MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

उपभोक्ता संरक्षण Important Questions

उपभोक्ता संरक्षण लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिकायत कौन दायर कर सकता है ?
उत्तर:
निम्नलिखित शिकायत दायर कर सकते हैं –

  1. एक उपभोक्ता
  2. मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ
  3. एक या अधिक उपभोक्ता (जहाँ अनेक उपभोक्ताओं का समान हित है।)
  4. केन्द्रीय सर
  5. राज्य सरकार

प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं के अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के अधिकार –

  1. सुरक्षा का अधिकार
  2. सूचना प्राप्त करने का अधिकार
  3. सुनवाई का अधिकार
  4. प्रतियोगी मूल्य पर माल प्राप्त करने का अधिकार
  5. क्षतिपूर्ति या उपचार का अधिकार
  6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
  7. उचित प्रतिफल का अधिकार
  8. स्वच्छ वातावरण का अधिकार
  9. हानिकारक बिक्री को रुकवाने का
  10. अपना पक्ष रखने का अधिकार।

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प्रश्न 3.
उपभोक्ता संरक्षण का महत्व बताइये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण का महत्व निम्न हैं –

  1. उपभोक्ताओं के सामाजिक जीवन में वृद्धि करने के लिए
  2. उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए
  3. सामाजिक दायित्व के प्रति जागरूकता लाने के लिए
  4. परिवेदनाओं, शिकायतों का शीघ्र समाधान करने के लिए।

प्रश्न 4.
भारत में उपभोक्ता संरक्षण के साधनों व तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता संरक्षण के साधन व तरीके निम्न हैं –

  1. लोक अदालत – उपभोक्ता अपनी शिकायतों के समाधान हेतु लोक अदालत की शरण ले सकता है जिसमें तुरन्त बहस करके फैसले दिए जाते हैं।
  2. शिकायत निवारण मंच – शिकायत निवारण मंच के अंतर्गत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में त्रिस्तरीय न्याय व्यवस्था सन् 1986 में स्थापित की जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम, राज्य फोरम, राष्ट्रीय फोरम की स्थापना की गई।
  3. जनहित में मुकदमा – इसमें निर्धन, अल्पसंख्यक या सामूहिक हित रखने वाले व्यक्तियों अथवा उपभोक्ताओं की ओर से जनहित में सामूहिक मुकदमा भी दायर किया जा सकता है।
  4. मुद्रित साहित्य में उपभोक्ता संरक्षण की दशा में भारत सरकार विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता साहित्य प्रकाशित करती है। जैसे-उपभोक्ता जागरण, उपभोक्ता के अधिकार आदि।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता संरक्षण अथवा गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका (महत्व) पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण हेतु गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका जिसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. उपभोक्ता जागरुकता व उपभोक्ता शिक्षा अभियान चलाना।
  2. मिलावट व जमाखोरी के विरुद्ध आवाज उठाना।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण के कई तरीके एवं साधन हैं। कोई ऐसे पाँच तरीके लिखें तथा एक उपाय को समझायें।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण के कई तरीके हैं। उनमें से पाँच निम्नलिखित हैं –

  1. व्यवसाय द्वारा स्वयं नियमन
  2. व्यावसायिक संगठन
  3. उपभोक्ता जागरुकता
  4. उपभोक्ता संगठन
  5. सरकार

व्यवसाय द्वारा स्वयं नियमन (Self regulation by business) – विकसित व्यावसायिक इकाइयाँ अब यह समझती है कि उपभोक्ता को भली-भाँति सेवा प्रदान करना उनके अपने दीर्घकालीन हित में है। अतः उन्होंने ग्राहकों की भली – भाँति सेवा करने और उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए अपने स्वयं की उपभोक्ता सेवायें एवं शिकायत कक्षों की स्थापना की है।

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प्रश्न 7.
आप कैसे कह सकते हैं कि उपभोक्ता संरक्षण का क्षेत्र विस्तृत है ?
अथवा
उपभोक्ता संरक्षण का क्षेत्र विस्तृत है। टिप्पणी करें।
उत्तर:
विस्तृत क्षेत्र (Wide scope)- उपभोक्ता संरक्षण का क्षेत्र विस्तृत है। निम्नलिखित तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं –

  1. यह उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों तथा दायित्वों की जानकारी देता है।
  2. यह उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतों को दूर करवाने में सहायता करता है।
  3. उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिये यह न्यायिक तंत्र की व्यवस्था करता है।
  4. यह उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों को संरक्षित करने तथा उन्हें बढ़ाने के लिये संगठित होने तथा अपने संगठन बनाने के लिये प्रेरित करता है।
  5. यह सभी वस्तुओं तथा सेवाओं पर लागू होता है।
  6. इसमें सभी संस्थायें (निजी, सार्वजनिक, सहकारी) सम्मिलित होती है।

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प्रश्न 8.
उपभोक्ता का अधिकार से क्या आशय है ?
उत्तर:
भारत की तुलना में अमेरिका का उपभोक्ता काफी जागरूक व सावधान रहता है क्योंकि भारत की तुलना में वह अधिक शिक्षित राष्ट्र है। वहाँ के उपभोक्ताओं को भारत की तुलना में अधिक व्यापक अधिकार प्राप्त हैं तथा शिकायत करने पर उपचार अतिशीघ्र प्राप्त हो जाता है। अमेरिका में उपभोक्ताओं के अधिकारों पर सर्वाधिक ध्यान वहाँ के भूतपूर्व राष्ट्रपति कैनेडी ने दिया। उन्होंने सर्वप्रथम निम्न चार अधिकारों का पुरजोर समर्थन किया

  1. सुरक्षा का अधिकार
  2. चुनाव का अधिकार
  3. जानने का अधिकार
  4. सुनवाई का अधिकार

कुछ समय पश्चात् ‘मूल्य का अधिकार’ भी वहाँ के अधिनियम में जोड़ दिया गया। उपभोक्ताओं के संरक्षण के संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘उपभोक्ता संघों का अन्तर्राष्ट्रीय संगठन’ (International organization of consumer union) गठित किया जा चुका है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपर्युक्त पाँच अधिकारों के साथसाथ निम्न तीन अधिकार और जोड़े गये हैं –

  1. उपचार का अधिकार
  2. शिक्षा का अधिकार
  3. स्वस्थ (स्वच्छ) वातावरण का अधिकार।
  4. उपभोक्ता के संरक्षण हेतु आवश्यक होने पर मुकदमा दायर करना।
  5. विभिन्न व्यावसायिक व उपभोक्ताओं से संबंधित सूचनाओं व आँकड़ों का संकलन करना तथा इन सूचनाओं के प्रयोग द्वारा उपभोक्ता संरक्षण का प्रयास करना।
  6. सरकार को उपभोक्ता संरक्षण संबंधी कार्यों में सहयोग प्रदान करना।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता संरक्षण के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सन् 1986 में उपभोक्ताओं के विवादों के समाधान के लिए त्रिस्तरीय अर्द्ध-न्यायिक तंत्र (Threetier quasi-Judicial Machinery) की स्थापना की गई है जो निम्नानुसार है –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण IMAGE - 1
प्रश्न 10.
उपभोक्ता संरक्षण के कई उपायों में से एक उपाय उपभोक्ता जागरुकता (Consumer awareness) है। उपभोक्ता जागरुकता का क्या अर्थ है ? उपभोक्ता जागरुकता के लाभ लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता जागरुकता (Consumer awareness)- उपभोक्ता जागरुकता से अभिप्राय उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों, दायित्वों तथा उनको उपलब्ध उपचारों के बारे में पूरी जानकारी होना है।
उपभोक्ता जागरुकता केलाभ (Advantages of consumer awarness) –

  1. एक जागरुक उपभोक्ता किसी भी अनुचित व्यापार या बेईमान उत्पादकों और व्यापारियों की दोषपूर्ण कार्यवाहियों के विरुद्ध आवाज उठा सकता है।
  2. अपनी जिम्मेदारियों की समझ से उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा कर सकता है।

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प्रश्न 11.
उपभोक्ता तथा व्यापारी उपभोक्ताओं का कई तरीके से शोषण करते हैं। शोषण के ऐसे कोई पाँच तरीके लिखिए।
उत्तर:
शोषण के पाँच तरीके निम्न हैं –

  1. उपभोक्ताओं द्वारा घटिया किस्म या नकली उत्पादों को बेचना।
  2. वस्तुओं का वजन उसके पैकेज पर छपी मात्रा से कम होना।
  3. मिलावटी वस्तुएं बेचना।
  4. वस्तुओं के बारे में मिथ्यापूर्ण विज्ञापन देना।
  5. नकली माल बेचना।

प्रश्न 12.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शिकायत के आधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शिकायत के आधार (Grounds for complaints) –

  1. अनुचित/प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार
  2. अनुचित व्यापार व्यवहार
  3. दोषयुक्त वस्तुएँ
  4. सेवाओं में न्यूनता
  5. अधिक कीमत लेना
  6. जोखिमपूर्ण वस्तुओं की पूति।

प्रश्न 13.
जिला फोरस की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जिला फोरम (District forum) – उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार राज्य सरकार प्रत्येक जिले में एक या अधिक जिला फोरम स्थापित कर सकती है। इसकी विशेषताएँ निम्न हैं

  1. इसमें एक अध्यक्ष सहित तीन सदस्य होते हैं जिनमें से एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है। इनकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है।
  2. जिला फोरम में 20 लाख रुपये से कम मूल्य के विवादों से संबंधित शिकायतों का समाधान किया जाता है।
  3. शिकायत उपभोक्ता अथवा किसी उपभोक्ता संघ द्वारा की जा सकती है।

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प्रश्न 14.
उपभोक्ता शिकायत कहाँ दर्ज कराई जा सकती है ?
अथवा उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करने वाली न्यायिक प्रणाली के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
भारत में उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करने की त्रि-स्तरीय न्यायिक प्रणाली स्थापित की गई है।

1.जिला फोरम (District forum)- जिला फोरम में उन शिकायतों को दर्ज कराया जा सकता है जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य और क्षति के लिए दावे की राशि बीस लाख रुपये तक हो।

2. राज्य आयोग (State commission)- इस आयोग में केवल वही शिकायतें दर्ज कराई जा सकती है जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य और क्षतिपूर्ति के लिए दावे की राशि बीस लाख से अधिक किंतु एक करोड़ से कम हो। जिला फोरम के विरुद्ध भी अपील की जा सकती है।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध

विपणन प्रबंध Important Questions

विपणन प्रबंध लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विपणन क्या है ? वस्तु एवं सेवाओं की विनिमय प्रक्रिया में इसके क्या कार्य हैं ? समझाइए।
उत्तर:
विपणन का अर्थ-विपणन के अंतर्गत वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की क्रियाओं से लेकर उनके विक्रय के बाद तक की क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। इस प्रकार विपणन में वे सभी कार्य सम्मिलित किये जाते हैं। जिनके द्वारा मानवीय आवश्यकताओं को ज्ञात किया जाता है तथा उनकी संतुष्टि के लिए वस्तुओं का नियोजन, मूल्य निर्धारण, संवर्द्धन एवं वितरण किया जाता है।
परिभाषाएँ-

  1. प्रो.पॉल मजूर के अनुसार-“समाज को जीवन-स्तर प्रदान करना ही विपणन है।’
  2. प्रो. मैकनियर के अनुसार-“जीवन स्तर का सृजन करना एवं उसकी पूर्ति करना ही विपणन है ।’

विपणन का मुख्य केन्द्र वस्तुओं व सेवाओं के विनिमय पर होता है । फिलिप कोटलर ने विपणन प्रबंध को इस प्रकार परिभाषित किया है “लक्षित बाजारों का चुनाव करने और प्राप्त करने, प्रबंध के विशिष्ट ग्राहक मूल्यों के संप्रेषण और सुपुर्दगी के सृजन द्वारा ग्राहकों को बनाने और वृद्धि करने की कला और विज्ञान” यदि हम इस परिभाषा को तोड़ते हैं तो हम कह सकते हैं कि विपणन प्रबंध में निम्नलिखित क्रियाएँ शामिल होती हैं

1. विशिष्ट मूल्य का सृजन करना-विपणन प्रबंध प्रक्रिया का अगला चरण प्रतिस्पर्धी के उत्पादों की बजाय अपने उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए उत्पादों में कुछ विशिष्ट मूल्य का सृजन करना होता है।

2. एक लक्षित बाजार का चुनाव करना-विपणन प्रबंध की क्रियाएँ लक्षित बाजार को निश्चित करने द्वारा आरंभ होती है, उदाहरण के लिए औषधि निर्माता के लिए लक्षित बाजार, चिकित्सालय, डॉक्टर, दवाई की दुकानें इत्यादि।

3. लक्षित बाजार में ग्राहकों की वृद्धि करना-एक लक्षित बाजार के चुनाव करने के बाद विपणन प्रक्रिया में अगला चरण ग्राहकों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और माँग का विश्लेषण करके ग्राहकों की संख्या में वृद्धि करने के लिए कदम उठाना और ग्राहकों की संतुष्टि को महत्व देना होता है।

प्रश्न 2.
विपणन की उत्पाद अवधारणा एवं उत्पादन अवधारणा में अंतर बताइए।
उत्तर:
विपणन की उत्पाद अवधारणा एवं उत्पादन अवधारणा में निम्न अंतर हैं

1. उत्पादन अवधारणा (Production concept) – विपणन की यह एक पुरानी अवधारणा है। यह अवधारणा उस समय प्रचलित थी जब माल का उत्पादन कम होता था और बाजार की स्थिति विक्रेता प्रधान होती थी। माँग अधिक व पूर्ति कम होने से विक्रय की कोई समस्या नहीं थी। उत्पादक यह सोचता था कि जिस माल का वह उत्पादन करेगा वह स्वतः ही बिक जायेगा। फलतः उत्पादक विक्रय के लिये कोई प्रयास नहीं करता था। आज भी तीसरे विश्व (Third World) के कुछ अविकसित राष्ट्रों में जहाँ उत्पादन कम होता है यही विचारधारा प्रचलित है।

2. उत्पाद (वस्तु) अवधारणा (Product concept) – यह विचारधारा वस्तु की किस्म, गुण, डिजाइन आदि पर बल देती है। इस धारणा का मानना है कि ग्राहक केवल वस्तु की किस्म, गुण, डिजाइन व आकर्षकता पर जोर देता है तथा ग्राहक सदैव श्रेष्ठ माल चाहते हैं। अतः सदैव उत्तम किस्म एवं आकर्षक माल तैयार करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
‘उत्पाद उपयोगिताओं का समूह होता है। क्या आप इससे सहमत हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद अवधारणा, शब्द सर्वप्रथम थियोडोर लेविट द्वारा प्रयोग में लाया गया था। उनके अनुसार
“उत्पाद अवधारणा से आशय उपयोगिताओं के योग से है जिसमें विभिन्न उत्पाद विशेषताएँ तथा सेवाएँ सम्मिलित होती है” एक प्रस्तावना को विकसित करते समय एक विपणनकर्ता उत्पाद स्तरों की अवधारणा का अनुसरण कर सकता है

(1) प्रथम स्तर पर मूलभूत लाभ होते हैं अर्थात् आधारभूत या आधारिक लाभ जिसे ग्राहक उस उत्पाद या सेवा से प्राप्त करते हैं जिसे वे क्रय करते हैं । उदाहरण के लिए एक कार द्वारा प्रदान किए जाने वाले मूलभूत लाभ परिवहन सुविधा है।

(2) उत्पाद या सेवा का द्वितीय स्तर ग्राहक उस उत्पाद या सेवा से क्या आशा करता है जिसे वह क्रय कर रहा है। उदाहरण के लिए एक ग्राहक आशा करता है कि कार चलाने में सुविधाजनक हो, बेहतर औसत, अच्छा आकार और शैली इत्यादि हो।

(3) उत्पाद या सेवा का तृतीय स्तर वृद्धि अवधारणा है अर्थात् प्रतिस्पर्धी के उत्पाद से बेहतर कैसे है। वृद्धि का अर्थ है अतिरिक्त विशेषताएँ जिन्हें एक विपणनकर्ता को उत्पाद या सेवा में जोड़ना चाहिए जो ग्राहक की मूलभूत आकांक्षा से अधिक हो, उदाहरण के लिए, कार में विपणनकर्ता मुफ्त बीमा, मुफ्त सीट कवर या विक्रय बाद की सेवा प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 4.
औद्योगिक उत्पाद क्या है ? यह उपभोक्ता उत्पादों से किस प्रकार भिन्न है ? समझाइए।
उत्तर:
औद्योगिक उत्पाद का अर्थ-औद्योगिक उत्पाद उपभोक्ताओं के उपभोग हेतु नहीं होते बल्कि कारखानों में उपभोक्ता माल बनाने के काम आते हैं।
परिभाषा –
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन की परिभाषा समिति के अनुसार- “औद्योगिक उत्पाद वे हैं जो मुख्यतः अन्य माल के उत्पादन में अथवा सेवाएँ प्रदान करने में प्रयोग हेतु बनाये जाते हैं। इनमें साज-सामान, संघटक हिस्से, अनुरक्षण, मरम्मत, परिचालन आपूर्तियाँ, कच्चा माल और गढ़ी हुई सामग्रियाँ सम्मिलित हैं।”

औद्योगिक उत्पाद बनाम उपभोक्ता उत्पाद विपणन हैं। औद्योगिक उत्पाद और उपभोक्ता उत्पाद एकदूसरे से भिन्न हैं। औद्योगिक उत्पादों की माँग को प्रायः व्युत्पन्न माँग की संज्ञा दी जाती है। इसके अतिरिक्त उपभोक्ता के संबंध में जानकारी की आवश्यकता के संबंध में भी औद्योगिक और उपभोक्ता के उत्पादों में भिन्नता की जा सकती है। अतः औद्योगिक उत्पादों के संबंध में वैयक्तिक विक्रय पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके विपरीत उपभोक्ता उत्पादों के संबंध में अधिकांश विज्ञापन अवैयक्तिक विक्रय द्वारा किया जाता है।
औद्योगिक उत्पाद एवं उपभोक्ता उत्पाद में भिन्नता
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प्रश्न 5.
सुविधा उत्पाद एवं प्रतिदिन के उपयोगी उत्पादों में अंतर कीजिए।
उत्तर:
सुविधा उत्पाद-सुविधाजनक उत्पाद वे हैं जिन्हें उपभोक्ता बार-बार ; तुरंत एवं न्यूनतम तुलना करके और बहुत कम क्रय मूल्यों पर खरीदता है जैसे-साबुन, अखबार, माचिस, सिगरेट, बीड़ी, दवाइयाँ इत्यादि। ऐसे उत्पाद टिकाऊ नहीं होते हैं और उपभोक्ता द्वारा इसे शीघ्रता से खत्म कर दिया जाता है। ऐसे उत्पादों को उपभोक्ता द्वारा बार-बार क्रय किया जाता है और इसे प्रायः उपभोक्ता अग्रिम रूप से खरीदकर नहीं रखते हैं।

प्रतिदिन उत्पाद (बिक्रीगत उत्पाद)-प्रतिदिन उत्पाद या बिक्रीगत उत्पाद वे होते हैं जिनका चुनाव और क्रय करने से पूर्व उपभोक्ता उपयुक्तता, किस्म, कीमत और शैली आदि आधारों पर विभिन्न निर्माताओं के उत्पादों से तुलना करता है । इन उत्पादों में फर्नीचर, जूते, बढ़िया चीनी के बर्तनों के सेट, महिला परिधान, कीमती साड़ियाँ आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। प्रतिदिन उत्पादों में क्रेता बाजार में घूम-फिर कर विभिन्न भंडारों पर कीमत और किस्म की तुलना करने के पश्चात् ही क्रय करते हैं।

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प्रश्न 6.
उत्पादों के विपणन में लेबलिंग के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन में लेबलिंग के कार्य- लेबलिंग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

1. उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता-लेबलिंग का प्रमुख कार्य विक्रय संवर्द्धन करना है। एक आकर्षक लेबल ग्राहकों को उत्पाद खरीदने के लिए अभिप्रेरित करता है। आज लेबलिंग का विक्रय संवर्द्धन का एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है।

2. उत्पाद का विवरण एवं विषय-वस्तु-लेबल पर निर्माता उत्पादन से संबंधित पूर्ण जानकारी प्रदान करता है। लेबल पर दी जाने वाली मुख्य जानकारी इस प्रकार है:

  1. वस्तु किन-किन चीजों को मिलाकर तैयार की गई
  2. इसकी प्रतियोगिता
  3. प्रयोग करने में सावधानियाँ
  4. प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
  5. उत्पादन तिथि
  6. बैच नंबर आदि।

3. उत्पाद अथवा ब्राण्ड की पहचान कराना-लेबल अनेक वस्तुओं में से किसी एक विशेष वस्तु को पहचानना संभव बनाता है। उदाहरण के लिए एक ढेर में अनेक साबुनें रखी हैं । आप लिरिल साबुन लेना चाहते हैं। लेबल की मदद से इच्छित साबुन को पहचानना संभव होता है।

4. कानून सम्मत जानकारी देना-लेबलिंग का एक और महत्वपूर्ण कार्य कानूनी रूप से अनिवार्य वैधानिक चेतावनी देना है। सिगरेट के पैकेट पर ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा पान मसाले के पैकैट पर ‘तंबाकू चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’ लिखा जाना वैधानिक चेतावनी के उदाहरण है।

5. उत्पादों का श्रेणीकरण-जब एक ही उत्पाद की कई क्वालिटी होती हैं तो लेबल ही यह बताता है कि किस पैक में किस क्वालिटी का उत्पाद है। उदाहरण के लिए-हिन्दुस्तान लीवर लिमि. तीन किस्म की चाय बनाती है। प्रत्येक किस्म की चाय की अलग पहचान करने के लिए हरे, लाल व पीले रंग के लेबल का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 7.
उपभोक्ता एवं गैर टिकाऊ उत्पादों के वितरण में मध्यस्थों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गैर टिकाऊ उत्पादों, अस्थायी उत्पादों जैसे-टूथपेस्ट, साबुन, डिटर्जेंट इत्यादि के वितरण के लिए द्वि-स्तरीय माध्यम का प्रयोग किया जाता है। इस माध्यम में उत्पादों को बेचने के लिए फर्मों द्वारा बिचौलियों को शामिल किया जाता है। जैसे इसे निम्न चित्र द्वारा समझा जा सकता है
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निर्माता थोक विक्रेता को अधिक मात्रा में वस्तुएँ बेचता है और थोक विक्रेता फुटकर विक्रेता को कम मात्रा में बेचता है, फुटकर विक्रेता इन्हें अंतिम ग्राहकों को बेचता है।

प्रश्न 8.
वितरण के माध्यमों के चयन में निर्धारक तत्वों को समझाइए।
उत्तर:
वितरण के माध्यमों के चयन में निर्धारक तत्व-निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। वितरण के उपयुक्त माध्यम को निर्धारित करने वाले घटक अग्र हैं –

(I) बाजार अथवा विपणि संबंधी-बाजार संबंधी निम्न बातें वितरण माध्यम के चुनाव पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।

1. संभावित ग्राहकों की संख्या-यदि वस्तु विशेष का संभावित बाजार विस्तृत (जैसे-कपड़ा, अनाज, साइकिल आदि) है तो मध्यस्थों की सेवाओं का सहारा लेना होगा। इसके विपरीत यदि वस्तु का बाजार देशव्यापी है तो ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के विक्रय के तरीकों को अपनाना होगा।

2. आदेशों का आकार-यदि आदेश कम किंतु बड़ी मात्रा में आते हैं तो प्रत्यक्ष विक्रय के तरीकों को अपनाना चाहिए। इसके विपरीत यदि आदेश बहुत अधिक आते हैं किंतु आदेशित वस्तुओं की मात्रा कम होती है तो थोक व्यापारियों की सहायता लेनी होगी।
3. ग्राहकों की क्रय करने संबंधी आदतें-ये भी वितरण के माध्यम को प्रभावित करती हैं जैसे-उधार क्रय करने की इच्छा, क्रय के उपरांत की सेवा, व्यय करने की आदत आदि।

(II) वस्तु या उत्पादक संबंधी बातें-वस्तु की प्रकृति तथा निम्न विशेषताएँ वितरण में मध्यस्थों की संख्या आदि को निश्चित वितरण में मध्यस्थों की संख्या आदि को निश्चित एवं प्रभावित करती हैं। इस प्रकार यह वितरण के माध्यमों को प्रभावित करती है

1. वस्तु का स्वभाव-शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के लिए कम-से-कम मध्यस्थों की जरूरत होती है। शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का जल्दी विक्रय करना जरूरी होता है नहीं तो इनके खराब होने का भय होता है। अतः ऐसी वस्तु का फुटकर व्यापारियों द्वारा विक्रय करना ही उचित होता है। जबकि टिकाऊ वस्तुओं का बाजार विस्तृत होता है। इसलिए इसके विक्रय के लिए मध्यस्थों की आवश्यकता होगी।

2. मूल्यवान व भारी वस्तुओं का विक्रय-जैसे कूलर, फ्रीज, पंखे, स्कूटर, मोटर, अलमारी आदि। ऐसे विक्रेता मध्यस्थों को चुनना चाहिए जिनके पास संग्रहालय की सुविधा हो। इनके बिक्री के लिए कम मध्यस्थों की आवश्यकता होती है।

3. सरकारी नियमन-वस्तु के वितरण माध्यम पर सरकारी नियंत्रण होने पर उनके विक्रय के लिए सरकार द्वारा अधिकृत विक्रेताओं की आवश्यकता होगी।

(III) मध्यस्थों संबंधी बातें-मध्यस्थ संबंधी बातें भी वितरण पर प्रभाव डालती हैं जैसे-(1) वितरण की लागत, (2) भावी विक्रय की मात्रा, (3) मध्यस्थों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ।

प्रश्न 9.
भौतिक वितरण के घटकों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
भौतिक वितरण के घटक-भौतिक वितरण सेवा प्रदान करने हेतु प्रबंध को मुख्यतः चार निर्णय लेने पड़ते हैं
1. आदेश प्रक्रिया-इस प्रक्रिया से आशय ग्राहक से आदेश प्राप्त करने और आदेशानुसार वस्तुओं की सुपुर्दगी में लगने वाले समय और अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से है। सामान्य रूप से आदेश प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं-

  1. विक्रयकर्ता को आदेश देना
  2. विक्रयकर्ता द्वारा आदेश कंपनी को भेजना
  3. कंपनी द्वारा ग्राहक की साख की जाँच
  4. कंपनी द्वारा स्टॉक मात्रा
  5. आदेश के अनुसार वस्तुओं की सुपुर्दगी करना इत्यादि।

2. परिवहन-परिवहन का आशय है कि उत्पादन के स्थान से वस्तुओं को भौतिक रूप से आवश्यकता वाले स्थान पर पहुँचाना। परिवहन उस स्थान पर, जहाँ वस्तुओं की आवश्यकता होती है, पहुँचाने द्वारा वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करता है। उदाहरण के लिए चाय का दार्जिलिंग, गंगटोक, असम इत्यादि में उत्पादन किया जाता है परंतु इसका परिवहन पूरे देश में किया जाता है और साथ ही चाय उत्पादन क्षेत्र की तुलना में दूसरे देशों में इसका मूल्य उच्च होता है।

3. भंडारणं-जो भी उत्पादित किया जाता है, उसको तुरंत बेचा नहीं जाता। इसीलिए प्रत्येक कंपनी को निर्मित वस्तुओं को संग्रह करने की आवश्यकता होती है जब तक उन्हें बाजार में बेचा नहीं जाता। कुछ फसलों का संग्रह करना जरूरी होता है क्योंकि उनकी माँग वर्ष भर होती है और इनका उत्पादन भी मौसमी होता है इसलिए इसे पूरे वर्ष आपूर्ति के लिए भंडारण करना आवश्यक होता है। .

4. स्टॉक मात्रा-इससे अभिप्राय वस्तुओं के स्टॉक को रखने या उसके अनुरक्षण से है। स्टॉक को बनाए रखने की आवश्यकता होती है ताकि जब भी वस्तुओं की माँग हो उनकी पूर्ति की जा सके। उचित स्टॉक अनुरक्षण उत्पाद उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।

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प्रश्न 10.
विज्ञापन की परिभाषा दीजिए।इसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ? समझाइए।
उत्तर:
विज्ञापन का अर्थ-विज्ञापन शब्द दो शब्दों विज्ञापन से मिलकर बना है जिसका आशय क्रमशः विशेष एवं जानकारी देने से लगाया जाता है। इस प्रकार विज्ञापन शब्द से तात्पर्य विशिष्ट जानकारी प्रदान करना है। इसके अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की जानकारी उपभोक्ता तक पहुँचाना एवं विज्ञापन के माध्यम से ही उपभोक्ता की रुचि व आदत को ज्ञात करना शामिल है।
परिभाषाएँ

1. डॉ. जॉन्स के अनुसार – “विज्ञापन उत्पादन को बहुत बड़ी मात्रा में विक्रय करने की एक मशीन है जो विक्रेता की वाणी और व्यक्तित्व को सहायता पहुँचाती है।”

2. लस्कर के अनुसार – “विज्ञापन मुद्रण के रूप में विक्रय कला है।” विज्ञापन की विशेषताएँ-विज्ञापन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1. अवैयक्तिक संचार – विज्ञापन पूर्णतः अव्यक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए नहीं किया जाता अपितु यह जनसामान्य के लिए किया जाता है।

2. विज्ञापन प्रकाशन से भिन्न है – विज्ञापन खुला होता है जबकि प्रकाशन बंद रहता है। विज्ञापन व प्रकाशन दोनों के स्वभाव, उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।

3. व्यापक संचार – विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, वैयक्तिक विक्रय के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी आदि के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है। अतः विज्ञापन में व्यापक संचार साधनों का प्रयोग किया जाता है।

4. ग्राहक बनाना उद्देश्य – विज्ञापन का एक प्रमुख उद्देश्य है ग्राहक बनाना। नये ग्राहक बनाना, पुराने ग्राहकों को स्थायी ग्राहक बनाकर अपनी वस्तु का अधिकतम विक्रय करना विज्ञापन का उद्देश्य है।

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प्रश्न 11.
विपणन के उद्देश्य लिख़िये।।
उत्तर:
विपणन प्रबन्धक के उद्देश्य-

  1. विपणन कार्यों का नियोजन करना
  2. विपणन व्ययों में कमी लाना
  3. विपणन का उचित संगठन करना
  4. विपणन का उचित नेतृत्व करना
  5. विपणन कार्यों में समन्वय बनाना
  6. विपणन कार्यों का मूल्यांकन करना
  7. रोजगार एवं क्रय शक्ति में वृद्धि करना
  8. सामाजिक जीवन स्तर को बढ़ाना
  9. माँग व पूर्ति के मध्य समन्वय बनाना
  10. माँग का पूर्वानुमान लगाना
  11. नये बाजार की खोज करना।

प्रश्न 12.
विपणन व विक्रयण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विपणन व विक्रयण में अन्तर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध IMAGE - 13

प्रश्न 13.
विपणन के कार्य लिखिये।
उत्तर:
विपणन के कार्य –

(अ) नियोजन सम्बन्धी कार्य –

  1. विपणन अनुसन्धान
  2. वस्तु नियोजन एवं विकास
  3. वस्तु का प्रमापीकरण
  4. पैकेजिंग
  5. वस्तु विविधीकरण।

(ब) वितरण सम्बन्धी कार्य –

  1. क्रय एवं संग्रहण
  2. भण्डारण
  3. परिवहन
  4. बीमा
  5. बाजार वर्गीकरण।

(स) विक्रय सम्बन्धी कार्य –

  1. विज्ञापन
  2. मूल्य निर्धारण
  3. व्यक्तिगत विक्रय
  4. विक्रय शर्तों का निर्धारण
  5. उधार वसूली
  6. विक्रय पश्चात् सेवा।

प्रश्न 14.
विज्ञापन के छः उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. नयी माँग उत्पन्न करना
  2. ख्याति में वृद्धि करना
  3. नये ग्राहक आकर्षित करना
  4. विक्रयकर्ता की सहायता
  5. प्रतिस्पर्धा का सामना करना
  6. उत्पादन लागत में कमी करना।

प्रश्न 15.
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्वों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं

(अ) बाजार संबंधी तत्व –

  1. उपभोक्ता का व्यवहार
  2. प्रतिस्पर्धा
  3. सरकारी नियंत्रण।

(ब) विपणन संबंधी तत्व –

  1. उत्पाद नियोजन
  2. ब्राण्ड नीति
  3. संवेष्ठन नीति
  4. वितरण वाहिकाएँ
  5. विज्ञापन नीति
  6. विक्रय संवर्धन
  7. भौतिक वितरण
  8. बाजार अनुसंधान।

प्रश्न 16.
विक्रय संवर्द्धन से क्या आशय है ? इसके कोई चार उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन-किसी वस्तु के सामान्य विक्रय की मात्रा में वृद्धि करने की क्रियायें विक्रय संवर्द्धन कहलाती हैं । इसके अन्तर्गत कूपन, पोस्टर्स, प्रदर्शनी, प्रसार-प्रचार, संपर्क, ईनामी योजना, मूल्य वापसी, गारण्टी, प्रीमियम एवं प्रतियोगिताओं को शामिल किया जाता है।
उद्देश्य-

  1. नये ग्राहकों को वस्तुओं एवं सेवा के संबंध में जानकारी प्रदान कर क्रय हेतु प्रेरित करना।
  2. आम लोगों में वस्तु को लोकप्रिय बनाना
  3. वर्तमान ग्राहकों को स्थायी बनाना।
  4. उपभोक्ताओं, विक्रेताओं को वस्तु से परिचित कराकर उनका ज्ञान बढ़ाना।

प्रश्न 17.
एक अच्छे पैकेजिंग की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पैकेजिंग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. पैकेजिंग एक कला व विज्ञान है।
  2. इसका संबंध उत्पादन नियोजन से है।
  3. इसका उद्देश्य वस्तु को सुरक्षित रखकर उपभोग के योग्य बनाये रखना होता है।
  4. इसके अन्तर्गत लेबलिंग व ब्राण्डिंग की क्रियाएँ स्वतः शामिल हो जाती हैं।
  5. यह विज्ञापन का कार्य करता है।

प्रश्न 18.
अच्छे ब्राण्ड का नाम चयन करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
एक अच्छे ब्राण्ड के आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक अच्छे ब्राण्ड के लिए अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. ब्राण्ड का नाम छोटा व सामान्य होना चाहिए।
  2. नाम का उच्चारण सरल होना चाहिए।
  3. नाम स्मरणीय होना चाहिए।
  4. ब्राण्ड का नाम आकर्षक होना चाहिए।
  5. ब्राण्ड का नाम पंजीकरण योग्य होना चाहिए।
  6. ब्राण्ड के नाम से वस्तु की जानकारी होने का गुण होना चाहिए।

प्रश्न 19.
निम्न को संक्षेप में समझाइये

(अ) लेबलिंग
(ब) विक्रय संवर्धन
(स) विज्ञापन।

उत्तर:

(अ) लेबलिंग-लेबिल शब्द का आशय एक ऐसी पर्ची या पत्र से है जिसमें कुछ सूचना या विवरण दिया रहता है। इस सूचना पत्र में पूर्ण विवरण के साथ उपयोग की विधि, उत्पादक का नाम, कीमत व जीवन अवधि आदि का उल्लेख रहता है।
मैसन एवं रथ के अनुसार -“लेबिल सूचना देने वाली चिट, लपेटने वाला कागज या सील है जो वस्तु या पैकेज से जुड़ी रहती है।”
लेबिल के प्रकार निम्नलिखित होते हैं

1. ब्रांड लेबिल- इस प्रकार के लेबिल में ब्रांड का नाम या चिन्ह या कोई डिजाइन हो सकता है जैसेरेडलेबिल चाय का ब्रांड या बुक ब्रांड इंडिया लिमिटेड आदि।

2. वर्ग लेबिल- इस प्रकार के लेबिल संख्यात्मक होते हैं । वर्ग लेबिल में संख्याएं वस्तु की क्वालिटी या किसी विशिष्ट वर्ग की जानकारी प्रदान करते हैं । जैसे- गेहूँ के बैग में PR-20 K-68 ‘7’ ° clock ब्लेड ग्रेड ए आदि वर्ग आदि वर्ग के लेबिल लगे रहते हैं।

3. विवरणात्मक लेबिल- इस प्रकार के लेबिलों में उत्पाद के संबंध में पूर्ण जानकारी दी जाती है। जैसे- वस्तु का मिश्रण, तैयार करने की विधि, वस्तु के प्रयोग करने का ढंग, वस्तु का अधिकतम दाम, वस्तु की प्रभावी अवधि की जानकारी आदि।

(ब) विक्रय संवर्धन- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 16 देखिये।

(स) विज्ञापन-विज्ञापन शब्द का तात्पर्य विशिष्ट जानकारी प्रदान करना है। वर्तमान में विज्ञापन शब्द काफी विस्तृत अर्थ से लिया जाने लगा है जिसके अंतर्गत उत्पादित वस्तु की जानकारी उपभोक्ताओं तक पहुँचाना एवं उपभोक्ता की रुचि व आदत की जानकारी प्राप्त करता है।
लस्कर के अनुसार- “विज्ञापन मुद्रण के रूप में विक्रय कला है।’
विज्ञापन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. अवैयक्तिक संचार-विज्ञापन पूर्णतः अवैयक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए नहीं होता अपितु जनसामान्य के लिये किया जाता है।

2. व्यापक संचार-विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, वैयक्तिक विक्रय के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी आदि के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है। अतः विज्ञापन में व्यापक संचार साधनों का प्रयोग किया जाता है।

3. दैनिक व्यावसायिक क्रिया-विज्ञापन व्यवसाय का अंग बन गया है। व्यवसाय की अन्य क्रियाओं की भाँति विज्ञापन भी दैनिक व्यावसायिक क्रिया बन गई है।

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प्रश्न 20.
ब्राण्डिंग तथा ट्रेडमार्क में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्राण्डिंग तथा ट्रेडमार्क में भेद –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध IMAGE - 14

प्रश्न 21.
विज्ञापन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निम्न विशेषताएँ दी जा सकती हैं

1. व्यापक संचार-विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, पत्र-पत्रिकाओं में, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है।

2. विज्ञापन व्यय का भुगतान-विज्ञापन व्यय को वह व्यक्ति वहन करता है जिसके द्वारा विज्ञापन कराया जाता है। सामान्यतः विज्ञापन से लाभान्वित पक्ष ही विज्ञापन व्यय का भुगतान करता है।

3. विज्ञापन प्रकाशन से भिन्न है-विज्ञापन खुला होता है जबकि प्रकाशन बन्द रहता है। विज्ञापन व प्रकाशन दोनों के स्वभाव, उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।

4. अवैयक्तिक संचार-विज्ञापन पूर्णत: अवैयक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिये नहीं किया जाता अपितु यह जन सामान्य के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 22.
विज्ञापन एवं विक्रय सवर्द्धन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन एवं विक्रय सवर्द्धन में अन्तर निम्नलिखित हैं
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प्रश्न 23.
मूल्य का अर्थ बताइए एवं उसे प्रभावित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
मूल्य का अर्थ-मूल्य से आशय किसी उत्पाद या सेवा के लिए ग्राहक से वसूल की जाने वाली मुद्रा से है। दूसरे शब्दों में, यह उत्पाद का विनिमय मूल्य है अर्थात् ग्राहक को उत्पाद के बदले में देता है।
परिभाषा – वॉल्टन हैमिल्टन के अनुसार – “मूल्य उन सभी दशाओं का मौद्रिक सार है जो एक उत्पाद को मूल्यन प्रदान करता है।”
मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले घटक-मूल्य या मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले निम्न घटक हैं

1. उत्पादन लागत-उत्पादन लागत मूल्य को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण घटक है। कोई भी व्यवसायी अपने उत्पाद को उत्पादन लागत में जोड़ दिया जाता है।

2. लाभ दर-लाभ की दर भी मूल्य को प्रभावित करती है। व्यवसायी चाहे तो लाभ की अधिक दर निर्धारित कर सकता है अथवा लाभ की कम दर निर्धारित कर सकता है, जैसे-लाभ की 5% दर अथवा 10% दर। इसे भी उत्पाद की लागत में जोड़ दिया जाता है।

3. प्रतिस्पर्धा-बाजार में विद्यमान प्रतिस्पर्धा भी उत्पाद के मूल्य के निर्धारण को प्रभावित करती है। इसमें प्रतियोगी फर्मों के मूल्य पर विचार करना आवश्यक है।

4. अपनाई गई विपणन विधियाँ-विक्रेता द्वारा किसी उत्पाद के विपणन के संबंध में अपनाई जाने वाली विधियाँ भी मूल्य निर्धारण को प्रभावित करती है। इस पर होने वाले व्यय को भी मूल्य में जोड़ दिया जाता है; जैसे-विक्रय के उपरांत ग्राहकों को अर्पित की जाने वाली सेवाओं पर होने वाला खर्च तथा मध्यस्थों की सेवाएँ लेने पर दिया जाने वाला कमीशन।

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प्रश्न 24.
ब्राह्य विज्ञापन से क्या आशय है ? उसके विभिन्न प्रारूपों को समझाइए।
उत्तर:
ब्राह्य विज्ञापन का अर्थ-ब्राह्य विज्ञापन से आशय दीवारों, गली के कोनों, सड़कों के किनारों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैण्डों, चलते-फिरते वाहनों आदि पर विज्ञापन करने से होता है। . ब्राह्य विज्ञापन के प्रारूप- इसके प्रारूप निम्नलिखित हैं

1. पोस्टर्स- पोस्टर्स से हमारा आशय विज्ञापन का संदेश रखने वाले ऐसे छपे हुए कागजों, कार्ड-बोर्डों तथा धातु या लकड़ी की प्लेटों से होता है जो चौराहों, रेलवे स्टेशनों, सड़क एवं गलियों के किनारे तथा दुकानों के बाहर एवं अंदर लगे रहते हैं।

2. विज्ञापन बोर्ड-विज्ञापन बोर्ड को साइन बोर्ड भी कहा जाता है। अपितु साइन बोर्ड वे होते हैं जिन्हें स्टील की चादर पर बड़े-बड़े अक्षरों में आकर्षक ढंग से लिखवाकर चौराहे पर या दुकान के ऊपर टाँग दिया जाता है।

3. बिजली द्वारा सजावट-विज्ञापन बोर्डों को जब बिजली द्वारा सजावट कर दी जाती है तब इसे बिजली द्वारा सजावट के विज्ञापन कहते हैं । इसमें बोर्ड के आसपास झालर या छोटे-छोटे बल्ब, ट्यूब लाइटों के अक्षरों के बोर्ड, जलते-बुझते बल्ब या लाईन से एक के बाद एक जलने वाली सीरीज आदि प्रमुख होते हैं।

4. सैण्डविच मैन विज्ञापन-बाह्य विज्ञापन का एक महत्वपूर्ण व विशिष्ट विज्ञापन माध्यम है। इसमें किसी व्यक्ति को विचित्र व असामान्य कपड़े पहनाकर शरीर पर अद्भुत पोस्टर लगा दिये जाते हैं। साथ ही सिर पर एक लंबी नोक वाली टोपी पहना दी जाती है इस प्रकार इस व्यक्ति को शहर की गलियों में, मेलों में या जहाँ भीड़ हो ऐसे स्थलों पर घुमाया जाता है। साथ में एक ढोल भी रहता है, ढोल की विशिष्ट आवाज व असामान्य व्यक्ति आकर्षण का केंद्र बन जाता है। जैसे बीड़ी, सिगरेट, दवाएँ व अन्य सामग्री के विज्ञापन के लिए यह अच्छी विधि है।

प्रश्न 25.
विपणन की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
विपणन की विशेषताएँ (Features of marketing)

1. आवश्यकताएँ (Needs) – विपणन प्रक्रिया के द्वारा ग्राहकों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ तथा सेवाएँ प्राप्त होती हैं । आवश्यकता से अभिप्राय ग्राहक की मानसिक स्थिति है जिसमें यदि उसकी वह आवश्यकता की पूर्ति न हो तो वह अपने आपको बेचैन महसूस करता है।

2. बाजार में माँगी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना (Creating a market offering) – बाजार में माँगी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं का उत्पादन करना है जो एक निश्चित कीमत पर ग्राहकों द्वारा अपनी चाहतों तथा इच्छाओं की पूर्ति हेतु माँगी जाती हैं।

3. उपभोक्ता मूल्य (Customer value) – उत्पादक कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करे तथा किन वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचाए, इस तथ्य का निर्धारण उपभोक्ता करते हैं । उन्हें कौन से पदार्थ से अधिक संतुष्टि मिलती है अथवा उन्हें पहले कौन-सी वस्तु या सेवा की आवश्यकता है इसका निर्णय उपभोक्ता करते हैं। उत्पादक उसी के अनुसार वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन कर ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।
4.हस्तांतरण प्रक्रिया (Exchange mechanism) – विपणन का आधार एक्सचेंज प्रक्रिया है। ग्राहक उत्पादकों को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य देते हैं परिणामतः वे ग्राहकों की आवश्यकताओं की संतुष्टि करने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 26.
हस्तांतरण प्रक्रिया की आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हस्तांतरण प्रक्रिया की आवश्यक शर्ते (Essential conditions of exchange mechanism) –

  1. दो पक्षों अर्थात् ग्राहक तथा उत्पादकों की आवश्यकता होती है।
  2. दोनों पक्षों में एक-दूसरे की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए।
  3. दोनों पक्षों में एक-दूसरे से संप्रेषण करने की योग्यता होनी चाहिए। संप्रेषण के अभाव में कोई भी प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती।
  4. दोनों पक्षों में एक-दूसरे के विचारों को अपनाने या छोड़ने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।

प्रश्न 27.
विपणन प्रबंध से क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रक्रिया लिखिए।
उत्तर:
विपणन प्रबंध (Marketing management)- विपणन संबंधी समस्त क्रियाओं के नियोजन, संगठन तथा नियंत्रण को विपणन प्रबंध कहते हैं।
विपणन प्रबंध की प्रक्रिया (Process of marketing management)-

  1. एक उपयुक्त बाजार का चुनाव।
  2. उस बाजार के ग्राहकों की आवश्यकताओं को भली-भाँति समझकर उनको पूरा करना। 3. अधिक-से-अधिक मात्रा में क्रेताओं को वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदने के लिए प्रेरित करना।

प्रश्न 28.
विपणन धारणा के कौन-से स्तंभ हैं ?
उत्तर:
विपणन धारणा के स्तंभ (Pillars of marketing concept)-

  1. बाजार अथवा ग्राहकों का पता लगाना जिन्हें विपणन के प्रयासों का लक्ष्य बनाया जा सके।
  2. लक्ष्य वाले बाजार में ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को समझना।
  3. लक्ष्य वाले बाजार की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादों अथवा सेवाओं का विकास करना।

प्रश्न 29.
ब्रांडिंग में उपयोग होने वाली विभिन्न व्यूह रचनाओं को समझायें।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की व्यूह रचना (Strategy) जिनका ब्रांडिंग में प्रयोग किया जाता है

  1. ब्रांड (Brand)- इसके अंतर्गत प्रत्येक उत्पाद के लिए फर्म द्वारा अलग-अलग ब्रांड का प्रयोग किया जाता है जिससे वह अपने ब्रांड को दूसरी कंपनियों के ब्रांड से अलग रख सके।
  2. ब्रांड को नाम देना (Brand name)- ब्रांड को जिस नाम से पुकारा अथवा बुलाया जाता है उसे ब्रांड का नाम कहा जाता है।
  3. ब्रांड मार्क (Brand mark)- जब ब्रांड के साथ में कोई निशान अथवा मार्क बनाया जाता है उसे ब्रांड मार्क कहा जाता है।
  4. व्यापार चिन्ह (Trade mark)- व्यापार का वह चिह्न जिसे कोई जानी-मानी हस्ती चलाती है, व्यापार चिन्ह कहलाता है। यह सामान्य रूप में एक चिन्ह, प्रतीक, निशान, शब्द या कई शब्द होते हैं । व्यापार चिन्ह उत्पाद को उसी श्रेणी के दूसरे उत्पादों से अलग रखता है।

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प्रश्न 30.
बिक्री संवर्धन के विभिन्न उपायों को बताइये।
उत्तर:
बिक्री संवर्धन के विभिन्न उपाय (Techniques of sales promotion)

  1. मुफ्त नमूने बाँटना (Distribution of free samples) – दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के नमूने विशिष्ट व्यक्तियों में बाँटकर उन्हें लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जाता है।
  2. कूपन (Coupon)- कूपन एक ऐसी पर्ची है जिसके आधार पर उपभोक्ता वस्तु खरीदते समय कुछ बचत कर सकता है।
  3. प्रीमियम (Premium)- इसका अर्थ है- एक वस्तु क्रय करने वाले को एक अन्य वस्तु मुफ्त देना।
  4. व्यापारिक टिकटें (Trading stamps)- इसके अंतर्गत वस्तु की खरीद पर प्रायः 20 प्रतिशत की दर से टिकटें दी जाती हैं। उपभोक्ता वे टिकटें एकत्रित करता रहता है। जब टिकटें 100 रु. से अधिक की हो जाती हैं तो वह इनके बदले की उतनी राशि की कोई वस्तु निर्धारित दुकान से प्राप्त कर लेता है।
  5. इनामी प्रतियोगिता (Prize contests)- उत्पादक अक्सर प्रतियोगिताएँ आयोजित करते रहते हैं।

प्रश्न 31.
वितरण के माध्यम के कार्य बताइये।
उत्तर:
वितरण माध्यम के कार्य (Functions of distribution channels)

  1. छाँटना (Sorting)- वितरण के माध्यम के द्वारा अलग-अलग वस्तुओं को क्वालिटी, रंग, किस्म इत्यादि गुणों के आधार पर छाँटा जाता है।
  2. एकत्रित करना (Accumulation)- छाँटने के बाद एक गुण वाले सभी पदार्थों को बड़े-बड़े कंटेनर्स अथवा जगहों पर एकत्रित किया जाता है।
  3. छोटे-छोटे वर्गों में बाँटना (Allocation)- एक जैसे पदार्थों को एक जगह पर एकत्रित करने के बाद संभालने के दृष्टिकोण से तथा ग्राहकों में बेचने के लिए तथा लेबलिंग व ब्रांडिंग के दृष्टिकोण से छोटे-छोटे समूहों में बाँटा जाता है।
  4. अन्य पदार्थों को भी साथ में मिलाना (Assortment)- केवल एक पदार्थ को वितरित करने से न उपभोक्ता की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं और न ही वितरण के माध्यम अपनी लागत निकालने में सफल होते हैं। अतः वे तीन अथवा चार अधिक वस्तुओं के समूहों को वितरित करते हैं।

प्रश्न 32.
विपणन अवधारणा की विशेषताएँ बताइए। – उत्तर– विपणन अवधारणा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. विपणन धारणा उपभोक्ता मूलक है जिसमें विपणन प्रक्रिया उत्पादन से पहले प्रारंभ हो जाती है और वस्तुओं या सेवाओं के हस्तांतरण के बाद भी चलती रहती है।

2. इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है और उन्हों वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है जो माँग के अनुरूप हों। इसलिए आजकल विपणन शोध एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य बन गया है।

3. इस विचारधारा को कार्यान्वित करने के लिए ग्राहक को सर्वोच्च स्थान देना होगा और ग्राहक के दृष्टिकोण से ही समस्त व्यावसायिक क्रियाओं का संचालन तथा समन्वय किया जाना चाहिए। ग्राहक का सृजन एवं संतुष्टि ही व्यवसाय का औचित्य समझा जाता है।

4. विपणन अवधारणा के अंतर्गत विपणन का अर्थ अधिकतम लाभ कमाना नहीं बल्कि उत्पादक या व्यापारी तथा ग्राहक दोनों की संतुष्टि करना है।

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प्रश्न 33.
‘ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालना’ तथा ‘ग्राहक की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना’ विपणन प्रबंध की दो महत्वपूर्ण अवधारणायें हैं। इन अवधारणाओं की पहचान कर दोनों में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर:
‘ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालना’ विक्रय अवधारणा है जबकि ‘ग्राहक की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना’ विपणन अवधारणा है।
विक्रय अवधारणा तथा विपणन अवधारणा में अंतर- प्रश्न क्र. 35 का उत्तर देखें।

प्रश्न 34.
पैकेजिंग तथा लेबलिंग अवधारणाओं में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर-
पैकेजिंग तथा लेबलिंग में अंतर- पैकेजिंग का अर्थ है उत्पाद के लिए पात्र या रेपर तैयार करना ताकि उत्पाद को परिवहन, बिक्री और उपयोग के लिये तैयार किया जा सके। पैकेजिंग उत्पाद की रक्षा करती है। इससे वस्तु की पहचान होती है। यह स्वतः विज्ञापन का कार्य करता है। यह एक मूक विक्रयकर्ता के रूप में कार्य करता है। यह वस्तुओं को सुरक्षित रखता है। इसके विपरीत लेबलिंग का अर्थ है पैकेज पर पहचान चिन्ह अंकित करना। यह किसी पैकेज का वह भाग है जो उत्पाद तथा उत्पादक के बारे में सूचनायें देता है।

लेबलिंग उत्पाद को पहचान देता है। इस पर उत्पाद का मूल्य लिखा होता है। यह उत्पाद की विभिन्न श्रेणियों को बताता है।

प्रश्न 35.
“आवश्यकताओं को ढूंढ़िए एवं उनकी पूर्ति कीजिए” तथा “वस्तुएँ बनाइए एवं उनकी बिक्री कीजिये ये विपणन प्रबंध की दो महत्वपूर्ण अवधारणायें हैं। पहचान कर दोनों अवधारणाओं में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर:
“आवश्यकताओं को दूँढ़िए एवं उनकी पूर्ति कीजिए” यह विपणन अवधारणा है तथा “वस्तुएँ बनाइए एवं उनकी बिक्री कीजिये” यह विक्रय अवधारणा है।
विपणन अवधारणा तथा विक्रय अवधारणा में अंतर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध IMAGE - 16

प्रश्न 36.
विपणन प्रबंध क्या है ? विपणन प्रबंध के विभिन्न उद्देश्यों को बताइये।
उत्तर:
विपणन प्रबंध का अर्थ-विपणन प्रबंधन, प्रबंध की एक शाखा है। विपणन किसी संस्था के विपणन कार्यों को नियोजित, सुव्यवस्थित व नियंत्रित करता है। –
परिभाषा-

1. फिलिप कोटलर के अनुसार-“संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाये गये विपणन कार्यक्रमों का विश्लेषण नियोजन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण ही विपणन प्रबंध है। ।

2. विलियन जे.स्टैन्टन के अनुसार-“विपणन विचार का क्रियात्मक रूप ही विपणन प्रबंध होता है।’ विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य (Objectives of Marketing Management) –
विपणन एक विस्तृत शब्द है जिसमें उत्पादन से लेकर विक्रय व विक्रय पश्चात् सेवा ( Service after sales) भी शामिल है। इन सभी क्रियाओं के लिये उचित संगठन, नियोजन, नियंत्रण, सम्प्रेषण व समन्वय की कार्यवाही प्रबन्ध के अन्तर्गत आती है। विपणन प्रबन्ध के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं

1. विपणन कार्यों का नियोजन करना – विपणन के अन्तर्गत क्रेताओं की खोज करना, उपभोक्ता के अनुकूल वस्तुओं का निर्माण करना, उचित मूल्य निर्धारित करना, उचित परिवहन एवं भण्डारण व्यवस्था करना, वितरण की उचित व्यवस्था करना, बाजार सूचना आदि महत्वपूर्ण कार्य आते हैं । इन सभी कार्यों को एक योजना के तहत् सम्पादित करने के लिये विपणन प्रबन्ध आवश्यक है। अत: विपणन प्रबन्ध का प्राथमिक उद्देश्य विपणन कार्यों को नियोजित ढंग से करना है।

2. विपणन व्ययों में कमी लाना – वर्तमान प्रतियोगी बाजार में वस्तु की लागत कम-से-कम करने का प्रयास किया जाता है। किसी भी वस्तु की कीमत उत्पादन लागत से काफी अधिक होती है क्योंकि उत्पादन के पश्चात् वितरण एवं विक्रय के समस्त व्यय भी जोड़ दिये जाते हैं। अत: इन व्ययों में कमी लाना विपणन प्रबन्ध का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।

3. विपणन का उचित संगठन करना-बिना विपणन संगठन के विपणन कार्य आसानी से नहीं किया जा सकता है। अत: विपणन के समस्त कार्यों में उचित संगठन व्यवस्था का विकास करना विपणन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

4. विपणन का उचित नेतृत्व करना- खराब नेतृत्व अच्छे से अच्छे संगठन व्यवस्था को नष्ट कर देता है। विपणन कार्यों का निष्पादन सही एवं योग्य व्यक्तियों के द्वारा सम्पन्न कराना विपणन प्रबन्ध का उद्देश्य होता है।

प्रश्न 37.
विपणन के विभिन्न कार्यों को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
विपणन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

1. विपणन अनुसन्धान (Marketing research) – विपणन अनुसन्धान के अन्तर्गत, उपभोक्ताओं की संख्या, उनकी रुचि, फैशन, आदत, आवश्यकता व माँग की जानकारी ज्ञात की जाती है ताकि उसी के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।

2. वस्तु नियोजन एवं विकास (Product planning and development) – उपभोक्ता की सन्तुष्टि व रुचि के अनुरूप वस्तु का विक्रय करने पर ही विक्रेता अधिक लाभ की आशा रख सकता है। वस्तु का निर्माण व विक्रय दो बातों पर निर्भर है, प्रथम-उपभोक्ताओं की पसन्द की वस्तु निर्मित करना और द्वितीय समय-समय पर वस्तु का आकार-प्रकार व रंग में परिवर्तन करना। ये कार्य पूर्व में इंजीनियरिंग व अन्य अनुसंधान विभाग द्वारा किये जाते थे, वर्तमान में इन सभी कार्यों की जिम्मेदारी विपणन की है, अतः वर्तमान में विपणन वस्तु का नियोजन व विकास दोनों कार्य करता है।

3. प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन (Standardization and grading) – प्रमापीकरण विपणन का महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि प्रमाप के आधार पर वस्तु को वर्गीकृत किया जाता है, तत्पश्चात् ही उसका विक्रय सरलतापूर्वक किया जा सकता है। उत्पादक द्वारा विभिन्न ब्रान्ड एवं गुण (Brand and Quality) की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, अतः वस्तु के प्रमाप के अनुरूप उसका वर्गीकरण सम्बन्धी कार्य विपणन द्वारा ही किया जाता है।

4. पैकेजिंग (Packaging) – विक्रय एवं वितरण प्रमापी में अब पैकिंग का विशेष महत्व है अच्छी सी अच्छी वस्तु खराब पैकिंग के कारण कम मूल्य की हो जाती है। इसी कारण वर्तमान में वस्तु की पैकिंग कर उपभोक्ता को देने का एक फैशन चल पड़ा है। वस्तु खराब न हो या उसकी उपयोगिता नष्ट न हो उसके लिए डिब्बों, हार्डबोर्ड, प्लास्टिक की थैलियाँ या पुढे के डिब्बों में पैकिंग कार्य किया जाता है।

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प्रश्न 38.
विक्रय संवर्द्धन एवं वैयक्तिक विक्रय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन एवं वैयक्तिक विक्रय में अन्तर
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प्रश्न 39.
वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ (Characteristics of Personal Selling)

1. प्रत्यक्ष विक्रय (Direct sales) – प्रत्यक्ष विक्रय में विक्रेता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से वस्तु का विक्रय करता है स्वयं सामग्री को लेकर क्रेता से मूल्य प्राप्तकर वस्तु की सुपुर्दगी देती है।

2. वैयक्तिक सम्बन्ध (Personal relation) – वैयक्तिक विक्रय में क्रेता व विक्रेता के मध्य सीधे वैयक्तिक सम्बन्ध होते हैं। क्रेता व विक्रेता के मध्य कोई कड़ी (Chain) नहीं होती है। वैयक्तिगत सम्बन्धों में व्यक्तिगत भेंट एवं निजी अनुरोध उसके सार तत्त्व हैं । बर्नाड लेस्टर के अनुसार “यह एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक सम्पर्क है (Mind to mind approach)

3. वस्तु का ज्ञान (Knowledge of product)—इसमें विक्रेता को वस्तु के गुणों की सम्पूर्ण जानकारी रहती है। अत: वह वस्तु बेचने तक सीमित न रहकर वस्तु का उपयोग, उसके लाभ आदि जानकारी भी क्रेता को देता है।

4. सृजनात्मक कला (Creative art)-वैयक्तिक विक्रय, विक्रय लक्ष्यों की पूर्ति के लिये नये ग्राहक, नयी माँग, नये बाजारों व नये विक्रय व्यवहारों के सृजन की कला है। इसमें विक्रेता नई-नई आवश्यकताओं व माँग को विकसित करता है।

प्रश्न 40.
उत्पादों में अंतर करने में ब्रांडिंग किस प्रकार से सहायक होती है ? क्या यह वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में भी सहायता करती है ? समझाइए।
उत्तर:
ब्रांड एक उत्पादन की पहचान होती है। यह एक नाम चिन्ह या डिजाइन के रूप में हो सकता है। ब्रांड निर्धारण न केवल विक्रेता या उत्पादक को पहचानने के लिए किया जाता है बल्कि आपके उत्पाद को प्रतिस्पर्धी के उत्पाद की तुलना में श्रेष्ठ बनाने के लिए भी किया जाता है।

ब्रांड निर्धारण एक पहचान चिन्ह से कहीं अधिक होता है । यह क्रेता की आशाओं को संतुष्टि प्रदान करने और गुणवत्ता की सुपुर्दगी करने का विक्रेता का वचन होता है। ब्रांड के साथ हम आसानी से पहचान सकते हैं कि विशिष्ट कंपनी से संबंधित सभी उत्पाद कौन से हैं। जब फर्मे किस्म के बारे में अच्छी प्रसिद्धि विकसित करती हैं। तब ब्रांड विश्वस्तता विकसित करने में उनकी सहायता करता है।
ब्रांड वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में सहायक

