MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबंध के सिद्धान्त

प्रबंध के सिद्धान्त Important Questions

प्रबंध के सिद्धान्त अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“मानसिक क्रांति” से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कर्मचारी वर्ग तथा प्रबंधकों की मानसिकता में परिवर्तन होना ही मानसिक क्रान्ति है। इसके लिए यह जरूरी है कि दोनों वर्ग परम्परागत उत्पादन विधियों के स्थान पर नवीन वैज्ञानिक विधियों का उपयोग समझे व उन्हें अपनाये। प्रबंधक श्रमिकों में विश्वास रखे तथा उनके हितों का बराबर ध्यान रखे। श्रमिकों को प्रबंधकों के प्रति निष्ठावान होकर सामूहिक हित के लिए कार्य करना चाहिए।

उद्योगपति को यह स्वीकार करना चाहिए कि श्रमिक वस्तु नहीं है अपितु मनुष्य है और इसलिए उसकी भावनाओं, अपेक्षाओं तथा आवश्यकताओं का पूरा-पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। श्रमिकों को भी समझना चाहिए कि वे संस्था के हैं तथा संस्था उन सबकी। इस प्रकार सभी के मन में उपक्रम के हित में क्रान्ति जागृत होगी।

प्रश्न 2.
प्रबंध के सिद्धांत से क्या आशय है ?
उत्तर:
प्रबंध के क्षेत्र में प्रभावी प्रबंध तथा इसकी सफलता हेतु कुछ मान्यताओं के आधार पर कार्य किये जाते हैं, जिन्हें प्रबंध के मार्गदर्शक कहते हैं। प्रबंध हेतु बनाये गये ये मार्गदर्शक ही प्रबंध के सिद्धांत हैं।

प्रश्न 3.
फेयोल के पहल शक्ति के सिद्धांत को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहल शक्ति का सिद्धांत-पहल करने का आशय प्रत्येक कर्मचारी व अधिकारियों को सतत् नई-नई योजना व कार्य के लिए लगातार प्रयास करना है। अतः प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर अधिकारियों को निरन्तर नई योजना व कार्य अपनाने का प्रयास करने हेतु आवश्यक अधिकार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
प्रबन्ध के सिद्धान्त की उत्पत्ति कैसे होती है ?
अथवा
प्रबन्धकीय सिद्धान्तों की उत्पत्ति कैसे होती हैं ?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त की उत्पत्ति के दो चरण निम्नलिखित है

  1. गंभीर अवलोकन- जब कर्मचारी कार्य करते हैं तब वे कार्य करते समय उन्हें गहनता से अवलोकन करते हैं तथा वे विभिन्न प्रबन्धकीय निर्णयों पर कर्मचारियों की प्रतिक्रिया लिखते हैं।
  2. प्रयोग- बार-बार प्रयोग में लाए गए निर्णयों कथनों को कर्मचारियों के विभिन्न समूहों के साथ विभिन्न संगठनों में जाँचे जाते हैं।

प्रश्न 5.
समता का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार संस्था में प्रत्येक कर्मचारी न्याय, सहानुभूति और समानता के व्यवहार की अपेक्षा रखता है, अतः संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रबंधक को श्रमिकों व कर्मचारियों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 6.
श्रम विभाजन से कार्यक्षमता किस प्रकार विकसित होती है ?
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार, किसी भी उपक्रम में समान क्षमता वाले कर्मचारी नहीं होते हैं, अतः कर्मचारी व मजदूरों को उनकी कार्यक्षमता व रुचि के अनुरूप कार्य सौंपना चाहिए तथा श्रमिकों को विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करना चाहिए। ऐसा करने से वे स्वयं अभिप्रेरित होकर कार्य करते हैं तथा उनकी कार्यक्षमता का विकास होता है।

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प्रश्न 7.
आदेश की एकता के सिद्धांत तथा निर्देश की एकता के सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदेश की एकता का सिद्धांत तथा निर्देश की एकता का सिद्धांत में अंतर।

आदेश की एकता का सिद्धांत

  1. यह सिद्धांत अधीनस्थ के ऊपर एकात्मक नियंत्रण संभव बनाता है।
  2. यह सिद्धांत अधिकारी और अधीनस्थ के संबंध को मजबूत करता है।

निर्देश की एकता का सिद्धांत

  1. यह सिद्धांत कार्यों में विशिष्टीकरण तथा योजनाओं के एकीकरण में सहायता करता है।
  2. यह सिद्धांत योजनाओं के एकीकरण में सहायता करता है।

प्रश्न 8.
विकेन्द्रीयकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब उपक्रमों में निर्णय लेने का अधिकार उच्च प्रबंधकों के पास होता है तो इसे विकेन्द्रीयकरण की स्थिति कहते हैं, इसके विपरीत जब निर्णय लेने के अधिकार अधीनस्थों को बाँट दिये जाते हैं, तो उसे विकेन्द्रीयकरण कहते हैं । प्रबंध शास्त्री हेनरी फेयोल के अनुसार केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीयकरण दोनों संतुलित मात्रा में उपक्रम में होना चाहिए।

