के न होने पर आनत तल पर छोड़े गए पहिए का आनत तल के साथ सम्पर्क बिन्दु विरामावस्था में नहीं रहेगा बल्कि पहिए के भार के अधीन माना तल के अनुदिश फिसलता जाएगा। इस कारण यह गति लोटनिक न होकर विशुद्ध सरकन गति होगी।

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प्रश्न 7.33.
कणों के किसी निकाय की गति को इसके द्रव्यमान केन्द्र की गति और द्रव्यमान केन्द्र के परितः गति में अलग – अलग करके विचार करना।
दर्शाइये कि –
(a) P = p’i + miV
जहाँ pi (mi द्रव्यमान वाले) i – वें कण का संवेग है, और p’i = miv’i, ध्यान दें कि , द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष i – वें कण का वेग है। द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा का उपयोग करके यह भी सिद्ध कीजिए कि Σp’i = 0

(b) K = K’ + \(\frac { 1 }{ 2 }\) Mv2
K कणों के निकाय की कुल गति ऊर्जा, K’ = निकाय की कुल गतिज ऊर्जा जबकि कणों की गतिज ऊर्जा द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष ली जाये। MV2/2 संपूर्ण निकाय के (अर्थात् निकाय के द्रव्यमान केन्द्र के)स्थानान्तरण की गतिज ऊर्जा है। इस परिणाम का उपयोग भाग 7.14 में किया गया है।

(c) L = L’ + R x MV
जहाँ L’ = Σr’i, x P’i, द्रव्यमान के परितः निकाय का कोणीय संवेग है जिसकी गणना में वेग द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष मापे गये हैं। याद कीजिए r’ = ri – R; शेष सभी चिह्न अध्याय में प्रयुक्त विभिन्न राशियों के मानक चिह्न हैं। ध्यान दें कि L’ द्रव्यमान केन्द्र के परितः निकाय का कोणीय संवेग एवं MRx Vइसके द्रव्यमान केन्द्र का कोणीय संवेग है।

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 39

(जहाँ ‘ द्रव्यमान केन्द्र के परितः निकाय पर लगने वाले सभी बाह्य बल आघूर्ण हैं।)
[संकेत : द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा एवं न्यूटन के गति के तृतीय नियम का उपयोग कीजिए। यह मान लीजिए कि किन्हीं दो कणों के बीच के आन्तरिक बल उनको मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करते हैं।]
उत्तर:
(a) माना कि m1m2 …mn, दृढ़ पिंड की रचना करने वाले कणों के द्रव्यमान हैं तथा मूल बिन्दु 0 (0, 0) के सापेक्ष इन कणों के स्थिति सदिश क्रमश: \(\vec { r } \)1\(\vec { r } \)2…..\(\vec { r } \)n हैं।
माना कि मूल बिन्दु के सापेक्ष द्रव्यमान केन्द्र (G) की स्थिति
सदिश \(\vec { R } \) व द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष अलग – अलग कणों की स्थिति क्रमश: \(\vec { r } \)1,\(\vec { r } \)2 …. \(\vec { r } \)n हैं।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image f
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 40a
जहाँ \(\overrightarrow { p } _{ i }\) = mi \(\overrightarrow { v } _{ i }\) = i वे कण का मूल बिन्दु के सापेक्ष रेखीय संवेग है।
\(\overrightarrow { p } _{ i }\) = mi \(\overrightarrow { v } _{ i }\) = i वें कण का द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष रेखिक संवेग
परन्तु द्रव्यमान केन्द्र के परितः कणों के आघूर्ण का सदिश योग शून्य होता है।

(b) किसी निकाय की गतिज ऊर्जा में रैखिक गतिज ऊर्जा | (K) व घूर्णनी गतिज ऊर्जा (K’ ) होती है। i.e., द्रव्यमान केन्द्र की गति की गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2}\)mv2) व कणों के निकाय के द्रव्यमान केन्द्र के परित: घूर्णनी गति की गतिज ऊर्जा (K’) होता है। अतः निकाय की कुल ऊर्जा निम्नवत् होगी –
k = \(\frac{1}{2}\)mv2 + Iω2
= \(\frac{1}{2}\)mv2 + K’ = K’ + \(\frac{1}{2}\)mv2

(c) समी० (i) के बाईं ओर \(\vec { ri } \) का सदिश गुणन लेने पर,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 41
(d) माना कि कणों के निकाय पर बलाघूर्ण लगाया जाता है।
माना कि कण के लिए \(\vec { L } \) के घटक Lx, Ly, व Lz क्रमशः x, y व z अक्षों के अनुदिश हैं। माना कि px, py. व pz, इसके रैखिक संवेग के घटक हैं।
Lz = xpy – ypx
Lx = ypz – zpy
Ly = zpx – xpz
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति image 41a

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 ‘विप्लव-गान’

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 ‘विप्लव-गान’ (कविता, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’)

विप्लव-गान पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

विप्लव-गान लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि की तान से कौन भस्मसात् हो रहे हैं?
उत्तर:
कवि की तान से पहाड़ भस्मसात हो रहे हैं।

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प्रश्न 2.
किस वस्तु को कवि विष में बदलने की बात करता है?
उत्तर:
माता की छाती के अमृतमय दूध को कवि विष में बदलने की बात करता है।

प्रश्न 3.
विश्वम्भर की वीणा का विश्लेषण क्या है?
उत्तर:
विश्वम्भर की वीणा का विश्लेषण पोषक है।

विप्लव-गान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विप्लव-गायन से क्या तात्पर्य है? कवि ने विप्लव के कौन से लक्षण गिनाए हैं?
उत्तर:
विप्लव-गायन से तात्पर्य है-अंध-विचारों और जीर्ण-शीर्ण सामाजिक मान्यताओं को समाप्त करने की प्रेरणा देना। कवि ने विप्लव के अनेक लक्षण गिनाए हैं, जैसे-प्राणों के लाले पड़ जाना, त्राहि-त्राहि मच जाना, नाश-सत्यानाश का धुआँधार छा जाना, आग बरसना, बादल जल जाना, पहाड़ का राख में मिल जाना, आकाश की छाती का फट जाना, तारों का खण्ड-खण्ड होना, कायरता का काँपना, रूढ़ियों का समाप्त होना, अंध-विचारों का अंत होना, सामाजिक बन्धनों का टुकड़े-टुकड़े हो जाना, संसार का भरण-पोषण करने वाली ईश्वर की वीणा का मौन हो जाना, भगवान के सिंहासन का थर्राना, चारों ओर नाश-नाश और महानाश ही की ध्वनि सुनाई देना, प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित हो जाना आदि।

प्रश्न 2.
कवि किन-किन रूढ़ियों को समाप्त करना चाहता है?
उत्तर:
कवि परम्परागत जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं और सभी प्रकार की भज्ञानता – व मूढ़ तथा अन्धविचारों की रूढ़ियों को समाप्त करना चाहता है।

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प्रश्न 3.
नए सृजन के लिए ध्वंस की आवश्यकता क्या है? इस कथन के आधार पर कवि द्वारा वर्णित तथ्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नए सजन के लिए ध्वंस की आवश्यकता है –

  1. युग की जीर्ण-शीर्ण परम्परागत मान्यताओं को समाप्त करके उनके स्थान पर नई और स्वस्थ मान्यताओं को अंकुरित किया जा सके।
  2. पाप-पुण्य के सद्सद्भावों की परख की जा सके।
  3. कायरता काँप उठे और चले आ रहे अंध मूढ़ विचार समाप्त हो जाएँ।
  4. लीक पर चलने की परम्परा समाप्त हो।
  5. नियमों-उपनियमों के बंधन टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ।

विप्लव-गान भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. 1. “प्रलयंकारी आँख खुल जाए’ से तात्पर्य क्या है?
  2. 2. “अंधे मूढ़ विचारों की वह अचल शिला विचलित हो जाए” में कवि क्या संदेश देना चाहता है?
  3. 3. “कायरता काँपे, गतानुगति विगलित हो जाए” का भाव पल्लवन कीजिए।
  4. 4. व्याख्या कीजिए?
    “नियम और उपनियमों ……… प्रांगण में घहराए।”

उत्तर:

1. “प्रलयंकारी आँख खुल जाए” से तात्पर्य है-सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रलयंकारी, क्रान्ति का आना बेहद जरूरी है। उससे ही आमूलचूल अपेक्षित परिवर्तन सम्भव है।

2. “अंधे मूढ़ विचारों की वह अचल शिला विचलित हो जाए” में कवि यह संदेश देना चाहता है कि साधारण नहीं अपितु परम्परागत रूढ़ियाँ प्रलयंकारी क्रान्ति. से ही जड़ समेत हो जाएँगी।

3. “कायरता काँपे, गतानुगति विचलित हो जाए।”
उपर्युक्त काव्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव प्रस्तुत करना चाहा है कि अभूतपूर्व और प्रलयंकारी क्रान्ति के आने से चारों ओर उथल-पुथल मच जाता है। चारों ओर . ताजगी, नयापन और उमंग का वातावरण फैलने लगता है। इस प्रकार के वातावरण में निठल्लापन, आलस्य, उदासी, निराशा आदि विकास की बाधाएँ दूर भाग जाती हैं। इसके साथ ही चले आते हुए अंधे मूढ़ विचार और परम्परागत सामाजिक नियम-उपनियम दरकिनार होने लगते हैं। इस प्रकार की क्रान्ति सचमुच में युगों की अपेक्षाओं और आशाओं के अनुरूप खरी उतरती है।

4. व्याख्या
“नियमों और उपनियमों के….प्रागंण में घहराए।”
व्याख्या:
हे कवि! तुम्हारी ऐसा ज्ञान हो जिसे सुनकर सभी प्रकार के सामाजिक बंधन, चाहे वे किसी छोटे-छोटे नियमों से बँधे हों या बड़े-बड़े नियमों से बँधे, वे एक-एक करके खण्ड-खण्ड हो जाएँ। इसे देखकर संत का भरण-पोषण करने वाले ईश्वर की पोषण करने वाली वीणा के तार मौन हो जाएँ। इसी प्रकार महाशिव का शान्ति दण्ड टूटकर बिखर जाए और उनका सिंहासन काँप उठे। उनका पोषण करने वाला श्वासोच्छवास संसार के प्रांगण (आँगन) में घहराने लगे। फिर पूरी तरह से नाश-नाश और महानाश ही की भयंकर ध्वनि गूंज उठे। इस तरह चारों ओर ऐसा भयानक दृश्य उपस्थित हो जाए, मानो प्रलयंकारी आँखें खुल गई हों।

विप्लव-गान भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पाप-पुण्य दो विरोधी शब्दों की जोड़ी है, इसी आधार पर पोषक, नाश, कायरता, दाएँ शब्दों की जोड़ी बनाइए
उत्तर:
शब्द
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 'विप्लव-गान' img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए –
आँखों का पानी सूखना, धूल उड़ना, प्राणों के लाले पड़ना, छाती फटना, तारे टूटना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 'विप्लव-गान' img-2

विप्लव-गान योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
“नवीन” जी की इस कविता से मिलती-जुलती किसी अन्य कवि की कोई कविता खोजकर उसे विद्यालय के प्रदर्शन बोर्ड पर प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
कभी आपने आँधी-तूफान का सामना किया हो तो उसका अनुभव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
“नवीन” जी का सम्बन्ध उज्जैन से रहा है, हिन्दी के किन-किन साहित्यकारों का सम्बन्ध उज्जैन से रहा, उसे खोजिए और उसे सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

विप्लव-गान परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

विप्लव-गान लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि की तान से आकाश में क्या छा जाता है?
उत्तर:
कवि की तान से आकाश में त्राहि-त्राहि का स्वर छा जाता है।

प्रश्न 2.
कवि किसे विचलित होने की बात करता है?
उत्तर:
कवि अंध मूढ़ विचारों की अचल शिला विचलित होने की बात करता है।

प्रश्न 3.
कवि किसकी आँखें खुल जाने की बात करता है?
उत्तर:
कवि नाश! नाश! हो महानाश!! की प्रलयंकारी आँखें खुल जाने की बात करता है।

विप्लव-गान दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि किससे क्या करने के लिए कहता है और क्यों?
उत्तर:

  1. कवि ने कवि से अपनी क्रान्तिकारी कविता की तान सुनाने के लिए कहता है। यह इसलिए कि वह उसे क्रान्ति का सूत्रधार मानता है।
  2. उसकी कविता के गीत युग-परिवर्तन की शक्ति रखते हैं।
  3. उसके गीतों में निर्माण और विनाश की स्थिति को दर्शाने की सामर्थ्य है।
  4. उसमें काव्य-रचना का वह गुण-प्रतिभा है, जो युगों बाद किसी कवि में दिखाई देती है।
  5. वह कवि की विचारधारा के ही समान नवीनता का समर्थक और पुरातनता का घोर विरोधी है।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता में प्रकृति के किन-किन रूपों का चित्रण हुआ है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में प्रकृति के अनेक भीषण और ध्वंसकारी रूपों का चित्रण हुआ है ; जैसे-आकाश में त्राहि-त्राहि का भयंकर शोर सुनाई पड़ना, बादलों का जल उठना, पहाड़ों का राख में मिल जाना, आकाश की छाती फट जाना, तारों का खण्ड-खण्ड हो जाना, अंतरिक्ष में नाश करने वाली ध्वनि का मँडराना, शान्ति दण्ड धारण करने वाले शिव के शान्ति दण्ड का टूट जाना और उनके सिंहासन का थर्रा जाना आदि।

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प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि को सम्बोधित इस कविता में रचनाकार ने कवि को क्रान्ति का सूत्रधार मानते हुए उसे परम्परागत और जीर्ण-शीर्ण समाज को ध्वंस करने के लिए विप्लव-गान के माध्यम से प्रेरित किया है। कवि के गीतों में युग-परिवतन की शक्ति छिपी रहती है। यही नहीं वह अपने गीतों में प्रलय की प्रेरणाएँ भी छिपाए रहता है। इस कविता में कवि ने एक ओर ध्वंस की और दूसरी ओर सृजन की सामर्थ्य को अपनी कविता में केन्द्रीभूत किया है। इसके माध्यम से कवि ने जागृति का गान गाया। इस कविता के रचयिता ने कवि के गीतों और अंध विचारों को समाप्तकरने के लिए आह्वान किया है।

साथ ही गीतों की तान छेड़ने एवं कायरता से परिपूर्ण भावों का उन्मूलन करने के लिए अपनी क्रान्ति भावना का प्रसार करने की प्रेरणा दी है। इस कविता के रचनाकार ने इस कविता में शान्ति के मार्ग से हटकर क्रान्ति का प्रलयकारी आह्वान किया है। इस कविता में प्रकृत की भीषण और ध्वंसकारी छवियों का चित्रण है। इस प्रकार कवि इस गीत में थर्रा देने वाला परिदृश्य निर्मित करने में सफल है।

विप्लव-गान कवि-परिचय

प्रश्न 1.
‘बालकृष्ण शर्मा’ नवीन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जन्म शाजापुर जिला तहसील के भयाना नामक गाँव में 8 दिसम्बर, 1897 को हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा शाजापुर में ही हुई। वहाँ से मिडिल उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने उज्जैन के माधव कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज की शिक्षा समाप्त करके वे माखनलाल चतुर्वेदी और मैथिलीशरण गुप्त के सम्पर्क में आ गए। इसके बाद कानपुर में तत्कालीन महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के आश्रय में रहकर क्राइस्ट चर्च कॉलेज में पढ़ाने लगे। उसी समय वे गाँधीजी के प्रभाव में आ गए। फिर वे उनके सत्याग्रह में कूद पड़े। इससे वे राजनीति में मैदान मारने लगे। उनका निधन 29 अप्रैल, 1960 को हुआ।

रचनाएँ:
‘नवीन’ जी की प्रमुख रचनाएँ कुंकुम, रश्मि रेखा, अपलक, क्वासि, विनोबा, स्तवन, प्राणार्पण हैं। आपने ‘प्रताप’ और ‘प्रभा’ नामक राष्ट्रीय धारा को आगे बढ़ाने वाली पत्रिका का वर्षों तक सम्पादन किया।

महत्त्व:
‘नवीन’ जी का भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य के रूप में हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करवाने में आपका बड़ा योगदान रहा। ‘नवीन’ जी स्वभाव से उदार, फक्कड़, आवेशी किन्तु मस्त तबियत के व्यक्ति थे।

विप्लव-गान पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’-विरचित कविता ‘विप्लव-गानं’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’-विरचित कवितां ‘विप्लव गान’ क्रान्ति का स्वर फूंकने वाली कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है –

कवि ने कवि को संबोधित करते हुए उसे क्रान्ति का अग्रदूत बताकर समाज में उलट-फेर कर देने के लिए आह्वान किया है। कवि को उत्साहित करते हुए कह रहा है-वह ऐसी गीतों की रचना कर गुमगुनाए कि प्राणों के लाले पड़ जाएँ, नाश और सत्यानाश का धुआँधार संसार में छा जाए। भस्मसात सब कुछ हो जाए, पाप-पुण्य का भेद मिट जाए, आकाश का वक्षस्थल फट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ, कायरता काँपने लगे, रूढ़ियाँ समाप्त हो जाएँ, अन्धविश्वास की अटलता डगमगा जाए, अन्तरिक्ष में नाश करने वाली बिजली की तड़क होने लगे, नियमों-उपनियमों के सामाजिक बंधन टूट जाएँ, विश्वम्भर की पोषक की वीणा के.तार चुप हो जाएँ, शान्ति का दण्ड टूट जाए, शंकर का सिंहासन काँप उठे और चारों ओर नाश-नाश और महानाश की प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित हो जाए।

संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या विप्लव-गान

प्रश्न 1.
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ-जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए-एक हिलोर उधर से आए।
प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि त्राहि रव नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए,
बरसे आग, जलद जल जाए, भस्मसात भूधर हो जाएँ
पाप-पुण्य सदसद्भावों की, धूल उड़ उठे दाएँ-बाएँ
नभ का वक्ष-स्थल फट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।

शब्दार्थ:

  • उथल-पुथल – परिवर्तन।
  • तान – स्वर, लय।
  • प्राणों के लाले पड़ जाना – (मुहावरा) जान खतरे में पड़ जाना।
  • रव – ध्वनि।
  • नभ – आकाश।
  • जग – संसार।
  • जलद – बादल।
  • भस्मसात – राख में मिल जाना।
  • भूधर – पहाड़।
  • वक्षस्थल – छाती।
  • टूट-टूक – टुकड़े-टुकड़े।

प्रसंग:
यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक’ हिन्दी सामान्य भाग-1′ में संकलित और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’-विरचित ‘विप्लव-गान’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने कवि को सम्बोधित करते हुए उसे महान क्रान्तिकारी कविता की रचना करने के लिए समुत्साहित किया है। इस विषय में कवि ने कवि को सम्बोधित करते हए कहा है कि –

व्याख्या:
हे कवि, तुम कुछ ऐसी श्रेष्ठ और अद्भुत व बेजोड़ काव्य की रचना करके उसकी तान छेड़ों कि उसे सुनकर चारों ओर अपूर्व परिवर्तन क्रान्ति आ जाए। उससे क्रान्ति की हिलोरें कभी इधर से तो कभी उधर से आने लगें। इस प्रकार तुम अपनी कविता की ऐसी-ऐसी तान सुनाओ कि प्राणों के सब ओर लाले पड़ जाएँ और हाहाकार धरती से आकाश तक मचने लगे। चारों ओर भयंकर दृश्य ऐसे होने लगे कि नाश और सत्यानाश का धुआँधार हर जगह छा जाए। आग इस प्रकार बरसने लगे कि बादल खाक हो जाए और पहाड़ राख में मिल जाए। कभी इधर तो कभी उधर पाप-पुण्य के सत्य और असत्य भरे भावों की धूल-बंक्डर उड़ने लगे। आकाश की छाती फटने लगे और तारे खण्ड-खण्ड होने लगें। इस प्रकार हे कवि! तुम कुछ ऐसी तान छेड़ों की चारों और अपूर्व परिवर्तन (क्रान्ति) आ जाए।

विशेष:

  1. भाषा में ओज है और प्रवाह है।
  2. क्रान्तिकारी स्वर है।
  3. मुहावरेदार शैली है।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. पुनरुक्ति प्रकाश (त्राहि-त्राहि) और मानवीकरण अलंकार (नभ का वक्षस्थल) है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. प्रस्तुत पयांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. कवि कवि को किस रूप में देखना चाहता हैं?

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने क़वि को एक अभूतपूर्व तान छेड़ने के लिए कहा है, जससे चारों ओर महान उथल-पुथल मच जाए। इसे चित्रित करने के लिए प्रयुक्त हुए भाव बड़े ही सशक्त और ओजस्वी हैं। उनके अनुसार भाषा का चयन भी कम प्रभावशाली नहीं है। भावों को हृदयस्पर्शी बनाने वाली मुहावरेदार शैली का प्रयोग अधिक सुन्दर रूप में है। बिम्ब, प्रतीक और योजना भावों के अनुसार आकर्षक हैं।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य सरल किन्तु अद्भुत है। भावों की ओजस्विता में क्रमबद्धता, प्रवाहमयता और सरसता है। रोचकता के साथ-साथ भावोत्पादकता इसकी सर्वप्रधान विशेषता है। कुछ तान सुनाने के कथ्य को उथल-पुथल मचा देने वाले भावों की योजना निश्चय ही चमत्कार उत्पन्न कर रही है।

3. कवि कवि को क्रान्ति के सूत्रधार के रूप में देखना चाहता है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. कवि की तान से मचने वाले उथल-पुथल किस प्रकार के हैं?
  3. यह उथल-पुथल किस तरह से होनी चाहिए?

