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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 11 इस नदी की धार में (दुष्यंत कुमार)

इस नदी की धार में पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त ग़जल का आशय लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त गज़ल के माध्यम से ग़जलकार ने जीवन की विसंगतियों पर तीखा प्रहार करते हुए उनसे मुंह न मोड़ने, अपितु उनसे यथाशक्ति साहसपूर्वक सामना करने का हीसला प्रदान किया है। इस दृष्टि से प्रस्तुत मज़ल जीवनान्धकार को चीरने के लिए आशा-विश्वास की दीप-ज्योतिस्वरूप है, इसे नकारा नहीं जा सकता है।

इस नदी की धार में सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नदी की धार और ठंडी हवा से क्या आशय है?
उत्तर
नदी की धार और ठंडी हवा से आशय है-जीवन में उतार-चढ़ाव, दुख-सुख, कठोरता-सरसता आदि।

प्रश्न 2.
कवि को दुख में आशा की किरण कहाँ-कहाँ दिखाई दे रही है?
उत्तर
कवि को दुख में भी आशा की किरण नदी की धार में, चिनगारी में, गूंगी पीर में, साँझ के अंधेरे में, चुपचाप मैदान में लेटी हुई नदी में और आकाश-सी छाती में दिखाई देती है।

प्रश्न 3.
‘एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो’ कवि ने इस पंक्ति में कौन-सा भाव व्यक्त किया है?
उत्तर
‘एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो कवि ने इस पंक्ति में बाधाओं से पार होने के लिए उत्साह और विश्वास का भाव व्यक्त किया है।

इस नदी की धार में दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘दुख नहीं ………….. छाती तो है।’ इस पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर
‘दुख नहीं ………….. छाती तो है।’ पंक्ति का भाव जीवन में मिली हुई हार से निराश न होकर किए गए संघर्षों और आत्मबल के प्रति गर्वित होने का है। फलस्वरूप प्रस्तुत पंक्ति का भाव अधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत गज़ल का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत गजल में जीवन की विडम्बनापूर्ण परिस्थितियों का यथाशक्ति दृढ़तापूर्वक सामना करने का उल्लेख किया गया है। हमारे अंदर जो कुछ बची हुई और मंद पड़ी हुई शक्ति-क्षमता है, वह कम नहीं है। वह बुझे हुए दीपक के समान होने के बावजूद प्रज्वलित हो सकती है, बशर्ते हम आशा और विश्वास का दामन न छोड़ें। इसके लिए कवि ने अलग-अलग प्रतीकों के माध्यम से निराशा और हताशा के अंधकार के बीच आशा और विश्वास की ज्योति जलाए रखने पर जोर दिया है।

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प्रश्न 3.
‘मनुष्य की पीड़ा गूंगी होकर भी गाने में समर्थ है।’ इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मनुष्य की पीड़ा लूंगी होकर भी गाने में समर्थ है।’ इसका आशय यह है कि मनुष्य की पीड़ा की भले ही खुले रूप में अभिव्यक्ति न हो पा रही है। फिर भी वह किसी-न-किसी रूप में मुखरित तो अवश्य हो रही है।

प्रश्न 4.
‘आदमी की पीर की तुलना कवि ने किस-किस से की है?
उत्तर
आदमी की पीर की तुलना कवि ने जर्जर नाव से, भीगी हुई बाती से, खंडहर के हृदय से, जंगली फूल से, अँधेरे की सड़क से. निर्वचन मैदान में लेटी हुई नदी से और अनुपलब्धियों से की है।

इस नदी की धार में भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
दी गई गजल में से पाँच तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
उत्तर
नदी, हृदय, नगर, निर्वचन, आकाश।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
नदी, हवा, अंधेरा, आकाश, भोर।
उत्तर
नदी – सरिता, दरिया
‘हवा – पवन, वरुण
अंधेरा – अंधकार, अंध,
आकाश – नभ, आसमान
भोर – प्रभात, सुबह।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
बाती, फूल, सांझ, पत्थर।
उत्तर
तद्भव शब्द – तत्सम रूप
बाती – बर्तिका
फूल – पुष्प
सांझ – सायं
पत्थर – पाषाण।

इस नदी की धार में योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1. इस ग़ज़ल का अन्त्याक्षरी में उपयोग कीजिए।
प्रश्न 2. ‘जीवन में आशावादी दृष्टिकोण हो तो प्रत्येक परिस्थिति में सफलता प्राप्त होती है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
प्रश्न 3. दुष्यंत कुमार की अन्य ग़ज़लें संकलित कर अपनी डायरी में लिखिए।
प्रश्न 4. वर्तमान समय के ग़ज़लकारों के नाम संकलित कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

