MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 7 क्रमचय और संचयं Ex 7.1

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 7 क्रमचय और संचयं Ex 7.1

प्रश्न 1.
अंक 1, 2, 3, 4 और 5 से कितनी 3 अंकीय संख्याएँ बनाई जा सकती हैं, यदि
(i) अंकों की पुनरावृत्ति की अनुमति हो।
(ii) अंकों की पुनरावृत्ति की अनुमति नहीं हो।
हल:
3 अंकीय संख्या में 3 स्थान होते हैं : इकाई, दहाई और सैकड़ा।
(i) इकाई का स्थान 5 तरीकों से भरा जा सकता है क्योंकि 1, 2, 3, 4, 5 में से कोई भी एक अंक लिया जा सकता है। दहाई का स्थान भी 5 तरीकों से भरा जा सकता है क्योंकि पुनरावृत्ति की अनुमति है। 1, 2, 3, 4, 5 में से कोई भी अंक लिया जा सकता है।
इसी प्रकार सैकड़े का स्थान भी 5 तरीकों से भरा जा सकता है।
∴ 3 अंकीय संख्याओं की संख्या = 5 x 5 x 5 = 125.
(ii) इकाई का स्थान 1, 2, 3, 4, 5 में से कोई-से एक अंक को लेकर 5 तरीकों से भरा जा सकता है।
दहाई का स्थान 4 तरीकों से भरा जा सकता है क्योंकि एक अंक पहले ही चयनित कर लिया गया। पुनरावृत्ति की अनुमति नहीं है। .
सैकड़े का स्थान 3 तरीकों से भरा जा सकता है क्योंकि 2 अंक पहले ही चयनित कर लिए गए हैं। .
∴ 3 अंकीय संख्याओं की संख्या = 5 x 4 x 3 = 60.

प्रश्न 2.
अंक 1, 2, 3, 4, 5, 6 से कितनी 3 अंकीय सम संख्याएँ बनाई जा सकती हैं, यदि अंकों की पुनरावृत्ति की जा सकती है?
हल:
इकाई का स्थान 2, 4, 6 में से एक को लेकर 3 तरीकों से भरा जा सकता है।
क्योंकि पुनरावृत्ति की जा सकती है, दहाई का स्थान 6 तरीकों से भरा जा सकता है।
इसी प्रकार सैकड़े का स्थान भी 6 तरीकों से ही भरा जा सकता है।
∴ 3 अंकीय संख्याओं की संख्या = 6 x 6 x 3 = 108.

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प्रश्न 3.
अंग्रेजी वर्णमाला के प्रथम 10 अक्षरों से कितने 4 अक्षरों के कोड बनाए जा सकते हैं, यदि किसी भी अक्षर की पुनरावृत्ति नहीं की जा सकती?
हल:
4 अक्षरों वाले कोड में 4 स्थान हैं। प्रत्येक अक्षर के लिए एक स्थान चाहिए।
पहले स्थान को 10 तरीकों से, दूसरे स्थान को 9 तरीकों से, तीसरे स्थान को 8 तरीकों से और चौथे स्थान को 7 तरीकों से भर सकते हैं क्योंकि पुनरावृत्ति की अनुमति नहीं है। एक अक्षर दुबारा नहीं लिखा जा सकता।
∴ चार अक्षर वाले कोडों की संख्या = 10 x 9 x 8 x 7 = 5040.

प्रश्न 4.
0 से 9 तक के अंकों का प्रयोग करके कितने 5 अंकीय टेलीफोन नम्बर बनाए जा सकते हैं, यदि प्रत्येक नम्बर 67 से आरम्भ होता है और कोई अंक एक बार से अधिक नहीं आता है?
हल:
पांच अंकीय नम्बर में 5 स्थान हैं जिसमें पहले और दूसरे को I और II से निरूपित किया गया है। I और II स्थान पर 6 और 7 को रखा गया है।
शेष 8 अंकों में से एक-एक अंक लेकर III, IV और V स्थान को भरना है। स्थान III को 8 तरीकों से, स्थान IV को 7 तरीकों से तथा स्थान V को 6 तरीकों से भर सकते है।
∴ 5 अंकीय टेलीफोन नम्बरों की संख्या = 8 x 7 x 6 = 336

प्रश्न 5.
एक सिक्का तीन बार उछाला जाता है और परिणाम अंकित कर लिए जाते हैं। परिणामों की संभव संख्या क्या है?
हल:
एक बार सिक्का उछालने से दो में से एक भाग ऊपर आता है अर्थात T या H जबकि H चित्त और T पट को निरूपित करते हैं।
∴ एक बार सिक्का उछालने से दो परिणाम होते हैं। तीन बार सिक्का उछालने से 2 x 2 x 2 = 8 परिणाम होंगे। ये परिणाम इस प्रकार है :
TTT, TTH, THT, HTT, HHT, HTH, THH, HHH

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प्रश्न 6.
भिन्न-भिन्न रंगों के 5 झंडे दिए हुए हैं। इससे कितने विभिन्न संकेत बनाए जा सकते हैं, यदि प्रत्येक संकेत में 2 झंडों, एक के नीचे दूसरे के प्रयोग की आवश्यक पड़ती है?
हल:
झंडे के ऊपर का स्थान भरने के 5 तरीके हैं। एक झंडा प्रयोग होने के बाद 4 झंडे रह जाते हैं। नीचे का दूसरा स्थान 4 तरीकों से भरा जा सकता है।
कुल संकेतों की संख्या = 5 x 4 = 20.

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MP Board Class 9th Special Hindi गद्य साहित्य का स्वरूप एवं विधाएँ

MP Board Class 9th Special Hindi गद्य साहित्य का स्वरूप एवं विधाएँ

प्रश्न 1.
गद्य किसे कहते हैं?
अथवा
गद्य के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसके महत्व को बताइए।
उत्तर-
गद्य हमारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। गद्य के माध्यम से ही हम अपने दैनिक जीवन में सभी कार्यों को सम्पन्न करते हैं। निजी जीवन में पत्र, डायरी आदि साहित्य में कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक, जीवनी आदि लेखन का माध्यम गद्य ही होता है। गद्य का क्रमिक विकास हिन्दी के आधुनिक काल के आरम्भ से हुआ। गद्य का प्रयोग व्याख्या, तर्क, वर्णन एवं कथा के लिए होता है। गद्य में किसी कथ्य को सहजता से, सरलता से एवं स्पष्टता से व्याख्या करने की क्षमता है। व्याकरण के नियमों का प्रयोग भी आसानी से ग्रहण किया जा सकता है।

गद्य प्रयोग और प्रयोजन की दृष्टि से तीन प्रकार की होती है-

  • दैनिक कार्यकलाप की भाषा,
  • शास्त्र या तर्क भाषा,
  • साहित्यिक भाषा।

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प्रश्न 2.
हिन्दी गद्य कितने रूपों में उपलब्ध है?
अथवा
हिन्दी गद्य की विधाओं का उल्लेखं कीजिए।
उत्तर-
हिन्दी गद्य की अनेक विधाएँ (रूप) हैं।

जो निम्नलिखित हैं-

  • निबन्ध,
  • नाटक,
  • एकांकी,
  • उपन्यास,
  • कहानी,
  • जीवनी,
  • आत्मकथा,
  • संस्मरण,
  • रेखाचित्र,
  • रिपोर्ताज,
  • गद्यकाव्य,
  • आलोचना,
  • यात्रावृत्त,
  • डायरी,
  • पत्र,
  • भेंटवार्ता आदि।

प्रश्न 3.
निबन्ध किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर-
निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।

निबन्ध के निम्न प्रकार हैं-

  • कथात्मक,
  • वर्णनात्मक,
  • विचारात्मक,
  • भावात्मक।

कथात्मक निबन्धों में काल्पनिक वृत्त, आत्मचरित्रात्मक एवं पौराणिक आख्यानों का प्रयोग किया जाता है। वर्णनात्मक निबन्धों में प्रकृति या मनुष्य जीवन की घटनाओं का वर्णन होता है। विचारात्मक निबन्धों में अपने विचारों को सुसम्बद्धता से व्यक्त किया जाता है। भावात्मक निबन्धों में लेखक के हृदय से निकले भावों को एक वैचारिक सूत्र में नियन्त्रित करके लिखा जाता है।

प्रश्न 4.
नाटक किसे कहते हैं? नाटक के तत्व भी बताइए।
उत्तर-
रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को जब केवल पात्रों के संवादों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है, तो वह रचना नाटक कहलाती है।

नाटक के छः तत्व माने जाते हैं-

  • कथावस्तु,
  • पात्र,
  • कथोपकथन (संवाद),
  • देशकाल,
  • उद्देश्य,
  • शैली।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककारों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण, ‘प्रेमी’, उदयशंकर भट्ट, सेठ गोविन्ददास, रामकुमार वर्मा, लक्ष्मीनारायण मिश्र, लक्ष्मीनारायण लाल, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, विष्णु प्रभाकर, जगदीशचन्द्र माथुर, धर्मवीर ‘भारती’ आदि ने इस नाटक विधा को आगे बढ़ाया।

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प्रश्न 6.
एकांकी किसे कहते हैं?
उत्तर-
एकांकी नाटक का ही एक प्रकार है, इसे दृश्यकाव्य कहते हैं। एकांकी में जीवन का एक खण्ड दृश्य अंकित किया जाता है। यह स्वयं में पूर्ण होता है। एकांकी का प्रभाव मन के ऊपर बहुत ही सजीव और गम्भीर होता है। एकांकी एक ही उद्देश्य को व्यक्त करता है। इसका एक भाव या विचार होता है। इस भाव को एकांकी दर्शकों तक पहुँचाता है।

एकांकी में एक अंक होता है। यह अंक दृश्यों में विभाजित हो सकता है। कम से कम समय में अधिक-से-अधिक प्रभाव एकांकी का लक्ष्य हुआ करता है।

प्रश्न 7.
एकांकी के तत्व कितने बताये गये हैं?
उत्तर-
एकांकी के तत्व निम्नलिखित बताये गये हैं

  • कथावस्तु,
  • कथोपकथन या संवाद,
  • पात्र या चरित्र-चित्रण,
  • देशकाल-वातावरण,
  • भाषा-शैली,
  • रंगमंचीयता।

प्रश्न 8.
उपन्यास किसे कहते हैं? प्रसिद्ध उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
उपन्यास कथा का वह रूप है जिसमें जीवन का विशद् चित्रण होता है। पात्रों के जीवन की विविधरूपिणी झाँकी देकर उपन्यासकार एक ओर तो मानव चरित्र को व्यक्त करता है और दूसरी ओर वह युग की प्रवृत्तियों का चित्रण करते हुए हमें कुछ सोचने पर विवश कर देता है।

उपन्यास तीन प्रकार के होते हैं-

  • ऐतिहासिक,
  • सामाजिक,
  • मनोवैज्ञानिक।

हिन्दी के उपन्यासों की परम्परा तो भारतेन्दु युग से ही आरम्भ हो गई थी। परन्तु आरम्भ के उपन्यास कपोल-कल्पित और चमत्कार प्रधान ही होते थे। जयशंकर प्रसाद और प्रेमचन्द ने उपन्यास में मानव जीवन का यथार्थ चित्रण आरम्भ किया। प्रेमचन्द तो उपन्यास-सम्राट की उपाधि से विभूषित ही हैं। उनके बाद विशम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, आचार्य चतुरसेन, जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचन्द जोशी, भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा, यशपाल, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, रांगेय राघव, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि ने हिन्दी उपन्यास को समृद्ध किया है।

प्रश्न 9.
कहानी किसे कहते हैं?
अथवा
कहानी की कहानी लिखो। प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कहानी एक कलात्मक छोटी रचना है। यह किसी घटना, भाव, संवेदना आदि की मार्मिक व्यंजना करती है। इसका आरम्भ और अन्त बहुत कलात्मक तथा प्रभावपूर्ण होता है। घटनाएँ परस्पर सम्बद्ध होती हैं। हर घटना लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। लक्ष्य पर पहुँचकर कहानी अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ती हुई समाप्त हो जाती है।

जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द, अज्ञेय, जैनेन्द, भगवतीचरण वर्मा, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, धर्मवीर ‘भारती’, मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, शिवानी आदि प्रसिद्ध कहानीकार हैं।

प्रश्न 10.
कहानी के कौन-कौन से तत्व होते हैं?
उत्तर-
कहानी के निम्नलिखित तत्व होते हैं-

  1. कथावस्तु-कथावस्तु के विकास की स्थितियाँ चार होती हैं-
    • आरम्भ,
    • आरोह,
    • चरम स्थिति,
    • अवरोह।
  2. चरित्र-चित्रण।
  3. कथोपकथन अथवा संवाद।
  4. देशकाल और वातावरण।
  5. उद्देश्य।
  6. शैली शिल्प।

प्रश्न 11.
कहानी के कितने भेद होते हैं?
उत्तर-
कहानी के निम्न चार भेद होते हैं-

  • घटना प्रधान कहानी,
  • चरित्र प्रधान कहानी,
  • वातावरण प्रधान कहानी,
  • भाव प्रधान कहानी।

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प्रश्न 12.
कहानी के विकास को कितने भागों में बाँटा जा सकता है? समय-सीमा भी बताओ।
उत्तर-
कहानी के विकास को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है

  • आरम्भ काल सन् 1900 से 1910 ई. तक।
  • विकास काल सन् 1911 से सन् 1946 ई. तक।
  • उत्कर्ष काल सन् 1947 ई. से अब तक।

प्रश्न 13.
जीवनी, आत्मकथा, रेखाचित्र, संस्मरण और यात्रावृत्त की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
जीवनी-किसी महापुरुष या प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, उनके कार्य-कलापों आदि का आत्मीयता के साथ वर्णन जिस गद्य विधा में किया जाता है, उसे जीवनी कहते हैं।

आत्मकथा-आत्मकथा में लेखक स्वयं अपनी जीवन-यात्रा पूरी आत्मीयता से व्यवस्थित रूप में पाठक के सम्मुख रखता है।

रेखाचित्र-रेखाचित्र में शब्दों की कलात्मक रेखाओं द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य और आन्तरिक स्वरूप का शब्दचित्र अंकित किया जाता है।

संस्मरण-संस्मरण में लेखक अपने अनुभव की वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का कलात्मक विवरण अपनी स्मृति के आधार पर प्रस्तुत करता है। यात्रावृत्त-यात्रावृत्त वह विधा है जिसमें लेखक किसी विशेष स्थल की यात्रा का ऐसा सजीव वर्णन करता है कि पाठक पढ़कर ही ऐसा अनुभव करने लगे जैसे वह उसी स्थान के सारे दृश्य स्वयं देख रहा है।

प्रश्न 14.
गद्यकाव्य विधा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
यह कवितापूर्ण गद्य रचना होती है। जब किसी गहन भावानुभूति की काव्यमयी भाषा शैली और अतिशय भावुकता के साथ प्रस्तुत की जाती है, तब हम उस रचना को गद्यकाव्य कहते हैं। गहन भावानुभूति, काव्यमयी सुललित भाषा, आलंकारिकता, भावात्मक शैली आदि इसकी विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 15.
‘रिपोर्ताज’ विधा का परिचय दीजिए।
उत्तर-
‘रिपोर्ताज’ फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ से इसका निकट का सम्बन्ध है। रिपोर्ट समाचार-पत्र के लिए लिखी जाती है। उसमें साहित्यिक तत्व नहीं होते। रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही रिपोर्ताज कहते हैं।

आँखों देखी घटनाओं पर ही रिपोर्ताज लिखा जा सकता है। रिपोर्ताज का विषय कभी कल्पित नहीं होता है। परन्तु तथ्य को रोचकता देने के लिए इसमें कल्पना का सहारा लिया जा सकता है। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार और कलाकार दोनों की ही जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।

प्रश्न 16.
‘आलोचना’ की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
‘आलोचना’ विधा के द्वारा किसी साहित्यिक रचना के गुण-दोषों की परख की जाती है जिसमें रसानुभूति की बुद्धि प्रधान व्याख्या की जाती है।

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थानों की पूर्ति-

1. गद्य का क्रमिक विकास हिन्दी के………………के आरम्भ से हुआ। (भक्तिकाल/आधुनिक काल)
2. गद्य में व्याकरण के नियमों का प्रयोग भी………….ग्रहण किया जा सकता है। (आसानी से/कठिनता से)
3. पात्रों के संवादों से प्रस्तुत रचना…………….कहलाती है। (नाटक/उपन्यास)
4. एकांकी में……………होता है। (एक अंक/कम-से-कम पाँच अंक)
5. गद्यकाव्य काव्यमय………..रचना होती है। (पद्य/गद्य)
उत्तर-
1. आधुनिक काल,
2. आसानी से,
3. नाटक,
4. एक अंक,
5. गद्य।

सही विकल्प चुनिए-

1. गद्य हमारी स्वाभाविक
(क) अभिव्यक्ति है
(ख) रचना है
(ग) पद्य है
(घ) व्याख्या है।
उत्तर-
(क) अभिव्यक्ति है

2. गद्य का प्रयोग होता है
(क) व्याख्या के लिए
(ख) धमकाने के लिए
(ग) भयभीत करने के लिए
(घ) भाव प्रकाशन के लिए।
उत्तर-
(क) व्याख्या के लिए

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3. व्याकरण के नियमों का प्रयोग होता है गद्य में
(क) कठिनता से
(ख) आसानी से
(ग) बाधा से
(घ) अबाधित रूप से।
उत्तर-
(ख) आसानी से

4. एकांकी में अंक होता है
(क) एक ही
(ख) तीन ही
(ग) पाँच ही
(घ) एक भी नहीं।
उत्तर-
(क) एक ही

5. ‘रिपोर्ताज’ शब्द है भाषा का
(क) फ्रांसीसी
(ख) इटेलियन
(ग) रूसी
(घ) जापानी।
उत्तर-
(क) फ्रांसीसी

सही जोड़ी मिलाइए-
MP Board Class 9th Special Hindi गद्य साहित्य का स्वरूप एवं विधाएँ 1
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) →(क),
(iii) → (घ),
(iv) → (ग),
(v) → (ङ)।

सत्य/असत्य-

1. कहानी में किसी घटना, भाव, संवेदना आदि की मार्मिक व्यंजना की जाती है।
2. उपन्यास में जीवन का विशद् चित्रण नहीं होता है।
3. एकांकी का एक ही अंक दृश्यों में विभाजित होता है।
4. गद्यकाव्य कवितापूर्ण गद्य रचना होती है जिसमें गहन भावानुभूति होती है।
5. आलोचना में रसानुभूति की बुद्धि प्रधान व्याख्या की जाती है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर-

1. अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ से किसका निकटता का सम्बन्ध होता है?
उत्तर-
रिपोर्ताज का।

2. आलोचना में किसके गुण-दोषों की परख की जाती है?
उत्तर-
साहित्यिक रचना के।

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3. किसी विशेष स्थल की यात्रा का सजीव वर्णन किस विधा में किया जाता है?
उत्तर-
यात्रावृत्त।

4. रेखाचित्र में घटना के बाह्य और आन्तरिक स्वरूप को किस तरह अंकित किया जाता है?
उत्तर-
कलात्मक रेखाओं द्वारा।

5. जीवन का विशद् चित्रण किस विधा में होता है?
उत्तर-
उपन्यास।

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MP Board Class 9th Hindi Navneet लेखक परिचय

MP Board Class 9th Hindi Navneet लेखक परिचय

1. रामधारीसिंह ‘दिनकर’

जीवन-परिचय-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 ई. में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ था। स्नातक ऑनर्स तक शिक्षा प्राप्त करके 55 रुपये मात्र मासिक के वेतन पर एक विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। बाद में बिहार राज्य सेवा के अपर निबन्धक विभाग में उप-निबन्धक विभाग में उपनिदेशक नियुक्त हुए। इसके बाद मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। सन् 1952 ई. में इन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये गए। आकाशवाणी के निदेशक, हिन्दी सलाहकार समितियों के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। सन् 1974 ई. में इनका निधन हो गया।

अपनी ओजस्वी रचनाओं के लिए, भारतीयों में नई स्फूर्ति भरने के लिए सृजित रचनाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

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रचनाएँ
(1) निबन्ध-मिट्टी की ओर, अर्द्धनारीश्वर, रेती के फूल, उजली आग, राष्ट्रभाषा, वेणुवन, राष्ट्रीय एकता।
(2) आलोचना-शुद्ध कविता की खोज, काव्य की भूमिका।
(3) संस्कृति और दर्शन-संस्कृति के चार अध्याय, भारतीय संस्कृति और एकता, चेतना की शिक्षा।
(4) संस्मरण-रेखाचित्र-लोकदेव नेहरू, वट-पीपल। (5) यात्रावृत्त-मेरी यात्राएँ, देश-विदेश।
(6) काव्य-रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, सामधेनी आदि।

भाषा- इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा में संस्कृत शब्दावली, कहावतों, मुहावरों का प्रयोग हुआ है। आलंकारिकता और व्यंग्य भाषा के गुण हैं।

शैली-‘दिनकर’ जी ने विवेचना प्रधान, आलोचनात्मक तथा भावात्मक शैलियों को अपनाया है।

साहित्य में स्थान- भारतीयता लिए हुए साहित्यिक समाज का मार्गदर्शन करने वाले ‘दिनकर’ जी पर हिन्दी को गर्व है।

2. विद्यानिवास मिश्र

जीवन-परिचय-ललित निबन्धकार एवं उच्च विचारक विद्यानिवासजी मिश्र का जन्म गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में सन् 1926 ई. को हुआ था। उच्च शिक्षा प्राप्त करके गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन शुरू कर दिया। बाद में के. एम. मुंशी हिन्दी और भाषा विज्ञान विद्यापीठ, आगरा के निदेशक नियुक्त हुए। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ, वाराणसी के कुलपति बने। बाद में नवभारत टाइम्स के प्रधान सम्पादक का दायित्व निभाया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया। आपका दुःखद निधन सन् 2006 ई. में हो गया।

रचनाएँ-
(1) निबन्ध-‘चितवन की छाँह’, ‘तुम चन्दन हम पानी’, ‘आँगन का पंछी और बनजारा’, ‘मैंने सिल पहुँचाई’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है।
(2) संस्मरण-अमर कंटक की सालती स्मृति।
(3) आलोचना-साहित्य की चेतना, मॉडर्न हिन्दी पोइट्री।

इनके अतिरिक्त हिन्दी की शब्द सम्पदा, रीति-विज्ञान, महाभारत का यथार्थ, भारतीय भाषा दर्शन आपकी अप्रतिम रचनाएँ हैं।

भाषा-मिश्रजी की भाषा शुद्ध, परिमार्जित, साहित्यिक एवं प्रवाहयुक्त है। आपने आंचलिक भाषाओं का भी अपनी कृतियों में यथास्थान प्रयोग किया है। उर्दू, फारसी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया गया है। मुहावरे एवं सूक्तियों के प्रयोग से भाषा में गति आ गई है। – शैली-मिश्रजी ने विवरणात्मक, आत्माभिव्यंजक, भावात्मक, व्याख्यात्मक शैलियों को अपनाया है और विषयवस्तु को सुबोध बना दिया है।

साहित्य में स्थान-स्वतन्त्रता के पश्चात् के हिन्दी रचनाकारों में विद्यानिवासजी का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है।

3. शरद जोशी

जीवन-परिचय-व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म उज्जैन (मध्य प्रदेश) में 21 मई, 1937 ई. को हुआ था। स्नातक स्तर तक की शिक्षा होल्कर कॉलेज, इन्दौर में प्राप्त की। बाद में स्वतन्त्र लेखन शुरू कर दिया। आपके लेख समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं और इसी तरह की पुस्तकों में लगातार छपते रहे हैं। आप नई दुनिया और नवभारत टाइम्स से सम्बद्ध रहे हैं।

रचनाएँ-
(1) व्यंग्य-परिक्रमा, जीप पर सवार इल्लियाँ, किसी बहाने, तिलिस्म, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, इन दिनों।
(2) नाटक-अन्धों का हाथी, एक था गधा। साहित्य सृजन अभी भी जारी है।

भाषा-व्यावहारिक, सरल सुबोध खड़ी बोली हिन्दी पर , आपका अधिकार है। उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग सहज ही भाव को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है।

शैली-शरद जोशी ने अपनी कृतियों में व्यंग्य, वर्णनात्मक, संस्मरणात्मक शैलियों का प्रयोग किया है और उन्हें आकर्षक बना दिया है।

साहित्य में स्थान-हिन्दी के व्यंग्यकारों में शरद जोशी का विशेष स्थान है।

4. पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी

जीवन-परिचय-पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, सन् 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम अनमोल दुबे और माता का नाम ज्योतिकली देवी था। काशी विश्वविद्यालय से साहित्य एवं ज्योतिष में आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1940 ई. में शान्ति निकेतन में हिन्दी और संस्कृत के अध्यापक हो गए। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। ‘विश्वभारती’ पत्रिका का सम्पादन किया। सन् 1949 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी. लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। बाद में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। आपको मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला। भारत सरकार ने पद्मभूषण से अलंकृत किया। 19 मई, 1979 ई. को आपका निधन हो गया।

रचनाएँ-
(1) निबन्ध-विचार और वितर्क, अशोक के फूल, कल्पलता, कुटज।
(2) आलोचना-कबीर, सूर, साहित्य, हिन्दी साहित्य।
(3) उपन्यास-चारुचन्द्र लेख, अनामदास का पोथा, बाणभट्ट की आत्मकथा पुनर्नवा।
(4) हिन्दी साहित्य की भूमिका,
(5) हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास।

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भाषा-द्विवेदी जी की भाषा तत्सम तद्भव प्रधान, साहित्यिक एवं व्यावहारिक खड़ी बोली हिन्दी है। उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग आवश्यकतानुसार हुआ है। मुहावरों ने भाव बोध में सहजता दी है।

शैली-हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की शैली भाव प्रधान, आलोचनात्मक, गवेषणात्मक है। इन शैलियों से भाव माधुर्य, व्यंग्य, आलंकारिक एवं चिन्तन को स्पष्टता मिलती है।

साहित्य में स्थान-हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि में हजारीप्रसाद द्विवेदी का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान पूर्ति
1. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् ………………………… ई. में हुआ था। (1918/1908)
2. दिनकर जी ने कुल ₹………………………… पर प्रतिमाह अध्यापन कार्य किया। (पचपन/पैसठ)
3. विद्यानिवास मिश्र ………………………… के रूप में जाने जाते हैं। (ललित निबन्धकार/कटु आलोचक)
4. शरद जोशी एक ………………………… के व्यंग्यकार हैं। (निम्नकोटि/उच्चकोटि)
5. पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ………………………… पत्रिका का सम्पादन किया। (भारत भारती/विश्व भारती)
उत्तर-
1. 1908,
2. पचपन,
3. ललित निबन्धकार,
4. उच्चकोटि,
5. विश्वभारती।

सही विकल्प चुनिए-

1. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने शिक्षा प्राप्त की
(क) स्नातक ऑनर्स की
(ख) परास्नातक की
(ग) इण्टरमीडिएट की
(घ) हाईस्कूल की।

2. ‘दिनकर’ हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने
(क) मुजफ्फरपुर कॉलेज में
(ख) आगरा कॉलेज में
(ग) सप्रू कॉलेज में
(घ) शासकीय कॉलेज में।

3. विद्यानिवास मिश्र ने प्रधान सम्पादक का दायित्व निभाया
(क) नवभारत टाइम्स में
(ख) स्वराज्य टाइम्स में
(ग) हिन्दुस्तान टाइम्स में
(घ) हिन्दुस्तान में।

4. शरद जोशी उच्चकोटि के
(क) व्यंग्यकार थे
(ख) निबन्धकार थे
(ग) आलोचक थे
(घ) कवि थे।

5. पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ
(क) दुबे का छपरा गाँव में
(ख) हल्दिया गाँव में
(ग) सिमरिया घाट गाँव में
(घ) नैनाना बालसर में।
उत्तर-
1. (क), 2. (क), 3. (क), 4. (क), 5. (क)।

सही जोड़ी मिलाइए-
MP Board Class 9th Hindi Navneet लेखक परिचय 1
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(iii) → (घ),
(iv) → (ङ),
(v) → (ग)।

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सत्य/असत्य-

1. हिन्दी साहित्य की अभिवृत्ति में पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
2. शरद जोशी अपने स्वतन्त्र लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं।
3. विद्यानिवास मिश्र ने हिन्दी भाषा के विकास के लिए कोई सहयोग नहीं दिया।
4. ‘दिनकर’ ने आलोचनात्मक और भावात्मक शैलियों में उच्चकोटि की रचनाएँ प्रस्तुत की।
5. ‘दिनकर’ द्वारा हिन्दी साहित्यकार समिति में रहकर हिन्दी के उत्थान और विकास के लिए किया गया कार्य विस्मरणीय है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर-

1. रामधारीसिंह दिनकर को कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्तहुए?
उत्तर-
साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार।

2. विद्यानिवास मिश्र किस विश्वविद्यालय के कुलपति रहे?
उत्तर
काशी विद्यापीठ, वाराणसी।

3. शरद जोशी द्वारा प्रयुक्त शैलियों के नाम बताइए।
उत्तर-
व्यंग्य, वर्णनात्मक व संस्मरणात्मक शैलियाँ।

4. पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का सम्पादन किया?
उत्तर-
विश्व भारती।

5. विद्यानिवास मिश्र को भारत सरकार ने किस उपाधि से विभूषित किया?
उत्तर-
पद्मभूषण।

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MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय

MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय

1. मीराबाई

जीवन-परिचय-मीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता (जोधपुर) के निकट चौकड़ी गांव में सन् 1498 ई. में हुआ था। इनके पिता रत्नसिंह राजवंश से सम्बन्धित थे। मीरा का पालन-पोषण उनके पितामह राव दूदा जी ने किया। वे कृष्णभक्त थे। अतः मीरा पर भी कृष्ण की भक्ति का प्रभाव पड़ा। उनका विवाह उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोजराज के साथ हुआ। विवाह के थोड़े ही समय बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। मीरा अब अपने आपको अनाथ समझ रही थी और संसार से विरक्त महसूस करने लगी। भगवान कृष्ण की भक्ति में उसने अपना ध्यान लगा दिया। भगवान कृष्ण को ही उसने अपना पति मान लिया और अपना जीवन भक्ति में ही लगा दिया। अन्तिम समय में द्वारिका पहुँचकर “मीरा प्रभु, हरो तुम जनकी पीर’ भजन को गाते-गाते रणछोर जी की मूर्ति में समा गई। यह घटना सन् 1546 ई. की बताई जाती है।

रचनाएँ- मीरा ने राग गोविन्द, गीत गोविन्द की टीका, राग सोरठा के पद तथा नरसीजी को माहेरो आदि की रचनाएँ की।

काव्यगत विशेषताएँ-
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति एवं स्वामी मानकर अपनी भक्ति के भावों को अभिव्यक्ति दी है। द्रष्टव्य है
‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।’ मीरा की भक्ति भावना अनन्य भाव की है। उनका जीवन और उनका काव्य कृष्णमय है। साथ ही उनके काव्य में माधुर्य भाव की प्रधानता है। विरह की मार्मिक तीव्रता ने उन्हें भाव विह्वल बना दिया। इस तरह उनके काव्य में श्रृंगार और शान्त दोनों रसों की धारा प्रवाहित हो रही है।

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(ख) कलापक्ष (भाषा शैली)-मीरा के काव्य में राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। उनके काव्य में ‘अनगढ़’ कलात्मकता बिखरी पड़ी है। मीरा ने प्रमुख रूप से पद शैली अपनाई है। – साहित्य में स्थान–मीरा भक्त कवयित्री थीं। वे भक्ति के उपवन की साक्षात् शकुन्तला थी और मरुस्थल की मन्दाकिनी थीं। हिन्दी काव्य जगत् में उनका स्थान अति महत्त्वपूर्ण है।

2. रसखान

जीवन-परिचय-रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहीम था। इनका जन्म संवत् 1615 वि. में हुआ था। रसखान कृष्ण के अनन्य भक्त थे। इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ (दास) से दीक्षा ली और वैष्णव मत में दीक्षित होकर रात-दिन कृष्णभक्ति में लीन रहने लगे। ये गोवर्द्धन में जाकर रहने लगे। इनकी मृत्यु संवत् 1685 विक्रमी में हो गई।

रचनाएँ-
(1) सुजान रसखान,
(2) प्रेम वाटिका।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-रसखान की कविता में सच्चे प्रेम का प्रत्यक्षीकरण एवं प्रेममग्न हृदय के भावोद्रेक का छलकता स्वरूप विद्यमान है। इनके काव्य में प्रेम और अनुभूति की तीव्रता और कथन की सहजता और सरलता विद्यमान है। अनुभूति की कोमलता द्रष्टव्य है।
(ख) कलापक्ष (भाषा-शैली)-रसखान ने अपनी कविता में ब्रजभाषा के प्रौढ़ परिष्कृत स्वरूप के प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में सहजता, सरलता एवं एक प्रवाह विद्यमान है। अनुप्रास, यमक, उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

ब्रज क्षेत्र के प्रचलित मुहावरों का प्रयोग भाषा को सजीवता देता है। फुटकर पद शैली में सौन्दर्य निरूपण इनका अप्रतिम कला वैभव है।

साहित्य में स्थान-काव्य एवं पिंगल साहित्य के मर्मज्ञ रसखान का स्थान कृष्णभक्त कवियों में सर्वश्रेष्ठ है। वे अपनी भावुकता, सहृदयता और प्रेम परिपूर्ण व्यवहार के लिए सम्मान प्राप्त कवि हैं।

