MP Board Class 10th General English The Spring Blossom Solutions Chapter 2 The Power of Determination

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MP Board Class 10th General English The Spring Blossom Solutions Chapter 2 The Power of Determination

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The Power of Determination Textual Exercises

Word Power

A. Match the words with their meanings.
(शब्दों को अर्थों से सुमेलित कीजिए।)
The Power Of Determination MP Board Class 10th
Answer:
1. → (b)
2. → (d)
3. → (a)
4. → (e)
5. → (c)

B. Read the sentences carefully and find out the antonyms of the words given below.
(दिये गये शब्दों के विलोम निम्न वाक्यों में ढूँढ़ो।)
(cool, strong, minor, lower, construct)

  1. A volcano may destruct anything that comes in its way.
  2. The director gave a major project to his subordinates.
  3. The boy became very weak after illness.
  4. Woollen clothes keep us warm.
  5. An upper berth is reserved for me.

Answer:

  1. destruct
  2. major
  3. weak
  4. warm
  5. upper.

How Much Have I Understood?

A. Answer these questions. (One or two sentences)
(निम्न प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए।)

The Power Of Determination MP Board Class 10th Question 1.
What was the duty of the little boy?
(व्हॉट वॉज़ द ड्यूटी ऑफ द लिटिल बॉय?)
छोटे बालक का क्या कार्य था?
Answer:
The duty of the little boy was to come early to the school and fire the pot-bellied coal stove and warm the room before his teacher and classmates arrived.
(द ड्यूटी ऑफ द लिटिल बॉय वॉज़ टू कम अर्ली टू द स्कूल एण्ड फायर द पॉट-बैलीड कोल स्टोव एण्ड वॉर्म द रूम बिफोर हिज़ टीचर एण्ड क्लासमेट्स एराइव्ड.)
छोटे बालक का प्रातः विद्यालय में अपने शिक्षक व सहपाठियों से पूर्व आकर अँगीठी जलाकर कक्षा को गर्म करने का कार्य था।

The Power Of Determination Class 10 MP Board Question 2.
What was the condition of the little boy when he was taken out of the burning school building?
(व्हॉट वॉज़ द कण्डीशन ऑफ द लिटिल बॉय व्हेन ही वॉज़ टेकन आऊट ऑफ द बर्निंग स्कूल बिल्डिंग?)
जब छोटे बालक को जलती हुई विद्यालय की इमारत से बाहर निकाला गया तब उसकी क्या अवस्था थी?
Answer:
When the little boy was taken out of the burning school building he was unconscious and more dead than alive. He had major burns over the lower half of his body.
(व्हेन द लिटिल बॉय वॉज़ टेकन आऊट ऑफ द बर्निंग स्कूल बिल्डिंग ही वॉज़ अनकॉन्शिअस एण्ड मोर डेड दैन अलाइव। ही हैड मेजर बर्न्स ओवर द लोअर हाफ ऑफ हिज़ बॉडी.)
जब नन्हें बालक को जलती हुई स्कूल की इमारत से बाहर निकाला गया तब वह मूर्च्छित था व जीवित से ज्यादा मृत था। उसके शरीर के नीचे का हिस्सा मुख्य रूप से जला हुआ था।

Class 10 English Chapter 2 The Power Of Determination Question 3.
Why was the boy sent to hospital?
(व्हाय वॉज़ द बॉय सेन्ट टू हॉस्पिटल?)
बालक को अस्पताल क्यों भेजा गया?
Answer:
The boy had major burns in the lower half of his body so he was sent to the hospital.
(द बॉय हैंड़ मेजर बर्न्स इन द लोअर हाफ ऑफ हिज़ बॉडी सो ही वॉज़ सेन्ट टू द हॉस्पिटल।)
बालक के शरीर का निचला हिस्सा बुरी तरह जल गया था इसीलिए उसे अस्पताल ले जाया गया।

The Power Of Determination Question And Answer MP Board Class 10th Question 4.
What was the opinion of the doctor about the burnt boy?
(व्हॉट वॉज़ द ओपिनियन ऑफ द डॉक्टर अबाऊट द बर्ट बॉय?)
चिकित्सक का जले हुए बालक के बारे में क्या विचार था?
Answer:
The doctor said that the body would surely die and it was better for him as the lower half of his body was terribly burnt.
(द डॉक्टर सैड दैट द बॉय वुड श्योरली डाइ एण्ड इट वॉज़ बैटर फॉर हिम एज़ द लोअर हॉफ ऑफ हिज़ बॉडी वॉज़ टैरिब्ली बर्ट।)
चिकित्सक ने कहा कि बालक निश्चित रूप से मर जायेगा और वह उसके लिए अच्छा होगा क्योंकि उसके शरीर का निचला हिस्सा बुरी तरह जल गया था।

The Power Of Determination Story In Hindi MP Board Class 10th Question 5.
What did the boy decide after listening that he would surely die?
(व्हॉट डिड द बॉय डिसाइड आफ्टर लिसनिंग दैट ही वुड श्योरलि डाइ?)
बालक ने यह सुनने के बाद कि वह निश्चित रूप से मर जायेगा क्या निश्चय किया?
Answer:
The boy decided that he would survive.
(द बॉय डिसाइडिड दैट ही वुड सरवाइव।)
बालक ने निश्चय किया कि वह जीवित रहेगा।

The Power Of Determination Question Answer MP Board Class 10th Question 6.
What was the opinion of the doctor after the boy had survived?
(व्हॉट वॉज़ द ओपिनियन ऑफ द डॉक्टर आफ्टर द बॉय हैड सरवाइव्ड?)
बालक के जीवित रहने पर चिकित्सक का क्या मत था?
Answer:
The doctor said that since the flesh in the lower part of the boy’s body was destroyed he was doomed to be a lifetime cripple with no use at all of his lower limbs.
(द डॉक्टर सेड दैट सिन्स द फ्लेश इन द लोअर पार्ट ऑफ द बॉयज़ बॉडी वॉज़ डिस्ट्रॉयड ही वॉज़ डूम्ड टू बी अ लाइफटाइम क्रिपल विद नो यूज़ एट ऑल ऑफ हिज़ लोअर लिम्ब्स।)
चिकित्सक ने कहा कि चूँकि बालक के शरीर के निचले हिस्से का माँस जल गया था इसीलिए उसके शरीर का निचला भाग कार्य नहीं करेगा व वह आजीवन अपाहिज रहेगा।

B. Answer these questions. (Three or four sentences)
(निम्न प्रश्नों के उत्तर तीन या चार वाक्यों में दीजिए।)

The Power Of Determination Class 10 Questions And Answers Question 1.
What was the effect of the doctor’s words on the terribly burnt boy?
(व्हॉट वॉज द इफैक्ट ऑफ द डॉक्टर्स वर्ड्स ऑन द टैरिब्ली बर्ट बॉय?)
बुरी तरह से जले हुए बालक पर चिकित्सक के शब्दों का क्या प्रभाव हुआ?
Answer:
The terribly burnt boy on listening the doctor’s words decided that he would survive and would not be a cripple.
(द टैरिब्ली बर्ट बॉय ऑन लिसनिंग द डॉक्टर्स वर्ड्स डिसाइडिड दैट ही वुड सरवाइव एण्ड वुड नॉट बी अ क्रिप्ल।)
बुरी तरह जले बालक ने चिकित्सक के शब्द सुनकर यह निश्चय किया कि वह जीवित रहेगा और अपाहिज नहीं रहेगा।

The Power Of Determination Summary MP Board Class 10th Question 2.
How did the mother help the boy to overcome his disability?
(हाउ डिड द मदर हैल्प द बॉय टू ओवरकम हिज़ डिसेबिलिटी?)
माँ ने बालक की अपाहिज अवस्था को दूर करने में किस प्रकार सहायता की?
Answer:
The mother massaged the little legs of the boy everyday. She also took him into the yard on his wheelchair so that he may get fresh air. There the boy tried to walk.
(द मदर मसाज्ड द लिटिल लेग्स ऑफ द बॉय एवरीडे। शी ऑल्सो टुक हिम इन्टू द यार्ड ऑन हिज़ व्हीलचेयर सो दैट ही मे गेट फ्रेश एअर। देअर द बॉय ट्राइड टू वॉक।)
माँ बालक की नन्हीं टाँगों की रोज मालिश करती थी। वह उसको पहिए वाली कुर्सी पर खुली हवा में ले जाया करती थी जहाँ वह चलने की कोशिश करता था।

The Power Of Determination Question And Answer Class 10 Question 3.
How did the boy make himself able to walk and run?
(हाउ’डिड’ द बॉय मेक हिमसेल्फ एबल टू वॉक एण्ड रन?)
बालक ने चलना व दौड़ना कैसे शुरू किया?
Answer:
The boy threw himself from the wheelchair and pulled himself across the grass, dragged his legs behind him towards the fence when his mother took him out for getting fresh air. He somehow raised himself up on the fence and dragged along the fence. He used to do this everyday and gradually developed the ability to stand up, then to walk haltingly, walk by himself and then to run. His daily massages, iron persistence and strong determination gave life to his legs.

(द बॉय श्रू हिमसेल्फ फ्रॉम द व्हीलचेयर एण्ड पुल्ड हिमसेल्फ अक्रॉस द ग्रास, ड्रेग्ड् हिज़ लेग्स बिहाइण्ड हिम टुवर्ड्स द फेन्स व्हेन हिज़ मदर टुक हिम आऊट फॉर गेटिंग फ्रेश ऍयर। ही समहाउ रेज्ड् हिमसेल्फ अप ऑन द फेन्स एण्ड ड्रेग्ड् अलाँग द फेन्स। ही यूज्ड टू डू दिस एवरीडे एण्ड ग्रैज्युली डेवलप्ड द एबिलिटी टू स्टैण्ड अप, देन टू वॉक हॉल्टिंगली, वॉक बाइ हिमसेल्फ एण्ड देन टू रन। हिज़ डेली मसाजेस, आयरन परसिस्टेन्स एण्ड स्ट्राँग डिटर्मिनेशन गेव लाइफ टू हिज़ लेग्स।)

जब बालक की माँ उसे खुली हवा में ले गई तब उसने खुद को पहियों वाली कुर्सी से गिरा दिया व अपनी टाँगों को धकेलते हुए तारों की मुंडेर के पास ले गया। वह किसी तरह उसके सहारे खड़ा हुआ और उसके सहारे चलने लगा। वह यह नियमित रूप से करने लगा और धीरे-धीरे उसने खड़े होने, उसके बाद चलने और फिर दौड़ने की क्षमता उत्पन्न कर ली। उसकी रोज की मालिश, कोशिश व दृढ़ निश्चय ने उसकी टाँगों को जीवन दिया।

The Power Of Determination In Hindi MP Board Class 10th Question 4.
Describe the factors which enabled the boy to become the world’s fastest mile runner.
(डिस्क्राइब द फैक्टर्स व्हिच इनेबल्ड द बॉय टू बिकम द. वर्ड्स फास्टेस्ट माइल रनर।)
उन कारणों का वर्णन कीजिए जिनकी वजह से बालक दुनिया का सबसे तेज मील धावक बना।
Answer:
The strong determination of the boy helped him to give life to his legs and he could walk and run. So, when he began to walk after the accident he used to run for pleasure and satisfaction. This joy of running made him the world’s fastest mile runner.

(द स्ट्राँग डिटर्मिनेशन ऑफ द बॉय हैल्प्ड् हिम टू गिव लाइफ टू हिज़े लेग्स् एण्ड ही कुड वॉक एण्ड रन। सो, व्हेन ही बिगैन टू वॉक ऑफ्टर द ऐक्सिडेन्ट् ही यूज्ड टू रन फॉर प्लैज़र एण्ड सैटिस्फैक्शन। दिस जॉय ऑफ रनिंग मेड हिम द वल्र्ड्स फास्टेस्ट माइल रनर।)

बालक के दृढ़ निश्चय ने उसकी टाँगों को जिन्दगी दी और वह चलने व दौड़ने लगा। अतः दुर्घटना के बाद उसको चलना व दौड़ना खुशी देता था। इसीलिए वह खुशी पाने के लिए दौड़ता था। इसी खुशी ने उसे दुनिया का सबसे तेज मील धावक बनाया।

Question 5.
What do you learn from the story?
(व्हॉट डू यू लर्न फ्रॉम द स्टोरी?)
Answer:
The story shows that a person can achieve anything if he has strong determination. No difficulty stands in front of it.
(द स्टोरी शोज़ दैट अपर्सन कैन अचीव एनीथिंग इफ ही हैज़ स्ट्राँग डिटर्मिनेशन। नो डिफिकल्टी स्टैण्ड्स इन फ्रन्ट ऑफ इट।)
कहानी यह दर्शाती है कि व्यक्ति अपने दृढ़ निश्चय से कुछ भी पा सकता है। कोई भी परेशानी उसके दृढ़ निश्चय के सामने नहीं टिकती।

C. Complete the statements choosing the correct options.
(सही उत्तर चुनो।)

1. The boy made up his mind that he would ……………
(i) survive
(ii) not start the fire again
(iii) leave the school
(iv) change the doctor.
Answer:
(i) survive

2. The boy used to work out in his yard because he wanted ………..
(i) to develop life in his lifeless legs
(ii) to climb a hill
(iii) to take part in a wrestling competition
(iv) to strengthen his arm muscles.
Answer:
(i) to develop life in his lifeless legs

3. The thing that helped the boy to develop the ability to run was ………
(i) daily massage
(ii) iron persistence
(iii) resolute determination
(iv) all of these.
Answer:
(iv) all of these.

4. The name of the little disabled boy who later ran the world’s fastest mile is ………
(i) Pete Sampras.
(ii) Ben Johnson
(iii) Dr. Glenn Cunningham
(iv) Diago Maradona.
Answer:
(iii) Dr. Glenn Cunningham

Language Practice

Put the verbs in their correct forms.
(क्रिया का सही रूप लिखो।)

  1. It was dark, so I ……. a torch with me. (take)
  2. Mohan was very tired, so he ……… to bed early. (go)
  3. When the little boy woke up, he ………… the doctor telling his mother that her son ……… surely die. (hear, will)
  4. They listened to the joke and ……….. to laugh. (begin)
  5. The boy was very hungry, so he ……… his lunch. (have)

Answer:

  1. took
  2. went
  3. heard, would
  4. began
  5. had.

Listening Time

The teacher will read out the words and the students will repeat them.
(निम्न शब्दों को पढ़ो)
Answer:
The Power Of Determination Class 10 MP Board

Speaking Time

Put the given words in the proper column of the vowels.
(दिये गये शब्दों को सही जगह लिखिए)
Answer:
Class 10 English Chapter 2 The Power Of Determination

Writing Time

Write a letter to your friend who is disabled and depressed after an accident, telling him about the power of determination.
(अपने दुर्घटनाग्रस्त मित्र को दृढ़ निश्चय की क्षमता बताते हुए पत्र लिखो।)
Answer:
50, Raj Mahal Colony Indore (M.P)
10 October, 20….

Dear Rohan,
Hope that you are in a better condition now. I am also fine here.

I can understand the state which you are going through. But you should not get depressed as nobody has a control on accidents but one has the control on his will power and determination.

Strong determination can do anything. No difficulty can withstand in front of it. Dr. Glenn Cunningham who was the world’s fastest mile runner also met with a fire accident in his childhood. The doctor said that he won’t be able to survive. But he survived due to his determination though the lower part of his body was damaged and it was said that he would lead a disabled life. Again his strong determination failed all troubles and he could walk and run.

Therefore you should not be depressed and face the challenges of life boldly. I am sure you will also lead a normal life as before if you become determined for it.

Wishing you success.

Yours affectionately
Vijay

Things to do

Find out any other inspiring story and write it in your project file. You can look for such stories in newspapers, magazines or story books.
(कोई और. प्रेरणादायक कहानी ढूँढ़कर लिखो। तुम यह कहानियाँ अखबार, पत्रिकाओं व कहानियों की किताबों में ढूँढ़ सकते हो।)
Answer:
Students should do themselves.
(छात्र स्वयं करें।)

The Power of Determination Difficult word meanings

Pot-bellied (पाँट-बैलीड)-having a large stomach that sticks out (बड़े पेट का होना); Engulf (एंगल्फ)-to surround or cover somebody completely (पूरी तरह ढँक लोना); Faint (फेन्ट)-that cannot be seen, heard, or smelt (अदृश्य); Doom ( ड्म)-to make somebody certain to fail, die etc. certainty about a terrible event. (दुर्भाग्य, मृत्यु); Cripple (क्रिपल)-a person who is unable to walk or move normally because of disease or injury (अपाहिज); Motor (मोटर)-connected with movement of the body that is produced by muscles, connected with the nerves that control movement (राशिरिक गतिशीलता से सम्बन्धित); Dangle (डैंगल)-to hang or swing freely (झूलना, लटकना); Confine (कन्फाइन)-to have to stay in bed, in a wheelchair, etc. (बिस्तर पर अथवा पहियों वाली कुर्सी पर ही रहना); Picket fence (पिकेट फैन्स)-a piece of wood that is pointed at the bottom so that it can be fixed in the ground especially as part of fence (निगरानी के लिए छोटी-सी डाली); Stake (स्टेक)-a wooden or metal part that is pointed at one end and pushed into the ground in order to support something (खूटे से बाँधना, सहारा देना); Persistence (परसिस्टेन्स)-the factor of continuing to try to do something in spite of difficulties, especially when other people are against you and think that you are being annoying or unreasonable (असफलता या विरोध के होते हुए भी निरन्तर कार्य करते रहना;) Resolute (रेज़ोल्यूट)-having firm determination (दृढ़ निश्चयी)।

The Power of Determination Summary, Pronunciation & Translation

The little country schoolhouse was heated by an old-fashioned, pot-bellied coal stove. A little boy had the job of coming to school early each day to start the fire and warm the room before his teacher and his classmates arrived.

One morning they arrived to find the schoolhouse engulfed in flames. They dragged the unconscious little boy out of the flaming building more dead than alive. He had major burns over the lower half of his body and was taken to the nearby county hospital.

(द लिट्ल कन्ट्री स्कूलहाउज़ वॉज़ हीटेड बाई ऐन ओल्डफैशन्ड, पॉट-बेलीड कॉल स्टोव. अ लिटल बॉय हैड द जॉब ऑफ कमिंग टू स्कूल अर्ली ईच डे टू स्टार्ट द फायर ऐण्ड वॉर्म द रूम बिफोर हिज़ टीचर एण्ड हिज़ क्लासमेट्स अराईव्ड.)

वन मॉनिंग दे अइिव्ड टू फाइन्ड द स्कूलहाउज एन्गल्फ्ड इन फ्लेम्स। दे ड्रैग्ड द अनकॉन्शियस लिटल बॉय आउट ऑफ द फ्लेमिंग बिल्डिंग मोर डेड दैन अलाइव. ही हैड मेजर बर्न्स ओवर द लोअर हाफ आफ हिज बॉडी ऐण्ड वॉज़ टेकन टू द नीयरबाय काउन्टि हॉस्पिटल.)

अनुवाद :
उस छोटे से गाँव के विद्यालय भवन को गर्म किया जाता था एक बहुत पुराने ढंग के घड़े जैसे पेट के (आकार वाले) कोयले के चूल्हे से। एक छोटे से बालक का यह कार्य था कि रोज सुबह जल्दी आकर आग जलाना और कमरे को गर्म करना उसके शिक्षक और सहपाठियों के आने से पहले।

एक सुबह जब शिक्षक व अन्य छात्र पहुँचे तो उन्होंने विद्यालय भवन को आग में घिरा पाया। उन्होंने मृतप्रायः छोटे बालक को मूर्छित अवस्था में घसीटकर उस लपटों से घिरे भवन से बाहर निकाला। उसके शरीर का निचला भाग गम्भीर रूप से जला हुआ था। उसे पास के काउन्टि अस्पताल ले जाया गया।

From his bed the dreadfully ‘burned, semiconscious little boy faintly heard the doctor talking to his mother. The doctor told his mother that her son would surely die-which was for the best, really for the terrible fire had devastated the lower half of his body.

But the brave boy didn’t want to die. He made up his mind that he would survive. Somehow, to the amazement of the physician, he did survive. When the mortal danger was past, he again heard the doctor and his mother speaking quietly. The mother was told that since the fire had destroyed so much flesh in the lower part of his body, it would have been better if he had died, since he was doomed to be a lifetime cripple with no use at all of his lower limbs.

(फ्रॉम हिज़ बेड द ड्रेडफुली बर्ड, सेमि-कॉन्शियस लिटल बॉय फेन्टली हर्ड द डॉक्टर टॉकिंग टू हिज़ मदर. द डॉक्टर टोल्ड हिज मदर दैट हर सन वुड श्योरली डाई-विच वॉज़ फॉर द बेस्ट, रीयली फॉर द टेरिबल फायर हैड डिवास्टेटिड द लोअर हाफ ऑफ हिज़ बॉडी.

बट द ब्रेव बॉय डिडन्ट (डिड नॉट) वॉन्ट टू डाई. ही मेड अप हिज़ माईन्ड दैट ही वुड सरवाईव. समहाउ, टू द अमेजमेण्ट ऑफ द फिज़ीशियन, ही डिड सरवाईव. व्हेन द मॉर्टल डेंजर वॉज़ पास्ट, ही अगेन हर्ड द डॉक्टर एण्ड हिज़ मदर स्पीकिंग क्वाइटली. द मदर वॉज़ टोल्ड दैट सिन्स द फायर हैड डिस्ट्रॉयड सो मच फ्लेश इन द लोअर पार्ट ऑफ हिज़ बॉडी, इट वुड हैव बीन बैटर इफ ही हैड डाइड, सिन्स ही वाज़ डूम्ड टू बी अ लाइफटाइम क्रिपल विद नो यूज़ ऐट ऑल ऑफ हिज़ लोअर लिम्ब्स.)

अनुवाद :
भयंकर रूप से जली हुई हालत में अपने बिस्तर पर अर्द्ध-चेतन अवस्था में पड़े उस छोटे बालक ने अस्पष्ट रूप से चिकित्सक को अपनी माँ से बात करते हुए सुना। चिकित्सक ने माँ से कहा कि उसका पुत्र निश्चित रूप से नहीं बच पायेगा-जो कि वास्तव में अच्छा ही होगा-क्योंकि उस भयंकर आग ने उसके शरीर के निचले अर्द्ध भाग को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया है।

परन्तु वह बहादुर बालक मरना नहीं चाहता था। उसने निश्चय कर लिया कि वो जियेगा और किसी प्रकार वह बच गया और चिकित्सक को विस्मित कर गया। जब प्राणों का संकट टल गया तो फिर उसने चिकित्सक और अपनी माँ को धीमी आवाज़ में बातें करते हुए सुना। माँ को बताया गया कि आग ने उसके शरीर के निचले भाग के माँस को लगभग नष्ट कर दिया है इसलिए अच्छा होता यदि उसकी मृत्यु हो जाती क्योंकि पैरों के काम न कर पाने के कारण वैसे भी वह जीवन भर अपंग के रूप में रहने को मजबूर है।

Once more the brave boy made up his mind. He would not be a cripple. He would walk. But unfortunately from the waist down, he had no motor ability. His thin legs just dangled, there, all but lifeless.

Ultimately, he was released from the hospital. Every day his mother would massage his little legs, but there was no feeling, no control, nothing. Yet his determination that he would walk was as strong as ever.

(वन्स मोर द ब्रेव बॉय मेड अप हिज माईन्ड. ही वुड नॉट बी अ क्रिपल ही वुड वॉक बट अनफॉर्चुनेलि फ्रॉम द वेस्ट डाउन, ही हैड नो मोटर एबिलिटि हिज़ थिन लेग्ज जस्ट डेंगल्ड देयर, ऑल बट लाइफलैस.

अल्टिमेट्लि, ही वॉज़ रिलीज्ड फ्रॉम द हॉस्पिटल ऐवरी डे हिज़ मदर वुड मसाज हिज़ लिटल लैग्सन, बट देयर वॉज़ नो फीलिंग, नो कन्ट्रोल, नथिंग यट हिज़ डिटरमिनेशन दैट ही वुड वॉक वॉज़ ऐज़ स्ट्रॉग ऐज़ एवर.)

अनुवाद :
एक बार फिर से उस बहादुर बालक ने निश्चय किया कि वह अपंग नहीं रहेगा। वह फिर से चलेगा। परन्तु दुर्भाग्य से उसकी कमर से लेकर नीचे तक के शरीर में चेतना नहीं थी। उसकी पतली टाँगे सिर्फ लटक रही थीं प्राणहीन अवस्था में।

अन्ततः उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। प्रतिदिन उसकी माँ उसकी पतली टाँगों की मालिश करती थी, परन्तु उनमें किसी प्रकार की चेतना नहीं थी, न नियन्त्रण, कुछ भी नहीं था। परन्तु इन सब के बाद भी उसका निश्चय कि वह एक दिन फिर से चलेगा उतना ही दृढ़ था।

When he wasn’t in bed, he was confined to a wheelchair. One sunny day his mother wheeled him out into the yard to get some fresh air. This day, instead of sitting there, he threw himself from the chair. He pulled himself across the grass, dragging his legs behind him.

He worked his way to the white picket fence bordering their, lot. With great effort, he raised himself up on the fence. Then, stake by stake, he began dragging himself along the fence, resolved that he would walk. He started to do this every day until he wore a smooth path all around the yard beside the fence. There was nothing he wanted more than to develop life in those legs.

(व्हेन ही वाजन्ट (वॉज नॉट) इन बेड, ही वॉज कन्फाइन्ड टू अ व्हीलचेयर वन सनी डे हिज़ मदर व्हील्ड हिम आऊट इन्टू द यार्ड टू गैट सम फ्रेश एशर. दिस डे, इन्सटेड ऑफ सिटिंग देयर, ही थ्रियू हिमसेल्फ फ्रॉफ द चेयर ही पुल्ड हिमसेल्फ अक्रॉस द ग्रास, ड्रैगिंग हिज़ लैग्स बिहाइन्ड हिम.

ही वड हिज़ वे टू द वाईट पिकेट फेन्स बॉर्डरिंग देयर लॉट. विद ग्रेट एफर्ट, ही रेज्ड हिमसेल्फ अप ऑन द फेन्स. देन, स्टेक बाई स्टेक, ही बिगैन ड्रेगिंग हिमसेल्फ अलॉग द फेन्स, रिज़ॉल्व्ड दैट ही वुड वॉक ही स्टार्टेड टु डू दिस एवरी डे अन्टिल ही वोर अ स्मूथ पाथ ऑल अराऊण्ड द यार्ड बिसाइड द फेन्स देयर वॉज़ नथिंग ही वॉन्टिड मोर दैन टू डेवलप लाइफ इन दोज़ लैग्ज़.)

अनुवाद :
जिस समय वो बालक अपने बिस्तर पर नहीं होता था उस समय वह एक पहिये वाली कुर्सी तक सीमित होता था। एक दिन जब धूप अच्छी खिली हुई थी उसकी माँ उसे उस कुर्सी में बिठाकर बाहर खुले अहाते में लेकर आई ताजी हवा के लिए। और दिनों के विपरीत वह कुर्सी पर बैठा नहीं रहा वरन् उसने स्वयं को कुर्सी से नीचे गिरा लिया। वह घास पर खुद को खींचने लगा अपने पैरों को पीछे घसीटते हुए।

वह घिसटते हुए जैसे-तैसे अपनी जमीन से लगे हुए लकड़ी के खुंटों वाली सफेद बाड़ तक पहुँचा। बहुत कठिनाई से प्रयत्नपूर्वक उसने खुद को बाड़ के सहारे खड़ा किया। फिर धीरे-धीरे एक-एक बूँटे को पकड़ कर वो खुद को घसीटने लगा इस दृढ़ निश्चय के साथ कि वह चलेगा। वह ऐसा नित्य करने लगा जिससे बाड़ के सहारे की जमीन घास विहीन हो गई। उसके पैरों में फिर से चेतनता आ जाए यही उसकी सबसे बड़ी इच्छा थी।

Ultimately, through his daily massages, his iron persistence and his resolute determination, he did develop the ability to stand up, then to walk haltingly, then to walk by himself-and then-to run.

He began to walk to school, then to run to school, to run for the sheer joy of running. Later in college he made to the track team.

Still later in Madison Square Garden, this young man who was not expected to survive, who would surely never walk, who could never hope to run-this determined young man. Dr. Glenn Cunningham, ran the world’s fastest mile!

(अल्टिमेट्ली, श्रू हिज़ डेली मसाजेस, हिज़ आइरन परसिसटेन्स ऐण्ड हिज़ रिजोल्यूट डिटरमिनेशन, ही डिड डेवलप द एबिलिटी टू स्टैण्ड अप, देन, टू वॉक हॉल्टिंगली, देन टू वॉक बाई हिमसेल्फ-ऐण्ड देन-टू रन.

ही बिगैन टू वॉक टू स्कूल, देन टू रन टू स्कूल, टु रन फॉर द शीयर जॉय ऑफ रनिंग लेटर इन कॉलेज ही मेड टू द ट्रैक टीम.

स्टिल लेटर इन मैडिसन स्क्वैर गार्डन, दिस यंग मैन हू वॉज़ नॉट एक्स्पेक्टिड टू सरवाइव, हू वुड श्योरली नेवर वॉक, हू कुड नेवर होप टू रन-दिस डिटरमाईन्ड यंग मैन, डॉक्टर ग्लेन कनिंघम, रैन द वल्र्ड्स फास्टेस्ट माईल!)