उत्तर:

  1. कवि-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कविता-विप्लवगान।
  2. कवि की तान से मचने वाला उथल-पुथल प्रलयंकारी है।
  3. यह उथल-पुथल निरन्तर और चारों ओर से होना चाहिए।

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प्रश्न 2.
माता की छाती का अमृतमय पय कालकूट हो जाए,
आँखों का पानी सूखे, वे शोणित की घुटें हो जाए,
एक ओर कायरता काँपे, गतानुगति विगलित हो जाए,
अन्धे मूढ़ विचारों की वह, अचल शिला विचलित हो जाए,
और दूसरी ओर कँपा देने वाला गर्जन उठ धाए,
अन्तरिक्ष में एक उसी नाशक तर्जन की ध्वनि मँडराए,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।

शब्दार्थ:

  • पय – दूध।
  • कालकूट – जहर।
  • शोणित – खून।
  • गतानुगति – लीक पर चलना, पिछलग्गू होना, रूढ़िवादी होना।
  • विगलित – पिघलना, समाप्त होना।
  • मूढ़ – मूर्ख।
  • अचल – निश्चल, स्थिर, जो गतिमाम न हो।
  • शिला – विशाल पत्थर।
  • तर्जन – तड़कना।

प्रसंग: पूर्ववत्!

व्याख्या:
हे कवि! तुम ऐसी तान छेड़ो कि जिसे सुनकर चारों ओर सब कुछ उलट-पुलट हो जाए। माता का अमृतमय दूध भले जहूर हो जाए। आँखों का पानी सूखकर भले ही इनकी चूट में बदल जाए। इसके बावजूद तुम्हारी तान ऐसी हो कि उससे कायरता काँप उठे। सभी प्रकार की रूढ़ियाँ समाप्त हो जाएँ। अंधविश्वास और मूर्खतापूर्ण विचारों की अटल और स्थिर विशाल पत्थर विचलित हो जाए। दूसरी ओर कँपकँपी पैदा कर देने वाला गर्जन होने लगे। यही नहीं, अंतरिक्ष में भी उसी प्रकार का नाश करने वाला तर्जन की ध्वनि मँडराते लगे। हे कवि! इस प्रकार की उथल-पुथल मचाने वाली तान अब तुम जल्द ही छेड़ दो।

विशेष:

  1. भाषा में प्रभाव है और आज है।
  2. शैली ‘भावात्मक है।
  3. भयानक रस का संचार है।
  4. ‘गतानुगति विगलित’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. बिम्ब, प्रतीक और योजना यथास्थान हैं।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भावं क्या है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में क्रान्तिकारी परिवर्तन की भयानकता को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। इसके लिए प्रस्तुत हुए भावों की योजना प्रभावशाली रूप में है। चूंकि कथ्य भयानक परिवर्तन का है, फलस्वरूप तदनुरूप भाषा-शैली को अपनाया गया है। शब्द-योजना उच्चस्तरीय तत्सम शब्द की है।

2. प्रस्तुत पद्यांश में साधारण क्रान्तिकारी परिवर्तन की नहीं, अपितु भयानक क्रान्तिकारी परिवर्तन की भाव-योजना प्रस्तुत की गई है। यह प्रस्तुति बहुत ही ओजमयी, प्रवाहमयी और उत्साहमयी है। इसमें निरन्तरता, क्रमबद्धता, विविधता और मुख्यता जैसी अद्भुत विशेषताएँ हैं। फलस्वरूप यह अधिक रोचक और आकर्षक बमै गई है।

3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-भयानक और विविधतापूर्ण क्रान्तिकारी दृश्य का हृदयस्पर्शी चित्रण करना।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश में मुख्य रूप से किस पर बल दिया गया है?

उत्तर:

  1. कवि-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कविता-‘विप्लव गान’
  2. प्रस्तुत पद्यांश में मुख्य रूप से सामाजिक रूढ़ियों और अन्ध-विश्वासों को समाप्त करने पर बल दिया गया है।

प्रश्न 3.
नियम और उपनियमों के ये बन्धन टूक-ट्रक हो जाएँ,
विश्वम्भर की पोषक वीणा के सब तार मूक हो जाएँ,
शान्ति-दण्ड टूटे-उस महारुद्र का सिंहासन थर्राए
उसकी पोषक श्वासोच्छवास, विश्व के प्रागंण में घहराए,
नाश! नाश!! हो महानाश!!! की प्रलयंकारी आँख खुल जाए,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए!!

शब्दार्थ:

  • टूक-टूक – टुकड़े-टुकड़े।
  • विश्वम्भर – संसार का पालन-पोषण करने वाला, ईश्वर।
  • मूक – मौन, चुप।
  • महारुद्र – भगवान शंकर।
  • प्रांगण – आँगन, सहन।

प्रसंग – पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे कवि! तुम्हारी ऐसा ज्ञान हो जिसे सुनकर सभी प्रकार के सामाजिक बंधन, चाहे वे किसी छोटे-छोटे नियमों से बँधे हों या बड़े-बड़े नियमों से बँधे, वे एक-एक करके खण्ड-खण्ड हो जाएँ। इसे देखकर संत का भरण-पोषण करने वाले ईश्वर की पोषण करने वाली वीणा के तार मौन हो जाएँ। इसी प्रकार महाशिव का शान्ति दण्ड टूटकर बिखर जाए और उनका सिंहासन काँप उठे। उनका पोषण करने वाला श्वासोच्छवास संसार के प्रांगण (आँगन) में घहराने लगे। फिर पूरी तरह से नाश-नाश
और महानाश ही की भयंकर ध्वनि गूंज उठे। इस तरह चारों ओर ऐसा भयानक दृश्य उपस्थित हो जाए, मानो प्रलयंकारी आँखें खुल गई हों।

विशेष:

  1. भाषा धारदार है।
  2. उच्चस्तरीय तत्सम शब्दों की प्रधानता हैं।
  3. शैली चित्रमयी है।
  4. भयानक रस का संचार है।
  5. क्रान्तिकारी स्वर है।
  6. सामाजिक परिवर्तन का आग्रह है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘शान्ति दण्ड टूटे, उस महारुद्र का सिंहासन थर्राए।’ से कवि का क्या आशय है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सभी प्रकार के सामाजिक बंधनों को तोड़ने के लिए समूल क्रान्तिकारी परिवर्तन का उल्लेख किया है। इसके लिए कवि प्रतीकात्मक और दृष्टान्त शैली के द्वारा जो चित्र खींचा है, वह न केवल आकर्षक है, अपितु भाववर्द्धक भी है। चूँकि भयानक और अपूर्व क्रान्तिकारी परिवर्तन का विषय है। इसलिए इसे नपे-तुले, ठोस और सटीक शब्द को परोसकर भयानक रस से रोचक बना दिया गया है।

2. प्रस्तुत पद्यांश के भावों की प्रस्तुति विषयानुसार है। भयानक और अपूर्व क्रान्तिकारी परिवर्तन को चित्रांकित करने के लिए भावों की योजना प्रसंगानुसार है। उपयुक्तता और सटीकता को लिए हुए ये भाव क्रमानुसार और कथ्यानुसार हैं। कुल मिलाकर प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य देखते ही बनता है।

3. ‘शान्ति दण्ड टूटे, उस महारुद्र का सिंहासन थर्राए’ से कवि का आशय है-क्रान्ति का स्वरूप प्रलयंकारी हो जिससे वह असम्भव को सम्भव कर सके।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश में किसका चित्रण हुआ है?

उत्तर:

  1. कवि-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कविता-‘विप्लव गान’।
  2. प्रस्तुत पद्यांश में प्रकृति के भीषण और ध्वंसकारी स्वरूपों का चित्रण हुआ है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 भगत जी

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 भगत जी (कहानी, रामकुमार ‘भ्रमर’)

भगत जी पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

भगत जी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कहानीकार ने भगत जी को किन दुर्बलताओं से ऊँचा कहा है?
उत्तर:
कहानीकार ने भगत जी को मानवोचित दुर्बलताओं से ऊँचा कहा है।

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प्रश्न 2.
भगत जी पढ़े-लिखे लोगों से क्यों अच्छे थे?
उत्तर:
भगत जी पढ़े-लिखे लोगों से अच्छे थे, क्योंकि वे उनसे अधिक समझदारी और बुद्धिमानी से बात करते थे।

प्रश्न 3.
कुंभाराम, भगत जी को नास्तिक क्यों समझता था?
उत्तर:
कुंभाराम के साथ भगत जी मन्दिर नहीं गए थे। इसलिए वह उन्हें नास्तिक समझता था।

प्रश्न 4.
भगत जी मन्दिर क्यों नहीं गए थे?
उत्तर:
भगत जी को बीमार दीना की दवा लेने शहर जाना था। इसलिए वे मन्दिर नहीं गए।

प्रश्न 5.
कहानी का शीर्षक ‘भगत जी’ क्यों रखा गया है?
उत्तर:
कहानी का शीर्षक ‘भगत जी’ रखा गया है। वह इसलिए कि इसमें भगत जी के ही चरित्र को उभारा गया है।

भगत जी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भगत जी का गाँववालों के साथ किस तरह का व्यवहार था?
उत्तर:
भगत जी का गाँववालों के साथ अपनापन, आत्मीय, भाईचारा, सहानुभूति, सदाशयता और मानवीयता का व्यवहार था।

प्रश्न 2.
भगत जी का नाम भगत जी क्यों पड़ा?
उत्तर:
भगत जी.का नाम भगत जी पड़ा। यह इसलिए कि वे नाम के भगत जी नहीं, बल्कि इन्सानियत के भगत थे।

प्रश्न 3.
मानव-सेवा ही सच्ची ईश्वर-सेवा है। ‘कथावस्तु के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
‘मानवीय-सेवा’ ईश्वर की सच्ची सेवा है। ऐसा इसलिए कि ईश्वर दीन-दुखियों की सेवा और सहायता करने से प्रसन्न होता है। उसे दिखावटी पूजा-पाठ पसन्द नहीं। उसे यह तो कतई पसन्द नहीं कि दीन-दुखियों की सहायता और सेवा न करके कोई उसकी पूजा-भक्ति करे। ऐसा इसलिए कि इस तरह की पूजा-भक्ति सच्ची नहीं कही जा सकती है। इसके विपरीत मानव-सेवा करना ईश्वर सेवा है। इससे चारों ओर सुख और शान्ति होती है।

प्रश्न 4.
भगत जी के चरित्र की कौन-कौन-सी विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
भगत जी के चरित्र की कई विशेषताएँ थीं ; जैसे-मानवीयता, सदाशयतापरोपकारिता, आत्मीयता, सरलता, निष्कपटता, कर्मठता, कर्तव्यपरायणता-सहनशीलता निराभिमानी आदि।

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प्रश्न 5.
कुंभाराम स्वयं को आस्तिक क्यों मानता था?
उत्तर:
कुंभाराम स्वयं को आस्तिक मानता था। यह इसलिए कि –

  1. उसने मन्दिर बनवा दिया था।
  2. वह रोज स्नान करके मन्दिर जाता था और रास्ते में चिल्ला-चिल्लाकर श्लोक पढ़ता जाता था।
  3. उसने अपने गले में तुलसी, रुद्राक्ष और अनेक मालाएँ डाल रखी थीं। 4. उसने अपने माथे पर त्रिपुंड लगा रखी थी।

भगत जी भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.

  1. पतझर के बूढ़े पेड़ की तरह कृशकाय।
  2. बसन्त के पहले दिन जैसे खिलती लजीली मुस्कान।
  3. अटकी पर कौन भगत नहीं हो जाता।

उत्तर:

1. पतझर से पेड़-पौधों के रूप फीके पड़ जाते हैं। उनका स्वरूप खोखला और शक्तिहीन दिखाई देने लगता है। उन्हें देखने से लगता है कि उनके बचपन और जवानी के दिन बीत गए हैं। अब वे वृद्धावस्था में आ गए हैं। फलस्वरूप उनमें कोई आकर्षण और सौन्दर्य नहीं रह गया है।

2. बसन्त को ऋतुराज भी कहा जाता हैं। इसका अर्थ है-ऋतुओं का राजा। बसन्त के आते ही मौसम सुहावना होने लगता है। धूप मधुर और सरसता में डूबकी लगाने लगती है। वह खिलती हुई युवती की तरह अपने आकर्षण को बढ़ाने लगती है। उसे देखने से ऐसा लगता है मानो कोई सुन्दर युवती लज्जा से भरी हुई मधुर मुस्कान बिखेर रही है।

3. सच्चा भगत बनना आसान नहीं है। यह इसलिए कि इसमें ऐसी-ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जो कभी किसी को भी विचलित कर देने वाली होती हैं। लेकिन जो सच्चा भगत होता है, वह किसी भी कठिनाई का सामना करते हुए अपने जीवनोद्देश्य पर निरन्तर बढ़ता चला जाता है। इस प्रकार कहने-सुनने में भगत बनना तो आसान है। लेकिन होना वास्तव में इतना ही कठिन है। जीवन की उलझनों और जीवन के दायित्वों से पीछा छुड़ाते के लिए तो लोग भगत बन जाते हैं। यह किसी के लिए आसान है।

भगत जी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित लोकोक्ति/मुह्मवरों का अर्थ लिखकर वाक्य बनाओ –
आग की तरह भभक उठना, शर्म से सिर झुकाना, आगे नाथ न पीछे पगहा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 भगत जी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय अलग करो –
दानवता, भोलापन, मानवता, समझदारी, गहराई, मानसिक।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 भगत जी img-2

प्रश्न 3.
पाठ में आए देशज शब्दों को छाँटकर उनके मानक रूप लिखिए।
उत्तर;
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 17 भगत जी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए।

  1. भगतजी दुर्बलताओं से मनावोचित उठे हुए थे।
  2. भगत जी सबिमझदार बुद्धिमतीपूर्ण बातें करते हैं।
  3. भगत जी ने एक गाय पाल रखी है।
  4. पश्चाताप और ग्लानि से उसका अवरुद्ध कण्ठ रुद्ध हो गया।

उत्तर:

  1. भगत जी मानवोचित दुर्बलताओं से उठे हुए थे।
  2. भगत जी समझदारी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करते हैं।
  3. भगत जी ने एक गाय पाल रखी है।
  4. पश्चाताप और ग्लानि से उसका कण्ठ अवरुद्ध हो गया।

भगत जी योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
कहानी का नाट्य रूपांतरण कर वार्षिक उत्सव में अभिनय करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल कर।

प्रश्न 2.
आपके आस-पास के वातावरण से कहानी के प्रमुख पात्र के व्यक्तित्व का व्यक्ति खोजिए, और उसके चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल कर।

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प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र में प्रचलित कहावतों को संगृहीत कर उसे सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्न छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल कर।

भगत जी परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

भगत जी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भगत जी का किसमें अगला नाम है?
उत्तर:
भगत जी का सौ फीसदी गौतम, गाँधी की लिस्ट’ में अगला नाम है।

प्रश्न 2.
भगत जी को क्या चाह है?
उत्तर:
भगत जी को चाह है-खिले गुलाब की नाजुक पंखुड़ियों जैसे हँसते-खेलते बच्चों की।

प्रश्न 3.
भगत जी किससे परेशान रहे?
उत्तर:
भगत जी से जब कुंभाराम ने मन्दिर चलने के लिए कहा, तो उसके उत्तर में उन्होंने कहा था-मैंने कौन पाप किए हैं? वे अपनी इस बात के व्यंग्य नहीं समझ पाने से कई दिनों तक परेशान रहे।

प्रश्न 4.
कुंभाराम के नास्तिक कहने पर भगत जी ने क्या कहा?
उत्तर:
कुंभाराम के नास्तिक कहने पर भगतजी ने उससे कहा-“तुम मुझे नास्तिक इसलिए समझते हो, कुंभाराम कि तुम्हारी तरह मेरे माथे पर चंदन और गले में मालाएँ नहीं हैं। करें।

भगत जी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भगत जी की चाह और उत्कण्ठा क्या है और क्यों?
उत्तर:
भगत जी की चाह है, खिले गुलाब की नाजुक पंखुड़ियाँ जैसे हँसते-खेलते बच्चों की। गाँव की नदी और बदरंग बस्ती में काले और बदरंग बच्चों के बीच रहने की। उन्हें उत्कण्ठा है-हरी-भरी लहलहाती धरती की शान्ति की। यह सब इसलिए कि वे उनमें उतने ही खुश हैं, जितना खुश भोर का सूरज दिखाई देता है।

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प्रश्न 2.
भगत जी कुंभाराम के कहने पर मन्दिर जाने में क्यों असमर्थ थे?
उत्तर:
भगत जी कुंभाराम के कहने पर मन्दिर जाने में असमर्थ थे। यह इसलिए कि उस समय उनके हाथ में केवल दूध का एक गिलास था। वे उसे मन्नू के घर देने जा रहे थे। उसका बच्चा बीमार था। वह अपनी गरीबी के कारण बच्चे को दूध नहीं पिला सकता था। उस दिन उन्हें दीना की दवा लेने ईक्कीस मील चलकर शहर भी जाना था। अगर वे नहीं जाते तो शायद दीना मर जाता। फिर उसके बाल-बच्चों का क्या होता!

प्रश्न 3.
‘भगत जी’ कहानी के केन्द्रीय भावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रामकुमार ‘भ्रमर’-लिखित ‘भगत जी’ कहानी मानवता के विस्तार एवं प्रसार की कहानी है, जिसमें भगत जी के जीवन के माध्यम से मानव-मूल्यों को स्थापित किया गया है। भगत जी का चरित्र साधारणता में असाधारणता का बोध कराता है जिसमें आत्मीयता के साथ मानवीयता जीवित है। रचनाकार ने रोचक एवं सटीक शब्दों में भगतजी के व्यक्तित्व, कार्य व्यवहार एवं सदाशयता की चर्चा की है। भगत जी इन्सानियत की कीमत पर मान-मर्यादा की चिन्ता नहीं करते, उन्हें ज्ञानी होने का दर्प नहीं, सबके दुख को अपना दुःख मानकर पीड़ा का अनुभव करना वह अपना कर्त्तव्य समझते हैं। वे दीन-दुखी की दवा लेने इक्कीस मील चलकर शहर जाते हैं। कहानी में वे नाम के भगत जी नहीं वरन इन्सानियत के भगत दिखाई देते हैं।

भगत जी लेखक परिचय

प्रश्न 1.
राम कुमार ‘भ्रमर’ का संक्षित जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
श्री रामकुमार ‘भ्रमर’ का जन्म मध्य-प्रदेश के ग्वालियर जिले में 2.फरवरी, 1938.को हुआ था। आरंभिक शिक्षा समाप्ति के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे लेखन के क्षेत्र में कूद पड़े। आरंभ में उन्होंने पत्रकारिता लेखन में अपने को लगाया। इसके बाद 1969 से. उन्होंने स्वतंत्र लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया।

रचनाएं:
‘भ्रमर’ जी ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने गद्य की प्रायः सभी विधाओं में लिखा है-कहानी, उपन्यास, नाटक, व्यंग्य संस्मरण, रेखाचित्र आदि। परन्तु इसमें उनका कथाकार का रूप प्रधानं है। ‘भ्रमर’ जी ने महाभारत तथा श्रीकृष्ण के जीवन को अपने साहित्य-सृजन का विषय बनाया जो क्रमशः 12 तथा 10 खण्डीय उपन्यासों के रूप में प्रकाशित हुए हैं। भ्रमर जी की अन्य प्रमुख रचनाएँ कच्ची-पक्की दीवारें, सेतुकथा, फौलाद का आदमी आदि हैं। ..

