MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 16 भोजस्य शिक्षाप्रियता

MP Board Class 6th Sanskrit Chapter 16 अभ्यासः

Class 6 Sanskrit Chapter 16 MP Board प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)-
(क) धारानगर्याः नृपति कः आसीत्? (धारा नगरी का राजा कौन था?)
उत्तर:
राजा भोजः

(ख) धारानगरी कुत्र अस्ति? (धारा नगरी कहाँ है?)
उत्तर:
मध्यप्रदेशस्य मालव क्षेत्रे

(ग) विप्रस्य हस्ते किम् आसीत्? (ब्राह्मण के हाथ में क्या था?)
उत्तर:
चर्मपात्रं।

Sanskrit Class 6 Chapter 16 MP Board प्रश्न 2.
एक वाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) भोजस्य नाम केन कारणेन प्रसिद्धम्? (भोज का नाम किस कारण से प्रसिद्ध है?)
उत्तर:
भोजस्य नाम शिक्षाप्रियता कारणेन प्रसिद्धम्। (भोज का नाम शिक्षाप्रियता के कारण प्रसिद्ध है।)

(ख) विप्रम् अति दरिद्रं ज्ञात्वा राजा किम् अपृच्छत्? (ब्राह्मण को अति दरिद्र जानकर राजा ने क्या पूछा?)
उत्तर:
विप्रम् अति दरिद्रं ज्ञात्वा राजा अपृच्छत् “विप्र! चर्मपात्रं किमर्थं हस्ते वहसि?” (ब्राह्मण को अति दरिद्र जानकर राजा ने पूछा, हे ब्राह्मण! चर्मपात्र को हाथ में किसलिए ढो रहे हो (लिए हुए हो)?

Class 6th Sanskrit Chapter 16 MP Board प्रश्न 3.
उच्चरयत (उच्चारण करो)
भू + क्त्वा = भूत्वा = होकर।
ज्ञा + क्त्वा = ज्ञात्वा = जानकर।
कृ+ क्त्वा = कृत्वा = करके।
श्रु + क्तवा = श्रुत्वा = सुनकर।
सम् + भू + ल्यप् = सम्भूय = होकर।
वि + ज्ञा + ल्यप् = विज्ञाय = जानकर।
आ + गम् + ल्यप् = आगत्य = आकर।

Sanskrit Chapter 16 Class 6 MP Board प्रश्न 4.
कोष्ठकात् उचितानि पदानि चित्वा रिक्त स्थानानि पूरयत (कोष्ठक से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों – को पूरा करो)
(क) शिक्षितानां सम्मानं ………….. भोजः प्रसिद्धः अभवत्। (दृष्ट्वा /कृत्वा)
(ख) राजा प्रसन्नो ………… तस्मै पुरस्कारं अयच्छत्। (भूत्वा/ज्ञात्वा)
(ग) लौहशृङ्खलायाः आवश्यकता ……….. कृते अस्ति। (शत्रूणां मूर्खाणां)
उत्तर:
(क) कृत्वा
(ख) भूत्वा
(ग) शत्रूणाम्।।

Mp Board Solution Class 6 Sanskrit प्रश्न 5.
पर्यायमेलनं कुरुत (पर्यायवाची शब्दों को मिलाइये)
Chapter 16 Sanskrit Class 6 MP Board
उत्तर:
(क) → 3
(ख) → 4
(ग) → 5
(घ) → 2
(ङ) → 1

योग्यताविस्तारः

1. पदानां विभक्तिं वचनं च लिखत (शब्दों की विभक्ति और वचन लिखो)
(क) शिक्षिताः
(ख) जनाः
(ग) मार्गे
(घ) भोज
(ङ) प्रदेशस्य
(च) कवये।
उत्तर:
Class 6 Chapter 16 Sanskrit MP Board

2. ‘कवि’ शब्दस्य रूपाणि लिखत। (कवि शब्द के रूप लिखो)
उत्तर:
‘कवि’ शब्द के रूप
Mp Board Solution Class 6th Sanskrit

भोजस्य शिक्षाप्रियता हिन्दी अनुवाद

अस्ति मध्यप्रदेशस्य मालवक्षेत्रे धारा नाम नगरी। पुरा अस्याः नगर्याः शासकः नृपतिः भोजः आसीत्। नृपतेः आदेश: आसीत् यत्-