अनुवाद :
आखिरकार उसकी रोज़ की मालिश, एकनिष्ठ प्रयास और दृढ़ संकल्प के द्वारा वह खड़ा होने लगा, फिर धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए चलने लगा, फिर बिना सहारे के चलने लगा और फिर दौड़ने लगा।

वह अपने विद्यालय पैदल चल के जाने लगा, फिर दौड़ कर विद्यालय जाने लगा, फिर केवल दौड़ के आनन्द की खातिर दौड़ने लगा।

कालान्तर में मैडिसन स्क्वैर गार्डन में इस युवा ने जिसके जीवित बचने की आशा नहीं थी, जिसका फिर से चल पाना असम्भव था, जो कभी दौड़ने की आशा नहीं कर सकता था-इस दृढ़ निश्चयी युवा डॉक्टर ग्लेन कनिंघम ने विश्व में सबसे तेज एक मील की दौड़ पूरी की।

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MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 3 परम्परा बनाम आधुनिकता

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 3 परम्परा बनाम आधुनिकता (निबन्ध, हजारी प्रसाद द्विवेदी)

परम्परा बनाम आधुनिकता अभ्यास

बोध प्रश्न

परम्परा बनाम आधुनिकता अति लघु उत्तरीय प्रश्न  

Class 10 Hindi Mp Board परम्परा बनाम आधुनिकता प्रश्न 1.
परम्परा क्या है?
उत्तर:
परम्परा का शब्दार्थ है-एक से दूसरे को, दूसरे से तीसरे को तथा इसी तरह आगे को दिया जाने वाला क्रम।

Mp Board Hindi Chapters परम्परा बनाम आधुनिकता प्रश्न 2.
दो शताब्दी पूर्व किस प्रकार के नाटकों की रचना अनुचित जान पड़ती थी?
उत्तर:
दो शताब्दी पूर्व दुःखान्त नाटकों की रचना अनुचित जान पड़ती थी। यवन साहित्य में दुखान्त नाटकों की बड़ी प्रसिद्धि थी।

आधुनिकता का अर्थ Hindi MP Board Class 10th प्रश्न 3.
मनुष्य की महिमा किसे स्वीकार है?
उत्तर:
मनुष्य की महिमा आधुनिक समाज को स्वीकार है।

Mp Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 4.
अगली मानवीय संस्कृति का स्वरूप क्या होगा?
उत्तर:
अगली मानवीय संस्कृति मनुष्य की समता और सामूहिक मुक्ति की भूमिका पर खड़ी होगी।

Mp Board Hindi परम्परा बनाम आधुनिकता प्रश्न 5.
आधुनिकता को असंयत और विश्रृंखल होने से कौन बचाता है?
उत्तर:
आधुनिकता को असंयत और विशृंखल होने से परम्परा बचेाती है। यही परम्परा आधुनिकता को आधार देती है और उसे शुष्क तथा नीरस बुद्धि विलास बनने से बचाती है।

परम्परा बनाम आधुनिकता लघु उत्तरीय प्रश्न

नवनीत हिन्दी विशिष्ट कक्षा 10 Pdf MP Board Hindi प्रश्न 1.
भाषा की प्राप्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर:
भाषा की प्राप्ति हमें परम्परा से होती है। यह भाषा काल-प्रवाह में बहती हुई, समकालीन सन्दर्भो को बिखेरती हुई, नये उपादानों को ग्रहण करती हुई आज हमें प्राप्त हुई है।

Mp Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 2.
नीति वाक्य में बुद्धिमान के विषय में क्या कहा गया है?
उत्तर:
नीति वाक्य में बुद्धिमान के विषय में कहा गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति एक पैर से खड़ा रहता है और दूसरे से चलता है। कहने का भाव यह है कि बुद्धिमान व्यक्ति परम्परा और आधुनिकता को मिलाकर चलता है।।

Mp Board Class 10th Hindi Solutions प्रश्न 3.
साहित्य के जिज्ञासु समझने में गलती कब कर सकते हैं?
उत्तर:
साहित्य के जिज्ञासु परिवर्तित और परिवर्तमान मूल्यों को ठीक-ठीक नहीं जानने के कारण बहुत-सी बातों के समझने में गलती कर सकते हैं।

वासंती हिंदी सामान्य कक्षा 10 Pdf MP Board Hindi प्रश्न 4.
चित्तगत उन्मुक्तता पर कौन-सा नया अंकुश लग रहा है?
उत्तर:
चित्तगत उन्मुक्तता पर व्यष्टि मानव के स्थान पर समष्टि मानव की प्रधानता अंकुश लगा रही है।

प्रश्न 5.
आधुनिकता सम्प्रदाय का विरोध क्यों करती है?
उत्तर:
आधुनिकता सम्प्रदाय का विरोध इसलिए करती है क्योंकि आधुनिकता गतिशील प्रक्रिया है, जबकि सम्प्रदाय स्थिति संरक्षक।

परम्परा बनाम आधुनिकता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परा और आधुनिकता की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परम्परा और आधुनिकता दोनों की गतिशील प्रक्रियाएँ हैं। दोनों में अन्तर केवल यह है कि परम्परा यात्रा के बीच पड़ा हुआ अन्तिम चरण है, जबकि आधुनिकता आगे बढ़ा हुआ गतिशील कदम है।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर आधुनिकता के व्यापक अर्थ समझाइए।
उत्तर:
आधुनिकता अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य ने जिन अनुभवों द्वारा जिन महान् मूल्यों को प्राप्त किया है उन्हें नये सन्दर्भो में देखना ही आधुनिकता है। आधुनिकता अकस्मात् आकाश से नहीं पैदा होती है। इसकी जड़ें भी परम्परा में समाई हुई हैं। परम्परा और आधुनिकता परस्पर विरोधी नहीं हैं अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न 3.
साहित्य के क्षेत्र में इतिहास किस प्रकार मदद करता है?
उत्तर:
साहित्य के क्षेत्र में इतिहास निखरी दृष्टि देता है जिससे आधुनिकता का बोध होता है। बिना इतिहास की नयी दृष्टि प्राप्त किए व्यक्ति साहित्य का रसास्वादन नहीं कर सकता और न ही वह भविष्य के मानव चित्र को सरस एवं कोमल बना सकता है।

प्रश्न 4.
‘आधुनिकता अपने आप में कोई मूल्य नहीं है।’-इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। इसका सम्बन्ध तो परम्परा से प्राप्त महान् मूल्यों को नये सन्दर्भो में देखने से होता है। परम्परा ही आधुनिकता को आधार देती है। अतः परम्परा के बिना आधुनिकता का कोई मूल्य नहीं है।

प्रश्न 5.
विचार-विस्तार कीजिए-‘कोई भी आधुनिक विचार आसमान में नहीं पैदा होता है।’
उत्तर:
विचार-विस्तार-लेखक का आशय यह है कि जो भी नया विचार आता है, उसकी जड़ें परम्परा से जुड़ी रहती हैं। कोई भी आधुनिक नया विचार यह दावा नहीं कर सकता कि वह परम्परा से कटा हुआ है। कार्य कारण के रूप में परम्परा की जड़ें बहुत गहराई तक इन आधुनिक विचारों में समाई रहती है।

परम्परा बनाम आधुनिकता भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द-समूह के लिए एक शब्द लिखिए
उत्तर:
(अ) निरन्तर चलने वाला = गतिशील
(ब) वह समय जो बीत चुका है = अतीत
(स) नीति का बोध कराने वाला वाक्य = नीति वाक्य
(द) मन के भाव = मनोभाव
(इ) महिमा से परिपूर्ण = महिमा मंडित।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम बताइए
उत्तर:

  1. मनोभाव = मनः + भाव = विसर्ग सन्धि।
  2. पुनर्जन्म = पुनः + जन्म = विसर्ग सन्धि।
  3. निर्बल = निः + बल = विसर्ग सन्धि।
  4. प्राग्ज्योतिष = प्राक् + ज्योतिष = व्यंजन सन्धि।
  5. (अत्याधुनिक = अति + आधुनिक = गुण सन्धि।
  6. महर्षि = महा + ऋषि = गुण सन्धि।
  7. आर्योचित = आर्य + उचित = गुण सन्धि।
  8. पुनरुद्धार = पुनः + उद्धार = विसर्ग सन्धि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए
उत्तर:

  1. इतिहास-सम्मत = इतिहास से सम्मत = तत्पुरुष समास।
  2. बाल लीला = बालपन की लीला = तत्पुरुष समास।
  3. काल प्रवाह = काल का प्रवाह = तत्पुरुष समास।
  4. परम्परा-प्राप्त = परम्परा से प्राप्त = तत्पुरुष समास।
  5. विचार-राशि = विचारों की राशि = तत्पुरुष समास।
  6. देवकी पुत्र = देवकी का पुत्र = तत्पुरुष समास।
  7. राजच्युत = राज से च्युत = तत्पुरुष समास।
  8. सत्ताधारी = सत्ता को धारण करने वाला = तत्पुरुष समास।

परम्परा बनाम आधुनिकता महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

परम्परा बनाम आधुनिकता बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परा का शब्दार्थ है-
(क) एक से दूसरे को बढ़ाना
(ख) जीवन पद्धति को बढ़ाने वाला क्रम
(ग) दूसरे से तीसरे को बढ़ाना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
परम्परा और आधुनिकता है-
(क) एक-दूसरे के विरोधी
(ख) एक-दूसरे के पूरक
(ग) इनमें से कोई नहीं
(घ) ये दोनों।
उत्तर:
(ख) एक-दूसरे के पूरक

प्रश्न 3.
परम्परा बनाम आधुनिकता निबन्ध है- (2009)
(क) भावात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवरणात्मक
(घ) भावनात्मक।
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

प्रश्न 4.
‘परम्परा बनाम आधुनिकता’ निबन्ध के लेखक हैं
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) रामचन्द्र शुक्ल
(ग) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) विद्यानिवास मिश्र।
उत्तर:
(ग) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 5.
‘सम्प्रदाय’ शब्द का प्रयोग आजकल निम्न अर्थ में लिया जाने लगा है। उसका मूल अर्थ है-
(क) गुरु परम्परा से प्राप्त आचार-विचार
(ख) मानव मन की इच्छाएँ
(ग) सहज विचार
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) गुरु परम्परा से प्राप्त आचार-विचार

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. यह सत्य है कि परम्परा भी एक …………. प्रक्रिया की देन है।
  2. व्यष्टि-मानव के स्थान पर …………. मानव का प्राधान्य।
  3. कोई भी आधुनिक विचार …………. से नहीं पैदा होता है।
  4. परम्परा आधुनिकता को आधार देती है,उसे शुष्क और नीरस ………… बनने से बचाती है।
  5. परम्परा …………. नहीं हो सकती पर भूले इतिहास को खोज निकालने का सूत्र देती है।
  6. आधुनिकता ………… का विरोध करती है। (2012, 15)
  7. ‘परम्परा बनाम आधुनिकता’ …………. निबन्ध है।। (2014)

उत्तर:

  1. गतिशील
  2. समष्टि
  3. आसमान
  4. बुद्धि-विलास
  5. इतिहाससम्मत
  6. सम्प्रदाय
  7. विचारात्मक।

सत्य/असत्य

  1. परम्परा एक गतिहीन प्रक्रिया की देन है।
  2. सभी पुरानी बातें परम्परा नहीं कही जाती हैं।
  3. परम्परा का अर्थ विशुद्ध अतीत नहीं है, बल्कि एक निरन्तर गतिशील जीवन्त प्रक्रिया है।
  4. आधुनिकता क्या है? शब्दार्थ पर विचार करें,तो ‘अधुना’ या इस समय जो कुछ है वही आधुनिक है।
  5. परम्परा और आधुनिकता एक-दूसरे के पूरक हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 3 परम्परा बनाम आधुनिकता img-1
उत्तर:
1. → (घ)
2. → (ग)
3. → (क)
4. → (ङ)
5. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. आधुनिकता किस प्रकार की प्रक्रिया है?
  2. परम्परा किसको आधार प्रदान करती है?
  3. परम्परा और आधुनिकता का आपस में किस प्रकार का सम्बन्ध है?
  4. आधुनिकता को शुष्क और नीरस बुद्धि-विलास बनने से कौन बचाता है?
  5. परम्परा से हमें क्या प्राप्त होता है?

उत्तर:

  1. गतिशील
  2. आधुनिकता को
  3. परस्पर पूरक
  4. परम्परा
  5. मूल्यों का रूप।

परम्परा बनाम आधुनिकता पाठ सारांश

इस प्रकार परम्परा का अर्थ विशुद्ध अतीत नहीं है बल्कि एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया है। उसमें हमें जो कुछ मिलता है, उस पर खड़े होकर हम आगे के लिए कदम उठाते हैं। नीति काव्य में इसी बात को इस प्रकार कहा है ‘चलत्येकम् पादेन तिष्ठत्येकेन बुद्धिमान’ अर्थात् बुद्धिमान व्यक्ति एक पैर से खड़ा रहता है,दूसरे से चलता है। यह केवल व्यक्ति का सत्य नहीं है,सामाजिक सन्दर्भ में भी यही सत्य है। खड़ा पैर परम्परा है और चलता पैर आधुनिकता। दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध खोजना बहुत कठिन नहीं,एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रश्न उठता है कि आधुनिकता क्या है? इसका शाब्दिक अर्थ है कि इस समय जो कुछ है,वह आधुनिक है। लेकिन आधुनिक का यह अर्थ नहीं है, अपितु सभी भावों के मूल में पुराने संस्कार एवं अनुभव निहित हैं। आज से दो सौ वर्ष पूर्व लोग कर्मफल प्राप्ति को अपरिहार्य मानते थे तथा पुनर्जन्म में भी आस्था थी, परन्तु अब यह विश्वास डगमगाने लमा है। अब मानव में वर्तमान जीवन को समृद्ध एवं सफल बनाने की कामना जाग्रत हो गई है।

इतिहास हमारे लिए बड़ा सहायक प्रमाणित होता है। प्राचीन काल के मानवीय अनुभव हमारे साहित्यकारों की वाणी को एक नया आयाम प्रदान कर रहे हैं। आधुनिक समाज में यथार्थ रूप में मानव के गौरव को स्वीकारा गया है। भविष्य में मानवीय संस्कृति मानव की समानता एवं सामूहिक मुक्ति की भूमिका पर आश्रित होगी।

यदा-कदा मानव किसी प्रमुख विचारधारा को यथावत् सुरक्षित रखने की कोशिश करता है लेकिन वह ऐसा करने में कितना सफल होता है, यह विवाद का विषय है। आज सन्दर्भ परिवर्तित हो रहे हैं। पुरानी बातें भूतकाल के गर्भ में समा रही हैं। मानवीय मूल्यों का रूप कुछ परिवर्तित दृष्टिगोचर हो रहा है लेकिन कोई भी आधुनिक विचार अपने आप नहीं पनपता। उसकी आधारशिला परम्परा में निहित है।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि परम्परा आधुनिकता की आधारशिला है। मानव अपने भावों को उन्नत एवं समृद्ध बनाने के लिए परम्परा से आधार ग्रहण करता है तथा उन्हें नवीन वातावरण में पल्लवित एवं पुष्पित करने का प्रयास करता है।

परम्परा बनाम आधुनिकता संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) हमने अपनी पिछली पीढ़ी से जो कुछ प्राप्त किया है, वह समूचे अतीत की पुंजीभूत विचार राशि नहीं है। सदा नए परिवेश में कुछ पुरानी बातें छोड़ दी जाती हैं और नई बातें जोड़ दी जाती हैं। एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को हूबहू वही नहीं देती, जो अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी से प्राप्त करती है। कुछ-न-कुछ छंटता रहता है, बदलता रहता है, जुड़ता रहता है। यह निरन्तर चलती रहने वाली प्रक्रिया ही परम्परा है।।

कठिन शब्दार्थ :
अतीत = बीते हुए समय की। पुंजीभूत = एकत्र। परिवेश = वातावरण। पूर्ववर्ती = पहले होने वाली।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘परम्परा बनाम आधुनिकता’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने परम्परा का अर्थ बताया है।

व्याख्या :
लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कहते हैं कि हमने अपने से पूर्व की पीढ़ी से जो कुछ भी प्राप्त किया है, वह सम्पूर्ण बीते हुए काल की एकत्रित विचार राशि नहीं है। सृष्टि का यह नियम है कि सदा नये वातावरण के आने पर कुछ पुरानी बातें त्याग दी जाती हैं और कुछ नई बातें जोड़ दी जाती हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हूबहू पहली पीढ़ी की ही सब बातें प्राप्त नहीं होती हैं। उसमें से कुछ-न-कुछ घटता-बढ़ता रहता है, यदि कुछ छंटता है तो कुछ जुड़ता भी है। इसी निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया को ही परम्परा कहा जाता है।

विशेष :

  1. परम्परा कोई नई चीज नहीं है अपितु एक हमेशा चलती हुई प्रक्रिया है।
  2. भाषा भावानुकूल।

(2) इस प्रकार परम्परा का अर्थ विशुद्ध अतीत नहीं है, बल्कि एक निरन्तर गतिशील जीवन प्रक्रिया है। उसमें हमें जो कुछ मिलता है, उस पर खड़े होकर आगे के लिए कदम उठाते हैं। नीति वाक्य में इसी बात को इस प्रकार कहा गया है-‘चलत्येकेम पादेन तिष्ठत्येकेन बुद्धिमान’ अर्थात् बुद्धिमान आदमी एक पैर से खड़ा होता है, दूसरे से चलता है।

कठिन शब्दार्थ :
अतीत = बीता हुआ। गतिशील= हमेशा चलती रहने वाली। जीवन्त = जीवन युक्त।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक ने बुद्धिमान व्यक्तियों का उदाहरण देकर परम्परा की गतिशीलता पर विचार प्रकट किये हैं।

व्याख्या :
लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि परम्परा का शुद्ध या सही अर्थ बीता हुआ समय नहीं है बल्कि परम्परा तो एक हमेशा चलती रहने वाली जीवन्त प्रक्रिया है। उस मार्ग पर चलते हुए जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, हम उसी पर खड़े होकर आगे का रास्ता तय करते हैं। नीति वाक्य में इसी बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति वह होता है जो एक पैर से खड़ा रहता है और दूसरे से चलता है। कहने का भाव यह है कि अतीत का ध्यान रखते हुए ही वह आगे की ओर चलता रहता है अर्थात् अतीत और वर्तमान में मेल रखता है।

विशेष :

  1. लेखक ने परम्परा का सही अर्थ बताया है।
  2. भाषा भावानुकूल है।

(3) आधुनिकता अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य |ने अनुभवों द्वारा जिन महनीय मूल्यों को उपलब्ध किया है, उन्हें नये सन्दर्भो में देखने की दृष्टि आधुनिकता है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है। संदर्भ बदल रहे हैं, क्योंकि नई जानकारियों से नए साधन और नए उत्पादन सुलभ होते जा रहे हैं। बहुत-सी पुरानी बातें भुलाई जा रही हैं, नई सामग्रियाँ और नए कौशल नवीन सन्दर्भो की रचना कर रहे हैं।

कठिन शब्दार्थ :
महनीय = महान्। उपलब्ध = प्राप्त। गतिशील = हमेशा चलती रहने वाली। सुलभ = सरलता से प्राप्त।

सन्दर्भ :
पर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक ने बताया है कि आधुनिकता पुरानी महान जीवन मूल्यों को नये सन्दर्भो में देखना होता है।

व्याख्या :
लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि आधुनिकता का अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य ने अपने जीवन में जिन महान् मूल्यों को प्राप्त किया है, उन्हें ही नये सन्दर्भो के रूप में देखना आधुनिकता है। यह निरन्तर चलने वाली एक प्रक्रिया है। सन्दर्भ समय एवं परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं क्योंकि नई जानकारियों से नए साधन और नए उत्पादन हमें प्राप्त होते जा रहे हैं। हम बहुत-सी पुरानी बातों को भूलते जा रहे हैं और नई सामग्री तथा नए कौशलों के उपयोग के द्वारा नवीन। सन्दर्भो की रचना कर रहे हैं।

विशेष :

  1. नये सन्दर्भो में किसी बात को देखना ही आधुनिकता है।
  2. भाषा भावानुकूल।

(4) कोई भी आधुनिक विचार आसमान से पैदा नहीं होता है। सबकी जड़ परम्परा में गहराई तक गई हुई है। सुन्दर से सुन्दर फूल यह दावा नहीं कर सकता कि वह पेड़ से भिन्न होने के कारण उससे एकदम अलग है। कोई भी पेड़ दावा नहीं कर सकता कि वह मिट्टी से भिन्न होने के कारण एकदम अलग है। इसी प्रकार कोई भी आधुनिक विचार यह दावा नहीं कर सकता कि वह परम्परा से कटा हुआ है। कार्य-कारण के रूप में, आधार-आधेय के रूप में परम्परा की एक अविच्छेद्य श्रृंखला अतीत में गहराई तक, बहुत गहराई तक गई हुई है।

कठिन शब्दार्थ :
अविच्छेद्य = विच्छेद रहित।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि परम्परा के आधार के बिना कोई भी आधुनिकता फल-फूल नहीं सकती है।

व्याख्या :
लेखक श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि कोई भी आधुनिक विचार अकस्मात् आकाश में गिरकर जमीन पर नहीं आता है। संसार की सभी बातों की जड़ परम्परा में गहराई तक जमी रहती है। लेखक एक उदाहरण देकर इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता है कि जिस प्रकार सुन्दर से सुन्दर फूल का जो आज अस्तित्व है, उसके मूल में उसका वृक्ष या लता तथा वृक्ष या लता के मूल में मिट्टी का प्रभाव होता है। इसी भाँति कोई भी आधुनिक विचार यह दावा नहीं कर सकता कि वह परम्परा से बिल्कुल अलग है। सच तो यह है कि कार्य और कारण के रूप में अथवा आधार और आधेय के रूप में परम्परा की एक निरन्तर बहती हुई शृंखला अतीत में बहुत गहराई तक जमी हुई है। कहने का भाव यह है कि बिना परम्परा के कोई भी आधुनिकता नहीं आ सकती।

विशेष :

  1. आधुनिकता के मूल में परम्परा का होना आवश्यक है।
  2. भाषा भावानुकूल।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन

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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 पाठान्त अभ्यास

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

आपदा प्रबंधन के प्रश्न उत्तर Class 10th MP Board प्रश्न 1.
सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्य (2009)
(i) बिहार
(ii) पश्चिमी बंगाल
(iii) असम
(iv) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(ii) पश्चिमी बंगाल

आपदा प्रबंधन के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th प्रश्न 2.
भूकम्प की दृष्टि से भारत का अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र – (2009)
(i) कच्छ
(ii) अरावली पर्वत
(iii) उड़ीसा तट
(iv) गोवा।
उत्तर:
(i) कच्छ

आपदा प्रबंधन कक्षा 10 अध्याय 1 MP Board प्रश्न 3.
दिसम्बर 2004 में सुनामी से सबसे अधिक जनहानि हुई थी
(i) तमिलनाडु में
(ii) गुजरात में
(iii) केरल में
(iv) उड़ीसा में।
उत्तर:
(i) तमिलनाडु में

आपदा प्रबंधन के प्रश्न उत्तर Chapter 6 MP Board Class 10th प्रश्न 4.
विश्व स्तर पर पहला भू शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था (2017)
(i) जापान (याकोहामा)
(ii) भारत (बंगलूरु)
(iii) ब्राजील (रियोडिजेनिरो)
(iv) यू. एस. ए. (न्यूयार्क)।
उत्तर:
(iii) ब्राजील (रियोडिजेनिरो)

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भूस्खलन को रोकने के लिए पहाड़ी सड़कों के किनारे क्या किया जाता है ?
उत्तर:
पहाड़ी स्थानों पर सड़कों के किनारे भूस्खलन को रोकने हेतु बनायी गयी पुख्ता दीवारें बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती हैं।

प्रश्न 2.
अचानक उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौनसी हैं ? (2014)
उत्तर:
अचानक उत्पन्न होने वाली आपदाएँ–भूकम्प, सुनामी लहरें, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, हिम स्खलन, बादल फटना इत्यादि।

प्रश्न 3.
तटबाँध का निर्माण किन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है ?
उत्तर:
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तटबाँधों का निर्माण करके बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
रिक्टर पैमाने पर क्या मापा जाता है ? (2013, 16)
उत्तर:
भूकम्प की मात्रा एवं तीव्रता।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आपदाओं से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आपदा से आशय – आपदा एक मानवजनित या प्राकृतिक विपत्ति है जिससे निश्चित क्षेत्र में आजीविका तथा सम्पत्ति की हानि होती है, जिसकी परिणति मानवीय वेदना तथा कष्टों में होती है।

अतः वे समस्त घटनाएँ जो प्रकृति में व्यापक रूप से घटित होती हैं और मानव समुदाय को असुरक्षित एवं संकट में डालते हुए मानवीय दुर्बलताओं को दर्शाती हैं, आपदाएँ हैं। जैसे—भूकम्प, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, आतंकवाद, नाभिकीय संकट, रासायनिक संकट, पर्यावरणीय संकट आदि।

प्रश्न 2.
सूखा एवं बाढ़ किसे कहते हैं ? लिखिए। (2011, 18)
उत्तर:
सूखा – सूखा एक प्रमुख आपदा है जो मानवीय चिन्ता का प्रमुख विषय रहा है। हमारे राष्ट्र में बहुत कम ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ सूखे की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। किसी भी क्षेत्र में होने वाली सामान्य वर्षा में 25 प्रतिशत या उससे ज्यादा कमी होने पर उसे सूखे की स्थिति कहा जाता है। गम्भीर सूखे की स्थिति को हम तब कहते हैं जब या तो वर्षा में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी हो या दो वर्षों तक निरन्तर वर्षा न हो।

सिंचाई आयोग की 1972 की रिपोर्ट के अनुसार देश के वे क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम हो, साथ ही कुल वार्षिक वर्षा में सामान्य से 25 प्रतिशत तक परिवर्तन हो, सूखाग्रस्त क्षेत्र कहा गया है।

बाढ़ – किसी बड़े भू-भाग में किन्हीं भी कारणों से हुआ जलभराव जिससे जन-धन की हानि होती है, बाढ़ कहलाती है। जलाशयों में पानी की वृद्धि होने या भारी वर्षा के कारण नदी के अपने किनारों को लाँघने या तेज हवाओं या चक्रवातों के कारण बाँधों के फटने से विशाल क्षेत्रों में अस्थायी रूप से पानी भरने से बाढ़ आती है।

प्रश्न 3.
भूस्खलन की आपदा से बचने के लिए प्रयुक्त तीन चरणों को लिखिए।
उत्तर:
भूस्खलन की आपदा से बचने के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –
(1) आपदा संकट मानचित्रण – सर्वप्रथम आपदा संकट मानचित्रण करके भूस्खलन के क्षेत्रों का पता लगाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से यह पता लग सकेगा कि बस्तियाँ बसाने के लिए कौन-कौनसे क्षेत्रों से बचा जाए।

(2) प्राकृतिक वनस्पति को बढ़ावा – पहाड़ी ढालों पर प्राकृतिक वनस्पति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वनस्पतिविहीन ऊपरी ढालों पर उपयुक्त प्रजातियों के वृक्षों को रोपित करके पुनः वनस्पति युक्त बनाया जाना आवश्यक है।

(3) मजबूत बुनियाद के नक्शे मजबूत बुनियाद के साथ नक्शे तैयार करके बनाए गए भवन भूमि की संचलन शक्ति को सहन कर लेते हैं। भूमि के नीचे बिछाए गये पाइप तथा केबल्स लचीले होने चाहिए ताकि वे भूस्खलन से उत्पन्न दबाव का सामना आसानी से कर सकें।

भूस्खलन को रोकने का सबसे सस्ता और प्रभावी तरीका है वनस्पति आच्छादन का विस्तार करना। ऐसा करने से मिट्टी की ऊपरी परत निचली परत के साथ जुड़ जाती है। अत्यधिक अपवाह और भूक्षरण को भी इससे रोका जा सकता है।

प्रश्न 4.
सुनामी से क्या आशय है ?
उत्तर:
सुनामी – भूकम्प और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल उत्पन्न होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप समुद्री जल में उर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं। इन्हें सुनामी या भूकम्पीय समुद्री लहरें कहा जाता है।

सामान्यतया प्रारम्भ में सिर्फ एक ऊर्ध्वाधर तरंग ही उत्पन्न होती है, परन्तु कालान्तर में जल-तरंगों की एक श्रृंखला बन जाती है। महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। जल तरंग का गति उथले समुद्र में कम और गहरे समुद्र में ज्यादा होती है। गहरे समुद्र में सुनामी लहरों की लम्बाई अधिक होती है और ऊँचाई कम। उथले समुद्र में किनारों पर इन लहरों की ऊँचाई 15 मीटर या इससे अधिक हो सकती है। इससे तटीय क्षेत्र में भीषण विध्वंस होता है।

प्रश्न 5.
हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
भू-संरचना की दृष्टि से हिमालय नवीन पर्वतीय श्रृंखला वाला क्षेत्र है। यह पर्वतीय क्षेत्र अभी भी अपने निर्माण की अवस्था में है इसलिए समस्त हिमालय क्षेत्र सक्रिय भूकम्पीय क्षेत्रों के अन्तर्गत है। यहाँ निरन्तर ही प्राचीन काल से अनेक विनाशकारी भूकम्प आते रहे हैं। भारतीय हिमालय के मध्यवर्ती भाग में स्थित विशाल मैदान भी भूकम्प प्रभावित क्षेत्र है। 1988 में बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर अंजारिया में विनाशकारी भूकम्प आया था जिसका प्रभाव मधुबनी और दरभंगा पर पड़ा था।

प्रश्न 6.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं ?
उत्तर:
सूखे का सबसे महत्वपूर्ण कारण वर्षा का कम होना तथा असमान वितरण है। पश्चिमी तथा मध्य भारत में वर्षा की अनिश्चितता रहती है। यहाँ वर्षा केवल वर्षा ऋतु में ही होती है। इसलिए इसकी मात्रा कम रहती है। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
भारत में सुनामी प्रभावित प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं ? (2009, 11)
उत्तर:
सुनामी आपदा के क्षेत्र – समुद्रतटीय क्षेत्र सुनामी आपदा के प्रभाव क्षेत्र हैं। सुनामी आपदा के क्षेत्रों में प्रमुखतया तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश, पाण्डिचेरी और अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह आदि हैं।

प्रश्न 8.
प्राकृतिक आपदाओं के लिए वनों का विदोहन (या विनाश) उत्तरदायी है। क्या यह सच है ? समझाइए। (2009, 14)
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएँ वे समस्त घटनाएँ हैं जो प्रकृति में विस्तृत रूप से घटित होती हैं और जिनका प्रभाव विनाशकारी होता है; जैसे – सूखा, बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन एवं सुनामी आदि। इन आपदाओं के लिए प्रमुख रूप से वनों का विदोहन उत्तरदायी है। वनों से ही मिट्टी को पोषण तत्व प्राप्त होते हैं, मृदा अपरदन से रक्षा होती है, वर्षा में वृद्धि होती है। वन विनाश से प्राकृतिक जल धाराओं का सूखना, वर्षा कम होने से भूमिगत जल स्तर का नीचा होना, नदियों के जल स्तर का गिरना जिससे सूखे की प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए वनों का विनाश (विदोहन) उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
महामारी कैसे फैलती है ? स्पष्ट कीजिए। (2009, 13)
अथवा
महामारी आपदा से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख कारण लिखिए। (2009)
उत्तर:
महामारी को किसी ऐसे रोग या स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है जो असाधारण या अप्रत्याशित रूप से बड़े पैमाने पर फैल जाती है। महामारी या प्रकोप की स्थिति तब होती है जब किसी रोग विशेष से ग्रस्त मामलों की संख्या अनुमान से बहुत अधिक हो जाती है। कोई भी महामारी तेजी के साथ या अचानक फैल सकती है।

महामारी के प्रमुख कारण विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ अथवा कवक होते हैं। खाद्य पदार्थ एवं पेयजल का प्रदूषण, बारिश के मौसम में मच्छरों की वृद्धि, पर्यटक एवं प्रवासी लोगों की अत्यधिक भीड़ तथा वातावरण पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव भी महामारी का प्रकोप लाता है।

प्रश्न 10.
आपदा प्रबन्धन से क्या आशय है ? आपदा प्रबन्ध के मुख्य तत्व बताइए। (2009, 13, 15, 17)
अथवा
“आपदा प्रबन्धन का ज्ञान प्रत्येक विद्यार्थी को होना चाहिए।” क्यों ? (2010)
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन का आशय – आपदा प्रबन्धन क्रियाकलापों की एक ऐसी श्रृंखला है जो आपदा से पहले और उसके बाद ही नहीं बल्कि एक दूसरे के समानान्तर भी चलती रहती है। यह व्यवस्था विस्तार और संकुचन मॉडल से भी अधिक है। इस व्यवस्था में यह मानकर चला जाता है कि आपदा सम्भावित समुदाय के भीतर आपदा की रोकथाम, उसके दुष्प्रभाव को कम करने, जवाबी कार्यवाही और सामान्य जीवन स्तर पर लौटने के लिए पर्याप्त उपाय होते हैं, तथापि विभिन्न घटक, संकट और समुदाय की असुरक्षा की सम्भावना के बीच सम्बन्ध के आधार पर विस्तारित तथा संकुचित होते रहते हैं। अर्थात् आपदा प्रबन्धन ऐसे क्रियाकलापों का एक समूह है जो आपदा के पूर्व या बाद की स्थिति के क्रम में न होकर एक-दूसरे के साथ-साथ चलती हैं।

आपदा प्रबन्धन के चार मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं –

  1. पहले से तैयारी – इसके अन्तर्गत समुदाय को आपदा प्रभाव से निपटने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए।
  2. राहत एवं जवाबी कार्यवाही – आपदा से पहले, आपदा के दौरान और आपदा के तुरन्त बाद किए गए ऐसे उपाय जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आपदा के प्रभाव कम से कम हों।
  3. सामान्य जीवन स्तर पर लौटना – ऐसे उपाय जो कि भौतिक आधारभूत सुविधाओं के पुनर्निर्माण तथा आर्थिक एवं भावनात्मक कल्याण की प्राप्ति में सहायक हों।
  4. रोकथाम और दुष्प्रभाव कम करने के लिए योजना – आपदाओं की गम्भीरता तथा उनके प्रभाव को कम करने के उपाय।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाढ़ आपदा के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन करते हुए उसके नियन्त्रण के उपाय बताइए।
अथवा
बाढ़ नियन्त्रण के कोई चार उपाय लिखिए। (2016)
[संकेत : ‘बाढ़ नियन्त्रण के उपाय’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
बाढ़ के उत्तरदायी कारण

बाढ़ आपदा के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं –

(1) बाँध, तट बाँध एवं बैराज का टूटना-भारत में तटबन्ध टूटने, बाँध टूटने और बैराज से अधिक पानी छोड़े जाने के कारण बाढ़ आती है जिसे ‘क्लेश फ्लड’ कहते हैं। अविवेकपूर्ण तरीके से तट बन्धों का निर्माण होने, पुराने व जीर्ण हो रहे बाँधों के कारण बाढ़ों का खतरा निरन्तर बना रहता है।

(2) नदियों में गाद की मात्रा बढ़ना-हिमालय क्षेत्र में बहने वाली नदियों में मिट्टी और गाद पानी के साथ बहकर मैदानों एवं समुद्र तटीय क्षेत्रों में जमा हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार हिमालय से निकलने वाली गण्डक और सरयू नदियों से प्रतिवर्ष 10 लाख घन फुट मिट्टी जल के साथ बहकर उत्तर प्रदेश के मैदानों में जमा हो रही है। इससे नदियों का तल उठ रहा है और उनकी जल सतह ऊपर उठ रही है। अब प्रतिवर्ष इनकी ये धारा ही बाढ़ का रूप धारण कर रही है।

(3) भूस्खलन होना-पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन द्वारा नदी का मार्ग अवरुद्ध होने से जलाशय बन जाते हैं और फिर उनके अचानक टूटने से प्रलयकारी बातें आती हैं। हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन एक आम क्रिया है।

(4) सडक और निर्माण कार्यों से जल निकासी में व्यवधान पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण, वन कटाई, अनियन्त्रित खनन से पहाड़ों की भूमि अस्थिर हो गई है। हिमालय क्षेत्र में एक किमी. लम्बी सड़क बनाने में औसतन 60,000 घन मीटर मलबा निकलता है। हिमालय क्षेत्र में लगभग 50,000 किमी. लम्बी सड़कों का निर्माण हो चुका है। सड़क निर्मित एकत्रित मलबा भी बाढ़ों को आमन्त्रित करता है।

इसके अतिरिक्त अन्य कारणों में नदियों पर निर्मित बाँधों में तल-छट भरना व पर्यावरण विनाश एवं मृदा अपरदन और निक्षेपण अधिक होना बाढ़ के लिए उत्तरदायी कारण हैं।

बाढ़ नियन्त्रण के उपाय

बाढ़ नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं –

  1. नदियों के ऊपरी क्षेत्रों में अनेक जलाशय बनाये जा सकते हैं।
  2. सहायक नदियों व धाराओं पर अनेक छोटे-छोटे बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे मुख्य नदी में बाढ़ के खतरे को कम किया जा सके।
  3. नदियों के ऊपरी जल संग्रहण क्षेत्रों में सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
  4. मैदानी क्षेत्रों में अनुपयुक्त भूमि पर जल संग्रहण किया जाना चाहिए।
  5. नदियों के किनारों की भूमि पर मानवीय बस्तियों के अतिक्रमण पर रोक लगाई जानी चाहिए।
  6. नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में वन विनाश को नियन्त्रित करना चाहिए।
  7. पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण के समय विस्फोटकों का सीमित उपयोग कर भूस्खलन पर नियन्त्रण किया जाना चाहिए।

बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में किसी भी बड़े विकास कार्य की अनुमति नहीं देनी चाहिए। बाढ़ क्षेत्रों में भवनों का निर्माण मजबूत होना चाहिए।

प्रश्न 2.
भूकम्प आपदा का अर्थ बताते हुए भारत में भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘भूकम्प’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, भू + कम्प; जहाँ भू का अर्थ पृथ्वी, कम्प का अर्थ काँपना है। जब पृथ्वी की सतह अचानक हिलती या कम्पित होती है, तो इसे भूकम्प कहते हैं। अर्थात् पृथ्वी के अन्दर अचानक हलचलों के कारण भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

भूकम्प उत्पत्ति के कारण

इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1. ज्वालामुखी उद्भेदन – भूकम्प की उत्पत्ति का एक मुख्य कारण ज्वालामुखी उद्गार है। जब तप्त एवं तरल लावा भूपटल की शैलों को तोड़कर वेग के साथ बाहर निकलता है, तो भूपटल वेग से काँप उठता है जिसके परिणामस्वरूप भूकम्प आते हैं।
  2. भू-असन्तुलन – भूगर्भ में भ्रंशों के सहारे उत्पन्न निर्बल क्षेत्र में शैलों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। सन्तुलन बिगड़ने के कारण शैलों में कम्पन उत्पन्न होने लगता है और भूकम्प आ जाते हैं।
  3. प्लेट विवर्तनिकी – भू प्लेटों के किनारे जब एक-दूसरे से आपस में रगड़ते हैं तो उससे चट्टानों में भ्रंशन और चटकन द्वारा भूकम्प उत्पन्न होते हैं। प्रायद्वीपीय दक्षिणी भारत में प्लेट विवर्तनिकी भूकम्प आते हैं।

