MP Board Class 11th Special Hindi पद्य साहित्य का इतिहास

वीरगाथा काल (आदिकाल)

समाज की विविध मनोवृत्ति की झलक हमें यथातथ्य रूप में साहित्य में दिखाई देती है। परिवर्तनशील मन-अवस्था का चित्रण विविध समय में विविध रूपों में होता रहा है। जिस काल-विशेष में जिस भावना-विशेष की प्रधानता रही, उसके आधार पर इतिहासकारों ने उस काल का नामकरण या वर्गीकरण कर दिया। विक्रम सम्वत् 1050 से 1375 तक हिन्दी साहित्य में को झकार एवं कोलाहल विद्यमान है। इस काल में एकता के अभाव में युद्धों की प्रधानता रही। उस समय के कवियों में वीरभाव के प्रति विशेष आग्रह रहा, किन्तु ये कवि शृंगार रस से भी विमुख नहीं थे। इस काल के प्रमुख ग्रन्थ निम्नांकित हैं-

  1. विजयपाल रासो,
  2. हम्मीर रासो,
  3. कीर्तिलता,
  4. कीर्तिपताका,
  5. खुमान रासो,
  6. बीसलदेव रासो,
  7. पृथ्वीराज रासो,
  8. जयचन्द्र प्रकाश,
  9. जयमयंक चन्द्रिका,
  10. खुसरो की पहेलियाँ,
  11. विद्यापति की पदावलियाँ,
  12. परमाल रासो।

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इन ग्रन्थों में अधिकांश वीरगाथाएँ हैं, अतएव इस काल का नामकरण वीरगाथा काल हुआ। वीरगाथाएँ मुक्तक एवं प्रबन्ध काव्य के रूप में लिखी गयीं। जगनिक कवि का परमाल रासो’ या आल्हा एवं नरपतिनाल्ह का ‘बीसलदेव रासो’ मुक्तक हैं। प्रबन्ध काव्य में दलपति विजय का ‘खुमान रासो’, चन्दबरदाई का ‘पृथ्वीराज रासो’ बहुत प्रसिद्ध है। वीरगाथा काल के प्रमुख विषय शौर्य, प्रेम और कीर्ति रहे, जो अपभ्रंश और प्राचीन हिन्दी में वीर और श्रृंगार रस के माध्यम से अभिव्यक्त हुए। इस काल के प्रमुख छन्द थे-दूहा (दोहा), गाथा, त्रोटक, तोमर, छप्पय, आल्हा, वीर और आर्या। कवि लोग प्रायः राज्याश्रित रहते थे तथा अपने राजाओं की प्रशंसा गा-गाकर किया करते थे। वे भाट और चारण कहलाते थे। अपने राजाओं की शौर्य-गाथा का वर्णन करते-करते कवि अतिशयोक्ति एवं वर्णन की नीरस सूची से नहीं बच पाया। अतएव इन रचनाओं में राष्ट्रीय भावना एवं ऐतिहासिक प्रामाणिकता का अभाव ही है। वीरगाथाकाल में जिन युद्धों का वर्णन है, वे पारस्परिक वैमनस्य एवं सुन्दरियों को लेकर होते थे। अतएव कवि सुन्दर नायिकाओं का वर्णन कर श्रृंगार रस का समावेश कर लिया करते थे। इस काल की भाषा सर्वथा भावानुरूप थी। डिंगल भाषा में हुए अभूतपूर्व युद्ध-वर्णन ही वीरगाथा काल को चमत्कृत किये हुए हैं। छन्दों का प्रयोग रसानुभूति एवं भावाभिव्यंजना में सहायक है। इस काल का प्रिय अलंकार यद्यपि अतिशयोक्ति और अनुप्रास रहा है, फिर भी उपमा, रूपक, सन्देह, उत्प्रेक्षा का प्रयोग भी उपयुक्त व सफल है। इस युग की प्रमुख धारणा मनोरंजन की थी। विद्यापति की पदावलियाँ भक्ति-शृंगार से ओत-प्रोत हैं। सिद्धों और नाथों की रचनाओं में भक्ति के तत्व विद्यमान थे। यही हिन्दी का आदिकाल है।

वीरगाथा काल (आदिकाल) की प्रमुख प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ

  1. राज्याश्रित चारण कवि,
  2. आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा,
  3. सजीव युद्ध वर्णन,
  4. चरित काव्यों की रचना,
  5. वीर तथा श्रृंगार रसों की प्रधानता,
  6. राजस्थानी, अपभ्रंश खड़ी बोली तथा मैथिली मिश्रित भाषा,
  7. छप्पय और दोहा छन्द।
  • प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

कवि – रचनाएँ
दलपति विजय – खुमान रासो
नरपति नाल्ह – बीसलदेव रासो
चन्दबरदाई – पृथ्वीराज रासो
जगनिक – परमाल रासो (आल्हा खण्ड)
अमीर खुसरो – पहेलियाँ, दोहे
नल्लसिंह – विजयपाल रासो
विद्यापति – कीर्तिलता, पदावली

भक्तिकाल
भक्तिकाल सम्वत् 1375 से प्रारम्भ होकर सम्वत् 1700 तक समाप्त हुआ। वीरगाथा काल की युद्ध विभीषिका से त्रस्त मानव हृदय शान्ति की खोज में भटकने लगा। हिन्दू-मुस्लिम के मध्य विद्वेष की भावना को दूर कर उन्हें एकता के सूत्र में आबद्ध करने हेतु पण्डितों और मौलवियों दोनों ने ही जनता में भक्ति का प्रसार कर असीम की छत्रछाया की ओर संकेत किया। धर्म ने मस्तिष्क से हटकर हृदय में आश्रय लिया, वह भावाकुल हो उठा। बस, इसी बिन्दु से भक्ति का उन्मेष हुआ। इसलिए इस युग का नाम भक्तिकाल पड़ा। सगुण भक्ति का प्रतिपादन हुआ, जो आगे चलकर राम-भक्ति और कृष्ण-भक्ति दो धाराओं में विभाजित हो गयी। दूसरी ओर ब्रह्म उपासना या एकेश्वरवाद के प्रतिपादकों ने अपने काव्य में एक ऐसे ईश्वर की उपासना की, जो हिन्दू तथा मुसलमानों को समान रूप से मान्य हो। इस निर्गुण धारा की भी ज्ञानमार्गी और प्रेममार्गी दो शाखाएँ हुईं।

(1) भक्तिकालीन निर्गुण प्रेममार्गी शाखा-इस शाखा में प्रेम-प्रधान निराकार ब्रह्म की उपासना का प्राधान्य था। इसमें प्रबन्ध काव्यों की रचना हुई, जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हुआ। प्रमुख छन्द, सोरठा, दोहा, चौपाई हैं। अवधी और फारसी भाषा का प्रयोग है तथा मसनवी शैली है। इस काल में सूफी कवियों ने आत्मा को प्रियतम मानकर हिन्दू प्रेम कहानियों का वर्णन किया है। हिन्दू-मुस्लिम एकता इस शाखा की प्रमुखता है। कवि कुतुबन, मंझन, उस्मान एवं जायसी ने प्रेमगाथाओं को काव्य-रूप में गूंथ दिया। पद्मावत के अतिरिक्त स्वप्नवती, मुग्धावती एवं मृगावती आदि प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं। मधु मालती कवि मंझन का सुन्दर प्रेम काव्य है। ये सभी काव्य श्रृंगार रस के भण्डार हैं जिसके संयोग और विप्रलम्भ दो तट हैं। इस काल के काव्य ग्रन्थ उत्कृष्ट एवं अलौकिक प्रेम तत्व से परिपूर्ण हैं। इन सूफी काव्यों की रचना-शैली दोहा-चौपाई है और इसमें कथा को आदि से अन्त तक लिखा जाता है। इनकी भाषा-शैली बड़ी ही हृदयस्पर्शी एवं भावभीनी है। इस काल के सभी महाकाव्य प्रेम कथाओं पर आधारित हैं, जो शास्त्रीय कसौटी पर खरे उतरते हैं। इन काव्यों में कवि ने कल्पना की चादर ओढ़कर इतिहास की पृष्ठभूमि पर लेखनी चलाकर भावपूर्ण चित्र अंकित किए हैं।

3 इस काल के काव्य में कला-पक्ष के अतिरिक्त भाव-पक्ष भी सबल है। श्रृंगार रस के दोनों पक्षों पर कवियों ने समान ध्यान दिया है, किन्तु रस-प्रयोग में शृंगार में कहीं-कहीं जुगुप्सा का भाव मिलता है। इसके अतिरिक्त करुण, रौद्र के भी दर्शन होते हैं। इस काल में यदि किसी रस का अभाव है, तो वह है-वात्सल्य। इस काल की भाषा ठेठ अवधी है। काव्य में रहस्यवाद, एकेश्वरवाद के समन्वय के दर्शन होते हैं, जो अत्यन्त प्रभावशाली है।

(2) भक्तिकालीन ज्ञानमार्गी निर्गुण शाखा–भक्ति की इस शाखा में केवल ज्ञानप्रधान निराकार ब्रह्म की उपासना की प्रधानता है। इसमें प्रायः मुक्तक काव्य रचे गये। दोहा और पद आदि स्फुट छन्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा खिचड़ी एवं सधुक्कड़ी है। भारतीय दर्शन के आधार पर आत्मा को प्रियतमा मानकर आत्मा-परमात्मा के विरह-मिलन का वर्णन है। राम और रहीम की एकता का प्रतिपादन है। इस काल में आडम्बरों का घोर विरोध किया गया और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया गया। इस समय का प्रमुख रस शान्त रस है।।