महत्त्व:
‘भ्रमर’ जी की रचनाएं बहुमुखी हैं। उनमें राष्ट्रीयता के साथ सांस्कृतिक, सामाजिक और मानवता के स्वर प्रखर रूप में हैं। उनमें आधुनिक मूल्यों के साथ-साथ अतीत कालीन मूल्यों को व्याख्यायित करने की पूरी क्षमता दिखाई देती है। अपनी असाधारण साहित्यिक देन के फलस्वरूप उन्हें अनेक प्रकार से पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है। उन्हें उत्तर-प्रदेश शासन द्वारा लगातार दो बार ‘अखिल भारतीय प्रेमचन्द पुरस्कार’ प्रदान किया गया है। उनकी अनेक-अनेक कहानियों और उपन्यासों पर कई फिल्में बन चुकी हैं। इसी प्रकार कई प्रकार के धारावाहिक भी समय-समय पर प्रसारित किए जा चुके हैं। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि ‘भ्रमर’ जी हिन्दी साहित्य के अधिक सम्मानित व प्रतिष्ठित रचनाकार हैं।

भगत जी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
रामकुमार ‘भ्रमर’ लिखित कहानी ‘भगत’ जी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
रामकुमारं ‘भ्रमर’ लिखित कहानी ‘भगत जी’ मानवता को चित्रित करने वाली एक सामाजिक कहानी है। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है –

भगत जी गाँधी, गौतम या ईसा मसीह की तरह घर-घर के आदर्श चित्र तो नहीं थे, फिर भी उनका नाम और महत्त्व अपने आस-पास में कम नहीं था। वे चमत्कारी पैगम्बर न होकर मानवता के जीते-जागते प्रमाण थे। इस प्रकार वे न अधिक शिक्षित थे और न कोई महान लेखक ही। फिर भी काफी विद्वान और समझदार थे। वे नेता-अभिनेता तो नहीं थे लेकिन धरती और धरती के धन बच्चे उन्हें बेहद प्रिय थे। इस प्रकार के अद्भुत गुणों के कारण वे भगत जी के नाम से प्रसिद्ध हो गए। कुंभाराम ठेकेदार ने गाँव में एक मन्दिर और धर्मशाला बनवाया था।

वह स्नान करके मन्दिर जाते समय नारे लगा रहे सत्तारूढ़ दल के विरोधियों की तरह जोर-जोर से श्लोक पढ़ता था। एक दिन भगत जी को सामने देखा तो उसने उन्हें मन्दिर चलने के लिए कहा। भगत जी ने कहा, “मैंने कौन पाप किए हैं?” लेकिन वे अपनी इस बात के व्यंग्य नहीं समझ पाए। कुंभाराम की नाराजगी को दूर करने के लिए उन्होंने उससे बात की तो उसने कह दिया कि वे नास्तिक हैं। भगत जी ने उसे समझाया कि वे उसे इसलिए नास्तिक लग रहे हैं कि उसकी तरह उनके माथे पर चन्दन और गले में मालाएँ नहीं हैं। इसे सुनकर उसने उन्हें वहाँ से चले जाने के लिए कहा तो उन्होंने उसे मनाने की कोशिश की।

फिर उसके पूछने पर उन्होंने उसे बतलाया कि वे उस दिन मन्दिर जाने के लिए इसलिए मना किए थे कि उन्हें गरीब दीना की दवा लेने इक्कीस मील चलकर शहर जाना था। अगर वह मर जाता तो उसके बाल-बच्चों का क्या होता। इक्कीस मील पैदल की ही तो बात थी। इसे सुनकर कुंभाराम बहुत लज्जित हुआ। उसे लगा कि वह मन्दिर पहुँचकर। ईश्वर की मूरत की जगह भगत जी को देख रहा है। पश्चाताप और ग्लानि से वह कुछ नहीं बोल पाया। उधर भगत जी उससे कह रहे थे-“तुम मेरे मन्दिर न जाने पर नाराज हो गए? चलो, मैं अभी मन्दिर चलता हूँ। चलो न।” उन्होंने कुंभाराम का हाथ पकड़कर खींचा, लेकिन वह तो बुत की तरह चुप था।

भगत जी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
भगत जी न तो अधिक पढ़े थे, न उन्होंने कोई पुस्तक ही लिखी और न उन्होंने मानवता और दानवता की फिलासफी पर किसी चौराहे पर कोई लेक्चर ही दिया। इसके बावजूद भगत जी कई पढ़े-लिखे लोगों से अच्छे हैं, और अन्य लोगों से अधिक समझदारी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करते हैं।

शब्दार्थ:

  • फिलासफी – दर्शनशास्त्र।
  • लेक्चर – भाषण।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित और श्री रामकुमार ‘भ्रमर’-लिखित कहानी ‘भगत जी’ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने कहानी के सर्वमुख पात्र भगत जी का महत्त्वांकन करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
भगत जी की अनेक विशेषताएँ थीं। वे देखने में साधारण होते हुए भी असाधारण थे। उन्होंने कोई उच्च स्तरीय शिक्षा नहीं प्राप्त की। उन्होंने कोई पुस्तकीय लेखन-कार्य नहीं किया। यह भी कि वे बहुत बड़े दार्शनिक और विचारक भी नहीं थे। फलस्वरूप उन्होंने बड़ी-बड़ी सभाओं में किसी प्रकार के दार्शनिक या सामाजिक-धार्मिक ही कोई विचार व्यक्त किए थे। ऐसा होने के बावजूद भगत जी किसी प्रकार के शिक्षित लोगों से महान और श्रेष्ठ थे। यही नहीं, उनमें समझदारी, बुद्धिमानी और दुनियादारी अनुमान से कहीं अधिक बढ़कर थी।

विशेष:

  1. भगत जी की असाधारण विशेषताओं का उल्लेख किया गया है।
  2. प्रचलित तत्सम और अंग्रेजी के प्रचलित शब्द हैं।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. भगत जी की क्या विशेषता है?
  2. भगतजी औरों से क्यों श्रेष्ठ हैं?

उत्तर:

  1. भगत जी अशिक्षित होने के बावजूद अधिक ज्ञानी थे।
  2. भगत जी औरों से कहीं अधिक व्यावहारिक हैं?

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
भगत की उपर्युक्त विशेषताएँ किस प्रकार की हैं?
उत्तर:
भगत जी की उपर्युक्त विशेषताएँ प्रेरक रूप में हैं।

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प्रश्न 2.
कुंभाराम का सिर शर्म से झुक गया। उसे लगा कि वह मन्दिर में पहुँच गया है और ईश्वर की मूरत की जगह भगत जी को देख रहा है। पश्चाताप और ग्लानि से उसका कण्ठ अवरुद्ध हो गया। भगत जी कहे जा रहे थे, “तुम मेरे मन्दिर न जाने पर नाराज हो गए? चलो, मैं अभी मन्दिर चलता हूँ। चलो न!” उन्होंने कुंभाराम का हाथ पकड़कर खींचा, पर कुंभाराम बुत की तरह मौन था।

शब्दार्थ:

  • मूरत – मूर्ति।
  • ग्लानि – दुख।
  • अवरुद्ध – रुकना।
  • बुत – प्रतिमा, मूर्ति।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें उस समय का उल्लेख किया गया है। जब भगत जी ने कुंभाराम से मन्दिर न जाने का कारण बतलाया। उससे चकित हुए कुंभाराम की दशा का चित्रांकन करते हुए लेखक ने कहा है कि –

व्याख्या:
मन्दिर न जाने का कारण जब भगत जी ने कुंभाराम को बतलाया तो उसने हैरान होते हुए कहा कि इतनी ठण्ड में वे दीना की दवा लेने इक्कीस मील चलकर शहर गए। उसे सुनकर भगत जी ने मुस्कराते हुए उससे कहा कि क्या हुआ? अरे, अगर दीना मर जाता तो उसके बाल-बच्चों का क्या होता? इक्कीस मील पैदल की ही तो बात थी। भगत जी की उन बातों को सुनकर कुंभाराम बहुत लज्जित हुआ। उसे उस समय यह अनुभव हुआ कि वह और कहीं नहीं, अपितु मन्दिर में ही खड़ा है और मन्दिर में वह भगवान की मूर्ति को नहीं; अपितु उनके स्थान पर भगत जी के ही दर्शन कर रहा है।

इससे उसे बहुत बड़ा पश्चाताप हुआ और ग्लानि भी। इससे उसका कण्ठ न खुल सका। दूसरी ओर भगत जी अपने पवित्र भावों में बहे जा रहे थे और कहे जा रहे थे कि वह उनके मन्दिर न जाने से नाराज हो गया है, तो कोई चिन्ता की बात नहीं। उसकी नाराजगी दूर करने के लिए वे अभी उसके साथ मन्दिर चलने के लिए तैयार हैं। इसलिए वह अब देर न करे। अभी-अभी वह उनके साथ चले। इस प्रकार भावुक होकर के भगत जी ने कुंभाराम का हाथ पकड़ तो लिया था लेकिन कुंभाराम मूर्ति की तरह चुपचाप रहा।

विशेष:

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. सम्पूर्ण कथन मर्मस्पर्शी है।
  3. भक्ति रस का प्रवाह है।
  4. भावात्मक और चित्रात्मक शैली है।
  5. बुत से कुंभाराम की उपमा दिए जाने से उपमा अलंकार है।
  6. वह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर .
प्रश्न

  1. कुंभाराम का सिर शर्म से क्यों झुक गया?
  2. वह भगत जी को ईश्वर की मूर्ति के रूप में क्यों देख रहा था?

उत्तर:

  1. कुंभाराम का सिर शर्म से झुक गया। यह इसलिए कि वह भगत जी की मानवता और परोपकारिता के अद्भुत गुणों से अनजान था। वह उन्हें केवल नास्तिक समझता था और अपना विरोधी।
  2. वह भगत जी को ईश्वर की मूर्ति के रूप में देख रहा था। यह इसलिए कि वह एक ऐसे महान आत्मा के रूप में दिखाई दे रहे थे, जो ईश्वर के बहुत करीब पहुँच चुकी है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. कुंभाराम बुत की तरह क्यों मौन था?
  2. उपर्युक्त गद्यांश से भगत जी का कौन-सा चरित्र उभरकर आया है?

उत्तर:

1. कुंभाराम बुत की तरह मौन था। यह इसलिए कि वह भगत जी के मानवीय गुणों को न पहचान उन्हें हेय और नास्तिक समझ लिया था। जब उनके मानवीय गुण-चरित्र से वह परिचित हुआ, तब उसे भारी पश्चाताप और ग्लानि हुई। इससे उसकी बोलती बन्द हो गई।

2. उपर्युक्त गद्यांश से भगत जी का आत्मीय और मानवीय चरित्र उभरकर आया है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश (पत्र, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’)

अंतिम संदेश पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

अंतिम संदेश लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अंतिम संदेश’ पत्र किसने और किसे लिखा है?
उत्तर:
‘अंतिम संदेश’ पत्र राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी पूजनीय माँ को लिखा है।

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प्रश्न 2.
यह पत्र कब और कहाँ लिखा गया है?
उत्तर:
यह पत्र 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से लिखा गया है।

प्रश्न 3.
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल से पहले उनके कौन-कौन से साथी शहीद हुए थे?
उत्तर:
शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ से पहले उनके साथी रोशन, लाहड़ी और अशफाक शहीद हुए थे।

प्रश्न 4.
राम प्रसाद बिस्मिल किसके अनुयायी थे?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे।

अंतिम संदेश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने पत्र में अपने शत्रु को क्षमा करने के कौन से दो कारण बताए हैं?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने पत्र में अपने शत्रु को क्षमा करने के निम्नलिखित दो कारण बताए हैं –

  1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं।
  2. महर्षि दयानंद का अनुयायी हूँ, जिन्होंने अपने जहर देने वाले को अपने पास से रुपये दिये थे कि वह भाग जाए।

प्रश्न 2.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को निम्नलिखित कार्य करना चाहिए –

  1. गाँव-गाँव में जाकर ग्रामीणों खासतौर से किसानों की दशा को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
  2. मजदूरों और रोजमर्रा की जिंदगी जीने वालों की जीवन-दशा को सुखद बनाने का प्रयास करना चाहिए।
  3. सामान्य जन को सुशिक्षा देनी चाहिए।
  4. दलितों के उद्धार के लिए काम करना चाहिए।
  5. चारों ओर सुख-शान्ति और भाईचारे का वातावरण बनाना चाहिए।
  6. प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
वे क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों के साथ कैसा व्यवहार करने को कहते हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों के साथ क्षमा और दया का व्यवहार करने को कहते हैं। यह इसलिए कि वे इसे सर्वथा उचित और अपने प्रति न्यायपूर्ण मानते हैं। वे यह भी मानते हैं कि इससे उनकी आत्मा को सुख और शान्ति प्राप्त होगी।

प्रश्न 4.
अपनी माता जी को एक पत्र लिखिए ‘जिसमें एन.सी.सी’, राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर में भाग लेते हुए ग्रामीण क्षेत्र में किए गए कार्यों का वर्णन हो।
उत्तर:

छावनी-अम्बाला
7 – 8 – 2007

पूजनीय माता जी!

सादर प्रणामः
आपका पत्र मिला। पढ़कर प्रसन्नता हुई। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि आपका स्वास्थ्य पहले से बेहतर है।

आजकल मैं एन.सी.सी राष्ट्रीय योजना शिविर में भाग लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहा हूँ। इन क्षेत्रों में गरीबी है, इसके साथ ही अशिक्षा है और संसाधनों की भारी कमी है। गरीबी दूर करने के लिए हम लोग ग्राम प्रधान के माध्यम से जिला अधिकारी व राज्य सरकार को ज्ञापन दे चुके हैं। गाँवों में लघु उद्योग स्थापित करने और कम ब्याज पर ऋण दिलाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। अशिक्षा को दूर करने के लिए अलग-अलग स्थानों पर शिक्षा शिविर चला रहे हैं। संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए श्रमदान के प्रति लोगों में जागृति ला रहे हैं। जिला प्रशासक, ब्लाक प्रमुख और ग्राम प्रधान को ज्ञापन दिए जा चुके हैं। इस प्रकार हम लोग ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।

आशा है, घर में सभी ठीक तरह से होंगे। अगले माह एक-दो दिन की छुट्टी आऊँगा। मुकेश को आशीर्वाद।

आपका स्नेहाकांक्षी
राकेश

सेवा में
श्रीमती रेखा गुप्ता
डी – 83, कमला नगर
दिल्ली – 110007

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प्रश्न 5.
पत्र कितने प्रकार के होते है? प्रत्येक पत्र का एक-एक प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
पत्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. व्यक्तिगत या सामाजिक पत्र
  2. कार्यालयीन पत्र-प्रशासनिक, व्यावसायिक पत्र

पत्र के संबंध में नीचे तालिका दी जा रही है –
पत्र का आरंभ, पत्र समाप्त करने की औपचारिक तालिका –

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-1

1. व्यक्तिगत/सामाजिक पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-2

2. कार्यालयीन पत्र प्रारूप
व्यक्ति द्वारा किसी कार्यालय को लिखा जाने वाला पत्र
आवेदन-पत्र, प्रार्थना-पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-3

3. कार्यालयी पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-4

4. अर्द्धशासकीय पत्र का प्रारूप
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-5

अंतिम संदेश भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.
1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं। इन पंक्तियों की तत्कालीन वातावरण – को दृष्टिगत रखते हुए व्याख्या कीजिए।

2. कोई भी घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए किन्तु करुणा सहित प्रेम भाव का बर्ताव किया जाए। इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
1. उपर्युक्त गद्यांश में ब्रिटिश शासनकालीन भारतीय समाज का उल्लेख किया गया है। इसमें यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि तत्कालीन जन-मानस ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों और हरकतों से भयभीत था। इसलिए उस समय अपने देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने वाले लोग इने-गिने थे, जबकि ब्रिटिश सत्ता के तलवे चाटने वालों की कोई कमी नहीं थी। इससे सारा देश पराधीनता की बेड़ियों से दिनों-दिन और ही कसता जा रहा था। फलस्वरूप आजादी एक दिवास्वप्न बनकर रह गई थी।

2. उपर्युक्त पंक्ति के द्वारा राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह भाव व्यक्त किया है कि ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचारपूर्ण नीतियों व कार्यों से देश का वातावरण बहुत दूषित हो चुका है। इससे परस्पर फूट, घृपा, उपेक्षा और हीनता की दुर्भावना पैदा हो गई है। फलस्वरूप प्रेम, करुणा और ममता जैसे मानवीय गुण गायब हो चुके हैं। अगर यही स्थिति रही तो देश भक्ति और देश-प्रेम का नामोनिशान मिट जायेगा। इससे देश की आजादी के लिए चल रहे प्रयास लटक जायेंगे। फिर देश को आजाद करने-कराने की बात एक सपना बनकर रह जाएगी। इसलिए सभी देशवासियों को खासतौर से कुछ कर गुजरने का दम रखनेवाले नवजवानों को पूरे देश के वर्तमान दूषित वातावरण को करुणा, प्रेम और ममता पूर्ण वातावरण में बदलने के लिए कमर कस लेनी चाहिए।

अंतिम संदेश अपठित गद्यांश

इस गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
चाणक्य ने कहा, ‘दूसरे दीपक को जलाने और पहले दीपक को बुझाने के पीछे कोई सनक या उन्माद की भावना काम नहीं कर रही थी। सच्चाई तो यह है कि जब आप यहाँ आए तो मैं राजकार्य से संबंधित कुछ जरूरी दस्तावेजों की जांच कर रहा था। उस समय जो दीपक जल रहा था उसमें राजकोष के पैसों से तेल डाला गया था। इस समय आप से जो बातचीत करेंगे, वह हमारी निजी होगी। इस कारण मैंने राजकीय दीपक को बुझाकर अपने कमाये हुए धन से खरीदा हुआ दीपक जलाया है।’ सैल्यूकस यह सुनकर दंग रह गए।

प्रश्न.

  1. इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
  2. चाणक्य द्वारा एक दीपक जलाने और दूसरे बुझाने के पीछे क्या भावना थी?
  3. सैल्यूकस चाणक्य का उत्तर सुनकर दंग क्यों रह गए?

उत्तर:

  1. ‘चाणक्य की ईमानदारी’।
  2. चाणक्य द्वारा एक दीपक जलाने और दूसरा बुझाने के पीछे ईमानदारी की भावना थी।
  3. सैल्यूकस चाणक्य का उत्तर सुनकर दंग रह गया। यह इसलिए कि उसे एक महान राजनीतिज्ञ के इस तरह ईमानदार होने की उम्मीद नहीं थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद करते हुए संधि का नाम बताइए –
धर्मात्मा, दलितोद्धार, सज्जन, स्वाधीन, वीरोचित, दिग्गज।।
उत्तर;
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-6

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए तथा प्रयुक्त समास के अन्य दो-दो उदाहरण लिखिए।

  1. फाँसीघर
  2. पीताम्बर
  3. चौराहा
  4. गजानन
  5. माता-पिता
  6. यथा शक्ति।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 16 अंतिम संदेश img-7

प्रश्न 4.
‘ईय’ तथा ‘पन’ प्रत्यय लगाकर चार-चार शब्द बनाइए: जैसे-पूजनीय, उतावलापन।
उत्तर:
‘इय’ प्रत्यय लगाकर चार शब्द-माननीय, वन्दनीय, आदरणीय, और अनुकरणीय।
‘पन’ प्रत्यय लगाकर चार शब्द-कालापन, भोलापन, अपनापन और लड़कपन ।

प्रश्न 5.
‘अन’ और ‘अनु’ उपसर्ग लगाकर चार-चार शब्द बनाइए, जैसे-अनचाहा, अनुयायी।
उत्तर:
‘अन’ उपसर्ग लगाकर चार शब्द-अनजान, अनाहार, अनर्थ और अनंत।
‘अनु’ उपसर्ग लगाकर चार शब्द-अनुमान, अनुसार, अनुचर और अनुराग।

अंतिम संदेश योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी से संबंधित किसी ऐसे प्रसंगों का पता लगाइए जिसमें उन्होंने किसी को हानि पहुँचाने वाले व्यक्ति के प्रति बदले की भावना रखने की जगह उसे क्षमा कर दिया हो।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
क्रांतिकारियों अथवा अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के लिखे अन्य पत्र संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की रचनाओं को संगृहीत कीजिए तथा उन्हें विद्यालय के वार्षिक/सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुनाइए।
अथवा
उनके द्वारा रचित रचनाओं की हस्तलिखित पुस्तिका का प्रकाशन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
जॉतिकारियों से संबधित घटनाओं और प्रसंगों से जुड़े नाटकों को खोजकर या स्वयं तैयार कर उसका अभिनय वार्षिक उत्सव अथवा किसी अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

अंतिम संदेश परीक्षोययोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अंतिम संदेश लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने कौन-सा पत्र और कब लिखा?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से अपनी फाँसी के एक घंटे पहले लिखा।

प्रश्न 2.
अपनी माँ से भेंट का राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अपनी माँ से भेंट का राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ पर बहुत बझे प्रभाव पड़ा। उनका उत्साह दुगुना हो गया। उनकी बड़ी खुशी के साथ अपना प्राण त्यागने की हिम्मत बढ़ गई।

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प्रश्न 3.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने देशवासियों से क्या विनती की?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने देशवासियों से यह विनती की कि कोई भी घृणा और उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए, किन्तु करुणा सहित प्रेमभाव का व्यवहार किया जाए।

अंतिम संदेश दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने क्या करना अनुचित और अपने प्रति अन्याय माना और क्यों?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपनी मृत्यु से अचानक उत्तेजित होकर अपने शत्रुओं को क्षति पहुँचाने के काम को अनुचित माना। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमुक ने मुखबरी कर दी या अमुक पुलिस से मिल गया या गवाही दी, इसलिए उसकी हत्या कर दी जाए अथवा उसको कोई आघात पहुँचाया जाए, बिलकुल अनुचित है। उनके प्रति यह अन्याय होगा। ऐसा इसलिए कि जिस किसी ने भी उनके प्रति शत्रुता पूर्ण व्यवहार किया है, उसे उन्होंने क्षमा कर दिया है।