भारत में भूकम्प प्रभावित क्षेत्र

भूकम्प के विवरण एवं प्रभाव के आधार पर भारत को पाँच क्षेत्रों में बाँटा जाता है

  1. अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र
  2. अत्यधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र
  3. मध्यम प्रभावित क्षेत्र
  4. निम्न खतरा प्रभावित क्षेत्र, तथा
  5. सामान्य क्षेत्र।

देश में सबसे खतरा प्रभावित क्षेत्र हैं हिमालय, जिसके अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर भारत शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कच्छ भी अधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त कोंकण तट भी अधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र है।

मध्य भारत, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ भूकम्प से कम प्रभावित क्षेत्र हैं। देश के अन्य भाग मध्यम खतरा प्रभावित क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।

प्रश्न 3.
सखा और बाढ़ में क्या सामान्य है ? किस प्रकार उचित योजना के द्वारा सुखे और बाढ़ की स्थितियों को नियन्त्रित किया जा सकता है ? विवेचना कीजिए।
अथवा
सूखा आपदा से निपटने के लिए कोई चार उपाय लिखिए। (2012)
[संकेत – सूखे के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय’ शीर्षक को देखें।]
उत्तर:
सूखा और बाढ़ में क्या सामान्य ? – भारत की विशालता और भौतिक विभिन्नता के कारण यहाँ बाढ़ एक सामान्य आपदा है। देश में वर्षा का 80 प्रतिशत से अधिक भाग मानसून द्वारा प्राप्त होता है। मानसूनी वर्षा की कमी या अधिकता क्रमशः सूखे या बाढ़ को जन्म देती है।

सूखे के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय

इस दिशा में निम्नलिखित कदम प्रभावशाली हो सकते हैं –

  1. सूखे पर नजर रखना – इसके अन्तर्गत वर्षा पर निरन्तर नजर रखना, पानी के संग्रह स्थलों में पानी की मात्रा पर नजर रखना तथा उपलब्ध जल की मात्रा की उसकी आवश्यक मात्रा से तुलना आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  2. जल संरक्षण – इसमें घरों तथा कृषि क्षेत्रों में वर्षा के पानी को संचित किया जाता है। यह उपलब्ध पानी की मात्रा को बढ़ा देता है। जल संचय वर्षा के पानी को निचले क्षेत्र या तालाबों आदि में एकत्र करके या इसे पृथ्वी के अन्दर अवशोषित कराकर किया जाता है। इससे कृषि के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा बढ़ जाती है।
  3. सिंचाई के साधनों को बढ़ाना – सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, सूखे से असुरक्षा को कम करता है।
  4. वनारोपण – वनारोपण या वृक्ष लगाने का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए जिससे वर्षा के पानी को व्यर्थ में बहने से रोका जा सके। वर्षा को आकर्षित किया जा सके।
  5. आजीविका योजना – सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए खेती से हटकर रोजगार के अवसर बढ़ाना, सामुदायिक वनों से गैर काष्ठ वन उपज संग्रह करना, बकरी पालन, बढ़ईगीरी करना, आदि शामिल हैं।

प्रश्न 4.
सामान्य आपदाओं से क्या तात्पर्य है ? प्रमुख सामान्य आपदाओं का वर्गीकरण करते हुए उनके कारण, प्रभाव और बचाव के उपायों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
घरों में लगने वाली आग की रोकथाम की बुनियादी युक्तियाँ लिखिए। (2009)
अथवा
घर में आग से बचाव के कोई चार उपाय लिखिए। (2012, 16)
[संकेत : ‘आग से बचाव के उपाय’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
सामान्य आपदाएँ
सामान्य आपदाएँ वे घटनाएँ हैं जो दैनिक कार्यों के सम्पादन के दौरान घटित होती हैं एवं क्षति पहुँचाती हैं;
जैसे – आग, सड़क दुर्घटनाएँ, रेल एवं यातायात दुर्घटनाएँ, महामारी आदि।

(1) आग
आग अत्यन्त खतरनाक होती है। चक्रवात, भूकम्प, बाढ़ आदि सभी प्राकृतिक आपदाओं को मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोग आग से जलकर मरते हैं।

आग लगने के कई कारण होते हैं बिजली के हीटर पर खाना पकाते समय होने वाली दुर्घटनाएँ, बिजली की वाइंडिंग क्षमता से अधिक भार, कमजोर वाइंडिंग, कूड़ा-करकट में लगी आग, आगजनी, बारूदी पदार्थ आदि।

आग से बचाव के उपाय –

  1. आग से बचाव के बुनियादी नियम और बाहर निकलने का रास्ता सदैव ध्यान में रखा जाये।
  2. घर के भीतर अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ न रखें।
  3. जब घर से बाहर जाएँ तो बिजली और गैस के सभी उपकरण बन्द करके जाएँ।
  4. घर में एक अग्निशमन यन्त्र अवश्य रखें और प्रयोग करना सीखें।
  5. बिजली के एक ही सॉकिट में बहुत सारे उपकरण न लगाएँ।
  6. आग लगने पर दमकल विभाग को बुलाएँ, उन्हें अपना पता तथा पानी की प्रकृति और स्थान की सूचना दें।

(2) सड़क दुर्घटनाएँ
सड़क व्यवस्था बेहतर सम्पर्क और सेवा के लिए बनाई जाती है। लेकिन वाहन चालकों की जल्दबाजी व लापरवाहियों के कारण सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1. यातायात नियमों का उल्लंघन।
  2. नशे की हालत में वाहन चलाना।
  3. तीव्र गति से गाड़ी चलाना।
  4. वाहनों तथा सड़कों के रख-रखाव में कमी।

बचाव के उपाय –

  1. वाहन तभी चलाएँ जब आप उसके लिए पर्याप्त सक्षम हों।
  2. वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात न करें।
  3. दो पहिया वाहन सदैव हेलमेट पहनकर चलाएँ।
  4. अपने से अगली गाड़ी से आगे निकलने का अनावश्यक प्रयास न करें।
  5. सड़क से सम्बन्धित संकेतों का ज्ञान होना चाहिए तथा उनका पालन करना चाहिए।
  6. वाहन चलाते समय गति को अचानक तेज या कम न करें।
  7. सड़क को पार करते समय सड़क के दोनों तरफ देखें।

(3) रेल दुर्घटनाएँ
रेल दुर्घटनाएँ, रख-रखाव की कमी, मानवीय त्रुटि या तोड़-फोड़ की कार्यवाही के कारण पटरी से उतरने से होती हैं।

सुरक्षा के उपाय –

  1. रेल क्रॉसिंग पर सिग्नल और स्विंग बैरियर का ध्यान रखें, उनके नीचे से निकलने का प्रयास न करें।
  2. मानवरहित क्रॉसिंग पर वाहन से नीचे उतरकर दोनों ओर देखिए। रेलगाड़ी के दिखाई न देने पर ही लाइन पार कीजिए।
  3. रेल से यात्रा करते समय अपने साथ ज्वलनशील पदार्थ नहीं ले जाने चाहिए।
  4. रेलगाड़ी में सफर करते समय दरवाजे पर खड़े न हों और न ही बाहर की तरफ झुकें।
  5. आपातकालीन चेन को बिना आवश्यकता के न खींचें। आपातकालीन खिड़की का दुर्घटना के समय बाहर निकलने हेतु उपयोग न करें।

(4) हवाई दुर्घटनाएँ
हवाई यात्रा में यात्री की सुरक्षा अनेक कारकों से प्रभावित होती है। हवाई यात्रा निम्न स्थितियों में जोखिम पूर्ण हो जाती है; जैसे तकनीकी समस्या, आग, जहाज उतरने तथा उड़ने की अवस्थाएँ, पहाड़ी क्षेत्रों में आने वाले तूफान, अपहरण एवं बमो से आक्रमण।

सुरक्षा के उपाय –

  1. विमान चालक दल द्वारा सुरक्षा के सम्बन्ध में जो बातें बताई जाएँ उन पर ध्यान दें।
  2. सुरक्षा अनुदेश कार्ड को ध्यानपूर्वक पढ़ें।
  3. निकटतम आपातकालीन खिड़की का पता होना तथा आपातकाल के दौरान इसे खोलने की विधि का ज्ञान होना चाहिए।
  4. कुर्सी पर बैठते समय सुरक्षा पेटी को बाँधकर रखना चाहिए।

(5) महामारी आपदा
महामारियाँ रोग एवं मृत्यु के लिए जिम्मेदार होती हैं। महामारियों से समाज में विघटन होता है और आर्थिक हानि भी। महामारियों से ऐसे लोग अधिक प्रभावित होते हैं जो कुपोषित होते हैं या दूषित वातावरण में रहते हैं, जहाँ जलआपूर्ति घटिया होती है एवं जहाँ पर स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता नहीं होती, जिन व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है वे महामारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं। यदि किसी स्थान पर प्राकृतिक आपदा (ज्वालामुखी, बाढ़, चक्रवात, सुनामी) पहले आ चुकी हो तो महामारी का प्रकोप जीवन के लिए भयावह स्थितियाँ उत्पन्न कर देता है।

बचाव के उपाय –

  1. महामारी को नियन्त्रित करने हेतु स्वास्थ्य सेवाओं का राज्य स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक विस्तारित किया जाना आवश्यक है। अत: राज्य, जिला, उपकेन्द्र तथा ग्राम स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों एवं नौं को पूर्व तैयारी एवं तालमेल बनाना आवश्यक होता है।
  2. महामारियों के घटने की आशंका किसी क्षेत्र में है तो जवाबी कार्यवाही के रूप में उसकी आकस्मिक कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए तथा नियमित निगरानी प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  3. उपलब्ध दवाओं, टीकों, प्रयोगशाला इकाइयों, डॉक्टरों और सहयोगी स्टाफ की संख्या दर्शाने वाली सूची तैयार की जानी चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर उनका उपयोग सम्भव हो सके।
  4. महामारियों एवं उनके सुरक्षा उपायों पर आधारित प्रशिक्षण, सभी स्तरों पर कार्यरत् अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए इससे क्षमता निर्माण के साथ बेहतर ढंग से आपात स्थिति में कार्य लिया जा सकता है।
  5. टीकाकरण द्वारा वैयक्तिक बचाव तथा दुष्प्रभाव को सीमित किया जा सकता है।
  6. संक्रमण के वाहकों को कई विधियों द्वारा नियन्त्रित किया जाना चाहिए;

जैसे –

  1. स्वच्छता अवस्थाएँ सुधारकर
  2. रोगाणुओं के प्रजनन स्थलों को नष्ट करके
  3. कूड़ा-करकट के उचित निस्तारण द्वारा, तथा
  4. जल स्रोतों को शुद्ध करके।

प्रश्न 5.
रासायनिक आपदाएँ क्या हैं ? प्रमुख रासायनिक आपदाओं के उदाहरण देते हुए रोकथाम के उपाय बताइए।
उत्तर:
रासायनिक आपदाएँ

औद्योगिक व रासायनिक आपदाएँ मानव प्रदत्त आपदाएँ हैं। इनकी शुरुआत बड़ी तेजी से बिना किसी चेतावनी के हो सकती है।

रासायनिक गैस रिसाव मानवीय गलती, प्रौद्योगिकी खराबी अथवा प्राकृतिक क्रियाकलापों से हो सकती है।

उदाहरण – रासायनिक गैस रिसाव (2-3 दिसम्बर, 1984) भोपाल में घटने वाली अभी तक की सबसे विनाशकारी औद्योगिक रासायनिक आपदा है। यह त्रासदी एक प्रौद्योगिकी घटना का परिणाम थी। इसमें हाइड्रोजन, साइनाइड तथा अन्य अभिकृत उत्पादों सहित 4-5 टन मिथाइलआइसोसाइनेट (एमआईसी) नामक अत्यन्त जहरीली गैस यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से रात 12 बजे रिसी और हवा के साथ चारों तरफ फैल गई। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इससे लगभग 3,600 लोग मरे और अनेक रोगग्रस्त हो गए।

रोकथाम के उपाय

  1. खतरनाक रसायनों के उपयोग, भण्डारण तथा बचाव के तरीके से सम्बन्धित जानकारी सरल भाषा में आम नागरिक तक पहुँचाना।
  2. रिहायशी क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्रों से अलग एवं दूर रखा जाना चाहिए। औद्योगिक व आवासीय क्षेत्रों के मध्य हरित पट्टी होनी चाहिए।
  3. दुर्घटना की स्थिति का सामना करने की समझ विकसित करने हेतु समय-समय पर नकली अभ्यास (मॉकड्रिल) करना चाहिए।
  4. जहरीली पदार्थों के भण्डार की क्षमता सीमित होनी चाहिए।
  5. अग्निरोधी चेतावनी प्रणाली में सुधार करना चाहिए।
  6. उद्योग के लिए बीमा और सुरक्षा सम्बन्धी कानून सख्ती से लागू होने चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत के रेखामानचित्र पर अपने रहने की स्थिति को बिन्दु के द्वारा दर्शाइए। उसमें भूकम्प प्रभावित मुख्य क्षेत्र, सूखा, बाढ़, भूस्खलन एवं सुनामी संभावित प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित संभावित क्षेत्रों को दर्शाइए।
उत्तर:
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन 1

प्रश्न 7.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखिए। (2018)
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन

आपदा प्राय: एक अनापेक्षित घटना है। यह ऐसी ताकतों से घटित होती है जो मनुष्य के नियन्त्रण में नहीं है। यह थोड़े समय में बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध हो जाते हैं और बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि होती है। आपदा पश्चात् रहने के स्थान, भोजन, कपड़ा, सामाजिक एवं चिकित्सा जैसी सहायता में बाहरी सहयोग की आवश्यकता पड़ती है।

लम्बे समय तक भौगोलिक साहित्य आपदाओं को प्राकृतिक बलों का परिणाम मानता रहा है और मानव को इनका अबोध एवं असहाय शिकार। परन्तु प्राकृतिक बल ही आपदाओं का एकमात्र कारक नहीं है। आपदाओं की उत्पत्ति का सम्बन्ध मानव क्रियाकलापों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियाँ तो प्रत्यक्ष रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं; जैसे…..भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, सी. एफ. सी. (क्लारोफ्लोरो कार्बन) गैसें वायुमण्डल में छोड़ना, ग्रीन हाउस गैसें, ध्वनि, वायु, जल, मिट्टी सम्बन्धी पर्यावरणीय प्रदूषण।

कुछ मानवीय गतिविधियाँ परोक्ष रूप से आपदाओं को बढ़ावा देती हैं; जैसे – वनों के विनाश से भूस्खलन और बाढ़। यह सर्वमान्य सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों में मानवीकृत आपदाओं की संख्या और परिमाण दोनों में ही वृद्धि हुई। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए प्रयत्न भी किए गए। इस सन्दर्भ में अब तक सफलता नाममात्र ही हाथ लगी, परन्तु इन मानवीकृत आपदाओं में से कुछ का निवारण सम्भव है। इसके विपरीत प्राकृतिक आपदाओं पर रोक लगाने की सम्भावना बहुत कम है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका है इनके प्रभाव को कम करना और इनका प्रबन्ध करना। इस दिशा में विभिन्न स्तरों पर कई प्रकार के ठोस कदम उठाए गये हैं, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबन्ध संस्थान की स्थापना, 1993 में रियोडिजेनिरो (ब्राजील) में भू शिखर सम्मेलन और मई, 1994 में याकोहोमा (जापान) में आपदा प्रबन्ध पर संगोष्ठी आदि प्रयास प्रमुख हैं।

आपदा प्रबन्धन की मुख्य बातें

आपदा प्रबन्धन चार बातों को महत्व देता है –

(1) पहले से तैयारी-इसके अन्तर्गत समुदाय को आपदा के प्रभाव से निपटने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए। इसके लिए जरूरी है –

  1. सामुदायिक जागरूकता और शिक्षा
  2. समुदाय, स्कूल, व्यक्ति के लिये आपदा प्रबन्धन योजनाएँ तैयार करना
  3. मॉक ड्रिल, प्रशिक्षण, अभ्यास
  4. सामग्री और मानवीय कौशल संशोधन दोनों प्रकार के संसाधनों की सूची
  5. समुचित चेतावनी प्रणाली
  6. पारस्परिक सहायता व्यवस्था
  7. असुरक्षित समूहों की पहचान करना।

(2) राहत कार्यवाही – इसके अन्तर्गत आवश्यक बातें हैं –

  1. आपात केन्द्र (नियन्त्रण कक्ष) को चालू करना
  2. आपदा प्रबन्ध योजनाओं को कार्यरूप देना
  3. स्थानीय समूहों की सहायता से सामुदायिक रसोई स्थापित करना
  4. संसाधन जुटाना
  5. वर्तमान स्थिति के अनुसार चेतावनी देना
  6. समुचित आश्रय और टॉयलेट की व्यवस्था करना
  7. रहने के लिए अस्थायी व्यवस्था करना
  8. प्रभावितों को ढूँढ़ने और उनका बचाव करने के लिए दल भेजना
  9. खोज एवं बचाव दल तैनात करना।

(3) सामान्य जीवन स्तर पर लौटना और पुनर्वास ऐसे उपाय जो कि भौतिक आधारभूत सुविधाओं के पुनर्निर्माण तथा आर्थिक एवं भावनात्मक कल्याण की प्राप्ति में सहायक हों –

  1. समुदाय को स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों की जानकारी देना
  2. जिनके परिजन बिछड़ गये हैं, उन्हें दिलासा देने का कार्यक्रम
  3. अनिवार्य सेवाओं सड़कों, संचार सम्पर्क की पुनः शुरुआत
  4. आश्रय/अस्थायी आवास सुलभ कराना
  5. निर्माण के लिए मलबे में से प्रयोग लायक सामग्री एकत्र करना
  6. आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना
  7. रोजगार के अवसर ढूँढ़ना
  8. नये भवनों का पुनः निर्माण कराना।

(4) रोकथाम और दुष्प्रभाव को कम करने के लिए योजना – आपदाओं की गम्भीरता तथा उनके प्रभाव कम करने के उपाय –

  1. भूमि उपयोग की योजना तैयार करना
  2. जोखिम क्षेत्रों में बसावट को रोकना
  3. आपदा रोधी भवन बनाना
  4. आपदा घटने से भी पहले जोखिम को कम करने के तरीके तलाशना
  5. सामुदायिक जागरूकता और शिक्षा।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भोपाल में रासायनिक गैस का रिसाव हुआ था
(i) दिसम्बर 1984
(ii) दिसम्बर 1987
(iii) दिसम्बर 1988
(iv) दिसम्बर 1990
उत्तर:
(i) दिसम्बर 1984

प्रश्न 2.
मानवजनित आपदा है (2012, 15)
(i) सूखा
(ii) बाढ़
(iii) भूस्ख लन
(iv) सड़क दुर्घटना।
उत्तर:
(iv) सड़क दुर्घटना।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में जैविक आपदा है
(i) बम विस्फोट
(ii) बर्ड फ्लू
(iii) ज्वालामुखी
(iv) सुनामी।
उत्तर:
(ii) बर्ड फ्लू

प्रश्न 4.
आपदा प्रबन्ध पर संगोष्ठी हुई थी
(i) यू. एस. ए. (शिकागो) में
(ii) जापान (याकोहामा) में
(iii) भारत (नई दिल्ली) में
(iv) सिंगापुर में।
उत्तर:
(ii) जापान (याकोहामा) में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. आपदा के कारण जीवन तथा सम्पत्ति की बड़े ……………….. होती है।
  2. भारत में तटीय ……………….. सर्वाधिक चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों में से एक है। (2011)
  3. विश्व के समुद्र तटीय क्षेत्र ……………….. के प्रभाव क्षेत्र हैं।
  4. नदी के अतिरिक्त जल का आस-पास की भूमि पर फैल जाना ……………….. कहलाता है।

उत्तर:

  1. पैमाने पर हानि
  2. उड़ीसा
  3. सुनामी आपदा
  4. बाढ़।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को आपदा-प्रबन्धन के द्वारा कम किया जा सकता है। (2018)
अथवा
आपदा प्रबन्ध द्वारा आपदाओं से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2.
खतरा = सकट × क्षमता / असुरक्षा
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र जिनमें प्रति दो वर्ष में सूखा पड़ता है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
सड़क निर्मित एकत्रित मलबा भी बाढ़ों को नियन्त्रित करता है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 5.
औद्योगिक व रासायनिक आपदाएँ मानवप्रदत्त आपदाएँ हैं।
उत्तर:
सत्य

जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन 2
उत्तर:

  1. → (घ)
  2. → (ङ)
  3. → (ख)
  4. → (ग)
  5. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
29 अक्टूबर, 1999 को एक भीषण-चक्रवात भारत के किस राज्य में आया था ?
उत्तर:
ओडिशा

प्रश्न 2.
देश में सर्वाधिक भूकम्प प्रभावित क्षेत्र कौन-सा है ? (2010)
उत्तर:
कच्छ

प्रश्न 3.
प्रदूषण, आग, गैस तथा अन्य रासायनिक पदार्थों का रिसना किस प्रकार का संकट है ?
उत्तर:
मानवकृत संकट

प्रश्न 4.
2004 सुनामी का अधिकेन्द्र कहाँ था ?
उत्तर:
सुमात्रा (इण्डोनेशिया)

प्रश्न 5.
भारत में 26 दिसम्बर, 2004 को आयी सुनामी से कितने लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
उत्तर:
3 लाख से अधिक।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भूस्खलन क्या है ?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण या अन्य कोई प्राकृतिक या मानवीय कारकों के प्रभावी होने के कारण शैलों के मलबे का तेजी से ढलानों पर से नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है।

प्रश्न 2.
बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी कैसे दी जाती है ?
उत्तर:

  1. बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी केन्द्रीय जल आयोग द्वारा दी जाती है।
  2. देशभर में 132 केन्द्र बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी देते हैं।
  3. इन केन्द्रों से वर्ष भर में 6,000 से अधिक घोषणाएँ की जाती हैं।

प्रश्न 3.
बाढ़ों के उत्पन्न होने के प्रकार बताइए।
उत्तर:

  1. बाढ़ें धीरे-धीरे आती हैं। बाढ़ों के आने में घण्टों का समय लगता है।
  2. भारी वर्षा, बाँधों के टूटने, चक्रवात तथा समुद्री तूफान आदि के कारण बाढ़ें अचानक भी आती हैं।

प्रश्न 4.
ज्वार किस प्रकार सुनामी लहर उत्पन्न करते हैं ?
उत्तर:
यह अनुभव किया गया है कि ज्वार विवर्तनिक प्लेट पर दबाव डालते हैं जो कि प्लेट में हलचल उत्पन्न करता है। परिणामस्वरूप भूकम्प और ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं। इनसे सुनामी उत्पन्न हो जाते हैं।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आपदा के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
आपदा के प्रभाव –

  1. आपदा समाज की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित करती है। इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं।
  2. आपदा के कारण जीवन तथा सम्पत्ति की बड़े पैमाने पर हानि होती है।
  3. आपदा समुदाय को प्रभावित करती है जिसमें क्षतिपूर्ति के लिए बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है।
  4. सभी आपदाओं; जैसे – भूकम्प, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, महामारी आदि के अपने विशिष्ट प्रभाव होते हैं।

प्रश्न 2.
‘आपदाएँ मानव जाति एवं पर्यावरण के लिए खतरा हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आपदाएँ मानव जाति एवं पर्यावरण के लिए गम्भीर खतरा हैं। क्षति पहुँचाने की क्षमता के माप को खतरा कहते हैं। अत्यधिक असुरक्षा एवं संकट बड़े खतरे वाली आपदा से जुड़े होते हैं। यदि असुरक्षा या संकट बहुत कम हैं तो आपदा का खतरा भी बहुत कम होता है। संकट और असुरक्षा से आपदा का खतरा उत्पन्न होता है; जैसे – मृत्यु होना, चोट लगना, सम्पत्ति का नुकसान होना, आजीविका में कठिनाई उत्पन्न होना, आर्थिक गतिविधियों में बाधाएँ आना या वातावरण को क्षति पहुँचाना।
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन 3
आपदाएँ कठिनाई उत्पन्न करती हैं, विकास से प्राप्त लाभों को हानि पहुँचाती हैं और हम विकास के क्षेत्र में कई वर्ष पीछे खिसक जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में आपदाओं या संकटों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आपदा के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
आपदाओं से क्या तात्पर्य है ? यह कितने प्रकार की होती हैं ? (2014)
[संकेत : ‘आपदा का आशय’ पाठान्त अभ्यास के प्रश्न 1 के उत्तर में देखें।]
उत्तर:
भारत में कई प्रकार के संकट देखे गए हैं, जो हमारे लिए व्यापक चिन्ता का कारण हैं। संकटों की सूची बहुत लम्बी है। इनका वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है। आपदाओं या संकटों का वर्गीकरण निम्नानुसार है –

  1. आकस्मिक संकट – भूकम्प, सुनामी लहरें, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, हिमस्खलन, मेघ विस्फोट इत्यादि। अर्थात् ऐसे संकट अचानक उत्पन्न होते हैं।
  2. संकट जो धीरे – धीरे प्रकट होते हैं सूखा, ओले, पर्यावरण अवक्रमण, मरुस्थलीकरण इत्यादि।
  3. औद्योगिक/प्रौद्योगिक दुर्घटनाएँ – प्रणालीगत खराबी, आग, विस्फोट, रासायनिक रिसाव इत्यादि।
  4. महामारी – जल/खाद्य आधारित रोग, संक्रामक रोग इत्यादि।
  5. युद्ध।

प्रश्न 4. प्राकृतिक आपदाएँ व मानवकृत आपदाएँ क्या हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएँ – सूखा, बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन एवं सुनामी। वे समस्त घटनाएँ हैं जो प्रकृति में विस्तृत रूप से घटित होती हैं और जिनका प्रभाव विनाशकारी होता है।
मानवकृत आपदाएँ – आणविक, जैविक एवं रासायनिक बम विस्फोट, प्राकृतिक आपदाएँ या संकट। मानवकृत आपदाएँ वे संकट हैं जो मानवीय महत्वाकांक्षा व प्रयासों से सम्बन्धित हैं तथा इनके प्रभाव विनाशकारी होते हैं।

प्रश्न 5.
सूखा आपदा के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर:
सूखा आपदा के लिए उत्तरदायी कारक-सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। सूखे की स्थिति हेतु मुख्य उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं –

  1. भूमि प्रबन्धन की उपेक्षा हो।
  2. सिंचाई के पारम्परिक स्रोतों; जैसे – तालाब, कुआँ और टंकी की उपेक्षा।
  3. सामुदायिक वनों का विनाश।
  4. वन विनाश से प्राकृतिक जलधाराओं का सूखना, वर्षा कम होने से भूमिगत जल स्तर का नीचे जाना, नदियों के जल स्तर का गिरना।
  5. अनिश्चित क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का अस्त-व्यस्त होना।
  6. फसल चक्र में तीव्र परिवर्तन।
  7. वातावरण के आपसी सम्बन्ध टूटने से कृषि उद्योग एवं घरेलू कार्य में पानी की माँग में अभूतपूर्व वृद्धि।
  8. जल संसाधनों के दोहन की दोषपूर्ण व्यवस्था।

प्रश्न 6.
भारत में सूखा प्रभावित प्रमुख क्षेत्र कौनसे हैं ?
उत्तर:
भारत में सूखा आपदा प्रभावित क्षेत्र–भारत में सूखा आपदा से प्रभावित क्षेत्र प्रमुखतया निम्नलिखित हैं –

  1. राजस्थान क्षेत्र – राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र जिनमें प्रति दो वर्षों में सूखा पड़ता है।
  2. गुजरात, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, रायलसीमा और तेलंगाना क्षेत्र में लगभग तीन वर्षों में सूखा पड़ता है।
  3. पूर्वी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी कर्नाटक तथा विदर्भ क्षेत्र में औसतन चार वर्षों में सूखा पड़ता है।
  4. पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तटीय आन्ध्र प्रदेश, मध्य महाराष्ट्र, केरल, बिहार और उड़ीसा में औसतन प्रति पाँच वर्षों में सूखा पड़ता है।

प्रश्न 7.
बाढ़ के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
बाढ़ के प्रभाव बाढ़ एक विनाशकारी आपदा है। मानव जीवन को बाढ़ निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती है –

  1. सम्पत्ति की हानि – तेज गति से बहने वाले पानी के कारण भवनों को हानि पहुँचती है। कमजोर नींव के ऊपर बने भवन बाढ़ के कारण ढह जाते हैं। जान-माल को खतरा हो जाता है।
  2. मृत्यु तथा जनस्वास्थ्य – बाढ़ में डूबने से लोगों और मवेशियों की मृत्यु हो जाती है। महामारी, अतिसार, विषाणु संक्रमण तथा मलेरिया जैसे रोगों का फैलाव आम बात है।
  3. जल आपूर्ति में व्यवधान – बाढ़ के कारण पीने का पानी दूषित हो जाता है, जिससे पीने के स्वच्छ पानी का अभाव हो जाता है।
  4. फसलें एवं खाद्य आपूर्ति – अचानक आने वाली बाढ़ों से फसलें तथा भण्डारित अनाज खराब हो जाते हैं।
  5. मृदा संरचना में परिवर्तन – बाढ़ से मृदा के गुण बदल जाते हैं। ऊपरी सतह के अपरदन के कारण मृदा कम उपजाऊ हो जाती है। समुद्री जल के कारण भूमि लवणीय हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

प्रश्न 8.
भूकम्प के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भूकम्प के प्रभाव – भूकम्प से बड़े पैमाने पर हानि होती है। यदि यह अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र में आता है तो जान-माल की भारी क्षति होती है। संचार और यातायात के साधन नष्ट हो जाते हैं, उद्योग एवं विकास के कार्य में बाधा पहुँचती है। रास्ते अवरुद्ध होने से लोगों की सहायता करने में बाधाएँ आती हैं। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  1. भौतिक हानि
  2. मानव एवं जीव-जन्तु की मृत्यु
  3. जनस्वास्थ्य पर प्रभाव
  4. जल आपूर्ति प्रभावित
  5. परिवहन नेटवर्क में बाधा, तथा
  6. विद्युत आपूर्ति और संचार सेवा में बाधा।

प्रश्न 9.
भूकम्प के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
भूकम्प के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए –

  1. भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भवनों का डिजाइन व वास्तुकला इन्जीनियरी के सहयोग से होना चाहिए। भवन निर्माण से पहले मिट्टी की किस्म का विश्लेषण कराना उपयुक्त होता है। नरम मिट्टी के ऊपर मकान नहीं बनाए जाने चाहिए। मुलायम मिट्टी पर निर्माण कार्य करने के लिए भवन डिजाइन में सुरक्षा उपाय अपनाये जाने चाहिए।
  2. भारतीय मानक ब्यूरो ने भूकम्परोधी इमारतों के निर्माण सम्बन्धी नियम तथा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हम सभी को उनका पूर्णरूप से पालन करना चाहिए।
  3. अस्पतालों, विद्यालयों तथा दमकल केन्द्र का निर्माण भूकम्प से सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
  4. वास्तुकारों, बिल्डरों, ठेकेदारों, डिजाइनरों, सरकारी अधिकारियों, समान मालिकों के लिए संवेदीकरण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा जागरूकता विकसित की जानी चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूस्खलन के क्षेत्र – भारत में भूस्खलन आपदा के प्रमुख क्षेत्र हैं –

(1) अत्यधिक प्रवण क्षेत्र-अस्थिर हिमालय पर्वत की युवा शृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरि के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलाप वाले क्षेत्रों को जिनमें सड़क और बाँध निर्माण आदि शामिल हैं, अत्यधिक भूस्खलन वाले क्षेत्रों में रखे जाते हैं।

(2) अधिक सुमेद्यता क्षेत्र-अधिक प्रवण क्षेत्र अत्यधिक प्रवण क्षेत्रों से मिले हैं। हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तरी पूर्वी भाग (असम राज्य को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।

(3) मध्यम और कम सुमेद्यता क्षेत्र-हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्फीति अरावली पहाड़ियों के कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट, दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं जहाँ कभी-कभी भूस्खलन होता है। इनके अलावा झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खदानें और भूमि धंसने से भूस्खलन होता रहता है।

MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुनामी आपदा के कारण व इसके प्रभाव बताइए।
अथवा
सुनामी किसे कहते हैं ? इसके मुख्य कारणों का विवरण दीजिए।
[संकेत : सुनामी का आशय-पाठान्त अभ्यास के लघु उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।]
उत्तर:
सुनामी आपदा के कारण

समुद्री जल कभी भी शान्त नहीं रहता है। समुद्री जल में हलचल होना स्वाभाविक है। भूकम्प और ज्वालामुखी का समुद्री क्षेत्रों में आना ही सुनामी आपदा का प्रमुख कारण है। जब समुद्री क्षेत्रों के धरातल में अचानक ज्वालामुखी या भूकम्प के उद्भेदन की क्रिया होती है तो समुद्री जल में गतिशीलता बढ़ती है जिसके कारण समुद्री जल में ऊँची तरंगें उत्पन्न होती हैं जो जल हानि और सम्पदा विनाश का कारण बनती हैं।

सुनामी आपदा के प्रभाव

समुद्री तट पर पहुँचने के पश्चात् सुनामी तरंगें अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा छोड़ती हैं। इससे समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है तथा बन्दरगाहों, शहरों, कस्बों, अनेक प्रकार के ढाँचों, इमारतों और बस्तियों को हानि पहुँचाता है। समुद्र तट पर जनसंख्या का सघन बसाव होता है और ये क्षेत्र बहुत-सी मानव गतिविधियों के केन्द्र होते हैं। यहाँ दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी अधिक हानि पहुँचाती है। दिसम्बर 2004 में आई सुनामी लहरों से 5,00,000 लोग अकाल मृत्यु का शिकार हुए। दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी के प्रभाव को कम करना कठिन है। किसी अकेले देश या सरकार के लिए सुनामी जैसी आपदा से निपटना भी आसान नहीं है। अतः इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रयास आवश्यक हो जाते हैं। अकेले, भारत में 26 दिसम्बर, 2004 को आयी सुनामी से तीन लाख से अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।

बचाव के उपाय – सुनामी चेतावनी यन्त्र विकसित करके समुद्र तटीय क्षेत्रों में मछुआरों एवं समुद्री पोतों की रक्षा की जा सकती है।

MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense

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MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense (Francis Bacon)

For the sake of students we have gathered the complete 10th English Chapter 3 Of Expense Questions and Answers can provided in pdf Pattern. Refer the chapter wise MP Board Class 10th English Solutions Questions and Answers Topics and start the preparation. You can estimate the importance of each chapter, find important English grammar concepts which are having more weightage. Concentrate on the important grammar topics from Madhya Pradesh Board Solutions for 10th English Chapter 3 Of Expense Questions and Answers PDF, prepare well for the exam.