इस बात की प्रमुख विशेषता एक ऐसे ईश्वर की उपासना है जो हिन्दू-मुस्लिम दोनों को समान रूप से मान्य हो। इन कवियों के मतानुसार ईश्वर का वास आत्मा में है, न कि बाहरी साज-सज्जा में। ईश्वर के केवल तात्विक स्वरूप की ही मीमांसा की गई है। इस काल की एक और विशेषता है-‘रहस्यवाद’। इस शाखा के कवि साम्प्रदायिकता और वर्णाश्रम धर्म के विरोधी थे। वे इन्द्रिय-निग्रह और साधना पर जोर देते थे।

इस काल के मुख्य कवि कबीरदास हैं। इनके अतिरिक्त अन्य मुख्य कवि सुन्दरलाल, मलूकदास, गुरुनानक, रैदास, दादू दयाल एवं पलटू साहब हैं।

इस शाखा के कवि सन्त कवि कहलाते हैं, क्योंकि उनके काव्यों की प्रमुख विशेषता उसमें निहित उदात्त भावों की प्रधानता है। जिसका न केवल विशुद्ध जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है, अपितु जिनकी अभिव्यक्ति भी प्रधानतः ऐसे कवियों के द्वारा की गयी-जिन्होंने स्वानुभूति की प्रयोगशाला में उनका मूल्यांकन एवं सत्यापन कर लिया था।

(3) भक्तिकालीन सगुण रामभक्ति शाखा [2008]-इस काल में भगवान श्रीराम के सत्य, शील एवं सौन्दर्य प्रधान अवतार की उपासना की गयी है। राम के सम्पूर्ण जीवन चरित का आधार लेकर इस काल में प्रबन्ध एवं मुक्तक काव्य दोनों प्रकार के काव्यों की रचना की गयी। इस काल में प्रमुख रूप से दोनों अवधी और ब्रजभाषा का उपयोग हआ और कई छन्दों में रचनाएँ . हुईं। दोहा, चौपाई,कवित्त,सवैया, बरवै,रोला, तोमर, त्रोटक,गीतिका,हरिगीतिका और पद आदि प्रमख छन्द हैं। तत्कालीन कवियों ने मर्यादित भक्ति एवं भारतीय संस्कृति के पुनःनिर्माण की भावना के साथ रामकथा का वर्णन किया। कवियों की विनय भावना में परम दैन्य के दर्शन होते हैं। इस काल के काव्य में सभी रसों का समावेश हुआ,किन्तु शान्त और श्रृंगार प्रधान रस हैं। रामचरितमानस’ इस काल का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। तुलसीदास ही इस काल के प्रमुख कवि हैं। इसके अतिरिक्त नाभादास, प्राणचन्द चौहान, हृदयराम, रघुराज सिंह और केशवदास के नाम उल्लेखनीय हैं। रामभक्ति शाखा के प्रवर्तक रामानन्द हैं। उन्होंने रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में भक्ति को ब्रह्म प्राप्ति का परम साधन बताया और सभी रामाश्रयी भक्तिकालीन कवियों ने इसी भक्ति मार्ग को अपनाया। उन्होंने भगवान राम की लोकमंगलकारी शक्ति का निरूपण किया। दास्य रूप में रामभक्ति का प्रारम्भ काव्य में तुलसीदास द्वारा ही हुआ।

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अन्य कवियों ने भी लिखा है, किन्तु तुलसी ने राम के बारे में इतना अधिक लिखकर राम-जीवन के सभी पक्षों का उद्घाटन किया कि और लोगों को लिखने के लिए कुछ भी शेषनरहा। रामकाव्य की मुख्य तीन विशेषताएँ हैं। वैष्णव धर्म को सामने रखकर भक्ति के सेव्य-सेवक रूप पर ही ध्यान दिया गया। इस काल में ज्ञान और कर्म से भक्ति की श्रेष्ठता दर्शायी है और जो सबसे प्रभावशाली बना है, वह है रचना-शैली। रामभक्त कवि किसी एक परिपाटी में नहीं बँधे। उन्होंने विभिन्न रचना-शैलियों का प्रयोग किया है। दृश्य, श्रव्य, मुक्तक और प्रबन्ध काव्य सभी की रचना हुई है। इस काल का काव्य स्वतन्त्र वातावरण में विकसित हुआ। कवियों पर किसी राजा का नियन्त्रण नहीं था, अतएव किसी की प्रशंसा करना या धनोपार्जन करना कवियों का उद्देश्य नहीं था। कवियों ने राम को अपना इष्टदेव माना और अपने हृदय का उल्लास, विनय तथा आत्म-निवेदन करना उनका मुख्य उद्देश्य था। अत: कवियों की कविता स्वान्तः सुखाय है। परम प्रतिभासम्पन्न, आदर्श भक्त एवं लोकनायक तुलसी ने लोक कल्याणार्थ कविता की रचना की। उन्होंने बारम्बार अपने काव्य में ज्ञान से भक्ति की श्रेष्ठता प्रतिपादित की है। इस काल के काव्य का भाव-पक्ष और कला-पक्षदोनों ही सबल हैं। काव्य में अति स्वाभाविक और सौन्दर्यवर्द्धक अलंकार योजना है, जिससे यत्र-तत्र सभी रस प्रवाहित हैं।

(4) भक्तिकालीन सगुण कृष्णभक्ति शाखा-कृष्णभक्ति शाखा में भगवान विष्णु के कृष्णावतार की उपासना है। इस शाखा में केवल मुक्तक काव्यों की रचना हुई। भगवान कृष्ण की भक्ति के सभी पद ब्रजभाषा की माधुरी से ओत-प्रोत हैं। केवल ‘पद’ छन्द का ही प्रयोग हुआ। इन पदों का मुख्य विषय-राधाकृष्ण की प्रेमपूर्ण उपासना है, किन्तु सूरदास ने कृष्ण की बाल-लीलाओं का भी वर्णन किया है, जो स्वाभाविक और हृदयस्पर्शी है। इस काल के प्रमुख रस भंगार के दोनों पक्ष और वात्सल्य रस हैं। प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रचित सूरसागर ही प्रमुख ग्रन्थ है।

कृष्णभक्ति काव्य के प्रमुख प्रवर्तक बल्लभाचार्य हैं। इन्होंने कृष्णभक्ति में माधुर्य भाव को ही प्रधानता दी है। माधुर्य भाव की प्रधानता होने से कृष्ण के केवल लोकरंजक रूप का ही प्राधान्य है। किन्तु कहीं लोकरक्षक रूप का भी आभास होता है। इस काल में केवल मुक्तक रचनाएँ हुई हैं और प्रबन्ध काव्य का सर्वथा अभाव है। किन्तु ये मुक्तक भी इतने मर्मस्पर्शी हैं कि एक-एक पद पढ़कर पाठक भावानुकूल हो जाते हैं, जो स्मृति पटल में न जाने कितना विस्तार कल्पना के लिए छोड़ जाते हैं। सर्वत्र स्वतन्त्र प्रेम की झलक प्राप्त होती है, इसलिए लोक-जीवन की प्रायः अवहेलना ही हो गयी है। यदि कहीं लोक-जीवन का सामान्य-सा चित्रण है भी तो वह रस की पुष्टि के अर्थ में चित्रित है। पद-शैली में संगीत की विभिन्न राग-रागनियों का अच्छा समायोजन है। इसी से कृष्णभक्ति के अधिक पद गाये जाते हैं, जिसमें उत्कृष्ट माधुर्य भावना है। इस मधुरता को रक्षित करने के लिए ही मानो कृष्ण भक्त कवियों ने केवल एकमात्र माधुरी ब्रजभाषा को अपनाया है। अलंकारों का सुन्दर स्वाभाविक प्रयोग है।

कृष्णभक्ति काल की रचनाओं में एक और बात जो ध्यान आकर्षित करती है, वह है-कृष्ण काव्य की व्यंग्यात्मक उपालम्भ शैली। विप्रलम्भ श्रृंगार इस काल में अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर चुका है। भ्रमर गीतों की अनूठी परम्परा इस रसराज की पोषक है। केवल मीराबाई ने कृष्ण की एकभाव से प्रेमिका के रूप में उपासना की है।

कृष्णकाव्य के प्रसंग में हमें ‘अष्टछाप’ को विस्मृत नहीं करना चाहिए। बल्लभाचार्य के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी विट्ठलनाथजी थे। उनके समय तक कृष्ण की पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तानुसार भक्ति करने वाले कवि अनेक थे। उन कवियों में से जिन आठ कवियों के काव्य का संग्रह विट्ठलनाथ ने किया, वह ‘अष्टछाप’ कहलाता है।

ये आठ कवि हैं-

  1. सूरदास,
  2. नन्ददास,
  3. कुम्भनदास,
  4. परमानन्ददास,
  5. चतुर्भुजदास,
  6. छीत स्वामी,
  7. गोविन्द स्वामी और
  8. कृष्णदास।

सूरदास व नन्ददास इनमें श्रेष्ठ हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कवि और भी हुए, जिन्होंने स्वतन्त्र रूप से कृष्णभक्ति की कविताएँ लिखीं। मीराबाई, रसखान, नरोत्तमदास आदि की कृष्ण सम्बन्धी कविताएँ भावों की व्यंजना से पूर्ण हैं। रसखान मुस्लिम कवि थे, जो अपनी तन्मयता के लिए प्रसिद्ध थे। ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’ इनके दो ग्रन्थ हैं। मीराबाई जोधपुर की राजकुमारी थीं। ये कृष्ण-प्रेम की मतवाली थीं और गा-गाकर नाचा करती थीं। ‘मीरा की पदावली’ में इनके पदों का संग्रह है। इनकी प्रेमवाणी हिन्दी-साहित्य में अनुपम है।