1. उत्पाद में अंतर्भेद करने में सहायक-ब्रांड के कारण विज्ञापन सरल हो जाता है यह न केवल उत्पाद के बारे में जागरूकता फैलाता है अपितु ब्रांड को भी प्रचलित करता है।

2. नये उत्पादों को परिचित करवाना-ब्रांडिंग एक कंपनी के नये उत्पादों को बाजार में परिचित करवाने का काम करता है। यदि एक कंपनी का ब्रांड नाम प्रसिद्ध हो जाए तो वह कंपनी उसी नाम से अपने किसी अन्य उत्पाद को आसानी से बाजार में उतार सकती है। जैसे-Samsung एक सफल ब्रांड है और इसने इसी ब्रांड का प्रयोग अपने अन्य उत्पादों को बाजार में लाने के लिए किया जैसे-LED;A.C., Computer, Washing Machine इत्यादि।

3. विभेदात्मक मूल्य निश्चित करना-प्रसिद्ध ब्रांड नाम के कारण कंपनी अपने उत्पाद का मूल्य अन्य कंपनियों से भिन्न निश्चित कर सकती है। यदि ग्राहक को एक बार आपका ब्रांड पसंद आ जाए तो भविष्य में वह इसका अधिक मूल्य देने में भी संकोच नहीं करेगा।

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प्रश्न 41.
एक अच्छे विक्रेता के गुण बताइए।
उत्तर:
एक अच्छे विक्रेता के आवश्यक गुण निम्नलिखित हैं

1. व्यक्तित्व-एक अच्छे विक्रेता का एक अच्छा व्यक्तित्व होना चाहिए जैसे एक फूल के लिए उसकी खुशबू। व्यक्ति का अच्छा व्यक्तित्व दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। एक आकर्षक व्यक्तित्व हमेशा एक अच्छा प्रभाव बनाता है। इसके लिए अच्छा स्वास्थ्य, आकर्षक स्वरूप और प्रभावशाली आवाज होना चाहिए। उन्हें बाध्यकारी और लंगड़ा आदि जैसे शारीरिक बाधाओं से पीड़ित नहीं होना चाहिए।

2. हँसमुख स्वभाव-उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा होना चाहिए। यह सही कहा जाता है कि मुस्कुराते हुए चेहरे के बिना एक आदमी को दुकान नहीं खोलना चाहिए। ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए उन्हें हमेशा हँसमुख और मीठे स्वभाव का होना चाहिए। उचित पोशाक पहनना चाहिए क्योंकि अच्छे पोशाक व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है।

3. सौजन्य-एक विक्रेता को हमेशा अपने ग्राहकों के प्रति विनम्र और सरल होना चाहिए। इसके लिए कुछ भी लागत नहीं लगती है, बल्कि बिक्री के लिए स्थायी ग्राहकों के मन को जीतता है। उन्हें सही – सही विकल्प बनाने या उत्पादों को चुनने में ग्राहकों की सहायता करनी चाहिए।

4. धैर्य और दृढ़ता-एक विक्रेता के पास विभिन्न प्रकार के ग्राहक आते हैं उनमें से कुछ उत्पादों के बारे में अप्रासंगिक प्रश्न पूछकर कुछ भी नहीं खरीदते हैं और समय बर्बाद करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, उसे गुस्सा नहीं करना चाहिए तथा ग्राहकों की बातें सुननी चाहिए।

प्रश्न 42.
विज्ञापन एवं वैयक्तिक विक्रय में अंतर कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय में स्पष्ट अंतर –
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प्रश्न 43.
किसी वस्तु अथवा सेवा की कीमत निर्धारण को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं ? समझाइए।
उत्तर:
वस्तु अथवा सेवा की कीमत निर्धारण को प्रभावित करने वाले तत्व –

1. वस्तु की माँग-किसी वस्तु की माँग पर उसकी कीमत का सीधा प्रभाव पड़ता है अर्थात् जिस वस्तु की माँग अधिक होगी उसकी कीमत भी अधिक होगी। कीमत अधिक रहने पर भी उसकी बिक्री होती रहेगी। जबकि मांग कम या सामान्य रहने पर कीमत भी कम या सामान्य रखना उचित होगा।
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध IMAGE - 19

2. वस्तु की विशेषताएँ – वस्तु की विशेषताओं के अंतर्गत वस्तु का जीवन, वैकल्पिक वस्तु की प्राप्ति, वस्तु की माँग का स्थगन आदि प्रमुख है। यदि वस्तु नाशवान किस्म की है तो उसके सड़ने – गलने या खराब होने के पूर्व कम से कम दाम में विक्रय करना उचित होता है वैकल्पिक वस्तु की प्राप्ति के अंतर्गत यदि एक वस्तु के अन्य विकल्प हैं तो कीमत कम रखना उचित होगा जबकि वैकल्पिक वस्तु न रहने से दाम कितने भी ऊँचे रखे जा.सकते हैं । इसी प्रकार ऐसी कोई वस्तु जिसकी माँग को स्थगित रखा जा सकता है जैसे कार, फ्रिज या टी.वी. खरीदना आदि। इस प्रकार वस्तु की विशेषताएँ भी उसकी कीमत को प्रभावित करती हैं।

3. वस्तु की लागत – किसी वस्तु की लागत प्रत्यक्ष रूप से कीमत को प्रभावित करती है जिस वस्तु की लागत अधिक होगी उस वस्तु की कीमत अधिक होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पादक वस्तु की लागत कम-से-कम करने के उपाय खोजते रहते हैं।

4. वस्तु के वितरण मार्ग – वस्तु के वितरण मार्ग का स्वभाव उसकी कीमत निर्धारण को प्रभावित करता है। यदि वितरण में मध्यस्थ अधिक है तो उन सभी का लाभ जोड़ते हुए अधिक कीमत निर्धारण करना होगा। जबकि वितरण मार्ग कम रहने पर कीमत कम निर्धारित होगी।

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प्रश्न 44.
वितरण के माध्यम से आप क्या समझते हैं ? वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में इनके क्या कार्य हैं ? समझाइए।
उत्तर:
वितरण के माध्यम का आशय-“किसी भी वस्तु का उत्पादन उपभोग करने के लिए किया जाता है। वर्तमान समय में उत्पादन व उपभोग काफी दूर-दूर होने के कारण वस्तु को उपभोक्ता तक पहुँचाने में विभिन्न माध्यमों का सहारा लेना आवश्यक होता है जिसमें वितरक, थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, प्रतिनिधि आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है ये माध्यम या मध्यरूप की वाहिकाएँ कहलाती हैं या इसे वितरण का माध्यम भी कहा जाता है।
वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में इनका कार्य-वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में ‘वितरण माध्यम’ के निम्नलिखित कार्य हैं

1. छाँटना-मध्यस्थ विभिन्न निर्माताओं से वस्तुएँ उत्पादित करते हैं और तब उसकी छंटाई करते हैं अर्थात् गुणवत्ता, आकार या कीमत के अनुसार उनकी पुनः पैकिंग करना।

2.विविधता-मध्यस्थ विभिन्न प्रकार के वस्तु अपने पास रखते हैं। वे विभिन्न निर्माताओं से वस्तुएँ प्राप्त करते हैं ताकि ग्राहक केवल एक स्थान पर जाकर अपनी आवश्यकता को पूरा कर सके।

प्रश्न 45.
विपणन व विक्रयण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विपणन व विक्रयण में अन्तर
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध IMAGE - 20

प्रश्न 46.
विपणन के कार्य लिखिये।
उत्तर:
विपणन के कार्य-

(अ) नियोजन सम्बन्धी कार्य –

  1. विपणन अनुसन्धान
  2. वस्तु नियोजन एवं विकास
  3. वस्तु का प्रमापीकरण
  4. पैकेजिंग
  5. वस्तु विविधीकरण।

(ब) वितरण सम्बन्धी कार्य –

  1. क्रय एवं संग्रहण
  2. भण्डारण
  3. परिवहन
  4. बीमा
  5. बाजार वर्गीकरण।

(स) विक्रय सम्बन्धी कार्य –

  1. विज्ञापन
  2. मूल्य निर्धारण
  3. व्यक्तिगत विक्रय
  4. विक्रय शर्तों का निर्धारण
  5. उधार वसूली
  6. विक्रय पश्चात् सेवा।

प्रश्न 47.
लेबलिंग के लाभ बताइये।(कोई चार)
उत्तर:
लेबलिंग के लाभ निम्नलिखित हैं

  1. वस्तु की जानकारी-लेबलिंग से ग्राहक को उस वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त होती है तथा उसका उपयोग किस प्रकार करना है उसकी जानकारी मिलती है।
  2. ग्राहक के प्रति सेवा-लेबलिंग के माध्यम से ग्राहकों की सेवा की जाती है। यह एक पर्ची या पत्र है जिसमें कुछ सूचना या वितरण दिया रहता है।
  3. गुणवत्ता-लेबलिंग के माध्यम से वस्तु की गुणवत्ता की जानकारी उपलब्ध होती है।
  4. विज्ञापन-लेबलिंग के द्वारा विज्ञापन सरलता से किया जाता है।

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प्रश्न 48.
विक्रय संवर्द्धन की विधियों का वर्णन कीजिये।
अथवा
विक्रय संवर्द्धन विधि की ग्राहक संवर्धन विधि के चार बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन की विधियाँ –

I. ग्राहक संवर्द्धन विधियाँ –

  1. नमूना
  2. कूपन
  3. प्रीमियम
  4. प्रतियोगिताएँ
  5. कम मूल्य पर विक्रय
  6.  प्रदर्शन
  7. मेले एवं प्रदर्शनियाँ
  8. प्रतिभाओं का सम्मान
  9. छूट या रिबेट
  10. उधार या किस्तों में विक्रय
  11. धन वापसी प्रस्ताव
  12. एक्सचेंज ऑफर ।

II. व्यापार संवर्द्धन विधियाँ –

  1. विक्रय प्रतियोगिताएँ
  2. व्यापारियों को सुविधाएँ
  3. विक्रय सामग्री को उपलब्ध करना
  4. विक्रय रैली का आयोजन
  5. उत्पाद मॉडल देना।

प्रश्न 49.
विज्ञापन के माध्यम का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य घटकों (कारकों) का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
एक विज्ञापनकर्ता को अपनी वस्तु का विज्ञापन करते समय या विज्ञापन करने के पूर्व निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिये

1. बाजार का स्वभाव – बाजार के स्वभाव से अर्थ है कि वस्तु के ग्राहक किस स्थान पर रहते हैं। अतः विज्ञापन ऐसे साधन से कराया जाना चाहिए कि वह उन तक पहुँच सके। यदि ग्राहक सम्पूर्ण देश में रहते हैं तो विज्ञापन राष्ट्रीय स्तर पर रेडियो, टेलीविजन आदि से कराया जा सकता है।

2. वितरण व्यवस्था – साधन का चुनाव करते समय वितरण व्यवस्था को भी ध्यान में रखना चाहिए। जिन स्थानों पर विज्ञापनकर्ता की वस्तु के बेचने वाले नहीं हैं वहाँ पर विज्ञापन कराना व्यर्थ ही होता है।

3. सन्देश सम्बन्धी आवश्यकताएँ-विज्ञापन सन्देशों को सभी प्रकार के माध्यमों में एक – सा प्रसारित नहीं किया जा सकता है जैसे-यदि किसी विज्ञापन में चित्र दिखाना या प्रदर्शन करना आवश्यक है तो ऐसा विज्ञापन टेलीविजन से करना उचित होगा।

4. वस्तुओं की प्रकृति – वस्तुएँ कई प्रकार की होती हैं। जैसे-खाद्य वस्तुएँ, व्यापारिक वस्तुएँ। इन विभिन्न वस्तुओं के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम प्रभावी एवं उचित रहते हैं। अतः विज्ञापन का चुनाव करते समय वस्तु की प्रकृति को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए।

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प्रश्न 50.
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्वों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं

(अ) बाजार संबंधी तत्व –

  1. उपभोक्ता का व्यवहार
  2. प्रतिस्पर्धा
  3. सरकारी नियंत्रण।

(ब) विपणन संबंधी तत्व –

  1. उत्पाद नियोजन
  2. ब्राण्ड नीति
  3. संवेष्ठन नीति
  4. वितरण वाहिकाएँ
  5. विज्ञापन नीति
  6. विक्रय संवर्धन
  7. भौतिक वितरण
  8. बाजार अनुसंधान।

प्रश्न 51.
विक्रय संवर्द्धन से क्या आशय है ? इसके कोई चार उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन-किसी वस्तु के सामान्य विक्रय की मात्रा में वृद्धि करने की क्रियायें विक्रय संवर्द्धन कहलाती हैं। इसके अन्तर्गत कूपन, पोस्टर्स, प्रदर्शनी, प्रसार – प्रचार, संपर्क, ईनामी योजना, मूल्य वापसी, गारण्टी, प्रीमियम एवं प्रतियोगिताओं को शामिल किया जाता है।
उद्देश्य:

  1. नये ग्राहकों को वस्तुओं एवं सेवा के संबंध में जानकारी प्रदान कर क्रय हेतु प्रेरित करना।
  2. आम लोगों में वस्तु को लोकप्रिय बनाना।
  3. वर्तमान ग्राहकों को स्थायी बनाना।
  4. उपभोक्ताओं, विक्रेताओं को वस्तु से परिचित कराकर उनका ज्ञान बढ़ाना।
  5. प्रतिस्पर्धा में आगे रहना।
  6. किसी विशिष्ट नये बाजार में बिक्री प्रारंभ करना।
  7. मध्यस्थों एवं व्यापारियों को अधिकाधिक माल बेचने के लिए प्रेरित करना।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार

विपणन (वित्तीय) बाजार Important Questions

विपणन (वित्तीय) बाजार वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार –
(a) एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं
(b)एक दूसरे को सहयोग देते (संपूरक) हैं
(c) स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं
(d) एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं।
उत्तर:
(b)एक दूसरे को सहयोग देते (संपूरक) हैं

प्रश्न 2.
भारत में कुल स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजारों) की संख्या है –
(a) 20
(b) 21
(c) 24
(d) 23
उत्तर:
(d) 23

प्रश्न 3.
रेपो (Repo) है –
(a) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)
(b) रिलायंस पेट्रोलियम
(c) रीड एंड प्रोसेस (पढ़ो और प्रक्रम करो)
(d) उपर्युक्त कुछ भी नहीं।
उत्तर:
(a) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)

प्रश्न 4.
एन.एस.ई. (NSE) के भावी व्यापार की शुरुआत किस वर्ष में हुई –
(a) 1999
(b)2000
(c) 2001
(d) 2002
उत्तर:
(b)2000

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) का निपटान (उधार चुकता) चक्र है –
(a) टी+5
(b) टी+3
(c) टी+2
(d) टी+11
उत्तर:
(c) टी+2

प्रश्न 6.
तरलता का निर्माण करता है –
(a) संगठित बाजार
(b) असंगठित बाजार
(c) प्राथमिक बाजार
(d) गौण बाजारे।
उत्तर:
(d) गौण बाजारे।

प्रश्न 7.
सेबी का मुख्य कार्यालय है –
(a) दिल्ली
(b) मुंबई
(c) कोलकाता
(d) चेन्नई।
उत्तर:
(b) मुंबई

प्रश्न 8.
विश्व में सबसे पहले स्कन्ध विपणि की स्थापना हुई थी –
(a) दिल्ली
(b) लंदन
(c) अमेरिका
(d) जापान।
उत्तर:
(b) लंदन

प्रश्न 9.
भारत में असंगठित मुद्रा बाजार का अंग है –
(a) देशी बैंकर
(b) महाजन व साहूकार
(c) दोनों (a) और (b)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 10.
मुद्रा बाजार की मुख्य धुरी होती है –
(a) केन्द्रीय बैंक
(b) व्यापारिक बैंक
(c) सहकारी बैंक
(d) देशी बैंक।
उत्तर:
(a) केन्द्रीय बैंक

प्रश्न 11.
NSEI की स्थापना कब हुई –
(a) सन् 1990
(b) सन् 1991
(c) सन् 1992
(d) सन् 1994
उत्तर:
(c) सन् 1992

प्रश्न 12.
पूँजी बाजार की प्रतिभूति नहीं है –
(a) समता अंश
(b) पूर्वाधिकार अंश
(c) ऋणपत्र
(d) वाणिज्यिक बिल।
उत्तर:
(d) वाणिज्यिक बिल।

प्रश्न 13.
भारत में पहली स्कंध विपणि स्थापित हुई –
(a) 1857 में
(b) 1877 में
(c) 1887 में
(d) 1987 में।
उत्तर:
(c) 1887 में

प्रश्न 14.
राजकोष बिल मूलतः होते हैं –
(a) अल्पकालीन फंड उधार के प्रपत्र
(b) दीर्घकालीन फंड उधार के प्रपत्र
(c) पूँजी बाजार के एक प्रपत्र
(d) उपर्युक्त कुछ भी नहीं।
उत्तर:
(a) अल्पकालीन फंड उधार के प्रपत्र

प्रश्न 15.
स्कन्ध विपणियों के लिए सेबी की सेवाएँ हैं –
(a) ऐच्छिक
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) अनिवार्य।
उत्तर:
(d) अनिवार्य।

प्रश्न 16.
सन् 2004 में भारत में स्कन्ध विपणियों की संख्या थी –
(a) 25
(b) 21
(c) 23
(d) 24.
उत्तर:
(d) 24.

प्रश्न 17.
नवीन निर्गमित अंशों में व्यवहार करता है –
(a) गौण बाजार
(b) प्राथमिक बाजार
(c) गौण बाजार तथा प्राथमिक बाजार दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) प्राथमिक बाजार

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. NSEI की दत्त पूँजी ………….. है।
  2. OTCEI की दत्त पूँजी ………… है।
  3. OTCEI की स्थापना ………… में हुई।
  4. NSEI की स्थापना ………….. में हुई।
  5. छोटी कम्पनियों की प्रतिभूतियों में तरलता निर्माण हेतु ……… की स्थापना की गई।
  6. पूँजी बाजार …………. व्यवहार करना है।
  7.  कोषागार विपत्र की अधिकतम अवधि …………. होती है।
  8. मुद्रा बाजार ……….. व्यवहार करता है।
  9. वाणिज्यिक विपत्र …………. लिखा जाता है।
  10. मध्यम व दीर्घ अवधि वाली प्रतिभूतियों का संबंध …………. से होता हैं।
  11. NSEI एक ………….. स्तर का बाजार है।
  12. सेबी की स्थापना ………….. में हुई थी।
  13. द्वितीयक बाजार को …………. भी कहते हैं।
  14. अंशो, ऋणपत्रों आदि में व्यवहार करने वाले बाजार को …………. कहा जाता हैं।
  15. सामान्यतया …………. वित्त से संबंधित बाजार को पूँजी बाजार कहा जाता है।
  16. माँग मुद्रा, व्यापार बिल आदि …………. के प्रमुख उपकरण होते हैं।
  17. तरलता का निर्माण …………. करता है।

उत्तर:

  1. 3 करोड़ रु
  2. 30 लाख रु
  3. 1990
  4. 1992
  5. OTCEI
  6. दीर्घकालीन कोष में
  7. वर्ष
  8. अल्पकालीन कोष में
  9. विक्रेता द्वारा
  10.  पूँजी बाजार
  11. सुसंगठित
  12. 1992
  13. स्टॉक विनिमय
  14. पूँजी बाजार
  15. दीर्घकालीन
  16. मुद्रा बाजार
  17. गौण बाजार

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए

  1. दीर्घकालीन वित्त व्यवस्था से संबंधित बाजार को क्या कहते हैं ?
  2. पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय कहाँ होता है ?
  3. अल्पकालीन वित्त व्यवस्था हेतु किस बाजार का प्रयोग होता है ?
  4. विनियोजकों के हितों की रक्षा हेतु किसकी स्थापना की गई ?
  5. राष्ट्रीय स्तर के स्कन्ध विपणि का क्या नाम है ?
  6. ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक बिल आदि किस बाजार के प्रलेख हैं ?
  7. कौन सा पूँजी बाजार नई प्रतिभूतियों के निर्गमन से संबंधित होता है ?
  8. महाजन व साहूकार कौन-से मुद्रा बाजार के प्रमुख अंग हैं ?
  9. प्राथमिक पूँजी बाजार में मध्यस्थ के माध्यम से प्रतिभूति निर्गमन की विधि क्या कहलाती है ?
  10. किस बाजार में अल्पकालीन कोषों का क्रय-विक्रय होता है ?
  11. पूँजी बाजार के दो खण्ड कौन-कौन से हैं ?
  12. मुद्रा बाजार का नियंत्रण किस संस्था द्वारा होता है ?
  13. बट्टे पर निर्गमित होने वाली प्रतिभूति क्या है ?
  14. सेबी किस बाजार का नियमन एवं संवर्धन करता है ?
  15. किस पूँजी बाजार का संबंध नए निर्गमनों से होता है ?
  16. देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज कौन-सा है ?

उत्तर:

  1. पूँजी बाजार
  2. स्कंध विपणि
  3. मुद्रा बाजार
  4. सेबी
  5. NSEI
  6. मुद्रा बाजार
  7. प्राथमिक
  8. असंगठित
  9. निजी स्थानन
  10. मुद्रा बाजार
  11. प्राथमिक व गौण बाजार
  12. केन्द्रीय बैंक
  13. ट्रेजरी बिल
  14. स्टॉक एक्सचेंज/द्वितीयक बाजार
  15. प्राथमिक बाजार
  16. मुंबई स्टॉक एक्सचेंज।

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प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. सेबी एक सार्वमुद्रा रखने वाला निगम-निकाय है।
  2. भारत में 24 स्कन्ध निर्माण है।
  3. सेबी का मुख्यालय मुंबई में है।
  4. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को सेबी के नाम से भी जाना जाता है।
  5. प्रतिभूतियों के आदान-प्रदान का स्थान इलेक्ट्रॉनिक बुक प्रविष्ट ने ले लिया है।
  6. म्यूचुअल फंड पर सेबी का नियंत्रण नहीं होता है।
  7. मुद्रा बाजार दीर्घकालीन कोषों में व्यवहार करता है।
  8. मुद्रा बाजार में सेबी का नियंत्रण है।
  9. देश के औद्योगिक विकास के लिए स्वस्थ पूँजी बाजार आवश्यक है।
  10. प्राथमिक बाजार तथा गौण बाजार में अन्तर है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य
  6. असत्य
  7. असत्य
  8. असत्य
  9. सत्य
  10. सत्य।

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार IMAGE - 1
उत्तर:

  1. (d)
  2. (e)
  3. (b)
  4. (a)
  5. (c)
  6. (f)
  7. (g)
  8. (i)
  9. (h)

विपणन (वित्तीय) बाजार दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक वित्त बाजार के क्या प्रकार्य हैं ?
उत्तर:
वित्त बाजार के प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं

1. कीमत खोज को सुगम बनाना-किसी वस्तु की कीमत माँग और पूर्ति कारकों पर निर्भर करती है। वित्तीय बाजारों में वित्तीय संपत्तियों और प्रतिभूतियों की माँग और पूर्ति विभिन्न वित्तीय प्रतिभूतियों के मूल्य को निश्चित करने में सहायता करती है।

2. लेन-देन की लागत को कम करना-वित्तीय बाजार विभिन्न वित्तीय प्रतिभूतियों की लागत. उपलब्धता और मूल्य से संबंधित पूर्ण सूचना प्रदान करता है। इसीलिए निवेशकों और कंपनियों को इस सूचना को प्राप्त करने के लिए अधिक खर्च नहीं करना पड़ता है क्योंकि यह वित्तीय बाजारों में पहले से उपलब्ध होती है।

3. बचत राशियों को गतिशील बनाना और उन्हें अधिक उत्पादक प्रयोग में स्थानांतरित करनावित्तीय बाजार बचतकर्ताओं और निवेशकों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। वित्तीय बाजार बचतकर्ताओं की बचत को अधिक उपयुक्त निवेश अवसरों में स्थानांतरण करता है।

4. वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करना-वित्तीय बाजार में वित्तीय प्रतिभूतियों को आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है इसीलिए वित्तीय बाजार प्रतिभूतियों को नगद में परिवर्तित करने के लिए एक आधार प्रदान करता है।

प्रश्न 2.
पूँजी बाजार का क्या अर्थ होता है ? भारत के संगठित व असंगठित पूँजी बाजारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार का अर्थ – “पूँजी बाजार वह स्थान या प्रबंध व्यवस्था है जहाँ व्यवसाय व उद्योगों के लिए दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था होती है।” –
भारत में पूँजी बाजार दो प्रकार के हैं

1. संगठित पूँजी बाजार (Formal or Organised Capital Market) – संगठित पूँजी बाजार के अन्तर्गत वित्त संबंधी कार्य पंजीबद्ध (Registered) विभिन्न वित्तीय संस्थायें करती हैं जो विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों से निजी बचतों को एकत्र कर दीर्घकालीन पूँजी की व्यवस्था करती है। जैसे –

भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI), जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI), वाणिज्यिक बैंक, औद्योगिक वित्त निगम (IFC), भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI), भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (NIDC), भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (IRBI), सामान्य बीमा निगम (GIC), राज्य वित्तीय संस्थाएँ (SFCs), आवासीय वित्त बैंक (RFB) आदि प्रमुख हैं। इन सभी का नियन्त्रण व नियमन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा किया जाता है। –

2. असंगठित या गैर संगठित बाजार (Internal or Unorganised Market) – इसे अनौपचारिक बाजार भी कहा जाता है। इनमें देशी बैंकर्स, साहूकार, महाजन आदि प्रमुख होते हैं। काले धन का बहुत बड़ा भाग गैर संगठित क्षेत्र में वित्त व्यवस्था करता है। ये उद्योग, व्यापार तथा कृषि क्षेत्रों में पूँजी का विनियोजन करते हैं। इनकी ब्याज दरें व वित्तीय नीति कभी भी एकसमान नहीं होती हैं।

इन पर विनिमय सम्बन्धी नियंत्रण भी नहीं होती है। जिसके परिणामस्वरूप ये साहूकार कभी-कभी ऊँची दर पर ऋण देकर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इन पर नियंत्रण करने के लिये प्रयासरत् है।

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प्रश्न 3.
पूंजी बाजार तथा मुद्रा बाजार के बीच अंतर करें।
उत्तर:
मुद्रा बाजार एवं पूंजी बाजार में अंतर (Distinction Between Money Market and Capital Market)
जैसा कि पूर्व में ही बताया जा चुका है कि मुद्रा बाजार व पूँजी बाजार दोनों आकार व स्वभाव के दृष्टिकोण से भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रमुख अन्तर इस प्रकार हैं

1. मुद्रा बाजार अल्पकालीन ऋणों में लेनदेन करता है जबकि पूँजी बाजार दीर्घकालीन ऋणों में लेनदेन करता है।

2. अल्पकाल का आशय एक वर्ष तक की अवधि से है जबकि दीर्घकाल की अवधि का आशय 15 वर्ष से 25 वर्ष या उसके ऊपर की अवधि से होता है।

3. मुद्रा बाजार में केन्द्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंक, गैरवित्तीय संस्थायें आदि मुद्रा में लेनदेन करते हैं जबकि पूँजी बाजार का लेनदेन स्कन्ध विपणियों, म्यूचुअल फन्ड, लीजिंग कम्पनियाँ, यू.टी.आई. बीमा कम्पनियाँ, निवेशक बैंक, वित्तीय निगम आदि के माध्यम से किया जाता है। इस प्रकार दोनों की संस्थायें अलग-अलग होती हैं

4. मुद्रा बाजार बचत पत्र, विनिमय बिल, राजकोषीय बिल, जमा प्रमाण-पत्र आदि उपकरणों (Instruments) के द्वारा लेनदेन करता है जबकि पूँजी बाजार में बड़ी कम्पनियों, औद्योगिक संस्थाओं के अंश व ऋणपत्र, सरकारी एवं गैर सरकारी बाण्ड्स तथा प्रतिभूतियों जैसे उपकरणों से लेनदेन किया जाता है।

5. मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा अपेक्षाकृत कम रहती है, क्योंकि किसी बड़े कारखाने या उद्योग को प्रारम्भ करने के लिये मुद्रा बाजार से वित्त प्राप्त नहीं किया जाता। जबकि पूंजी बाजार में मुद्रा की मात्रा अपेक्षाकृत काफी अधिक रहती है।

6. मुद्रा बाजार में दिये गये ऋण के बदले ब्याज प्राप्त होता है जो पूर्व निर्धारित रहता है। पूँजी बाजार में दिये गये ऋण के बदले लाभांश प्राप्त होता है, जो लाभ के अनुसार कम या अधिक होते रहता है।

7.मुद्रा बाजार का नियंत्रण सामान्य होता है जबकि पूँजी बाजार का नियंत्रण ‘सेबी’ द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
जमा प्रमाण पत्र (CD) तथा सावधि/मुद्दती जमा (FD) में अंतर बताइए।
उत्तर:
तथा सावधि जमा में अंतरजमा प्रमाण पत्र
जमा प्रमाण पत्र

  1. ये स्वतंत्र रूप से विनिमय साध्य होते हैं।
  2. ये वास्तविक जमा राशि पर कटौती काटकर जाते हैं।
  3. ये प्रमाण पत्र 91 दिनों से 1 वर्ष की अवधि

सावधि जमा

  1. ये स्वतंत्र रूप से विनिमय साध्य नहीं होते हैं।
  2. ये वास्तव में जमा की गई राशि पर जारी किये जारी किये जाते हैं।
  3. ये 14 दिनों की न्यूनतम अवधि के लिए

प्रश्न 5.
SEBI के सुरक्षात्मक कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
SEBI के सुरक्षात्मक कार्य – SEBI द्वारा ये कार्य निवेशक के हित की सुरक्षा और निवेश की सुविधा प्रदान करने के लिए निष्पादित किए जाते हैं। SEBI के सुरक्षात्मक कार्य निम्न हैं

1. यह भाव बढ़ाने व घटाने का निरीक्षण करता है। इसका अर्थ प्रतिभूतियों के बाजार मूल्य को बढ़ाने या कम करने के मुख्य उद्देश्य के साथ प्रतिभूतियों के मूल्यों में हेर – फेर करने से है।

2. SEBI कपटपूर्ण और अनुचित व्यापारिक कार्यवाहियों को प्रतिबंधित करता है।

3. SEBI निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कई उपाय करता है ताकि वे विभिन्न कंपनियों की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करने के योग्य हो अधिक लाभप्रद प्रतिभूति का चयन करें।

प्रश्न 6.
प्राथमिक बाजार एवं गौण बाजार में अंतर बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार एवं गौण बाजार में अंतर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार IMAGE - 2

प्रश्न 7.
भारत में कितनी स्कन्ध विपणियाँ हैं ?
उत्तर:
भारत में कुल 24 स्कन्ध विपणियाँ हैं। ये निम्नलिखित स्थानों पर है

  1. चेन्नई
  2. अहमदाबाद
  3. बैंगलोर
  4. भुवनेश्वर
  5. कोचीन
  6. कटक
  7. कोयम्बटूर
  8. दिल्ली
  9. गुवाहाटी
  10.  इंदौर
  11.  हैदराबाद
  12. जयपुर
  13.  कानपुर
  14. मंगलौर
  15. कोलकाता
  16. लुधियाना
  17. मुंबई
  18. OTCEI
  19. पटना
  20. पुणे
  21. NSEI
  22. बड़ोदरा
  23.  राजकोट
  24. सिक्किम।

प्रश्न 8.
NSEI की विशेषताओं और उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
NSEI की विशेषताएँ – NSEI की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं

1. व्यापार की जाने वाली प्रतिभूतियाँ – NSEI प्रतिभूतियों के दो प्रखंडों के साथ लेन-देन करना है। ये इस प्रकार हैं-

  • पूँजी बाजार प्रखण्ड
  • मुद्रा बाजार प्रतिभूतियाँ ।

2. NSEI पर भुगतान और सुपुर्दगी लेन – देन के 15 दिनों के अंदर पूर्ण की जाती है। NSEI के उद्देश्य-

  1. एक उपयुक्त संप्रेषण नेटवर्क द्वारा देशभर में निवेशकों की आसान पहुँच सुनिश्चित करना।
  2. अंतर्राष्ट्रीय मानकों से मिलान करना।
  3. सभी प्रकार की प्रतिभूतियों के लिए एक राष्ट्रव्यापी व्यापारिक सुविधा की स्थापना करना।
  4. इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक पद्धति का प्रयोग करके एक उचित कुशल और पारदर्शी प्रतिभूतियों का बाजार प्रदान करना।
  5. छोटे निबटान का चक्र बनाना।

प्रश्न 9.
प्राथमिक पूँजी बाजार की पाँच विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक पूँजी बाजार का आशय – प्राथमिक बाजार का आशय उस बाजार से है, जिसमें नवीन प्रतिभूतियों (जैसे-अंश, ऋणपत्र, बॉण्ड्स आदि) का निर्गमन किया जाता है। इसे नवीन निर्गमन बाजार भी कहा जाता है। जिस बाजार में प्रतिभूतियाँ कम्पनियों द्वारा प्रथम बार बेची जाती है। उसे प्राथमिक बाजार कहा जाता है।
विशेषताएँ-

  1. नवीन प्रतिभूतियाँ – प्राथमिक बाजार में नवीन प्रतिभूतियों के व्यवहार का निर्गमन होता है।
  2. कीमत का निर्धारण – प्रतिभूतियों की कीमत-कम्पनी के प्रबंधकों द्वारा निर्धारित की जाती है।
  3. प्रत्यक्ष निर्माण – प्राथमिक बाजार में कम्पनी सीधे या बिचौलिये के माध्यम से विनियोजकों को प्रतिभूतियों का निर्गमन करती है।
  4. स्थान – प्राथमिक बाजार के लिये कोई विशेष स्थान नहीं होता है।
  5. पूँजी निर्माण प्राथमिक बाजार प्रत्यक्ष रूप से पूँजी निर्माण में वृद्धि करता है, क्योंकि कोषों का प्रवाह, बचत करने वाली से विनियोगकर्ताओं को जाता है, जो यंत्र, मशीनरी, भवन आदि के लिये उनका उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 10.
पूँजी बाजार के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार राष्ट्रीय पूँजी निर्माण तथा विकास में सहायता करता है। पूँजी बाजार के महत्व को हम निम्नांकित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं

  1. पूँजी बाजार पूँजी निवेशकों एवं बचत धारियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचतकर्ता निधि के स्रोत व ऋणदाता होते हैं तथा निवेशक निधि के ऋणी होते हैं। इन दोनों के मध्य पूँजी बाजार एक कड़ी का कार्य करता है।
  2. अपनी समस्त आय खर्च न करने वाले बचतकर्ताओं के लिए विनियोग करने का सरल साधन पूँजी बाजार होता है।
  3. आम जनता की छोटी-छोटी बचतों के लाभकारी विनियोग के लिए पूँजी बाजार एक अच्छा क्षेत्र प्रदान करता है।
  4. इसी प्रकार कम दर पर अधिक समय के लिए पूँजी प्राप्त करने का एक अच्छा मार्ग पूँजी बाजार होता है।
  5. पूँजी बाजार में माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन बनाये रखने का कार्य पूँजी बाजार अपने उपकरणों के माध्यम से करता है।

प्रश्न 11.
प्राथमिक व द्वितीयक बाजार अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार (Primary market) – ऐसा स्थल या व्यवस्था जहाँ से पूँजी सीधे प्रथम बार जनता द्वारा प्राप्त की जाती है उसे प्राथमिक बाजार (Primary Market) कहा जाता है। इस व्यवस्था में कम्पनियों द्वारा नये अंशों व ऋणपत्रों का निर्गमन कर जनता से सीधे पूँजी प्राप्त की जाती है। इसी प्रकार सरकार व निगमित संस्थायें अपने बॉण्ड्स एवं प्रतिभूतियों का विक्रय कर सीधे जनता से पूँजी प्राप्त कर सकती हैं। कम्पनियों की स्थापना के समय भी अंशों का निर्गमन कर जनता से जो अंशपूँजी आमन्त्रित की जाती है वह भी प्राथमिक पूँजी कहलाती है। व्यापारिक बैंकर्स द्वारा प्राप्त जमायें, म्यूचुअल फन्ड व अन्य बचत प्रमाण-पत्रों से प्राप्त पूँजी भी प्राथमिक पूँजी के रूप में मानी जाती है। संक्षिप्त में “ऐसी पूँजी जिसे प्रथम बार जनता से सीधे किसी भी माध्यम से प्राप्त किया जाता है उसे प्राथमिक पूँजी कहते हैं।”

द्वितीयक बाजार (Secondary market) – द्वितीयक बाजार के अन्तर्गत विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त की जाती है उसका पुनः विनियोग करने की क्रिया द्वितीयक बाजार कहलाती है। सामान्यतः स्कन्ध विपणि (Stock Exchange) में व्यवहार किये जाने वाले समस्त लेनदेन द्वितीय पूँजी बाजार के अन्तर्गत आते हैं क्योंकि स्कन्ध विपणियों में अंशों व प्रतिभूतियों का ही क्रय-विक्रय होता है। दलालों द्वारा, म्यूचुअल फन्ड द्वारा, यूनिट ट्रस्ट द्वारा, सामान्य बीमा कम्पनियों व गैर बैंकिंग वित्त से सम्बन्धित समस्त कार्य द्वितीय पूँजी बाजार की श्रेणी में आता है।

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प्रश्न 12.
स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजार) के प्रकार्य लिखिए।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज के प्रकार्य – स्टॉक एक्सचेंज के निम्नलिखित प्रकार्य हैं-

1. दलाल-एक दलाल स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। वह बाह्य व्यक्तियों, जो कि सदस्य नहीं होते, की ओर से प्रतिभूतियों को खरीदता और बेचता है।

2. आढ़तिया – आढ़तिया स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। वह अपनी ओर से प्रतिभूतियों को खरीदता और बेचता है। वह एक प्रकार की प्रतिभूति में विशिष्ट होता है और वह उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ बेचकर लाभ कमाता है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में उसे तरावनीवाला कहा जाता है।

3. तेजड़िया – तेजड़िया एक सटोरिया होता है जो मूल्य में वृद्धि की आशा करता है। वह उच्च कीमत पर भविष्य में प्रतिभूतियों को बेचने और उनसे लाभ कमाने के दृष्टिकोण से प्रतिभूतियों को खरीदता है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में उसे तेजीवाला के नाम से जाना जाता है।

4. मंदड़िया – मंदड़िया एक सटोरिया होता है जो मूल्य में कमी की आशा करता है। वह ऐसी प्रतिभूतियों को बेचता है जो उसके पास नहीं होती स्टॉक एक्सचेंज में उसे मंडीवाला के नाम से जाना जाता है।

5.स्टैग – स्टैग भी एक सटोरिया है जो इस आशा के साथ कि आबंटन के समय मूल्यों में उछाल होगा, नई प्रतिभूतियों के लिए आवेदन करता है और वह उन्हें प्रीमियम पर बेच सकता है।

प्रश्न 13.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
NSE के उद्देश्य – NSE की स्थापना के निम्नांकित उद्देश्य हैं

  1. सामान्य अंशों, ऋणपत्रों एवं मिश्रित (Hybrid) प्रतिभूतियों में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार की सुविधा प्रदान करना।
  2. सम्पूर्ण राष्ट्र के विनियोजकों की बाजार तक पहुंच आसान करना।
  3. प्रतिभूतियों के व्यापार में स्वच्छता,पारदर्शिता व कुशलता लाना।
  4. सौदों के निपटारा की प्रक्रिया को कम करना
  5. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार के मानकों (Standard) का पालन करना।

प्रश्न 14.
प्राथमिक बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार की विशेषताएँ (Features of Primary Market)- प्राथमिक बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. इसका संबंध नये निर्गमनों से हैं (It is related with new issues) – प्राथमिक बाजार की प्रथम विशेषता इसका नये निर्गमनों से संबंधित होना है। जब भी कोई कम्पनी नये अंश अथवा ऋणपत्र जारी करती है तो यह प्राथमिक बाजार की ही क्रिया होती है।

2. इसका कोई विशेष स्थान नहीं होता है (It has no particular place) –  प्राथमिक बाजार किसी विशेष स्थान का नाम नहीं है बल्कि नये निर्गमन लाने को ही प्राथमिक बाजार की क्रिया कहा जाता है।

3. इसमें पूँजी एकत्रित करने की कई विधियाँ हैं (It has various methods of Raising Capital)प्राथमिक बाजार में पूँजी एकत्रित करने की पाँच विधियाँ होती हैं

  1. विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव
  2. विक्रय के लिए प्रस्ताव
  3. निजी नियोजन या विनियोग
  4. अधिकार निर्गम तथा
  5. इलेक्ट्रॉनिक आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव।

4. यह गौण बाजार से पहले आता है (It comes before secondary market) – प्राथमिक बाजार में व्यवहार पहले होते हैं और उसके बाद गौण बाजार की बारी आती है।

5. कीमतों का निर्धारण (Determination of prices) – प्रतिभूतियों की कीमतों का निर्धारण कंपनी के प्रबन्ध द्वारा किया जाता है।

6. निधि का प्रवाह (Flow of funds) – निधियों का प्रवाह बचतकर्ताओं से निवेशकों की ओर होता है।

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प्रश्न 15.
द्वितीय बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय या गौण बाजार की विशेषताएँ (Fetures of Secondary Market) – गौण बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. यह तरलता उत्पन्न करता है (It Creates Liquidity) – गौण बाजार की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करना है। तरलता का अभिप्राय प्रतिभूतियों को अतिशीघ्र नकदी में बदलने से है। यह काम गौण बाजार द्वारा किया जाता है।

2. यह प्राथमिक बाजार के बाद आता है (It comes after Primary Market) – किसी भी नई प्रतिभूति को पहली बार गौण बाजार में नहीं बेचा जा सकता है। नई प्रतिभूतियों को पहले प्राथमिक बाजार में बेचा जाता है उसके बाद गौण बाजार की बारी आती है।

3. इसका एक विशेष स्थान होता है (It has a Particular Place) – गौण बाजार का एक विशेष स्थान होता है जिसे एक्सचेंज कहते हैं। ध्यान रहे कि यह जरूरी नहीं है कि प्रतिभूतियों के सभी क्रय-विक्रय स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से ही किये जाएँ । दो व्यक्ति आपस में भी इनका क्रय-विक्रय कर सकते हैं। यह भी गौण बाजार का व्यवहार ही कहलायेगा। प्रायः अधिकतर व्यवहार एक्सचेंज के माध्यम से ही होते हैं।

4. यह नये निवेश को प्रोत्साहित करता है-शेयर बाजार के अंशों व अन्य प्रतिभूतियों के भाव कम या अधिक होते रहते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक नये निवेशक इस बाजार में प्रवेश करते हैं। इसे औद्योगिक क्षेत्र के विनियोग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 16.
मुद्रा बाजार प्रपत्रों की विशेषतायें लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार प्रपत्रों की सामान्य विशेषताएँ (General Feature of Money Instruments)मुद्रा बाजार में व्यवहार किये जाने वाले प्रपत्रों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अल्पकालीन (Short-term) – ये अल्पकाल के लिए जारी किये जाते हैं। इनकी अवधि कम-सेकम दिन और अधिकतम 364 दिन होती है।
  2. अधिक सुरक्षा (High Safety)-इनको जारी करने वाली संस्थाएँ वित्तीय दृष्टि से मजबूत होती हैं। अतः इनमें अधिक सुरक्षा रहती हैं।
  3. अधिक तरलता (High Liquidity) – इन प्रपत्रों में अतिशीघ्र नकदी में बदलने का गुण होता है।
  4. अधिक राशि (Large Amount)-ये प्रपत्रक अधिक राशि के होते हैं।
  5. कम निवेशक (Lower Investos)-इनमें निवेश करने वाली संस्थाओं व व्यक्तियों की संख्या सीमित होती है।

प्रश्न 17.
राजकोषीय बाजार प्रपत्रों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजकोषीय प्रपत्र की विशेषताएँ (Features of Treasury Bills) – राजकोषीय प्रपत्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. यह एक अल्पकालीन प्रपत्र है।
  2. इसे केन्द्रीय सरकार अपनी अल्पकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जारी रहती है।
  3. इसका निर्गमन केन्द्रीय सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है।
  4. यह एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाला प्रपत्र है।
  5. इसे शून्य कूपन बंधक पत्र के नाम से भी जाना जाता है।
  6. इसे अंकित मूल्य से कम मूल्य पर जारी किया जाता है और इसका भुगतान अंकित मूल्य पर होता है।
  7. यह प्रपत्र एक वचन के स्वरूप में जारी किया जाता है।
  8. इसमें उच्च तरलता पायी जाती है।
  9. इसमें अदायगी का जोखिम नगण्य होता है।

प्रश्न 18.
माँग मुद्रा/अल्प सूचना ऋण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
माँग मुद्रा की विशेषताएँ (Features of Call Money) – माँग मुद्रा की मुख्य विशेषताएँ . निम्नलिखित हैं

  1. यह एक लघुकालिक माँग पर पुनः भुगतान वित्त है।
  2. इसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है।
  3. यह अंतःबैंक अंतरण के लिए प्रयोग में लायी जाती है अर्थात् इसका प्रयोग बैंकों द्वारा किया जाता है। निम्न कारण से बैंक इसका प्रयोग करते हैं-
    • वैधानिक तरलता अनुपात बनाये रखना।
    • आवश्यकता से अधिक नकदी को अल्पकाल निवेश के लिए रखना।
  4. माँग मुद्रा का व्यवहार प्रायः टेलीफोन पर ही होता है, कागजी कार्यवाही बाद में पूरी की जाती है।
  5. माँग मुद्रा पर चुकाए जाने वाले ब्याज को शीघ्रावधि दर कहते हैं। यह दर बहुत ही चंचल (अस्थिर) होती है। यह दिन-प्रतिदिन और कभी-कभी घंटों के अनुसार बदलती है।

प्रश्न 19.
मुद्रा बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार की विशेषताएँ (Features of Money Market) – मुद्रा बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1.वित्तीय बाजार का मुख्य अंग (Important Component of Financial Market) – मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक मुख्य अंग है। इसके माध्यम से व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा सरकार की अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।

2. अत्यधिक तरलता (More Liquidity) – मुद्रा बाजार की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसमें अत्यधिक तरलता का पाया जाना है।

3. कम व्यवहार लागत (Low Transaction Cost) – मुद्रा बाजार में किये जाने वाले व्यवहारों के लिए प्रायः दलालों की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए यहाँ किये जाने वाले क्रय-विक्रय पर कम खर्चे सहन करने पड़ते हैं।

4. अल्पकालीन वित्तीय संपत्तियाँ (Short-term Financial Assets) – इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली संपत्तियों की अवधि अधिकतम एक वर्ष होती है। वित्तीय संपत्तियों का अर्थ वित्तीय प्रलेखों (Financial Instruments) से है।

5. वित्तीय बाजार के दो स्वरूप (Two Forms)
– इस बाजार के दो स्वरूप हैं –

  1. संगठित तथा
  2. असंगठित।

संगठित मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक तथा सहकारी बैंकों को सम्मिलित किया जाता है। असंगठित मुद्रा बाजार के अंतर्गत साहूकार (Moneylender), देशी बैंक (Indigenous Banks), चिट फंड (Chit Fund), निधियाँ (Nidhis) आदि को सम्मिलित किया जाता है।

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प्रश्न 20.
सेबी (SEBI) के कोई चार सुरक्षात्मक कार्य बताइये।
उत्तर:
SEBI के चार सुरक्षात्मक कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. सेबी निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाती है।
  2. यह भीतरी कार्य पर रोक लगाती है।
  3. यह बाजार में उचित कार्यों एवं आचार संहिता को बढ़ावा देती है।
  4. यह बाजार में नई प्रतिभूतियाँ जारी करने जा रही है कंपनियों के कपटपूर्ण व्यवहारों पर रोक लगाती है।

प्रश्न 21.
सेबी (SEBI) के कोई चार नियामक कार्य लिखिए।
उत्तर:
SEBI के चार नियामक कार्य (Regulatory functions) निम्नलिखित हैं

  1. SEBI दलालों एवं उप दलालों तथा प्रतिभूति बाजार से किसी भी रूप में जुड़े बिचौलियों का पंजीकरण करती है।
  2. यह सामूहिक निवेश योजनाओं तथा म्युचुअल फंडों का पंजीकरण करती है।
  3. यह धोखेबाजी एवं अनुचित व्यापारों की रोकथाम करती है।
  4. यह अधिनियम के उद्देश्यों से बाहर किये जाने वाली गतिविधियों पर अधि-शुल्क या कोई अन्य प्रभार लगाती है।

प्रश्न 22.
वित्तीय बाजार के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय बाजार के कार्य-देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में वित्तीय बाजार का मुख्य स्थान है। इरके मुख्य कार्य निम्न हैं

1. मूल्य खोज में सहायक-किसी भी वस्तु या सेवा का मूल्य माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है। वित्तीय बाजार में वित्तीय संपत्तियों और प्रतिभूतियों की माँग और पूर्ति विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्य को निश्चित करता है।

2. लेन-देन की लागतों को कम करना वित्तीय बाजार विभिन्न प्रतिभूतियों की लागत उपलब्धता और मूल्य से संबंधित पूर्ण सूचना प्रदान करता है। इसीलिए निवेशक और कंपनी को इन सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए अधिक खर्च नहीं करना पड़ता अर्थात् वित्तीय बाजार लेन-देनों की लागत को कम करता है।

3. बचतों को गति प्रदान करना एवं अत्यधिक उत्पादकीय प्रयोगों की ओर ले जाना-वित्तीय बाजार बचतकर्ताओं को विभिन्न विनियोग विकल्प प्रदान कर लोगों की बचतों को गति प्रदान करता है।

4.वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करता है-वित्तीय बाजारों में प्रतिभूतियों को सरलता से खरीदा और बेचा जा सकता है। यहाँ प्रत्येक प्रतिभूति के क्रेता व विक्रेता हर समय उपलब्ध होते हैं। इसलिए वित्तीय बाजार वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करता है क्योंकि निवेशक जब चाहे निवेश को रोकड़ में बदल सकते हैं तथा जब चाहे अपने रोकड़ को प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं।

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प्रश्न 23.
शेयर बाजार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शेयर बाजार की विशेषताएँ – शेयर बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1.संगठित बाजार – शेयर बाजार एक संगठित बाजार होता है। इसके संगठित होने का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक शेयर बाजार की एक प्रबंध समिति होती है जिसको प्रबंधक एवं नियंत्रण संबंधी सभी अधिकार प्राप्त होते हैं।

2. केवल अधिकृत सदस्यों द्वारा व्यवहार – शेयर बाजार में निवेशकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रयविक्रय केवल अधिकृत सदस्यों के माध्यम से ही किया जा सकता है। शेयर बाजार एक विशेष बाजार-स्थान होता है जहाँ केवल अधिकृत सदस्य ही जा सकते हैं। लोगों की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करने के लिए इनकी सहायता लेनी पड़ती है।

3.नियमों एवं उपनियमों का पालन करना आवश्यक – शेयर बाजार में किए जाने वाले समस्त लेन देनों के लिए उसके द्वारा निर्धारित नियमों व उपनियमों का पालन करना आवश्यक होता है।

4. गौण बाजार – शेयर बाजार को द्वितीयक या गौण भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ उन प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है जो पहले से निर्गमित की गई हो।

5. विभिन्न संस्थाओं द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में व्यवहार- शेयर बाजार में प्रायः उन संस्थाओं की प्रतिभूतियों में ही व्यवहार होता है जो वहाँ पर सूचीबद्ध होती है। एक संस्था कुछ विशेष शर्तों का पालन करके अपनी प्रतिभूति को एक शेयर बाजार पर सूचीबद्ध करवा सकती है।

प्रश्न 24.
प्राथमिक पूँजी बाजार का अर्थ एवं इसमें प्रतिभूतियों के निर्गमन की क्या विधियाँ हैं ?
उत्तर:
प्राथमिक पूँजी बाजार का अर्थ – ऐसा स्थल या व्यवस्था जहाँ से पूँजी सीधे प्रथम बार जनता द्वारा प्राप्त की जाती है उसे प्राथमिक बाजार कहा जाता है।
प्रतिभूतियों के निर्गमन की विधियाँ

1. प्रविवरण – इस विधि में निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रविवरण जारी करता है। यह एक प्रकार का जनसाधारण को प्रस्ताव होता है कि वे कंपनी व संस्थाओं की प्रतिभूतियों अर्थात् अंशों व ऋण पत्रों के लिए अभिदान करें।

2. बिक्री प्रस्तावना – इस विधि के अंतर्गत साधारण जनता को नई प्रतिभूतियाँ प्रस्तावित की जाती हैं परंतु प्रत्यक्ष रूप से कंपनी द्वारा नहीं, बल्कि बिचौलियों द्वारा जो कंपनी से प्रतिभूतियों का सारा समूह खरीदता है। इसीलिए प्रतिभूतियों की बिक्री दो चरणों में होती है-पहला चरण जब कंपनी अंकित मूल्य पर बिचौलिए को प्रतिभूतियाँ निर्गमित करती है और दूसरा चरण जब लाभ कमाने के लिए बिचौलिए साधारण जनता को उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ निर्गमित करते हैं।

3. अधिकार निर्गमन – यह विद्यमान शेयरधारकों को नए अंशों का निर्गमन है। इसे अधिकार निर्गमन कहा जाता है। क्योंकि यह अंशधारकों का पूर्व क्रय अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए। प्रत्येक अंशधारक को उसके द्वारा धारित मौजूदा शेयरों के अनुपात में अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार होता है।

4. इलेक्ट्रॉनिक – प्राथमिक सार्वजनिक प्रस्ताव-इस विधि के अंतर्गत कंपनियां अपनी प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा जारी करती है। इस माध्यम से प्रतिभूति जारी करने वाली कंपनी एक शेयर बाजार से समझौता करती है। शेयर बाजार में काम करने वाले सेबी द्वारा अधिकृत किसी दलाल को ऑन लाइन प्रार्थना पत्र प्राप्त करने के लिए नियुक्त किया जाता है। इसकी सूचना कंपनी को भेजता है।

5.स्वत्व निर्गमन – इस विधि का प्रयोग वह पुरानी कंपनी करती है जिसने पहले अंश निर्गमित कर रखे हों। जब कोई पुरानी कंपनी नए अंश निर्गमित करती है तो नए अंश बेचने के लिए पहले पुराने अंशधारियों को आमंत्रित करना होता है। इस निर्गमन को स्वत्व निर्गमन कहते हैं।

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प्रश्न 25.
अंश विपणि पर सौदा करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों के क्रय एवं विक्रय की कार्यविधि इस प्रकार है

(1) दलाल का चुनाव-कोई भी व्यक्ति जो प्रतिभूतियाँ खरीदना अथवा बेचना चाहता है, उसे एक दलाल को चुनना होता है जो स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। प्रतिभूतियाँ केवल दलालों के माध्यम से क्रय-विक्रय किया जाता है। ये दलाल व्यक्ति, साझेदारी फर्मे अथवा निगमित संस्थाएँ व कंपनियाँ हो सकती हैं। पहले दलाल स्वयं स्टॉक एक्सचेंज के स्वामी या प्रबंधक होते थे जिससे दलाल व ग्राहकों के बीच टकराव होता रहता था। लेकिन अब स्टॉक एक्सचेंज में सदस्यों के स्वामित्व अधिकारों को सौदा करने के अधिकारों से पृथक कर दिया गया है।

(2) डिपॉजिटरी के पास डीमेट खाता खोलना-आजकल प्रतिभूतियों में होने वाले सभी व्यवहार ऑनलाइन होते हैं। इसे संभव बनाने के लिए एक डीमेट खाते का खोला जाना ज़रूरी है। डीमेट खाता डिपॉजिटरी सेवा के एक पक्षकार डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के माध्यम से खोला जाता है। इस समय भारत में डिपॉजिटरी संस्थान दो हैं, जो निम्नलिखित हैं

  • National Securities Depository Limited (NSDL)
  • Central Depository services Limited (CDSL)

(3) आदेश देना-दलाल का चयन करने के बाद व्यक्ति उसे प्रतिभूतियों के क्रय अथवा विक्रय के लिए आदेश दे सकता है। आदेश देने से पहले वह अपने मित्रों (दलाल) से सलाह कर सकता है। दलाल को व्यक्तिगत रूप से या टेलीफोन, ई-मेल इत्यादि के माध्यम से भी आदेश दिया जा सकता है। आदेश देते समय विनियोगकर्ता क्रय या विक्रय की जाने वाली प्रतिभूतियों का विस्तृत विवरण देता है तथा बताता है कि सौदा किस मूल्य तक किया जाना है। साथ में प्रतिभूतियों के मूल्य तथा संख्या का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। उदाहरण के लिए, “रिलायंस के 100 समता अंश ₹ 250 पर खरीदो।”

(4) आदेश पूरा करना-आदेश प्राप्त करने के पश्चात् दलाल उसे अपनी डायरी में नोट कर लेगा जहाँ से यह आदेश पुस्तिका में हस्तांतरित किया जाएगा। इसके तुरंत बाद दलाल निवेशक के पास सूचना भेजने के लिए प्रसंविदा नोट तैयार करता है। प्रसंविदा नोट में क्रय-विक्रय की गई प्रतिभूतियों का नाम, संख्या व मूल्य लिखा जाता है। यह दलाल द्वारा हस्तांतरित किया जाता है तथा ग्राहक के पास सौदे के प्रमाण के रूप में रहता है।

(5) निबटारा-दलालों द्वारा अपने ग्राहकों की तरफ से किए जाने वाले सौदों का यह अंतिम चरण है। निपटारे की विधि सौदों की प्रकृति पर निर्भर करती है। निबटारा दो प्रकार के हो सकते हैं-

  • मौके पर निबटारा
  • अग्रिम निबटारा।

प्रश्न 26.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के कोई पाँच रक्षात्मक कार्य बताइए।
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के रक्षात्मक कार्य

(1) प्रतिभूति बाजार से संबंधित धोखा-धड़ी तथा अनुचित व्यवहारों (उदाहरण के लिए निवेशकों को धोखा देने के लिए मिथ्या विवरण जारी करना) को रोकना।

(2) आंतरिक व्यापार पर रोक लगाना। कंपनी में कुछ व्यक्ति (जैसे-संचालक तथा प्रवर्तक) ऐसे होते हैं जो कंपनी से निकटतम रूप से जुड़े होते हैं एवं जिन्हें कंपनी की आंतरिक स्थिति का पता होता है। अपनी इस स्थिति का लाभ उठाकर कंपनी की प्रतिभूतियों में क्रय-विक्रय करते हैं और भारी मात्रा में लाभ कमाते हैं।

(3) प्रतिभूति बाजार से संबंधित आचार संहिता लागू करना।

(4) SEBI निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कई उपाय करता है ताकि वे विभिन्न कंपनियों की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करने योग्य हों और अधिक लाभप्रद प्रतिभूति का चयन करें।

(5) प्रतिभूतियों में आंतरिक ट्रेडिंग को रोकना (आंतरिक ट्रेडिंग का आशय कंपनी की गुप्त जानकारी रखने वाले व्यक्तियों द्वारा गुप्त सूचनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रतिभूतियों का कम क्रय-विक्रय करना है

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प्रश्न 27.
विभिन्न द्रव्य बाजार प्रपत्रों की व्याख्या कीजिए
उत्तर:
द्रव्य बाजार के प्रमुख प्रपत्र निम्नलिखित हैं
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार IMAGE - 3

1. खजाना बिल – खजाना बिलों (Treasury Bill) को रिजर्व बैंक द्वारा भारत सरकार की ओर से अल्प अवधि की देयता के रूप में निर्गमित किया जा सकता है। इन्हें बैंक एवं जनसाधारण में बेचा जा सकता है। इसकी अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसका निर्गमन RBI के द्वारा सरकार की ओर से किया जाता है। सामान्यतः इसकी अवधि 14 दिन, 91 दिन, 182 दिन एवं 364 दिन की होती है।

2. वाणिज्यिक पत्र – वाणिज्यिक पेपर एक गैर-जमानती प्रतिज्ञा पत्र है जिसे निगम एक निश्चित अवधि, जो 12 महीने तक की होती है, के लिए जारी करता है। क्योंकि ये गैर-जमानती होते हैं अत: इसे केवल उच्च साख फर्मों के द्वारा ही निर्गमित किया जाता है। यह अल्पकालीन असुरक्षित प्रतिज्ञा पत्र होते हैं। इससे प्रायः कार्यशील पूँजी के लिए ही राशि प्राप्त की जाती है।

3. माँग मुद्रा – अधिकांश बैंकों के दिन-प्रतिदिन के आधिक्य कोषों का मुद्रा के रूप में व्यापार होता है। ऋण प्राप्तकर्ता वे बैंक होते हैं जिनके पास नगद की अस्थायी कमी होती है। इसका कारण संचय की आवश्यकता एवं कोषों की आकस्मिक माँग है।

4. जमा प्रमाण पत्र – यह सावधि जमा है जिसे गौण बाजार में बेचा जा सकता है। केवल एक बैंक ही जमा प्रमाण पत्र जारी कर सकता है। यह एक वाहक पत्र या आगाम दस्तावेज होता है। यह भी एक विनिमय साध्य विलेख है और आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है।

5. वाणिज्यिक बिल – वाणिज्यिक बिल एक व्यावसायिक फर्म द्वारा दूसरी फर्म पर लिखा जाने वाला बिल होता है। ये उधार क्रय और विक्रय में प्रयोग किये जाने वाले सामान्य उपकरण होते हैं इनकी परिपक्वता अवधि छोटी होती है सामान्यतया 90 दिन और परिपक्वता अवधि से पहले इन्हें बैंक में भुनाया जा सकता है।

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प्रश्न 28.
प्राथमिक बाजार में फ्लोटेशन (अस्थिर पूँजी) की क्या विधियाँ हैं ?
उत्तर:
प्राथमिक बाजार में अस्थिर पूँजी की निम्नलिखित विधियाँ हैं

1. प्रविवरण पत्रों के माध्यम से सार्वजनिक निर्गमन-इस विधि के अंतर्गत कंपनी, साधारण जनता को सूचित और आकर्षित करने के लिए प्रविवरण जारी करती है। प्रविवरण में कंपनी उस उद्देश्य के बारे में विवरण देती है जिसके लिए कोष प्राप्त किये जाते हैं, कंपनी के पिछले वित्तीय निष्पादन,कंपनी की पृष्ठभूमि और भावी प्रत्याशाओं के बारे में भी विवरण प्रदान करती है।

2. बिक्री की प्रस्तावना – इस विधि के अंतर्गत साधारण जनता को नई प्रतिभूतियाँ प्रस्तावित की जाती हैं परंतु प्रत्यक्ष रूप से कंपनी द्वारा नहीं बल्कि बिचौलिए द्वारा जो कंपनी से प्रतिभूतियों का सारा समूह खरीदता है, इसीलिए प्रतिभूतियों की बिक्री दो चरणों में होती है-पहला चरण जब कंपनी अंकित मूल्य पर बिचौलिए को प्रतिभूतियाँ निर्गमित करती है और दूसरा – चरण जब लाभ कमाने के लिए बिचौलिए साधारण जनता को उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ निर्गमित करते हैं।

3. निजी व्यवस्था – इस विधि के अंतर्गत कंपनी द्वारा बिचौलिए को एक निश्चित कीमत पर प्रतिभूतियाँ बेची जाती हैं और दूसरे चिरण में बिचौलिए इन प्रतिभूतियों को साधारण जनता को नहीं बेचते अपितु उच्च कीमत पर चुने हुए ग्राहकों को बेचते हैं। निर्गमित करने वाली कंपनी, अपने उद्देश्यों, भावी संभावनाओं के बारे में विवरण देने के लिए प्रविवरण निर्गमित करती है ताकि प्रसिद्ध ग्राहक बिचौलिए से प्रतिभूति क्रय करने को प्राथमिकता दें।

4. अधिकार निर्गमन – यह विद्यमान शेयरधारकों को नए अंशों का निर्गमन है। इसे अधिकार निर्गमन कहा जाता है। क्योंकि यह अंशधारियों का पूर्वक्रय अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए। प्रत्येक अंशधारक को उसके द्वारा धारित मौजूदा शेयरों के अनुपात में अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए।

5. ईप्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावना – यह स्टॉक एक्सचेंज/शेयर बाजार की प्रतिभूतियों को आनॅलाइन पद्धति द्वारा निर्गमित करने की नई विधि है। इसमें कंपनी को आवेदनों को स्वीकार करने और ऑर्डर देने के प्रयोजन के लिए पंजीकृत दलालों को नियुक्त करना पड़ता है।

प्रश्न 29.
भारत में पूंजी बाजार के सुधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में पूंजी बाजार में सुधार-भारत में पूंजी बाजार में निम्नलिखित सुधार किए गये हैं

(i) पूँजी बाजार में निगमों के स्कन्ध, अंश व ऋणपत्रों (Stock, Share and Debentures) तथा सरकारी बॉण्ड, प्रतिभूतियों आदि में लेनदेन करता है।

(ii) पूँजी बाजार में कार्य करने वाले व्यक्तियों, व्यापारिक बैंक, वाणिज्यिक बैंक, बीमा कम्पनियाँ, विभिन्न औद्योगिक बैंक, औद्योगिक वित्त निगम, यूनिट ट्रस्ट, निवेश ट्रस्ट लीजिंग वित्त, भवन समितियाँ आदि प्रमुख होते हैं।

(iii) कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो प्रत्यक्षतः ऋण प्रदान नहीं करते हैं किन्तु ऋण प्रदान करने में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती हैं। जिनमें अंशों व ऋणपत्रों के अभिगोपक (Underwriter) महत्वपूर्ण होते हैं। इन अभिगोपकों को ‘हामीदार’ (Underwriter) भी कहा जाता है।

(iv) सम्पूर्ण पूँजी का लेनदेन या क्रय – विक्रय स्कन्ध विपणि (Stock Exchange) के माध्यम से किया जाता है इसलिये इन बाजारों को स्कन्ध बाजार भी कहा जाता है। स्कन्ध बाजार में अंश, ऋणपत्र, बॉण्ड्स, प्रतिभूतियाँ आदि का लेनदेन होता है।

(v) स्कन्ध विपणि में नई एवं पुरानी सभी प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय – विक्रय होता है।

(vi) पूँजी बाजार में लेनदेन सामान्यतः दलालों के माध्यम से ही किया जाता है क्योंकि पूँजी बाजार के स्वभाव से ये अच्छी तरह परिचित रहते हैं।
इस प्रकार पूँजी बाजार में स्कन्ध विपणि के माध्यम से नई पूँजी प्राप्त करने के लिये विभिन्न उपाय किये जाते हैं । पूँजी बाजार के द्वारा दीर्घकालीन व मध्यकालीन वित्त (पूँजी) की व्यवस्था की जाती है वर्तमान में पूँजी प्राप्त करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्था प्रारम्भ हो चुकी है।

प्रश्न 30.
सेबी (SEBI) के प्रकार्यों एवं उददेश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सेबी के कार्य (Functions of ‘SEBI’) सेबी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. प्रतिभूति बाजार (Security market) में विनियोजकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाजार को उचित ढंग से विकसित कर उसे नियमित करना।
  2. स्कन्ध विपणि तथा अन्य प्रतिभूति बाजार के व्यवसाय का नियमन करना।
  3. स्कन्ध दलाल (Stock brokers), अंश हस्तान्तरण एजेण्ट (Share transfer agent), प्रन्यासी (Trustees), मर्चेण्ट बैंकर्स, अभिगोपक पोर्टफोलियो मैनेजर, सब-ब्रोकर्स आदि के कार्यों को देखना, उनका पंजीयन करना व उसका नियमन करना।
  4. म्यूचुअल फन्ड सहित समस्त सामूहिक निवेश की योजना को विधिवार पंजीकृत कर उसका नियमन करना।
  5. स्वयं नियमित संगठनों का नियमन व नियन्त्रण करना। . 6. प्रतिभूतियों का अनियमित व अनुचित व्यापार व्यवहार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना।
  6. प्रतिभूति से सम्बन्धित व्यक्तियों के लिये आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
  7. निवेशकों के लिये आवश्यक शिक्षा की व्यवस्था करना।
  8. प्रतिभूतियों के अन्दरुनी व्यापार पर रोक लगाना।।
  9. प्रतिभूति बाजार से सम्बन्धित आवश्यक शोध करना।

प्रश्न 31.
प्राथमिक बाजार एवं द्वितीयक बाजार में अंतर बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार एवं द्वितीयक बाजार में अंतर –
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प्रश्न 32.
पूँजी बाजार के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार राष्ट्रीय पूँजी निर्माण तथा विकास में सहायक करता है । पूँजी बाजार के महत्व को हम निम्नांकित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं

  1. पूँजी बाजार पूँजी निवेशकों एवं बचत धारियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचतकर्ता निधि के स्रोत व ऋणदाता होते हैं तथा निवेशक निधि के ऋणी होते हैं । इन दोनों के मध्य पूँजी बाजार एक कड़ी का कार्य करता है।
  2. अपनी समस्त आय खर्च न करने वाले बचतकर्ताओं के लिए विनियोग करने का सरल साधन पूँजी बाजार होता है।
  3. आम जनता की छोटी-छोटी बचतों के लाभकारी विनियोग के लिए पूँजी बाजार एक अच्छा क्षेत्र प्रदान करता है।
  4. इसी प्रकार कम दर पर अधिक समय के लिए पूँजी प्राप्त करने का एक अच्छा मार्ग पूँजी बाजार होता है।
  5. पूँजी बाजार में माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन बनाये रखने का कार्य पूँजी बाजार अपने उपकरणों के माध्यम से करता है।

प्रश्न 33.
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में निम्नलिखित आधारों पर अंतर्भेद कीजिए

  1. प्रतिभागी
  2. व्यापारिक साख
  3. प्रतिभूतियों की व्यापारिक अवधि
  4. अपेक्षित प्रतिफल
  5. सुरक्षा।

उत्तर:
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में अंतर –
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प्रश्न 34.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NSEI) तथा ओवर दि काउंटर एक्सचेंज ऑफ इंडिया (OTCET) में निम्नलिखित आधारों पर अंतर्भेद कीजिए

  1. स्थापना वर्ष
  2. चुकता पूँजी
  3. व्यापारित प्रतिभूतियाँ
  4. निपटान की अवधि
  5. उद्देश्य।

उत्तर:
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया तथा ओवर दि काउंटर एक्सचेंज ऑफ इंडिया में अंतर –
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MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ

MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ

द्रव्य की अवस्थाएँ NCERT अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
30° से. तथा 1 bar दाब पर वायु 500 dm आयतन को 200 dm तक संपीडित करने के लिए कितने न्यूनतम दाब की आवश्यकता होगी?
हल:
स्थिर ताप बॉयल के नियमानुसार,
P1V1 = P2V2,
P1 = 1 bar
V1 = 500 dm3
P2=?
V2 = 200 dm3
\(\quad { P }_{ 2 }=\frac { { P }_{ 1 }{ V }_{ 1 } }{ { V }_{ 2 } } \)
=\(\frac { 1×500 }{ 200}\) = 2.5 bar.