Of Expense Textbook Exercises

Of Expense Vocabulary

I. Find single words in the lesson which have roughly the meanings given below:

Mp Board Class 10 English Chapter 3 Question 1.
wonderfully fine
Answer:
magnificent

Of Expense Summary In Hindi MP Board Question 2.
to fall to a lower or worse state
Answer:
decay

Class 10 English Chapter 3 Mp Board Question 3.
the quality of being dishonest
Answer:
baseness

Class 10 English Chapter 3 Of Expense MP Board Question 4.
the great respect and admiration which people have for a person, country etc. often publically expressed
Answer:
estimation

Mp Board Class 10th English Chapter 3 Question 5.
the money used or needed for a purpose
Answer:
gettings

II. Use the following words in your own sentences.
hardly, scarcely, barely
Answer:
Hardly—We had hardly begun our walk, when it began to rain. Scarcely—There were scarcely fifty students present in the class. Barely-I barely had time to catch the train.

III. Say the following words and notice the difference in their pronunciation and meaning.
expense – expanse
estate – state
choose – chose
riches – reaches
beside – besides
diet – deity
Answer:
Mp Board Class 10 English Chapter 3

Comprehension

A. Answer the following questions in about 25 words.

Mp Board Class 10 English Workbook Solutions Chapter 3 Question 1.
How should prudent spending of riches be done?
Answer:
Riches are meant to be spent wisely. They are not meant to be wasted. They should be spent for honour and good actions. They should be spent keeping in view the worth of the occasion. Such spendings are known as prudent spendings.

Chapter 3 English Class 10 Mp Board Question 2.
What are the two motives for the sacrifice of all other possessions?
Answer:
Every man has a number of possessions. They include his estate, his regular income and his casual gettings. Honour and good actions are the two motives for the sacrifice of all other possessions.

Of Expense Questions And Answers MP Board Question 3.
What is Bacon’s advice on extraordinary expenses?
Answer:
In the essay ‘Of Expense’, Francis Bacon gives us an advice. He says that we should limit our extraordinary expenses, keeping in view the worth of the occasion. This means, the people should be discreet in spending money.

Of Expense Summary In English MP Board Question 4.
What are Bacon’s views on servants and employees?
Answer:
Bacon holds adverse views on servants and employees. He says that servants and employees are tricksters. They might deceive you if they spend your money on your behalf. They may also exploit you by keeping some money with them.

10th Class English Chapter 3 Question Answer MP Board Question 5.
Why should one keep one’s expenses within the limits of one’s income?
Answer:
Some people are quite spendthrift. They spend lavishly. They don’t keep their expenses within the limits of their income. They become the object of decay, sooner or later. Hence one should keep one’s expenses within the limits of one’s income.

Question 6.
What will be the fate of a man who is plentiful in expenses of all kinds?
Answer:
Some people do not realise the importance of economy. They do not believe in the habit of saving. They are plentiful in incurring expenses of all kinds. As a result they spend whatever they earn. Thus their fockets are emptied continuously and they fall into the grip of decay.

Question 7.
Where does one tend to be plentiful in expense?
Answer:
One tends to be plentiful in matters of diet and in the hall. These are important matters. Besides he should be saving in costumes, in stable and the like. Otherwise the economic balance will be disturbed.

Question 8.
Why is hasty selling disadvantageous?
Answer:
Sometimes a man wants to dispose of his estate. He should be very careful in it. If we make undue haste in selling our estate, we would be duped by the middleman. It would pinch us lifelong because haste makes waste.

B. Answer the following questions in about 50 words.

Question 1.
Sum up the salutary rules for expenditure suggested by Bacon in the lesson.
Answer:
Bacon has suggested the following salutary rules for expenditure in the lesson ‘Of Expense’. Bacon instructs his readers to be discreet in spending money. According to him, one should spend only a fixed portion of his income. The servants and employees should not be relied on. People should keep a proper balance between their gettings and spendings. They should never be wasteful in their expenditure. They should always be thoughtful in spending. It would save them from many dangers.

Question 2.
What does Bacon want to convey, when he says “To turn all to certainties’?
Answer:
Bacon is in favour of turning all to certainties. He instructs his readers to curtail their ordinary expenses. An individual must not spend more than half of his earnings. He should keep the balance between his earnings and expenditure. He should not depend on his servants and employees because they would bring only sorrow and uncertainty. He should be aware of the fact that his indiscreet spending would definitely bring pain in his life.

Question 3.
Distinguish between ordinary and extraordinary expenses in the light of the views expressed by Bacon. (M.P. Board 2016)
Answer:
Francis Bacon refers to two types of expenses. He terms them as ordinary and extraordinary expenses. Ordinary expenses are normal, usual and unavoidable routine expenses. They can be calculated in advance. Expenses on food, milk, fees for the children and payment of bills are necessary expenses. Extraordinary expenses are those expenses which are casual. They cannot be foreseen. The expenses on medicine, entertainment of guests, purchase of fashion items etc. come under this category.

Question 4.
How should riches be spent and husbanded to the best advantage? Support your answer with textual references.
Answer:
Riches are meant to be spent and not to be wasted. We should not depend on servants, employees or others in managing our financial matters. The wearer alone knows where the shoe pinches. Nobody else will feel pain while wasting your money. A prudent person always saves half of his earnings to avoid himself from sorrow. Riches should be spent keeping in view one’s own estate. There should be a healthy balance between the ordinary and the extraordinary expenses. The financial matters should be in one’s own hands.

Question 5.
How far are the views of Bacon relevant to the present time?
Answer:
Bacon was of the view that his readers should be discreet in spending money. We should spend only a fixed portion of our income and save the rest for the rainy day. We should personally look after our financial matters. His views are partially relevant to the present time. The way of life has totally changed now. Ladies and children have an upper hand in spending the money. The salaried people with a fixed singie income live from hand to month. Therefore, the question of saving money is a silly thought in the present scenario. Still we should save some amount to avoid future uncertainties.

Grammar

Study the following sentences.

1. Extraordinary expenses must be limited by the worth of the occasion.
2. Ordinary expense ought to be limited by a man’s estate.
3. Bills may be less than’ the estimation abroad.
4. But wounds cannot be cured without searching.
5. In clearing of a man’s estate, he may as well hurt himself in being too sudden, as in letting it run on too long.

The underlined verbs are Modals Auxiliaries. They are also called defective verbs because they cannot be used in all tenses and moods.
Study the chart carefully

12
Primary AuxiliariesModal Auxiliaries
be: am, is, are, was, were do, does, did, have, has, hadcan, could, may, might, shall, should, will, would, must (am to, is to, are to, have to etc.) ought to, used to, need, dare.

List out Primary and Modal Auxiliary separately from the text ‘Of Expense’
Answer:

Primary AuxiliariesModal Auxiliaries
are, be, is, has, havemust (be, may be), ought to, may, will, shall, cannot, need, can, will, may

Speaking Skill

Deliver the following dialogues between two friends in the market in a proper manner:
Mrs. Ansari—Mrs. Gupta looks very busy nowadays.
Mrs. Sharma—Does she? Formerly she used to return home early in the evening from the office.
Mrs. Ansari—Yes, but now she has taken up a new project. Mrs. Sharm. This is indeed a good news. She is definitely doing a good job.
Mrs. Ansari—Now she is going to buy a car very shortly and is also planning to have a flat in a posh colony.
Answer:
Mrs. Ansari told Mrs. Sharma that Mrs. Gupta looked very busy these days.
Mrs. Sharma felt surprised and asked Mrs. Ansari if she (Mrs. Gupta) actually did (look very busy these days). She added that formerly Mrs. Gupta used to return home early in the evening from the office. .
Mrs. Ansari replied in the affirmative but intervened saying that she had taken a new project. Mrs. Sharma called that a good news. She (Mrs. Sharma) added that she (Mrs. Gupta) was definitely doing a good job.
Mrs. Ansari endorsed Mrs. Sharma’s words. She appreciated that she (Mrs. Gupta) was going to buy a car very shortly and was also planning to have a flat in a posh colony.

Now converse in pairs what you would do to make a progress. These hints will help you.

  • Then your activity intelligently
  • work hard and manage your time
  • choose a field of your choice
  • invest in shares

Hardik—I have become a property agent.
Shivam—Do you have previous experience in this line?
Hardik—Yes, I have been working with a property dealer for the last five years.
Shivam—What are the basic requirements of this task?
Hardik—Hard work and time management.
Shivam—Which area have you chosen?
Hardik—I have chosen the area around Bhopal. I have arranged the initial money.
Shivam—May God grant you progress in your ambition!

Writing Skill

Question 1.
Write a short note on ‘proper money management’. (50 words)
Answer:
Money is not meant to be wasted. It is rather to be spent usefully and meaningfully. Every penny has its own value. It should be spent judiciously. Assess the utility of the item you undertake to purchase. Money should be spent open heartedly on necessities. It should be spent half heartedly on comforts. The purchase of luxuries should be neglected. Spend on the maintenance of assets. Spend on the health and education. Spend the least on fashion items. Eat well and clothe yourself well. Money should add to your joy and curtail your sorrow.

Question 2.
Your friend Rajesh residing at 21/4 Adhartal, Jabalpur, is very extravagant. Write a letter suggesting him how extravagance is to be minimized. (150 ivords)
Ans.
V.&.P. O. Sadhrana
A 3/12, Shivaji Enclave
To
21/4 Adhartal, Jabalpur,
17th July, 20xx
Dear Rajesh.
I have come to know that you are very extravagant. You buy unnecessary items and pile them up in your room. They consume most of your earnings. Moreover, they get outdated quite soon and are disposed off at dire cheap rates.

I advise you to think twice about the utility of the items before purchasing them. Consider its price and durability. See that the item you have purchased is needed badly in your house. It should not be a source of dispute or unpleasantness in your family. These considerations will minimize your extravagance. Hope, you will act upon my advice. With love.

Yours,
Subhash Vasistha

Think It Over

Question 1.
If you think you are being trapped into a pit, stop digging it. Think how far it is applicable to our financial behaviour. Elaborate.
Answer:
We should be very prudent in our financial behaviour! We are living in kalyug. Every relation has gone to the dogs. The people do not hesitate to cheat you by sweet but tricky words. There are dupes who would ask you to dig a pit and then bury you into it. In other words, they would urge you to spend your savings in some so-called fruitful business and rob you on the pretext of providing you with a chance to earn more. If at any stage, you smell their mischief, you should wind up your dealings with them, and stop digging the pit if you think you are being trapped into it.

Question 2.
Bacon says that one should make a good choice of servants and change them as often as conditions permit. Think why he wants us to change them and write your opinion.
Answer:
Bacon was called by Pope as the wisest of mankind. He has guided us to manage our financial matters ourselves. He calls servants double-edged swords. They rob their masters with both hands. They save money while making purchases. They also make silly purchases of unwanted items. On staying together for years the servants of a house/locality form a clique. They cause all types of harm to their masters and their families. They cause murders, robberies and kidnappings. Therefore, one should make a good, choice of servants and change them as often as conditions permit lest it should be too late.

Things To Do

One should buy more assets and less liabilities. Assets bring profits whereas liabilities cause expenses. As a student, classify the following things according to your needs. house, car, fixed deposit, land, education, motorcycle Add some more assets and liabilities to the list.
Answer:
MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense 2

Of Expense Additional Important Questions

A.Read the passage and answer questions that follow:

1. Besides, he that clears at once will replace; for finding himself out of straits, he will revert to his customs; but he that cleareth by degrees induceth a habit of frugality, and gaineth as well upon his mind as upon his estate. Certainly, who hath a state to repair, may not despise small things; and commonly it is less dishonourable to abridge petty charges, than to stop to petty gettings. A man ought warily to begin charges which once begun will continue: but in matters that return not he may be more magnificent. (Page 19)

Questions:
(a) The above passage is taken from:
(i) The Happy Prince
(ii) Of Expense
(iii) The Bet
(iv) Refund
(b) Find a word from the above passage that is similar in meaning to ‘tradition’.
(c) Find a word from the above passage that is opposite in meaning to ‘dull’.
(d) Why will the person return to his customs?
Answers:
(a) (ii) Of Expense
(b) custom
(c) magnificent
(d) He will return to his customs because he will find himself out of straits.

I. Match the following:

1. Riches are for – (a) expenses of all kinds
2. Spending is for – (b) without searching
3. Wounds cannot be cured – (c) timorous and less subtle
4. New servants are more – (d) spending
5. Don’t be plentiful in – (e) honour and good actions
Answer:
1. (d), 2. (e), 3. (b), 4. (c), 5. (a).

II. Pick up the correct choice:

(i) (a) Extraordinary expense must be limited by the (worth/necessity) of the occasion.
(b) Ordinary expense ought to be limited by a man’s (state/estate).
(c) Bills may be less than the (estimate/estimation) abroad.
(id) If he is(wasteful/plentiful) in diet, he must be saving in apparel.
Answer:
(a) worth
(b) estate
(c) estimation
(d) plentiful.

(ii) (a) Man’s ordinary expenses (ought/ought to) be but to the half of his receipts.
(b) Wounds cannot be cured without (search/ searching)
(c)If he be painful in the hall to be saving in the (stable, cowshed)
(d) (Hasty/Hurried) selling is commonly as disadvantageous as interest.
Answer:
(a) ought to
(b) searching
(c) stable
(d) Hasty.

III. Write ‘True’ or ‘False’.

1. ’Of Expense 1 is a guide to show us how we should manage our financial matters.
2. Alexander Pope called Francis Bacon the ’luckiest of mankind’.
3. Ordinary expenses must not be subject to deceit and abuse of servants.
4. The employees should be changed often.
5. He that cleareth by degrees induceth a habit of frugality.
Answer:
1. True, 2. False, 3. True, 4. True, 5. True.

IV. Fill in the following blanks:

1. Certainly who hath …………. may not despise small things.
2. Riches are for ……….. and spending for honour and good actions
3. It is no ………….. for the greatest to descend and look into their own estate.
4. New servants are more ………….. and less subtle.
5. He that is ……….. in expenses of all kinds will hardly be preserved from decay.
Answer:

  1. a state to repair
  2. spending
  3. baseness
  4. timorous
  5. plentiful.

B. Short Answer Type Questions (In about 25 words)

Question 1.
Give a brief life-sketch of Francis Bacon.
Answer:
Francis Bacon was born in 1561 at York House in London. He sought his education at Trinity College, Cambridge. He became a member of Parliament in 1584. He wrote several papers on public affairs. His essays are full of worldly wisdom. Alexander Pope has rightly said that he was ‘the wisest of mankind’.

Question 2.
What is Bacon’s opinion about old and new servants?
Answer:
A prudent person should manage his financial affairs himself. If he has no time to do so, he should choose well those whom he employs. The present-day servants are a nuisance. Most of them are criminals or run away from law. The rule ‘Old is gold/ does not hold good in their case. The new servants prove more timorous and less subtle.

Question 3.
What is the basic need of the present man?
Answer:
The basic need of the present man is to be frugal. If he happens to be plentiful in some kind of expense, then he should be economical in some other expense. If he is plentiful in matters of diet, he should be saving in clothes. If he spends more on watching films, he should save in some other items.

Question 4.
What happens to a person who is plentiful in expenses of all kinds?
Answer:
Every man gets a fixed income. One can hardly make both the ends. If we fail to spend the hard-earned money economically it would be spent in total. Then what will happen during rainy days? The person concerned will fall in the grip of decay and will become a borrower. Hence, it is wise to be wise in spending money.

C. Long Answer Type Questions (In about 50 words)

Question 1.
What are the modes of expenditure of the present day city-dwellers?
Answer:
The city-dwellers are the most extravagant fellows in the present day world. They hold nuclear families which have no place for the aged persons. They spend their monthly income in advance. They pay the heavy bills of the items purchased on installments. They spend less on food items and more on clothes and items of decoration. Medicines, and education of children and transportation consume the better part of their incomes. They spend unduly on celebrations.

Of Expense Introduction

This essay teaches us how we should manage our financial matters. The author instructs his readers to be discreet in spending money. He wants them to spend only a fixed portion of their income to avoid future uncertainties.

Of Expense Summary in English

Riches are for spending honourably and in noble actions. Extraordinary expenses must be limited by the worth of the occasion and by a man’s estate. We should spend the money thoughtfully so that the servants might not deceive us or abuse our money. A wise man’s expenses never exceed half of his irıcome. There is no harm for a great man to look into his own estate to avoid sorrow.

If we are plentiful in some kind of expense, we must be frugal in certain other kinds. He who is plentiful in expenses of all kinds will meet decay. Hasteful clearing of one’s estates hurts one a great deal. It proves disadvantageous. Clearing the estates by degrees induces a habit of frugality. It proves advantageous both financially and mentally. A man ought to begin charges carefully. It is not silly to curtail petty charges in comparison with stopping to petty earnings.

Of Expense Summary in Hindi

धनराशि, सम्मानपूर्वक ढंग से और नेक कामों में खर्च करने के लिए है। समय को तथा मनुष्य की हैसियत को देखकर असाधारण खर्चों को सीमित करना चाहिए। हमें धनराशि को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए ताकि नौकर हमें धोखा नहीं दे सकें और हमारी धनराशि का दुरुपयोग नहीं कर सकें। किसी बुद्धिमान व्यक्ति का खर्च उसकी आधी आमदनी से अधिक नहीं बढ़ता है। दुख से बचने के लिए अपनी हैसियत (सम्पत्ति) को ध्यान में रखने में किसी महान् पुरुष को कोई हानि नहीं है।

यदि हम किसी खर्च में मुक्तहस्त हो जाते हैं तो हमें किन्हीं दूसरे खर्चों में किफायती (कृपण) होना चाहिए। जो सभी खर्चों में मुक्तहस्त होता है वह बर्बाद हो जाता है। यदि अपनी भूसम्पत्ति का जल्दबाजी में सौदा किया जाएगा तो वह काफी दुख का कारण बन जाएगा । वह हानिकारक सिद्ध होता है, क्रमिक रूप से भूसम्पत्ति का निपटारा करना किफायतसारी (कृपणता) की प्रवृति को प्रोत्साहित करता है। यह आर्थिक तथा मानसिक दोनों रूपों में लाभप्रद सिद्ध होता है। मनुष्यों को सावधानीपूर्वक आदेय प्रारम्भ करने चाहिएं। हलकी-फुलकी आमदनी को समाप्त करने की तुलना में छोटे आदेयों को घटाना मूर्खता नहीं है।

Of Expense Word-Meanings

MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense 3
MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense 4

Of Expense Some Important Pronunciations

MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 3 Of Expense 5

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MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा

भक्ति धारा अभ्यास

बोध प्रश्न

भक्ति धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

कक्षा 10 हिंदी पाठ 1 के प्रश्न उत्तर MP Board प्रश्न 1.
पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है?
उत्तर:
पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला गूंगा है।

Mp Board Class 10th Hindi Navneet प्रश्न 2.
अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने किससे प्रार्थना की है?
उत्तर:
अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने प्रभु श्रीकृष्ण से प्रार्थना की है।

Class 10 Hindi Navneet Solutions प्रश्न 3.
पारस में कौन-सा गुण पाया जाता है?
उत्तर:
पारस एक प्रकार का पत्थर होता है जिसमें यह गुण पाया जाता है कि इसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है।

Mp Board Class 10th Hindi Chapter 1 प्रश्न 4.
जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि किसने की है?
उत्तर:
जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि आदि कर्तार (भगवान) ने की है।

नवनीत हिन्दी विशिष्ट कक्षा 10 Pdf MP Board प्रश्न 5.
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को क्या दिया?
उत्तर:
ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को औषधियाँ प्रदान की हैं।

10th Class Hindi Navneet MP Board प्रश्न 6.
‘स्तुति खंड’ में जायसी ने कितने द्वीपों और भुवनों की चर्चा की है?
उत्तर:
स्तुति खंड में जायसी ने सात द्वीपों और चौदह भुवनों की चर्चा की है।

Class 10 Hindi Chapter 1 Question Answer Mp Board प्रश्न 7.
जायसी ने कथा किसका स्मरण करते हुए लिखी है?
उत्तर:
जायसी ने आदि एक कर्त्तार (भगवान) का स्मरण करते हुए कथा लिखी है जिसने जायसी को जीवन दिया और संसार का निर्माण किया।

भक्ति धारा लघु उत्तरीय प्रश्न

Hindi Navneet 10th Class MP Board प्रश्न 1.
सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर क्यों माना है?
उत्तर:
सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर इसलिए माना है कि निर्गुण तो रूप रेख गुन जाति से रहित होता है अतः उसका कोई आधार नहीं होता है जबकि सगुण का आधार होता है।

कक्षा 10 हिंदी अध्याय 1 सवाल जवाब MP Board प्रश्न 2.
गूंगा, फल के स्वाद का अनुभव किस तरह करता है?
उत्तर:
गूंगा व्यक्ति फल का स्वाद अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है वह उसे किसी को बता नहीं सकता है।

प्रश्न 3.
कुब्जा कौन थी? उसका उद्धार कैसे हुआ?
उत्तर:
कुब्जा कंस की नौकरानी थी। उसका काम कंस को नित्य माथे पर चन्दन लगाना होता था। जब कृष्ण मथुरा में। पहुँचे तो सबसे पहले उनसे कुब्जा का ही सामना हुआ। भगवान। कृष्ण ने कुब्जा के कुब्ब पर हाथ रखा, तो वह अनुपम सुन्दरी बनकर उद्धार पा गई।

प्रश्न 4.
सूरदास ने स्वयं को ‘कुटिल खल कामी’ क्यों कहा है?
उत्तर:
सूरदास ने स्वयं को कुटिल, खल और कामी इसलिए कहा है कि जिसने उसे जीवन दिया उसी भगवान को वह भूल गया और काम वासनाओं में डूब गया।

प्रश्न 5.
जायसी के अनुसार परमात्मा ने किस-किस तरह के मनुष्य बनाए हैं?
उत्तर:
जायसी के अनुसार परमात्मा ने साधारण मनुष्य। बनाये तथा उनकी बढ़ाई की, उनके लिए अन्न एवं भोजन का प्रबन्ध किया। उसने राजा लोगों को बनाया एवं उनके भोग-विलास की व्यवस्था की तथा उनकी शोभा बढ़ाने के लिए हाथी, घोड़े आदि प्रदान किए। उसने किसी को ठाकुर तथा किसी को दास। बनाया। कोई भिखारी बनाया तो कोई धनी बनाया।

भक्ति धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास ने किस आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है?
उत्तर:
सूरदास ने पारस पत्थर के आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है। जिस प्रकार पारस पत्थर प्रत्येक लोहे को सोना बना देता है चाहे वह लोहा पूजा के काम में आता हो चाहे बधिक। के घर पशुओं की हत्या के काम आता हो। उसी आधार पर भगवान भी सभी का उद्धार कर देते हैं। चाहे वह व्यक्ति पुण्यात्मा हो अथवा पापात्मा हो।

प्रश्न 2.
निर्गुण और सगुण भक्ति में क्या अन्तर है?
उत्तर:
निर्गुण भक्ति में भगवान का न तो कोई रूप-रंग होता है और न कोई आकार-प्रकार। इस भक्ति में तो भक्त भगवान को अनन्य भाव से उसी में डूबकर भजता है। सगुण भक्ति में भक्त को आधार मिल जाता है। जिस पर वह अपना लक्ष्य निर्धारित कर भगवान की शरण में जाता है।

प्रश्न 3.
ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण कितने रूपों में किया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण विविध रूपों में किया है। उसने हिम बनाया है तो अपार समुद्र भी। उसने सुमेरू और किष्किन्धा जैसे विशाल पर्वत बनाये हैं। उसने नदी, नाला और झरने बनाये हैं। उसने मगर, मछली आदि बनाये हैं। उसने सीप मोती और अनेक नगों का निर्माण किया है। उसने वनखंड और जड़-मूल, तरुवर, ताड़ और खजूर का निर्माण किया है। उसने जंगली पशु और उड़ने वाले पक्षी बनाये हैं। उसने पान, फूल एवं औषधियों का भी निर्माण किया है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रंसग व्याख्या कीजिए
(अ) अविगत गति ……………. जो पावै।।
उत्तर:
उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।

(ब) अधिक कुरूप कौन …………. फिरि-फिरि जठर जरै।
उत्तर:
सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।

आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।

अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।

अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।

(स) कीन्हेसि मानुस दिहिस ……….. अघाइ न कोई।
उत्तर:
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।

भक्ति धारा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भक्ति धारा बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास ने अविगत गति किसकी बतलाई है?
(क) सगुण उपासक की
(ख) निर्गुण उपासक की
(ग) सगुण ब्रह्म की
(घ) निर्गुण ब्रह्म की।
उत्तर:
(घ) निर्गुण ब्रह्म की।

प्रश्न 2.
‘अधम उधारन’ का अर्थ है-
(क) पापियों का संहार करने वाला
(ख) पापियों का उद्धार करने वाला
(ग) पापियों को शरण देने वाला
(घ) पापियों की रक्षा करने वाला।
उत्तर:
(ख) पापियों का उद्धार करने वाला

प्रश्न 3.
ईश्वर अपनी कृपा किस पर करता है?
(क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है
(ख) सुन्दर पर
(ग) कुरूप पर
(घ) पापी पर।
उत्तर:
(क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है

प्रश्न 4.
मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है? (2009)
(क) बहरा
(ख) गूंगा
(ग) अन्धा
(घ) अपाहिज।
उत्तर:
(ख) गूंगा

रिक्त स्थानों की पूर्ति-

  1. सूरदास जी ने ………… भक्ति को श्रेष्ठ माना है। (2011)
  2. गूंगे के लिए मीठे फल का रस ……….. ही होता है।
  3. ‘मधुप की मधुर गुनगुन’ से आशय …………. है। (2009)
  4. ईश्वर छार में से सब कुछ बनाकर सबको पुनः ………….. कर देता है।

उत्तर:

  1. सगुण
  2. अन्तर्गत
  3. भौंरों के मधुर गान से
  4. छार।

सत्य/असत्य

  1. सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट हैं। (2012)
  2. लोकायतन के रचयिता सूरदास हैं। (2009)
  3. मलिक मोहम्मद जायसी सूफी कवि थे।
  4. शंकर जी को भी कामदेव ने छलने का प्रयास किया।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारा img-1
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (ग)
3. → (क)
4. → (घ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. मनवाणी के लिए अगम और अगोचर क्या है?
  2. पूजाघर में रखे हुए लोहे में और बहेलिए के घर में रखे लोहे में कौन भेद नहीं करता?
  3. सूरदास जी के अनुसार ईश्वर का भजन न करने से क्या होता है? (2009)
  4. जायसी के अनुसार ईश्वर की प्रकृति कैसी है?

उत्तर:

  1. निर्गुण ब्रह्म
  2. पारस पत्थर
  3. प्राणी को पुनः पुनः माँ के उदर में आकर जन्म लेना पड़ता है
  4. अनेक वर्ण वाली।

विनय के पद भाव सारांश

प्रस्तुत विनय के पदों में सूरदास जी ने कहा है कि निर्गुण ब्रह्म की उपासना दुरूह होने के कारण वे सगुण की उपासना करते हैं। निर्गुणोपासक योगी ब्रह्म का अनुभव मन ही मन करके आनन्द प्राप्त कर सकता है किन्तु उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता। जैसे एक मूक व्यक्ति मधुर फल का रसास्वादन मन ही मन करता है किन्तु उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता, उसी प्रकार से निर्गुण ब्रह्म रूप व आकार से परे है। इसीलिए सूरदास जी सगुणोपासना को अत्यन्त सरल बताते हैं।

सूरदास जी के अनुसार परमात्मा अत्यन्त दयालु और समदर्शी हैं। वह सभी का कल्याण करते हैं। हम ही उनकी भक्ति से दूर होकर विषय-भोगों की मरीचिका में भटकते फिरते हैं। यदि हम उनकी शरण में जायें तो वह हमारा क्षण भर में उद्धार कर सकते हैं। वह बड़े-बड़े पापियों का उद्धार करने वाले हैं। जिस पर उनकी कृपादृष्टि पड़ती है, वह इस संसार सागर को पार कर जाता है।

विनय के पद संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) अविगत-गति कछु कहत न आवै।
ज्यों गूंगे मीठे फल को रस, अन्तरगत ही भावै।
परम स्वाद सबही सुनिरन्तर, अमित तोष उपजावै।
मन-बानी को अगम अगोचर, सो जानै जो पावै।
रूप-रेख-गुन-जात जुगति-बिनु, निरालंब कित धावै।
सब विधि अगम विचारहि तातें, सूर सगुन पद गावै।।

शब्दार्थ :
अविगत = अज्ञात ईश्वर। गति = दशा। अन्तरगत = हृदय में। अमित = अत्यधिक। तोष = सन्तोष। उपजावै = पैदा करता है। अगोचर = अदृश्य। गुन = गुण। जुगति = मुक्ति। निरालंब = बिना आश्रय के। कित = किधर। धावै = दौड़े। अगम = पहुँच के बाहर। ता” = इस कारण से। सगुन = सगुण भक्ति के।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘भक्तिधारा’ पाठ के अन्तर्गत ‘विनय के पद’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि सूरदास हैं।

प्रसंग :
इस पद में निर्गुण-निराकार ब्रह्म को अगम्य बताकर विवशता की स्थिति में सूरदास सगुण लीला का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या :
उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।

विशेष :

  1. इस पद में निर्गुण ब्रह्म को अगम्य और सगुण ब्रह्म को सुगम माना गया है।
  2. ‘ज्यों गूंगे …………… भाव’ में उदाहरण अलंकार, ‘रूप-रेख-गुन ………….. धावै’ में विनोक्ति तथा सम्पूर्ण में अनुप्रास अलंकार।
  3. शान्त रस।

(2) हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुम्हारौ, सोई पार करौ।
इक लोहा पूजा मैं राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुविधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ।
इक नदिया, इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब दोऊ मिलि एक बरन गए, सुरसरि नाम परौ।
तन माया ज्यों ब्रह्म कहावत सूर सुमिलि बिगरौ।
कै इनको निरधार कीजिए, कै प्रन जात टरौ॥

शब्दार्थ :
औगुन = अवगुण, दोष। समदरसी = सबको समान समझने वाला। तिहारो = तुम्हारा, आपका। राखत = रखते हैं। बधिक = कसाई। पारस = एक प्रकार का पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। कंचन = सोना। नार = नाला। बरन = वर्ण, रंग। सुरसरि = देवनदी गंगा। बिगरौ = बिगड़ गया। निरधार = निर्धारण करना, अलग-अलग। प्रन = प्रण, प्रतिज्ञा।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूर ने भगवान से प्रार्थना की है कि वे उसके अवगुणों पर ध्यान न दें।

व्याख्या :
सूरदास जी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु! आप हमारे अवगुणों को अपने मन में मत लाओ। आपका नाम तो समदर्शी है अर्थात् आप सभी मनुष्यों के लिए एक-सा देखने वाले हो। आप यदि चाहें तो मेरा भी उद्धार कर दें। एक लोहा पूजा में रखा जाता है और एक कसाई के घर माँस काटने के काम आता है। पारस पत्थर इस दुविधा को नहीं देखता है कि यह पूजा का लोहा है या कसाई के घर का लोहा है। वह तो दोनों प्रकार के लोहे को खरा सोना बना देता है। इसी प्रकार एक नदी का पानी होता है और एक नाले का पानी होता है लेकिन जब ये दोनों मिलकर एक रंग के हो जाते हैं तो इनका नाम देवनदी गंगा पड़ जाता है। यह शरीर माया है और जीव ब्रह्म का अंश कहलाता है। यह जीवात्मा माया से मिलकर बिगड़ गयी है। हे भगवान्! या तो इनका निर्धारण करके अलग-अलग कर दीजिए, नहीं तो आपकी पतित पावन और समदर्शी होने की प्रतिज्ञा समाप्त हुई जा रही है।

विशेष :

  1. भगवान के समदर्शी नाम का लाभ उठाते हुए सूरदास अपने पापी मन के उद्धार की प्रार्थना करते हैं।
  2. ‘इक लोहा ………… बधिक परौ’-में उदाहरण अलंकार।
  3. सम्पूर्ण में अनुप्रास की छटा।

(3) मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सौं कहा छिपी करुनामय, सबके अन्तरजामी।
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
भरि-भरि द्रोह विर्षे कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयिनि संग बिसरामी।
श्री हरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की, निसि-दिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम-उधारन, सुनियै श्रीपति स्वामी।।

शब्दार्थ :
सम = समान। कुटिल = टेढ़ा। खल = दुष्ट। कामी = विषयभोग में डूबा हुआ। करुनामय = भगवान। अन्तरजामी = हृदय की बात जानने वाले। ताहि = उसी को। बिसरायौ = भूल गया। नोन-हरामी = नमक हरामी। वि. कौं धावत = विषय वासनाओं की ओर दौड़ता है। सूकर ग्रामी = गाँव का सूअर। विषयनि संग विसरामी = विषय वासनाओं में डूब जाता है। विमुखिनि = दुष्टों की। नामी = प्रसिद्ध। अधम-उधारन = नीच व्यक्तियों का उद्धार करने वाले। श्री पति स्वामी = भगवान श्रीकृष्ण।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूर ने अपने आपको कुटिल, खल एवं कामी बताते हुए संसार के सभी पापियों में सबसे बड़ा पापी बताते हुए अपने उद्धार की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
सूरदास जी कहते हैं कि हे भगवान! मेरे समान कोई भी कुटिल, खल और कामी नहीं है अर्थात् मैं सबसे बड़ा पापी एवं कामी हूँ। हे भगवान! आप करुणामय हैं तथा सबके हृदय की बात जानते हैं, इसलिए आपसे मेरा क्या छिपा हुआ है? अर्थात् आप मेरे पापों को भली-भाँति जानते हैं। मेरे समान नमक हराम इस संसार में कोई नहीं है जिसने अर्थात् आपने मुझे यह नर शरीर दिया, मैं आपको ही भूल गया और माया, मोह तथा विषय-वासनाओं में डूब गया अत: मुझसे बड़ा नमक हराम अर्थात् कृतघ्न कोई नहीं हो सकता। मैं काम वासनाओं में इतना अंधा हो गया कि बार-बार उन्हीं की ओर मैं दौड़ता रहता हूँ जिस प्रकार कि गाँव का सूअर गन्दगी या विष्टा की ओर बार-बार दौड़ा करता है। मैं कितना गिरा हुआ व्यक्ति हूँ कि सत्संग की जब भी चर्चा होती है तो उसे सुनकर मुझे आलस्य आने लगता है तथा विषय-वासनाओं में मेरा मन आनन्द का अनुभव किया करता है।