प्रश्न 9.
प्रमापीकरण सिद्धांत क्या है ?
उत्तर:
एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार, कम लागत पर उत्तम वस्तुओं के निर्माण के लिए आवश्यक है कि प्रमाप अर्थात् सर्वोत्तम का निर्धारण किया जाये। श्रमिकों से निश्चित प्रमाप की वस्तु, उपकरण, कच्चा माल, कार्य की दशाएँ प्रमापित विधि के अनुसार ही कार्य कराना चाहिए।

प्रश्न 10.
हेनरी फेयोल का निर्देश की एकरूपता का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
हेनरी फेयोल का निर्देश की एकरूपता का सिद्धान्त के अनुसार कर्मचारी को आदेश एक ही अधिकारी से मिलना चाहिए, क्योंकि अनेक अधिकारी के आदेश भी अलग-अलग हो तो ऐसी दशा में कर्मचारी किस आदेश का पालन करे यह दुविधा की स्थिति होती है, अत प्रत्येक कर्मचारी को चाहे वह किसी भी स्तर का क्यों न हो आदेश एक ही अधिकारी से मिलना चाहिए।

प्रश्न 11.
श्रेष्ठ प्रबन्ध के लिए वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण आवश्यक है। समझाइये।
उत्तर:
कर्मचारियों का उचित चुनाव ही वैज्ञानिक चयन है। टेलर का मत है कि कार्य के लिए शारीरिक एवं मानसिक रूप से उपयुक्त व्यक्ति का चुनाव किया जाना चाहिए। चयन पश्चात् कार्यक्षमता में वृद्धि के लिए उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाना है, क्योंकि जब तक कर्मचारी पूर्णत प्रशिक्षित नहीं होगा तब तक वह पूर्ण दक्षता से कार्य नहीं कर सकता है।

प्रश्न 12.
टेलर की आठ नेता वाली योजना क्या है ?
उत्तर:
एफ. डब्ल्यू. टेलर ने उपक्रम हेतु क्रियात्मक संगठन प्रणाली का सुझाव दिया। इसमें एक कार्य पर आठ नियंत्रकों का नियंत्रण व पर्यवेक्षण होता है। इस संगठन को आठ नेता वाली योजना कहते हैं । ये नेता निम्नानुसार हैं-

  1. टोली नायक
  2. गति नायक
  3. निरीक्षक
  4. मरम्मत नायक
  5. कार्यक्रम लिपिक
  6. संकेत कार्ड लिपिक
  7. समय तथा पारिश्रमिक लिपिक
  8. अनुशासन अधिकारी।

प्रश्न 13.
“मैं” और “हम” का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर:
हेनरी फेयोल के इस सिद्धांत के अनुसार पूँजीपतियों और श्रमिकों को ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ के सिद्धांत को अमल में लाना चाहिए, क्योंकि मैं घमण्ड का और हम सहयोग का दर्पण है, दोनों पक्षों को आपसी सहयोग व सहकारिता की भावना के साथ कार्य करना चाहिए।-

प्रश्न 14.
टेलर के कार्यानुमान का सिद्धांत’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यानुमान का सिद्धांत (Principal of task idea)-टेलर के अनुसार प्रत्येक कार्य को प्रारंभ करने के पूर्व उस कार्य के संबंध में पूर्वानुमान (Forecasting) लगा लेना चाहिए, जैसे-कार्य करने में कितना समय लगेगा, इस पर अनुमानित व्यय कितना होगा, कार्य के दौरान क्या-क्या परेशानियाँ आ सकती हैं ?

उन्हें कैसे हल किया जायेगा आदि। कार्य के दौरान सामान्य दशायें रहने पर कार्य का प्रमाप (Standard) निर्धारित कर लेना चाहिए। यही कार्यानुमान (कार्य का अनुमान) का सिद्धांत है।

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प्रश्न 15.
टेलर द्वारा प्रतिपादित गति अध्ययन को समझाइए। –
उत्तर:
गति अध्ययन (Motion study) किसी कार्य को करने के लिए श्रेष्ठ विधि कौन-सी होगी, इसे पता करना गति अध्ययन (Motion or Speed study) कहलाता है। इस अध्ययन के द्वारा किसी कार्य को करने की गति ज्ञात की जाती है, इस अध्ययन हेतु टेलर एक ऐसे स्थान पर बैठ गये जहाँ से वे सभी श्रमिकों की हरकतों को देख सकें।

प्रश्न 16.
प्रबन्ध के सिद्धान्त सामान्य दिशा-निर्देश हैं। समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त सामान्य-दिशा-निर्देश होते हैं ये भौतिक एवं रसायन शास्त्रों के सिद्धान्तों की तरह कठोर नहीं होते और न ही पूर्ण रूप से खरे उतरते हैं। इसे सभी परिस्थितियों में आँख मूंद कर लागू नहीं किये जा सकते। प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रयोग संगठन की प्रकृति और स्थिति पर निर्भर करता है। प्रबन्धक को संगठन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संगठन की प्रकृति और आकार के अनुसार इन सिद्धान्तों को लागू करना चाहिए।

प्रश्न 17.
वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता कौन थे, उनकी मृत्यु कब तथा कहाँ हुई ?
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता एफ.डब्ल्यू. टेलर थे। उनकी मृत्यु सन् 1915 में फिलाडेल्फिया में हुई।