प्रश्न 2.
35° से. ताप तथा 1 – 2 bar दाब पर 120 ml धारिता वाले पात्र में गैस की निश्चित मात्रा भरी है। यदि 35° से. पर गैस को 180 ml धारिता वाले फ्लास्क में स्थानांतरित किया जाता है, तो गैस का दाब क्या होगा?
हल:
दिया है – P1 = 1.2 bar,
V1 = 120 ml,
P2 = ?,
V2 = 180 ml
स्थिर ताप पर बॉयल के नियम से,
\(\quad { P }_{ 2 }=\frac { { P }_{ 1 }{ V }_{ 1 } }{ { V }_{ 2 } } \)
अतः P2 = \(\frac { 1.2 bar × 120mL }{ 180}\) = 0.8bar

प्रश्न 3.
अवस्था-समीकरण का उपयोग करते हुए स्पष्ट कीजिए कि दिए गए ताप पर गैस का घनत्व, गैस के दाब के समानुपाती होता है।
उत्तर:
आदर्श गैस समीकरण के अनुसार,
PV = nRT
P = \(\frac { nRT}{V}\)
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 1

= \(\frac { m}{M}\)
P = \(\frac { mRT}{MV}\)
अब घनत्व d=\(\frac { m}{V}\)M रखने पर,
P = \(\frac { dRT}{M}\)}
अतः स्थिर आयतन पर P α d होगा।

प्रश्न 4.
0°C पर तथा 2 bar दाब पर किसी गैस के ऑक्साइड पर घनत्व 5 bar दाब पर डाइनाइट्रोजन के घनत्व के समान है, तो ऑक्साइड का अणु-भार क्या है ?
हल:
घनत्व d = \(\frac { MP}{RT}\), (यहाँ R और T किसी गैस के लिए स्थिरांक है)
N2 के लिए P=5 bar एवं M = 28 g mol-1
dN2 = \(\frac { PM}{RT}\) = \(\frac {5 × 28}{RT}\)

दिये गये गैसीय ऑक्साइड के लिए P = 2 bar एवं M = ?
doxide = \(\frac { PM}{RT}\) = \(\frac {5 × 28}{RT}\)
प्रश्नानुसार, dN2 = doxide
5 × 28 = 2× M
M= \(\frac {5 × 28}{2}\) = 70g mol-1

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प्रश्न 5.
27° से. पर एक ग्राम आदर्श गैस का दाब 2 bar है।जब समान ताप एवंदाब पर इसमें दो ग्राम आदर्श गैस मिलाई जाती है, तो दाब 3 bar हो जाता है। इन गैसों के अणु-भार में संबंध स्थापित कीजिए।
हल:
PV = nRT
गैस A के लिए, PAV = NART ………..(i)
इसी प्रकार, गैस B के लिए, PBV = NBRT ………..(ii)
गैस A के मोलों की संख्या, nA = \(\frac { 1 }{ { M }_{ A } } \) [MA = A का मोलर द्रव्यमान]
गैस B के मोलों की संख्या, nB = \(\frac { 2 }{ { M }_{ B } } \) [MB = B का मोलर द्रव्यमान]
गैस A का दाब, PA = 2 bar
कुल दाब, Pकुल = PA + PB = 3 bar
गैस B का दाब,
PB= Pकुल – PA = 3 – 2 = 1 bar
V, R तथा T दोनों गैसों के लिए समान है।
अतः समी. (i) तथा (ii) से,
\(\frac { { P }_{ A } }{ { P }_{ B } } \) = \(\frac { { n }_{ A } }{ { n }_{ B } } \) = \(\frac { { 1×M }_{ B } }{ { { M }_{ A } }×2 } \)
= \(\frac { { M }_{ B } }{ { M }_{ A } } \) = \(\frac { { 2P }_{ A } }{ { P }_{ B } } \)
= \(\frac { { M }_{ B } }{ { M }_{ A } } \) = \(\frac { 2×2 }{ 1 }\)
MB = 4MA

प्रश्न 6.
नाली साफ करने वाले ड्रेनेक्स में सूक्ष्म मात्रा में ऐल्युमिनियम होता है। यह कास्टिक सोडा से क्रिया कर डाइहाइड्रोजन गैस देता है। यदि 1 bar तथा 20°C ताप पर 0.15 ग्राम ऐल्युमिनियम अभिक्रिया करेगा, तो निर्गमित डाइहाइड्रोजन का आयतन क्या होगा?
हल:
प्रयुक्त रासायनिक समीकरण –
2 AI (2 मोल) + 2NaOH + 2H2O → 2NaAlO2 + 3H2(3 मोल)
= 54 gm
अत: 0-15 g AI से उत्पन्न होने वाले H2 मोल =\(\frac { 3 }{ 54 }\) × 0.15 = 8333×10-3 mol
PV = nRT में P= 1 bar, V = ?, n=8.333 × 10-mol, R=0.083 L atm mol-1K-1 T = 293K रखने पर,
1 × V = 8.33 x 10-3× 0.083 × 293
V=0.202 L या 202 mL.

प्रश्न 7.
यदि 27°C पर 9 dm3 धारिता वाले फ्लास्क में 3.2 ग्राम मेथेन तथा 4.4 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण हो, तो इसका दाब क्या होगा?
हल:
समीकरण, PV = \(\frac {m }{ M}\)RT

मेथेन का दाब –
m = 3.2g, M = 16g mol-1 , T = 300K, V = 9 × 10-3 m-3 R = 8.314 Pa m3K-1mol-1
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CO2 का दाब, –
w = 4.4g, M = 44g mol-1, T = 300K, V = 9x 10-3m3, R= 8.314 Pa m3K-1mol-1 Pa
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 3

मिश्रण का कुल दाब = \({ P }_{ { CH }_{ 4 } }\) + \({ P }_{ { CO }_{2} }\)
= 5-543 × 104Pa + 2.771 × 104 Pa
= 8:314 × 104 Pa.

प्रश्न 8.
27°C ताप पर जब 1 लीटर के फ्लास्क में 0.7 bar पर 2.0 लीटर डाइऑक्सीजन तथा 0.8 bar पर 0.5 L डाइहाइड्रोजन को भरा जाता है, तो गैसीय मिश्रण का दाब क्या होगा?
हल:
समी. P1V1+ P2V2 = P3V3 में,
P1 = 0.8 bar, P2 = 0.7 bar, V1 = 0.5L, V2 = 2L, P3 = ?, V3= 1L रखने पर,
0.8 x 0.5 + 0.7 × 2 = P3 × 1.
∴ P3 = 1.8 bar.

प्रश्न 9.
यदि 27°C ताप तथा 2 bar दाब पर एक गैस का घनत्व 5.46 gdm’ है, तो STP पर इसका घनत्व क्या होगा?
हल:
दी गई गैस के लिए,
\(\frac { { P }_{ 1 } }{ { d }_{ 1 }{ T }_{ 1 } } =\frac { { P }_{ 2 } }{ { d }_{ 2 }T_{ 2 } } \)
d1= 5.46 g/dm3, d2 = ?, P2 = 1 bar, P1 = 2 bar, T1 = 27 + 273 = 300K, T1 = 273 K
∴ \(\frac { 2 }{ 15.46×300 } =\quad \frac { 1 }{ d_{ 2 }×274 } \)
या d2 = 3 g/dm3.

प्रश्न 10.
यदि 546°C तथा 0.1 bar दाब पर 34.05 ml फॉस्फोरस वाष्प का भार 0.0625 g है, तो फॉस्फोरस का मोलर द्रव्यमान क्या होगा?
हल:
PV = nRT
PV = \(\frac { mRT }{ M }\)
(m = फॉस्फोरस का द्रव्यमान (g) तथा M = फॉस्फोरस का मोलर द्रव्यमान)
या M=\(\frac { mRT }{PV}\)
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M = 1250.4g mol-1.

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प्रश्न 11.
एक विद्यार्थी 27°C पर गोल पेंदे के फ्लास्क में अभिक्रिया-मिश्रण डालना भूल गया तथा उस फ्लास्क को ज्वाला पर रख दिया। कुछ समय पश्चात् उसे अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने उत्तापमापी की सहायता से फ्लास्क का ताप 477°C पाया।आप बताइए कि वायु का कितना भाग फ्लास्क से बाहर निकला।
हल:
प्रथम विधि –
माना 27°C (T1 = 300K) पर फ्लास्क में हवा का आयतन = Vcm3
प्रश्नानुसार, V1 = Vcm3, V2 = ?, T1= 300K, T2 = 750K
\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } } =\quad \frac { { V }_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } } \)
\(\frac { V }{ 300 } =\frac { { V }_{ 2 } }{ 750 } \quad \)
⇒  300V2 = 750V (कुल आयतन)
∴ V2 = 2.5V
बाहर निकला आयतन = 2.5V-V = 1.5V
बाहर निकली वायु का भाग = \(\frac { 1.5V }{ 2.5V }\)= 0.6

द्वितीय विधि –
PV = nRT
nα\(\frac { 1 }{ T }\).
\(\frac { { n }_{ 1 } }{ { n }_{ 2 } } =\frac { T_{ 1 } }{ { T }_{ 2 } } \quad \) = \(\frac { 300 }{ 750 }\).
\(\frac { { n }_{ 1 } }{ { n }_{ 2 } } \) = 0.4
∴ बाहर निकली वायु का भाग = 0.6.

प्रश्न 12.
3.32 bar पर 5 dm3 आयतन घेरने वाली 4.0 mol गैस के ताप की गणना कीजिए। (R = 0.83 bar dm3 mol-1 )
हल:
प्रश्नानुसार, P= 3.32 bar
आयतन, V= 5 dm3
मोलों की संख्या, n = 4 mol
गैस का नियतांक, R= 0.083 bar dm3 K-1 mol
ताप, T = ?
आदर्श गैस का समीकरण, PV = nRT से
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 5
T= 50K.

प्रश्न 13.
1.4 g डाइनाइट्रोजन गैस में उपस्थित कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या की गणना कीजिए।
हल:
∴ N2 के मोलों की संख्या =\(\frac { m }{ M }\) = \(\frac { 1.4 }{ 28 }\)=0.05
अणुओं की संख्या = 0.05 × 6.02 × 1023 = 3.01 x 1023
अणु नाइट्रोजन के एक अणु में 14 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
अतः कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 14 × 3.01 × 1023 = 42.14 × 1022

प्रश्न 14.
यदि एक सेकंड में 1010 गेहूँ के दाने वितरित किए जाएँ, तो ऐवोगैड्रो-संख्या के बराबर दाने वितरित करने में कितना समय लगेगा?
हल:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 6

प्रश्न 15.
27°C ताप पर 1 dm3 आयतन वाले फ्लास्क में 8 ग्राम डाइऑक्सीजन तथा 4 ग्राम डाइहाइड्रोजन के मिश्रण का कुल दाब कितना होगा?
हल:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 16
H2 के मोलों की संख्या, \(\qquad { n }_{ { H }_{ 2 } }=\quad \frac { 4 }{ 2 } \) = 2.0mol
कुल मोलों की संख्या = 0.25 + 2.0 = 2.25 mol
प्रश्नानुसार, P = ?, n = 2-25 mol, V = 1 dm3, R = 0.083 bar dm K-1 mol-1
T= 27°C = 273 + 27 = 300K
अतः PV = nRT से,
दाब, P=\(\frac { nRT }{ V } \)
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 7
P = 56.025 bar.

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प्रश्न 16.
गुब्बारे के भार तथा विस्थापित वायु के भार के अंतर को ‘पेलोड’ कहते हैं। यदि 27°C पर 10 m त्रिज्या वाले गुब्बारे में 1.66 bar पर 100kg हीलियम भरी जाए, तो पेलोड की गणना कीजिए। (वायु का घनत्व = 1.2 kg m’ तथा R = 0.083 bar dm3 K-1mol-1)
हल:
प्रथम गणना-विस्थापित वायु के भार के लिए
गुब्बारे की त्रिज्या (r) = 10 m, d = 1.2 kg m-3
गुब्बारे का आयतन (V) = \(\frac { 4 }{ 3 }\) πr3 = \(\frac { 4 }{ 3 }\) × \(\frac { 22 }{ 7 }\) × = (10)3
= 4190.5 m3
अतः विस्थापित वायु का भार = गुब्बारे की वायु का आयतन × वायु का घनत्व
= 4190.5 × 1-2 = 5028.6 kg
द्वितीय गणना – गुब्बारे में भरी He का द्रव्यमान
He के मोलों की संख्या (n) = \(\frac { PV }{RT }\).
∴ P = 1.66 bar, V = 4190.5 × 103 dm3, R = 0.083 bar dm3 K-1‘mol-1, T = 300K
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 8
= 279.37 ×103
अतः भरे गुब्बारे का भार = 100 + 1117.48 = 1217.48 kg
तृतीय गणना – पेलोड का भार = विस्थापित द्रव्यमान-भरे गुब्बारे का भार
= 5028.6 – 1217.8
= 3811.8 kg.

प्रश्न 17.
31.1 C तथा 1 bar दाब पर 8.8 ग्राम CO2 द्वारा घेरे गए आयतन की गणना कीजिए। (R = 0.083 bar L mol-1)
हल:
सूत्र,
PV = nRT से,
PV = \(\frac { m }{ M }\)RT
प्रश्नानुसार, P= 1 bar, V = ?, m = 8.8g. M= 44g mol-1 (CO2)
R = 0.083 bar LK-1 mol-1 तथा T= 31.1°C = 273 + 31.1
= 304.1 K
t =-273°C पर,
vt = v0 [1-\(\frac { 273 }{ 273 }\)] = 0
अर्थात् – 273°C पर गैस का आयतन शून्य हो जायेगा तथा गैसों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।
8.8 g CO2द्वारा घेरा गया आयतन,
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 35
V=5.048 L.

प्रश्न 18.
समानदाब पर किसी गैस के 2.9g द्रव्यमान का 95°C तथा 0.184g डाइहाइड्रोजन का 17°C का आयतन समान है। बताइए कि गैसों का मोलर द्रव्यमान क्या होगा?
हल:
समी. PV=\(\frac { m }{Ml }\)RT
गैस के लिए, m = 2.9, T = 273 + 95 = 368K, M = ?
PV = \(\frac { 2.9 }{M }\) × R × 368 ………….(i)
एवं हाइड्रोजन के लिए, m = 0.184g, T = 273 + 17 = 290, M = 2
PV = \(\frac { 0.184 }{ 2}\) × R × 290 ………….(ii)
समी. (i) एवं (ii) से,
\(\frac { 2.9 }{M }\) × R × 368 = \(\frac { 0.184 }{ 2}\) × R × 290
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 36

प्रश्न 19.
एक bar दाब पर डाइहाइड्रोजन तथा डाइऑक्सीजन के मिश्रण में 20% डाइहाइड्रोजन (भार से) रखा जाता है, तो डाइहाइड्रोजन का आंशिक दाब क्या होगा?
हल:
∴ H2 तथा O2 के मिश्रण में भारानुसार 20% H2 है।
अतः WH2 = 20 g एवं WO2 = 80g
nH2 = \(\frac {20 }{ 2}\) = 10 moles
WO2 = \(\frac {80 }{ 32}\) = 2.5 moles
PH2= XH2 × Ptotla,
PH2 = \(\frac {10 }{ 10 + 2.5}\) × 1 = 0.8bar
Ptotla = 1bar

प्रश्न 20.
PV2T2/n राशि के लिए SI इकाई क्या होगी?
उत्तर:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 34

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प्रश्न 21.
चार्ल्स के नियम के आधार पर समझाइए कि न्यूनतम संभव ताप -273°C होता है।
उत्तर:
चार्ल्स के नियमानुसार,
Vt = V0(1+\(\frac {t}{ 273}\))

प्रश्न 22.
कार्बन डाइऑक्साइड तथा मेथेन का क्रांतिक ताप क्रमशः 31.1°C एवं -81.9°C है। इनमें से किसमें प्रबल अंतर आण्विक बल है तथा क्यों ?
उत्तर:
क्रान्तिक ताप का मान उच्च होने पर गैसों को द्रवित करना आसान होता है अर्थात् उनके अणुओं के मध्य अन्तर आण्विक बल उतना ही प्रबल होता है। चूँकि CO2 का क्रान्तिक ताप CH4 से उच्च है अत: CO2 में अन्तर आण्विक आकर्षण बल का मान CH4 से प्रबल होगा।

प्रश्न 23.
वाण्डर वाल्स प्राचल की भौतिक सार्थकता को समझाइए।
उत्तर:
वाण्डर वाल स्थिरांक ‘a’ का मान गैस के अणुओं के अन्तराणुक बल को दर्शाता है जबकि स्थिरांक ‘b’ गैस के अणुओं का प्रभावी आयतन है। ‘a’ और ‘b’ के उच्च मान होने पर गैस को द्रवित करना आसान होता है।

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द्रव्य की अवस्थाएँ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

द्रव्य की अवस्थाएँ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

प्रश्न 1.
गैस के घनत्व और विसरण की दर के बीच सम्बन्ध स्थापित किया था –
(a) बॉयल ने
(b) चार्ल्स ने
(c) ग्राम ने
(d) ऐवोगैड्रो ने।
उत्तर:
(c) ग्राम ने

प्रश्न 2.
R का कैलोरी में लगभग मान है –
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4. 3.
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 3.
परम ताप है –
(a) 0°C
(b) -100°C
(c) -273°C
(d) -373°C.
उत्तर:
(c) -273°C

प्रश्न 4.
गैसों का सामान्य समीकरण प्राप्त करने के लिये किन दो नियमों को संयुक्त किया गया है –
(a) चार्ल्स का नियम और डॉल्टन का नियम
(b) ग्राम का नियम और डॉल्टन का नियम
(c) बॉयल का नियम और चार्ल्स का नियम
(d) ऐवोगैड्रो का नियम और डॉल्टन का नियम।
उत्तर:
(c) बॉयल का नियम और चार्ल्स का नियम

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प्रश्न 5.
स्थिर आयतन पर एक-अणुक गैस का दाब निर्भर करता है –
(a) पात्र की दीवार की मोटाई पर
(b) परम ताप पर
(c) तत्व के परमाणु-क्रमांक पर
(d) संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर।
उत्तर:
(b) परम ताप पर

प्रश्न 6.
वास्तविक गैसों का व्यवहार आदर्श गैस के व्यवहार के अधिक समीप होता है यदि –
(a) ताप कम हो
(b) दाब अधिक हो
(c) दाब कम तथा ताप अधिक हो
(d) गैस मोनोएटॉमिक हो।
उत्तर:
(c) दाब कम तथा ताप अधिक हो

प्रश्न 7.
अधिक ऊँचे स्थानों पर जल कम ताप पर उबलने लगता है क्योंकि –
(a) वहाँ पर वायुमण्डलीय दाब कम होता है
(b) वहाँ पर वायुमण्डलीय दाब अधिक होता है
(c) अधिक ऊँचाई पर जल का हाइड्रोजन बन्ध अधिक प्रबल हो जाता है
(d) जल-वाष्प, जल-द्रव से हल्का होता है।
उत्तर:
(a) वहाँ पर वायुमण्डलीय दाब कम होता है

प्रश्न 8.
दो गैसों A तथा B के आण्विक द्रव्यमान क्रमशः 16 और 64 हैं। A और B के विसरण की दरों का अनुपात होगा
(a) 1:4
(b) 4 : 1
(c) 2 : 1
(d) 1 : 2.
उत्तर:
(c) 2 : 1

प्रश्न 9.
उच्च दाब पर गैसें आदर्श व्यवहार से विचलित हो जाती हैं क्योंकि –
(a) उच्च दाब पर अणुओं के संघट्टों (Collisions) की संख्या बढ़ जाती है
(b) उच्च दाब पर अणुओं के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है
(c) उच्च दाब पर अणुओं का आकार छोटा हो जाता है
(d) उच्च दाब पर अणु स्थिर हो जाते हैं।
उत्तर:
(b) उच्च दाब पर अणुओं के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है

प्रश्न 10.
एक गैस X की तुलना में मेथेन की विसरण की दर दुगुनी है।x का अणु भार है’ –
(a) 64
(b) 32.0
(c) 4.0
(d) 8.0.
उत्तर:
(a) 64

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प्रश्न 11.
वाण्डर वॉल्स समीकरण का वह पद जो वास्तविक गैसों के अन्तराणुक बल का निरूपण करता है –
(a) (V-b)
(b) RT
(c) (P + \(\frac { a }{ { v }^{ 2 } } \))
(d) (RT)-1.
उत्तर:
(c) (P + \(\frac { a }{ { v }^{ 2 } } \))

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये –

  1. गैसों के अणुगतिक सिद्धान्त के अनुसार किसी गैस की औसत गतिज ऊर्जा उसके …………. ताप के समानुपाती होती है।
  2. किसी गैस के एक मोल की गतिज ऊर्जा ………….. के बराबर होती है।
  3. वर्ग माध्य मूल वेग होता है ………………।
  4. औसत वेग = …………. x ………………. के बराबर होता है।
  5. अणुगतिक समीकरण का सूत्र है …………….।

उत्तर:

  1. परम
  2. 3/2 RT,
  3. \(\sqrt { \frac { 3PV }{ m } } \) या \(\sqrt { \frac { 3RT }{ m } } \)
  4. 0.921, वर्ग माध्य मूल वेग,
  5. PV = \(\frac { 1 }{ 3 }\) mnv2

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प्रश्न 3.
उचित संबंध जोडिए –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 33
उत्तर:

  1. (f) आयनिक क्रिस्टल
  2. (a) आणविक क्रिस्टल
  3. (b) सहसंयोजी क्रिस्टल
  4. (e) अक्रिस्टलीय क्रिस्टल
  5. (d) आणविक क्रिस्टल
  6. (c) धात्विक क्रिस्टल

प्रश्न 4.
एक शब्द / वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. किसी द्रव के बहाव में उत्पन्न प्रतिरोध को क्या कहते हैं?
  2. पृष्ठ तनाव का मात्रक है।
  3. दाब का SI मात्रक लिखिए।
  4. गैस के घनत्व एवं विसरण दर के बीच सम्बन्ध दर्शाने वाले वैज्ञानिक का नाम है।
  5. SI इकाई में गैस स्थिरांक का मान होता है।
  6. 1 पास्कल का मान बराबर होता है।

उत्तर:

  1. श्यानता
  2. डाइन प्रति सेमी
  3. पास्कल
  4. ग्राम
  5. 8.314 JK-1 mo-1
  6. 1Nm2

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द्रव्य की अवस्थाएँ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी गैस का दाब किसे कहते हैं ?
उत्तर:
गैस को जिस पात्र में रखा जाता है, उसके अणु पात्र की दीवार से टकराते हैं। इस टकराव के कारण गैस पात्र की दीवार पर दाब उत्पन्न करते हैं, “प्रति इकाई क्षेत्रफल पर कार्य करने वाला बल दाब कहलाता है।”
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 9
दाब का S.I. मात्रक न्यूटन/वर्ग मीटर है, इसे पास्कल भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
वायुमण्डलीय दाब से क्या समझते हो?
उत्तर:
पृथ्वी के चारों ओर वायु का लगभग 800 km मोटाई का आवरण है। यह वायु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की सतह की ओर खिंचती है जिसके कारण पृथ्वी की सतह पर एक दाब उत्पन्न होता है जिसे वायुमण्डलीय दाब कहते हैं तथा एक वायुमण्डलीय दाब उस दाब के बराबर होता है। 760 mm पारा 0°C तथा मानक गुरुत्व जनित्र त्वरण पर डालता है।

प्रश्न 3.
अक्रिस्टलीय ठोस किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे ठोस जिनमें अवयवी कणों की कोई क्रमबद्ध संरचना नहीं होती इसलिये इनकी कोई एक निश्चित ज्यामिति संरचना नहीं होती है। इन्हें अक्रिस्टलीय ठोस कहते हैं। इन्हें आभासी ठोस भी कहते हैं। ये वास्तव में अतिशीतित द्रव होते हैं।

प्रश्न 4.
आयनिक क्रिस्टल किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
वे क्रिस्टलीय ठोस जिनमें अवयवी कण धनावेशित तथा ऋणावेशित आयन होते हैं। ये आयन संपूर्ण क्रिस्टल में निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते हैं तथा इन आयनों के मध्य प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होता है। उदाहरण-Li, NaCl, ZnS इत्यादि।

प्रश्न 5.
सहसंयोजी क्रिस्टल को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
वे क्रिस्टलीय ठोस जिनमें अवयवी कण परमाणु होते हैं तथा आपस में सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। ये विद्युत् के कुचालक होते हैं तथा इनके गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं। उदाहरण-डायमंड, सिलिका, सिलिकॉन कार्बाइड।

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प्रश्न 6.
आण्विक क्रिस्टल किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
इनमें अवयवी कण अणु होते हैं। इनके मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल होता है। इनके mm.p. तथा b.p. निम्न होते हैं, ये क्रिस्टल नर्म होते हैं। उदाहरण-शुष्क बर्फ, बर्फ, आयोडीन।

प्रश्न 7.
गैसों के अणुगतिक सिद्धांत के एक अभिगृहित के अनुसार, ‘गैस के अणुओं के मध्य कोई आकर्षण बल नहीं होता है।’ यह कथन कितना सत्य है ? क्या आदर्श गैस को द्रवीकृत करना सम्भव है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कथन केवल आदर्श गैसों के लिए सत्य है। किसी आदर्श गैस को द्रवीकृत करना सम्भव नहीं है क्योंकि आदर्श गैस के अणुओं के बीच अंतर-आण्विक आकर्षण बल नहीं पाया जाता है।

प्रश्न 8.
धात्विक क्रिस्टल को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
इनमें अवयवी कण धनात्मक धात्विक आयन होते हैं। ये धातु आयन गतिशील इलेक्ट्रॉनों के मंडल में बिखरे रहते हैं तथा अवयवी कणों के मध्य धात्विक बंध होता है। ये विद्युत् के सुचालक होते हैं तथा इनके घनत्व उच्च होते हैं। उदाहरण-Cu, Zn, Fe, Ni इत्यादि।

प्रश्न 9.
विषम दैशिकता तथा सम दैशिकता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
क्रिस्टलीय ठोस में विभिन्न दिशाओं में उनके भौतिक गुण जैसे-विद्युत् चालकता, अपवर्तनांक, तापीय प्रसार आदि में अंतर होता है, ऐसे पदार्थ विषम दैशिक कहलाते हैं तथा इस गुण को विषम दैशिकता कहते हैं। इसके विपरीत अक्रिस्टलीय ठोस में सभी दिशाओं में उनके भौतिक गुणों में समानता होती है, ऐसे पदार्थ सम दैशिक कहलाते हैं तथा इस गुण को सम दैशिकता कहते हैं।

प्रश्न 10.
परम शून्य ताप की परिभाषा लिखकर इसका मान सेन्टीग्रेड पैमाने पर बताइये।
उत्तर:
वह काल्पनिक ताप जिस पर किसी गैस का आयतन शून्य हो जाता है, परम शून्य ताप कहलाता है। सेन्टीग्रेड पैमाने पर यह मान -273°C होता है। इस शून्य से जो ताप नापा जाता है उसे परम ताप कहते हैं, इसे केल्विन से दर्शाया जाता है। 0°C = 273 K 0°C ताप को परम ताप में बदलने के लिये उसमें 273 जोड़ दिया जाता है।

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प्रश्न 11.
क्रिस्टल की इकाई कोशिका से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी क्रिस्टल में उसके संघटक कणों जैसे-परमाणु, अणु या आयनों के क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित रहने पर जो सूक्ष्मतम इकाई बनती है। उसे क्रिस्टल की इकाई कोशिका या Unit cell कहते हैं।

प्रश्न 12.
क्रिस्टल जालक क्या है ?
उत्तर:
किसी क्रिस्टल की वह ज्यामिति जिसमें इकाई कोशिकाएँ क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित होकर एक बड़ी तथा इकाई कोशिका की आकृति के समरूप क्रिस्टल बनाती हैं तो उसे क्रिस्टल जालक कहते हैं।

प्रश्न 13.
मौसम अध्ययन के लिये छोड़े गये गुब्बारे के ऊपर उठने पर उसका आयतन कैसे बदलता है?
उत्तर:
गुब्बारा जैसे-जैसे ऊपर उठता है वायुमण्डलीय दाब में कमी आती है। लेकिन दाब घटने से गुब्बारे के अंदर का दाब अधिक हो जाता है जिससे उसका आयतन बढ़ने लगता है।

प्रश्न 14.
शीत ऋतु में झील में बर्फ की पर्त जम जाती है लेकिन उसमें उपस्थित मछली तथा जीवजन्तु जीवित रहते हैं, क्यों?
उत्तर:
जल का अधिकतम घनत्व 4°C ताप पर होता है किन्तु 4°C से कम ताप पर घनत्व कम होता है। जब झील का ताप गिरता है तो ऊपर के पृष्ठ का जल अधिक सघन हो जाता है और वह नीचे चला जाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि ताप 4°C तक नहीं पहुँच जाता है। पृष्ठ का ताप यदि 4°C से कम हो तो जल ऊपर की सतह पर ही रहता है और धीरे-धीरे बर्फ में बदल जाता है जबकि नीचे का जल अधिक घनत्व के कारण नीचे ही रहता है और द्रव अवस्था में ही रहता है इसलिये जीव जन्तु तथा मछली इसमें जीवित रहते हैं।

प्रश्न 15.
द्रव अवस्था में HF अणुओं में उपस्थित दो अंतर-अणुक बलों का नाम लिखिए।
उत्तर:
HF ध्रुवीय सहसंयोजी अणु है। द्रव अवस्था में, इनमें अंतर-अणुक द्विध्रुव-द्विध्रुव आघूर्ण तथा H-आबंध उपस्थित होते हैं।

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प्रश्न 16.
पूर्णतः प्रत्यास्थ टक्कर से क्या समझते हो ?
उत्तर:
गैस के अणु सभी दिशाओं में अनियमित रूप से या जिग-जैग गति करते रहते हैं तथा इस गति के दौरान ये अणु आपस में तथा पात्र की दीवार से टकराते रहते हैं। इन टक्करों के दौरान केवल इनकी दिशा में परिवर्तन होता है लेकिन इनकी गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है इसलिये इन टक्करों को पूर्णतः प्रत्यास्थ टक्कर कहते हैं।

प्रश्न 17.
ठण्डी गैस की तुलना में गर्म गैस का घनत्व कम क्यों होता है ?
उत्तर:
चार्ल्स के नियमानुसार किसी गैस की निश्चित द्रव्यमान का आयतन उसके परम ताप के समानुपाती होता है। अतः ताप में वृद्धि करने से आयतन में वृद्धि होती है लेकिन आयतन में वृद्धि होने से घनत्व में कमी आती है। इसलिये गर्म गैस का घनत्व ठण्डी गैस की तुलना में कम होता है।

प्रश्न 18.
ऊँचे पहाड़ों पर जाने से जी मिचलाता है तथा साँस लेने में परेशानी होती है, क्यों?
उत्तर:
ऊँचे पहाड़ों पर वायुमण्डलीय दाब में कमी आती है जिससे वायु विरल हो जाती है जिसके कारण वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसलिये जी मिचलाना व साँस लेने में परेशानी का अनुभव होता है।

प्रश्न 19.
क्रान्तिक ताप किसे कहते हैं ?
उत्तर:
क्रान्तिक ताप वह ताप है जिस पर किसी गैस को द्रवित कराया जा सकता है परन्तु इस ताप के ऊपर गैस को उच्च दाब लगाने पर भी द्रवित नहीं कराया जा सकता, इसे TC से दर्शाते हैं। उदाहरण – CO2 का क्रान्तिक ताप 31.1°C है।

प्रश्न 20.
क्रान्तिक दाब तथा क्रान्तिक आयतन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
क्रान्तिक ताप पर किसी गैस को द्रवित कराने के लिये दाब के जिस मान की आवश्यकता होती है उसे क्रान्तिक दाब कहते हैं, इसे Pcसे दर्शाते हैं। क्रान्तिक ताप व क्रान्तिक दाब पर किसी गैस के एक अणु के आयतन को उसका क्रान्तिक आयतन कहते हैं, इसे V. से दर्शाते हैं।

प्रश्न 21.
स्वचालित वाहनों के टायर में ठण्ड की अपेक्षा गर्मी में कम वायु भरी जाती है, क्यों?
उत्तर:
जब स्वचालित वाहन गतिशील अवस्था में होता है तो टायर एवं सड़क के बीच घर्षण के कारण टायर का ताप बढ़ने लगता है जिससे टायर के अंदर भरी वायु के आयतन में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप टायर पर लगने वाले दाब में भी वृद्धि होती है। गर्मी में ताप में भी वृद्धि होती है, जिससे दाब में भी अधिक वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप टायर के फटने की संभावना अधिक रहती है।

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प्रश्न 22.
PVT In के लिए SI इकाई क्या होगी?
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 10

प्रश्न 23.
चार्ल्स के नियम के आधार पर समझाइए कि न्यूनतम संभव ताप -273°C होता है।
उत्तर:
चार्ल्स के नियमानुसार,
t = -273°C पर
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 11
अत: -273°C पर, गैस का आयतन शून्य हो जाएगा तथा इससे कम ताप पर, आयतन का मान ऋणात्मक होगा जो कि अर्थहीन है।

प्रश्न 24.
बॉयल, चार्ल्स तथा एवोगैड्रो नियम का पालन करने वाली गैस को आदर्श गैस कहते हैं। किन दशाओं में वास्तविक गैस, आदर्श गैस की भाँति व्यवहार करती है ?
उत्तर:
निम्न दाब तथा उच्च ताप पर, वास्तविक गैस आदर्श गैस की भाँति व्यवहार करती है।

प्रश्न 25.
वाष्पन और क्वथन में अंतर लिखिए।
उत्तर:
वाष्पन और क्वथन में अंतर –
वाष्पन:

  • वाष्पन स्वतः होता है तथा सभी तापों पर होता है।
  • वाष्पन पृष्ठीय घटना है।
  • वाष्पन मंद प्रक्रम है।

क्वथन:

  • क्वथन तभी होता है जब द्रव का वाष्प। दाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर होता है।
  • क्वथन संपूर्ण द्रव की घटना है।
  • क्वथन तीव्र प्रक्रम है।

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प्रश्न 26.
सम्पीड्यता गुणांक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
निश्चित ताप और दाब पर किसी गैस के प्रेक्षित आयतन तथा अवलोकित आयतन (गणना से प्राप्त आयतन) का अनुपात सम्पीड्यता गुणांक कहलाता है, इसे Z से दर्शाते हैं।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 12
आदर्श गैस के लिये Z = 1 होता है।

प्रश्न 27.
दाब बढ़ने पर बर्फ के गलनांक में क्या परिवर्तन होता है ?
उत्तर:
दाब के बढ़ने पर अणुओं की गतिज ऊर्जा में अत्यधिक वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप कम तापक्रम पर ही अणुओं की गतिज ऊर्जा होने के कारण वे स्वतंत्र रूप से गति करने लगते हैं अर्थात् दाब में वृद्धि करने पर बर्फ अपने गलनांक से निम्न ताप पर ही द्रव में परिवर्तित होने लगता है।

प्रश्न 28.
समान ताप पर ईथर तथा पानी अलग-अलग हाथ पर डाले जाते हैं तो ईथर अधिक ठण्डा लगता है, क्यों?
उत्तर
ईथर में उसके अणुओं के मध्य लगने वाला अंतर-अणुक आकर्षण बल जल की तुलना में कम है इसलिये ईथर जल की तुलना में शीघ्रता से वाष्पित होता है तथा वह वाष्पन के लिये आवश्यक ऊर्जा हाथ से ग्रहण करता है इसलिये ईथर ठण्डा लगता है।

प्रश्न 29.
द्रवों में विसरण की दर मंद होती है, क्यों?
उत्तर:
द्रव में अणुओं के मध्य अंतरअणुक आकर्षण बल गैस की तुलना में अधिक होता है तथा इसके अणु एक-दूसरे के साथ इस अंतरअणुक आकर्षण बल के द्वारा गैस की तुलना में दृढ़ता से बँधे रहते हैं । इसलिये द्रव के अणु गैस के अणुओं के समान स्वतंत्र रूप से गति नहीं कर सकते इसलिये द्रव में विसरण की दर गैस की तुलना में मंद होती है।

प्रश्न 30.
गैस में प्रसार असीमित होता है, क्यों?
उत्तर:
गैस के अणुओं के मध्य अंतरअणुक आकर्षण बल नगण्य होता है, इसलिये गैस के अणु सभी दिशाओं में स्वतंत्र रूप से अनियमित रूप से गति करते रहते हैं। इनका कोई निश्चित आकार या आयतन नहीं होता है, जिसके कारण गैसों को जिस भी पात्र में रखा जाता है गैस के अणु फैलकर पात्र के बराबर आकार व आयतन ग्रहण कर लेते हैं।

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द्रव्य की अवस्थाएँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिस्टलीय ठोस की प्रमुख विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:

  • इनकी संरचना एक निश्चित ज्यामिति वाली होती है।
  • इनकी आंतरिक संरचना में भी कणों का एक निश्चित क्रम रहता है।
  • इनके गलनांक स्पष्ट तथा निश्चित होते हैं।
  • ये कम ऊर्जा वाले होते हैं।
  • ये विषम दैशिकता दर्शाते हैं।
  • अवयवी कणों के मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स, आकर्षण बल या स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होता है।

प्रश्न 2.
S.T.P. व N.T.P. से क्या समझते हो?
उत्तर:
गैस की निश्चित मात्रा का आयतन, ताप व दाब के साथ परिवर्तित होता है अर्थात् गैसों के गुण ताप तथा दाब पर निर्भर करते हैं इसलिये विभिन्न गैस के गुणों की तुलना एक निश्चित ताप एवं दाब पर की जा सकती है। इसके लिये 0°C (273 K) ताप तथा एक वायुमण्डलीय दाब (760 mm) को चुना गया है जिसे सामान्य ताप व दाब या N.T.P. कहते हैं N.T.P. पर एक मोल गैस का आयतन 224 लिटर होता है तथा 25°C (298 K) ताप तथा 1 वायुमण्डलीय दाब (760 mm) या 1 बार दाब को मानक ताप व दाब कहते हैं। S.T.P. पर एक मोल गैस का आयतन 22-4 लीटर होता है।

प्रश्न 3.
किसी गैस के संपीड्यता गुणांक Z का मान निम्न होता है –
\(Z=\frac { PV }{ nRT } \)

  1. आदर्श गैस के लिए Z का मान क्या होता है ?
  2. वास्तविक गैस के लिए बॉयल तापमान के ऊपर Z के मान पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

उत्तर:

  1. आदर्श गैस के लिए, संपीड्यता गुणांक, Z = 1.
  2. बॉयल तापमान से ऊपर, वास्तविक गैसें धनात्मक विचलन प्रदर्शित करती हैं। अत: Z>1.

प्रश्न 4.
आदर्श गैसों के लिए P, V तथा T में संबंध हेतु वाण्डर वाल्स समीकरण निम्न है –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 13
जहाँ, a तथा b वाण्डर वाल्स नियतांक है। nb गैस के अणुओं के कुल आयतन के लगभग बराबर हैं। a अंतराण्विक आकर्षण बलों के परिणाम की माप है।

  1. निम्नलिखित गैसों को b के बढ़ते हुए क्रम में लिखिए। कारण भी दीजिए।
    O2,CO2, H2, He
  2. निम्नलिखित गैसों के a के परिणाम के घटते हुए क्रम में लिखिए। कारण भी दीजिए।
    CH4, O2, H2

उत्तर:
1. गैस के अणुओं का मोलर आयतन अणुओं का आकार तथा वाण्डर वाल्स नियतांक ‘b’ गैस के अणुओं का मोलर आयतन प्रदर्शित करता है। अतः ‘b’ का बढ़ता हुआ क्रम निम्न है –
H2 < He<O2<CO2     

2. वाण्डर वाल्स नियतांक ‘a’ अंतराण्विक बलों के परिमाण की माप है। किसी अणु में इलेक्ट्रॉन मेघ का आकार बढ़ने के साथ-साथ अंतराण्विक आकर्षण बलों का परिमाण भी बढ़ता है। अतः दी गयी गैसों के लिए ‘a’ का परिणाम निम्न क्रम में घटेगा –
CH4 > O2> H2
इलेक्ट्रॉन मेघ का आकार जितना बड़ा होगा, अणु की ध्रुवण क्षमता उतनी ही अधिक होगी जिसके फलस्वरूप प्रकीर्णन बल अथवा लंदन बल उतना ही अधिक होगा।

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प्रश्न 5.
बॉयल का नियम क्या है ? इसका गणितीय व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
इस नियम के अनुसार, “स्थिर ताप पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन (V) उसके दाब (P) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”
Pα – \(\frac { 1 }{ V }\)(स्थिर ताप पर)
P= स्थिरांक × \(\frac { 1 }{ V }\)
⇒ PV = स्थिरांक
अतः स्थिर ताप पर किसी गैस की निश्चित मात्रा के आयतन तथा दाब का गुणनफल सदैव एक स्थिरांक होता है।
प्रारंभिक स्थिति में,
P1V1 = K. ………(1)
अंतिम स्थिति में,
P2V2 = K ………(2)
समीकरण (1) और (2) से,
P1V1 = P2V2

प्रश्न 6.
गैस स्थिरांक R की प्रकृति क्या है ?
उत्तर:
सूत्र
PV = nRT से,
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 15
अर्थात् R को ऊर्जा प्रति डिग्री प्रति मोल के द्वारा दर्शाया जाता है।

प्रश्न 7.
चार्ल्स का स्थिर दाब का नियम लिखते हुए समीकरण\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { V }_{ 2 } } =\frac { { T }_{ 1 } }{ { T }_{ 2 } } \) व्युत्पन्न कीजिये।
उत्तर:
चार्ल्स का नियम-इस नियम के अनुसार “स्थिर दाब पर निश्चित द्रव्यमान की गैस का आयतन परम ताप के समानुपाती होता है।”
Vα T (स्थिर दाब पर)
V= स्थिरांक × T
\(\frac { V }{ T }\) = स्थिरांक
यदि प्रारम्भिक स्थिति में स्थिर दाब पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन V1 तथा ताप T1 है तो
\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } }\) = K ……..(1)
यदि अंतिम स्थिति में आयतन V2 तथा ताप T2 है तो
\(\frac { { V }_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } }\) = K …….(2)

समीकरण (1) और (2) से,
\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { V }_{ 2 } } =\frac { { T }_{ 1 } }{ { T }_{ 2 } } \)

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प्रश्न 8.
चार्ल्स के नियम के आधार पर परम शून्य की धारणा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
चार्ल्स का नियम:
इस नियम के अनुसार, “स्थिर दाब पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन ताप के 1°C बढ़ने या घटने पर अपने 0°C वाले आयतन \(\frac { 1 }{ 273 }\) वाँ भाग से क्रमश: बढ़ता या घटता है।
यदि 0°C ताप पर किसी गैस का आयतन = V0घन सेमी
1°C ताप पर किसी गैस का आयतन = V0 [1+\(\frac { 1 }{ 273 }\)]
t°C ताप पर किसी गैस का आयतन = v0 [1+\(\frac { t }{ 273 }\)]
-1°C ताप पर किसी गैस का आयतन = v0 [1- \(\frac { 1 }{ 273 }\)]
-t°C ताप पर किसी गैस का आयतन = v0 [1- \(\frac { t }{ 273 }\)]
-273°C ताप पर किसी गैस का आयतन = v0 [1 – \(\frac { 273 }{ 273 }\)]

सि का आयतन = – 273°C चार्ल्स के नियम से स्पष्ट है कि ताप में कमी करने से आयतन में कमी आती है तथा -273°C ताप पर किसी भी गैस का आयतन शून्य हो जाता है। यह न्यूनतम ताप, जिस पर किसी भी गैस का आयतन शून्य हो जाता है, परम ताप कहलाता है तथा इस परम शून्य ताप पर आधारित स्केल को केल्विन स्केल कहते हैं तथा इसे T से दर्शाते हैं।

प्रश्न 9.
गे-लुसाक का नियम क्या है ?
उत्तर:
गे-लुसाक का निय:
इस नियम के अनुसार, “किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन स्थिर रखने पर उसका दाब परम ताप के समानुपाती होता है।”
P α T
P= K × T
\(\frac { P }{ T }\) = K
यदि प्रारम्भिक स्थिति में दाब P1 तथा ताप T1 है तो
\(\frac { { P }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } }\) = K ……..(1)

T इसी प्रकार अंतिम स्थिति में दाब P2 तथा ताप T2 है तो
\(\frac { { P}_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } }\) = K …….(2)
समी. (1) और (2) से,
\(\frac { { P }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } } =\frac { { P }_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } } \)

प्रश्न 10.
एवोगैड्रो का नियम क्या है ?
उत्तर:
इस नियम के अनुसार-“स्थिर ताप और दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है।”
यदि स्थिर ताप और दाब पर किसी गैस का आयतन v है तो अणुओं की संख्या को एवोगेड्रो संख्या N से दर्शाते हैं।
V α N ………..(1)
स्थिर ताप और दाब पर गैस के मोलों की संख्या n अणुओं की संख्या N के समानुपाती होती है।
N α n
समीकरण (1) से,
V α n
⇒ \(\frac { V }{ n }\) = स्थिरांक
यदि प्रारम्भिक स्थिति में आयतन V1 तथा मोलों की संख्या n1 है तो
\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { n }_{ 1 } }\) = स्थिरांक ………..(2)
अंतिम स्थिति में आयतन V2 तथा मोलों की संख्या n2 है तो
\(\frac { { V }_{ 2 } }{ { n }_{ 2 } }\) = स्थिरांक ………..(3)
समीकरण (2) और (3) से,
\(\frac { { V }_{ 1 } }{ { n }_{ 1 } }\) = \(\frac { { V }_{ 2 } }{ { n }_{ 2 } }\)

प्रश्न 11.
गैस समीकरण PV =nRT की स्थापना कीजिये तथा R का मान दो विभिन्न इकाइयों में लिखिए।
अथवा,
आदर्श गैस समीकरण क्या है ? इसकी स्थापना कीजिये।
उत्तर:
यदि गैस की एक निश्चित मात्रा के लिये बॉयल, एवोगैड्रो तथा चार्ल्स नियम का योग करने पर . इनके मध्य एक संबंध स्थापित हो जाता है इसे गैस समीकरण कहते हैं।
बॉयल के नियमानुसार,
V α \(\frac { 1 }{ P }\) (स्थिर ताप पर) ………..(1)
चार्ल्स के नियमानुसार,
V α T (स्थिर दाब पर) ………..(2)
एवोगैड्रो के नियमानुसार,
V α n (स्थिर ताप एवं दाब पर) ………..(3)
समीकरण (1), (2) और (3) से,
V α \(\frac { nT }{ P }\)
V = \(\frac { nRT }{ P }\)
PV = nRT
जहाँ R एक गैस स्थिरांक है।
यदि n = 1 तो PV= RT
\(\frac { PV }{ T }\) = R
यदि प्रारम्भिक स्थिति में दाब P1, आयतन V1, तथा ताप T1, है, तो
\(\frac { { P }_{ 1 }{ V }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } } \) = R ………..(4)
यदि अंतिम स्थिति में दोब P2, आयतन V2 तथा ताप T2, है, तो
\(\frac { { P }_{ 2 }{ V }_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } } \) = R ………..(5)
समीकरण (4) और (5) से,
\(\frac { { P }_{ 1 }{ V }_{ 1 } }{ { T }_{ 1 } } \) = \(\frac { { P }_{ 2 }{ V }_{ 2 } }{ { T }_{ 2 } } \)

R का मान विभिन्न इकाइयों में –

  • 0.0821 Litre atm K-1 mol-1
  • 8.314 joule K-1 mol-1

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प्रश्न 12.
एवोगैडो की परिकल्पना क्या है ? इसकी सहायता से कैसे सिद्ध करोगे कि 1 मोल गैस . का N.T.P. पर आयतन 22.4 लीटर होता है ?
उत्तर:
एवोगैड्रो का नियम:
“स्थिर ताप एवं दाब पर विभिन्न गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है।”
V α n
संबंध –
माना गैस का अणुभार M है तो इसका ग्राम अणुभार M ग्राम है।

MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 18

1 लीटर गैस का N.T.P पर द्रव्यमान =\(\frac { M ×0.09 }{2.016 }\) = \(\frac { M }{22.4 }\) gm
22.4 लीटर गैस का N.T.P. पर द्रव्यमान = \(\frac { M }{22.4 }\) × 22.4
M gm = 1 मोल
अत: गैस का 1 मोल = 22.4 लीटर।

प्रश्न 13.
किसी द्रव के ताप में वृद्धि का, अणुओं के मध्य लगने वाले अंतर-आण्विक बलों पर क्या प्रभाव पड़ता है ? किसी द्रव के ताप में वृद्धि का इसकी श्यानता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
किसी द्रव का ताप बढ़ाने पर, अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है जिसके कारण अंतराण्विक बलों का मान घट जाता है। अत: द्रव सरलता से बह सकता है जिसके कारण द्रव की श्यानता घट जाती है।

प्रश्न 14.
आदर्श गैस समीकरण की सहायता से किसी गैस का मोलर द्रव्यमान कैसे ज्ञात कर सकते हैं?
उत्तर:
आदर्श गैस समीकरण से,
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 19

प्रश्न 15.
एवोगैड्रो नियम की सहायता से अणुभार तथा वाष्य धनत्व में संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 20
⇒ वाष्प घनत्व = \(\frac { 1 }{2 }\) × गैस का आण्विक द्रव्यमान
अत: आण्विक द्रव्यमान = 2 × वाष्प घनत्व।

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प्रश्न 16.
विभिन्न इकाइयों में R के संख्यात्मक मान लिखिये।
उत्तर:
विभिन्न इकाइयों में R के संख्यात्मक मान निम्नलिखित हैं –

  • 0.0821 litre atm K-1 mol-1
  • 8.31 × 10 erg K-1 mol-1
  • 82.05 atm cm K-1 mol -1
  • 8.31 JK-1 mol-1
  • 62.3 litre mm K-1 mol-1
  • 1.99 cal K-1mol-1
  • 8.31 pa dm K-1 mol-1

प्रश्न 17.
गतिज समीकरण से गैस समीकरण व्युत्पन्न कीजिये।
उत्तर:
अणुगति सिद्धान्त की अभिधारणा के अनुसार, अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा गैस के परम ताप के समानुपाती होती है।
औसत गतिज ऊर्जा = \(\frac { 1 }{2 }\)mnv2
\(\frac { 1 }{2 }\)mnv2 α T
⇒ \(\frac { 1 }{2 }\)mnv2 = KT
⇒ \(\frac { 3 }{2 }\) × \(\frac { 1 }{3}\) mnv2 = KT
⇒ \(\frac { 1 }{3}\) mnv2 = \(\frac { 2 }{3 }\) = KT
⇒ PV = \(\frac { 2 }{3 }\) KT [∵\(\frac { 1 }{3}\) mnv2 = PV]
⇒ \(\frac { PV }{T }\) = \(\frac { 2 }{3 }\) K
⇒ \(\frac { PV }{T }\) = R [ ∵\(\frac { 2 }{3 }\) K = स्थिरांक (R)]
⇒ PV = RT

प्रश्न 18.
डॉल्टन का आंशिक दाब का नियम क्या है ?
उत्तर:
आपस में क्रिया न करने वाली गैसों के मिश्रण के दाब के लिये डॉल्टन ने गैसों का आंशिक दाब का नियम प्रतिपादित किया जिसके अनुसार-“एक निश्चित ताप पर किसी निश्चित आयतन वाले पात्र में दो या दो से अधिक अक्रिय गैसों का मिश्रण लिया जाये तो मिश्रण का कुल दाब गैसों के आंशिक दाब के योग के बराबर होता है। यदि गैसों के मिश्रण का संयुक्त दाब P है तथा इसी ताप पर अवयवी गैसों का आंशिक दाब क्रमश: P1P2 तथा P3 हो, तो
P = P1 + P2+ P3.
नियम का उपयोग:
प्रयोगशाला में गैसें प्रायः जल के ऊपर एकत्रित की जाती हैं, जिनमें नमी उपस्थित रहती है। इस नियम के आधार पर शुष्क गैस का दाब = नम गैस का दाब – जल का वाष्प दाब।

प्रश्न 19.
ग्राहम के विसरण नियम को समझाकर लिखिये।
अथवा
गैसों के विसरण की दर तथा आण्विक द्रव्यमान में संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
ग्राहम का विसरण नियम-इस नियम के अनुसार, “स्थिर ताप एवं दाब पर गैसों के विसरण की दर उनके घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 21
\(r\alpha \frac { 1 }{ \sqrt { d } } \)
यदि r1 तथा r2 गैसों के विसरण की दर हैं और d1 तथा d2  उनके घनत्व हैं, तो
r1 = K \(\frac { 1 }{ \sqrt { { d }_{ 1 } } } \)
r2 = K \(\frac { 1 }{ \sqrt { { d }_{ 2 } } } \)
\(\frac { { r }_{ 1 } }{ { r }_{ 2 } } \) = \(\frac { \sqrt { { d }_{ 1 } } }{ \sqrt { { d }_{ 2 } } } \)
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 22