मैं भगवान के चरणों को छोड़कर रात-दिन दुष्ट लोगों की गुलामी करता रहता हूँ। मैं महान् पापी हूँ तथा अधम अपराधी हूँ और सब पतितों में बड़ा हूँ। हे करुणामय भगवान श्री कृष्ण! आप तो अधम अर्थात् पतित लोगों का उद्धार करने वाले हैं, अतः हे श्रीपति स्वामी भगवान! मेरी टेर अर्थात् पुकार को सुन लीजिए और मुझ दुष्ट का उद्धार कर दीजिए।

विशेष :

  1. कवि आत्मग्लानि वश अपने सभी पापों को स्वीकारता है तथा भगवान से उद्धार की विनती करता है।
  2. उपमा एवं अनुप्रास की छटा।
  3. नोन हरामी, गुलामी आदि उर्दू फारसी शब्दों का प्रयोग किया है।

(4) जापर दीनानाथ ढरैं।
सोइ कुलीन बड़ौ सुन्दर सोई, जिहि पर कृपा करे।
कौन विभीषन रंक-निसाचर, हरि हँसि छत्र धरै।
राजा कौन बड़ौ रावन तैं, गर्बहि-गर्ब गरे।
रंकव कौन सुदामा हूँ तै, आप समान करै।
अधम कौन है अजामील तें, जम तँह जात डरै।
कौन विरक्त अधिक नारद तैं, निसि दिन भ्रमत फिरै।
जोगी कौन बड़ौ संकर तैं, ताको काम छरै।
अधिक कुरूप कौन कुबिजा तैं, हरिपति पाइ तरै।
अधिक सुरूप कौन सीता तै, जनक वियोग भरै।
यह गति-गति जानै नहि कोऊ, किहिं रस रसिक ढरै।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, फिरि-फिरि जठर जरै॥

शब्दार्थ :
जापर = जिस किसी के ऊपर। दीनानाथ = भगवान। ढरें = कृपा करते हैं। सोई = वही व्यक्ति। रंक निसाचर = दरिद्र निशाचर। छत्र धरै = छत्र धारण कराया अर्थात् राजा बनाया। रंकव = दरिद्र। अधम = नीच। जम = यमराज। जात डरै = जाने में डरता था। विरक्त = वैरागी। काम छरै = कामदेव ने छल किया। किहिं रस रसिक ढरै = न मालूम किस रस में वे ढलने लगते हैं। जठर जरै = पेट की अग्नि में जलता है, अर्थात् बार-बार जन्म लेता है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में सूरदास जी कहते हैं कि भगवान की माया बड़ी विचित्र है। जिस किसी. पर भगवान की कृपा हो जाती है; वही व्यक्ति कुलीन होता है, वही बड़ा होता है तथा वही सुन्दर होता है।

व्याख्या :
सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।

आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।

अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।

अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।

विशेष :

  1. कवि का मानना है कि भगवत् कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है।
  2. इस बात को सिद्ध करने के लिए कवि ने विभीषण, रावण, सुदामा, अजामील, नारद, शंकर, कुब्जा, सीता आदि के जीवन से सम्बन्धित अन्तर्कथाओं की ओर संकेत किया है।
  3. उदाहरण तथा उपमा अलंकारों का सुन्दर प्रयोग।

स्तुति खण्ड भाव सारांश

निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ ‘पद्मावत’ में लौकिक दाम्पत्य-प्रेम के माध्यम से अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम भावना व्यक्त की है। पाठ्य-पुस्तक के स्तुति खण्ड’ में कवि ने उस करतार’ का स्मरण करते हुए कहा है कि वह उसने प्रकृति को अनेक रूपों में सृजित किया है। अग्नि, जल, गगन, पृथ्वी,वायु आदि सब उसी से उत्पन्न हुए। उसने संसार में वृक्ष, नदी, सागर, पशु-पक्षी और मनुष्य आदि अनेक प्रकार के जीवों की संरचना की। उसने इनके लिए भोजन बनाया। उसने रोग, औषधियाँ, जीवन, मृत्यु, सुख,दुःख,आनन्द, चिन्ता और द्वन्द्व आदि बनाये तथा संसार में उसने किसी को राजा,किसी को सेवक, किसी को भिखारी और किसी को धनी बनाया।

स्तुति खण्ड संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) सँवरौं आदि एक करतारू। जेहँ जिउदीन्ह कीन्ह संसारू॥
कीन्हेसि प्रथम जोति परगासू। कीन्हेसि तेहिं पिरीति कवितासू॥
कीन्हेसि अगिनि पवन जल खेहा। कीन्हेसि बहुतइ रंग उरेहा॥
कीन्हेसि धरती सरग पतारू। कीन्हेसि बरन-बरन अवतारू॥
कीन्हेसि सात दीप ब्रह्मडा। कीन्हेसि भुवन-चौदहउ खंडा।
कीन्हेसि दिन दिनअर ससि राती। कीन्हेसि नखत तराइन पाँती॥
कीन्हेंसि धूप सीउ और छाहाँ। कीन्हेसि मेघ बिजु तेहि माहाँ॥
कीन्ह सबइ अस जाकर दोसरहि छाज न काहु।
पहिलेहिं तेहिक नाउँलइ, कथा कहौं अवगाहुँ।

शब्दार्थ :
सँवरौं = स्मरण करता हूँ। आदि = आरम्भ में। करतारू = कर्त्तार (सृष्टिकर्ता)। जिउ = जीवन। कीन्ह संसारू = संसार की रचना की। परगास = प्रकट किया। पिरीति = प्रीति के लिए। खेहा = मिट्टी। उरेहा = रेखांकन। सरग = स्वर्ग। पतारू = पाताल। बरन-बरन अवतारू = नाना प्रकार के वर्णों के प्राणी बनाए। दीप = द्वीप। दिनअर = सूर्य। ससि = चन्द्रमा। नखत = नक्षत्र। तराइन = तारागणों की। पाँती = पंक्ति। सीउ = शीत। बीजु = बिजली। भाहाँ = मध्य में। दोसरहि = दूसरे को। छाज = शोभा। तेहिक = उसी का। अवगाहु = अवगाहन करता हूँ, वर्णन करता हूँ।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ महाकाव्य के ‘स्तुति खण्ड’ से लिया गया है।

प्रसंग :
इस पद में कवि ने ग्रन्थ की रचना में सृष्टि के निर्माता आदि ईश्वर का स्मरण करते हुए कहा है।

व्याख्या :
महाकवि जायसी कहते हैं कि मैं आदि में उस एक कर्ता (सृष्टिकर्ता) का स्मरण करता हूँ, जिसने हमें जीवन दिया और जिसने संसार की रचना की। जिसने आदि ज्योति अर्थात् मुहम्मद के नूर का प्रकाश किया और उसी की प्रीति के लिए कैलास की रचना की। जिसने अग्नि, वायु, जल और मिट्टी का निर्माण किया और जिसने अनेक प्रकार के रंगों में तरह-तरह के चित्रांकन (रेखांकन) किए। जिसने धरती, आकाश और पाताल की रचना की और जिसने नाना वर्ण के प्राणियों को अवतरित किया, जिसने सात द्वीप और ब्रह्माण्ड की रचना की और जिसने चौदह खण्ड भुवनों की रचना की। जिसने दिन, दिनकर, चन्द्रमा और रात्रि की रचना की तथा जिसने नक्षत्रों और तारागणों की पंक्ति की रचना की। जिसने धूप, शीत और छाया का निर्माण किया और ऐसे मेघों का निर्माण किया जिनमें बिजली निवास करती है। उसने ऐसी सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है जो दूसरे किसी को भी शोभा नहीं दे सकी।

अतः सर्वप्रथम मैं उसी कर्ता का नाम लेकर अपनी विस्तृत कथा की रचना कर रहा हूँ।

विशेष :

  1. यह छन्द ईश स्तुति के रूप में जाना जाता है।
  2. स्मरण की यह शैली सूफी प्रभाव से प्रभावित है।
  3. अनुप्रास की छटा।
  4. चौपाई दोहा छन्द है।
  5. अवधी भाषा का प्रयोग।

(2) कीन्हेसि हेवँ समुंद्र अपारा। कीन्हेसि मेरु खिखिंद पहारा॥
कीन्हेसि नदी नार औझारा। कीन्हेसि मगर मछं बहुबरना॥
कीन्हेसि सीप मोंति बहुभरे। कीन्हेसि बहुतइ नग निरमरे॥
कीन्हेसि वनखंड औ जरि मूरी। कीन्हेसि तरिवर तार खजूरी॥
कीन्हेसि साऊन आरन रहहीं। कीन्हेसि पंखि उड़हि जहँ चहहीं॥
कीन्हेसि बरन सेत औ स्यामा। कीन्हेसि भूख नींद बिसरामा॥
कीन्हेसिपान फूल बहुभोगू। कीन्हेसि बहुओषद बहुरोगू॥
निमिख न लाग कर, ओहि सबइ कीन्ह पल एक।
गगन अंतरिख राखा बाज खंभ, बिनु टेक॥

शब्दार्थ :
कीन्हेसि = निर्माण किया। हेरौं = हिम। मेरु = रेगिस्तान। खिखिंद = किष्किन्धा पर्वत। नार = नाला। झारा = झरना। मछ = मछली। सीप = शुक्ति। निरभरे = निर्मल। जरिमूरी = जड़ और मूल। तखिर = श्रेष्ठ वृक्ष। तार = ताड़ वृक्ष। साउज = जंगली जानवर। आरन = अरण्य में। सेत = श्वेत। बरन = वर्ण। पान = ताम्बूल। ओषद = औषधि। निमिख = पलभर। अंतरिख = अंतरिक्ष। बाज = बिना। खंभ = स्तम्भ। टेक = सहारा।

सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी परमात्मा ने हिम तथा अपार समुद्रों की रचना की है। उसी ने सुमेरू तथा किष्किन्धा पर्वतों की रचना की है। उसी ने नदियों, नालों एवं झरनों की रचना की है। उसी ने सीपियों और बहुत प्रकार के मोतियों तथा निर्मल नगों का निर्माण किया है। उसी ने वन खण्ड और जड़ों तथा मूलों का निर्माण किया है। उसी ने ताड़, खजूर आदि तरुवरों का निर्माण किया है। उसी ने जंगली जानवरों का निर्माण किया जो जंगल में रहते हैं। उसी ने पक्षियों का निर्माण किया जो जहाँ चाहते हैं, उड़ जाते हैं। उसी ने श्वेत और श्याम वर्णों का निर्माण किया और उसी ने भूख, नींद तथा विश्राम का निर्माण किया। इन सबकी रचना करने में उसे एक पल भी नहीं लगा और उसने यह सब कुछ पलक झपकते ही कर दिया। पुनः उसी ने आकाश को भी बिना किसी खम्भे और टेक के अन्तरिक्ष में रख दिया।

विशेष :

  1. इस्लाम धर्म के मतानुसार समस्त सृष्टि का निर्माण उसी आदि शक्ति (नूर) ने किया है।
  2. अनुप्रास की छटा।
  3. अवधी भाषा का प्रयोग।

(3) कीन्हेसि मानुस दिहिस बड़ाई। कीन्हेसि अन्न भुगुति तेंहि पाई॥
कीन्हेसि राजा पूँजहि राजू। कीन्हेसि हस्ति घोर तिन्ह साजू॥
कीन्हेसि तिन्ह कहँ बहुत बेरासू। कीन्हेसि कोई ठाकुर कोइ दासू॥
कीन्हेसि दरब गरब जेहिं होई। कीन्हेसि लोभ अघाइन कोई॥
कीन्हेसि जिअन सदा सब चाहा। कीन्हेसि मीच न कोई राहा॥
कीन्हेसि सुख औ कोड अनंदू। कीन्हेसि दुख चिंता औ दंदू॥
कीन्हेसि कोई भिखारि कोई धनी। कीन्हेसि संपति विपति पुनि घनी॥
कीन्हेसि कोई निभरोसी, कीन्हेसि कोई बरिआर।
छार हुते सब कीन्हेसि, पुनि कीन्हेसि सब छार॥

शब्दार्थ :
कीन्हेसि = किया है। मानुस = मनुष्य। दिहिसि बड़ाई = बड़प्पन प्रदान किया। भुगुति = भुक्ति या भोजन। पूँजहि राजू = जो राज का भोग करते हैं। हस्ति = हाथी। घोर = घोड़ा। बेरासू = विलास की सामग्री। ठाकुर = स्वामी। दासू = दास। दरब = द्रव्य। गरब = गर्व। अघाइ न कोई = कोई तृप्त नहीं होता। जिअन = जीवन। मीचु – मृत्यु। कोड= कौतुक। दंदू = द्वन्द्व। संपति = सम्पत्ति। घनी = बहुत। निभरोसी = निराश्रित। बरिआर = बलशाली। छार = राख, धूल।,

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस पद में कविवर जायसी ने ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।

विशेष :

  1. अनुप्रास की छटा।
  2. शान्त रस।
  3. अवधी भाषा का प्रयोग।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश (निबन्ध, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

मैं और मेरा देश अभ्यास

बोध प्रश्न

मैं और मेरा देश अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

मैं और मेरा देश MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
पंजाब केसरी के नाम से कौन जाना जाता है?
उत्तर:
पंजाब केसरी के नाम से लाला लाजपत राय को जाना जाता है।

Main Aur Mera Desh MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
‘दीवार में दरार पड़ गई’ का आशय किससे है?
उत्तर:
‘दीवार में दरार पड़ गई’ से लेखक का आशय उनके मन में जो पूर्णता का आनन्द भाव था उसमें उनको कमी का अनुभव होने से है।

मैं और मेरा देश पाठ के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में क्या माँगा?
उत्तर:
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में यह माँगा कि यदि आप मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि आप अपने देश में जाकर किसी से यह न कहियेगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।

मैं और मेरा देश के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को कौन-सा उपहार दिया?
उत्तर:
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति कमाल पाशा को मिट्टी की छोटी हंडिया में अपने हाथ से तोड़ा गया पाव भर शहद दिया था।

मैं और मेरा देश लघु उत्तरीय प्रश्न

Main Aur Mera Desh Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ कौन-सी थीं?
उत्तर:
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ थीं-एक तो वे अपनी लेखनी द्वारा देश के लोगों में ओज का संचार करते थे, दूसरे वे जन सभाओं में अपनी तेजस्वी वाणी द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया करते थे।

Mai Aur Mera Desh MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
देहाती बूढ़ा कमाल पाशा के पास क्यों गया था?
उत्तर:
देहाती बूढ़ा राष्ट्रपति कमाल पाशा के जन्मदिन पर उन्हें उपहार देने गया था। उपहार में वह एक हंडिया में पाव भर शहद लेकर आया था। कमाल पाशा ने उस उपहार को सराहते हुए कहा, “दादा आज सर्वोत्तम उपहार तुमने ही भेंट किया क्योंकि इसमें तुम्हारे हृदय का शुद्ध प्यार है।”

Main Aur Mera Desh Ke Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर मुग्ध हो गए, क्यों?
उत्तर:
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर इसलिए मुग्ध हो गए क्योंकि उस युवक ने अपने कार्य से अपने देश के गौरव को बहुत ऊँचा उठा दिया था।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार हमारे देश को किन दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार हमारे देश को दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है-एक शक्ति बोध की और दूसरी सौन्दर्य बोध की। हम यह समझ लें कि हमारा कोई भी काम ऐसा न हो जो देश में कमजोरी की भावना को बल दे या कुरुचि की भावना को। हम कभी भी अपने देश के अभावों एवं कमजोरियों की सार्वजनिक स्थलों पर चर्चा न करें और न तो गन्दगी फैलायें और न गन्दे विचार व्यक्त करें।

प्रश्न 5.
देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कैसे हो रहा है?
उत्तर:
यदि आप चलती रेलों में, मुसाफिर खानों में, चौपालों पर और मोटर-बसों में बैठकर देश की कमियों और बुराइयों की चर्चा करना अपना धर्म समझते हैं और यदि दूसरे देशों की तुलना में अपने देश को नीचा या छोटा मानते हैं, तो आप देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कर रहे हैं।

मैं और मेरा देश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जय’ बोलने वालों का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
‘जय’ बोलने वालों का बहुत महत्त्व है। किसी भी मैच में जब कोई वर्ग खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन पर तालियाँ बजाता है या उनका जय-जयकार करता है तो खिलाड़ियों में आत्म संचार एवं उत्साह कई गुना बढ़ जाता है। गिरता हुआ खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर जाता है। कवि-सम्मेलनों और मुशायरों में तो तालियाँ बजाने या जयकारा बोलने से कवियों एवं शायरों में दो गुना जोश आ जाता है और वे मंचों पर छा जाते हैं।

प्रश्न 2.
जापान में शिक्षा लेने आये विद्यार्थी की कौन-सी गलती से उसके देश के माथे पर कलंक का टीका लग गया?
उत्तर:
जापान में किसी अन्य देश से शिक्षा लेने आये विद्यार्थी ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली गयी पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्रों को फाड़ लिया था। उसकी इस हरकत को एक अन्य जापानी लड़के ने देख लिया था। अतः उसने चोर लड़के की शिकायत कर दी। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उसके कब्जे से चोरी किये गये चित्र बरामद कर लिये। फिर उस लड़के को देश से निकाल दिया गया तथा पुस्तकालय के बाहर बोर्ड पर लिख दिया गया कि उस देश का (जिसका वह चोर विद्यार्थी था) कोई निवासी इस पुस्तकालय में प्रवेश नहीं कर सकता। इस प्रकार इस विद्यार्थी ने अपने नीच कार्य से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया था।

प्रश्न 3.
देश के शक्तिबोध को चोट कैसे पहुँचती है?
उत्तर:
यदि आप बात-बात में सार्वजनिक स्थानों पर, चलती रेलों में, क्लबों में, मुसाफिरखानों, चौपालों पर या मोटर बसों में बैठकर अपने देश की कमियों को उजागर करते रहते हैं या देश की निन्दा करते रहते हैं या फिर दूसरे देशों से तुलना करते हुए अपने देश को हेय या तुच्छ बताते रहते हैं, तो निश्चय ही आप अपने इन कार्यों से देश के शक्तिबोध को चोट पहुंचा रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तो – संस्कृति को गहरी चोट लगती है’-इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यदि समाज में सामान्य शिष्टाचार नहीं है, आप में। खान-पान और उठने-बैठने में शिष्टता नहीं है, फूहड़पन है। यदि आप केला खाकर छिलका रास्ते में फेंक देते हैं, घर का कूड़ा निर्धारित स्थान पर न फेंककर इधर-उधर फेंक देते हैं, दफ्तर, घर, गली, होटल, धर्मशालाओं में रहते हुए आप अपनी पीक या थूक इधर-उधर कर देते हैं या फिर अपने मुँह से गन्दी गालियाँ निकालते हैं, तो निश्चय ही आपके द्वारा किये गये इन कार्यों से देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तथा इससे देश की संस्कृति को गहरी चोट लगती है।

प्रश्न 5.
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों को कभी भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे देश की प्रतिष्ठा पर आँच आये। हमें अपने आपको सभ्य एवं संस्कारवान बनाना चाहिए। हमेशा दूसरों का आदर करें, सत्य बोलें एवं देश से प्रेम करें। हम भूलकर भी ऐसा कोई काम न करें जिससे देश की बदनामी हो। अपने उठने-बैठने एवं बात करने में हमें शिष्टता का पालन करना चाहिए। घर, दफ्तर, धर्मशाला, होटल आदि स्थान पर गन्दगी नहीं फैलानी चाहिए। जरूरत मन्दों एवं गरीबों की सदैव सहायता करनी चाहिए।

मैं और मेरा देश भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का नाम बताइए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए-
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-3

मैं और मेरा देश महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

मैं और मेरा देश बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक भूकम्प आया था जिससे दीवार में दरार पड़ गयी। वह भूकम्प कहाँ आया था?
(क) प्रान्त में
(ख) विदेश में
(ग) प्रदेश में
(घ) मन-मानस में।
उत्तर:
(घ) मन-मानस में।

प्रश्न 2.
तेजस्वी पुरुष कौन थे जिन्हें ‘पंजाब केसरी’ कहा जाता है?
(क) लाला लाजपत राय
(ख) वल्लभभाई पटेल
(ग) चन्द्रशेखर आजाद
(घ) सुभाषचन्द्र बोस।
उत्तर:
(क) लाला लाजपत राय

प्रश्न 3.
हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
(क) दयानन्द
(ख) रामानन्द
(ग) विवेकानन्द
(घ) स्वामी रामतीर्थ।
उत्तर:
(घ) स्वामी रामतीर्थ।

प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को उपहार में भेंट किया (2015)
(क) फल
(ख) मिठाई
(ग) रुपया
(घ) शहद।
उत्तर:
(घ) शहद।

प्रश्न 5.
शल्य कौन था?
(क) अर्जुन का सारथी
(ख) कर्ण का सारथी
(ग) कृष्ण का सारथी
(घ) कोचवान।
उत्तर:
(ख) कर्ण का सारथी

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. स्वामी रामतीर्थ ………… गये थे। (2009)
  2. जीवन एक युद्ध स्थल है और युद्ध में ………… ही तो काम नहीं होता।
  3. एक दिन वह सरकारी पुस्तकालय से एक पुस्तक पढ़ने को लाया जिसमें कुछ ………… चित्र थे।
  4. राजधानी में अपनी …………. का उत्सव समाप्त कर वे अपने भवन में ऊपर चले गये।
  5. क्या आप कभी केला खाकर ………… रास्ते में फेकते हैं?

उत्तर:

  1. जापान
  2. लड़ना
  3. दुर्लभ
  4. वर्षगाँठ
  5. छिलका।

सत्य/असत्य

  1. स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान गए थे। (2016, 17)
  2. कमालपाशा उन दिनों मलेशिया के राष्ट्रपति थे।
  3. क्या कभी अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है,मुहावरा है।।
  4. लाला लाजपत राय की कलम और वाणी दोनों तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश img-4
उत्तर:
1. → (ङ)
2. → (घ)
3. → (ग)
4. → (ख)
5. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. श्री कन्हैया लाल मिश्र जी ने किन पत्रों का सम्पादन किया?
  2. हमारे देश को कौन-सी दो बातों की सबसे अधिक जरूरत है?
  3. हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
  4. यह निबन्ध किस शैली में रचा गया है?

उत्तर:

  1. ज्ञानोदय, नया जीवन और विकास
  2. एक शक्तिबोध दूसरा सौन्दर्यबोध
  3. स्वामी रामतीर्थ
  4. दृष्टान्त शैली।

मैं और मेरा देश पाठ सारांश

प्रस्तुत निबन्ध में निबन्धकार ने व्यक्ति के जीवन-विकास में घर,नगर, समाज की भूमिका का उल्लेख करते हुए देश के प्रति उसके कर्त्तव्यबोध को जाग्रत करने की चेष्टा की है। निबन्धकार के अनुसार यदि हम अपना सम्मान चाहते हैं, तो हमें अपने साथ-साथ अपने देश का सम्मान भी करना चाहिए और अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे अन्य देशों में भी हमारे देश का नाम ऊँचा हो तथा सभी देश हमारा और हमारे देश का सम्मान करें।

व्यक्ति और देश के सम्बन्धों की व्याख्या करते हुए निबन्धकार ने देश के गौरव और प्रतिष्ठा के लिए प्रत्येक व्यक्ति की देशनिष्ठा को रेखांकित किया है। हमें भी उन महापुरुषों की तरह कार्य करने चाहिए जिनके प्रयास से हमारा देश स्वतन्त्र हुआ, हमारे देश का गौरव बढ़ा। ऐसा ही एक उदाहरण स्वर्गीय पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का निबन्धकार ने दिया है, जिन्होंने अपनी कलम और वाणी से हमारे देश को एक अलग पहचान दी। लाला जी के अनुसार भारतवर्ष की गुलामी उनके लिए एक कलंक थी जिसे उन्होंने अपनी कलम से भारतवासियों के समक्ष रखा था, क्योंकि यह गुलामी उनके लिए एक मानसिक भूकम्प के समान थी।

दर्शनशास्त्रियों के अनुसार जीवन बहुमुखी है। यदि हम कुछ नहीं कर सकते तो हमें उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए जो अपने देश,समाज,नगर के लिए कुछ कार्य करना चाहते हैं। हमारे राष्ट्र के महान् सन्त स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान जा रहे थे। वह भोजन के रूप में फल ही ग्रहण करते थे। गाड़ी स्टेशन पर रुकी। किसी ने बताया कि यहाँ अच्छे फल प्राप्त नहीं होते। एक जापानी युवक प्लेटफार्म पर खड़ा था, उसने स्वामी जी को फल दिये, साथ ही उसने स्वामी जी से प्रार्थना की कि इस घटना को किसी को न बतायें, यह उस युवक की देशभक्ति का उदाहरण है।

पुस्तकालय में चोरी करते हुए विदेशी नागरिक को बाहर निकाल दिया गया, यह देश के प्रति उसकी अपूर्ण निष्ठा है। तुर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने विश्राम त्यागकर तीन कोस से पैदल आये हुए वृद्ध से भेंट की। रेल का सफर भी हमारे देश में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक कष्टप्रद है। अन्त में लेखक का कथन है कि चुनाव के समय योग्य व्यक्ति को मत देना ही अधिक श्रेयस्कर है। इसी से देश और समाज की उन्नति में चार चाँद लगेंगे।

मैं और मेरा देश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) अपने महान् राष्ट्र की पराधीनता के दीन दिनों में जिन लोगों ने अपने रक्त से गौरव के दीपक जलाये और जो घोर अन्धकार और भयंकर बवण्डरों के झकझोरों में जीवन भर खेले, उन दीपकों को बुझने से बचाते रहे, उन्हीं में एक थे वे लालाजी। उनकी कलम और वाणी दोनों में तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।

कठिन शब्दार्थ :
पराधीनता = गुलामी। दीन दिनों = बुरे दिनों में। गौरव के दीपक = देश की प्रतिष्ठा को जीवित रखा। तेजस्विता = तेज, प्रताप की आभा।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मैं और मेरा देश’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक श्री कन्हैया लाल मिश्र। ‘प्रभाकर’ हैं।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक ने लाला लाजपत राय की देश भक्ति एवं तेजस्विता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि अपने महान् देश की गुलामी के उन दुर्दिनों में जब देश को कदम-कदम पर अपमान का घूट पीना पड़ता था, लाला लाजपत राय ने अपने रक्त से गौरव के दीपक को जलाये रखा। उन पर अनेक भयंकर बवण्डर एवं झोंके आये पर वे अपने लक्ष्य से बिल्कुल भी हटे नहीं। उनकी कलम में तेजस्विता थी जिसको वे अपने लेखों में लिखकर विदेशी सत्ता के विरुद्ध आग उगला करते थे और समय-समय पर जनता जनार्दन को अपनी तेजस्वी एवं ओजस्वी वाणी से प्रोत्साहन देते रहते थे।

विशेष :

  1. लालाजी की अनुपम देशभक्ति पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(2) हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का भी बहुत महत्व है। कभी मैच देखने का अवसर मिला ही होगा, आपको। देखा नहीं आपने कि दर्शकों की तालियों से खिलाड़ियों के पैरों में बिजली लग जाती है और गिरते खिलाड़ी उभर जाते हैं। कविसम्मेलनों और मुशायरों की सफलता दाद देने वालों पर निर्भर करती है। इसलिए मैं अपने देश का कितना भी साधारण नागरिक क्यों न हूँ, अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।

कठिन शब्दार्थ :
पैरों में बिजली= चुस्ती-फुर्ती, उत्तेजना। दाद = तारीफ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक जय बोलने के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कह रहा है।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्त्व होता है। लेखक पाठकों से प्रश्न करता है कि आपको जीवन में कभी किसी मैच को देखने का मौका मिला होगा। उस समय दर्शक गण जब तालियाँ बजाते हैं तो खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ जाता है, उनके पैरों में बिजली जैसी गति आ जाती है। इतना ही नहीं जो खिलाड़ी निराशा में डूब जाते हैं, उनमें भी इस जय-जयकार से जोश आ जाता है और उनकी पराजय जय में बदल जाती है। यही बात कवि-सम्मेलनों एवं मुशायरों पर भी लागू होती है। यदि श्रोताओं की ओर से सुनाने वालों को बार-बार दाद मिलने लगेगी, तो सुनाने वालों .का उत्साह कई गुना बढ़ जायेगा। अतः यह हमारा पवित्र कर्तव्य है कि हम अपने देश के सम्मान की रक्षा हर प्रकार से करें। चाहे हम साधारण नागरिक हों या महत्त्वपूर्ण। देश सम्मान हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

विशेष :

  1. लेखक ने जय के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(3) जहाँ एक युवक ने अपने काम से अपने देश का सिर ऊंचा किया था, वहीं एक युवक ने अपने देश के मस्तक पर कलंक का ऐसा टीका लगाया, जो जाने कितने वर्षों तक संसार की आँखों में उसे लांछित करता रहा।

कठिन शब्दार्थ :
सिर ऊँचा किया = देश का सम्मान बढ़ाया। मस्तक पर कलंक का टीकादेश को नीचा दिखाया।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक का मत है कि हम अच्छे कामों से देश का सम्मान बढ़ा सकते हैं और बुरे कार्यों से देश को नीचा गिरा सकते हैं।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी ने देश के दो युवकों के उदाहरण देकर यह बताना चाहा है कि अच्छे कार्यों से देश का सम्मान बढ़ता है। इसके लिए उन्होंने जापान के उस युवक का उदाहरण दिया है जिसने स्वामी रामतीर्थ की इस टिप्पणी पर कि ‘जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते’ उस जापानी युवक ने अपने देश की बेइज्जती होते देख दौड़कर ताजे और अच्छे फल लाकर स्वामी जी को दे दिए। जब स्वामी जी ने उस बालक को फलों का मूल्य देना चाहा तो उसने मूल्य लेने से मना कर दिया और कहा कि यदि आप इसका मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि अपने देश में जाकर किसी से यह मत कहना कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।

लेखक ने दूसरा उदाहरण उस युवक का दिया जो अपने देश से जापान में शिक्षा लेने आया था। उस बालक ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली हुई एक पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्र चुरा लिए। उसकी इस हरकत को एक जापानी विद्यार्थी ने देख लिया था। फलतः उसने इसकी सूचना पुस्तकालय को दे दी। पुलिस ने तलाशी लेकर उस विद्यार्थी से वे चित्र बरामद कर लिए फिर उस विद्यार्थी को जापान से निकाल दिया गया। इस दूसरे युवक ने अपने बुरे काम से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगाया। अतः लेखक का मानना है कि अच्छे काम करने वालों की सदा प्रशंसा होती है और बुरे काम करने वालों की निन्दा।

विशेष :

  1. लेखक ने अच्छे गुण अपनाने का युवकों को सन्देश दिया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(4) जैसा मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हरेक छोटी-छोटी बात पर ध्यान देता हूँ, वैसा ही मैं अपने देश के लाभ और सम्मान के लिए भी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दै। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। बात यह है कि मैं और मेरा देश दो अलग चीज तो हैं ही नहीं।

कठिन शब्दार्थ :
सम्मान = आदर, इज्जत।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति विशेष को जैसा मान-सम्मान पाने की इच्छा होती है, वैसा ही देश के लिए भी किया जाना चाहिए।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस तरह मैं अपने व्यक्तिगत लाभ एवं आदर के लिए छोटी से छोटी बात पर भी ध्यान देता हूँ, उसी तरह मुझे अपने देश का भी ध्यान रखना चाहिए। मेरा यह कर्त्तव्य है। जिस प्रकार मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। लेखक यह बताना चाहता है कि मैं और मेरा देश दोनों एक ही हैं, इनमें कहीं भेद नहीं होना चाहिए।

विशेष :

  1. लेखक अपने को देश से अलग नहीं मानता है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(5) मैंने जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव सीखा है, वह यही है कि महत्त्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है।

कठिन शब्दार्थ :
विशालता= व्यापकता, बड़ा होना। हीन = छोटा, तुच्छ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक कहता है कि भावना से ही कोई कार्य अच्छा या बुरा, बड़ा या छोटा होता है।

व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ भी अध्ययन और अनुभव किया है, उससे मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जीवन में महत्त्व कार्य के छोटे-बड़े से नहीं होता है, उसका महत्त्व तो काम करने की भावना से होता है। बड़े से बड़ा कार्य भी तुच्छ श्रेणी का बन जायेगा, यदि उसके पीछे कर्ता की भावना पवित्र एवं महान नहीं है।

विशेष :

  1. लेखक भावना को महान् मानता है, कार्य को नहीं।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(6) आपके द्वारा देश के सौन्दर्य बोध को भंयकर आघात पहुँच रहा है और आपके द्वारा देश की संस्कृति को गहरी चोट पहुंच रही है।

कठिन शब्दार्थ :
आघात = चोट।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि यदि आपका जीवन साफ-सफाई से दूर रहने वाला एवं गन्दगी प्रिय है तो इससे आप देश के सौन्दर्य बोध एवं संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि यदि आप अपने घर की गन्दगी सड़क पर फेंकते हैं और उसे उसके स्थान पर नहीं फेंकते हैं या अपने मुँह से अपशब्द निकालते हैं, या अपने आस-पास की जगह को थूक या पीक से गन्दा किये रहते हैं तो निश्चय ही इस प्रकार के व्यवहार से आप देश के सौन्दर्य बोध को चोट पहुँचा रहे हैं और आपके इन कारनामों से देश की संस्कृति को बहुत हानि पहुँच रही है।

विशेष :

  1. लेखक ने व्यावहारिक जीवन में सफाई एवं स्वच्छता रखने का उपदेश दिया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 संस्कृति का स्वरूप

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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 संस्कृति का स्वरूप (डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल)

संस्कृति का स्वरूप पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

संस्कृति का स्वरूप लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Class 10 Hindi Chapter 2 Mp Board प्रश्न 1.
‘संस्कृति से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर-
‘संस्कृति’ से लेखक का आशय जीवन ढंग है।

Hindi Chapter 2 Class 10 Mp Board प्रश्न 2.
व्यक्ति का जीवन कब ढलने लगता है?
उत्तर-
व्यक्ति का जीवन तब ढलने लगता है, जब वह एक ही पड़ाव पर टिका रहता है।