3. रहीम

जीवन-परिचय-रहीम नाम से प्रसिद्ध अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म सन् 1556 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार बैरमखाँ खानखाना था। बैरमखाँ अकबर के अभिभावक थे। रहीम अकबर के मनसबदार और दरबार के नवरत्नों में प्रमुख थे। इन्होंने अनेक युद्ध लड़े और जीत पाई। बड़े-बड़े सूबे और किले इन्हें जागीर में दिए गए। अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर ने इन्हें राजद्रोही ठहराया, बन्दी बनाया, जेल में डाल दिया। इनकी जागीरें जब्त कर ली गईं। सन् 1626 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ-रहीम की प्रमुख कृतियों में रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन इत्यादि शामिल हैं।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे। शृंगार, भक्ति और नीति के लोकप्रिय कवि रहीम कोमल भावनाओं और सहज प्रेम के पक्षधर कवि हैं। कृष्ण के उपासक रहीम के काव्य में जीवन के गहरे अनुभव मिलते हैं। संवेदनशील हृदय में नीति, शृंगार और प्रेम का अनूठा समन्वय व्याप्त है।

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(ख) कलापक्ष (भाषा तथा विचार)-रहीम के काव्य में ब्रज और अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है। दोहा, बरवै, कवित्त, सवैया, सोरठा, पद आदि सभी प्रचलित छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। छन्द विधान में निपुण रहीम अलंकारों के सहज प्रयोग के पक्षधर थे। शैली की सरलता है। . साहित्य में स्थान-हिन्दी के नीतिकार कवियों में रहीम का स्थान सर्वोपरि है।

4. मैथिलीशरण गुप्त

जीवन-परिचय-मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई. में चिरगाँव, जिला-झाँसी के सेठ रामचरण गुप्त के घर हुआ था। कक्षा नौ तक शिक्षा प्राप्त मैथिलीशरण ने स्वाध्याय से ज्ञानार्जन किया। महावीर प्रसाद द्विवेदी के सानिध्य में आने पर इनकी प्रतिभा चमक उठी। भारतीय संस्कृति और राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण आत्मा वाले मैथिलीशरण गुप्त गाँधीजी के प्रभाव से भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हुए और जेल यात्राएँ की। स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रपति ने इन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। सन् 1948 ई. में आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट् की उपाधि से विभूषित किया। ‘साकेत’ के लिए इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई. में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ-

  • जयभारत,
  • पंचवटी,
  • भारत-भारती,
  • यशोधरा,
  • जयद्रथ वध,
  • सिद्धराज,
  • द्वापर,
  • अनघ,
  • झंकार आदि।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-इनकी कविताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरणा दी, सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाया गया। छुआछूत, विधवा विवाह, अनमेल विवाह आदि समस्याओं पर इन कविताओं में प्रकाश डाला है। लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था का समर्थन किया है। गुप्तजी का प्रकृति चित्रण अनुपम है। वे वैष्णव भक्ति में आस्था रखते थे। उन्होंने चारित्रिक विकास पर बल दिया। मानवता को देवत्व की जननी बताया। इनके काव्य में विभिन्न रसों की उद्भावना हुई है।

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(ख) कलापक्ष (भाषा शैली)-इनके काव्य में उत्कृष्ट संवाद योजना का संक्षिप्त रूप, पात्र एवं भाव मिलते हैं। इनकी भाषा परिष्कृत खड़ी बोली है। प्रबन्ध, मुक्तक, गीति, नाट्य आदि शैलियों का प्रयोग प्रशंसनीय है। कहीं-कही उपदेशपरक छायावादी शैली मिलती है। अलंकारों की योजना सहज ही हुई है। सभी प्रचलित अलंकारों का प्रयोग हुआ है। गुप्तजी ने तुकान्त, अतुकान्त और गीति छन्दों का प्रयोग किया है।

साहित्य में स्थान-भारतीय संस्कृति और जीवन शैली के प्रतिनिधि कवि मैथिलीशरण युगों-युगों तक हिन्दी काव्य जगत् में सम्मान पाते रहेंगे।

5. सुमित्रानन्दन पन्त

जीवन-परिचय-सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म सन् 1900 ई. में कौसानी नामक ग्राम, जिला अल्मोड़ा (कूर्मांचल प्रदेश) में हुआ था। इनकी माँ इन्हें जन्म देने के कुछ ही समय बाद इस दुनिया से चल बसीं। मातृहीन बालक ने प्रकृति माँ की एकान्त ‘गोद में बैठकर घण्टों तक चिन्तन करना सीख लिया। विचार विकसित हुए। अल्मोड़ा के राजकीय विद्यालय से प्रारम्भिक शिक्षा लेकर काशी से मैट्रिक पास की। एफ. ए. में पढ़ाई करते हुए ही गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन में सन् 1921 ई. में शामिल हो गए। स्वाध्याय से बंगला, अंग्रेजी एवं संस्कृत का अध्ययन किया। इनका बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। अपनी चिर साधना से प्रतिष्ठित कवियों में नाम जुड़ गया। कालाकांकर के नरेश के सहयोगी रहे। ‘रूपाभ’ पत्र का सम्पादन किया। आकाशवाणी में अधिकारी बने। अविवाहित पन्त ने साहित्य साधना में अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत सरकार ने पद्यभूषण से अलंकृत किया। 29 सितम्बर, सन् 1977 ई. में भारती के अमर सपूत ने चिरनिद्रा में आँखें बन्द कर ली।

रचनाएँ-

  • वीणा,
  • पल्लव,
  • गुंजन,
  • युगान्त,
  • युगवाणी,
  • ग्राम्या,
  • स्वर्ण-किरण,
  • स्वर्ण-धूलि,
  • युगपथ,
  • उत्तरा,
  • अतिमा,
  • रजत रश्मि,
  • शिल्पी,
  • कला और बूढ़ा चाँद,
  • चिदम्बरा,
  • रश्मि बन्द। ये सभी काव्य संग्रह हैं।
  • लोकायतन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने दस हजार रुपये का पुरस्कार दिया।

‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए साहित्य अकादमी से पाँच हजार रुपये का पुरस्कार मिला। चिदम्बरा के लिए एक लाख रुपये का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव और विचार)-पन्तजी कोमल और सुकुमार स्वभाव के व्यक्ति थे। उनमें भावात्मक तल्लीनता का गुण था। प्रकृति में पन्त ने आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण एवं एक उपदेशिका का रूप देखा है। प्रकृति के मध्य बैठकर लीन अवस्था में उनका भाव चित्रण अनोखा है।

पंत ने सूक्ष्म भावों को काव्य में चित्रित किया है। संयोग और वियोग की अवस्थाओं का तथा अनुभूतियों का चित्रण बहुत ही भावग्राह्य है। मानवतावादी दृष्टि को अपनाकर नारी के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है। कार्ल मार्क्स का प्रभाव उन पर परिलक्षित है। ईश्वर, आत्मा, जगत् पर पंत ने अपनी कविता में अपने दार्शनिकतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त किया है।

(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-पन्त की भाषा कोमलकान्त पदावली से युक्त है, सहज है, सुकुमार है। भाषा में लालित्य, चित्रोपमा, ध्वन्यात्मकता विद्यमान है। भाव के अनुसार भाषा भयानकता में भी बदल जाती है। छायावादी लाक्षणिक शैली में प्रतीकात्मकता और बिम्ब विधान द्रष्टव्य है। सहज भाव से ही अलंकार प्रयुक्त हुए हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक, रूपकातिशयोक्ति अन्योक्ति का प्रयोग मौलिक है। छन्द योजना भी पन्त द्वारा व्यवहारात्मक रूप में तैयार की गई है। तुकान्त और अतुकान्त छन्दों में संगीतात्मकता भी विद्यमान है।

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साहित्य में स्थान-आधुनिक शीर्षस्थ कवियों में पंतजी चिरस्मरणीय हैं।

6. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’

जीवन-परिचय-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जन्म सन् 1897 ई. में शाजापुर जिले के भुजालपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. यमुनादास साधारण स्थिति के ब्राह्मण थे। ‘नवीन’ अत्यन्त अध्यवसायी थे। आपने भिन्न-भिन्न विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के कारण इन्होंने जेल यात्राएँ भी की। गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पर्क में आकर ‘प्रताप’ के सहयोगी सम्पादक रहे। ‘प्रभा’ का भी सम्पादन किया। भारतीय संविधान परिषद् एवं भारतीय संसद के सदस्य भी रहे । सन् 1960 ई. में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ-

  • उर्मिला (महाकाव्य),
  • प्राणार्पण (खण्डकाव्य),
  • कुंकुम,
  • रश्मिरेखा,
  • अपलक
  • क्वासि,
  • विनोवा स्तवन,
  • नवीन दोहावली,
  • हम विषपायी जनम के,
  • प्रलयंकर,
  • मृत्युधाम आदि।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-‘नवीन’ जी में सहयता, सहिष्णुता, भाषण पटुता एवं मधुरगायकी के गुण विद्यमान थे। उनके काव्य में राष्ट्रीय जागरण और ओजस्वी भाव भरे हैं। उन्होंने काव्य के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम, देश-प्रेम एवं मानव-सौन्दर्य का चित्रण किया है। विरह संवेदनाओं को उभारा है। प्रकृति के विविध स्वरूपों का चित्रण किया है। उनके गीतों में क्रान्ति और विद्रोह के स्वर सुनाई देते हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता और माधुर्य विद्यमान है। वीर, रौद्र, श्रृंगार रस का प्रयोग उत्कृष्ट है।

(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-भाषा सरल, खड़ी बोली है। उसमें माधुर्य और ओज भरा है। तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा भाव को व्यक्त करने में सक्षम है। कवि ने नये छन्दों का प्रयोग किया है। ओजपूर्ण शैली अपनायी है। मुक्तक गीति शैली भी स्तुत्य है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, मानवीकरण का प्रयोग आकर्षक है।

साहित्य में स्थान-राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रधान कवियों में ‘नवीन’ जी सदा स्मरण किए जायेंगे।

7. नरोत्तमदास

जीवन-परिचय-नरोत्तमदास का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बाड़ी ग्राम में सन् 1493 ई. के लगभग हुआ था। ये जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। खेद का विषय है कि इनके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन शिवसिंह सरोज के अनुसार ये सवत् 1602 वि. में विद्यमान थे। इसी आधार पर इनकी मृत्यु सन् 1584 ई. में मानी जाती है। पं. रामनरेश त्रिपाठी ने ‘सुदामा चरित’ का रचनाकाल संवत् 1582 विक्रमी माना है। इनके अनुसार इनका जन्म सन् 1493 ई. में और मृत्यु सन् 1548 ई. में मानी गई है।

रचनाएँ-इनकी उपलब्ध रचना ‘सुदामा चरित’ ही है जो ब्रजभाषा में लिखित प्रथम खण्डकाव्य है।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-कृष्णभक्त कवि नरोत्तमदास की भक्ति कहीं सेवक भाव की तो कहीं सखा भाव से प्रकट हुई है। कवि नरोत्तमदास मानवीय संवेदनाओं के सफल पारखी थे। ‘सुदामा चरित’ के माध्यम से दरिद्रता से जूझते हुए संघर्षशील स्वाभिमानी पुरुष तथा अभावों से ग्रसित भारतीय नारी की सन्तोष प्रधान वृत्ति का वर्णन किया है। साथ ही सुदामा चरित की कथावस्तु आदर्श मैत्री का कीर्तिमान है।

हृदयगत भावों की व्यंजना के साथ-साथ पात्रों के चरित्र चित्रण में यथार्थता और सजीवता का अंकन किया गया है। एक मनोवैज्ञानिक की भाँति कवि ने मानव-मन के रहस्यों का प्रकाशन, विशेष परख के बाद किया है। सुदामा चरित में शान्त, हास्य, करूण और अद्भुत रसों की निष्पत्ति हुई है।

(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-कवि ने अपने चरित काव्य में ब्रजभाषा में साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं वैसवाड़ी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। नरोत्तमदास ने प्रबन्ध काव्य शैली को अपनाया है। इसमें कथोपकथन शैली प्रशंसनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग सफल हुआ है। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से उनका काव्य प्रभावशाली बन गया है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कवित्त, दोहा, सवैया छन्दों का प्रयोग हुआ है। विभावना, रूपक, प्रतीप, यमक व अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग मिलता है।

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साहित्य में स्थान-नरोत्तमदास ने सुदामा चरित में भारतीय सामाजिक जीवन का सम्यक् चित्र उभारा है। इसके लिए हिन्दी के साहित्यिक क्षेत्र में इन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।

8. तुलसीदास

जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 वि. (सन् 1497 ई.) में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ लोग इनके जन्म का स्थान सोरों | (जिला-एटा, उत्तर प्रदेश) मानते हैं। इनकी माता हुलसी और पिता आत्माराम दुबे थे। इनका पालन-पोषण नरहरिदास ने किया और गुरुमन्त्र भी दिया, रामकथा सुनाई। इन्होंने संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। भारतीय सद्ग्रन्थों का अध्ययन किया। दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से विवाह किया। बाद में तुलसी में वैराग्यवृत्ति उत्पन्न हो गई। तुलसी ने राम के चरित का गायन किया। तुलसी ने रामभक्ति में स्वयं को समर्पित कर दिया। संवत् 1680 वि. (सन् 1623 ई.) में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ-

  • रामचरितमानस,
  • विनय पत्रिका,
  • कवितावली,
  • गीतावली,
  • बरवै रामायण,
  • रामलला, नहछू,
  • रामाज्ञा प्रश्नावली,
  • वैराग्य संदीपनी,
  • दोहावली,
  • जानकी मंगल,
  • पार्वती मंगल,
  • हनुमान बाहुक,
  • कृष्ण गीतावली।।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-तुलसी ने अपने काव्य कौशल से विभिन्न मतों, सम्प्रदायों और सिद्धान्तों की कटुता को समन्वयवादी दृष्टिकोण से दूर करके उनमें समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। सामाजिक समरसता, समन्वय की भावना एवं लोक मंगल की भावना तुलसी के साहित्य में भरी पड़ी है। तुलसी ने मानव प्रकृति, जीवन जगत् की सूक्ष्म दृष्टि एवं विस्तृत गहन अनुभव से जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित किया है। तुलसी के काव्य में शृंगार, शान्त तथा वीर रसों की निष्पत्ति हुई है। संयोग और वियोग के हृदयग्राही वर्णन प्रभावशाली हैं। रौद्र, करुण और अद्भुत रसों का सजीव चित्रण किया गया है। ‘विनय पत्रिका’ में भक्ति और विनय का उत्कृष्ट स्वरूप मिलता है।

(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-तुलसीदास ने अपनी काव्यकृतियों में अवधी और ब्रज भाषाओं का प्रयोग किया है। संस्कृत, फारसी और अरबी शब्दावली का प्रयोग भी उत्कृष्ट कोटि का है। शैली की विविधता द्रष्टव्य है।

भाषा और छन्द के विषय में तुलसी ने समन्वयवादी प्रवृत्ति का परिचय दिया है। उन्होंने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि सभी छन्दों का प्रयोग किया है। साहित्य में स्थान-तुलसीदास ने लोकहित और लोकजीवन को सुखी बनाने के लिए माता-पिता, गुरु-शिष्य, पुत्र-सेवक, राजा-प्रजा के आदर्श रूप प्रस्तुत किए हैं। इस समग्र साहित्यिक सेवा के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

9. गिरिजाकुमार माथुर

जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1919 ई. में अशोक नगर, गुना (मध्य प्रदेश) में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा-झाँसी, ग्वालियर, लखनऊ से ग्रहण की। आकाशवाणी से कार्य आरम्भ किया और बाद में दूरदर्शन से अवकाश प्राप्त किया।

रचनाएँ-

  • मंजरी,
  • नाश और निर्माण,
  • धूप के धान,
  • शिला पंख चमकीले,
  • भीतरी नदी की यात्रा,
  • जो बंध नहीं सका,
  • जनम कैद (नाटक),
  • नई कविता,
  • सीमा और सम्भावनाएँ (आलोचना)।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-इनके गीतों पर छायावाद का प्रभाव है। सामाजिक समस्याओं को उद्घाटित करके समाधान की दिशा निर्दिष्ट की है। कवि ने अपनी कविता में आनन्द, रोमांस और सन्ताप की तरलता की अनुभूति की है। प्राचीनता को तोड़ा है, नवीनता की भावभूमि को अपनाया गया है।

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(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-इनकी भाषा शुद्ध परिमार्जित तथा चित्र खींचने की क्षमता से युक्त खड़ी बोली हिन्दी है। नये-नये भावों को नई शैली में और नए छन्द विधान द्वारा अभिव्यक्ति दी है। शब्द चयन में तुक, तान और अनुतान की काव्यात्मक झलक ध्वनित होती है। इनकी रचनाओं में मालवा की समृद्ध प्रकृति का स्वरूप अंकित है। आंचलिक शब्दों के प्रयोग की मिठास भी इनकी कविता की श्रीवृद्धि करती है।

साहित्य में स्थान-हिन्दी काव्य के आधुनिक कवियों में इनका विशिष्ट स्थान है।

10. भवानीप्रसाद मिश्र

जीवन-परिचय-भवानीप्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, 1913 ई. में होशंगाबाद के पास टिकरिया नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने स्नातक स्तर की शिक्षा नरसिंहपुर, होशंगाबाद और जबलपुर से प्राप्त की। सन् 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और सन् 1945 ई. तक नागपुर के कारागार में बन्दी रहे। सन् 1949 ई. तक महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित महिला आश्रम, वर्धा में शिक्षण कार्य किया। सन् 1950 में हैदराबाद (आन्ध्र) से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘कल्पना’ के सम्पादक रहे। सन् 1952 से 1954 ई. तक हिन्दी फिल्मों के गीत लेखन का कार्य किया। सन् 1954 से 1958 तक आकाशवाणी के मुम्बई और दिल्ली केन्द्रों में हिन्दी कार्यक्रम के निदेशक रहे। सन् 1959 से 1972 ई. तक ‘सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय’ के प्रकाशन कार्य से सम्बद्ध रहे। सन् 1972 ई. में उन्होंने गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के प्रकाशन विभाग में कार्य प्रारम्भ किया। गगनांचल और गाँधी मार्ग के सम्पादक रहे। – भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया। मध्य प्रदेश सरकार ने अपने सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया। 20 फरवरी, सन् 1985 ई. में नरसिंहपुर में हृदयाघात से आपका निधन हो गया।

रचनाएँ-

  • गीतफरोश,
  • चकित है दुःख,
  • गाँधी पंचशती,
  • अंधेरी कविताएँ,
  • बुनी हुई रस्सी,
  • व्यक्तिगत,
  • खुशबू के शिलालेख,
  • परिवर्तन जिए,
  • त्रिकाल संध्या,
  • अनाम तुम आते हो,
  • इदम् न मम्,
  • शरीर कविता,
  • फसलें और फूल,
  • मानसरोवर दिन,
  • सम्प्रति,
  • नीली रेखा के पास तक,
  • कालजयी (महाकाव्य),
  • तुकों के खेल (बाल साहित्य)।

‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए सन् 1972 ई. में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।

काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-गाँधी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण इन्हें कविता का गाँधी’ कहा जाता है। प्रेमानुभूति, प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण, जन-जन की मंगल कामना निहित इनका काव्य प्रशंसनीय है।

(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-मिश्रजी जन कवि हैं अतः इनकी भाषा जनता की बोलचाल की भाषा है। शब्द चयन फूलों की भाँति भाव-सुगन्ध बिखेरते हैं। तुक और लय प्रधान छन्द मुक्तक शैली पर लिखे गए हैं।

साहित्य में स्थान-प्रयोगवादी कविता के प्रथम कवि यथार्थ चित्रण में कुशल भवानीप्रसाद मिश्र की समानता हिन्दी का अन्य कोई कवि नहीं कर सकता।

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान पूर्ति-

1. मीराबाई का जन्म हुआ था सन्………………में। (1498 ई./1518 ई.)
2. रसखान का जन्म संवत्…………..में हुआ था। (1620 वि./1615 वि.)
3. मैथिलीशरण गुप्त के पिताजी का नाम………………था। (रामशरण गुप्त/रामचरण गुप्त)
4. सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म……………….में हुआ था। (कौसानी (अल्मोड़ा)/नैनीताल)
5. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने………………..आन्दोलनों में भाग लिया। (राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय)
उत्तर-
1. 1498 ई.,
2. 1615 वि.,
3. रामचरण गुप्त,
4. कौसानी (अल्मोड़ा),
5. राष्ट्रीय।

सही विकल्प चुनिए-

1. रहीम मध्ययुगीन प्रतिनिधि कवि थे
(क) दरबारी संस्कृति के
(ख) स्वतन्त्र प्रकृति के
(ग) पराधीन वातावरण के
(घ) नीति-रीति के।
उत्तर-
(क) दरबारी संस्कृति के

2. पंत गाँधीजी के आन्दोलन में शामिल हो गए
(क) सहयोग
(ख) असहयोग
(ग) राष्ट्रीय
(घ) क्षेत्रीय।
उत्तर-
(ख) असहयोग

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3. पंतजी स्वभाव के कवि थे
(क) कोमल
(ख) सुकुमार
(ग) कोमल और सुकुमार
(घ) रहस्य प्रधान।
उत्तर-
(ग) कोमल और सुकुमार

4. नरोत्तमदास की रचना का नाम है
(क) सुदामाचरित
(ख) कृष्णचरित
(ग) रामचरित
(घ) बुद्धचरित।
उत्तर-
(क) सुदामाचरित

5. तुलसीदास महान् कवि थे
(क) आदिकाल के
(ख) रीतिकाल के
(ग) भक्तिकाल के
(घ) आधुनिक काल के।
उत्तर-
(ग) भक्तिकाल के

सही जोड़ी मिलाइए-
MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय img 1
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(iii) → (ङ),
(iv) → (ग),
(v) → (घ)।

सत्य/असत्य-

1. ‘नवीन’ जी भारतीय संविधान परिषद् एवं भारतीय संसद के सदस्य रहे।
2. पंत की भाषा कोमल पदावली से रहित श्रुति कटु है।
3. मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रपति ने राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया।
4. रहीम के पिता का नाम सरदार बैरमखाँ खानखाना था।
5. रसखान की कविता निश्चय ही रस की खान है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर-

1. मीराबाई का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
मेड़ता के समीप चौकड़ी गाँव में।

2. रसखान किसकी भक्ति में दिन रात लीन हो गए ?
उत्तर-
भगवान श्रीकृष्ण की।

3. नीति, शृंगार और प्रेम किसकी कविता के विषय हैं ?
उत्तर-
रहीम।

4. कक्षा नौ तक शिक्षा प्राप्त करके ही कवि बनने का गौरव किसे प्राप्त है ?
उत्तर-
मैथिलीशरण गुप्त।

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5. पन्त की कविता में कौन-सा दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर-
दार्शनिकतावादी।

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली

प्रश्न 1 से 6 तक की असमिकाओं को हल कीजिए :
प्रश्न 1.
2 ≤ 3x – 4 ≤ 5.
हल:
∵ 2 ≤ 3x – 4 ≤ 5
या 2 + 4 ≤ 3x ≤ 5 + 4
या 6 ≤ 3x ≤ 9
3 से दोनों पक्षों में भाग देने पर 2 ≤ x ≤ 3
∴ दी हुई असमिका का हल = [2, 3].

प्रश्न 2.
6 ≤ – 3 (2x – 4) < 12.
हल:
6 ≤ – 3(2x – 4) < 12 6 ≤ – 6(x – 2) > 12
– 6 से भाग करने पर
– 1 ≥ x – 2 > – 2;
– 1 + 2 ≥ x > – 2 + 2
1 ≥ x > 0 या 0 < x ≤ 1
दी हुई असमिका का इल (0, 1].

प्रश्न 3.
– 3 ≤ 4 – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 18
हल:
दी हुई असमिका – 3 ≤ 4 – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 18
2 से गुणा करने पर
– 6 ≤ 8 – 7x ≤ 36
8 घटाने पर,
– 14 ≤ – 7x ≤ 28
– 7 से भाग देने पर 2 ≥ x ≥ – 4 या – 4 ≤ x ≤ 2
∴ दी हुई असमिका का हल [- 4, 2].

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प्रश्न 4.
– 15 < 3 \(\frac{3(x-2)}{5}\) ≤ 0
हल:
– 15 < 3 \(\frac{3(x-2)}{5}\) ≤ 0
5 से गुणा करने पर
– 75 < 3x – 6 ≤ 0
– 75 + 6 < 3x ≤ 6
3 से भाग देने पर
\(\frac{-69}{3}\) < x ≤ 2 या – 23 < x ≤ 2
∴ असमिका का हल = (- 23 , 2].

प्रश्न 5.
– 12 < 4 – \(\frac{3 x}{-5}\) ≤ 2
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-1

प्रश्न 6.
7 ≤ \(\frac{3 x+11}{2}\) ≤ 11.
हल:
7 ≤ \(\frac{3 x+11}{2}\) ≤ 11 2 से गुणा करने पर 14 ≤ 3x + 11 ≤ 22 11 घटाने पर 3 ≤ 3x ≤ 11 3 से भाग देने पर 1 ≤ x ≤ \(\frac{11}{3}\)
∴ असमिका का हल = [1, \(\frac{11}{3}\)].

प्रश्न 7 से 12 तक की असमिकाओं को हल कीजिए और उनके हल को संख्या-रेखा पर निरूपित कीजिए :
प्रश्न 7.
5x + 1 > – 24, 5x – 1 < 24. हल: (i) 5x + 1 > – 24 या 5x > – 25 या x > – 5
(ii) 5x – 1 < 24 या 5x < 25
∴ x < 5
∴ असमिकाओं का हल (-5, 5).
इसका संख्या रेखा द्वारा निरूपण इस प्रकार है :
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-2

प्रश्न 8.
2(x – 1) < x + 5, 3(x + 2) > 2 – x.
हल:
दी हुई असमिकाएँ
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-3
असमिकाओं का हल (- 1, 7).
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-4

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प्रश्न 9.
3x – 7 > 2(x -6), 6 – x > 11 – 2x.
हल:
दी हुइ असमिकाएँ
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-5
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-6
दी हुई असमिकाओं का हल (5, ∞ ) है और संख्या रेखा पर निरूपण इस प्रकार है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-7

प्रश्न 10.
5(2x – 7) – 3(2x + 3) ≤ 0, 2x + 19 ≤ 6x + 47.
हल:
दी हुई असमिकाएँ
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-8

प्रश्न 11.
एक विलयन को 68°F और 77°F के मध्य रखना है। सेल्सियस पैमाने पर विलयन के तापमान का परिसर ज्ञात कीजिए, जहाँ सेल्सियस फारेनहाइट परिवर्तन सूत्र F = \(\frac{9}{5}\) C + 32 है।
हल :
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-9
\(\frac{5}{9}\) से गुणा करने पर
20° < C < 25°
∴ C का परिसर अंतराल (20°, 25°).

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प्रश्न 12.
8% बोरिक एसिड के विलयन में 2% बोरिक एसिड का विलयन मिलाकर तनु (dilute) किया जाता है। परिणामी मिश्रण में बोरिक एसिड 4% से अधिक तथा 6% से कम होना चाहिए। यदि हमारे पास 8% विलयन की मात्रा 640 लीटर हो तो ज्ञात कीजिए कि 2% विलयन के कितने लीटर इसमें मिलाने होंगे?
हल:
माना 2% बोरिक एसिड का x लीटर विलयन मिलाया जाता है।
कुल मिश्रण की संख्या = 640 + x
(i) यदि मिश्रण में 4% से अधिक का विलयन है तो
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-10
इस प्रकार 2% एसिड विलयन की मात्रा 320 मीटर से-अभिक और 1280 लीटर से कम होनी चाहिए।

प्रश्न 13.
45% अम्ल के 1125 लीटर विलयन में कितना पानी मिलाया लाए कि परिणामी मिश्रण में अम्ल 25% से अधिक परन्तु 30% से कम हो जाए?
हल:
मान लीजिए 45% एसिड विलयन में x लीटर पानी मिलाया जाए, तो मिश्रण की कुल मात्रा
= 1125 + x लीटर
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-11
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-12
अर्थात् 562.5 लीटर से अधिक किंतु 900 लीटर से कम।

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प्रश्न 14.
एक व्यक्ति के बोद्धिक-लब्धि (I.Q.) मापन का सूत्र निम्नलिखित है :
IQ= [Latex]\frac{M A}{C A}[/Latex] × 100
जहाँ MA मानसिक आयु और CA कालावकि भा है। दि 12 वर्ष की आयु के बच्चों के एक समूह की IQ, असमिका 80 ≤ IQ ≤ 140 द्वारा प्रबत हो तो इस समूह के बच्चों की मानसिक आयु का परिसर ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण विविध प्रश्नावली img-13
अत: मानसिक आयु कम से कम 9.6 वर्ष है और अधिक से अधिक 16.8 वर्ष है।

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MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध

MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध

1. उपसर्ग – प्रत्यय

(क) उपसर्ग –
उपसर्ग वे शब्दांश होते हैं जो यौगिक शब्द बनाते समय पहले प्रयुक्त होते हैं,
जैसे –
अनु + भव = अनुभव।

(ख) प्रत्यय –
प्रत्यय वे शब्दांश होते हैं जिन्हें यौगिक शब्द बनाते समय बाद में प्रयुक्त किया जाता है। बाद में जुड़कर अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं,
जैसे –
मूर्ख + ता = मूर्खता।

(क) उपसर्ग

1. संस्कृत के उपसर्ग
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 1
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध image 1s

2. हिन्दी के उपसर्ग
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 2

3. उर्दू – फारसी के उपसर्ग
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 3

(ख) प्रत्यय प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं –

  • कृत् प्रत्यय,
  • तद्धित प्रत्यय।

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(1) कृत प्रत्यय – कृत् प्रत्यय क्रिया के धातु रूप में जुड़ते हैं, जैसे – कृपा + आलु = कृपालु।
इसके पाँच भेद होते हैं –

  • कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय,
  • कर्मवाचक कृत् प्रत्यय,
  • करणवाचक कृत् प्रत्यय,
  • भाववाचक कृत् प्रत्यय,
  • क्रियार्थक कृत् प्रत्यय।

(2) तद्धित प्रत्यय – जिन शब्दांशों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या अव्यय शब्दों के अन्त में किया जाता है उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे – लोहा से लोहार, सोना से सुनार, पंजाब से पंजाबी आदि।

तद्धित प्रत्यय के भेद निम्नलिखित हैं –

  • अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय,
  • सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय,
  • भाववाचक तद्धित प्रत्यय,
  • कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय,
  • लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय,
  • क्रमवाचक तद्धित प्रत्यय,
  • गुणवाचक तद्धित प्रत्यय,
  • स्त्रीलिंग वाचक तद्धित प्रत्यय,
  • बहुवचन तद्धित प्रत्यय।

प्रत्यय – प्रत्यय युक्त शब्द

  • हार – पालनहार, हौनहार।
  • वाला – रखवाला। क पालक, चालक।
  • औना – खिलौना।
  • हुआ – लिखा हुआ।
  • अन – बेलन।
  • नी – कतरनी।
  • आवट – लिखावट।
  • इय – कौन्तेय, राधेय।
  • ई – लिखाई, पढ़ई, गुजराती।
  • आल – ननिहाल।
  • इक – धार्मिक।
  • आहट – कड़वाहट।
  • ता – सुन्दरता।
  • त्व – लघुत्व।
  • पन – बचपन।
  • एरा – चचेरा, ममेरा।
  • ड़ा, री – बछड़ा कोठरी।
  • वाँ – पाँचवाँ।
  • सरा – दूसरा।
  • री – आखिरी
  • आ – सूखा, भूखा।
  • ऊ – बाजारू
  • वी – मेधावी।
  • आलु – दयालु।
  • एँ – वस्तुएँ, कन्याएँ।
  • याँ – लड़कियाँ, चिड़ियाँ।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपसर्ग और प्रत्यय में क्या अन्तर है?
उत्तर-
उपसर्ग – वे शब्दांश हैं जो किसी शब्द से पूर्व जोड़ दिए जाते हैं और नये शब्द का निर्माण होता है,
जैसे –
सु (उपसर्ग) + गम (शब्द) = सुगम।

प्रत्यय – वे शब्दांश हैं जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाने पर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, जैसे = मीठा + आई = मिठाई।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सारणी में दिए गये उपसर्ग और शब्द के मेल से नया शब्द बनाइए-
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 4
उत्तर-
उपकार, कुमार्ग, सहपाठी, प्रतिरोध, अनुराग, आकार, पराक्रम, अपराध, निर्मल, प्रहार।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में उपसर्ग और शब्दांश अलगअलग कीजिए। प्रतिकार, अपराध, आकृति, प्रयत्न, अचल, अभिमान, दुर्लभ, उपनाम, अधमरा, प्रवचन।
उत्तर-
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 5

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रत्ययों के योग से दो – दो सार्थक शब्द बनाइए वान, आई, नी, आव, ईला, वाला, शील।
उत्तर-
धनवान, बलवान। लड़ाई, भलाई। चोरनी, लेखनी। पड़ाव, घुमाव। चमकीला, रसीला। पानी – वाला, गाड़ीवाला। सुशील दुश्शील।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय पृथक् कीजिए
उपजाऊ, कमाई, बचपन, सुन्दरता, गवैया, दिखावट, मिठास, कलाकार, दयालु, लिखना।
उत्तर-
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध image 2s
MP Board Class 9th Special Hindi भाषा-बोध img 6

2. तत्सम तद्भव शब्द

तत्सम शब्द – वे शब्द जो संस्कृत से अपरिवर्तित रूप में ग्रहण किये गये हैं और उनमें संस्कृत प्रत्यय जोड़े गए हैं, तत्सम कहलाते हैं। जैसे – कण्टक, धैर्य आदि।
तद्भव शब्द – संस्कृत के वे शब्द जो प्राकृत, अपभ्रंश तथा पुरानी हिन्दी से परिवर्तित हो गए हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। जैसे – काम, काँटा, साँप आदि।