प्रश्न 20.
किसी आदर्श गैस द्वारा अनुभव किए गए दाब (Pआदर्श) तथा प्रेक्षित दाब (Pवास्तविक) के मध्य निम्न संबंध होता है –
Pआदर्श = Pवास्तविक + \(\frac { a{ n }^{ 2 } }{ { V }^{ 2 } } \)
(i) यदि दाब को Nm-2 में, मोलों की संख्या को mol में तथा आयतन को m3 में लिया जाए तो ‘a’ की इकाई ज्ञात कीजिए।
(ii) यदि दाब को atm में तथा आयतन को dm3 में लिया जाए तो ‘a’ की इकाई ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(i) a = \(\frac { P{ V }^{ 2 } }{ { n }^{ 2 } } \)
प्रश्नानुसार,
P की इकाई = Nm-2, V की इकाई = m3,n की इकाई = mol
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 23
(ii) प्रश्नानुसार, Pकी इकाई = atm, V की इकाई = dm3, n की इकाई = mol
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 24

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प्रश्न 21.
ग्राहम के विसरण नियम के विभिन्न अनुप्रयोग लिखिये।
उत्तर:

  • गैस का घनत्व तथा अणुभार ज्ञात करने में – यदि एक गैस के विसरण का समय तथा घनत्व ज्ञात हो तथा दूसरी गैस के विसरण का समय ज्ञात हो तो इसकी सहायता से दूसरी गैस का घनत्व तथा अणुभार ज्ञात किया जा सकता है।
  • मार्श गैस सूचक – खान में काम करने वाले व्यक्ति इस सूचक की सहायता से विषैली गैसों के रिसाव से सचेत हो जाते हैं।
  • गैसों के पृथक्करण में – गैसों की विसरण की दर में भिन्नता होने के कारण उन्हें उनके मिश्रण से सरलता से पृथक् किया जा सकता है।
  •  दुर्गन्ध – दुर्गन्ध और विषैली गैस वायु में विसरित होने के कारण पृथक् होती रहती है।

प्रश्न 22.
अणुगति सिद्धान्त के आधार पर डॉल्टन के आंशिक दाब नियम की व्युत्पत्ति कीजिये।
उत्तर:
माना किसी गैस A के n1, अणु जिनका द्रव्यमान m1, ग्राम है, एक पात्र में बंद हो जिसका आयतन v है। तो
PAV = \(\frac { 1 }{ 3 }\) m1n1V1
या  PA = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 1 }{ n }_{ 1 }{ v }_{ 1 }^{ 2 } }{ V } \)
इसी प्रकार, PB = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \)
यदि दोनों गैसों को उसी ताप पर उसी पात्र में बंद कर दिया जाये तो मिश्रण का दाब
P = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \) + \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \)
⇒ P = PA + PB
यही डॉल्टन का आंशिक दाब का नियम है।

प्रश्न 23.
काँच के तीक्ष्ण किनारे को ज्वाला में इसके गलनांक तक गर्म करने पर यह चिकना क्यों हो जाता है ? इसके लिए उत्तरदायी द्रव के गुण का नाम लिखिए।
उत्तर:
तीक्ष्ण किनारे वाले काँच को ज्वाला में गर्म करके चिकना बनाया जाता है। क्योंकि गर्म करने पर, काँच पिघलता है तथा द्रव का किनारा गोल आकृति लेने का प्रयास करता है जिसका पृष्ठ तनाव न्यूनतम होता है। इसे काँच का ‘अग्नि-चकास’ कहते हैं।

प्रश्न 24.
‘स्तरीय प्रवाह’ पद की व्याख्या कीजिए। क्या स्तरीय प्रवाह की प्रत्येक कणों का वेग समान होता है ? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब द्रव का प्रवाह किसी स्थिर सतह पर होता है, तब द्रव की वह परत जो सतह के संपर्क में होती है, स्थायी हो जाती है। जैसे-जैसे स्थायी परत से ऊपरी परतों की दूरी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे परत का वेग बढ़ता जाता है। इस प्रकार का प्रवाह, जिसमें एक परत से दूसरी परत का वेग क्रमशः बढ़ता जाता है, स्तरीय प्रवाह कहलाता है। स्तरीय प्रवाह में, सभी परतों में कणों की गति समान नहीं होती है क्योंकि परत अपने से ठीक नीचे वाली परत पर कुछ घर्षण अथवा प्रतिरोधक बल आरोपित करती है।
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 28

प्रश्न 25.
गतिज समीकरण की सहायता से एवोगैड्रो नियम की व्युत्पत्ति कीजिये।
उत्तर:
एवोगैड्रो के नियमानुसार, “समान ताप और दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है।”
हमारे पास यदि दो गैसें हैं, तो
प्रथम गैस हेतु, PV = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 1 }{ n }_{ 1 }{ v }_{ 1 }^{ 2 } }{ V } \) ………(1)
दूसरी गैस हेतु, PV = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \) ………(2)
समी. (1) और (2) से,
\(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 1 }{ n }_{ 1 }{ v }_{ 1 }^{ 2 } }{ V } \) = \(\frac { 1 }{ 3 } \frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \)
\(\frac { { m }_{ 1 }{ n }_{ 1 }{ v }_{ 1 }^{ 2 } }{ V } \) = \(\frac { { m }_{ 2 }{ n }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 } }{ V } \) ………(3)
यदि दोनों गैसों के ताप समान हैं तो उनकी गतिज ऊर्जा भी समान होगी। अर्थात्
\(\frac { 1 }{ 2 } { m }_{ 1 }{ V }_{ 1 }^{ 2 }=\frac { 1 }{ 2 } { m }_{ 2 }{ V }_{ 2 }^{ 2 }\)
\({ m }_{ 1 }{ { v }_{ 1 }^{ 2 } }={ m }_{ 2 }{ v }_{ 2 }^{ 2 }\) ………(4)
समी. (3) को समी. (4) से भाग देने पर,
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 25
n1= n2

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प्रश्न 26.
गैसों के विसरण की दर की तुलना कैसे की जाती है ?
उत्तर:
माना कि दो गैसें A और B जिनके समान आयतन V के विसरण में क्रमशः t1 तथा t2 समय लगता है। तब,
r1 = \(\frac { V }{ { t }_{ 1 } } \)
r2 = \(\frac { V }{ { t }_{ 2 } } \)
\(\frac { { r }_{ 1 } }{ { r }_{ 2 } } =\frac { V }{ { t }_{ 1 } } \times \frac { { t }_{ 1 } }{ V } =\frac { { t }_{ 1 } }{ { t }_{ 2 } }\)
अतः \(\frac { { r }_{ 1 } }{ { r }_{ 2 } } =\frac { \sqrt { { d }_{ 1 } } }{ \sqrt { { d }_{ 2 } } } \)
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 26

प्रश्न 27.
आदर्श गैस किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
आदर्श गैस या वास्तविक गैस:
वह गैस जो गैस नियमों का या गैस समीकरण का प्रत्येक दाब व ताप पर दृढ़ता से पालन करती है तो उसे आदर्श गैस कहते हैं।

विशेषताएँ:

  • स्थिर ताप पर गैस के दाब व आयतन का गुणनफल सदैव स्थिर होना चाहिये तथा स्थिर ताप पर PV तथा P के मध्य खींचा गया ग्राफ एक क्षैतिज रेखा होनी चाहिये।
  • यदि आदर्श गैस को स्थिर दाब पर ठण्डा किया जाये तो इसका आयतन लगातार घटना चाहिये और -273°C ताप पर शून्य होना चाहिये।
  • बिना बाहरी कार्य के इसके प्रसार या संकुचन में कोई ऊष्मीय प्रभाव नहीं होना चाहिये। (4) आदर्श गैस का संपीड्यता गुणांक Z = PV का मान 1 होता है।

प्रश्न 28.
वास्तविक गैस क्या है ? इसकी विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
वे गैसें जो बॉयल नियम, चार्ल्स नियम तथा आदर्श गैस समीकरण का दृढ़ता से पालन नहीं करतीं, वास्तविक गैस कहलाती हैं।

विशेषताएँ:

  • गैस के अणुओं के बीच आकर्षण बल नगण्य होता है।
  • गैस के कुल आयतन की तुलना में एक अणु के आयतन को नगण्य नहीं माना जा सकता है।
  • -273°C पर इनका आयतन शून्य नहीं होता क्योंकि अधिकांश गैसें ठण्डा करने पर इससे पहले ही द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • न्यून ताप व उच्च दाब पर गैसें बॉयल तथा चार्ल्स नियम का पालन नहीं करती हैं।

प्रश्न 29.
आदर्श गैस तथा वास्तविक गैस में अंतर लिखिये।
उत्तर:
आदर्श गैस तथा वास्तविक गैस में अंतर –

आदर्श गैस:

  • आदर्श गैस, आदर्श गैस समीकरण का पालन करती है।
  • गैस के अणुओं का आयतन पात्र की तुलना में में नगण्य होता है।
  • गैस के अणुओं में परस्पर आकर्षण नहीं होता है।
  • किसी आदर्श गैस का अस्तित्व नहीं है।
  • आदर्श गैसों के लिये संपीड्यता गुणांक का मान 1 होता है।

वास्तविक गैस:

  • वास्तविक गैस निम्न दाब और उच्च ताप पर ही आदर्श गैस समीकरण का पालन करती है।
  • गैस के अणुओं का आयतन पात्र की तुलना में नगण्य नहीं होता है।
  • अणुओं के मध्य आकर्षण होता है।
  • सभी गैसें वास्तविक गैसें हैं तथा वे आदर्श गैसों के व्यवहार से कभी धनात्मक तथा कभी ऋणात्मक विचलन दर्शाती हैं।
  • वास्तविक गैसों के लिये सम्पीड्यता गुणांक का मान 1 नहीं होता है।

प्रश्न 30.
अणुगतिक सिद्धान्त के आधार पर बॉयल के नियम को समझाइये।
उत्तर:
किसी भी गैस का दाब उसके अणुओं के पात्र की दीवारों से टकराने के कारण उत्पन्न होता है। अर्थात् दाब का परिमाण टक्करों की आवृत्ति पर निर्भर करता है तथा टक्करों की आवृत्ति अणुओं की संख्या तथा उनके वेग पर निर्भर करती है। यदि गैस का आयतन कम कर दिया जाये तो इकाई आयतन में उपस्थित अणुओं की संख्या बढ़ जायेगी, जिसके फलस्वरूप इकाई समय में दीवार की इकाई क्षेत्रफल पर टकराने वाले अणुओं की संख्या में भी वृद्धि होगी, जिसके कारण दाब में भी वृद्धि होगी।

दूसरी तरफ यदि आयतन में वृद्धि कर दी जाये तो इकाई क्षेत्रफल में उपस्थित अणुओं की संख्या में कमी आयेगी, जिससे इकाई समय में दीवार की इकाई क्षेत्रफल पर होने वाली टक्करों की संख्या में कमी आयेगी, जिससे दाब में भी कमी आयेगी। अतः स्पष्ट है स्थिर ताप पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन उसके दाब के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

प्रश्न 31.
गैसों के अणुगतिक समीकरण की सहायता से चार्ल्स के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
गैस का ताप बढ़ाने पर उसकी गतिज ऊर्जा भी बढ़ती है जिसके फलस्वरूप अणुओं के वेग में वृद्धि होती है और वेग में वृद्धि के कारण अणुओं के मध्य होने वाली टक्करों की संभावना में वृद्धि होती है। जिस बल से वे टकराते हैं उसमें वृद्धि होने लगती है जिसके फलस्वरूप दाब में वृद्धि होने लगती है।

यदि दाब को स्थिर रखना है तो यह जरूरी है कि अणुओं के मध्य होने वाली टक्करों की संभावना में वृद्धि न हो। यह तभी संभव है जब गैस के अणुओं के बीच की दूरी में वृद्धि कर दी जाये अर्थात् आयतन में वृद्धि की जाये । इससे स्पष्ट है कि स्थिर दाब पर गैस की निश्चित मात्रा का आयतन उसके परम ताप के समानुपाती है।

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द्रव्य की अवस्थाएँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिस्टलीय ठोस व अक्रिस्टलीय ठोस में अंतर लिखिये।
उत्तर:
क्रिस्टलीय ठोस व अक्रिस्टलीय ठोस में अंतर –

क्रिस्टलीय ठोस:

  • इनकी कोई निश्चित ज्यामिति नहीं होती है।
  • इनकी आंतरिक संरचना में भी कणों का एक निश्चित क्रम रहता है।
  • इनके गलनांक स्पष्ट तथा निश्चित होते हैं।
  • ये विषम दैशिकता दर्शाते हैं।
  • इन ठोसों को वास्तव में ठोस माना जाता है।
  • इनमें long range order होता है।

अक्रिस्टलीय ठोस:

  • इनकी एक निश्चित ज्यामिति होती है।
  • इनकी आंतरिक संरचना में कणों का कोई निश्चित क्रम नहीं रहता है।
  • इनके गलनांक स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होते हैं।
  • ये सम दैशिकता दर्शाते हैं।
  • अक्रिस्टलीय ठोसों को अतिशीतित द्रव माना जाता
  • इनमें short range order होता है।

प्रश्न 2.
गैसों के अणुगतिक सिद्धान्त के प्रमुख अभिगृहीत लिखिये।
उत्तर:
गैसों के अणुगतिक सिद्धान्त के प्रमुख अभिगृहीत निम्नलिखित हैं –

  • प्रत्येक गैस सूक्ष्म कणों से मिलकर बना होता है, जिन्हें अणु कहते हैं।
  • एक ही गैस के सभी अणु समान होते हैं लेकिन भिन्न-भिन्न गैसों के अणु भिन्न-भिन्न होते हैं।
  • साधारण दाब पर गैस के अणु इतने छोटे होते हैं कि उनका वास्तविक आयतन गैस द्वारा घेरे गये कुल आयतन की तुलना में नगण्य होता है।
  • किसी गैस के अणु हमेशा तीव्र गति से प्रत्येक दिशा में यादृच्छिक विभिन्न वेग से गतिशील रहते हैं। ये अणु हमेशा सीधी रेखा में गति करते हैं। परन्तु अन्य अणु या पात्र की दीवार से टकराकर उनकी दिशा बदल जाती है।
  • अणुओं के मध्य संघट्ट पूर्णतः प्रत्यास्थ होती है। इसलिये टक्करों के पश्चात् अणुओं की ऊर्जा में कमी नहीं आती है।
  • गैस के अणुओं के मध्य आकर्षण बल नगण्य होता है तथा वह पूर्णतः प्रत्यास्थ पिंड होते हैं।
  • गैस का दाब गैस के अणुओं के आपस में तथा पात्र की दीवारों से टकराने पर उत्पन्न होता है।
  • गैस के अणुओं की गति पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव नगण्य होता है।
  • किसी गैस की गतिज ऊर्जा उसके परम ताप के समानुपाती होती है।

प्रश्न 3.
गैसों के अणुगतिक समीकरण PV = \(\frac { 3 }{ 2 }\)mnv2 को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
माना एक घनाकार पात्र में कुछ गैस ली गई है, जिसमें प्रत्येक भुजा की लम्बाई = l cm, पात्र में गैस के अणुओं की संख्या = n, गैस के एक अणु की संहति = m, गैस का कुल द्रव्यमान = M, अणुओं के वर्ग माध्य मूल वेग = v. पात्र में n अणु सभी संभावित दिशाओं में गति कर रहे हैं तथा अणु घनाकार पात्र के अंदर तीन अक्षों x, y, z में गति कर रहा है। अतः यह माना जा सकता है कि – अणु किन्हीं दो समान्तर फलकों की ओर गति कर रहा है।

MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 29

माना कोई अणु दो फलक A तथा B के बीच गति कर रहा है तथा फलक A पर बार-बार टकरा रहा है। यदि फलक A पर टकराने के पहले अणु का वेग v है तथा टक्कर पूर्णतः प्रत्यास्थ है इसलिये टक्कर के पश्चात् अणु का वेगv होगा। अणु का फलक से टकराने से पहले संवेग = mv अणु का फलक से टकराने के बाद संवेग = – mv अतः प्रत्येक टक्कर लगाने पर संवेग परिवर्तन = mv -(-mv) = 2mv फलक A पर दूसरी बार टकराने के लिये अणु को दूरी तय करनी पड़ेगी = 2l

∴ अणु का वेग है। सेमी / सेकण्ड
∴ सेमी दूरी तय करता है 1 सेकण्ड में
∴ 2l सेमी दूरी तय करेंगे \(\frac { 1 }{v }\) × 2l = \(\frac { 2l }{ v }\) सेकण्ड

फलक A पर \(\frac { 2l }{ v }\) सेकण्ड में अणु टकराता है 1 बार
फलक A पर 1 सेकण्ड में अणु टकराता है = \(\frac { 1 }{ \frac { 2l }{ v } } \) = \(\frac { v }{2l}\)
प्रति सेकण्ड संवेग में परिवर्तन = प्रत्येक टक्कर में संवेग परिवर्तन × 1 सेकण्ड में अणुओं की संख्या × फलक A पर टकराने वाले अणुओं की संख्या
= 2mv × \(\frac { V }{2l }\) × \(\frac { n }{3 }\) = \(\frac { 1 }{3 }\) \(\frac { mn{ v }^{ 2 } }{ l } \)
प्रति सेकण्ड संवेग में परिवर्तन की दर = बल
\(\frac { 1 }{3 }\) \(\frac { mn{ v }^{ 2 } }{ l } \) = F
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 30

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प्रश्न 4.
वाण्डर वाल्स ने गैसों के आदर्श व्यवहार का स्पष्टीकरण करने के लिये गैस समीकरण में क्या संशोधन किया है ?
उत्तर:
अणुगतिक समीकरण के अनुसार गैसों के अणुओं के मध्य आकर्षण बल नगण्य होता है तथा गैस के अणुओं का वास्तविक आयतन कुल आयतन की तुलना में नगण्य होता है। लेकिन ये दोनों अभिधारणाएँ निम्न दाब एवं उच्च ताप पर ही संभव हैं क्योंकि उच्च दाब पर गैस का कुल आयतन बहुत कम हो जाता है।

इसलिये इस स्थिति में वास्तविक आयतन को कुल आयतन की तुलना में नगण्य नहीं माना जा सकता और अणु पास-पास आ जाते हैं इसलिये इनके मध्य आकर्षण बल कार्य करने लग जाता है, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। इन दोनों दोषों को दूर करने के लिये वाण्डर वाल्स ने आदर्श गैस समीकरण में संशोधन कर नये समीकरण की व्युत्पत्ति की जिसे वाण्डर वाल्स समीकरण कहते हैं।

आयतन संशोधन:
उच्च दाब पर गैस के अणुओं के स्वयं का आयतन, गैस की आयतन की तुलना में नगण्य नहीं होता है। अतः गैस का वास्तविक आयतन (V-b) होगा जबकि b गैस के अणु का स्वयं आयतन है।

दाब संशोधन:
उच्च दाब अथवा निम्न ताप पर गैस का आयतन बहुत कम हो जाता है और अणु एकदूसरे के निकट होते हैं। इस अवस्था में अणुओं के मध्य पारस्परिक आकर्षण बल \(\frac { a }{ { V }^{ 2 } } \) बढ़ जाता है।
गैस का वास्तविक दाब = प्रेक्षित दाब + दाब संशोधन
= P + \(\frac { a }{ { V }^{ 2 } } \)
आदर्श गैस समीकरण में दोनों संशोधन करने पर,
[P + \(\frac { a }{ { V }^{ 2 } }\)] [V – b] = RT
n मोल गैस हेतु,
\(p+\frac { a{ n }^{ 2 } }{ { V }^{ 2 } }\) [V – nb] = nRT

प्रश्न 5.
श्यानता या विस्कासिता से आप क्या समझते हैं ? श्यानता को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
प्रत्येक द्रव में बहने की एक प्रवृत्ति होती है क्योंकि द्रव में अन्तरअणुक आकर्षण बल कम होता है और ये असंपीड्य होते हैं। कुछ द्रव जैसे-शहद, कैस्ट्रॉल तेल अत्यन्त धीमी गति से प्रवाहित होते हैं जबकि कुछ द्रव जैसे-जल, कैरोसीन आदि में बहने की प्रवृत्ति अधिक होती है। प्रवाह की गति में भिन्नता श्यानता के कारण होती है।

श्यानता वास्तव में द्रव के प्रवाह पर प्रतिरोध है और यह प्रतिरोध अंतरअणुक आकर्षण बल द्वारा प्रभावित होता है। द्रवों को कई पर्तों से मिलकर बना हुआ समझा जाता है। जब कोई द्रव किसी भी सतह पर बहता है ये पर्ते भिन्न-भिन्न वेग से बहती हैं । द्रव की विभिन्न पर्तों में उपस्थित अणु एक-दूसरे द्वारा आकर्षित होते हैं और ये अंतरअणुक आकर्षण बल द्रव के प्रवाह पर प्रतिरोध उत्पन्न करता है।

श्यानता को प्रभावित करने वाले कारक –

  • अंतरअणुक आकर्षण बल – अंतरअणुक आकर्षण बल द्रव में अणुओं के प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं । इसलिये अंतरअणुक आकर्षण बल पर श्यानता निर्भर करती है। जितना अधिक अंतरअणुक आकर्षण बल होगा, द्रव की श्यानता भी उतनी अधिक होगी।
  • अणुभार – अणुभार बढ़ने पर श्यानता बढ़ती है।
  • दाब – दाब बढ़ने पर आयतन में कमी आती है जिसके फलस्वरूप अंतर अणुक आकर्षण बल में वृद्धि होती है इसलिये दाब में वृद्धि करने से श्यानता में वृद्धि होती है।
  • ताप – ताप में वृद्धि करने से द्रव के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाला ससंजक बल कम हो जाता है जिससे आण्विक गति में वृद्धि होती है। अतः श्यानता में कमी आती है।

प्रश्न 6.
पृष्ठ तनाव क्या है ? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
यह द्रव का एक महत्वपूर्ण गुण है, जिसके कारण उसका स्वतंत्र पृष्ठ एक प्रत्यास्थ झिल्ली की तरह व्यवहार करता है तथा वह कम-से-कम क्षेत्रफल घेरने की चेष्टा करता है, पृष्ठ तनाव कहलाता है। पृष्ठ तनाव अन्तराअणुक आकर्षण बल पर निर्भर करता है। द्रव के अंदर स्थित समीपवर्ती अन्य अणु द्वारा सभी दिशाओं में समान रूप से आकर्षित होते हैं किन्तु द्रव की सतह पर स्थित अणु केवल नीचे तथा बाजू में स्थित अणुओं द्वारा आकर्षित होते हैं जिसके फलस्वरूप सतह के अणु अंदर की ओर आकर्षित होते हैं तथा सतह की प्रवृत्ति क्षेत्रफल को कम करने की होती है।

संकुचित होने की प्रवृत्ति के कारण द्रव की सतह तनी हुई झिल्ली के समान कार्य करती है। इस घटना को पृष्ठ तनाव कहते हैं। पृष्ठ तनाव उस कार्य की माप है जो द्रव की सतह को एकांक क्षेत्रफल से बढ़ाने के लिये आवश्यक है। इसका S.I. मात्रक जूल / मीटर या न्यूटन / मीटर है।

पृष्ठ तनाव को प्रभावित करने वाले कारक –
(1) ताप – ताप में वृद्धि करने पर अंतर अणुक आकर्षण बल में कमी के कारण पृष्ठ तनाव में कमी आती है।
(2) विलेय – द्रवों में विलेय मिलाने पर पृष्ठ तनाव प्रभावित होता है।

  • यदि विलेय का पृष्ठ तनाव द्रव के पृष्ठ तनाव के बराबर हो तो द्रव का पृष्ठ तनाव विलेय की मात्रा के समानुपाती होता है। जितना अधिक विलेय मिलाते हैं पृष्ठ तनाव में उतनी वृद्धि होती है।
  • यदि विलेय का पृष्ठ तनाव द्रव के पृष्ठ तनाव से कम हो तो द्रव के पृष्ठ तनाव में कमी आती है।
  • द्रवों का पृष्ठ तनाव सतह को सक्रिय करने वाले पदार्थ जैसे-साबुन, डिटर्जेन्ट मिलाने पर कम हो जाता है।

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प्रश्न 7.
आयनिक, सहसंयोजी, धात्विक तथा आण्विक क्रिस्टल में तुलना कीजिये।
उत्तर:
आयनिक, सहसंयोजी, धात्विक तथा आण्विक क्रिस्टल में तुलना –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 31

प्रश्न 8.
ठोस, द्रव तथा गैस में क्या संरचनात्मक भिन्नताएँ हैं ? लिखिये।
उत्तर:
ठोस, द्रव तथा गैस में संरचनात्मक भिन्नताएँ –
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 5 द्रव्य की अवस्थाएँ - 32

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MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति

समतल में गति अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 4.1.
निम्नलिखित भौतिक राशियों में से बतलाइए कि कौन – सी सदिश है और कौन – सी अदिश:
आयतन, द्रव्यमान, चाल, त्वरण, घनत्व, मोल संख्या, वेग, कोणीय आवृत्ति, विस्थापन, कोणीय वेग।
उत्तर:
त्वरण, वेग, विस्थापन तथा कोणीय वेग, सदिश राशियाँ हैं जबकि आयतन, द्रव्यमान, चाल, घनत्व, मोल संख्या तथा कोणीय आवृत्ति अदिश राशि हैं।

प्रश्न 4.2.
निम्नांकित सूची में से दो अदिश राशियों को छाँटिए बल, कोणीय संवेग, कार्य, धारा, रैखिक संवेग, विद्युत क्षेत्र, औसत वेग, चुंबकीय आघूर्ण, आपेक्षिक वेग।
उत्तर:
कार्य तथा धारा अदिश राशियाँ हैं।

प्रश्न 4.3.
निम्नलिखित सूची में से एकमात्र सदिश राशि को छाँटिए ताप, दाब, आवेग, समय, शक्ति, पूरी पथ – लंबाई, ऊर्जा, गुरुत्वीय विभव, घर्षण गुणांक, आवेश।
उत्तर:
आवेश एक मात्र अदिश राशि है।

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प्रश्न 4.4.
कारण सहित बताइए कि अदिश तथा सदिश राशियों के साथ क्या निम्नलिखित बीजगणितीय संक्रियाएँ अर्थपूर्ण हैं?

  1. दो अदिशों को जोड़ना।
  2. एक ही विमाओं के एक सदिश व एक अदिश को जोड़ना।
  3. एक सदिश को एक अदिश से गुणा करना।
  4. दो अदिशों का गुणन।
  5. दो सदिशों को जोड़ना।
  6. एक सदिश के घटक को उसी सदिश से जोड़ना।

उत्तर:

  1. नहीं, क्योंकि दो अदिशों का जोड़ तभी अर्थपूर्ण होगा जबकि दोनों समान भौतिक राशि को व्यक्त करते हैं।
  2. नहीं, क्योंकि सदिश को केवल सदिश के साथ एवम् अदिश को केवल अदिश के साथ ही जोड़ा जा सकता है।
  3. अर्थपूर्ण है।
  4. अर्थपूर्ण है।
  5. नहीं, क्योंकि यह केवल तभी अर्थपूर्ण होगा जबकि दोनों एक ही भौतिक राशि को व्यक्त करते हैं।
  6. अर्थपूर्ण है।

प्रश्न 4.5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक कथन को ध्यानपूर्वक पढ़िए और कारण सहित बताइए कि यह सत्य है या असत्य:

  1. किसी सदिश का परिमाण सदैव एक अदिश होता है।
  2. किसी सदिश का प्रत्येक घटक सदैव अदिश होता है।
  3. किसी कण द्वारा चली गई पथ की कुल लंबाई सदैव विस्थापन सदिश के परिमाण के बराबर होती है।
  4. किसी कण की औसत चाल (पथ तय करने में लगे समय द्वारा विभाजित कुल पथ – लंबाई) समय के समान – अंतराल में कण के औसत वेग के परिमाण से अधिक या उसके बराबर होती है।
  5. उन तीन सदिशों का योग जो एक समतल में नहीं हैं, कभी भी शून्य सदिश नहीं होता।

उत्तर:

  1. सत्य, चूँकि किसी भी सदिश राशि का परिमाण एक धनात्मक संख्या है, जिसमें दिशा नहीं होती है। इसलिए यह एक अदिश राशि है।
  2. असत्य, चूँकि किसी सदिश का प्रत्येक घटक एक सदिश राशि होता है।
  3. असत्य, जैसे – किसी चक्रीय क्रम में प्रतिचक्र विस्थापन शून्य होता है।
  4. सत्य, चूँकि औसत्त चाल पूर्ण पथ की लम्बाई पर जबकि औसत वेग कुल विस्थापन पर निर्भर करता है तथा पूर्ण पथ की लम्बाई विस्थापन के बराबर अथवा अधिक होती है।
  5. सत्य, चूँकि तीनों सदिश एक समतल में नहीं हैं।

प्रश्न 4.6.
निम्नलिखित असमिकाओं की ज्यामिति या किसी अन्य विधि द्वारा स्थापना कीजिए:

  1. |a + b| ≤ |a| + |b|
  2. |a + b| ≥ |a| – |b|
  3. |a – b| ≤ |a| + |b|
  4. |a – b| ≥ |a| – |b|

इनमें समिका (समता) का चिह्न कब लागू होता है?
उत्तर:
माना \(\vec { O }\)A = \(\vec { a }\) = OA = a
तथा \(\vec { A }\)B = b = AB = b

1. सदिश योग के त्रिभुज नियम से,
\(\vec { a }\) + \(\vec { b }\) = \(\vec { O }\)A + \(\vec { A }\)B = \(\vec { O } \)B
तथा (\(\vec { a}\) + \(\vec { b }\)) = OB
परन्तु
∆OAB में, OB ≤ OA + AB

2. |\(\vec { a }\) + \(\vec { b }\)| ≤ |\(\vec { a }\)| + |\(\vec { b }\)|
चूँकि किसी त्रिभुज में प्रत्येक भुजा शेष दो भुजाओं के अन्तर से बड़ी होती है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 1
OB ≥ OA – AB
या
|\(\vec { a }\)| + |\(\vec { b }\)| ≥ |\(\vec { b }\)|
अतः समीकरण (1) तथा (2) से,
|\(\vec { a }\)| + |\(\vec { b }\)| ≥ |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)|
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 2

3. चित्र – 2 से, AB’ = AB
परन्तु \(\vec { A }B’\) =  \(\vec { – b }\),\(\vec { A }\)B = \(\vec { b }\)
∴ |\(\vec { – b }\)| = |\(\vec { b }\)| = AB
सदिश योग के त्रिभुज निमय से,
|\(\vec { a }\)|- |\(\vec { b }\)| = \(\vec { a }\) + (\(\vec { – b }\))
= |\(\vec { O }\)|A + |\(\vec { A }\)|B’ = |\(\vec { O }\)|B’
= |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)| = OB’
∆OAB’ (चित्र – 2) में,
OB’ ≤ OA + AB’
∴ |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)| ≤ |\(\vec { a }\)| + |\(\vec { – b }\)|
अर्थात्
|\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)| ≤ |\(\vec { a }\)| + |\(\vec { b }\)|

4. चूँकि किसी त्रिभुज में प्रत्येक भुजा शेष दो भुजाओं के अन्तर से बड़ी होती हैं।
∴OB’ ≥ OA – AB’
⇒|\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)| – |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)|
इसी प्रकार OB’ – AB’ – OA
⇒ |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)| ≥ |\(\vec { b }\)| – |\(\vec { a }\)|
समीकरण (3) तथा (4) से,
|\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)|] ≥ |\(\vec { a }\)| – |\(\vec { b }\)|
उपरोक्त समस्त असमिका में समिका तभी लागू होगी जबकि
\(\vec { a }\) व \(\vec { b }\) समदिश होंगे।

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प्रश्न 4.7.
दिया है a + b + c + d = 0, नीचे दिए गए कथनों में से कौन – सा सही है:

  1. a, b, c तथा d में से प्रत्येक शून्य सदिश है।
  2. (a + c)का परिमाण (b + d)के परिमाण के बराबर है।
  3. a का परिमाण b, c तथा d के परिमाणों के योग से कभी भी अधिक नहीं हो सकता।
  4. यदि a तथा d संरेखीय नहीं हैं तो b + c अवश्य ही a तथाd के समतल में होगा, और यह a तथाd के अनुदिश होगा यदि वे संरेखीय हैं।

उत्तर:

1. यह कथन सही नहीं है।

2. दिया है: \(\vec { a }\) + \(\vec { b }\) + \(\vec { c }\) + \(\vec { d }\) = 0
या ( \(\vec { a }\) +  \(\vec { c }\)) = – (\(\vec { b }\) + \(\vec { d }\))
या \(\vec { a }\) +  \(\vec { c }\) = \(\vec { b }\) +  \(\vec { d }\)
अतः कथन (b) सत्य है।

3. दिया है: \(\vec { a }\) + \(\vec { b }\) + \(\vec { c }\) + \(\vec { d }\) = 0
या \(\vec { a }\) = – (\(\vec { b }\) + \(\vec { c }\) + \(\vec { d }\)
या |\(\vec { a }\)| = – (|\(\vec { b }\)| + |\(\vec { c }\)| + |\(\vec { d }\)|)
या |\(\vec { d }\)| ≤ |\(\vec { b }\)| + |\(\vec { c }\)| + |\(\vec { d }\)|
अत: कथन (c) सही है।

4. दिया है: \(\vec { a }\) + \(\vec { b }\) + \(\vec { c }\) + \(\vec { d }\) = 0
या \(\vec { a }\) + \(\vec { d }\) = (\(\vec {- b }\) + \(\vec { c }\))
या (\(\vec { b }\) + \(\vec { c }\)) = (\(\vec { -a }\) + \(\vec { d }\))

चूँकि (\(\vec { a }\)) व (\(\vec { d }\)) संरेखीय नहीं हैं अतः (\(\vec { a }\)) + (\(\vec { d }\)), (\(\vec { a }\)) व (\(\vec { d }\)) के समतल में होगा।
अत: कथन (d) सही है।

प्रश्न 4.8.
तीन लड़कियाँ 200 m त्रिज्या वाली वृत्तीय बर्फीली सतह पर स्केटिंग कर रही हैं। वे सतह के किनारे के बिंदु P से स्केटिंग शुरू करती हैं तथा P के व्यासीय विपरीत बिंदु पर विभिन्न पथों से होकर पहुँचती हैं जैसा कि (चित्र) में दिखाया गया है। प्रत्येक लड़की के विस्थापन सदिश का परिमाण कितना है? किस लड़की के लिए यह वास्तव में स्केट किए गए पथ की लंबाई के बराबर है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 3
उत्तर:
प्रत्येक लड़की का विस्थापन सदिश = (\(\vec { p }\))Q का परिमाण = 2 x त्रिज्या
= 2 x 200 = 400 मीटर दिए गए चित्र से स्पष्ट है कि लड़की B द्वारा तय किए गए पथ की लम्बाई 400 मीटर है। अतः इस लड़की के लिए, विस्थापन सदिश का परिमाण वास्तव में स्केट किए गए पथ की लम्बाई के समान है।

प्रश्न 4.9.
कोई साइकिल सवार किसी वृत्तीय पार्क के केंद्र 0 से चलना शुरू करता है तथा पार्क के किनारे P पर पहुँचता है। पुनः वह पार्क की परिधि के अनुदिश साइकिल चलाता हुआ 00 के रास्ते (जैसा (चित्र) में दिखाया गया है) केंद्र पर वापस आ जाता है। पार्क की त्रिज्या 1 km है। यदि पूरे चक्कर में 10 मिनट लगते हों तो साइकिल सवार का –

1. कुल विस्थापन।
2. औसत वेग, तथा।
3. औसत चाल क्या होगी?

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 4
उत्तर:

(a)  कुल विस्थापन = 0 [∴साइकिल सवार वापस प्रारम्भिक बिन्दु 0 पर लौट आता है।]

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 5

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 6
अतः कुल चली दूरी = त्रिज्या OP + \(\hat {p} \)Q + त्रिज्या OPQ
= 1 + \(\frac{1}{4}\) x 2 x π x 1 + 1
= 1 + \(\frac{1}{2}\) x 3.14 + 1
= 1 + 1.57 + 1
= 3.57 किमी
कुल लिया समय = 10
मिनट = \(\frac{10}{60}\) घण्टा
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 7
= 3.57 x 60
= 214.20 किमी/घण्टा

प्रश्न 4.10.
किसी खुले मैदान में कोई मोटर चालक एक ऐसा रास्ता अपनाता है जो प्रत्येक 500 m के बाद उसके बाई ओर 60° के कोण पर मुड़ जाता है। किसी दिए मोड़ से शुरू होकर मोटर चालक का तीसरे, छठे व आठवें मोड़ पर विस्थापन बताइए। प्रत्येक स्थिति में मोटर चालक द्वारा इन मोड़ों पर तय की गई कुल पथ – लंबाई के साथ विस्थापन के परिमाण की तुलना कीजिए?
उत्तर:
मोटर चालक चित्रानुसार, समषट्भुज ABCDEF के अनुदिश चलेगा।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 8

1. माना कि मोटर चालक समषट्भुज के शीर्ष A से चलकर, शीर्ष D पर तीसरा मोड़ लेता है।
दिया है: समषट्भुज की भुजा = 500 मीटर
चित्रानुसार तीसरे मोड़ पर विस्थापन
AD = 2BC = 2 x 500 =1000 मीटर
पथ की लम्बाई
= AB + BC + CD = 500 + 500 + 500
= 1500 मीटर
∴विस्थापन: पथ की लम्बाई = \(\frac{1000}{1500}\) = 2:3

2. मोटर चालक द्वारा लिए गए छठे मोड़ पर विस्थापन = शून्य
[∵ चालक वापस A पर पहुँच जाता है।]
पथ की लम्बाई = 6 x भुजा की ल०
= 6 x 500 = 3000 मीटर
∴विस्थापन पथ की लम्बाई = \(\frac{0}{3000}\) = 0

3. मोटर चालक आठवाँ मोड़ C पर लेगा।
∴विस्थापन
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 9
कुल पद की लम्बाई = 8 × AB = 4000 मीटर
∴विस्थापन: पथ की लम्बाई
= \(\frac { 500\sqrt { 3 } }{ 4000 } \) = \(\frac { \sqrt { 3 } }{ 8 } \) = \(\sqrt { 3 } \):8
= 0.22

प्रश्न 4.11.
कोई यात्री किसी नए शहर में आया है और वह स्टेशन से किसी सीधी सड़क पर स्थित किसी होटल तक जो 10 km दूर है, जाना चाहता है। कोई बेईमान टैक्सी चालक 23 km के चक्करदार रास्ते से उसे ले जाता है और 28 मिनट में होटल में पहुँचता है।

  1. टैक्सी की औसत चाल, और –
  2. औसत वेग का परिमाण क्या होगा? क्या वे बराबर हैं?

उत्तर:
दिया है: कुल चली दूरी = 23 किमी
लगा समय = 28 मिनट = \(\frac{20}{60}\) घण्टा

1. टैक्सी का विस्थापन =10 किमी
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 10
= 49.3 किमी प्रति घण्टा

2.
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 11
= 21.4 किमी प्रति घण्टा
नहीं, चूँकि केवल सीधे पथों के लिए ही परिमाण में माध्य चाल, माध्य वेग के समान होती है।

प्रश्न 4.12.
वर्षा का पानी 30 ms-1 की चाल से ऊर्ध्वाधर नीचे गिर रहा है। कोई महिला उत्तर से दक्षिण की ओर 10 ms-1 की चाल से साइकिल चला रही है। उसे अपना छाता किस दिशा में रखना चाहिए?
उत्तर:
दिया है: वर्षा की चाल \(\vec { v } \)w = 30 मीटर/सेकण्ड तथा महिला की चाल
= 10 मीटर/सेकण्ड
महिला को स्वयं को वर्षा से बचाने के लिए छाते को वर्षा तथा महिला के सापेक्ष (\(\vec { v }\))w वेग की दिशा में रखना चाहिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 12
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img t

प्रश्न 4.13.
कोई व्यक्ति स्थिर पानी में 4.0 km/h की चाल से तैर सकता है। उसे 1.0 km चौड़ी नदी को पार करने में कितना समय लगेगा यदि नदी 3.0 km/h की स्थिर चाल से बह रही हो और वह नदी के बहाव के लंब तैर रहा हो। जब वह नदी के दूसरे किनारे पर पहुँचता है तो वह नदी के बहाव की ओर कितनी दूर पहुँचेगा?
उत्तर:
दिया है: व्यक्ति की चाल = 4 किमी प्रति घण्टा
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 13
चली दूरी =1 किमी
नदी की चाल =3 किमी/घण्टा
माना नदी को पार करने में लिया गया समय = t सूत्र,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 14
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 15
समय t = \(\frac{1}{4}\) घण्टा = 15 मिनट
अत: व्यक्ति द्वारा 15 मिनट में चली दूरी = 3 x \(\frac{1}{4}\)
= \(\frac{3}{4}\) किमी
= \(\frac{3}{4}\) x 1000
= 750 मीटर

प्रश्न 4.14.
किसी बंदरगाह में 72 km/h की चाल से हवा चल रही है और बंदरगाह में खड़ी किसी नौका के ऊपर लगा झंडा N – E दिशा में लहरा रहा है। यदि वह नौका उत्तर की ओर 51 km/h चाल से गति करना प्रारंभ कर दे तो नौका पर लगा झंडा किस दिशा में लहराएगा?
उत्तर:
दिया है: वायु का वेग \(\vec { v }\)a = 72 किमी प्रति घण्टा N – E दिशा में तथा नौका का वेग। \(\vec { v }\)b= 51 किमी प्रति घण्टा उत्तर दिशा में।
नौका का वायु के सापेक्ष वेग,
\(\vec { v }\)a = \(\vec { v }\)a – \(\vec { v }\)b
= 72 – 51
= 21 किमी/घण्टा
यह सापेक्ष वेग, वायु वेग (\(\vec { v }\)a) तथा नौका के विपरीत दिशा को (-\(\vec { v }\)a) के परिणाम के बराबर होगा एवम् झण्डा वेग \(\vec { v }\)abah को दिशा में लहराएगा।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 16
माना कि सापेक्ष वेग (\(\vec { v }\)ab) वेग \(\vec { v }\)a से θ कोण बनाता है तथा वेगों Va व 5 के बीच 135° का कोण है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 17
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 18
= 1.0035
θ = 45.1°
अतः सापेक्ष वेग द्वारा पूर्व दिशा में बनाया गया कोण,
= θ – 45° = 45.1 – 45
= 0.1
अर्थात् झण्डा लगभग पूर्व दिशा में ही लहराएगा।

प्रश्न 4.15.
किसी लंबे हाल की छत 25 m ऊँची है। वह अधिकतम क्षैतिज दूरी कितनी होगी जिसमें 40 ms-1 की चाल से फेंकी गई कोई गेंद छत से टकराए बिना गुजर जाए?
उत्तर:
दिया है: अधिकतम ऊँचाई Hmax = 25 मीटर
तथा वेग, V0 = 40 मीटर/सेकण्ड
माना कि गेंद को प्रक्षेप्य कोण से फेंका जाता है। तब
सूत्र, MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 19
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 20

प्रश्न 4.16.
क्रिकेट का कोई खिलाड़ी किसी गेंद को 100 m की अधिकतम क्षैतिज दूरी तक फेंक सकता है? वह खिलाड़ी उसी गेंद को जमीन से ऊपर कितनी ऊँचाई तक फेंक सकता है?
उत्तर:
दिया है: अधिकतम परास Rmax =100 मीटर
सूत्र, Rmax = \(\frac { \mu _{ 0 }^{ 2 } }{ g } \)
µ02 = Rmax x g
= 100 x 9.8 = 980
∴ µ0 = \(\sqrt { 980 } \) = 14 \(\sqrt{5}\) मीटर/सेकण्ड
अत: व्यक्ति गेंद का अधिकतम वेग 14 \(\sqrt{5}\) मीटर/सेकण्ड से फेंक सकता है। अतः गेंद को अधिकतम ऊँचाई तक फेंकने के लिए उसे ऊर्ध्वाधरत: ऊपर की ओर फेंकना होगा।
सूत्र H = \(\frac { { u }_{ 0 }^{ 2 }{ sin }^{ 2 }\theta }{ 2g } \)
Hmax के लिए, θ = 90°
∴H = \(\frac { (14\sqrt { 5 } )^{ 2 } }{ 2\times 9.8 } \)
= 50 मीटर

प्रश्न 4.17.
80 cm लंबे धागे के एक सिरे पर एक पत्थर बाँधा गया है और इसे किसी एकसमान चाल के साथ किसी क्षैतिज वृत्त में घुमाया जाता है। यदि पत्थर 25,s में 14 चक्कर लगाता है तो पत्थर के त्वरण का परिमाण और उसकी दिशा क्या होगी:
उत्तर:
दिया है: त्रिज्या R = 80 सेमी = 0.8 मीटर चक्कर n =14
समय t = 25
सूत्र आवर्तकाल T = \(\frac{t}{n}\) = \(\frac{25}{14}\) सेकण्ड
पत्थर की रेखीय चाल v = \(\frac{2πR}{T}\)
= \(\frac{2 × 22/7 × 0.8}{25/14}\)
= 2.8 मीटर/सेकण्ड
तथा पत्थर का त्वरण
ac = \(\frac { v^{ 2 } }{ R } \)
= \(\frac { (2.8)^{ 2 } }{ (0.8) } \)
= 9.8 मीटर/सेकण्ड2
पत्थर के त्वरण की दिशा केन्द्र की ओर होगी।

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प्रश्न 4.18.
कोई वायुयान 900 kmh-1 की एकसमान चाल से उड़ रहा है और 1.00 km त्रिज्या का कोई क्षैतिज लूप बनाता है। इसके अभिकेन्द्र त्वरण की गुरुत्वीय त्वरण के साथ तुलना कीजिए?
उत्तर:
दिया है: वायुयान की चाल, v = 900 किमी प्रति घण्टा
त्रिज्या, R =1 किमी
सूत्र त्वरण, ac = \(\frac { v^{ 2 } }{ R } \) से
वायुयान का त्वरण,
ac = \(\frac { v^{ 2 } }{ R } \) = \(\frac{900 × 900}{1}\)
= 81 x 104 किमी/घण्टा2
\(\frac { 81\times 10^{ 4 }\times 1000 }{ (60\times 60)^{ 2 } } \) = 62.5 मीटर/सेकण्ड2
गुरुत्वीय त्वरण g = 9.8 मीटर/सेकण्ड2
∴\(\frac{ac}{g}\) = \(\frac{62.5}{9.8}\)
= 6.38
अतः अभिकेन्द्र त्वरण, गुरुत्वीय त्वरण का 6.38 गुना है।

प्रश्न 4.19.
नीचे दिए गए कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और कारण देकर बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य:

  1. वृत्तीय गति में किसी कण का नेट त्वरण हमेशा वृत्त की त्रिज्या के अनुदिश केंद्र की ओर होता है।
  2. किस बिंदु पर किसी कण का वेग सदिश सदैव उस बिंदु पर कण के पथ की स्पर्श रेखा के अनुदिश होता है।
  3. किसी कण का एक समान वृत्तीय गति में एक चक्र में लिया गया औसत त्वरण सदिश एक शून्य सदिश होता है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. सत्य।

प्रश्न 4.20.
किसी कण की स्थिति सदिश निम्नलिखित है:
\(\bar { r } \) = (3.0t\(\hat { i } \) – 2.0t2\(\hat { j } \) + 4.0\(\hat { k } \))m
समय t सेकण्ड में है तथा सभी गुणांकों के मात्रक इस प्रकार से हैं कि r में मीटर में व्यक्त हो जाए।

  1. कण का vतथा a निकालिए।
  2. t = 2.0 s पर कण के वेग का परिमाण तथा दिशा कितनी होगी?

उत्तर:
दिया है:
\(\bar { r } \) = (3.0t\(\hat { i } \) – 2.0t2\(\hat { j } \) + 4.0\(\hat { k } \)) मीटर
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 21
(b) \(\bar { vt } \) – 25 = 3 \(\hat { i } \) – 4 x 2 \(\hat { j } \) = 3 \(\hat { i } \) – 8 \(\hat { j } \)
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 21-1

प्रश्न 4.21.
कोई कण t = 0 क्षण पर मूल बिंदु से 10\(\hat { j } \) ms-1 के वेग से चलना प्रारंभ करता है तथा x – y समतल में एकसमान त्वरण (8.0\(\hat { i } \) + 2.0\(\hat { j } \))ms-2 से गति करता है।

  1. किस क्षण कण का निर्देशांक 16 m होगा? इसी समय इसका y – निर्देशांक कितना होगा?
  2. इस क्षण कण की चाल कितनी होगी?

उत्तर:
दिया है:
\(\overrightarrow{v_{0}}\)= 0\(\hat { i } \) + o\(\hat { j } \)
वेग \(\overrightarrow{v_{0}}\)= 10 \(\hat { j } \) मीटर/सेकण्ड 2
त्वरण \(\vec { a } \) = (8\(\hat { i } \) + o\(\hat {2j } \) मीटर/सेकण्ड 2
अतः t समय पर कण का स्थिति सदिश,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 22
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 22-2

1. x =16 मीटर रखने पर,
16 = 4t2
t =\(\sqrt { 16/4 }\) = 2
∴y = 10 x 2 + 22
= 20 x 4 = 24 मीटर
अत: t = 2 सेकण्ड पर, के निर्देशांक 24 मीटर होगा।

2. vx = \(\frac{dx}{dt}\) = 8t
तथा vy = \(\frac{dy}{dt}\) = 10 + 2t
∴(vy )t=2 = 10 + 2 x 2 = 14 मीटर/सेकण्ड
इस क्षण कण की चाल,
(v-1) = \(\sqrt { v^{ 2x }-v^{ 2y } } \)
= \(\sqrt { 16^{ 2 }+14^{ 2 } } \)
= \(\sqrt { 452 }\)
= 21.3 मीटर/सेकण्ड

प्रश्न 4.22.
\(\hat { i }\) व \(\hat { j }\) क्रमश: x – व y – अक्षों के अनुदिश एकांक सदिश हैं। सदिशों \(\hat { i }\) + \(\hat { j }\) तथा \(\hat { i } \) – \(\hat { j }\) का परिमाण तथा दिशा क्या होगी? सदिश A = 2\(\hat { i }\) + 3 \(\hat { j }\) के दिशाओं के अनुदिश घटक निकालिए।[आप ग्राफी विधि का उपयोग कर सकते हैं।]
उत्तर:
चूँकि \(\hat { i }\) व \(\hat { j }\) तथा परस्पर लम्ब एकांक सदिश है। अतः इनके बीच का कोण 90° है।
सूत्र,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 23
सदिश \(\vec { a }\) का सदिश \(\vec { b }\) की दिशा में घटक,
(A cos θ) = image
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 24

प्रश्न 4.23.
किसी दिकस्थान पर एक स्वेच्छ गति के लिए निम्नलिखित संबंधों में से कौन – सा सत्य है?

  1. v औसत = (1/2) [v(t1) + v(t2)]
  2. v औसत = [r(t2) – r(t1)]/(t2 – t1)
  3. v(t) = v(0) + at
  4. r(t) = r(0) + v(0)t + (1/2) at2
  5. aऔसत = [v(t2) – v(t1)]/(t2 – t1)

यहाँ ‘औसत’ का आशय समय अंतराल t2, व t1 से संबंधित भौतिक राशि के औसत मान से है।
उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

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प्रश्न 4.24.
निम्नलिखित में से प्रत्येक कथन को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा कारण एवं उदाहरण सहित बताइए कि क्या यह सत्य है या असत्य: अदिश वह राशि है जो:

  1. किसी प्रक्रिया में संरक्षित रहती है।
  2. कभी ऋणात्मक नहीं होती।
  3. विमाहीन होती है।
  4. किसी स्थान पर एक बिंदु से दूसरे बिंदु के बीच नहीं बदलती
  5. उन सभी दर्शकों के लिए एक ही मान रखती है चाहे अक्षों से उनके अभिविन्यास भिन्न – भिन्न क्यों न हों।

उत्तर:

  1. असत्य, चूँकि किसी अदिश का किसी प्रक्रिया से संरक्षित रहना आवश्यक नहीं है। जैसे ऊपर की ओर फेंके गए पिण्ड की गतिज ऊर्जा पूरी यात्रा में बदलती रहती है।
  2. असत्य, चूँकि अदिश राशि, धनात्मक शून्य या ऋणात्मक कुछ भी मान ग्रहण कर सकती है। जैसे ताप अदिश राशि है जिसका चिह्न कुछ भी हो सकता है।
  3. असत्य, जैसे किसी वस्तु की चाल अदिश राशि है जिसकी विमा [LT-1] है।
  4. असत्य, जैसे ताप एक अदिश राशि है जोकि किसी छड़ में ऊष्मा के एकविमीय प्रवाह की दिशा में बदलता रहता है।
  5. सत्य, चूँकि अदिश राशि दिशाहीन होती है। इसलिए यह प्रत्येक विन्यास में स्थित दर्शक के लिए समान मान रखती है। जैसे किसी वस्तु की चाल प्रत्येक दर्शक के लिए समान होगी।

प्रश्न 4.25.
कोई वायुयान पृथ्वी से 3400 m की ऊँचाई पर उड़ रहा है। यदि पृथ्वी पर किसी अवलोकन बिंदु पर वायुयान की 10.0s से दूरी की स्थितियाँ 30° का कोण बनाती है तो वायुयान की चाल क्या होगी?
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 25
उत्तर:
दिया है:
P से Q तक चलने में लगा समय, t =10 सेकण्ड
सूत्र, MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 26
लम्ब, PQ = OP x tan 30
= 3400 x \(\sqrt [ 1 ]{ 3 } \) मीटर
= 1963 मीटर
माना वायुयान की चाल v मीटर/सेकण्ड है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 26 = \(\frac{1963}{10}\)
= 196.3 मीटर/सेकण्ड

समतल में गति अतिरिक्त अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 4.26.
किसी सदिश में परिमाण व दिशा दोनों होते हैं। क्या दिकस्थान में इसकी कोई स्थिति होती है? क्या यह समय के साथ परिवर्तित हो सकता है। क्या दिकस्थान में भिन्न स्थानों पर दो बराबर सदिशों a वb का समान भौतिक प्रभाव अवश्य पड़ेगा? अपने उत्तर के समर्थन में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सभी सदिशों की स्थिति नहीं होती है। किसी बिन्दु के स्थिति सदिश के समान कुछ सदिशों की स्थिति होती है जबकि वेग सदिश की कोई स्थिति नहीं होती है। हाँ, सदिश समय के साथ परिवर्तित हो सकता है। उदाहरण के लिए, गतिमान कण की स्थिति सदिश। दिक्स्थान में भिन्न स्थानों पर दो बराबर सदिशों \(\vec { a } \) तथा \(\vec { b } \) का समान भौतिक प्रभाव अवश्य पड़े, यह आवश्यक नहीं है। जैसे दो भिन्न – भिन्न बिन्दुओं पर लगे बराबर बल अलग – अलग आघूर्ण उत्पन्न करेंगे।

प्रश्न 4.27.
किसी सदिश में परिमाण व दिशा दोनों होते हैं। क्या इसका यह अर्थ है कि कोई राशि जिसका परिमाण व दिशा हो, वह अवश्य ही सदिश होगी? किसी वस्तु के घूर्णन की व्याख्या घूर्णन – अक्ष की दिशा और अक्ष के परितः घूर्णन – कोण द्वारा की जा सकती है। क्या इसका यह अर्थ है कि कोई भी घूर्णन एक सदिश है?
उत्तर:
किसी राशि में परिमाण तथा दिशा होने पर उसका सदिश होना आवश्यक नहीं है। जैसे – प्रत्येक घूर्णन कोण सदिश राशि नहीं हो सकता जबकि सूक्ष्म घूर्णन कोण सदिश राशि माना जा सकता है।

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प्रश्न 4.28.
क्या आप निम्नलिखित के साथ कोई सदिश संबद्ध कर सकते हैं:

  1. किसी लूप में मोड़ी गई तार की लंबाई
  2. किसी समतल क्षेत्र
  3. किसी गोले के साथ? व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

  1. नहीं, चूँकि वृत्तीय लूप में मोड़े गए तार की कोई निश्चित दिशा नहीं है।
  2. दिए गए समतल पर एक निश्चित अभिलम्ब खींचा जा सकता है। इसलिए समतल क्षेत्र के साथ एक सदिश सम्बद्ध किया जा सकता है जिसकी दिशा समतल पर अभिलम्ब के अनुदिश हो सकती है।
  3. नहीं, चूँकि किसी गोले का आयतन किसी विशेष दिशा के साथ सम्बद्ध नहीं कर सकते हैं।

प्रश्न 4.29.
कोई गोली क्षैतिज से 30° के कोण पर दागी गई है और वह धरातल पर 3.0 km दूर गिरती है। इसके प्रक्षेप्य के कोण का समायोजन करके क्या 5.0 km दूर स्थित किसी लक्ष्य का भेद किया जा सकता है? गोली की नालमुख चाल को नियत तथा वायु के प्रतिरोध को नगण्य मानिए।
उत्तर:
दिया है:
θ1 = 30°,
(R11, = 3 किमी = 3000 मीटर

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 28

माना ((R22) = 5 किमी = 5000 मीटर
जहाँ θ2, प्रक्षेपण कोण पर दागने पर परास R2 है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 29
परन्तु sinθ का मान 1 से अधिक नहीं हो सकता है। अर्थात् प्रक्षेप्य कोण 02 का कोई वास्तविक मान सम्भव नहीं है जिससे कि गोली 5 किमी दूर स्थित लक्ष्य को भेद सकें।

प्रश्न 4.30.
कोई लड़ाकू जहाज 1.5 km की ऊँचाई पर 720 km/h की चाल से क्षैतिज-दिशा में उड़ रहा है और किसी वायुयान भेदी तोप के ठीक ऊपर से गुजरता है। ऊर्ध्वाधर से तोप की नाल का क्या कोण हो जिससे 600 ms-1 की चाल से दागा गया गोला वायुयान पर वार कर सके। वायुयान के चालक को किस न्यूनतम ऊँचाई पर जहाज को उड़ाना चाहिए जिससे गोला लगने से बच सके। (g = 10 ms-2)
उत्तर:
दिया है:
वायुयान की ऊँचाई = 1.5 किमी
= 1500 मीटर
वायुयान की चाल = 720 किमी/घण्टा
= 720 x \(\frac{5}{18}\)
= 200 मीटर/सेकण्ड
गोली की चाल v0 = 600 मीटर/सेकण्ड
माना कि जिस क्षण वायुयान तोप के ठीक ऊपर है, उस क्षण ऊर्ध्वाधर से θ कोण पर तोप से गोला दागा जाता है। जोकि सेकण्ड पश्चात् वायुयान से टकराता है।
अतः क्षैतिज से गोले का प्रक्षेपण कोण,
∅ = 90 – θ होगा।
यहाँ गोले के वेग के घटक,
Vox = Vo cos ∅ = 600 sin θ
तथा Voy = Vo sin θ = 600 cos ∅
समय पश्चात् गोले की ऊँचाई,
y = voyt – \(\frac{1}{2}\) gt2
= 600 cos θ.t – \(\frac{1}{2}\) x 9.8 t2
समय पश्चात् क्षैतिज दूरी,
x = v oxt = 600 sin θ.t
वायुयान के लिए,
x0 = 0
y = 500 मीटर
V ox = 200 मीटर/सेकण्ड
ax = 0
Voy = 0
ay = 0
सेकण्ड पश्चात् वायुयान की स्थिति,
x = Voxt ⇒ x = 200t
तथा y = yo ⇒ y = 1500
गोला वायुयान को तभी लगेगा जबकि समी० (1) तथा (4) से प्राप्त के मान एवम् समी० (2) व (3) से प्राप्त x के मान पृथक्-2 बराबर हो।
समी० (1) तथा (4) से,
1500 = 600 cos θt = 4.9t2
समी० (2) तथा (3) से,
600 sin θt = 200t = sinθ = \(\frac{1}{3}\)
θ =19.5°
अतः तोप की नाल ऊर्ध्वाधर से 19.5° का कोण बनाएगा। जब तोप की नाल को ऊर्ध्वाधरत: ऊपर की ओर रखते हुए गोला दागा जाता है तो वह अधिकतम ऊँचाई तय करता है।
∴H max = \(\frac { v_{ 0 }^{ 2 } }{ 2g } \)
= \(\frac { (600)^{ 2 } }{ 2\times 10 } \)
= 18000 मीटर
अतः वायुयान की न्यूनतम ऊँचाई 18 किमी होगी।

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प्रश्न 4.31.
एक साइकिल सवार 27 km/h की चाल से साइकिल चला रहा है। जैसे ही सड़क पर वह 80 m त्रिज्या के वृत्तीय मोड़ पर पहुँचता है, वह ब्रेक लगाता है और अपनी चाल को 0.5 m/s2 की एकसमान दर से कम कर लेता है। वृत्तीय मोड़ पर साइकिल सवार के नेट त्वरण का परिमाण और उसकी दिशा निकालिए।
उत्तर:
दिया है:
साइकिल सवार की चाल,
y= 27 किमी/घण्टा
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 30
= 27 x \(\frac{5}{18}\) = \(\frac{15}{2}\) मीटर/सेकण्ड
त्रिज्या = 80 मीटर
मंदन, aT = 0.5 मीटर/सेकण्ड2
अभिकेन्द्र त्वरण, ac = \(\frac{v2}{R}\)
= (\(\frac{15/2}{80}2\)=
= 0.703 मीटर/सेकण्ड2
अतः सवार का नेट त्वरण,
a = \(\sqrt { a_{ c }^{ 2 }+aT^{ 2 } } \)
= \(\sqrt { (0.703)^{ 2 }+(0.5)^{ 2 } } \)
= 0.86 मीटर/सेकण्ड2
माना परिणामी त्वरण स्पर्श रेखीय दिशा से कोण पर है।
∴tan θ = \(\frac { a_{ c } }{ a_{ T } } \) = 1.4
∴θ = tan-1 (1.4) = 54.5°

प्रश्न 4.32.