प्रश्न 18.
फेयोल ने व्यावसायिक कार्यों को कितने भागों में बाँटा ?
उत्तर:
फेयोल ने व्यावसायिक कार्यों को छ: भागों में बाँटा-

  1. तकनीकी कार्य
  2. वाणिज्यिक कार्य
  3. वित्तीय कार्य
  4. सुरक्षात्मक कार्य
  5. लेखा संबंधी कार्य
  6. प्रबंधकीय कार्य।

प्रश्न 19.
समय अध्ययन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
समय अध्ययन (Time Study) अलफोर्ड तथा बीटी के अनुसार, “किसी कार्य को करने में उपयोग किए जाने वाली विधियों व उपकरणों का वैज्ञानिक विश्लेषण करना, उस कार्य को करने के सर्वश्रेष्ठ तरीके के व्यावहारिक तथ्यों का विकास करना तथा आवश्यक समय का निर्धारण करना, समय अध्ययन कहलाता है।” किसी भी उत्पादन क्रिया को करने में लगने वाले समय की जाँच एवं उसका रिकार्ड करना ही समय अध्ययन कहलाता है।

प्रश्न 20.
थकान अध्ययन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
थकान अध्ययन (Fatigue Study)-थकान और श्रमिक की कार्य क्षमता का आपस में घनिष्ठ संबंध है। इसलिए टेलर ने प्रत्येक क्रिया को सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन करके यह मालूम किया कि श्रमिक लगातार काम करने से थक जाता है और शेष बचे समय में उसकी कार्यक्षमता गिर जाती है। टेलर ने थकान अध्ययन से मालूम किया कि श्रमिक को थकान कब और कैसे होती है तथा उसे कैसे दूर किया जाए ? थकान को दूर करने के लिए समय-समय पर आराम की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा कार्य की प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए। जैसे शारीरिक कार्य करने वालों को मानसिक कार्य दिया जाए तथा मानसिक कार्य करने वालों को शारीरिक कार्य दिया जाए।

प्रबंध के सिद्धान्त लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों के नाम लिखिए।
उत्तर:
फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध के सिद्धांत निम्नलिखित हैं

  1. श्रम विभाजन का सिद्धान्त।
  2. अधिकार तथा उत्तरदायित्व का सिद्धान्त।
  3. अनुशासन का सिद्धान्त।
  4. आदेश की एकता।
  5. निर्देश की एकता।
  6. सामूहिक हितों की प्राथमिकता का सिद्धान्त।
  7. कर्मचारियों के पारिश्रमिक का सिद्धान्त।
  8. केन्द्रीयकरण का सिद्धान्त।
  9. व्यवस्था का सिद्धान्त।
  10. समता का सिद्धान्त ।
  11. स्थायित्व का सिद्धान्त।
  12. पहल शक्ति का सिद्धान्त।
  13. संपर्क श्रृंखला/ सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त।
  14. सहयोग एवं सहकारिता का सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
समय अध्ययन और गति अध्ययन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समय अध्ययन और गति अध्ययन में अन्तर-
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प्रश्न 3.
वैज्ञानिक प्रबंध का श्रमिकों द्वारा विरोध क्यों किया जाता है ? कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध का सबसे अधिक विरोध श्रमिकों द्वारा किया गया, जिसके निम्न कारण हैं

  1. कार्य में वृद्धि-वैज्ञानिक प्रबंध को अपनाने से श्रमिकों की कार्यक्षमता बढ़ाना आवश्यक हो गया, जिससे श्रमिकों पर कार्य का बोझ बढ़ गया। कार्य का बोझ बढ़ जाने से श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने से श्रमिकों ने वैज्ञानिक प्रबंध का भारी विरोध किया।
  2. कठोर नियंत्रण-वैज्ञानिक प्रबंध के अन्तर्गत आठ नेता वाले संगठन को अपनाने से श्रमिकों पर एक साथ अनेक लोगों का नियंत्रण रहता है, जिसे श्रमिक पसंद नहीं करते हैं।
  3. बेकारी का भय-वैज्ञानिक प्रबंध में मशीनों का कार्य बढ़ जाने से श्रमिकों में बेकारी का भय बना रहता है, अतः वे इसका विरोध करते हैं।
  4. श्रमिकों का शोषण-वैज्ञानिक प्रबंध में कार्य अधिक होने से उत्पादन में वृद्धि जिस मात्रा में होती है, उस मात्रा में श्रमिकों की मजदूरी नहीं बढ़ाई जाती है।

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प्रश्न 4.
टेलर व फेयोल के प्रबंध संबंधी दृष्टिकोणों में प्रमुख समानताएँ बताइए।
उत्तर:
टेलर एवं फेयोल के दृष्टिकोणों में समानताएँ

  1. दोनों प्रबन्धकीय दशाओं में सुधार लाना चाहते थे।
  2. दोनों मानवीय दृष्टिकोण के प्रबल समर्थक थे।
  3. दोनों ने पूर्वानुमान तथा नियोजन को विशेष महत्त्व दिया।
  4. दोनों समकालीन 1841 ई. से 1925 ई. तक प्रबंध विशेषज्ञ थे।
  5. दोनों ने प्रबंध को अर्जित प्रतिभा के रूप में स्वीकार किया।