  • तत्सम – तद्भव
  • अक्षि – आँख
  • अज्ञान – अजान
  • उलूक – বুলু
  • कोकिल – कोयल
  • कृषक – किसान
  • कदली – केला
  • कर्पट – कपड़ा
  • कार्तिक – कातिक
  • अग्नि – आग
  • उच्च – ऊँचा
  • अमूल्य – अमोल
  • अंक – आंक
  • अनार्य – अनाड़ी
  • अन्न – अनाज
  • आलस्य – आलस
  • उल्लास – हुलास
  • कंटक – काँटा
  • कर्पूर – कपूर
  • कार्य – काज
  • काक – कौआ
  • कोटि – करोड़
  • ग्राम – गाँव
  • गुण – गुन
  • घृत – घि
  • चित्रक – चीता
  • दुग्ध – दु्ध
  • धरित्री – धरती
  • गृह – घर
  • गोपाल – ग्वाल
  • चूर्ण – चूरन
  • तृण – तिनका
  • दुर्बल – दुबला
  • धूम्र – धुआँ
  • नग्न – नंगा
  • पुत्र – पूत

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3. देशज, आगत, रूढ़, यौगिक एवं योगरूढ़ शब्द

देशज शब्द

देशज शब्द – भारतीय ग्रामीण अंचलों में अथवा जनजातियों में बोले जाने वाले शब्द देशज शब्द कहे जाते हैं। ये शब्द संस्कृत भाषा परिवार से अलग होते हैं। जैसे – कपास, बेटा, डिबिया, तेंदुआ, झोला, टाँग, रोटी, लकड़ी, लुटिया आदि।

आगत शब्द –
विदेशी लोगों के सम्पर्क से सीखे गये शब्दों का प्रयोग हिन्दी में होने लगा, उन्हें आगत शब्द कहते हैं।

  • अरबी भाषा से आगत शब्द – फकीर, नजर, अदालत, कलम, काजी, कसूर, किताब, किस्सा, ऐनक, औलाद, बाजार, बेगम, बर्फ, खत, खजाना आदि।
  • फारसी भाषा से आगत शब्द – आदमी, कसीदा, खाना, खासी, कारीगरी, चमन, चादर, जबान, जिंदा, अनार, जबान, नालायकी आदि।
  • अंग्रेजी भाषा से आगत शब्द – अफसर, ड्राइवर, ड्रामा, टिफिन, मैनेजर, मिनट, स्टेशन, मोटर, कम्पनी, कमेटी, चिमनी, एक्स – रे, प्लेटफॉर्म, मास्टर, सरकस, हाइड्रोजन, कमिश्नर, हाईकोर्ट, होस्टल, ड्यूटी आदि।
  • पुर्तगाली भाषा से आगत शब्द – आलू, आलपीन, अचार, अलमारी, काजू, गमला, तौलिया, तम्बाकू, नीलाम, बाल्टी, फीता आदि।
  • चीनी भाषा से आगत शब्द – चाय, तूफान, पटाखा, लीची आदि।
  • यूनानी भाषा से आगत शब्द – टेलीफोन, टेलीग्राम, डेल्टा, ऐटम आदि।
  • फ्रांसीसी भाषा से आगत शब्द – कार्टून, कप!, इंजन, बिगुल, पुलिस आदि। जापानी भाषा से आगत शब्द – रिक्शा आदि।

रूढ़ शब्द
जिन शब्दों का निर्माण अन्य शब्दों के योग से नहीं हुआ हो और न उन शब्दों का कोई खण्ड हो सकता है, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं, जैसे – मुँह, हाथ, रथ, घर, दिन आदि।

यौगिक शब्द
यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं जिनका निर्माण अन्य शब्दों के योग से हुआ हो तथा उनके खण्ड सार्थक हो सकते हैं, जैसेबुढ़ापा, सुन्दरता, नम्रता, हिमालय, अभिनेता आदि।

योगरूढ़ शब्द
योगरूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं जो अपने खण्डों से प्राप्त अर्थ को छोड़कर कोई विशेष अर्थ ग्रहण कर लेते हैं,
जैसे –
पंकज। पंकज के खण्ड पंक + ज (कीचड़ से जो पैदा हो) – कीचड़ से कमल, मछली, मच्छर, शंख आदि की उत्पत्ति होती है।

परन्तु इसका सामान्य अर्थ ग्रहण नहीं किया गया है। एक विशिष्ट अर्थ ग्रहण करने पर इसका अर्थ ‘कमल’ होगा। अत: ‘पंकज’ योगरूढ़ शब्द है।

अन्य उदाहरण–
पीताम्बर, नीलाम्बर, श्वेताम्बर, लम्बोदार, वृकोदर आदि।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव, देशज और आगत शब्दों को छाँटिए
कार्य, अफसर, कपास, खिड़की, चैत्र, फागुन, कोष्ठ, गृह, फरवरी, मीनार, चूर्ण, कपड़ा, घी, काजल।
उत्तर-

  • तत्सम – कार्य, चैत्र, कोष्ठ, गृह, चूर्ण।।
  • तद्भव – कपड़ा, घी, काजल, फागुन।
  • देशज – कपास, खिड़की।।
  • आगत – अफसर, फरवरी, मीनार।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से रूढ़, यौगिक, योगरूढ़ शब्दों को अलग – अलग लिखिए
किताब, जलज, अभिनय, रात, दिन, नम्रता, भद्रता, श्वेताम्बर, बल, विन्ध्याचल, रवि, लम्बोदर।
उत्तर-

  • रूढ़ शब्द – किताब, रात, दिन, बल, रवि।
  • यौगिक शब्द – अभिनय, विन्ध्याचल, नम्रता, भद्रता।
  • योगरूढ़ शब्द – जलज, श्वेताम्बर, लम्बोदर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
रात, मुंह, लोहा, साँप, तेल, दाँत, हाथी, धीरज, छाता, घिन, मोर, कोयल, ऊँट, आज।
उत्तर-
रात्रि, मुख, लौह, सर्प, तैल, दन्त, हस्ती, धैर्य, छत्र, घृणा, मयूर, कोकिल, उष्ट्र, अद्य।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के तदभव शब्द लिखिएआश्रय, आलस्य, ग्राम, सूर्य।
उत्तर-
आसरा, आलस, गाँव, सूरज।

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4. वर्तनी परिचय एवं सुधार

भाषा का लिखित स्वरूप स्थायी और सशक्त होता है जिसके लिए आवश्यकता है, वर्तनी और लिपि चिन्हों में शुद्धता की।
वर्तनी – शब्दों अथवा वर्गों के मेल को वर्तनी कहते हैं।

नोट – विद्यार्थियों को शुद्ध शब्दों के लिखने की आदत विकसित करनी चाहिए।

  • अशुद्ध – शुद्ध
  • तिथी – तिथि
  • नराज – नाराज
  • विरहणी – विरहिणी
  • रचयता – रचयिता
  • निरिक्षण – निरीक्षण
  • शताब्दि – शताब्दी
  • तिरिस्कार – तिरस्कार
  • तुफान – तूफान
  • नुपुर – नूपुर
  • त्रितीय – तृतीय
  • बृज – ब्रज
  • प्रथक – पृथक
  • सेनिक – सैनिक
  • मिठायी – मिठाई
  • सम्बाद – संवाद
  • आर्शीवाद – आशीर्वाद
  • कालीदास – कालिदास
  • नीत – नीति
  • लिखत – लिखित
  • युधिष्ठर – युधिष्ठिर
  • सरोजनी – सरोजिनी
  • महिना – महीना
  • श्रीमति – श्रीमती
  • परिक्षा – परीक्षा
  • द्वारिका – द्वारका
  • ऊत्थान – उत्थान
  • अनुदित – अनूदित
  • द्रश्य – दृश्य
  • नैन – नयन
  • स्थाई – स्थायी
  • गंवार – गँवार
  • राधेशाम – राधेश्याम
  • रनभूमि – रणभूमि
  • श्राप – शाप
  • विकाश – विकास
  • श्रीमान – श्रीमान
  • छमा – क्षमा
  • कार्यकर्म – कार्यक्रम
  • स्र्वगीय – स्वर्गीय
  • सहास – साहस
  • मरन – मरण
  • घबड़ाना – घबराना
  • रजिष्ठर – रजिस्टर
  • प्रतिष्टा – प्रतिष्ठा
  • स्वालम्बन – स्वावलम्बन
  • पन्खा – पंखा
  • अन्ताक्षरी – अन्त्याक्षरी
  • वितीत – व्यतीत
  • निष्टा – निष्ठा

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की मानक वर्तनी के शुद्ध रूप लिखिए
लक्ष, लड़ायी, पैतिक, स्वास्थ, बारात, सुर्य, माहन, चहिए।
उत्तर-
लक्ष्य, लड़ाई, पैत्रिक, स्वास्थ्य, बरात, सूर्य, महान् चाहिए।

प्रश्न 2.
‘र’ के प्रचलित रूप लिखिए।
उत्तर-
‘र’ के प्रचलित रूप देखिए. प्रकृति, राष्ट्र, कर्म।

5. पर्यायवाची, विलोम और अनेकार्थी शब्द

पर्यायवाची शब्द
पर्यायवाची शब्द से तात्पर्य – समान अर्थ प्रकट करने वाले शब्द एक – दूसरे के पर्यायवाची या समानार्थक कहलाते हैं।

  • हवा – वायु, समीर, पवन, अनिल, वात।
  • मेहमान – अतिथि, पाहुन।
  • अमृत – मधु, अमिय, सुधा, पीयूष।
  • बादल – घन, पयोद, जलद, अम्बुद।
  • पर्वत – नग, महीधर, भू – धर, पहाड़।
  • पक्षी – चिड़िया, पतंग, परिंदा, पखेरू।
  • अश्व – तुरंग, वाजि, घोटक, घोड़ा।
  • आकाश – अम्बर, नभ, गगन, आसमान, अन्तरिक्ष, शून्य।
  • वृक्ष – तरू, द्रुम, विटप, अगम, पेड़, पादप।
  • नदी – सरिता, तटिनी, तरंगिणी, आपगा, कूल, कषा।
  • पत्थर – पाषाण, अश्म, प्रस्तर, पाहन।
  • समुद्र – रत्नाकर, नीरधि, सिन्धु, सागर।
  • अरण्य – विपिन, कानन, जंगल, वन।
  • संसार – विश्व, लोक, जगत्।
  • तालाब – जलाशय, पद्माकर, सरोवर, तड़ाग।
  • गज – कुंजर, गयंद, करि, हाथी।
  • कमल – नीरज, पंकज, शतदल, सरोज, जलज, अरविंद।
  • पुष्प – फूल, सुमन, प्रसून, कुसुम।
  • राजा – नृप, भूप, नरेश, महीप।
  • किरण – कर, मरीचि, रश्मि, अंशु, मयूख।
  • पुत्री – तनया, सुता, दुहिता, तनुजा।
  • स्वर्ग – देवलोक, सुरलोक, ब्रह्मलोक।
  • रात्रि – रजनी, निशा, तमी, क्षपा।
  • चन्द्रमा – राकेश, शशि, हिमकर, शशांक, विधु।
  • जल – नीर, अम्बु, पय, वारि।
  • अग्नि – आग, पावक, ज्वाला, दहन, ज्वलन।
  • कपड़ा – चीर, वस्त्र, वसन, पट।
  • सोना – कंचन, हेमरूप, स्वर्ण, कनक।
  • शरीर – देह, तन, काया, कलेवर।
  • झण्डा – केतु, ध्वज, पताका।
  • पत्नी – गृहणी, बहू, वधू, प्राणप्रिया, जोरू।
  • आँख – नेत्र, नयन, लोचन, चक्षु, दृग।
  • पृथ्वी – भू, भूमि, वसुधा, अवनि, क्षिति।
  • आम – आम, रसाल, अतिसौरभ, फल, सहकार।
  • दास – चाकर, नौकर, अनुचर, किंकर, सेवक।
  • सूर्य – भास्कर, भानु, दिवाकर, प्रभाकर, अंशु – मालि।
  • दया – कृपा, रहम, अनुकम्पा।
  • असुर – दैत्य, दानव, राक्षस, निशिचर, दनुज।
  • कृष्ण – ब्रजेश, गोपाल, हरि, वंशीधर, मुरलीधर, कन्हैया।
  • खल – दुर्जन, दुष्ट, नीच, कुटिल, अधम, पामर, धूर्त।
  • गंगा – भागीरथी, मन्दाकिनी, सुरसरि, त्रिपथगा, देवनदी।
  • गाय – धेनु, भद्रा, गौ, सुरभि।
  • गणेश – लम्बोदर, गणपति, गजानन, विनायक, एकदन्त, गौरीसुत।
  • चतुर – योग्य, कुशल, निपुण, दक्ष, प्रवीण, पटु, विज्ञ, नागर।
  • अनुपम – अतुल, अद्भुत, अनूठा, अनोखा, अपूर्व।
  • अहंकार – मद, अहं, दम्भ, घमण्ड, अभिमान, गर्व।
  • इन्द्र – देवेन्द्र, सुरेश, देवराज, महेन्द्र, पुरन्दर, देवेश।
  • उजाला – प्रकाश, आलोक, तेज, प्रभा, दीप्ति, द्युति।
  • कामदेव – मनोज, मदन, रतिपति, अनंत, मन्मथ, मनसिजा।
  • कोयल – कोकिला, वसन्तदूत, वनप्रिय, काकपाली, परभृत।
  • क्रोध – गुस्सा, रोष, अमर्ष, कोप।
  • कौआ – काक, काग, वायस, पिशुन, अरिष्ठ।
  • घर – गृह, गेह, निकेतन।
  • मनुष्य – मानव, आदमी, नर, जन।
  • सिंह – शेर, केसरी, वनराज, केहरि।
  • इच्छा – आकांक्षा, मनोरथ, अभिलाषा, स्पृहा, इहा।
  • ईश्वर – प्रभु, परमेश्वर, जगदीश, परमात्मा, जगतपिता।
  • सरस्वती – गिरा, वीणावादिनी, शारदा।
  • पुत्र – सुत, वत्स, आत्मज, तनय, बेटा।
  • तलवार – खड्ग, करवाल, असि।
  • माता – अम्बा, धात्री, जननी।
  • बुद्धि – प्रज्ञा, मति, मेघा।
  • विष – जहर, हलाहल, गरल।
  • आनन्द – मोद, प्रमोद, उल्लास, प्रसन्नता, हर्ष।
  • यमुना – सूर्य, तनया, अर्कजा, कृष्णा, रविसुता, कालिन्दी, तरणिजा।
  • बिजली – दामिनी, चपला, विद्युत्।
  • चाँदनी – कौमुदी, ज्योत्स्ना, चन्द्रिका, चन्द्रमरीचि।

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विलोम शब्द–
जो शब्द विपरीत अथवा प्रतिकूल अर्थ के परिचायक होते हैं, उनको विलोम अथवा विपरीतार्थक शब्द के नाम से पुकारा जाता है।
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अनेकार्थी शब्द–
जो शब्द एक से अधिक अर्थ देते हैं, वे अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं।

उदाहरण–

  • अक्षर – जल, सत्य, शिव, वर्ण, गगन, धर्म, तपस्या।
  • अर्थ – धन, प्रयोजन, ऐश्वर्य, हेतु।
  • अनन्त – आकाश, अन्तहीन, ब्रह्म, विष्णु।
  • अरुण – सूर्य, लाल, रंग, सूर्य का सारथी।
  • अशोक – एक वृक्ष, सम्राट अशोक, शोक रहित।
  • अमृत – जल, अन्न, स्वर्ण, दूध।
  • अलि – भौंरा, कोयल, सखी।
  • उत्तर- हल, जवाब, उत्तर दिशा।
  • कल – अगला दिन, बीता हुआ दिन, मधुर ध्वनि, मशीन।
  • काल – मौत, समय, यमराज।
  • कनक – सोना, धतूरा, गेहूँ।
  • काम – कार्य, धन्धा, पेशा, कामदेव।
  • कुल – योग, सब, वंश, केवल, संघ।
  • कंज – चरण, कमल, ब्रह्मा।
  • कक्ष – कमरा, श्रेणी, कांख, बंगला, भूमि।
  • गुण – स्वभाव, कौशल, शील, सत्, धनुष की डोरी।
  • गुरु – बड़ा, भारी, शिक्षक, दो मात्राओं वाला वर्ण।
  • गौ – गाय, पृथ्वी, भूमि, स्वर्ग, दिशा, कण।
  • घन – हथौड़ा, भारी, बादल, संख्या का संख्या से गुणा।
  • घट – घड़ा, कम, देह, मन, हृदय।
  • चन्द्र – चन्द्रमा, मोर पंख की चन्द्रिका, सोना।
  • जलज – मछली, कमल, मोती, शंख, चन्द्रमा।
  • ज्येष्ठ – गर्मी का महीना, बड़ा, पति का बड़ा भाई, श्रेष्ठ।
  • तनु – छोटा, शरीर, कृश।
  • तात – पिता, भाई, पूज्य, प्यारा, बड़ा, मित्र।
  • दल – सेना, समूह, पक्ष, पत्ता।
  • दक्ष – चतुर, चन्द्र, दाँत, वैश्य, ब्राह्मण।
  • नग – पर्वत, वृक्ष, नगीना।
  • नाक – नासिका, इज्जत, स्वर्ग।
  • पयोधर – बादल, गन्ना, स्तन, पर्वत।
  • पानी – जल, कान्ति, इज्जत।
  • बाल – केश, बालक, बाला, गेहूँ आदि की बाल।
  • भास्कर – सूर्य, सोना, शिव, अग्नि।
  • भारत – भारतवर्ष, अर्जुन।
  • भूत – प्राणी, प्रेत, पंचभूत, अतीत काल, मरा हुआ शरीर।
  • मधु – शहद, मदिरा, वसन्त, चैत्र का मास।
  • माधव – श्रीकृष्ण, वसन्त ऋतु, बैसाख, महुआ।
  • मित्र – दोस्त, सहयोगी, प्रिय।
  • मान – सम्मान, इज्जत, अभिमान, नाप – तोल, रूठना।
  • रस – अर्क, प्रेम, जल, खाद, स्तर, आनन्द।
  • वर्ण – रंग, अक्षर, अन्य, जातियाँ।
  • विधि – तरीका, भाग्य, विधाता, रीति।
  • सर – बाण, तालाब, चिन्ता।।
  • सुधा – अमृत, गंगा, पृथ्वी, जल, दूध, फूलों का रस।
  • सारंग – भौंरा, हिरन, मेघ, साँप, मोर, जल, शंख, फूल।
  • हरि – हाथी, श्रीकृष्ण, चन्द्र, कामदेव, पहाड़, साँप, शिव।
  • हार – पराजय, माला।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्दों के दो – दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
कमल, पानी, आकाश, अमृत, घर, बादल, चन्द्रमा।
उत्तर-

  • कमल = पंकज, जलज।
  • पानी = जल, नीर।
  • आकाश = गगन, व्योम।
  • अमृत = सुधा, पीयूष।
  • घर = गृह, सदन।
  • बादल = घन, मेघ।
  • चन्द्रमा = मयंक, शशि।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
(क) सदाचार,
(ख) आदान,
(ग) पतिव्रता,
(घ) आशा,
(ङ) सरस।
उत्तर-
(क) कदाचार,
(ख) प्रदान,
(ग) कुलटा,
(घ) निराशा,
(ङ) विरस या नीरस।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के दो – दो अर्थ बताइए
(क) अशोक,
(ख) कनक,
(ग) जलज,
(घ) दल,
(ङ) पय,
(च) भाग,
(छ) लाल,
(ज) सूर।
उत्तर-
(क) अशोक – एक प्रकार का वृक्ष, एक राजा का नाम।
(ख) कनक – स्वर्ण, धतूरा।
(ग) जलज – कमल, मछली।
(घ) दल – समूह, सेना।
(ङ) पय – दूध, जल।
(च) भाग – हिस्सा, भाग्य।
(छ) लाल – पुत्र, प्यार का सम्बोधन।
(ज) सूर – सूर्य, अंधा।

प्रश्न 4.
निम्नांकित वाक्यों में प्रयुक्त काले शब्दों से एक – एक अन्य वाक्य जो भिन्न (अलग) अर्थ वाला हो, बनाइए
(क) पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है।
(ख) आपके आगमन का क्या अर्थ है।
(ग) मेरा भाई उत्तर दिशा में गया है।
(घ) वर्षा काल शुरू हो चुका है।
(ङ) उसने घन से प्रहार किया।
उत्तर-
(क) अर्जुन ने मछली की अक्ष में बाण मारा।
(ख) आज का युग अर्थ प्रधान है।
(ग) उसका उत्तर अनुचित था।
(घ) उसका काल आ गया है, ऐसा लगता है।
(ङ) आकाश में घन गर्जना कर रहे हैं।

6. मुहावरे और लोकोक्तियाँ एवं उनका प्रयोग

मुहावरे–

परिभाषा – मुहावरे वे वाक्यांश होते हैं जिनमें प्रवाह, सरसता, क्षमता एवं रोचकता से भाषा परिपूर्ण हो जाती है। मुहावरों के द्वारा संक्षेप रूप से विस्तृत भाव व्यक्त करने की क्षमता विद्यमान रहती है।

1. आकाश पाताल एक करना – (कठिन परिश्रम करना)
प्रयोग – दिनेश जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आकाश पाताल एक कर देता है।

2. अपना उल्लू सीधा करना – (स्वार्थ सिद्ध करना)
प्रयोग – राजनीति में प्रत्येक व्यक्ति अपना उल्लू सीधा करने में लगा है।

3. अन्धे की लाठी – (एकमात्र सहारा होना)
प्रयोग – सोहन अपने माता – पिता की अन्धे की लाठी है।

4. नौ दो ग्यारह होना – (भाग जाना)
प्रयोग – पुलिस को देखकर चोर नौ दो ग्यारह हो गये।

5. गागर में सागर भरना – (अल्प में अधिक)
प्रयोग – बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया।

6. श्री गणेश करना – (प्रारम्भ करना)
प्रयोग – राहुल ने अपने कार्यालय का श्रीगणेश कर दिया

7. कमर कसना – (तैयार करना)
प्रयोग – भारत ने पाकिस्तान को पराजित करने के लिए कमर कस ली है।

8. ईंट से ईंट बजाना – (यथासम्भव बदला लेना)
प्रयोग – भारत के सैनिकों ने पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा दी।

9. गले का हार होना – (अत्यधिक प्रिय होना)
प्रयोग – राशि चंचल होने के कारण सबके गले का हार बनी हुई है।

10. आस्तीन का साँप – (विश्वासघाती मित्र)
प्रयोग – मेरे शत्रु को अपने घर में स्थान देकर मेरे पड़ोसी। ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह मेरे लिए आस्तीन का साँप है।

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11. कलई खुलना – (पोल खुलना)
प्रयोग – रीना की काली करतूतों की कलई खुल गई तब उसकी सूरत देखने लायक थी।

12. जले पर नमक छिड़कना – (दु:खी व्यक्ति को और दुःख देना)
प्रयोग – श्याम की कार चोरी हो जाने पर उसका मित्र उसकी हँसी उड़ाकर जले पर नमक छिड़क रहा था।

13. चार चाँद लगाना – (सौन्दर्य में वृद्धि करना)
प्रयोग – माला पहले ही सुन्दर थी, ऊपर से हीरे का हार पहन लिया तो उसकी सुन्दरता में चार चाँद लग गये।

14. गुदड़ी का लाल – (अभावों में पला प्रतिभाशाली व्यक्ति)
प्रयोग – भारत में ऐसे अनेक गुदड़ी के लाल जन्मे हैं जिन्होंने इस देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

15. अपनी करनी पार उतरनी – (प्रत्येक व्यक्ति अपनी मेहनत से ही सफलता प्राप्त करता है)
प्रयोग – हाथ पर हाथ रखकर बैठने से काम नहीं चलेगा क्योंकि अपनी करनी से ही पार उतर सकोगे।

16. ओखली में सिर डालना – (हर विपत्ति सहने के लिए तत्पर)
प्रयोग – जब नौकरी करने निकले हो तो ओखली में सिर डालकर मूसलों से क्यों डरते हो।

17. ऊँट में मुँह में जीरा – (आवश्यकता से कम सामग्री)
प्रयोग – भूकम्प में घायलों को 2000 रुपये की सहायता देना ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।

18. आड़े हाथों लेना – (फटकारना)
प्रयोग – राकेश के निरन्तर ऑफिस देर से पहुँचने पर उसके बॉस ने उसे आड़े हाथों लिया।

19. कुत्ते की मौत मरना – (अत्यधिक कष्टों से मरना)
प्रयोग – कुकर्मी मानव कुत्ते की मौत मरते हैं।

20. खून – पसीना एक करना – (अधिक परिश्रम करना)
प्रयोग – दिनेश ने खून – पसीना एक करके बच्चों को पढ़ाया

21. तूती बोलना – (धाक जमाना)
प्रयोग – मोहन की प्रत्येक क्षेत्र में तूती बोलती है।

22. कान में तेल डालना – (किसी की बात न मानना)
प्रयोग – रोहन ने अपने छोटे भाई को अनेक बार समझाय लेकिन उसने तो कान में तेल डाल रखा था।

23. हाथ मारना – (लाभ की एकाएक प्राप्ति)
प्रयोग – इस बार मोहन ने सरसों महँगी होने पर व्यापार में खूब हाथ मारा है।

24. चिकना घड़ा – (अप्रभावी)
प्रयोग – मोहन को कितना ही डाँटो – फटकारो वह तो चिकना घड़ा है।

25. अड्डा जमाना – (हमेशा के लिए रह जाना)
प्रयोग – रोहित इंजीनियर बनने मुम्बई गया था लेकिन उसने वहीं पर अड्डा जमा लिया।

26. थूक कर चाटना – (कहकर मुकर जाना)
प्रयोग – राजेश जो कहता है वही करता है वह थूककर चाटने वाले इन्सानों में से नहीं है।

27. अपनी खिचड़ी अलग पकाना – (सबसे अलग रहना)
प्रयोग – कुछ स्वार्थी लोग निज हितों को साधने के उद्देश्य से अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं।

28. दूध का दूध और पानी का पानी – (सच्चा न्याय होना)
प्रयोग – न्यायाधीश ने जब फैसला सुनाया तो सब कहने लगे कि यह हुआ है दूध का दूध और पानी का पानी।

29. सौ सुनार की एक लुहार की – (मौका मिलने पर सशक्त बदला लेना)
प्रयोग – कुख्यात डाकू भूरा अनगिनत अपराधों के पश्चात् अन्ततः पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। किसी ने ठीक ही कहा है सौ सुनार की एक लुहार की।

30. घी के चिराग जलाना – (खुशियाँ मनाना)
प्रयोग – हाईस्कूल की परीक्षा में प्रथम श्रेणी अर्जित करने पर राजीव के घर – पड़ोस में घी के चिराग जलाये गये।

31. अंग – अंग टूटना – (पूरे शरीर में पीड़ा होना)
प्रयोग – मलेरिया में अंग – अंग टूटने लगता है।

32. अक्ल का दुश्मन – (मूर्ख व्यक्ति)
प्रयोग – उसने तो समस्या को उलझा दिया है, तुम अभी नहीं समझ सके कि वह अक्ल का दुश्मन है।

33. अपने मुँह मियाँ मिठूबनना – (अपनी प्रशंसा स्वयं करना)
प्रयोग – अपने मुँह मियाँ मिठू बनना अच्छी बात नहीं है।

34. आवाज बुलन्द करना – (विरोध जताना)
प्रयोग – अन्याय सहना पाप है अतः उसके विरुद्ध आवाज बुलन्द करनी चाहिए।

35. आग लगाना – (झगड़ा कराना)
प्रयोग – दो दलों में अपने – अपने पक्ष को भारी रखने के लिए अध्यक्ष ने आग लगा दी।

36. ईंट का जवाब पत्थर से देना – [करारा (कठोर) जवाब देना]
प्रयोग – उग्रवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा।

37. उल्टी गंगा बहाना – (अनहोनी बात करना)
प्रयोग – बहादुर लड़ाके युद्ध में हार कर उल्टी गंगा बहाते

38. कलेजे पर साँप लोटना – (ईर्ष्या से जलना)
प्रयोग – रामू ने पी.सी. एस. में पाँचवीं रैंक प्राप्त की, उसे सुनकर उसके विपक्षियों के कलेजे पर साँप लोटने लगा।

39. गिरगिट की तरह रंग बदलना – (सिद्धान्तहीन होना)
प्रयोग – आज के नेता राजनीति में प्रायः गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हैं।

40. घाट – घाट का पानी पीना – (अनुभवी होना)
प्रयोग – वह देखने में ही अति सरल और सहज लगता है लेकिन उसने घाट – घाट का पानी पिया हुआ है।

41. डूबते को तिनके का सहारा – (विपत्ति में थोड़ी भी सहायता बहुत मूल्यवान होती है)
प्रयोग – घायल को स्वास्थ्य केन्द्र पर दी गई औषधियाँ डूबते को तिनके के सहारे के समान थी।

42. धूप में बाल सफेद करना – (अनुभवहीन होना)
प्रयोग – घर की समस्याओं का समाधान धूप में बाल सफेद करने से नहीं होता।

43. नींव डालना – (सूत्रपात करना)
प्रयोग – ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अंग्रेजी शासन की नींव डाली।

44. पहाड़ टूटना – (बहुत भारी कष्ट आ पड़ना)
प्रयोग – असमय उसके पिता का निधन पहाड़ टूटने के समान

45. बहती गंगा में हाथ धोना – (अवसर का लाभ लेना)
प्रयोग – श्रमदान से विद्यालय की इमारत के लिए सामान ढोया जा रहा था, मैंने भी थोड़ा सहयोग देकर बहती गंगा में हाथ धो लिए।

लोकोक्तियाँ–

परिभाषा लोकोक्तियों के द्वारा लोक जीवन के व्यापक अनुभवों को एक वाक्य के रूप में स्वतन्त्र रूप से व्यक्त करने
में सामर्थ्य होती है।

1. अंधों में काना राजा – मूों में अल्पज्ञ भी ज्ञानी होता है।
प्रयोग – मोहन पूरे गाँव में दसवीं पास व्यक्ति है। उसे ही अंधों में काना राजा माना जाता है।

2. एक पंथ दो काज – एक काम से दोहरा लाभ लेना।
प्रयोग – वह बनारस में गया था ज्योतिष सीखने, वहाँ उसने अपनी मेहनत से धन कमाया, इस तरह उसने एक पंथ दो काज किए।

3. ऊँची दुकान फीका पकवान – अधिक दिखावा।
प्रयोग – उस सेठ की दुकान की सजावट से आकर्षित होकर सामान खरीद लेने के बाद लोग कहते मिले कि ऊँची दुकान परन्तु फीका पकवान।

4. खग जाने खगही की भाषा – समानता रखने वाले परस्पर अच्छी पहचान रखते हैं।
प्रयोग – समान उम्र के बालकों को आपस में खेलते और बातें करते देखकर मैंने समझ लिया कि खग जाने खगही की भाषा।

5. चोर की दाढ़ी में तिनका – अपराधी स्वयं भयभीत रहता
प्रयोग – मेरे पैन के खो जाने पर तुम्हारे द्वारा बिना पूछे ही अपनी सफाई देना, स्पष्ट कर रहा है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है।

6. एक ही थैली के चट्टे – बट्टे – समान रूप से बुरे आचरण वाले।
प्रयोग – रहीमखाँ और साहिदखाँ में अन्तर ही क्या है? एक जुआरी है, तो दूसरा जेबकट। वे दोनों ही एक थैली के चट्टे – बट्टे हैं।

7. खोदा पहाड़ निकली चूहिया – अधिक परिश्रम करने पर तुच्छ लाभ।
प्रयोग – उसने रात – दिन पढ़ाई की, अपनी पढ़ाई पर खर्च भी किया परन्तु साधारण श्रेणी से पास हुआ, इससे तो यही लगता है कि तुमने खोदा पहाड़. और निकली चुहिया।

8. निर्बल के बल राम – कमजोर का सहारा ईश्वर होता है।
प्रयोग – शीत ऋतु में खुले में रहने वाले पशु – पक्षियों का आश्रय कहाँ? उन निर्बलों के बल तो राम ही होते हैं।

9. भागते भूत की लँगोटी ही भली – कुछ भी न मिलने से तो जो भी कुछ मिल जाए, वही भला।
प्रयोग – सेठ हजारीमल दिवालिया घोषित हैं। उनसे मैंने दस हजार में से दो हजार प्राप्त कर उचित ही किया, क्योंकि भागते भूत की तो लँगोटी ही भली होती है।

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10. पंच जहाँ परमेश्वर वहाँ – पंचायत में न्याय होता है।
प्रयोग – पंचों ने जो फैसला दिया है, वही मानना पड़ेगा क्योंकि जहाँ पंच होते हैं वहाँ परमेश्वर होते हैं।

11. जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं – किसी बात को बढ़ा – चढ़ाकर करने वाला व्यक्ति उसके अनुसार काम नहीं करता।
प्रयोग – अच्छे अंक प्राप्त न कर सकने वाले छात्रों को अगली कक्षा में प्रवेश न देने की घोषणा करने वाले प्राचार्य जी ने सभी उत्तीर्ण छात्रों को प्रवेश देकर यह सिद्ध कर दिया कि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं हैं।

12. अपना हाथ जगन्नाथ – अपने आप किया गया कार्य अच्छा होता है।
प्रयोग हमें अपना गृहकार्य स्वयं ही करना चाहिए, क्योंकि अपना हाथ जगन्नाथ होता है।

