MP Board Class 9th General Hindi अपठित अनुच्छेद

परीक्षा में अपठित गद्यांश का प्रश्न अनिवार्य रूप से पूछा जाता है। ऐसे प्रश्न पूछने का उद्देश्य यह जानना है कि विद्यार्थी किसी गद्यांश को पढ़कर उसमें निहित भावों को समझकर अपने शब्दों में लिख सकते हैं या नहीं। अपठित गद्यांश वे होते हैं, जिन्हें विद्यार्थी अपनी पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ते। अपठित गद्यांश के प्रश्न को हल करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:

  1. गद्यांश को समझने के लिए यह आवश्यक है कि आप उसका वाचन कम-से-कम दो बार करें। यदि दो बार में भी गद्यांश का मूलभाव समझ में नहीं आता तो एक बार और उसे पढ़ें।
  2. अपठित गद्यांश पर दो प्रश्न तो अनिवार्य रूप से पूछे ही जाते हैं-एक तो अपठित का सारांश और दूसरा उसका शीर्षक।
  3. दो या तीन बार पढ़ने से अपठित का मूल भाव आपकी समझ में आ जाएगा। पहले उत्तर पुस्तिका के एक पृष्ठ पर उसका सारांश लिखिए। यह ध्यान रखिए कि कोई मूल भाव छूटने न पाए।
  4. सारांश की भाषा आपकी अपनी हो, गद्यांश की भाषा का प्रयोग न करें। 5. सारांश मूल अंश का एक-तिहाई होना चाहिए।
  5. सारांश में न तो आप अपनी तरफ से कोई बात जोड़ें और न कोई उदाहरण, किसी महापुरुष का कथन या किसी कवि की कोई उक्ति ही उद्धृत करें।
  6. गद्यांश का शीर्षक गद्यांश के भीतर ही प्रारंभिक पंक्तियों या अंतिम पंक्तियों में रहता है। शीर्षक अत्यंत संक्षिप्त हो। वह गद्यांश के मुख्य भाव को प्रकट करे। मुख्य भाव को प्रकट करनेवाला कोई शीर्षक अपनी ओर से भी दिया जा सकता है।
  7. अपठित का सारांश या उसके शीर्षक के अतिरिक्त भी कुछ प्रश्न पूछ जाते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर गद्यांश में ही रहते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर देते समय यह ध्यान रहे कि इनकी भाषा अपनी रहे। गद्यांश की भाषा में उत्तर देना ठीक नहीं। यहाँ अपठित गद्यांश के कुछ उदाहरण हल सहित दिए जा रहे हैं। उनके बाद अभ्यासार्थ कुछ अपठित गद्यांश दिए गए हैं।

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I. गद्यांश

उदाहरण 1.
यह सच है कि विज्ञान ने मानव के लिए भौतिक सुख का द्वार खोल दिया है, किंतु यह भी उतना ही सच है कि उसने मनुष्य से उसकी मनुष्यता छीन ली है। भौतिक सुखों के लोभ में मनुष्य यंत्र की भाँति क्रियारत है, उसकी मानवीय भावनाओं का लोप हो रहा है और वह स्पर्धा के नाम पर ईर्ष्या और द्वेष से ग्रसित होकर स्वजनों का ही गला काट रहा है। इसी का परिणाम है, अशांति। मनुष्यता को दाँव पर हारकर भौतिक सुख की ओर बढ़ना अशुभ है।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त गद्य खण्ड का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) इस गद्य खण्ड का सारांश लगभग 25 शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(क) शीर्षक-विज्ञान : एक अभिशाप।
(ख) सारांश-विज्ञान ने मानव को सुख के बहुत-से साधन दिए हैं, किंतु उसके कारण मनुष्य की मनुष्यता भी छिन गई है। आज मनुष्य अपने ही भाइयों का विनाश कर रहा है, इसी के कारण सर्वत्र अशांति फैली है।