नरोत्तमदास का ‘सुदामा चरित्र’ ब्रजभाषा का खण्डकाव्य है।

जिस प्रकार राम चरित्र का गान करने वाले भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदासजी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। उसी प्रकार कृष्ण चरित्र गाने वालों में भक्त कवि सूरदासजी का शीर्षस्थ स्थान है। इन्हीं के काव्यों की सरसता से हिन्दी काव्य का स्रोत अविरल प्रवाहित है। सूरदास जन्मान्ध थे; किन्तु कृष्ण की बाल-लीलाओं का जो सजीव वर्णन है, वह कोई आँख वाला कवि भी नहीं कर सकता। जीवन भर सूरदास ने कृष्ण लीलाओं का गायन किया। ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ एवं ‘साहित्य लहरी’ इनके रचित ग्रन्थ हैं। बताया जाता है कि सूर ने सवा लाख पदों की रचना की। सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट कहे जाते हैं। अंगार और शान्त रसों का भी वर्णन किया है। सूरदास बालक बनकर एक सखा की भाँति बालकृष्ण के साथ खेलते हैं। इनकी भक्ति सखा भाव की है। विनय के पदों में सूर ने सच्चे मानव जीवन की छवि अंकित की है। वह मार्मिक चित्रण शान्त रस का उत्कृष्ट उदाहरण है। सूर एक भक्ति कवि हैं। उनके काव्य का मुख्य गुण है सरलता और स्वाभाविकता। श्रृंगार के विप्रलम्भ पक्ष का अद्वितीय वर्णन भ्रमरगीत में है। इसमें सन्देह नहीं कि कृष्ण परम्परा में कवियों ने गीतिकाव्य को इतना सम्पन्न किया जो अक्षय है। यद्यपि रचनाएँ एकांगी हैं, उनमें बहुरूपता नहीं, तब भी सरस हैं।

(5) भक्तिकाल की स्फुट शाखा-भक्ति का जो प्रवाह उमड़ा वह राजाओं और शासकों के प्रोत्साहन पर अवलम्बित नहीं था। वह जनता की प्रवृत्ति का द्योतक था। उसी प्रवाहकाल के बीच अकबर जैसे शासक द्वारा स्थापित शान्तिसुख के परिणामस्वरूप जो रचनाएँ लिखी गईं वह दूसरे प्रकार की थीं। नरहरि, गंग, रहीम जैसे सुकवि और तानसेन जैसे गायक अकबरी दरबार की शोभा बढ़ाते थे। इस काल में मुक्तक कविता की रचना हुई दोहा, कवित्त आदि स्फुट छन्दों का प्रयोग हुआ। ब्रजभाषा के साथ अन्य बोलियों के शब्दों का भी निर्माण हुआ। स्फुट रूप में सभी रसों का समावेश हुआ। दरबारी कविता, नीति कविता, रीति कविता और प्रकृति की कविताएँ लिखी गयीं। प्रमुख कवि रहीम, गंग, सेनापति आदि थे। इनके अतिरिक्त कृपाराम, नरहरि, बन्दीजन, नरोत्तमदास, आलम, टोडरमल, बीरबल, मनोहर, बलभद्र मिश्र, जमाल, केशवदास, मुबारक, बनारसीदास, पुहुकर, लालचन्द या लक्षोदय और सुन्दर आदि कवियों का उल्लेख भी आचार्य शुक्ल ने अपने इतिहास ग्रन्थ में किया है।

रहीम अरबी, फारसी और संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। इन्होंने चार ग्रन्थ लिखे। गंग अकबर के दरबारी कवि थे। सेनापति ने ‘कविता रत्नाकर’ और ‘काव्य कल्पद्रुम’ दो ग्रन्थ लिखे। ‘ऋतु वर्णन ‘हिन्दी साहित्य में अद्वितीय है। केशवदास भक्तिकाल और रीतिकाल के बीच की कड़ी हैं।

  • भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ
  1. ईश्वरभक्ति,
  2. गुरु महिमा,
  3. सादा जीवन,
  4. समन्वय की भावना,
  5. राज्याश्रय से मुक्ति,
  6. विविध रसों का परिपाक,
  7. भाषा की विविधता।

प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
MP Board Class 11th Special Hindi पद्य साहित्य का इतिहास 1

रीतिकाल रीतिकाल का समय सम्वत् 1700 से सम्वत् 1900 तक (सन् 1643 से 1843 ई.) तक है। काल की काव्यगत रीतिबद्धता की मूल प्रवृत्ति के कारण इसे रीतिकाल कहा है।

इस काल में मुगलों का क्रमशः पतन हो रहा था, जिसके फलस्वरूप देश में छोटे-छोटे राजाओं ने अपनी रियासतें स्थापित करना शुरू कर दिया। इन राजाओं के आश्रय में कवि रहा करते थे। कवि अपने आश्रयदाताओं के मनोरंजनार्थ काव्य की रचना करते थे। इन कवियों को विषय भक्तिकाल से सहज रूप में मिल गये थे। भक्तिकाल के अलौकिक और आध्यात्मिक आराध्य राधाकृष्ण को रीतिकालीन कवियों ने बौद्धिक स्तर पर उनके लौकिक रूप को अपनी काव्य रचना में स्थान दिया। इस काल में रस, छन्द, अलंकार के शास्त्रीय पक्ष को विशेष बल मिला। रस में श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों बहिर्मुखी रूप में व्यंजित हुए। यही कारण है कि इन कवियों में नारी विषयक दृष्टिकोण में अन्तर आ गया। अलंकारों को इतना अधिक महत्त्व दिया कि काव्य का भाव-पक्ष उतना उभरकर सामने नहीं आ पाया। इससे बौद्धिक व्यायाम का रूप बढ़ता गया और रीतिकालीन कविता का भाव ग्रहण करने में कष्ट और परिश्रम की आवश्यकता पड़ी।

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रीतिकालीन काव्य की विशेषताएँ-

  1. सांसारिक सुख का प्राधान्य-यह समय विलास और समृद्धि का था। जीवन क्षणभंगुर है, अत: जितने दिन सुख भोग सके उतना ही अच्छा है। अत: काव्य रचना का उद्देश्य सुख प्राप्ति माना गया।
  2. कविराज्याश्रित होने के कारण कविता भरण-पोषण और धन-प्राप्ति का साधन बनी।
  3. मुक्तक काव्य और गीतिकाव्य-इस काल में मुक्तक रचनाएँ ही अधिक लिखी गयीं, जो काव्यात्मक हैं। कवित्त, सवैया, बरवै, दोहा, छन्द, मुक्तक लिखने के लिए अनुकूल थे।
  4. श्रृंगार और नखशिख वर्णन-इनकी श्रृंगार विषयक धारा में राम, कृष्ण जो भगवान थे, वे भी अछूते नहीं रहे। नायिकाओं के अंग-अंग और हर अदा का वर्णन बहुत ही लालित्यपूर्ण और विशुद्ध शृंगारपरक है।
  5. नायिका भेद-काव्य-कला की दृष्टि से उत्कृष्ट नायिका भेद का वर्णन है, किन्तु यह काव्य विलास की वस्तु बन गया।
  6. प्रकृति-चित्रण-प्रकृति वर्णन अधिक नहीं हुआ, पर प्रकृति प्रायः विप्रलम्भ श्रृंगार के उद्दीपन के अर्थों में ही अधिक प्रयुक्त हुई। फिर भी प्रकृति वर्णन उपेक्षित नहीं है। जहाँ कहीं भी प्रकृति वर्णन हुआ है, बहुत ही उत्कृष्ट कोटि का बन पड़ा है। नये-नये उपमानों का प्रयोग हुआ है।
  7. रीतिकालीन कविता में कला-पक्ष की प्रधानता रही। इस कला के प्रदर्शन में संस्कृत की सभी परम्पराओं का प्रभाव स्पष्ट है। कई रीति ग्रन्थ भी लिखे गये। भाषा मे शब्दो का चमत्कार और अलंकारों की विविधता है।
  8. विरह-वर्णन में फारसी शैली का प्रभाव है। सूक्ष्म भाव-निरूपण नहीं हुआ है।
  9. भाषा-रीतिकाल की भाषा प्रायः ब्रजभाषा ही है। कुछ कवियों ने फारसी के शब्द अपनाये और कुछ ने संस्कृत के शब्द तथा पद अपनाये।
  10. रस-वीर और श्रृंगार रस के अतिरिक्त जीवन के सन्ध्याकाल में कवियों ने शान्त रस की भी अच्छी रचनाएँ की।
  11. भाव-पक्ष कला-पक्ष से बोझिल है। इस काल के कुछ प्रेमी कवियों ने भावनाओं का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है।
  12. छन्द-हिन्दी के प्रचलित छन्दों के अतिरिक्त संस्कृत के कुछ छन्दों को भी अपनाया गया।
  13. संस्कृत साहित्य का अत्यधिक प्रभाव-इस काल के कवि पण्डित और विद्वान थे। इनका गहन अध्ययन था। संस्कृत के ‘अमरूकशतक’ आदि के आधार पर भावों को ग्रहण कर सतसई आदि लिखी और संस्कृत के लहरी काव्य के अनुसार ‘गंगालहरी’, ‘यमुनालहरी’ आदि भी लिखी गईं।

इस काल के प्रमुख कवि हैं-केशव, बिहारी, देव, घनानन्द आदि। घनानन्द रीतिमुक्त काव्यधारा के कवि हैं। रीतिबद्ध कवियों की अपेक्षा रीतिमुक्त कवियों के काव्य में अधिक भावुकता तथा मार्मिकता पायी जाती है।