  1. सिद्ध कीजिए कि किसी प्रक्षेप्य के x – अक्ष तथा उसके वेग के बीच के कोण को समय के फलन के रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं। θ (t) -1 = tan-1 = \(\frac { (v_{ oy }-gt) }{ (v_{ ox }) } \)
  2. सिद्ध कीजिए कि मूल बिंदु से फेंके गए प्रक्षेप्य कोण का मान θ0 = tan-1  = \(\frac { 4h_{ m } }{ R } \)  होगा। यहाँ प्रयुक्त प्रतीकों के अर्थ सामान्य हैं।

उत्तर:

1. माना कि कोई प्रक्षेप्य मूल बिन्दु (0, 0) से इस प्रकार फेंकते हैं कि उसके वेग x – अक्ष एवम् y – अक्षों की दिशाओं में विभाजित घटक क्रमश: Vox व Voy हैं।
माना कि t समय पश्चात् प्रक्षेप्य का स्थिति सदिश, \(\)\vec { r } \(\) (t)
1. निम्नवत् है –
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 31

2. मूल बिन्दु (0, 0) से फेंके गए प्रक्षेप्य का परास,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 4 समतल में गति img 32

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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 9 वित्तीय प्रबन्ध

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 9 वित्तीय प्रबन्ध

वित्तीय प्रबन्ध Important Questions

वित्तीय प्रबन्ध वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
वित्तीय-प्रबंध के मुख्य कार्य हैं –
(a) वित्तीय नियोजन
(b) कोषों को प्राप्त करना
(c) शुद्ध लाभ का आबंटन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
वित्त का सबसे सस्ता स्रोत है –
(a) ऋण पत्र
(b) समता अंश पूँजी
(c) पूर्वाधिकार अंश
(d) प्रतिधारित उपार्जन।
उत्तर:
(a) ऋण पत्र

प्रश्न 3.
स्थायी संपत्तियों की वित्त व्यवस्था होनी चाहिए –
(a) दीर्घकालीन दायित्वों से
(b) अल्पकालीन दायित्वों से
(c) दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन दायित्वों के मिश्रण से
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(a) दीर्घकालीन दायित्वों से

प्रश्न 4.
एक व्यवसाय की चालू संपत्तियों की वित्त व्यवस्था होनी चाहिए –
(a) केवल चालू दायित्वों से
(b) केवल दीर्घकालीन दायित्वों से
(c) दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन दोनों से अंशत
(d) (a) व (b) दोनों।
उत्तर:
(c) दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन दोनों से अंशत

प्रश्न 5.
यदि अन्य बातें समान रहें तो कर की दर में निगमित लाभ पर वृद्धि होगी –
(a) ऋण अपेक्षाकृत सस्ते होंगे ।
(b)ऋण अपेक्षाकृत कम सस्ते होंगे
(c) ऋणों की लागत पर कोई प्रभाव नहीं होगा
(d) हम कुछ नहीं कर सकते।
उत्तर:
a) ऋण अपेक्षाकृत सस्ते होंगे ।

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सा समता पर व्यापार का प्रकार है –
(a) अल्प समता पर व्यापार
(b) उच्च समता पर व्यापार
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) उपरोक्त (a) व (b) दोनों नहीं।
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 7.
पूँजी ढाँचा निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है –
(a) पूँजी लागत प्रभावित होती है
(b) अंशों का बाजार मूल्य प्रभावित होता है
(c) उपरोक्त (a) व (6) दोनों
(d) उपरोक्त (a) व (b) दोनों नहीं।
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (6) दोनों

प्रश्न 8.
कार्यशील पूँजी का स्रोत है –
(a) देनदार
(b) बैंक अधिविकर्ष
(c) रोकड़ विक्रय
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 9.
कार्यशील पूँजी का निर्धारक है –
(a) संस्था का आकार
(b) निर्माण प्रक्रिया की अवधि
(c) कच्चे माल की उपलब्धता
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
बोनस निर्णय के निर्धारक हैं –
(a) लाभों की मात्रा
(b) कोषों में तरलता
(c) कंपनी की आयु
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 11.
संयुक्त पूँजी वाली कंपनी के लिए लाभांश देना है –
(a) ऐच्छिक
(b) अनिवार्य
(c) आवश्यक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) ऐच्छिक

प्रश्न 12.
निम्न में से कौन-सा पूँजी संरचना को निर्धारित करने वाला तत्व है –
(a) रोकड़ प्रवाह स्थिति
(b) ब्याज आवरण अनुपात
(c) ऋण भुगतान आवरण अनुपात
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
निम्न में से कौन-सा समता पर व्यापार का प्रकार है –
(a) अल्प समता पर व्यापार
(b) उच्च समता पर व्यापार
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) उपरोक्त न (a) और न (b)
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 14.
चालू संपत्तियाँ वे संपत्तियाँ होती हैं जो रोकड़ में परिवर्तित होती है –
(a) छ: महीन के अंदर
(b) एक साल के अंदर
(c) एक से तीन साल के अंदर
(d) तीन से पाँच साल के अंदर।
उत्तर:
(b) एक साल के अंदर

प्रश्न 15.
प्रति अंश उच्चतम लाभांश संबंधित है –
(a) ऊँची आय, ऊँचा रोकड़ प्रवाह, अनुप्रयोग आय तथा उच्चतम विकास अवसर
(b) ऊँची आय, ऊँचा रोकड़ प्रवाह, स्थिर आय तथा ऊँचे विकास अवसर
(c) ऊँची आय, ऊँचा रोकड़ प्रवाह, स्थिर आय तथा निम्नतम विकास अवसर
(d) ऊँची आय, निम्न रोकड़ प्रवाह, स्थिर आय तथा निम्नतम विकास अवसर।
उत्तर:
(c) ऊँची आय, ऊँचा रोकड़ प्रवाह, स्थिर आय तथा निम्नतम विकास अवसर

प्रश्न 16.
पुराने संयंत्र को उन्नतिशील बनाने के लिए एक नये तथा आधुनिक संयंत्र के अधिग्रहण कानिर्णय है –
(a) वित्तीय निर्णय
(b) कार्यशील पूँजी निर्णय
(c) निवेश निर्णय
(d) लाभांश निर्णय।
उत्तर:
(c) निवेश निर्णय

प्रश्न 17.
पितृसुलभ उच्च विकसित कंपनियाँ पसंद करती हैं –
(a) कम लाभांश देना
(b) अधिक लाभांश देना
(c) लाभांश पर विकास विचार का कोई प्रभाव नहीं होता है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) कम लाभांश देना

प्रश्न 18.
अति-पूँजीकरण के कारणों में से क्या कारण उत्तरदायी नहीं है –
(a) अधिक प्रवर्तन व्यय
(b) अधिक पूँजी निर्गमन
(c) स्फीतिकाल में निर्माण
(d) आय का कम अनुमान
उत्तर:
(c) स्फीतिकाल में निर्माण

प्रश्न 19.
अल्प-पूँजीकरण के कारणों में क्या शामिल नहीं है –
(a) मंदी काल में स्थापना
(b) कम पूँजी की आवश्यकता
(c) उदार लाभांश नीति
(d) उच्च कार्यक्षमता।
उत्तर:
(c) उदार लाभांश नीति

प्रश्न 20.
स्थायी संपत्ति में क्या शामिल नहीं है –
(a) मशीन
(b) भवन
(c) फर्नीचर
(d) स्टॉक
उत्तर:
(d) स्टॉक

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. व्यवसाय में पूँजी-मिश्रण के स्वरूप को ………… कहते हैं।
  2. व्यवसाय हेतु आवश्यक पूँजी की मात्रा निर्धारण की क्रिया ………. कहलाती है।
  3. व्यवसाय के दैनिक संचालन व रख-रखाव हेतु आवश्यक पूँजी को ……… कहते हैं।
  4. वित्तीय प्रबन्धन का उद्देश्य अनावश्यक तथा अधिक मात्रा के …………. से बचना होता है।
  5. वित्तीय नियोजन का प्रारंभिक बिन्दु …………. का पूर्वानुमान लगाना होता है।
  6. जब कंपनी की आय अनिश्चित हो तथा उसका पूर्वानुमान लगाना कठिन हो तो केवल …………. ____ अंशों का ही निर्गमन करना चाहिए।
  7. लाभ का जो भाग व्यवसाय हेतु बचा लिया जाता है वह स्वामियों के कोष का ………. कहलाता है।
  8. ………… के अनुसार “पूँजी संरचना प्रायः एक व्यापारिक उपक्रम में प्रयुक्त वित्त के दीर्घकालीन ___स्रोतों को इंगित करता है।”
  9. “……….. व्यवसाय के संचालन में प्रयुक्त अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति की संपत्तियाँ होती हैं जो किविक्रय के लिए नहीं होती है।”
  10.  “चालू सम्पत्ति का योग ही व्यवसाय की ……….. है।”
  11. “………… का अभिप्राय वित्तीय क्रियाओं के पूर्व निर्धारण से हैं।”
  12.  शुद्ध कार्यशील पूँजी = चालू संपत्ति + ………….।
  13.  समता अंशों पर, ऊँची दर से लाभांश का वितरण कम्पनी के ……….. का परिचायक है।
  14.  भूमि तथा भवन में विनियोग ……….. पूँजी का प्रतिनिधित्व करता है।
  15.  वित्तीय प्रबंध ……. के अपव्यय को न्यूनतम करता है।
  16.  समता अंशधारियों को कंपनी में ……….. का अधिकार होता है।
  17.  दीर्घकालीन पूँजी की मात्रा का निर्धारण ……… कहलाता है।
  18.  सार्वजनिक उपयोग के उपक्रमों में ………… कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।
  19. व्यापारिक संस्था के स्थायी पूँजी की आवश्यकता, निर्माणी उद्योग की तुलना में ………. होती है।
  20.  किसी कंपनी की संपत्तियों का वास्तविक मूल्य, पुस्तकीय मूल्य से कम होना…………का प्रतीक है।

उत्तर:

  1. पूँजी संरचना
  2. पूँजीकरण
  3. कार्यशील पूँजी
  4. जोखिमों
  5.  बिक्री
  6. साधारण
  7. पुनर्विनियोग,
  8. आर. एच. वेसिल
  9. स्थायी संपत्तियाँ
  10. कार्यशील पूँजी
  11. वित्तीय नियोजन
  12. चालू दायित्व
  13. अल्प-पूँजीकरण
  14.  स्थायी
  15. साधनों
  16. मतदान
  17. पूँजीकरण
  18. कम
  19. कम
  20. अति-पूँजीकरण।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. न्यूनतम लागत में वित्त की उपलब्धता तथा वित्त का लाभकारी प्रयोग सुनिश्चित करना क्या कहलाता है ?
  2. अत्यधिक प्रवर्तन व्यय का क्या परिणाम होता है ?
  3. पूँजी की मात्रा का कम अनुमान लगाने पर कंपनी को किस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है ?
  4. श्रमिकों द्वारा किस स्थिति में अधिक पारिश्रमिक की माँग की जाती है ?
  5. संस्था के दीर्घकालीन वित्त के विभिन्न स्रोतों के पारस्परिक आनुपातिक संबंध को क्या कहते हैं ?
  6. व्यवसाय का जीवन रक्त किसे कहते हैं ?
  7. ऋणपत्रों का निर्गमन कब लाभप्रद होता है ?
  8. वित्तीय नियोजन का हृदय किसे कहा जाता है ?
  9. उपक्रम के संपदा मूल्य अधिकतम कब होते हैं ?
  10. विभिन्न दीर्घकालीन कोषों के संघटक की बनावट किसका निर्माण करती है ?
  11. पाँच या अधिक वर्षों के लिए की गई वित्त योजना क्या कहलाती है ?
  12. साधारण अंशों पर अधिक लाभ प्राप्त करने की प्रकृति क्या कहलाती है ?
  13. पूँजी की मात्रा का प्रतिनिधित्व कौन करता है ?
  14. कच्चा माल क्रय करने के लिए किस पूँजी का प्रयोग किया जाता है ?
  15.  चालू संपत्ति एवं चालू दायित्व के अंतर को क्या कहते हैं ?
  16. वित्तीय विवरणों से विभिन्न अनुपातों की गणना क्या कहलाता है ?
  17. प्रतिभूतियों का देय मूल्य जब संपत्तियों के चालू मूल्य से अधिक हो तो कौन-सी स्थिति कहलाती है ?
  18. मुद्रास्फीति में विनियोक्ता अधिक जोखिम उठाकर पूँजी संरचना में कौन-से अंगों को प्राथमिकता देते हैं ?
  19. वित्तीय योजना में पूँजी का उपयोग कैसा होना चाहिए?
  20. किसी उपक्रम के वित्त कार्यों पर नियंत्रण किसके द्वारा किया जाता है ?

उत्तर:

  1. वित्तीय नियोजन
  2. अति-पूँजीकरण
  3. अल्प-पूँजीकरण
  4. अल्प-पूँजीकरण
  5. पूँजी संरचना,
  6. वित्त को
  7. मंदी में
  8. लाभ-हानि खाता एवं प्रोफार्मा का
  9. अंशों के बाजार मूल्य अधिकतम हो
  10. पूँजी संरचना
  11. दीर्घकालीन वित्तीय उद्देश्य
  12. इक्विटी बाजार
  13. पूँजीकरण
  14. कार्यशील पूँजी
  15. कार्यशील पूँजी
  16. अनुपात विश्लेषण
  17. अति-पूँजीकरण
  18. इक्विटी अंश
  19. दीर्घकालीन वित्तीय उद्देश्य
  20. वित्तीय प्रबंधन द्वारा।।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. वस्तु की प्रकृति स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करती है।
  2. वित्तीय नियोजन वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य कार्य है।
  3. वित्तीय प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध का अंग है।
  4. वित्तीय प्रबन्ध के अध्ययन की उपयोगिता अंशधारियों के लिए नहीं हैं। .
  5. पूँजीकरण शब्द का उपयोग सभी व्यावसायिक इकाईयों में होता है।
  6. कार्यशील पूँजी की आवश्यकता दीर्घकालीन अवधि के लिए होती है।
  7. वृहद् उपक्रम में स्थायी पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है।
  8. पूँजी संरचना का संबंध कोषों की किस्म से होता है।
  9. पूँजी संरचना में कार्यशील पूँजी को सम्मिलित किया जाता है।
  10. पूँजी संरचना का आशय स्थायी पूँजी से है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. सत्य
  8. सत्य
  9. असत्य
  10. सत्य

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 9 वित्तीय प्रबन्ध IMAGE - 1
उत्तर:

  1. (b)
  2. (d)
  3. (c)
  4. (e)
  5. (a
  6. (g)
  7. (f)
  8. (i)
  9. (h)
  10. (j)

वित्तीय प्रबन्ध लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूँजी संरचना से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
किसी भी संस्था (कंपनी)के आर्थिक चिट्ठे का विश्लेषण करें तो विदित होता हैं कि उसकी कुल पूँजी का कुछ भाग समता अंशों में, कुछ पूर्वाधिकार अंशों में और ऋणपत्रों एवं बंधपत्रों में वितरित किया गया है। विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों के बीच निर्धारित अनुपात को ही पूँजी ढाँचा कह सकते हैं। अन्य शब्दों में, पूँजी ढाँचा यह दर्शाता है कि पूँजीकरण की कुल राशि का विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों में किस अनुपात के आशय पर वितरण किया गया है। इस प्रकार पूँजी ढाँचा का आशय पूँजी के दीर्घकालीन साधनों के पारस्परिक अनुपात से है और इनमें स्वामी पूँजी, पूर्वाधिकार अंशपूँजी एवं दीर्घकालीन ऋण पूँजी को शामिल करते हैं। इसे पूँजी संगठन, पूँजी कलेवर, पूँजी स्वरूप आदि नामों से पुकारा जाता है।

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प्रश्न 2.
वित्तीय नियोजन के दो उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय नियोजन का प्रमुख उद्देश्य पूँजी की इस प्रकार व्यवस्था करना है कि व्यवसाय के संचालन के सभी साधन उपलब्ध हो सकें। उपार्जित आय में से समस्त व्यय घटाने के बाद जो शुद्ध लाभ बचे वह अंशधारियों की विनियोजित पूँजी का उचित प्रव्याय (Return) हो।
वित्तीय नियोजन के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. कोषों की आवश्यकतानुसार उनकी उपलब्धता का आश्वासन देना-वित्तीय नियोजन का प्रमुख उद्देश्य है कि विभिन्न उद्देश्यों, जैसे कि दीर्घावधि संपत्तियों के क्रय के लिए दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए इत्यादि, के लिए कंपनी में पर्याप्त कोष उपलब्ध होना चाहिए।
  2. लोच-वित्तीय नियोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए ताकि उनमें व्यापार के विस्तार एवं संकुचन अपने आप में समेटने में दिक्कत न आवे।

प्रश्न 3.
वित्तीय प्रबंधन तीन विस्तृत वित्तीय निर्णयों पर आधारित होता है, ये क्या हैं ?
उत्तर:
लगातार बदलते हुए आर्थिक परिवेश में वित्तीय प्रबंधक को निर्णय लेने ही पड़ते हैं । इस प्रकार के निर्णय ऐसे लेने चाहिए कि व्यवसाय का निरंतर विकास होता रहे । यदि ऐसा नहीं होता है तो व्यवसाय का विकास तो दूर उसका अस्तित्व बनाये रखना भी कठिन होगा। वित्तीय प्रबंधन मुख्य रूप से तीन विस्तृत वित्तीय निर्णयों पर आधारित होता है। ये तीन निर्णय निम्नलिखित हैं

  • विनियोग निर्णय
  • वित्त व्यवस्था संबंधी निर्णय
  • लाभांश संबंधी निर्णय

(1) विनियोग निर्णय – यह निर्णय उन संपत्तियों के ध्यानपूर्वक चयन से संबंधित होता है जिनमें फर्मों द्वारा अपने फंड में निवेश किया जाएगा। एक फर्म के पास अपने फंड में निवेश करने के कई विकल्प होते हैं परंतु फर्म को अधिक उपयुक्त विकल्प का चयन करना पड़ता है जिससे फर्म को अधिकतम लाभ होगा। इसी विकल्प का निश्चय करना ही विनियोग या निवेश संबंधी निर्णय होता है।

(2) वित्त व्यवस्था संबंधी निर्णय – वित्तीय निर्णय से आशय यह निर्धारित करने से है कि पूँजी ढाँचे में स्वामी के कोषों तथा ऋण कोषों का क्या अनुपात रहना चाहिए। स्वामी के कोषों में समता अंश पूँजी, पूर्वाधिकार अंश पूँजी, संचय कोष, संगृहीत लाभ, अंश प्रीमियम को शामिल किया जाता हैं।

(3) लाभांश संबंधी निर्णय – यह निर्णय आधिक्य कोषों के वितरण से संबंधित है। फर्म के लाभ को विभिन्न पक्षों जैसे कि लेनदारों, कर्मचारियों, ऋणपत्रधारियों, अंशधारियों इत्यादि के बीच वितरित किया जाता है।

प्रश्न 4.
वित्तीय प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबन्ध के उद्देश्य –

1. अधिकतम लाभ की प्राप्ति – कुछ विद्वानों का मानना है कि वित्तीय प्रबन्ध का प्रमुख उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है, किन्तु अधिकतम लाभ का आशय एवं सीमा की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, अतः अधिकतम लाभ के उद्देश्य हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये

  • लाभ न्यायसंगत होना चाहिये।
  • लाभ व उपयोगिता में सामन्जस्य होना चाहिये।
  • लाभ प्राप्ति हेतु एक मानक (Standard) तैयार करना चाहिये।
  • लाभ का अधिकांश भाग जनहित में वितरित होना चाहिये।

2. अधिकतम प्रतिफल की प्राप्ति – वित्तीय प्रबन्ध का दूसरा उद्देश्य लागत व विनियोग द्वारा अधिकतम प्रतिफल की प्राप्ति करना है, जिससे प्रबन्ध के स्वामी (अंशधारी), ऋणपत्रधारी, प्रबन्धक, कर्मचारी व श्रमिकों को अधिकतम आर्थिक लाभ दिया जा सके। चूँकि ये सभी वर्ग समाज के अंग हैं, अतः कम्पनी से सम्बन्धित इन सभी वर्गों का आर्थिक विकास करना कम्पनी का दायित्व है, इस हेतु अधिकतम प्रतिफल प्राप्त करना आवश्यक होगा।

3. सम्पत्ति के मूल्य को अधिकतम करना वर्तमान में लाभ को अधिकतम बढ़ाने के स्थान पर सम्पत्ति को बढ़ाना वित्तीय प्रबन्ध का उद्देश्य माना जाने लगा है । वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत ऐसे कार्य किये जाने चाहिये, जिससे उपक्रम की सम्पदा (सम्पत्ति) के मूल्य में वृद्धि हो जाये। चूँकि सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि से कम्पनी सशक्त व मजबूत होगी जिससे कम्पनी की साख में वृद्धि होगी और इससे सर्वांगीण लाभ प्राप्त होगा, अतः वित्तीय प्रबन्ध व्यवस्था का उद्देश्य कम्पनी की सम्पत्तियों को बढ़ाना होना चाहिये।

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प्रश्न 5.
वित्तीय प्रबंध के कार्य लिखिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के कार्य –

(अ) प्रशासकीय कार्य :

  1. वित्तीय पूर्वानुमान लगाना
  2. वित्तीय नियोजन, संपत्तियों की प्रबंध नीतियों का निर्माण करना
  3. वित्तीय क्रियाओं का संगठन
  4. अन्य विभागों से समन्वय
  5. वित्तीय नियन्त्रण का प्रबंध करना।

(ब) क्रियात्मक कार्य –

  1. वित्त व्यवस्था करना
  2. कोषों का आबंटन
  3. आय का प्रबन्ध करना
  4. रोकड़ प्रबंध
  5. पूँजी उत्पादकता में वृद्धि
  6. लाभ नियोजन
  7. प्रतिवेदन प्रस्तुत करना
  8. अभिलेख रखना
  9. विनियोग संबंधी निर्णय लेना
  10. संपत्तियों की प्रबंध नीतियों का निर्माण करना
  11. वित्तीय निर्णय लेना
  12. वित्तीय साधनों से संपर्क
  13. वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण
  14. उच्च प्रबंधक को परामर्श।

(स) दैनिक एवं सलाहकारी कार्य-

  1. सम्पत्तियों का प्रबन्ध
  2. रोकड़ का प्रबन्ध
  3. वित्तीय लेखा रखना
  4. वित्तीय प्रतिवेदन
  5. अन्य कार्य।

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प्रश्न 6.
वित्तीय प्रबंध के कोई चार प्रशासनिक कार्य लिखिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के चार प्रशासनिक कार्य निम्न हैं

1. वित्तीय पूर्वानुसार-वित्तीय प्रबंधक को अपने उपक्रम में लक्ष्यों, विकास, योजनाओं एवं कार्यों की प्रकृति के अनुरूप वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना होता है।

2. वित्तीय नियोजन-वित्तीय पूर्वानुमानों के आधार पर वित्तीय प्रबंधक वित्तीय नियोजन का कार्य करता है। इसके अंतर्गत पूँजी की मात्रा व अवधि, वित्त के स्रोत, ऋण-अंशपूँजी अनुपात, लेखांकन का प्रारूप आदि के संबंध में निर्णय लिये जाते हैं।

3. वित्तीय नियंत्रण-वित्त प्रबंधक वित्त विभाग का प्रमुख अधिकारी होता है। किस विभाग को कितनी राशि स्वीकृत करना तथा कुल राशि का अनुमान लगाना आदि वित्त नियंत्रण संबंधी कार्य वित्त प्रबंधक को करना पड़ता है।

4. विभागों में समन्वय-उत्पादन की प्रत्येक क्रिया व विभाग से वित्त का प्रत्यक्ष संबंध रहता है। अतः वित्त प्रबंधक अन्य विभागों में वित्त के संबंध में एक समन्वयक का कार्य करता है ताकि प्रत्येक विभाग का बजट, सुदृढ़ ढंग से बनाया जा सके।

प्रश्न 7. वित्तीय नियोजन का महत्व लिखिए।
उत्तर:
एक उपक्रम एवं व्यवसाय के लिये वित्तीय नियोजन के महत्त्व को निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है

1. व्यवसाय का सफल प्रवर्तन- किसी भी व्यवसाय की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि, व्यवसाय को प्रारम्भ करने के पूर्व उसकी वित्तीय योजना उचित ढंग से बना ली जाये। व्यवसाय के प्रारम्भ के पूर्व ही व्यवसाय के आकार एवं सम्भावित विस्तार की योजना को ध्यान में रखकर वित्तीय नियोजन किया जाता है। इसके बिना अन्य योजनायें अधूरी रह सकती हैं।

2. व्यवसाय का कुशल संचालन व्यवसाय की प्रत्येक गतिविधियों के लिये वित्त की आवश्यकता पड़ती है। पर्याप्त वित्त के बिना किसी भी व्यवसाय का सफल संचालन नहीं किया जा सकता। व्यवसाय की स्थापना, विभिन्न सम्पत्तियों एवं सामग्रियों का क्रय, पारिश्रमिक का वितरण आदि कार्यों में वित्त की आवश्यकता पड़ती है। इन सभी की उचित व्यवस्था के लिये वित्तीय प्रबन्ध आवश्यक है।

3. व्यवसाय का विकास एवं विस्तार–व्यवसाय में अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिये अनेक प्रकार की विकास योजनायें बनानी पड़ती हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये व्यवसाय का अनुकूलतम स्तर तक विस्तार किया जाता है। सम्भावित विस्तार को ध्यान में रखकर वित्तीय योजनायें बनाई जा सकती हैं। इससे व्यवसाय के विकास एवं विस्तार के समय वित्तीय कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है।

4. व्यावसायिक तरलता सफल वित्तीय नियोजन के माध्यम से व्यवसाय में पर्याप्त मात्रा में तरल कोष (Liquid Fund) रखा जा सकता है। इससे अति व्यापार की स्थिति को दूर कर व्यवसाय की देनदारियों का समय-समय पर भुगतान कर अपनी शोधन क्षमता को बनाये रखा जा सकता है।

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प्रश्न 8.
वित्तीय प्रबंध का महत्व बताइए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध का महत्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होता है।

1. उपक्रम की सफलता का आधार-उपक्रम का स्तर छोटा हो या बड़ा, निर्माणी संस्था हो या सेवा देने वाली संस्था सभी की सफलता का मूल आधार वित्तीय प्रबंध का उचित नियोजन है। एक लाभ में चलने वाले उपक्रम को अकुशल वित्तीय प्रबंध चौपट कर सकता है।

2. विनियोक्ताओं के लिए महत्व-देश के आम लोग अपनी छोटी-छोटी बचतों को किसी कम्पनी या संस्थाओं में विनियोग करते हैं इस हेतु उन्हें वित्तीय प्रबंध का ज्ञान आवश्यक है, अन्यथा दलालों व, बिचौलियों की मदद लेकर कभी-कभी विनियोक्तागण परेशानी में पड़ जाते हैं।

3. वित्तीय संस्थाओं के लिये महत्व-वित्तीय संस्थाओं के लिये वित्तीय प्रबंध का विशेष महत्व है, क्योंकि किसी संस्था या व्यक्ति को ऋण देना या न देना इसके निर्णय हेतु वित्तीय प्रबंध का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है ताकि-धन की सुरक्षा व तरलता में सामन्जस्य बना रहे।

4. कर्मचारियों के लिये महत्व वित्तीय प्रबंध का कर्मचारियों के लिये प्रत्यक्ष महत्व है वित्तीय प्रबंध से संस्था का विकास होगा, जिसमें कर्मचारी भी अपने विकास की इच्छा रखते हैं, अत: अच्छे वित्तीय प्रबंध से कर्मचारियों को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय लाभ मिलते हैं।

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प्रश्न 9.
वित्तीय प्रबंध के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

1. अधिकतम लाभ की प्राप्ति – वित्तीय प्रबंध का प्रमुख उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है किन्तु लाभ के उद्देश्य के लिए यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि लाभ न्याय संगत हो, लाभ और उपयोगिता में सामंजस्य होना चाहिए तथा इसका मानक तैयार करना चाहिए।

2. अधिकतम प्रतिफल की प्राप्ति – इसका दूसरा उद्देश्य लागत तथा विनियोग द्वारा अधिकतम प्रतिफल की प्रप्ति करना है। जिससे प्रबंध के स्वामी, अंशधारी प्रबंधक कर्मचारी तथा श्रमिकों को अधिकतम लाभ दिया जा सके।

3. संपत्ति के मूल्य में वृद्धि – वर्तमान युग में लाभ को अधिक करने के स्थान पर संपत्ति को बढ़ाना वित्तीय प्रबंध का उद्देश्य माना जाता है।

4. न्यूनतम लागत पर वित्त का अंतरण – वित्तीय प्रबंध का मुख्य उद्देश्य न्यूनतम लागत पर संस्था को पर्याप्त वित्त दिलवाने से है। कोई भी संस्था वित्त के अभाव में तरक्की नहीं कर सकती है।

प्रश्न 10.
स्थायी पूँजी को प्रभावित करने वाले घटकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की मात्रा को निर्धारित करने वाले निम्न तत्व हैं

1. व्यवसाय की प्रकृति-स्थायी पूँजी की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति से प्रभावित होती है। इसमें दो तत्व निहित होते हैं। प्रथम, उपक्रम निर्माण कार्य में लगा है अथवा वितरण कार्य में। निर्माण कार्य में लगे व्यवसाय में अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है जबकि वितरण में लगे व्यवसाय में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

2. उपक्रम का आधार एवं संगठन-स्थायी पूँजी की मात्रा को निर्धारित करने में उपक्रम का आकार एवं संगठन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि उपक्रम बड़े पैमाने पर उत्पादन अथवा विक्रय का कार्य करता है तो अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अन्यथा कम।

3. उत्पादन प्रक्रिया की जटिलता-जिस उपक्रम में जितनी अधिक जटिल उत्पादन प्रक्रिया का प्रयोग होता है वह व्यवसाय उतना ही अधिक स्थायी पूँजी चाहता है, जबकि सरल उत्पादन प्रक्रिया की स्थिति में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

4. प्रारम्भिक व्यय-यदि कम्पनी की स्थापना के समय प्रवर्तकों के पारिश्रमिक, स्थापना, व्यय, पेटेण्ट आदि के क्रय पर अधिक व्यय किया जाता है तो इससे स्थायी पूँजी की आवश्यकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 11.
कार्यशील पूँजी को प्रभावित करने वाले घटकों (कारकों) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी की मात्रा को निम्न घटक प्रभावित करते हैं

1. व्यवसाय की प्रकृति–नियमित एवं निश्चित माँग वाले व्यवसायों में अनियमित एवं अनिश्चित माँग वाले व्यवसायों की अपेक्षाकृत कम कार्यशील पूँजी से काम चल जाता है। क्योंकि नियमित एवं निश्चित माँग होने से नगद प्रवाह बना रहता है तथा निश्चितता होने से स्कंध इत्यादि में अधिक विनियोग नहीं करना पड़ता है।

जिन व्यवसायों में मशीनीकरण की मात्रा कम व मानव श्रम की मात्रा अधिक होती है उन उद्योगों या व्यवसायों की अपेक्षा उन व्यवसायों में अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है जहाँ मशीनीकरण की मात्रा अधिक तथा मानवश्रम से कम काम लिया जाता है।

2. व्यवसाय का आकार–व्यवसाय या फर्म के आकार पर भी कार्यशील पूँजी की मात्रा निर्भर करती है। व्यवसाय का आकार जितना ही बड़ा होगा उतनी ही अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी क्योंकि बड़े व्यवसायों में स्थायी पूँजी अधिक होती है, जिसके लाभदायक उपयोग के लिए अधिक कार्यशील पूँजी का होना आवश्यक है।

3. उत्पादन प्रक्रिया यदि उत्पादन प्रक्रिया की सामान्य अवधि लम्बी है या उत्पादन प्रक्रिया जटिल है तो स्वाभाविक रूप से अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी क्योंकि उत्पादन प्रक्रिया जटिल या लम्बी होने पर कच्चे माल को निर्मित माल में बदलने में अधिक समय, अधिक भण्डारण व्यय, अधिक उपरिव्यय तथा अंततोगत्वा अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी।

4. रोकड़ की आवश्यकता रोकड़ शेष चालू सम्पत्तियों का एक भाग होता है अतः रोकड़ की आवश्यकता कार्यशील पूँजी की मात्रा को प्रभावित करती है। रोकड़ की आवश्यकता प्रायः मजदूरी, वेतन, कर, किराया, विविध व्यय तथा लेनदार इत्यादि को भुगतान के लिए पड़ती है। इन भुगतानों की राशि जितनी अधिक होगी कार्यशील पूँजी की राशि उतनी ही अधिक होगी।

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प्रश्न 12.
श्रेष्ठ वित्तीय योजना के चार लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक सुदृढ़ वित्तीय योजना में निम्नलिखित लक्षण होना चाहिए

1. सरलता-वित्तीय योजनाएँ सरलता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए बनायी जानी चाहिए। लेकिन सरलता के कारण कार्यक्षमता को समाप्त नहीं होने देना चाहिए।

2. पूर्णता-यह भी वित्तीय नियोजन की एक विशेषता है कि वित्तीय नियोजन में पूर्णता का गुण होना चाहिए।

3. मितव्ययिता-वित्तीय योजना में पूँजी प्राप्त करने व प्रतिभूतियों के निर्गमन के संबंध में किये जाने वाले व्ययों को न्यूनतम रखा जाना चाहिये।

4. लोचशीलता-किसी भी उद्योग को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए यह आवश्यक है कि उसके पूँजी ढाँचे में किसी भी प्रकार की कठोरता न हो बल्कि वह इस प्रकार का हो कि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर सफलतापूर्वक संचालन किया जा सके।

प्रश्न 13.
कार्यशील पूँजी की पर्याप्तता के पाँच लाभ लिखिए।
उत्तर:
कार्यशील पूंजी की पर्याप्तता के कुछ प्रमुख लाभ निम्न हैं

1. नगद छूट – पर्याप्त कार्यशील पूँजी के बल पर कम्पनी क्रय किये गये माल का भुगतान कर नगद छूट प्राप्त कर सकती है। इससे उत्पादन लागत में कमी आती है।

2. विक्रेताओं को तत्काल भुगतान संस्था अपने विक्रेताओं को समय पर भुगतान कर सकती है, जिससे उनसे नियमित रूप से कच्चा माल उचित मूल्य तथा सही समय पर प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती।

3. ऋण क्षमता एवं साख में वृद्धि – पर्याप्त कार्यशील पूँजी सुदृढ़ वित्तीय स्थिति का प्रतीक मानी जाती है। तीसरे पक्ष की दृष्टि में पर्याप्त कार्यशील पूँजी अच्छी शोधन क्षमता का प्रतीक होती है, अतः आवश्यकता पड़ने पर संस्था को तत्काल ऋण प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होती। तुरन्त ऋण प्राप्त करने की क्षमता तथा अच्छी साख के कारण संस्था का उत्पादन एवं व्यापारिक कार्य निरन्तर बिना किसी रुकावट के चलता रहता है।

4. पर्याप्त लाभों का वितरण – जब कम्पनी या संस्था में कार्यशील पूँजी की कमी रहती है तो पर्याप्त लाभ होने पर भी लाभांश का वितरण नहीं कर पाती। क्योंकि उस समय संचालकों की नीति लाभों के पुनर्विनियोग की होती है। अगर कम्पनी के पास कार्यशील पूँजी पर्याप्त मात्रा में होती है तो कम्पनी लाभ होने की स्थिति में अंशधारियों को अच्छे लाभांशों का वितरण कर सकती है।

5. बैंकों से ऋण प्राप्ति में सुविधा – पर्याप्त कार्यशील पूँजी ही वास्तव में व्यापारिक ऋणों के लिए एक उत्तम प्रतिभूति होती है। इस प्रकार कार्यशील पूँजी की पर्याप्तता के कारण बैंक ऋणों की प्राप्ति में भी सुविधा होती है।

प्रश्न 14.
लाभांश के निर्णय लेते समय किन-किन घटकों का प्रभाव पड़ता है ? कोई चार घटकों को बताइए।
उत्तर:
किसी भी व्यवसाय में उनके स्वामियों के लिये वहाँ की लाभांश नीति अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। सामान्यतः लाभांश नीति को संचालक निर्धारित करते हैं। किन्तु लाभांश नीति का निर्णय लेने के पूर्व वे कुछ वैधानिक प्रतिबंधों तथा अंशधारियों के दबाव से घिरे रहते हैं। क्योंकि लाभांश का निर्णय लेने के पूर्व संस्था की आर्थिक, सामाजिक स्थिति तथा राजनैतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। किसी उपक्रम में लाभांश का निर्णय (लाभांश नीति) को निम्न घटक प्रभावित करते हैं।

1. लाभ की मात्रा (Profit Volume) – किसी कंपनी में लाभांश की मात्रा को सर्वाधिक प्रभाव डालने वाला घटक लाभ की मात्रा है अर्थात अधिक लाभ लेने पर अधिक लाभांश तथा कम लाभ होने पर कम लाभांश का निर्णय लेना संचालकों की मजबूरी होगी। अतः लाभांश के निर्णय को लाभ की मात्रा सर्वाधिक प्रभावित करती है।

2. लाभांश की प्रवृत्ति (Trend of dividend) – लाभांश का निर्णय लेने के पूर्व यह देखना आवश्यक है कि गत वर्षों में कितना प्रतिशत लाभ दिया जाता रहा है क्योंकि अचानक कम दर पर लाभांश घोषित करने का अर्थ अंशधारियों को नाराज करना होगा। इसी के साथ समान स्तर के अन्य प्रतिस्पर्धी व्यवसाय द्वारा लाभांश की दर क्या घोषित की गई है। इसका ध्यान रखकर भी लाभांश की दर घोषित की जाती है क्योंकि अन्य समकक्ष व्यवसाय से कम लाभांश देने का आशय है व्यवसाय की कमजोरी या कम लाभ अर्जन करना, इससे व्यवसाय की ख्याति (Goodwill) पर विपरीत असर पड़ता है।

3. भावी वित्तीय आवश्यकताएँ (Financial needs in future)-लाभांश निर्णय को निर्धारित करने के पूर्व यह विचार करना आवश्यक होगा कि उपक्रम को अपने विस्तार एवं विकास के लिये कितनी पूँजी की आवश्यकता होगी तथा लाभ का कितना भाग पुनर्विनियोजित किया जायेगा। अन्य शब्दों में भविष्य में अधिक नवीन पूँजी की आवश्यकता होगी तब लाभांश दर कम तथा आवश्यकता कम रहने पर ऊँचे दर पर लाभांश दिया जा सकता है।

प्रश्न 15.
एक अच्छी पूँजी संरचना में क्या – क्या गुण होने चाहिए ?
उत्तर:
एक कम्पनी को इस प्रकार की पूँजी संरचना का निर्माण करना चाहिए जिससे कम्पनी के उद्देश्यों की सफलतापूर्वक पूर्ति हो सके। इसलिए कम्पनी को आदर्श पूँजी संरचना की स्थिति को चुनना चाहिए। एक पूँजी संरचना सभी कम्पनियों के लिए सभी समयों में आदर्श नहीं हो सकती। सामान्य तथा आदर्श पूँजी-संरचना में निम्न गुण होने चाहिए

1.सरलता-कम्पनी का पूँजी ढाँचा प्रारम्भ में एकदम सरल होना चाहिए। सरलता का तात्पर्य यह है कि प्रारम्भ में कम प्रकार की प्रतिभूतियों से धन संग्रह किया जाए। यदि प्रारम्भ में ही अनेक प्रकार से धन एकत्र किया जाता है तो उसमें नये प्रस्तावों के प्रति विनियोक्ताओं के मन में संदेह पैदा हो जाता है।

2. लोचपूर्ण-पूँजी ढाँचा इस प्रकार का होना चाहिए जिससे व्यवसाय की बढ़ती हुई आवश्यकताओं के लिये भविष्य में भी वित्त प्राप्त किया जा सके । कम पूँजी की आवश्यकता होने पर पूँजी अथवा कोषों को कम करना भी संभव होना चाहिये।

3. पूर्ण उपयोग-संस्था में उचित पूँजीकरण की स्थिति होनी चाहिये न तो अल्प-पूँजीकरण हो और न अति-पूँजीकरण । जब संस्था में उचित पूँजीकरण होता है तब संस्था के पास पूँजी साधन बेकार नहीं पड़े रहते हैं तथा उनका अच्छा उपयोग होता है।

4. पर्याप्त तरलता-उपक्रम को स्थिर एवं तरल सम्पत्तियों का एक उचित अनुपात निर्धारित करना चाहिये। तरल सम्पत्तियों से तात्पर्य चल सम्पत्तियों से है, जैसे-रोकड़, बैंक, चालू विनियोग तथा प्राप्तियाँ आदि। कम्पनी की सम्पत्तियों का मिश्रण इस प्रकार होना चाहिये जिससे संस्था के पास सदैव तरलता बनी रहे। किसी भी संस्था को अपनी पूँजी का कुछ भाग तरल रूप में अवश्य रखना चाहिये।

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प्रश्न 16.
अल्प-पूँजीकरण से अंशधारियों पर क्या प्रभाव पड़ता है ? कोई तीन प्रभावों को बताइए।
उत्तर:
कम्पनी के अंशधारियों पर निम्न प्रभाव पड़ते हैं

  1. अधिक लाभांश (High dividend) – अल्प-पूँजीकृत कम्पनी के अंशधारियों को नियमित रूप से ऊँचे लाभांश प्राप्त होते हैं।
  2. पूँजीगत लाभ (Capital gains)- अंशधारियों के अंशों का बाजार मूल्य बढ़ जाता है अत: अंशों को बेचने पर उन्हें पूँजीगत लाभ प्राप्त होता है।
  3. ऋण प्राप्ति में सुविधा (Easy in getting loan) – यदि अंशधारियों को ऋण लेने की आवश्यकता होती है तो इन अंशों की जमानत पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 17
पूँजी संरचना निर्णय निश्चित रूप से जोखिम आय का आशावादी संबंध है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
पूँजी संरचना निश्चित रूप से जोखिम आय का आशावादी संबंध है उसके निम्न कारण हैं

1. ऋण समता की तुलना में सस्ता स्रोत-ऋण पूँजी की लागत समता पूँजी से कम होती है। इसका कारण है ऋणदाताओं द्वारा व्यवसाय में किए गए विनियोग का कम जोखिम होना। दूसरी ओर, समता अंश पूँजी पर लाभांश की दर निश्चित न होते हुए भी यह सर्वाधिक महँगी पूँजी होती है।

2. समता की तुलना में ऋण जोखिमपूर्ण होता है-ऋण पूँजी व्यवसाय के लिए सर्वाधिक जोखिमपूर्ण होती है क्योंकि ऋणदाता ब्याज व मूल राशि की वापसी न होने पर न्यायालय में कंपनी के समापन के लिए प्रार्थना दायर कर सकते हैं । समता अंशधारियों को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं है इसलिए इनसे कंपनी को कोई जोखिम नहीं होता है।

3. ऋण एक उधार कोष है जबकि समता स्वामित्व कोष है-ऋण एक दायित्व है जिस पर ब्याज का भुगतान करना ही पड़ता है चाहे कंपनी को लाभ हो या न हो। दूसरी तरफ, समता स्वामित्व कोष है जिस पर लाभांश का भुगतान कंपनी के लाभों पर निर्भर करता है।

प्रश्न 18.
पूँजी बजटिंग निर्णय एक व्यवसाय के वित्तीय भाग्य को बदलने में सामर्थ्यवान होता है। क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
पूँजी बजटिंग निर्णय कंपनी का भाग्य बदल सकता है। यह निर्णय उन संपत्तियों के ध्यानपूर्वक चयन से संबंधित होता है जिसमें फर्मों द्वारा अपने कोषों का निवेश किया जायेगा। एक फर्म के पास कोषों को निवेश करने के लिए कई विकल्प होते हैं, परंतु फर्म को अधिक उपयुक्त विकल्प का चयन करना पड़ता है जिससे फर्म को अधिकतम लाभ होगा। पूँजी बजटिंग एक व्यवसाय के वित्तीय भाग्य को निम्न तरीकों से बदल सकता है और इसका जवाब भी हाँ है

1. जोखिम-स्थायी पूँजी निर्णयों में एक बड़ी राशि लगी होती है जो कंपनी के लिए एक बहुत बड़ा जोखिम भी होता है क्योंकि लाभ लंबे समय के बाद मिलेगा। अतः कंपनी का जोखिम भी लंबे समय तक रहेगा जब तक लाभ आना शुरू न हो जाय।

2. दीर्घावधि विकास-पूँजी बजटिंग निर्णय कंपनी के दीर्घावधि विकास को प्रभावित करती है। जो पूँजी दीर्घ अवधि वाली संपत्तियों में निवेश की गई है उसे भविष्य में वापस लाती है एवं कंपनी की भविष्य की योजनाएँ तथा विकास केवल इसी निर्णय पर निर्भर करती है।

3. अपरिवर्तित निर्णय-पूँजी बजटिंग निर्णय रात भर में परिवर्तित नहीं हो सकता। इस निर्णय में बहुत बड़ी राशि लगी होती है, और अगर हम कोई परिवर्तन करते हैं तो इस परिवर्ततन का परिणाम होगा बड़ा नुकसान जिसे हम कोष की बर्बादी कह सकते हैं । अतः ऐसे निर्णय सोच-विचारकर सुनियोजित तथा सभी दृष्टिकोणों से इनका मूल्यांकन करने के पश्चात् लेने चाहिए अन्यथा इसके बहुत घातक परिणाम होंगे।

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प्रश्न 19.
स्थायी पूँजी की आवश्यकता क्यों होती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है –

1. व्यवसाय की प्रकृति (Nature of business) – स्थायी पूँजी की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति से प्रभावित होती है। इसमें दो तत्त्व निहित होते हैं। प्रथम, उपक्रम निर्माण कार्य में लगा है अथवा वितरण कार्य में। निर्माण कार्य में लगे व्यवसाय में अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है जबकि वितरण में लगे व्यवसाय में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है। द्वितीय, उत्पादन अथवा वितरण सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का किया जाता है तो कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है और उद्योगों से संबंधित वस्तुओं का उत्पादन अथवा वितरण किया जाता है तो अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

2. उपक्रम का आधार एवं संगठन (Size and organization of the business) – स्थायी पूंजी की मात्रा को निर्धारित करने में उपक्रम का आकार एवं संगठन अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। यदि उपक्रम बड़े पैमाने पर उत्पादन अथवा विक्रय का कार्य करता है तो अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अन्यथा कम। उपक्रम निगम पद्धति पर संगठित होता है तो अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होगी अन्यथा कम।

3. उत्पादन प्रक्रिया की जटिलता (Complexity of process of production) – जिस उपक्रम में जितनी अधिक जटिल उत्पादन प्रक्रिया का प्रयोग होता है वह व्यवसाय उतना ही अधिक स्थायी पूँजी चाहता है, जबकि सरल उत्पादन प्रक्रिया की स्थिति में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

4. प्रारम्भिक व्यय (Preliminary expenses) – यदि कम्पनी की स्थापना के समय प्रवर्तकों के पारिश्रमिक, स्थापना, व्यय, पेटेण्ट आदि के क्रय पर अधिक व्यय किया जाता है तो इससे स्थायी पूँजी की आवश्यकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 20.
पूँजी बजटिंग से क्या आशय है ? उसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पूँजी बजटिंग से आशय – स्थायी संपत्तियों में विनियोग संबंधी निर्णय लेना ही पूँजी बजटिंग . कहलाता हैं। इन्हें पूँजीगत व्यय निर्णय भी कहा जाता है। पूँजी बजटिंग निर्णय अधिक जोखिमपूर्ण होते हैं क्योंकि एक तो ये निर्णय दीर्घ अवधि के लिए होते हैं इसलिए इनके अंतर्गत कई वर्षों के संभावित लाभों का पूर्वानुमान लगाना पड़ता है। जो कि गलत भी हो सकता है। दूसरा, इनमें बड़ी मात्रा में विनियोग होने के कारण एक बार लिए गए निर्णय में परिवर्तन करना कठिन हो जाता है।रिचर्ड्स एवं ग्रीनला के अनुसार – “पूँजी बजटिंग का अभिप्राय साधारणतः ऐसे विनियोग करने से है जिनसे लंबे समय तक आय प्राप्त होती है।”
पूँजी बजटिंग की विशेषताएँ-पूँजी बजटिंग की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. पूँजी बजटिंग निर्णयों की प्रकृति भारी विनियोग की होती है।
  2. दीर्घकालीन लाभदायकता में वृद्धि होती है।
  3. निर्णयों में जोखिम की मात्रा अधिक रहती है।
  4. लिए गए निर्णयों को बदलने में कठिनाई आती है।

प्रश्न 21.
स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी में अंतर बताइए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी में अंतर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 9 वित्तीय प्रबन्ध IMAGE - 2

प्रश्न 22.
स्थायी पूँजी को प्रभावित करने वाले तत्व लिखिए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की मात्रा को निर्धारित करने वाले निम्न तत्व हैं

1. व्यवसाय की प्रकृति (Nature of business) – स्थायी पूँजी की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति से प्रभावित होती है। इसमें दो तत्व निहित होते हैं । प्रथम, उपक्रम निर्माण कार्य में लगा है अथवा वितरण कार्य में। निर्माण कार्य में लगे व्यवसाय में अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है जबकि वितरण में लगे व्यवसाय में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है। द्वितीय, उत्पादन अथवा वितरण सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का किया जाता है तो कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है और उद्योगों से संबंधित वस्तुओं का उत्पादन अथवा वितरण किया जाता है तो अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है

2. उपक्रम का आधार एवं संगठन (Size and organization of the business)- स्थायी पूँजी की मात्रा को निर्धारित करने में उपक्रम का आकार एवं संगठन अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। यदि उपक्रम बड़े पैमाने पर उत्पादन अथवा विक्रय का कार्य करता है तो अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अन्यथा कम। उपक्रम निगम पद्धति पर संगठित होता है तो अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होगी अन्यथा कम।

3. उत्पादन प्रक्रिया की जटिलता (Complexity of process of production)- जिस उपक्रम में जितनी अधिक जटिल उत्पादन प्रक्रिया का प्रयोग होता है वह व्यवसाय उतना ही अधिक स्थायी पूँजी चाहता है, जबकि सरल उत्पादन प्रक्रिया की स्थिति में कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

4. प्रारम्भिक व्यय (Preliminary expenses)- यदि कम्पनी की स्थापना के समय प्रवर्तकों के पारिश्रमिक, स्थापना, व्यय, पेटेण्ट आदि के क्रय पर अधिक व्यय किया जाता है तो इससे स्थायी पूँजी की आवश्यकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 23.
अति पूँजीकरण एवं अल्प-पूँजीकरण में अंतर बताइए।
उत्तर:
अति-पूँजीकरण एवं अल्प-पूँजीकरण में अंतरक्र –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 9 वित्तीय प्रबन्ध IMAGE - 3
प्रश्न 24.
जलयुक्त पूँजी किसे कहते हैं ? यह क्यों उत्पन्न होती है ? इसे समाप्त करने के लिए आप क्या कदम उठाएँगे?
उत्तर:
आशय (Meaning) – “जब कम्पनी की सम्पत्तियों का वास्तविक मूल्य उसके पुस्त मूल्य (Book value) से कम हो जाता है तो उसे जलयुक्त पूँजी कहते हैं।”
कभी-कभी प्रवर्तन के समय प्रवर्तकों एवं अन्य विक्रेताओं के द्वारा अंशों के बदले ऐसी सम्पत्ति हस्तांतरित कर दी जाती है जिसका उत्पादक मूल्य काफी कम रहता है। फलतः कम्पनी में पुस्त मूल्य तो रहता है किन्तु वास्तविक सम्पत्ति कम हो जाती है। स्थायी सम्पत्ति के अतिरिक्त दोषपूर्ण पेटेण्ट, साख प्रवर्तन एवं सेवाओं के कारण भी यह स्थिति निर्मित हो जाती है।

जैसे किसी कम्पनी की सम्पत्ति का पुस्त मूल्य 1,00,000 रु. है तथा उस सम्पत्ति का वास्तविक बाजार मूल्य या उत्पादकता 70,000 रु. है तब ऐसी स्थिति को जलयुक्त पूँजी कहा जायेगा।द्रवित पूँजी के कारण (Causes of Watered Capital) – किसी कम्पनी में द्रवित पूँजी निम्न कारणों से हो जाती है

1. ऊँची दरों पर सम्पत्तियों का क्रय (Purchase of assets at high rates) व्यापार में यदि सम्पत्तियों का क्रय ऊँची दर पर किया जाये तो इससे द्रवित पूँजी का उत्पन्न होना स्वाभाविक होता है।

2. दोषपूर्ण ह्रास नीति (Defective depreciation policy) – यदि कम्पनी की ह्रास कोष नीति दोषपूर्ण है तथा आवश्यकता से कम ह्रास कोष की व्यवस्था की जाती है तब द्रवित पूँजी उत्पन्न हो जाती है ।

3.प्रवर्तकों को अधिक पारिश्रमिक (More remuneration to promotors) – कम्पनी के समामेलन के समय यदि प्रवर्तकों द्वारा अधिक पारिश्रमिक की माँग की जाती है या अधिक पारिश्रमिक का भुगतान कर दिया जाता है तो इससे द्रवित पूँजी उत्पन्न हो जाती है।

4. अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible assets)- अमूर्त सम्पत्तियाँ जैसे-ख्याति, कॉपीराइट्स, पेटेण्ट, ट्रेडमार्क आदि की उपयोगिता कभी-कभी बाद में कम हो जाती है जबकि चिट्ठे में उसका मूल्य पूर्व की भाँति रहता है इससे भी द्रवित पूँजी की मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 25.
अति-पूँजीकरण के प्रमुख कारण बतलाइए।
उत्तर:
अति-पूँजीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. अधिक प्रवर्तन व्यय-यदि किसी कम्पनी के निर्माण के समय अत्यधिक अथवा अनुचित प्रवर्तन व्यय किये जाते हैं तो वे आगे चलकर अति-पूँजीकरण को जन्म देते हैं। प्रवर्तन व्यय कम्पनी के व्यापार के अनुकूल होना चाहिए। जब पूँजी की राशि अनुमानित आय (अर्जित होने वाली) से अधिक निर्धारित कर ली जाती है तो ऐसी स्थिति अति-पूँजीकरण की होती है।
2. अधिक पूँजी का निर्गमन—जब किसी कम्पनी में आवश्यकता से अधिक पूँजी का निर्गमन किया जाता है तब कम्पनी के पास आवश्यकता से अधिक रकम एकत्रित हो जाती है तथा उसका लाभपूर्ण उपयोग न करने पर अति-पूँजीकरण की स्थिति निर्मित हो जाती है।
3. प्रवर्तन के समय आय का अधिक अनुमान–यदि किसी कम्पनी के प्रवर्तन के समय कम्पनी द्वारा अर्जित की जाने वाली आय का अधिक अनुमान लगाया जाता है तो कम्पनी में अति-पूँजीकरण का कारण बनता है। जब पूँजीकरण की राशि अधिक निर्धारित कर ली जाती है तथा संस्था उनके अनुरूप आय अर्जित नहीं करती तो यह स्थिति अति-पूँजीकरण की होती है।
4. स्फीति काल में कम्पनी का निर्माण यदि किसी कम्पनी का निर्माण स्फीति काल में किया जाता है तो उस कम्पनी में अति-पूँजीकरण की स्थिति पैदा हो सकती है। स्फीति काल में सभी सम्पत्तियों को खरीदना महँगा पड़ता है। जबकि वे भविष्य में अधिक लाभप्रद नहीं होती हैं कि उनके मूल्य की तुलना में वे लाभ कम देती हैं अतः जैसे ही स्फीति काल समाप्त होता है उपक्रम में अति-पूँजीकरण की स्थिति निर्मित हो जाती है।

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प्रश्न 26.
कार्यशील पूँजी के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी मुख्यतः दो प्रकार की होती है.
1. नियमित अथवा स्थायी कार्यशील पूंजी (Regular or fixed working capital)-कुछ कार्यशील पूँजी होती है जिसकी आवश्यकता संपूर्ण वर्ष भर लगातार होती है। ऐसी पूँजी की व्यवस्था स्थायी रूप से दीर्घकालीन ऋण से की जाती है। नियमित कार्यशील पूंजी की आवश्यकता न्यूनतम स्टॉक बनाये रखने, बैंक में न्यूनतम राशि रखने, व्यापार की मरम्मत, रख-रखाव, बिजली, वेतन, शक्ति आदि के व्ययों को करने के लिए पड़ती है। व्यवसाय के सामान्य संचालन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। इसी पूँजी से व्यवसाय का संचालन तथा व्यवस्था को आगे बढ़ाया जाता है।

2. मौसमी अथवा परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी (Seasonal or variable working capital)-यह एक ऐसी पूँजी है जिसका उपयोग वर्ष में किसी निश्चित मौसम में ही किया जाता है। साथ ही यह व्यय परिवर्तनशील होता है। इसलिए इसे मौसमी या परिवर्तनशील कार्यशील पूँजी कहा जाता है। जैसे-सर्दी के पूर्व गर्म कपड़े या ऊन खरीदने के लिए, बरसात के पूर्व छाता या बरसाती खरीदने के लिए आदि।

जिस वर्ष अधिक बरसात होती है उस वर्ष बरसाती या छाता अधिक बिकता है अतः पूँजी इसी अनुपात में परिवर्तनशील होती है। मौसमी कार्यशील पूँजी अल्पकालीन होती है। अतः इसकी व्यवस्था अल्पकालीन ऋणों द्वारा पूरी की जा सकती है।

प्रश्न 27.
वित्तीय नियोजन की सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
वित्तीय नियोजन व्यवसाय की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है किन्तु विभिन्न कारणों से वित्तीय नियोजन की सफलता में बाधा पहुँचता है। वित्तीय नियोजन की प्रमुख सीमायें निम्नांकित हैं

1. पूर्वानुमानों पर आधारित (Based on forecasts) वित्तीय नियोजन प्रायः भविष्य की गर्त में देखता है भविष्य की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पूर्वानुमान लगाया जाता है। भविष्य सदैव अनिश्चित रहता है अतः इस अनिश्चितता के कारण कभी-कभी पूर्वानुसार मान असफल हो जाते हैं जिससे वित्तीय नियोजन असफल हो जाता है।

2. समन्वय का अभाव (Lack of coordination) – वित्तीय नियोजन में संस्था के बाहर के अधिकारियों में समन्वय का होना आवश्यक है। किन्तु कभी-कभी अच्छा समन्वय न रहने से अच्छी-अच्छी वित्तीय योजना भी असफल हो जाती है तथापित यह दोष अधिकारियों का है।

3. परिवर्तित दशाएँ (Changed conditions) – प्रत्येक दिन कुछ न कुछ नया हो जाता है अर्थात् आज जो स्थिति है व कल रहेंगे या नहीं आवश्यक नहीं जबकि वित्तीय नियोजन आज की स्थिति को आधार मानकर किया जाता है। परिस्थितियाँ बदल जाने पर अच्छा से अच्छा वित्तीय नियोजन असफल हो जाता है।

4. मानसिक सीमाएँ (Mental limitations) – वित्तीय योजना बौद्धिक श्रेष्ठता पर निर्भर करती है। अतः वित्तीय प्रबंधकों में अपेक्षित योग्यता न रहने पर भी वित्तीय योजना का सही रूपांकन नहीं हो पाता।

प्रश्न 28.
पूँजी बजटिंग क्या है ? इसके तीन महत्व बताइए।
उत्तर:
पूँजी बजटिंग का अर्थ-स्थायी संपत्तियों में विनियोग संबंधी सभी निर्णय पूँजी बजटिंग
कहलाते हैं।
पूँजी बजटिंग का महत्व-

  1. लाभप्रदत्ता को निर्धारित करना।
  2. भारी विनियोगों से संबंधित।
  3. जोखिम के स्वरूप को प्रभावित करना।
  4. दीर्घ अवधि विकास एवं प्रभाव अर्थात् यह ऐसे निर्णय हैं जिनका दीर्घ अवधि विकास पर प्रभाव पड़ता है। दीर्घ अवधि संपत्ति में लगाई गई पूँजी पर भविष्य में लाभ प्राप्त होगा। इसका व्यवसाय में आने वाले समय की संभावनाओं एवं भविष्य पर प्रभाव पड़ता है।
  5. लाभों के पूर्वानुमान पर आधारित।
  6. स्थायी निर्णय अर्थात् एक बार लिए गए निर्णयों को पलटने से भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 29.
वर्णन कीजिए कि क्या निम्नलिखित वस्तुओं का निर्माण करने वाले व्यवसाय की कार्यशील पूँजी आवश्यकता कम है या अधिक उत्तर स्पष्ट कीजिए

  1. चीनी
  2. मोटरकार
  3. लोकोमोटिव
  4. ब्रेड
  5. कूलर
  6. फर्नीचर।

उत्तर:

  1. चीनी-कार्यशील पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी क्योंकि परिचालन चक्र लंबा होता है।
  2. मोटरकार-कार्यशील पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी क्योंकि परिचालन चक्र लंबा होगा।
  3. लोकोमोटिव- कार्यशील पूँजी की आवश्यकता कम होगी क्योंकि परिचालन चक्र छोटा होता है।
  4. ब्रेड-कार्यशील पूँजी की आवश्यकता कम होगी क्योंकि इसमें शीघ्र नगद प्रवाह होता है।
  5. कूलर- कार्यशील पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है क्योंकि यह मौसमी उत्पादन है।
  6. फर्नीचर-कार्यशील पूँजी की आवश्यकता कम होती है क्योंकि स्टॉक का अनुरक्षण नहीं करना पड़ता।

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प्रश्न 30.
अति-पूँजीकरण से कम्पनी पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
अतिपूँजीकरण से कम्पनी पर निम्न प्रभाव पड़ता है

1. ख्याति की हानि–अति-पूँजीकृत कम्पनी के अंशों का वास्तविक मूल्य उनके पुस्तकीय मूल्य से कम हो जाता है तथा लाभांश की दर कम हो जाती है जिससे कम्पनी की ख्याति को हानि पहुँचती है।