उदाहरण 2.
राष्ट्र की उन्नति पर ही व्यक्ति की उन्नति निर्भर है। यदि किसी के घोर संकुचित स्वार्थपूर्ण कामों के कारण राष्ट्रीय हित को क्षति पहुँचती हो अथवा राष्ट्र की निंदा होती हो तो ऐसे कुपुत्र का जन्म लेना निरर्थक है। राष्ट्रभक्त के लिए राष्ट्र का तिनका-तिनका मूल्यवान है। उसे राष्ट्र का कण-कण परम प्रिय है। वह अपने गाँव, नदी, पर्वत तथा मैदान को देख आनंद विभोर हो उठता है। जिसका मन, वाणी और शरीर सदा राष्ट्र-हित के कामों में तत्पर है, जिसे अपने पूर्वजों पर गर्व है, जिसको अपनी संस्कृति पर आस्था है तथा जो अपने देशवासियों को अपना समझता है, वही सच्चा राष्ट्रभक्त है।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त गद्य-खण्ड का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का सारांश लगभग तीस शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(क) शीर्षक-सच्चा राष्ट्रभक्त कौन?
(ख) सारांश-एक राष्ट्रभक्त अपने राष्ट्र के तृण-तृण का आदर करता है। वह राष्ट्र की एक-एक वस्तु नदी, पर्वत, मैदान को देख आनन्दित होता है। राष्ट्रभक्त अपने पूर्वजों, अपनी संस्कृति पर गर्व करता है और अपने देशवासियों को अपना समझता है।

उदाहरण 3.
परोपकार-कैसा महत्त्वपूर्ण धर्म है। प्राणिपात्र के जीवन का तो यह लक्ष्य होना चाहिए। यदि विचारपूर्वक देखा जाए तो ज्ञात होगा कि प्रकृति के सारे कार्य परोपकार के लिए ही हैं नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीतीं। पेड़ स्वयं अपने फल नहीं खाते। गुलाब का फूल अपने लिए सुगन्ध नहीं रखता। वे सब दूसरों के हितार्थ हैं। महात्मा गांधी और अन्य महात्माओं का मत है कि परोपकार ही करना चाहिए, किंतु परोपकार निष्काम हो। यदि परोपकार किसी प्रत्युपकार की आशा से किया जाता है, तो उसका महत्त्व क्षीण हो जाता है।

भारत का प्राचीन इतिहास दया और परोपकार के उदाहरणों से भरा है। राजा शिवि ने कपोल की रक्षा के लिए अपने प्राण देने तक का संकल्प कर लिया था। परोपकार का इससे ज्वलंत उदाहरण और कौन-सा मिल सकता है? चाहे जो हो, परोपकार आदर्श गुण है। हमें परोपकारी बनना चाहिए।

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प्रश्न-
(क) इस गद्यांश का मूल भाव बताइए।
(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ग) प्राणिमात्र के जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
(घ) महात्मा गांधी जैसे महात्माओं ने परोपकार के सम्बन्ध में क्या मत व्यक्त किया है?
(ङ) हमें कैसा बनना चाहिए?
उत्तर-
(क) परोपकार महत्त्वपूर्ण धर्म है। यह प्राणिमात्र के जीवन का परम उद्देश्य होना चाहिए। प्रकृति के सारे कार्य परोपकार के लिए ही हैं। सभी महात्मा जन-जीवन में इसके महत्त्व की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। पर यह होना कामना रहित चाहिए। भारत के प्राचीन इतिहास में अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। अतः हमें यह परोपकार अवश्य करना चाहिए।
(ख) इस गद्यांश का शीर्षक ‘परोपकार’ है।
(ग) प्राणिमात्र के जीवन का एकमात्र उद्देश्य परोपकारी बनना होना चाहिए।
(घ) महात्मा गांधी जैसे महात्माओं ने कहा है कि मानव को परोपकार अवश्य करना चाहिए। परंतु यह निष्काम भावना से सम्पादित होना चाहिए। यदि परोपकार बदले की भावना से किया जाता है, तो उसका महत्त्व क्षीण हो जाता है।
(ङ) हमें परोपकारी बनना चाहिए।