13. आप भला तो जग भला – अच्छे को सभी अच्छे लगते हैं।
प्रयोग – मुझे अपने सहपाठियों में कोई भी खराब नहीं लगा, क्योंकि यह कहावत ठीक ही है कि आप भला तो जग भला।

14. जैसा देश वैसा भेष – जहाँ रहो, वहाँ जैसी रीति का पालन करो।
प्रयोग – मोहन तो एकदम शहरी बाबू बन गया है। वह तो अब जैसा देश वैसा भेष रखने लगा है।

15. लेना एक न देना दो – किसी से कोई मतलब न रखना।
प्रयोग – हमारे विज्ञान के आचार्य कॉलेज में किसी से भी लेना एक न देना दो का व्यवहार रखते हैं।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग कीजिए
(1) ईद का चाँद होना,
(2) हौंसला पस्त होना,
(3) सिर आँखों पर बिठाना,
(4) हाथ मलना।
उत्तर-
(1) ईद का चाँद होना – बहुत दिन बाद दिखाई देना।
प्रयोग – तुम अपने व्यवसाय में इतने लगे रहते हो कि हमारे लिए तो ईद के चाँद हो चुके हो।

(2) हौसला पस्त होना – उत्साह न रह जाना।
प्रयोग – व्यापार में घाटे की खबर से सेठजी के हौंसले पस्त हो गए हैं।

(3) सिर आँखों पर बिठाना – बहुत आदर देना।
प्रयोग – विद्यालय की क्रिकेट टीम ने मैच जीता, तो छात्रों ने टीम के सदस्यों को सिर आँखों पर बिठा लिया।

(4) हाथ मलना – पछताना।
प्रयोग – नौकरी के मिले अवसर को खोकर वह अब हाथ मल रहा है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कहावतों का अर्थ बताइए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
(1) जिसकी लाठी उसकी भैंस,
(2) एक अनार सौ बीमार,
(3) घर का भेदी लंका ढावे,
(4) मुँह में राम बगल में छुरी।
उत्तर-
(1) जिसकी लाठी उसकी भैंस – ताकतवर सब – कुछ कर सकता है।
प्रयोग – अराजकता में तो जिसकी लाठी होती है, भैंस भी उसी की होगी।

(2) एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु की माँग अनेक लोगों द्वारा किया जाना।
प्रयोग – विद्यालय में अध्यापक का एक पद रिक्त है, प्रार्थना – पत्र अनेक लोगों के आये हैं। किसकी नियुक्ति होगी, यह तो कहा नहीं जा सकता क्योंकि यहाँ तो एक अनार है और बीमार सौ हैं।

(3) घर का भेदी लंका ढावे – आपसी फूट से बड़ी हानि होती है।
प्रयोग – घर के सदस्यों में तालमेल की कमी से सेठजी की कम्पनी में कर्मचारी आजादी से काम करते हैं। वे लाभ की जगह हानि पहुँचा रहे हैं। इस तरह घर का भेदी लंका ढाने का काम कर रहा है।

(4) मुँह में राम बगल में छुरी – दिखावटीपन या दोगलापन।
प्रयोग – हमें मित्रता करने में सावधान रहना चाहिए क्योंकि आजकल मित्र भी मुँह में राम बगल में छुरी रखने वाले हो गए हैं।

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान पूर्ति

1. अत्यन्त में ___________ है। (अति/अत)
2. भरपेट में भर’ का अर्थ ___________ है। (पूरा/खाली)
3. भलाई में प्रत्यय ___________ है। (आई, लाई)
4. मेरे पिताजी ___________। (निरिक्षक/निरीक्षक)
5. ग्रीष्म के बाद ___________ आती है। (वर्षा/ठण्ड)
उत्तर-
1.अति,
2. पूरा,
3. आई,
4. निरीक्षक,
5. वर्षा।

सही विकल्प चुनिए––

1. ‘सुन्दरता’ शब्द है
(क) देशज
(ख) आगत
(ग) यौगिक
(घ) रूढ़।
उत्तर-
(ग) यौगिक

2. ‘लक्ष’ का मानक शुद्ध रूप है
(क) लख
(ख) लक्ष्य
(ग) लाख
(घ) लाक्ष्य।
उत्तर-
(ख) लक्ष्य

3. ‘कामदेव’ का पर्यायवाची शब्द है–
(क) मनोज
(ख) कामद
(ग) मदेव
(घ) देव।
उत्तर-
(क) मनोज

4. ‘प्रवृत्ति’ का विलोम है
(क) निवृत्ति
(ख) सवृत्ति
(ग) कुवृत्ति
(घ) वृत्ति।
उत्तर-
(क) निवृत्ति

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5. ‘कनक’ के अर्थ हैं
(क) सोना – धतूरा
(ख) नींद – भोजन
(ग) खाना – पीना
(घ) काटना – पीटना।
उत्तर-
(क) सोना – धतूरा

सही जोड़ी मिलाइए––

‘अ’ – ‘आ’
(i) मेरा भाई उत्तर दिशा में – (क) ‘आग बबूला’ हो गया है। जाता है।
(ii) रमाकान्त थोड़ी – सी गलती – (ख) उसका उत्तर पर बहुत क्रोध करता है। अनुचित है।
(iii) अच्छे अंक पाने के लिए – (ग) उपसर्ग छात्रों को खून पसीना एक करना पड़ता है।
(iv) एक पंथ दो काज करना। – (घ) बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
(v) प्रतिफल में ‘प्रति’ है। – (ङ) एक काम से दुहरा लाभ लेना
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(i) → (घ),
(iv) →(ङ),
(v) → (ग)।

सत्य/असत्य––

1. ‘परिचय’ में ‘परि’ प्रत्यय है।
2. ‘लघुत्व’ में ‘त्व’ प्रत्यय है।
3. ‘जलज’ योगरूढ़ शब्द है।
4. अनुदित की शुद्ध वर्तनी अनूदित होती है।
5. ‘गले का हार होना’ का अर्थ है बहुत प्रिय होना।
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर––

1. यौगिक शब्द बनाते समय पहले प्रयुक्त शब्दों को क्या ‘ कहते हैं?
उत्तर-
उपसर्ग

2. यौगिक शब्द बनाते समय बाद में प्रयुक्त हुए शब्दों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
प्रत्यय।

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3. दिखाना + आवट के मेल से बना शब्द लिखिए।
उत्तर-
दिखावट।

4. योगरूढ़ शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर-
योगरूढ़ शब्द अपने खण्डों से प्राप्त अर्थ को छोड़कर कोई विशेष अर्थ ग्रहण कर लेते हैं।

5. शरीर, तन, गात, वपु किसके पर्याय हैं?
उत्तर-
‘देह।

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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 22 हिन्दी साहित्य का इतिहास

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 22 हिन्दी साहित्य का इतिहास (संकलित)

प्रश्न 1.
हिंदी साहित्य के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए उसके काल-विभाजन का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर
प्रत्येक वस्तु का इतिहास होता है। इसी प्रकार हिन्दी साहित्य का भी अपना इतिहास है। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में प्रमुखतः गार्स द तॉसी, शिवसिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. राजकुमार वर्मा, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. भगीरथ प्रसाद, डॉ. लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे अनेक विद्वानों ने अपना सहयोग प्रदान किया।

हिन्दी साहित्य का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पहले से प्रारम्भ होता है। कालविभाजन की दृष्टि से हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है। यह विभाजन उस काल की समय सीमा में मिलने वाले साहित्य की विशेषताओं पर आधारित है। काल-विभाजन के नामकरण का मुख्य आधार उस काल की प्रवृत्तियों, परिस्थितियों और उस काल की विशेषताओं को बनाया गया है। इस आधार पर हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन इस प्रकार है :

  1. आदिकाल (वीरगाथा काल) – संवत् 1050 से 1375 तक
  2. मध्य काल – संवत् 1375 से 1900 तक
    • पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) – संवत् 1375 से 1700 तक
    • उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) – संवत् 1700 से 1900 तक
  3. आधुनिक काल (गद्यकाल) – संवत् 1900 से अब तक

प्रश्न 2.
आदिकाल के नामकरण और इसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
आदिकाल (वीरगाथा काल)-आदिकाल का नामकरण अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग विशेषताओं के आधार पर किया है। आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के आदिकाल का समय सं. 1050 से सं. 1375 तक अर्थात् महाराजा भोज के समय । से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना है। आदिकाल में तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार साहित्य सृजन हुआ जिसे हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक काल में स्पष्ट देखा जा सकता है। आदिकाल को चारण काल भी कहा गया है। यह इसलिए कि आदिकाल की समय सीमा में सम्राट हर्षवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् विदेशी आक्रमणकारियों विशेषकर यवनों के आक्रमणों के चारों ओर अशान्ति और अराजकता की स्थिति निर्मित थी अतः कवि एक ओर तलवार के गीत गा रहे थे, तो दूसरी ओर आध्यात्मिकता की बात भी कर रहे थे। आदि काल को वीरगाथा काल भी कहा गया है। यह इसलिए कि इस काल में वीरता लोक जीवन शृंगार के प्रमुख काव्य के विषय थे।आदिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. आदिकालीन साहित्य में युद्ध वर्णन में सजीवता और अधिकता है।
  2. आदिकालीन साहित्य में ‘रासो काव्य परम्परा’ का प्रादुर्भाव हुआ। ‘रासो’ शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संस्कृत के एक छन्द ‘रासक’ को माना है। बाद में अपभ्रंश में भी ‘रास’ या ‘रासा’ छन्द का वर्णन मिलता है।
  3. राजाओं के शौर्य और पराक्रम का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया।
  4. वीर और श्रृंगार रस के साथ शान्त, करुण, विभत्स आदि रस युक्त रचनाओं का वर्णन किया गया।
  5. अलंकारों का स्वाभाविक समावेश इस युग के साहित्य में मिलता है। अलंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि की प्रधानता रही।

प्रमुख कवि – रचनाएं

  1. स्वयंभू – पउम चरिउ
  2. पुष्पदन्त – जसहारचरिउ
  3. मुनि शालिभद्र – बुद्धिरास
  4. जिनधर्म सूरि – स्थलिभद्ररास
  5. नरपति नाल्ह – वीसलदेव रासो
  6. जगनिक – परमाल रासो
  7. दलपति विजय – खुमान रासो
  8. चन्दवरदाई – पृथ्वीराज रासो

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प्रश्न 3.
मध्यकाल का सामान्य परिचय और उसके भेदों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हिन्दी साहित्य का मध्यकाल दो खण्डों में विभक्त है जो इस प्रकार हैं-पूर्व मध्यकाल और उत्तर मध्यकाल। पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल तथा उत्तर मध्यकाल को रीतिकाल कहा गया। पूर्व मध्यकाल अर्थात् भक्ति काल का समय संवत् 1375 से 1700 तक। इस काल में भक्ति की प्रधानता थी। इस समय सीमा में कवि भक्त थे, अतः उनकी रचनाएँ भक्ति से ओत-प्रोत हैं। उस समय समाज में अनेक प्रकार ३. के भेदभाव थे। इसके विरोध में भक्ति का स्रोत इस काल में प्रस्फुटित हुआ। इस – काल में धर्म साधना की नई भावना का उदय हुआ। इन भक्त कवियों को धन, यश और राजाश्रय की चाह नहीं था बल्कि समाज-व्यक्ति तथा राष्ट्र को आगे बढ़ाने की भावना थी। यह भक्ति आंदोलन अखिल भारतीय था, इसक परिणाम यह हुआ कि लगभग पूरे देश में मध्य प्रदेश की काव्य भाषा हिन्दी (ब्रजभाषा) का प्रचार-प्रसार हुआ। भक्ति आन्दोलन हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। भक्तिकाल की समय सीमा में दो प्रकार की काव्यधाराएँ थीं
1. निर्गुण धारा
2. सगुण धारा
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प्रश्न 4.
निर्गुण भक्ति काव्य-धारा का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए।
उत्तर
निर्गुण भक्ति काव्य-धारा के कवियों ने निराकार ब्रह्म की उपासना पर जोर दिया। उन्होंने योग साधना और ब्रह्म ज्ञान को प्रधानता दी। इसे अपनी-अपनी रचनाओं के द्वारा चित्रित किया। धार्मिक उन्माद और आडम्बर का विरोध कर उन्होंने मन की पवित्रता, सदाचार और समता पर बल दिया था।
निर्गुणधारा की दो शाखाएँ हैं :
(क) ज्ञानाश्रयी शाखा
(ख) प्रेमाश्रयी शाखा।

(क) ज्ञानाश्रयी शाखा : इस शाखा के सभी कवि सन्त साधु कहलाए। उन सभी ने ज्ञान की चर्चा की। सन्तों ने जाति-पाँति को तिलांजलि देकर सबके लिए भक्ति का मार्ग खोल दिया।
विशेषताएँ :
ज्ञानाश्रयी शाखा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. नाम की उपासना पर अधिक जोर दिया गया।
  2. गुरुः को भगवान से भी अधिक बढ़कर बताया गया।
  3. आडम्बरों का खंडन किया गया।
  4. सदाचार और साधना को महत्त्व दिया गया।
  5. जाति-पांति के बन्धन का विरोध किया गया।
  6. भाषा साहित्यिक न होकर सधुक्कड़ी थी।

प्रमुख कवि : शाखा के प्रमुख कवि कबीर, रैदास, धर्मदास, गुरुनानक, दादूदयाल, सुन्दरदास और मलूकदास आदि हैं।

(ख) प्रेमाश्रयी शाखा-‘सूफी’ शब्द की उत्पत्ति ‘सोफिया’ अथवा ‘सफा’ शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है क्रमशः ज्ञान अथवा शुद्ध एवं पवित्र । एक अन्य मत के अनुसार सूफी शब्द का सम्बन्ध ‘सूफ’ से है जिसका अर्थ सूफी लोग सफेद ऊन से बने हुए चोंगे पहनते थे। उनका आचरण शुद्ध होता था। प्रेमाश्रयी शाखा के कवि.सूफी संन्त थे। इन कवियों ने मुक्ति प्रेम को महत्व दिया है। उन्होंने बतलाया कि प्रेम की साधना के लिए गुरु का सहयोग अनिवार्य है।

विशेषताएँ : प्रेमाश्रयी शाखा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं.

  1. प्रेम की.पीर की व्यंजना अधिक है।
  2. प्रेमाश्रयीं सूफी काव्य, प्रबन्धात्मक है।
  3. इनकी भाषा अवधी है।।
  4. दोहा, चौपाई. की प्रधानता है।
  5. इन कवियों ने भारतीय लोक जीवन में प्रचलित कथाओं को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है।
  6. कथानक में रूढ़ियों के प्रयोग हैं
  7. भारतीय और ईरानी पद्धति का समन्वय है।
  8. लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है।

प्रमुख कवि : कुतुबन, मंझन, जायसी, उसमान, कासिम, नूर-मोहम्मद और फाजिल शाह आदि।

हिन्दी साहित्य का इतिहास सगुण भक्ति काव्य-धारा

प्रश्न 5.
सगुण भक्ति काव्य-धारा का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सगुण भक्ति काव्य-धारा के उपासकों का राम और कृष्ण अवतार और लीला पर अधिक आग्रह रहा है। इस धारा के प्रमुख कवि तुलसी और सूर हुए हैं और उन्होंने अपने रचनाओं द्वारा मध्ययुगीन साहित्य का चहुँमुखी विकास किया है। सगुण भक्ति धारा को दो उपशाखाओं में विभाजित किया गया है :
(क) रामभक्ति शाखा : निर्गुण और सगुण दोनों धाराओं के कवियों ने राम की उपासना की है। हिन्दी क्षेत्र के रामभक्त कवियों का सम्बन्ध रामानन्द से है। रामानन्द, राघवानन्द के शिष्य एवं रामानुजाचार्य की परम्परा के आचार्य थे। वे अत्यन्त उदार गुरु थे। उनके शिष्य सभी वर्गों के लोग थे।

विशेषताएं-

  1. राम के स्वरूप को परब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठा दी गई। .
  2. यह काव्य प्रधानतः लोकमंगल और सामाजिक मर्यादा को महत्त्व दिया गया।
  3. यह धारा प्रायः सभी काव्य रूपों, छन्दों और लोकगीतों पर आधारित हैं।
  4. वैष्णव और शैव सम्प्रदायों में लाने का प्रयास परस्पर एकता लाने का प्रयास किया गया।
  5. रामभक्तों के आराध्य देव राम विष्णु के अवतार हैं और परम ब्रह्म हैं। राम की शक्ति, शील और सौन्दर्य को लौकिक-पारलौकिक रूप में चित्रित किया गया।
  6. इस काव्य धारा में प्रायः सभी काव्य-शैलियों के प्रयोग किए गए-जैसे-छप्पयपद्धति, गीति पद्धति, कवित्त सवैया पद्धति, दोहा-चौपाई पद्धति आदि।
  7. इस काव्य धारा में नवों रसों के प्रयोग हुए हैं।
  8. इस काव्य धारा में मुख्य रूप से अनुप्रास रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, विशेषोक्ति आदि अलंकार हैं।
  9. इस धारा के कवियों ने अवधी और ब्रज दोनों ही भाषाओं का प्रयोग किया है।

प्रमुख कवि : तुलसीदास, नाभादास, प्राणचन्द चौहान, हृदयराम, अग्रदास और बाल आली आदि।

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(ख) कृष्ण भक्ति शाखा : कृष्ण भक्ति शाखा के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य थे। आचार्य वल्लभ ने कृष्ण को ही परब्रह्म पुरुषोत्तम कहा है। कृष्ण भक्त कवियों ने भगवान के लीलामय मधुर रूप का वर्णन किया है।

विशेषताएँ-

  1. श्रीकृष्ण को साकार और निर्गुण ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया।
  2. भागवद् पुराण को आधार बनाकर कृष्ण चरित्र को चित्रित किया गया।
  3. ब्रह्म के लोक रक्षक एवं लोक रंजक रूप की स्थापना।
  4. रहस्यवादी कविता का प्रारम्भ।
  5. प्रकृति-चित्रण की अधिकता रही।
  6. व्यक्तिगत साधना और लोकसाधना का सामंजस्य प्रस्तुत किया गया।
  7. सामाजिक पक्ष को महत्त्व दिया गया।
  8. प्रबन्ध, मुक्तक तथा खण्ड दोनों ही प्रकार के काव्य की रचना हुई।
  9. ब्रज और अवधी दोनों भाषा में काव्य-रचना।
  10. इस काव्य धारा में चौपाई, दोहा, सवैया, कवित्त, हरिगीतिका आदि छन्द हैं।
  11. शैली मुख्य रूप से गेय है।
  12. उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिशयोक्ति आदि अलंकार हैं।
  13. शृंगार, शान्त, अद्भुत आदि इस प्रवाहित हुए हैं।

प्रमुख कविः सुरदास, कुंभनदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, नन्ददास, मीरा, रसखान आदि।।

हिन्दी साहित्य का इतिहास उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)

प्रश्न 6.
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) का सामान्य परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हिन्दी साहित्य के रीतिकाल का युग सामन्तों और राजाओं का युग था। फलस्वरूप इस काल के अधिकांश कवि राजाश्रित थे। यही कारण है कि उनकी रचनाओं की प्रमुख प्रवृत्ति रीति निरूपण और श्रृंगार थी। रीतिकाल के कवियों की यह भी विशेषता थी कि उन्होंने प्रायः काव्यशास्त्र के लक्षणों को समझाने के लिए काव्य रचना की। उन्होंने रस, छन्द, अलंकार आदि का विवेचन करने वाले ग्रन्थों को रीतिग्रन्थ कहा जाता है। ऐसे रीतिग्रन्थों की भरमार के कारण ही इस युग को रीतिकाल कहा गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस काल को उत्तर मध्यकाल अथवा रीतिकाल कहा है। उनके इस नामकरण को ध्यान रखकर व अपने अध्ययन-मनन के द्वारा कुछ विद्वानों ने शृंगार काल, अलंकृत काल, काव्यकला काल और रीति शृंगार काल आदि नाम दिए। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि केशव, भूषण, पद्माकर, बिहारी और बोधा का सम्बन्ध मध्यप्रदेश से रहा है। इन कवियों के बगैर रीतिकाल अधूरा-सा लगता है। इसीलिए रीतिकाल को मध्यप्रदेश की देन कहा जाता है।

रीतिकाल में तीन धाराएँ प्रवाहित हुई है। जिन कवियों ने काव्य-रीतियों का पालन करते हुए अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की उनकी इस धारा को रीतिबद्ध काव्य धारा कहा गया। इस प्रकार धारा के कवियों में केशव, सेनापति, देव, भूषण, पद्माकर मतिराम आदि हैं। इस रीतिबद्ध काव्य धारा के समानान्तर इसमें प्रेम और सौन्दर्य वर्णन की एक ऐसी धारा भी प्रवाहित हुई। उसने रीति के पालन की प्रायः उपेक्षा की। इस धारा के कवियों में घनानन्द, बोधा, ठाकुर, और आलम आदि का नाम उल्लेखनीय है। यह धारा रीति मुक्त काव्य धारा के नाम से जानी गई। काल में एक तीसरी धारा भी प्रवाहित हुई। उसे रीति सिद्ध काव्य धारा नाम दिया गया। बिहारी इस रीति सिद्ध धारा के कवि कहे गए हैं। इस प्रकार रीतिकालीन काव्य की तीन धाराएं हैं :
1. रीतिबद्ध काव्य धारा
2. रीतिमुक्त काव्यधारा
3. रीतिसिद्ध धारा प्रधान है।

विशेषताएँ-

  1. लक्षण ग्रन्थों की प्रधानता।
  2. इस काल के काव्य में शृंगार रस के दोनों रूपों की प्रधानता रही।
  3. प्रकृति-चित्रण उद्दीपन में किया गया।
  4. भक्ति-भावना (राधा-कृष्ण) को स्थान दिया गया।
  5. नीति-उपदेश को प्रमुखता दी गई।
  6. मुक्तक कविता होने के कारण कवित्त, सवैया, दोहे आदि छन्दों को कवियों ने अधिक अपनाया।
  7. राजा के आश्रितता के कारण कवियों में मौलिकता का अभाव रहा।
  8. भाषा ब्रजभाषा रही।।

प्रमुख कवि : केशव दास, चिन्तामणि, मतिराम, देव, रसलीन, प्रताप सिंह, पद्माकर, जसवन्त सिंह, श्रीपति, भिखारीदास, रसिक गोविन्द, बिहारी और बोधा आदि।

हिन्दी साहित्य का इतिहास आधुनिक काल

प्रश्न 7.
आधुनिक काल का सामान्य परिचय देते हुए उसके भेद बताइए।
उत्तर
आधुनिक काल का उदय रीतिकालीन मूल्यहीनता, रूढ़िवादिता जड़ता,और नैतिक हीनता के विरोध में हुआ। इस प्रकार जो नया क्रम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आरम्भ हुआ, उसे आधुनिक काल कहा गया।
भेद-प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर आधुनिक काल को निम्नलिखित युगों में बाँटा जा सकता है

  1. भारतेन्दु युग (पुनर्जागरण काल) : सन् 1857 से 1900 ई.
  2. द्विवेदी युग (जागरण सुधार काल): सन् 1900 से 1918 ई.
  3. छायावाद युग : सन् 1918 से 1938 ई.
  4. छायावादोत्तर काल
    • प्रगति प्रयोगकाल : सन् 1938 से 1953 ई.
    • नई कविता या नवलेखक काल : सन् 1953 से अब तक

1. भारतेन्दु युग:
बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र हिन्दी युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी की प्रत्येक विधा का सूत्रपात किया। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना हो जाने से हिन्दी कविता ने नई मोड़ ली। उस हमारे देश में सामाजिक सुधार व राष्ट्रीय उत्थान के प्रयास जोर पकड़ रहे थे। राजा राममोहन राय और स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों ने रूढ़िवाद को दूर किया। रीतिकालीन काव्य परम्पराएं विलीन होने लगीं। सन 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीयता की तीव्र लहर फैला दी। नए विचार, नई शैली और नई भाषा का आन्दोलन चल पड़ा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पूर्वाग्रह के विरोधी थे। उन्हीं से हिन्दी कविता का वर्तमान युग प्रारम्भ होता है। भारतेन्दु हिन्दी को स्वस्थ रूप देने के लिए ‘भारतेन्दु मण्डल’ की स्थापना की। भारतेन्दु तथा भारतेन्दु मण्डल के कवियों में राष्ट्रीयता और देश-प्रेम का तीव्र स्वर सुनाई पड़ता है। भारतेन्दु युग के कवियों में .अम्बिकादत्त व्यास, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी और बद्रीनारायण चौधरी प्रमुख हैं।

2. द्विवेदी युग :
भारतेन्दु युग के बाद द्विवेदी युग का उदय हुआ। द्विवेदी युग के काव्य में राष्ट्रीयता और सामाजिकता की प्रवृत्ति अधिक तीव्र,थी। द्विवेदी युग में ब्रज भाषा के स्थान पर काव्य में खड़ी बोली सुशोभित हो गई। इस प्रकार खड़ी बोली के रचनाकारों में आचार्य पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त, सियाराम शरण गुप्त, राम चरित उपाध्याय, नाथूराम शर्मा शंकर, रामनरेश त्रिपाठी, जगन्नाथदास रत्नाकर, सत्य नारायण, कविरत्न, श्रीधर पाठक, लोचन प्रसाद पांडेय, डॉ. गोपाल शरण सिंह, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, आदि द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। द्विवेदी युग की कविता पर स्वतन्त्रता आन्दोलन और गाँधी विचारधारा का विशेष प्रभाव पड़ा। प्रिय प्रवास और साकेत इस युग के प्रमुख महाकाव्य हैं।

3. छायावाद और छायावादोत्तर युग :
द्विवेदी युग में द्विवेदी युग की प्रतिक्रियास्वरूप ही छायावाद और रहस्यवाद हिन्दी काव्य क्षेत्र में आया। प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी का नाम इस क्षेत्र में सर्वाधिक उल्लेखनीय है। छायावादी युग में प्रकृति को आलम्बन के रूप में ग्रहण किया गया और गीत काव्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। छायावादी कवियों ने कविता को छन्द के नियमों से मुक्त किया। कामायनी, छायावादी काव्यधारा का प्रमुख काव्य है। आधुनिक काल में सत्यनारायण कविरत्न, जगन्नाथ दास रत्नाकर और वियोगी हरि ने ब्रज भाषा में सरस काव्य की रचनाएँ कीं।

प्रगतिवाद, छायावाद की प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दी प्रगतिवाद का उदय हुआ। राष्ट्रीयता, मानवीय संवेदना, समाज सुधार, समाजवादी व्यवस्था आदि क्रांतिवादी काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं। किसान और मजदूरों की समस्याओं के समाधान में कविगण रूसी-साहित्य से भी प्रभावित हैं। राजनीति का साम्यवाद ही साहित्य में प्रगतिवाद बन गया है। प्रमुख रूप से प्रगतिवादी कवियों में डॉ. रामविलास शर्मा, सुमित्रानन्दन पंत, निराला, नागार्जुन, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, नरेन्द्र शर्मा, केदारनाथ अग्रवाल आदि हैं।

प्रयोगवाद:
अज्ञेय के नेतृत्व में प्रयोगवाद की नवीनतम धारा भी काव्य क्षेत्र में प्रवाहित हुई। इसके प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, भवानी प्रसाद मिश्र भारतभूषण अग्रवाल, नेमिचन्द्र जैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, नरेश मेहता, शमशेरबहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, रमेश कुंतल मेघ आदि हैं। राष्ट्रीय विचारधारा के कवियों में पं. माखन लाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ और रामधारी सिंह ‘दिनकर’ आदि प्रमुख हैं।

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प्रश्न 8.
गद्य की प्रमुख विधाएँ बतलाइए और उन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर
गद्य की प्रमुख विधाएँ : आचार्य रामचन्द्र सहित सभी आलोचकों ने आधुनिक काल को गद्यकाल की संज्ञा दी है। यह इसलिए कि इस काल में गद्य की शुरुआत हुई। यह ध्यातव्य है कि इस काल में पद्य साहित्य भी अधिक मात्रा में रचा गया। इसलिए इसे गद्यकाल के स्थान पर आधुनिक काल कहना अधिक समीचीन प्रतीत होता है।

गद्य साहित्य का विकास वैसे तो हिन्दी साहित्य के उदय के साथ ही माना जा सकता है। जो प्रामाणिक नहीं है। इसलिए लिखित गद्य साहित्य का प्रादुर्भाव 1850 के बाद स्वीकार किया जाता है। 1850 के पूर्व पद्य साहित्य ही लिखा जाता था। गद्य साहित्य ने केवल एक शताब्दी में ही विकास के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं और यही कारण है कि आज गद्य साहित्य की अनेक विधाओं से हम परिचित हैं। गद्य का अर्थ है बोलना, बताना या कहना। अतएव दैनिक जीवन में गद्य का ही प्रयोग होता है। गद्य की प्रमुख विधाएँ निम्नलिखित हैं :

  1. निबन्ध
  2. नाटक
  3. कहानी
  4. उपन्यास
  5. एकांकी
  6. रेखाचित्र
  7. संस्मरण
  8. रिपोर्ताज
  9. यात्रा-वृत्तान्त
  10. जीवनी।

1. निबन्ध
निबन्ध का अर्थ है : बन्धन युक्त करना अथवा बाँधना। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि निबन्ध में भावों तथा विचारों को सुव्यवस्थित, सुसंगठित रूप से बाँधा जाता है। इसके द्वारा विषय का गम्भीर विवेचन तथा नवीन तथ्यों के अन्वेषण को प्रस्तुत किया गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-“यदि पद्य कवियों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।” बाबू गुलाब राय के विचार में निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें सीमित आकार के भीतर, किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन, एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता, तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया है।

निबन्धकार को किसी भी बात को स्वतन्त्रतापूर्वक प्रस्तुत करने की स्वतन्त्रता रहती है। इसमें निबन्धकार का व्यक्तित्व ही उसका प्रमुख तत्त्व होता है।

निबन्ध सामान्यतः चार प्रकार के होते हैं

  1. विवरणात्मक
  2. वर्णनात्मक
  3. विचारात्मक
  4. भावात्मक।

हिन्दी में निबन्ध का विकास, आधुनिक काल में ही हुआ है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, सरदार पूर्ण सिंह, बाबू श्याम सुन्दर दास, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नन्द दुलारे वाजपेयी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की गणना हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकारों में की जाती है।

2. नाटक :
नाटक दृश्य काव्य श्रव्य काव्य दोनों ही है। इसका प्रदर्शन रंगमंच पर ही हो सकता है। जिसे दर्शक-श्रोता देखकर-सुनकर रसमग्न होते हैं। नाटक एक ऐसा साहित्य रूप है जिसमें रंगमंच पर पात्रों के द्वारा किसी कथा का प्रदर्शन होता है। यह प्रदर्शन अभिनय, दृश्य सज्जा, संवाद, नृत्य, गीत आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नाटक के सात तत्त्व माने जाते हैं :

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल और वातावरण
  5. अभिनेयता एवं रंगमंच निर्देश
  6. भाषा-शैली
  7. उद्देश्य।

हिन्दी के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु, हरिश्चन्द्र, लाला श्रीनिवासदास, राधाकृष्णदास, किशोरीलाल गोस्वामी बालकृष्णभट्ट प्रतापनारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण प्रेमी, गोविन्द वल्लभ पन्त, जी.पी श्रीवास्तव, लक्ष्मी नारायण मिश्र, वृन्दावनलाल वर्मा, सेठ गोविन्ददास, उदयशंकर भट्ट, धर्मवीर भारती, उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

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3. एकांकी:
एकांकी एक ही अंक का नाटक होता है इसलिए इसे एकांकी कहते हैं, पर इसके एक से अधिक दृश्य हो सकते हैं, पर एकांकी, नाटक का लघु संस्कृरण मात्र न होकर, अपनी निजी सत्ता रखने वाली साहित्य की एक स्वतन्त्र विधा होती है। डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार एकांकी में एक ही घटना होती है और वह नाटकीय कौशल से कौतूहल का संचय करते हुए चरमसीमा तक पहुँचती है। इसमें कोई गौण प्रसंग नहीं रहता है। पात्र सीमित होते हैं। कथावस्तु भी स्पष्ट और कौतूहल से युक्त होती है, उसमें विस्तार के लिए अवकाश नहीं होता। एकांकी के सात तत्त्व हैं

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. कथोपथन
  4. देशकाल एवं वातावरण
  5. अभिनेयता एवं रंगमंच निर्देश
  6. भाषा-शैली
  7. उद्देश्य।

हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों में भारतेन्दु हरिचन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, भुवनेश्वर, सेठ गोविन्ददास, रामनरेश त्रिपाठी, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, डॉ. रामकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उपेन्द्र नाथ अश्क जगदीश चन्द्र माथुर भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावन लाल वर्मा, भारत भूषण अग्रवाल, नरेश मेहता, चिरंजीत, मोहन राकेश, विष्णु ‘प्रभाकर’, प्रभाकर माचवे आदि का नाम प्रमुखता के साथ लिया जा सकता है।

4. कहानी :
कहानी को परिभाषित करते हुए बाबू गुलाब राय लिखते हैं-“छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है, जिसमें प्रभावों वाली व्यक्ति केन्द्रित घटना या घटनाओं का आवश्यक परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्याशित ढंग से उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो”। कहानी के छः तत्त्व होते हैं :

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. संवाद
  4. देशकाल व वातावरण
  5. शैली
  6. उद्देश्य।

कहानी में एक ही प्रमुख पात्र के इर्द-गिर्द सारी घटना घूमती रहती है। इसका आकार संक्षिप्त होता है। लघुता और तीव्रता कहानी कला की मुख्य विशेषता है।
तत्त्वों के आधार पर कहानी के चार प्रमुख भेद हैं :