  • प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

कवि – रचनाएँ
केशवदास – रसिकप्रिया, कविप्रिया, रामचन्द्रिका
मतिराम – रसराज, ललित ललाम
भूषण – शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल दशक
बिहारी – बिहारी सतसई
देव – भाव-विलास, रस-विलास
सेनापति – कवित्त रत्नाकर
पद्माकर – जगद्विनोद, गंगालहरी, पद्माभरण
घनानन्द – सुजानसागर, विरह लीला
गिरधर कविराय – नीति की कुण्डलियाँ

आधुनिक काल की कविता (1900 से अब तक) ‘उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दी काव्य में नई चेतना तथा विचारों ने जन्म लिया और साहित्य बहुआयामी क्षेत्रों को संस्पर्श करने लगा। भारतेन्दु युग हिन्दी कविता का जागरण काल है। देशोद्धार, राष्ट्र-प्रेम, अतीत-गरिमा आदि विषयों की ओर ध्यान दिया गया और कवियों की वाणी में राष्ट्रीयता का स्वर निनादित होने लगा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, चौधरी बद्रीनारायण ‘प्रेमघन’, लाला सीताराम आदि प्रमुख रचनाकार हुए।

द्विवेदी युग में खड़ी बोली कविता की सम्वाहिका बनी। काव्य में सामाजिक तथा पौराणिक विषयों का विस्तार हुआ। श्रीधर पाठक, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ मैथिलीशरण गुप्त, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, रामचरित उपाध्याय, रामनरेश त्रिपाठी, गोपालशरण सिंह, जगन्नाथ प्रसाद ‘रत्नाकर’, सत्यनारायण ‘कविरत्न’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। …

हिन्दी कविता में आधुनिकता तथा नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय छायावादी युग को प्रदान किया जाता है।

छायावादी कविता (1920-1935) परिभाषा-डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में, “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह था।””

अंग्रेजी शिक्षा के फलस्वरूप हिन्दी कवि अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावादी काव्य के सम्पर्क में आये और कवीन्द्र-रवीन्द्र की नोबुल पुरस्कार प्राप्त ‘गीतांजलि’ ने भी छायावादी कविता को प्रभावित किया।

छायावादी काव्य की प्रवृत्तियाँ व प्रमुख विशेषताएँ

  1. बाह्यार्थ निरूपण के स्थान पर स्वानुभूति-निरूपण की प्रमुखता।
  2. सौन्दर्य तथा प्रणय-भावनाओं का प्राधान्य।
  3. कल्पना का उन्मुक्त प्रयोग।
  4. करुणा और वेदना की प्रवृत्ति।
  5. प्रकृति का सजीव सत्य के रूप में चित्रण तथा प्रकृति पर कवि द्वारा अपने भावों का आरोपण।
  6. प्रगीतों का आधिक्य।
  7. छन्द-विधान में नूतनता।
  8. भाषा में माधुर्य।
  9. भाषा में लाक्षणिकता तथा वक्रता की प्रमुखता।
  10. प्रतीक-विधान।
  11. उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों की अपेक्षा अन्योक्ति, समासोक्ति आदि व्यंग्य-मूलक अलंकारों की प्रमुखता के साथ-ही-साथ विशेषता विपर्यय, मानवीकरण आदि पाश्चात्य साहित्य के अलंकारों का प्रयोग।

छायावादी काव्यधारा के कवियों में जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा और अन्य कवियों में मुकुटधर पाण्डेय तथा डॉ. रामकुमार वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। छायावाद-युग की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक काव्यधारा में माखनलाल चतुर्वेदी ‘एक भारतीय आत्मा’, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ और सुभद्रा कुमारी चौहान के नाम उल्लेखनीय हैं। जयशंकर प्रसाद मूलतः सौन्दर्य, प्रेम, यौवन और श्रृंगार के कवि हैं, उनकी ‘कामायनी’ शैव दर्शन के आनन्दवाद तथा समरसता पर आधारित छायावादी काव्य है, जो आधुनिक हिन्दी-साहित्य का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘नये पत्ते’ आदि अपनी प्रमुख कृतियों में पौरुष, क्रान्ति तथा विद्रोह के स्वर प्रदान किये हैं। ‘निराला’ की महत्वपूर्ण देन मुक्त छन्द है। सुमित्रानन्दन पन्त प्रकृति तथा रोमांटिक काव्य के पुरस्कर्ता हैं। उन पर गाँधीवाद, मार्क्सवाद तथा अरविन्द दर्शन का प्रभाव पड़ा। ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘स्वर्ण किरण’, ‘युगान्त’, ‘ग्राम्या’,’लोकायतन’ उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। महादेवी वर्मा के काव्य में प्रधान रूप से विरह और वेदना के स्वर मिलते हैं। ‘एक भारतीय आत्मा’ और ‘नवीन’ ने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रियतापूर्वक भाग लेकर राष्ट्रीय काव्य को बहुमुखी बनाया उत्तर छायावादी काव्य में सियारामशरण गुप्त तथा रामधारीसिंह ‘दिनकर’ के नाम अत्यन्त आदर से लिये जाते हैं।

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रहस्यवादी कविता
परिभाषा-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्यवाद है।”

हिन्दी की रहस्यवादी कविता अपना आदि स्रोत कबीर तथा जायसी में पाती है। आधुनिक काल में रहस्यवादी कविता व्यापक स्वच्छन्दतावादी काव्य-क्षेत्र के अन्तर्गत समाविष्ट है। रहस्यवादी कविता में विस्मय, जिज्ञासा, व्यथा तथा आध्यात्मिकता के तत्व मिलते हैं। इस कविता में अप्रस्तुत योजना की न्यूनता है। छायावादी कवियों में रहस्य भावना की व्यापक छाप महादेवी वर्मा की कविता में मिलती है। उनके प्रमुख काव्य-संग्रह ‘नीहार’,’रश्मि’, ‘नीरजा’ और ‘सांध्यगीत’ में अनुभूति तथा विचार के धरातल पर एकान्विति मिलती है। प्रतिपाद्य गीतकाव्य है जिसमें भावप्रधानता के अतिरिक्त व्यथा, पीड़ा, आशा, अज्ञात प्रिय के प्रति प्रणय निवेदन और साधना की विविध अनुभूतियों के स्वर मुखरित हुए हैं। महादेवी ने अज्ञात प्रियतम के प्रति प्रणय-निवेदन किया है, किन्तु उनका प्रणय दुःख प्रधान है। हिन्दी के रहस्यवादी काव्य को बौद्ध दर्शन के अतिरिक्त, उपनिषदों, सर्ववादी दर्शन आदि ने प्रभावित किया है। महादेवी वर्मा ने मध्यकालीन रहस्य-साधना की परम्परा को स्वीकार कर और उसे लोक-कल्याण से सम्पृक्त कर अपने युगबोध के अनुकूल निर्मित करने का प्रयास किया है। यह रहस्यवाद का एक अभिनव अध्याय है जिसके उद्घाटन का सम्पूर्ण श्रेय महादेवी को है। महादेवी के अतिरिक्त प्रसाद, निराला, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, रामकुमार वर्मा, मोहनलाल महतो ‘वियोगी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, जनार्दन झा ‘द्विज’ आदि में भी रहस्य साधना के अनेक रूप विद्यमान हैं।

उन्मुक्त प्रेम काव्य
इस श्रेणी के प्रमुख कवियों में भगवतीचरण वर्मा, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, नरेन्द्र शर्मा, गोपालसिंह ‘नेपाली’, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, हरिकृष्ण प्रेमी’, हृदयनारायण ‘हृदयेश’ आदि परिगणित हैं। इस काव्य में लाचारी तथा कर्म से विमुखता है। छायावादी कविता व्यक्ति चेतना से ऊपर उठकर मन एवं फिर आत्मा को संस्पर्श करती हैं परन्तु प्रेम तथा मस्ती के काव्य गायकों की व्यक्तिनिष्ठ चेतना मुख्य रूप में शरीर तथा मन के स्तर पर ही अभिव्यक्त होती रही है। इनके लिए प्रणय मार्ग न होकर मंजिल है। ये कवि मात्र प्रणय में तल्लीन होना चाहते हैं। मादकता, मदिरा आदि में व्यक्ति-स्वातन्त्र्य की भावना प्रकट हुई है। करुणा तथा हालावाद को भी प्रमुख वाणी मिली।

प्रगतिवादी कविता (1936-1943)
परिभाषा-“राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है,वह काव्य के क्षेत्र में प्रगतिवाद है।” प्रगतिवादी काव्य की संज्ञा उस कविता को प्रदान की गई जो.कि छायावाद के समापन काल में सन् 1936 के आस-पास सामाजिक चेतना को लेकर अग्रसर हुआ। प्रगतिवादी कविता में राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक शोषण से मुक्ति का स्वर प्रमुख है। इस कविता पर मार्क्सवाद का प्रभाव है। रूस के नये संविधान और सन् 1905 में लखनऊ में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की प्रेमचन्द की अध्यक्षता में हुई सभा इसके विकास-क्रम के महत्वपूर्ण सोपान हैं। प्रगतिवाद की प्रमुख विशिष्टताएँ अग्रलिखित हैं-

  1. यथार्थवाद की ओर झुकाव।
  2. भाव प्रवणता के स्थान पर बौद्धिकता की प्रमुखता।
  3. श्रद्धा एवं आध्यात्मिकता का विरोध।
  4. रूढ़ियों का विरोध और समस्त क्षेत्रों में क्रान्ति की भावना।
  5. पूँजीवाद का विरोध, शोषकों के प्रति आक्रोश और शोषितों के प्रति सहानुभूति संवेदना।
  6. सुबोध तथा सहज भाषा-शैली।
  7. मार्क्सवादी विचारधारा का पल्लवन।