प्रश्न 5.
औद्योगिक संगठन में उत्पादन की कुशलता में वृद्धि के लिए कई सिद्धांत (वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत) टेलर ने विकसित किए हैं, उन सिद्धांतों को समझाइए।
उत्तर:
टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धान्त निम्न हैं-
1. आधुनिक यंत्र व उपकरणों का सिद्धांत- उत्पादन के दौरान आधुनिक एवं उन्नत यंत्र तथा उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि उन्नत यंत्र से उत्पादन लागत कम एवं उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है एवं उत्पादन समय की बचत होती है।

2. प्रमापीकरण का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अंतर्गत एक निश्चित व प्रमाप की वस्तु, उपकरण, कच्चा माल व कार्य की दशायें तथा प्रमापित विधि श्रमिकों को दी जाती है। जिससे श्रेष्ठ वस्तु कम लागत पर उत्पादित हो सके।

3. आदर्श लागत लेखा प्रणाली का सिद्धांत-यह सिद्धांत उन्नत व आदर्श लेखाकर्म प्रणाली के उपयोग को प्रोत्साहित करता है चूँकि आदर्श लेखा प्रणाली में योग्य व अनुभवी व कुशल लेखापालों की सेवाएँ ली जाती हैं।

प्रश्न 6.
टेलर एवं फेयोल के प्रबंध सम्बन्धी सिद्धान्तों की प्रमुख असमानताएँ बताइये।
उत्तर:
टेलर एवं फेयोल के सिद्धान्तों की असमानताएँ

  1. टेलर का अध्ययन केन्द्र श्रमिक था, जबकि फेयोल का अध्ययन केन्द्र प्रबंध था।
  2. टेलर के सिद्धान्त वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धान्त थे, जबकि फेयोल के सिद्धान्त प्रशासन के सिद्धान्त माने जाते थे।
  3. टेलर का प्रयोग बिन्दु कारखाना था जबकि फेयोल का प्रयोग बिन्दु प्रशासन था।
  4. टेलर ने उपक्रम हेतु क्रियात्मक संगठन को उचित ठहराया, जबकि फेयोल ने आदेश की एकता को उचित ठहराया।
  5. टेलर का अध्ययन तथा योगदान निम्न स्तर से उच्च स्तर था,जबकि फेयोल का अध्ययन तथा योगदान प्रारम्भ से ही उच्च स्तर रहा और उन्होंने अपने सिद्धान्तों में आदेश,निर्देश, अधिकार आदि शब्दों का प्रयोग किया।
  6. टेलर को कारखाना विशेषज्ञ माना जाता है, तो फेयोल को प्रबंध विशेषज्ञ माना जाता है।
  7. वर्तमान में टेलर के सिद्धान्त व्यवहार में दिखाई नहीं पड़ते, जबकि फेयोल के सिद्धान्त आज भी अनेक उपक्रमों में लागू किये गये हैं।

प्रश्न 7.
“टेलर तथा फेयोल के कार्य एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एफ. डब्ल्यू. टेलर को वैज्ञानिक प्रबंध का जनक एवं हेनरी फेयोल को औद्योगिक प्रबंध के आधुनिक सिद्धान्त का पिता’ कहा जाता है। दोनों समकालीन थे। टेलर (जन्म 1856) और फेयोल (जन्म 1841) प्रबंध के क्षेत्र में दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यद्यपि दोनों के विचार एवं कार्य प्रणाली में अन्तर है, जैसे टेलर ने श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाने को सिद्धान्त का आधार बनाया है तो फेयोल ने प्रबंध के कार्यों को, टेलर ने इंजीनियरिंग पक्ष पर जोर दिया है जबकि फेयोल ने प्रशासन के कार्यों पर, फिर भी दोनों के कार्यों में विरोध नहीं है वे एक-दूसरे के पूरक हैं।

दोनों ने प्रबंध के एक-एक पक्ष को लिया है। दोनों के विचारों को मिला देने से प्रबंध एवं प्रशासन सम्बन्धी विचार पूर्ण हो जाते हैं। इसीलिए उर्विक का कथन है कि, “टेलर तथा फेयोल ने कार्य काफी सीमा तक एक-दूसरे के पूरक थे। दोनों ने ही यह अनुभव किया कि प्रबंध के समस्त स्तरों पर कर्मचारियों तथा उनके प्रबंध की समस्या औद्योगिक सफलता की आधारशिला है। इस समस्या के समाधान हेतु दोनों ही ने वैज्ञानिक विधियों के उपयोग पर बल दिया।” टेलर को ‘वैज्ञानिक प्रबंध का जनक’ और फेयोल को प्रशासन के सिद्धान्त का जनक’ कहा जाता है। प्रबंध एवं प्रशासन मूल में एक हैं, अतः थियो हेमन का यह कथन उचित है कि “दोनों विद्वानों की विचारधारा में विरोधाभास ढूँढना व्यर्थ है।” दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