  1. घटना प्रधान
  2. वातावरण प्रधान
  3. चरित्र-प्रधान
  4. भाव-प्रधान।

हिन्दी कहानीकारों में भारतेन्दु, मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, फणीश्वर नाथ रेणु, सुदर्शन, जैनेन्द्र, अज्ञेय, कमेलश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, जैनेन्द्र कुमार, इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, भगवती चरण वर्मा, यशपाल, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, अमरकान्त, मालती जोशी, निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, महेश कटारे, उदय प्रकाश आदि का योगदान प्रशंसनीय रहा है।

5. उपन्यास :
‘उपन्यसेत इति उपन्यास’ परिभाषा के अनुसार उपन्यास शब्द का अर्थ है-सामने रखना है। डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार-“युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य काव्य उपन्यास कहलाता है।” मुंशी प्रेमचन्द का कथन है-मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है। उपन्यास के छह तत्त्व पाए जाते हैं

  1. कथावस्तु
  2. चरित्र-चित्रण
  3. संवाद
  4. देशकाल या वातावरण
  5. शैली
  6. उद्देश्य।

हिन्दी में उपन्यास लेखन तो भारतेन्दु युग से ही प्रारम्भ हो गया था, लेकिन प्रेमचन्द्र (1880-1936 ई.) के उपन्यासों में इस विधा ने अभूतपूर्व व्यापकता और गम्भीरता प्राप्त की। प्रेमचन्द की संवेदना अत्यन्त व्यापक थी। उपन्यास विधा के चरम उत्कर्ष के लिए जिस सहज भाषा-शैली की आवश्यकता होती है वह भी प्रेमचन्द के पास थी। मुंशी प्रेमचन्द को तो उपन्यास सम्राट की संज्ञा दी गई है।

हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा, आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचन्द से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। हिन्दी के उपन्यासकारों में श्रीनिवास दास, राधाकृष्णदास, देवकीनंदन खत्री, गोपाल राय गहपरी, किशोरी लाल गोस्वामी मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावनलाल वर्मा, अमृतलाल नागर, जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी, नागार्जुन, भगवती चरण वर्मा, भगवती प्रसाद वाजपेयी, फणीश्वरनाथ रेणु, शैलेश मटियानी, शिव प्रसाद सिंह, अज्ञेय, यशपाल, राहुल सांकृत्यायन, चतुरसेन शास्त्री, भीष्म साहनी, कृष्णा सोवती, राही मासूम रजा, मनोहर श्याम जोशी, यशपाल, श्रीलाल शुक्ल, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर आदि के नाम महत्त्वपूर्ण है।

6. जीवनी
जीवन आधुनिक गद्य-विधा की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें सम्पूर्ण जीवन की व्याख्या प्रत्यक्ष एक वास्तविक रूप में मिलती है। जीवनी लेखक अपने चरित्र नायक , के अन्तर और बाह्य स्वरूप का चित्रण कलात्मक ढंग से करता है। जीवनी लेखक अपने चरित्र नायक के जीवन का रोचक ढंग से चित्रण प्रस्तुत करता है ताकि प्रस्तुत घटनाओं के प्रकाश में उसका व्यक्तित्व उभर सके।

हिन्दी के प्रमुख जीवनी लेखक प्रताप नारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, पण्डित बनारसीदास, सत्यदेव विद्यालंकार, सेठ गोविन्द दास, बाबू श्यामसुन्दर दास, हरिभाऊ उपाध्याय, काका कालेलकर, जैनेन्द कुमार, राहुल सांस्कृत्यायन, अज्ञेय, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, रामवृक्ष बेनीपुर, महादेवी वर्मा, अमृतराय, डॉ. रामविलास शर्मा, विष्णु प्रभाकर, विष्णु चन्द्र वर्मा, शान्ति जोशी आदि।

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7. आत्म कथा :
आत्मकथा किसी व्यक्ति की स्वलिखित जीवन-गाथा है। आत्मकथा लिखकर लेखक आत्म-परिक्षण एवं आत्म-परिष्कार करना चाहता है, जिसमें उसके अनुभवों का लाभ संसार के अन्य लोग भी ले सकें। हिन्दी की प्रमुख आत्मकथाएं इस प्रकार हैं :

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द – कुछ आप बीती, कुछ जग बीती
  2. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी – मेरी जीवन गाथा
  3. डॉ. श्याम सुन्दर दास – मेरी आत्मा कहानी
  4. बाबू गुलाबराय – मेरी असफलताएँ
  5. राहुल सांस्कृत्यायन – मेरी जीवन यात्रा
  6. आचार्य चतुरसेन शास्त्री – मेरी आत्म कहानी
  7. स्वामी श्रद्धानन्द – कल्याण मार्ग का पथिक
  8. भाई परमानन्द – आप बीती
  9. हरिवंशराय बच्चन – क्या भूलूँ क्या याद करूँ
  10. जवाहरलाल नेहरू – मेरी कहानी
  11. राजेन्द्र प्रसाद – आत्मकथा
  12. यशपाल – सिंहावलोकन
  13. डॉ. रामविलास शर्मा – मैं क्रान्तिकारी कैसे बना
  14. भवानी दयाल संन्यासी – प्रवासी की कहानी
  15. राजाराम – मेरी कहानी
  16.  ओमप्रकाश वाल्मीकी – जूठन।

8. संस्मरण :
जीवनी का एक अन्य रूप संस्मरण है। संस्मरण का अर्थ है-सम्यक स्मरण। इस विधा में लेखक स्वयं अपनी अनुभूति किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना का आत्मीयता तथा कलात्मकता के साथ विवरण प्रस्तुत करता है। इसलिए आत्मकथा की अपेक्षा संस्मरण लिखना आसान होता है। संस्मरण का सम्बन्ध प्रायः महापुरुषों से होता है संस्मरण लेखक जब अपने विषय में लिखता है तो उसकी रचना आत्मकथा में प्रक होती है और जब दूसरे के विषय में लिखता है तो जीवनी कहलाती है।

हिन्दी में संस्मरण लेखन का प्रथम श्रेय श्री पद्म सिंह शर्मा को है। राहुर सांस्कृत्यायन, बनारसीदास चतुर्वेदी, अज्ञेय, देवेन्द्र सत्यार्थी, डॉ. नगेन्द्र, यशपाल, श्र रामकृष्णदास तथा रामवृक्ष बेनीपुरी ने अनेक संस्मरण लिखे हैं। हिन्दी के कुछ उल्लेखनीय संस्मरण निम्नलिखित हैं

  1. देवेन्द्र सत्यार्थी-राहुल सांस्कृत्यायन
  2. श्रीराम शर्मा-खूनी बँटवारा
  3. मुंशी महेश प्रसाद-मेरी ईरान यात्रा
  4. सत्यदेव परिव्राजक-अमरीका भ्रमण
  5. भदन्त आनन्द कौसल्यायन-जो भूल न सका
  6. शिवरानी प्रेमचन्द-प्रेमचन्द : घर में
  7. कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ -भूले हुए चेहरे
  8. महादेवी वर्मा-‘स्मृति की रेखाएँ’ व ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’।

इनके अतिरिक्त संस्मरण साहित्य का बहुत बड़ा भाग अभिनन्दन ग्रन्थों में संकलित हैं।

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.2


प्रश्न 1 से 15 तक निम्नलिखित असमिकाओं को आलेखीय विधि से हल कीजिए :

प्रश्न 1.
x ≥ 3, y ≥ 2
हल:
x ≥ 3, y ≥ 2
(i) सरल रेखा x = 3 बिन्दु (3, 0) और (3, 2) से होकर जाती है।
x ≥ 3 में x = 0 रखने पर 0 ≥ 3, यह सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) x ≥ 3 के क्षेत्र में नहीं है।
(ii) सरल रेखा y = 2 बिन्दु (0, 2) और (3, 2) से होकर जाती है।
y ≥ 2 में y = 0 रखने पर
0 ≥ 2, यह सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है।
x ≥ 3 और y ≥ 2 का हल उभयनिष्ठ छायांकित क्षेत्र से दर्शाया गया है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-1

प्रश्न 2.
3x + 2y ≤ 12, x ≥ 1, y ≥ 2.
हल:
दी हुई रैखिक असमिकाएँ 3x + 2y ≤ 12, x ≥ 1, y ≥ 2
(i) रेखा 3x + 2y = 12 बिन्दु (2, 0) और (0, 6) से होकर जाती है।
3x + 2y ≤ 12 में x = 0, y = 0 रखने पर
0 + 0 ≤ 12, अर्थात् 0 ≤ 12 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में है।
3x + 2y ≤ 12 के हल में वे सभी बिन्दु हैं जो AB के नीचे है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-2
(ii) रेखा x = 1 बिन्दु B(1, 0), Q(1, 2) से होकर जाती है
x ≥ 1 में x = 0 रखने पर
0 ≥ 1, यह सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में नहीं है।
∴ x ≥ 1 का हल के सभी बिन्दु है जो है जो x = 1 के दाईं ओर है।
(iii) रेखा y = 2, बिन्दु C(0, 2) और D(3, 2) से होकर जाती है।
y ≥ 2 में y = 0 रखने पर 0 ≥ 2, यह सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है।
y ≥ 2 का हल वे सब बिन्दु हैं जो y = 2 के ऊपर हैं।
तीनों असमिकाओं का हल इसके उभयनिष्ठ क्षेत्र ∆PQR के सभी बिन्दु हैं।

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प्रश्न 3.
2x + y ≥ 6, 3x + 4y ≤ 12.
हल:
दी हुई असमिकाएँ 2x + y ≥ 6, 3x + 4y ≤ 12
(i) सरल रेखा 2x + y = 6 बिन्दु (3, 0) तथा (0, 6) से होकर जाती है।
2x + y ≥ 6 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 6 जो सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है। 2x +y ≥ 6 का हल वे सभी बिन्दु हैं जो 2x + y = 6 के ऊपर है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-3
(ii) सरल रेखा 3x + 4y = 12 बिन्दु D(4,0) और C(0, 3) से होकर जाती है।
3x + 4y ≤ 12 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 + 0 ≤ 12, जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में है।
अत: 3x + 4y ≤ 12 का हल वे सब बिन्दु हैं जो रेखा CD के नीचे हैं।
इस प्रकार 2x + y ≥ 6, 3x + 4y ≤ 12 का हल वह उभयनिष्ठ क्षेत्र है जो 2x + y = 6 के ऊपर और 3x + 4y = 12 के नीचे है। यह चित्र में उभयनिष्ठ क्षेत्र द्वारा दर्शाया गया है।

प्रश्न 4.
x + y > 4, 2x – y > 0.
हल:
दी हुई रैखिक असमिकाएँ x + y > 4, 2x – y > 0,
(i) रेखा x + y = 4, बिन्दु (4, 0) और (0, 4) से होकर जाती है। +
अब x + y > 4 में x = 0 y = 0 रखने पर, हमें प्राप्त हुआ 0 > 4 जो सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है।
x + y >4 का हल वे सब बिन्दु हैं जो रेखा AB के ऊपर है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-4
(ii) रेखा 2x – y = 0, बिन्दु 0 (0, 0) और D(1, 2) से होकर जाती है।
2x – y > 0 में x = 1, y = 0 रखते हुए 2 > 0, जो सत्य है।
∴ बिन्दु P(1, 0), 2x – y > 0 के क्षेत्र में है।
∴ 2x – y > 0 का हल वे सब बिन्दु हैं जो OD के नीचे हैं।

प्रश्न 5.
2x – y > 1,x – 2y < – 1. हल: दी हुई रैखिक असमिकाएँ 2x – y > 1 और x – 2y < – 1 (i) सरल रेखा 2x – y = 1 बिन्दु \(\left(\frac{1}{2}, 0\right)\) और (0, – 1) से होकर जाती है। 2x – y > 1 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 > 1, यह सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0), 2x – y > 1 के क्षेत्र में नहीं है।
⇒ 2x – y > 1 का हल वे सब बिन्दु हैं जो रेखा AB के नीचे है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-5
(ii) रेखा x – 2y = – 1 बिन्दु C(-1, 0) और D\(\left(0, \frac{1}{2}\right)\) से होकर जाती है।
x – 2y < – 1 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 < – 1, यह सत्य नहीं है। ∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है। ⇒ 2x – y > 1 और x – 2y < – 1 का हल वह उभयनिष्ठ भाग QPR है जो AB के नीचे और CD के ऊपर है।

प्रश्न 6. x + y ≤ 6, x + y ≥ 4. हल: दी हुई रैखिक असमिकाएँ x + y ≤ 6 और x + y ≥ 4 है। (i) रेखा x + y = 6, बिन्दु A(6, 0), B(0, 6) से होकर जाती है। x + y ≤ 6 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 + 0 ≤ 6 अर्थात् 0 ≤ 6 जो सत्य है ∴ मूल बिन्दु (0, 0), x + y ≤ 6 के क्षेत्र में है। (ii) रेखा x + y = 4, बिन्दु C(4, 0) और D(0, 4) से होकर जाती है। x + y ≥ 4 में x = 0, y = 0 रखने पर, 0 ≥ 4, यह सत्य नहीं है। ∴ मूल बिन्दु (0, 0) x + y ≥ 4 में नहीं है। इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CD के ऊपर है। दी हुई आकृति में छायांकित क्षेत्र x + y ≤ 6 और x + y ≥ 4 के हल को दर्शाता है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-6

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प्रश्न 7. 2x + y ≥ 8, x + 2y ≥ 10. हल: दी हुई रैखिक असमिकाएँ 2x + y ≥ 8, x + 2y ≥ 10 (i) रेखा 2x + y = 8 बिन्दु A(4,0); B(0, 8) से होकर जाती है। 2x + y ≥ 8 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≥ 8 जो असत्य है। ∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है। ⇒ 2x + y ≥ 8 का हल वे सब बिन्दु हैं जो रेखा AB के ऊपर है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-7
(ii) रेखा x + 2y = 10, बिन्दु C(10, 0) और D(0, 5) से होकर जाती है। x + 2y ≥ 10 में x = 0, y = 0 रखने पर, 0 ≥ 10, यह सत्य नहीं है। ∴ मूल बिन्दु (0, 0) x + 2y ≥ 10 में नहीं है। ⇒ x + 2y ≥ के सभी बिन्दु CD के ऊपर हैं। अर्थात् 2x + y ≥ 8, x + 2y ≥ 10 का हल छायांकित उभयनिष्ठ भाग BPC है। प्रश्न 8. x + y ≤ 9, y ≥ x, x ≥ 0. हल: दी हुई रैखिक असमिकाएँ x + y ≤ 9, y ≥ x, x ≥ 0 (i) सरल रेखा x + y = 9 बिन्दु A(9, 0) और B(0, 9) से होकर जाती है। x + y ≤ 9 में x = 0, y = 0 रखते हुए 0 + 0 ≤ 9 अर्थात् 0 ≤ 9 जो सत्य है। ∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में है। ⇒ x + y ≤ 9 के बिन्दु AB रेखा के नीचे हैं। (ii) सरल रेखा y = x बिन्दु O(0, 0) और C(3, 3) से होकर जाती है। y > x में x = 0, y = 3 रखने पर, 3 > 0 जो सत्य है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-8
∴ बिन्दु (3, 0) इसके क्षेत्र में है।
⇒ y > x के सभी बिन्दु y = x के ऊपर हैं।
(iii) सरल रेखा x = 0, y- अक्ष को निरूपित करती है।
x ≥ 0 में x = 3, y = 0 रखने पर 3 ≥ 0 जो सत्य है।
⇒ x ≥ 0 के सभी बिन्दु x = 0 के दाईं ओर है।
आकृति में उभयनिष्ठ छायांकित क्षेत्र असमिकाओं x + y ≥ 9, y > x, x ≥ 0 का हल है।

प्रश्न 9.
5x + 4y ≤ 20,x ≥ 1,y ≥ 2.
हल:
दी हुई रैखिक असमिकाएँ 5x + 4y ≤ 20, x ≥ 1,y ≥ 2
सरल रेखा 5x + 4y = 20 बिन्दु A (4,0) और B (0, 5) से होकर जाती हैं। 5x + 4y ≤ 20 में x = 0, y = 0 रखने पर, 0 + 0 ≤ 20 अर्थात् 0 ≤ 20 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु (0, 0) इसके क्षेत्र में है।
5x + 4y ≤ 20 के सभी बिन्दु रेखा AB के नीचे है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-9
(ii) x = 1 बिन्दु C(1 , 0), D(1, 2) से होकर जाती है।
x ≥ 1 में x = 0 रखने पर 0 ≥ 1 जो सत्य नहीं है।
∴ x ≥ 1 के सभी बिन्दु x = 1 के दायीं ओर होते हैं।
(iii) y = 2, बिन्दु E(0, 2) और F(4, 2) से होकर जाती है।
y ≥ 2 में y = 0. रखने पर 0 ≥ 2 सत्य नहीं है।
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में नहीं है।
y ≥ 2 का हल वे सब बिन्दु हैं जो EF के ऊपर हैं।
दी हुई असमिकाओं का हल आकृति में उभयनिष्ठ PDR छायांकित क्षेत्र द्वारा दर्शाया गया है।

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प्रश्न 10.
3x + 4y ≤ 60, x + 3y ≤ 30, x ≥ 0, y ≥ 0.
हल:
दी हुई असमिकाएँ : 3x + 4y ≤ 60, x + 3y ≤ 30, x ≥ 0, y ≥ 0.
(i) रेखा 3x + 4y = 60 बिन्दु A(20, 0) तथा B(0, 15) से होकर जाती है।
असमिका 3x + 4y ≤ 60 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 < 60 जो सत्य है। मूल बिन्दु इस क्षेत्र में पड़ता है। ⇒ इस असमिका का हल वे सब बिन्दु हैं जो AB के नीचे हैं।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-10
(ii) रेखा x + 3y = 30 बिन्दु C(30, 0) और D(0, 10) से होकर जाती है।, असमिका x + 3y ≤ 30 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 30 जो सत्य है। मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है। इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CD के नीचे हैं। (iii) x = 0, y-अक्ष को निरुपित करती है। x ≥ 0 में वे सब बिन्दु हैं जो y-अक्ष की दाईं ओर हैं। (iv) y = 0, x-अक्ष को निरुपित करती है। और y > 0 में वे सब बिन्दु हैं जो x-अक्ष के ऊपर हैं दी हुई असमिका का हल वे सब बिन्दु हैं जो उभयनिष्ठ क्षेत्र PDOA में आते हैं।

प्रश्न 11.
2x + y ≥ 4, x + y ≤ 3, 2x – 3y ≤ 6.
हल:
दी हुई असमिकाएँ 2x + y ≥ 4, x + y ≤ 3, 2x – 3y ≤ 6
(i) रेखा 2x + y = 4, बिन्दु A (2, 0) और B(0, 4) से होकर जाती है।
असमिका 2x + y ≥ 4 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 + 0 ≥ 4 अर्थात् 0 ≥ 4जो सत्य नहीं है। मूल बिन्दु इस क्षेत्र में नहीं है।
इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो AB के ऊपर हैं।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-11
(ii) रेखा x + 3y = 3 बिन्दु C(3, 0), D(0, 10) से होकर जाती है।
असमिका x + 3y ≤ 3 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 3 जो सत्य है।
मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है। इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CD के नीचे हैं
(iii) रेखा 2x – 3y = 6, बिन्दु C(3,0) और E(0, – 2) से होकर जाती है।
असमिका 2x – 3y ≤ 6 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 6, जो सत्य है।
मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है। इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CE के ऊपर हैं।
दी हुई असमिकाओं का हल छायांकित उभयनिष्ठ क्षेत्र AQC के सब बिन्दु हैं।

प्रश्न 12.
x – 3y ≤ 3, 3x + 4y 12, x ≥ 0, y ≥ 1.
हल:
दी हुई असमिकाएँ x – 2y ≤ 3, 3x + 4y ≥ 12, x ≥ 0,y ≥ 1
(i) रेखा x – 3y = 3 बिन्दु A(3, 0), B(0, – 1) से होकर जाती है।
असमिका x – 3y ≤ 3 में x = 0, y = 0 रखने पर, 0 ≤ 3 जो सत्य है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-12
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है।
इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो AB के ऊपर है।
(ii) रेखा 3x + 4y = 12 बिन्दु C(4, 0) और D(0, 3) से होकर जाती है।
असमिका 3x + 4y ≥ 12 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≥ 12, जो सत्य नहीं है। मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में नहीं है।
⇒ इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CD के ऊपर है।
(iii) x = 0, y-अक्ष को दर्शाती है।
x ≥ 0 का हल वे सब बिन्दु हैं जो y-अक्ष के दाईं ओर है।
(iv) रेखा y = 1 बिन्दु E(0, 1), Q(3, 1) से होकर जाती है।
असमिका y ≥ 1 का हल वे सब बिन्दु है जो संख्या y = 1 पर पड़ते हैं या इसके ऊपर हैं।
दी हुई असमिकाओं का हल वे सब बिन्दु हैं जो उभयनिष्ठ क्षेत्र PDQRS से निरूपित किया गया है।

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प्रश्न 13.
4x + 3y ≤ 60, y ≥ 2x, x ≥ 3, x, y ≥ 0.
हल:
दी हुई असमिकाएँ 4x + 3y ≤ 60, y ≥ 2x, x ≥ 3, x, y ≥ 0
(i) सरल रेखा 4x + 3y = 60 बिन्दु A(15, 0), B(0, 20) से होकर जाती है।
4x + 3y ≤ 60 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 60 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है।
⇒ इस असमिका का हल वे बिन्दु हैं जो रेखा AB या AB के नीचे होते हैं।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-13
(ii) y – 2x = 0, बिन्दु 0(0, 0) और C(5, 10) से होकर जाती है।
y – 2x ≥ 0 में x = 5, y = 0 रखने पर, 0 – 10 ≥ 0 अर्थात् -10 ≥ 0 जो सत्य नहीं है।
बिन्दु (5, 0) इसके क्षेत्र में नहीं है।
⇒ y – 2x ≥ 0 का हल वे सब बिन्दु हैं जो OC पर और OC के ऊपर हैं।
(iii) रेखा x ≥ 3 बिन्दु D(3, 0), E(3, 10) से होकर जाती है।
असमिका x ≥ 3 के हल वे बिन्दु हैं जो DE या.DE के दाईं ओर हैं।
(iv) x ≥ 0, y ≥ 0 पहले चतुर्थांश के बिन्दु हैं।
दी हुई असमिकाओं का हल उभयनिष्ठ क्षेत्र PQR पर और उसके अन्दर के बिन्दु हैं।

प्रश्न 14.
3x + 2y ≤ 150, x + 4y ≤ 80, x ≤ 15, y ≥ 0.
हल:
दी हुई असमिकाएँ 3x + 2y ≤ 150, x + 4y ≤ 80, x ≤ 15, y ≥ 0
(i) सरल रेखा 3x + 2y = 150, बिन्दु A(50, 0), B(0, 75) से होकर जाती है। असमिका 3x + 2y ≤ 150 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 150 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है।
⇒ इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो AB पर या AB से नीचे हैं।
image 14
(ii) रेखा x + 4y = 80 बिन्दु C(80, 0), D(0, 20) से होकर जाती है।
असमिका x + 4y ≤ 80 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 80 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु इस क्षेत्र में है।
इसका हल वे सब बिन्दु हैं जो CD पर या CD के नीचे स्थित है।
(iii) x = 15 रेखा y-अक्ष के समान्तर है और x ≤ 15 का हल वे बिन्दु हैं जोx = 15 पर या इसके बाईं ओर स्थित है।
(iv) y ≥ 0 में y-अक्ष पर और उसके ऊपर के सब बिन्दु हैं।
दी हुई असमिकाओं का हल उभयनिष्ठ क्षेत्र PQRS हैं।

प्रश्न 15.
x + 2y ≤ 10, x + y ≥ 1, x – y ≤ 0, x ≥ 0, y ≥ 0.
हल:
दी हुई सममिकाएँ x + 2y ≤ 10, x + y ≥ 1, x – y ≤ 0, x ≥ 0, y ≥ 0
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 6 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 6.3 img-14
(i) सरल रेखा x + 2y = 10 बिन्दु A(10, 0) और B(0, 5) से होकर जाती है।
असमिका x + 2y ≤ 10 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 10 जो सत्य है।
∴ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में है।
इस असमिका का हल वे सब बिन्दु हैं जो AB पर हैं तथा AB के नीचे हैं।
(ii) रेखा x + y = 1 बिन्दु C(1, 0), D(0 , 1) से होकर जाती है।
असमिका x + y ≥ 1 में x = 0, y = 0 रखने पर, 0 ≥ 1 जो सत्य नहीं है।
⇒ मूल बिन्दु इसके क्षेत्र में नहीं है।
⇒ इस असमिका का हल वे सब बिन्दु हैं जो CD पर हैं या इसके ऊपर हैं।
(iii) रेखा x – y = 0 बिन्दु (0, 0) और (1, 1) से होकर जाती है। असमिका x – y ≤ 0 में x = 0, y = 0 रखने पर 0 ≤ 0 जो सत्य है।
(0, 0) इसके क्षेत्र में है।
⇒ इस असमिका का हल वे बिन्दु जो x – y = 0 पर हैं या इसके ऊपर हैं।
(iv) x ≥ 0 वह क्षेत्र है जो y-अक्ष के दाईं ओर है।
(v) y ≥ 0 वह क्षेत्र है जो x-अक्ष के ऊपर है।
दी हुई असमिकाओं का हल वे सब बिन्दु हैं जो उभयनिष्ठ क्षेत्र PQDB में है।

MP Board Class 11th Maths Solutions

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन (डॉ. छाया पाठक)

कर्त्तव्य पालन अभ्यास प्रश्न

कर्त्तव्य पालन लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश कव दिया था?
उत्तर
अर्जुन जब श्रीकृष्ण के साथ युद्धभूमि में आया तो उसने वहाँ अपने भाई, दादा, पड़दादा, गुरु आदि देखे। यह देखकर उसका मन युद्ध से हट गया। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया।

प्रश्न 2.
श्यामपट्ट में हमे चित्र में कौन-कौन दिखाई दे रहे थे?
उत्तर
गुरु जी ने कक्ष के श्यामपट्ट पर एक चित्र टाँगा। उस चित्र में युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण और अर्जुन दिखाई दे रहे थे।

प्रश्न 3.
कृष्ण का अभिनय करने वाले छात्र का क्या नाम था? उत्तर-कृष्ण का अभिनय करने वाले छात्र का नाम सात्विक था। रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) तेरा यह आचरण किसी ………………………..पुरुष का आचरण नहीं है।
(ख) आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश कर ज्ञान रूपी ………….फैलाया है।
उत्तर
(क) तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।
(ख) आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश कर ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाया है।

कर्त्तव्य पालन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन करुणा से क्यों भर उठते हैं?
उत्तर
अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि केशव, मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर दीजिए। श्रीकृष्ण ऐसा ही करते हैं। वे रथ को लाकर दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर देते हैं। अर्जुन दोनों ओर दृष्टि डालते हैं। देखते हैं कि जिनके साथ उसने युद्ध लड़ना है उनमें उसके ताऊ, दादा, मामा, भाई, पुत्र और पौत्र मित्र, गुरु व सहृदय हैं। उन्हें देखकर उनका मन करुणा से भर उठता है कि आज उन्हें अपने प्रियजनों के साथ युद्ध करना है, जिन्हें वे अपने प्रिय स्वजन समझते हैं अतः उसका हृदय करुणा से भर उठता है।

प्रश्न 2.
अपने स्वजनों को युद्धभूमि में देखकर अर्जुन की क्या दशा हुई?
उत्तर
अर्जुन ने देखा कि युद्ध-भूमि में शत्रपक्ष के रूप में वे वीर उपस्थित हैं जिनके या तो वे सदा चरण स्पर्श करता आया है अथवा उन्हें प्रिय कहता आया है। अपने प्रियजनों को वह उन्हें शुभ-अशीष देता आया है। यह देखकर उसका मन युद्ध से अलग हो गया। उसने श्रीकृष्ण से कहा कि अपने प्रियजनों को देखकर मेरा मुख सूखा जा रहा है। मेरे शरीर कांपने लगा है। शरीर के रोएं-रोएं खड़े हो उठे हैं। हाथ से गाण्डीव गिरा जा रहा है। मेरा मन भ्रमित हो रहा है। मुझमें यहाँ खड़े होने की शक्ति नहीं है। इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

प्रश्न 3.
अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था?
उत्तर
अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया था। वह सोचने लगा था कि जिनके ‘साथ उसने युद्ध करना है वे तो उसके या तो आदरणीय हैं या प्रियजन है। उनका युद्ध में वध करने से पाप लगेगा। अगर युद्ध कर भी लिया तो इसका फल भी उसे कुछ नहीं मिलने वाला है। इसलिए उसने युद्ध में अपना कर्त्तव्य निभाने से इंकार । कर दिया।

प्रश्न 4.
हम सुख-दुख के बंधन से मुक्त कैसे हो सकते हैं?
उत्तर
हमें सुख और दुख में सदैव समान रहना चाहिए। न सुख में अधिक उत्साहित होना चाहिए और न दुख में अत्यधिक व्याकुल ही। ये दोनों समान तत्त्व हैं। जब हम इन्हें समान मानेंगे तब हम इसके बंधन से मुक्त हो जाएंगे। न तो सुख मिलने पर अधिक प्रसन्न होंगे और न ही दुख आने पर ज्यादा दुखी ही। इस उपाय से हम सुख और दुख के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 5
पाप-पुण्य के भ्रम से निकलने के लिए गुरु जी ने क्या उपाय बताया?
उत्तर
एक शिष्य ने पूछा था कि पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी ने उस शिष्य को इस भ्रम से निकलने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार किसी कमरे में लंबे समय से अंधकार छाया है, किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है तो अँधकार स्वयं दूर हो जाता है उसी प्रकार पहले किए पापों का अँधेरा पुण्य के एक कार्य से दूर हो जाता है। इसीलिए कहा है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। प्रश्न-निम्नलिखित पंक्तियों का

कर्त्तव्य पालन अर्थ लिखकर अपने शब्दों में लिखिए

(क) “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
(ख) सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
उत्तर
(क) यह श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सैंतालीसवां श्लोक है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है कि तुझे केवल कर्म यानी
अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यह चिंता ही मत कर कि तुझे इस कर्म का ‘कोई फल मिलेगा भी या नहीं। यह बात ठीक उसी तरह है जिस तरह वृक्ष को लगाने वाला उसके फल नहीं खाता। वह तो केवल कर्म या अपना कर्तव्य करता है। यह । अलग बात है कि उसके लगाए वृक्ष पर आए फल अन्य खाता है। अतः फल की चिंता मत कर केवल कर्म अर्थात् कर्त्तव्य कर।

(ख) हमें सुख और दुख बंधन में बाँध देते हैं। जब सुख आता है तो हमारी भरसक कोशिश होती है कि यह हमसे दूर न जाए। हम उसे अपनी ओर करने की पूरी कोशिश करते हैं। दुख चाहे हमारे पास अभी फटका भी न हो पर हम इसलिए चिंतित हो उठते हैं कि कहीं आ न जाए। इसलिए कहा गया है कि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि इन दोनों स्थितियों में समान रहो।

कर्त्तव्य पालन भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
शुद्ध वर्तनी छाँटिए :
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 1
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 2

प्रश्न 2.
दी गई वर्ग पहली में से नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द छाँटिए :
अंधकार, कर्म, निश्चित, लाभ, बंधन, ज्ञान, पुण्य।
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 3
उत्तर
वर्ग पहेली से विलोम शब्द :
अंधकार – प्रकाश
कर्म – अकर्म
निश्चित – अनिश्चित
लाभ – हानि
बंधन – मुक्त
ज्ञान – अज्ञान
पुण्य – पाप

प्रश्न 3.
एकांकी में आए योजक चिह वाले शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
योजक चिह्न वाले शब्द :
धर्म – अधर्म
सुख – दुख
जय – पराजय
सुख – दुख
क्या – क्या
निश्चय – अनिश्चय
कर्म – अकर्म
बंधु – बांधवों
लाभ – हानि
मोह – माया
पाप – पुण्य

प्रश्न 4.
दिए गए सामासिक पदों का विग्रह कीजिए–
पितृभक्त, सूत्रधार, सत्यवादी, युद्धारंभ, भगतवद्गीता।
उत्तर
सामासिक पदों का विग्रह
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 8

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 4

प्रश्न 5.
दिए गए शब्दों में से तत्सम एवं तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए :
वृक्ष, इच्छा, कर्त्तव्य, नमस्ते, सच, माता, अभिनय, मुँह
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 5

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प्रश्न 6.
‘ही’ निपात के प्रयोग वाले वाक्य एकांकी से छाँटकर लिखिए।
उत्तर
ही निपात का प्रयोग वाले शब्द :

  1. क्योंकि इस विषय में तू व्यर्थ ही शोक कर रहा है।
  2. युद्ध में अपने ही स्वजन का वध कर मुझे क्या मिलेगा?
  3. सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
  4. जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है।
  5. जब फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्म क्या करेंगे?
  6. और न ही हमें उसके फल खाने को मिलते।
  7. गुरु जी आपने हमें बहुत ही अच्छी बातें बताईं।

प्रश्न 7.
ईय प्रत्यय लगाकर शब्द बना है पूजनीय। इसी प्रकार के पाँच अन्य शब्द लिखिए।
उत्तर
ईय प्रत्यय लगकर बनने वाले शब्द :
नंदनीय – पाठनीय
दर्शनीय – विजातीय
आदरणीय –

कर्त्तव्य पालन योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
श्रीमद्भगवद्गीता के इस अंश का शाला के वार्षिकोत्सव में वेशभूषा सहित अभिनय कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी भगवद्गीता के इस अंश का अभिनय पाठशाला में अपने कक्षा शिक्षक की सहायता से करे।

प्रश्न 2.
कर्तव्य पालन से संबंधित महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
प्रेरक प्रसंग
स्वामी रामकृष्ण परम हंस के पास स्वामी विवेकानंद सिद्धि प्राप्त करने के लिए गए। परमहंस ने कहा कि क्या तुम ऐसी सिद्धि प्राप्त करना चाहते हो जैसे बिना
नाव के नदी पार करना। स्वामी जी ने हाँ में उत्तर दिया। इस पर स्वामी जी हंसे और उनसे कहा कि इसके लिए सिद्धि की क्या आवश्यकता है? नदी को किसी भी नाविक को एक पैसा देकर पार किया जा सकता है। स्वामी जी को सिद्धि का मूल्य पता चल गया। तब उन्होंने कभी भी किसी को सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं कहा। यह कथा प्रेरक है। हमें प्रेरित करती है कि किसी भी वस्तु की प्राप्ति के लिए पहले उसकी अच्छी तरह उपादेयता जान लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
कर्मण्येवाधिकारस्ते……. जैसे अन्य शिक्षाप्रद श्लोक लिखकर कक्षा में छाँटिए।
उत्तर
शिक्षप्रद श्लोकः

1. श्रेयान्द्रव्यमयाद् यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तपः
सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय चार, 32 वां श्लोक।)
अर्थः हे परंतप अर्थात् अर्जुन! द्रव्ययज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। हे पार्थ अन्ततोगत्वा सारे कर्मयज्ञों का अवसान दिव्य ज्ञान में होता है।

2. गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्
जन्ममृत्युजरादुःखैविर्मुक्तोऽमृतमश्नुते।।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय चौदहवां, 20 वां श्लोक।)
अर्थ : जब देहधारी जीव भौतिक शरीर से सम्बद्ध इन तीनों गुणों को लाँघने में समर्थ होता है तो वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा तथा उनके कष्टों से मुक्त हो सकता है और इसी जीवन में अमृत का भोग कर सकता है।

त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहर्मनीषिणः।
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।

(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय अठारह, तीसरा श्लोक।)
अर्थः समस्त प्रकार के सकाम कर्मों को दोषपूर्ण समझ कर त्याग देना चाहिए। किंतु अन्य विद्वान् मानते हैं कि यज्ञ, दान और तपस्या के कर्मों को कभी नहीं त्यागना चाहिए।

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प्रश्न 3.
श्रीमद्भगवद्गीता के अन्य अध्यायों की विषयवस्तु पर कक्षा में शिक्षक से चर्चा कीजिए।
उत्तर
श्रीमद्भगवद्गीता में अठारह अध्याय हैं। पहले अध्याय में कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण है। दूसरे अध्याय में गीता का सार है। तीसरे अध्याय में कर्मयोग पर विचार है। चौथे अध्याय में दिव्य ज्ञान है। पाँचवें अध्याय में कर्म योग-कृष्णभावनाभावित कर्म है। छठे अध्याय में ध्यान योग है। सातवें अध्याय में भगवद्वान है। आठवें अध्याय में भगवत प्राप्ति है। नवें अध्याय में परम गुह्य ज्ञान है। दसवें अध्याय में श्रीभगवान् का ऐश्वर्य है। ग्यारहवें अध्याय में विराट रूप है। बारहवें अध्याय में भक्ति योग है। तेरहवें अध्याय में प्रकृति पुरुष व चेतना है। चौदहवें अध्याय में प्रकृति के तीन गुण कहे गए हैं। पंद्रहवें अध्याय में पुरुषोत्तम योग है। सोलहवें अध्याय में दैवी और आसुरी स्वभाव है। सत्रहवें अध्याय में श्रद्धा के विभाग हैं और अठारहवें अध्याय में उपसंहार संन्यास की सिद्धि है।।

कर्त्तव्य पालन परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुरु जी ने श्यामा से क्या प्रश्न किया?’
उत्तर
गुरु जी ने श्यामा से पूछा कि राजा हरिश्चंद्र के सत्य की रक्षा के करने में उनका साथ किसने दिया था?

