MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को (व्यंग्य, डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त बरसैंया)

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कौन-से प्रसंग आत्मीयता को प्रमाणित करते हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार सुख-दुख के प्रसंग आत्मीयता को प्रमाणित करते हैं।

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प्रश्न 2.
कुत्ता काटने की घटना का वर्णन श्रोतागण भइया जी से किस-किस प्रकार सुनते हैं?
उत्तर:
कुत्ता काटने की घटना का वर्णन श्रोतागण भइया जी से इस प्रकार सुनते हैं –

भइया ने खचाखच भरे दरबार में अपना फटा कुरता और पाजामा तथा मलहम-पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को प्रदर्शित करते हुए सबकी जिज्ञासा-शांति के लिए बताया कि रात के अंधेरे में वह जब टॉर्च लेकर एक सामाजिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे, तभी निर्धन परिवार के एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया। वह कुत्ता कैसे पीछे से उन पर झपटा, कैसे उन्होंने दुतकारा, कैसे वे भागे, कैसे गिरे, फिर उठकर कुत्ते का मुकाबला कैसे किया और कहाँ-कहाँ कुत्ते ने काटा इस सबका पूरे अभिनय के साथ सविस्तार वर्णन जब भइया जी ने किया तो स्वाभाविक है कि सहानुभूति प्रदर्शकों ने भरे गले में अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की।

प्रश्न 3.
‘घर में इन्हीं की झंझट क्या कम है कि एक और मुसीबत मोल ले ली जाए।’ किसके द्वारा कहा गया वाक्य है?
उत्तर:
घर में इन्हीं की झंझट क्या कम है कि एक और मुसीबत मोल ले ली जाए।’ यह वाक्य भइया जी की धर्मपत्नी द्वारा कहा गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कुत्ते के काटने पर भइया जी को उनके शुभचिन्तकों ने किस तरह के सुझाव दिए?
उत्तर:
कुत्ते के काटने पर भइया जी को उनके शुभचिन्तकों ने निम्नलिखित तरह के सुझाव दिए –

  1. कुत्ता यदि पालतू है तो उसके मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करना चाहिए।
  2. कुत्ते को दस दिन तक अपने घर में बाँधकर वॉच करना चाहिए।
  3. भइया जी को दस कुएं झंकवा दिए जाएं।
  4. भइया जी को तीन हजार रुपए का एक इंजेक्शन लगवा देना चाहिए।
  5. भइया जी की झाड़-फूंक करवा ली जाए।

प्रश्न 2.
कुत्ते की उस मानसिक स्थिति का वर्णन कीजिए, जिससे उत्तेजित होकर उसने भइया जी को काटने का निश्चय किया।
उत्तर:
भइया जी अपने स्वभाव के अनुरूप झकाझक कपड़ों में थे ऊपर से कुत्ते पर टॉर्च की रोशनी मारी। कुत्ते को लगा कि मुझ निर्धन बस्ती के कुत्ते को यह संपन्न व्यक्ति अपनी चमक और रोशनी से चकाचौंध करना चाहता है। मेरा मालिक दिनभर परिश्रम कर पसीने से लथपथ फेटे, मैले-कुचैले कपड़ों पर आता है और इनके कपड़ों पर एक दाग भी नहीं? हम दर-दर की ठोकरें खाएँ और ये तथा इनके कुत्ते मालपुए खाएँ। गाड़ियों में घूमें।

झकाझक कपड़ों की शान बघारें। आदमी-आदमी तथा कुत्ते-कुत्ते में भेद पैदा करें। उसके भीतर की अपमान की व्यथा, आक्रोश की आग बनकर भड़क उठी और जैसे ही भइया जी उधर से निकले कि उसने आक्रमण करके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। हाथ-पाँव, कंधों को दाँत और नाखूनों से खरोंच डाला मानो घोषित कर दिया कि अवसर मिलते ही हम अपने अपमान का बदला लेने से नहीं चूकेंगे। निर्धन बस्ती का यह कुंत्ता एक दिन संपन्न बस्ती में अपना झण्डा अवश्य गाड़ेगा।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक साहित्यकारों को क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक साहित्यकारों को यह संदेश देना चाहता है कि –

  1. वे सत्ता और समर्थकों का गायक न बनें।
  2. वे पैसे के पीछे न भागें और दीन-हीन शोषितों की बिरादरी की तरह रहें।
  3. वे पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपने को पथभ्रष्ट न करें।
  4. वे सत्यमार्ग पर चलकर साहित्य-रचनाधर्म का पालन करें।
  5. वे जरूरतमंदों और शोषितों के साथ बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें।

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प्रश्न 4.
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है।” इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है।”

उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य यह है कि आज का साहित्यकार साहित्य-रचना के सत्यमार्ग को छोड़ चुका है। वह सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है। राजनेताओं, अधिकारियों और धनपतियों को देवता-भागवत के रूप में देख-समझ रहा है। फिर उनकी प्रशंसा, स्तुति और यशगान करने में ही वह रात-दिन लगा रहता है। यह इसलिए ऐसा करके ही वह सुख-सुविधामय जीवन बिता सकता है। वह यह अच्छी तरह से जानता है कि सत् साहित्य की रचना करके उसे कुछ नहीं मिलनेवाला है-न पद, न सम्मान और न पुरस्कार। उसे कुछ भी सुख-सुविधाएँ भी नसीब नहीं हो सकती हैं, बल्कि उसे तो शोषण, उपेक्षा और अभावों का शिकार होना पड़ेगा। इस प्रकार आजकल का साहित्यकार, साहित्यकार न होकर सत्ता और अधिकारियों का चापलूस, पिछलग्गू और उपासक पुजारी बनकर रह गया है जो हर प्रकार निंदनीय और हेय है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. हिन्दुस्तान में दूसरों की समस्या या तकलीफ दूर करने के लिए हर व्यक्ति ज्ञानी होता है।
  2. कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से भी ज्यादा खतरनाक है।