2. पूँजी प्राप्ति में कठिनाई अति-पूँजीकृत कम्पनी के बाजार में साख कम हो जाती है तथा लाभांश की मात्रा कम हो जाती है। इससे कोई भी विनियोक्ता ऐसी कम्पनी में विनियोग नहीं करना चाहता है। परिणामस्वरूप पूँजी प्राप्त करने में कठिनाई होती है।

3. ऋण प्राप्ति में कठिनाई अति-पूँजीकरण की स्थिति में कम्पनी की आय कम हो जाने से इनके कोष कम हो जाते हैं जिससे अन्य वित्तीय संस्थाएँ भी इन कम्पनियों को ऋण देने में संकोच करती हैं। इस प्रकार अति-पूँजीकरण की स्थिति में कम्पनियों को ऋण प्राप्ति में कठिनाई होती है।

4. कृत्रिम ऊँची लाभ दर-अति-पूँजीकृत कम्पनी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए हिसाब-किताब में गड़बड़ी करके ऊँचे लाभांश की घोषणा करती है। लाभांश पूँजी में से भी दे दिया जाता है। यह गलत नीति आगे चलकर अधिक घातक सिद्ध होती है।

प्रश्न 31.
एक कम्पनी के पूँजी ढाँचे के चयन को निर्धारित करने वाले किन्हीं चार घटकों को समझाइए।
अथवा
पूँजी ढाँचे को प्रभावित करने वाले घटकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
एक कम्पनी के पूँजी ढाँचे को प्रभावित करने वाले कोई दो घटक लिखिए।
उत्तर:
पूँजी ढाँचे को निर्धारित करने वाले तत्व (Factors determining the Capital Structure of a Company) – एक कम्पनी की पूँजी संरचना को निर्धारित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं

1. आय की स्थिरता (Stability of Earnings) – जिन कंपनियों की आय में लगातार स्थिरता बनी रहती है वे स्थायी वित्तीय व्ययों (जैसे ब्याज का भुगतान) का भुगतान आसानी से कर सकती है। अतः ऐसी कंपनियों को सस्ते वित्त स्रोत का लाभ उठाते हुए वित्त की व्यवस्था ऋण पूँजी से करनी चाहिए। इसके विपरीत, जिन कंपनियों की आय में अस्थिरता रहती है उन्हें ऋण पूँजी निर्गमित करने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए। ऐसी स्थिति में ब्याज व मूलधन के भुगतान में कठिनाई आ सकती है जिसके परिणामस्वरूप कम्पनी का समापन भी हो सकता है अतः कहा जा सकता है कि आय कि स्थिरता एवं ऋण पूँजी के प्रयोग में धनात्मक संबंध (Positive relation) है।

2. संपत्ति ढाँचा (Assets Structure) – संपत्ति ढाँचे का अभिप्राय कुल संपत्तियों में स्थायी एवं अस्थायी संपत्तियों के अनुपात से है। जिन कंपनियों में स्थायी संपत्तियाँ अधिक होती हैं वे अधिक ऋण पूँजी प्राप्त कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि स्थायी संपत्तियों को प्रतिभूति (Security) के रूप में रखकर ऋण आसानी से लिया जा सकता है। अतः कहा जा सकता है कि पूँजी ढाँचे के निर्माण में संपत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है।

3. व्यवसाय का आकार (Size of Business) – जिन कंपनियों के व्यवसाय का आकार बड़ा होता है वे प्रायः अनेक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली (Diversified) होती हैं जिसके कारण वे लाभ की स्थिति में रहती है। यही कारण है कि बड़ी कंपनियाँ अपेक्षाकृत आसान शर्तों पर दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करने में समर्थ रहती है। इसके विपरीत, छोटे आकार वाली कंपनियों को दीर्घकालीन ऋण लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

4. ऋण भुगतान क्षमता (Debt Service Capacity) – एक कंपनी की ऋण भुगतान क्षमता जितनी अधिक होती है वह उतनी ही अधिक ऋण पूँजी का प्रयोग करने में सक्षम होती है। ऋण भुगतान क्षमता का अनुमान ब्याज व कर से पूर्व आय (Earning Before Interest and Taxes-EBIT) व ऋणों पर ब्याज के अनुपात से लगाया जाता है। अतः ऋण भुगतान क्षमता एवं पूँजी के प्रयोग में सीधा संबंध है।

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प्रश्न 32.
अति-पूँजीकरण को ठीक करने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
अति-पूँजीकरण को ठीक करने के उपाय (Remedial Measures for Over capitalization)
जब किसी भी व्यावसायिक कंपनी में अति-पूँजीकरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो उसे ठीक करना बड़ा कठिन होता है। जिन कंपनियों का निर्माण ही प्रवर्तकों के छल-कपट पूर्ण व्यवहार से होता है, उनमें अतिपूँजीकरण की स्थिति को ठीक करना अधिक कठिन होता है। अति-पूँजीकरण की स्थिति को ठीक करने के लिए निम्न उपाय बताये जाते हैं
1. बन्धक ऋणों में कमी (Reduction in bonded debts) – अति-पूँजीकरण की समस्या का एक उपचार यह है कि पूँजी कम करने के लिए बंधक ऋणों को कम किया जाना चाहिए। ऐसा करने से ब्याज का खर्च कम हो जाता है और लाभों में वृद्धि हो जाती है।

2. ऋणपत्रों पर दिये जाने वाले ब्याज में कमी (Reduction in the Interest rate payable on debentures) – इस समस्या से ग्रसित कम्पनी की आय बढ़ाने का एक सुझाव यह भी है कि ऋणपत्रों की ब्याज दर में कमी की जानी चाहिए तथा ऊँची ब्याज दर वाले ऋणपत्रों में परिवर्तित कर देना चाहिए। यदि ऋणपत्रधारी तैयार हों तो बट्टे पर नये ऋणपत्र भी जारी किये जा सकते हैं।

3. ऊँची लाभांश दर वाले पूर्वाधिकार अंशों का विमोचन (Reduction of high dividend preference shares)….जो कम्पनियाँ अति-पूँजीकरण की समस्या से ग्रसित हैं अगर उनमें ऊँची लाभांश दर वाले संचयी पूर्वाधिकार अंश हों तो उनका विमोचन कर देना चाहिए। ऐसा करने से समता अंशधारियों को मिलने वाली आय बढ़ जायेगी और समता अंशों का वास्तविक मूल्य पुस्तकीय मूल्य के बराबर या अधिक हो जायेगा।

4. अंशों की संख्या कम करना (Reducing number of shares) अनेक बार अति-पूँजीकरण को समस्या कम्पनी के अंशों की संख्या कम करके भी ठीक की जा सकती है। इससे प्रति अंश आय बढ़ने से बाजार में मनोवैज्ञानिक आधार पर कम्पनी की साख बढ़ती है और अंशों के मूल्य में सुधार होता है तथा अति-पूँजीकरण की समस्या ठीक हो जाती है।

प्रश्न 33.
वित्तीय नियोजन के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय नियोजन विभिन्न अवधि के लिए उनकी आवश्यकता के अनुरूप तैयार किये जाते हैं। सामान्य नियोजन की भाँति वित्तीय नियोजन भी निम्न तीन प्रकार के (तीन अवधियों के लिए) होते हैं

1. अल्पकालीन वित्तीय नियोजन (Short-term financial planning) – सामान्यतया एक व्यवसाय में एक वर्ष की अवधि के लिए जो वित्तीय योजना बनाई जाती है, वह अल्पकालीन वित्तीय नियोजन कहलाती है। अल्पकालीन वित्तीय योजनाएँ, मध्यमकालीन तथा दीर्घकालीन योजनाओं के ही भाग होते हैं। अल्पकालीन वित्तीय योजना में प्रमुख रूप से कार्यशील पूँजी के प्रबंध की योजना बनाई जाती है तथा उसको विभिन्न अल्पकालीन साधनों से वित्तीय व्यवस्था करने का कार्य किया जाता है। विभिन्न प्रकार के बजट एवं प्रक्षेपित (Project) लाभ-हानि विवरण कोषों की प्राप्ति एवं उपयोग का विवरण तथा चिट्ठा बनाये जाते हैं।

2. मध्यमकालीन वित्तीय नियोजन (Medium-term financial planning) – एक व्यवसाय में वर्ष से अधिक तथा पाँच वर्ष से कम अवधि के लिए जो वित्तीय योजना बनाई जाती है, उसे मध्यमकालीन वित्तीय नियोजन कहते हैं।

मध्यमकालीन वित्तीय योजना संपत्तियों के प्रतिस्थापन, रख-रखाव, शोध एवं विकास कार्यों को चलाने, अल्पकालीन उत्पादन कार्यों की व्यवस्था करने तथा बढ़ी हुई कार्यशील पूँजी की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाई जाती है।

3. दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन (Long-term financial planning) – एक व्यवसाय में पाँच अथवा अधिक अवधि के लिए बनाई गई वित्तीय योजना दीर्घकालीन वित्तीय योजना कहलाती है। दीर्घकालीन वित्तीय योजना विस्तृत दृष्टिकोण पर आधारित योजना होती है जिसमें संस्था के सामने आने वाली दीर्घकालीन समस्याओं के समाधान हेतु कार्य किया जाता है।

इस योजना में संस्था के दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु पूँजी की मात्रा, पूँजी ढाँचे, स्थायी संपत्तियों के प्रतिस्थापना, विकास एवं विस्तार हेतु अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने आदि को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 34.
कार्यशील पूँजी का क्या आशय है ? इसकी गणना कैसे की जाती है ? कार्यशील पूँजी की आवश्यकता को निर्धारित करने वाले पाँच महत्वपूर्ण निर्धारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी का अर्थ-जिस प्रकार वित्तीय प्रबंध में पूँजी शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न लिया जाता है उसी प्रकार कार्यशील पूँजी का प्रयोग व्यावसायिक जगत में भिन्न-भिन्न तरह से करते हैं।

व्यवसाय के संचालन एवं रख-रखाव में जिस पूँजी का प्रयोग किया जाता है उसे सामान्यतः कार्यशील पूँजी कहा जाता है।
मीड,मैल्ट एवं फील्ड के अनुसार-“कार्यशील पूँजी से आशय चल-संपत्ति के योग से है।’ जे.एस.मिल के अनुसार-“चल संपत्तियों का योग ही व्यवसाय की कार्यशील पूँजी है।”

कार्यशील की गणना –

1. सकल कार्यशील पूँजी- इसका अभिप्राय सभी चालू संपत्तियों जैसे नगद, प्राप्य बिल, पूर्वदत्त व्यय स्टॉक इत्यादि में निवेश करने से है। इन चालू संपत्तियों को एक लेखांकन वर्ष के अंदर नगद में परिवर्तित किया जाता है।

2. शुद्ध कार्यशील पूँजी – इसका अभिप्राय चालू दायित्वों की तुलना में चालू परिसंपत्तियों के आधिक्य से है। चालू दायित्वों का भुगतान लेखांकन वर्ष के अंदर किया जाता है, उदाहरण के लिए, देय बिल, लेनदार इत्यादि।

कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को निर्धारित करने वाले महत्वपूर्ण निर्धारक-किसी भी व्यवसाय के लिये मात्र स्थायी सम्पत्ति की व्यवस्था कर लेने से उसकी संचालन व्यवस्था नहीं की जा सकती है। व्यवसाय की सामान्य प्रगति के लिये समय-समय पर आवश्यक क्रय करने पड़ते हैं । इसके लिये कार्यशील पूँजी आवश्यक ही नहीं अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। सामान्यतः एक उपक्रम में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता निम्न कार्यों के लिये होती है

  1. कच्चा माल खरीदने के लिये
  2. माल को उपयोगी बनाने के लिये
  3. कच्चे माल को निर्मित माल के रूप में परिवर्तित करने के लिये
  4. वेतन एवं मजदूरी का भुगतान करने के लिये
  5. दैनिक व्ययों को पूरा करने, ईंधन, बिजली व्ययों का भुगतान करने के लिये
  6. विक्रय एवं वितरण के व्ययों के लिये
  7. कार्यालय एवं फैक्ट्री के फुटकर व्ययों की पूर्ति के लिये
  8. अन्य आकस्मिक व्ययों जैसे-दुर्घटना, मरम्मत आदि की पूर्ति के लिये।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई

इकाई Important Questions

इकाई वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया का कार्य है –
(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) मध्यम
(d) अंतिम
उत्तर:
(d) अंतिम

प्रश्न 2.
नियंत्रण संबंधित है –
(a) परिणाम से
(b) कार्य से
(c) प्रयास से
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(a) परिणाम से

प्रश्न 3.
नियोजन तथा नियंत्रण है –
(a) पूर्णतया अलग
(b) विपरीत
(c) एक समान
(d) एक-दूसरे के पूरक
उत्तर:
(d) एक-दूसरे के पूरक

प्रश्न 4.
नियंत्रण की तकनीक नहीं है –
(a) अपवाद द्वारा नियंत्रण
(b) बजट नियंत्रण
(c) लागत द्वारा नियंत्रण
(d) दंडात्मक नियंत्रण
उत्तर:
(d) दंडात्मक नियंत्रण

प्रश्न 5.
नियंत्रण प्रक्रिया है –
(a) नकारात्मक
(b) ऋणात्मक
(c) सुधारात्मक
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) सुधारात्मक

प्रश्न 6.
नियंत्रण प्रक्रिया का प्रथम चरण है –
(a) बजट बनाना
(b) प्रमाप निर्धारित करना
(c) निष्पादन का मूल्यांकन
(d) विचलनों का पता लगाना
उत्तर:
(a) बजट बनाना

प्रश्न 7.
नियंत्रण का उद्देश्य है –
(a) उत्पादन का अनुमान लगाना
(b) वित्तीय साधनों का प्रबंधन करना
(c) वास्तविक निष्पादन की जाँच
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) वास्तविक निष्पादन की जाँच

प्रश्न 8.
नियंत्रण प्रक्रिया है –
(a) निरंतर जारी रहने वाली
(b) प्रारंभिक प्रक्रिया
(c) नियोजन प्रक्रिया
(d) अनावश्यक प्रक्रिया
उत्तर:
(a) निरंतर जारी रहने वाली

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. ……………… के द्वारा वास्तविक कार्य निष्पादन को योजनानुसार बनाये रखा जाता है।
  2. …………….. आगे देखना है जबकि …………… पीछे देखना।
  3. नियंत्रण प्रक्रिया में इस बात की ………….. की जाती है कि कार्य नियोजन के अनुसार हो रहा है या नहीं।
  4. प्रभावपूर्ण नियंत्रण का संबंध …………. का पता लगाना है।
  5. नियंत्रण प्रकिया में ……………… की तुलना, प्रमाणित निष्पादन से की जाती है।
  6. नियंत्रण के अंतर्गत ………………. कदम उठाये जाते हैं।
  7. नियंत्रण प्रक्रिया में …………. बिन्दुओं को इंगित किया जाता है।
  8. नियंत्रण ………….. को रोकने में सहायक सिद्ध होता है।
  9. उपयुक्त नियंत्रण व्यावसायिक उपक्रम के …………. संचालन में सहायक सिद्ध होता है।

उत्तर:

  1. नियंत्रण
  2. नियोजन, नियंत्रण
  3. जाँच
  4. परिणामों
  5. वास्तविक निष्पादन
  6. सुधारात्मक
  7. कमजोर
  8. अपव्यय
  9. कुशल।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए

  1. नियंत्रण प्रक्रिया में वास्तविक निष्पादन की तुलना किससे की जाती है ?
  2. नियंत्रण प्रक्रिया में विचलनों को दूर करने हेतु जो उपाय किये जाते हैं उसे क्या कहते हैं ?
  3. नियंत्रण की किसी एक तकनीक का नाम लिखिए।
  4. उल्लेखनीय विचलन होने पर ही प्रबंधकों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए, यह तथ्य नियंत्रण . की किस तकनीक पर आधारित है ?
  5. वित्त से संबंधित विभागों के लिए किस नियंत्रण तकनीक का प्रयोग करना चाहिए ?
  6. प्रमापों का निर्धारण करना नियंत्रण प्रक्रिया का कौन-सा चरण है ?
  7. अपवाद द्वारा प्रबंध का एक लाभ लिखिए।
  8. बजटिंग क्या है ?
  9. बजटीय नियंत्रण क्या है ?
  10. नियंत्रण प्रबंध के किस कार्य पर आधारित होता है ?

उत्तर:

  1.  प्रमापित (अपेक्षित) निष्पादन से
  2. सुधारात्मक (उपचारात्मक) कदम
  3. अवलोकन या अंकेक्षण,
  4. अपवाद द्वारा नियंत्रण
  5. अंकेक्षण तकनीक
  6. प्रमापों/मानकों का निर्धारण करना नियंत्रण प्रक्रिया का प्रथम चरण है
  7. अपवाद द्वारा प्रबंध से समय की बचत होती है
  8. बजटिंग एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बजट का नियंत्रण किया जाता है
  9. बजटीय नियंत्रण से अभिप्राय बजटों के माध्यम से नियंत्रण करना है,
  10. नियंत्रण नियोजन पर निर्भर होता है।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. नियंत्रण प्रबन्ध का एक प्राथमिक कार्य है।
  2. विचलन से आशय वास्तविक तथा इच्छित निष्पादन का अन्तर है।
  3. नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य है।
  4. नियंत्रण जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है।
  5. नियंत्रण सभी प्रबन्धकीय स्तरों पर लागू नहीं होता है।
  6. विचलन सदैव ऋणात्मक होता है।
  7. बजट गुणात्मक स्वरूप में व्यक्त किया जाता है।
  8. नियंत्रण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों होते हैं।
  9. नियंत्रण एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया नहीं है।
  10. वर्तमान एवं भविष्य की क्रियाओं का ही नियंत्रण होता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. असत्य
  8. सत्य
  9. असत्य
  10. सत्य।

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प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 8 इकाई - 1
उत्तर:

  1. (e)
  2. (c)
  3. (b)
  4. (a)
  5. (d)
  6. (g)
  7. (f)
  8. (h)
  9. (i)
  10. (j)

इकाई दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रमापों का निर्धारण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
प्रमापों का निर्धारण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. प्रमाप मापने योग्य होने चाहिए।
  2. प्रमाप ऐसे होने चाहिए जिन्हें कुछ प्रयासों से प्राप्त किया जा सके।
  3. प्रमाप सरल तथा स्पष्ट होने चाहिए।
  4. प्रमाप लोचपूर्ण होने चाहिए ताकि उन्हें बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके।
  5. प्रमाप निर्धारित करते समय विचलन सहन करने की सीमायें भी स्पष्ट कर देनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
नियंत्रण प्रक्रिया के प्रथम चरण के रूप में ‘प्रमापों का निर्धारण’ समझाइये।
उत्तर:
प्रमापों का निर्धारण (Setting up of standards)—प्रमाप का अर्थ है-लक्ष्य या अपेक्षाएँ जिनके विरुद्ध वास्तविक कार्य निष्पादन को मापा जाता है। प्रमाप तुलना के आधार होते हैं। प्रमापों का निर्धारण इसलिए किया जाता है ताकि उनके साथ वास्तविक निष्पादन कार्य की तुलना की जा सके। बिना प्रमाप के हम यह नहीं जान सकते है कि हमारा निष्पादन कार्य योजना के अनुकूल है या नहीं। प्रमाप न अधिक ऊँचे होने चाहिए और न बहत ही नीचे। प्रमापों का निर्धारण करते समय संगठन के संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए।

जहाँ तक संभव हो, प्रमापों का निर्धारण परिमाणात्मक रूप में हो ताकि तुलना में सरलता रहे। प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि मात्रा, गुणवत्ता या समय की दृष्टि से प्रमाप निर्धारित किये जायें। प्रमाप लोचशील होने चाहिए अर्थात् आवश्यकता पड़ने पर परिस्थितियों के अनुसार उनमें परिवर्तन किया जा सके। विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के निष्पादन को मापने के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रमापों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
निष्पादन प्रमाप निर्धारित करने के संदर्भ में प्रमाप अवधारणा समझाइये।
उत्तर:
प्रमाप (Standards)—प्रमाप वे आधार होते हैं जिनके संदर्भ में वास्तविक प्रगति को मापा जाता है। इसके आधार पर ही एक प्रबंधक वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन करके विचलनों का पता लगाता है और विचलनों को दूर करने कार्यवाही करता है। प्रमापों को यथासंभव यथार्थ बनाना चाहिए। प्रमाप न तो बहुत ऊँचे होने चाहिए और न ही बहुत नीचे।प्रमापों का निर्धारित समय संस्था के संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए। प्रमापों का यथासंभव मात्रात्मक रूप में व्यक्त किया जाना चाहिए ताकि अपेक्षित प्रगति के स्तर का स्पष्ट पता चल सकें।

निर्धारित प्रमाप नियंत्रण प्रणाली के लिए आधार का काम करते हैं। प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि मात्रा, गुणवत्ता या समय की दृष्टि से प्रमाप निर्धारित किये जायें। ऐसा करने से निष्पादन का मूल्यांकन करना सरल होगा। प्रमाप लोचशील होने चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर परिस्थितियों के अनुसार उनमें परिवर्तन किया जा सके।

विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के निष्पादन को मापने के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रमापों का प्रयोग किया जाता है। अनेक प्रमाप भौतिक रूप के होते हैं, जैसे इकाइयों की संख्या अथवा काम के घंटे, बिक्री, आय, लागत आदि से संबंधित अन्य प्रमाप मुद्रा के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।

प्रश्न 4.
आगम केन्द्र और लाभ केन्द्र में अन्तर बताइये।
उत्तर:
आगम केन्द्र तथा लाभ केन्द्र में अन्तर (Difference between revenue centre and profit centre)-आगम केन्द्र में इस बात का वित्तीय मूल्याकंन किया जाता है कि विक्रय आगम ने बजट स्तर को प्राप्त करने में कितनी सफलता प्राप्त की है। यह केन्द्र आय उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होता है। यदि वास्तविक आय प्रत्याशित आय की तुलना में कम है या बराबर नहीं है तो इस केन्द्र का प्रबंध जवाबदेह होता है।
सामान्यतया विक्रय या विपणन विभागों को आय केन्द्र के रूप में निर्धारित किया जाता है।

इसके विपरीत लाभ केन्द्र में वास्तविक लाभों की निर्धारित लाभों से तुलना की जाती है। यह केन्द्र संगठन के लाभ के लिए उत्तरदायी होता है (लाभ = आय लागत)। अतः लाभ केन्द्र का प्रधान आय के साथ-साथ लागत के लिए भी उत्तरदायी होता है। उसे यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि आय प्रत्याशित आय से कम नहीं और लागत प्रत्याशित लागत से अधिक नहीं है।

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प्रश्न 5.
नियंत्रण की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नियंत्रण की प्रकृति अथवा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1.नियंत्रण प्रबंध का आधारभूत कार्य- नियंत्रण प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर किया जाता है। यह प्रबंध के अन्य कार्यों को पूर्ण बनाता है तथा सफलता निश्चित करता है। नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया को पूर्ण करता है।

2. प्रबंध के सभी स्तरों पर लागू- नियंत्रण प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर किया जाता है। उच्च स्तर पर नियंत्रण मुख्य प्रबंधक द्वारा तथा निम्न स्तर पर सुपरवाइजर तथा फोरमैन द्वारा किया जाता है।

3. सतत् प्रक्रिया- नियंत्रण सदैव किया जाता है कभी भी समाप्त या पूरा नहीं होता अतः यह सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है।

4. अंतिम कार्य-नियंत्रण प्रबंध का अंतिम कार्य होता है क्योंकि जब तक वास्तविक निष्पादन का पता नहीं होगा। इसमें नीतियों तथा कमियों का ज्ञान नहीं होता है तथा सुधार नहीं किये जा सकते हैं।

5. वास्तविक आँकड़ों पर आधारित- नियंत्रण सदैव वास्तविक आँकड़ों पर आधारित होता है न कि व्यक्तिगत या अनुमानित तथ्यों पर।

6. सुधारात्मक क्रिया- नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य त्रुटियों, कमियों तथा दोषों का पता लगाते हुए उन्हें दूर करना है।

प्रश्न 6.
“नियोजन तथा नियंत्रण सह-संबंधित है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थ-नियोजन प्रत्येक उपक्रम का मूलभूत कार्य है क्योंकि इसके द्वारा भविष्य के लिए योजना बनाई जाती है कि क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है तथा किसके द्वारा किया जाना है। नियंत्रण, यह निरीक्षण करता है कि प्रत्येक कार्य निर्धारित योजना के अनुसार हो रहा है या नहीं और यदि विचलन है तो उन विचलनों को रोकने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही करना।

1. नियोजन तथा नियंत्रण परस्पर आश्रित और संबंधित हैं – नियोजन तथा नियंत्रण दोनों का हमेशा से ही सह-अस्तित्व होता है क्योंकि एक कार्य दूसरे पर निर्भर करता है। प्रबंध का कार्य सुचारु ढंग से तब तक नहीं चल सकता जब तक नियोजन व नियंत्रण में आपसी समन्वय न हो। प्रबंध विशेषज्ञों ने तो नियंत्रण को नियोजन का एक पक्ष व प्रतिरूप माना है।

2. नियोजन तथा नियंत्रण दोनों भविष्यदर्शी हैं – नियोजन आगे की ओर देखना है क्योंकि योजनाएँ भविष्य के लिए बनाई जाती है। इसमें आगे की ओर देखना तथा भविष्य के संसाधनों के अधिकतम उपयोग हेतु नीतियाँ बनाई जाती है।

नियंत्रण भी आगे की ओर देखना है क्योंकि इसमें विचलन के कारणों का पता लगाना तथा उनके लिए सुझाव देना ताकि ये विचलन भविष्य में फिर से न हो। अत: दोनों भविष्यदर्शी हैं।

3. नियोजन, नियंत्रण को उत्पन्न करता है – नियंत्रण प्रक्रिया का निर्धारण नियोजन के द्वारा ही होता है क्योंकि योजना के अनुरूप कार्य हो रहा है या नहीं, देखना ही नियंत्रण है।

4. नियंत्रण, नियोजन को बनाए रखता है – नियंत्रण के द्वारा कार्य बनाई गई योजनानुसार हो तथा आवश्यकता अनुसार योजना में परिवर्तन करना हो ये सभी कार्य नियंत्रण द्वारा ही होते हैं।

निष्कर्ष नियोजन तथा नियंत्रण को अलग नहीं किया जा सकता। ये दोनों पूरक कार्य हैं। यह एक-दूसरे की सहायता करते हैं। नियोजन नियंत्रण को प्रभावशाली तथा कुशल बनाता है जबकि नियंत्रण भविष्य की योजनाओं में सुधार करता है।

प्रश्न 7.
नियंत्रण की सीमाएँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
नियंत्रण की सीमाएँ निम्नलिखित हैं

1.मात्रात्मक प्रमापों के निर्धारण में कठिनाई-जब मात्रात्मक प्रमापों के निष्पादन स्तर का वर्णन नहीं किया जा सकता तब किसी भी मनुष्य के व्यवहार, कुशलता स्तर, कार्य संतुष्टि आदि के लिए मात्रात्मक प्रमाप का निर्धारण करना कठिन होता है तब नियंत्रण पद्धति अपना प्रभाव खो देती है।

2. बाह्य कारकों पर नियंत्रण नहीं-कोई भी उपक्रम बाह्य कारकों जैसे सरकारी नीति, फैशन में परिवर्तन, बाजार की दशाएँ तथा तकनीकी परिवर्तन पर नियंत्रण नहीं कर सकता।

3. उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई-उपक्रम के कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिसके लिए एक से अधिक व्यक्ति उत्तरदायी होते हैं। यदि ऐसे कार्यों में कोई त्रुटि हो जाती है तो यह निर्धारित करना कठिन होता है कि त्रुटि के लिए कौन उत्तरदायी है।

4.कर्मचारियों द्वारा विरोध-प्रायः कर्मचारी नियंत्रण का विरोध करते हैं इसके परिणामस्वरूप नियंत्रण की प्रभावशीलता कम हो जाती है। कर्मचारी उनका अवलोकन करने वाले कैमरे के प्रयोग का विरोध करते हैं।

5. महँगा कार्य-नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अधिक समय तथा प्रयास शामिल होते हैं क्योंकि कर्मचारियों की प्रगति के अवलोकन के लिए पर्याप्त ध्यान देना पड़ता है। महँगी नियंत्रण पद्धति को स्थापित करने के लिए संगठन को विशाल राशि खर्च करनी पड़ती है।

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प्रश्न 8.
बजट नियंत्रण क्या है ? इसके महत्व समझाइए।
उत्तर:
बजट नियंत्रण बहुत ही महत्वपूर्ण एवं वृहत रूप में क्रिया करने वाला नियंत्रण है जिसके अंतर्गत बजट अनुभवों एवं वास्तविक परिणामों की तुलना की जाती है। नियंत्रण की यह पद्धति अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है इसके नियंत्रण बजट के माध्यम से किया जाता है।

जार्ज टेरी के अनुसार-“बजट नियंत्रण ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा वास्तविक क्रियाओं का पता लगाया जाता है फिर बजट अनुमानों की उससे तुलना की जाती है एवं त्रुटियों का पता लगाकर उनमें सुधार किया जा सके।”बजट नियंत्रण का महत्व निम्नलिखित है

  1. भविष्य की योजना बनाने में सहायक-नियंत्रण की सहायता से भविष्य की योजना बनाने में सहायता मिलती है, क्योंकि नियंत्रण के द्वारा निष्पादन में आने वाली बाधाओं का पता चलता है।
  2. अनुशासन के लिए किसी भी संगठन में पूर्ण अनुशासन बिना नियंत्रण के संभव नहीं है अतः पूर्ण अनुशासन हेतु बजट नियंत्रण आवश्यक है।
  3. कार्य कुशलता में वृद्धि-बजट नियंत्रण द्वारा मितव्ययिता के साथ-साथ कर्मचारियों की कार्य कुशलता बढ़ती है।
  4. जोखिमों में कमी-बजट नियंत्रण के द्वारा व्यवसाय की जोखिमों को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रण के क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
नियंत्रण के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  1. नीति नियंत्रण-व्यवसाय की नीतियों पर नियंत्रण नीतियों में स्थायित्व पैदा करता है और उनमें से किसी भी प्रकार के विचलन को रोकता है।
  2. कर्मचारियों पर नियंत्रण- प्रबंध, सेविवर्गीय प्रबंध की सहायता लेकर कर्मचारियों पर नियंत्रण बनाता है।
  3. मजदूरी तथा वेतन पर नियंत्रण-प्रबंध कार्य मूल्यांकन के द्वारा श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी तथा वेतन का निर्धारण करता है।
  4. 4. पूँजी पर नियंत्रण-नियंत्रण का प्रमुख कार्य है कि वह स्वयं को संतुष्ट करे कि पूँजी का उपयोग वास्तव में उददेश्यों की पूर्ति के लिए हो रहा है या नहीं। यदि नहीं तो क्यों और क्या सुधार किया जाए।
  5. लागत नियंत्रण-उत्पादन के विभिन्न साधनों के कुशलतम उपयोग द्वारा लागत को नियंत्रित किया जाता है।

प्रश्न 10.
नियंत्रण के सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रण के निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं

  1. उद्देश्यों की सुरक्षा का सिद्धांत-नियंत्रण प्रक्रिया ऐसी हो जो योजनाओं और वास्तविक कार्यों के विचलन का अंतर ज्ञात करके उन विचलनों को दूर करे।
  2. कार्यकुशलता का सिद्धांत-नियंत्रण व्यवस्था अत्यधिक खर्चीली नहीं होनी चाहिए साथ ही यह अधीनस्थों की पहल शांति, सत्ता के प्रत्यायोजन एवं मनोबल पर बुरा असर न डाले।
  3. योजनाओं के प्रतिबिंब का सिद्धांत-नियंत्रित होने पर योजनाएँ प्रतिबिंबित होती हैं अर्थात् नियंत्रण का प्रयोजन योजनाओं के विचलनों का पता लगाकर उनके अनुसार कार्य करना होता है।
  4. नियंत्रण दायित्व का सिद्धांत-नियंत्रण करने का दायित्व प्रबंधकों का होता है। यह सौंपा नहीं जा सकता।
  5. लोच का सिद्धांत-नियंत्रण प्रक्रिया में पर्याप्त लोच होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन आसानी से किया जा सके।

प्रश्न 11.
नियंत्रण की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1. नियंत्रण एक प्रबंधकीय कार्य है-नियंत्रण करने का कार्य लेखा अधिकारी का होता है। लेखा अधिकारी विभिन्न विशेषज्ञों की सलाह एवं सहायता ले सकता है।

2. नियंत्रण प्रबंध के सभी स्तरों पर नियंत्रण कार्य न तो उच्च अधिकारी का है और न ही निम्न स्तर का अपितु इसकी आवश्यकता प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर पड़ती है। उच्च स्तर पर नियन्त्रण प्रमुख प्रबंधक करते हैं निम्न स्तर पर फोरमैन या अन्य अधिकारी नियंत्रक करते हैं।

3. नियंत्रण एक सतत् प्रक्रिया है-नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जो लगातार गतिमान रहती है। नियन्त्रण के माध्यम से विभिन्न योजनाओं, उद्देश्यों, क्रियाकलापों एवं कार्यविधियों पर लगातार नजर रखने की आवश्यकता पड़ती है ताकि कार्य योजनाओं के अनुरूप होता रहे।

4. प्रारम्भ तथा अंत में सहायक-नियंत्रण का सम्बन्ध किसी उपक्रम की प्रारंभिक अवस्था एवं अंतिम अवस्था से भी है। प्रारम्भ में विभिन्न योजनाओं, अनुमानों, लक्ष्यों को निर्धारित करते समय नियन्त्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा किसी उपक्रम के अंतिम काल में जबकि सम्पत्तियों का बँटवारा होता है नियन्त्रण अति आवश्यक है।

5. नियंत्रण व्यक्तियों से संबंधित है-प्रबंध के अन्तर्गत नियंत्रण शब्द का संबंध प्राकृतिक व्यक्ति से है, कोई फर्म या कंपनी से नहीं।

6. नियंत्रण हस्तक्षेप नहीं-हस्तक्षेप करना, कार्य में बाधा पहुँचाना है, जबकि नियंत्रण बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।

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प्रश्न 12.
एक प्रभावी नियंत्रण के पाँच आवश्यक तत्वों को समझाइये।
अथवा प्रभावशाली नियंत्रण प्रणाली के आवश्यक तत्व बताइए।(कोई पाँच)
उत्तर:
प्रभावी नियंत्रण व्यवस्था के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं

1. उपयुक्तता-नियन्त्रण की प्रणाली व्यावसायिक संस्था की प्रकृति, कारोबार की मात्रा एवं उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप ही होनी चाहिए। साथ ही संगठन कलेवर की आवश्यकता के अनुरूप भी होनी चाहिए। विभागीयकरण व्यवस्था अपनाई जाती है तो नियंत्रण का भार विभागीय अध्यक्षों को सौंप दिया जाना चाहिए।

2. विचलनों की जानकारी-कार्य निष्पादन हेतु प्रमाप तय रहते हैं। वास्तविक उपलब्धियों की तुलना प्रमापों से की जाती है। दोनों में अन्तर अथवा विचलन की न केवल जानकारी होनी चाहिए वरन् जानकारी को सम्बन्धित अधिकारी तक प्रेषित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार-उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जिनकी प्रगति संस्था की सम्पूर्ण प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। परिवहन संस्थाओं के लिए ट्रकों का चालू हालत में होना आवश्यक होगा, जबकि बीड़ी-उद्योग में श्रमिकों का स्वस्थ होना अधिक महत्वपूर्ण होगा। इसी प्रकार सामग्री अथवा वित्त नियन्त्रण के महत्वपूर्ण बिन्दु हो सकते हैं।

4. लोचशील-बाह्य एवं आन्तरिक परिस्थितियाँ बदलती हैं। नियन्त्रण व्यवस्था में परिस्थितियों के अनुसार ढल जाने का गुण होना चाहिए।

5. सरल एवं सुगम-नियन्त्रण व्यवस्था जटिल होने पर वह आसानी से समझ में नहीं आएगी। ऐसी स्थिति में उसका क्रियान्वयन भी संदिग्ध हो जाएगा।

प्रश्न 13.
नियंत्रण की विधियों को समझाइये।
उत्तर:
नियंत्रण की विधियों को नियंत्रण तकनीक या नियंत्रण के उपकरण या प्रणालियाँ (Techniques or Tools) भी कहा जाता है। प्रबन्धक का प्रमुख कार्य उपक्रम के कार्यों का नियंत्रण करना है इस हेतु वह विभिन्न तकनीक या उपकरण जिन्हें औजार भी कहा जाता है, उनका प्रयोग करता है। नियंत्रण की अनेक विधियाँ हैं जिन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है

  • नियंत्रण की सामान्य विधियाँ
  • नियंत्रण की विशिष्ट विधियाँ।
  • नियंत्रण की सामान्य विधियाँ (General Methods of Control)

सामान्य विधियों से आशय नियंत्रण सम्बन्धी उन कार्यों से है जो किसी उपक्रम का प्रबन्धक सामान्य रूप से प्रयोग में लाता है। नियंत्रण की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. अवलोकन द्वारा नियंत्रण-कर्मचारियों के कार्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन कर उन पर नियंत्रण करना अवलोकन द्वारा नियंत्रण कहा जाता है। यह नियंत्रण की बहु प्रचलित विधि है। इस विधि की विशेषता यह है कि इससे कर्मचारी एवं प्रबन्ध अधिकारी के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाता है तथा बना रहता है। इससे उपक्रम की अनेक समस्यायें स्वतः हल हो जाती हैं।

2. अंकेक्षण द्वारा नियंत्रण अंकेक्षण का आशय लेखा-पुस्तकों का परीक्षण है। यह दो प्रकार का होता है

  • आन्तरिक अंकेक्षण और
  • बाह्य अंकेक्षण। उपक्रम के वित्त से सम्बन्धित विभागों के लिये यह आवश्यक है।

3. अभिप्रेरणा द्वारा नियंत्रण कर्मचारियों को कार्य के प्रति प्रेरित करना अभिप्रेरणा द्वारा नियंत्रण है। यह नियंत्रण की उत्कृष्ट विधि है। इसे स्व-नियंत्रण भी कहा जा सकता है।

4. नीतियों द्वारा नियंत्रण नीतियों को भी नियंत्रण का एक साधन माना जाता है। इससे कर्मचारियों का मार्गदर्शन होता है तथा कार्य क्षेत्र एवं सीमा निर्धारित हो जाती है । निर्धारित नीतियों के विरुद्ध कार्य नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार कर्मचारियों पर नियंत्रण स्थापित हो जाता है। (ब) नियंत्रण की विशिष्ट विधियाँ (Specific Methods of Control) – नियंत्रण की अनेक विशिष्टं विधियाँ हैं जिनमें निम्नांकित मुख्य हैं

1. बजट द्वारा नियंत्रण-बजट-नियंत्रण का आशय बजट अनुमानों तथा वास्तविक परिणामों में तुलना करने की प्रक्रिया है। बजट-नियंत्रण से इस बात की जानकारी होती है कि उपक्रम अपने उद्देश्यों की उपलब्धि में सफल हो रहा है अथवा नहीं।

2. लागत नियंत्रण लागत नियंत्रण में इस बात का पता लगाया जाता है कि विभिन्न उत्पादों की प्रति इकाई लागत क्या होगी तथा लागत को कम कैसे किया जाये ? इसके लिये अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है।

3. उत्पादन नियंत्रण निर्माणी उपक्रम की समस्त क्रियायें इसके अन्तर्गत आ जाती हैं। निर्माणी संस्थान के समस्त कार्य को इस प्रकार नियंत्रित करना कि समस्त कार्य पूर्व नियंत्रित व्यवस्था के अनुसार संचालित हों।

4.किस्म या गुण नियंत्रण उत्पादित वस्तु के गुण या किस्म को नियंत्रित करना किस्म या गुण नियंत्रण है। इसी नियंत्रण के कारण उत्पादित वस्तु का आकार एवं रूप आकर्षक एवं वस्तु अधिक उपयोगी होती है।

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प्रश्न 14.
नियंत्रण के महत्व लिखिए।
उत्तर:
नियंत्रण का महत्व निम्न प्रकार है

1. नियंत्रण संगठन को उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है (Controlling helps in achieving organisational objectives) – प्रबंध का पहला कदम उद्देश्यों को निश्चित करना और उनकी प्राप्ति के लिए कार्यविधि तय करना है। उद्देश्य लाभ, विक्रय या उत्पादन लक्ष्यों के रूप में हो सकते हैं। लेकिन ये निश्चित लक्ष्य किसी बिंदु या समय पर गलत हो सकते हैं। अतः संगठन के विभिन्न विभागों में काम करने वाले लोगों द्वारा सम्पन्न की जाने वाली क्रियाएँ और संभावित व्यवहार को निर्दिष्ट करने वाली योजना बनाई जाती है।

यह योजना उन प्रभावों का निर्धारण करती है जिन लोगों द्वारा प्राप्त किया जाता है। इन क्रियाओं के पर्यवेक्षण व निरीक्षण तथा जहाँ आवश्यक हो उचित कदम उठाने के लिए एक नियंत्रण कार्यविधि विकसित की जाती है।

2. नियंत्रण पर्यावरण संबंधी परिवर्तनों को स्वीकार करने में सहायता करता है (Controlling enables the organisation to adopt organisational changes) – आज के गतिशील व्यावसायिक जगत में सभी संगठनों को परिवर्तन का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय का अस्तित्व भी इस वातावरण का एक भाग है। व्यावसायिक वातावरण आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक वातावरण से संबंधित है जिसमें इसका संचालन किया जाता है।

इसकी प्रकृति गतिशील और कभी-कभी स्कंध बाजार सरकारी नीतियों तथा राजनैतिक तंत्र में परिवर्तन व्यवसाय को प्रभावित कर सकते हैं । वातावरण में बाह्य परिवर्तन व्यवसाय के नियंत्रण से बाहर होता है।

लक्ष्यों के निर्धारण समय से लेकर लक्ष्यों की प्राप्ति समय तक बहुत सी असंभावित घटनाएं घट सकती हैं जो उत्पादन या विक्रय लक्ष्यों को भंग कर सकती हैं या व्यय में वृद्धि कर सकती हैं। अतः एक ऐसे नियंत्रण को बदलती हुई परिस्थितियों का अनुमान लगाने, उनका पर्यवेक्षण व निरीक्षण कर प्रत्युत्तर देने में सहायता कर सके।

3. नियंत्रण संगठनात्मक जटिलताओं का सामना करने में सहायता प्रदान करता है (Controlling helps in facing the difficult situations) – नियंत्रण तंत्र किसी भी संगठन की संपूर्ण प्रबंधात्मक प्रक्रिया का एक भाग है।

एक संगठन अपनी प्रारंभिक अवस्था में सीमित संसाधनों, कर्मचारियों व बाजारों से लेन-देन कर सकता है लेकिन जैसे-जैसे इसका विस्तार होता है, यह अधिक-से-अधिक जटिल बन जाता है और उत्पादन विपणन, वित्त एवं मानवीय संसाधनों से व्यवहार करने के लिए विभिन्न विभागों का निर्माण किया जाता है। इन विविध प्रकार की क्रियाओं पर पर्याप्त नियंत्रण करने के लिए एक परिष्कृत नियंत्रण तंत्र आवश्यक हो गया है।

4. नियंत्रण गुणवत्ता को बनाये रखने और सुधारने में सहायता करता है (Controlling helps in maintaining and improving quality) – उत्पादन या संचालन नियंत्रण सामग्री-संसाधनों को उत्पाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया से संबंधित है। फलस्वरूप लागत को न्यूनतम करने में सहायता करता है अर्थात् कच्चे माल की गुणवत्ता की छानबीन, उसके बाद कच्चे माल को उत्पाद में परिवर्तन करने की प्रक्रिया और फिर अंतिम उत्पाद का निरीक्षण। गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए सुदृढ़ गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र आवश्यक है।

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से गुणवत्ता के विभिन्न आयामों को पहचानना चाहिए और इन पक्षों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए। प्रत्येक उत्पाद को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाना चाहिए। उपभोक्ता अंतिम क्रय निर्णय लेने से पूर्व उत्पाद के कुछ या सभी पक्षों को प्राथमिकता दे सकते हैं।

5. नियंत्रण वित्तीय मामलों में सहायता करता है (It helps in financial matters of the organisation) – प्रबंधक वित्त पर कठोर नियंत्रण रखना चाहते हैं और बाजार में निर्धारित सीमाओं में रहकर व्यय करते हैं। यदि नियंत्रण प्रणाली पर्याप्त है, तो सुधारात्मक नियंत्रण तुरन्त किये जा सकते हैं ।

वित्तीय नियंत्रण के विभिन्न प्रकार हैं। नियंत्रण बजट या वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। बजटीय नियंत्रण साधारणतया अल्पावधिक होता है। यह पूरे वर्ष चलता रहता है। बजट एक योजना है जिसे गणनात्मक या वित्तीय शब्दों में व्यक्त किया जाता है। यह विक्रय या लाभों के रूप में निष्पादन मूल्यांकन करने के लिए मानदंड प्रदान करता है।

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प्रश्न 15. “नियोजन व नियंत्रण एक-दूसरे के पूरक हैं। समझाइए।
उत्तर:
नियोजन एवं नियंत्रण दोनों ही प्रबंध के महत्वपूर्ण कार्य हैं। प्रबंध का कार्य सुचारु ढंग से उस समय तक नहीं चल सकता जब तक नियोजन व नियंत्रण दोनों में आपसी समन्वय न हो अर्थात् ये दोनों एकदूसरे से सहसंबंधित होते हैं। प्रबंध विशेषज्ञों ने नियंत्रण को नियोजन का एक पक्ष व प्रतिरूप के रूप में माना है।

नियोजन के अंतर्गत प्रबंधकीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक नीति व कार्य योजना बनाई जाती है, जबकि यह कार्य योजना उचित है या नहीं इसमें विचलन (Deviation) किस सीमा तक है इसकी जानकारी नियंत्रण से ज्ञात की जाती है योजना उचित हो इसके लिये उस पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है, अर्थात् नियन्त्रण, योजनाओं के क्रियान्वयन में हमारा मार्गदर्शन करता है।

प्रबंध में प्रभावी नियंत्रण व्यवस्था लागू रहने से दीर्घकाल की योजनाएं बनाने में मदद मिलती है। क्योंकि नियंत्रण पूर्व निर्धारित लक्ष्यों एवं प्रभावों के आधार पर कार्य करने की प्रेरणा देता है।

यह सच है कि किसी भी संगठन में योजना पहले बनाई जाती है किन्तु इस योजना को नियंत्रित रखने का कार्य नियंत्रण ही करता है। नियंत्रण प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है और इसके बिना नियोजन कर लेना एक भूल ही होगी। विशेषकर बजट बनाना भी एक नियोजन कार्य है। बजट बनाते समय उसे उपक्रम के लक्ष्यों, नीतियों व सीमाओं से नियंत्रित रखा जाता है।

इस प्रकार नियोजन व नियंत्रण दोनों एक-दूसरे के सहयोगी होते हैं दोनों में आपसी समन्वय आवश्यक होता है तथा एक-दूसरे के सहयोग के बिना प्रबंध का कार्य आसानी से नहीं चलाया जा सकता है।
नियोजन में नियंत्रण का सहयोग- यह सर्वविदित है कि नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य है फिर भी वह नियोजन जैसे प्राथमिक कार्य में नियोजन निम्नानुसार सहयोग करता है-

  1. यह देखना कि योजनायें नीतियों के अनुरूप हैं या नहीं।
  2. यह देखना कि योजना बजट के अनुरूप या उसकी सीमा के अंदर है या नहीं।
  3. विभिन्न योजनाओं को बनाकर उन्हें प्रोत्साहित करने का कार्य नियंत्रण द्वारा ही किया जाता है।
  4. संस्था के उद्देश्यों को परिभाषित करने में नियंत्रण सहयोग करता है।
  5. व्यवसाय के दैनिक कार्यों को नियंत्रित करने में सहयोग करता है।
    इस प्रकार स्पष्ट है कि नियोजन प्रबन्ध का प्रथम कार्य तथा नियंत्रण प्रबन्ध का अंतिम कार्य होते हुए भी ये दोनों एक-दूसरे से सहसंबंधित हैं और इनके आपसी समन्वय बिना प्रबन्ध के कार्यों को करना तथा उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन कार्य होगा।

प्रश्न 16.
नियंत्रण प्रक्रिया में निहित विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रण प्रक्रिया में निम्न चरण समाहित होते हैं

1. कार्य प्रमापों का निर्धारण – इस कार्य को कार्य के प्रमापों का निर्धारण या प्रमापों को परिभाषित करना भी कहते हैं । प्रमाप का निर्धारण नियन्त्रण प्रक्रिया का पहला कदम है। संस्था के समस्त व्यक्तियों के कार्यों का प्रमाप निश्चित हो जाने से यह ज्ञात हो जाता है कि किस व्यक्ति को कहाँ पर, कितना, कब, किस प्रकार व कैसे कार्य करना है अर्थात् एक निर्धारित समय में एक व्यक्ति से कितने व कैसे कार्य की आशा की जा सकती है। अपेक्षित परिणामों का निर्धारण ही प्रमाप का निर्धारण कहलाता है।

2. वास्तविक प्रगति का मापन – प्रमापों का निर्धारण हो जाने के पश्चात् नियंत्रण का दूसरा कदम वास्तविक प्रगति को मापना है, ऐसी स्थिति बहुत कम आती है, जब प्रमाणित लागत के अनुरूप वास्तविक लागत आधी हो, बहुधा ऐसा ही होता है कि वास्तविक प्रगति प्रमाप से अधिक या कम होती है। प्रगति अधिक होने पर स्थिति अनुकूल (Favourable) व प्रगति कम होने पर स्थिति प्रतिकूल (Unfavourable) होती है, वास्तविक प्रगति कम होने पर इसके कारणों को खोजा जाता है।

3. प्रमापित एवं वास्तविक कार्यों की तुलना या विचलनों की तुलना – नियंत्रण प्रक्रिया का यह तृतीय कदम (Step) है। इस कदम के अन्तर्गत वास्तविक कार्य व प्रमाणित कार्यों के बीच जो अन्तर होता है, उन्हें ज्ञात किया जाता है।

विचलन क्या है – निर्धारित प्रमाप से वास्तविक निष्पादन की तुलना की जाती है। इसके पश्चात् प्रमाप से वास्तविक उत्पादन जितना कम या अधिक होता है उसे ही विचलन (Deviation) कहते हैं।
विचलनों का विश्लेषण–विचलनों के कारणों को ज्ञात करने हेतु विचलनों का विश्लेषण करना अति आवश्यक है।

4. सुधारात्मक कदम उठाना – इस प्रक्रिया में त्रुटियों व कमियों की जाँच कर उन्हें दूर करने हेतु आवश्यक कदम उठाये जाते हैं। त्रुटियों के कारण बिगड़े कार्यों को सही करने की क्रिया सुधारात्मक (Remedial) क्रिया कही जायेगी तथा कुछ ऐसे भी कदम उठाये जाते हैं जो भविष्य के लिये लाभप्रद व प्रेरणादायी हो सकते हैं तथा इनसे भविष्य में होने वाली त्रुटियों को रोका जा सकता है, जिन्हें प्रतिरोधक कदम (Preventive step) कहा जाता है। सुधारात्मक कार्यवाही सम्बन्धी कदम उठाते समय अग्र बातों को ध्यान में रखना चाहिये

  1. सुधारात्मक कार्यवाही तत्काल करनी चाहिये।
  2. विचलनों (अन्तरों) को आधार मानकर ही सुधारात्मक कदम उठाना चाहिये।
  3. सम्बन्धित कर्मचारी के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को आधार मानकर ही सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिये।

5. अनुगमन-सुधारात्मक कदम उठाने के साथ ही समय-समय पर यह भी देखना आवश्यक है कि उठाये गये सुधारात्मक कदम का क्या तथा कैसा प्रभाव हो रहा है तथा यह पर्याप्त है या कुछ अन्य सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता होगी।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन

निर्देशन Important Questions

निर्देशन वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा विशेषण का तत्व नहीं है –
(a) अभिप्रेरणा
(b) संप्रेषण
(c) पर्यवेक्षण
(d) हस्तांतरण।
उत्तर:
(d) हस्तांतरण।

प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा का सिद्धांत जो आवश्यकताओं को क्रमबद्ध करता है, किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था –
(a) फ्रेड लुयांस
(b) स्काट
(c) अब्राहम मास्लो
(d) पीटर एन.ड्रकर।
उत्तर:
(c) अब्राहम मास्लो

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा वित्तीय प्रोत्साहन है –
(a) पदोन्नति
(b) रहतिया प्रोत्साहन
(c) पद सुरक्षा
(d) कर्मचारी भागीदारी।
उत्तर:
(b) रहतिया प्रोत्साहन

प्रश्न 4.
अंगूरीलता है
(a) औपचारिक संप्रेषण
(b) संप्रेषण में बाधा
(c) पाीय संप्रेषण
(d) अनौपचारिक संप्रेषण।
उत्तर:
(d) अनौपचारिक संप्रेषण।

प्रश्न 5.
नारायण मूर्ति द्वारा प्रोत्साहित प्रवर्तक सॉफ्टवेयर कंपनी है –
(a) इन्फोसिस
(b) विप्रो
(c) सत्यम्
(d) एच.सी.एल.।
उत्तर:
(c) सत्यम्

प्रश्न 6.
नेतत्व के मार्ग में कौन-सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है –
(a) अस्थिर आचरण वाले नेता
(b) कुछ नेता मानवीय प्रकृति से अपरिचित होते हैं
(c) अदूरदर्शी नेता
(d) सभी।
उत्तर:
(d) सभी।

प्रश्न 7.
निर्देशन प्रारम्भ होता है –
(a) शीर्ष स्तर से
(b) मध्यम स्तर से
(c) निम्न स्तर से
(d) सभी स्तरों से।
उत्तर:
(a) शीर्ष स्तर से

प्रश्न 8.
संप्रेषण का अभिप्राय है –
(a) कार्य का आबंटन
(b) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देना
(c) कार्य पर नियंत्रण
(d) कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना।
उत्तर:
(b) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देना

प्रश्न 9.
संदेश को संप्रेषण प्रतीकों में बदलने की प्रक्रिया को कहते हैं –
(a) माध्यम
(b) प्रतिपुष्टि
(c) एनकोडिंग
(d) डिकोडिंग।
उत्तर:
(d) डिकोडिंग।

प्रश्न 10.
निम्न में से क्या धनात्मक अभिप्रेरण नहीं है –
(a) वेतन वृद्धि रोकना
(b) वेतन वृद्धि
(c) बोनस
(d) प्रशस्ति पत्र।
उत्तर:
(a) वेतन वृद्धि रोकना

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. निर्देशन …………. प्रक्रिया का भाग है।
  2. निर्देशन ………… से ……….. की ओर प्रवाहित होता है।
  3. कर्मचारियों के प्रयासों का उद्देश्य प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करना …………. कहलाता है।
  4. मजदूरी में कटौती एक प्रकार का …………. अभिप्रेरण है।
  5. कर्मचारियों की अंतर्निहित शक्ति को जाग्रत करना ……… कहलाता है।
  6. पर्यवेक्षक …………. तथा ………… के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
  7. लिखित संप्रेषण अधिक …………. होता है।
  8. मौखिक संप्रेषण …………. द्वारा किया जाता है।
  9. धनात्मक अभिप्रेरण में उद्देश्य प्राप्ति पर कर्मचारियों को ………. किया जाता है।
  10. ऋणात्मक अभिप्रेरण की दशा में कार्य समय पर पूरा न होने पर कर्मचारियों को किया जाता है।
  11. अभिप्रेरण …………. होती है।

उत्तर:

  1. प्रबन्ध
  2. ऊपर, नीचे
  3. निर्देशन
  4. ऋणात्मक
  5. अभिप्रेरण
  6. प्रबन्ध, श्रमिक
  7. विश्वसनीय,
  8. वार्तालाप
  9. पुरस्कृत
  10. दण्डित
  11. आंतरिक शांति।

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प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए

  1. ऐसा संदेशवाहन जो संस्था के संगठन संरचना के पदानुक्रम अनुसार होता है, उसे क्या कहते हैं ?
  2. अनौपचारिक संप्रेषण का वैकल्पिक नाम क्या है ?
  3. संस्था में अफवाह (भ्रम) की स्थिति किस संप्रेषण के कारण निर्मित होती है ?
  4. अधीनस्थों को प्रभावित करने की क्षमता क्या कहलाती है ?
  5. अमौद्रिक अभिप्रेरण का कोई एक उदाहरण लिखिये।
  6. निर्देशन का सार क्या है ?
  7. प्रबंधक किस प्रकार संगठन में कार्य प्रारंभ करते हैं ?
  8. अभिप्रेरण क्या है ?
  9. निम्न समीकरण को पूरा करें- पर्यवेक्षण +-+ नेतृत्व + अभिप्रेरणा = निर्देशन।
  10. निर्देशन के तीन तत्व पर्यवेक्षण, नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा है। चौथा तत्व कौन-सा है ?
  11. अनुलाभ के कोई चार उदाहरण दें।
  12. प्रबंध के संदर्भ में पद का क्या अर्थ है ?
  13. किसे नेता कहते हैं ?
  14. आर्थिक सुरक्षा से क्या अभिप्राय है ?
  15. प्रबंध का कौन-सा कार्य कार्यात्मक प्रबंध कहलाता है ?
  16. किसी व्यक्ति द्वारा किसी विशेष कार्य करने की इच्छा किस पर निर्भर करती है ?
  17. लाभ-भागिता से क्या अभिप्राय है ? 18. भोजन, वस्त्र और आश्रय आदि किस प्रकार की आवश्यकताओं के उदाहरण हैं ?
  18. अनौपचारिक संप्रेषण से कर्मचारियों को होने वाला एक लाभ लिखिए।

उत्तर:

  1. औपचारिक संदेशवाहन
  2. अंगूरलता संप्रेषण
  3. अनौपचारिक संप्रेषण
  4. नेतृत्व क्षमता
  5. प्रशस्तिपत्रप्रदान करना
  6. निर्देशन का सार निष्पादन है
  7. प्रबंधक दिशा-निर्देश देकर संगठन में कार्य प्रारंभ करते हैं
  8. संस्था में काम करने वाले लोगों को अभिप्रेरित करने की तकनीक को अभिप्रेरण कहते हैं
  9. पर्यवेक्षण + संप्रेषण + नेतृत्व + अभिप्रेरणा = निर्देशन
  10. चौथा तत्व संप्रेषण है
  11. किराया मुक्त मकान
    • कार
    • नौकर की सुविधा
    • बच्चों की शिक्षा
  12. प्रबंध के संदर्भ में पद का अर्थ एक व्यक्ति के संगठन में स्थान से है
  13. नेतृत्व के गुण रखने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं
  14. आर्थिक सुरक्षा से अभिप्राय है रोजगार को सुरक्षित रखना तथा बुढ़ापा की व्यवस्था करना
  15. निर्देशन
  16. अभिप्रेरण पर
  17. लाभ-भागिता से अभिप्राय है कर्मचारियों को कंपनी के लाभ में से हिस्सा देना
  18. ये आर्थिक आवश्यकताओं के उदाहरण हैं
  19. अनौपचारिक संप्रेषण से कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि मिलती है।

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प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. प्रबन्ध के सभी स्तरों पर निर्देशन की आवश्यकता होती है।
  2. पर्यवेक्षण नेतृत्व, अभिप्रेरण तथा सन्देशवाहन निर्देशन के महत्वपूर्ण तत्व हैं।
  3. प्रजातान्त्रिक पर्यवेक्षण में सख्त अनुशासन होता है।
  4. मास्लो के अनुसार सम्मान आवश्यकताओं की सबसे पहले सन्तुष्टि की जाती है।
  5. नेतृत्व की आवश्यकता केवल कम दक्ष कर्मचारियों के लिए है।
  6. नेता औपचारिक सत्ता से अपने प्रभाव का उपयोग करता है।
  7. यदि कर्मचारीगण कुशल हैं, तो नेतृत्व की आवश्यकता नहीं होती है।
  8. अंगूरीलता सन्देशवाहन औपचारिक सन्देशवाहन का प्रारूप है।
  9. सन्देशवाहन का आशय विचारों के आदान-प्रदान से है।
  10. सभी प्रबन्धक नेता होता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. असत्य
  8. असत्य
  9. सत्य
  10. सत्य।

प्रश्न 5
सही जोड़ी बनाइये
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 1
उत्तर:

  1. (g)
  2. (e)
  3. (b)
  4. (c)
  5. (d)
  6. (e)
  7. (f)

निर्देशन उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या निर्देशन प्रबंध का महत्वपूर्ण कार्य है ? क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
नहीं, मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। मेरे मतानुसार निर्देशन प्रबंध का अति महत्वपूर्ण कार्य है इसके समर्थन में निम्नलिखित कारण हैं

  1. क्रिया की शुरुआत करना
  2. अभिप्रेरण का साधन है
  3. संगठन में संतुलन बनाता है
  4. कर्मचारियों के प्रयासों को एकीकृत करता है।

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प्रश्न 2.
नेता तथा प्रबंधक के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए बताइए कि क्या एक अच्छा नेता होने के लिए अच्छा प्रबंधक भी होना आवश्यक है ?
उत्तर:
नेता तथा प्रबंधक के बीच का अंतर

नेता

  1. नेता संगठित तथा असंगठित समूह में बना रहता है।
  2. नेता का औपचारिक अधिकारों के अंदर प्रबंधक कार्य करना आवश्यक नहीं होता।
  3. नेता का कार्यक्षेत्र परिभाषित नहीं होता।

प्रबंधक

  1. प्रबंधक केवल संगठित समूह के अंतर्गत होता है।
  2. प्रबंध के कार्य-नियोजन, संगठन, नियंत्रण आदि करने होते हैं।
  3. प्रबंधक का कार्यक्षेत्र व्यापक होता है। प्रबंधक कोइन अंतरों से स्पष्ट होता है

सदैव औपचारिक अधिकारों के अंदरकार्य करता है। एक अच्छा नेता होने के लिए अच्छा प्रबंधक होना आवश्यक नहीं है कि एक अच्छा एवं प्रभावी प्रबंधक बनने के लिए नेता के अच्छे गुणों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 3. निर्देशन के कार्य बताइए।
उत्तर:
निर्देशन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. आदेश-निर्देशन का प्रमुख कार्य अपने अधीनस्थों को आदेश देना होता है।
  2. पर्यवेक्षण-अधीन कर्मचारी दिए गये आदेशानुसार कार्य कर रहे हैं या नहीं, जाँच करने के लिए प्रबंधक को उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करना होता है।
  3. मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण-अधीनस्थों को सही कार्य करने के लिए उनका मार्गदर्शन करना तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें प्रशिक्षण देना निर्देशक का कार्य होता है।
  4. समन्वय-निर्देशन का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कर्मचारियों तथा प्रबंध के मध्य समन्वय अर्थात् तालमेल बनाना होता है।

प्रश्न 4.
नेता तथा प्रबंध में अंतर बताइए।
उत्तर:
नेता तथा प्रबंध के बीच का अंतर –
नेता

  1. नेता प्रबंध का एक भाग होता है। इस प्रकार इसका क्षेत्र सीमित होता है।
  2. नेता का अस्तित्व औपचारिक के साथ-साथ औपचारिक संगठन के अनौपचारिक संगठन में भी होता है।
  3. नेता अपने अनुयायियों को प्रेरित करता है।

प्रबंध

  1. प्रबंधकीय कार्यों में नेतृत्व कार्य होता है। अतः इसका क्षेत्र व्यापक होता है।
  2. प्रबंध का अस्तित्व केवल साथ होता है।
  3. प्रबंध का अस्तित्व केवल साथ होता है।

प्रश्न 5.
धनात्मक व ऋणात्मक अभिप्रेरण में चार अन्तर बताइये।
उत्तर:
धनात्मक व ऋणात्मक अभिप्रेरण में अन्तर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 2

प्रश्न 6.
मौद्रिक एवं अमौद्रिक प्रेरणाओं के कोई चार अन्तर बताइए।
उत्तर:
मौद्रिक एवं अमौद्रिक प्रेरणाओं में अन्तर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 7 निर्देशन IMAGE - 3

प्रश्न 7.
निर्देशन के तत्वों को समझाइए।
उत्तर:
निर्देशन कोई एक कार्य नहीं है अपितु यह अनेक कार्यों का सम्मिश्रण है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों को शामिल किया गया है

1. पर्यवेक्षण – यह निर्देशन कार्य का महत्वपूर्ण तत्व है। इसका अर्थ है अधीनस्थों के कार्य की निगरानी करना तथा उनकी समस्याओं के समाधान में मदद करते हुए प्रभावी निष्पादन को सुनिश्चित करना। .