प्रश्न 2.
रोहित ने गुरु जी से अर्जुन के संबंध में क्या जिज्ञासाएँ प्रकट की?
उत्तर
रोहित ने गुरु जी से जिज्ञासा प्रकट की कि अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहते थे? वे डर गए थे या उन्हें युद्ध करना अच्छा नहीं लगता था।

प्रश्न 3.
रोहिणी ने नाटक से क्या शिक्षा ली?
उत्तरः
रोहिणी ने नाटक से शिक्षा ली कि सुख और दुखं और लाभ और हानि एक समान हैं।

कर्त्तव्य पालन रिक्त स्थानों की पूर्तिः

(क) युद्ध के मैदान में तो ……..होता है, फिर ये बातचीत ……………
(ख) …..दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालता है।
उत्तर
रिक्तों स्थानों की पूर्ति
(क) युद्ध के मैदान में तो युद्ध होता है, फिर ये बातचीत.
(ख) अर्जुन दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालता है।

कर्त्तव्य पालन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों ने गुरु जी को पिछले पाठों के बारे में क्या बताया?
उत्तर
गुरु जी ने शिष्यों से पूछा कि अच्छा बताओ कि कल हमनें क्या पढ़ा था? इस पर वैदेही ने बताया कि गुरु जी कल आपने हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी सुनाई थी। फिर उन्होंने अशोक से पूछा कि श्रवण कुमार माता पिता को कहाँ ले गए थे? इसका उत्तर उसने दिया कि श्रवणकुमार अपने माता-पिता को तीर्थाटन के लिए ले गए थे। उन्होंने श्यामा से पूछा कि राजा हरिश्चंद्र के.सत्य की रक्षा करने में उनका साथ किसने दिया, इस पर उसने उत्तर दिया कि उनकी पत्नी ने।

प्रश्न 2.
छात्रों के मन की अर्जुन संबंधी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए गुरु जी ने क्या किया?
उत्तर
छात्रों के मन में अर्जुन के संबंध में अनेक प्रकार की जिज्ञासाएँ उठ रही थीं। गुरु जी ने उनकी इन जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश के अभिनय का विचार किया। यह अभिनय श्रीकृष्ण और अर्जुन से संबंधित था।

प्रश्न 3.
नाटक में किन छात्रों ने किन पात्रों का अभिनय किया?
उत्तर
नाटक में प्रमुख पात्र थे श्रीकृष्ण और अर्जुन । इन दोनों पात्रों का अभिनय क्रमशः सात्विक और सिद्धार्थ ने किया। नाटक में क्योंकि एक सूत्रधार की भी आवश्यकता होती है। इसलिए इस पात्र का अभिनय अशोक ने किया। कक्षा के अन्य छात्रों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। एक भाग कौरवों की सेना हो गया और दूसरा भाग पांडवों की।

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प्रश्न 4.
नाटक आरम्भ होते ही सबसे पहले मंच पर कौन पात्र आया, उसने क्या कहा?
उत्तर
नाटक आरम्भ होते ही मंच पर सबसे पहले सूत्रधार ने प्रवेश किया। इस पात्र का अभिनय अशोक ने किया। उसने मंच पर आकर यह संवाद बोला : “आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने श्रीमद्भगवद्गीता को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएँ युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

प्रश्न 5.
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का क्या कारण बताया?
उत्तर
अर्जुन ने देखा कि जिनके साथ युद्ध करना है वे उसके आदरणीय या प्रियजन हैं। बंधु-बांधवों पर विजय प्राप्त करने का उसका विचार बदल गया। उसने कहा कि मैं न तो सगे-संबंधियों से युद्ध कर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ और न ही राज्य का उपभोग करना चाहता हूँ। मैं तो जैसे रहता आया हूं वैसे ही रहूँगा। चाहे मुझे तीनों लोकों का राज्य क्यों न मिल जाए, मैं अपने सगे-संबंधियों को युद्ध में मारकर पाप अर्जित नहीं करूँगा।

कर्त्तव्य पालन भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से शुद्धों शब्दों का चयन कीजिए।
माध्यावकाश, अभीवादन, हरिश्चन्द्र, उपदेस, सहमती, अभीनय, सेनओं,
आचरण, कुंतीपुत्र, माधव, संशय, सामन, अतित
उत्तर
शुद्ध शब्दों का चयनः
हरिश्चंद्र – आचरण
कुंतीपुत्र – माधव
संशय।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
कल, युद्ध, सहमति, अधर्म, अनिश्चय, सत्य, आचरण, मृत्यु।
उत्तर
विलोम शब्द
शब्द – विलोम
कल – आज
सहमति – असहमति
अधर्म – धर्म
अनिश्चय – निश्चय
सत्य – असत्य
आचरण – दुराचरण
मृत्यु – जीवन

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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताइए।
अभिवादन, अभिनय, प्रसंग, असमय, विजय ।
उत्तर
उपसर्ग :
अभिवादन : अभि उपसर्ग वादन शब्द
अभिनय : अभि उपसर्ग नय शब्द
प्रसंग : प्र उपसर्ग संग शब्द
असमय : अ उपसर्ग समय शब्द
विजयः वि उपसर्ग जय शब्द

प्रश्न 4.
निम्नलिखित समासों का विग्रह कीजिए और नाम भी बताइए।
माता-पिता, असमय, कुरुक्षेत्र, प्रियजन, रणभूमि ।
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 6

प्रश्न 5.
आई प्रत्यय लगाकर पांच शब्दों का निर्माण कीजिए।
उत्तरः
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 21 कर्त्तव्य पालन img 7

प्रश्न 6.
पाठ में आए पांच तत्सम शब्दों का चयन कीजिए।
उत्तर
पाँच तत्सम शब्द :
सत्यवादी, वार्तालाप, उपदेश, सम्बन्धित, धनुष ।

कर्त्तव्य पालन एकांकी का सारांश

प्रश्न
डॉ. छाया पाठक लिखित एकांकी ‘कर्त्तव्य पालन’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ एकांकी में एकांकीकार ने विद्यार्थियों को बिना फल की चिंता किए कर्म करने की प्रेरणा दी है। संसार में रहते हुए मन में तरह-तरह के विकार आ जाते हैं। जैसे- सुख-दुख, पाप-पुण्य, राग-द्वेष आदि। हमें इनकी चिंता न करते हुए केवल कर्त्तव्य निभाने की ओर ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस एकांकी में अर्जुन के मोह का वर्णन भी किया गया है। वह सगे-संबंधियों के मोह-जाल में फंसे रहने के कारण अपने कर्तव्य से हट गया है। स्वजनों पर अस्त्र-शस्त्र न चलाने का निर्णय कर बैठा है।

इस एकांकी के दो दृश्य हैं : दोनों दृश्य विद्यार्थियों के कक्ष से आरम्भ होते हैं और कक्ष में ही समाप्त हो जाते हैं। ..
अंतर केवल यह है कि दूसरे दृश्य में कक्ष को ही मेज़-कुर्सी एक ओर लगाकर उन्हें मंच बना दिया जाता है।
कक्षा के दृश्य से एकांकी शुरू होती है। आधी छुट्टी के बाद हिंदी का घंटा शुरू होता है। कोई विद्यार्थी खेल में लंगा है तो कोई शरारत में जुटा है। कोई पुस्तक निकाल रहा है तो कोई आपस में बातचीत में लगा है।।

कक्षा में गुरु जी आते हैं। अभिवादन के बाद बच्चों से पूछते हैं कि कल क्या पढ़ा था। वैदेही बताती है कि कल आपने हमें सत्यवादी हरिश्चंद्र और श्रवणकुमार की कहानी सुनाई थी। गुरु जी अशोक से पूछते हैं कि श्रवणकुमार अपने माता-पिता को कहाँ ले जा रहा था? वह उत्तर देता है-तीर्थाटन के लिए। श्यामा से पूछते हैं कि सत्य की रक्षा करने में उनका साथ किसने दिया? श्यामा उत्तर देती है, उनकी पत्नी ने। गुरु जी उत्तर सुनकर बच्चों को शाबासी देते हैं।

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गुरु जी श्यामपट्ट यानी ब्लेक बोर्ड पर एक चित्र टाँगते हैं। चित्र में भगवान .श्री कृष्ण को अर्जुन को गीता का उपदेश देते दिखाया गया है। चित्र की तरफ संकेत करते हुए गुरु जी अशोक से पूछते हैं कि इस चित्र में कौन-कौन दिखाई दे रहे हैं और क्या कर रहे हैं? अशोक उत्तर देता है कि इसमें कृष्ण और अर्जुन बात कर रहे हैं। गुरु जी उसके उत्तर को सही बताते हैं। दूसरा प्रश्न करते हैं कि क्या तुम्हें पता है कि श्रीकृष्ण और अर्जुन में बातचीत युद्ध के मैदान में हुई थी? श्यामा हैरानी से पूछती है कि युद्धभूमि में तो युद्ध होता है, यह बातचीत क्यों हो रही है? गुरु जी उत्तर देते हैं-बिलकुल ठीक कहती हो श्यामा। अर्जुन जब युद्ध के मैदान से पीछे हटने लगा तो तब श्रीकृष्ण ने उसे कर्त्तव्य पर डटे रहने का उपदेश दिया था।

रोहित पूछता है कि अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था? क्या वह डर गया था? गुरु जी अर्जुन के युद्ध न करने के कारण पैदा होने वाली जिज्ञासाएँ शांत करने के लिए अपने छात्रों से श्रीमद्भगवद्गीता के एक हिस्से का अभिनय कराते हैं। वे कृष्ण का अभिनय करने के लिए सात्विक का चुनाव करते हैं, अर्जुन के अभिनय के लिए सिद्धार्थ को चुनते हैं। अशोक को सूत्रधार की भूमिका दी जाती है। शेष बच्चों को दो हिस्सों में बाँटकर कमवार कौरव व पाण्डव के सैनिक बना देते हैं।

सूत्रधार से एकांकी का दूसरा दृश्य आरम्भ होता है। सूत्रधार एकांकी आरम्भ करता है, ” आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने श्रीमद्भगवद्गीता को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएँ युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

एक तरफ सूत्रधार मंच से जाता है और दूसरी तरफ कृष्ण और अर्जुन का प्रवेश होता है। अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा कर दें ताकि मैं युद्ध के लिए बेचैन सैनिकों को निहार सकूँ। श्रीकृष्ण ऐसा ही करते हैं और अर्जुन से कहते हैं कि पार्थ युद्ध के लिए तैयार इन योद्धाओं को देख। अर्जुने युद्धभूमि में चारों ओर दृष्टि डालता है। देखता है कि चारों ओर उसके भाई, ताऊ, मामा, पुत्र, मित्र, गुरु आदि युद्ध के लिए खड़े हैं। उन्हें देखकर पार्थ अर्थात् अर्जुन की करुणा से भर उठता है। श्री कृष्ण से स्पष्ट शब्दों में कहता है कि मुझे अपने प्रियजनों से युद्ध करना होगा, इसलिए मैं युद्ध नहीं करूँगा। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तेरे मन में यह असमय मोह कैसे पैदा हो गया? तेरा यह आचारण श्रेष्ठ योद्धा का नहीं है। इससे तेरा यश भी नहीं बढ़ने वाला। अर्जुन उत्तर देता है कि मैं अपने सगे-संबंधियों का युद्ध में संहार कर विजय नहीं चाहता। मुझे राज्य की भी इच्छा नहीं है।

श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस संसार में जो भी आया है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु के बाद फिर नया जन्म मिलता है। ऐसे में तेरा शोक व्यर्थ है। अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि तीनों लोकों का राज्य भी मिल जाए तब भी अपने प्रिय संबंधियों का संहार कर राज्य प्राप्त करने की इच्छा नहीं करूँगा। श्रीकृष्ण समझाते हैं कि तू पाप-पुण्य में क्यों पड़ गया है? अगर युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग मिलेगा और विजयी हुआ तो पृथ्वी का राज्य।

अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछता है कि मैं अपने आदरणीय भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य से युद्ध नहीं कर सकता। इन्हें मारकर मेरा कल्याण नहीं हो सकता और न सुखी रह सकता हूँ। श्रीकृष्ण उसे ऐसा सब कुछ सोचने से मना करते हैं। उससे यही कहते हैं कि तू जय-पराजय, जनम-मरण, हानि-लाभ को समान समझ और केवल युद्ध कर। कुछ अन्य न सोच। तू केवल कर्म कर। उसके फल की चिंता न कर।

श्रीकृष्ण का उपदेश उसे चिंतामुक्त कर देता है। उनसे कहता है कि आज – आपने मेरे मन से अज्ञान का अंधकार समाप्त कर दिया है। मेरा मोह नष्ट हो गया
है। मेरा मन संशयहीन हो गया है। अब मैं युद्ध करूँगा। अर्जुन का संवाद सुनकर सब बच्चे खुश होकर गुरु जी के साथ तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस एकांकी से तुम्हें क्या शिक्षा मिली? रोहिणी

उत्तर देती है कि हमें सुख और दुख में समान रहना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं। अशोक कहता है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी विद्यार्थियों का उत्तर सही मानते हैं और उनसे कहते हैं कि बिलकुल ठीक, हमें सुख-दुख, हानि-लाभ में समान रहना चाहिए और इसलिए रहना चाहिए कि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में बाँध देते हैं।

रोहिणी के पूछने पर गुरु जी बताते हैं कि सुख मिलने पर हम चिंता करते हैं कि कहीं यह हमसे छिन न जाए, और दुःख न होने पर चिंता करते हैं कि कहीं यह आ न जाए। यही बंधन है जिससे हम मुक्त नहीं हो पाते। नकुल उनसे पूछता है कि हमें पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए, गुरु जी कहते हैं, “मान लो कि किसी कमरे में बहुत लंबे समय से अंधेरा है किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है तो अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार अतीत में किए गए पापों का अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।”

सिद्धार्थ गुरु जी से अपने मन का भ्रम दूर करना चाहता है। वह उनसे पूछता है कि अर्जुन को श्रीकृष्ण ने यह क्यों कहा कि केवल कर्त्तव्य कर, फल की चिंता मत कर। जब फल की इच्छा ही न होगी तो हम कर्म क्यों करेंगे? गुरु जी सिद्धार्थ की इस शंका का उत्तर एक उदाहरण से देते हैं। हम फल मेवे आदि तो खाते हैं जबकि जिन पर वे हुए, उन्हें हमने नहीं लगाया। अगर कोई व्यक्ति यह सोचे कि मैं तभी वृक्ष लगाऊँगा, जब इसके फल व मेवे मुझे खाने को मिलेंगे, तब तो कोई भी वृक्ष नहीं लगाता और न ही उसके फल उसे खाने को मिलते। इसीलिए सभी को अपना कर्त्तव्य करना चाहिए।

कर्त्तव्य पालन प्रमुख स्थलों की सप्रसंग व्याख्या

1. आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएं युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारंभ का शंखनाद हो चुका है।”

शब्दार्थ : सूत्रधार = नाटक या एकांकी का वह पात्र, जो मंच से दर्शकों को . जोड़ता है। इसे नाट्यशाला या रंगमंच का व्यवस्थापक भी कहा जाता है। संकेत = इशारा। साक्षात्कार = सामना, मिलना। श्रीमद्भगवद्गीता = भारतीयों की धार्मिक पुस्तक। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मोह को समाप्त कर उसे कर्म करने का उपदेश दिया है। कुरुक्षेत्र = वह स्थान जहाँ प्रसिद्ध महाभारत का युद्ध हुआ। आजकल यह स्थान हरियाणा में है। युद्धारंभ्भ = युद्ध का आरम्भ। शंखनाद = शंख की आवाज़। पुराणकाल में युद्ध आरंभ करने से पूर्व शंख की आवाज की जाती थी। इसे ही शंखनाद कहा जाता है।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। इसमें सूत्रधार एकांकी को दर्शकों से जोड़ रहा है। सूत्रधार दर्शकों से कहता है कि आज मैं आपको उस प्रसंग से परिचित करा रहा हूँ जिससे श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। वह इसमें कौरवों व पांडवों के युद्ध के लिए तैयार होने की भी सूचना देता है।

व्याख्या : मैं इस एकांकी का सूत्रधार हूँ। मैं आपको एक ऐसा प्रसंग अभिनय के द्वारा दिखाना चाहता हूँ जो इस ओर संकेत करता है कि पाप और पुण्य क्या है? इन दोनों में क्या अन्तर है? धर्म किसे कहते हैं और अधर्म किसे? निश्चय और अनिश्चय में क्या अंतर है? सुख और दुख किसे कहते हैं? ये ऐसे प्रश्न थे जिसके कारण श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ। कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर सेनाएँ एकत्र हैं। एक ओर पांडवों की है और दूसरी ओर कौरवों की। दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं। युद्ध आरम्भ होने वाला है क्योंकि इसके लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने पुंडरीक नाम के शंख को बजा दिया है।

विशेष-

  1. इस एकांकी के संवाद में सूत्रधार शब्द पारिभाषिक शब्द है। यह नाटक में उस पात्र के लिए प्रयोग किया जाता है जो रंगमंच का व्यवस्थापक होता है। यही नाटक आरम्भ होने की सूचना देता है। ‘कर्तव्य पालन’ एकांकी में सूत्रधार का काम कक्षा का एक छात्र अशोक कर रहा है।
  2. इस संवाद में विलोम शब्दों का प्रयोग है जैसे धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय। सुख-दुखें, कर्म-अकर्म।
  3. प्रसंग का अर्थ है संबंध। यहाँ अर्थ है संवाद का पहला अंश।
  4. श्रीमद्भगवद्गीता। यह भारतीयों का परमपावन ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का अंश है। इसमें श्रीकृष्ण ने मोह में फँसे अर्जुन को कर्त्तव्य के लिए तत्पर होने का उपदेश या संदेश दिया है।
  5. कुरुक्षेत्र वह स्थान है जहाँ कौरवों व पाण्डवों का युद्ध हुआ। आजकल यह स्थान हरियाणा प्रदेश में है।
  6. भाषा सरल, प्रवाहमय और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सूत्रधार किस प्रसंग से दर्शकों का साक्षात्कार कराने जा रहा है?
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म किस प्रसंग ने दिया?
(iii) इस संवाद के किस वाक्य से पता चलता है कि युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व की सूचना दी जा चुकी है?
उत्तर
(i) सूत्रधार एक ऐसे प्रसंग से दर्शकों का साक्षात्कार कराना चाहता है जो धर्म और अधर्म, निश्चय और अनिश्चय, सुख और दुख एवं कर्म और अकर्म की ओर संकेत कर रहा है।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म ऐसे प्रसंग ने दिया जहाँ यह बताना आवश्यक हो गया कि धर्म किसे कहते हैं और अधर्म किसे? अनिश्चय से कैसे निकला जा सकता है और निश्चय पर कैसे दृढ़ रहा जा सकता है। सुख और दुख क्या हैं? तथा कर्म और अकर्म में क्या अन्तर है?
(iii) इस संवाद में एक वाक्य है ‘युद्धारंभ्भ का शंखनाद हो चुका है।” इस वाक्य से पता चलता है कि युद्ध प्रारम्भ होने की सूचना दी जा चुकी है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) सूत्रधार किसे कहते हैं?
(ii) प्रसंग से अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(iii) शंखनाद मुहावरे का अर्थ देते हुए इसका एक वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर
(i) रंगमंच की व्यवस्था करने वाले को सूत्रधार कहा जाता है।
(ii) प्रसंग वह स्थिति है जहाँ पहले कहे हुए विषय की सूचना दी जाती है और जो कहा जा रहा है उससे उसका संबंध स्थापित किया जाता है।
(iii) शंखनाद का अर्थ है किसी काम को शुरू करने की सूचना देना। वाक्य : शंखनाद से दोनों पक्षों को युद्ध शुरू होने की सूचना दे दी गई।

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2. हे कृष्ण! अपने इन प्रियजनों को देखकर तो मेरा मुख सूखा जा रहा है। मेरे शरीर में कंप और रोमांच हो रहा है। हाथ से गाण्डीव धनुष गिरा जा रहा है। मेरा मन भी भ्रमित-सा हो रहा है। मुझमें यहाँ खड़े रहने का भी सामर्थ्य नहीं है। इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

शब्दार्थ : प्रियजनों = सगे-संबंधियों । यहाँ अभिप्राय अर्जुन के मामा, ताऊ, भाइयों, पुत्र आदि से है जो युद्ध के लिए मैदान में खड़े हैं। मुख सूखा जाना = निराश होना। कंप = कांपने का भाव । रोमांच = भय के कारण शरीर के रोएँ खड़े हो जाना। गाण्डीव = अर्जुन के धनुष का नाम। भ्रमित = भ्रम में होना। क्या करूँ क्या न करूँ यह निश्चित न कर पाना। सामर्थ्य = समर्थ होने का भाव, शक्ति।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे।

व्याख्या : दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। मन में निराशा का भाव धारण किए उसने केशव से कहा कि है कि कौरव पक्ष में युद्ध के लिए वे लोग खड़े हैं जिनमें कोई मेरा भाई है तो कोई मेरा मित्र। कोई ताऊ है तो कोई पुत्र। कोई मामा है तो कोई चाचा। ये सब मेरे बहुत नजदीकी संबंधी हैं। इनसे मैं कैसे युद्ध कर सकता हूँ? यह देखकर मेरा शरीर कांप रहा है। भय के कारण मेरे शरीर के रोएँ खड़े हो गए हैं। हाथ से गाण्डीव छूट रहा है। मेरे मन में भ्रम पैदा हो गया है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अपने प्रियजनों पर कैसे अस्त्र-शस्त्र का संचालन करूँ। मुझमें युद्धभूमि में खड़े होने की शक्ति नहीं रही है। केशव! मुझे युद्धभूमि से दूर ले चलो। मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

विशेष-

  1. इस संवाद में अर्जुन का मोह. जाग उठा है। वह युद्ध के लिए आया था पर वहाँ अपने सगे-संबंधियों को देखकर हिम्मत हार बैठा है। इसलिए केशव से युद्ध करने के लिए मना कर रहा है।
  2. अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया है। उसने अपने कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लिया है।
  3. मुख सूखै जाना मुहावरे का प्रयोग है। इसका अर्थ है निराश होना।
  4. कंप और रोमांच सात्विक भाव हैं।
  5. गांडीव अर्जुन के धनुष का नाम है।
  6. भ्रमित-सा होने में उपमा अलंकार है।
  7. भाषा प्रवाहमय, प्रभावी और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) अर्जुन का मुँह क्यों सूखा जा रहा था?
(ii) प्रियजनों को देखकर अर्जुन की दशा का वर्णन कीजिए।
(iii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का क्या कारण बताया?
उत्तर
(i) अर्जुन ने देखा की दोनों पक्षों में युद्ध के लिए ऐसे वीर उपस्थित हैं जिनमें उसके गुरुजन, आदरणय, निकटतम संबंधी, ताऊ, चाचा, भाई, पुत्र आदि हैं। उन्हें देखकर उसका मुँह सूखने लगा अर्थात् वह निराश हो गया कि उसे अपने संबंधियों के साथ युद्ध करना पड़ रहा है।
(ii) युद्ध में प्रियजनजों को उपस्थित देखकर अर्जुन का शरीर काँपने लगा। वह रोमांचित हो गया। घबराहट के कारण उसके हाथ से गांडीव गिरने लगा।
(iii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि जिनके साथ मुझे युद्ध करना है वे तो मेरे निकटतम संबंधी है। मेरे मन में भ्रम पैदा हो गया है। जिनका मैं आज तक सम्मान करता आया हूँ, उनके साथ भला युद्ध कैसे कर सकता हूँ। उनके सामने युद्ध के मैदान में खड़े होने का मुझमें बिलकुल सामर्थ्य नहीं है। मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) कृष्ण कौन हैं? अर्जुन उनसे युद्ध न करने की बात क्यों कह रहा है?
(ii) कंपन और रोमांच किस प्रकार के भाव हैं?
(iii) गांडीव के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण पांडव पक्ष की ओर से युद्ध के मैदान में हैं। वे अर्जुन के सारथि हैं। वे ही उसका युद्ध दोनों सेनाओं के बीच लेकर आए हैं। इसलिए उनसे ही वह कह रहा है कि मैं युद्ध नहीं लड़ना चाहता।
(ii) कंपन और रोमांच सात्विक भाव हैं। सात्विक वे भाव हैं जो शरीर के हाव भाव से सूचित किए जाते हैं।
(iii) गांडीव अर्जुन के धनुष का नाम है। यही अर्जुन का प्रमुख अस्त्र है।

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3. अर्जुन! तुझे यह असमय मोह क्यों उत्पन्न हो रहा है? तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है और न ही तेरी कीर्ति को बढ़ाने वाला है।

शब्दार्थ : असमय = जिस बात को सोचने का समय नहीं है। मोह = सगे-संबंधियों के प्रति ममता का भाव । आचरण = व्यवहार । श्रेष्ठ उत्तम, सबसे अच्छे कीर्ति = यश

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों
सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। सगे-संबंधियों को युद्ध में आमने सामने खड़े देखकर अर्जुन को मोह हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं तेरा युद्धभूमि में आकर मोह करना श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।

व्याख्या : अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि केशव मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दो ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूँ जो युद्ध के लिए दोनों ओर खड़े हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की यह इच्छा पूरी कर देते हैं। दोनों ओर की सेनाओं को देखकर अर्जुन भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े थे। सगे-संबंधियों को युद्ध में आमने-सामने सामने खड़े देखकर अर्जुन को मोह हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि यह समय युद्ध से भागने का नहीं है। सगे-संबंधियों को युद्ध के मैदान में खड़े देखकर तुम्हारे मन में उनके प्रति ममता क्यों जाग उठी है? यह समय ममता करने का नहीं है। यह युद्ध करने का है। अगर तू युद्ध से भागेगा तो यह व्यवहार किसी अच्छे वीर का आचरण नहीं कहा जा सकता। ऐसा करने से इस संसार में तेरी बदनामी होगी। तुझे यश कभी प्राप्त नहीं होगा।

विशेष-

  1.  इस संवाद में श्रीकृष्ण ने मोह के कारण भ्रमित अर्जुन को कर्तव्य की ओर लाने का प्रयास किया है।
  2. अर्जुन को सावधान किया है कि युद्ध से भागने पर पूरे विश्व में तुम्हारा अपमान होगा। यह श्रेष्ठ पुरुष का व्यवहार भी नहीं कहलाएगा।
  3. असमय शब्द समय में अ उपसर्ग लगने से बना है।
  4. प्रश्नात्मक संवाद हैं।
  5. भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) असमय मोह से से क्या अभिप्राय है?
(ii) वाक्य का आशय समझाइए: ‘तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है।’
(iii) अर्जुन का आचरण कीर्ति बढ़ाने वाला क्यों नहीं है?
उत्तर
(i) असमय मोह से अभिप्राय है ऐसे समय मन में मोह उत्पन्न हो जाना जिसका यह उचित समय नहीं है। अर्जुन ने युद्धभूमि में जब अपने प्रियजनों को युद्ध के लिए उपस्थित देखा तो उसके मन में मोह पैदा हो गया और केशव से कह दिया कि वह अब युद्ध नहीं लड़ेगा क्योंकि उसके समाने उसके प्रियजन ही युद्ध के लिए उपस्थित हैं। श्रीकृष्ण ने जब उसकी ऐसी स्थिति देखी तो उससे कहा कि यह समय युद्ध करने का है, प्रियजनों को देखकर युद्ध से मुँह मोड़ने का नहीं है। ऐसा करना तो तुम्हारे मन में असमद मोह पैदा होना है।
(ii) श्रीकृष्ण ने देखा कि प्रियजनों को युद्ध के मैदान में खड़े देखकर अर्जुन ने युद्ध के लिए इंकार कर दिया है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि तुम्हारा ऐसा करना
उचित नहीं है। यह युद्ध का समय है। केवल युद्ध करो। अगर तुम युद्ध से मुँह मोड़ेगो तो तुम्हारी गणना श्रेष्ठ व्यक्तियों में नहीं होगी क्योंकि ऐसा व्यवहार कभी भी श्रेष्ठ आचरण करने वाले नहीं करते। अतः ऐसा व्यवाहर मत करो, युद्ध करो।
(iii) श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि युद्ध के मैदान में तुम्हारे मन में मोह उत्पन्न उचित नहीं है। अगर तुम इस भावना पर सुदृढ़ रहे तो तुम्हारी गणना सदाचरण करने वाले वीरों में या पुरुषों में नहीं की जाएगी। इससे तो तुम्हारी संसार में निंदा होगी। युद्ध करोगे तो संसार में यश प्राप्त होगा और मोह में युद्ध से दूर भागोगे तो तुम्हारा यश क्षीण होगा।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) असमय मोह का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) श्रेष्ठ पुरुष का आचरण इस संवाद के अनुसार क्या है?
(iii) मोह, आचरण पुरुष कीर्ति शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) असमय मोह का अर्थ है ऐसे समय मोह उत्पन्न हो जाना जिसका वह समय नहीं है।
(ii) श्रेष्ठ आचरण इस संवाद के अनुसार यह है कि अर्जुन को मोह त्यागकर केवल युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाना चाहिए।
(iii) विलोम
शब्द – विलोम शब्द
मोह- निर्मोह
आचरण – दुराचरण
पुरुष – स्त्री
कीर्ति – अपकीर्ति

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4. हे कुंतीपुत्र! इस संसार में जन्में प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है तथा मृत्यु के बाद पुनः नया जन्म भी निश्चित है। इसलिए इस विषय में तू व्यर्थ ही शोक कर रहा है।