उत्तर:
1. उपर्युक्त वाक्य के द्वारा यह भाव प्रकट करने का प्रयास किया गया . है कि हमारे देश की बात और देशों की अपेक्षा अलग है। यहाँ के लोग अपनी चिन्ता कम करते हैं, दूसरों की अधिक करते हैं। यही कारण है कि एक जब दूसरे को दुखी या परेशान देखता है, तो वह उसके दुख और परेशानी को दूर करने के लिए हर प्रकार के सुझाव देने लगता है। उस पर अपने ज्ञान भंडार को उड़ेल देता है। उस समय वह अपनी समस्या या तकलीफ को एकदम भूल जाता है, मानो उसे कुछ भी तकलीफ नहीं है।

इस प्रकार वह किसी को किसी समस्या या तकलीफ में पड़े हुए देखकर दूसरा बिना बुलाए उसके पास पहुँचकर अपने ज्ञान और सुझाव की झड़ी लगाने लगता है, मानो उस समय उसे और कोई काम नहीं है। ऐसे लोग बिन बुलाए मेहमान की तरह स्वयं को अधिक महत्त्वपूर्ण मान लेते हैं। हकीकत यह होती है कि जब ऐसे लोग समस्या त्रस्त होने पर अपने होश तक खो देते हैं।

2. उपर्युक्त वाक्य के द्वारा यह व्यंग्य-भाव प्रकट करने का प्रयास किया गया है कि भ्रष्ट नौकर-कर्मचारी के अधिकारी और शासक भी कम भ्रष्ट नहीं होते हैं, अपितु वे तो अपने अधीन काम करने वालों से कई गुना भ्रष्ट होते हैं। उन्हीं के असाधारण बड़े भ्रष्टाचार से उनके अधीन काम करने वालों का भ्रष्टाचार करने की न केवल सीख मिलती है, अपितु उससे उनका हौसला भी बुलंद होता है। इससे वे कुछ भी उल्टा-सीधा करने से तनिक न डरते हैं और न संकोच ही करते हैं। वे भलीभांति जानते हैं कि वे किसी का भक्षक बन भी जाएँ तो उसका कोई भी बाल बाँका नहीं कर सकेगा। क्योंकि उसका रक्षक इस प्रकार सबल है ही। इस प्रकार ‘कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से ज्यादा खतरनाक’ इस व्यंग्य वाक्य के द्वारा लेखक ने आधुनिक भ्रष्ट कर्मचारियों और उनके भ्रष्ट अधिकारियों पर करारा व्यंग्य प्रहार किया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए अंग्रेजी भाषा के शब्दों की सूची बनाएँ और उनके हिन्दी अर्थ लिखें।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-1

प्रश्न 2.
‘अन्त’ शब्द का अर्थ है समाप्ति और ‘अन्त्य’ का अर्थ है, अन्तिम। ये शब्द समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं। ऐसे ही अन्य शब्द लिखकर उनके अर्थ लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद करें तथा संबंधित शब्दों में आई संधि का नाम भी लिखें –
सहानुभूति, चतुरेश, शिशिरानंद।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में आए समास का नाम लिखें –
तर्क-वितर्क, कुशल-क्षेम, कुरता-पाजामा, दीन-हीन।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-4

प्रश्न 5.
‘लायक’ शब्द में ‘ना’ उपसर्ग का प्रयोग करके उसका विपरीत शब्द ‘नालायक’ बनता है। इसी प्रकार अन्य उपसर्गों का प्रयोग करके विपरीत अर्थ वाले दस शब्द बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 19 अथ काटना कुत्ते का भइया जी को img-5

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
मध्यप्रदेश से संबंधित चार व्यंग्य लेखकों का संक्षिप्त परिचय संकलित करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
अपने साथ घटित ऐसी ही किसी अन्य घटना का वर्णन हास्य-व्यंग्य शैली में कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
प्रस्तुत व्यंग्य, प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ से साभार लिया है। यह पत्रिका दिल्ली से प्रकाशित होती है। मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाली हिन्दी भाषा के समाचार पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
विभिन्न समाचार पत्रों में सप्ताहिक कॉलम में व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं, ऐसे व्यंग्य को पढ़ें तथा संकलित कर व्यंग्य लिखने का प्रयास करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भइया जी ने भी कुत्ते काटने की खबर क्यों फैला दी?
उत्तर:
भइया जी ने भी कुत्ते काटने की खबर फैला दी। यह इसलिए कि –

  1. लोग उनसे यह शिकायत न कर सकें कि उन्हें खबर ही नहीं मिली।
  2. भइया जी स्वयं खबर लेने-देने में गहरी दिलचस्पी लेते थे।

प्रश्न 2.
आजकल आत्मीयता और सहानुभूति कैसे प्रकट की जाती है?
उत्तर:
आजकल आत्मीयता और सहानुभूति दो मिनट की दरबार में हाजिरी, फिर प्रशंसा और समर्पण के दो बनावटी शब्दों के द्वारा प्रकट की जाती है।