प्रश्न 2.
राम प्रसाद ‘विस्मिल’ किस प्रकार के नवजवानों को क्या-क्या करने की सीख दी और क्यों?
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने जोशीले, उमंगित और उत्तेजित नवजवानों को यथाशीघ्र गाँवों में जाकर किसानों की दशा सुधारने, मजदूरों के जीवन-स्तर ऊँचा उठाने, सामान्य जन को सुशिक्षा देने और दलितोद्धार के लिए प्रयत्नशील होने की सीख दी। यह इसलिए कि उस प्रकार के काम पूरे होने पर उन्हें मृत्यु दण्ड देने वाले लज्जित हो जाएंगे। इससे उनकी आत्मा को शान्ति मिलेगी।

प्रश्न 3.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल -लिखित ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’-लिखित ‘अंतिम संदेश’ नामक पत्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं –

‘अंतिम संदेश’ शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ द्वारा अपनी माँ को लिखा एक ऐतहासिक पत्र हैं जो उन्होंने अपनी फाँसी के मात्र एक घण्टे पहले लिखा था। पत्र में उन्होंने अपनी माँ से हुई भेंट का उल्लेख करते हुए अपने प्राणोत्सर्ग को भारत माता के चरणों में एक तुच्छ भेंट और हर्ष का कारण बताया। यह पत्र भारत के नवयुवकों के लिए प्रेरणाप्रद अंतिम संदेश है। इस पत्र से पता चलता है कि वे अपने शत्रुओं को हृदय से क्षमा कर चुके थे। वह अपेक्षा करते हैं कि नवयुवक अपने जोश को सकारात्मक दिशा देने का काम करें। उनके अनुसार देश-द्रोहियों से भी करुणा और प्रेम का व्यवहार किया जाना चाहिए। उनके इन मर्मस्पर्शी भावों से पता चलता है कि वे परिस्थितियों से प्रेरित होकर क्रांतिकारी बने जबकि वे स्वभाव से संत थे।

अंतिम संदेश लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
राम प्रसाद बिस्मिल का संक्षित जीवन-परिचय देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी जिले में 4 जून, 1887 को हुआ था। उनका बचपन मध्य-प्रदेश के जिला मुरैना के अपने पैतृक स्थान बरवई में बीता था। वे बचपन से ही स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से काफी हद तक प्रभावित थे। फलस्वरूप वे उनके अनुयायी बन गए। देश की आजादी के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहे। इसके लिए उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाये। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ’ की स्थापना की। इसका एकमात्र उद्देश्य यही था कि यथाशीघ्र भारत माँ को गुलामी के बंधन से मुक्त कराया जाए।

इस दिशा में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की जन-विरोधी नीतियों का खुल्लमखुल्ला विरोध किया। उनके इस कार्य में सहयोग देने वालों में अनेक क्रांतिकारी थे। उनमें सर्वप्रमुख शहीद अशफाक उल्ला खाँ, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र सिंह लाहड़ी, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त, सुखदेव, राजगुरु आदि थे। भारत माँ को परतंत्रता के बंधन से मुक्त कराने के साथ-साथ उनका लक्ष्य शोषण और अन्याय से मुक्त खुशहाल समाज को बनाने का भी था। उनको क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भी वे निडर बने रहे और अंग्रेजों का विरोध करते रहे। फाँसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी उनकी आवाज को अंग्रेज नहीं दबा सके। वे अदालत में और फांसी के फंदे पर झूलते समय भी ‘प्रजातंत्र अमर रहे’ का जोशीला नारा लगाते रहे। 19 दिसम्बर, 1927 को उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।

महत्त्व:
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के देश-भक्तिपूर्ण गीतों ने भारतीय युवकों में आजादी की व्याकुलता और तड़प के साथ अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने की बड़ी भावना उत्पन्न की। उनका महान पवित्र बलिदान युग-युग तक देशभक्ति के भावों को जगाता रहेगा। उन्होंने ‘सरफरोशी की तमना अब हमारे दिल में है’ जैसे देशभक्ति और बलिदानी गीतों को तो लिखा ही है, इसके साथ-ही-साथ उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण संस्मरण और पत्र भी लिखे हैं। उनके पत्रों में राष्ट्रीयता, उदारता और ग्रामीण जन-जीवन के प्रति चिंता के भाव भरे हैं।

अंतिम संदेश पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ न केवल एक ऐतिहासिक पत्र है, अपितु, अविस्मरणीय भी है। वह पत्र उन्होंने अपनी माँ को 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल से अपनी फाँसी के एक घंटे पहले लिखा था। ‘बिस्मिल’ ने अपने उस पत्र में अपनी माँ को संबोधित करते हुए लिखा था –

पूजनीय माँ! आप से मैंने कल भेंट की तो मेरा उत्साह बहुत बढ़ गया। उससे मैं खुशी से फाँसी का फंदा चुमूंगा। मैं समझता हूं कि आप मेरे देश-सेवा के लिए प्राण निछावर से खुश रहेंगी। मेरे कई साथियों को फाँसी दी जा चुकी है। मुझे भी एक घंटे में दे दी जायेगी। मैं अपने देश के नवजवानों को इस पत्र के द्वारा यह अपना अंतिम संदेश देना चाहता हूँ कि वे मेरी फाँसी के कारण बने हुए किसी को कोई क्षति न पहुँचाएं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो यह मेरे प्रति अन्याय होगा। मैंने अपने शत्रुओं को दो कारणों से क्षमा कर दिया है –

1. भारतवर्ष का वायुमंडल तथा परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं:

2. मैं महर्षि दयानंद का अनुयायी हूँ, जिन्होंने अपने जहर देने वाले को अपने पास से रुपये देकर भगाकर बचा दिया था। मेरी मृत्यु से उत्तेजित नवजवान यथाशीघ्र गाँव-सुधार में लग जाएँ। यथाशक्ति अशिक्षा को दूर करने के लिए कमर कस लें। दलितोद्धार में लग जाएं। इससे मुझे शांति मिलेगी। मेरी यही प्रार्थना है कि सबके प्रति करुणा और प्रेम का व्यवहार किया जाए।

अंतिम संदेश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
हमारी मृत्यु से किसी को क्षति और उत्तेजना हुई हो, तो उसको सहसा उतावलेपन से कोई ऐसा कार्य न कर डालना चाहिए कि जिससे मेरी आत्मा को कष्ट पहुँचे। यह समझकर कि अमुक ने मुखबरी कर दी अथवा अमुक पुलिस से मिल गया या गवाही दी, इसलिए किसी की हत्या कर दी जाए या किसी को कोई आघात पहँचाया जाए, मेरे विचार में ऐसा करना सर्वथा अनुचित तथा मेरे प्रति अन्याय होगा। क्योंकि जिस किसी ने भी मेरे प्रति शत्रुता का व्यवहार किया है और यदि क्षमा कोई वस्तु है तो मैंने उन सबको अपनी ओर से क्षमा किया।

शब्दार्थ:

  • क्षति – हानि, नुकसान।
  • उत्तेजना – अधिक क्रोध, उतावलापन।
  • सहसा – अचानक।
  • अमुक – किसी।
  • मुखबरी – खबर करना।
  • आघात – चोट।
  • सर्वथा – हर प्रकार से।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित है तथा शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’-लिखित पत्र ‘अंतिम संदेश’ शीर्षक से उद्धृत है। ‘बिस्मिल’ ने अपनी माँ के नाम लिखे इस पत्र में अपने देश के नवजवानों को समझाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
मुझे देश-भक्ति के लिए दिए गये कार्यों के विरोध में फांसी की सजा हुई है। लेकिन इससे मैं तनिक भी उत्तेजित और ,अशान्त नहीं हूँ। यह भी कि मैं इसके लिए किसी को दोषी भी नहीं मान रहा हूँ। इसलिए आप लोग भी मेरी मृत्यु के बाद किसी के प्रति कोई आक्रोश न करें। किसी को किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाएं। अपने उतावलेपन का शिकार किसी को न बनाएं। अगर आप लोग ऐसा करेंगे तो इससे मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। उसे तो भारी दुख ही मिलेगा।

इस प्रकार मेरी मृत्यु के बाद अपने उतावलेपन में आकर किसी को यह समझकर कि उसने मेरे विपरीत मुखबरी की है या पुलिस की मेरे विरुद्ध सहायता की है या गवाही दी है, इसलिए उस पर किसी प्रकार का वार किया जाए या उसे मौत के घाट उतार दिया जाए, इस प्रकार के विचार और इस प्रकार के उठाए गए कदम किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं हैं। इससे मेरे प्रति सहानुभूति नहीं होगी अपितु मेरे प्रति तो अन्याय ही होगा। मेरे प्रति सहानुभूति और अपनापन रखने वालों को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि जिसने मेरे प्रति शत्रुता किया है, उसे मैंने बड़े ही सहज भाव से क्षमा कर दिया है।

विशेष:

  1. भाषा अत्यधिक सरल और सपाट है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. देश-भक्ति की भावना है।
  4. भक्ति -रस का प्रवाह है।
  5. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त कथन किसका और किसके प्रति.है?
  2. ‘बिस्मिल’ को अपनी आत्मा को किससे कष्ट होने की आशंका है?

उत्तर:

  1. उपर्युक्त कथन राम प्रसाद बिस्मिल’ का अपने देश के नवजवानों के प्रति है।
  2. ‘बिस्मिल’ को अपनी आत्मा को अपने शत्रुओं द्वारा किसी प्रकार की क्षति पहुँचाने से कष्ट होने की आशंका है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को क्यों उपदेश दिया?
  2. अपने शत्रुओं को क्षमा कर देने से ‘बिस्मिल’ के किस स्वभाव का पता चलता है?

उत्तर:
1. ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को उपदेश दिया। यह इसलिए कि वे उनकी मृत्यु से उत्तेजित होकर उनके शत्रुओं को किसी-न-किसी प्रकार से कोई आघात न पहुँचाएं या उनमें से किसी की हत्या न कर दें। अगर वे ऐसा करेंगे तो वह उनके प्रति अन्याय होगा। यही नहीं उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।

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प्रश्न 2.
यदि नवयुवकों के हृदय में कोई जोश, उमंग तथा उत्तेजना उत्पन्न हुई है तो उन्हें उचित है कि शीघ्र ग्रामों में जाकर कृषकों की दशा सुधारें, श्रमजीवियों की स्थिति को उन्नत बनावें, जहाँ तक हो सके साधारण जन-समूह को सुशिक्षा दें, और यथाशक्ति दलितोद्धार के लिए प्रयत्न करें। जब इतने काम होंगे तो जिन्हें दण्ड देने की इच्छा है वे लज्जित होंगे और मेरी आत्मा को शांति प्राप्त होगी। मेरी यही विनती है कि कोई भी घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाए। किन्तु करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए।

शब्दार्थ:

  • जोश – उत्साह।
  • उत्तेजना – उतावलापन।
  • शीघ्र – जल्दी।
  • ग्राम – गाँव।
  • कृषकों – किसानों।
  • श्रमजीवियों – मजदूरों।
  • उन्नत – विकसित।
  • दलितोद्धार – पिछड़ों की भलाई।
  • विनती – प्रार्थना।
  • करुणा – दया।
  • बर्ताव – व्यवहार।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें ‘बिस्मिल’ ने अपने देश के नवजवानों को उत्साहित करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
यदि उनकी मृत्यु से उनके देश के नवजवानों में किसी प्रकार का जोश, कुछ कर गुजरने का उत्साह या कोई उत्तेजना होती है, तो ऐसे नवजवानों को मेरी सीख है कि यथाशीघ्र देश के हरेक गाँव में जाएं। वहाँ जाकर ग्रामीणों को खासतौर से किसानों की दीन-दशा को देखें। उन्हें अच्छी और सुखद दशा में लाने के लिए आवश्यक कदम उठायें। मजदूरों और रोजमर्रा की जिंदगी जीने वालों की दुखद दशा से उन्हें सुखद दशा में लाने के लिए पूरी-पूरी कोशिश करें। इसी के साथ वे अज्ञानता और अशिक्षा को दूर करने में लग जाएं। इस तरह दे दलितों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए बार-बार प्रयास करते रहें।

जब इस प्रकार के आवश्यक और समुचित कदम उठाये जायेंगे तो जो उन्हें फांसी की सजा देना चाहते हैं, वे ऐसे उठाए गए कदमों को देखकर पानी-पानी हो जायेंगे। इससे मेरी आत्मा को प्रसन्नता और शान्ति प्राप्त होगी। बिस्मिल का अपने देश के नवजवानों से पुनः कहना है कि हे देश के नवजवानों! उनकी उनसे यही एकमात्र प्रार्थना है कि उनकी मृत्यु से वे किसी प्रकार से उत्तेजित न होकर शान्तिपूर्वक देश और समाज के लिए कदम-से-कदम बढ़ाकर चलें। इसके लिए यह भी बेहद जरूरी है कि वे देश-समाज में मधुर और सरस वातावरण पैदा करें। यह ध्यान रखें कि उस वातावरण में कोई किसी से न तो नफरत करे और न किसी की उपेक्षा ही करे। सभी परस्पर करुणा और प्रेम का ही व्यवहार करें।

विशेष:

  1. सम्पूर्ण कथन भाववर्द्धक है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. देश-भक्ति का प्रवाह है।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. यह अंश हृदयस्पर्शी और प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. नवयुवकों को ‘बिस्मिल’ राष्ट्रीय उत्थान में क्यों लगाना चाहते हैं?
  2. ‘बिस्मिल’ किस-किस के प्रति चिन्ता और सहानुभूति हैं?

उत्तर:

1. नवयुवकों को ‘बिस्मिल’ राष्ट्रीय उत्थान में लगाना चाहते हैं। इसके तीन कारण हैं –

  1. उत्तेजित नवयुवक कोई छोटी-बड़ी हिंसा न कर पाएँ।
  2. देश और समाज की तत्कालीन गिरी हुई दशा में सुधार आ जाए।
  3. ‘बिस्मिल’ को दण्ड देने की इच्छा रखने वाले लज्जित हो जाएं। इससे उनकी आत्मा को शान्ति मिल सकेगी।

2. ‘बिस्मिल’ को ग्रामीणों, किसानों, मजदूरों, सामान्यजन और दलितों के प्रति चिंता और सहानुभूति थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त गद्यांश से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के किस स्वभाव का पता चलता है?
  2. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ किस प्रकार का वातावरण देखना चाहते थे?

उत्तर:

  1. उपर्युक्त गद्यांश से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के संत स्वभाव का पता चलता है।
  2. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ परस्पर मेल-मिलाप, भाईचारा, करुणा और प्रेमभाव से परिपूर्ण वातावरण देखना चाहते थे।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना (कविता, माखनलाल चतुर्वेदी)

उलाहना पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मधुदान का मेहमान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मधुदान का मेहमान से तात्पर्य है-देशप्रेमी का महत्त्व रखना।

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प्रश्न 2.
कवि के अनुसार सलामत कौन रह जाता है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सलामत आम आदमी रह जाता है।

प्रश्न 3.
रमलू भगत किसका प्रतीक है?
उत्तर:
रमलू भगत सर्वहारा वर्ग का प्रतीक है।

उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
छोटे अपने किन गुणों के कारण सलामत रह जाते हैं?
उत्तर:
जीवन में हर प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को झेलते रहना, दुखों को सहन करते रहना, हमेशा मर-मरकर घोर और कठोर श्रम साधना करते रहना और परस्पर घुल-मिलकर रहना। इन गुणों के कारण छोटे सलामत रह जाते हैं।

प्रश्न 2.
कवि अमीरों से उनके जीवन में किस तरह के परिर्वन की आकांक्षा करता है?
उत्तर:
कवि अमीरों से उनके जीवन में अनेक तरह के परिवर्तन की आकांक्षा करता है। हमेशा छोटों से घुल-मिलकर रहना, उनके दुःखों को समय निकालकर समझना और उन्हें दूर करने की कोशिश करना, अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतर गरीबी की जमीन पर आना और कुटिया निवासी आम आदमी के आदर-भाव को महत्त्व देना। इस प्रकार के अपने जीवन में परिवर्तन लाने की कवि अमीरों से चाहता है।

प्रश्न 3.
कविता में ‘कुटिया निवासी’ वनने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कविता में ‘कुटिया निवासी’ बनाने का तात्पर्य है-अमीर अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरों की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें।

उलाहना भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. “सदा सहना ……… छोटे सलामत हैं”
  2. “अमीरी से जरा नीचे उतर आओ।”
  3. “उठो, कारा ……… के सहलाओ।”

उत्तर:

1 ‘सदा सहना ………छोटे सलामत हैं’:
उपर्युक्त पद्यांश में आम आदमी खास तौर मजदूर वर्ग के जीवन-स्वरूप को रेखांकित किया गया है। इसके माध्यम से यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि मजदूर अनेक प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को जीवन-भर झेलता रहता है। फिर भी वह उससे हिम्मत नहीं हारता है। घोर परिश्रम करके वह मर-मरकर अपनी जीविका चलाता है। इस प्रकार वह जीवन जीते हुए पर हितार्थ लगा रहता है। वह समाज को हमेशा सही दिशा देते हुए आगे बढ़ाता रहता है। इसके विपरीत अमीर वर्ग ऐसा कुछ नहीं कर पाता है। इसलिए मजदूरों के सामने उसका कोई सामाजिक मूल्य नहीं रह जाता है।

2. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’:
काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहता है कि जन-सामान्य खास तौर से मजदूर को हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर भी वह अपने उद्देश्य से नहीं भटकता है। वह समाज-सेवा और समाज-कल्याण के लिए निरंतर लगा रहता है। उसके लिए वह कठोर-से-कठोर श्रम करता है। अनेक प्रकार के अभावों को झेलता है। समय आने पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।

उसके इस देन से अमीर वर्ग प्रभावित होता है। इससे वह खूब फूलता-फलता रहता है। उसे इस प्रकार देखकर मजदूर की उससे अपेक्षा होती है कि वह कभी समय निकालकर अपनी अमीरी की ऊँचाई से उतर वह गरीबी की जमीन पर आता तो उसकी निराशा, हताशा, आशा और उत्साह की किरणों से जगमगा उठती है।

3. ‘उठो कारा……..के सहलाओ’:
उपर्युक्त काव्यांश का भाव यह है कि मजदूर वर्ग अपने अभावों की जिन्दगी से ऊब चुका है। उसे अपनी गरीबी को दूर करने के लिए और कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। उसे अगर कोई रास्ता दिखाई दे रहा है तो वह है अमीर वर्ग। उससे उसे वही उम्मीदें हैं। ऐसा इसलिए कि उसने अनेक बड़े-बड़े काम किए हैं। उससे देश-समाज के रूप-रंग बदले हैं। उसे उससे बड़े यश प्राप्त हुए हैं। इसलिए वह अब मजदूर वर्ग के पास आए।

उसके दुखों-अभावों को समझे, उसकी गरीबी की कारा बना दे, अर्थात गरीबी को नियंत्रित करके उसे दूर कर दे। इस प्रकार वह मजदूर वर्ग के बलबूते पर रहते हुए उन्हें न भूलें। उन्हें अपना समझकर उनके दुःख-सुख में हाथ बँटाए। मजदूर वर्ग की उससे अपेक्षा है कि वह एक मसीहा के रूप में आकर सदियों से चले आ रहे उनके दुखों और अभावों के गहरे घावों पर ममता का मरहम लगाकर उन्हें सहला दे।

उलाहना भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
इबादत, मसीहा, अमीरी, मेहमान, जमाना, सलामत विदेशी शब्द हैं, इनके मानक अर्थ लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-1

प्रश्न 2.
बाढ़ोमयी, बड़ापन, न्यौतता, बलिदान, इन शब्दों में लगाये गये प्रत्यय बताएं?
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
श्रम, मुत्यु, प्यार, स्मृति।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 उलाहना img-3

प्रश्न 4.
निम्नांकित अपठित पद्यांश को ध्यान से पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

हर कदम-कदम पे सबको साथ ले,
एकता अखंडता की बात ले,
शुभ-पवित्र लक्ष्य के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥1॥

मातृभूमि पर भी हमको गर्व हो,
मातृभूमि रक्षा एक पर्व हो,
ऐसे राष्ट्र पर्व के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥2॥

श्रम सभी का एक मूलमंत्र हो
श्रम के लिए हर मनुज स्वतंत्र हो
लोक-लाज शर्म छोड़कर जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥3॥

हो अनाथ दुखिया अगर राह में
हो समानुभूति हर निगाह में,
करुणा-और प्रेम के लिए जिओ,
देश और धर्म के लिए जिओ ॥4॥

भाईचारा सबके दिल में हो सदा
कटुता घृणा बैर भाव हो विदा,
जीना, श्रेष्ठ कर्म के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ॥5॥ -मुनि विमर्शसागर

प्रश्न – (क) इस पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्रश्न – (ख) इस पद्यांश का भाव संक्षेप में लिखिए।
प्रश्न – (ग) इन प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

  1. इन पंक्तियों के रचयिता कौन हैं?
  2. हमें किस पर गर्व होना चाहिए?
  3. हमारा मूलमंत्र क्या होना चाहिए?