शब्दार्थ : कुंतीपुत्र = कुंती का पुत्र, अर्जुन के लिए प्रयुक्त है। जन्में = जन्म लेने वाले। प्रत्येक = हर व्यक्ति। पुनः = फिर। विषय = बारे में। व्यर्थ = बेकार। शोक = दुख।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। अर्जुन ने जब दोनों ओर की सेनाओं को देखा तो भयभीत हो गया क्योंकि शत्रुपक्ष में उसके सगे-संबंधी ही अस्त्रशस्त्र लिए खड़े थे। उन्हें देखकर उसके मन को मोह हो गया और श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। इस पर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहता है कि तेरा शोक करना बेकार है क्योंकि इस दुनिया में जन्म लेना व मृत्यु को प्राप्त करना निश्चित है।

व्याख्या : अर्जुन को युद्ध में खड़े सगे-सबंधियों को देखकर मोह पैदा हो गया और श्रीकृष्ण से कहा कि वह युद्ध नहीं लड़ेगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि तेरे मन में इस समय मोह पैदा होना उचित नहीं है। यह श्रेष्ठ पुरुष का व्यवहार नहीं है। ऐसा करना तेरा कर्तव्य पथ से हटना है। तू यह सोच रहा है कि मैं अपने सगे-संबंधियों को मारना अनुचित है। तू यह अच्छी तरह समझ लेना कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति का मरना निश्चित है और जन्म लेना भी निश्चित है। जब यह क्रिया निरन्तर चल रही है तब तेरा इस बारे में किसी तरह का शोक प्रकट करना बेकार है।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में उत्पन्न मोह दूर करते हुए कहा है कि तू इन्हें मारने वाला नहीं है। इनका मरना तो निश्चित है। ये संसार के अंत तक जीवित रहने वाले नहीं हैं और न ही तू इनके जन्म को रोक सकता है। इसलिए तुझे इस बारे में दुख प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है।
  2. व्यक्ति अपने पाप पुण्य के आधार पर इस संसार में जन्म लेता है और मरता है, इस सिद्धांत का यहाँ समर्थन किया गया है।
  3. कुंतीपुत्र अर्जुन के लिए प्रयुक्त है क्योंकि वह कुंती का पुत्र था।
  4. भाषा सरल और सरस है। भावानुकूल है और प्रवाहमय भी है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण ने शोक संतप्त अर्जुन को किस प्रकार समझाया?
(ii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह क्यों कहा कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जन्मलेता और मरता है?
(iii) अर्जुन के शोक को श्रीकृष्ण व्यर्थ क्यों बता रहे हैं?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस संसार में जो भी व्यक्ति जन्म लेता है उसे निश्चित रूप से मरना पड़ता है। वह अगर मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसका जन्म भी पुनः होता है। ऐसे में तुम्हारा शोक करना व्यर्थ है।
(ii) अर्जुन को मोह उत्पन्न हो गया है कि वह अपने प्रिय संबंधियों को नहीं मार सकता, इसलिए युद्ध नहीं करना चाहता। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि जितने भी योद्धा इस मैदान में उपस्थित हैं इन्हें तो एक न एक दिन मरना है और फिर जन्म भी लेना है। ऐसे में तू इन्हें मारने वाला नहीं है और न ही जन्म देने वाला है। अतः तू तो कर्म कर और युद्ध कर।
(iii) अर्जुन के शोक को श्रीकृष्ण व्यर्थ इसलिए बता रहे हैं कि न तो वह इन वीरों को मारने वाला है और न जन्म देने वाला। अगर तू इन्हें मारेगा नहीं, तब भी ये मरने ही हैं, इसलिए तुम्हें इस संबंध में शोक करने की आवश्यकता नहीं है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) कुंतीपुत्र किसे और क्यों कहा गया है?
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के किस अध्याय के किस श्लोक में कहा गया है कि . व्यक्ति का जन्म और मरण निश्चित है?
(iii) संसार, व्यक्ति, व्यर्थ, शोक शब्द के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) कुंतीपुत्र अर्जुन के लिए प्रयोग किया गया है। इसलिए किया गया है कि वे कुंती के पुत्र थे।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय में कहा गया हैः आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है और न मृत्यु । वह न तो कभी जन्मा है और न जन्म लेगा। यह अजन्मा नित्य शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर वह मरता नहीं।

(iii) पर्यायवाची शब्द :
शब्द – पर्यायवाची
संसार – विश्व, दुनिया
व्यक्ति – नर, मानव
व्यर्थ – बेकार, नाकारा
शोक – दुख, आतुर

5. तू इस पाप-पुण्य के संशय में क्यों भ्रमित हो रहा है? यदि तू युद्ध में मारा भी गया तो स्वर्ग को प्राप्त होगा और यदि विजयी हुआ तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा। तू युद्ध करने के लिए दृढ़ निश्चयी हो जा।

शब्दार्थः संशय = संदेह । भ्रमित = भ्रम में। विजयी = जीता। दृढ़ निश्चयी = पक्का इरादा।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। अर्जुन को मोहित देखकर उसके मोह को समाप्त करने का यत्न किया और उसे कर्तव्य करने का उपदेश दिया। अर्जुन ने कहा था कि अगर मैं अपने सगे-संबंधियों को युद्ध में मारूँगा तो मुझे पाप लगेगा। मैं यह पाप कभी नहीं करूँगा। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि तू इस पाप और पुण्य के चक्कर में मत पड़ । केवल युद्ध कर।

व्याख्या : अर्जुन ने देखा कि मेरे सामने तो मेरे प्रियजन व आदरणीय गुरुजन खड़े हैं। मैं उनसे युद्ध कैसे करूँगा। उसने श्रीकृष्ण से कह दिया कि मैं युद्ध नहीं करूँगा क्योंकि यह पाप होगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उसे पुनः समझाया कि तू इस चक्कर में क्यों पड़ गया कि अगर मैं युद्ध में शत्रुओं को मारूँगा तो पाप होगा, नहीं मारूँगा तो पुण्य होगा। तुम्हारे मन में इस तरह का संदेह क्यों पैदा हो रहा है? अगर युद्ध में तू मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी और विजय प्राप्त हुई तो इस पृथ्वी का राज्य भोगेगा, इसलिए तू अपने मन से समस्त मोह ममता निकाल दे और केवल युद्ध कर। इसके लिए अपने मन को निश्चित कर ले।

विशेष-

  1. अर्जुन के मन में सगे-संबंधियों के कारण मोह पैदा हो गया है, श्रीकृष्ण उसे मोह छोड़कर केवल युद्ध के लिए निश्चिय करने का उपदेश दे रहे हैं।
  2. इसमें गीता के श्लोक का पूरा प्रभाव है कि ‘हतो वा…
  3. पाप का विलोम शब्द पुण्य है। व्याकरण की दृष्टि से पाप-पुण्य द्वंद्व समास है।
  4. भाषा भावानुकूल है और प्रवाहपूर्ण है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को किससे दूर रहने के लिए कहा है?
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार होने के लिए क्या तर्क देते हैं?
(iii) आपके विचार से क्या अर्जुन श्रीकृष्ण से सहमत हो गया?
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पाप-पुण्य के संशय से दूर रहने के लिए कहा है।
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन से युद्ध करने का निश्चय करने के लिए कहते हैं। इसके
लिए वे तर्क देते हैं कि अगर तू युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी क्योंकि वीरगति पाने वाले को स्वर्ग में स्थान मिलता है और अगर यद्ध में तूने विजय प्राप्त की तो इस संसार का साम्राज्य भोगेगा। इसलिए जब दोनों ओर से तुझे अनुकूल फल मिलने वाला है तो तब युद्ध के लिए तैयार होना ही उचित है।
(iii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तू केवल युद्ध कर। युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग मिलेगा और जीत गया तो संसार का साम्राज्य मिलेगा। पर इससे अर्जुन का मोह पूरी तरह शांत नहीं हुआ। क्योंकि उसके मन में मोह स्वर्ग या साम्राज्य प्राप्ति का नहीं है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) श्रीकृष्ण के अनुसार अर्जुन के मन में क्या भ्रम है?
(ii) स्वर्ग का राज्य कौन भोगता है?
(iii) इस संवाद में तत्सम शब्दों का चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) श्रीकृष्ण के अनुसार अर्जुन के मन में भ्रम यह है कि उसे लगता है कि अगर वह उसने प्रियजनों को मारा तो उसे पाप लगेगा। और नहीं मारा तो उसे पुण्य की प्राप्ति होगी। इसीलिए श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू इस पाप-पुण्य के संशय में क्यों भ्रमित हो रहा है?
(ii) तत्सम शब्दों का चुनावः
पाप – पाप
संशय – भ्रमित
युद्ध – स्वर्ग
विजयी पृथ्वी
राज्य – दुद
निश्चयी –

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6. मैं रणभूमि में किस प्रकार भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लडूंगा? ये दोनों ही मेरे पूजनीय हैं। अपने ही गुरुजनों और बंधु-बांधवों का वध कर मेरा किसी भी प्रकार कल्याण नहीं होगा। हम कैसे सुखी रहेंगे।

शब्दार्थ : रणभूमि = युद्धभूमि। विरुद्ध = खिलाफ । पूजनीय = पूजा के योग्य । बंधु – बांधवों = सगे – संबंधी। वधकर = हत्याकर। कल्याण = भला।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध करने को मना कर दिया। उसने कहा कि मैं युद्धभूमि में अपने गुरुजनों के विरुद्ध कैसे लडूंगा? अगर ऐसा किया तो मेरा कभी कल्याण न होगा। ऐसा करने पर मैं कभी सुखी नहीं रह पाऊँगा।

व्याख्या : श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि तू इस भ्रम में मत पड़ कि युद्ध में योद्वाओं को मारने से पाप लगेगा और न मारने से पुण्य । इस चक्कर में मत पड़। युद्ध में अगर मारा गया तो स्वर्ग की प्राप्ति होगी और जीतने से इस धरती का सुखमय राज्य मिलेगा। किंतु अर्जुन का मोह समाप्त नहीं हो रहा था। उसने उनसे कहा कि युद्धभूमि में मेरे आदरणीय पितामह भीष्म खड़े होंगे, मेरे गुरुदेव द्रोणाचार्य खड़े होंगे,

उनके विरुद्ध मैं कैसे अस्त्र-शस्त्र उठाऊँगा? उनकी तो मैं प्रतिदिन पूजा करता आया हूँ। अगर मैंने उनसे युद्ध किया और वे इसमें मारे गए तो मेरा तो कभी कल्याण न होगा। मैं कभी सुखी नहीं रहूँगा। इसलिए मैं अपने संबंधियों के विरुद्ध नहीं लडूंगा।

विशेष-

  1. अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह कहकर युद्ध लड़ने से इंकार किया क्योंकि उसमें वे वीर खड़े हैं जिनकी वह सदा पूजा करता आया है।
  2. अर्जुन का मानना है कि आदरणीय को युद्ध में मारकर उसका कभी भला नहीं हो सकता।
  3. भीष्म और द्रोणाचार्य पौराणिक चरित्र हैं। द्रोणाचार्य से तो अर्जुन ने धनुर्विद्या सीखी थी।
  4. रणभूमि संबंध तत्पुरुष समास है। बंधु-बांधवों में द्वंद्व समास है।
  5. अर्जुन की मुख्य चिंता यह है कि आदरणीयों को युद्ध में मारकर उसे कभी सुख प्राप्त नहीं होगा।
  6. भाषा सरल और सरस है।

कर्त्तव्य पालन प्रवाहपूर्ण है और भावानुकूल है।

प्रश्न :
(i) अर्जुन के मन में मोह क्यों है?
(ii) भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य से अर्जुन का क्या संबंध है?
(iii) ‘मेरा किसी भी प्रकार कल्याण नहीं होगा’ अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) अर्जुन के मन में मोह का कारण यह है कि उसके समक्ष भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे- वीर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं। वे गुरुजन और पूजनीय है। उन्हें मारकर वह किसी प्रकार सुखी नहीं रह सकता।
(ii) भीष्मपितामह पांडवों व कौरवों दोनों के पूजनीय हैं। उन्हें वह सदैव प्रणाम करता रहा है। द्रोणाचार्य से अर्जुन ने धनुर्विद्या सीखी है इसलिए वे उसके गुरु हैं।
(iii) अर्जुन श्रीकृष्ण से कह रहा है कि जो शिष्य अपने गुरु का ही वध करेगा, वह भला संसार में किस प्रकार सुखी रह सकेगा। यह पाप करने के बाद तो उसका संसार में कभी कल्याण नहीं सकता।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) रणभूमि से क्या आशय है?
(ii) महाभारत के अनुसार भीष्मपितामह कौन थे?
(iii) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए:
विरुद्ध, पूजनीय, कल्याण, सुखी
उत्तर
(i) जहाँ युद्ध होता है उस स्थल को रणभूमि कहा जाता है।
(ii) महाभारत के अनुसार भीष्म आजन्म ब्रह्मचारी थे और गंगा के पुत्र थे। उन्हें गंगेय भी कहा जाता है।
(iii) विलोम शब्दः
शब्द – विलोम
विरुद्ध – पक्ष
पूजनीय – निंदनीय
कल्याण – अकल्याण
सुखी – दुखी

6. हे पार्थ! यह सब मत सोच । जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर तू केवल युद्ध कर।

शब्दार्थ : पार्थ = अर्जुन । जय-पराजय = हार – जीत । लाभ-हानि = नुकसान-फायदा।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। उसने कहा कि मैं युद्धभूमि में अपने गुरुजनों के विरुद्ध कैसे लडूंगा? अगर ऐसा किया तो मेरा कभी कल्याण न होगा। यह अनुभव श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच । केवल युद्ध का निश्चय कर।

व्याख्या : अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे लिए युद्ध करना संभव नहीं है। कारण यह है कि आप मुझे उन आदरणीय सगे-संबंधियों से युद्ध करने के लिए कह रहे हैं जिनकी मैं प्रातःकाल पूजा करता हूँ। भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य के विरुद्ध मैं कैसे युद्ध कर सकता हूँ, इनकी तो मैं प्रतिदिन पूजा करता हूँ। इस पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तू यह सब मत सोच। जितना इन विषयों पर सोचेगा उतना ही युद्ध से मन हटेगा। कोई युद्ध में जीतता है या हारता है, किसी को युद्ध में हानि होती है या फायदा होता है, किसी को युद्ध करने में सुख मिलता है या दुख मिलता है, इनमें कोई अंतर नहीं है। यह सब समान समझकर सिर्फ युद्ध कर। नफे-नुकसान की परवाह करने लगेगा तो तू इस मोह के बंधन में फंसा ही रहेगा।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण ने इस संवाद में जीत और हार, लाभ और हानि तथा सुख और दुख को समान समझने का उपदेश दिया है।
  2. व्यक्ति के बंधन के कारण जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख व दुख में पड़े रहना है।
  3. जय-पराजय, लाभ-हानि सुख-दुख में द्वंद्व समास है।
  4. भाषा भावानुकूल व प्रवाहमय है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) पार्थ यह सब मत सोच। भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) ‘जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर युद्ध कर।’आशय स्पष्ट कीजिए।
(iii) पार्थ संबोधन किसके लिए है, किसने किया है?
उत्तर
(i) यह कथन श्रीकृष्ण का अर्जुन से है। अर्जुन मोह में लिप्त होने के कारण युद्ध करने से इसलिए मना कर रहा है क्योंकि जिनके साथ युद्ध करना है वे उसके आदरणीय हैं। उनका वध करना पाप है। ऐसा कर उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तेरा यह सव सोचना बेकार है। तेरे लिए हार-जीत, फायदा-नुकसान और सुख-दुख समान है। तू अपना ध्यान केवल युद्ध की ओर लगा।
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि युद्ध में चाहे विजय हो और चाहे पराजय, चाहे इससे लाभ होता हो और चाहे हानि, चाहे युद्ध से सुख मिल रहा हो या फिर
दुख, यह सब मत सोच। सोचना हो तो इन्हें समान समझ। सुख और दुख, हानि लाभ अथवा जय-पराजय को अगर समान समझेगा तो तुझे कभी मोह नहीं होगा।
(iii) पार्थ शब्द अर्जुन के लिए है। यह संबोधन श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए किया है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव क्या है?
(ii) जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख कौन से समास हैं?
(iii) इस संवाद में विलोम शब्दों का प्रयोग किया गया है, उनका चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव है, जय-पराजय हानि-लाभ और सुख-दुख में व्यक्ति को समान रहना चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही अपने निश्चय में सफलता प्राप्त कर पाता है।
(ii) जय-पराजय लाभ-हानि, सुख और दुख द्वंद्व समास हैं।
(iii) इस संवाद के विलोम शब्द हैं :
शब्द – विलोम
जय – पराजय
लाभ – हानि
सुख – दुख

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7. हे अर्जुन! तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है। उसके फल का नहीं

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।”

इसलिए मोह-माया को त्यागकर त केवल अपने कर्म को कर, फल की इच्छा त्याग दे।

शब्दार्थ : कर्मण्येवाधिकारस्ते = (कर्मणि = कर्म करने में, एव = निश्चिय ही, अधिकारः = अधिकार, ते = तुम्हारा) तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है। मा = कभी नहीं। फलेषु =कर्म फलों में। कदाचन = कदापि, कभी भी। कर्मफल = कर्म का फल। हेतुर्भूर्माः (हेतुः = कारण, भूः= होओ, मा= कभी नहीं।) कारण कभी मत होओ। ते = तुम्हारी। संगः = आसक्ति। अकर्मणि = कर्म न करने में। (अर्थात् तुम्हें अपना कर्म करने का अधिकार है, किंतु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो+तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।)

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच कि गुरुजनों के विरुद्ध कैसे युद्ध लडूंगा। तेरा कर्म युद्ध करना है फल की चिंता करना नहीं है। तू केवल युद्ध का निश्चय कर।

व्याख्या : अर्जुन का सगे-संबंधियों के प्रति ममता अभी छूटी नहीं है। जब श्रीकृष्ण उसे कहते हैं कि जीत-हार, हानि-लाभ सुख या दुख तो सब समान है केवल युद्ध में मन लगा तो उसके मन में पुनः संदेह उत्पन्न होता है कि मैं युद्ध में अपने सगे-संबंधियों को मार देता हूँ तो इससे मुझे क्या फल प्राप्त होना है? जब युद्ध से कोई फल ही नहीं मिलना है तो मैं युद्ध क्यों करूँ? इस पर श्रीकृष्ण उससे कह देते हैं कि तेरा काम केवल कर्म करना है अर्थात् कर्तव्य का पालन करना है, इसकी चिंता करना नहीं है कि इस युद्ध से मुझे क्या फल मिलने वाला है। कर्म करना ही तेरा अधिकार है, फल के बारे में कुछ मत सोच । इसलिए.तू मोह और माया को छोड़ दे। केवल कर्म करने के लिए तत्पर हो। इस कर्तव्यं से तुझे क्या फल मिलेगा, तू यह इच्छा ही क्यों करता है? केवल कर्त्तव्य ही कर।

विशेष-

  1. इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन ही नहीं व्यक्ति को केवल कर्म करने के लिए कहा है। उनका कहना है कि फल पर सोचने का हमारा अधिकार नहीं है। …
  2. इस संवाद से अर्जुन के मन के मोह का नाश हो जाता है।
  3. इस संवाद को प्रभावी बनाने के लिए एकांकीकार ने श्रीमद्भगवद्गीता का मूल. श्लोक उद्धत किया है:“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।”
  4. भाषा प्रभावशाली व प्रवाहपूर्ण है।
  5. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्नः

(i) इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या उपदेश दिया है?
(ii) “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।।
मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्तकर्मणि।” अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(iii) इस संवाद का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर
(i) इस संवाद में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश दिया है कि तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, फल का नहीं हैं।
(ii) इस श्लोक का भाव यह है : हे अर्जुन! तेरा अधिकार केवल कर्म करना है। यह चिंता करना नहीं है कि इससे क्या फल मिलेगा। इसलिए तू मोह और माया को छोड़ दें। केवल कर्म करने के लिए तत्पर हो। इस कर्त्तव्य से तुझे क्या फल मिलेगा, तू यह इच्छा ही क्यों करता है? तू तो केवल कर्त्तव्य कर।
(iii). इस संवाद का केंद्रीय भाव है कि कर्म करना करना हमारा अधिकार है फल की चिंता करना नहीं। इसलिए केवल कर्म कर।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) इस संवाद पर किसका प्रभाव है?
(ii) श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म का अधिकार क्यों दे रहे हैं फल का क्यों नहीं?
(iii) कर्मण्येवाधिकारस्ते शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर
(i) इस संवाद पर श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव है। यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीयं अध्याय में लिखा है और यह सैंतालीसवां श्लोक है।
(ii) श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कर्म करना ही हमारा अधिकार है, यह सोचना नहीं है कि इससे फल क्या मिलेगा। जो व्यक्ति फल की चिंता करने लगते हैं वे कर्म से दूर हो जाते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म करने का अधिकार दे रहे हैं।
(iii) कर्मण्येवाधिकारस्ते का अर्थ है कर्म करना ही तुम्हारा अधिकार है।

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8. हे कृष्ण! आज आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाशकर ज्ञानरूपी प्रकाश फैलाया है। आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है। अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा।

शब्दार्थ : मोह = सगे-संबंधियों पर ममता का भाव । संशय = संदेह।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से युद्ध न करने को मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि इस बारे में कुछ मत सोच कि गुरुजनों के विरुद्ध कैसे युद्ध लडूंगा। तेरा कर्म युद्ध करना है फल की चिंता करना नहीं है। तू केवल युद्ध का निश्चय कर। श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर अर्जुन चिंतामुक्त हो गया.और उनसे कहा कि मेरे मन का संदेह समाप्त हो गया है। अब मैं युद्ध करूँगा। –

व्याख्या : जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह कहा कि तुझे फल की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। तुझे तो केवल कर्त्तव्य का पालन करना है। यह देखना मेरा काम है कि तुझे किसी काम से फल मिलता है या नहीं। यह सुनकर अर्जुन के मन से मोह दूर हो गया। वह चिंतामुक्त हो गया। उसने श्रीकृष्ण से कहा कि आपने मेरे मन में छाए अज्ञान को दूर कर दिया। आपके सुवचनों से मेरा मन प्रकाशित हो गया। आपकी दया से मेरे मन का मोह चला गया है। अब मेरे मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं रहा है कि अगर अपने सगे-संबंधियों का वध करूँगा तो मुझे पाप मिलेगा। मैं अब युद्ध में अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ।

विशेष-

  1. श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म करने का संदेश देने में सफल हो गए हैं।
  2. अज्ञान को अंधकार कहा गया है तथा ज्ञान को प्रकाश । इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।
  3. श्रीमद्भगवद्गीता के कर्म करो व फल की चिंता मत करो वाला मूल श्लोक से संवाद कुछ कठिन हो गया है।
  4. संवाद में एकांकी का प्रतिपाद्य स्पष्ट है।
  5. भाषा संस्कृतनिष्ठ हो गई है।
  6. संवाद रंगमंचीय है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव लिखिए।
(ii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से क्या कहा?
(iii) ‘अब मैं बिना संशय के कर्तव्य पालन करूँगा’. भाव स्प्ष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) इस संवाद का केंद्रीय भाव यह है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मोह त्यागकर युद्ध के लिए तैयार होने के लिए कहा था, अर्जुन इसके लिए तैयार हो गया। अब उसके मन में अपने गुरुजनों व आदरणीयों पर अस्त्रशस्त्र संचालन में कोई दुविधा नहीं रही।
(ii) अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे मन में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो गया है। आप की कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है। अब मैं संशयहीन होकर अपना कर्तव्य पालन करूँगा।
(iii) अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि हे केशव! आपने मेरे मन में व्याप्त दुविधा समाप्त कर दी है। पहले मेरी चिंता का विषय यह था कि मैं अपने गुरुजनों या आदरणीयों का वध करूँगा तो मुझे पाप लगेगा। इस कर्म से मेरा कल्याण नहीं होगा पर अब यह बात समाप्त हो गई है। मैं अब संशयहीन होकर युद्ध में
अपना कर्तव्य पालन के लिए तैयार हूँ।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) अज्ञान के नाश होने पर अर्जुन के मन में किसका प्रकाश हुआ?
(ii) ‘अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा’ इस वाक्य से अर्जुन का कैसा चरित्र दर्शकों के समक्ष आता है?
(iii) क्या इस संवाद को रंगमंचीय कहा जा सकता है?
उत्तर
(i) अज्ञान के बाद अर्जुन के मन में ज्ञान रूपी प्रकाश फैल गया।
(ii) अब मैं बिना किसी संशय के अपने कर्तव्य का पालन करूँगा से अर्जुन के चरित्र का यह गुण प्रकट होता है कि वह कर्त्तव्यपालक है।
(iii) यह संवाद निश्चित रूप से रंगमंचीय है क्योंकि यह संक्षिप्त है, सारगर्भित है और सरल व सरस शब्दावली से युक्त है।

9. हाँ बच्चो! सुख-दुख एवं हानि-लाभ को हमें एक समान इसलिए समझना चाहिए क्योंकि सुख और दुख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।

शब्दार्थ : सुख-दुख = सुख और दुख । बंधन = फंसना, बंधना।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? रोहिणी कहती है कि सुख-दुख व लाभ-हानि में सबको समान रहना चाहिए। अशोक कहता है कि पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। यहाँ गुरु जी बच्चों के कथन का समर्थन कर रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने बच्चों से पूछा था कि श्रीमद्भगवद्गीता के अंश पर आधारित नाटक से आपको क्या शिक्षा मिलती है? इस पर बच्चों ने उन्हें बताया था कि इस अंश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सुख और दुख, पाप और पुण्य और लाभ-हानि में समान रहना चाहिए। बच्चों के उत्तर से गुरु जी सहमति जताते हैं। उन्हें बताते हैं कि यह बिलकुल ठीक है। हमें सुख हो चाहे दुख, हमें चाहे नुकसान हो जाए और चाहे फायदा, दोनों ही स्थितियों में समान भाव रखना चाहिए। अगर ऐसा न करते हैं तो हम बंधन में बंध जाते हैं। हमारे मन में तरह-तरह का मोह पैदा हो जाता है। इस कारण हम अपने कर्त्तव्य को पूरा नहीं कर पाते।

विशेष-

  1. गुरुजी ने बच्चों से नाटक से मिलने वाली शिक्षा पूछी जिसका उन्हें सही उत्तर मिला।
  2. बच्चों को गुरु जी ने समझाया कि उन्हें सुख-दुख और हानि-लाभ में एक जैसा मन रखना चाहिए। ऐसा न करने पर हम अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं कर पाते।
  3. भाषा सरल और सरस है। भावानुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) गुरुजी ने अपने शिष्यों को इस संवाद के माध्यम से क्या संदेश दिया?
(ii) सुख और दुख, लाभ-हानि में एक समान रहने से क्या अभिप्राय है?
(iii) सुख और दुख या लाभ या हानि हमें बंधन में किस प्रकार डालते हैं?
उत्तर
(i) गुरु जी ने अपने शिष्यों से कहा कि हमें सुख-दुख, लाभ-हानि को एक समान समझना चाहिए। अगर ऐसा समझा जाएगा तो हम इनके कारण होने वाले बंधन से अपने को दूर कर सकते हैं।
(ii) अगर हमें किसी कारण सुख मिलता है तो यह मानना चाहिए कि दुख भी आएगा। और दुख में भी हमें उसी तरह अपने मन को स्वस्थ रखना है जिस तरह सुख में रखा है। इसी तरह अगर हमें किसी कारण हानि हो जाती है तो अपना व्यवहार उसी तरह रखना चाहिए जैसे लाभ होने पर रखते हैं। जब इस तरह के भावों में किसी प्रकार का भेद नहीं समझेंगे, तब हम निश्चित रूप से एक समान रहना सीख जाएंगे। न तो हमें सुख होने पर अतिशय प्रसन्नता होगी और न दुख होने पर अतिशय दुख। हम सुख और दुख में समान रहेंगे।
(iii) जब हम दुख और सुख को अलग अलग मानने लगते हैं. तब हम बंधन में बंध जाते हैं। सुख देखकर कहते हैं कि हमें दुख कभी न आए। इसी तरह अगर लाभ प्राप्त कर रहे हैं तो चाहते हैं कि हानि कभी न आए। यही बंधन कहलाता है।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) सुख दुख को समान समझना चाहिए इसे गुरु जी अपने शिष्यों को किस माध्यम से समझाया?
(ii) एकांकीकार ने यह संवाद क्यों लिखा?
(iii). इस संवाद के तत्सम शब्दों को लिखिए।
उत्तर
(i) सुख दुख को समान समझना चाहिए इसे गुरु जी ने बच्चों से श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का अभिनय करवाकर समझाया।
(ii) गुरु जी ने बच्चों से पूछा था कि इस नाटक से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है, बच्चों ने इससे मिलने वाली शिक्षा के बारे में बताया। तब बच्चों की बात का समर्थन करते हुए गुरु जी ने कहा कि बिलकुल ठीक। हमें सुख और दुख, हानि और लाभ में समान रहना चाहिए। .
(iii) संवाद के तत्सम शब्द :
सुख – दुख
हानि – लाभ
समान – बंधन

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10. जव हमें सुख मिलता है तो हम इस चिंता में पड़ जाते हैं कि कहीं यह सुख हमसे छिन न जाए और जब हम दुख में भी नहीं होते तब भी इस चिंता में रहते हैं कि कहीं दुःख न आ जाए। यही तो वह बंधन है जिससे हम मुक्त नहीं हो पाते।

शब्दार्थ : मुक्त = स्वतंत्र। प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी ने बच्चों से कहा था कि हमें सुख और दुख में समान व्यवहार करना चाहिए। ऐसा न करने पर हमें बंधन घेर लेता है। इस पर रोहिणी ने पूछा था कि बंधन क्या होता है? गुरु जी इस संवाद में उसे उत्तर दे रहे हैं।

व्याख्या : हम सुख और दुख को समान नहीं देख पाते। यही बंधन होता है। वस्तुतः जब हमारे जीवन में कभी सुख आता है तो हमारे सामने यह समस्या आकर खड़ी हो जाती है कि आखिर इस सुख की कैसे रक्षा की जाए। कहीं ऐसा न हो कि कोई यह हमसे छीन कर ले जाए और हम फिर दुख में घिर जाएं। हमारी यह स्थिति होती है कि हमें चाहे दुख ने आकर घेरा न हो पर तब भी हम इस चिंता में डूब जाते हैं कि कहीं यह आ न जाए। यही एक बंधन है कि हम सुख की रक्षा करने का प्रयास करते हैं और दुख आने की आशंका में चिन्तित रहते हैं। यह मोह के कारण है और इसे ही बंधन कहा जाता है।

विशेष-

  1. इस संवाद में एकांकीकार ने बंधन को परिभाषित किया है।
  2. एकांकीकार ने गीता का हवाला देकर कहा है कि सुख आने पर इसके जाने का भय रहता है और दुख न होने पर भी दुख के आने का। यही बंधन कहलाता है।
  3. संवाद दार्शनिक हो गया है।
  4. रंगमंचीय भाषा है। प्रवाहमय और प्रभावपूर्ण है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सुख मिलने पर हम क्या चिंता करते हैं?
(ii) दुख में न होने पर भी हमारी चिंता क्यों बढ़ जाती है?
(iii) किस बंधन से हम मुक्त नहीं हो पाते?
उत्तर
(i) जब हमें सुख प्राप्त हो जाता है तो हम चिंता करते हैं कि यह हमारे . पास हमेशा रहे। हम सदैव ऐसा प्रयास करते हैं कि यह हमसे छिन न जाए। ..
(ii) हम सुख में रहते हुए इस चिंता में हमेशा डूबे रहते हैं कि कहीं हमें दुख न प्राप्त हो जाए। चाहे हम सुख से रह रहे हैं, और हमें दुख ने आकर घेरा भी न हो पर इस चिंता में सूखते चले जाते हैं कि कहीं दुख आ न जाए। अगर दुख आ गया तो हमें वह सहन करना कठिन हो जाएगा।
(iii) सुख में दुख आने की संभावित आशंका से हम व्यथित रहने लगते हैं। इसे ही गीता के अनुसार बंधन कहा गया है। और इस बंधन से हम आजन्म मुक्त नहीं हो पाते।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) गुरु जी ने किस शिष्य के प्रश्न पर यह उत्तर दिया?
(ii) सुख में दुख को अनुभव कब नहीं हो सकता?
(iii) संवाद से तत्सम शब्दों का चुनाव कीजिए।
उत्तर
(i) गुरु जी से रोहिणी ने पूछा था कि बंधन क्या होता है, गुरु जी ने इस संवाद में रोहिणी के प्रश्न का सटीक उत्तर दिया।
(ii) जब हम सुख और दुख को समान भाव से समझने लगेंगे तब सुख में दुख का अनुभव नहीं हो सकता।
(iii) संवाद से तत्सम शब्दों का चुनाव :
सुख – चिंता
बंधन – मुक्त

11. एकदम सही प्रश्न किया तुमने! मान लो किसी कमरे में बहुत लंबे समय से घना अँधेरा है किंतु जैसे ही उसमें प्रकाश किया जाता है अँधेरा अपने आप दूर हो जाता है। उसी प्रकार अतीत में किए गए पापों का अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।

शब्दार्थ : एकदम = बिलकुल । घना = ज्यादा । प्रकाश = रोशनी। अतीत = भूतकाल, बीता हुआ समय।।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? इसी क्रम में नकुल गुरु जी से पूछता है कि हमें भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए। गुरु जी इस संवाद में उसके प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने नकुल से कहा कि तुम्हारा प्रश्न उचित है। हमें निश्चित रूप से पाप और पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। किसी कमरे में काफी समय से अँधेरा छाया हुआ है। जब उसमें प्रकाश कर दिया जाता है तो उस कमरे का अँधेरा स्वयं दूर हो जाता है, उसी तरह अगर हमने बीते समय में बहुत ज्यादा पाप किए हैं तो पुण्य का एक ही काम सब पापों को दूर कर देता है। इसीलिए कहा गया है कि व्यक्ति को पाप और पुण्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। इन्हें तो समान समझना चाहिए। पाप के बाद पुण्य और पुण्य के बाद पाप आता रहता है। जो इसे समान समझते हैं उन्हें इस संबंध में कोई भ्रम नहीं होता।

विशेष-

  1. इस संवाद में गुरु जी ने शिष्य के इस प्रश्न का उत्तर दिया है कि पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए।
  2. पाप-पुण्य के भ्रम से दूर रहने के लिए उदाहरण का आश्रय लिया गया है।
  3. इसे दृष्टांत या उदाहरण अलंकार कहा जा सकता है।
  4. भाषा भाव के अनुकूल है और प्रवाहमय है।
  5. रंगमंचीय संवाद है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्नः
(i) नकुल ने गुरु जी से क्या प्रश्न किया?
(ii) पाप-पुण्य के भ्रम को दूर करने के लिए गुरुजी ने क्या उदाहरण दिया?
(iii) पाप और पुण्य के भ्रम में हमें क्यों नहीं पड़ना चाहिए?
उत्तर
(i) नकुल ने गुरु जी से प्रश्न किया कि हमें पाप और पुण्य के भ्रम में क्यों नहीं पड़ना चाहिए।
(ii) पाप-पुण्य के भ्रम को दूर करने के लिए गुरु जी सटीक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि जैसे अंधकारभरे कमरे में प्रकाश करने पर अंधेरा स्वयं दूर हो जाता है उसी प्रकार हमने कितने भी पाप किए हैं हमारा एक पुण्य का काम सभी पापों को दूर कर देता है।
(iii) पाप और पुण्य का आना-जाना लगा ही रहता है। इसलिए इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए कि अमुक काम करने पर पाप लगेगा और अमुक करने पर पुण्य पाप-पुण्य को सुख-दुख की तरह समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) पाप-पुण्य के भ्रम में न पड़ने के प्रश्न पर गुरुजी की क्या प्रतिक्रिया थी?
(ii) अंधकारमय कमरे में प्रकाश करने से अंधेरा स्वयं दूर हो जाता है, इस उदाहरण का औचित्य क्या है?
(iii) निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए : सही, प्रश्न, लंबे, घना, अँधेरा, अतीत, दूर।
उत्तर
(i) पाप-पुण्य के भ्रम पर न पड़ने वाले नकुल के प्रश्न को गुरु जी ने एकदम सही प्रश्न बताया।
(ii) यह स्वाभाविक है। अगर किसी कमरे के भीतर लंबे समय से अंधकार छाया है तो प्रकाश से अंधकार स्वयं दूर हो जाता है। इस उदाहारण का औचित्य है कि पापों का समूह भी एक पुण्य से ही नष्ट हो जाता है। वस्तुतः यह भ्रम है। जैसे सुख-दुख में व्यक्ति को समान रहना चाहिए उसी प्रकार पाप और पुण्य के भाव में भी समान ही रहना चाहिए।
(iii) शब्दों के विलोम शब्द
शब्द – विलोम
सही – गलत
प्रश्न – उत्तर
लंबे – छोटे
घना – कम
अँधेरा – प्रकाश
अतीत – वर्तमान

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12. कृष्ण ने अर्जुन से ऐसा क्यों कहा कि तू केवल अपने कर्तव्य को कर फल की इच्छा त्याग दे। गुरु जी! जब फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्म क्यों करेंगे?