प्रश्न 3.
भइया जी कुत्ता काटने का समाचार अखबारों में क्यों छपवाना चाहते थे?
उत्तर:
भइया जी कुत्ता काटने का समाचार अखबारों में छपवाना चाहते थे। यह इसलिए कि इस मौके को भुनाकर अपनी महानता और लोकप्रियता को और बढ़ाना चाहते थे।

प्रश्न 4.
अंत में सभी किस बात पर एकमत हुए?
उत्तर:
अंत में सभी इस बात पर एकमत हुए. कि दस दिन तक कुत्ते पर नजर . रखी जाए। तब तक झाड़-फूंक करवा ली जाए और कुएँ भी ऑकवा लिये जाएँ।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भइया जी के प्रति सहानुभूति और आत्मीयता प्रदर्शित करने वालों में कौन लोग शामिल थे?
उत्तर:
भइया जी के यहाँ सहानुभूति और आत्मीयता प्रदर्शित करने वालों का ताँता लगा था। वे लोग भी शामिल हैं, जो पहले ही सुनकर हँसी उड़ा चुके थे। वे इस प्रकार कहते थे, अच्छा हुआ, कुत्ते ने काट लिया बुड्ढे को। वहाँ कुत्ते के पास क्या करने गए थे? घर बैठे चैन नहीं तो कुत्ते तो काटेंगे ही। कुछ ऐसे लोग भी भइया जी के दरबार में सबसे अलग पंक्ति में मौजूद थे-जो बाहर दुखी और भीतर से प्रसन्न हैं। दरबार में भांति-भांति के प्रश्न और भांति-भांति के उत्तर।

अलग-अलग प्रकार की बातें, सुझाव और अपनी ओर आकर्षित करने के तरीके। भइया जी सभी के केंद्र बने हुए थे। वे सभी को देखते-पहचानते और न आने वालों के बारे में भीतर-ही-भीतर सोचते-समझते और हिसाब लगाते हुए सभी के प्रश्नों, जिज्ञासाओं, आशंकाओं, सुझावों का समाधान कर रहे थे। उनसे उस समय बार-बार लगभग वही-वही प्रश्न क्रमशः आने वालों द्वारा किए जाते हैं और भइया जी वही-वही उत्तर ग्रामोफोन के रिकॉर्ड की तरह दोहरा रहे थे।

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प्रश्न 2.
सहानुभूति प्रदर्शकों ने कब भरे गले से अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की?
उत्तर:
सहानुभूति प्रदर्शकों ने तब भरे गले से अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की जब भइया जी ने खचाखच भरे दरबार में अपना फटा कुरता और पाजामा तथा मलहम-पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को प्रदर्शित किया फिर सबकी जिज्ञासा-शांति के लिए बताया कि रात के अंधेरे में वह जब टॉर्च लेकर एक सामाजिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे, तभी निर्धन परिवार के एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया। उस समय वह कुत्ता कैसे पीछे से उन पर झपटा, कैसे उन्होंने दुतकारा, कैसे वे भागे, कैसे गिरे, फिर उठकर कुत्ते का मुकाबला कैसे किया और कहाँ-कहाँ कुत्ते ने काटा। इन सबका वे पूरे अभिनय के साथ सविस्तार वर्णन किए।

प्रश्न 3.
भइया जी पर किस प्रकार संवेदनाओं की झड़ी लग रही थी?
उत्तर:
भइया जी पर संवेदनाओं की झड़ी लग रही थी और वे उनमें पूरी तरह डूबे जा रहे थे, जैसे उनका प्रशस्ति-गान किया जा रहा हो। उस समय कई लोग कुरता-पाजामा और भइया जी के विभिन्न अंगों को छूकर ऐसे देख रहे थे जैसे किसी कीमती रत्न की परख कर रहे हों। कुछ लोग यह पूछ रहे थे कि कुत्ता पालतू है या सड़क छाप? किस रंग का है? काला या सफेद। उसे इंजेक्शन लगा है या नहीं? जिस दिन कुत्ते ने काटा उस दिन कौन-सा दिन था? रविवार या बुधवार तो नहीं था? ऐसा इसलिए कि हर दिन का अपना अलग असर होता है। भइया जी ने उन सभी के उत्तर दिए। अंत में धीरे-धीरे आगे की कार्यवाही और चिकित्सा पर बात आ गई।

प्रश्न 4.
‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ व्यंग्य का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर:
कुत्ते द्वारा काटे जाने की सामान्य-सी घटना के द्वारा लेखक ने समाज में व्याप्त विसंगतियों और असमानताओं पर गहरा प्रहार किया है। सहानुभूति और संवेदना प्रदर्शन के दिखावटी रूप, परामर्श देने के खोखले उतावलेपन और आत्म-विज्ञापन हेतु ज्ञान की झड़ी लगाने पर लेखक ने तिलमिलाने वाले व्यंग्य की सर्जना की है। सामाजिक स्तर पर फैली हई असमानताओं से उत्पन्न आक्रोश की सार्थक अभिव्यक्ति दी है। इसके लिए लेखक ने कुत्ते की विवेकशीलता को रेखांकित करके व्यंग्य की धार को और ही अधिक तीखा बना दिया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त का जन्म उत्तर-प्रदेश के बांदा जिला के भौंरी में 6 फरवरी, 1937 को हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अध्यापन से जीविकोपार्जन का कार्य आरंभ किया। इस सिलसिले में उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग में अध्यापन कार्य कई वर्षों तक किया। इस प्रकार कार्य करते हए उन्होंने अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर प्राचार्य पद को प्राप्त कर लिया। इस पद पर कुछ समय तक कार्य करते हुए वे सेवानिवृत्त हो गए। इस समय वे स्वतंत्र लेखन कर अपनी योग्यता और क्षमता का परिचय दे रहे हैं।