उत्तर:
(क) देश और धर्म

(ख) उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने परस्पर एकता, अखंडता और भाईचारा को बनाए रखने का भाव भरा है। अपनी मातृभूमि के प्रति गर्व रखते हुए उसकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहने का मूल मंत्र दिया है। सबमें करुणा और प्रेम जगाने के लिए सहानुभूति की आँखें सोखने की आवश्यकता पर भी कवि ने बल दिया है।

(ग)

  1. रचयिता-मुनि विमर्श सागर।
  2. हमें अपनी मात्रभूमि पर गर्व होना चाहिए।
  3. हमारा मूलमंत्र श्रम होना चाहिए।

उलाहना योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपने गाँव या शहर के नजदीक किसी बाँध का भ्रमण कीजिए तथा बाँध से होने वाले लाभ-हानि पर चार्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
घरों में पकाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजनों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
कवि ने कविता में ‘बड़े रास्ते, बड़े पुल, बाँध क्या कहने। बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं।’ के माध्यम से विकास की बात कही है। आप अपने आस-पास की किसी खदान/कारखाना/लघुउद्योग आदि में जाकर उसके बारे में जानकरी प्राप्त कर उसे सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

उलाहना परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बलिदान के मंदिर गिराने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बलिदान के मंदिर गिराने से तात्पर्य है-बलिदान करने वालों की घोर उपेक्षा करना।

प्रश्न 2.
जमाने में कौन तालियों से सब कुछ पा लेता है?
उत्तर:
जमाने में अमीर वर्ग तालियों से सब कुछ पर लेता है।

प्रश्न 3.
‘कुटिया निवासी’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘कुटिया निवासी’ गरीबी का प्रतीक है।

उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बड़ों में कौन-कौन से दोष होते हैं?
उत्तर:
बड़ों में निम्नलिखित दोष होते हैं –

वे याद की टीसें भुला देते हैं। वे बलिदान के मंदिर गिराते हैं। वे शहीदों के बलिदान को भुला देते हैं। वे अपने आप ही बिना किसी के कहे-सुने बहके-बहके काम करने लगते हैं।

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प्रश्न 2.
बड़ों से गरीब क्या अपेक्षा करता है और क्यों?
उत्तर:
बड़ों से गरीब अपने साथ भाईचारा और अपने दुख-सुख का साथी बने रहने की अपेक्षा करता है। वह उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह कभी कुटिया निवासी बनकर उनके दुखों को समझे। इस तरह वह उनकी गरीबी को दूर करने के लिए अपनी शक्तियों और क्षमताओं को लगा दे। यह इसलिए कि वह इसके लिए हर प्रकार से सक्षम और समर्थ है।

प्रश्न 3.
‘उलाहना’ कविता के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने इस कविता में जन सामान्य से अलग-थलग पड़ जाने वाले अमीर वर्ग को उलाहना देते हुए स्पष्ट किया है कि क्रांतिकारियों के बलिदान को भूलकर इस वर्ग ने अपने हित में जय-जयकार कराके अपने समाज को कोई सही दिशा नहीं दी है। जन सामान्य के दुःख-दर्द का अनुभव करना भी पूजाभाव से परिपूर्ण होना है। छोटों के साथ घुल-मिलकर जीने में ही जीवन की सार्थकता है। कवि को अमीरों से अपेक्षा है कि वे अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें। प्रस्तुत कविता में कवि ने बड़े-बड़े कारखानों, पुलों और बाँधों के निर्माणों के साथ-साथ मानवीय संवेदना के विस्तार को भी जरूरी माना है।

उलाहना कवि-परिचय

प्रश्न 1.
माखललाल चतुर्वेदी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, सन् 1889 में होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करके उन्होंने अध्यापन शुरू किया। अध्यापन के दौरान उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती और बंगला का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। उनकी रचनाएँ गांधीवादी दर्शन, चिन्तन और विचारधारा से प्रभावित हैं। उनका निधन 30 जनवरी, 1968 को हुआ।

रचनाएँ:
माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रमुख रचनाएँ ‘हिमकिरीटिनी’, ‘हिमतरंगिनी’. ‘माता’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘वेणु’, ‘लो गूंजे धरा’ (काव्य) ‘साहित्य देवता’ (गद्यकाव्य) वनवासी और कला का अनुवाद (कहानी), ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ (नाटक) हैं।

भाषा-शैली:
चतुर्वेदी जी की भाषा-शैली में प्रवाह है। इनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी के शब्द भी हैं जो भाषा को गति प्रदान करते हैं।

महत्त्व:
माखनलाल चतुर्वेदी ‘हिन्दी साहित्य जगत’ में ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्धि का आधार कविता ही है, किन्तु वे एक सक्रिय पत्रकार, समर्थ निबंधकार और सिद्धहस्त संपादक भी थे। भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। चतुर्वेदी जी के काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है, जिसमें समर्पण, त्याग, बलिदान, सेवा और कर्त्तव्य की भावना सन्निहित है।।

उलाहना पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ एक शिक्षाप्रद कविता है। कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से जन-सामान्य से हटकर सुख-सुविधा की जिन्दगी जीनेवाले सुविधाभोगियों को उलाहना देने का प्रयत्न किया है। कवि को साधन सम्पन्न और सुविधाभोगियों से शिकायत है कि वे ही जब देश-भक्तों के बलिदानों को भुला दिए हैं, तो फिर साधारण लोगों को उनसे क्या उम्मीदें हो सकती हैं? कवि का पुनः साधनसम्पन्न और सुविधाभोगी वर्ग से शिकायत है कि वह नहीं बदल पाया है।

उसने देश के लिए कुर्बान होनेवाले को भुला दिया है। वह लोगों से अपनी प्रशंसा की तालियाँ बजवाकर भी देश-समाज के दिल को नहीं जीत पाया। बड़ी-बड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पुल, बड़े-बड़े बाँध, बड़े-बड़े कारखाने, और बड़ी-बड़ी इमारत तो उसने बनवाई, लेकिन इन्हें बनाने वाले मजदूरों के अभाव के आँसुओं को वह नहीं पोंछ पाया। छोटों का तो जीवन हमेशा सहन करना, श्रम-साधना करना होता है। इसलिए तुम भी उनसे घुल-मिलकर रहना सीखो। यह भी समझो कि बड़े-बड़े ऐसे मिट गए कि उनका कोई नाम-निशान भी शेष नहीं है, लेकिन छोटे आज भी सलामत हैं।

वे तो तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं, लेकिन तुम्हें तो उनके दुःख-दर्द को समझने का समय नहीं होता है। वे तो तुम्हारे मान-सम्मान के लिए मर-मिटते हैं। इसे समझकर तुम अपनी अमीरी से हटकर गरीबी की ओर आ जाओ। तुम्हारी आँचाज संसार का जादू है, तुम्हारी बाँहों में संसार की ताकत है। कभी कुटिया निवासी बनकर तो देखो। तुमने असंभव जैसे कई काम किए हैं। इसलिए अब तुम अपनों के पास आओ। युग का मसीहा बनकर सदियों के लगे गहरे घाव पर ममता के मलहम लगाकर सहला दो।

उलाहना संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
तुम्हीं जब याद की टीसें भुलाते हो,
भला फिर प्यार का अभिमान क्यों जीवे?
तुम्हीं जब बलिदान के मन्दिर गिराते हो,
भला मधुदान का मेहमान क्यों ‘जीवे?
भुला दीं सूलियाँ? जैसे सभी कुछ,
जमाने में तालियों से पा लिया तुमने,
न तुम बहले, न युग बहला, भले साथी,
बताओ तो किसे बहला लिया तुमने!

शब्दार्थ:

  • टीसें – दर्द की अनुभूति।
  • जीवे – जीवित रहे।
  • मधुदान – प्रेम का दान।
  • सूलियाँ – बलिदान।
  • बहला – फुसला।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ से संकलित तथा माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित ‘उलाहना’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य के उलाहना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अमीर वर्ग को उलाहना देते हुए जन-सामान्य कह रहा है –

व्याख्या:
देश के नेता और कर्णधार कहे जाने वाले अमीर वर्ग! जब तुम्हीं देश के आन-मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों के बलिदान करने वालों के दर्द की अनुभूति को अनसुना कर रहे हो, तो फिर कैसे प्रेम का अभिमान जीवित रह सकता है? तुम्हीं जब त्याग और बलिदान को महत्त्व नहीं दे रहे हो, तो प्रेम का दान करने वाले का हौसला बढ़ सकता है, अर्थात् नहीं बढ़ सकता है। यह भी बड़े दुःख और अफ़सोस की बात है कि तुमने तो देश के आन-मान पर मर मिटने वाले अमर देशभक्तों की पवित्र यादों को भुला दिया है। अपने चापलूसों और पिछलग्गुओं द्वारा वाहवाही की तालियों को बजवाकर मानो तुमने सब कुछ पा लिया है। इस प्रकार की सोच रखने वाले क्या तुम यह बतलाओगे कि अगर तुम बहके नहीं हो और न जमाना ही बहका है, तो फिर तुम्हें किसने बहका दिया है?

विशेष:

  1. अमीर वर्ग से खासतौर से देश के गद्दारों का उल्लेख है।
  2. व्यंग्यात्मक शैली है।
  3. तुकान्त शब्दावली है।
  4. यह अंश मार्मिक है।
  5. ‘बलिदान का मंदिर’ में रूपक अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो’ काव्य-पंक्ति का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य की शिकायत है। अमीर वर्ग द्वारा अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देशभक्तों को भुला देना जन-सामान्य को मान्य नहीं है। इसे कवि ने मुहावरेदार भाषा के द्वारा प्रस्तुत किया है। शब्द-चयन सामान्य स्तर के हैं लेकिन बड़े सजीव हैं। शैली-विधान भावपूर्ण है। रूपक अलंकार से कथन को आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव रोचक किन्तु मर्मस्पर्शी है। देश के बलिदानियों को सहज ढंग से भुलाकर बहके-बहके भाषणों की बौछार लगाकर वाहवाही लूटना आज के राजनेताओं का राजनीतिक कुचक्र.है। इसके नीचे आम जनता पिस जाती है। लेकिन राजनेता उसी ढर्रे पर अपनी राजनीति का पहिया चलाते रहते हैं। उसे आम जनता तनिक भी नहीं समझ पाती है। वह भौचक्की बनी रहकर कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार के तथ्य इस पद्यांश में भावपूर्ण शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।

3. ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो।’ काव्य-पंक्ति का भाव है-राजनेताओं के द्वारा अंगरशहीदों की उपेक्षा कर वर्तमान देश-भक्तों को हतोत्साहित करना। इससे राजनेताओं के देश-द्रोही भावों का संकेत हो रहा है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. कवि-माखन लाल चतुर्वेदी। कविता-‘उलाहना’।
  2. ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय है-देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देश-भक्तों और अमीर शहीदों की राजनेताओं द्वारा उपेक्षा करना।

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प्रश्न 2.
बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!
बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं,
जरा पोर्चे इन्हें आँस उभर आये,
बड़ापन यह न छोटों की इबादत है।

सदा सहना, सदा श्रम साधना मर-मर,
वही हैं जो लिये छोटों का मृत-वृत हैं,
तनिक छोटों से घुल-मिलकर रहो जीवन,
बड़े सब मिट गये, छोटे सलामत हैं!

शब्दार्थ:

  • रस्ते – रास्ता, सड़क।
  • इमारत – भवन, मकान।
  • इबादत – पूजा।
  • श्रम – सौधनामेहनत।
  • सलामत – सुरक्षित।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें अमीरों और गरीबों के जीवन की भिन्नता पर प्रकाश डाला गया है। अमीर वर्ग के प्रति सामान्य-जन शिकायत करते हुए कह रहा है –

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! यह बड़ी ही अच्छी बात है कि तुम्हारे प्रयासों से देश को बड़ी सुविधाएँ मिली हैं। पगडंडियाँ चौड़ी-चौड़ी और लम्बी-लम्बी सड़कों के रूप ले लिये हैं। नदियों की छाती पर बड़े-बड़े पुल और बाँध खड़े हो गए हैं। जगह-जगह बड़े-बड़े कारखाने बन गए हैं। ऊँची-ऊँची इमारतें आकाश से बातें करने लगी हैं। फिर भी सामान्य जन को दो जून की रोटी नहीं नसीब हो रही है। उनके आँखों में दुख और अभावों के आँसू छलकते रहते हैं। उन्हें पोंछना सच्ची मानवता है। यह बड़प्पन नहीं है, बल्कि यह तो छोटों की पूजा करना है।

ऐसा इसलिए कि ये जीवन भर सभी प्रकार की विपत्तियां सहते रहते हैं। मरते दम तक घोर परिश्रम से मुँह नहीं फेरते हैं। इस प्रकार के जीवन जीनेवाले ही आज सलामत हैं, जबकि सभी बड़े मिट गए। यह समझकर तुम इनसे कुछ देर के लिए घुलमिल कर रहते, तो इनके जीवन के गम का बोझ हल्का हो जाता। इनके मुरझाए चेहरे थोड़ी देर के लिए ही सही, खिल उठता। फिर ये अपने जीवन के बोझ को उठाकर और आगे ले जाने की हिम्मत जुटा पाते।

विशेष:

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली व्यंग्यात्मक है।
  3. सम्पूर्ण कथन मार्मिक है।
  4. ‘मर-मर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. करुण रस का संचार है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में देश के कर्णधार कहे जाने वाले राजनेताओं द्वारा अनेक प्रकार के साधनों-सुविधाओं को देने का उल्लेख है। इसके साथ ही सामान्य जन के प्रति उनकी उपेक्षा और दूरी का भी उल्लेख है। इस प्रकार इस पद्यांश में परस्पर विरोधी बातों को बड़े ही रोचक रूप में प्रस्तुत किया गया है। फलस्वरूप प्रस्तुत हुए विरोधाभास अलंकार का चमत्कार तब और हृदयस्पर्शी दिखाई देता है जब उसके सहयोगी अलंकार पुनरुक्ति प्रकाश ‘मर-मर’ और अनुप्रास अलंकार ‘सदा सहना’ पर हमारा ध्यान जाता है। इसकी भाव और भाषा भी कम प्रभावशाली नहीं है।

2. उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक है। देश में विकास के बढ़ते चरण के बावजूद सामान्यजन की बदहवाली के चित्र स्वाभाविक होने के साथ-साथ मार्मिक और विचारणीय हैं। इस प्रकार के तथ्य को विश्वसनीय रूप में प्रस्तुत करने का ढंग सचमुच बड़ा ही अनूठा है। इस तरह उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी और उद्धरणीय बन गया है।

3. ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव यह है कि देश में चहुंमुखी विकास हो रहे हैं। इसे देखकर सबका मन बाग-बाग हो रहा है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने क्यों कहा है?

उत्तर:

  1. कवि-माखललाल चतुर्वेदी कविता-उलाहना।
  2. ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने कहा है। यह इसलिए कि इसमें ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 3.
‘तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं वे,
उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ,
तुम्हारी आन पर कुर्बान जाते हैं,
अमीरी से जरा नीचे उतर आओ!

तुम्हारी बाँह में बल है, जमाने का,
तुम्हारे बोल में जादू जगत का है,
कभी कुटिया निवासी बन जरा देखो,
कि दलिया न्यौतता रमलू भगत का है!

शब्दार्थ:

  • कुर्बान – बलिदान।
  • बाँह – भुजा।

प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! सामान्य जन जो हर प्रकार से अपने जीवन में दुखी और अभावग्रस्त हैं, वे तुमसे सहायता के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके लिए तुम्हें कुछ अवश्य समय निकालना होगा। ऐसा इसलिए कि तुम्हारी आन-मान के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। इसे तुम गंभीरतापूर्वक समझो, फिर अपनी अमीरी की ऊँचाई से गरीबी की जमीन पर आ जाओ। तुम्हें स्वयं को यह जानना चाहिए कि तुम्हारी भुजाओं के अंदर बहुत बड़ी शक्ति है। वह शक्ति है-जमाने की। तुम्हारे भाषण में दुनिया की जादुई शक्ति है। इसलिए तुम कभी समय निकालकर अभावों को झेल रहे कटिया निवासी रमलू भगत के पास आकर रहो। फिर देखो कि वह तुम्हें कितना अपनापन लिए बुला रहा है। इसे समझने पर तुम्हें अपार सुख का अनुभव होगा।

विशेष:

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. उर्दू की प्रचलित शब्दावली है।
  4. अमीरों को अपनी अमीरी को भुलाकर सामान्य जन के लिए सहयोग करने की शिक्षा दी गई है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पयांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
  3. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में आम जनता का आह्वान साधन-सम्पन्न अर्थात् अमीर वर्ग के प्रति है। आमजन अमीर वर्ग से उसका महत्त्वांकन करते हुए उसे उसके साथ अपनापन के भावों को रखने की अपेक्षा करता है। इसे सरल आर सपाट भाषा के द्वारा अतिशयोक्ति अलंकार के साथ रूपक अलंकार (चरण-रेखा) से अलंकृत करके चमत्कृत किया है। बिम्ब, प्रतीक और योजना वीर रस और करुण रस के मिश्रण से अधिक प्रभावशाली रूप में है।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक रूप में है। इसमें भावों की तारतम्यता और क्रमबद्धता सुनियोजित रूप में है। इससे मार्मिकता का जो पुट प्रस्तुत हो रहा है, वह न केवल भाववर्द्धक है, अपितु प्रेरक है। सरलता से प्रयुक्त हुए भाव सहज ही ग्रहणीय और हृदयस्पर्शी बन गए हैं।

3. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव परस्पर समानता और सहयोग का वातावरण उत्पन्न करता है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ क्या है?

उत्तर:

1. कवि-माखनलाल चतुर्वेदी कविता-‘उलाहना’।

2. ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ है-अमीर वर्ग आम आदमी के दुखों और अभावों को समझने से कतराता रहता है। उसे तो अपने सुख-विलास से ही फुरसत नहीं मिलती है। फिर वह आम आदमी के लिए कहाँ समय निकाल पाएगा। दूसरी ओर आम आदमी उससे सहयोग प्राप्त करने की हमेशा आशा लगाए रहता है।

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प्रश्न 4.
गयी सदियाँ कि यह बहती रही गंगा,
गनीमत है कि तुमने मोड़ दी धारा,
बड़ी बाढ़ोमयी उद्दण्ड नदियों को,
बना दी पत्थरों वाला नयी कारा।

उठो, कारा बनाओ इस गरीबी की,
रहो मत दूर अपनों के निकट आओ,
बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के,
मसीहा इनको ममता भर के सहलाओ।

शब्दार्थ:

  • सदियाँ – शताब्दियाँ।
  • गनीमत – अच्छी बात।
  • उद्दण्ड – बेकाबू।
  • कारा – जेल।
  • मसीहा – अवतारी पुरुष।
  • ममता – अपनापन।

प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! अनेक सदियों के बाद तम अपने शक्ति से गंगा के बहते पानी को व्यर्थ बहने के बारे में चिंतन-मनन किया। फिर उसे जनोपयोगी बनाने के लिए उसकी धारा को मोड़कर उसके ऊपर बाँध बनवाकर अनेक प्रकार से सिंचाई के रूप तैयार किए। इस प्रकार बाढ़ से उफनती हुई उद्दण्ड नदियों को पत्थर वाले जेल की अपने काबू में कर लिये। इस प्रकार के महान जीवनोपयोगी कार्य करने के बाद अब तुमसे यही कहना है कि अब तुम उठो। इस गरीबी को जेल में बदलकर उस पर अपना नियंत्रण रखो। सदियों से गरीबी की मार सह रहे गरीबों का मसीहा बनकर तुम उनके दुखों-अभावों रूपी घावों पर अपनी ममता का मरहम सहलाते रहो।

विशेष:

  1. अमीर वर्ग से गरीब वर्ग की अपेक्षाओं को चित्रित किया गया है।
  2. अमीरों का महत्त्वांकन,प्रस्तुत है।
  3. रूपकालंकार है।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. तुकान्त शब्दावली है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. ‘गरीबी को कारा’ बनाने से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति आमजन के भावों को व्यक्त किया गया है। ये भाव उसके हौसले को बढ़ाते हुए उससे कुछ पाने की उम्मीदों के हैं। इसे स्मरण अलंकार, रूपक और अनुप्रास अलंकारों से अलंकृत करके चमत्कृत किया गया है। भाषा की सरलता में प्रवाहमयता है तो वर्णनात्मक शैली विधान में रोचकता है। प्रचलित उर्दू और तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का मेल उपयुक्त रूप में है। बिम्ब और प्रतीक यथास्थान हैं।

2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव योजना में क्रमबद्धता और अनुरूपता है। अमीर वर्ग को समुत्साहित करते हुए आमजन को अपने कल्याणार्थ प्रेरित करने का प्रयास सचमुच में काबिलेतारीफ़ है। इसके लिए दिए गए उल्लेखों को दृष्टान्तों के माध्यम से प्रस्तुत करने का भी प्रयास कम कलात्मक नहीं है। फलस्वरूप यह पद्यांश भाववर्द्धक बन गया है।

3. ‘गरीबी को कारा’ बनाने से तात्पर्य अभावों पर पूरी तरह नियंत्रण रखने से है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. कवि-माखनलाल चतुर्वेदी। – कविता-‘उलाहना’।
  2. ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव है-बहुत समय से आमजन अभावों में अपना जीवन सफर कर रहा है। वह इससे ऊब चुका है। उसे इससे मुक्ति चाहिए। अमीर वर्ग ही उसे इससे मुक्ति मसीहा बनकर दिला सकता है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया (एकांकी, भगवतीचरण वर्मा)