शब्दार्थ : केवल = मात्र। इच्छा = ख्वाइश। कर्म = कर्तव्य। – प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक
पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? नाटक देखकर सिद्धार्थ के मन में एक दुविधा पैदा हो गई। इसमें गुरु जी सिद्धार्थ की इसी दुविधा को दूर कर रहे हैं।

व्याख्या : जब कक्षा में श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित अंश को नाटक के रूप में मंचित किया जा रहा था तब बच्चों ने देखा था कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि तू केवल कर्म कर, फल की इच्छा त्याग दे। यह संवाद सुनकर सिद्धार्थ के हृदय में एक दुविधा पैदा हो गई थी। उसने गुरु जी से इस दुविधा के बारे में पूछा था कि श्रीकृष्ण ने यह बात क्यों कही कि केवल कर्तव्य कर फल की इच्छा मत कर। अगर फल की इच्छा न होगी तो तब कोई कर्म करेगा ही क्यों?

विशेष-

  1. सिद्धार्थ के मन में यह शंका उठनी स्वाभाविक ही है कि जब हम कर्म करने के बाद फल ही प्राप्त नहीं कर पाएँगे तब हमें कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है?
  2. इसी तरह की शंका अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अप्रत्यक्षतः की थी परिणामतः उन्होंने उसे कर्म करने व फल की चिंता न करने का उपदेश दिया था।
  3. भाषा सरल और सरस है, भावानुकूल है।
  4. संवाद रंगमंचीय विशेषताएँ लिए हुए है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) सिद्धार्थ के मन में क्या दुविधा उत्पन्न में हुई?
(ii) ‘तू केवल अपने कर्तव्य को कर फल की इच्छा त्याग दे’ आशय समझाइए।
(iii) ‘गुरु जी फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्त्तव्य क्यों करेंगे?’
उत्तर
(i) सिद्धार्थ के मन में दुविधा पैदा हुई कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ये क्यों कहा कि कर्तव्य कर फल की इच्छा त्याग दे। अगर कोई फल की इच्छा ही नहीं करेगा तो कर्त्तव्य क्यों करेगा।
(ii) यह कथन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि तुझे केवल कर्म करना चाहिए अर्थात् कर्त्तव्य करना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि इस कर्तव्य को करने पर मुझे क्या फल मिलेगा। जो लोग कर्त्तव्य करने से पहले फल की इच्छा करने लगते हैं, वे ठीक से अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पाते, परिणामतः उन्हें उसका उचित फल भी प्राप्त नहीं करते।
(iii) यह प्रश्न सिद्धार्थ ने गुरु जी से किया है। गुरु जी अपने छात्रों को बता रहे थे कि उन्हें केवल कर्म या कर्त्तव्य करना चाहिए, उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस पर सिद्धार्थ ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति कर्म या कर्त्तव्य इसलिए करता है ताकि उसे उसका उचित फल प्राप्त हो। अगर वह फल की इच्छा ही नहीं क़रेगा तो वह अपना मन कर्त्तव्य में क्यों लगाएगा?

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कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) फल की इच्छा त्यागने और कर्म या कर्त्तव्य बात गीता में किसने किससे और क्यों कही है?
(ii) गीता में किस अध्याय में कहा गया है कि कर्म कर फल की चिंता मत कर।
(iii) कर्त्तव्य, इच्छा, कर्म शब्दों का वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि अर्थ स्पष्ट हो जाए।
उत्तर
(i) फल की इच्छा त्यागने और कर्म या कर्त्तव्य करने की बात श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कही है। इसलिए कही है कि रणभूमि में गुरुजनों व निकटतम संबंधियों को खड़े देखकर अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न हो गया था।
(ii) श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में कहा गया है कि कर्म करना ही तेरा अधिकार है फल की चिंता करना नहीं। यह कथन इस अध्याय के सैंतालीसवें श्लोक में है।
(iii) वाक्य में प्रयोग :
शब्द – वाक्य
कर्तव्य – आप अपने कर्तव्य का निर्वहण कीजिए, शेष मुझ पर छोड़ दीजिए।
इच्छा – केवल इच्छा करने से ही सफलता नहीं मिलती, परिश्रम भी करना पड़ता है।
कर्म- जैसा व्यक्ति कर्म करता है उसके अनुसार ही उसे फल मिलता

13. अब ये बताओ, यदि इन वृक्षों को लगानेवाला व्यक्ति ये सोचता कि इनके फल मुझे खाने को मिलेंगे तभी मैं इन्हें लगाऊँगा। तब तो कोई भी व्यक्ति न तो वृक्ष लगाता और न ही हमें उसके फल खाने को मिलते। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपना कर्म करना चाहिए। है ना?

शब्दार्थ : वृक्षों = पेड़ों। प्रत्येक = हरेक, हर एक।

प्रसंग : यह संवाद डॉ. छाया पाठक लिखित ‘कर्त्तव्य पालन’ शीर्षक एकांकी के दूसरे दृश्य से लिया गया है। एकांकी के दूसरे दृश्य में गुरु जी ने बच्चों से नाटक का अभिनय कराया था। यह अभिनय श्रीमद्भगवद्गीता के एक अंश का था। नाटक पूरा होने पर गुरु व बच्चे प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। गुरु जी बच्चों से पूछते हैं कि इस नाटक से तुमने क्या सीखा? जब गुरु जी नाटक की शिक्षा के बारे में बच्चों से बात करे रहे थे तब एक विद्यार्थी सिद्धार्थ ने पूछा कि अगर हमारे मन में फल की इच्छा नहीं होगी तो हम कर्म करेंगे ही क्यों? गुरु जी सिद्धार्थ को उदाहरण के द्वारा अपनी बात समझा रहे हैं।

व्याख्या : गुरु जी ने सिद्धार्थ के प्रश्न का उत्तर देने से पहले बच्चों से पूछा कि हम यहाँ मेवे व फल आदि खाते हैं, क्या ये वृक्ष हमने लगाए थे? इस पर सभी छात्र कहते हैं कि नहीं, हमने वे वृक्ष नहीं लगाए। हम तो उनसे उतरे या टूटे फल खा रहे हैं। वे फिर पूछते हैं कि अगर कोई व्यक्ति वृक्ष लगता है और यह सोचता है कि अगर इसके फल मुझे खाने को मिलेंगे तो लगाऊँगा। तो ऐसा तो कभी होता नहीं है। वृक्ष कोई लगाता है उसके फल कोई ओर खाता है। ऐसे में कर्म करने वाला कोई और है और फल खाने वाला कोई ओर । वृक्ष किसने लगाया लेकिन उसका फल उसने नहीं खाया। उसका फल खाया किसी अन्य ने, जैसे आम का पेड़ लगाया मुरादाबाद के एक व्यक्ति ने और फल खाने वाले हुए उज्जैन की मंडी में आम खरीदने वाले हम लोग। अतः हमें केवल कर्म करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

विशेष

  1. एकांकीकार ने गुरु जी के माध्यम से बच्चों को उदाहरण के साथ समझाया है कि हमें कर्म करना चाहिए किंतु फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
  2. उदाहरण और दृष्टांत अलंकार है।
  3. भाषा सरल और सहज है। भावानुकूल है।
  4. संवाद रंगमंच के अनुकूल है।

कर्त्तव्य पालन अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(i) वृक्ष लगाने वाला व्यक्ति क्या सोच सकता है?
(ii) वृक्ष लगाने वाले व्यक्ति की सोच का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता?
(iii) यह संवाद किस ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर
(i) वृक्ष लगाने वाला व्यक्ति सोच सकता है कि जब इस वृक्ष के फल मुझे ग्रहण करने ही नहीं हैं तो मैं इसे लगाऊँगा ही क्यों? मुझे तो ये तभी लगाने चाहिए जब इसके फल खाने के लिए उसे भी मिलें।
(ii) अगर वृक्ष लगाने वाला यह सोच लेता कि मैं वृक्ष तभी लगाऊँगा जब मुझे इसके फल खाने को मिलेंगे तो संभवतः वह वृक्ष लगाता ही नहीं। कौन जाने कब वृक्ष फल देगा और लगाने वाला तब न जाने कहाँ होगा। ऐसी स्थिति में वह वृक्ष नहीं लगाता। और हमें भी वृक्ष पर आए फल खाने को नहीं मिलते।
(iii) यह संवाद संकेत कर रहा है कि व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

कर्त्तव्य पालन बोधात्मक प्रश्नोत्तर

(i) संवाद में ‘अब ये बताओ’ वाक्यांश किसका है और किसके लिए कहा गया है?
(ii) इस संवाद का पूर्व प्रसंग संक्षेप में बताइए।
(iii) पर्यायवाची शब्द लिखिए:
वृक्ष, फल, कर्म
उत्तर
(i) संवाद में अब ये बताओ कथन गुरुजी का है और सिद्धार्थ के लिए कहा गया है।
(ii) इस संवाद का पूर्व प्रसंग यह है-गुरु जी ने कहा था कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस पर सिद्धार्थ के मन में एक दुविधा पैदा हो गई थी कि अगर हम बिना फल के कर्तव्य करेंगे तो कोई नहीं करेगा क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तभी किसी कार्य को करने के लिए तत्पर होता है जब उसे उससे फल की आशा होती है। इसी प्रसंग के साथ यह संवाद आरम्भ होता है और गुरु जी उदाहरण के माध्यम से सिद्धार्थ के मन की दुविधा का अंत करते हैं।
(iii) पर्यायवाची शब्द
शब्द – पर्यायवाची शब्द
वृक्ष – तरु
फल – परिणाम
कर्म – कर्तव्य

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MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध

MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध

प्रश्न 1.
कविता की परिभाषा और विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
परिभाषा-कविता को परिभाषित करते हुए सुप्रसिद्ध समालोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है

“कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है।”

विशेषताएँ-उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार कविता की तीन विशेषताएँ दिखाई देती हैं

  1. कविता मानव एकता की प्रतिष्ठा करने का साधन है और यही उसकी उपयोगिता है।
  2. कविता में भावों और कल्पना की प्रधानता रहती है।
  3. कविता में कवि की अनुभूति की अभिव्यक्ति रहती है।

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प्रश्न 2.
कविता के स्वरूप के कौन-से पक्ष होते हैं?
उत्तर-
कविता का बाह्य स्वरूप-कविता के दो पक्ष होते हैं

  1. अनुभूति,
  2. भिव्यक्ति।

(1) अनुभूति के पक्ष का सम्बन्ध कविता के आन्तरिक स्वरूप से है।
(2) अभिव्यक्ति का सम्बन्ध कविता के बाह्य रूप से है। कविता के बाह्य रूप के निर्धारण में निम्नलिखित कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है-

  • लय,
  • तुक,
  • छन्द,
  • शब्द योजना,
  • काव्य भाषा,
  • अलंकार,
  • काव्य गुण।

कविता का आन्तरिक स्वरूप-

  1. कविता के आन्तरिक स्वरूप से रसात्मकता, अनुभूति की तीव्रता, भाव और विचारों का समावेश तथा कल्पना की सृजनात्मकता से उत्पन्न सौन्दर्य बोध का सम्बन्ध हुआ करता है।
  2. कविता के स्वरूप के अन्तर्गत भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य तथा अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य सम्मिलित हुआ करता है।

प्रश्न 3.
काव्य भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य-भेद-

  1. दृश्य काव्य,
  2. श्रव्य काव्य।

(1) दृश्य काव्य को हम आँखों से देखते हैं और कानों से सुनते हैं।
(2) श्रव्य काव्य को सुनकर ही उसका रसास्वादन किया जाता है। शैली के आधार पर काव्य भेद-शैली के आधार पर काव्य भेद दो हैं

  1. प्रबन्ध काव्य,
  2. मुक्तक काव्य।

(1) प्रबन्ध काव्य-प्रबन्ध काव्य में महाकव्य, खण्डकाव्य तथा आख्यानक गीतियाँ आती हैं।
(2) मुक्तक काव्य—मुक्तक काव्य में पाठ्य मुक्तक, गेय मुक्तक शामिल हैं।

प्रश्न 4.
महाकाव्य के लक्षण बताइए और उसकी कथा की विशेषता लिखिए।
उत्तर-
महाकाव्य-महाकाव्य के लक्षण (परिभाषा) निम्न प्रकार है

  1. इसमें जीवन की विशद् व्याख्या होती है।
  2. इसकी कथा इतिहास प्रसिद्ध होती है।
  3. महाकाव्य का नायक उदात्त चरित्र, धीर-वीर और गम्भीर होता है।
  4. महाकाव्य में श्रृंगार, शान्त और वीर रस में से कोई एक रस प्रधान रस होता है। शेष रस गौण होते हैं।
  5. महाकाव्य सर्गबद्ध होता है। इसमें कम-से-कम आठ सर्ग होते हैं।

महाकाव्य की कथा की विशेषता-

  1. महाकाव्य की कथा धारा-प्रवाही मार्मिक प्रसंगों पर आधारित होती है।
  2. मूलकथा के साथ-साथ अन्य सहायक कथांश भी इसमें प्रारम्भ से अन्त तक आकर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  3. सहायक कथांशों से मूलकथा परिपुष्ट होती है।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रसिद्ध महाकाव्य और उनके रचयिताओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
हिन्दी के प्रसिद्ध महाकाव्य और उनके रचयिता
महाकाव्य – रचयिता

  1. रामचरितमानस – गोस्वामी तुलसीदास
  2. पद्मावत मलिक – मुहम्मद जायसी
  3. साकेत – मैथिलीशरण गुप्त
  4. कामायनी – जयशंकर प्रसाद
  5. उर्वशी – रामधारीसिंह ‘दिनकर’

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प्रश्न 6.
खण्डकाव्य किसे कहते हैं? हिन्दी के प्रसिद्ध खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर-
खण्डकाव्य-खण्डकाव्य वह रचना है जिसमें जीवन का कोई एक भाग, एक घटना अथवा एक चरित्र का चित्रण होता है। खण्डकाव्य अपने आप में एक पूर्ण रचना होती है। सम्पूर्ण रचना एक ही छन्द में पूर्ण होती है।

हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध खण्डकाव्य-पंचवटी, जयद्रथ वध, नहुष, सुदामा-चरित, पथिक, हल्दीघाटी इत्यादि।

प्रश्न 7.
आख्यानक कृतियाँ किसे कहते हैं? स्पष्ट लिखिए।
उत्तर-
आख्यानक कृतियाँ-महाकाव्य और खण्डकाव्य से भिन्न पदबद्ध कहानी ही आख्यानक कृति है। इसमें वीरता, साहस, पराक्रम, प्रेम और बलिदान, करुणा आदि से सम्बन्धित प्रेरक घटना प्रसंगों को कथा के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। इसकी भाषा सरल, स्पष्ट और रोचक होती है। गीतात्मकता और नाटकीयात्मकता इसकी विशेषता है। झाँसी की रानी, रंग में भंग, तुलसीदास आदि आख्यानक कृतियों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
मुक्तक काव्य किसे कहते हैं? इसके दो प्रकार भी बताइए।
उत्तर-
मुक्तक काव्यं-मुक्तक काव्य में एक अनुभूति, एक भाव और एक ही कल्पना का चित्रण होता है। मुक्तक काव्य की भाषा सरल एवं स्पष्ट होती है। वर्ण्य विषय अपने आप में पूर्ण होता है। इसका प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र होता है। उदाहरण-बिहारी, रहीम, वृन्द, सूर, मीरा के दोहे और पद।

मुक्तक काव्य दो प्रकार के होते हैं-

  1. पाठ्य मुक्तक,
  2. गेय मुक्तक।

पाठ्य मुक्तक-पाठ्य मुक्तक में विषय की प्रधानता होती है। प्रसंगानुसार भावानुभूति व कल्पना का चित्रण होता है तथा किसी विचार या रीति का भी चित्रण होता है।

गेय मुक्तक-इसे गीति या प्रगीति काव्य भी कहते हैं। इसमें-

  1. भाव प्रवणता,
  2. सौन्दर्य बोध,
  3. अभिव्यक्ति की संक्षिप्तता,
  4. संगीतात्मकता,
  5. लयात्मकता की प्रधानता होती है।

रस

प्रश्न 1.
रस किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
रस को काव्य की आत्मा बताया गया है। जिस तरह आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं होता, उसी तरह रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना गया है। ‘रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्’ अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।

यदि काव्य की तुलना मनुष्य से की जाए तो शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर, अलंकारों को आभूषण, छन्दों को उसका बाह्य परिधान तथा रस को आत्मा कह सकते हैं। काव्य में रस का अर्थ आनन्द बताया गया है। साहित्यशास्त्र में ‘रस’ का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनन्द होता है। अतः “काव्य के पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनन्द मिलता है, वही काव्य में रस कहलाता है।”

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प्रश्न 2.
रस के अंगों (रस को आस्वाद योग्य बनाने में सहायक अवयव) को स्पष्ट रूप से बताइए।
उत्तर-
रस के अंग चार होते हैं-

  • स्थायीभाव,
  • विभाव,
  • अनुभाव,
  • संचारीभाव।

विभाव के दो भेद होते हैं-

  • आलम्बन,
  • उद्दीपन।

आलम्बन भी दो प्रकार का होता है-

  • आशय,
  • विषय।

प्रश्न 3.
रस के भेद बताइए तथा प्रत्येक रस के स्थायी भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रस – स्थायी भाव

  1. शृंगार – रति
  2. हास्य – हास
  3. करुण – शोक
  4. रौद्र – क्रोध
  5. वीभत्स – जुगुप्सा
  6. भयानक – भय
  7. अद्भुत – विस्मय
  8. वीर – उत्साह
  9. शान्त – निर्वेद

विशेष-आचार्य भरत ने नाटक में आठ रस माने हैं। परवर्ती आचार्यों ने शान्त रस को अतिरिक्त स्वीकृति देकर कुल नौ रस निश्चित कर दिए। काव्य में महाकवि सूरदास ने वात्सल्य प्रधान मधुर पदों की रचना की तो एक अन्य रस-‘वात्सल्य रस’ की भी स्थापना हो गई। आजकल भक्ति को भी रस रूप में स्वीकृति दिये जाने का आग्रह चल रहा है।

प्रश्न 4.
शृंगार रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
शृंगार रस की निष्पत्ति ‘रति’ स्थायी भाव के संयोग से होती है। इसके दो भेद हैं-

  • संयोग शृंगार,
  • वियोग शृंगार।

संयोग शृंगार रस में नायक-नायिका के संयोग (मिलन) की स्थिति का वर्णन होता है।

उदाहरण-
“बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें, भौंहनि हंसै, दैन कहे नटि जाय॥”

वियोग श्रृंगार रस में नायक-नायिका के बिछुड़ने का तथा दूर देश में रहने की स्थिति का वर्णन, वियोग श्रृंगार की व्यंजना करता है-
उदाहरण-
“आँखों में प्रियमूर्ति थी, भूले थे सब भोग।
हुआ योग से भी अधिक, उसका विषम वियोग॥”

प्रश्न 5.
हास्य, करुण और रौद्र रस की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।
उत्तर-
हास्य रस-किसी व्यक्ति के विकृत वेश, आकृति तथा वाणी आदि को देख व सुनकर हँसी उत्पन्न हो उठती है, वैसा ही वहाँ का वर्णन होता है, तो वहाँ हास्य रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
“जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सजधज कर।
मन करता धक्का दे दूल्हे को, जा बैतूं घोड़े पर।
सपने में ही मुझको अपनी, शादी होती दिखती है।
वरमालाले दुल्हन बढ़ती, बस नींद तभी खुल जाती है।”

करुण रस-प्रिय वस्तु के विनाश अथवा अनिष्ट के होने से चित्त में आती हुई विकलता करुण रस को उत्पन्न करती है।

उदाहरण-
“अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले भीनचुम्बन-शून्यकपोल,
हाय ! रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अंगार।।”

रौद्र रस-जब क्रोध नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट हआ रस दशा को प्राप्त होता है, तो वहाँ रौद्र रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
सुनत लखन के वचन कठोरा।
परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि देउ दोष मोहि लोगू।
कटु वादी बालक वध जोगू॥

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित रसों के स्थायी भाव सहित परिभाषा लिखिए और प्रत्येक का उदाहरण भी दीजिए-
(1) वीर रस,
(2) भयानक रस।
उत्तर-
(1) वीर रस-वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। वीर रस की निष्पत्ति ओजस्वी वीर घोषणाओं या वीर गीतों को सुनकर अथवा उत्साह बढ़ाने वाले कार्यकलापों को देखने से होती है।
उदाहरण-
“वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें जीवन की रवानी नहीं॥”

(2) भयानक रस-भयानक रस का स्थायी भाव ‘भय’ है। प्रकृति के डरावने दृश्यों, अथवां बलवान शत्रु के प्राणनाशक बोलों को सुनकर भय की उत्पत्ति होने पर भयानक रस की निष्पत्ति होती है।

उदाहरण-
‘हाहाकार हुआ कन्दन मय,
कठिन वज्र होते थे चूर।
हुए दिगन्त बधिर भीषण
रव बार-बार होता था क्रूर॥

अलंकार

प्रश्न 1.
अलंकार का क्या तात्पर्य है? अलंकार की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
अलंकार से तात्पर्य है-शृंगार करना या सजाना या आभूषित करना। जिस तरह एक नारी आभूषणों से अपने शरीर की सज्जा करती है, उसी तरह अलंकार वे तत्व हैं जिनसे काव्य की शोभा बढ़ती है। आचार्य विश्वनाथ के शब्दों में, “अलंकार शब्द-अर्थ स्वरूप काव्य के अस्थिर धर्म हैं और भावों और रसों का उत्कर्ष करते हुए वैसे ही काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, जैसे हार आदि आभूषण नारी की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं।”

प्रश्न 2.
अलंकार के भेद बताओ और प्रत्येक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
अलंकार के भेद तीन होते हैं-

  1. शब्दालंकार,
  2. अर्थालंकार,
  3. उभयालंकार।

(1) शब्दालंकार-शब्द विशेष के चमत्कार द्वारा जो अलंकार कविता का सौन्दर्य बढ़ाएँ, वे शब्दालंकार होते हैं।
(2) अर्थालंकार-काव्य में जहाँ अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते हैं, वे अर्थालंकार कहलाते हैं।
(3) उभयालंकार-शब्द एवं अर्थ दोनों में चमत्कार पैदा करके काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, वे उभयालंकार होते हैं।

प्रश्न 3.
शब्दालंकार के भेद बताइए और प्रत्येक की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
शब्दालंकार के प्रमुख तीन भेद हैं-

  1. अनुप्रास,
  2. यमक,
  3. श्लेष।

(1) अनुप्रास-जिस काव्य रचना में व्यंजन वर्ण की दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे-
“तरनि तनूजा तट तमाल, तरुवर बहु छाए।”

यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृत्ति की गई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(2) यमक-यमक अलंकार में एक शब्द बार-बार आए, किन्तु उसका अर्थ हर बार अलग-अलग हो, तो वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे
“माला फेरत जुग गया, गया न मन को फेर।
करका मनका डारि के मनका मनका फेरि॥”

यहाँ मनका शब्द के दो अर्थ हैं-पहले मन का अर्थ ‘मोती’ तथा दूसरे मन का अर्थ ‘हृदय’ से है।

(3) श्लेष अलंकार-श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ होते हैं।

जैसे-
चिरजीवी जोरी जुरै क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर॥

वृषभानुजा = वृषभानु की पुत्री अर्थात् राधा। वृषभ की अनुजा = गाय। हलधर = कृष्ण के भाई बलराम। हलधर = हल को धारण करने वाला बैल।।

प्रश्न 4.
अर्थालंकार के भेद बताइए और प्रत्येक की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
अर्थालंकार के तीन भेद होते हैं-

  1. उपमा,
  2. रूपक,
  3. उत्प्रेक्षा।

(1) उपमा-जहाँ एक वस्तु अथवा प्राणी की तुलना अत्यन्त सादृश्य के कारण प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे-
“सिंधु सा विस्तृत है अथाह,
एक निर्वासित का उत्साह।”

उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-

  • उपमेय-जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता की जाती है।
  • उपमान-जिस व्यक्ति या वस्तु से समानता की जाती है।
  • साधारण धर्म-वह गुण या धर्म जिसकी तुलना की जाती है।
  • वाचक शब्द-वह शब्द जो रूप-रंग, गुण और धर्म की समानता दर्शाता है। जैसे-सा, सी, सम, समान आदि।

(2) रूपक अलंकार-काव्य में जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप होता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्द का लोप होता है।
जैसे-
“चरण-सरोज पखारन लागा।”

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(3) उत्प्रेक्षा अलंकार-काव्य में जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जनु, जानो, मानो, मानहुँ आदि वाचक शब्द उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान हैं।

जैसे-
“जनु अशोक अंगार दीन्ह मुद्रिका डारि तब।”
“मानो, झूम रहे हैं, तरू भी मंद पवन के झोकों से।”

छन्द

प्रश्न 1.
छन्द की परिभाषा बताइए।
या
छन्द किसे कहते हैं?
उत्तर-
कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छन्द

इस तरह काव्यशास्त्र के नियम के अनुसार, जिस कविता या काव्य में मात्रा, वर्ण, गण, यति, लय आदि का विचार करके शब्द योजना की जाती है, उसे छन्द कहते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के विषय में जानकारी दीजिएयति, लय, गति, तुक।
उत्तर-

  • यति-छन्द का पाठ करते समय जहाँ थोड़ी देर रुका जाता है, उसे यति कहते हैं।
  • लय-छन्द के पढ़ने की शैली को लय कहते हैं।
  • गति-गति का अर्थ है प्रवाह, अर्थात छन्द को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो।
  • तुक-पद के चरणों के अन्त में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य बैठाने के लिए, लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं।

प्रश्न 3.
छन्द के भेद बताइए और उनका परिचय दीजिए।
उत्तर-
छन्ददो प्रकार के होते हैं-

  1. वार्णिक छन्द,
  2. मात्रिक छन्द।

(1) वार्णिक छन्द-वार्णिक छन्दों में वर्गों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छन्द का निर्धारण किया जाता है।
(2) मात्रिक छन्द-मात्रिक छन्दों में मात्राओं की गणना की जाती है।

नोट-दोहा, चौपाई मात्रिक छन्द हैं।

प्रश्न 4.
दोहा और चौपाई छन्द के लक्षण उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
दोहा-दोहा छन्द के प्रथम और तृतीय चरणों में 13-13 और द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके सम चरणों के अन्त में तगण अथवा जगण का होना जरूरी है।

उदाहरण-
MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 1
जा तन की झाँई, परै, स्याम हरित दुति होय॥ चौपाई-चौपाई एक सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण-
MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 2

प्रश्न 5.
गण के स्वरूप को समझाइए।
उत्तर-
तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं। वार्णिक छन्दों में वर्ण की गणना की जाती है। उन वर्णों की लघुता और गुरुता के विचार से गुणों के आठ रूप होते हैं।

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प्रश्न 6.
गणों के आठ रूप कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर-
गणों के आठ रूप और मात्राएँ निम्न प्रकार हैं

  • यगण (।ऽऽ)
  • मगण (ऽऽऽ)
  • तगण (ऽऽ।)
  • रगण (ऽ।ऽ)
  • जगण (।ऽ।)
  • भगण (ऽ।।)
  • नगण (।।।)
  • सगण (।।ऽ)

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान पूर्ति

1. कविता के द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के ……………………… सम्बन्ध की रक्षा होती है। (रागात्मक/विवादात्मक)
2. अनुभूति के पक्ष का सम्बन्ध कविता के ……………………… स्वरूप से (बाह्य/आन्तरिक)
3. पद्मावत के रचयिता ……………………… हैं। (रहीम/मलिक मुहम्मद जायसी)
4. ‘रस’ को काव्य की ……………………… बताया गया है। (आत्मा/शरीर)
5. अर्थालंकार के ……………………… भेद हैं। (तीन/पाँच)
उत्तर-
1. रागात्मक,
2. आन्तरिक,
3. मलिक मुहम्मद जायसी,
4. आत्मा,
5. तीन।

सही विकल्प चुनिए

1. काव्य भेद हैं
(क) दृश्य काव्य
(ख) श्रव्य काव्य
(ग) दृश्य और श्रव्य काव्य
(घ) नाट्य और कथ्य काव्य।
उत्तर-
(ग) दृश्य और श्रव्य काव्य

2. ‘कामायनी’ के रचयिता हैं
(क) तुलसीदास
(ख) मीराबाई
(ग) जयशंकर प्रसाद’
(घ) पन्त।
उत्तर-
(ग) जयशंकर प्रसाद’

3. ‘रस’ के बिना काव्य माना जाता है-
(क) सजीव
(ख) निर्जीव
(ग) व्यर्थ
(घ) सार्थक।
उत्तर-
(ख) निर्जीव

4. ‘रस’ के भेद हैं
(क) नौ
(ख) बारह
(ग) पाँच
(घ) सात।
उत्तर-
(क) नौ

5. श्रृंगार रस के भेद होते हैं
(क) दो
(ख) चार
(ग) आठ
(घ) सात।
उत्तर-
(क) दो

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Special Hindi काव्य बोध img 3
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(iii) → (ङ),
(iv) → (ग),
(v) → (घ)।

सत्य असत्य

1. तीन वर्गों के समूह को ‘गण’ कहते हैं।
2. छन्द के पढ़ने की शैली को गति कहते हैं।
3. कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छन्द है।
4. प्रबन्ध और मुक्तक काव्य-शैली के आधार पर काव्य भेद होते हैं।
5. ‘रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्’ (रसयुक्त वाक्य ही काव्य होता है)।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा का साधन बताइए।
उत्तर-
काव्य।

2. एक ही छन्द में रचित एक घटना का चित्रण पूर्ण रूप से करने वाली रचना को क्या कहते हैं?
उत्तर-
खण्डकाव्य।

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3. रसयुक्त वाक्य को क्या नाम दिया गया है?
उत्तर-
कविता।

4. ‘सिन्धु सा विस्तृत है अथाह, ‘एक निर्वासित का उत्साह’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
उपमा।

5. पद के चरणों के अन्त में समान स्वर में साम्य बैठाने के लिए गृहीत पद क्या कहे जाते हैं?
उत्तर-
तुक।

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