इस नदी की धार में सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नाव जर्जर होने के बावजूद किससे टकराती है और क्यों?
उत्तर
नाव जर्जर होने के बावजूद लहरों से टकराती है। यह इसलिए उसमें पश्तहिम्मत नहीं है। दूसरे शब्दों में, उसमें अपार दिलेरी और अपनी शक्ति का परिचय देने का उल्लास जोर मार रहा है।

प्रश्न 2.
‘एक खंडहर के हृदय-सी’ और ‘एक जंगली फल-सी’ गजलकार ने किसे कहा है और क्यों?
उत्तर
‘एक खंडहर के हृदय-सी’ और ‘एक जंगली फूल-सी’ गज़लकार ने आदमी की गँगी पीड़ा को कहा है। यह इसलिए कि आज आदमी की पीड़ा खुले तौर पर प्रकट नहीं हो पा रही है।

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प्रश्न 3.
‘दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर’ गज़लकार के ऐसा कहने का क्या आशय है?
उत्तर
‘दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर गज़लकार के ऐसा कहने का आशय यह है कि उसने आजीवन संघर्ष किया है। इससे उसको कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई। तो क्या हुआ? इसकी उसे कोई चिंता नहीं है। उसे तो गर्व है कि उसने अपनी हिम्मत और शक्ति का बखुबी परिचय दिया है।

प्रश्न 4.
रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से उचित शब्दों के चयन से कीजिए।
1. नाव …………. में टकराती है। (धार, लहरों)
2. दिए में …………. हुई बाती है। (बुझी, भीगी)
3. जंगली फूल-सी …………. की पीर है। (समाज, आदमी)
4. मैदान में नदी …………. लेटी हुई है। (चंचल, निर्वचन)
5. बाधाओं का सामना करने के लिए …………. सी छाती होनी चाहिए। (पत्थर, आकाश)
उत्तर
1. लहरों
2. भीगी
3. आदमी
4. निर्वचन
5. आकाश।

प्रश्न 5.
दिए गए कथनों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए।
1. दुष्यंत कुमार का जन्म हुआ था
1. 1930 में
2. 1933 में
3. 1943 में
4. 1952 में।
उत्तर
2. 1933 में

2. दुष्यंत कुमार का सुप्रसिद्ध गज़ल-संग्रह है
1.सूर्यका स्वागत
2.एककंठविषपायी
3. सायेमेंधूप
4. छोटे-छोटे सवाल।
उत्तर
3. सायेमेंधूप

3. दुष्यंत कुमार मुख्य रूप से हैं
1. गयकार
2. आलोचक
3. पत्रकार
4. गज़लकार।
उत्तर
4. गज़लकार

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4. दुष्यंत कुमार का निधन हुआ था
1. 1976 में
2. 1978 में
3. 1967 में
4. 1970 में।
उत्तर
1. 1976 में

5. दुष्यंत कुमार की गजलों में है
1.शांति के स्वर
2. सद्भाव के स्वर
3. व्यवस्था के स्वर
4.क्रांति के स्वर।
उत्तर
(4) क्रांति के स्वर।

प्रश्न 4.
सही जोड़ी मिलाइए
रामचरित मानस – डॉ. एन.ई. विश्वनाथ
अय्यर सेगाँव का संत – डॉ. प्रेम भारती
वीरांगना दुर्गावती – दिवाकर शर्मा
अब तो खामोशी तोड़ो – श्रीमन्नारायण अग्रवाल
शहर सो रहा है – तुलसीदास।
उत्तर
रामचरितमानस – तुलसीदास
सेगाँव का संत – श्रीमन्नारायण अग्रवाल
वीरांगता दुर्गावती – डॉ. प्रेम भारती
अब तो खामोशी तोड़ो – दिवाकर शर्मा
शहर सो रहा है – डॉ. एन.ई. विश्वनाथ अय्यर ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्य सत्य हैं या असत्य? वाक्य के आगे लिखिए।
1. नाव जर्जर है, इसलिए लहरों से टकराती नहीं है।
2. आज समाज की स्थिति विडम्बनापूर्ण हो गई है।
3. ‘इस नदी की धार में’ गजल ‘साए में धूप’ गज़ल-संग्रह से है।
4. ‘दुष्यंत कुमार’ की गज़लों में निराशा और अविश्वास के स्वर हैं।
5. ‘दुष्यंत कुमार’ की गज़लों के आधार पर लोकप्रियता प्राप्त हुई।
उत्तर

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथनों के उत्तर एक शब्द में दीजिए।
1. ‘आँगन में एक वृक्ष’ दुष्यंत कुमार का क्या है?
2. नदी की धार में कौन-सी हवा आती है?
3. दिए में तेल से भीगी हुई क्या है?
4. आदमी की पीर क्या हो गई है?
5. निर्वचन मैदान में लेटी हुई नदी बार-बार क्या करती है?
उत्तर