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प्रश्न 8.
प्रबंध के सिद्धांतों का महत्व तीन बिंदुओं में समझाइए।
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धांतों से प्रबंधकीय कार्यों में सुधार होता है। सिद्धांत ही प्रबंध के कार्य को मार्गदर्शन एवं दिशा प्रदान करते हैं। प्रबंध के सिद्धांत निम्न हैं

1. कार्यक्षमता में वृद्धि-प्रबंध के सिद्धांत के अनुसार कार्य करने से प्रबंधकों, फोरमेन व कर्मचारियों की कार्य कुशलता तथा क्षमता में वृद्धि होती है। सिद्धांतों के आधार पर श्रेष्ठ ढंग से कार्य किया जा सकता है।

2. प्रशिक्षण में सहायक-सिद्धांतों से कोई भी कार्य सुनिश्चित प्रक्रिया व विधि से सम्पन्न होता है। ये सिद्धांत प्रशिक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। सिद्धांतों के आधार पर प्रशिक्षण नियमबद्ध हो जाता है। प्रबंध को व प्रशिक्षण दाताओं के लिए ये सिद्धांत बहुत सहायक सिद्ध हुए हैं।

3. प्रबंध का विस्तृत ज्ञान-सिद्धांतों के माध्यम से ही प्रबंध को परिभाषित किया जा सकता है। प्रबंध क्या है इसका विस्तृत ज्ञान केवल इसके सिद्धांतों के अध्ययन से ही प्राप्त किया जा सकता है। सिद्धांतों के आधार पर प्रबंध की प्रकृति को बताया जा सकता है। इन सिद्धांतों से प्रबंधकीय ज्ञान में काफी वृद्धि होती है।

4. अनुसंधान में सुविधा-प्रबंध के क्षेत्र में अनुसंधान करते समय प्रबंध के सिद्धांत अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। इनसे कर्मचारियों, श्रमिकों की वस्तु स्थिति ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 9.
प्रबंधकीय सिद्धान्त तथा प्रबंधकीय तकनीक में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधकीय सिद्धान्त तथा प्रबंधकीय तकनीक में अंतर
प्रबंधकीय तकनीक

  1. प्रबंधकीय सिद्धान्त लचीले होते हैं।
  2. प्रबंधकीय सिद्धान्त, प्रबंधकीय कार्यों के लिए बनाई जाती हैं।

प्रबंधकीय तकनीक

  1. प्रबंधकीय तकनीक, सिद्धांतों की अपेक्षा कम लचीला होता है।
  2. प्रबंधकीय तकनीकें, वे पद्धतियाँ और कार्य लिए दिशा-निर्देश होते हैं।

प्रश्न 10.
प्रबंध के सिद्धान्तों की उत्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धान्त निम्नलिखित दो चरणों में बनाए जाते हैं

  1. गहन अवलोकन–प्रत्येक व्यवसाय में प्रबन्धकों के समक्ष कार्य के दौरान कई समस्याएँ आती हैं। ऐसे में प्रबंधक कार्य के समय कर्मचारियों का अवलोकन करते हैं तथा उनकी प्रतिक्रियाएँ देखते हैं । घटनाओं के ऐसे अवलोकन के आधार पर सिद्धान्त बनाये जाते हैं।
  2. बार-बार किये गये प्रयोग-इस विधि में बार-बार की जाने वाली प्रतिक्रिया को विभिन्न संगठनों में अलग-अलग कर्मचारियों पर प्रयोग किया जाता है। एक जैसे परिणाम प्राप्त होने पर यह सिद्धान्त का रूप ले लेता है।

प्रश्न 11.
एस्प्रिट डी कार्स (Esprit De Corps) के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
एस्प्रिट डी कार्स का अर्थ है, “संघ ही शक्ति है” इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक कर्मचारी को स्वयं को टीम का सदस्य मानना चाहिए तथा समूह या टीम के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रबंध को कर्मचारियों के बीच सहयोग की भावना का विकास करना चाहिए। इस सिद्धान्त को मानने से सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

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प्रश्न 12.
उचित मजदूरी का निर्धारण करते समय किन-किन बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
उचित मजदूरों का निर्धारण करते समय निम्नांकित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए

  1. संस्था की वित्तीय स्थिति।
  2. सरकार का न्यूनतम मजदूरी अधिनियम।
  3. प्रतियोगियों द्वारा भुगतान की जाने वाली मजदूरी और बोनस।

प्रश्न 13.
प्रबंधकीय सिद्धान्त किस प्रकार प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाते हैं ? उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रबंधकीय सिद्धान्त व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और पक्षपात को निरूत्साहित करके, प्रशासन को और अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। ये सिद्धान्त वस्तुनिष्ठता और वैज्ञानिक निर्णयों को बढ़ावा देते हैं।

उदाहरण के लिए आदेश की एकता का सिद्धान्त तथा निर्देश की एकता का सिद्धान्त संगठन की क्रमबद्ध और सरल कार्यवाही का नेतृत्व करते हैं। आदेश की एकता अधिक अधिकारियों की व्याकुलता को टालता है। निर्देश की एकता सामान्य दिशा में सभी कर्मचारियों के प्रयासों को एकीकृत करता है। इसी प्रकार सोपान श्रृंखला सूचना का प्रवाह व्यवस्थित रूप से करता है। ये सभी सिद्धान्त निश्चित रूप से प्रभावी और कुशल प्रशासन लाते हैं।