रचनाएँ:
हिन्दी साहित्य में निबंध और निबंधकार’, ‘हिन्दी के प्रमुख एकांकी और एकांकीकार’, ‘छत्तीसगढ़ का साहित्य और साहित्यकार’, ‘आधुनिक काव्य : संदर्भ और प्रकृति’, ‘रस-विलास’, ‘वीर-विलास’, ‘सुदामा चरित’, ‘चिन्तन-अनुचिन्तन’, ‘बुन्देलखण्ड के अज्ञात रचनाकार’ ‘अरमान वर पाने का’, ‘निंदक नियरे राखिए’ आदि डॉ. गुप्त की प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं।

महत्त्व:
गुप्त जी ने समीक्षा, व्यंग्य, काव्य आदि विधाओं में लेखन किया है। दुर्लभ पांडुलिपियों के प्रकाशन के साथ अज्ञात रचनाकारों को केन्द्र बनाकर डॉ. गुप्त ने लगातार शोध-कार्य किया है। गंगा प्रसाद गुप्त की भाषा सहज है, लोक बोलियों के शब्दों का प्रयोग उनके प्रवाह को संप्रेषणीय बना देता है। साहित्य के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए योगदान के लिए अनेक संस्थाओं के साथ-साथ महामहिम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा उनको ‘साहित्य श्री’ से सम्मानित किया गया है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते भइया जी को’ के सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ एक ऐसा व्यंग्यात्मक निबंध है जिसमें सामाजिक विडम्बनाओं पर कड़ा प्रहार किया गया है। इस व्यंग्य का सारांश इस प्रकार है… जब भइया जी को कुत्ते ने काटा तो यह खबर चारों ओर आग की तरफ फैल गई। जहाँ नहीं पहुँची, वहाँ भइया जी ने स्वये पहुँचा दी। खबर पाते ही लोगों की सहानुभूति भइया जी के प्रति होने लगी।

भइया जी के यहाँ दोनों ही प्रकार के लोगों का जमघट लग गया-बाहर से दुखी और भीतर से प्रसन्न लोगों का जमघट और दूसरी ओर उनके प्रति सचमुच में दुख प्रकट करने वालों का जमघट आए हुए लोग अपने-अपने अलग-अलग सुझाव दे रहे थे। भंइया जी सभी के प्रश्नों, जिज्ञासाओं, आशंकाओं और सुझावों का समाधान कर रहे थे। यों तो सबके भाव और सबके विचार अलग-अलग थे। भइया जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भइया जी के दरबार में किसी प्रकार के तर्क-वितर्क की इजाजत नहीं। वह जो कहें, उसे सुनिए और उसे मानिए। भइया जी की हार्दिक इच्छा है कि इस घटना को अखबारों में छपवा दिया जाए, जिससे कुछ अधिकारी और कुछ नेता आकर उन्हें धन्य करें। उससे वह शानपूर्वक कह सकें कि अमुक-अमुक उन्हें देखने आए थे। ऐसा इसलिए कि रोज-रोज कुत्ता किसी को नहीं काटता है। और जब काट ही लिया है तो उसे पूरी तरह भुनाया जाए। तभी तो अपनी महानता और लोकप्रियता का कुछ पता लग सकता है। लोगों की जमघट के बीच भइया जी.फटा कुरता-पाजामा और मरहम पट्टी लगे हाथ-पाँव और कंधों को दिखाते हुए आपबीती सुना रहे थे-रात के अंधेरे में एक टार्च लिये हुए वह एक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे हो।

उसी समय उन्हें एक गरीब परिवार के कुत्ते ने काट लिया। उसने उन पर कैसे आक्रमण किया, वे उससे बचने के लिए क्या-क्या किए। फिर कुत्ते ने उन्हें कैसे काटा और कहाँ-कहाँ काटा, इन बातों को वे पूरे अभिनय के साथ बता रहे थे। उसे सुनकर सभी की सहानुभूति दिखाई देने लगी। फिर संवेदनाओं की ऐसा धारा उमड़ पड़ी कि भइया. उसमें कुछ देर तक बहते रहे। कोई उनके कुरते-पाजामे को रत्न की तरह परख रहा था तो कोई पूछ रहा था कि कुत्ता पालतू था या सड़क छाप। उसका रंग कैसा था। उसे इंजेक्शन लगा था या नहीं, उस दिन कौन-सा दिन था। कहीं रविवार या बुधवार. तो नहीं था। – भइया जी ने सबको एक-एक करके बतलाया। किसी ने सुझाव दिया कि अगर कुत्ता : पालतू है तो उसके मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए।