  1. उपन्यास
  2. ठंडी
  3. बाती
  4. गूंगी
  5. बतियाती है।

इस नदी की धार में लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नदी की धार की क्या विशेषता है?
उत्तर
नदी की धार की यह विशेषता है कि उसमें ठंडी हवा आती है।

प्रश्न 2.
तेल से भीगी हुई बाती के लिए गज़लकार क्या चाहता है?
उत्तर
तेल से भीगी हुई बाती के लिए गज़लकार एक चिनगारी चाहता है।

प्रश्न 3.
‘इस नदी की धार में’ गज़ल में किस पर बल दिया गया है?
उत्तर
‘इस नदी की धार में’ गज़ल में निराशा और हताशा के अंधकार के बीच आशा और विश्वास का दीप जलाए रखने पर बल दिया गया है।

इस नदी की धार में कवि-परिचय

जीवन-परिचय-कविवर दुष्यंत कुमार का जन्म सन् 1933 ई. में उ.प्र. के बिजनौर जिलान्तर्गत राजपुर नवादा में हुआ था। अपनी आरंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से समाप्त कर आपने अपनी उच्च शिक्षा के बल पर जीविका के सरकारी नौकरी कर ली। इसके लिए आपने म.प्र. की राजधानी भोपाल में भाषा-विभाग में सहायक संचालक के पद पर कार्य किया। इस पद पर कार्य करते आपका निधन बड़ी ही छोटी आयु में 30 सितम्बर, 1976 को हो गया।
रचनाएँ-कविवर दुष्यंत कुमार की रचनाएँ हैं

गजल-संग्रह-‘साये में धूप’ (खंड काव्य), ‘एककंठ विषपायी’ (काव्य-संग्रह) ‘सूर्य का स्वागत’, ‘जलते हुए वन का वसंत’,।

उपन्यास-‘छोटे-छोटे सवाल’, ‘आंगन में एक वृक्ष’ आदि।

भावपक्ष-कविवर दुष्यंत कुमार का काव्य-स्वरूप मार्मिक भावों और संवेदनाओं का भंडार है। उससे देश-प्रेम का जहाँ विशाल चित्र फैला हुआ दिखाई देता है. वहीं दूसरी ओर जीवन की कटु सच्चाई के साथ जीवन की अपेक्षाओं के भी रूप-प्रतिरूप उभरते हुए दिखाई देते हैं। सामाजिक कुरीतियों और विसंगतियों के भरपुर चित्र खींचने में कविवर दुष्यंत कुमार पूरी तरह समर्थ दिखाई देते हैं।

कलापक्ष-कविवर दुष्यंत कुमार की कलापक्षीय विशेषताएँ अनूठी हैं। इसका मुख्य कारण है-सरल, सुबोध और सटीक शब्द-चयन से पुष्ट हुई भाषा । जहाँ तक आप की शैलीगत विशेषताओं का प्रश्न है। तो वह पूर्णरूप से भावात्मक और चित्रात्मक है। उसमें बिम्बों और प्रतीकों की सजीवता एवं रसों-अलंकारों की सुंदर योजना अधिक मोहक है।

साहित्य में स्थान-कविवर दुष्यंत कुमार का हिंदी गजल के रचनाकारों में अत्याधिक चर्चित और सम्मानपूर्ण स्थान है। हिंदी गजल के क्षेत्र में आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा। फलस्वरूप आने वाली पीढ़ी उससे मार्गदर्शन प्राप्त करती रहेगी।

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इस नदी की धार में गजल का सारांश

प्रस्तुत गजल में आशा और विश्वास के पूरे जोर-शोर हैं। एक ऐसी आशा जो खण्डित होते-होते बचने की अपनी शक्ति नहीं खो पाती है। इसलिए गजलकार दुष्यंत कुमार का कहना है कि नदी की धार बहुत अधिक तो है लेकिन उससे ठंडी हवा आती रही है। ऐसी तेज धारा में एक जर्जर नाव ऐसी है, जो आने वाली लहरों से मुठभेड़ करने की बार-बार कोशिश कर रही है। एक चिनगारी कहीं से मिल जाए तो इस दिए में तेल से भीगी हुई बत्ती जल उठेगी। खण्डहर-सी उदास और जंगली फूल की तरह आदमी की गूंगी पीर गाती है। एक चादर से ढकी अँधेरे की सड़क भोर तक चली जाती है। चूप पड़ी हुई नदी कभी-कभी पत्थरों से ओट में कुछ कह लेती है। किसी प्रकार की प्राप्ति नहीं हुई, इस बात का तनिक मलाल नहीं है। इस बात का फक्र है कि आकाश की तरह चौड़ी छाती तो है।