Chapter 2 Hindi Class 10 Mp Board प्रश्न 3.
हमें दुराग्रह क्यों छोड़ देना चाहिए।
उत्तर-
हमें दुराग्रह इसलिए छोड़ देना चाहिए कि हमारे मत के समान दूसरों का भी मत हो सकता है।

प्रश्न 4.
भूतकालीन साहित्य से हमें क्या ग्रहण करना चाहिए?
उत्तर-
भूतकालीन साहित्य से हमें रूढ़ियों से ऊपर उठकर उसके नित्य अर्थ को ग्रहण करना चाहिए।

प्रश्न 5. धर्म का मथा हुआ सार क्या है?
उत्तर-
धर्म का मथा हुआ सार है-प्रयत्नपूर्वक अपने-आपको ऊँचा बनाना।

संस्कृति का स्वरूप दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उन्नत देश कौन-से दो कार्य एक साथ सँभालते हैं?
उत्तर-
उन्नत देश आर्थिक कार्य और संस्कृति संबंधी कार्य-ये दोनों कार्य एक साथ सँभालते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृति जीवन के लिए आवश्यक क्यों है?
उत्तर-
संस्कृति जीवन के लिए आवश्यक है। यह इसलिए कि इससे हमारी निष्ठा पक्की होती है। हमारे मन की परिधि विस्तृत हो जाती है। हमारी उदारता का भंडार भर जाता है।

प्रश्न 3. कौन-से मनुष्य आत्म-हनन का मार्ग अपनाते हैं?
उत्तर-
जो यह सोचता कि पहले आचार्य और धर्म-गुरु जो कह गए, सब सच्चा है, उनकी सब बात सफल है और मेरी बुद्धि या विचारशक्ति टुटपुंजिया ऐसा ‘बाबा वाक्य प्रमाण’ के ढंग पर सोचने वाला मनुष्य केवल आत्म-हनन का मार्ग अपनाता है।

प्रश्न 4.
कैसे लोग नई संस्कृति को जन्म नहीं दे पाते?
उत्तर-
जब कर्म से भयभीत व्यक्ति केवल विचारों की उलझन में फँस जाते हैं, तब वे नई संस्कृति को जन्म नहीं दे पाते।

संस्कृति का स्वरूप भाषा अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
उन्नति, उदारता, नूतन, सम्मान।
उत्तर-
‘शब्द – विलोम शब्द
उन्नति – अवनति
उदारता – अनुदारता
नूतन – पुरातन
सम्मान – अपमान।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों/लोकोक्तियों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए
जीवन का ठाट, कसौटी पर कसना, घर खीर तो बाहर खीर।
उत्तर-
मुहावरे/लोकोक्तियाँ-अर्थ-वाक्य-प्रयोग जीवन का ठाट-संपन्नता-उसके जीवन का ठाट ढह गया है। कसौटी पर कसना-कड़ी परीक्षा लेना-सोना को कसौटी पर ही कसा जाता है।
घर खीर तो बाहर खीर-चारों ओर सुख-ही-सुख-भाग्यवानों का क्या कहना! उनके लिए तो घर खीर है तो बाहर भी खीर है।

प्रश्न 3.
तत्सम और तद्भव शब्दों को छाँटकर पृथक्-पृथक् लिखिएठाठ, चंद्र, संध्या, सहस्रों, पुराना, रास्ता।
उत्तर-
तत्सम शब्द-चंद्र, संध्या, सहस्रों। तद्भव शब्द-ठाठ, पुराना, रास्ता।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्द वर्तनी की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण हैं। इन्हें शुद्ध रूप में लिखिए
एच्छिक, किरन, ज्योतसना, ध्वनी, प्रतीलिपि, उज्जैनी।
उत्तर-
MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 संस्कृति का स्वरूप img-1
संस्कृति का स्वरूप योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
हमारे तीज-त्योहार भी संस्कृति के अंग हैं। वर्ष भर मनाए जाने वाले त्योहारों का चार्ट बनाकर कक्षा में लगाइए।
प्रश्न 2. ऐसे ऐतिहासिक/पौराणिक आदर्श चरित्रों को खोजिए जिन्होंने अपने पिता के अधूरे कार्यों को पूर्ण किया।
उत्तर-
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

संस्कृति का स्वरूप परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

संस्कृति का स्वरूप अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सांस्कृतिक कार्य किस प्रकार फलदायी होता है?
उत्तर-
सांस्कृतिक कार्य कल्पवृक्ष की तरह फलदायी होता है।

प्रश्न 2.
संस्कृति क्या होती है?
उत्तर-
संस्कृति हमारे मन का मन, प्राणों का प्राण और शरीर का शरीर होती है।

प्रश्न 3.
संस्कृति कब विस्तृत मानव मन को जन्म देती है?
उत्तर-
संस्कृति राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों को अपने में पचाकर इन दोनों से विस्तृत मानव मन को जन्म देती है।

प्रश्न 4.
हमारी गति में बाधा कब उत्पन्न होती है?
उत्तर-
हमारी गति में बाधा तब उत्पन्न होती है, जब हम संस्कृति के जड़ भाग के गुरुतर बोझ को ढोने लगते हैं।

प्रश्न 5. संस्कृति के कौन-कौन से अंग हैं?
उत्तर-
संस्कृति के अंग धर्म, दर्शन, साहित्य, कला आदि हैं।

2. निम्नलिखित कथनों के लिए दिए गए विकल्पों से सही विकल्प का चयन कीजिए

1. राजनीति की साधना का अंग है
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(क) एक

2. कला और संस्कृति के लेखक हैं
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल
(घ) उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
उत्तर-
(ग) डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल

3. गुप्तकाल के दूसरे महान् विद्वान हैं.
(क) श्री सिद्धसेन
(ख) दिवाकर
(ग) श्री सिद्धसेन दिवाकर
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) श्री सिद्धसेन दिवाकर

4. अश्वघोष हैं
(क) आलोचक
(ख) निबंधकार
(ग) पत्रकार
(घ) महाकवि।
उत्तर-
(घ) महाकवि।

5. एक-दूसरे के पूरक हैं
(क) आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम
(ख) आर्थिक कार्यक्रम
(ग) सांस्कृतिक कार्यक्रम
(घ) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर-
(क) आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम

3. रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से चुनकर कीजिए.

1. संस्कृति का स्वरूप के लेखक हैं ……………………….. (केदारनाथ अग्रवाल, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल)
2. संस्कृति की प्रवृत्ति ……………………….. देने वाली होती है। (महाफल, कल्पवृक्ष)
3. जीवन के नानाविध स्वरूपों का समुदाय ही ……………………….. है (वृक्ष, संस्कृति)
4. ……………………….. संस्कृति का अंग है। (कर्म, धम)
5. ……………………….. ने गुप्तकाल की स्वर्णिम युगीन भावना को प्रकट किया है। (अश्वघोष, कालिदास)
उत्तर-
1. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल,
2. महाफल,
3. संस्कृति,
4. धर्म,
5. कालिदास

4. सही जोड़े मिलाइए।
MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 संस्कृति का स्वरूप img-2
उत्तर-
MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 संस्कृति का स्वरूप img-3

5. निम्नलिखित वाक्य सत्य हैं या असत्य? वाक्य के आगे लिखिए

1. संस्कृति शब्द बड़ा व्यापक है।
2. हमारे जीवन का ढंग हमारी संस्कृति है।
3. संस्कृति जीवन में परमावश्यक नहीं है।
4. संस्कृति की उपजाऊ भूमि है-पूर्व और पश्चिम का मेल।
5. धर्म का अर्थ मत विशेष का आग्रह है।
उत्तर-
1 (सत्य),
2 (सत्य),
3 (असत्य),
4 (सत्य),
5 (असत्य)।

6. एक शब्द में उत्तर दीजिए

1. सांस्कृतिक कार्य किस तरह फलदायी होता है?
2. मनुष्य के भूत, वर्तमान और भावी जीवन का कौन प्रकार है?
3. संस्कृति का कौन रूप होता है?
4. जीवन के नानाविध रूपों का समुदाय क्या होती है?
5. किससे प्रकृति की संस्कृति भुवनों में व्याप्त हुई ?
उत्तर-
1. कल्पवृक्ष,
2. सर्वांगपूर्ण,
3. मूर्तिमान,
4. संस्कृति,
5. देवशिल्पों से।

संस्कृति का स्वरूप लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कौन-से वहुत फल देने वाला बड़ा वृक्ष बन जाता है?
उत्तर-
सांस्कृतिक कार्य के छोटे-से बीज से बहुत फल देने वाला बड़ा वृक्ष बन जाता है।

प्रश्न 2.
हमें अपने जीवन की उन्नति और आनंद के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
हमें अपने जीवन की उन्नति और आनंद के लिए अपनी संस्कृति की सुधि लेनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक कार्य की उचित दिशा और सच्ची उपयोगिता क्या है?
उत्तर-
साहित्य, कला, दर्शन, और धर्म से जो मूल्यवान सामग्री हमें मिल सकती है, उसे नए जीवन के लिए ग्रहण करना, यहीं सांस्कृतिक कार्य की उचित दिशा और सच्ची उपयोगिता है।

संस्कृति का स्वरूप लेखक-परिचय

जीवन-परिचय-हिंदी के गद्य-लेखकों में डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म सन् 1904 ई. में हुआ था। आपने अपनी आरंभिक शिक्षा समाप्त करके उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। वहाँ से आपने एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वहीं से पी.-एच.डी. और डी.लिट. की भी उपाधियाँ हासिल की। इसके बाद आपने सरकारी नौकरी की। इसके लिए आपने सेण्ट्रल एशियन एक्टीक्विटीज म्यूजियम के अधीक्षक तथा भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष पद पर कई वर्षों तक सफलतापूर्वक कार्य किया। इसके बाद आपकी नियुक्ति काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में प्रोफेसर पद पर हुई।

रचनाएँ-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित और संपादित पुस्तकें हैं–उर-ज्योति, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, कादम्बरी, मलिक मुहम्मद जायसी, पद्मावत, पाणिनीकालीन भारतवर्ष, पृथ्वीपुत्र, पोद्दार अभिनंदन ग्रंथ आदि।

भाषा-शैली-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की भाषा उच्चस्तरीय है। फलस्वरूप उसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता है। इस प्रकार के आए हुए तत्सम शब्द असाधारण हैं। हालाँकि उनका यह प्रयास रहा है कि वे बहुप्रचलित अर्थपूरक शब्दों को ही प्रयुक्त करें, फिर उनके द्वारा प्रस्तुत शब्द सामान्यपाठक की समझ से परे हो गए हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के शब्दों से बने हुए वाक्य-स्वरूप जटिल और गंभीर हो गए हैं।

डॉ. वासुदेवशरण की शैली में प्रवाह और गति है। उसमें क्रमबद्धता और स्वच्छंदता है। वह भावों को ढालने में तत्पर और सक्षम है। इस प्रकार उनका शैली-विधान अधिक प्रभावशाली. है, सराहनीय है और सटीक है। वह भाव और भाषा दोनों को बखूबी वहन करने में समर्थ है।

साहित्य में स्थान-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का साहित्यिक महत्त्व सर्वमान्य है। उनके लेखन में साहित्य की विविधता और अनेकरूपता है। कालिदास के मेघदूत और बाणभट्ट के हर्ष-चरित की नयी पीठिका को प्रस्तुत करने में आपका अनूठा योगदान है। इस दृष्टि से आप और अधिक सराहनीय हैं। यही नहीं आप भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व और भारतीय संस्कृति के गंभीर और उच्चस्तरीय अध्येताओं में भी शीर्ष स्थान पर हैं।

निबंध का सार डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल लिखित निबंध ‘संस्कृति का स्वरूप’ एक ज्ञानबर्द्धक और भावबर्द्धक निबंध है। ‘संस्कृति’ शब्द के स्वरूप, अर्थ और महत्त्व को निबंधकार ने कई प्रकार समझाने और स्पष्ट करने का प्रयास किया है। निबंधकार का यह मानना है कि ‘जीवन के नानाविध रूपों का समुदाय ही संस्कृति है। संस्कृति के इन रूपों का उत्तराधिकार भी हमारे साथ चलता है। धर्म, दर्शन, साहित्य, कला उसी के अंग हैं। बुद्धि के संबल से ही राष्ट्र का संवर्धन संभव होता है। इसका सबसे प्रबल कार्य संस्कृति की साधना है।

संस्कृति की उर्वर भूमि के लिए आवश्यक है-पुरानी और नयी मान्यताओं का मेल-मिलाप। इसके लिए किसी प्रकार के दुराग्रह से मुक्ति नितांत आवश्यक है। यही कारण है कि जब कर्म से भयभीत व्यक्ति केवल विचारों की उलझन में फँस जाता है, तब वह जीवन की किसी नई पद्धति या संस्कृति को जन्म नहीं दे पाता। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि पूर्वकालीन संस्कृति के जो निर्माणकालीन तत्त्व हैं, उन्हें लेकर हम कर्म में लगें और नई वस्तु का निर्माण करें। निबंधकार का अंततः यह मानना है कि “जीवन को उठाने वाले जो नियम हैं, वे जब आत्मा में बसने लगते हैं, तभी धर्म का सच्चा आरंभ मानना चाहिए। साहित्य, कला, दर्शन और धर्म से जो मूल्यवान सामग्री हमें मिल सकती है, उसे नए जीवन के लिए ग्रहण करना, यही सांस्कृतिक कार्य की उचित दिशा और सच्ची उपयोगिता है।”

संस्कृति का स्वरूप संदर्भ और प्रसंग सहित व्याख्या

1. संस्कृति की प्रवृत्ति महाफल देने वाली होती है। सांस्कृतिक कार्य के छोटे-से बीज से बहुत फल देने वाला बड़ा वृक्ष बन जाता है। सांस्कृतिक कार्य कल्पवृक्ष की तरह फलदायी होते हैं। अपने ही जीवन की उन्नति, विकास और आनंद के लिए हमें अपनी संस्कृति की सुधि लेनी चाहिए। आर्थिक कार्यक्रम जितने आवश्यक हैं, उनसे कम महत्त्व संस्कृति-संबंधी कार्यों का नहीं है। दोनों एक ही रथ के दो पहिए हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं, एक के बिना दूसरे की कुशल नहीं रहती। जो उन्नत देश हैं, वे दोनों कार्यों को एक साथ संभालते हैं। वस्तुतः उन्नति करने का यही मार्ग है। मन को भुलाकर केवल शरीर की रक्षा पर्याप्त नहीं है।

शब्दार्थ-प्रवृत्ति-मन का किसी विषय की ओर झुकाव। कल्पवृक्ष इच्छा पूरी करने वाला वृक्ष। सुधि खबर। उन्नत-श्रेष्ठ, संपन्न। वस्तुतः वास्तव में। पर्याप्त काफी।

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित निबंधकार डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल लिखित निबंध ‘संस्कृति का स्वरूप’ से है।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में निबंधकार ने संस्कृति की प्रवृत्ति क्या होती है, इस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-संस्कृति का किसी खास विषय की ओर झुकाव निश्चय ही सुखद और पुष्यदायक फल को प्रदान करने वाली होती है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि संस्कृति के द्वारा जो भी काम, चाहे वे कितने भी छोटे-छोटे क्यों न हों, वे सभी-के-सभी उस बीज की तरह होते हैं, जिससे कुछ समय बाद कोई बड़ा और शक्तिशाली पेड़ देखते-देखते तैयार हो जाता है। वह वास्तव में कल्पवृक्ष के समान सर्वाधिक आनंददायक और इच्छाओं को पूरा करने वाला होता है। इसलिए हमें अपने जीवन के विकास-सुख आनंद आदि की प्राप्ति के लिए अपनी-अपनी संस्कृति को याद करके उसे अपनाना चाहिए। यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है कि जिस प्रकार आर्थिक कार्यक्रम हमारे जीवन के विकास, सुख और आनंद की प्राप्ति के लिए बहुत जरूरी है, उतने ही संस्कृति से संबंधित कार्यक्रम भी। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम एक रथ के दो पहिए होने के कारण समान रूप से उपयोगी हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं; अर्थात एक का दूसरे के बिना कोई महत्त्व और प्रभाव नहीं है। सचमुच में जीवन में सुख-शांति, चैन, आनंद और विकास करने का यही तरीका है। यही एक रास्ता है। यह ध्यान रहे कि अगर हम मन को भुलाकर केवल शारीरिक रक्षा करते हैं, तो इससे हमें जीवन के सुख-आनंद आदि की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

विशेष-
1. संस्कृति की प्रवृत्ति का महत्त्व बतलाया गया है।
2. आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम को जीवन विकास के आधार कहे गए हैं।
3. एक ही रथ के दो पहिए हैं’ उपमा आकर्षक है।

अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संस्कृति की क्या विशेषता है? उत्तर-संस्कृति महाफल देने वाला कल्पवृक्ष है। प्रश्न 2. कौन दो एक ही रथ के पहिए हैं और क्यों?
उत्तर-
आर्थिक कार्यक्रम और संस्कृति संबंधी कार्यक्रम ये दोनों एक ही रथ के पहिए हैं। यह इसलिए ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, अर्थात् एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल पाता है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश में निबंधकार ने संस्कृति के स्वरूप को बतलाना चाहिए। निबंधकार के अनुसार संस्कृति महाफल प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष के समान है। इसलिए अगर हमें अपना जीवन-विकास करना है और आनंद की प्राप्ति करनी है तो हमें अपनी संस्कृति को अपनाना होगा। इसके लिए हमें आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों कार्यक्रम साथ ही चलाने होंगे।

2. यों तो संसार में अनेक स्त्रियाँ और पुरुष हैं, पर एक जन्म में जो हमारे माता-पिता बनते हैं उनके गुण हममें आते हैं और उन्हीं को हम अपनाते हैं। ऐसे ही संस्कृति का संबंध है, वह सच्चे अर्थों में हमारी धात्री होती है। इस दृष्टि से वह संस्कृति हमारे मन का मन, प्राणों का प्राण और शरीर का शरीर होती है। इसका यह अर्थ नहीं कि हम अपने विचारों को किसी प्रकार संकुचित कर लेते हैं। सच तो यह है कि जितना अधिक हम एक संस्कृति के मर्म को अपनाते हैं उतने ही ऊँचे उठकर हमारा व्यक्तित्व संसार के दूसरे मनुष्यों, धर्मों, विचारधाराओं और संस्कृतियों से मिलने और उन्हें जानने के लिए समर्थ और अभिलाषी बनता है।

शब्दार्थ-धात्री=धारण करने वाली। संकुचित छोटा। समर्थ=योग्य। अभिलाषी इच्छुक।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में निबंधकार ने संस्कृति के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि संसार में अनेक प्रकार के नर-नारी हैं। उनके गुण-धर्म भी अलग-अलग हैं। उन सभी से हमारा संबंध न होकर अपने माता-पिता से बनते हैं। हमारे ये संबंध बड़ी गहराई में होते हैं। इसलिए उनके गुण-धर्म हमें प्रभावित करते हैं और हम उन्हें अपनाते हैं। यही संबंध संस्कृति का भी होता है। वह वास्तव में हमें धारण करती है। इससे हमारा मन, हमारे प्राण और हमारा शरीर संस्कृति के ही अनुरूप बन कर रह जाता है। उसका यह अर्थ नहीं लेना चाहिए कि हमारी सोच-समझ को संस्कृति बदल देती है और अपने अनुरूप ढाल लेती है। इससे हटकर सच्चाई तो यह है कि जब हम एक संस्कृति को अच्छी तरह से अपना लेते हैं और उससे प्रभावित हो जाते हैं, तब हम दूसरी संस्कृतियों के स्वरूप, गुण, धर्म, प्रभाव आदि को जानने और समझने को लालायित होने लगते हैं। फिर इसकी पूर्ति के लिए प्रयत्नशील हो उठते हैं। कहने का भाव यह है कि हम एक संस्कृति को विधिवत जानकर-समझकर और उसके गुण-धर्म को अपनाकर ही दूसरे मनुष्यों, धर्मों, विचारधाराओं आदि को जानने-समझने के योग्य हो सकते हैं।

विशेष-
1. एक संस्कृति को अपनाकर ही दूसरी संस्कृति को समझने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
2. भाषा में प्रभाव और प्रवाह है।
3. शब्द-विधान ऊँचे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संस्कृति का संबंध कैसा होता है?
उत्तर-
संस्कृति का सबंध माता-पिता के समान होता है।

प्रश्न 2.
संस्कृति क्या है?
उत्तर-
संस्कृति हमारी धात्री है।

प्रश्न 3.
हमारा व्यक्तित्व कब और ऊँचा उठ जाता है?
उत्तर-
जब हम एक संस्कृति को अधिक-से-अधिक अपनाने लगते हैं, तब हमारा व्यक्तित्व और ऊँचा उठ जाता है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश के द्वारा निबंधकार ने संस्कृति के अर्थ और उसके प्रभाव को स्पष्ट करना चाहा है। इस दृष्टि से उसने संस्कृति के संबंध को माता-पिता के समान बतलाते हुए धात्री कहा है। उसका यह मानना है कि एक संस्कृति को अधिक-सेअधिक अपनाकर ही अपने व्यक्तित्व को और अधिक ऊँचा उठा सकते हैं।

3. संस्कृति जीवन के लिए परम आवश्यक है। राजनीति की साधना उसका केवल एक अंग है। संस्कृति राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों को अपने में पचाकर इन दोनों से विस्तृत मानव मन को जन्म देती है। राजनीति में स्थायी रक्त-संचार केवल संस्कृति के प्रचार, ज्ञान और साधना से संभव है। संस्कृति जीवन के वृक्ष का संवर्धन करने वाला रस है। राजनीति के क्षेत्र में तो उसके इने-गिने पत्ते ही देखने में आते हैं अथवा यों कहें कि राजनीति केवल पथ की साधना है, संस्कृति उस पथ का साध्य

शब्दार्थ-परम=बहुत। पचाकर रखकर। विस्तृत फैले हुए। संवर्धन बढ़ाने। इने-गिने=कुछ ही। साध्य=जिसे प्राप्त किया जाए।

संदर्भ-पूर्ववत्

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में निबंधकार ने संस्कृति और राजनीति के अलग स्वरूपों। का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-संस्कृति और राजनीति में अंतर है। संस्कृति जीवन की बहुत बड़ी आवश्यकता है। लेकिन राजनीति नहीं। राजनीति की साधना उसका मात्र एक अंग है। संस्कृति की शक्ति राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों से बड़ी है। फलस्वरूप राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों को ही अपने अधीन कर रखने की क्षमता संस्कृति में होती है। इससे संस्कृति इन दोनों से मनुष्य के मन का विस्तार करती है। स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि संस्कृति के प्रचार, ज्ञान और साधना से राजनीति में स्थायी रक्त-संचार संभव है। इस प्रकार संस्कृति का महत्त्व जीवन को विस्तृत और विकसित करने वाले वृक्ष का संवर्धन वाला रस है। राजनीतिक धरातल पर उसके प्रभाव बहुत कम दिखाई देते हैं। यह भी हम कह सकते हैं कि राजनीति ही साधना पथ और संस्कृति उसका साध्य है।

विशेष-
1. राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र से अधिक प्रभावशाली और शक्तिशाली संस्कृति को सिद्ध किया गया है।
2. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।
3. भाषा-शैली सरल और सुबोध है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संस्कृति जीवन के लिए क्यों परमावश्यक है?
उत्तर-
संस्कृति जीवन के लिए परमावश्यक है। यह इसलिए कि यह जीवन के वृक्ष का संवर्धन करनेवाला रस है।

प्रश्न 2.
जीवन के पथ की साधना और साध्य किसे कहा गया है?
उत्तर-
राजनीति को जीवन के पथ की साधना और संस्कृति को साध्य कहा गया है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का आशय लिखिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश के द्वारा निबंधकार ने संस्कृति की अत्यधिक आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है कि यह जीवन की बहुत बड़ी आवश्यकता है। हालाँकि राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों ही जीवन के लिए आवश्यक हैं, लेकिन संस्कृति इन दोनों से कहीं अधिक। इसलिए संस्कृति को जीवन के वृक्ष का संवर्धन करने वाला रस कहा गया है। इसलिए राजनीति जीवन-पथ की साधना है तो संस्कृति साध्य है।

4. इस देश की संस्कृति की धारा अति प्राचीन काल से बहती आई है। हम उसका सम्मान करते हैं, किंतु उसके प्राणवत तत्त्व को अपनाकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। उसका जो जड़ भाग है, उस गुरूतर बोझ को यदि हम ढोना चाहें तो हमारी गति में अड़चन उत्पन्न हो सकती है। निरंतर गति मानव-जीवन का वरदान है। व्यक्ति हो या राष्ट्र, जो एक पड़ाव पर टिका रहता है, उसका जीवन भी ढलने लगता है। इसलिए ‘चरैवेति चरैवेति’ की धुन जब तक राष्ट्र के रथ-चक्रों में गूंजती रहती है तभी तक प्रगति और उन्नति होती है, अन्यथा प्रकाश और प्राणवायु के कपाट बंद हो जाते हैं और जीवन सँध जाता है। हमें जागरूक रहना चाहिए, ऐसा न हो कि हमारा मन परकोटा खींचकर आत्म-रक्षा की साध करने लगे।

शब्दार्थ-अति अत्यंत।प्राणवत प्राण के समान। गुरुतर=भारी।अड़चन रुकावट। चरैवेति-चरैवेति-चलते रहो, चलते रहो। कपाट-दरवाजे। सँध रुक। जागरूक-सावधान। परकोटा किले की रक्षा के लिए उसके चारों ओर बनाई हुई दीवार।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में निबंधकार ने भारत देश की संस्कृति की मजबूती का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-भारत देश की संस्कृति और देशों की संस्कृति से अलग है और महान/ है। यह इसलिए कि इस देश की संस्कृति बहुत पुरानी है। सभी देशवासी इसमें डुबकी लगाते हुए नहीं अघाते हैं। यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है कि इसे अपनाते समय इसके मूल रूप की ही ओर हमारा प्रयास हो! इससे हमारा जीवन-विकास हो सकता है। हम सुखमय जीवन बिता सकते हैं। अगर हम यह ध्यान नहीं देंगे और संस्कृति के जड़तत्त्व को अपनाने लगेंगे तो हमारे जीवन-विकास में कठिनाइयाँ आने लगेंगी। इसलिए हम इसके जड़तत्त्व को भूलकर इसके चेतन तल को अपनाना चाहिए, जिससे गतिशील जीवन-पथ पर बढ़ सकें। ऐसा इसलिए कि गतिशील जीवन ही वरदानस्वरूप होता है। एक ही जगह पर टिके रहने वाले देश-व्यक्ति जीवन-विकास से कोसों दूर चला जाता है। इसलिए जब तक ‘चलते रहो, चलते रहो’ की गूंज हृदय में नहीं गूंजती रहेगी, जब तक जीवन-विकास का रथ-चक्र नहीं रुक सकता है। अगर इस प्रकार की गूंज हृदय में नहीं गूंजती तो आनंद-प्रकाश टिमटिमाने लगेगा और जीवनी-शक्ति के द्वार बंद होने लगेंगे। फलस्वरूप जीवन-क्रम ठप्प पड़ जाता है। इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए कि हम हर समय सावधान रहें, ताकि हमारा मन पर कोटा न खींचकर आत्म-रक्षा की साध लेने लगे।

विशेष-
1. भारत देश की संस्कृति की विशेषता बतलायी गयी है।
2. ‘चरैवेति, चरैवेति’ सूक्ति का सटीक प्रयोग है।
3. यह अंश उपदेशात्मक है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हमारे देश की संस्कृति क्या है? उत्तर-हमारे देश की संस्कृति बहुत ही पुरानी है। प्रश्न 2. मानव जीवन का वरदान-अभिशाप क्या है?
उत्तर-
निरंतर गति मानव जीवन का वरदान है और एक पड़ाव पर टिका रहना अभिशाप है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश के माध्यम से निबंधकार ने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को कई प्रकार से रेखांकित करने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में उसने यह स्पष्ट करना चाहा है कि संस्कृति के प्राणतत्त्व को अपनाकर हम आगे बढ़ सकते हैं न कि उसके जड़ भाग के गुरुतर बोझ को। दूसरी बात यह कि चलते रहो, चलते रहो, की गूंज से प्रगति की रफ्तार बढ़ती है।

5. “मनुष्यों के चरित्र मनुष्यों के कारण स्वयं मनुष्यों द्वारा ही निश्चित किए गए थे। यदि कोई बुद्धि का आलसी या विचारों का दरिद्री बनकर हाथ में पतवार लेता है तो वह कभी उन चरित्र का पार नहीं पा सकता, जो अथाह है और जिनका अंत नहीं। जिस प्रकार हम अपने मत को पक्का समझते हैं वैसे ही दूसरों का मत भी तो हो सकता है। दोनों में से किसकी बात कही जाए? इसलिए दुराग्रह को छोड़कर परीक्षा की कसौटी पर प्रत्येक वस्तु को कसकर देखना चाहिए।”

शब्दार्थ-पतवार=सहारा। अथाह जिसका थाह न हो। मत विचार। दुराग्रह-हठ।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में निबंधकार ने मनुष्य के चरित्र-कर्म के बारे में बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-मनुष्यों के चरित्र मनुष्यों के ही द्वारा निश्चित और बनाए गए थे। इस प्रकार के चरित्र मनुष्य की शक्ति, इच्छा और साधन पर निर्भर रहे हैं। उस विषय में यहाँ यह कहना है कि कमजोर चरित्र कमजोर ही फल देता है। इसके लिए बहुत हद तक कमजोर साधन भी दोषी कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई बुद्धि का सहारा न लेकर या दृढ़ विचार न करके काम आरंभ करता है। उसमें उसे कोई सफलता नहीं मिल सकती है। दूसरी बात यह है कि अपनी विचारधाओं के सामने हमें किसी की विचारधारा को हीन या कम नहीं समझना चाहिए। यह इसलिए कि शायद हमारी यह सोच-समझ सही न हो। दूसरे शब्दों में, यह कि हमारी विचारधारा दूसरे की विचारधारा से कम है या वह भी वैसी ही है। इसलिए हमें अपनी ही सोच-समझ पर नहीं अड़े रहना चाहिए। दूसरों की भी सोच-समझ की परख करनी चाहिए।

विशेष-
1. समान विचारधारा की ओर बल दिया गया है।
2. भाषा-शैली सरल है।
3. यह अंश उपदेशात्मक है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसके चरित्र किसके द्वारा निश्चित किए गए हैं? उत्तर-मनुष्यों के चरित्र मनुष्यों द्वारा ही निश्चित किए गए हैं। प्रश्न 2. अथाह और अंतहीन चरित्रों का पार कौन पा सकता है?
उत्तर-
बुद्धि सम्पन्न तत्पर और विचारपूर्ण कर्मठ व्यक्ति ही अथाह और अंतहीन चरित्रों का पार पा सकता है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश के द्वारा निबंधकार ने यह आशय स्पष्ट करना चाहा है कि मनुष्य ही मनुष्य का चरित्र-निर्माता है। दूसरी बात यह कि मनुष्य के चरित्र को मनुष्य अपनी बुद्धि की क्षमता-संपन्न को कार्यरूप में ढालकर ही पूरी तरह से समझ सकता है। तीसरी बात यह कि स्वयं की तरह हमें औरों के भी मत को महत्त्व देना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि बिना किसी दुराग्रह के विचारों को परीक्षा की कसौटी पर कसना चाहिए।

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा

नीति-धारा अभ्यास

बोध प्रश्न

नीति-धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए?
उत्तर:
गिरिधर के अनुसार हमें बीती हुई बातों को भूल जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है?
उत्तर:
कोयल को उसकी मीठी वाणी के गुण के कारण पसन्द किया जाता है।

प्रश्न 3.
गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम लिखिए।
उत्तर:
गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम ‘कुण्डलियाँ’ है।

प्रश्न 4.
व्यक्ति सम्मान योग्य कब बन जाता है?
उत्तर:
व्यक्ति जब परोपकार की भावना से कार्य करता है तो वह सम्मान के योग्य बन जाता है।

प्रश्न 5.
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण आपस में बैर और फूट की भावना का होना है।

नीति-धारा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को कब तक प्रकट नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को तब तक प्रकट नहीं करना चाहिए जब तक कि किसी कार्य में सफलता न मिल जाए।

प्रश्न 2.
धन-दौलत का अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
धन-दौलत का अभिमान इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन-दौलत सदा एक के साथ नहीं रहती है, अपितु यह चंचल एवं स्थान बदलने वाली है।

प्रश्न 3.
कवि ने गुणवान के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है?
उत्तर:
कवि ने गुणवान के महत्त्व को इस प्रकार रेखांकित किया है कि गणी व्यक्ति के चाहने वाले हजारों व्यक्ति मिल जाते हैं पर निर्गुण का साथ तो घरवाले भी नहीं दे पाते।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह क्यों दी है?
उत्तर:
भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह है इसलिए दी है कि कोरे ज्ञान से कोई काम या व्यापार चल नहीं सकता है। इनको चलाने के लिए उनमें डूबना पड़ता है।

प्रश्न 5.
सम्माननीय होने के लिए किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
सम्माननीय होने के लिए व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए; कोरे पद से काम नहीं चलता है।

प्रश्न 6.
‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय यह कि तुम विश्राम त्यागकर उस निर्गुण निराकर ईश्वर को पूरी तरह अपना लो।

नीति-धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है? समझाइए।
उत्तर:
जो व्यक्ति बिना विचारे अपना कोई काम करता है, तो उस काम में उसे सफलता नहीं मिलती है। इससे जहाँ उसका काम बिगड़ जाता है वहीं संसार में उसकी हँसी भी उड़ती है।

प्रश्न 2.
कौआ और कोयल के उदाहरण से कवि जो सन्देश देना चाहता है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कौआ और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि यह सन्देश देना चाहता है कि संसार में व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके रूप-रंग से नहीं अपितु गुणों से होती है।

प्रश्न 3.
पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी क्या सन्देश देना चाहते हैं?
उत्तर:
पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि किसी भी देश की उन्नति उसकी मातृ भाषा के विकास द्वारा ही सम्भव है।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्य प्रतिभा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहु आयामी रचनाकार हैं। उन्होंने नाटक, काव्य, निबन्ध आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलाई है। वे समाजोन्मुखी चिन्तक कवि हैं, इसलिए उनकी कविताओं में नीति कथन सर्वत्र मिलते हैं। आपने परोपकार एवं एकता को विशेष महत्त्व प्रदान किया है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(अ) बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय।
………………………….          ……………………..
…………………………..         ………………………
खटकत है जिय माँहि, कियौ जो बिना विचारे॥
उत्तर:
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और – विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है, वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है, दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है, वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना, सम्मान, राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।