प्रगतिवाद ने साहित्य को सोद्देश्य रूप में स्वीकार किया और किसी विशेष दृष्टि से कला की साधना करना आवश्यक माना। उसने सौन्दर्य को नये दृष्टिकोण से देखा-परखा और उसे जन-जीवन में खोजा। प्रगतिवादी काव्य के शिल्प में सामाजिक जीवन की वास्तविकता के प्रति आग्रह और जनता के जीवन की बात को जनता तक पहुँचाने के कारण, उसकी भाषा सुस्पष्ट, सामान्य और प्रचलित रूप लेकर चली। उसने प्रतीक, बिम्ब, शब्द, मुहावरे और चित्र सभी जन-सामान्य के बीच से लिये। अतएव, एक अत्यन्त जीवन्त भाषा को प्रमुखता मिली। बाद में कविता प्रचारात्मक, अभिधात्मक और सपाट होती चली गई। इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रगतिवाद ने भाषा को कृत्रिमता के कुहरे से निकालकर सामान्य धरातल पर प्रतिष्ठित किया। ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, केदारनाथ अग्रवाल, रामविलास शर्मा, नागार्जुन, डॉ. रांगेय राघव, डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, त्रिलोचन, मुक्तिबोध आदि इस धारा के प्रमुख कवि हैं।

प्रयोगवादी कविता (1943-1950)-
‘प्रयोगवाद’ उन कविताओं के लिए प्रमुख सम्बोधन बना जो कतिपय नूतन बोधों, संवेदनाओं, शिल्पगत चमत्कारों को लेकर, प्रारम्भ में तार सप्तक’ के माध्यम से सन् 1943 में प्रकाश में आईं। इसके उन्नायक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ स्वीकार किये गये। यह वर्ग अंग्रेजी के कवियों यथा टी. एस. इलियट, ऐजरा पाउण्ड, लारेंस आदि से प्रभावित हुआ। इस क्षेत्र में अनेक वर्ग के कवियों ने अपना योगदान दिया है तथा विचारों से समाजवादी किन्तु संस्कारों से व्यष्टिपरक, जैसे-शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता और नेमिचन्द्र जैन, विचारों और क्रियाओं, दोनों से समाजवादी, जैसे-रामविलास शर्मा तथा गजानन माधव मुक्तिबोध। प्रयोगवादी कविता में हासोन्मुख मध्यमवर्गीय समाज के जीवन का चित्र मिलता है। इन कवियों ने नये सत्य के शोध तथा प्रेषण के नूतन माध्यम की खोज की। प्रयोगवादी कवि जन-जीवन के प्रवाह से कटकर उसी के मध्य नदी के द्वीप की भाँति अपनी इकाई में संस्थित रहता है। उनमें गहरा तथा सजग पीड़ा का बोध है।

प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी होने के साथ ही साथ भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता को विशेष रूप से ग्रहण करते हैं। ये कवि मध्यमवर्गीय व्यक्ति-जीवन की समूची कुण्ठा, पराजय, मानसिक संघर्ष तथा जड़ता को बड़ी बौद्धिकता के साथ प्रकट करते है। फ्रॉयड के काम सिद्धान्त को सिरमौर बनाया गया। छायावादी कवि कल्पना लोक में नारी के साथ तादात्म्य स्थापित कर अपनी पिपासा को शान्त करता है, परन्तु प्रयोगवादी कवियों ने कल्पना के रंगीन आवरण को उच्छेद कर, अवदमित यौनाकांक्षाओं को खुले रूप में भास्वर बना दिया। अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजा कुमार माथुर और डॉ. धर्मवीर भारती ने स्पष्ट या बारीक प्रतीकों, बिम्बों एवं माध्यमों से उलझी हुई संवेदनाओं को मूर्त किया। प्रयोगवादी काव्य महान् संघर्षों तथा जीवन प्रसंगों से न जुड़कर व्यक्ति के अन्तः संघर्षों और मन की विविध स्थितियों के प्रति प्रतिबद्ध होकर, छोटी, तीव्र तथा प्रभावशाली कवियों का स्रष्टा बना। उसने लघु मानव के प्रति सहानुभूति का मार्ग अपनाया। प्रयोग के नाम पर भाव, विचार, प्रक्रिया, छन्द, प्रतीक, अलंकार आदि सब में परिवर्तन करने की प्रवृत्ति इस दशक की कविता में प्रचुरता पा गई।

नई कविता (1950 से अब तक)
नई कविता भारतीय स्वाधीनता के अनन्तर लिखी गई उन कविताओं को कहा गया जिन्होंने नये भावबोध, नये मूल्यों और नूतन शिल्पविधान को अन्वेषित तथा स्थापित किया। नई कविता अपनी वस्तु-छवि तथा रूपायन में पूर्ववर्ती प्रगतिवाद तथा प्रयोगवाद की विकासान्विति होकर भी अपने में सर्वथा विशिष्ट तथा असामान्य है।

नई कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों में आज की क्षणवादी, लघु मानववादी जीवन दृष्टि के प्रति नकार-निषेध नहीं अपितु स्वीकार सहमति के साथ जीवन को पूर्णतया स्वीकार करके उसके भोगने की आकांक्षा है। नई कविता क्षणों की अनुभूतियों में अपनी आस्था प्रकट करती है जो कि समस्त जीवनानुभूतियों के लिए अवरोध न बनकर सहायक होते हैं। नई कविता, लघु मानवत्व को स्वीकार करती है जिसका तात्पर्य है सामान्य मनुष्य की अपेक्षित समूची संवेदनाओं और मानसिकता की खोज या प्रतिष्ठा करना। नई कविता कोई वाद नहीं है। उसमें सर्व महान् विशिष्ट कश्य की व्यापकता तथा सृष्टि की उन्मुक्तता है। नई कविता के दो प्रमुख घटक हैं-

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(क) अनुभूति की सच्चाई और
(ख) बुद्धि की यथार्थवादी दृष्टि।

नई कविता जीवन के प्रत्येक क्षण को सत्य मानती है। आन्तरिक और मार्मिकता के कारण नई कविता में जीवन के अति साधारण सन्दर्भ अथवा क्रिया-कलाप नूतन अर्थ तथा छवि पा लेते हैं। नई कविता में क्षणों की अनुभूति को लेकर अनेकानेक मार्मिक एवं विचारोत्तेजक कविताएँ लिखी गई हैं जो कि अपने लघु आकार के बावजूद प्रभावोत्पादकता में अत्यन्त तीव्र तथा सघन हैं। नई कविता की वाणी अपने परिवेश की जीवानुभूतियों से संसिक्त है। अज्ञेय के अनुभव-क्षेत्र तथा परिवेश में ग्राम एवं नगर, दोनों ही समाहित हैं। शहरी परिवेश के साथ जुड़ने वाले रचनाकारों में बालकृष्ण राव,शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजाकुमार माथुर, कुँवर नारायण, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. प्रभाकर माचवे, विजयदेव नारायण साही, रघुवीर सहाय आदि कवि आते हैं परन्तु भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, शम्भूनाथ सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल आदि ऐसे सृजनकर्ता हैं जिन्होंने मुख्यतः ग्रामीण संस्कारों को अभिव्यक्ति दी। मदन वात्स्यायन में यान्त्रिक परिवेश और ठाकुर प्रसाद सिंह में संथाली जीवन का वातावरण आर्द्र हो गया है। नई कविता में जीवन मूल्यों की पुन: परीक्षा की गई है। प्रगतिवाद में लोक जीवन एक आन्दोलन के रूप में आया, प्रयोगवाद में वह कट गया परन्तु सम्प्रक्ति नई कविता की एक प्रमुख विशेषता बन गई। नई कविता के शिल्प को भी लोक-जीवन ने प्रभावित किया। उसने लोक-जीवन से बिम्बों, प्रतीकों, शब्दों तथा उपमानों को चुनकर निजी संवेदनाओं तथा सजीवता को द्विगुणित किया। नई कविता अपनी अन्तर्लय, बिम्बात्मकता, नव प्रतीक योजना, नये विशेषणों के प्रयोग, नव उपमान-संघटना के कारण प्रयोगवाद से अपना पृथक् अस्तित्व भी सिद्ध करती है।

प्रयोगवाद बोझिल शब्दावली को लेकर चलता है, परन्तु नई कविता ने प्रगतिवाद की तरह विशेष क्षेत्रों के विशिष्ट सन्दर्भ के लिए ही लोक शब्द नहीं लिये, परन्तु समस्त प्रकार के प्रसंगों के लिए लोक शब्दों का चयन किया। नई कविता की भाषा में एक खुलापन और ताजगी है।

निष्कर्षत: नई कविता मानव मूल्यों एवं संवेदनाओं की नूतन तलाश की कविता है।

प्रश्नोत्तर

  • लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी साहित्य के प्रथम युग का नाम वीरगाथा काल क्यों पड़ा?
उत्तर-
इस काल के राज्याश्रित चारण कवियों ने वीर रस के फुटकर दोहे लिखे हैं। श्रृंगार के साथ वीर रस प्रधान है। वीर रस की प्रधानता के कारण कतिपय विद्वान इसे वीरगाथा काल कहते हैं। शस्त्रों की झंकार तथा युद्धों का नाद है।

प्रश्न 2.
वीरगाथा काल की कोई तीन विशेषताएँ लिखते हुए इस युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचना का नाम लिखिए। [2017]
उत्तर-
पृष्ठ 2 देखें।

