MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण वर्ण परिचय

वर्ण-भाषा की वह छोटी-से-छोटी इकाई जिसके और अधिक टुकड़े न किए जा सकें ‘वर्ण’ कहलाती है। वर्ण को अक्षर भी कहते हैं।

वर्ण के भेद-वर्णों के दो भेद हैं :
(अ) स्वर,
(ब) व्यंजन।

(अ) स्वर-जिस वर्गों का उच्चारण किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना स्वतन्त्र रूप से हो सकें वे वर्ण स्वर कहलाते हैं।

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संस्कृत भाषा में तेरह स्वर हैं-

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ, ऋ, लु।

स्वरों के भेद-स्वर तीन प्रकार के होते हैं-

  1. ह्रस्व स्वर,
  2. दीर्घ स्वर,
  3. प्लुत स्वर,
  4. संयुक्त स्वर।

1. ह्रस्व स्वर-जिन स्वरों का उच्चारण करने में कम-से-कम समय लगे वे ह्रस्व स्वर कहलाते हैं ये पांच हैं-अ, इ, उ, ऋ, तृ।
2. दीर्घ स्वर-जिन स्वरों का उच्चारण करने में में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगे, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये स्वर आठ हैं-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ।
3. प्लुत स्वर-जिन स्वरों क उच्चारण करने से ह्रस्व स्वरों से तिगुना समय लगे, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। किसी व्यक्ति को दूर से पुकारने में प्लुत स्वरों का प्रयोग होता है। प्लुत स्वर के आगे ३ का चिह्न लगा दिया जाता है। जैसे ओ३म, बाइल।
4. संयुक्त स्वर-ए, ऐ, ओ, औ ये चार वर्ण संयुक्त स्वर कहलाते हैं।
5. व्यंजन-जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से ही होता है वे वर्ण व्यंजन कहलाते हैं। व्यंजन वर्ण तेंतीस (33) हैं।

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व्यंजनों के भेद-व्यंजनों के तीन भेद हैं-

  1. स्पर्श,
  2. अन्तःस्थ,
  3. ऊष्म।

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1. स्पर्श-स्पर्श वर्ण पच्चीस हैं-

क् ख् ग् घ्
ङ् च् छ् ज्
झ् ज् ट् ठ्
ड् ढ् ण् त्
थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्

इन्हें स्पर्श वर्ण कहा जाता है क्योंकि इनके उच्चारण के समय जिह्वा । कण्ठ्, तालु, मूर्धा, दन्त आदि स्थानों का विशेषतः स्पर्श करती है।
2. अन्तःस्थ-य् र् ल् व् ये चार वर्ण अन्तःस्थ वर्ण कहलाते हैं। इनकी स्थिति स्वरों तथा व्यंजनों के मध्य होती है अतः इन्हें अन्तःस्थ वर्ण कहते हैं।
3. ऊष्म-श् श् स् ह् ये चार वर्ण ऊष्म कहलाते हैं इनके उच्चारण करते समय श्वास वायु घर्षण करती हुई बाहर निकलती है जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है अतः ये वर्ण ऊष्म कहलाते हैं।

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