रुपया तुम्हें खा गया पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल की सुख-शान्ति क्यों भंग हो गई?
उत्तर:
किशोरीलाल को रुपए चुराने के जुर्म में तीन साल की जेल की सजा हो गई। इसलिए उसकी सुख-शान्ति भंग हो गई।

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प्रश्न 2.
जयलाल कौन था? वह कौन-सा व्यवसाय करता था?
उत्तर:
जयलाल मानिकचंद का पुत्र था। वह डॉक्टरी करता था।

प्रश्न 3.
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने क्या कहा?
उत्तर:
मदन को सम्पत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने यह कहा-“मेरे मरने के बाद ही उसके पहले नहीं। और मेरे मरने के लिए तुम दोनों माला फेरो, पूजा-पाठ कराओ…..यहाँ से…..जाओ तुम दोनों।”

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल के जेल जाने पर परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह किस प्रकार किया?
उत्तर:
किशोरीलाल के जेल जाने पर उसके परिवार ने अपना जीवन-निर्वाह बड़ी कठिनाई से किया। उसकी पत्नी ने अपने जेवर बेचे। उसकी लड़की ने चक्की चलाई और पड़ोस के कपड़े सिले। इससे उसके बेटे जयलाल की डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की।

प्रश्न 2.
सजा काटने के पश्चात् किशोरीलाल की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सजा काटने के पश्चात किशोरीलाल की मनोदशा काफी बिगड़ चकी थी। वह अपने उजड़े हुए घर-परिवार को देखकर अशान्त हो गया था। उसने अपनी बाबी, अपने बच्चों के कुपोषण को देखा। इससे वह एकदम घबड़ा गया। उसने लोगों से होने वाले अनादर और उपेक्षा को देखा। घर के घोर अभाव को देखा। इन सब दुखों को देखकर वह काँप गया। उसके बाप-दादा को पुराना मकान कर्ज से दब चुका था। उसे बेचकर वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और दूसरे शहर को चला गया।

प्रश्न 3.
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को क्यों नहीं देना चाहता था?
उत्तर:
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी अपने पुत्र मदन को नहीं देना चाहता था यह इसलिए कि वह अपनी सम्पत्ति का मालिक अपने जीते जी नहीं बनाना चाहता था। अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी देकर वह अपनी पत्नी और बेटे के अधीन होकर नहीं जीना चाहता था।

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प्रश्न 4.
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास कैसे होता है?
उत्तर:
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास तब होता है, जब किशोरीलाल उससे उसके जीवन का सबसे बड़ा सत्य कह गया कि रुपया उसे खा गया है। इसलिए उसमें ममता नहीं है, दया नहीं है, प्रेम नहीं है और भावना नहीं है। उसके अन्दर वाला मानव मर चुका है। उसकी जगह अर्थ का पिशाच घुस गया है।

प्रश्न 5.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में मनुष्य की उस लोभवृत्ति का चित्रण किया गया है जिसके अधीन होकर वह सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को भूलकर मात्र धन-लिप्सा के मोहजाल में आकण्ठ डूबा रहता है और अपनी मानसिक शान्ति खो बैठता है। पैसे की तुलना में मनुष्य के उदात्त मानवीय गुण यथा महत्त्वपूर्ण है। ये गुण ही मनुष्य को जीवन में सच्चा सुख और शान्ति प्रदान करते हैं। पैसों की ताकत इन मानवीय गुणों की तुलना में हेय है।

प्रश्न 6.
एकांकी के आधार पर मानिकचंद का चरित्र-चित्रण कीजिए?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ एक यथार्थपूर्ण एकांकी है। इसका मुख्य पात्र मानिकचंद का चरित्र बड़ा ही रोचक और विश्वसनीय है। वह धनपशु है। उसमें धन की पिशाच पूरी तरह मौजूद है। इससे वह हर प्रकार के अनैतिक विचारों को पालता है। हर प्रकार के अनैतिक कार्यों को करता है। धन ही उसका जीवन, उसकी चाह है। और तो और, धन ही उसका सब कुछ है। इसके सामने वह किसी को कुछ नहीं समझता है। सबको ठोकर मार देने में वह नहीं हिचकता है। अपनी बीवी-बच्चों को भी वह धन के सामने भूल जाता है।

इसी धनलिप्सा के मोहजाल में वह इतना फँस चुका है कि किशोरीलाल के बार-बार यह सावधान किए जाने पर “रुपया तुम्हें खा गया” वह नहीं सावधान होता है। बीमार होने पर भी वह अपने बेटे मदन को अपनी सेफ (तिजौरी) की चाबी नहीं देता है। अपनी बीवी रानी को फटकारते हुए वह कहता भी है_ “हा…..हा….हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिन्दा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, नातेदार, पड़ोसी, नौकर ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपए के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

प्रश्न 7.
एकांकी के तत्त्वों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
उत्तर:
एकांकी नाटक सामान्य रूप से नाटक के उस स्वरूप को कहते हैं जिसमें एक ही अंक में सारा नाटक समाप्त हो जाता है। एकांकी के छह तत्त्व माने जाते हैं।

  1. कथानक या कथावस्तु
  2. पात्र और चरिघ्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल तथा संकलनत्रय
  5. भाषा-शैली, और
  6. उद्देश्य।

1. कथानक और कथावस्तु:
यह एकांकी की कहानी है। कहानी को इस प्रकार से नियन्त्रित करके रखा जाए कि वह बहुत कम में समाप्त होकर श्रोता और दर्शक के मन को अपनी ओर रमा सके।

2. पात्र और चरित्र-चित्रण:
श्रोता और दर्शक के हृदय पर सबसे अधिक. प्रभाव पात्रों के द्वारा ही डाला जाता है। यह एकांकी का प्राण होता है। पात्र ही कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं। मुख्य पात्र को नायक कहते हैं। वह नाटक के फल को प्राप्त करता है। वह अनेकानेक उदात्त गुणों का खजाना होता है।

3. कथोपकथन:
कथोपकथन कथावस्तु को आगे बढ़ाते हैं और पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते हैं। कथोपकथन के आधार पर ही नाटकीयता का मूल्यांकन किया जाता है। ये संक्षिप्त, चुटीले, पात्रानुकूल तथा स्वाभाविक होने चाहिए।

4. देश-काल तथा संकलनत्रय:
एकांकी कथावस्तु से सम्बन्धित देश-काल (परिस्थितियों) का स्वाभाविक वर्णन एकांकी को सजीवता एवं वास्तविकता प्रदान करता है। कम-से-कम स्थानों एवं कम अन्तराल की घटनाओं का वर्णन संकलनत्रय के तत्त्व के निर्वाह में सहायक होता है।

5. भाषा-शैली:
एकांकी को प्रस्तुत करने के ढंग को शैली कहते हैं। इसे ही एकांकी का परिधान कह सकते हैं। इसके अन्तर्गत पात्रों की भाषा, रंगमंच की व्यवस्था, नाटककार का व्यक्तित्व आदि बातें आती हैं।

6. उद्देश्य:
एकांकी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजक ढंग पर जीवन की व्याख्या करना है। एकांकी का महत्त्व मुख्य रूप से नैतिक है। समाज के कल्याण के साथ काव्य का जो सम्बन्ध है, वह सबसे अधिक एकांकी में ही प्रकट किया जाता है।

रुपया तुम्हें खा गया भाव विस्तार/पल्लवन

  1. रुपया तुमने नहीं खाया, रुपया तुम्हें खा गया।
  2. तुमने जो चोरी की थी उसकी सजा मैं भुगत चुका हूँ। तुम्हारे पाप का प्रायश्चित मैं कर चुका हूँ।

उत्तर:
1. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचंद के प्रति है। इस कथन में यह भाव छिपा हुआ है कि धन का लोभी व्यक्ति का चरित्र गिर जाता है। धन को ही वह सबकुछ समझ लेता है। इससे उसके अंदर का मनुष्य मर जाता है। उसकी जगह पिशाच का प्रवेश हो जाता है। उससे उसमें प्रेम नहीं होता है। कोई सद्भावना नहीं होती है। कोई दया नहीं है। इस प्रकार रुपया को चाहने वाले या रुपया को ही सबकुछ समझने वाले को रुपया इस तरह से खा लेता है कि उसके पास केवल पशुतापन और राक्षसीपन ही रह जाता है। उससे उसके परिवार और समाज का नुकसान ही होता रहता है।

2. उपर्युक्त कथन किशोरीलाल का मानिकचन्द के प्रति है। इस कथन का यह भाव है कि आज के समाज में कानून कमजोर पड़ गया है। वह धनवान और साधन-सम्पन्न मुजरिम को पकड़ने में आनाकानी करता है, बहाना बनाता है। घूस पाकर कमजोर, गरीब और लाचार आदमी को गिरफ्तार कर उसे जेल में बन्द कर उसे सजा दे डालता है। इस प्रकार आज का कानून है-करे कोई, भरै कोई।

रुपया तुम्हें खा गया भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
दिए गए शब्दों में से उपसर्ग छाँटकर अलग कीजिए। कुरूप, अभाव, कुप्रबंध, सुडौल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-1

प्रश्न 2.
निम्ननिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –
अभिशाप, तिरस्कार, असभ्य, कठोर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-2

प्रश्न 3. दिए गए निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए –
उदा:

  1. रुपया तुम्हें खा गया। (प्रश्वाचक वाक्य)
  2. वह कल दिल्ली जाएगा (निषेधात्मक वाक्य)
  3. कितना सुन्दर दृश्य है(विस्मयादि बोधक)
  4. आज पानी बरस रहा है(संदेहार्थ वाक्य)
  5. आपने भोजन कर लिया है। (प्रश्नार्थक वाक्य)

उत्तर:

  1. क्या रुपया तम्हें खा गया है?
  2. वह कल दिल्ली नहीं जाएगा।
  3. अहा! कितना सुन्दर दृश्य है।
  4. शायद आज पानी बरसे।
  5. क्या आपने भोजन कर लिया है?

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प्रश्न 4.
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्दों को लिखिए।
उत्तर:
इस एकांकी में आए आगत (विदेशी) शब्द इस प्रकार हैं –
करीब-करीब, हफ्ते, दफ्तर, डाइंग रूम, डॉक्टर, ताकत, ईमान, इज्जत, आबरू, दुनिया, बीमार, सबूत, साल, जेल, इशारा, सजायाफ्ता, आदमी, मकान, कर्ज, मुआवजा, सिर्फ, जिंदगी, कागज, इन्कमटैक्स, नोटिस, हिसाब-किताब, अजीब, मुसीबत, मतलब, सेफ़, आखिर, गलत, ऑफिस।

रुपया तुम्हें खा गया योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी को कहानी के रूप में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 2.
इस एकांकी को अभिनीत कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 3.
ईमानदारी विषय पर केन्द्रित अन्य प्रेरणा देने वाले प्रसंगों को संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

प्रश्न 4.
रुपये को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने हेतु डाकखाने में मनी आर्डर द्वारा सुविधा प्रदान की जाती है। यहाँ मनी ऑर्डर का प्रारूप दिया जा रहा है जिसमें आप आवेदक का नाम पता तथा पाने वाले का नाम, पता भरिए तथा मनी ऑर्डर के बारे में विस्तृत जानकरी डाकखाने से प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक /अध्यापिका की सहायता से हल करें। (भारतीय डाक-मनीआर्डर का प्रारूप अगले पृष्ठ पर देखें)

रुपया तुम्हें खा गया परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

रुपया तुम्हें खा गया लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बीमारी में क्या होता है और क्या नहीं होता है?
उत्तर:
बीमारी में उतार-चढ़ाव होता है। उसमें सुधार नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता क्यों नहीं माँगी?
उत्तर:
किशोरीलाल अपने बुरे समय में मानिकचन्द से सहायता नहीं माँगी। वह इसलिए कि –

  1. उसे उसका पता नहीं मालूम था।
  2. उसे इस बात का पूरा विश्वास नहीं था कि वे रुपये उसने ही चुराए थे।

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 14 रुपया तुम्हें खा गया img-3

प्रश्न 3.
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से क्यों कहा कि रुपया उसे खा गया?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द से कहा कि रुपया उसे खा गया। यह इसलिए कि उसमें कोई ममता नहीं, दया नहीं, प्रेम नहीं और कोई भावना नहीं रह गई थी। उसके अन्दर का मानव मर चुका था और धन का पिशाच घुस गया था।

रुपया तुम्हें खा गया दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किशोरीलाल मानिकचन्द को आपबीती क्या सुनाई?
उत्तर:
किशोरीलाल ने मानिकचन्द को आपबीती सुनाई। उसने उसे सुनाया कि जब वह जेल की सजा काटकर घर लौटा तो उसने जो देखा, उससे वह काँप उठा। उस समय तक यह जयलाल डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन इसकी डॉक्टर नहीं चली। एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का था न यह! बाप-दादा का पुराना मकान कर्ज से लद चुका था। उसे बेचकर मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ, और उसने इस नगर की शरण ली।

प्रश्न 2.
मानिकचन्द द्वारा. क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द के क्षमा माँगने पर किशोरीलाल ने कहा –

“तुमने कोई अपराध नहीं किया। मानिकचन्द मुझसे क्षमा बेकार मांग रहे हो। कोई बहुत बड़ा पाप किया होगा मैंने कभी, उसी का दंड मुझे मिला। वह दंड मैंने भुगत लिया है,और आज मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं, कोई संतापं नहीं। मेरे लड़के की डॉक्टरी अच्छी चलती है और वह ईमानदार तथा कर्तव्यपरायण आदमी है। मेरे पास कोई अभाव नहीं। मेरा जीवन, मेरी पत्नी की, मेरे पुत्र की, मेरे पौत्रों की ममता है, मेरा सुख-दुख उनका सुख-दुख है। यह क्या कम है? मैं भगवत भजन करता हूँ। मैं तुमसे कहीं अधिक सखी हूँ।”

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प्रश्न 3.
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरीलाल ने उससे क्या कहा?
उत्तर:
मानिकचन्द द्वारा झूठ बोलने और धोखा देने का आरोप लगाने पर किशोरी लाल ने उससे इस प्रकार कहा –

“मानिकचन्द धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शांति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे, तब तुमने समझा था कि तुम रुपया खा गए लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।”

प्रश्न 4.
“आखिर तुम सेफ की चाबी उन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
“आखिर तुम सेफ की चाबी इन्हें क्यों नहीं दे देते?” किशोरीलाल के इस प्रश्न के उत्तर में मानिक चन्द ने कहा –

किशोरीलाल तीन साल जेल में रहकर भी तुम यह नहीं जान पाए कि सेफ की चाबी जिन्दगी की चाबी है। उसे अपने पास से अलग कर देने के माने हैं विनाश। देख रहे हो मेरे गले में सोने की जंजीर में बंधी हुई यह चाभी?

प्रश्न 5.
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने क्या कहा?
उत्तर:
रानी द्वारा सेफ की चाबी माँगने पर मानिकचन्द ने इस प्रकार कहा –

हा…हा…हा। नहीं मिलेगी, सेफ की चाबी नहीं मिलेगी, जब तक मैं जिंदा हूँ। जानती हो, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। बीवी, बच्चे, नातेदार, पड़ोसी, नौकर. …ये सब के सब मेरे नहीं हैं, ये मेरे रुपये के हैं। अभी किशोरीलाल मुझे बतला गया है कि मैं मर चुका हूँ। वह मुझसे कह गया है कि रुपया तुम्हें खा गया।”

रुपया तुम्हें खा गया लेखक का परिचय

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गांव में सन् 1903 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद में प्राप्त की। उनके साहित्य के लेखन का आरंभ कविता से हुआ, जो धीरे-धीरे बाद में कहानी-लेखन और नाटक-लेखन में बदलता गया।

रचनाएँ:
भगवतीचरण वर्मा मुख्य रूप से कहानीकार और उपन्यासकार हैं। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

  • कहानी-संग्रह – ‘इंस्टालमेंट’, ‘दो बाँके तथा राख’ और ‘चिनगारी’।
  • काव्य-संग्रह – ‘मधुकण’, ‘प्रेम-संगीत’ और ‘मानव’।
  • उपन्यास – ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’।

महत्त्व:
भगवतीचरण वर्मा उपदेशक नहीं हैं, न विचारक के आसन पर बैठने की आकांक्षा ही कभी उनके मन में उठी। वे जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान रहे। आज के भारतीय गांव और शहर के परिवेश तथा उनकी समस्याओं का ज्ञान और उनके निराकरण के संकेत लेखक की सूक्ष्म और अंतर्भेदनी दृष्टि में मिलते हैं। आज के युग की पहचान करने में उनका लेखन समर्थ है।

रुपया तुम्हें खा गया पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भगवतीचरण वर्मा-लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ में मनुष्य के लोभ और उससे होने वाली हानियों का चित्रण किया गया है। इस एकांकी का सारांश इस प्रकार है –

डॉ. जयपाल मानिकचन्द का कई दिनों से इलाज कर रहे हैं। मानिकचन्द के पूछने पर डॉक्टर जयपाल बताता है कि उसको सुधार धीरे-धीरे हो रहा है। बीमारी के दौरान उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। अगर सुधार हो, तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई। इसे सुनते ही मानिकचंद का चेहरा उतर गया। उसे इस तरह देखकर डॉक्टर ने कहा कि डरने की कोई बात नहीं। बीमारी करीब-करीब ठीक हो चुकी है। इसे सुनकर मानिकचंद ने डॉक्टर को धन्यवाद दिया। फिर कहा कि वह मदन से उसके ड्राइंगरूम में अवश्य मिल ले। वह अस्पताल के खर्चे का सारा प्रबंध कर देगा। डॉक्टर ने उसके प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि क्या वह पैसे से ही धर्म, इंसान, इज्जत आदि को खरीद सकता है।

अब वह जिन्दगी भर बीमार ही रहेगा। उसे कोई भी ठीक नहीं कर सकता है। उसी समय किशोरीलाल वहां आ जाता है। उसे देखकर मानिकचंद हैरान होता है। उसकी हैरानी को देखकर उसने कहा कि वह डरे नहीं। उसने जो चोरी की थी, उसकी सजा वह भुगत चुका है। वह उसके पाप का प्रायश्चित्त कर चुका है। इस सिलसिले में तीन साल जेल में बंद था। वे दिन मेरी घोर विपत्ति और बर्बादी के दिन थे। जेल से छूटकर घर जाने पर उसने देखा कि वह बुरी तरह से उजड़ चुका है। लोग उससे बात न करके उस पर हँसते थे। उसका तिरस्कार और अपमान करते थे। उसके फूल-से बच्चे कुम्हला गए। उसकी पत्नी बूढ़ी हो गई। घर भयानक अभाव में था। यह डॉक्टर जयलाल उसका ही लड़का है।

यह उस समय डॉक्टरी पास कर चुका था। लेकिन एक सजायाफ्ता आदमी का लड़का होने से इसकी डॉक्टरी नहीं चली। बाप-दादा का पुराना सकान कर्ज में था। उसे बेचकर ही उसने इस शहर में शरण ली। इस समय वह उससे रुपए नहीं लेने आया है। वह तो यह देखने आया है कि वह किस प्रकार करोड़पति की जिंदगी जी रहा है। – उसी समय मानिकचंद के लड़के मदन ने कहा कि बाबूजी को इन्कमटैक्सवालों ने चालीस लाख रुपए का नोटिस दिया है। उन्हें हमारे पुराने हिसाब-किताब का पता चल गया है। उसकी पत्नी रानी ने कहा कि इन रुपयों का प्रबंध करना ही होगा। मिल छुड़ाना है। इसलिए वह सेफ की चाबी मदन को दे दे।

इसे सुनकर उसने उन दोनों को फटकारते हुए कहा कि वह सेफ की चाबियाँ मदन को देकर अपना हाथ नहीं कटवाएगा। इसलिए वे दोनों वहाँ से चले जाएँ। इसे देखकर डॉक्टर जयपाल उन दोनों माँ-बेटे (रानी और मदन) को समझाता है कि वे दोनों वहाँ से तुरन्त चले जाएँ। जब मानिकचंद शान्त हो जाएगा, तब वह उसे समझा-बुझाकर सब कुछ तय कर लेगा। किशोरीलाल को देखकर मदन ठिठक जाता है।

किशोरीलाल से सहानुभूति की आशा से मानिकचंद अपनी पत्नी-बेटे की शिकायत करता है। किशोरीलाल उसे अपने पत्नी-बेटे को सेंफ की चाबी दे देने की सलाह देता है। उसे सुनकर मानिकचंद उसे समझाते हुए केहता है कि वह उन्हें सेफ की चाबी हरगिज नहीं देगा। अगर देगा तो उसका अर्थ होगा अपने गले में फंदा डालना।

