MP Board Class 11th Samanya Hindi अपठित बोध Important Questions

MP Board Class 11th Samanya Hindi Important Questions अपठित गद्यांश

निम्नलिखित गद्यांशों को सावधानीपूर्वक पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिये

1. यदि हम निरन्तर प्रयत्न करेंगे तो निश्चय ही अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे, किन्तु प्रायः देखा जाता है कि अधिक आशावादी लोग थोड़ा-सा प्रयत्न करके अधिक फल की कामना करने लगते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त न होने पर निराश हो जाते हैं, अत: जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए परिस्थितियों के समक्ष घुटने न टेंकें, बल्कि हिम्मत से उनका मुकाबला करें। याद रखें, जितना कठोर हमारा परिश्रम होगा उसका फल भी उतना ही मीठा होगा।”

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प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(iii) कम प्रयत्न के बावजूद अधिक फल की कामना कौन करता है?
उत्तर-
(i) शीर्षक-“परिश्रम एवं सफलता।”
(ii) कर्म करने से सफलता मिलती है। कम श्रम से अधिक सफलता की कामना करने वालों के हाथ असफलता ही लगती है। सफलता प्राप्त करने का मूल मंत्र है-हार न मानना और कठोर परिश्रम।
(ii) आशावादी लोग कम प्रयत्न करके अधिक फल की कामना करते हैं।

2. “उदारता का अभिप्राय केवल नि: संकोच भाव से किसी को धन दे डालना ही नहीं वरन् दूसरों के प्रति उदार भाव रखना भी है। उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है और समाज में सेवक भाव से रहता है यह न समझो कि केवल धन से उदारता हो सकती है सच्ची उदारता इस बात में है, कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाये। धन की उदारता के साथ सबसे बड़ी एक और उदारता की आवश्यकता है। वह यह है कि उपकृत के प्रति किसी प्रकार का अहसान न जताया जाए। अहसान दिखाना उपकृत को नीचा दिखाना है। अहसान जताकर उपकार करना अनुपकार है।” (म. प्र. 2011)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिये।
उत्तर-
(i) शीर्षक-“उदारता का वास्तविक अभिप्राय।”
(ii) सारांश-उदारता मनुष्य के जीवन के लिए आवश्यक है। उदारता के अंतर्गत केवल किसी को धन दे डालना ही उदारता नही, बल्कि उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों को आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखता है। सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाये। तथा उनके लिए किसी भी प्रकार की मदद निःस्वार्थ रूप से व्यक्त की जाये। कविवर तुलसीदास ने कहा है-

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अध माई।।

अर्थात उदारता एवं परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं एवं दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बढ़कर कोई अधर्म नहीं।

3. संस्कार ही शिक्षा है। शिक्षा मानव को मानव बनाती है। आज के भौतिकवादी युग में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सुख पाना रह गया है। अंग्रेजों ने इस देश में अपना शासन व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए ऐसी शिक्षा को उपयुक्त समझा किन्तु यह विचारधारा हमारी मान्यता के विपरीत है। आज की शिक्षा प्रणाली एकाकी है, उसमें व्यावहारिकता का अभाव और काम के प्रति निष्ठा नहीं है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन की प्रधानता थी। यह शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए भी थी। अत: आज के परिवेश में यह आवश्यक हो गया है, कि इन दोषों को दूर किया जाए। अन्यथा यह दोष हमारे सामाजिक जीवन को निगल जाएगा।

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
(iii) भौतिकवादी युग से क्या तात्पर्य है?
(iv) वर्तमान शिक्षा प्रणाली को दोषपूर्ण क्यों कहा गया है?
उत्तर-
(i) उचित शीर्षक–“शिक्षा”।
(ii) शिक्षा हमें सम्पूर्ण मानव बनाती है आज की शिक्षा प्रणाली में समग्रता का अभाव है तथा एकाकी पन को बढ़ावा देने का भाव है। आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा नौकरी का माध्यम न होकर ज्ञान और विवेक का माध्यम बने।
(iii) भौतिकवादी युग से तात्पर्य सुख पाना मात्र रह गया है।
(iv) वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमें सम्पूर्ण मनुष्य न बनाकर केवल नौकरी पाना तक ही सीमित कर देती है। इसलिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली को दोषपूर्ण कहा गया है।

4. अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं, तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है। पत्र-सम्पादक अपनी शांत कुटी में बैठा हुआ स्पष्टता और स्वतंत्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मंत्रिमण्डल पर आक्रमण करता है, परन्तु ऐसे अवसर भी आते हैं, जब वह स्वयं मंत्रिमण्डल में सम्मिलित होता है। मण्डल के भवन में पग रखते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, विचारशील, कितनी न्यायपरक हो जाती है। (Imp.)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक दीजिए। (म. प्र. 1994)
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
(iii) हमारा पथ-प्रदर्शक कौन होता है?
उत्तर-
(i) शीर्षक- “उत्तरदायित्व का ज्ञान।”
(ii) सारांश-मनुष्य के जीवन में उत्तरदायित्व का स्थान महत्त्वपूर्ण है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए उत्तरदायित्व का ज्ञान आवश्यक है। उत्तरदायित्व का ज्ञान होने पर मनुष्य बुद्धिमान हो जाता है। लेखक ने एक उदाहरण दिया है कि एक आलोचक, सम्पादक जब मंत्रिमण्डल में पद प्राप्त कर लेता है तो उसकी लेखनी भी उत्तरदायित्व के भार से दब जाती है।
(iii) उत्तरदायित्व का ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक होता है।

5. पर्यावरण-प्रदूषण परमात्माकृत नहीं अपितु मानवकृत है। जिसे उसने प्रगति के नाम पर किये गये आविष्कारों द्वारा निर्मित किया है। आज जल, वायु सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है। शोर, धुंआ, अवांछनीय गैसों का मिश्रण एक गंभीर समस्या बन चुका है। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए एक खुली चुनौती है और यह समस्या मानवता के जीवन और मरण से सम्बन्धित है। इसके समक्ष मानवता बौनी बन चुकी है। (म. प्र. 2006, 13, 15)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उपर्युक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश लिखिए।
(iii) प्रदूषण का प्रभाव किन-किन चीजों पर पड़ा है?
उत्तर-
(i) शीर्षक-“पर्यावरण प्रदूषण के कुप्रभाव।”।
(ii) सारांश आज पर्यावरण प्रदूषण मनुष्य द्वारा आविष्कृत एक गंभीर समस्या के रूप में विद्यमान है। यह एक ऐसी गंभीर समस्या है, जो मानवता को खुली चुनौती देती हुई उसे बौनी बना रही है।
(iii) जल, वायु, ध्वनि प्रदूषण ने वायुमण्डल को दूषित कर दिया है।

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6. मनुष्य की शारीरिक शक्तियाँ इतनी प्रबल नहीं होती, जितनी आत्मविश्वास की शक्ति। आत्मविश्वास बहुत बड़ी शक्ति है। कई बार व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्षम होता है, किन्तु मानसिक रूप से कमजोर होता है इससे उसमें आत्मविश्वास की कमी आ जाती है। इस कारण वह अपनी शारीरिक शक्तियों का समुचित उपयोग नहीं कर पाता। शारीरिक शक्ति का भरपूर उपयोग करने के लिए मानसिक शक्ति का विकास करना नितांत आवश्यक होता है (म. प्र. 2010)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(i) शीर्षक-“शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का विकास।”
(ii) सारांश- मानव के अंदर आत्मिक शक्ति प्रबल होती है जो मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास को बढ़ाती है। कई बार शारीरिक रूप से परिपक्व दिखने वाला मनुष्य अंदर से कमजोर होता है। उसमें आत्म विश्वास की कमी पायी जाती है जिसके कारण वह ठोस निर्णय नहीं ले पाता है। शारीरिक शक्ति का समुचित उपयोग हेतु मानसिक विकास या मानसिक शक्ति का विकास होना अनिवार्य है। तभी वह व्यवस्थित एवं सुदृढ़ आधार तक पहुँच सकते हैं।