2. नेतृत्व – एक प्रबंधक तभी सफल हो सकता है जबकि वह नेतृत्व योग्यता से ओत-प्रोत हो। नेतृत्व में अधीनस्थों को प्रभावित करने के लिए उचित प्रबंधकीय शैली प्रदान की जाती है।

3. संदेशवाहन – यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना देने की प्रक्रिया है इसमें व्यक्तियों को यह · बताना होता है कि उन्हें क्या करना है तथा कैसे करना है तथा अधीनस्थों की प्रतिक्रियाओं का पता लगाया जाता है।

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प्रश्न 8.
प्रेरणाएँ कितने प्रकार की होती हैं ? समझाइए।
उत्तर:
प्रेरणाएँ दो प्रकार की होती हैं

  1. मौद्रिक प्रेरणाएँ तथा अमौद्रिक प्रेरणाएँ
  2. धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रेरणाएँ।

(1) मौद्रिक प्रेरणाएँ – इन्हें वित्तीय प्रेरणाएँ भी कहते हैं। इनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में किया जा सकता है। जैसे-वेतन, मजदूरी, बोनस, कमीशन, निःशुल्क चिकित्सा सुविधा तथा वित्तीय अनुलाभ आदि।

अमौद्रिक प्रेरणाएँ – इन्हें अवित्तीय प्रेरणाएँ भी कहा जाता है। इनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में नहीं किया जाता है। जैसे-नौकरी की सुरक्षा, कैरियर में उन्नति के अवसर आदि।

(2) धनात्मक प्रेरणाए – इसमें कर्मचारियों के कार्य की प्रशंसा की जाती है उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। जिससे उनका मनोबल बढ़ता है।ऋणात्मक प्रेरणाएँ-इसमें कर्मचारियों के कार्य में की गई त्रुटियों को बताया जाता है, उन्हें दण्डित’ किया जाता है जिससे उनके मनोबल में गिरावट आती है।

प्रश्न 9.
एक पर्यवेक्षक के कार्यों को बताइए।
उत्तर:
एक पर्यवेक्षक के निम्नलिखित कार्य होते हैं :

  1. कार्यों का नियोजन करना- पर्यवेक्षक किए जाने वाले कार्य की अनुसूची तैयार करता है, निष्पादन का समय निर्धारित करता है, निष्पादन की निरंतरता का निर्धारण करना आदि ।
  2. आदेश-निर्देश देना- पर्यवेक्षक अधीनस्थों को कार्य शुरू करने, बंद करने, सुधारने, परिवर्तन करने, नवीनता लाने आदि के बारे में आदेश-निर्देश देता है।
  3. मार्गदर्शन करना – पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थों को कार्य की पूरी जानकारी देकर उनका मार्गदर्शन करता है।

प्रश्न 10.
संदेशवाहन के माध्यम से क्या आशय है ?
उत्तर:
संदेशवाहन श्रृंखला औपचारिक हो चाहे अनौपचारिक, इस विषय-सामग्री (संदेश, विचार, सुझाव, शिकायत आदि) के आदान-प्रदान करने के लिए कुछ शब्दों, चिन्हों या चित्रों की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें संदेशवाहन के माध्यम (Media) कहा जाता है। इनका प्रयोग अलग-अलग हो सकता है या एक माध्यम की सहायता के लिए दूसरे माध्यम का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-किसी बात को मौखिक रूप में कहा जा सकता है अथवा लिखित अथवा चिन्हों एवं चित्रों द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है। अतः संदेशवाहन के माध्यम को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-

  1. मौखिक
  2. लिखित, तथा
  3. सांकेतिक।

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प्रश्न 11.
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा का कार्य कई पदों से होकर गुजरता हैं । इसके अंतर्गत यह जाना जाता है कि यह कहाँ से शुरू होती है और कहाँ समाप्त होती है। कुण्ट्ज तथा ओ डेनेल ने अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को जरूरत→ आवश्यकता, तनाव कार्यवाही- संतुष्टि श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत किया है।

सबसे पहले जब किसी वस्तु की जरूरत महसूस होती है जो प्रबल होकर आवश्यकता बन जाती है। इस आवश्यकता को पूरा होने तक मनुष्य तनाव में रहता है इस तनाव से छुटकारा पाने के लिए वह अपनी इच्छापूर्ति के लिए कार्यवाही करता है और जब वह लक्ष्य पर पहुँच जाता है तो उसे संतुष्टि का अनुभव होता है।

अभिप्रेरणा द्वारा कर्मचारी को उसकी जरूरत का अनुभव करवाया जाता है जिसे पूरा करने की इच्छा अभिप्रेरित करके की जाती है ताकि कर्मचारी अपने प्रयासों से इच्छा रूपी मंजिल को पा सके और उनकी संतुष्टि हो सके।अभिप्रेरणा के द्वारा कर्मचारियों को संतुष्टि प्राप्त होने के साथ-साथ संगठन के लक्ष्यों को भी प्राप्त कराया जाता है।

प्रश्न 12.
पर्यवेक्षण की आवश्यकता या महत्व को समझाइए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण के महत्व निम्नलिखित हैं

(1) पर्यवेक्षण प्रेरणा शक्ति है – बिना प्रेरणा शक्ति के किसी भी कार्य को पूरा नहीं किया जा सकता। कार्य को अतिशीघ्र पूरा करके लक्ष्य को प्राप्त करने में पर्यवेक्षण बहुत महत्वपूर्ण है।

(2) उपक्रम की सफलता – कोई भी उपक्रम कर्मचारियों के बिना प्रगति नहीं कर सकता। कर्मचारियों में स्फूर्ति लाने, सही मार्गदर्शन देने, दिशानिर्देश देने तथा सामंजस्य बनाए रखने के लिए पर्यवेक्षण आवश्यक है।

(3) अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक – किसी भी उपक्रम की सफलता के लिए उपक्रम में अनुशासन होना चाहिए, उसे बनाए रखने के लिए पर्यवेक्षण आवश्यक है। पर्यवेक्षक एक उच्च अधिकारी होता है।

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प्रश्न 13.
मौद्रिक तथा अमौद्रिक अभिप्रेरणाओं में अंतर बताइए।
उत्तर:
मौद्रिक तथा अमौद्रिक अभिप्रेरणाओं में अंतर

मौद्रिक अभिप्रेरणा

  1. मौद्रिक अभिप्रेरणा में व्यक्ति की इच्छा की अमौद्रिक पूर्ति मुद्रा के रूप में होती है।
  2. इसे मुद्रा में मापा जाता है।
  3. इसमें वेतन, मजदूरी, पेंशन आदि आते हैं।

अमौद्रिक अभिप्रेरणा

  1. अभिप्रेरणा में व्यक्ति की इच्छापूर्ति मुद्रा के अतिरिक्त अन्य तरीकों से होती है।
  2. इसे मुद्रा में नहीं मापा जाता।
  3. इसमें पदोन्नति के अवसर, नौकरी की सुरक्षा

प्रश्न 14.
संप्रेषण या संदेशवाहन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
संप्रेषण तथ्यों, विचारों, भावनाओं, सूचनाओं आदि को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की कला है। संप्रेषण के अंतर्गत केवल संदेश भेजना या प्राप्त करना ही नहीं है, अपितु इसमें समझ भी शामिल है। संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच अर्थ तथा समझ का एक सेतु है। यह द्विमार्गी प्रक्रिया है। यह प्रेषक से प्रारंभ होती है और प्राप्तकर्ता की प्रतिपुष्टि पर समाप्त होती है। इस प्रकार यह एक चक्रीय प्रक्रिया है जो प्रेषक से प्रारंभ होकर प्रेषक पर ही समाप्त होती है।

प्रश्न 15.
एक नेता में संप्रेषण की कुशलता क्यों होनी चाहिए ?
उत्तर:
एक नेता में संप्रेषण की कुशलता निम्न कारणों से होनी चाहिए

1. एक नेता अपने समूह के सभी सदस्यों के लिये सूचना का स्रोत है। सामान्यतया अधिकारियों से प्राप्त सूचनाएँ एवं निर्देश अधीनस्थों को केवल नेताओं द्वारा दिये जाते हैं।

2. नेता अधीनस्थों की समस्याओं और शिकायतों को उच्च स्तर तक पहुंचाता है और समस्याओं की सही सूचना देने के लिए नेता के पास अच्छी संप्रेषण कुशलता होनी चाहिए।

3. अधीनस्थों और अधिकारियों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए नेताओं के पास संप्रेषण की कुशलता होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
नेतृत्व की विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
नेतृत्व की विशेषताएँ (Features of leadership)-

  1. नेतृत्व एक व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता को प्रदर्शित करता है।
  2. नेतृत्व.व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करता है।
  3. नेतृत्व एक सतत् प्रक्रिया है।
  4. नेतृत्व का उद्देश्य सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करना है।
  5. नेतृत्व नेता और अनुकरणकर्ता में अंत: वैयक्तिक संबंध दर्शाता है।

प्रश्न 17.
अभिप्रेरण में प्रयुक्त अंतः संबंधित शब्दों उदेश्य, अभिप्रेरण तथा अभिप्रेरक के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अभिप्रेरण में प्रयुक्त होने वाले अंत: संबंधित शब्द निम्नलिखित हैं-

1. उद्देश्य/प्रेरक (Motive) – यह एक आंतरिक इच्छा है। यह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए शक्ति देता है। उद्देश्य एक व्यक्ति की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है।

2. अभिप्रेरण (Motivation) – यह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों को उनकी श्रेष्ठ योग्यता तक निष्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया है।

3. अभिप्रेरक (Motivators) – यह एक संगठन में लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रयोग की जाने वाली एक तकनीक है। बोनस, बढ़ोत्तरी, पदोन्नति, मान्यता, सम्मान आदि प्रमुख अभिप्रेरक हैं।

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प्रश्न 18.
अभिप्रेरण की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
अभिप्रेरण की विशेषताएँ-

  1. अभिप्रेरणा एक आंतरिक अनुभव है।
  2. यह एक जटिल प्रक्रिया है।
  3. यह एक गतिशील और निरंतर प्रक्रिया है।
  4. अभिप्रेरक सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी।
  5. यह लक्ष्य अभिमुख (Object-oriented) व्यवहार को उत्पन्न करता है।
  6. अभिप्रेरणा प्रक्रिया मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित है।

प्रश्न 19.
अभिप्रेरण प्रक्रिया के निम्नलिखित चरणों के विषय में आप क्या जानते हैं ?

  1. असंतुष्ट आवश्यकता
  2. तनाव
  3. तनाव में कमी।

उत्तर:

1.असंतुष्ट आवश्यकता (Unsatisfied need) – यह मनुष्य की वह आवश्यकता है जिसको संतुष्ट किया जाना है। यह अभिप्रेरणा प्रक्रिया को शुरू करती है।

2. तनाव (Tension) – तनाव की उत्पत्ति असंतुष्ट आवश्यकता द्वारा होती है। यह स्वयं मनुष्य में एक इच्छा उत्पन्न करता है।

तनाव में कमी- यह अभिप्रेरणा प्रक्रिया का अंतिम चरण है। तनाव में कमी तब आती है जब आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित के विषय में आप क्या जानते हैं ?

  1. भौतिक या शारीरिक अवश्यकताएँ
  2. आत्म संतुष्टि की आवश्यकतायें।

उत्तर:

1. भौतिक या शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological needs)- मैस्लो की आवश्यकता सोपान में पहला क्रम (Rank) भौतिक या शारीरिक आवश्यकताओं का आता है। इसमें वे आवश्यकता हैं जो मनुष्य के अस्तित्व और उसको बनाये रखने (Maintain) के लिए आवश्यक हैं। इन आवश्यकताओं की संतुष्टि करने के लिए कर्मचारियों को मौद्रिक (वित्तीय) प्रेरणायें दी जाती है।

2. आत्म-संतुष्टि की आवश्यकतायें (Self actualisation needs) – आत्म-संतुष्टि आवश्यकताओं से अभिप्राय जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने की चाह से है। एक बार कर्मचारी वह बन जाता है जो वह बनना चाहता है तो इसका अर्थ है कि उसकी आत्म संतुष्टि की आवश्यकता संतुष्ट हो गई है।

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प्रश्न 21.
‘अभिप्रेरण’ एवं ‘नेतृत्व’ की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:

1. अभिप्रेरण (Motivation)- अभिप्रेरण से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जो वांछित उद्देश्य प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों में उत्तेजना पैदा करती है। इससे लक्ष्य प्राप्ति व्यवहार पैदा होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, वह एक आंतरिक अभिव्यक्ति या अनुभव है। यह सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकती है। इससे निष्पादन स्तर में सुधार आता है। इससे कर्मचारियों के आवागमन में कमी आती है।

डब्लू. जी. स्काट के शब्दों में “अभिप्रेरण का अर्थ इस प्रक्रिया से है जो इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।”

नेतृत्व (Leadership)- नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समूह के लोगों को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है कि वे सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्वतः ही अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करने लगते हैं। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें अनुयायियों का व्यवहार बदलने की शक्ति होती है।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समूह के लोगों को इस प्रकार प्रभावित किया जाता है कि वे सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये स्वतः अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करने लग जाते हैं।

प्रश्न 22.
निर्देशन के एक तत्व के रूप में नेतृत्व शब्द की व्याख्या करें।
उत्तर:
नेतृत्व (Leadership)- नेतृत्व लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करने हेतु दूसरों को प्रेरित करने की योग्यता है। इसे अधीनस्थों को प्रभावित करने की प्रक्रिया के रूप में भी देखा जाता है ताकि वे संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में उत्साहपूर्वक योगदान करें।

नेतृत्व प्रबंध का एक अंग होता है, किंतु पूर्ण प्रबंध नहीं। यह दूसरों को प्रभावित करने की एक सतत् प्रक्रिया है। इसका कहीं भी अंत नहीं होता। कुन्टज और ओडोनेल के अनुसार, “नेतृत्व एक उच्चाधिकारी की अधीनस्थों को आत्म-विश्वास और उत्साह के साथ काम करने हेतु प्रेरित करने की योग्यता है।”

प्रश्न 23.
पर्यवेक्षण की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण की विशेषताएँ (Features of supervision) निम्नलिखित हैं

  1. यह प्रबंध के तीन स्तरों पर की जाने वाली एक सार्वभौमिक क्रिया है
  2. यह प्रबंध के निर्देशन कार्य का एक मुख्य अंग है।
  3. यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इसकी आवश्यकता हर समय रहती है।
  4. यह सुनिश्चित करता है कि काम वांछित प्रगति से चल रहा है।
  5. इसका उद्देश्य मानवीय एवं अन्य साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना होता है।

प्रश्न 24.
औपचारिक संप्रेषण की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. यह संप्रेषण लिखित या मौखिक दोनों प्रकार का हो सकता है।
  2. यह संप्रेषण उन लोगों के बीच होता है जिनके बीच संगठन द्वारा औपचारिक संबंध स्थापित किये गये हों।
  3. इसका पथ निश्चित होता है।
  4. औपचारिक संप्रेषण में संगठन से संबंधित अधिकृत सूचनाओं का ही प्रेषण किया जाता है। निजी संदेशों का नहीं।

प्रश्न 25.
अनौपचरिक या अंगूरीतला संप्रेषण की मुख्य विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संप्रेषण की विशेषतायें –

  1. अनौपचारिक संप्रेषण सामाजिक संबंधों द्वारा उत्पन्न होता है अर्थात् यह संगठन के प्रतिबंधों से बाहर है। अधिकारी-अधीनस्थ संबंध जैसा कोई संबंध इसके बीच नहीं आता।
  2. इसके द्वारा कार्य संबंधी तथा व्यक्ति संबंधी दो प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती है।
  3. अनौपचारिक या अंगूरीलता संप्रेषण का मार्ग निश्चित नहीं होता। यह अंगूर की बेल की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर गुजरता है।
  4. इसमें अफवाहों तथा गलतफहमियों की संभावना अधिक रहती है। 5. अनौपचारिक संप्रेषण द्वारा खबरें जंगल की आग की तरह फैलती हैं।

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प्रश्न 26.
त्रुटिपूर्ण अनुवाद संप्रेषण की किस प्रकार की बाधा है ? उस प्रकार से संबंधित अन्य बाधायें लिखकर किसी एक बाधा के बारे में लिखें।
उत्तर:
त्रुटिपूर्ण अनुवाद भाषा संबंधी बाधा है। भाषा संबंधी अन्य बाधायें हैं

  1. संदेशों की गलत व्याख्या।
  2. भिन्न अर्थों वाले चिह्न या शब्द।
  3. अस्पष्ट मान्यतायें।
  4. अर्थहीन तकनीकी भाषा।
  5. शारीरिक भाषा व संकेतों का संप्रेषण।

संदेशों की गलत व्याख्या (Badly experessed messages)- भाषा के अस्पष्ट होने के कारण संदेशों को गलत व्याख्या होने की संभावना बनी रहती है। शब्दों का गलत चुनाव, अभद्र शब्द, वाक्यों का गलत क्रम आ से यह बाधा उत्पन्न होती है।

पान 27.
माध्यम, दिशा तथा विधि के आधार पर संप्रेषण के प्रकार लिखें।
उतर-

  1. माध्यम के आधार पर संप्रेषण के प्रकार-
    • औपचारिक संप्रेषण तथा
    • अनौपचरिक संप्रेषण
  2. दिशा के आधार पर संप्रेषण-
    • नीचे की ओर (अधोमुखी) संप्रेषण
    • ऊपर की ओर (ऊर्ध्वमुखी) संप्रेषण
    • समतल संप्रेषण
    • तिरछा संप्रेषण।
  3. विधि के आधार पर संप्रेषण-
    • मौखिक
    • लिखित
    • सांकेतिक।

प्रश्न 28.
संप्रेषण प्रक्रिया संदर्भ में ‘संदेशवाहक/प्रेषक’ तथा ‘शोर’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

1. संदेशवाहक/प्रेषक (Communicator/Sender)- यह वह व्यक्ति/संस्था है जो संदेश भेजता है। संप्रेषण प्रक्रिया तब शुरू होती है जब प्रेषक कुछ विचार प्राप्त करता है और वह उस विचार को किसी के साथ बाँटना चाहता है।

2.शोर (Noise)- शोर संदेश प्रेषक से उसके प्राप्तकर्ता तक के मार्ग में कहीं भी उत्पन्न होने वाले एक अवांछित (Undesirable) ध्वनि है जो संप्रेषण प्रक्रिया को बाधित करती है। संप्रेषण को बाधित करने वाला शोर बस के चलने, दो व्यक्तियों के काफी नजदीक से बात करने या आसपास किसी के चिल्लाने अथवा खाँसने के कारण उत्पन्न हो सकता है। पत्र का खोजा जाना, टेलीफोन लाइन का बंद हो जाना अथवा सुनने वाले का ध्यान संदेश पर न होना आदि भी शोर के अंग माने जाते हैं। शोर का स्रोत आंतरिक और बाह्य दोनों हो सकते हैं।

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प्रश्न 29.
औपचारिक संप्रेषण के लाभ लिखें।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण के लाभ –

  1. यह अधिक व्यवस्थित होता है।
  2. सूचना के स्रोत का सरलता से पता लगाया जा सकता है।
  3. इसमें विभिन्न कर्मचारियों के उत्तरदायित्वों को निश्चित करना सरल होता है।
  4. इसके द्वारा कर्मचारियों के कार्य-निष्पादन को नियंत्रित करना सरल होता है।

प्रश्न 30.
औपचारिक संप्रेषण के दोष लिखें।
उत्तर:
औपचारिक संप्रेषण के दोष निम्न हैं

1. इस तरह का संप्रेषण से सोपान श्रृंखला के आधार पर कार्य करते हुए धीमी गति का होता है। विशेषकर जब विभिन्न अधिकार स्तर के द्वारा संप्रेषण किया जाता है।

2. औपचारिक संप्रेषण मुख्य रूप से व्यक्तित्व शून्य तरीके से किया जाता है। व्यक्तिगत लगाव की कमी रहती है।
3. सही सूचनाओं या संदेशों के प्रतिकूल प्रभाव या विवेचन की संभावना के तथ्य संप्रेषित नहीं किये जाते। ऐसा आलोचना से बचने के लिए भी किया जा सकता है।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

नियुक्तिकरण Important Questions

नियुक्तिकरण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
“भर्ती, भावी कर्मचारियों की खोज करने तथा उन्हें रिक्त कार्यों के लिये आवेदन करने के लिए प्रेरणा देने तथा प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया होती है।” यह परिभाषा दी है
(a) एलिन
(b) डेल.एस.बीच
(c) फिलिप्पो
(d) कूण्ट्ज एवं ओडोनेल।
उत्तर:
(c) फिलिप्पो

प्रश्न 2.
भर्ती के बाह्य स्रोत हैं –
(a) विज्ञापन
(b) रोजगार कार्यालय
(c) वर्तमान कर्मचारियों के मित्रगण
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
साक्षात्कार के उद्देश्य हैं –
(a) प्रार्थी की उपयुक्तता
(b) प्रार्थी को पद, संस्था के बारे में पूर्ण जानकारी देना
(c) प्रार्थी को संतोष
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न  4.
रोजगार कार्यालय भर्ती का स्रोत है –
(a) आन्तरिक
(b) बाह्य
(c) उपर्युक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) बाह्य

प्रश्न  5.
सर्वोत्तम विकल्प का चयन किस पर आधारित होता है –
(a) पूर्वानुमान पर
(b) कार्यविधि पर
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन
(d) नीति।
उत्तर:
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन

प्रश्न 6.
प्रशिक्षण में बल दिया जाता है –
(a) सैद्धान्तिक ज्ञान पर
(b) सामान्य ज्ञान पर
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर
(d) व्यावहारिक ज्ञान पर।
उत्तर:
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर

प्रश्न 7.
निम्न में से क्या कार्य पर प्रशिक्षण’ है –
(a) केस अध्ययन
(b) भूमिका निर्वाह प्रशिक्षण
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण
(d) सम्मेलन एवं गोष्ठियाँ।
उत्तर:
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण

प्रश् 8.
नियुक्तिकरण का सम्बन्ध है –
(a) राजनीतिक घटक से
(b) आर्थिक घटक से
(c) सामाजिक घटक से
(d) मानकीय घटक से।
उत्तर:
(d) मानकीय घटक से

प्रश्न 9.
निम्न में से क्या मौद्रिक अभिप्रेरण है –
(a) बोनस
(b) पेंशन
(c) अवकाश वेतन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
भर्ती प्रक्रिया में खोज की जाती है –
(a) वरिष्ठ कर्मचारियों की
(b) सेवानिवृत्त कर्मचारियों की
(c) भावी कर्मचारियों की
(d) विशिष्ट कर्मचारियों की।
उत्तर:
(c) भावी कर्मचारियों की

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. चयन …………. के बाद शुरू होता है।
  2. विकास का लक्ष्य कर्मचारी के …………. व्यक्तित्व का विकास करना है।
  3. गैर मानवीय संसाधन को …………. साधन क्रियाशील बनाता है।
  4. पूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति भर्ती का …………. स्रोत है।
  5. …………. एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिसमें आवेदकों को चयनित तथा अचयनित दो भागों में विभाजित किया जाता है।
  6. संस्था में रिक्त पदों हेतु उपयुक्त कर्मचारियों का चयन व कार्य प्रदान करना …………. कहलाता है।
  7. संस्थानों में भर्ती के …………. स्रोत होते हैं।
  8. कर्मचारियों को भावी उच्च पदों हेतु तैयार करने की प्रक्रिया को …………. कहते हैं।
  9. कार्य परिवर्तन या कार्य बदली विधि का सर्वाधिक प्रचलन …………. में होता है।
  10. संस्था में कर्मचारियों की आवश्यकता का आकलन …………. प्रबन्धक द्वारा होता है।

उत्तर:

  1. पूर्व परीक्षा
  2. समग्र
  3. मानवीय
  4. आंतरिक
  5. चयन
  6. नियुक्तिकरण
  7. दो
  8. विकास,
  9. बैंक
  10. कार्मिक।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. भर्ती के किसी एक आंतरिक स्रोत का नाम बताइये।
  2. भर्ती के किसी बाह्य स्रोत का नाम बताइये।
  3. चयन प्रक्रिया का अंतिम चरण क्या है ?
  4. जब कर्मचारी को संस्था के विभिन्न प्रकार के कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है, उस प्रशिक्षण पद्धति को क्या कहते हैं ?
  5. किस प्रशिक्षण पद्धति में कर्मचारियों को, कृत्रिम परिस्थिति में, कारखाने से अलग वास्तविक उपकरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है ?
  6. प्रशिक्षण से किसमें वृद्धि होती है ?
  7. कर्मचारी वर्ग में प्रशिक्षण से किस बात का संचार होता है ?
  8. ‘कार्य पर प्रशिक्षण’ कहाँ दिया जाता है ?
  9. भर्ती का कौन-सा स्रोत विस्तृत चयन प्रदान करता है ?
  10. स्थानांतरण भर्ती का कौन-सा स्रोत है ?
  11. प्रशिक्षण की कितनी विधियाँ हैं ? उन विधियों के नाम लिखिए।
  12. भर्ती के किस स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है ?
  13. कर्मचारियों को प्रशिक्षण से होने वाला एक लाभ लिखिए।
  14. शिक्षा क्या है ?
  15. प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर का एक बिन्दु लिखिए।

उत्तर:

  1. स्थानांतरण
  2. विज्ञापन द्वारा भर्ती
  3. नियुक्ति
  4. कार्य परिवर्तन विधि
  5. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण विधि
  6. मनोबल
  7. आत्मविश्वास
  8. कार्यस्थल पर
  9. भर्ती का बाह्य स्रोत
  10. आंतरिक स्रोत
  11. शिक्षण की दो विधियाँ हैं –
    • कार्य पर प्रशिक्षण
    • कार्य से पृथक् प्रशिक्षण
  12. भर्ती के आंतरिक स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है।
  13. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है
  14. शिक्षा कर्मचारियों के ज्ञान तथा समझ को बढ़ाने वाली एक प्रक्रिया है,
  15. प्रशिक्षण जॉब प्रधान प्रक्रिया है, जबकि विकास कैरियर प्रधान प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान, योग्यता, क्षमता में वृद्धि होती है।
  2. नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक भाग है।
  3. नियुक्तिकरण कर्मचारियों के अपनत्व की भावना विकसित करता है
  4. कर्मचारियों की भर्ती तथा चयन दोनों समान है।
  5. नियुक्तिकरण की प्रक्रिया पर किया गया धन का व्यय धन की बर्बादी है।
  6. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण में वास्तविक कार्यस्थल में कार्य के दौरान प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  7. कार्य से संबंधित सैद्धांतिक व व्यावहारिक प्रशिक्षण, संयुक्त प्रशिक्षण के अंतर्गत दिया जाता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. सत्य

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 1

उत्तर:

  1. (b)
  2. (c)
  3. (a)
  4. (e)
  5. (d)
  6. (f)

नियुक्तिकरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कार्य से परे प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. प्रकोष्ठ शाला प्रशिक्षण- इस पद्धति के अंतर्गत नये कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से अलग से एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की जाती है। एक अनुभवी एवं प्रशिक्षित प्रशिक्षक को इस केन्द्र का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। इस केन्द्र में औजारों एवं मशीनरी को इस ढंग से लगाया जाता है ताकि कारखाने जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाये। जब कर्मचारी प्रशिक्षित हो जाते हैं तो उन्हें वास्तविक कार्य पर लगा दिया जाता है।

2. विशिष्ट पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन – प्रशिक्षण की इस विधि में संस्था के अंदर ही विशेष पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन करके, प्रबंधकीय वर्ग के विभिन्न लोगों को अनुभवी एवं विशेषज्ञ व्यक्तियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार का होता है। इस तरह के प्रशिक्षण देने की अनेक विधियाँ हैं।

3. केस अध्ययन प्रणाली – इस विधि में वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा प्रशिक्षार्थी प्रबंधकों को एक विशेष समस्या को सुलझाने के लिए कहा जाता है। सभी परीक्षार्थी अपने-अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर समस्या को हल निकालते हैं तथा एक-दूसरे के साथ मिलान करते हैं। एक ही समस्या के विभिन्न समाधान होने पर उनमें तर्क-वितर्क होता है।

सभी अपने-अपने समाधान के पक्ष में प्रमाण जुटाने का प्रयत्न करते हैं। इस तर्क-वितर्क को वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा भी सुना जाता है। तर्क-वितर्क के आधार पर तथा अपने अनुभवों का प्रयोग करके वरिष्ठ प्रबंधक एक उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है और उनके द्वारा किये गये प्रयासों में हुई त्रुटियों को स्पष्ट करता है।

4. चलचित्र – चलचित्र बहुत प्रभावी पद्धति हो सकती है, जहाँ कौशल का प्रदर्शन करना आवश्यक है। इसका सम्मेलन परिचर्चाओं में बहुत प्रयोग होता है।

5. कम्प्यूटर माडलिंग – यह कम्प्यूटर पर आधारित प्रशिक्षण है। इस विधि में प्रशिक्षार्थी अपने कौशल में वृद्धि के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करता है। इस विधि का प्रयोग वहाँ होता है, जहाँ प्रशिक्षण अधिक महँगा हो। जैसे एक टाईम बम को प्रभावहीन करने का प्रशिक्षण देना।

6.नियोजित अनुदेश – इस विधि के अंतर्गत किसी संक्षिप्त घटना पर विचार किया जाता है। नियोजित अनुदेश में एक संक्षिप्त घटना को कक्षा में विचार के लिए रखा जाता है। प्रशिक्षक व विद्यार्थी सभी आपसी तर्कवितर्क के आधार पर समस्या का उचित समाधान ढूँढने का प्रयत्न करते हैं । इस विधि का मुख्य लाभ यह है कि इसमें प्रशिक्षक से प्रश्न पूछकर महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 2.
चयन प्रक्रिया में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की रोजगार परीक्षाओं का वर्णन करें।
अथवा
विभिन्न प्रकार की रोजगार चयन परीक्षाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। .
अथवा
किन्हीं चार रोजगार परीक्षणों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
चयन परीक्षाएँ (Tests for selection) – आवेदकों के चयन की कई परीक्षायें हैं। उनमें से कुछ परीक्षाओं का नीचे वर्णन किया गया है

(i) बुद्धिमता परीक्षा (intelligence test) – इस परीक्षा के पीछे यह मान्यता है कि अधिक बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी कार्य को शीघ्रता एवं सरलता से सीख सकता है और इनके प्रशिक्षण पर संस्था को अधिक खर्च नहीं करना पड़ता। प्रार्थियों की बुद्धिमता की जाँच के लिए उनकी ग्रहण शक्ति (Reception power), स्मरणशक्ति (Memory), तर्कशक्ति (Resasoning power) आदि को देखा जाता है। इस परीक्षण के लिए प्रश्नों की एक लंबी सूची तैयार करके प्रार्थियों को एक निश्चित समय में उत्तर देने को कहा जाता है। इसी आधार पर उनकी बुद्धिमता के स्तर का पता चलता है।

(ii) प्रवृत्ति परीक्षा (Aptitude test) – इस परीक्षा द्वारा प्रार्थी की छिपी हुई योग्यताओं का पता लगाने का प्रयास किया जाता है ताकि यह निश्चित किया जा सके कि उसे प्रशिक्षण द्वारा सिखाया जा सकता है अथवा नहीं। अन्य शब्दों में, वह परीक्षा जो प्रार्थी की सीखने की क्षमता का माप करती हो, प्रवृत्ति परीक्षा कहलाती है। प्रवृत्ति परीक्षा में यह देखा जाता है कि क्या एक व्यक्ति में किसी काम को सीखने की क्षमता है।

(iii) व्यक्तित्व परीक्षा (Personality test) – इस परीक्षा के द्वारा यह देखा जाता है कि एक व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों के साथ मेल-मिलाप करने, उन्हें प्रभावित करने एवं उन्हें अभिप्रेरित करने की कितनी योग्यता है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि जिस कार्य पर उसे नियुक्त किया जायेगा, उसमें उपस्थित होने वाली बाधाओं से निपटने के लिए उसमें जरूरी शक्ति है या नहीं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति जो दूसरे के दुःखों को नहीं समझता, एक अच्छा डॉक्टर नहीं हो सकता। इसी प्रकार एक व्यक्ति जिसको लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता वह एक अच्छा विक्रयकर्ता नहीं हो सकता।

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प्रश्न 3.
कार्य पर प्रशिक्षण से क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण (On the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत श्रमिक को उसके निकटतम पर्यवेक्षक (Immediate supervisor) द्वारा कार्यस्थल पर ही प्रशिक्षण दिया जाता है अर्थात् श्रमिक काम को वास्तविक परिवेश में ही सीखता है। यह करके सीखो (Learning by doing) के सिद्धांत पर आधारित है। यह विधि केवल तकनीकी कार्यों के लिये उपयुक्त है।
कार्य पर प्रशिक्षण की सामान्य प्रचलित विधियाँ (Common and popular methods of on the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. नवसिखुआ प्रशिक्षण (Apprenticeship training)- इस विधि का प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ किसी विशेष कार्य में पूर्ण-दक्षता (Complete preficiency) प्राप्त करने के लिए एक लंबे समय तक प्रशिक्षण की आवश्यकता हो। इसमें प्रशिक्षण लेने वाले व्यक्ति को एक निश्चित समय तक किसी विशेषज्ञ के साथ काम करना पड़ता है। प्रशिक्षण की अवधि प्रायः दो वर्ष से सात वर्ष तक होती है।

प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञ द्वारा कार्य के सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों पहलुओं की पूर्ण जानकारी दी जाती है। नियोक्ता द्वारा परीक्षण अवधि में निर्वाह भत्ता (Stipend) भी पारिश्रमक के रूप में दिया जाता है। पूर्ण दक्षता प्राप्त कर लेने पर कर्मचारी को वास्तविक कार्य सौंप दिया जाता है।

2. अनुशिक्षण (Coaching)- इस विधि में अधिकारी प्रशिक्षणार्थी का एक शिक्षक के रूप में मार्गदर्शन करता है और दिशा-निर्देश देता है। वह प्रशिक्षार्थी का मार्गदर्शन करता है कि वह किस प्रकार अपनी कमजोरी को दूर कर सकता है।

अधिकारी कर्मचारी के कार्य-निष्पादन और व्यवहार में आवश्यक परिवर्तनों का सुझाव देता है। शिक्षक संगठन के उद्देश्यों के साथ-साथ व्यक्तियों के उद्देश्यों को भी महत्व देता है।

3. संयुक्त प्रशिक्षण (Intership training)- संयुक्त प्रशिक्षण प्रणाली द्वारा तकनीकी संस्थाएँ एवं व्यावसायिक संस्थाएँ मिलकर अपने सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में संतुलन स्थापित करना है।

इस प्रशिक्षण प्रणाली के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थाएँ अपने विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान तो स्वयं प्रदान करती हैं लेकिन व्यावहारिक ज्ञान के लिए उन्हें व्यावसायिक संस्थाओं में भेजती हैं। इस प्रकार जो कर्मचारी व्यावसायिक संस्थानों में पहले से काम कर रहे हैं,

उन्हें आधुनिकतम सैद्धांतिक ज्ञान (Latest theoretical knowledge) उपलब्ध कराने के लिए समय-समय पर शिक्षण संस्थाओं में भेजा जाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार की संस्थायें एक-दूसरे की सहायता करती हैं।

4. पद-दली प्रशिक्षण-इस विधि का उद्देश्य एक अधिकारी को संस्था के सभी विभागों की जानकारी प्रदान करना है। अधिकारी को पहले एक विभाग में नियुक्त किया जाता है और जब वह इस विभाग के बारे में सभी जानकारियाँ प्राप्त कर लेता है, तो उसे किसी दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है और इसके बाद अन्य विभागों में इस प्रशिक्षण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य संस्था में ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराना है जो विपरीत परिस्थितियों में किसी भी विभाग को संभाल सके।

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प्रश्न 4.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के एक चरण के रूप में अभिविन्यास (Orientation) के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अभिविन्यास के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. नये कर्मचारी को संस्था से परिचित कराना।
  2. नये कर्मचारी को नये वातावरण में अति शीघ्र समायोजित करने का प्रयत्न करना।
  3. नये कर्मचारी तथा वर्तमान कर्मचारियों में मधुर संबंध विकसित करना।
  4. नये कर्मचारी को अनुभव करवाना कि वह संगठन का एक सदस्य है।
  5. नये कर्मचारी में संस्था के प्रति वफादारी का विकास करना।
  6. नये कर्मचारी का वर्तमान कर्मचारियों के साथ मिलकर एक टीम के सदस्य के रूप में काम करना।
  7. नये कर्मचारी को संस्था की नीतियों के बारे में अवगत कराना।
  8. इस बात को सुनिश्चित करना कि नया कर्मचारी संस्था के प्रति नकारात्मक अभिरुचि न बनाये।

प्रश्न 5.
अभिविन्यास कार्यक्रम के अंतर्गत नये कर्मचारियों को कौन-कौन सी सूचनाएँ दी जा सकती हैं ?
उत्तर:
अभिविन्यास कार्यक्रम (Induction programme) – के अंतर्गत नये कर्मचारी को निम्नलिखित सूचनायें दी जा सकती हैं

  1. कंपनी का संक्षिप्त इतिहास
  2. कंपनी की नीतियाँ।
  3. कंपनी का संगठनात्मक ढाँचा।
  4. विभागों की स्थिति (Location)
  5. कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधायें।
  6. नये कर्मचारी के अधिकार तथा कर्तव्य।
  7. कार्य करने के घंटे।
  8. अवकाश के नियम।
  9. अनुशासनं संबंधी नियम।

प्रश्न 6.
कारण सहित बताइए कि भर्ती के आंतरिक स्रोत बाह्य स्रोतों से बेहतर क्यों हैं ?
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत, बाह्य स्रोतों से निम्नलिखित कारणों से बेहतर हैं

1. अभिप्रेरणा में वृद्धि- सभी आंतरिक स्रोतों और विशेषकर पदोन्नति द्वारा भर्ती किए जाने पर कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है। यदि उन्हें पहले से ही मालूम हो कि उनकी पदोन्नति हो सकती है तो उच्च पद पर नियुक्त होने की इच्छा उनके मनोबल में वृद्धि करेगी और वे अपने कार्यों को अत्यधिक कुशलता के साथ करेंगे।

2. औद्योगिक शांति- भर्ती के आंतरिक स्रोतों का प्रयोग किए जाने पर पदोन्नति की खुशी में कर्मचारी वर्ग संतुष्ट रहता है और परिणामतः औद्योगिक शांति स्थापित होती है। पदोन्नति प्रक्रिया नीचे से ऊपर पूरे संगठन में चलती है। इसी विचार से कर्मचारी सीखने व अभ्यास करने पर पूरा जोर लगाते हैं।

3. सरल चयन- संस्था के अंदर काम कर रहे व्यक्तियों के बारे में हर तरह की जानकारी होती है। यही कारण है कि उनका उच्च पद के लिए चयन करने पर किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

4. प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं- प्रस्तुतीकरण का अर्थ नए कर्मचारी को उस वातावरण से परिचित करवाना है जहाँ उसे काम करना है। भर्ती के इस स्रोत में कर्मचारियों को यह जानकारी पहले से ही होती है। अतः इस स्रोत में प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं है।

5. प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं-चूँकि कर्मचारी पहले से प्रशिक्षित होते हैं तो उन्हें पुनः प्रशिक्षण देने की आवश्यकता नहीं होती। अतः प्रशिक्षण पर होने वाले खर्च से भी संस्था का बचाव होता है।

प्रश्न 7.
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर लिखिए।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर –
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 2

प्रश्न 8.
नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाने वाले बिंदु लिखें।
उत्तर:
निम्नलिखित बिंदु नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाते हैं

  1. यह अन्य साधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग संभव बनाता है।
  2. यह अन्य प्रबंधकीय कार्यों के निष्पादन को संभव बनाता है।
  3. यह सही व्यक्ति को सही कार्य दिलाता है।
  4. यह कर्मचारियों के विकास में सहायक है।
  5. यह कर्मचारियों के आवश्यकता से अधिक होने को रोकता है।
  6. यह योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को खोजने में सहायक है।
  7. यह मानवीय व्यवहार की जटिलताओं का सामना करने में सहायक है।

प्रश्न 9.
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को होने वाले लाभों की सूची बनायें।
उत्तर:
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. कार्य संतुष्टि।
  2. दुर्घटनाओं में कमी।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि।
  4. पदोन्नति की अच्छी संभावनाएँ।
  5. कार्यक्षमता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि।
  6. जीवन स्तर में सुधार।

प्रश्न 10.
भर्ती के बाह्य स्रोत के रूप में वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (Recommendation of exisiting employees) पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (On the recommendations of existing employees)कई व्यावसायिक इकाइयाँ अपने कर्मचारियों को अपने यहाँ रोजगार देने के लिए उनके सगे-संबंधियों, मित्रों एवं अन्य जान-पहचान के लोगों के नामों के सिफारिश करने को प्रोत्साहित करती हैं। कुछ फर्मों का यह विश्वास है कि यह नीति एक मूल्यवान धरोहर है जिससे वर्तमान कर्मचारियों की साख भी बनी रहती है तथा इससे भरोसे के व्यक्ति भी मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब कोई वर्तमान कर्मचारी या व्यावसायिक मित्र किसी व्यक्ति की सिफारिश करता है तब अपने आप ही उस व्यक्ति की प्राथमिक जाँच हो जाती है।

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प्रश्न 11.
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में शारीरिक या डॉक्टरी परीक्षा के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में डॉक्टरी परीक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  1. संबंधित कार्य के लिए आवश्यक क्षमता की जानकारी प्राप्त करना।
  2. संस्थाओं को संक्रामक रोगों से सुरक्षित रखना।
  3. कानूनी दावों के अंतर्गत अनुचित दावों के विरुद्ध संस्था को सुरक्षा प्रदान करना।
  4. कर्मचारियों की चिकित्सा पर अत्यधिक खर्च को रोकना।
  5. दुर्घटनाओं की दर, श्रम-आवर्तन और अनुपस्थिति दर को कम करना।

प्रश्न 12.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भर्ती के किन्हीं पाँच आंतरिक स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत-जब संगठन के भीतर से ही विभिन्न पदों की पूर्ति की जाती है तो इसे आंतरिक स्रोत कहते हैं। भर्ती के आंतरिक स्रोत निम्नांकित हैं

1. स्थानांतरण-जब किसी कर्मचारी को उसके पद के अनुरूप उसी पद के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है तो इसे स्थानांतरण कहते हैं । स्थानांतरण होने पर अधिकारों तथा पारिश्रमिक के स्तर में कोई अंतर नहीं होता है।

2. पदोन्नति-जब कर्मचारियों को जो कि संगठन में पहले से ही कार्यरत हैं उन्हें अनुभव, वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर पदोन्नत किया जाता है, इसे पदोन्नति कहते हैं।

3. अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन-जब किसी कारणवश संगठन की किसी एक इकाई में कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो उन अतिरिक्त कर्मचारियों को संगठन की ही दूसरी इकाई में जहाँ कर्मचारियों की संख्या कम है, अंतरित कर दिया जाता है। इसे ‘अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन’ कहा जाता है।

भर्ती के बाह्य स्रोत-जब संगठन के बाहर से कर्मचारियों को कार्य पर रखा जाता है तो इसे बाह्य स्रोत कहा जाता है। भर्ती के बाह्य स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सेवानिवृत्त सैन्य कर्मचारी-मिलिट्री में कार्यरत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु कम होने के कारण प्रबंधक इन्हें भर्ती करना पसंद करते हैं क्योंकि ये बहुत मेहनती, निष्ठावान तथा अनुशासनप्रिय होते हैं।

2. भूतपूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति-ऐसे कर्मचारी जो छंटनी के परिणामस्वरूप निकाल दिए गए थे या स्वयं किन्हीं कारणवश काम छोड़कर गए थे परन्तु अब कार्य करने के इच्छुक हैं और ऐसे कर्मचारियों का पुराना रिकॉर्ड यदि अच्छा है तो नए कर्मचारियों की तुलना में इन्हें रखना लाभप्रद होता है।

3. वर्तमान कर्मचारियों के मित्र तथा रिश्तेदार-वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के मित्र व रिश्तेदार जो कि योग्य एवं कर्तव्यनिष्ठ हों उन्हें भी रिक्त पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

4. परिसर भर्ती-कारखानों या संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रार्थियों के आवेदन पत्र संस्था के द्वारा जमा करवा कर उनमें से कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

5. शिक्षण संस्थाओं तथा तकनीकी संस्थाओं द्वारा विभिन्न शिक्षण तथा तकनीकी संस्थाओं से संपर्क करके रिक्त स्थानों पर होनहार नवयुवकों का चयन करके उनकी आवश्यकतानुसार भर्ती की जाती है।

6. विज्ञापन द्वारा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, रेडियो, टेलीविजन तथा इंटरनेट पर विज्ञापन देकर भी आवेदन बुलवाए जा सकते हैं, जिनमें से योग्य कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर –

आंतरिक स्रोत

  1. आंतरिक स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को विद्यमान कर्मचारियों से भरना है नए कर्मचारियों से भरना है।
  2. इसके अंतर्गत कम समय लगता है।
  3. यह मितव्ययी होते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा सीमित होती है इसलिए अधिक कुशल कर्मचारी नहीं मिल पाते। ।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में कमी होती है।
  6. इसके अंतर्गत पदोन्नति तथा स्थानान्तरण आते

बाह्य स्रोत

  1. बाह्य स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को
  2. इस स्रोत के अंतर्गत अधिक समय लगता है
  3. बाह्य स्रोत के द्वारा भर्ती में अधिक खर्च वहन करने पड़ते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा विस्तृत होती है तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कर्मचारी मिल जाते हैं।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि आती है।
  6. इसके अंतर्गत रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती, विज्ञापन द्वारा भर्ती आदि आते हैं।

प्रश्न 14.
प्रशिक्षण से संस्था तथा कर्मचारियों को कौन-कौन से लाभ होते हैं ?
उत्तर:
प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों को किसी विशेष प्रकार के कार्य को सही तथा कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए उसके ज्ञान तथा निपुणता में वृद्धि की जाती है। प्रशिक्षण देने से संस्था तथा कर्मचारी दोनों को लाभ होता है।
संस्था को लाभ-प्रशिक्षण देने पर एक संस्था को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. माल तथा मशीन का सही तथा मितव्ययी ढंग से प्रयोग होता है।
  2. उत्पादित माल की किस्म तथा मात्रा में सुधार होता है।
  3. दुर्घटनाओं में कमी आती है।
  4. पर्यवेक्षण की आवश्यकता कम पड़ती है।
  5. श्रमिकों की उपस्थिति बढ़ जाती है।
  6. औद्योगिक संबंधों में सुधार होता है।

कर्मचारियों को लाभ-प्रशिक्षण प्राप्त होने पर कर्मचारियों को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है।
  2. दुर्घटनाओं का भय कम होता है।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि होती है।
  4. पदोन्नति के अवसरों में वृद्धि होती है।
  5. कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  6. कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार होता है।

प्रश्न 15.
चार्ट के माध्यम से भर्ती के दोनों स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण image - 4

प्रश्न 16.
भर्ती तथा चयन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती तथा चयन में अंतर –
भर्ती

  1. भर्ती में भविष्य के लिए कर्मचारियों की खोज करके उन्हें आवेदन-पत्र भेजने हेतु प्रोत्साहित
  2. भर्ती, चयन से पहले की जाती है।
  3. भर्ती के विभिन्न स्रोत होते हैं।
  4. भर्ती में प्रार्थियों की संख्या बहुत अधिक होती है।
  5. भर्ती एक सकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. भर्ती एक साधन है।

चयन

  1. चयन में प्रार्थियों को दो भागों में बाँटा जाता है एक वे जिन्हें चुना गया है तथा दूसरे वे जिन्हें किया जाता है।अयोग्य घोषित किया गया है।
  2. चयन, भर्ती के बाद होता है।
  3. चयन की एक निश्चित प्रक्रिया होती है।
  4. चयन में प्रार्थियों की संख्या भर्ती से बहुत कम होती है।
  5. चयन एक नकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. चयन एक साध्य है।

प्रश्न 17.
प्रशिक्षण की कोई पाँच विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की पाँच विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. कार्य पर प्रशिक्षण- इस विधि के अंतर्गत जिस स्थान पर कर्मचारी कार्य करते हैं उसी स्थान पर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है। कार्य पर प्रशिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य कम से कम समय में कर्मचारियों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने से है। इसमें प्रशिक्षार्थी रुचि से कार्य सीखता है तथा काम की बारीकियों से परिचित हो जाता है। इस विधि का एक बड़ा दोष है कि कार्य में बाधा उत्पन्न होती है और उत्पादन में गिरावट आती है।

2. प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रशिक्षण- इस विधि में प्रशिक्षण देने के लिए अलग-अलग विशिष्ट प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाते हैं। ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र, सरकार या उद्योगपतियों द्वारा चलाए जाते हैं। इन केन्द्रों पर सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। इस विधि में उत्पादन कार्य में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती।

3. पर्यवेक्षकों द्वारा प्रशिक्षण- पर्यवेक्षकों द्वारा जब प्रशिक्षण दिया जाता है तो प्रशिक्षणार्थियों को अपने अधिकारियों से परिचित होने का अवसर भी मिल जाता है। साथ ही पर्यवेक्षकों को भी प्रशिक्षणार्थियों की योग्यता, दक्षता तथा संभावनाओं को परखने का अवसर मिल जाता है।

4. यंत्रों द्वारा प्रशिक्षण-यह प्रशिक्षण की आधुनिक विधि है। इसमें यंत्रों का बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है। ये यंत्र प्रशिक्षणार्थियों को काम के बारे में विभिन्न सूचनाएँ देते हैं।

5. उद्योग में प्रशिक्षण-वर्तमान समय में उद्योग में प्रशिक्षण देने का ढंग अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है। इसमें उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप ही कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

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प्रश्न 18.
भर्ती के बाह्य स्रोत में इंटरनेट द्वारा प्रकाशन (वेब प्रकाशन) क्या है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में इंटरनेट का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट, भर्ती का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी इंटरनेट से बहुत प्रभावित है। इंटरनेट पर भर्ती के लिए विशेष वेबसाइट बनाई जा रही है। इन वेबसाइटों के द्वारा प्रार्थियों को संपूर्ण जानकारी दी जाती है कि किस कंपनी को किस योग्यता के व्यक्ति, कितनी संख्या में चाहिए। वांछित योग्यता रखने वाले व्यक्ति इन कंपनियों में संपर्क करके नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। कुछ सामान्य वेबसाइट हैं
Naukri.com.,Monster.com, www.jobstreet.com, www. click. job. com. आदि।

प्रश्न 19.
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतरप्रशिक्षण
प्रशिक्षण

  1. प्रशिक्षण, ज्ञान तथा कौशल बढ़ाने की प्रक्रिया होती है।
  2. प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. प्रशिक्षण निम्न तथा मध्यम स्तर के कर्म चारियों के लिए उपयोगी होता है।
  4. प्रशिक्षण की एक निश्चित समयावधि होती है।
  5. प्रशिक्षण का क्षेत्र सीमित होता है।

विकास

  1. विकास, सीखने तथा वृद्धि की प्रक्रिया है।
  2. विकास दीर्घकालीन होता है।
  3. विकास का सम्बन्ध उच्च स्तर से होता है।
  4. विकास की कोई निश्चित समयावधि नहीं होती।
  5. विकास का क्षेत्र विस्तृत होता है।

प्रश्न 20.
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के कोई पाँच बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के प्रमुख बिन्दु निम्नांकित हैं

1. उत्पादकता में वृद्धि हेतु-प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी भी कार्य को अच्छे ढंग तथा शीघ्र कैसे किया जाए। प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों में कार्य के प्रति लगन में वृद्धि होती है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप कार्यक्षमता में वृद्धि होती है इस प्रकार उपक्रम के उत्पादन में वृद्धि होती है।

2. दुर्घटनाओं में कमी-प्रशिक्षित कर्मचारी कार्य को सही ढंग से करता है। उसे पता होता है कि मशीनों एवं यंत्रों का उपयोग किस प्रकार करना है तो दुर्घटनाओं में भी कमी आती है। दुर्घटना को किस प्रकार टाला जा सकता है, सभी प्रशिक्षण के दौरान बताया जाता है।

3. पर्यवेक्षण तथा निर्देशन में कमी हेतु-किसी भी कार्य को सही ढंग से करने के लिए पर्यवेक्षण तथा निर्देशन दिया जाता है लेकिन एक प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को सही व उचित तरीके से सम्पन्न कर लेता है। इसलिए प्रशिक्षण के बाद पर्यवेक्षण तथा निर्देशन करने की आवश्यकता नहीं होती है।

4. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि-प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को पूर्ण कौशल के साथ करता है जिसके फलस्वरूप उसे कार्य में स्थायित्व मिलता है, पदोन्नति के अवसर अधिक मिलते हैं और उसके मनोबल में वृद्धि होती है।

5. स्थायित्व की भावना में वृद्धि-जब कोई भी संस्था किसी कर्मचारी को प्रशिक्षण प्रदान करती है तो प्रशिक्षण के दौरान उस पर अतिरिक्त भार बढ़ता है जिसकी पूर्ति वह कर्मचारी से कार्य करवाकर करती है। अतः कर्मचारी को कार्य में स्थायित्व प्रदान किया जाता है।

6. कार्यक्षमता व कुशलता में वृद्धि- प्रशिक्षण में विशेष कार्य को विधिपूर्वक करने की कला सिखाई जाती है। इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
चयन क्या है ? इसकी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चयन का आशय, बाहरी व्यक्तियों का परीक्षण करके, उनका साक्षात्कार लेकर उन्हें नियुक्त करने का निर्णय लेना है। चयन करने का मुख्य लक्ष्य होता है, सही व्यक्ति को सही कार्य पर लगाया जाये।
चयन की प्रक्रिया-चयन की सामान्य प्रक्रिया निम्न प्रकार है

1. पूर्व परीक्षाओं-चयन पूर्व परीक्षा के माध्यम से अयोग्य प्रत्याशियों को अलग कर दिया जाता है। इस पूर्व परीक्षा में सफल प्रत्याशी ही मुख्य परीक्षा में बैठने की पात्रता रखते हैं।

2. प्रारंभिक साक्षात्कार-प्रारंभिक साक्षात्कार में प्रार्थी की उपयुक्तता के बारे में निर्णय लेने में सहायता प्राप्त होती है। यदि प्रार्थी उपयुक्त पाया जाता है तो उसे रिक्त पद की नियुक्ति की अन्य औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है।

3.रिक्त आवेदन पत्र भेजना-चयन करने के पश्चात् चयनित प्रत्याशी को एक रिक्त आवेदन पत्र भरने के लिए दिया जाता है। इसमें आवेदन के द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव, अभिरुचि, वर्तमान स्थिति तथा संभावित वेतन आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रपत्र के तीन भाग होते हैं

  • व्यक्तिगत जानकारी
  • मनोवैज्ञानिक जानकारी
  • कार्य एवं योग्यता सम्बन्धी जानकारी।

4. आवेदन पत्र की जाँच-जब आवेदक द्वारा आवेदन पत्र भरकर संस्थान को भेज दिया जाता है तो आवेदन पत्र के साथ संलग्न संदर्भ पत्र तथा अनुभव आदि की जाँच की जाती है। प्रार्थी जब चयन की समस्त प्रक्रियाओं में सफल हो जाता है तब उसे नियोक्ता द्वारा एक पत्र निर्गमित किया जाता है जिसे नियुक्ति-पत्र कहते हैं।।

5. मुख्य परीक्षा-प्रत्याशी के चयन का आधार मुख्य परीक्षा ही होता है। इसे मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी कहते हैं। यह परीक्षा मुख्यतः लिखित में होती है। मुख्य परीक्षा में योग्यता परीक्षण, कार्य परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, भाषा-योग्यता तथा रुझान परीक्षण होते हैं।

प्रश्न 22.
चयन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कर्मचारियों का चयन करते समय निम्नांकित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए

  1. सक्षम व्यक्तियों द्वारा चयन-चयन हमेशा सक्षम व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर बाहरी विशेषज्ञों की सेवाएँ भी ली जा सकती हैं। इससे सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी के चयन की संभावना अधिक होती है।
  2. निर्धारित प्रभावों के आधार पर चयन हमेशा निर्धारित प्रमापों के आधार पर ही होना चाहिए ताकि संस्था में किसी भी अयोग्य कर्मचारी की नियुक्ति नहीं हो सके।
  3. उपयुक्त स्त्रोत-चयन आंतरिक तथा बाह्य किसी भी स्रोत से किया जा सकता है मुख्यत: यह बात ध्यान में रखी जाए कि सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी का चयन होना चाहिए।
  4. चयन, संस्था की नीति के अनुरूप-यदि संस्था द्वारा कोई नीति निर्धारित की गई है तो चयन करते समय उसे ध्यान में रखा जाए, उसी के अनुरुप चयन होना चाहिए।
  5. सभी पहलुओं पर विचार-चयन करते समय व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता, उसकी कार्य के प्रति रुचि, स्वास्थ्य, अनुभव आदि बातों पर विचार किया जाना चाहिए।
  6. लोच-चयन की प्रक्रिया लोचदार होनी चाहिए अर्थात् संस्था के हित में आवश्यकता पड़ने पर आसानी से परिवर्तन किया जा सके।

प्रश्न 23.
भर्ती की पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी उद्योग या व्यवसाय में श्रम को एकत्र करने के लिये श्रमिकों की भर्ती आवश्यक है। श्रमिकों की भर्ती की पद्धति अलग-अलग हो सकती है किसी भी एक पद्धति पर निर्भर रहना उचित नहीं होता है अतः आवश्यकतानुसार एक या अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिये। कर्मचारियों की भर्ती के लिये सामान्यतः निम्नलिखित पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं

1. मध्यस्थों द्वारा भर्ती (Recruitment through intermediary)–मध्यस्थों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती की पद्धति अत्यधिक प्राचीन है। इस पद्धति में चौधरी, सरदार, मुकद्दम, ठेकेदार एवं दलालों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों से श्रमिकों व कर्मचारियों को लाकर श्रम की पूर्ति करते हैं। यह पद्धति वर्तमान में अव्यावहारिक, शोषणकारी तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है।

2.विज्ञापन द्वारा भर्ती (Recruitment through advertisement)-विज्ञापन श्रम पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता है। इस पद्धति में नियोक्ता समाचार पत्र या रोजगार समाचार पत्रों में कर्मचारियों की आवश्यकता का विज्ञापन प्रकाशित करवाते हैं इसमें योग्यतायें, वेतन, भत्ते व अन्य शर्ते भी प्रकाशित की जाती हैं इच्छुक व योग्य व्यक्ति विज्ञापन पढ़कर आवेदन करते हैं व नियोक्ता आवेदकों में से योग्य व्यक्ति को कार्य पर नियुक्त कर देते हैं इस पद्धति में दूर-दूर के क्षेत्रों से योग्य कर्मचारियों को कार्य पर लगाया जा सकता है।

3. रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती (Recruitment through employment exchange) वर्तमान में प्रत्येक जिला स्तर पर व प्रत्येक विश्वविद्यालयों में रोजगार कार्यालय (केन्द्र). प्रारम्भ किये गये हैं जहाँ पर रोजगार से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही यहाँ बेरोजगार युवक / युवतियों की विस्तृत जानकारी भी उपलब्ध रहती है। नियोक्ता या भर्तीकर्ता रोजगार केन्द्रों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति कर सकते हैं।

4. प्रत्यक्ष भर्ती (Direct recruitment) – यह पद्धति आधुनिक समय में काफी प्रचलित व उपयुक्त मानी गई है। क्योंकि इसमें भर्तीकर्ता को अपने मनपसन्द व योग्य व्यक्ति को सीधे भर्ती करने का सुअवसर प्राप्त हो जाता है। इस पद्धति में विधिवत् आवेदन पत्रों को बुलाना, छाँटना, साक्षात्कार आदि समस्त क्रियायें क्रमवार की जाती हैं कुछ मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी इसमें किये जाते हैं। यह विधि पूर्णतः आधुनिक, वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक होने के कारण अधिकांश प्रतिष्ठानों द्वारा इसे अपनाया जा रहा है।

5. श्रम संघों द्वारा भर्ती (Recruitment through trade union) – कुछ उपक्रमों में या कुछ श्रम संगठन जैसे एटक, इन्टुक, हिन्द मजदूर सभा, ए. आई. फुटकों आदि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं सशक्त होते हैं। रोजगार से सम्बन्धित जानकारी इनके कार्यालय में सदैव उपलब्ध होती है अतः आवश्यकतानुसार श्रम संघों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति की जा सकती है।

6. मित्रों एवं रिश्तेदारों द्वारा भर्ती (Recruitment through friends and relatives)-कुछ उपक्रम अपने कर्मचारी व प्रबन्धकों को यह निर्देशित करते हैं कि वे अपने विश्वासपात्र व योग्य मित्रों व रिश्तेदारों को कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करें। इससे अच्छे व योग्य कर्मचारी प्राप्त हो जाते हैं तथा इन कर्मचारियों पर विश्वास किया जा सकता है तथा गोपनीयता पर भरोसा किया जा सकता है किन्तु इस पद्धति में वर्तमान में काफी दोष आ गये हैं तथा गलत व्यक्ति के कार्य पर भर्ती हो जाने का सन्देह बना रहता है इस कारण इसे अव्यावहारिक पद्धति माना गया है।

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प्रश्न 24. आंतरिक स्रोत के लाभ लिखिए।
उत्तर:
आन्तरिक स्रोत के लाभ (Merits of internal sources)-भर्ती के आंतरिक स्रोतों के निम्नलिखित लाभ हैं

1. सामान्य नियमों की जानकारी संस्था में अनेक वर्षों से कार्य करने के कारण इन कर्मचारियों को संस्था के सामान्य नियमों व व्यावसायिक नीतियों की जानकारी अच्छी तरह से होती है। अतः नये कर्मचारियों की भांति इन्हें जानकारी देना आवश्यक नहीं होता इससे समय व धन की बचत होती है।

2. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि इस प्रणाली में कर्मचारियों का मनोबल सदैव उच्च बना रहता है,क्योंकि उन्हें यह ज्ञात रहता है कि कभी न कभी उनकी पदोन्नति अवश्य होगी। अत: वे काफी लगन व उत्साह
से कार्य करते हैं।

3. पदोन्नति के द्वार खुले रहना आंतरिक स्रोत से भर्ती विधि में सभी कर्मचारियों के लिये पदोन्नति के द्वार खुले रहते हैं। प्रत्येक कर्मचारी आशावान रहता है कि उसकी पदोन्नति भविष्य में अवश्य होगी।

4. भर्ती पर न्यूनतम व्यय – भर्ती की इस प्रणाली में न्यूनतम व्यय होता है, क्योंकि वे सभी औपचारिकतायें जो बाह्य स्रोतों में करनी पड़ती हैं तथा उन पर जो व्यय होता है, वह आंतरिक भर्ती में नहीं करना पड़ता। इससे उपक्रम अपव्यय से बच जाता है।

5. कार्यक्षमता में वृद्धि – इस विधि में सभी कर्मचारियों को यह ज्ञात रहता है कि उनकी भविष्य में पदोन्नति होगी। साथ ही अधिक कार्यकुशल व लगनशील कर्मचारियों की पदोन्नति शीघ्र होगी इसी उम्मीद से कर्मचारी पूर्ण लगन एवं आस्था से कार्य करते हैं। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 25.
प्रशिक्षण की परिभाषा लिखिए व प्रशिक्षण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की परिभाषायें (Definitions of Training)

1. एडविन बी. फ्लिप्पो (Edwin B. Flippo) के अनुसार-“किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिये कर्मचारी के ज्ञान, कौशल में वृद्धि करने से संबंधित क्रिया को प्रशिक्षण कहते हैं।”

2. डेल एस. बीच (Dale S. Beach) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी संगठित कार्यविधि है, जिसके द्वारा लोग किसी निश्चित उद्देश्य के लिये ज्ञान एवं कौशल सीखते हैं।”

3. माइकल जे. जूसियस (Michael J. Jucius) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशिष्ट कार्यों के सम्पादन हेतु कर्मचारियों की अभिवृत्तियों, निपुणताओं एवं योग्यताओं में अभिवृद्धि की जाती है।”

4. प्लाण्टी, कोर्ड एवं इफर्सन (Planty, Cord and Efferson)-“प्रशिक्षण सभी स्तर के कर्मचारियों के उस ज्ञान, उन चातुर्यों तथा अभिवृत्तियों का सतत् एवं विधिवत् विकास है जो उनके तथा कम्पनी के कल्याण में योगदान देते हैं।”

वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के लिये कुछ कार्य करते हैं तो इसे प्रशिक्षण कहा जाता है। इस प्रकार किसी विशिष्ट कार्य को विशिष्ट ढंग से करने की कला, ज्ञान एवं कौशल संबंधी शिक्षा प्रशिक्षण कहलाती है।

प्रशिक्षण की विश्नाथिया (Characteristics of Training)
प्रशिक्षण के आशय एवं परिभाषाओं की व्याख्या के पश्चात् इसकी निम्न विशेषतायें बताई जा सकती हैं।

  1. प्रशिक्षण कर्मचारी विकास की एक सतत् प्रक्रिया है।
  2. प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास का एक सुनिश्चित ढंग है।
  3. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान व कौशल में अभिवृद्धि होती है।
  4. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  5. प्रशिक्षण मानव पूँजी (Human capital) में साभिप्राय विनियोग (Objective investment) है।
  6. प्रशिक्षण की व्यवस्था करना उपक्रम का उत्तरदायित्व एवं आवश्यकता है।
  7. प्रशिक्षण से कर्मचारियों को आत्मसन्तुष्टि मिलती है।

प्रश्न 26.
प्रशिक्षण के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Training)
किसी भी उपक्रम, संस्था या संगठन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम एक आवश्यकता बन गई है। प्रशिक्षण के बिना औद्योगिक सफलता का प्रयास व्यर्थ होगा।
कीथ डेविस के अनुसार-“प्रशिक्षण का उद्देश्य किसी ऐसे व्यक्ति को नवीन अनुभव प्रदान करना है जो उसके ज्ञान, कौशल अथवा दृष्टिकोण में परिवर्तन द्वारा उसके आचरण में पविर्तन लाये।”प्रशिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं.