प्रश्न 3.
भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है? [2008, 15]
उत्तर-
निम्नलिखित कारणों से भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है-

  1. लोक मंगल तथा समन्वय की भावना।
  2. भक्ति भाव का प्राधान्य।।
  3. स्वान्त सुखाय काव्य साधना।
  4. भाव एवं कलापक्ष का मणिकांचन योग।
  5. निराशा में आशा का स्वर्णिम प्रकाश है।

प्रश्न 4.
भक्तिकाल की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उस काल के दो कवियों के नाम लिखिए। [2011, 17]
उत्तर-
भक्तिकाल की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. ईश्वर भक्ति,
  2. गुरु महिमा,
  3. सादा जीवन,
  4. समन्वय की भावना,
  5. राज्याश्रय से मुक्ति,
  6. विविध रसों का परिपाक,
  7. भाषा की विविधता।

प्रमुख दो कवि-

  1. तुलसीदास,
  2. सूरदास।

प्रश्न 5.
भक्तिकाल की प्रमुख शाखाओं के नाम बताइए तथा उन शाखाओं के प्रवर्तक का नाम लिखिए।
अथवा [2010]
भक्तिकाल का वर्गीकरण कर प्रत्येक शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए। [2016]
उत्तर-
भक्तिकाल की प्रमुख शाखाओं तथा उनके प्रवर्तकों के नाम निम्न प्रकार हैं-
MP Board Class 11th Special Hindi पद्य साहित्य का इतिहास 2

प्रश्न 6.
निर्गुण काव्य धारा के प्रकार बताते हुए उनके प्रमुख दो कवियों के नाम लिखिए। [2008, 09]
उत्तर-
भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल है। भक्तिकाल को प्रमुख दो रूपों में बाँटा जा सकता है-
(क) निर्गुण काव्य धारा एवं
(ख) सगुण काव्य धारा।

(क) निर्गुण काव्य धारा-इसे निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है
(1) ज्ञानमार्गी शाखा-यह काव्य धारा बाह्य आडम्बर पर विश्वास नहीं करती। इस धारा के कवि आन्तरिक शुद्धता पर विशेष बल देते हैं। इन्होंने जीवन को सरल तथा निर्मल बनाने पर बल दिया है। जाति भेद, वर्ण भेद को समाप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के दोहे तथा पदों की रचना की है। इस धारा के प्रमुख कवि थे-कबीरदास, दादू दयाल, गुरु नानक देव तथा रैदास
(2) प्रेममार्गी शाखा-इस काव्य धारा को सूफी या प्रेममार्गी काव्य धारा कहते हैं। इस काव्य धारा में मुसलमान सन्त कवि सम्मिलित थे। इन कवियों ने अद्वैतवाद पर अपनी लेखनी चलायी है। प्रेम का रहस्यमयी रूप प्रेममार्गी, शाखा में देखने को मिलता है। इनमें भारतीय लोकगाथाओं को आधार बनाया गया है। लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति की गयी है। हिन्दू-मुस्लिम एकता पर विशेष बल दिया गया है। दोहा, चौपाई तथा मसनवी शैली में सूफी कवियों ने आध्यात्मिक प्रेम की अभिव्यक्ति की है। इस शाखा के कवियों ने जीव को ब्रह्म का अंश माना है। संसार में अज्ञानता को दूर करने का सशक्त माध्यम गुरु है।

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जायसी, कुतुबन, मंझन, आलम, उस्मान तथा शेखनवी इसके प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 7.
निर्गुण भक्ति धारा की कोई तीन विशेषताएँ लिखते हुए निर्गुण भक्ति धारा के किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर-
निर्गुण भक्ति धारा की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. निर्गुण ब्रह्म में विश्वास रखने वाले ये कवि गुरु को ईश्वर के समान मानते हैं।
  2. इस धारा के कवियों ने रूढ़ियों, छुआछूत, कुरीतियों पर प्रहार किये हैं।
  3. इस धारा के कवियों ने अवधी, सधुक्कड़ी (मिश्रित) भाषा अपनाई है।

दो कवि-कबीर तथा जायसी निर्गुण भक्ति धारा के श्रेष्ठ कवि हैं।

प्रश्न 8.
भक्तिकाल की निर्गुण प्रेममार्गी शाखा की चार विशेषताएँ लिखिए। [2008, 14]
उत्तर-

  1. इस काल के काव्य में कलापक्ष के अतिरिक्त भावपक्ष भी सबल है।
  2. प्रमुख छन्द दोहा, सोरठा एवं चौपाई का प्रयोग किया गया है।
  3. अवधी और फारसी भाषा का प्रयोग है तथा मसनवी शैली है।
  4. कवि कुतुबन, मंझन एवं जायसी ने प्रेमगाथाओं को काव्य रूप में गूंथ लिया।

प्रश्न 9.
भक्तिकाल की निर्गुण धारा का परिचय देते हुए ज्ञानमार्गी शाखा की दो विशेषताएँ एवं दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2012]
उत्तर-
भक्तिकाल में निराकार ब्रह्म में विश्वास रखने वाले कवि निर्गुण धारा के माने जाते हैं। इनके ब्रह्म घट-घट वासी हैं। ये अवतार नहीं लेते हैं। गुरु के प्रति गहरी आस्था रखने वाले इस धारा के कवि मानते हैं कि गुरु के द्वारा बताये गये ज्ञान के मार्ग पर चलकर ही मुक्ति मिल सकती है। इस धारा की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. निर्गुण ब्रह्म में विश्वास-निर्गुण भक्तिधारा के कवि निर्गुण ब्रह्म में विश्वास रखते हैं। इनके ब्रह्म आकार रहित हैं, वे घट-घट वासी हैं।
2. गुरु की महत्ता-इस धारा के कवि गुरु का बहुत महत्व मानते हैं। गुरु की कृपा से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रमुख कवि-कबीर एवं दादू दयाल दो प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 10.
निर्गुण धारा और सगुण धारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (कोई तीन) [2015]
उत्तर-
निर्गुण धारा एवं सगुण धारा भक्तिकाल के काव्य के दो रूप हैं। इन दोनों धाराओं में तीन अन्तर इस प्रकार हैं-

  1. निर्गुण धारा के काव्य में निराकार ब्रह्म की आराधना की गई है जबकि सगुण धारा के काव्य में साकार (राम एवं कृष्ण) परमात्मा की भक्ति का अंकन किया गया है।
  2. निर्गुण धारा के कवियों ने जाति-पाँति, रूढ़ियों का विरोध कर समाज सुधार पर बल दिया है जबकि सगुण भक्ति धारा के कवियों ने राम और कृष्ण के लोकरंजक रूपों का वर्णन करके लोक मंगल पर बल दिया है।
  3. निर्गुण धारा के काव्य में रहस्यवाद एवं मसनवी शैली को अपनाया गया है जबकि सगुण धारा के काव्य में समन्वय एवं सौन्दर्य अंकन की प्रधानता है।

प्रश्न 11.
ज्ञानमार्गी शाखा की दो विशेषताएँ लिखते हुए इसके प्रवर्तक कवि का नाम एक रचना सहित लिखिए। [2010]
उत्तर-

  1. ज्ञानमार्गी शाखा में केवल ज्ञान प्रधान निराकार ब्रह्म की उपासना की प्रधानता है।
  2. इस काल की प्रमुख विशेषता एक ऐसे ईश्वर की उपासना है जो हिन्दू-मुस्लिम दोनों को समान रूप से मान्य हो।

इसके प्रवर्तक कवि कबीरदास हैं तथा इनकी प्रमुख रचना ‘बीजक’ है।

प्रश्न 12.
रीतिकाल का नाम ‘रीतिकाल’ क्यों पड़ा? इस युग की कोई तीन प्रवृत्तियों को समझाइए।
अथवा
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ लिखिए। [2008, 15]
अथवा
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए दो कवियों के नाम लिखिए।
अथवा [2009, 11]
रीतिकाल की तीन विशेषताएँ तथा इस युग के प्रमुख कवि एवं उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए। [2016]
उत्तर-
नामकरण का कारण-कवियों ने रीति अर्थात् संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रन्थों की बँधी-बँधायी लीक का अनुसरण किया है। परिणामस्वरूप रीतिबद्ध रचनाओं के लेखन के फलस्वरूप इस काल को रीतिकाल नाम से जाना गया।

प्रमुख प्रवृत्तियाँ (विशेषताएँ)-

  1. सांसारिक सुख का प्राधान्य-यह समय विलास और समृद्धि का था। जीवन क्षणभंगुर है, अत: जितने दिन सुख भोग सके उतना ही अच्छा है।
  2. राज्याश्रित होने के कारण कविता भरण-पोषण और धन-प्राप्ति का साधन बनी।
  3. रीतिकालीन कविता में कलापक्ष की प्रधानता रही। इस कला के प्रदर्शन में संस्कृत की सभी परम्पराओं को प्रभाव स्पष्ट है। रीतिग्रन्थ भी लिखे गये, भाषा में शब्दों का चमत्कार और अलंकारों की विविधता है।

प्रमुख कवि-भूषण (शिवा वावनी),बिहारी (सतसई), पद्माकर (पद्माभरण), केशवदास (रामचन्द्रिका) आदि।