किसी ने उसे यह कहकर चुप करा दिया कि कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से भी अधिक खतरनाक है। तीसरे ने कहा कि कुत्ते को दस दिन तक अपने घर में बाँधकर ‘वाच’ करना चाहिए। माता जी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि घर में इन्हीं की झंझट अधिक है। घर में बक-बक करने से अच्छा है, ये खुद ही जाकर उसे रोज देख-आया. करेंगे। इसी प्रकार भइया जी को चौदह इंजेक्शन लगवाने, दस कुएँ झाँकने, तीन हजार का एक इंजेक्शन लगवाने, झाड़-फूंक करवाने आदि उपाय बताए गए।

भइयाजी को कुत्ते ने क्यों काटा? इस पर विचार करें तो यह अनुमाम लगाया जा सकता है कि भइया जी लकलक कपड़ों में थे। उन्होंने टार्च की रोशनी कुत्ते पर मारी होगी। कुत्ता भड़क गया होगा कि उसका मालिक दिन-भर खून-पसीना बहाकर फटे-मैले-कुचैले कपड़े पहनता है और ये इस तरह चमकते कपड़े। वे दर-दर की ठोकरें खाते हैं और इनके कुत्ते मालपुए। इसे सोचकर उस कुत्ते ने भइया जी को काट लियां होगा। लेखक का सुझाव है कि उसके साहित्यकार बंधु पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपना पथ भ्रष्ट न करें। वे समाज की विडम्बनाओं पर कड़ा प्रहार कर कुत्तों से बचने की कोशिश करें।

पुनश्च अभी-अभी पता चला है कि भइया जी की माता जी का प्रिय कुत्ता पीलू पर किसी बाहरी कुत्ते ने ईष्यावश जब आक्रमण कर दिया तो पीलूं डर से दुम दबा कर घर के भीतर घुस गया। लेकिन माता जी को उस बाहरी कुत्ते ने काट लिया। अब वह भी झाड़-फूंक आदि के चक्कर में भइया जी की बराबरी कर रही हैं। इसलिए भइया जी की बिरादरी के भाई-बहनो! अब सावधान हो जाओ। जमाना करवटें बदल रहा है।

अथ काटना कुत्ते का भइया जी को संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
सुख-दुख के प्रसंग ही आत्मीयता प्रमाणित करने के सबसे अनुकूल सार्वजनिक अवसर होते हैं। वह जमाना गया जब भीतर-ही-भीतर आत्मीयता, स्नेह और श्रद्धा की भावना रखी जाती थी। अब तो बाहर का महत्त्व है। भीतर का क्या भरोसा? भीतर कुछ, बाहर कुछ। इसीलिए आजकल बाहर मैदान में सामने खड़ा करके, लिखवाकर प्रमाणित किया जाता है कि आपके भीतर श्रद्धा, आस्था और आत्मीयता है अथवा नहीं। भीतर की भावना छाती फाड़कर दिखानी पड़ती है। बाहर के लिए दो मिनट की दरबार में हाजिरी, फिर प्रशंसा तथा समर्पण के दो बनावटी शब्द ही पर्याप्त होते हैं।

शब्दार्थ:

  • आत्मीयता – अपनापन।
  • समर्पण – भेंट।
  • पर्याप्त – अधिक।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’-लिखित व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते का भइया जी को’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने आजकल के दिखावटी भावों पर व्यंग्य प्रहार किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
किसी के प्रति अपनापन या निकट का भाव प्रकट करने के कुछ खास मौके होते हैं। इस प्रकार के मौके व्यक्तिगत तौर पर होते हैं और सार्वजनिक तौर पर भी। यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि व्यक्तिगत तौर की अपेक्षा सार्वजनिक तौर पर प्रकट किए जाने वाले अपनापन के भावों को अधिक खुलकर सामने रखने का मौका बहुत अधिक मिल जाता है। इस प्रकार जमाना पहले नहीं था। पहले तो लोगबाग किसी के प्रति अपनापन के भावों को खुलकर या सबके सामने नहीं प्रकट करते थे। वे तो उसे अपने भीतर-ही-भीतर से धीरे-धीरे प्रकट करते थे। इस प्रकार के अपनापन के भाव कई प्रकार के होते थे, जैसे श्रद्धा के भाव, प्रेम और दुलार के भाव, श्रद्धा और विश्वास के भाव आदि।

लेखक आजकल के बदलते हुए समय में किसी के प्रति अपनापन, श्रद्धा, आस्था, विश्वास, स्नेह आदि के भावों को प्रकट करने के तौर-तरीके बदल गए हैं। इस प्रकार के भावों को प्रकट करना अब आंतरिक कम होकर बाहरी अधिक हो गया है। आजकल की आत्मीयता सार्वजनिक रूप में प्रकट करना आवश्यक हो गया है। यह आत्मीयता व्यक्तिगत आत्मीयता से कहीं आसान होती है। आंतरिक आत्मीयता को प्रकट करने में बड़ी दिक्कत होती है, क्योंकि यह हृदय से निकलकर बाहर आती है, जबकि वाहरी आत्मीयता थोड़ी-सी भेंट और थोड़ी-सी मुलाकात के समय कुछ ही शब्दों में प्रकट हो जाती है। इस प्रकार इसके लिए बनावटी शब्द ही समुचित होते हैं।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. दिखावटी अपनापन पर व्यंग्य प्रहार है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।
  4. भाव रोचक हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आत्मीयता कब प्रकट की जानी चाहिए?
  2. पहले की आत्मीयता कैसी होती थी?