उदाहरण 4.
ऐसा देखा जाता है कि अधिकांश लोग अपने बहुमूल्य समय को व्यर्थ में ही व्यतीत कर देते हैं। परंतु फिर तो वही बात कही जाती है “कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत”, आज हम लोग जितना समय व्यर्थ की बातों में नष्ट कर देते हैं, यदि उसके दशमांश का भी सदुपयोग करना सीख जाते तो हम अपने जीवन में असाधारण सफलताएँ प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक सुंदर समय हमारे लिए वस्तुएँ लेकर आता है, किंतु हम उनसे कोई लाभ नहीं उठाते।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(क) ‘समय का सदुपयोग’
(ख) समय बीत जाने से पछताने के सिवा और कोई चारा नहीं रहता। मगर इससे कोई लाभ नहीं होता है। समय के सदुपयोग से हम अपने जीवन में असाधारण सफलताओं को प्राप्त कर सकते हैं।

II. पद्यांश

उदाहरण-

रण-बीच चौकड़ी भर-भर कर,
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े का,
(पड़ गया हवा से पाला था)
गिरता न कभी चेतक तन पर,
राणा प्रताप का घोड़ा था।
(वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर)
या आसमान पर घोड़ा था।

प्रश्न-
(क) पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) कोष्ठांकित शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) शीर्षक-‘चेतक’
(ख) महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था जो बड़ा ही अनोखा था। वह हल्दीघाटी के मैदान में तीव्र गति से दौड़ रहा था। उसे दौड़ाने के लिए कोड़ा न मारना पड़ता था। वह इतना समझदार था कि राणा का संकेत पाते ही मुड़ जाता था और शत्रुओं के मस्तक पर पैर रखता हुआ दौड़ पड़ता था।
(ग) पड़ गया हवा से पाला था-राणा प्रताप के घोड़े की तीव्र गति को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो वायु भी उसकी गति से हार मान गई है।
वह दौड़ रहा अरि मस्कक पर-राणा प्रताप का घोड़ा निर्भय होकर शत्रुओं के मस्तकों को कुचलता हुआ दौड़ जाता था।

अभ्यास के लिए अपठित गद्यांश

(1) प्रत्येक मनुष्य, चाहे वह स्थिति में कितना ही छोटा हो, ऊपर उठ सकता है। प्रत्येक मनुष्य अपनी शक्तियों का विकास कर सकता है। प्रत्येक मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अथवा उसे बहुत निकट ला सकता है। आवश्यकता इतनी है कि वह भूल जाय कि वह तुच्छ है, पंगु है, कुछ नहीं कर सकता। निराशा का बीज बड़ा घातक होता है। वह जब कलेजे की भूमि में घुस जाता है, तो उसे फोड़कर अपना विस्तार करता है। निराशा से अपने आपको बचाओ। निराशा जीवन के प्रकाश पर दुर्दिन की बदली की तरह छा जाती है। यह आत्मा के स्वर को क्षीण करती है और चेतना के स्थान पर जड़ता, निश्चेष्टता की प्रतिष्ठा करती है।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ग) रेखाकित अंशों को स्पष्ट कीजिए।

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(2) मस्तिष्क की शक्ति से ही हम गिरते और उठते हैं; बड़े होते और चलते हैं। विचार की तीव्र शक्ति से ही सब काम होते हैं। जो अपने विचारों के स्रोत को नियंत्रित कर सकता है, वह अपने मनोवेग पर भी शासन कर सकता है। ऐसा व्यक्ति. अपने संकल्प से वृद्धावस्था को यौवन में बदल सकता है, रोगी को नीरोग कर सकता है। विचार-शक्ति संसार को चेतना प्रदान करती और चलाती है। शुभ, उन्नत और कल्याणकारी विचारों से मानव-शरीर अधिक सक्षम एवं नीरोग रहता है।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ग) रेखांकित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए।