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प्रश्न 13.
रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है? रीतिकाल के किन्हीं दो कवियों के नाम एवं उनकी एक-एक रचना लिखिए। [2009, 13]
उत्तर-
17वीं शताब्दी के मध्य से उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक का काल हिन्दी साहित्य के इतिहास का उत्तर-मध्य काल कहलाता है। इस काल को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकाल नाम दिया। सामंतों और राजाओं के इस काल में अधिकांश कवि राज्याश्रित थे। वे राजदरबार में रहते थे। अतः राजाओं को प्रसन्न करने के लिए कवियों का श्रृंगार प्रधान काव्य रचना करना स्वाभाविक ही था। नायक-नायिका भेद के साथ, प्रकृति के उद्दीपन रूप में भी श्रृंगारिकता के दर्शन होते हैं। इस काल की रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता रही। अतः मिश्र बंधुओं ने इसे ‘शृंगार काल’ कहा।

कवि एवं उनकी रचना-

  • बिहारी (बिहारी सतसई);
  • भूषण (छत्रसाल दशक)।

प्रश्न 14.
भारतेन्दु युग हिन्दी कविता का जागरण काल क्यों कहा जाता है? [2009]
उत्तर-
भारतेन्दु युग के कवियों की कविता में देशोद्धार, राष्ट्र प्रेम, अतीत गरिमा आदि विषयों की ओर ध्यान दिया गया है। कवियों की वाणी में राष्ट्रीयता के स्वर मुखरित हैं। सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के फलस्वरूप हिन्दी काव्य में नयी चेतना तथा विचारों का समावेश हुआ।

प्रश्न 15.
छायावादी कविता की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2014, 15]
अथवा
छायावाद की चार विशेषताएँ तथा प्रमुख छायावादी कवियों के नाम लिखिए।
अथवा [2009]
छायावाद के सम्बन्ध में दो विचारकों का कथन देते हुए छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर-

  1. डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में, “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।”
  2. डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, “परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में, यही छायावाद है।”

विशेषताएँ-

  1. सौन्दर्य तथा प्रणय-भावनाओं का प्राधान्य।
  2. भाषा में लाक्षणिकता तथा वक्रता की प्रमुखता।
  3. बाह्यार्थ निरूपण के स्थान पर स्वानुभूति निरूपण की प्रमुखता।
  4. प्रकृति का सजीव सत्य के रूप में चित्रण तथा प्रकृति पर कवि द्वारा अपने भावों का आरोपण।
  5. छन्द विधान में नूतनता। प्रमुख कवि-जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा आदि।

प्रश्न 16.
रहस्यवाद की परिभाषा देते हुए रहस्यवादी कविता की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्यवाद है।”
  2. आधुनिक काल में रहस्यवादी कविता व्यापक स्वच्छन्दतावादी काव्य क्षेत्र के अन्तर्गत समाविष्ट है।
  3. कविता में अप्रस्तुत योजना की नूतनता है।
  4. रहस्यवादी कविता में बौद्ध दर्शन के अतिरिक्त उपनिषदों का प्रभाव भी परिलक्षित है।

प्रश्न 17.
प्रयोगवादी कविता की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रयोगवादी कविता पर मार्क्सवादी प्रभाव परिलक्षित है।
  2. इस काव्य में सजग एवं गहरी पीड़ा का बोध है।
  3. प्रयोगवादी कविता भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता पर विशेष बल देती है।
  4. फ्रायड के काम सिद्धान्त को सर्वोपरि रूप में स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 18.
प्रगतिवादी कविता की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रगतिवादी कविता में दीन-हीन श्रमिक तथा पद-दलित मानवों का सजीव चित्रण है।
  2. मजदूरों के शोषण के प्रति विद्रोह के स्वर हैं।
  3. प्रगतिवादी काव्य की भाषा जन सामान्य की सरल एवं सामान्य भाषा है।
  4. मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित है।

प्रश्न 19.
नई कविता की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

  1. नई कविता जीवन के हर क्षण को सत्य ठहराती है।
  2. नई कविता की वाणी अपने परिवेश के जीवन अनुभव पर आधारित है।
  3. नई कविता लघु मानवत्व को स्वीकार करती है।
  4. नई कविता में जीवन मूल्यों की पुनः परीक्षा की गयी है।

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प्रश्न 20.
नई कविता एवं प्रयोगवादी कविता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
नई कविता ने प्रगतिवाद की तरह विशेष क्षेत्रों में विशिष्ट शब्द नहीं लिए हैं। समस्त प्रकार के प्रश्नों हेतु लोक शब्दों का चयन किया है। प्रयोगवाद बोझिल शब्दावली को लेकर चलता है। प्रयोगवादी कविता में मध्यमवर्गीय जीवन के संघर्ष को बौद्धिकता के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।

  • अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वीराज रासो की रचना किस काव्य में हुई?
उत्तर-
‘पृथ्वीराज रासो’ प्रबन्ध काव्य में रचित है।

प्रश्न 2.
वीरगाथा काल के कवि किसके आश्रय में रहते थे?
उत्तर-
वीरगाथा काल के कवि राज्याश्रय में रहते थे।

प्रश्न 3.
वीरगाथाकालीन कवियों के काव्य की रचना का प्रमुख विषय क्या था?
उत्तर-
वीरगाथाकालीन कवि अपने राजाओं की शौर्य गाथा को अपने काव्य का विषय बनाते थे।

प्रश्न 4.
वीरगाथा काल का मुख्य रस कौन- था?
उत्तर-
वीरगाथा काल का मुख्य रस वीर रस था।

प्रश्न 5.
भक्तिकाल का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर-
भक्तिकाल का प्रारम्भ सम्वत् 1375 में हुआ।

प्रश्न 6.
सूफी कवियों ने आत्मा का किस रूप में वर्णन किया है?
उत्तर-
सूफी कवियों ने आत्मा को प्रियतम मानकर हिन्दू प्रेम कहानियों का वर्णन किया है।

प्रश्न 7.
सूफी काव्यों की रचना किन छन्दों में की गयी है?
उत्तर-
रचना शैली दोहा एवं चौपाई है।

प्रश्न 8.
निर्गुण प्रेममार्गी शाखा में कौन-सी भाषा एवं शैली प्रयुक्त है?
उत्तर-
निर्गुण प्रेममार्गी शाखा में अरबी एवं फारसी भाषा तथा मसनवी शैली का प्रयोग है।

प्रश्न 9.
प्रेममार्गी शाखा के महाकाव्य कौन-सी कथाओं पर आधारित हैं?
उत्तर-
प्रेम कथाओं पर आधारित हैं।

प्रश्न 10.
प्रेममार्गी शाखा में प्रमुख रूप से किस रस का प्रयोग है?
उत्तर-
शृंगार रस।

प्रश्न 11.
भक्तिकालीन ज्ञानमार्गी शाखा में कौन-सी भाषा का प्रयोग किया है?
उत्तर-
खिचड़ी एवं सधुक्कड़ी।

प्रश्न 12.
ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों ने आत्मा एवं परमात्मा का वर्णन किस रूप में किया है?
उत्तर-
आत्मा को प्रियतमा मानकर आत्मा एवं परमात्मा के विरह मिलन का वर्णन है।

प्रश्न 13.
रामचरितमानस के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
तुलसीदास।

प्रश्न 14.
राम भक्ति शाखा के प्रवर्तक कौन हैं?
उत्तर-
रामानन्द।

प्रश्न 15.
तुलसी ने राम की किस रूप में उपासना की है?
उत्तर-
तुलसी ने राम को स्वामी तथा स्वयं को दास स्वीकार किया है।

प्रश्न 16.
राम भक्ति शाखा के कवियों ने किसे अपना इष्ट देव माना है?
उत्तर-
राम को।

प्रश्न 17.
राम भक्ति शाखा में किस प्रकार के काव्य लिखे गये हैं?
उत्तर-
प्रबन्ध एवं मुक्तक काव्य। ,

प्रश्न 18.
राम भक्ति शाखा के कवियों ने प्रमुख रूप से किस भाषा का प्रयोग किया है?
उत्तर-
ब्रजभाषा एवं अवधी।

प्रश्न 19.
कृष्ण भक्ति शाखा के मुख्य प्रवर्तक कौन हैं?
उत्तर-
बल्लभाचार्य।

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प्रश्न 20.
कृष्ण भक्ति शाखा के एक कवि का नाम क्या लिखिए।
उत्तर-
सूरदास।

प्रश्न 21.
सूरदास के काव्य में प्रमुख रूप से किन रसों का प्रयोग है?
उत्तर-
शृंगार एवं वात्सल्य रस।

प्रश्न 22.
कृष्ण भक्ति शाखा में कवियों ने प्रमुख रूप से किस भाषा का प्रयोग किया है?
उत्तर-
ब्रजभाषा एवं अन्य बोलियों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 23.
भक्तिकाल की स्फुट शाखा में किस प्रकार की कविता की रचना
उत्तर-
मुक्तक काव्य की रचना हुई है।

प्रश्न 24.
स्फुट शाखा के तीन कवियों के नाम बताइए।
उत्तर-

  • रहीम,
  • गंग तथा
  • सेनापति।

प्रश्न 25.
रीतिकालीन काव्य में प्रमुख रूप से किस भाषा का प्रयोग है?
उत्तर-
ब्रजभाषा का प्रयोग है।

प्रश्न 26.
रीतिकाल में प्रयुक्त प्रमुख रसों के नाम बताइए।
उत्तर-
वीर एवं श्रृंगार के अतिरिक्त शान्त रस का प्रयोग है।

प्रश्न 27.
रीतिकालीन कवियों ने अपने जीवनयापन के लिए किसका आश्रय लिया?
उत्तर-
राजाओं का आश्रय लिया।

प्रश्न 28.
रीतिकाल के प्रमुख तीन कवियों के नाम बताइए। [2008]
उत्तर-

  • देव,
  • बिहारी एवं
  • घनानन्द।

प्रश्न 29.
रीतिकाल में कवियों ने अपनी कविता में किन-किन छन्दों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
कवित्त, सवैया, बरवै, दोहा आदि छन्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 30.
रीतिकाल के कवियों ने संस्कृत के लहरी काव्य के अनुसार किन दो ग्रन्थों की रचना की है?
उत्तर-