उत्तर:

  1. आत्मीयता सुख-दुख के प्रसंग पर सार्वजनिक मौके आने पर ही प्रकट की जानी चाहिए।
  2. पहले की आत्मीयता सच्ची और भीतर-ही-भीतर होती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. बदले हुए जमाने में आत्मीयता कैसी हो रही है?
  2. आजकल आत्मीयता किस प्रकार प्रकट की जाती है?

उत्तर:

  1. बदले हुए जमाने में आत्मीयता भी बदलती जा रही है। अब वह आंतरिक न होकर बाहरी हो गई है।
  2. आजकल आत्मीयता दो मिनट के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद चापलूसी और भेंट के कुछ बनावटी शब्दों के द्वारा प्रकट की जाती है।

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प्रश्न 2.
भइया जी की हार्दिक इच्छा है कि यह समाचार अखबारों में भी छप जाए और कुछ नेता और अधिकारी भी आकर उन्हें धन्य करें, ताकि वह शान से बतला सकें कि कौन-कौन देखने आए थे। आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं। अब जब काट ही लिया है, तो उसे पूरी तरह से भुनाया जाए। इससे महत्ता और लोकप्रियता का भी अनुमान लग जाता है।

शब्दार्थ:

  • भुनाया जाए – फायदा उठाया जाए।
  • लोकप्रियता – सर्वप्रियता।
  • महत्ता – महत्त्व।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने भइया जी को आजकल के अवसरवादी नेताओं की सोच-समझ के रूप में प्रस्तुत किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
भइया जी को कुत्ते ने काट लिया तो उन्हें अनेक प्रकार की इच्छाएँ . जोर मारने लगीं। उन इच्छाओं में एक हार्दिक इच्छा यह भी जोर मार रही थी कि कुत्ता काटने का समाचार आस-पास के लोगबाग तो जान ही गए हैं दूर-दूर के भी लोग इसे जान जाएँ, इसके लिए एक अच्छा तरीका यह भी हो सकता है कि इसे अखबारों में छपने के लिए दे दिया जाए। इससे यह खबर साधारण-से-साधारण लोग तो जान ही जाएँगे। उनके अतिरिक्त कुछ छोटे-बड़े नेता, समाजसेवी और छोटे-बड़े अधिकारी भी जान जाएँगे। फिर वे उनके पास आएँगे और उनके प्रति अपनी सहानुभूति और आत्मीयता को सबके सामने प्रकट करेंगे।

इससे वे बड़ी शान से सिर उठाकर सबसे कह सकेंगे कि कौन-कौन नेता और अधिकारी उनकी खैरियत पूछने आए थे। इस तरह इस मौके का क्यों न फायदा उठाया जाए! ऐसा इसलिए कि कुत्ता रोज-रोज तो नहीं काटता है। आज.काट लिया है, तो उसके बहाने लोगों की सहानुभूति और आत्मीयता को क्यों न बटोर लिया जाए। इससे जो महत्त्व, लोकप्रियता और जन-सम्पर्क प्राप्त होंगे वे शायद कभी फिर मिले। ऐसा इसलिए कि यह मौका बार-बार नहीं मिलता है और यह सबको नसीब भी नहीं होता है।

विशेष:

  1. भाषा में ताजगी और ओज है।
  2. व्यंग्य प्रहार की तीव्रता है।
  3. अवसरवादी लोगों पर व्यंग्य किया गया है।
  4. मुहावरों (शान से बतलाना, धन्य करना) के प्रयोग यथा स्थान हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘कछ नेता और अधिकारी आकर धन्य करें’ का आशय क्या है?
  2. भइया जी को हार्दिक इच्छा क्यों हुई?

उत्तर:

  1. ‘कुछ नेता और अधिकारी आकर धन्य करें’ का आशय है कि उन्हें साधारण लोग ही नहीं अपितु बड़े-बड़े अधिकारी भी जानते हैं। उनके आने से उनके प्रति बहुत बड़ी आत्मीयता प्रकट की जाएगी।
  2. भइया जी को हार्दिक इच्छा हुई। यह इसलिए कि उन्हें ऐसा लगा कि इस हार्दिक इच्छा को कार्य रूप देने से उनका कद और बढ़ जाएगा।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं’ का व्यंग्यार्थ लिखिए।
  2. अब जब काट ही लिया है, तो उसे पूरी तरह भुनाया जाए।’ का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. ‘आखिर कुत्ता रोज-रोज तो किसी को काटता नहीं।’ का व्यंग्यार्थ है-‘रोज-रोज तो आत्मीयता और सहानुभूति बटोरने के लिए मुसीबत नहीं आती है।
  2. ‘अब जब काट ही लिया है तो उसे पूरी तरह से भुनाया जाए।’ का मुख्य भाव है-जब मुसीबत आ ही गई है तो उसका फायदा लोगों से सहानुभूति प्राप्त करके उठा लिया जाए। न जाने यह मौका फिर कभी आएगा या नहीं।

प्रश्न 3.
प्रश्न उठता है कि आखिर भाइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा? असल में भइया जी अपने स्वभाव के अनुरूप झकाझक कपड़ों में थे। ऊपर से कत्ते पर टॉर्च की रोशनी मारी। कुत्ते को लगा कि मुझ निर्धन बस्ती के कुत्ते को यह संपन्न व्यक्ति अपनी चमक और रोशनी से चकाचौंध करना चाहता है। मेरा मालिक दिनभर परिश्रम कर पसीने से लथपथ फटे-मैले-कुचले कपड़ों में आता है और इनके कपड़ों पर एक दाग भी नहीं।