(3) राष्ट्रीय एकता, प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए नितांत आवश्यक है। जब भी धार्मिक या जातीय आधार पर राष्ट्र से अलग होने की कोई कोशिश होती है, तब हमारी राष्ट्रीय एकता के खंडित होने का खतरा बढ़ जाता है। यह एक सुनिश्चित सत्य है कि राष्ट्र का स्वरूप निर्धारित करने में वहाँ विकास करने वाले जन एक अनिवार्य तत्त्व होते हैं। राष्ट्र के निवासियों के मन में राष्ट्रहित की दृष्टि से भावनात्मक स्तर पर स्नेह-संबंध, सहिष्णुता, पारस्परिक सहयोग एवं उदार मनोवृत्ति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति होती है। राष्ट्र को केवल भूखण्ड मानकर उसके प्रति अपने कर्तव्यों से उदासीन होने वाले राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में कदापि सहायक नहीं हो सकते। वस्तुतः राष्ट्रीय एकता के आदर्श को व्यवहार में अवतरित करके ही राष्ट्र के निवासी अपने राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में सच्चे सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लगभग 40 शब्दों में लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

(4) आत्मविश्वास श्रेष्ठ जीवन के लिए पहली आवश्यकता है। तन्मयता से आत्मविश्वास का जन्म होता है। संसार का इतिहास उन लोगों की कीर्तिकथाओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने अंधकार और विपत्ति की घड़ियों में आत्मविश्वास के प्रकाश में जीवन की यात्रा की और परिस्थितियों से ऊपर उठ गए। उनसे भी अधिक संख्या उन वीरों की है, जिन्हें इतिहास आज भूल गया है पर जिन्होंने मानवता के निर्माण में, उसे उठाने में नींव का काम किया है। केवल आत्म-विश्वास और आशा के बल पर वे जिए और उसी के साथ उच्च उद्देश्य के लिए प्राण समर्पण करने में भी न चूके। जैसे तूफान के समय नाविक के लिए दिग्दर्शक यंत्र का उपयोग है, वैसे ही जीवन-यात्रा में आशा और आत्मविश्वास का महत्त्व है।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश एक-तिहाई भाग में लिखिए।
(ख) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

(5) यूरोप और अमेरिका में जिन अनेक नए शास्त्रों की खोज हुई है, उन सबसे हमें बहुत कुछ सीखना है। लेकिन भारत की अपनी भी कुछ विद्याएँ हैं और कुछ शास्त्र यहाँ पर भी प्राचीनकाल से विकसित हैं। वेद भगवान ने हमें आज्ञा दी है-आ नो भद्राः कृतवो यन्तु विश्वतः, अर्थात् दुनिया भर से मंगल विचार हमारे पास आएँ। हम सब विचारों का स्वागत करते हैं और यह नहीं समझते कि यह विचार स्वदेशी है या परदेशी, पुराना है या नया। हम इतना ही सोचते हैं कि वह ठीक है या गलत। जो विचार ठीक है, वह पुराना भी हो तो भी अपनाया जाय। इसमें कोई शक नहीं कि हमको बहुत लेना है। लेकिन जो अपने पास है, उसे भी पहचानना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि जो यहाँ का होता है, वह यहाँ की परिस्थिति और चारित्र्य के लिए अनुकूल होता है। वह हमारे स्वभाव के अनुकूल होने के कारण हमें काफी मदद दे सकता है।

(क) इस अवतरण का सारांश लिखिए।
(ख) गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।

(6) भारत हम सभी का घर है और हम सभी इस घर के सदस्य हैं। हमें आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए। यदि घर में एकता नहीं होगी तो आपस में कलह और द्वेष बढ़ेगा। जिस घर में फूट हो, उस घर की कोई इज्जत नहीं करता। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब हममें एकता का अभाव हुआ, तब-तब हम पराधीन हो गए। जयचंद के कारण भारत पराधीन हुआ। एकता के अभाव के कारण ही सन् 1857 का स्वतंत्रता का संग्राम असफल हुआ। आपस की फूट के कारण ही सन् 1947 में देश का विभाजन हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज फिर फूट डालने वाली शक्तियाँ सिर उठा रही हैं। यदि हम सभी आपस में संगठित रहेंगे तो कोई भी देश हमारा बाल बाँका नहीं कर सकता। संगठन में बड़ी शक्ति होती है। पानी की एक-एक बूंद से बड़ी नदी बन जाती है। अनेक धागे निकलकर जब रस्सी बनाते हैं तो बड़े-बड़े हाथी भी उससे बाँधे जा सकते हैं। आग की छोटी-छोटी चिनगारियाँ मिलकर महाज्वाला बनती हैं और बड़े-बड़े जंगलों और भवनों को स्वाहा कर डालती हैं।

(क) इस अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) गद्यांश का सारांश एक-तिहाई भाग में लिखिए।
(ग) आपस की फूट के कारण क्या हानियाँ होती हैं?