(ब) गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय।
……………………          ……………………..
……………………         ……………………….
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
उत्तर:
कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं, निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।

(स) मान्य योग्य नहिं होत, कोऊ कोरो पद पाए।
मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए॥
उत्तर:
कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है, जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।

(द) बैर फूट ही सों भयो, सब भारत को नास।
तबहुँन छाड़त याहि सब, बँधे मोह के फाँस॥
उत्तर:
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश, भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।

नीति-धारा काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
‘उल्लाला’ को परिभाषित करते हुए उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
‘उल्लाला’-परिभाषा-उल्लाला एक मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 15-15 मात्राएँ और दूसरे एवं चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण :
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥

नीति-धारा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीति-धारा बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए?
(क) कल की बात
(ख) बरसों की बातें
(ग) आज की बात
(घ) बीती हुई बातें।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 2.
कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है?
(क) रंग
(ख) आकृति
(ग) नृत्य
(घ) मधुर बोली।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 3.
भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है?
(क) अन्धविश्वास
(ख) अज्ञानता
(ग) विद्या की कमी
(घ) बैर-फूट।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

प्रश्न 4.
बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है?
(क) धन की
(ख) मर्यादा की
(ग) मान की
(घ) पछताना पड़ता है।
उत्तर:
(घ) बीती हुई बातें।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. सम्पत्ति के बढ़ने पर …………. नहीं करना चाहिए।
  2. गिरिधर कवि ने कहा है कि हमें अपने किये …………. ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए।
  3. भारतेन्दु जी ने भारत के विकास के लिए भारतवासियों को ………… छोड़ने को कहा।
  4. ‘बैर-फूट ही सों भयो सब भारत को ……….. ।
  5. नीतिकाव्य जीवन-व्यवहार को ………. बनाने का आधार है। (2016)

उत्तर:

  1. अभिमान
  2. कामों का
  3. बैर-भाव
  4. नाश
  5. सुगम

सत्य/असत्य

  1. गिरिधर के अनुसार हमें बीती बातें भूल जानी चाहिए।
  2. दौलत पाकर व्यक्ति को सदैव अभिमान करना चाहिए।
  3. ‘कोकिल वायस एक सम पण्डित मूरख एक।’ यह पंक्ति गिरिधर कवि की कुण्डलियों में
  4. भारतेन्दु जी ने भाषा के द्वारा राष्ट्र की उन्नति व एकता बतायी है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा img-1
उत्तर:
1. → (घ)
2. → (ग)
3. → (ख)
4. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. बिना विचारे कार्य करने से क्या होता है? (2009, 17)
  2. काग और कोकिल में से किसका शब्द सुहावना लगता है?
  3. “कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।
    तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥” दोहा किस कवि का है?
  4. गिरिधर कवि किस प्रकार के रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं? (2009)

उत्तर:

  1. पछताना पड़ता है
  2. कोकिल का
  3. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  4. नीतिकाव्य के रचनाकार।

गिरिधर की कुण्डलियाँ भाव सारांश

गिरिधर की कुण्डलियों में नीति के उपदेश देते हुए कहा गया है कि मनुष्य को बीती बातें भुलाकर भविष्य के विषय में विचार करना चाहिए। मनुष्य को अपना कार्य सम्पन्न होने से पूर्व किसी को नहीं बतलाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना सोच-विचार के कार्य करता है उसके पास पछताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता। धन पाकर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने अन्दर गुणों का संग्रह करना चाहिए। इस संसार में गुणवान को सम्मान मिलता है और गुणहीन व्यक्ति उपेक्षा और तिरस्कार का पात्र बनता है।

गिरिधर की कुण्डलियाँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) बीती ताहि विसार दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ॥
ताही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोइ, चित्त में खता न पावै॥
कह गिरिधर कविराय, यहै करु मन-परतीती।
आगे की सुख समुझि, हो बीती सो बीती॥

शब्दार्थ :
बीती = जो बात हो गयी है। ताहि = उसी को। विसारि दे = भूल जाओ। सुधि लेइ = ध्यान में रखो। सहज = सरल रूप में। चित्त देइ = मन लगाओ। दुर्जन = दुष्ट लोग। खता = गलती, भूल। परतीती = प्रतीति, विश्वास। बीती सो बीती = जो बीत गई सो बीत गई।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित ‘गिरिधर की कुण्डलियाँ’ से ली गई है।

प्रसंग :
इसमें कवि ने व्यावहारिक जीवन की यह बात बताई है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो बीती हुई बात को भुलाकर आगे के लिए सचेत रहता है।

व्याख्या :
गिरिधर कवि जी कहते हैं हे मनुष्यो! जो बात घटित हो चुकी है उसके बारे में व्यर्थ में सोच-विचार कर समय को बर्बाद मत करो। तुम आगे होनी वाली बातों या घटनाओं की चिन्ता करो जो कुछ भी तुमसे सहज, सरल रूप में बन जाये उसी में अपना मन लगाओ। ऐसा करने पर कोई भी दुष्ट व्यक्ति तुम्हारी बातों की हँसी नहीं उड़ाएगा और न ही तुम्हारे मन में कोई खोट रहेगा।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुम अपने मन में यह विश्वास रखो कि आने वाली बातों या घटनाओं में तुम पूरी सावधानी बरतो और जो हो गई, सो हो गई।

विशेष :

  1. कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।
  2. अवधी भाषा का प्रयोग।
  3. कुण्डलियाँ-छन्द।

(2) साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोई।
तब लग मन में राखिए, जब लग कराज होइ॥
जब लम कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए।
दुरजन हँसे न कोई, आप सियरे है रहिए॥
कह गिरिधर कविराय, बात चतुरन की ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहिं साईं॥

शब्दार्थ :
साईं = मित्र। तब लग = तब तक। जब लग = जब तक। कारज न होइ = काम में सफलता प्राप्त न हो जाए। दुरजन = दुष्ट लोग। सियरे = शीतल, प्रसन्न। खै रहिए = होकर – रहिए। करतूती = काम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने मनुष्यों को शिक्षा दी है कि यदि आप कोई काम करने की योजना बनाते हैं तो उसे प्रारम्भ करने से पूर्व जग जाहिर मत करो। नहीं तो दुष्ट लोग तुम्हारे उस – शुभ कार्य में बाधा डालेंगे।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे मित्र! अपने मन की बात भूलकर भी किसी दूसरे से मत कहो। उस बात को अपने – मन में तब तक दाब कर रखो जब तक कि आपका काम न हो जाए। जब तक आपका काम नहीं होता, भूल कर भी किसी से मत कहो। यह ऐसी नीति है कि इसमें दुर्जन लोगों को हँसी उड़ाने – का अवसर नहीं मिलेगा और स्वयं आपके चित्त को शान्ति एवं आनन्द मिलेगा।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि यह बात मैंने चतुर लोगों के लिए कही है। हे मित्र! तुम अपने मुँह से कोई बात मत कहो। तुम्हारे काम स्वयं तुम्हारी बात को सबसे कह देंगे।

विशेष :

  1. कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. छन्द-कुण्डलियाँ।

(3) बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सनमान, राग-रंग मनहिं न भावै॥
कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।

शब्दार्थ :
बिना विचारे = बिना सोचे-समझे। बिगारे = बिगाड़ना। जग = संसार में। होत हँसाय = हँसी उड़ती है। चैन = शान्ति। टरत नटारे = टालने पर भी नहीं टलता है, भागता है। माँहि = में।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि कहता है कि मनुष्य को बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।

व्याख्या :
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और – विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है, वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है, दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है, वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना, सम्मान, राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।

विशेष :

  1. ‘टरत न टारे’ मुहावरे का सुन्दर प्रयोग।
  2. अवधी-भाषा।
  3. कुण्डलियाँ-छन्द।

(4) दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाउँ न रहत निदान॥
ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसि दिन चारि, रहत सबही के दौलत॥

शब्दार्थ :
दौलत = धन सम्पत्ति। अभिमान = घमण्ड। चंचल जल = बहते हुए पानी के समान। दिन चारि को = चार दिन को अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए। ठाउँ न रहत निदान = एक स्थान पर सदा रुकी नहीं रहती है। जियत = जब तक जीवित हो। जस = यश। विनय = विनम्रता। घट तौलत = घट-घट को तौलने वाली, हर मनुष्य को परखने वाली। पाहुन = अतिथि, मेहमान।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने धन के ऊपर गर्व न करने की मनुष्य को सलाह दी है।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे संसार के मनुष्यो! धन-दौलत पाकर सपने में भी घमण्ड मत करो। यह धन-दौलत जल के समान चंचल है अर्थात् यह कभी भी एक स्थान पर टिककर नहीं रहती है। चार दिन के लिए अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए यह किसी व्यक्ति के पास रहती है। स्थायी रूप से यह किसी व्यक्ति के पास नहीं रहती है। इसीलिए विद्वानों ने इसे चंचला कहा है। हे मनुष्यो! संसार में आये हो तो ऐसे काम करो जिससे जीवन में यश मिले। सभी से मीठे वचन बोलो तथा सभी के साथ विनम्रता से मिलो।
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि दौलत मनुष्यों को तौलती फिरती है। यह केवल चार दिन के लिए अर्थात् थोड़े समय के लिए ही किसी के घर मेहमान बनकर आती है।

विशेष :

  1. धन पर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए।
  2. दिन चारि, ठाउँ न रहत निदान, सब घट तौलत आदि मुहावरों का सुन्दर प्रयोग।
  3. भाषा-अवधी।

(5) गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥

शब्दार्थ :
गुण = गुणों के। सहस नर = हजारों आदमी। लहै = प्राप्त करना। अपावन = अपवित्र।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि कहता है कि संसार में गुणों का ही महत्त्व है; बिना गुण के कोई किसी को नहीं पूछता है।

व्याख्या :
कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।

गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं, निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।

विशेष :

  1. कवि ने मनुष्यों को गुणों को ग्रहण करने का सन्देश दिया है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. छन्द-कुण्डलियाँ।

नीति अष्टक भाव सारांश

नीति अष्टक दोहों में बतलाया गया है कि वही व्यक्ति इस संसार में माननीय है जो दूसरों के कल्याण के लिए जीवन जीता है। भारत देश का विनाश लोगों की बैर भावना के कारण ही हुआ। इसलिए इसे मन से निकाल देना चाहिए। अपनी भाषा, अपने धर्म,अपने कर्म पर हमें गर्व होना चाहिए। उस बुरे देश में किसी को निवास नहीं करना चाहिए जहाँ मूर्ख और विद्वान सबको एक ही भाँति का समझा जाता हो।

नीति अष्टक संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र मान्य योग्य नहीं होत, कोऊ कोरो पद पाए।
मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए॥ (1)

शब्दार्थ :
मान्य योग्य = सम्मान के योग्य। होत = होता है। कोरो पद = केवल पद पाने से। परहित = परोपकार में।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘नीति’ अष्टक’ शीर्षक से लिया गया है।

प्रसंग :
इसमें कवि ने बताया है कि जो व्यक्ति परोपकार में रत रहते हैं, समाज उन्हीं का आदर करता है।

व्याख्या :
कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है, जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।

विशेष :

  1. कवि की दृष्टि में केवल परोपकार भावना में रत व्यक्ति ही समाज में सम्मान पाता है, न कि पद से।
  2. दोहा-छन्द।

बिना एक जिय के भए, चलिहैं अब नहिं काम।
तासों कोरो ज्ञान तजि, उठहु छोड़ि बिसराम॥ (2)

शब्दार्थ :
एक जिय = एक रूप हुए। कोरो ज्ञान = केवल ज्ञान, समर्पण नहीं। विसराम = आराम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि कहता है कि जब तक ईश्वर के प्रति पूर्ण सेमर्पण नहीं होगा, जीव का उद्धार नहीं होगा।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्द जी कहते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण भाव से समर्पण किए बिना अब काम चलने वाला नहीं है। अतः कोरे ज्ञान को त्यागकर, विश्राम त्यागकर उठ खड़े हो
और ईश्वर में पूर्ण समर्पण कर दो।

विशेष :

  1. कवि ने ईश्वर भक्ति की सफलता, पूर्ण समर्पण में मानी है।
  2. दोहा-छन्द।

बैर फूट ही सों भयो, सब भारत को नास।
तबहुँ न छाड़त याहि सब, बँधे मोह के फाँस॥ (3)

शब्दार्थ :
बैर फूट = परस्पर शत्रुता और भेद की भावना। नास = नाश। फाँस = फन्दे में।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने भारतवासियों से आपसी बैर तथा फूट को छोड़ने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश, भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।

विशेष :

  1. कवि ने बैर, फूट आदि बुराइयों को दूर कर आपसी मेल-मिलाप की बात कही है।
  2. दोहा-छन्द।

कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।
तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥ (4)

शब्दार्थ :
कोरी बातन = व्यर्थ की बातों से। नाहिन = नहीं। मीत = मित्र। बेग = जल्दी। परस्पर = आपस में। प्रीत = प्रेम।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि परस्पर प्रेम की शिक्षा देता है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे मित्र! केवल व्यर्थ की बातों में अब काम नहीं बनेगा। इस कारण से उठो और आपस में प्रेम का व्यवहार करो।

विशेष :

  1. कवि ने परस्पर प्रेम बढ़ाने की बात कही है।
  2. दोहा-छन्द।

निज भाषा, निज धरम, निज मान करम ब्यौहार।
सबै बढ़ावहु वेगि मिलि, कहत पुकार-पुकार॥ (5)

शब्दार्थ :
निज = अपनी। धरम = धर्म। मान = इज्जत। करम = कर्म। ब्यौहार = व्यवहार। बेगि = जल्दी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने अपनी भाषा, धर्म, मान, कर्म और व्यवहार को परस्पर बढ़ाने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि अपनी भाषा, धर्म, मान, कर्म और व्यवहार से सब काम बनता है। अतः मैं बार-बार पुकार कर कहता हूँ कि आप लोग इन्हीं सब बातों को परस्पर मिलकर बढ़ाओ।

विशेष :

  1. कवि ने अपनी भाषा, धर्म, कर्म और व्यवहार अपनाने का सन्देश दिया है।
  2. दोहा-छन्द।

करहँ विलम्ब न भ्रात अब, उठहु मिटावहु सूल।
निज भाषा उन्नति करहु प्रथम जो सबको मूल।। (6)

शब्दार्थ :
विलम्ब = देरी। भ्रात = भाई। सूल = कष्ट, दुःख, बाधाएँ। मूल = आधार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
निज भाषा हिन्दी की उन्नति के लिए कवि ने भारतीयों को जगाया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे भारतवासी भाइयो! अब देर मत करो और अपनी भाषा की उन्नति में आने वाली सभी बाधाओं को मिटा दो। तुम सब मिलकर अपनी हिन्दी भाषा की उन्नति का प्रयास करो, जो कि सबका मूल आधार है।

विशेष :

  1. भारतेन्दु जी का निज भाषा अर्थात् हिन्दी की उन्नति के प्रति विशेष प्रयास रहा है।
  2. दोहा-छन्द।

सेत-सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देश कुदेस में, कबहुँ न कीजै बास।। (7)

शब्दार्थ :
सेत-सेत = सफेद-सफेद। कुदेस = बुरे देश में। बास = निवास।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इसमें कवि ने मूों के देश में न रहने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में रहने वाले नागरिकों में बुद्धि विवेक नहीं होता है और जो सफेद रंग की सभी वस्तुओं को एक जैसा ही समझते हैं; चाहे सफेद कपूर हो या फिर सफेद कपास। कवि कहता है कि ऐसे मूल् के देश में बुद्धिमान आदमी को कभी निवास नहीं करना चाहिए।

विशेष :

  1. कवि अज्ञानी एवं मूों के देश में रहने को बुरा बताता है।
  2. दोहा-छन्द।

कोकिल वायस एक सम, पण्डित मूरख एक।
इन्द्रायन दाडिम विषय, जहाँ न नेक विवेक॥ (8)

शब्दार्थ :
कोकिल = कोयल। वायस = कौआ।, एक सम = एक जैसे। इन्द्रायन = एक प्रकार का कड़वा फल। दाडिम = अनार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस दोहे में कवि मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहने को बुरा बता रहा है।

व्याख्या :
कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में कोयल और कौवे में, पण्डित और मूर्ख में, अनार (मीठे फल) और इन्द्रायन (कड़वे फल) में अन्तर नहीं जाना जाता है और जहाँ पर न नेक (उचित बात) और ज्ञान की बात कही जाती है, उस देश में भूलकर भी नहीं रहना चाहिए।

विशेष :

  1. मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहना कवि उचित नहीं मानता है।
  2. दोहा-छन्द

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 8 मातृभूमि का मान

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 8 मातृभूमि का मान (एकांकी, हरिकृष्ण प्रेमी)

मातृभूमि का मान अभ्यास

बोध प्रश्न

मातृभूमि का मान अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Mathrubhumi Ka Maan Kisne Rakha MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन क्यों नहीं रहना चाहते?
उत्तर:
बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन नहीं रहना चाहते थे क्योंकि वे स्वतन्त्रता में विश्वास करते थे और किसी की भी गुलामी स्वीकार नहीं करते थे।

मातृभूमि का मान प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
मुट्ठी भर हाड़ाओं ने किसे पराजित किया था?
उत्तर:
मुट्ठी भर हाड़ाओं ने महाराणा लाखा तथा उनकी सेना को पराजित किया था।

Mathrubhumi Ka Maan Questions And Answers MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
वीर सिंह का प्राणान्त कैसे हुआ?
उत्तर:
वीर सिंह का प्राणान्त गोले के वार से हुआ।

Mathrubhumi Ka Naam Kisne Rakha MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 4.
“अनुशासन का अभाव हमारे देश के टुकड़े किये हुए है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन महाराणा लाखा के विश्वास पात्र दरबारी अभयसिंह का है।

Matra Bhumi Ka Maan Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 5.
महाराणा लाखा वीर सिंह के किस गुण से प्रसन्न हुए?
उत्तर:
महाराणा लाखा वीर सिंह की वीरता के गुण से प्रसन्न हुए।

मातृभूमि का मान लघु उत्तरीय प्रश्न

मातृभूमि पाठ का सारांश MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
महाराणा लाखा ने कौन-सी प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर:
महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

मातृभूमि का मान किसने रखा उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
चारणीने राजपूत शक्तियों के विषय में महाराणा से क्या कहा था?
उत्तर:
चारणी ने महाराणा से कहा था कि आप हाड़ा वंशजों की धृष्टता को भूल जायें और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें।

मातृभूमि का मान किसने रखा एक वाक्य में उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
वीर सिंह ने जन्मभूमि की रक्षा के विषय में अपने साथियों से क्या कहा था?
उत्तर:
वीर सिंह ने कहा कि जिस जन्मभूमि की गोद में खेलकर हम बड़े हुए हैं, उसके अपमान को हम किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकते। वीर सिंह ने अपने साथियों से कहा कि तुम अग्नि कुल के अंगारे हो। अपने वंश की शान को कमजोर मत होने देना। प्रतिज्ञा करो कि जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं, तब तक इस दुर्ग (बूंदी का नकली दुर्ग) पर हम मेवाड़ राज्य पताका को स्थापित नहीं होने देंगे।

Mathrubhumi Ka Maan Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 4.
महाराणा अपनी विजय को पराजय क्यों कहते
उत्तर:
महाराणा अपनी विजय को पराजय इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके व्यर्थ के अभिमान और विवेकहीन प्रतिज्ञा ने कितने ही निर्दोष प्राणों की बलि ले लीं थी। महाराणा को वीर सिंह जैसे देशभक्त और बहादुर युवक की मृत्यु का भी बहुत अफसोस था।

मातृभूमि का मान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Matra Bhumi Ka Maan Kisne Rakha MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
‘वीर सिंह का चरित्र मातृभूमि के सम्मान की शिक्षा देता है’ इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
वीर सिंह मेवाड़ के महाराणा लाखा के यहाँ नौकर था और बूंदी राज्य उसकी जन्मभूमि था। जब उसे पता लगता है कि महाराणा लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु बूंदी का नकली दुर्ग बनवाया है तथा उस पर चढ़ाई करके उसे मिट्टी में मिला देना चाहते हैं तो वह इस बात को सहन नहीं कर पाया। उसने अपने साथियों से कहा कि नकली बूंदी भी हमें प्राणों से अधिक प्रिय है और हम लोग अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं होने देंगे। लेकिन जब उसके साथियों ने उससे कहा कि हम महाराणा के नौकर हैं, हमारा शरीर महाराणा के नमक से बना है, अत: हमें उनके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। इस पर वीर सिंह कहता है कि जब कभी मेवाड़ की स्वतन्त्रता पर आक्रमण हुआ है, हमारी तलवार ने उनके नमक का बदला दिया है। परन्तु जब मेवाड़ और बूंदी के मान का प्रश्न आयेगा तो हम मेवाड़ की दी हुई तलवारें महाराणा के चरणों में चुपचाप रख कर विदा लेंगे और बूंदी की ओर से अपने प्राणों का बलिदान देंगे। अन्ततः वीर सिंह ने अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

प्रश्न 2.
महाराणा और अभयसिंह के चरित्र की दो-दो। विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मेवाड़ के महाराणा लाखा की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) स्वाभिमानी वीर :
चित्तौड़ के महाराणा लाखा में स्वाभिमान का भाव कूट-कूटकर भरा है। बूंदी के हाड़ा द्वारा पराजित होने पर वे अपने वंश को कलंकित अनुभव करते हैं। उस कलंक से छुटकारा पाने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं कि जब। तक मैं बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

(2) सहृदय मानव :
महाराणा लाखा बड़े सहृदय व्यक्तित्व के धनी हैं। वे अपनी प्रतिज्ञा रखने के लिए बूंदी का नकली दुर्ग बनाकर उस पर विजय प्राप्त तो करते हैं परन्तु उस किले की। रक्षा में मारे गये वीरसिंह और सिपाहियों के रक्तपात से वे द्रवित। हो उठते हैं।

मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह के चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) कुशल सेनानायक :
अभयसिंह अपने पद के अनुरूप। कार्य सम्भालने में निपुण हैं। वे महाराणा की प्रतिज्ञा रक्षा के लिए बूंदी के नकली दुर्ग की व्यवस्था तुरन्त करते हैं और सैनिकों को उस पर विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध करने को भेजते हैं। वे युद्ध का संचालन करने में भी समझदारी से काम लेते हैं।

(2) राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत :
अभयसिंह में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भरी है। वे मेवाड़ के सेनापति हैं। मेवाड़ के सम्मान को बढ़ाने का वे हर प्रयास करते हैं। वे बूंदी के राव हेमू को मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने को प्रेरित करते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(1) ये सागर से रत्न निकाले …………….. ।
………………. तोड़ मोतियों की मत माला।
उत्तर:
चारणी गीत गाते हुए महाराणा को कुछ सन्देश देते हुए कहती है कि आज राजस्थान की भूमि पर जितने भी राजा हैं, वे सब. सागर से निकाले गये श्रेष्ठ रत्न हैं और युगों से इन्हें सँभालकर रखा गया है। इनकी शक्ति एवं पराक्रम का उजाला सब ओर छाया हुआ है। अतः किसी को भी मोतियों की माला को तोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आगे चारणी कहती है कि अनेक कष्टों एवं विपत्तियों को झेलकर बड़ी मुश्किल से ये एक हुए हैं। अतः इनमें अब फूट मत डालो। इस सुन्दर मोतियों की माला को मत तोड़ो। भाव यह है कि राजस्थान के वीर राजाओं में बड़ी मुश्किल से एकता बनी है। अतः किसी भी राजा को उस एकता को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

(2) “नकली बूंदी भी प्राणों से अधिक प्रिय है …………….
…………. हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगी।”
उत्तर:
महाराणा की सेना में कुछ सैनिकं बूंदी के भी थे। बूंदी के नागरिक अपने देश की आन-बान के कट्टर पुजारी थे। जब उनको महाराणा को नकली बूंदी के किले को जीतने की योजना की जानकारी हुई तो वे लोग विद्रोह पर उतारू हो गये। उन्हीं लोगों में से एक देश भक्त वीर सिंह था। वीर सिंह ने ऐलान कर दिया कि नकली बूंदी भी बूंदी वासियों को प्राणों से अधिक प्यारी है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं होने दिया जायेगा। वह आगे कहता है कि महाराणा आज आश्चर्य के साथ देखेंगे कि नकली बूंदी को जीतने का यह कोई साधारण खेल नहीं है। यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा। कहने का अर्थ यह है कि इस नकली बूंदी को फतह करना महाराणा के लिए आसान नहीं है। आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं में घमासान युद्ध होगा और खून की नदियाँ बह जायेंगी।

(3) हम युग-युग से एक हैं और एक रहेंगे …………… वीर सिंह के बलिदान ने हमें जन्मभूमि का मान करना सिखाया है।
उत्तर:
महाराणा द्वारा नकली बूंदी के युद्ध का खेल खेले जाने पर जब वीर सिंह की मृत्यु हो गयी तो महाराणा पश्चाताप करने लगा। इसी पर राव हेमू भी राजपूतों की एकता की बात कहते हैं कि हम सभी राजपूत युगों-युगों से एक हैं और आगे भी एक रहेंगे। राव हेमू आगे कहता है कि राजपूतों में न कोई राजा है और न महाराजा। हम सब राजपूत तो देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी तलवारें अपने ही लोगों पर न उठे। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हम सभी राजपूत सूर्य के वंशज हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। वीर सिंह के त्याग ने हमें जन्मभूमि का सम्मान करना सिखाया है।

मातृभूमि का मान भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
सामासिक पदों का विग्रह कर समास लिखिए
उत्तर:

  1. राजपूत = राजा का पूत = तत्पुरुष समास।
  2. जन्मभूमि = जन्म की भूमि = तत्पुरुष समास।
  3. महाराजा = महान् राजा = कर्मधारय समास।
  4. सेनापति = सेना का पति = तत्पुरुष समास।
  5. बाण-वर्षा = वाणों की वर्षा = तत्पुरुष समास।
  6. आदर भाव = आदर का भाव = तत्पुरुष समास।

प्रश्न 2.
बहुब्रीहि समास उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
बहुब्रीहि समास-जिस समास में पूर्व एवं उत्तर पद के अतिरिक्त कोई अन्य पद प्रधान होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे-
पंचानन-पाँच मुख वाला = शिव, लम्बोदर-लम्बा है उदर जिसका = गणेश।

मातृभूमि का मान महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

मातृभूमि का मान बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मातृभूमि का मान’ कौन-सी विधा है?
(क) कहानी
(ख) निबन्ध
(ग) एकांकी
(घ) रेखाचित्र।
उत्तर:
(ग) एकांकी

प्रश्न 2.
‘मातृभूमि का मान’ एकांकी का नायक है-
(क) लाखासिंह
(ख) हेमूराव
(ग) अभयसिंह
(घ) वीरसिंह।
उत्तर:
(घ) वीरसिंह।

प्रश्न 3.
यह कथन किसका है-“जब तक बूंदी दुर्ग पर ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।”?
(क) वीरसिंह
(ख) अभयसिंह
(ग) महाराणा लाखा
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) महाराणा लाखा

प्रश्न 4.
‘मातृभूमि का मान’ एकांकी प्रेरणा देता है
(क) मातृभूमि की सेवा की
(ख) देश के लिए प्राणों को न्योछावर करने की
(ग) आन-बान की रक्षा की
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
‘मातृभूमि का मान’ में बूंदी शब्द का प्रयोग किसके लिये किया है?
(क) शहर
(ख) महल
(ग) तीर्थ स्थान
(घ) दुर्ग।
उत्तर:
(घ) दुर्ग।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. बूंदी स्वतन्त्र रहकर महाराणाओं का आदर कर सकता है, परन्तु ………….. होकर किसी की सेवा नहीं कर सकता।
  2. राणा लाखा नीमरा के मैदान में बूंदी से पराजित होने के ……………. को धोने की प्रतिज्ञा करते
  3. ये सागर से रत्न निकाले। युग-युग से हैं गये …………. ।
  4. ………….. भी मुझे प्राणों से प्रिय है।
  5. हम प्रतिज्ञा करते हैं कि प्राणों के रहते इस दुर्ग पर ………….. का ध्वज न फहरने देंगे।

उत्तर:

  1. अधीन
  2. कलंक
  3. सँभाले
  4. नकली बूंदी
  5. मेवाड़।

सत्य/असत्य

  1. वीरसिंह का चरित्र मातृभूमि के सम्मान की शिक्षा देता है। (2009)
  2. वीरसिंह ने महाराणा लाखा की अधीनता स्वीकार कर ली।
  3. “बूंदी का अपमान सरलता से नहीं किया जा सकता।” यह कथन वीरसिंह का है।
  4. “व्यर्थ के दम्भ ने आज कितने निर्दोष प्राणों की बलि ले ली।”-कथन महाराणा लाखा का है।
  5. बूंदी पर महाराणा लाखा ने असली कीर्ति-पताका फहरायी।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

Mathrubhumi Ka Maan Kisne Rakha MP Board Class 10th Hindi
उत्तर:
1. → (घ)
2. → (क)
3. → (ङ)
4. → (ग)
5. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. ‘मातृभूमि का मान’ एकांकी का प्रमुख पात्र कौन है?
  2. मेवाड़ के सेनापति कौन थे?
  3. मुट्ठी भर हाड़ाओं ने किसे पराजित किया था? (2010)
  4. वीरसिंह की मातृभूमि का क्या नाम था? (2009)
  5. ‘मातृभूमि का मान’ एकांकी के लेखक कौन हैं?
  6. मातृभूमि का मान किसने रखा? (2016)

उत्तर:

  1. वीरसिंह
  2. अभय सिंह
  3. महाराणा लाखा
  4. बूंदी
  5. हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
  6. वीरसिंह ने।

मातृभूमि का मान पाठ सारांश

‘मातृभूमि का मान’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का एकांकी है। यह एकांकी देशप्रेम की प्रेरणा देता है। मातृभूमि की सेवा के लिए आन-बान-शान से प्राणों को न्योछावर करने की भावना जाग्रत करता है।

इस एकांकी में हाड़ा राजपूत वीरसिंह के बलिदान का शौर्यपूर्ण वर्णन है। मेवाड़ के नरेश महाराणा लाखा ने सेनापति अभयसिंह से बूंदी के राव हेमू के पास यह सन्देश भेजा कि वह मेवाड़ की अधीनता स्वीकार कर ले। ऐसा न करने से राजपूतों की संगठन शक्ति छिन्न-भिन्न हो जायेगी।

लेकिन हेमू राव को महाराणा लाखा का यह प्रस्ताव पसन्द नहीं आया। उन्होंने कहा कि बूंदी स्वतन्त्र रहकर महाराणाओं का सम्मान तो कर सकता है लेकिन वह किसी के अधीन रहकर सेवा कदापि नहीं कर सकता।

उन्होंने यह भी कहा कि हाड़ा प्रेम एवं अनुशासन के पुजारी हैं, शक्ति के नहीं। वे उनका प्रस्ताव नहीं मानते हैं। तभी महाराणा लाखा ने यह प्रतिज्ञा कर ली “जबतिक मैं बूंदी से पराजित होने के कलंक को धो नहीं दूंगा तथा सेना सहित बूंदी के दुर्ग में प्रवेश नहीं करूँगा तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।”

महाराणा लाखा की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए नकली बूंदी का दुर्ग बनाकर उस पर विजय पताका फहरा दी गयी। वीरसिंह को अपनी मातृभूमि का अपमान अच्छा नहीं लगा और उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए चाहे वह नकली दुर्ग ही था। इस प्रकार वीरसिंह ने नकली बूंदी के दुर्ग की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया तथा मातृभूमि का मान बढ़ाया।

वास्तव में यह एक शिक्षाप्रद एवं ऐतिहासिक एकांकी है। यह एकांकी मान-मर्यादा तथा . देशप्रेम का ज्वलन्त उदाहरण है। इसके अतिरिक्त राजपूतों की एकता की शक्ति व मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा का भी परिचायक है।

मातृभूमि का मान संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) प्रेम का अनुशासन मानने को हाड़ा-वंश सदा तैयार है, शक्ति का नहीं। मेवाड़ के महाराणा को यदि अपने ही जाति भाइयों पर अपनी तलवार आजमाने की इच्छा हुई है, तो उससे उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। बूंदी स्वतन्त्र राज्य है और स्वतन्त्र रहकर वह महाराणाओं का आदर करता रह सकता है। अधीन होकर किसी की सेवा करना वह पसन्द नहीं करता।

कठिन शब्दार्थ :
अनुशासन = आज्ञा, नियन्त्रण। अधीन = गुलाम।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मातृभूमि का मान’ एकांकी से लिया गया है। इसके लेखक हरिकृष्ण प्रेमी हैं।

प्रसंग-इस अंश में हाड़ा वंश का राजा राव हेमू अपनी स्वाधीनता की रक्षा की प्रतिज्ञा करता है।

व्याख्या :
अभयसिंह के मेवाड़ के अधीन होने के प्रस्ताव पर राव हेमू अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहता है कि हम हाड़ा वंशज प्रेम का अनुशासन तो मानने को तैयार हैं, पर किसी की दाब-धौंस या शक्ति को मानने को तैयार नहीं हैं। मेवाड़ के महाराणा को यदि अपने भाइयों पर ही तलवार चलाने की इच्छा है तो उससे उन्हें कौन रोक सकता है ? वे चलायें लेकिन यह बात अच्छी तरह सोच लें कि बूंदी एक स्वतन्त्र राज्य है और वह स्वतन्त्र रहकर ही महाराणाओं का आदर कर सकता है। वह गुलाम बनकर किसी की सेवा करना पसन्द नहीं करता।

विशेष :

  1. हेमू अपने स्वाभिमान की बात करता है।
  2. भाषा भावानुकूल।

(2) जिनकी खाल मोटी होती है, उनके लिए किसी भी बात में कोई भी अपयश, कलंक या अपमान का कारण नहीं होता किन्तु जो आन को प्राणों से बढ़कर समझते आये हैं, वे पराजय का मुख देखकर भी जीवित रहें, यह कैसी उपहासजनक बात है।