1. व्यवसाय की सामान्य जानकारी देना-नव नियुक्त कर्मचारी को व्यवसाय की सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से सामान्य प्रशिक्षण आयोजित किया जाता है। कभी-कभी स्थानांतरण या कार्य परिवर्तन के कारण भी नये स्थान,नये कार्य की जानकारी प्रदान करने बाबत् प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

2. कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने हेतु-प्रशिक्षण से कर्मचारी का मनोबल सदैव ऊँचा रहता है तथा अप्रशिक्षित कर्मचारी का मनोबल प्रतिकूल रहने से इसका उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः उत्पादन व कार्य में वांछित प्रगति के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

3. सूचना प्रसारित करने हेतु-व्यवसाय एवं उद्योग में कुछ ऐसी सूचनायें दी जाती हैं जिन्हें प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रदर्शन द्वारा देना महत्वपूर्ण होता है। अतः ऐसी सूचना कर्मचारियों में प्रदान करने के उद्देश्य से भी प्रशिक्षण आवश्यक है।

4. संगठन के प्रति निष्ठावान बनाना-प्रत्येक संगठन के लिए कर्मचारियों का निष्ठावान होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे समर्पित भावना से कार्य करें। प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न मनोवैज्ञानिकों, प्रबन्धकों व श्रम संगठनों के नेताओं द्वारा विभिन्न विचारों व उत्प्रेरक भावनाओं द्वारा कर्मचारियों को निष्ठावान बनाना प्रशिक्षण का उद्देश्य है।

5. उत्पादन में वृद्धि हेतु-प्रत्येक उपक्रम उत्पादन में वृद्धि चाहता है इस हेतु कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। कुशल कर्मचारी प्रशिक्षण द्वारा बनाये या तैयार किये जाते हैं। अतः उत्पादन में वृद्धि करने, बाजार का विस्तार करने के उद्देश्य से कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

6. देहातीपन को दूर करना-यहाँ देहातीपन का आशय पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा व कार्यशैली से है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में पुरानी शैली से विकास की बात करना व्यर्थ है अत: संस्था के पुराने कर्मचारियों के मन मस्तिष्क से देहातीपन की विचारधारा को हटाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

प्रश्न 27.
मानव शक्ति नियोजन की अवधारणा को समझायें। इसके कितने पहलू हैं ? उन पहलुओं को समझाइयें।
उत्तर:
मानव शक्ति नियोजन (Man power planning)- मानव शक्ति नियोजन कर्मचारियों की माँग एवं पूर्ति में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा संगठन की वर्तमान तथा भावी मानवीय आवश्यकताओं की व्याख्या की जाती है। यह मानव संसाधन प्राप्त करने, उपयोग करने, सुधार करने अथवा बनाये रखने की एक व्यूह रचना है। इसमें संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक मानव शक्ति की संख्या एवं किस्म का निर्धारण किया जाता है। मानव शक्ति नियोजन में मानव साधन के संबंध में नीतियों तथा कार्यविधियों का निर्माण किया जाता है ताकि कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन भली-भाँति किया जा सके।
मानव शक्ति नियोजन के दो पहलू हैं

1. परिमाणात्मक पहलू (Quantitative aspect)- सर्वप्रथम कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, इसका अनुमान लगाया जाता है। यह अनुमान लगाते समय कार्यभार विश्लेषण में उत्पादन व विवरण बजटों के आधार पर कार्य की आवश्यकताओं को निश्चित किया जाता है। श्रम शक्ति विश्लेषण के अंतर्गत वर्तमान श्रम शक्ति, श्रम अनुपस्थिति,

स्थानांतरण तथा पदोन्नति, संस्था के विकास की दर आदि को ध्यान में रखकर नए कर्मचारियों की संख्या निर्धारित की जाती है। इस पहलू में विद्यमान मानव शक्ति और अपेक्षित मानव शक्ति की तुलना करके मानव शक्ति की परिमाणात्मक आवश्यकता का अनुमान लगाया जाता है। वर्तमान मानव शक्ति का विश्लेषण मानव शक्ति अंकेक्षण कहलाता है।

2. गुणात्मक पहलू (Qualitative aspect)- कर्मचारियों की संख्या का अनुमान लगाने के पश्चात् उनमें किस प्रकार की योग्यता, अनुभव एवं अभिरुचि होनी चाहिए इसका निर्धारण किया जाता है। इसके लिए कार्य का विश्लेषण आवश्यक है। आवश्यक मानवशक्ति के प्रकार (Type) की गणना करते समय कंपनी को पिछड़े समुदाय के लोगों, महिलाओं, विशेष आवश्यकताओं वाले लोगों इत्यादि में से नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के संबंध में भी नीति बना लेनी चाहिए।

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प्रश्न 28.
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ (Feature of staffing)- नियुक्तिकरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. जनकेंद्रित (People-centred) – नियु क्तिकरण जनकेंद्रित है। यह व्यक्तियों पर केंद्रित है। इसका संबंध संस्था में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी श्रेणियों के कर्मचारियों से है। नियुक्तिकरण में मनुष्यों की भर्ती की जाती है। उनका चयन किया जाता है। उनको प्रशिक्षण दिया जाता है।
उनका विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में नियुक्तिकरण की प्रत्येक क्रिया मनुष्य से संबंधित है। संगठन तथा नियोजन की तरह यह कोई कागजी कार्य नहीं है, अपितु योग्य व्यक्तियों को संगठन में विभिन्न पदों पर लगाना है।

2. एक पथक प्रबंधकीय कार्य (A separate managerial function) – नियुक्तिकरण प्रबंध का एक पृथक् तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य प्रबंध के अन्य कार्यों का अंग नहीं है। प्रत्येक प्रबं धक नियुक्तिकरण का कार्य करता है।

3. सभी प्रबंधकीय स्तरों पर आवश्यक (Essential at all levels of management) – कर्मचारी नियुक्ति कार्य की आवश्यकता सभी प्रबंधकीय स्तरों पर होती है। अलग से सेविवर्गीय विभाग (Personnel department) की स्थापना के बाद भी प्रत्येक प्रबंधक को नियुक्ति का कार्य करना पड़ता है।

4. व्यापक क्षेत्र (Wide scope) – नियुक्तिकरण का कार्यक्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसमें कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, उनके पारिश्रमिक एवं निष्पादन मूल्यांकन से संबंधित अनेक क्रियायें शामिल हैं।

5. कार्मिक (सेविवर्गीय) प्रबंध से भिन्न (Different from personnel management) – यद्यपि नियुक्तिकरण तथा सेविवर्गीय के सिद्धांत समान हैं परंतु फिर भी नियुक्तिकरण सेविवर्गीय प्रबंध से भिन्न है। नियुक्तिकरण प्रबंधकों से संबंधित है जबकि सेविवर्गीय प्रबंध अन्य प्रकार के कर्मचारियों से संबंध रखता है।

7. निरंतर सामंजस्य बनाना (Making continuous adjustment) – नियुक्तिकरण पद तथा व्यक्ति में निरंतर सामंजस्य स्थापित करने की क्रिया है।

8. उद्देश्य (Objective)- नियुक्तिकरण का उद्देश्य संगठन के कार्यों का निर्बाध एवं कुशल संचालन संभव बनाना है।

प्रश्न 29.
शिक्षा व प्रशिक्षण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अन्तर (Difference between Education and Training)प्रायः शिक्षा व प्रशिक्षण दोनों को एक ही माना जाता है किन्तु इन दोनों के उद्देश्य अधिक ज्ञान व जानकारी देना है परन्तु इसके बावजूद भी इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। मूलभूत अंतर इस प्रकार है

  1. शिक्षा एक विशिष्ट पाठ्यक्रम (Syllabus) के अनुरूप दी जाती है। यह पाठ्यक्रम दीर्घकाल तक प्रभावशील रहता है जबकि प्रशिक्षण में कार्य करने का ढंग महत्वपूर्ण होता है।
  2. शिक्षा दीर्घकालीन योजना है जो लगातार प्रतिवर्ष दी जाती है परन्तु प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. शिक्षा में गुरु-शिष्य या विद्यार्थी-शिक्षक का सम्बन्ध होता है जो दोनों के मध्य एक सम्मान का सूचक है। प्रशिक्षण में प्रशिक्षार्थी तथा मास्टर या प्रशिक्षक का सम्बन्ध होता है जिसमें दोनों के मध्य अल्पकालीन औपचारिक संबंध रहता है।
  4. शिक्षा सामान्य ज्ञान से संबंधित है जबकि प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान से संबंधित होता है।
  5. शिक्षा से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है, प्रशिक्षण से मनुष्य को किसी विशिष्ट क्षेत्र का ही ज्ञान होता है।
  6. शिक्षा राष्ट्र या राज्यव्यापी होता है जबकि प्रशिक्षण किसी विशिष्ट विभाग के कर्मचारियों के लिये होता है।
  7. शिक्षा का संबंध स्कूल, मदरसा, विद्यालय, महाविद्यालय आदि से रहता है जबकि प्रशिक्षण का सम्बन्ध प्रशिक्षण केन्द्र या स्थल से होता है। –
  8. शिक्षा में बालक को अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाया जाता है। प्रशिक्षण में कोई विशिष्ट जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 30.
भर्ती के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
संसार में किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिये कुछ मार्गदर्शक या सिद्धांतों की आवश्यकता पड़ती है ये मार्गदर्शक या सिद्धान्त ही भर्ती की नीति कहलाती है। आदर्श भर्ती नीति प्रत्येक स्वामी (भर्तीकर्ता) के लिये आवश्यक है कि वह उनका पालन करे। वर्तमान में भर्ती का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है अतः उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये

  1. भर्ती कार्य शीर्ष प्रबन्ध से भर्ती से सम्बन्धित समस्त कार्य हमेशा उच्च या शीर्ष प्रबन्ध से ही होना चाहिये ताकि भर्ती में किसी भी प्रकार का पक्षपात या विरोधाभासी कार्य न हो सके।
  2. विभिन्न विभागों से रिक्त स्थान की जानकारी – शीर्ष विभाग को विभिन्न विभागों से विभिन्न पदों पर रिक्त स्थान की जानकारी हेतु समय-समय पर बुलाना चाहिये ताकि उसी के अनुरूप भर्ती की जा सके ।
  3. आवश्यकता के अनुरूप भर्ती – उपक्रम में वर्तमान में जितने पद रिक्त हों उतने पदों पर ही भर्ती करनी चाहिये अधिक भर्ती से उपक्रम पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ता है तथा कम भर्ती करने पर कार्य पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  4. भर्ती हेतु अलग विभाग भर्ती का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अतः इस हेतु कुशल व अनुभवी भर्तीकर्ता का चयन कर, अलग विभाग या शाखा खोलनी चाहिये, जिसे सेविवर्गीय विभाग या भर्ती शाखा का नाम दिया जा सकता है।
  5. नये पदों की स्वीकृति कार्य बढ़ जाने से अतिरिक्त पदों की आवश्यकता हो तो अतिरिक्त पद निर्माण की स्वीकृति नियोक्ता से ही लेनी चाहिये। चूँकि अतिरिक्त पद निर्माण से आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

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प्रश्न 31.
सेविवर्गीय विकास क्या है ? इसके मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
आशय-विकास एक सामान्य शब्द है जिसका आशय बढ़ाना, विस्तार करना, प्रगति करना, उच्च स्तर बढ़ाना आदि से है। यहाँ पर विकास का संबंध सेविवगीर्य विकास से है जिसमें संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारियों या प्रबंधकों के विकास का कार्य किया जाता है।

कर्मचारी विकास के उद्देश्य (Objectives of Employee development) – प्रबन्धकीय विकास में कर्मचारी विकास एक महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी उपक्रम में कर्मचारी विकास के सामान्यतः निम्न उद्देश्य होते हैं

1. योग्य श्रम शक्ति की लगातार पूर्ति (Continued supply of competent labour force) – किसी भी प्रबन्ध में कर्मचारी विकास एक लगातार प्रक्रिया है। योग्य कर्मचारी एवं प्रबन्धकों की लगातार पूर्ति के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है क्योंकि उनके हित में योजना (कार्य) न होने पर कार्य छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

2.विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये (For getting development and profit) – किसी भी उपक्रम की स्थापना लाभ प्राप्ति के लिये की जाती है तथा लाभ-प्राप्ति पर ही उपक्रम का विकास निर्भर है। उपक्रम की सफलता व उसका विकास कर्मचारियों की योग्यता व कार्यक्षमता पर आधारित होती है अतः उपक्रम के विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये कर्मचारियों का पर्याप्त विकास कार्य आवश्यक है।

3. मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग के लिये (For maximum use of manpower) – उत्पादन के विभिन्न घटकों में श्रम (मानव) शक्ति का विशिष्ट एवं पृथक् स्थान होता है। कर्मचारी स्वयं प्रेरित होकर तभी कार्य करेगा जब वह स्वयं सन्तुष्ट हो, उसकी सन्तुष्टि के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है ताकि उसका अधिकतम उपयोग किया जा सके।

4. कर्मचारी प्रतिभा का विकास (Developement of employee’s talent) – कुछ न कुछ प्रतिभा प्रत्येक व्यक्ति में होती है प्रबन्ध एवं उपक्रम में चुने हुये कर्मचारी कार्य करते हैं अतः इनकी प्रतिभा को विकसित कर उसका अधिकतम लाभ लेने के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है। उपक्रम में उत्पादकता में वृद्धि करने के लिये कर्मचारी प्रतिभा का विकास आवश्यक है।

5. उच्चस्तरीय मूल्यांकन (Higher level assignments) – जब तक कर्मचारी का पर्याप्त एवं सर्वांगीण विकास नहीं होगा तब तक उसका उच्चस्तरीय मूल्यांकन नहीं हो सकता । कर्मचारी के कार्य को परखने (Examine) के लिये उसका मूल्यांकन आवश्यक है अतः उसके मूल्यांकन के लिये भी कर्मचारी का विकास आवश्यक है।

MP Board Class 12 Business Studies Important Questions

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति

सरल रेखा में गति अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 3.1.
नीचे दिए गए गति के कौन – से उदाहरणों में वस्तु को लगभग बिंदु वस्तु माना जा सकता है:

  1. दो स्टेशनों के बीच बिना किसी झटके के चल रही कोई रेलगाड़ी।
  2. किसी वृत्तीय पथ पर साइकिल चला रहे किसी व्यक्ति के ऊपर बैठा कोई बंदर।
  3. जमीन से टकरा कर तेजी से मुड़ने वाली क्रिकेट की कोई फिरकती गेंद।
  4. किसी मेज के किनारे से फिसल कर गिरा कोई बीकर।

उत्तर:

  1. रेलगाड़ी दो स्टेशनों के मध्य बिना झटके के चल रही है। इसलिए दोनों स्टेशनों के मध्य की दूरी, रेलगाड़ी की लम्बाई की अपेक्षा अधिक मानी जा सकती है। अतः रेलगाड़ी को बिन्दु वस्तु मान सकते हैं।
  2. बन्दर निश्चित समय में अधिक दूरी तय करता है। इसलिए बन्दर को बिन्दु – वस्तु मान सकते हैं।
  3. चूँकि क्रिकेट की गेंद का मुड़ना सरल नहीं है। इस प्रकार निश्चित समय में क्रिकेट गेंद द्वारा तय की गई दूरी कम है। अतः क्रिकेट गेंद को बिन्दु-वस्तु नहीं मान सकते हैं।
  4. चूँकि बीकर निश्चित समय में कम दूरी चलता है। अतः बीकर को बिन्दु – वस्तु नहीं माना जा सकता है।

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प्रश्न 3.2.
दो बच्चे A व B अपने विद्यालय 0 से लौट कर अपने – अपने घर क्रमशः P तथा Q को जा रहे हैं। उनके स्थिति – समय (x – t) ग्राफ चित्र में दिखाए गए हैं। नीचे लिखे कोष्ठकों में सही प्रविष्टियों को चुनिए:

  1. B/A की तुलना में A/B विद्यालय से निकट रहता है।
  2. B/A की तुलना में A/B विद्यालय से पहले चलता है।
  3. B/A की तुलना A/B तेज चलता है।
  4. A और B घर (एक ही/भिन्न ) समय पर पहुँचते हैं।
  5. A/B सड़क पर B/A से (एक बार/दो बार) आगे हो जाते हैं।

MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 1
उत्तर:

  1. B की तुलना में A विद्यालय से निकट रहता है।
  2. B की तुलना में A विद्यालय से पहले चलता है। चूँकि A के लिए गति प्रारम्भ का समय t = 0 जबकि B के लिए गति प्रारम्भ में समय पर होती है।
  3. A की तुलना में B तेज चलता है।
  4. A तथा B घर अलग – अलग समय पर पहुँचते हैं।
  5. B सड़क पर A से एक बार आगे हो जाता है।

प्रश्न 3.3.
एक महिला अपने घर से प्रातः 9.00 बजे 2.5 km दूर अपने कार्यालय के लिए सीधी सड़क पर 5 km h1 चाल से चलती है। वहाँ वह सायं 5.00 बजे तक रहती है और 25 km h1 की चाल से चल रही किसी ऑटो रिक्शा द्वारा अपने घर लौट आती है। उपयुक्त पैमाना चुनिए तथा उसकी गति का x – t ग्राफ खींचिए।
उत्तर:
घर से कार्यालय तक पार की गई दूरी = 2.5 किमी
घर से चलने पर चाल = 5 किमी प्रति घण्टा
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 2
कार्यालय पहुँचने में लगा समय = 2.5 = 0.5 घण्टा
माना x – t (समय – दूरी) ग्राफ का मूल बिन्दु 0 है। t = 9 AM पर x = 0 तथा t = 9:30 AM पर x = 2.5 किमी (बिन्दु P)।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 3
तथा महिला 9:30 AM से समय 5:00 PM तक कार्यालय में रहती है। जिसे PQ द्वारा व्यक्त किया गया है।
कार्यालय से घर तक पहुँचने में लगा समय
= \(\frac { 2.5 }{ 25 }\) = \(\frac { 1 }{ 10 }\) घण्टा
= 6 मिनट
∴ t = 5:06 PM पर x = 0 जिसे बिन्दु R से व्यक्त किया गया है।

प्रश्न 3.4.
कोई शराबी किसी तंग गली में 5 कदम आगे बढ़ता है और 3 कदम पीछे आता है, उसके बाद फिर 5 कदम आगे बढ़ता है और 3 कदम पीछे आता है, और इसी तरह वह चलता रहता है। उसका हर कदम 1 m लंबा है और 1 s समय लगता है। उसकी गति का x – t ग्राफ खींचिए। ग्राफ से तथा किसी अन्य विधि से यह ज्ञात कीजिए कि वह जहाँ से चलना प्रारंभ करता है वहाँ से 13 m दूर किसी गड्ढे में कितने समय पश्चात् गिरता है?
उत्तर:
शराबी का x – 1 ग्राफ चित्र में दिखाया गया है। पहले 8 कदमों अर्थात् 8 सेकण्ड में शराबी द्वारा चली दूरी
= 5 मी० – 3 मी० = 2 मीटर
अतः 16 कदमों में शराबी द्वारा चली गई दूरी
= 2 x 2 = 4 मीटर
24 कदमों में शराबी द्वारा चली गई दूरी
= 4 + 2 = 6 मीटर
32 कदमों में शराबी द्वारा चली गई दूरी
= 6 + 2 = 8 मीटर
अगले 5 कदमों में शराबी द्वारा चली गई दूरी
= 8 + 5 = 13 मीटर
∴ कुल 13 मीटर चलने पर लिया गया समय
= 8 x 4 + 5 = 37 सेकण्ड।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 4

प्रश्न 3.5.
कोई जेट वायुयान 500 km h1 की चाल से चल रहा है और यह जेट यान के सापेक्ष 1500 km h1 की चाल से अपने दहन उत्पादों को बाहर निकालता है। जमीन पर खड़े किसी प्रेक्षक के सापेक्ष इन दहन उत्पादों की चाल क्या होगी?
उत्तर:
दिया है : जैट का वेग, Vj = – 500 किमी प्रति घण्टा
जेट के सापेक्ष उत्पाद बाहर निकालने का आपेक्षिक वेग, ve = 1500 किमी प्रति घण्टा
माना बाहर निकलने वाले दहन उत्पादों का वेग ve है।
∴ Vej = Ve – Vj
या Ve =Vej + Vj = 1500 + (- 500)
= 1000 किमी प्रति घण्टा.

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प्रश्न 3.6.
सीधे राजमार्ग पर कोई कार 126 km h1 की चाल से चल रही है। इसे 200 m की दूरी पर रोक दिया जाता है। कार के मंदन को एक समान मानिए और इसका मान निकालिए। कार को रुकने में कितना समय लगा?
उत्तर:
दिया है : u =126 किमी/घण्टा
= 126 x \(\frac { 1000}{ 60 x 60 }\) = 35 मीटर/सेकण्ड
S = 200 मीटर
v = 0
न्यूटन के गति विषयक तृतीय समी० से,
v2 = u2 + 2as
02 = (35)2 + 2 x a x 200
अथवा a = \(\frac { -35 x 35}{2 x 200}\) = – 3.06 मीटर/सेकण्ड
पुन: समीकरण v = u + at से
t = \(\frac {v – u}{a}\) = \(\frac { 0 – 35}{- 3.06}\)
= 11.44 सेकण्ड।

प्रश्न 3.7.
दो रेलगाड़ियाँ A व B दो समांतर पटरियों पर 72 km h1 की एकसमान चाल से एक ही दिशा में चल रही हैं। प्रत्येक गाड़ी 400 m लंबी है और गाड़ी A गाड़ी B से आगे है। B का चालक A से आगे निकलना चाहता है। 1 m s2से इसे त्वरित करता है। यदि 50 s के बाद B का गार्ड A के चालक से आगे हो जाता है तो दोनों के बीच आरंभिक दूरी कितनी थी?
उत्तर:
दिया है : uA = uB = 72 किमी प्रति घण्टा
= 72 x\(\frac { 5}{ 18 }\) = 20 मीटर/सेकण्ड
t = 50 सेकण्ड
गाड़ी की लम्बाई = 400 मीटर
SA = UA x t = 20 x 50 =1000 मीटर
सूत्र S =ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) at2 से,
SB = 20 x 50 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x (50)2
= 1000 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 2500
= 1000 + 1250 = 2250 मीटर
अतः दोनों रेलगाड़ियों के बीच आरम्भिक दूरी
= 2250 – 1000
= 1250 मीटर

प्रश्न 3.8.
दो – लेन वाली किसी सड़क पर कार A 36 km h1 की चाल से चल रही है। एक दूसरे की विपरीत दिशाओं में चलती दो कारें Bव C जिनमें से प्रत्येक की चाल 54km h1 है, कार A तक पहुँचना चाहती है। किसी क्षण जब दूरी AB दूरी AC के बराबर है तथा दोनों 1 km है, कार B का चालक यह निर्णय करता है कि कार C के कार A तक पहुँचने के पहले ही वह कार A से आगे निकल जाए। किसी दुर्घटना से बचने के लिए कार B का कितना न्यूनतम त्वरण जरूरी है?
उत्तर:
दिया है : VA =36 किमी/घण्टा
= 54 x 5 = 15 मीटर/सेकण्ड
माना कार A के सापेक्ष C की आपेक्षिक चाल vca तथा कार A के सापेक्ष कार B की आपेक्षिक चाल VBA है।
∴ Vca = 15 – (-10) = 25 मीटर/सेकण्ड
तथा VBA= 15 -10 = 5 मीटर/सेकण्ड
प्रश्नानुसार aca = 0, चूँकि दोनों कारें (A व C) नियत वेग से गतिमान हैं।
AC दूरी तय करने में लगा समय
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 5
सूत्र S = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) at2 से
AB = UBAt + \(\frac { 1 }{ 2 }\) a x t2
1000 = 5 x 40 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x a x (40)2
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 30
= 1 मीटर प्रति सेकण्डरप्2

रश्न 3.9.
दो नगर A व B नियमित बस सेवा द्वारा एक दूसरे से जुड़े हैं और प्रत्येक T मिनट के बाद दोनों तरफ बसें चलती हैं। कोई व्यक्ति साइकिल से 20 km h1 की चाल से A से B की तरफ जा रहा है और यह नोट करता है कि प्रत्येक 18 मिनट के बाद एक बस उसकी गति की दिशा में तथा प्रत्येक 6 मिनट बाद उसके विपरीत दिशा में गुजरती है। बस सेवाकाल T कितना है और बसें सड़क पर किस चाल (स्थिर मानिए) से चलती हैं?
उत्तर:
माना प्रत्येक बल की चाल Vb किमी प्रति घण्टा तथा साइकिल सवार की चाल vc किमी प्रति घण्टा है।
साइकिल सवार की गति की दिशा में अर्थात् A से B की ओर चल रही बसों की आपेक्षिक चाल = Vb – Vc
∴ साइकिल सवार की गति की दिशा में प्रत्येक 18 मिनट बाद एक बस गुजरती है।
∴ चली गई दूरी = (vb – vb) x \(\frac { 18}{ 60 }\)
परन्तु बसें प्रत्येक T मिनट बाद चलती हैं। अत: यह दूरी vb x \(\frac { T}{ 60 }\) = के तुल्य होगी।
अर्थात् (vb – bc) x \(\frac { 18}{ 60 }\) =vb x \(\frac { T}{ 60 }\) ….(1)
साइकिल सवार से विपरीत दिशा में बसों का आपेक्षिक वेग
= (vb + vc)
∴ चली दूरी = (vb + va) x \(\frac { 6}{ 60 }\)
प्रश्नानुसार विपरीत दिशा में बस प्रत्येक 6 मीटर के अन्तराल पर मिलती है। अतः यह चली दूरी vb x \(\frac { T}{ 60 }\) के तुल्य होगी।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 7
या vb + vc = 3vb – 3vc
अथवा vc + 3vc = 3vb – vb
vb = 2vc
= 2 x 20 किमी/घण्टा
= 40 किमी/घण्टा।
समी० (2) में vb व vc का मान रखने पर,
40 + 20 = \(\frac { 40 x T}{ 6 }\)
T = \(\frac { 60 x 6}{ 40 }\) = 9 मिनट

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प्रश्न 3.10.
कोई खिलाड़ी एक गेंद को ऊपर की ओर आरंभिक चाल 29 m s1 से फेंकता है,

  1. गेंद की ऊपर की ओर गति के दौरान त्वरण की दिशा क्या होगी?
  2. इसकी गति के उच्चतम बिंदु पर गेंद के वेग व त्वरण क्या होंगे?
  3. गेंद के उच्चतम बिंदु पर स्थान व समय को x = 0 व t = 0चुनिए, ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर की दिशा को x – अक्ष की धनात्मक दिशा मानिए। गेंद की ऊपर की व नीचे की ओर गति के दौरान स्थिति, वेग व त्वरण के चिन्ह बताइए।
  4. किस ऊँचाई तक गेंद ऊपर जाती है और कितनी देर के बाद गेंद खिलाड़ी के हाथों में आ जाती है?
    [g = 9.8 ms2 तथा वायु का प्रतिरोध नगण्य है।]

उत्तर:
1. ऊर्ध्वाधर गति में वस्तु सदैव गुरुत्वीय त्वरण के अधीन चलती है जिसकी दिशा नीचे की ओर होती है।
2. गति के उच्चतम बिन्दु v = 0
a = 9.8 मीटर/सेकण्ड नीचे की ओर
3. MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 31
4. दिया है : u = 29 मीटर/सेकण्ड
a = 9.8 मीटर/सेकण्ड2
v = 0
सूत्र v2 =a2 + 2as से,
v2 = 2a2 + 2 x 9.8 x s
∴s = \(\frac { -2a x 2a }{ 2 x 9.8}\) = 42.9 मीटर
अतः सूत्र v=u + at से,
0 = 29 – 9.8 x t
∴ t = \(\frac { 29}{9.8}\) = 2.96 सेकण्ड
∴ कुल समय = 2 x 2.96
= 5.92 सेकण्ड

प्रश्न 3.11.
नीचे दिए गए कथनों को ध्यान से पढ़िए और कारण बताते हुए व उदाहरण देते हुए बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य, एकविमीय गति में किसी कण की।

  1. किसी क्षण चाल शून्य होने पर भी उसका त्वरण अशून्य हो सकता है।
  2. चाल शून्य होने पर भी उसका वेग अशून्य हो सकता
  3. चाल स्थिर हो तो त्वरण अवश्य ही शून्य होना चाहिए।
  4. चाल अवश्य ही बढ़ती रहेगी, यदि उसका त्वरण धनात्मक हो।

उत्तर:

  1. सत्य, सरल आवर्त गति करते कण की महत्तम विस्थापन की स्थिति में कण की चाल शून्य होती है, जबकि त्वरण महत्तम (अशून्य) होता है।
  2. असत्य, चाल शून्य होने का अर्थ है कि कण के वेग का परिमाण शून्य है।
  3. असत्य, एकसमान वृत्तीय गति करते हुए कण की चाल स्थिर रहती है तो भी उसकी गति में अभिकेन्द्र त्वरण कार्य करता
  4. असत्य, यह केवल तब सत्य हो सकता है, जब चुनी गई धनात्मक दिशा गति की दिशा के अनुदिश हो।

प्रश्न 3.12.
किसी गेंद को 90 m की ऊँचाई से फर्श पर गिराया जाता है। फर्श के साथ प्रत्येक टक्कर में गेंद की चाल 1/10 कम हो जाती है। इसकी गति का t=0 से 12 s के बीच चाल – समय ग्राफ खींचिए।
उत्तर:
दिया है : u1 = 0, s1 = 90 मीटर,
a1= 9.8 मीटर/सेकण्ड2
सूत्र v2 = u2 + 2as से,
v12 = 02 + 2 x 9.8 x 90
∴ = \(\sqrt{2 x9.8 x90}\)
= 42 मीटर प्रति सेकण्ड
पुनः सूत्र  v = u + at से
42 = 0 + 9.8 x t1
∴ t1 =\(\frac { 42 }{ 9.8 }\) = 4.2 सेकण्ड
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 8
प्रश्नानुसार, u2 = v1 – \(\frac { v_{ 1 } }{ 10 } \)
= 42 – 4.2 = 37.8 मीटर/सेकण्ड
v2 = 0, a2 = – 9.8 मीटर/सेकण्ड1
सूत्र v = u + at से
0 = 37.8 – 9.8 x t2
∴ t2 = \(\frac { 37.8}{ 9.8 }\)
= 3.9 सेकण्ड
t = t1 + t2
= 4.2 + 3.9 =8.1 सेकण्ड
u2 = 0
हम जानते हैं कि, ऊपर जाने का समय = नीचे आने का समय = 3.9 सेकण्ड
∴ t3 = t2 = 3.9 सेकण्ड
वह वेग जिससे गेंद फर्श पर टकराती है,
= a3 = a2 = 37.8 मीटर/सेकण्ड
तथा t = (t1 + t2) + t3
= 8.1 + 3.9 = 12 सेकण्ड पर
चाल v = 37.8 मीटर/सेकण्ड

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प्रश्न 3.13.
उदाहरण सहित निम्नलिखित के बीच के अंतर को स्पष्ट कीजिए:
(a) किसी समय अंतराल में विस्थापन के परिमाण (जिसे कभी – कभी दूरी भी कहा जाता है) और किसी कण द्वारा उसी अंतराल के दौरान तय किए गए पथ की कुल लंबाई।

(b) किसी समय अंतराल में औसत वेग के परिमाण और उसी अंतराल में औसत चाल (किसी समय अंतराल में किसी कण की औसत चाल को समय अंतराल द्वारा विभाजित की गई कुल पथ-लंबाई के रूप में परिभाषित किया जाता है)। प्रदर्शित कीजिए कि (a) व (b) दोनों में ही दूसरी राशि पहली से अधिक या उसके बराबर है। समता का चिन्ह कब सत्य होता है? (सरलता के लिए केवल एकविमीय गति पर विचार कीजिए।)
उत्तर:
(a) विस्थापन के परिमाण से तात्पर्य है कि सीधी रेखा की कुल लम्बाई कण द्वारा किसी समयान्तराल में तय किए गए निश्चित पथ की लम्बाई उसी समयान्तराल में उन्हीं बिन्दुओं के मध्य तय किए गए पथ से अलग हो सकती है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 9
लेकिन औसत वेग का मान शून्य है चूँकि इस समय में विस्थापन शून्य है।
∴ औसत चाल > औसत वेग

प्रश्न 3.14.
कोई व्यक्ति अपने घर से सीधी सड़क पर 5 km h1 की चाल से 2.5 km दूर बाजार तक पैदल चलता है। परंतु बाजार बंददेखकर वह उसी क्षण वापस मुड़ जाता है तथा 7.5 km h1 की चाल से घर लौट आता है।
समय अंतराल

  1. 0 – 30 मिनट
  2. 0 – 50 मिनट,
  3. 0 – 40 मिनट की अवधि में उस व्यक्ति (a) के माध्य वेग का परिमाण, तथा (b) का माध्य चाल क्या है?

(नोट : आप इस उदाहरण से समझ सकेंगे कि औसत चाल को औसत वेग के परिमाण के रूप में परिभाषित करने की अपेक्षा समय द्वारा विभाजित कल पथ – लंबाई के रूप में परिभाषित करना अधिक अच्छा क्यों है। आप थक कर घर लौटे उस व्यक्ति को यह बताना नहीं चाहेंगे कि उसकी औसत चाल शून्य थी।)

उत्तर:
सूत्र v = \(\frac { s }{ t }\) से
t = \(\frac { s }{ v }\)
∴ व्यक्ति को बाजार जाने में लगा समय
t1 = \(\frac {2.5}{ 5 }\) = 0.5 घण्टा = 30 मिनट
∴ व्यक्ति को बाजार से आने में लगा समय
t2 = 2.5 = 0.33 घण्टा = 20 मिनट

1. 0 – 30 मिनट में व्यक्ति द्वारा चली दूरी = 2.5 किमी
∴ माध्य चाल = \(\frac {2.5}{ 30/60 }\) = 5 किमी/घण्टा
अर्थात् इस समयान्तराल में व्यक्ति का विस्थापन तथा माध्य वेग के परिमाण भी क्रमश: 2.5 किमी तथा 5 किमी/घण्टा होंगे।

2. 0 – 50 मिनट के समयान्तराल में प्रथम 30 मिनट में व्यक्ति बाजार जाता है जबकि अगले 20 मिनट में वापस आता है।
∴ विस्थापन = 0
∴माध्य वेग का परिमाण = \(\frac {0}{ 50/60 }\) = 0
इस समयान्तराल में चली दूरी
= 2.5 + 2.5 = 5 किमी
∴ माध्य चाल = \(\frac {5}{ 50/60 }\) = 6 किमी/घण्टा

3. चूँकि वापस आने में तय दूरी 2.5 किमी तथा लिया गया समय 20 मिनट है। अतः प्रथम 10 मिनट में तय की गई दूरी 1.25 किमी होगी।
अतः 0 – 40 मिनट के समयान्तराल में विस्थापन
= 2.5 – 1.25
= 1.25 किमी
∴ माध्य वेग का परिमाण = \(\frac {12.5}{ 20/60 }\) = 1.875 किमी/घण्टा
तथा इस समयान्तराल में चली दूरी
= 2.5 + 1.25 = 3.75 किमी
∴ माध्य चाल = \(\frac {3.75}{ 20/20 }\) = 5.625 किमी/घण्टा
∴ माध्य वेग < माध्य चाल

प्रश्न 3.15.
हमने अभ्यास 3.13 तथा 3.14 में औसत चाल व औसत वेग के परिमाण के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है। यदि हम तात्क्षणिक चाल व वेग के परिमाण पर विचार करते हैं, तो इस तरह का अंतर करना आवश्यक नहीं होता। तात्क्षणिक चाल हमेशा तात्क्षणिक वेग के बराबर होती है। क्यों?
उत्तर:
हम जानते हैं कि तात्क्षणिक चाल
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अर्थात् ∆t → 0 में वस्तु की गति की दिशा को अपरिवर्तित माना जाता है। इस प्रकार कुल पद लम्बाई अर्थात् दूरी एवम् विस्थापन के परिमाण में कोई अन्तर नहीं होता है। अर्थात् तात्क्षणिक चाल हमेशा तात्क्षणिक वेग के परिमाण के तुल्य होती है।

प्रश्न 3.16.
चित्र में (a) से (d) तक के ग्राफों को ध्यान से देखिए और देखकर बताइए कि इनमें से कौन – सा ग्राफ एकविमीय गति को संभवतः नहीं दर्शा सकता।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 11
उत्तर:
चारों ही ग्राफ असम्भव हैं, चूँकि

  1. एक ही समय किसी कण की दो विभिन्न स्थितियाँ सम्भव नहीं है।
  2. एक ही समय किसी कण के विपरीत दिशाओं में वेग नहीं हो सकते हैं।
  3. चाल कभी भी ऋणात्मक नहीं होती है।
  4. किसी कण की कुल पथ लम्बाई समय के साथ कभी भी नहीं घट सकती है।

प्रश्न 3.17.
चित्र में किसी कण की एकविमीय गति का x – t ग्राफ दिखाया गया है। ग्राफ से क्या यह कहना ठीक होगा कि यह कण t < 0 के लिए किसी सरल रेखा में और t > 0 के लिए किसी परवलीय पथ में गति करता है। यदि नहीं, तो ग्राफ के संगत किसी उचित भौतिक संदर्भ का सुझाव दीजिए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 12
उत्तर:
नहीं, यह गलत है। समय-दूरी आलेख (x – t वक्र) किसी कण के प्रक्षेपण को व्यक्त नहीं करता है। जैसे – जब कोई पिण्ड किसी मीनार से गिराया जाता है तब x = 0 पर t = 0 होता है।

प्रश्न 3.18.
किसी राजमार्ग पर पुलिस की कोई गाड़ी 30 km/h की चाल से चल रही है और यह उसी दिशा में 192 km/h की चाल से जा रही किसी चोर की कार पर गोली चलाती है। यदि गोली की नाल मुखी चाल 150 ms1है तो चोर की कार को गोली किस चाल के साथ आघात करेगी? (नोट : उस चाल को ज्ञात कीजिए जो चोर की कार को हानि पहुँचाने में प्रासंगिक हो)।

उत्तर:
दिया है : चोर की चाल, vt =192 किमी/घण्टा
192 x \(\frac { 5 }{ 18 }\) = \(\frac { 160 }{ 3 }\) मीटर/सेकण्ड
तथा पुलिस की चाल vp = 30 किमी/घण्टा
= 30 x \(\frac { 5 }{ 18 }\) = \(\frac { 25 }{ 3 }\) मीटर/सेकण्ड
अत: चोर की कार का पुलिस की कार के आपेक्ष वेग,
vtp = vt – vp
= \(\frac { 160 }{ 3 }\) – \(\frac { 25 }{ 3 }\) = \(\frac { 160 – 25}{ 3 }\)
= \(\frac { 135 }{ 3 }\) = 45 मीटर / सेकण्ड
गोली की नाल मुखी चाल, Vb = 150 मीटर / सेकण्ड
= गोली की पुलिस के सापेक्ष चाल
अतः चोर की कार पर प्रहार करते समय गोली की चाल
= पुलिस के सापेक्ष गोली की सापेक्ष चाल – पुलिस के सापेक्ष चोर की कार की सापेक्ष चाल = 150 – 45 = 105 मीटर / सेकण्ड

प्रश्न 3.19.
चित्र में दिखाए गए प्रत्येक ग्राफ के लिए किसी उचित भौतिक स्थिति का सुझाव दीजिए
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 13

उत्तर:
(a) x – t ग्राफ प्रदर्शित कर रहा है कि प्रारम्भ में x शून्य है, फिर यह एक स्थिर मान प्राप्त करता है। पुन: यह शून्य हो जाता है तथा फिर यह विपरीत दिशा में बढ़कर अन्त में एक स्थिर मान (विरामावस्था) प्राप्त कर लेता है। अतः यह ग्राफ इस प्रकार की भौतिक स्थिति व्यक्त कर सकता है जैसे एक गेंद को विरामावस्था से फेंका जाता है और वह दीवार से टकराकर लौटती है तथा कम चाल से उछलती है तथा यह क्रम इसके विराम में पहुँचने तक चलत रहता है।

(b) यह ग्राफ प्रदर्शित कर रहा है कि वेग समय के प्रत्येक अन्तराल के साथ परिवर्तित हो रहा है तथा प्रत्येक बार इसका वेग कम हो रहा है। इसलिए यह ग्राफ एक ऐसी भौतिक स्थिति को व्यक्त कर सकता है। जिसमें एक स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती हुई गेंद (फेंके जाने पर) धरती से टकराकर कम चाल से पुनः उछलती है तथा प्रत्येक बार धरती से टकराने पर इसकी चाल कम होती जाती है।

(c) यह ग्राफ प्रदर्शित करता है कि वस्तु अल्प समय में ही त्वरित हो जाती है; अतः यह ग्राफ एक ऐसी भौतिक स्थिति को व्यक्त कर सकता है जिसमें एकसमान चाल से चलती हुई गेंद को अत्यल्प समयान्तराल में बल्ले द्वारा टकराया जाता है।

प्रश्न 3.20.
चित्र में किसी कण की एकविमीय सरल आवर्ती गति के लिए. x – t ग्राफ दिखाया गया है। (इस गति के बारे में आप अध्याय 14 में पढ़ेंगे) समय t = 0.3 s, 1.2 s, – 1.2 5 पर कण के स्थिति, वेग व त्वरण के चिन्ह क्या होंगे?
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 13
उत्तर:
हम जानते हैं कि सरल आवर्त गति में,
त्वरण a = – w2x
जहाँ w नियतांक है जिसे कोणीय आवृत्ति कहते हैं।
समय t = 0.3 सेकण्ड दर, दूरी (x) ऋणात्मक है। दूरी – समय ग्राफ का दाब भी ऋणात्मक है। इस कारण स्थिति तथा वेग ऋणात्मक है। अतः त्वरण (a = – w2x) धनात्मक है।

समय t = 1.2 सेकण्ड पर, दूरी (x) धनात्मक है। दूरी समय (x – t) ग्राफ का ढाल भी धनात्मक है। इस प्रकार स्थिति तथा वेग धनात्मक है। अतः त्वरण ऋणात्मक है।

समय t = – 1.2 सेकण्ड पर, दूरी (x) ऋणात्मक है। दूरी समय (x – t) ग्राफ का ढाल भी धनात्मक है। इस प्रकार वेग धनात्मक है तथा अन्त में त्वरण (a) भी धनात्मक है।

प्रश्न 3.21.
चित्र किसी कण की एकविमीय गति का x – t ग्राफ दर्शाता है। इसमें तीन समान अंतराल दिखाए गए हैं। किस अंतराल में औसत चाल अधिकतम है और किसमें न्यूनतम है? प्रत्येक अंतराल के लिए औसत वेग का चिहन बताइए।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 15
उत्तर:
चूँकि लघु अन्तरालों में समय – दूरी (x – t) ग्राफ की ढाल उस अन्तराल में कण की औसत चाल को प्रदर्शित करती है। ग्राफ से स्पष्ट है कि इस अन्तराल में,

  1. अन्तराल (3) में ग्राफ की ढाल अधिकतम है अत: औसत चाल अधिकतम है। जबकि अन्तराल (2) में ग्राफ की ढाल न्यूनतम है अतः इस अन्तराल में औसत चाल न्यूनतम है।
  2. अन्तराल (1) एवम् (2) में ढाल धनात्मक है लेकिन अन्तराल (3) में ऋणात्मक है अतः अन्तराल (1 व 2) में औसत वेग धनात्मक जबकि अन्तराल (3) में ऋणात्मक है।

प्रश्न 3.22.
चित्र में किसी नियत (स्थिर) दिशा के अनुदिश चल रहे कण का चाल – समय ग्राफ दिखाया गया है।
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 16
इसमें तीन समान समय अंतराल दिखाए गए हैं। किस अंतराल में औसत त्वरण का परिमाण अधिकतम होगा? किस अंतराल में औसत चाल अधिकतम होगी? धनात्मक दिशा को गति की स्थिर दिशा चुनते हुए तीनों अंतरालों में । तथा a के चिहन बताइए। A, B, C व D बिंदुओं पर त्वरण क्या होंगे?
उत्तर:

  1. चूँकि लघु अन्तरालों में चाल-समय (v-1) ग्राफ की ढाल का परिमाण कण के औसत त्वरण के परिमाण को व्यक्त करता है। दिए गए ग्राफ से स्पष्ट है कि ढाल का परिमाण अन्तराल वक्र (2) में अधिकतम जबकि अन्तराल (3) में न्यूनतम है। इस प्रकार औसत त्वरण का परिमाण अन्तराल (2) में अधिकतम व अन्तराल (3) में न्यूनतम होगा।
  2. औसत चाल अन्तराल (1) में न्यूनतम तथा अन्तराल (3) में अधिकतम है।
  3. तीनों अन्तरालों में चाल (v) धनात्मक है। अन्तराल (1) में चाल-समय (v – t) ग्राफ का ढाल धनात्मक जबकि अन्तराल (2) में ढाल अर्थात् त्वरण a ऋणात्मक है। अन्तराल (3) में चाल – समय ग्राफ समय-अक्ष के समान्तर है। अतः इस अन्तराल में त्वरण शून्य है।.
  4. चारों बिन्दुओं (i.e.,A, B, C तथा D) पर, चाल – समय ग्राफ समय-अक्ष के समान्तर है। अतः इन चारों बिन्दुओं पर त्वरण शून्य है।

अतिरिक्त अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 3.23.
कोई तीन पहिये वाला स्कूटर अपनी विरामावस्था से गति प्रारंभ करता है। फिर 10 s तक किसी सीधी सड़क पर 1 ms2 के एकसमान त्वरण से चलता है। इसके बाद वह एक समान वेग से चलता है। स्कूटर द्वारा गवें सेकंड (n = 1, 2, 3,…) में तय की गई दूरी को n के सापेक्ष आलेखित कीजिए। आप क्या आशा करते हैं कि त्वरित गति के दौरान यह ग्राफ कोई सरल रेखा या कोई परवलय होगा?

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उत्तर:
प्रारम्भिक वेग, u = 0,
त्वरण a = 1 मीटर/सेकण्ड2, t = 10 सेकण्ड
सूत्र Snth =u + \(\frac { a }{ 2 }\) (2n – 1) से,
S1th = 0 + \(\frac { 1}{ 2 }\) (2 x 1 – 1) = 0.5 मीटर
S2th = 0 + \(\frac { 1}{ 2 }\) (2 x 2 – 1) =1.5 मीटर
S3th = 0 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) (2 x 3 – 1) = 2.5 मीटर
Smum = 0 + \(\frac { 1 }{ 2 }\)(2 x 4 – 1) = 3.5 मीटर
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 18
इत्यादि।
चित्र से स्पष्ट है कि एक समान त्वरित गति के लिए समय अक्ष पर झुकी सरल रेखा, एक समान गति के लिए समय अक्ष के समान्तर सरल रेखा ही है।

प्रश्न 3.24.
किसी स्थिर लिफ्ट में (जो ऊपर से खली है) कोई बालक खड़ा है। वह अपने पूरे जोर से एक गेंद ऊपर की ओर फेंकता है जिसकी प्रारंभिक चाल 49 ms-1 है। उसके हाथों में गेंद के वापिस आने में कितना समय लगेगा? यदि लिफ्ट ऊपर की ओर 5 ms1 की एकसमान चाल से गति करना प्रारंभ कर दे और वह बालक फिर गेंद को अपने पूरे जोर से फेंकता तो कितनी देर में गेंद उसके हाथों में लौट आएगी?
उत्तर:
जब लिफ्ट स्थिर है, तब u = 49 ms1, v = 0 तथा a = – 9.8 m s2
जब गेंद लड़के के हाथ में वापस लौटेगी तो गेंद का लिफ्ट के सापेक्ष विस्थापन शून्य होगा।
अतः s =ut +\(\frac { 1 }{ 2 }\) at2में, s = 0 तथा माना लौटने में लगा
समय = t
∴ 0 = 49t – \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x t2

⇒\(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x t2
⇒ t = \(\frac { 49 x 2 }{ 9.8 }\) = 10 s
जब लिफ्ट ऊपर की ओर एक समान वेग से चलती है तो लिफ्ट के सापेक्ष गेंद का प्रारम्भिक वेग 49 ms1 ही रहेगा; अतः गेंद को बालक के हाथों में आने में 10 s का ही समय लगेगा।

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प्रश्न 3.25.
क्षैतिज में गतिमान कोई लम्बा पट्टा (चित्र) 4km/h की चाल से चल रहा है। एक बालक इस पर ( पट्टे के सापेक्ष)9 km/h की चाल से कभी आगे कभी पीछे अपने माता-पिता के बीच दौड़ रहा है। माता व पिता के बीच 50 m की दूरी है। बाहर किसी स्थिर प्लेटफॉर्म पर खड़े एक प्रेक्षक के लिए, निम्नलिखित का मान प्राप्त करिए

  1. पट्टे की गति की दिशा में दौड़ रहे बालक की चाल
  2. पट्टे की गति की दिशा के विपरीत दौड़ रहे बालक की चाल,
  3. बच्चे द्वारा (a) व (b) में लिया गया समय यदि बालक की गति का प्रेक्षण उसके माता या पिता करें तो कौन – सा उत्तर बदल जाएगा?

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उत्तर:
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 25
1. जब बालक पट्टे की गति की दिशा में दौड़ता है पट्टे के सापेक्ष बालक का वेग = 9 km h1 (बाएँ से दाएँ) यदि बालक का वेग, प्लेटफार्म पर खड़े किसी प्रेक्षक के सापेक्ष \(\vec{v}_{c}\) हो तो,
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 25

2. जब बालक पट्टे की गति की दिशा के विपरीत दौड़ता है
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 28
ऋणात्मक चिहन बालक की विपरीत दिशा (दाएँ से बाएँ) को व्यक्त करता है।

3. स्थिति (a) अथवा (b) में लगने वाला समय
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 29
समय 20s रह जाएगा यदि माता या पिता बालक की गति का प्रेक्षण करते हैं।

प्रश्न 3.26.
किसी 200 m ऊँची खड़ी चट्टान के किनारे से दो पत्थरों को एक साथ ऊपर की ओर 15 ms1तथा 30 ms1की प्रारंभिक चाल से फेंका जाता है। इसका सत्यापन कीजिए कि नीचे दिखाया गया ग्राफ (चित्र) पहले पत्थर के सापेक्ष दूसरे पत्थर की आपेक्षिक स्थिति का समय के साथ परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। वायु के प्रतिरोध को नगण्य मानिए और यह मानिए कि जमीन से टकराने के बाद
MP Board Class 11th Physics Solutions Chapter 3 सरल रेखा में गति 20
पत्थर ऊपर की ओर उछलते नहीं। मान लीजिए g = 10 ms2 ग्राफ के रेखीय व वक्रीय भागों के लिए समीकरण लिखिए।
उत्तर:
दिया है : (0) = 200 मीटर,
v (0) =15 मीटर/सेकण्ड
a = – 10 मीटर/सेकण्डर
हम जानते हैं कि
x = xo + ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) at2
∴ x1(t) = 200 + 15 x t – 5t2
जब पहला पत्थर जमीन से टकराता है,
x1(t) = 0
∴ – 5t2 + 15t + 200 = 0 …(1)
या t2 -3t – 400 =0
या (t + 5) (t – 8) = 0
∴ t= – 5 या 8
परन्तु t # ऋणात्मक
∴ t = 8 सेकण्ड
जब दूसरा पत्थर जमीन से टकराता है,
x2 (t) = 200 मीटर, V0 =30 मीटर/सेकण्ड
a = – 10 मीटर/सेकण्डर2
∴x2 (t) = 200 + 30t – 5t2
प्रश्नानुसार,
x2(t) – x1(t) =15t …(1)
जहाँ x2(t) – x1(t) दोनों पत्थरों के बीच दूरी (x) है।
x = 15t
i.e., x ∝t
i.e., अब तक दोनों पत्थर गतिमान रहेंगे, उनके बीच दूरी बढ़ती रहेगी। अर्थात् (x – t) ग्राफ सरल रेखा होगा।
चूँकि t =8 सेकण्ड, अत: पत्थर पृथ्वी पर 8 सेकण्ड बाद लौटेगा। इस समय पर दोनों के बीच अधिकतम दूरी होगी।
∴अधिकतम दूरी, x =15 x 8
= 120 मीटर होगी।
अर्थात् 8 सेकण्ड बाद केवल दूसरा पत्थर गतिशील होगा। अतः ग्राफ द्विघाती समीकरण के अनुसार परवलयाकार होगा।

प्रश्न 3.27.
किसी निश्चित दिशा के अनुदिश चल रहे किसी कण का चाल – समय ग्राफ (चित्र) में दिखाया गया है। कण द्वारा (a) t = 0 s से t = 10s, (b) t = 25 से 6s के बीच तय की गई दूरी ज्ञात कीजिए।
(a) तथा (b) में दिए गए अंतरालों की अवधि में कण की औसत चाल क्या है?
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उत्तर:
(a) t = 0 सेकण्ड से t =10 सेकण्ड में चली गई दूरी
= चाल समय ग्राफ का क्षेत्रफल
= \(\frac { 1 }{ 2 }\)OB x Ac
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 10 x 12 = 60 मीटर
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(b) t = 2 सेकण्ड से 1 = 6 सेकण्ड में चली दूरी ज्ञात करने के लिए, इसे दो भागों में अर्थात् t = 2 से t=5 से० तक तथा t = 5 से t = 6 से० तक ज्ञात कर जोड़ेंगे।

(i) t = 2 से t = 5 से० के लिए
ut = 0, v =12 मीटर/सेकण्ड, t = 5 सेकण्ड
∴a=\(\frac { v – u }{ t }\) से
a = \(\frac { 12 }{ 5 }\)= 2.5 मीटर/सेकण्ड2
अब सूत्र v = u + at से, t = 2 सेकण्ड पर चाल
=0 + 2.4 x 2 = 4.8 मीटर/सेकण्ड
∴ t = 2 से t = 5 से० में चली दूरी
S=ut + at2
= 4.8 x 3+ \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 2.4 x 32
= 14.4 + 10.8
= 25.2 मीटर

(ii) t = 5 से 1 = 6 से० के बीच चली दूरी
x = 12 x 1+ 2 x (- 2.4) x 12
= 12 – 1.2 = 10.8 मीटर
∴ कुल चली दूरी = 25.2 + 10.8
= 36 मीटर
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प्रश्न 3.28.
एकविमीय गति में किसी कण का वेग-समय ग्राफ (चित्र) में दिखाया गया है:
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नीचे दिए सूत्रों में t1 से t2 तक के समय अंतराल की अवधि में कण की गति का वर्णन करने के लिए कौन-से सूत्र सही हैं:

  1. x (t2) = x (t1) + v (t1) (t2– t1) + \(\frac { 1 }{ 2 }\) a(t2 -t2)22
  2. v (12) =v (11) + a (t2 – t1)
  3. Vaverage= [x (t2) – x(t1)]/(t2-t1)
  4. aaverage = [v (t2) – (t1)]/(t2 – t1)
  5. x (t2) = x (t1) + vaverage (t2 – t1) + \(\frac { 1 }{ 2 }\)aaverage (t2 – t1).
  6. x (t2) – x (t1) = t – अक्ष तथा दिखाई गई बिंदुकित रेखा के बीच दर्शाए गए वक्र के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. सत्य।

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