प्रश्न 14.
वैज्ञानिक प्रबंध की उन तकनीकों की पहचान कीजिए जिन्हें निम्न कथनों द्वारा विवेचित किया गया है

  1. जब कई विशेषज्ञ प्रत्येक श्रमिक का पर्यवेक्षण करते हैं।
  2. किसी कार्य को करने का सर्वोत्तम उपाय जानना होता है।
  3. श्रमिकों को दी जाने वाली अलग-अलग मजदूरी।
  4. जब सामग्री, मशीनों, उपकरणों, कार्यविधियों तथा कार्यदशाओं में उचित शोध के पश्चात् समानता लाई जाती है।
  5. एक निर्धारित कार्य को पूरा करने में लगने वाले प्रमाप समय को निर्धारित किया जाना होता है।
  6. प्रतियोगिता से सहकारिता की ओर एक-दूसरे के संबंध में श्रमिकों तथा प्रबंधकों की मनोवृत्ति बदलती है।

उत्तर:

  1. क्रियात्मक फोरमैनशिप।
  2. विधि अध्ययन ।
  3. विभेदात्मक कार्य मजदूरी प्रणाली।
  4. कार्य का मानकीकरण।
  5. समय अध्ययन।
  6. मानसिक क्रांति।

प्रश्न 15.
आदेश की एकता तथा कार्यात्मक फोरमैनशिप में क्या अंतर है ?
उत्तर:
आदेश की एकता तथा कार्यात्मक फोरमैनशिप में अंतर-
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प्रश्न 16.
प्रबंधकीय सिद्धान्त तथा शुद्ध विज्ञान के सिद्धान्त की तुलना कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधकीय सिद्धान्त तथा शुद्ध विज्ञान के सिद्धान्त की तुलना-
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प्रश्न 17.
जब एक सेल्समैन को दो उच्च अधिकारियों से आदेश मिलते हैं तो इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर:
जब एक सेल्समैन को दो उच्च अधिकारियों से आदेश प्राप्त हो तो निम्नलिखित दुष्परिणाम हो सकते हैं

  1. सेल्समैन के दिमाग में शक पैदा हो सकता है।
  2. वह कार्य से बचने का अवसर ढूँढता है।
  3. दोनों अधिकारियों के मध्य मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं ।
  4. अनुशासन बनाए रखना कठिन हो सकता है।

प्रश्न 18.
यह देखा गया कि एक संगठन में “प्रचलित स्थिति, व्यवस्था के सिद्धान्त के उल्लंघन के कारण है।” प्रचलित स्थिति क्या हो सकती है ?
उत्तर;
व्यवस्था के सिद्धान्त के उल्लंघन के कारण संस्था में निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं

  1. आवश्यकता के समय आवश्यक सामग्री उपलब्ध नहीं होगी। सामग्री की तलाश में उनका काफी समय तथा ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगा।
  2. अव्यवस्थाएँ बढ़ती जा सकती हैं।
  3. दुर्घटनाओं की संभावना में वृद्धिहोगी।

प्रश्न 19.
फोरमैनशिप के अन्तर्गत उन अधिकारियों के नाम बताइए जो निम्नलिखित कार्य करते हैं-

  1. उत्पादित वस्तुओं की किस्म की जाँच करना और प्रमापित किस्म से मिलान करके अंतर का पता लगाना और विपरीत अंतर आने पर सुधारात्मक कार्यवाही करना।
  2. यह देखना कि सभी श्रमिक अपना-अपना कार्य निर्धारित गति से कर रहे हैं।
  3. यह निश्चित करना कि किसी विशेष कार्य को पूरा करने का क्रम क्या होगा?
  4. मशीनों और औजारों को काम करने योग्य हालत में बनाए रखना।
  5. एक विशेष विधि में कार्य करने के लिए निर्देश देना।
  6. यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक कार्य व्यवस्थित ढंग से हो रहा है।

उत्तर;

  1. निरीक्षक
  2. गति नायक
  3. कार्य मार्ग लिपिक
  4. मरम्मत नायक
  5. संकेत कार्ड लिपिक
  6. अनुशासन अधिकारी।

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प्रबंध के सिद्धान्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक प्रबन्ध के लाभ अथवा गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

1. उत्पादन में वृद्धि-वैज्ञानिक प्रबन्ध के द्वारा व्यवसाय की उत्पादन क्रिया में कुशलता, कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि एवं अन्य क्षेत्रों का उचित प्रबन्ध करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।-

2. कम लागत-वैज्ञानिक प्रबन्ध के द्वारा उत्पादन के विभिन्न साधनों का कुशलतम प्रयोग करके एवं नई नीतियों का निर्माण कर उत्पादन लागत में कमी लायी जाती है।-

3. प्रमापीकरण-वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत उत्पादन रीतियाँ, मशीन एवं सामग्री और श्रम तथा उत्पादन की जाने वाली वस्तु का प्रमाप निर्धारित कर दिये जाते हैं। हर, प्रमाप का हर सम्भव पालन करके उत्पादन उत्तम किस्म का प्राप्त होता है।-