हम दर-दर की ठोकरें खायें और ये तथा इनके कुत्ते मालपुए खाएँ। गाड़ियों में घूमें। झकाझक कपड़ों की शान बघारें। आदमी-आदमी तथा कुत्ते-कुत्ते में भेद पैदा करें। उसके भीतर की अपमान की व्यथा आक्रोश की आग बनकर भड़क उठी और जैसे ही भइया जी उधर से निकले तो उसने आक्रमण करके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। हाथ-पाँव, कंधों को दाँत और नाखूनों से खरोंच डाला मानो घोषित कर दिया कि अवसर मिलते ही हम अपने अपमान का बदला लेने से नहीं चूकेंगे। निर्धन बस्ती का यह कुत्ता एक दिन संपन्न बस्ती में अपना झण्डा अवश्य गाड़ेगा।

शब्दार्थ:

  • झकाझक – चमकते-दमकते।
  • संपन्न – सुखी।
  • शान बखारे – बड़प्पन दिखाएँ।
  • व्यथा – कष्ट, दुख, पीड़ा।
  • तार-तार करना – टुकड़े-टुकड़े करना।
  • खरोंच डाला – नोंच डाला।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक अमीरी-गरीबी में भेद रखने वालों पर कुत्ते के माध्यम से व्यंग्य प्रहार किया है। भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा इसे व्यंग्यात्मक रूप में प्रस्तुत करते हुए लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
यों तो कुत्ते किसी-न-किसी को काटते हैं और अलग-अलग कारणों से काटते हैं, लेकिन भइया जी को कुत्ता ने काय है तो किन कारणों से, यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस विषय में सोचने-समझने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस समय भइया जी को कुत्ते ने काटा, उस समय वे हमेशा की ही तरह चमकते-दमकते कपड़े पहने हुए थे। चूंकि उस समय अंधेरा था। इसलिए वे टार्च की रोशनी किए हुए एक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे। इसी दौरान उनके टार्च की रोशनी सामने एक कुत्ते पर पड़ी।

उस रोशनी से वह कुत्ता भड़क उठा। उसे क्रोध आ गया होगा कि यह सम्पन्न और चमक-दमक वाला आदमी गरीब बस्ती में रहने वाले कुत्ते पर अपनी शान दिखा रहा है। उसका मालिक दिन-भर खून-पसीना बहाने पर भी हमेशा फटा-पुराना और गंदे कपड़ों में रहता है। इसलिए उसके यहाँ रहकर हम इधर-उधर भटकते रहते हैं। फिर भी हमें भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है। लेकिन इनके कुत्तों की तो मौज ही मौज है। ये मालपुए खाते रहते हैं। अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर अपने मालिक के साथ गाड़ियों में इधर-उधर मस्ती छानते रहते हैं।

भइया जी को काटने वाले कुत्ते को इस बात पर भी क्रोध आया कि क्या इस प्रकार के आदमी को चाहिए कि आदमी आदमी के प्रति भेदभाव करे और कुत्ता कुत्ते के प्रति भेदभाव रखे। यह तो सचमुच अपनी जाति और बिरादरी के प्रति अत्याचार और अन्याय है। यह तो किसी समझदार प्राणी के लिए बर्दाश्त से बाहर है। इस प्रकार की बातों से वह कुत्ता उत्तेजित हो गया होगा। अपनी उस उत्तेजना का शिकार उसने भइया जी को बनाया। उसने उन्हें देखते ही उन पर ताबड़तोड़ काटना शुरू कर दिया।

उसने उनके चमकते-दमकते कुरते-पाजामे को काट-नोचकर तार-तार कर दिया। उनके हाथ, पैर और कंधे अपने नुकीले दातों और तेज नाखूनों से काट-नोंच डाला। ऐसा करके उसने यह साबित कर दिया कि वह और उसकी गरीब बिरादरी किसी से होने वाले अपमान को नहीं सहन करेंगे। जैसे ही कोई मौका मिलेगा, वे उस अपमान का बदला लेकर ही रहेंगे। इस तरह उसे विश्वास है कि निर्धन बस्ती का होकर भी वह अपनी विजय-पताका धनी बस्ती में कभी-न-कभी अवश्य फहराकर ही रहेगा।

विशेष:

  1. कथन रोचक और सरस है।
  2. व्यंग्यपूर्ण वाक्य-गठन है।
  3. उर्दू-हिन्दी की मिश्रित शब्दावली है।
  4. मुहावरों (दर-दर की ठोकरें खाना, शान बघारना, भड़क उठना, तार-तार कर देना और झण्डा गाड़ना) के प्रयोग सार्थक हैं।
  5. साधन-सम्पन्न व्यक्तियों द्वारा अमीरी-गरीबी में भेद करने के प्रयासों पर तीखा व्यंग्य प्रहार किया है।
  6. व्यंग्यात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ‘भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा?’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
  2. भइया जी को कुत्ते के काटने का मुख्य कारण क्या रहा होगा?

उत्तर:
1. ‘भइया जी को कुत्ते ने क्यों काटा होगा? ऐसा लेखक ने इसलिए कहा है कि भइया सज्जन, बुजुर्ग और विद्वान हैं। वे चींटी तक से डरते हैं। इसलिए जब उन्हें कुत्ते ने काटा तो उसकी कोई बहुत बड़ी खास वजह होगी। उसके बारे में अवश्य सोच-विचार या अनुमान लगाया जाना चाहिए।

2. भइया जी को कुत्ते के काटने को मुख्य कारण रहा होगा कि उस कुत्ते को यह लगा कि यह संपन्न आदमी अपनी शान-शौकत से निर्धन बस्ती के उस कुत्ते को अपमानित करना चाहता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कुत्ते ने भइया जी पर किस तरह का आक्रमण किया?
  2. कुत्ते ने भइया जी को काटकर क्या संदेश दिया?