“विप्रोऽपि यो भवेन्मूर्खः, सः पुराद् बहिरस्तु मे।
कुम्भकारोऽपि यो विद्वान् स तिष्ठतु पुरे मम॥”

भोजस्य शिक्षाप्रियताकारणेन शिक्षिताः जनां एव धारानगर्यां वसन्ति स्म। एकदा उद्यानमार्गे विहरन् भोजः कमपि विप्रम् अपश्यत्। तस्य हस्ते चर्ममयं कमण्डलुं दृष्ट्वा तं च अतिदरिद्रं ज्ञात्वा राजा अपृच्छत्-“विप्र ! चर्मपात्रं किमर्थं हस्ते वहसि?” सः च विप्रः मुखशोभया विनम्रप्रश्नेन च तं भोजं मत्वा प्रणम्य अकथयत्-“देव! सम्प्रति लौहस्य ताम्रस्य च अभावः जातः। अत: चर्ममयं पात्रं वहामि।”

Class 6 Sanskrit Chapter 16 Solution MP Board अनुवाद :
मध्यप्रदेश के मालव क्षेत्र में धारा नामक नगर है। प्राचीनकाल में इस नगरी का शासक राजा भोज था। राजा का आदेश था कि-“जो ब्राह्मण यदि मूर्ख है, तो वह मेरे इस नगर से बाहर निकल जाये। यदि कुम्हार जो विद्वान है, वह मेरे नगर में ठहरे।”

भोज के शिक्षा-प्रेम के कारण शिक्षित लोग ही धारानगरी में रहा करते थे। एक दिन उद्यान मार्ग पर विहार करते हुए (राजा) भोज ने किसी ब्राह्मण को देख लिया। उसके हाथ में चमड़े के कमण्डल को देखकर और उसे बहुत ही दरिद्र समझकर (जानकर) राजा ने पूछा-हे ब्राह्मण! चमड़े के इस पात्र को व्यर्थ ही क्यों ढो रहे हो। और वह ब्राह्मण मुख शोभा और विनम्र प्रश्न से उसे राजा भोज मानकर प्रणाम करते हुए कहा- “हे देव! अब लोहे और ताँबे का अभाव हो गया है, इसलिए चमड़े का बर्तन ढो रहा हूँ।”

भोजः पुनः अपृच्छत्-“विप्र। कथं लौह-ताम्रयोः अभावः?” तदा विप्रः पद्यं पठति-

“अस्य श्रीभोजराजस्य, द्वयमेव सुदुर्लभम्।
शत्रूणां श्रङ्खलैः लौहं, तानं शासनपत्रकैः॥”

राजा प्रसन्नो भूत्वा तस्मै कवये ताम्रप्रशस्तिपत्रं धनराशि च पुरस्काररूपेण अयच्छत्। शिक्षितानां सम्मानकारणेन भोजस्य नाम अद्यापि भारते प्रसिद्धम्।

Sanskrit Chapter 16 MP Board अनुवाद :
भोज ने फिर पूछा- “हे ब्राह्मण! लोहे और ताँबे का अभाव क्यों है?” तब ब्राह्मण ने इस पद्य को पढ़ा

“इस राजा भोज के राज्य में दो ही वस्तु बहुत दुर्लभ हैं। शत्रुओं के लिए जंजीरों के कारण लोहा तथा शासन पत्रकों के कारण ताम्र (ताँबा)।”

राजा ने प्रसन्न होकर उस कवि को ताँबे का प्रशस्ति पत्र और धनराशि पुरस्कार के रूप में प्रदान की। शिक्षितों का सम्मान करने के कारण भोज का नाम आज भी भारत में प्रसिद्ध है।

भोजस्य शिक्षाप्रियता शब्दार्थाः.

पुरा = प्राचीन समय में। बहिः = बाहर। ईदृशः = इस प्रकार। चर्ममयं = चमड़े से बना हुआ। कमण्डलुम् = पानी रखने के पात्र को। शृङ्खलैः = जंजीरों से। अस्तु = हो। अयच्छत् = प्रदान किया। वहसि = ले जाते हो। मत्वा = मानकर। विप्रः = ब्राह्मण। सम्प्रति = आजकल। विहरन = घूमते हुए। ताम्रप्रशस्तिपत्रं = ताँबे का प्रशंसापत्र।

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