मानिकचंद किशोरीलाल से अपना रुपया वापस लेकर उसे उस अभिशाप से मुक्त करने का निवेदन करता है। वह उससे क्षमा माँगता है तो किशोरीलाल उसे समझाते हुए कहता है कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसने ही कोई बड़ा पाप किया होगा, जिसका उसे दंड के रूप में जेल की सजा मिली। अब उसे कोई दुःख-अभाव नहीं है। उसका सारा परिवार सुखी और सम्पन्न है। इसे सुनकर मानिकचंद ने कहा कि वह उसे धोखा दे रहा है। किशोरीलाल ने उसे फटकारते हुए कहा कि वह उसे धोखा नहीं दे रहा है बल्कि वह अपने आपको ही धोखा दे रहा है। ऐसा इसलिए कि उसकी सुख-शान्ति और संतोष को अर्थ के पिशाच ने छीनकर नष्ट कर दिया है।

उस दिन जब उसने दस हजार रुपए चुराए थे, तब उसने यह समझा था कि वह रुपया खा गया, लेकिन ऐसी बात नहीं है। उसने रुपया नहीं खाया था, बल्कि रुपया उसे खा गया। इसका प्रमाण है कि उसमें प्रेम, दया आदि की कोई भावना नहीं है। उसके अंदर का मनुष्य मर चुका है। उसकी जगह पिशाच घुस गया है। अपनी पत्नी रानी को देखकर मानिक चंद विक्षिप्त की तरह कहता है कि अगर वह सेफ की चाबी लेने आई है, तो वह उसे नहीं मिलेगी।

उसका इस संसार में कोई भी नहीं है। उसके सभी नाते, संबंधी, पड़ोसी, नौकर रुपए के हैं, उसके नहीं हैं। किशोरीलाल अभी कह गया है कि वह मर चुका है। उसे रुपया खा गया है। रानी के पूछने पर मानिकचंद ने कहा कि उसकी तबियत बिल्कुल ठीक है। केवल एक सत्य उस पर प्रकट हुआ है कि उसकी प्रेत आत्मा को किशोरीलाल ने पकड़कर उसके सिरहाने छोड़ दिया है। वह कह रही है रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।

रुपया तुम्हें खा गया संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
सेठजी, बीमारी का अन्त होता है, बीमारी में सुधार नहीं हुआ करता। जितने दिन तक बीमारी चलती है वह बीमारी की अवधि कहलाती है। उस अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, अगर सुधार हो तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई।

शब्दार्थ:

  • अवधि – समय।
  • उतार-चढ़ाव – कम-अधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवतीचरण वर्मा लिखित एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने डॉक्टर जयलाल के कथन के माध्यम से बीमारी क्या होती है, यह बतलाने का प्रयास किया है। डॉक्टर जयलाल बीमार मानिकचंद को समझाते हुए कह रहा है –

व्याख्या:
सेठजी! बीमार के सही इलाज होने से बीमारी में सुधार या कमी नहीं होती है, बल्कि बीमारी की समाप्ति ही हो जाती है। इस प्रकार बीमारी का इलाज लगातार होता रहता है। इसे ही बीमारी का समय कहा जाता है। इस समय में बीमारी में कभी कमी होती है तो कभी अधिकता। दूसरे शब्दों में यह कि इलाज के बावजूद बीमारी कभी घट जाती है तो कभी बढ़ जाती है। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि बीमार का सही इलाज होने से कुछ सुधार होने लगता है। ऐसा होने पर यह मान लिया जाता है कि बीमारी का अंत हो गया।

विशेष:

  1. बीमारी के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा में प्रवाह है।
  3. शैली बोधगम्य है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. बीमार के इलाज से क्या होता है?
  2. बीमारी की अवधि किसे कहते हैं?

उत्तर:

  1. बीमारी के इलाज से बीमारी का अंत होता है।
  2. जितने दिन बीमारी चलती है, वह बीमारी की अवधि कहलाती है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
बीमारी की अवधि में क्या होता है?
उत्तर
बीमारी की अवधि में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।

प्रश्न 2.
मैं जेल में बंद था। कभी रोता था, कभी हँसता था। कभी पागलपन में बकने लगता था। तीन साल बाद छूटकर मैं अपने घर पहुंचा, और मैंने देखा कि मैं बुरी तरह उजड़ गया हूँ। लोग मुझसे बात नहीं करते थे। मुझ पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा होती थी। मेरे फूल से बच्चे कुम्हला गए थे। मेरी पत्नी इन तीन वर्षों में बूढ़ी हो गई थी। घर में भयानक अभाव था।

शब्दार्थ:

  • उजड़ – बर्बाद।
  • तिरस्कार – अपमान।
  • उपेक्षा – अनादर।
  • कुम्हला – मुरझा।
  • अभाव – कमी।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद से किशोरीलाल की आपबीती दुखद जिंदगी का उल्लेख किया गया है। किशोरीलाल ने मानिकचंद से कहा।

व्याख्या:
मानिकचंद तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि उसने कई साल जेल की सजा काटी है। जेल की सजा काटते हुए वह कभी शान्त नहीं था। वह अपने दुःखमय जीवन को सोच-सोचकर कभी रोता था और कभी सुखों को याद करके हँसता भी था। इसी तरह कभी-कभी पागल होकर बेचैन हो उठता था। फिर ऊटपटांग बातें करने लगता था। इस तरह से उसने तीन साल जेल में बिताए। जेल से छूटने पर जब वह अपने घर आया तो उसने देखा कि उसका घर पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। उसकी गरीबी और तंग हालात को देखकर उसके आस-पास के लोग और सगे-संबंधी उससे मुँह फेर लिये थे।

उससे मिलना-जुलना और बात करना बंद कर दिए थे। इस प्रकार उसकी चारों ओर से अनादर और अपमान होने लगा था। उसकी इस प्रकार की दुर्दशा का यह भी असर पड़ा कि उसके सुखी और सुन्दर बच्चे कुपोषण का शिकार हो गए। उनका जीवन अंधकार में डूब गया। इसी तरह उसकी पत्नी भी गरीबी का शिकार होने के कारण इतनी कमजोर हो गई थी कि वह झुक गई। सीधी न खड़ी हो सकती थी और न बैठ ही सकती थी। सचमुच में उसके घर में बुरी तरह कंगाली छा गई थी।

विशेष:

  1. भाषा मार्मिक है।
  2. शैली हृदयस्पर्शी है।
  3. गरीबी का सटीक चित्रण है।
  4. सम्पूर्ण कथन स्वाभाविक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपर्युक्त कथन में किस तथ्य का उल्लेख है?
  2. उपर्युक्त कथन का संक्षिप्त भाव लिखिए।

उत्तर:

1. उपर्युक्त कथन में जेल-जीवन के दुखद पहलुओं का उल्लेख है।

2. उपर्युक्त कथन के द्वारा यह भाव स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कि गरीबी और अभावपूर्ण जीवन हर प्रकार से दुखद और उपेक्षित होता है। उसे कहीं से कोई सुख की किरण नहीं दिखाई देती है। इस प्रकार का जीवन जीनेवाला हताशा और निराशा के घने अंधकार में डूब जाता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. जेल-जीवन कैसा होता है?
  2. उजड़े हुए व्यक्ति का घर-परिवार किस तरह का हो जाता है?

उत्तर:

  1. जेल-जीवन बड़ा ही दुखद होता है। जेल में बंद व्यक्ति पागल की तरह बड़ा ही अशान्त रहता है।
  2. उजड़े हुए व्यक्ति से लोग बात नहीं करते और उस पर तिरस्कार और उपेक्षा की वर्षा करते हैं। बच्चों पर मुसीबत आ जाती है। घर में भयानक अभाव आ जाता है।

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प्रश्न 3.
मानिकचंद्र, धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख-शाति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे। तब तुमने समझा था. कि तुम रुपया खा गए….लेकिन तुमने बहुत गलत समझा था।

शब्दार्थ:

  • पिशाच – भूत-प्रेत।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें किशोरीलाल ने मानिकचंद की अज्ञानता को उसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
वह उसे धोखा नहीं दे रहा है। यह भी कि वह किसी प्रकार के अँधेरे में भी नहीं रख रहा है। उसे तो यह बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि वह ही अपने आपको धोखा दे रहा है। अपने आपको अँधेरे में रख रहा है। यह इसलिए कि वह अपने आपको बहुत सुखी और शान्ति का जीवन जीने की बात सोचकर फूले नहीं समा रहा है तो वह गलतफहमी है। उसे तो यह बिलकुल ही साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि उसके सुख और उसकी शान्ति को उसके लोभ और असंतोष ने समाप्त कर दिया है।

उसमें अर्थ की प्रेतात्मा आ गई है, जिसने उसके सुख-चैन और संतोष को निगल लिया है। उसे उस दिन को नहीं भूलना चाहिए, जिस दिन उसने दस हजार रुपये की चोरी की थी। उस दिन उसने यह समझने में गलती की थी कि उसने रुपया खा लिया है। अब उसे इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि उसने रुपये नहीं खा लिये हैं, बल्कि रुपया ने उसे खा लिया है।

विशेष:

  1. अर्थ को पिशाच के रूप में कहकर अर्थ के दुष्परिणाम को बतलया गया है।
  2. भाषा में सजीवता है।
  3. कथन में यथार्थ की पूर्णता है।
  4. शैली व्यंग्यात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
अर्थ के दुष्प्रभाव को बताइए।
उत्तर:
अर्थ के कई दुष्प्रभाव होते हैं; जैसे-सुख शान्ति और कष्ट हो जाते हैं। स्वयं को सही और दूसरे को गलत समझना आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
उपर्युक्त गद्यांश का संक्षिप्त भाव लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त गद्यांश का भाव यह है कि अर्थ पिशाच की तरह होता है। वह जिसके पास होता है, उसके सुख, शान्ति और संतोष को नष्ट कर देता है। वह उसे कहीं का नहीं छोड़ता है। वह उसके ज्ञान और विवेक को भूलभूलैया में डालकर उसमें अनेक प्रकार के दुर्भावों को पैदा कर देता है। इससे वह घर-समाज की आँखों से गिरकर अकेला पड़ जाता है।

प्रश्न 4.
बिल्कुल ठीक है रानी, केवल एक सत्य मुझ पर प्रकट हुआ है। मेरी प्रेतात्मा को किशोरीलाल न जाने कहाँ से पकड़ लाया और वह उस प्रेतात्मा को मेरे सिरहाने छोड़ गया। सुन रही हो, वह प्रेतात्मा क्या कह रही है? वह कह रही है… रुपया तुम्हें खा गया। रुपया तुम्हें खा गया…रुपया तुम्हें खा गया।

शब्दार्थ:

  • सिरहाने – सिर के पास।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें मानिकचंद के सत्यज्ञान पर प्रकाश डाला गया है। मानिकचंद की धर्मपत्नी ने घबराकर डॉक्टर जयलाल से अपने पति (मानिकचंद) की तबियत के विषय में पूछा तो मानिकचंद ने उसे बड़े प्यार से अपने सत्यज्ञान को बतलाते हुए कहा कि –

व्याख्या:
मेरी प्यारी रानी! तुमने मेरे स्वास्थ्य के बारे में चिन्ता की, इससे मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन इस समय मुझे ऐसा आत्मज्ञान हो रहा है, जो मेरे ऊपर छाए हुए असत्य के अन्धकार को हटाकर सत्य का प्रकाश फैला रहा है। किशोरी लाल ने मेरे लिए एक दुखद स्थिति पैदा कर दी है। वह यह कि उसने उसकी प्रेतात्मा को कहीं से पकड़ लिया है। उसने उसे उसके सिरहाने लाकर रख दिया है। वह प्रेतात्मा हमेशा उसे बेचैन किए रहती है। वह हमेशा बड़बड़ाती रहती है। तुम उसे इस प्रकार बड़बड़ाते हुए सुन सकती हो। सुनो, सुनो वह यह कह रही है-“रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया। रुपया उसे खा गया।”

विशेष:

  1. रुपया के दुष्प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
  2. भाषा सरल और सपाट है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. 4. यह अंश मर्मस्पर्शी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
मानिकचंद पर कौन-सा सत्य प्रकट हुआ?
उत्तर:
मानिकचंद पर रुपया. रूपी प्रेतात्मा का सत्य प्रकट हुआ।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
‘रुपया तुम्हें खा गया।’ का भाव यह है-धनवान व्यक्ति के अन्दर का मानव पिशाच बन जाता है। फलस्वरूप उसमें ममता नहीं होती है। दया नहीं होती है। प्रेम नहीं होता है। वह तो अपने सुख और आनन्द के लिए किसी की भी बलि चढ़ा देता है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी (आत्मकथा, महात्मा गाँधी)

धर्म की झाँकी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघु-स्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने किसका उदार अर्थ माना है?
उत्तर:
आत्मबोध और आत्मज्ञान को गांधीजी ने धर्म का उदार अर्थ माना है।

प्रश्न 2.
गांधीजी के मन पर किस चीज का गहरा असर पड़ा?
उत्तर
गांधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा।

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प्रश्न 3.
गांधीजी के अनुसार किस ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार भागवत ग्रंथ के पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में किन महोदय से भागवत कथा सुनी थी?
उत्तर:
गांधीजी ने अपने इक्कीस दिन के उपवास-काल में भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय के शुभ-मुख से भागवत कथा सुनी थी?

प्रश्न 5.
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय कैसे दूर हुआ?
उत्तर:
गांधीजी का भूत-प्रेत का भय अपनी धाय रम्भा के द्वारा राम-नाम के जप नामक अमोघ शक्ति से दूर हुआ।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ उदा है धर्म का यह भी अर्थ है-आत्मबोध, आत्मज्ञान।

प्रश्न 2.
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति प्रेम की बुनियाद किस घटना ने रखी थी?
उत्तर:
गांधीजी के भीतर रामायण-श्रवण और रामायण के प्रति बुनियाद पोरबन्दर में घटी एक घटना ने रखी थी। उस समय वे अपने पिताजी के साथ रामजी के मंदिर में रोज रात के समय बीलेश्वर लाधा महाराज से रामायण सुनते थे। वे एक पंडित थे। वे रामचन्द्रजी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोल की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू किया। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, हम सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

यह भी सच है कि जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर बिल्कुल निरोग था। लाधा महाराज का कंठ मधुर था। वे दोहा-चौपाई गाते और उनके अर्थ को समझाते थे। स्वयं उसके रस में डूब जाते थे और सुननेवालों को भी उसमें डुबो देते थे। गांधीजी का कहना है कि वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें याद है कि लाधा महाराज के पाठ से उन्हें खूब आनंद आता था। यह राम-नाम श्रवण रामायण के प्रति उनके अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज वे इसीलिए तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानते हैं।

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प्रश्न 3.
गांधीजी की दृष्टि में सर्वधर्म समभाव का उदय किन प्रसंगों की प्रेरणा से हुआ था?
उत्तर:
राजकोट में गांधीजी को अनायास ही सब सम्प्रदायों के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा मिली। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रत्येक समुदाय का आदर करना सीखा, क्योंकि उनके माता-पिता वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मंदिर में भी जाते और अपने भाइयों को भी साथ ले जाते या भेजते थे। फिर उनके पिताजी के पास जैन धर्माचार्यों से भी कोई-न-कोई हमेशा आते रहते थे। उनके पिताजी उन्हें दान भी देते थे।

वे उनके पिताजी के साथ धर्म और व्यवहार की बातें किया करते थे। इसके सिवा उनके पिताजी के मुसलमान और पारसी मित्र भी थे। वे अपने-अपने धर्म की चर्चा करते और पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे। उनके पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी देखभाल हेतु ऐसी चर्चा के समय वे अक्सर हाजिरें रहते थे। इस सारे वातावरण का प्रभाव उन पर यह पड़ा कि उनमें सब धर्मों के लिए समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी भाव विस्तार/ पल्लवन

प्रश्न.

  1. ‘बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ’ पंक्ति में विचार का विस्तार कीजिए?
  2. “आज मैं यह देख सकता हूँ, कि भागवत एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है।”
  3. “बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।”

उत्तर:

1. उपर्युक्त पंक्ति महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से लिया गया है। इसमें गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन के संस्कार बड़े ही मजबूत और महत्त्वपूर्ण होते हैं। वे बचपन में अंकुरित अवश्य होते हैं, लेकिन उनके प्रभाव बड़े ही दूरगामी होते हैं। इस तथ्य को समझकर और इसे ध्यान में बच्चों के ऐसे संस्कारों को महत्त्व देना चाहिए जो हर प्रकार से सुन्दर, सुखद और लाभकारी हों। इसके विपरीत संस्कार तो न केवल बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं अपितु दूसरों को भी। अगर बच्चों के संस्कार अच्छे होंगे, तो उनका बचपन खुशहाल होगा और उनका शेष जीवन भी। उससे आस-पास का वातावरण भी लाभान्वित होगा। इसके विपरीत बच्चों के बुरे संस्कार उनके बचपन और शेष जीवन को हानि पहुँचाए बिना नहीं रहेगा। यही नहीं उससे आस-पास का वातावरण भी दुखी बना रहेगा। इस प्रकार बचपन में बोया गया बीज कभी नष्ट नहीं होता है।

2. उपर्युक्त कथन महात्मा गांधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से है। इसमें महात्मा गांधी ने इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि भागवत एक महान ग्रंथ ही नहीं है, अपितु वह एक सरस, भाववर्द्धक और धार्मिक ग्रंथ भी है। वह मुख्य रूप से एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें धार्मिक रस प्रवाहित होता है। इस तथ्य की सच्चाई तभी ज्ञात होती, जब कोई धार्मिक व्यक्ति अपने तन-मन से उसका ऐसा मधुर, भावपूर्ण और सरस पाठ करे, जिसे सुनकर लोग बाग-बाग हो उठे। उनकी धार्मिक भावधारा उमड़कर प्रवाहित होने लगे।

3. ‘उपर्युक्त वाक्य महात्मा गाँधी-लिखित आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इस वाक्य के द्वारा गाँधीजी ने यह कहना चाहा है कि बचपन की आदतें जल्दी नहीं जाती हैं। वे बचपन के बाद युवावस्था और उसके बाद भी कुछ-न-कुछ अवश्य बनी रहती हैं। परिस्थितियाँ टकराकर भी अपनी जड़ें बनाए रहती हैं। वे आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, लेकिन उनके प्रभाव बहुत समय तक होते हैं। इसलिए बच्चों के शुभ-अशुभ संस्कारों की जानकारी न रखने की भूल बड़ी दुखद, होती है। क्योंकि अगर शुभ संस्कारों की जगह अशुभ संस्कार किसी प्रकार से हानिप्रद होते हैं तो वे बच्चों का सुनहरा बचपन छीन लेते हैं। फलस्वरूप उनका आगामी जीवन अंधकारमय हो जाता है। इसके विपरीत शुभ संस्कारों से न केवल बचपन जगमगा उठता है, अपितु आगामी जीवन भी सुगंधित होकर लोकप्रिय बन जाता है। इस आधार पर यह कहना बिल्कुल ही सच है-‘बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।’

धर्म की झाँकी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –
भूत-प्रेत, राम-नाम, नित्यपाठ, धर्म-रस, राम-रस।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएउदार, आदर, ऊपर, श्रद्धा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को संधियुक्त करते हुए संधि का नाम बताइए –

  1. वात + आवरण
  2. सर्व + उत्तम
  3. शिव + आलय
  4. राम + अयण।

उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 13 धर्म की झाँकी img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखते हुए वाक्य बनाइए –
भूत, जड़, भेद, फल
उत्तर:
भूत – अतीत-हमें अपना भूत नहीं भूलना चाहिए।
भूत – मृतात्मा-मैं भूतों से नहीं डरता हूं।

जड़ – मूल-बरगद की जड़ बहुत दूर तक फैली होती है।
जड़ – मूर्ख-जड़बुद्धि वालों से सावधान रहना चाहिए।

भेद – रहस्य-इसका कोई भेद नहीं जान सकता है।
भेद – अंतर-सही और गलत में भेद जानना चाहिए।

फल – परिणाम-मेहनत का फल मीठा होता है।
फल – पेड़ का फल-सेव एक स्वास्थ्यवर्धक फल है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखिए –

  1. वे दोहा-चौपाई को गाते और दोहा-चौपाई का अर्थ समझाते थे।
  2. पिता भी नित्य प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी रसपूर्वक उनकी बातें सम्मानपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में शुभ-अशुभ संस्कार में पड़े हुए बहुत गहरे जड़ जमाते हैं।

उत्तर:

  1. वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे।
  2. पिताजी प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे।
  3. पिताजी उनकी बातें सम्मानपूर्वक और रसपूर्वक सुना करते थे।
  4. बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।

धर्म की झाँकी योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने जीवन की प्रमुख दो घटनाओं को आधार बनाकर उन्हें आत्मकथात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
गांधीजी की ‘मेरी आत्मकथा’ पुस्तक को पढ़कर उनके प्रेरक प्रसंगों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
सभी धर्मों का मूल मानवता है। आप जिस धर्म या संप्रदाय से हैं, उनके मूल गुणों को लिखिए और अन्य धर्मों के मूल गुणों को समझिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
“शिक्षा केवल विद्यालय से नहीं, वरन् वातावरण से भी प्राप्त होती है।” वाद-विवाद प्रतियोगिता के माध्यम से तर्क प्रस्तुत कीजिए अथवा उपर्युक्त विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

धर्म की झाँकी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

धर्म की झाँकी लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा कहाँ से मिली?
उत्तर:
गाँधीजी को धर्म की शिक्षा उनके आस-पास के वातावरण से मिली।