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(7) यदि सभी लोग अपने-अपने धर्म का पालन करें तो सभी सुखी और समृद्ध हो सकते हैं, परन्तु आज ऐसा नहीं है। धर्म का स्थान छोटा होने से सुख-समृद्धि गूलर का फूल हो गई है। यदि एक सुखी और संपन्न है तो पचास दुखी और दरिद्र हैं। साधनों की कमी नहीं है, परंतु धर्मबुद्धि के विकसित न होने से उनका उपयोग नहीं हो रहा है। कुछ स्वार्थी प्रकृति के प्राणी तो समाज में सभी कालों में रहे हैं और रहेंगे। परंतु आजकल ऐसी व्यवस्था है कि ऐसे लोगों को अपनी प्रवृत्ति के अनुसार काम करने का खुला अवसर प्राप्त हो जाता है और उनकी सफलता दूसरों को उनका अनुगामी बना देती है। दूसरी ओर जो सचमुच सदाचारी हैं, उनके मार्ग में बड़ी-बड़ी अड़चनें

(क) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखो।
(ख) दुखी और दरिद्र लोगों की संख्या अधिक क्यों है?
(ग) इस गद्यांश का सारांश 25 शब्दों में लिखिए।

(8) साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द्र बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम दूसरे धर्मावलंबियों के विचारों को समझें और उनका सम्मान करें। हमारा ही धर्म सर्वश्रेष्ठ है, इस विचार को मन में जमने दें। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है, जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। भगवान बुद्ध, महात्मा ईसा, महात्मा गांधी सभी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। गांधीजी ने सर्वधर्म संभव द्वारा साम्प्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिन्दू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म आत्मा की शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।

(क) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखो।
(ख) सर्वधर्म समभाव से क्या तात्पर्य है।
(ग) इस गद्यांश का सार लगभग 30-40 शब्दों में लिखिए।

(9) नैतिक का अर्थ है, उचित और अनुचित की भावना। यह भावना हमें कुछ कार्य तथा व्यवहार करने की अनुमति देती है। प्रत्येक समाज की अपनी नैतिकता पृथक्-पृथक् होती है, परंतु इससे समस्त समाज नियंत्रित रहता है। नैतिकता से नियम प्रत्येक देश या समाज के सांस्कृतिक आदर्शों पर आधारित रहते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में सत्य, अहिंसा, न्याय, समानता, दया, वृद्धों के प्रति श्रद्धा आदि कुछ ऐसे नियम हैं, जिनसे सभी व्यक्तियों के आचरण प्रभावित होते हैं। इन नियमों को मारने के लिए कोई दबाव नहीं डाला जाता, बल्कि ये हमारी आत्मा से संबंधित

(क) इस अंश का सारांश लिखिए।
(ख) गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।

अभ्यास के लिए अपठित पद्यांश :

1. चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी बाला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ .
चाह नहीं देवों के सिर पर चर्दै भाग्य पर इठलाऊँ।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त पयांश का शीर्षक लिखिए।
(ख) मोटे छपे (काले) शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश का भावार्थ लिखिए।

2. सीस पगा न झगा तन पै प्रभु! जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोती फटी सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानहु को नहीं सामा॥
द्वार खड़े द्विज दुर्बल देखि रह्यो चकि सों बसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत अपनो नाम सुदामा।।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।

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3. गाँवों में संकुचित विचार, अन्धविश्वास, कुरीतियाँ और व्यर्थ व्यय का बोलबाला है। पंचायतों को चाहिए कि गाँवों में बच्चों के लिए पाठशाला खोलें और उनकी पढ़ाई का प्रबन्ध करें। जब लोग पढ़-लिख जायें तब ग्रामीणों की बुरी आदतें स्वतः ही समाप्त हो जायेंगी।

प्रश्न-
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) उपयुक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(ग) मोटे छपे (काले) शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।

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