4. लाभ में वृद्धि-वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत कार्यकुशलता में वृद्धि एवं क्षय अपव्ययों में कमी कर लागत पर नियंत्रण कर उत्पादन लागत में कमी की जाती है, एवं अधिकतम लाभ कमाने की चेष्टा की जाती है।-

5. समाज को लाभ-वैज्ञानिक प्रबंध से समाज में रोजगार के अवसर में वृद्धि होती है जिससे लोगों को श्रेष्ठ वस्तुएँ प्राप्त होती हैं तथा जीवन स्तर में वृद्धि होती है।-

प्रश्न 2.
वैज्ञानिक प्रबंध से क्या आशय है ? इसकी विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध का आशय-वैज्ञानिक प्रबंध से तात्पर्य प्रबंध के रूढ़िवादी तरीकों के स्थान पर तर्कसंगत आधुनिक तरीकों को अपनाने से है। एफ.डब्ल्यू. टेलर वैज्ञानिक प्रबंध के जनक माने जाते हैं।
वैज्ञानिक प्रबंध की विशेषताएँ-उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने पर वैज्ञानिक प्रबन्ध की निम्न विशेषताएँ बताई जा सकती हैं

  1. वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत कार्य के निश्चित उद्देश्य होते हैं।
  2. निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सुनिश्चित योजना होती है।
  3. वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों में पारस्परिक सहयोग आवश्यक है।
  4. न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन का लक्ष्य लेकर कार्य किया जाता है।
  5. सम्पूर्ण कार्य सहकारिता की भावना से सम्पादित किया जाता है।
  6. वैज्ञानिक नियंत्रण प्रणाली अपनाई जाती है।

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों को समझाइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकें

1. समय अध्ययन-यह तकनीक कार्य के दौरान लगने वाले मानक समय का निर्धारण करती है।

2. गति अध्ययन-इसमें कार्य के दौरान कर्मचारियों की गतियों का अध्ययन किया जाता है ताकि उनकी अनावश्यक गतियों को रोका जा सके।

3. थकान अध्ययन-यह अध्ययन कार्य को पूरा करने में आराम हेतु मध्यान्तर के समय विस्तार तथा बारम्बारता को तय करता है। थकान को कम करने के लिए कार्य के दौरान नियमित रूप से अन्तर होना आवश्यक होता है।

4. कार्य पद्धतियाँ (कार्यविधि) अध्ययन-यह कार्य को करने की विधियों से संबंधित होता है। इसमें संयंत्र अभिविन्यास, उत्पाद रचना, सामग्री हस्तगन तथा कार्य प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया जाता है ताकि सामग्री को लाने व ले जाने एवं रखने की दूरी तथा लागत में कमी आये।

5. कार्य का मानकीकरण एवं सरलीकरण- कार्य के मानकीकरण का आशय मानक उपकरणों, विधियों, प्रक्रियाओं को अपनाने तथा आकार, प्रकार, गुण, वचन, मापों आदि को निर्धारित करने से है।

इससे संसाधन की बर्बादी रुकती है तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है साथ ही मानवीय थकान कम हो जाती है। कार्य के सरलीकरण का आशय उत्पाद की एक रेखा के अनावश्यक आयामों तथा किस्मों को कम करने से है।

प्रश्न 4.
टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों को समझाइए।
उत्तर:
टेलर द्वारा प्रतिपादित प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

1. कार्य संबंधी अनुमान-इसके अन्तर्गत इस बात का सावधानीपूर्वक अनुमान लगाना चाहिए कि एक श्रमिक उपयुक्त परिस्थितियों में कितना कार्य कर सकता है, इस अनुमान के बिना यह मालूम नहीं किया जा सकता है कि श्रमिक प्रमापित उत्पादन से कम कार्य करते हैं या अधिक।

2. उत्तम सामग्री की व्यवस्था कारखाने में प्रयोग किये जाने वाले कच्चे माल का प्रभाव श्रमिक की कार्यक्षमता पर पड़ता है। अतः कच्चा माल अच्छी किस्म का होना चाहिए, जिससे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हो तथा उत्पादन लागत में कमी आए।

3. अपवाद का सिद्धान्त-टेलर का मानना है कि संस्था के सभी कार्य सामान्य परिस्थितियों में अधीनस्थों द्वारा ही किये जाने चाहिए। केवल अपवाद की स्थिति में ही प्रबन्धकों को रोजमर्रा के कार्यों में हस्तक्षेप करना चाहिए।

4. नियोजन का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कार्य पूर्व निर्धारित नियोजन के अनुसार ही किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक कार्य को योजना बनाकर करना चाहिए।

5. कर्मचारियों के वैज्ञानिक चयन व प्रशिक्षण का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार, कर्मचारियों का उचित चयन होना चाहिए, अर्थात् कार्य के अनुरूप व्यक्तियों का चयन होना चाहिए, जो अकुशल कर्मचारी हैं, उन्हें आवश्यकता पड़ने पर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

प्रश्न 5.
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों को समझाइये।
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध के सिद्धान्त निम्न हैं