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प्रश्न 2.
गाँधीजी का मन हवेली से क्यों उदासीन हो गया?
उत्तर:
गाँधीजी का मन हवेली से उदासीन हो गया। यह इसलिए कि हवेली में अनीति की बातें होती थीं। उसे सुनकर उनका मन उदासीन हो गया।

प्रश्न 3.
गाँधीजी को रामायण के पाठ में क्यों खूब रस आता था?
उत्तर:
गाँधीजी को रामायण के पाठ में खुब रस आता था। यह इसलिए कि रामायण के पाठ को लाधा महाराज बड़ी सरसता से अर्थ समझाकर करते थे। उसे सुनने वाले स्वयं को उसी में खो देते थे।

प्रश्न 4.
किससे गाँधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया?
उत्तर:
अपने वातावरण के प्रभाव से गांधीजी में सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी को हवेली से क्या मिला?
उत्तर:
गाँधीजी को जो हवेली से मिला, वह उन्हें अपनी धाय रेम्भा से मिला। रम्भा उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसका प्रेम उन्हें आज भी याद है। उन्हें भूत-प्रेत आदि का डर लगता था। रम्भा ने उन्हें समझाया कि इसकी दवा रामनाम है। उन्हें तो रामनाम से भी अधिक श्रद्धा रम्भा पर थी, इसलिए बचपन में भूत-प्रेतादि के भय से बचने के लिए उन्होंने राम-नाम जपना शुरू किया। यह जप बहुत समय तक नहीं चला। पर बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ। आज रामनाम उनके लिए अमोघ शक्ति है। वे मानते हैं कि उसके मूल में रम्भाबाई का बोया हुआ बीज है।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के द्वारा रामायण कंठाग्र करने के कारण बताइए।
उत्तर:
गाँधीजी के चाचाजी के एक लड़के ने जो रामायण के भक्त थे, उनके दो भाइयों को राम-रक्षा का पाठ सिखाने की व्यवस्था की। उन्होंने उसे कण्ठाग्र कर लिया और स्नान के बाद उसके नित्यपाठ का नियम बनाया। जब तक पोरबंदर में रहे, यह नियम चला। राजकोट के वातावरण में यह टिकं न सका। इस क्रिया के प्रति भी खास श्रद्धा नहीं थी। अपने बड़े भाई के लिए मन में जो आदर था, उसके कारण और कुछ शुद्ध उच्चारणों के साथ राम-रक्षा का पाठ कर पाते हैं-इस अभिमान के कारण पाठ चलता रहा।

प्रश्न 3.
रामायण का पारायण सुनने वालों ने क्या बात सच मानी?
उत्तर:
गाँधीजी के पिताजी रामजी के मंदिर में रोज रात के समय रामायण सुनते थे। सुनाने वाले बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक एक पंडित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें कोढ़ की बीमारी हुई, तो उसका इलाज करने के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेलपत्र लेकर कोढ़ वाले अंग पर बांधे, और केवल रामनाम का जप शुरू हुआ। अन्त में उनका कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गया। यह बात सच हो या न हो, रामायण का पारायण सुनने वालों ने तो सच ही मानी।

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प्रश्न 4.
मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
पंडित मदन मोहन मालवीय जी से भागवत सुनकर गांधीजी पर बड़ी भारी प्रतिक्रिया हुई। उन्हें उस समय यह ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवत्-भक्त के मुंह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उम्र में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

प्रश्न 5.
‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपने बाल और किशोर जीवन के उन कतिपय प्रसंगों को महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा के इस अंश में प्रस्तुत किया है, जिन्होंने उनके परवर्ती जीवन पर प्रभाव डाला है। राम-नाम के प्रति उनकी दृढ़ आस्था ने उन्हें निर्भीकता प्रदान की। भारतीय महाकाव्यों के श्रवण-पठन ने उन्हें संस्कारी जीवन जीने की प्रेरणा दी और उनके उदार पारिवारिक वातावरण ने उन्हें सर्वधर्म समभाव की दृष्टि प्रदान की। आत्मकथा के इस हिस्से में महात्मा गांधी की स्पष्टता, आत्मीयता और सहजता का अनुभव किया जा सकता है।

धर्म की झाँकी लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात राज्य के पोरबन्दर नगर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था.। उनके पिता का नाम करमचन्द और माता का नाम पुतलीबाई था। उनकी आरम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। अपनी आरम्भिक शिक्षा को समाप्त करके अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ पर उन्होंने लगातार अध्ययन करके बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त कर ली। इसके बाद स्वेदश लौट जाए।

स्वदेश आकर महात्मा गाँधी वकालत करने लगे। वे एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ पर उन्होंने भारतीयों और अपने साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार और दुर्व्यवहार को देखकर अंग्रेजों का विरोध किया। इसके लिए उन्होंने अहिंसात्मक आन्दोलन चलाए। इसके बाद वे स्वदेश लौट आए। स्वदेश आकर उन्होंने श्री गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया। उनकी देख-रेख में उन्होंने देश की आजादी के लिए देश के विभिन्न भागों में सत्याग्रह किए। उन्होंने अपने सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन को आजादी के लिए अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग किया। उनके इस अथक प्रयास से 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

रचनाएँ:
‘हिन्दस्वराज्य’ सर्वोदय (रस्किन की ‘अन टु दि लास्ट’ पुस्तक का अनुवाद) दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर अत्याचार का वर्णन करने वाली पुस्तक ‘हरी पुस्तक’ आदि गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं। उन्होंने ‘यंग इण्डिया’ और ‘हरिजन’ नामक पत्र भी निकाले। उन्होंने ‘सत्य के प्रयोग’ नामक महत्त्वपूर्ण आत्मकथा भी लिखी।

महत्त्व:
गाँधीजी के साहित्य का महत्त्व निर्विवाद रूप से है। उनका साहित्य साम्प्रदायिक सद्भाव का पक्षपाती है। वह निम्न तथा पिछड़े वर्ग के विकास का प्रेरक है। उसमें आत्मनिर्भरता का अद्भुत पाठ है। परस्पर मेल-मिलाप की सीख देने वाला वह एक बेजोड़ साहित्य है।

धर्म की झाँकी पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ आत्मकथा में अनेक प्रेरक घटनाओं प्रसंगों का उल्लेख है। महात्मा गाँधी का कहना है कि उन्हें छह या सात साल से सोलह साल तक की शिक्षा में धर्म की शिक्षा नहीं मिली। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। हवेली का वैभव उन्हें अच्छा नहीं लगा। उसके प्रति उदासीन हो गए। उन्हें वहाँ की रम्भा की याद आज भी है। वह उनके परिवार की पुरानी नौकरानी थी। उसने उन्हें भूत-प्रेतादि के भय से बचाने के लिए राम-नाम जपने का मन्त्र दिया था। आज भी उनके लिए यह अमोघ शक्ति है। उन्होंने अपने चाचाजी के एक लड़के से राम-रक्षा का पाठ सीख कर नियमित रूप से पाठ करके उसे कंठाग्र कर लिया। पोरबंदर में यह पाठ नियमित रूप से चलता रहा, लेकिन राजकोट में नहीं।

गाँधीजी के मन पर रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा। उनके बीमार पिताजी पोरबंदर के रामजी के मन्दिर में रात के समय बीलेश्वर के लाधा महाराज नामक पण्डित से रामायण सुनते थे। वे रामचन्द्र के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने अपनी कोढ़ की बीमारी को बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल-पत्र को कोढ़ वाले अंगों पर बाँध देते थे। फिर राम नाम का जप करते थे। इससे उनका कोढ़ बिलकुल ठीक हो गया। उनका कण्ठ इतना मीठा था कि जब वे दोहा-चौपाई गाकर अर्थ समझाते थे तो उससे श्रोता रसमग्न हो जाते थे। उससे वे रामायण के प्रति अधिक लीन हो गए। फलस्वरूप वे तुलसी के रामायण को भक्तिमार्ग का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ मानते हैं।

वे राजकोट आए तो रामायण नहीं, एकादशी के दिन भागवद् जरूर पढ़ी जाती थी। उसे सुनने पर उन्हें रामायण जैसा आनन्द नहीं आया। इसलिए उन्होंने यह मान लिया कि भागवद् ग्रन्थ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता हैं उन्होंने अपने उपवास के दौरान मदन मोहन मालवीय के मूल संस्कृत के कुछ अंश सुने। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे बचपन में ऐसा सुने होते तो उस पर उस समय प्रगाढ़ प्रेम हो जाता।

राजकोट में गाँधी को सभी सम्प्रदायों के प्रति एक समान भाव रखने की शिक्षा मिली। इससे उन्होंने सभी सम्प्रदायों के प्रति सम्मान की भावना रखना सीखा। ऐसा इसलिए भी कि उनके माता-पिता उन्हें और उनके भाइयों को अपने साथ वैष्णव मन्दिर में, शिवालय में और राम-मन्दिर ले जाते थे या किसी के साथ भेजते थे। गाँधीजी के पिताजी के पास जैन धर्माचार्य आया करते थे। इनके पिताजी उन्हें दान देते थे और वे उनके साथ धर्म-व्यवहार पर चर्चा करते थे। इनके पिताजी के पारसी और मुसलमान मित्र उनसे अपने धर्म की चर्चा करते थे। वे उसे बड़े आदर से सुनते थे। इससे उनमें सब धर्मों के प्रति समान भाव पैदा हो गया।

धर्म की झाँकी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
छह या सात साल से लेकर सोलह साल की उमर तक मैंने पढ़ाई की, पर स्कूल में कहीं भी धर्म की शिक्षा नहीं मिली। यों कह सकते हैं कि शिक्षकों से जो आसानी से मिलना चाहिए था, नहीं मिला। फिर भी वातावरण से कुछ-न-कुछ तो मिलता ही रहा। यहाँ धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। मैं वैष्णव सम्प्रदाय में जन्मा था, इसलिए हवेली में जाने के प्रसंग बार-बार आते थे, पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा नहीं लगा। हवेली में चलने वाली अनीति की बातें सुनकर मन उसके प्रति उदासीन बन गया। वहाँ से मुझे कुछ भी न मिला।

शब्दार्थ:

  • उदार – दयालु, भला।
  • आत्मबोध – आत्मा का ज्ञान, स्वयं को जानना।
  • अनीति – दुराचार, दुष्टता, अनैतिकता।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महात्मा गाँधी-लिखित ‘धर्म की झाँकी’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने धर्म के अर्थ को बतलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत छह या सात साल की उम्र से की थी। इस उम्र से लेकर वे सोलह साल तक लगातार पढ़ते रहे। लेकिन यह ध्यान देने . की बात है कि इस दौरान उन्हें किसी भी स्कूल या कॉलेज से धर्म की शिक्षा नहीं प्राप्त हुई। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि धर्म शिक्षा का जो एक आवश्यक अंग होता है। उसे शिक्षकों ने छोड़ दिया। इस तरह की अपनी शिक्षा के दौरान धर्म का पाठ न पढ़ सके। इसके बावजूद उन्हें अपने आस-पास के वातावरण से जो कुछ प्राप्त हुआ, उसमें धर्म-शिक्षा भी थी। उससे उन्होंने अपने जीवन में बहुत सीखा। उससे बहुत कुछ हासिल भी किया।

गाँधीजी का पुनः कहना है कि धर्म का अर्थ खासतौर से उदार होना चाहिए। जिस धर्म में उदारता, दयालुता, परोपकारिता और परहित चिन्तन की भावना नहीं है, वह धर्म सच्चा नहीं हो सकता। धर्म से अभिप्राय आत्म-बोध अर्थात् अपना अनुभव। धर्म का एक दूसरा भी अर्थ होता है-आत्मज्ञान, अर्थात् आत्मा का ज्ञान, अपने आप को जान लेना, समझ लेना। गाँधीजी का स्वयं के विषय में यह कहना है कि वैष्णव सम्प्रदाय में पैदा हुए थे। यही कारण था, उन्हें हवेली में जाने की बात बार-बार आती थी। लेकिन इसका उनके मन में कोई लगाव नहीं था और न कोई श्रद्धा ही हुई थी।

इसके कई कारणों में से कुछ कारण इस प्रकार थे-हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें आकर्षित न कर सकी। हवेली का वाताबरण उन्हें ठीक नहीं लगता था। वहाँ की बातचीत बड़ी ही अनैतिक और असभ्य होती थी। इससे उनका मन नहीं लगा। इस प्रकार उन्हें वहाँ पर ऐसी कोई चीज नहीं दिखाई दी, जिससे वे आकर्षित हो सकें या कुछ प्राप्त कर सकें।

विशेष:

  1. भाषा सरल और सुबोध है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. धर्म के अर्थ और स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  4. वाक्य का गठन अर्थपूर्ण है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को क्या नहीं प्राप्त हुआ?
  2. धर्म के क्या-क्या अर्थ हैं?

उत्तर:

  1. विद्यार्थी जीवन में महात्मा गाँधी को धर्म क्या होता है? इसकी शिक्षा उन्हें प्राप्त नहीं हुई।
  2. धर्म के कई अर्थ हैं-उदारता, आत्मबोध, आत्मज्ञान आदि।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. महात्मा गाँधी को किससे क्या नहीं मिला?
  2. हवेली के प्रति गाँधीजी को क्यों अरुचि हो गई थी?

उत्तर:

1. महात्मा गाँधी को अपने शिक्षकों से धर्म की शिक्षा नहीं मिली।

2. हवेली के प्रति गाँधीजी को अरुचि हो गई थी। यह इसलिए कि –

  • हवेली की साधन-सम्पन्नता उन्हें अनुचित लगती थी।
  • हवेली में होने वाली बातें अनैतिक होती थीं।
  • हवेली से उन्हें कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ।

प्रश्न 2.
जब लाधा महाराज ने कथा शुरू की, तब उनका शरीर विल्कुल नीरोग था। लाधा महाराज का कंठ मीठा था। वे दोहा-चौपाई गाते और अर्थ समझाते थे। स्वयं उसके रस में लीन हो जाते थे और श्रोताजनों को भी लीन कर देते थे। उस समय मेरी उम्र तेरह साल की रही होगी, पर याद पड़ता है कि उनके पाठ में मुझे खूब रस आता था। यह रामायण-श्रवण रामायण के प्रति मेरे अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। आज मैं तुलसीदास की रामायण को भक्ति-मार्ग का सर्वोत्तम ग्रन्थ मानता हूँ।

शब्दार्थ:

  • कथा – रामायण की कथा।
  • लीन हो जाते थे – डूब जाते थे।
  • श्रोताजनों – सुनने वालों।
  • श्रवण – सुनना।
  • बुनियाद – आरम्भ, जड़, नींव, आधार।
  • सर्वोत्तम – सर्वश्रेष्ठ।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने तुलसीकृत रामायण के प्रति अपनी श्रद्धा-भावना को व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस विषय में गाँधीजी का कहना है कि –

व्याख्या:
उनके मन पर तुलसीकृत रामायण के पारायण का गहरा असर पड़ा है। लाधा महाराज नामक एक पण्डित थे। उन्होंने रामायण की कथा और रामनाम के जप से अपने कोढ़ग्रस्त शरीर को ठीक कर लिये। उन्होंने जब कथा आरम्भ की, तब वे कोढ़ी नहीं थे। वे उस समय बिलकुल स्वस्थ और निरोग थे। उस समय उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। इससे वे रामायण के दोहा-चौपाई का सरस और मधुर स्वर निकालते थे। फिर उनके अर्थ और व्याख्या खूब तन-मन से किया करते थे। इस प्रकार वे उसमें ‘पूरी तरह से डूब जाते थे। फलस्वरूप सुनने वाले भी उसी में डूबकर अपनी सुध खो देते थे।

गाँधी जी का पुनः कहना है कि वे लाधा महाराज द्वारा शुरू की गई इस प्रकार की कथा को बड़े ही ध्यान देकर सुनते थे। वे उस समय लगभग तेरह साल के थे। फिर भी उन्हें उनके द्वारा किए गए रामायण के पाठ से बड़ा ही आनन्द आता था। इस प्रकार रामायण की कथा को सुनकर उसके प्रति उनकी बहुत अधिक श्रद्धा की शुरुआत थी। यही कारण है कि वे आज भी तुलसीकृत रामायण के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं। उसे वे भक्तिमार्ग के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में देखते भी हैं।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. आत्मकथात्मक शैली है।
  3. तुलसीकृत रामायण के प्रति लेखक की श्रद्धा भावना व्यक्त हुई है।
  4. तुलसीकृत रामायण का महत्त्वांकन किया गया है।
  5. यह अंश प्रेरक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लाधा महाराज कौन थे?
  2. लाधा महाराज के कथा कहने की खूबी क्या थी?

उत्तर:

1. लाधा महाराज एक पण्डित थे। वे रामचन्द्र जी के परम भक्त थे।

2. लाधा महाराज के कथा कहने की बहुत बड़ी खूबी थी। उनका कण्ठ बहुत मधुर और सरस था। वे दोहा-चौपाई को मधुर स्वरों से गा-गाकर उनके अर्थ और भावार्थ को अच्छी तरह से समझाते थे। वे उसमें डूब जाते थे। यही नहीं अपनी कथा-कहने । की शैली से सुनने वालों को भी उसमें डूबा देते थे।

गाद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. गाँधीजी को कैसे रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधी जी तुलसीदास की रामायण को किस रूप में देखते हैं?

उत्तर:

  1. गाँधीजी को रामायण को सुनने से रामायण के प्रति अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हो गया?
  2. गाँधीजी तुलसीदास की रामायण को भक्ति मार्ग के सर्वोत्तम ग्रन्थ के रूप में देखते हैं।

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प्रश्न 3.
भागवत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके पाठ से धर्म-रस उत्पन्न किया जा सकता है। मैंने तो उसे गुजराती में बड़े चाव से पढ़ा है। लेकिन इक्कीस दिन के अपने उपवास काल में भारत-भूषण पण्डित मदनमोहन मालवीयजी के शुभ मुख से मूल संस्कृत के. कुछ अंश जब सुने तो ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवद्-भक्त के मुँह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ-अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ; और इस कारण उस उमर में मुझे कई उत्तम ग्रन्थ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।

शब्दार्थ:

  • चाव – रुचि, शौक।
  • मुख – मुँह।
  • मूल – आरंभ, आदि, आधार, नींव।
  • ख्याल – ध्यान।
  • प्रगाढ़ – अत्यधिक, गहरा।
  • अखरता – अफ़सोस होता।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें गांधी जी ने भागवत धर्मग्रंथ की विशेषता बतलाने का प्रयास किया है। इस विषय में गांधीजो का कहना है कि –

व्याख्या:
भागवत साधारण धर्मग्रंथ नहीं है। वह तो एक ऐसा असाधारण ग्रंथ है, जिसके नियमित पाठ से धार्मिक भावों को प्रवाहित करके जीवन को महान बनाया जा सकता है। गांधीजी का यह स्पष्ट कहना है कि उन्होंने तो इस धर्मग्रंथ को गुजराती भाषा में अनुवाद के माध्यम से बड़ी रुचि के साथ पढ़ा था। फिर उस पर गहराई से मनन भी किया था। यह ध्यान देने की बात है कि अपने इक्कीस दिनों के लगातार उपवास के दौरान तो उन्होंने इसे और रुचि के साथ समझने का प्रयास किया था। उस समय उनके लिए एक वह सुवअसर प्राप्त हुआ था।

जब भारत-भूषण पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने अपने मुखारविंद से इसके कुछ अंश को मूल संस्कृत में सुना। उससे उन्हें यह पश्चाताप हुआ कि अगर वे इसे अपने बचपन में इस तरह सुने होते, तो उसी समय ही उन्हें इससे अत्यधिक लगाव हो गया होता। इस तरह उनका पिछला समय न तो बर्बाद होता और न उन्हें इस तरह से पछताना पड़ता। सच में बचपन में जो भी आदत, चाहे अच्छी हो या बुरी पड़ जाती है, वह पूरे जीवन में स्थायी रूप से हो जाती है। यही कारण है कि उस समय के ऐसे-ऐसे श्रेष्ठ ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं उठा पाए, जिसके लिए उन्हें आज भी बहुत पछताना पड़ता है।

विशेष:

  1. भाषा में सरलता है।
  2. भागवत का महत्त्वांकन किया गया है।
  3. आत्मकथात्मक शैलो है।
  4. बचपन को जोवन की नींद के रूप में माना गया है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. भागवत्कैसा ग्रंथ है?
  2. मालवीय जी क्या थे?

उत्तर:

  1. भागवत् ग्रंथ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके पास से धर्म का रसप्रवाहित होता है।
  2. मालवीय जी भगवद्-भक्त थे। वे भागवत् मोहक और मधुर स्वरों में पाठ करतेथे।

प्रश्न.

  1. बचपन के संस्कार कैसे होते हैं?
  2. गांधीजी को क्या अखरता है?

उत्तर:

  1. बचपन के संस्कारों की जड़ें गहरी होती हैं। वे बाद में जीवन में अपना प्रभाव किसी-न-किसी प्रकार से अवश्य डालती हैं।
  2. गांधीजी को अपने बचपन में कई उत्तम ग्रंथों को सुनने का लाभ नहीं मिला। वही अब उन्हें अखरता है।

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