उत्तर:

  1. कुत्ते ने भइया जी पर बुरी तरह से आक्रमण किया। उसने उन पर आक्रमण करके उनके कुरता-पाजामा को तार-तार कर दिया। यही नहीं, उनके हाथ-पैर और कंधे को अपने दांतों और नाखूनों से काट-खरोंच डाला।
  2. कुत्ते ने भइया जी को काटकर यह संदेश दिया कि करीब अपने अपमान का बदला अमीरों से भी लेने में नहीं चुकते हैं।

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प्रश्न 4.
आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थकों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है। दीन-हीन शोषितों की बिरादरी का यह रचनाकार सुखभोगी बनकर भ्रष्ट हो रहा है। अतः इसे सचेत कर सही मार्ग पर लाना जरूरी है। मुझे भइया जी को कुत्ते द्वारा काटे जाने का कारण और समाधान मिल गया। मैं कुत्तों की ओर से अपने साहित्यकार बंधुओं को आगाह करता हूँ कि वे पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपने को पथभ्रष्ट न करें। सत्यमार्ग पर चलें। जरूरतमंदों और शोषितों के साथी बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें अन्यथा उन्हें कुत्तों के प्रहार से नहीं बचाया जा सकता। झाड़-फूंक और इंजेक्शन भी उनकी रक्षा नहीं कर सकेंगे।

शब्दार्थ:

  • गायक – गाने वाला।
  • आगाह – सावधान।
  • विसंगतियों – विषमताओं, विडम्बनाओं।
  • प्रहार – चोट।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि वर्तमान समय में किस प्रकार साहित्यकार अपने साहित्य निर्माण की दिशा से भटककर पदलोलुप बन रहा है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
वर्तमान समय में साहित्यकार साहित्य-रचना छोड़कर सत्ताधारियों और सत्ता के समर्थकों की चापलूसी कर रहा है। इस चापलूसी के पीछे उसका एकमात्र उद्देश्य यही है कि उसे कोई पद-सम्मान मिल जाए। उसे पहले से अधिक साधन और सुविधा प्राप्त हो जाए। हालाँकि वह दीन-हीन और शोषित होने के साथ उपेक्षित है। लेकिन वह अपनी इस दुर्दशा को भूलकर मिली हुई सुख-सुविधा से साहित्य-रचना के सत्यमार्ग से भटक रहा है। उसे लगभग भूल चुका है। इसलिए अब यह आवश्यक लेखक का पुनः कहना है कि उससे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि भझ्या जी को कुत्ते ने क्यों काटा था और उसका इलाज क्या है।

इसलिए अपने साहित्यकार प्रेमियों-बंधुओं को इस बात के लिए सावधान करना चाहता हूँ कि वे अपने साहित्य-रचना के सत्यमार्ग का परित्याग कर पदलोलुप और सुविधाभोगी बनने से बाज आएँ। सत्य साहित्य-रचना में ही व्यस्त रहें। यही नहीं, जो शोषित और उपेक्षित हैं, उनके प्रति सहानुभूति रखें। उनका सच्चा साथी बनकर सामाजिक भेदभावों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कमर कस लें। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें सामाजिक कुत्तों के काटने से नहीं बचाया जा सकता है और न ही उन्हें इससे बचने का कोई मौका ही दिया जा सकता है। यह भी ध्यान रहे कि सामाजिक कुत्तों के काटने का कोई इलाज भी नहीं होता है, न झाड़-फूंक और न इंजेक्शन ही।

विशेष:

  1. भाषा सरल शब्दों की है।
  2. शैली व्यंग्यात्मक है।
  3. मुहावरों (पीछे भागना, भ्रष्ट होना व आगाह करना) के प्रयोग यथास्थान हुए हैं।
  4. पदलोलुप और सुविधाभोगी पथभ्रष्ट साहित्य पर सीधा व्यंग्य प्रहार किया गया है।
  5. व्यंजना शब्द-शक्ति है।
  6. यह अंश मर्मस्पशी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आजकल के साहित्यकार क्या हो रहे हैं?
  2. आजकल के साहित्यकारों के प्रति लेखक का कौन-सा भाव प्रकट हुआ है?

उत्तर:

  1. आजकल के साहित्यकार पदलोलुप और सुविधाभोगी हो रहे हैं।
  2. आजकल के साहित्यकारों के प्रति लेखक का आत्मीय भाव प्रकट हुआ है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. आजकल के साहित्यकारों को सही मार्ग पर लाना क्यों जरूरी है?
  2. आजकल के साहित्यकारों को लेखक ने क्या सुझाव दिया है?

उत्तर:

  1. आजकल के साहित्यकारों को सही मार्ग पर लाना जरूरी है। यह इसलिए कि वे साहित्य रचना के सत्यमार्ग को छोड़ सुखभोगी और पदलोलुप बन रहे हैं।
  2. आजकल के साहित्यकारों को लेखक ने सुझाव दिया है कि वे जरूरतमंदों और शोषितों के साथी बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें।

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