कठिन शब्दार्थ :
अपयश = बदनामी। आन = इज्जत, मान-सम्मान।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्। प्रसंग-इस अंश में महाराणा का प्रायश्चित व्यक्त हुआ है।

व्याख्या :
महाराणा अभय सिंह से कहते हैं कि जिनकी खाल मोटी होती है अर्थात् जो अपनी आन मर्यादा पर नहीं डटते हैं उनके लिए किसी भी बात में कोई भी अपयश, कलंक या अपमान का कोई महत्त्व नहीं होता है परन्तु जो आन या मर्यादा को अपने प्राणों से भी बढ़कर मानते आये हैं, अर्थात् हमारे वंश की यह परम्परा रही है कि हमने अपनी आन और मर्यादा के लिए सब कुछ त्याग दिया है और आज उन्हीं के वंशज हाड़ा वंशियों से पराजित होकर जीवित रहें, यह निश्चय ही उपहास की बात है।

विशेष :

  1. महाराणा में अपने पूर्वजों की आन-मान को बनाये रखने की चिन्ता है।
  2. भाषा भावानुकूल।

(3) ये सागर से रत्न निकाले। युग-युग से हैं गये सँभाले।
इनसे दुनिया में उजियाला। तोड़ मोतियों की मत माला।
ये छाती में छेद कराकर। एक हुए हैं हृदय मिलाकर।
इनमें व्यर्थ भेद क्यों डाला। तोड़ मोतियों की मत माला।

कठिन शब्दार्थ :
सँभाले = सँजोकर रखे गये हैं। व्यर्थ = बेकार।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यह चारणी द्वारा गाया हुआ गीत है जिसमें वह सम्पूर्ण राजस्थान की एकता की बात कहती है।

व्याख्या :
चारणी गीत गाते हुए महाराणा को कुछ सन्देश देते हुए कहती है कि आज राजस्थान की भूमि पर जितने भी राजा हैं, वे सब. सागर से निकाले गये श्रेष्ठ रत्न हैं और युगों से इन्हें सँभालकर रखा गया है। इनकी शक्ति एवं पराक्रम का उजाला सब ओर छाया हुआ है। अतः किसी को भी मोतियों की माला को तोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आगे चारणी कहती है कि अनेक कष्टों एवं विपत्तियों को झेलकर बड़ी मुश्किल से ये एक हुए हैं। अतः इनमें अब फूट मत डालो। इस सुन्दर मोतियों की माला को मत तोड़ो। भाव यह है कि राजस्थान के वीर राजाओं में बड़ी मुश्किल से एकता बनी है। अतः किसी भी राजा को उस एकता को तोड़ने का अधिकार नहीं है।

विशेष :

  1. चारणी अपने गीत में राजपूतों को एकता का पाठ पढ़ाना चाहती है।
  2. लाक्षणिक भाषा का प्रयोग है।

(4) नकली बूंदी भी प्राणों से अधिक प्रिय है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं किया जा सकता। आज महाराणा आश्चर्य के साथ देखेंगे कि यह खेल केवल खेल ही नहीं रहेगा, यहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि सिसोदियों और हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगी।

कठिन शब्दार्थ :
सरल है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
महाराणा द्वारा यह प्रतिज्ञा करने पर कि जब तक मैं बूंदी पर सिसोदिया का झण्डा नहीं फहरा लूँगा तब तक अन्न, जल ग्रहण नहीं करूंगा। महाराणा की यह प्रतिज्ञा असम्भव थी। अतः अभयसिंह जैसे चापलूसों ने नकली बूंदी का किला बनवाकर उस पर मेवाड़ का ध्वज फहराने की योजना बना ली, पर हाड़ा राजपूत इस पर बिदक गये, उसी का वर्णन है।

व्याख्या :
महाराणा की सेना में कुछ सैनिकं बूंदी के भी थे। बूंदी के नागरिक अपने देश की आन-बान के कट्टर पुजारी थे। जब उनको महाराणा को नकली बूंदी के किले को जीतने की योजना की जानकारी हुई तो वे लोग विद्रोह पर उतारू हो गये। उन्हीं लोगों में से एक देश भक्त वीर सिंह था। वीर सिंह ने ऐलान कर दिया कि नकली बूंदी भी बूंदी वासियों को प्राणों से अधिक प्यारी है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं होने दिया जायेगा। वह आगे कहता है कि महाराणा आज आश्चर्य के साथ देखेंगे कि नकली बूंदी को जीतने का यह कोई साधारण खेल नहीं है। यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा। कहने का अर्थ यह है कि इस नकली बूंदी को फतह करना महाराणा के लिए आसान नहीं है। आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं में घमासान युद्ध होगा और खून की नदियाँ बह जायेंगी।

विशेष :

  1. वीर सिंह सच्चा देशभक्त है।
  2. भाषा भावानुकूल है।

(5) हम युग-युग से एक हैं और एक रहेंगे। आपको यह जानने की आवश्यकता थी कि राजपूतों में न कोई राजा है, न कोई महाराजा। सब देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमारी तलवार अपने ही स्वजनों पर न उठनी चाहिए। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और रहेंगे। हम सब राजपूत अग्नि के पुत्र हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से पृथक् हो सकते हैं। वीर सिंह के बलिदान ने हमें जन्म-भूमि का मान करना सिखाया है।

कठिन शब्दार्थ :
स्वजनों = अपने ही लोगों। अग्नि के पुत्र = सूर्यवंशी हैं। पृथक् = अलग। बलिदान = त्याग।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अवतरण में बूंदी के शासक राव हेमू का समस्त राजपूत राजाओं को एकता का पाठ पढ़ाने का सन्देश है।

व्याख्या :
महाराणा द्वारा नकली बूंदी के युद्ध का खेल खेले जाने पर जब वीर सिंह की मृत्यु हो गयी तो महाराणा पश्चाताप करने लगा। इसी पर राव हेमू भी राजपूतों की एकता की बात कहते हैं कि हम सभी राजपूत युगों-युगों से एक हैं और आगे भी एक रहेंगे। राव हेमू आगे कहता है कि राजपूतों में न कोई राजा है और न महाराजा। हम सब राजपूत तो देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी तलवारें अपने ही लोगों पर न उठे। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हम सभी राजपूत सूर्य के वंशज हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। वीर सिंह के त्याग ने हमें जन्मभूमि का सम्मान करना सिखाया है।

विशेष :

  1. राव हेमू उदारवादी शासक है तथा वह सभी को साथ लेकर चलना चाहता है।
  2. भाषा भावानुकूल।

MP Board Class 10th Hindi Solutions

MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 5 Refund

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MP Board Class 10th English The Rainbow Solutions Chapter 5 Refund (Fritz Karinthy)

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Refund Textbook Exercises

Refund Vocabulary

Mp Board Class 10 English Chapter 5 Question 1.
Use the following expressions in your own sentences.
by hook or by crook, what the hell, is that plain enough, will go straight, good for nothing, God forbid! Bravo! Have my ears open, as a matter of fact, with flying colours.
Answer:

  1. By hook or by crook—She will try to pass the test by hook or by crook.
  2. What the hell—What the hell were you doing with that girl?
  3. Is that plain enough—Don’t waste your precious time. Is that plain enough to you?
  4. Will go straight—The arrow will go straight to its target.
  5. Good for nothing—Your neighbour is a good for nothing fellow.
  6. God forbid—God forbid! how will the old man survive if he is not given medicines in time.
  7. Bravo—Bravo! our team has won the final match.
  8. Have my ears open—Don’t speak so loudly, I have my ears open.
  9. As a matter of fact—She won’t listen to your advice. As a matter of fact, she is stupid.
  10. With flying colours—Our soldiers returned with flying colours after defeating their enemy.

II. Select the correct spelling of the following and write it in your notebook.

Class 10 English Chapter 5 Refund Question Answer MP Board Question 1.
A. Tution
B. Twishan
C. Tuition
D.Tooshan
Answer:
(C) Tuition

Class 10 English Chapter 5 Refund MP Board Question 2.
A. Kursy
B. Courtesy
C. Gourtsy
D. Courtsye
Answer:
(B) Courtesy

Refund Questions And Answers MP Board Question 3.
A. Mathematic
B. Mathematics
C. Mathamatics
D. Mathamatiks
Answer:
(B) Mathematics

Mp Board Class 10th English Chapter 5 Question 4.
A. Ainsteen
B. Einstean
C. Instein
D. Einstein
Answer:
(D) Einstein

Class 10 English Chapter 5 Mp Board Question 5.
A. Unparalleled
B. Unparralleled
C. Unparaleled
D. Unparelleled
Answer:
(A) Unparalleled

III. Write in your own words what the following expressions mean in the lesson.
approved of, examined in, agree with, entitled to.
Answer:
Approved of—agreed with Examined in—tested in Agree with—to have similar opinion
Entitled to—having the right to get/do something; deserved/ fit for.

Comprehension

A. Answer the following questions in about 25 words.

Chapter 5 English Class 10 Mp Board Question 1.
Why did Wasserkopf come to the school after eighteen years?
Answer:
Wasserkopf had studied at the school nearly eighteen years ago. The education he received in the school failed to provide him with any capability. It had also rendered him worthless. He came to the school for the refund of his tuition fees.

Refund Questions And Answers Mp Board Question 2.
What were Wasserkopf’s arguments to get his fee back?
Answer:
Wasserkopf argued with the Principal of the school. He said that he had received education in that school eighteen years ago. It had not provided him with any capability at all. On the contrary, it had made him worthless. He hadn’t got his money’s worth.

Refund Chapter Question Answer MP Board Question 3.
The Principal summoned the Masters for a most extra-ordinary conference. What did he tell them?
Answer:
The Principal summoned the Masters for the most extraordinary conference. He told them about an old pupil, Wasserkopf who had come there to get his fee back. It was a unique case during his career as a school-master.

Mp Board Class 10 English Workbook Solutions Chapter 5 Question 4.
Why did the Principal consider Wasserkopf’s case “a most unusual state of affairs”?
Answer:
Wasserkopf had brought the certificate of the school. He said that he was no good for anything. The education he got there made nothing but an incompetent ass of him. He would complain about the Principal if his fee was not refunded to him. The Principal considered it a most unusual case.

Question 5.
What did the Mathematics teacher suggest to checkmate Wasserkopf?
Answer:
The Mathematics teacher said that they were dealing with a sly, crafty individual. He would try to get the better of them and would take his money back anyhow. In this context he suggested that he should be asked simple questions so that he must not fail. In this way, they could checkmate him.

Question 6.
Why did the Mathematics teacher want to prevent Wasserkopf from failing?
Answer:
The Mathematics teacher ’knew that Wasserkopf would try his level best to fail in the re-examination. If he failed, he would succeed in his mission. In other words, the school would have to refund his fees. That would place them in an awkward position. Therefore, he wanted to prevent Wasserkopf from failing.

Question 7.
What were the qualities of Wasserkopf that the Principal and the Masters evaluated?
Answer:
The Principal and the Master evaluated the following qualities of Wasserkopf. Patriarchal manners, gentlemanliness, courtesy, physical culture, alertness, perseverance, logic and ambition.

Question 8.
On what ground was Wasserkopf awarded ‘Excellent’ in Physical Culture?
Answer:
The History Master asked Wasserkopf to sit on the chair. Wasserkopf said. “To hell with a seat! I shall stand.” The Mathematics Master interprets that Wasserkopf intended to face the oral examination and will remain standing. He awarded Wasserkopf ‘excellent’ in physical culture due to his splendid physical condition.

Question 9.
What was the question that the Physics Master put to Wasserkopf?
Answer:
The Physics Master also put a question to Wasseskopf. The question was whether clocks in church steeples really become smaller as you walk away from them or do they merely appear to become smaller because of an optical illusion (mirage)

Question 10.
How much money, according to Wasserkopf, did the school owe to him?
Answer:
According to Wasserkopf, the school owed to him the following money.
Wasserkopf had attended the school for six years. The total of his fees, examination fees and fees on incidentals was 2400 + 1800 + 1482 + 768 crowns 50 heller. He was ready to knock off the hellers.

Question 11.
What was the final result that Principal presented to Wasserkopf?
Answer.
The Principal presented the result to Wasserkopf. He had passed with distinction in every subject. Therefore, he had again shown that he was entitled to the certificate they had awarded him on his graduation. He congratulated both Wasserkopf and his team.

Question 2.
Anita: What do want to do this morning?

Prakash: I feel like taking a walk. It’s so nice outside.
Anita: Great, let’s walk around the lake in the park.
Prakash: It’s really rocky here.
Anita: Yes, watch your steps so you don‘t trip.
Anita asked Prakash
(a) Prakash …………… answered that he (b) It was so nice outside.Anita agreed to this and suggested (c) ………….. Then Prakash observed that (d) …………. Anita cautioned him to watch his steps.

Question 3.
Read the comic strip and complete the passage given below.
Mp Board Class 10 English Chapter 5
Neha asked Naina (a) …………… London. Naina replied that she had enjoyed herself only in parts as
(b) …………….. there. Then Neha wanted to know (c) ……………… To this Naina replied that she saw a number of places although (d) ……………. it had rained a little less there.

Question 4.
Interviewer: So, Why do you want to be a computer programmer?
Ravi: Well, I don’t like working in a fast food restaurant and I want to make more money.
Interviewer: I see. Do you have any experience?
Ravi: No, but I am a fast learner.
Interviewer: What kind of a computer do you use?
Ravi: Computer? Uhm… let me see. I can use a Mac. I also used Windows 95 once.
Interviewer: We will get back to you. called his claim for refund genuine. The second answer made him call Wasserkopf as a mathematical genius. By his tact,-the Mathematics teacher proved that he was more ‘shrewd’ than the former pupil.

Question 5.
How did the three Masters shatter Wasserkopf’s plan to get the refund?
Answer:
Wasserkopf wanted to fail in the examination to get the refund of his fees. Wasserkopf’s answer was absurd. He spoke that the Thirty- year war lasted seven metres. The History teacher and the Maths teacher proved it correct according to Einstein’s theory of relativity.

The Physics teacher asked, ’Do clocks in church steeples really become smaller as you walk away from them or merely appear so?’ His reply was you’re an ass. The teacher proved it correct due to optical illusion. The Mathematics teacher asked Wasserkopf to calculate the amount of refund. His correct answer made him successful. He was declared pass in every subject. His request for refund was rejected. He was sent away disappointed.

Question 6.
How far is a school or educational institution accountable for the future of its students? Support your answer with arguments given in the play.
Answer:
Education aims at securing one’s livelihood as well as life. Stress should be laid on technical and vocational education. Character formation should be the major motive of education. There should be a personal contact between the teacher and the taught. Good manners should be inculcated among the students from the very beginning. According to Wasserkopf he didn’t learn anything. He had become an incompetent ass. He failed at every job. He used abusive and taunting language before teachers and the Principal of the school. He was rude and challenging in his behaviour. He lacked respectful behaviour. He was nill at gentlemanliness, courtesy, physical culture, alertness, perseverance, logic and ambition. The school was not accountable for his fate.

Refund Grammar

Non-Finite s
Study the following sentences:

  1. I want you to refund the tuition fee.
  2. I have got to hurry to the broker’s to collect the money.
  3. I haven’t got to tell you now.

The root form of the verb preceded by ‘to’ is called the to-infinitive. Study the following sentences:

  1. I don’t think.
  2. I should just say.
  3. I suppose I can get along.

The root form of the verb without ‘to’ is called the bare-infinitive. Name and underline the Infinitives in the following sentences:
1. You really want to take another examination?
2. Why do you want it?
3. I might be able to do something.
4. I have the right to take one.
5. I shall have to consult the staff.
6. I have asked you to come here on account of a most unusual state of affairs.
7. How do you do?
Answer:

  1. You really want to take another examination? (To-Infinitive)
  2. Why do you want it? (Bare-Infinitive)
  3. I might be able to do something. (To-Infinitive)
  4. I’ve the right to take one. (To-Infinitive)
  5. I shall have to consult the staff. (To-Infinitive)
  6. I have asked you to come here on account of a mostunusual state of affairs. (To-Infinitive)
  7.  How do you do? (Bare-Infinitive)

Study the following sentences.

  1. I am bringing back the leaving certificate.
  2. Will you wait in the waiting room?
  3. Thus the candidate has come through with flying colours.

The form of verb which has the characteristic of a verb as well as an adjective is called the Participle. Study the following sentences.

  1. I made speculation in foreign exchange.
  2. They surround the Physics Master, slapping him on the back and shaking his hands.
  3. I’ll start off by telling you a few things.

The -ing form of verb when used as a Noun is called Gerund.
Distinguish the following underlined words:
1. He remains standing.
2. He hurried away and left me standing there.
3. What a distressing bussiness
4. The following speeches are nearly spoken simultaneously.
5. The Principal, leaning back and stretching, received parents only during office hours.
Answer:

  1. standing – Gerund.
  2. standing – Gerund.
  3. distressing – Participle.
  4. following – Participle.
  5. leaning – Participle
  6. stretching – Gerund.

Speaking Skill

A. Survey of students opinion regarding the school timetable.

Question 1.
Prepare a questionnaire consisting of seven questions on the school timetable. Question atleast ten students, get their views and note down the questions.
You may use the following questions.
1. What should be the length of total reading time in schools?
2. What should be the length of a period?
3. Which subjects should be taught before the recess (interval)?
4. Which period should be allotted to practical classes?
5. How many periods should be alloted to library-activity in a week?
6. What should be the length of recess (interval)?
7. How many periods should be allotted to games in a week?
Answer:
Sample Answer of one student.

  1. The length of total reading time in school should be six hours.
  2. The length of a period should be 45 minutes before recess and 40 minutes after recess.
  3. English, Maths and Science subjects should be taught before
    the recess (interval).
  4. The last period should be allotted to practical classes.
  5. Three periods should be allotted to library activity in a week.
  6. The length of recess (interval) should be 20 minutes.
  7. Four periods should be allotted to games in a week. (However, there can be as many different answers depending on the number of students.)

Question 2.
Imagine you have just shifted to Bhopal from Harda and H have to join a new school there. Your residence is in a multistoreyed complex where there are many students of your age. Talk to them and find out all about the schools in which they study.
Draw a table in your notebook in the manner as given below and fill in the details. In some cases, the friends may not provide information under all the headings in the table. In- such cases, put a -in that box.
Class 10 English Chapter 5 Refund Question Answer MP Board
Ask the same question in different ways as given below:

  1. Where do you study? or
  2. In which school do you study? or
  3. What is the name of your school?

Answer:
Class 10 English Chapter 5 Refund MP Board

Writing Skill

Question 1.
‘Education is for life, not for livelihood’. Expand the idea. (50 words)
Answer:
Education aims at creating ideal personality in a student. It is expected that the student after completing his education becomes the picture of all that is noble. He knows the value of time. He is helpful and sympathetic towards those who are weak and needy. He never nourishes ill will against others. He is honest and respectful to his seniors. He remains in discipline. He takes care of his health and honour. He does not degrade himself in the estimation of others. He is never a slave to his senses. He is a good debator and organizer. He becomes a moving spirit in society. He accomplishes everything with a humanitarian concern. Being a social animal he shares others’ happiness and woes. In this way education prepares him for life, not only for livelihood.

Question 2.
Suppose you are going to deliver a speech on ’Teacher’s Day’. Prepare a draft of your speech. (150 words)
Answer:
Teacher’s Day Teacher’s day is a national function. It is celebrated on 5th September every year, the day of Dr. Radha- krishnan’s birthday. Dr. Radhakrishnan was an ideal teacher and therefore his birthday is celebrated as Teacher’s Day throughout the country. The main idea is to draw the attention of the society towards this noble profession. Nearly a hundred teachers are honoured with National Award on this day. The awardees are selected on the basis of the personal character, conduct, professional competence and their contribution to society. Only ideal and worthy teachers get it.

Giving award to teachers is a good incentive for them. It is a pity that a teacher is not accorded due respect these days. He is held low7 down in the social scale. One of the most serious causes for the loss of respect for the teacher is his poor salary. Also most of the teachers today fail to involve themselves with students. They do not bother for the future of their students. It is therefore, whenever they (students) obtain poor marks or show poor results, teachers are held responsible. They sometimes suffer from lack of confidence. The selfless teachers who possess character and unbiased love and affection for students enjoy social respect which is its own award.

Think It Over

1. He who does not know that he doesn’t know is an ignorant person. Keep him away.
He who knows that he doesn’t know is ready to learn, teach him. He who knows that he knows is wise, make him your teacher. Ponder over it and if you find such persons around you, write their names and traits.
2. Be wise than other people, if you can; but do not tell them so because men must be taught as if you taught them not. And things unknown must be proposed as things forgot. Ponder.
3. A man convinced against his will is of the same opinion still. Think and pen your experience.
Answer:
For pondering at individual level.

Things To Do

1. Take as many chart sheets as many subjects you read. Write names of the subjects on different sheets. Now write difficult portions of your syllabus according to your opinion on every sheet.
2. Show these sheets to your parents and teachers. Stick them on the wall in your study.
3. Try to learn those items and cross them when they are no more difficult for you.
4. Try to eliminate them all.
Answer:
For self-attempt.

Refund Additional Important Questions

A. Read the passages and answer the questions that follow.

1. Because actual warfare took place only during half of each day- that is to say, twelve hours out of the twenty-four-and the thirty years at once become fifteen. But not even fifteen years were given up to incessant fighting, for the combatants had to eat-three hours a day, reducing our fifteen years to twelve. And if from this we deduct the hours given up to noonday siestas, to peaceful diversions, to nonwar like activities. (Page 38)

Question 1.
Who spoke the above lines?
Answer:
The History Master spoke the above lines.

Question 2.
How many hours did the actual warfare take place each day?
Answer:
The actual warfare took place twelve hours out of twenty- four each day.

Question 3.
How many hours a day did the combatants have to eat?
Answer:
The combatants had to eat for three hours a day.

Question 4.
How long had the war lasted according to Wasserkopf?
Answer:
According to Wasserkopf, the war had lasted seven metres.

Question 5.
Give a synonym from the passage for the word ‘afternoon short sleep’.
Answer:
‘Siesta.’

2. (rising): I present the result of the examination. Herr Wasserkopf has passed with distinction in every subject, and has again shown that he is entitled to the certificate we awarded him on his graduation. Herr Wasserkopf, we offer our congratulations accepting a large share of them for ourselves for having taught you so excellently. And noisy that we have verified your knowledge and your abilities (he makes an eloquent gesture) get out before I have you thrown out! (Page 41)

Question 1.
Who spoke the above lines?
Answer:
The Principal spoke the above lines.

Question 2.
What would he present ?
Answer:
He would present the result of the examination.

Question 3.
How had Herr Wasserkopf passed?
Answer:
Herr Wasserkopf had passed with distinction in every subject.

Question 4.
What was his final word to Wasserkopf?
Answer:
His final word to Wasserkopf was Get out before he had him thrown out.

Question 5.
Give a word from the passage for the expression. ‘Expression with motion of limbs’.
Answer:
‘Gesture’.

I. Match the following:

1. Principal received parents – (a) i don’t think so
2. Wasserkopf – (b) Gentlemen, the case is natural
3. The Mathematics teacher – (c) Only during office hours
4. The Physics Master – (d) I’m bringing back the leaving certificate you gave me.
5. A pupil – Tell us about it.
Answer:
1. (c), 2. (d), 3. (e), 4. (b), 5. (a).

II. Pick up the correct choice.

(i) The story Refund
A. Wasserkopf
B. Fritz Karinthy
C. Rudyard Kipling
D. Oscar Wilde
Answer:
B. Fritz Karinthy

(ii) A. Yes; but be quick. I’’e got no time to (waste! wait).
B. Because hes (a donkey/an ass).
C. There is nothing like it in the history of (India! civilization).
D. The Geography Master. Where is the (fellow! person), any how?
Answer:
A. waste
B. an ass
C. civilization.
D. fellow

III. Write ‘True’ or ‘False’.

1. The History Master, leave it to us.
2. The Principal (to the servant): Show in Herr Wasserkopf.
3. Wasserkopf. Agreed! Agrèed!
4. The Mathematics Master: ‘Logic; Excellent’.
5. The Physics Master: You were always a numskull.
Answer:

  1. False.
  2. True
  3. False
  4. True
  5. False.

IV. Fill in the following blanks.

1. Oh, you can’t think of a ………….. that’s easy enough?
2. How long did the …………….. year war last?
3. This is no way to ……………. an examination.
4. The Principal; I shall …………….with this decisively.
5. The ……….. takes the’ place of the History Master.
Answer:

  1. question
  2.  thirty
  3. run
  4. deal
  5. Physics Master.

B. Short Answer Type Questions (In about 25 words)

Question 1.
What did the servant (peon) tell the Principal?
Answer:
The servant (peon) told the Principal that there was a man outside. He wanted to see the Principal. He was neither a parent nor a pupil. He had a beard. His name was Wasserkopf. He looked intelligent.

Question 2.
Whom did the peon show in?
Answer:
The peon showed in a middle-aged person. His name was Wasserkopf. He was bearded. He was carelessly dressed. He was somewhat under forty. He was energetic and decidedly a man of confidence.

Question 3.
How did Wasserkopf introduce himself?
Answer:
Wasserkopf remained standing. The Principal asked him what he should do for him. Wasserkopf asked if the Principal remembered him. Then he realised that he was not worth remembering. In the end he told the Principal that he was a student in that school eighteen years ago.

Question 4.
Why could Wasserkopf say that he could get along without another certificate?
Answer:
Wasserkopf was awarded a certificate on his graduation from the school. The certificate showed that he had got an education. The reality was that he hadn’t learnt anything. He couldn’t keep a job even if he managed to get it. Therefore, he could get along without any (another) certificate.

Question 5.
Who was Lederer? What was his suggestion to Wasserkopf?
Answer:
Lederer was a man who made speculations in foreign exchange. He was awfully busy. He told Wasserkopf that he earned whenever money Was down. Wasserkopf failed to understand it. Lederer pitied his poor knowledge. He suggested him to get his tuition fee refunded if he did not know any damn thing.

Question 6.
Why was Wasserkopf hell bent on getting the refund of his tuition fee?
Answer:
Wasserkopf was a poor man. His tuition fee amounted to a lot of money. Therefore, he could not afford to forgo the heavy amount. Moreover, he didn’t get anything for them. He was no good for anything. He couldn’t retain even his acquired jobs.

Question 7.
Why did the Principal scratch his head?
Answer:
A former student, named Wasserkopf came to the Principal ,j to get his tuition fee refunded. It was a unique case. He had never heard of anything like it before. He couldn’t make any decision single handed. Therefore, he scratched his head.

Question 8.
What were the views’ of the Mathematics Master about re-examination?
Answer:
Wasserkopf was in favour of a re-examination. It would prove that he had really learned nothing. The Mathematics Master suggested that they should not make their questions too difficult. In this way, they would get the better of the sly and crafty fellow.

Question 9.
What is the pedagogical scandal referred to in the lesson ’Refund’?
Answer:
The Mathematics Master was of the view that all the teachers would prevent Wasserkopf from failing. If he fails, he would claim for the refund of his fees. It would become a pedagogic scandal. The number of claimants would go on swelling day after day

C. Long Answer Type Questions (In about 50 words)

Question 1.
Give a brief character sketch of Wasserkopf.
Answer:
Wasserkopf was a poor and greedy person. He was fired from his jobs due to his ill manners and rude behaviour. He had no knowledge of any field. He neither had sense of shame nor sense of respect. He threatens the Principal that he would complain against him to the Ministry of Education. He is like a ruffian. He stares insolently at the Principal. He calls the teachers ’loafers’. He doesn’t give a damn for the teachers. He calls the History Master a ‘numskull’. He calls the Physics Master ‘a cannibal’ and ‘a whiskered balloon’. He calls the Maths teacher as ‘old stick in the mud’.

Question 2.
Give the role of the Principal of the school in the lesson ’Refund’.
Answer:
The entire scene of the one act play takes place in the office of the Principal of the school. A former student, named Wasserfopf enters his office. He addresses him as Mr. Principal. He asks him to refund his tuition fee because the school had taught him nothing. The Principal hears his complaint patiently He makes him wait and called a conference of his teachers. He apprises the teachers of the silly demand of a sly and crafty old student. He is a silent spectator when Wasserkopf is re-examined. He is a competent and considerate administrator. He controls the situation and turns Wasserkopf out empty handed.

Refund Introduction

This one act play is about a former pupil who unexpectedly arrives at the school in which he studied earlier. The education that he received at school has left no good impact on him. He has become worthless. He argues with the Principal of the school. Previously the Principal is not ready to accept his demand. But finally he tells his teachers to conduct a re-examination to a certain his worth.

Refund Summary in English

A former pupil unexpectedly arrived at the school. He had studied there nearly eighteen years ago. He entered the Principal’s office arrogantly. He told the Principal that his name was Wasserkopf. The Principal asked him whether he wanted a certificate. Wasserkopf replied in the negative. He wanted the Principal to refund the tuition fees which he had paid for his education. He was a poor man. Therefore, he needed the money.

The Principal asked Wasserkopf why he wanted the fee back. He told the Principal that he didn’t get his money’s worth. He didn’t learn anything. Rather, the education had made nothing but an incompetent ass of him. His old classmate Lederer gave him the idea because he did not know any damn thing. He said, he would complain against the Principal if his request for refund was not granted

The Principal asked Wasserkopf why he thought he couldn’t do anything. Wasserkopf told that he couldn’t keep any job even if he got it. He asked the Principal to give him an examination and tell him what he ought to do. The Principal asked him to wait and called a conference of the teachers. The matter was discussed seriously. The teachers decided to hold the examination and ask him simple questions. They would declare him successful regardless of his answers.

Wasserkopf faced all the teachers one-by-one. He called them by names and gave silly answers. The teachers interpreted his answers positively. He was given excellent in patriarchal manners, gentle manliness, courtesy, physical culture, alertness, perseverance, logic and ambition. Now it was the turn of the Maths teacher. His first question was answered wrongly. Everybody was stunned when the teacher justified his rightful claim for the refund. The Principal got furious with the Maths teacher. Then the teacher asked Wasserkopf to calculate the amount of the fees to be refunded. He did the same correctly. It amounted to 6450 crowns. He had answered the difficult question correctly to the smallest detail. The Maths teacher certified that the candidate passed in Maths. He was really a Mathematical genius. Wasserkopf called it a tricky plan.

The Principal declared him pass with distinction in every subject and was fully entitled to the certificate he was already awarded. The Principal congratulated him. He asked Wasserkopf to be off lest he should be thrown out.

Refund Summary in Hindi

एक पूर्वकालिक अनपेक्षित छात्र एक स्कूल में आया। वह लगभग अठारह वर्ष पहले वहाँ पढ़ा था। वह अभद्रता से मुख्याध्यापक के दफ्तर में घुस गया। उसने प्रधानाचार्य को अपना नाम वॉसरकॉफ बताया। प्रधानाचार्य ने उससे पूछा कि क्या उसे प्रमाणपत्र चाहिए, वॉसरकॉफ ने नकारात्मक उत्तर दिया। वह चाहता था कि प्रधानाचार्य उसकी वह फीस लौटा दे जो उसने अपनी शिक्षा-प्राप्ति के बदले दी थी। वह निर्धन व्यक्ति था। इसलिए, उसे धन-राशि की आवश्यकता थी।

प्रधानाचार्य ने वॉसरकॉफ से पूछा कि उसे फीस वापिस क्यों चाहिए? उसने प्रधानाचार्य को बताया कि उसे अपनी धन-राशि का उचित लाभ नहीं मिला। उसने कुछ भी नहीं सीखा। बल्कि, शिक्षा ने उसे एक अयोग्य गधा बना दिया। उसके पुराने सहपाठी लैडरर ने उसे यह विचार दिया क्योंकि उसे (वॉसरकॉफ को) कुछ भी नहीं आता था। वह बोला कि शुल्क वापसी की उसकी प्रार्थना अस्वीकार किए जाने पर वह प्रधानाचार्य की शिकायत कर देगा।

प्रधानाचार्य ने वॉसरकॉफ से पूछा कि उसे यह विचार कैसे आया कि वह कुछ नहीं कर सकता था। वॉसरकॉफ ने बताया कि कोई धंधा मिल जाने पर भी वह उसे निभा नहीं पाता था। उसने प्रधानाचार्य से कहा कि उसकी परीक्षा ली जाए और उसे बताया जाए कि उसे क्या करना चाहिए। प्रधानाचार्य ने उसे इंतजार करने के लिए कहा और अध्यापकों की मीटिंग बुलाई। इस मामले पर गम्भीर रूप से विचार किया गया। अध्यापकों ने परीक्षा लेने और आसान प्रश्न पूछने का निर्णय लिया। उसके उत्तरों पर विचार नहीं करते हुए वे उसे सफल घोषित कर देंगे।

वॉसरकॉफ ने क्रम से एक-एक अध्यापक का मुकाबला किया। उसने उन्हें उनके उपनाम (चिढ़ाने वाले नाम) से पुकारा और उन्हें बेतुके उत्तर दिए। अध्यापकों ने उसके उत्तरों पर सकारात्मक टिप्पणी की। उसे पैतृक व्यवहार, भलमनसाहत, शिष्टाचार, शारीरिक फुर्ती, संस्कृति, अध्यवसाय, तर्क, तथा अभिलाषा में उत्कृष्ट दर्शाया गया। फिर, गणित अध्यापक की बारी थी। उनके पहले प्रश्न का उत्तर गलत पाया गया। उन्होंने फीस वापसी के वॉसरकॉफ के दावे को न्यायोचित ठहराया। प्रधानाचार्य, गणित के अध्यापक से रुष्ट हो गए। फिर अध्यापक ने वॉसरकॉफ से कहा कि वापिस ली जाने वाली फीस का हिसाब लगाओ। उसने ठीक (सही) हिसाब लगा दिया। वह 6450 क्राऊन बनी। उसने कठिन प्रश्न का सूक्ष्मतम विस्तार के साथ सही उत्तर दिया था। गणित के अध्यापक ने प्रमाणित किया कि प्रत्याशी (परीक्षार्थी) को गणित में पास किया जाता है। वह वास्तव में गणित में प्रतिभाशाली पाया गया। वॉसरकॉफ ने उसे एक षड्यन्त्रपूर्ण चाल बताया।प्रधानाचार्य ने घोषित किया कि वह प्रत्येक विषय में श्रेष्ठता प्राप्त रूप में पास है और पहले दिए गए प्रमाणपत्र का वह पूर्ण रूप से अधिकारी है। प्रधानाचार्य ने उसे बधाई दी। उसने वॉसरकॉफ को दफा होने के लिए कहा ताकि उसे बाहर नहीं फेंका जाए।

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