MP Board Class 11th Samanya Hindi Important Questions अपठित पद्यांश

अधोलिखित अपठित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।
हो सरल अथवा कठिन हो रास्ता
कर्मवीरों को न इससे वास्ता। (म. प्र. 2009, 10, 13, 15)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक दीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) शीर्षक-“कर्म वीर।”
(ii) भावार्थ-वीर पुरुष संकट एवं विपत्ति से बिल्कुल नहीं घबराते। जिस कार्य को वे हाथ में लेते हैं उसे पूरा करते हैं तथा बाद में किए गए कार्य के लिए उनके मन में कोई पछतावा भी नहीं रहता। कर्मवीर सिर्फ . कर्म करते हैं, रास्ते की कठिनता एवं सरलता पर भी वे विचार नहीं करते।

2. आजीवन उसको गिनें,
सकल अवनि सिरमौर
जन्मभूमि जलजात के
बने रहैं जन भौर।
फलद कल्पतरु तुल्य है
सारे विटप बबूल
हरिपद रज सो पूत है
जन्म धरा की धूल है।

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त पद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
(iii) जन्मभूमि किस प्रकार फलदायिनी है?
उत्तर-
(i) शीर्षक-“जन्मभूमि’।
(ii) भावार्थ-प्रस्तुत पद्य में कवि जन्मभूमि के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि अपनी जन्मभूमि को हमें सारी पृथ्वी का सिरमौर मानना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह जन्मभूमि रूपी कमल का भौंरा बना रहे। जन्मभूमि हमारे लिए कल्प-तरु की तरह फलदायिनी है और अन्य सब बबूल के पेड़ की तरह हैं। भगवान के पैरों की धूल की तरह जन्मभूमि की धूल पावन है।
(iii) जन्मभूमि कल्प-तरु की तरह फलदायिनी है।

3. जो बात गई सो बीत गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वो टूट गया सो टूट गया अंबर के इस आनन को देखो इसके कितने तारे टूटे इसके कितने प्यारे छूटे पर इन टूटे तारों पर अंबर कब शोक मनाता है। (Imp.)

प्रश्न-
(i) उपर्युक्त पद्यांश का एक उपर्युक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए?
(ii) बीती बातों के लिए कवि क्या कहता है?
उत्तर-
(i) शीर्षक- “अम्बर”
(ii) भावार्थ-संसार का प्रमुख ध्येय आना और जाना है, इस संसार में सभी मनुष्य साधारण रूप से आते हैं किन्तु कोई अपने साथ यश, कीर्ति, अमरता आदि लेकर जाते हैं और कोई ऐसे ही साधारण रूप से चले जाते हैं। ऐसे ही कीर्ति प्राप्त व्यक्तियों की उपमा कवि अंबर के सितारे के साथ देते हुए कहते हैं जो बात बीत गई उस पर ध्यान मत दो जीवन में यदि कोई बहुत ही महत्वपूर्ण है और यदि वह हमें छोड़कर चला गया तो उसके लिए शोक नहीं करना चाहिए। इस आकाश को देखो न जाने इसके कितने तारे टूट चुके हैं कितने प्यारे छूट गये हैं पर इन सबके लिए आकाश शोक नहीं मनाता।
(iii) बीती बातों को कवि भूलने के लिए कहता है।

4. वन-उपवन पनप गए सब। (म. प्र. 2011)
कितने नव अंकुर आए।
वे पीले-पीले पल्लव,
फिर से हरियाली लाए।
वन में मयूर, अब नाचें।
हँस-हँस आनंद मनाएँ,
उनकी छबि देख रही है,
नभ की घनघोर घटाएँ।

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प्रश्न-
(i) उक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) मोर अपनी प्रसन्नता किस प्रकार व्यक्त करता है?
(iii) आकाश से बरसाती बादल कौन-सा दृश्य देख रहे हैं?
उत्तर-
(i) उचित शीर्षक-“पावस ऋतु” या “वर्षा ऋतु”।
(ii) मोर अपनी प्रसन्नता नृत्य करके व्यक्त करता है।
(iii) आकाश से बरसाती बादल वन-उपवन में नए अंकुरों पीले-पीले पत्तों, हरियाली तथा मोर के सुन्दर नृत्य का दृश्य देख रहे हैं।

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