1. श्रम-विभाजन का सिद्धान्त-विशिष्टीकरण के आधार पर श्रम-विभाजन करना एक अच्छे प्रबंध की आवश्यकता है, चूंकि किसी भी उपक्रम में समान क्षमता वाले कर्मचारी नहीं होते हैं, अत: कर्मचारी तथा मजदरों को उनकी कार्यक्षमता के अनुरूप कार्य का युक्तिसंगत विभाजन करना चाहिए। इस हेतु श्रमिकों को विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करना चाहिए, इस सिद्धान्त का पालन करने से कर्मचारियों की कार्यदक्षता में वृद्धि होती है।

2. अधिकार तथा दायित्व का सिद्धान्त-अधिकार एवं दायित्व एक गाड़ी के दो पहियों के समान हैं अर्थात् अधिकार दायित्व तथा दायित्व अधिकार के अनुरूप होना चाहिए अर्थात् जो व्यक्ति दायित्व स्वीकार करें उसे अधिकार अवश्य देना चाहिए, जिससे वह अधिकारों द्वारा श्रेष्ठ कार्य करवा सके।

3. अनुशासन का सिद्धान्त जहाँ अनुशासन नहीं वहाँ कुछ भी नहीं, अत- श्रेष्ठ कार्य एवं परिणामों की आशा नहीं करनी चाहिए। अनुशासन हो इस हेतु आवश्यक नियम, कानून तथा दण्ड का स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए।

4. आदेश की एकता का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अन्तर्गत कर्मचारी को आदेश एक ही अधिकारी से मिलना चाहिए, क्योंकि अनेक अधिकारी के आदेश भी अलग-अलग होंगे। ऐसी दशा में कर्मचारी किस आदेश का पालन करे? यह दुविधा की स्थिति होती है, अतः प्रत्येक कर्मचारी को चाहे वह किसी भी स्तर का क्यों न हो, आदेश एक ही अधिकारी से मिलना चाहिए।

5. निर्देश की एकता का सिद्धान्त-कार्य के दौरान कर्मचारी को किसी एक ही निर्देशक से निर्देश मिलना चाहिए ताकि उस निर्देश का पूर्ण रूप से पालन किया जा सके। एक से अधिक निर्देश की स्थिति में कार्य में रुकावट आती है।

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प्रश्न 6.
प्रबंध के सिद्धान्तों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रबन्ध में विज्ञान एवं कला के गुण विद्यमान हैं इसीलिये प्रबन्ध को कला एवं विज्ञान कहा गया है। प्रबन्ध के सिद्धान्त अन्य भौतिक एवं रसायन शास्त्र के सिद्धान्तों की भाँति स्थिर व निश्चित नहीं होते। प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

1. सिद्धान्तों की सार्वभौमिकता (Universality of principles)-प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रत्येक संगठन, समूह व स्थान पर समान रूप से लागू होते हैं चाहे वह सरकारी संगठन या संस्था हो या व्यावसायिक संगठन हो। इसीलिये हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के सिद्धांतों की सार्वभौमिकता पर बल दिया है।

2. सिद्धान्त गत्यात्मक प्रकृति के (Dynamic nature of principles)-प्रबन्ध के सिद्धान्त गत्यात्मक व लोचपूर्ण होते हैं। इनके सिद्धान्त अन्य भौतिक व रसायन तथा गणित शास्त्र की तरह स्थिर नहीं होते । कारण एवं प्रभाव से प्रबन्ध के सिद्धान्त बदल जाते हैं। प्रबन्ध के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त जो कभी महत्त्वपूर्ण थे वे आज सामाजिक परिवर्तन के कारण परिवर्तित हो गए हैं।

3. मानवीय व्यवहार पर केन्द्रित (Concentrated on human behavior)-प्रबन्ध मानवीय व्यवहार से पूर्णतः सम्बन्धित है। प्रबन्ध के आसपास या प्रबन्ध स्वयं मनुष्य से सम्बन्धित होता है। किसी भी संगठन में मनुष्य की भूमिकायें महत्त्वपूर्ण होती हैं अत- मानवीय व्यवहार जिस प्रकृति व प्रवृत्ति का होगा उसी के अनुरूप व्यापारिक गतिविधियाँ प्रभावशील होंगी। इस प्रकार प्रबन्ध पूर्णत- मानवीय व्यवहारों पर केन्द्रित होता है।

4. प्रबन्ध के सिद्धान्त सापेक्ष होते हैं (Relative principles)-प्रबन्ध के सिद्धान्त सापेक्ष (Relative) होते हैं न कि निरपेक्ष (Absolute) अर्थात् किसी संगठन की आवश्यकतानुसार इन सिद्धान्तों को लागू किया जाता है। इन्हें लागू करना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक संगठन, समाज, संस्था की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है। अतः इसी भिन्नता के कारण संस्था या संगठन के अनुकूल सिद्धान्तों को अपनाया जा सकता है।

5. समान महत्त्व (Equal importance)-प्रबन्ध के समस्त सिद्धांतों का महत्त्व एकसमान है। किन्तु यह सत्य है कि कुछ सिद्धान्त यदि किसी संगठन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, तो कुछ सिद्धान्त अन्य संगठन के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे। किन्तु प्रत्येक संगठन में इन सिद्धान्तों की भूमिका कुछ न कुछ अवश्य रहती है।

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