  • गंगा लहरी,
  • यमुना लहरी।

प्रश्न 31.
भारतेन्दु युग के कवियों की वाणी में कौन-सा स्वर मुखरित है?
उत्तर-
राष्ट्रीयता का स्वर।।

प्रश्न 32.
भारतेन्दु युग के दो लेखकों के नाम लिखो।
उत्तर-

  • प्रताप नारायण मिश्र,
  • चौधरी बद्रीनारायण ‘प्रेमघन’।

प्रश्न 33.
द्विवेदी युग के तीन साहित्यकारों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  • रामनरेश त्रिपाठी,
  • गोपाल शरण सिंह,
  • जगन्नाथ प्रसाद ‘रत्नाकरा

प्रश्न 34.
हिन्दी कविता में नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय किस युग को प्रदान किया जाता है?
उत्तर-
छायावादी युग।

प्रश्न 35.
छायावादी कवियों के दो नाम बताइए।
उत्तर-

  • सुमित्रानन्दन पन्त,
  • महादेवी वर्मा।

प्रश्न 36.
महादेवी वर्मा के काव्य में प्रधान रूप से कौनसे स्वर मुखरित हैं?
उत्तर-
विरह-वेदना।

प्रश्न 37.
छायावादी युग के किस कवि ने क्रान्ति एवं विद्रोह का स्वर निनादित किया है?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

सम्पूर्ण अध्याय पर आधारित महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  • बहु-विकल्पीय

प्रश्न
1. हिन्दी पद्य साहित्य को बाँटा गया है
(i) चार कालों में, (ii) तीन कालों में, (iii) पाँच कालों में, (iv) छ: कालों में।

2. वीरगाथा काल की प्रसिद्ध रचना है
(i) रामचरितमानस, (ii) पद्मावत, (iii) पृथ्वीराज रासो, (iv) साकेत।

3. आदिकाल के कवि हैं
(i) सूरदास, (ii) कबीरदास, (i) चन्दबरदाई (iv) भूषण।

4. भक्तिकाल के लोकनायक कवि हैं
(i) मीराबाई, (ii) तुलसीदास, (iii) रसखान, (iv) रहीम।

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5. हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहलाता है [2009]
(i) वीरगाथा काल, (ii) रीतिकाल, (iii) भक्तिकाल, (iv) आधुनिक काल।

6. लौकिक प्रेम से अलौकिक प्रेम की अवधारणा देखने को मिलती है- [2008]
(i) ज्ञानमार्गी शाखा में, (ii) प्रेममार्गी शाखा में, (ii)रीतिकालीन कविता में, (iv) आधुनिक कविता में।

7. विराट के प्रति जिज्ञासा की भावना मिलती है [2010]
(i) प्रगतिवाद में, (ii) छायावाद में, (iii) प्रयोगवाद में, (iv) नर्य कविता में।

8. रीतिकाल की प्रतिनिधि रचना है
(iii) बिहारी सतसई, (iv) प्रेम माधुरी।

9. रीतिकालीन कवि हैं [2013]
(i) सुमित्रानन्दन पन्त, (ii) भूषण, (iii)दिनकर, (iv) हरिऔध।

10. पद्माकर कवि हैं [2015]
(i) भक्तिकाल के, (ii) आधुनिक काल के, (iii) रीतिकाल के, (iv) आदिकाल के।

11. हिन्दी कविता का जागरण काल किस युग को माना जाता है? [2009]
(i) द्विवेदी युग, (ii) भारतेन्दु युग, (iii) शुक्ल युग, (iv) प्रसाद युग।

12. नई कविता का समय माना जाता है
(i) सन् 1900 से, (ii) 1936-1943, (iii) 1943-1950, (iv) 1950 से अब तक।

13. ‘महाप्राण’ के नाम से प्रख्यात कवि हैं [2011]
(i) जवाहरलाल नेहरू, (i) लाल बहादुर शास्त्री, (iii) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (iv) महात्मा गाँधी।

14. कबीर को हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कहा है
(i) भाषा का डिक्टेटर, (ii) सधुक्कड़ी भाषी, (iii) खिचड़ी भाषी, (iv) सहज भाषी।
उत्तर-
1. (i), 2. (iii), 3. (iii), 4.(ii), 5. (iii), 6. (ii), 7.(ii), 8. (iii), 9.(ii), 10. (iii), 11. (ii), 12. (iv), 13. (iii), 14. (i).

  • रिक्त स्थान पूर्ति

1. वीरगाथा काल के काव्य की भाषा प्रमुखतः ……….’ है।
2. आदिकाल में प्रमुख रूप से ……….. का सजीव वर्णन हुआ है।
3. भक्तिकाल की प्रेममार्गी काव्यधारा के प्रमुख कवि ……….’ हैं। [2009]
4. भक्तिकाल के प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम ………. है।
5. ………… रीतिकाल में वीर रस के कवि हुए। [2008]
6. सूरदास ………… के कवि हैं। [2009]
7. नागार्जुन ………. के कवि हैं। [2009]
8. भक्तिकाल संवत् ……….’ तक माना जाता है। [2009]
9. रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि ……….’ हैं।
10. …………. ग्रन्थ में पारिवारिक मर्यादा का सर्वोत्तम उदाहरण देखने को मिलता है। [2015]
11. निर्गुण काव्य धारा के मत के अनुसार ईश्वर ………..’ है। [2015]
उत्तर-
1. डिंगल, 2. युद्धों, 3. जायसी, 4. रामचरितमानस, 5. भूषण, 6. सगुण धारा, 7. प्रगतिवाद, 8. 1375 से 1700, 9. बिहारी, 10. रामचरितमानस, 11. निराकार।

  • सत्य/असत्य

1. वीरगाथा काल का प्रिय अलंकार अतिशयोक्ति है।
2. आदिकाल के काव्य की रचना हरिगीतिका छन्द में हुई है। [2009]
3. कबीर के काव्य में रूढ़ियों का खुलकर विरोध हुआ है।
4. जायसी ने ब्रजभाषा में काव्य रचना की है।
5. तुलसीदास रामभक्ति शाखा के श्रेष्ठ कवि हैं। [2009]
6. रीतिकाल में मात्र रीतिबद्ध रचनाएँ की गईं।
7. सूरदास की श्रेष्ठ रचना का नाम ‘सूरसागर’ है।
8. उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल संवत् 1050 से 1375 तक है। [2009]
9. शोषकों के प्रति घृणा और शोषितों के प्रति करुणा प्रगतिवाद है। [2009]
10. जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं। [2009]
11. प्रयोगवादी कवियों ने प्रकृति का मानवीकरण किया है। [2008]
12. छायावादी कवियों ने प्रकृति का मानवीकरण किया है। [2008]
13. लौकिक साहित्य आदिकाल की विशेष उपलब्धि है। [2012]
14. भूषण रीतिकाल के कवि थे। [2012]
15. हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग रीतिकाल को कहा जाता है। [2016]
उत्तर-
1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. असत्य, 7. सत्य, 8. असत्य, 9. सत्य, 10. सत्य, 11. असत्य, 12. सत्य, 13. सत्य, 14. सत्य, 15. असत्य।

  • जोड़ी मिलाइए

I.
1. हिन्दी कविता का जागरण काल [2010] – (क) तुलसीदास
2. भक्तिकाल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं [2009] – (ख) भारतेन्दु युग
3. ज्ञानमार्गी शाखा [2008] – (ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
4. कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं [2009] – (घ) रीतिकाल
5. श्रृंगार काल [2010] – (ङ) कबीरदास
6. द्विवेदी युग के प्रवर्तक [2011] – (च) सूरदास
उत्तर-
1. → (ख),
2. → (क),
3. → (ङ),
4. → (च),
5. → (घ),
6. → (ग)।

II.
1. हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग (2008, 09, 13) – (क) जायसी
2. छायावाद के प्रवर्तक कवि [2008] – (ख) भक्तिकाल
3. प्रेममार्गी शाखा [2008] – (ग) जयशंकर प्रसाद
4. प्रगतिवाद [2008] – (घ) तुलसीदास
5. रीतिकाल की मुख्य भाषा है [2009] – (ङ) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
6. रामभक्ति शाखा [2011] – (च) ब्रजभाषा
उत्तर-
1. → (ख),
2. → (ग),
3. → (क),
4. → (ङ),
5. → (च),
6. → (घ)।

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  • एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. पृथ्वीराज रासो का काव्य रूप क्या है?
2. जगनिक द्वारा रचित कृति का क्या नाम है?
3. ‘पद्मावत’ किस कवि की रचना है?
4. ज्ञानमार्गी शाखा में किस उपासना की प्रधानता है?
5. कृष्णभक्ति काव्य में किस भाव की प्रधानता है?
6. रीतिकालीन कविता में भावपक्ष प्रबल है या कलापक्ष?
7. बिहारी सतसई किस काल की रचना है? [2009]
8. रीतिकाल को अन्य नाम क्या दिया गया है?
9. तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना किस भाषा में की है?
10. सूरदास की काव्य भाषा कौन-सी है?
उत्तर-
1. महाकाव्य,
2. परमाल रासो,
3. मलिक मुहम्मद जायसी,
4. निर्गुण ब्रह्म की,
5. माधुर्य भाव की,
6. कलापक्ष,
7. रीतिकाल,
8. शृंगारकाल,
9. अवधी,
10. ब्रजभाषा।

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