इस नदी की धार में संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या

(1) इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली-फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

शब्दार्थ-धार-प्रवाह। जर्जर-टूटी-फूटी, पुरानी। ढूँढ-खोज। पीर-पीड़ा। गूंगी-बेजुबान।

संदर्भ-प्रस्तुत गज़ल हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य 10वीं’ में संकलित गज़लकार श्री दुष्यंत कुमार विरचित गज़ल ‘इस नदी की धार में’ शीर्षक से है।

प्रसंग-प्रस्तुत गजल में गजलकार दुष्यंत कुमार ने जर्जर और बिडम्बनापूर्ण-परिस्थितियों में हिम्मत बनाए रखने का प्रोत्साहन देते हुए कहा है कि

व्याख्या-चूँकि नदी की धारा बड़ी तेज है। उसमें बहुत प्रवाह है और अधिक उफान है। फिर भी उससे सुखद और आनंददायक ठंडी-ठंडी हवा तो स्पर्श करती रहती है। इस नदी की ऊँची-ऊची उठती लहरों से टक्कर लेने वाली टूटी-फूटी नाव की हिम्मत काबिलेतारीफ है। गजलकार का पुनः कहना है कि दिए में तेल से भीगी बाती है, यह उम्मीद को रखने वाली बात है। अगर एक चिनगारी कहीं से मिल जाए तो इस दिए की बाती जलकर रोशनी कर सकती है। आज समय ने समाज को इतना

अधिक दुखद और असहाय बना दिया है कि उससे बच पाना बड़ा ही कठिन है। उसका सामना करना तो और ही कठिन है। इससे आज आदमी की पीड़ा बहुत ही, दुखद हो गई है। ऐसी दशा में हर प्रकार से पीड़ित उस आदमी की दाद देनी चाहिए जो गूंगा होकर भी अपनी पीड़ा का बयान करने की हिम्मत नहीं हारता है।

विशेष-

  1. उर्दू शब्दों की प्रधानता है।
  2. शैली मार्मिक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।

सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

(क) भाव-सौंदर्य
प्रश्न उपर्युक्त गज़ल के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
उपर्युक्त गजल का भाव-सौंदर्य मार्मिक है। जीवन की कठिन और विषम दशा में न केवल हिम्मत बनाए रखना अपितु हिम्मत का प्रदर्शन करने का प्रोत्साहन उपर्युक्त गजल का लक्ष्य है। इसके गज़लकार ने उपयुक्त उपमाएँ दी हैं, जो प्रभावशाली हैं।

(ख) शिल्प-सौंदर्य
प्रश्न उपर्युक्त गज़ल के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
उपर्युक्त गजल का शिल्प-सौंदर्य हृदयस्पर्शी है। भावों के अनुसार भाषा है। शब्द-चयन में उर्दू को अधिक स्थान दिया गया है। शैली पूरी तरह भावात्मक
और चित्रात्मक है। वीर रस और करुण रस का मिश्रित प्रवाह है।

विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त गज़ल का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त गजल के माध्यम से गज़लकार ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और विडंबनाओं को चुनौती देते हुए उनका यथाशक्ति और यथाविचार के साथ सामना करने का प्रोत्साहन दिया है। इससे टूटी-फूटी जिंदगी के सँवरने के अवसर मिलते हैं। ऐसा विश्वास भरने का गज़लकार का प्रयास प्रशंसनीय कहा जा सकता है।

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2. एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्वरों से, ओट में, जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

शब्दार्थ-भोर-सुबह। निर्वचन-मौन, चुप्पी। बतियाती-बात करती है। उपलब्धियों-प्राप्तियाँ।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में गज़लकार दुष्यंत कुमार ने निराशा और हताशा से घिरी जिंदगी में जोश भरते हुए यह कहना चाहा है कि

व्याख्या-जिन्दगी में धीरे-धीरे बिडम्बनाओं और बाधाओं ने अपना प्रवेश करना शुरू कर लिया है, तो इससे हौसला नहीं छोड़ना चाहिए। अगर एक चादर से साँझ ने सारे नगर को ढकने का साहस किया है, तो यह हौसला रखना चाहिए कि सांझे की एक ऐसी सड़क भी है, जो अँधेरे को चीरती हुई भोर तक आगे निकल जाती है। इसी प्रकार सपाट मैदान में जो नदी चुपचाप पड़ी हुई है, वह व्यर्थ नहीं है, अपितु उसमें बड़ी जीवनी शक्ति है। यह इसलिए वह कभी पत्थरों से तो कभी किसी ओट में होकर अपनी बात सुनाती रहती है। गज़लकार का पुनः कहना है कि उसे अपनी उपलब्धियों के नाम इस बात का कोई दुख नहीं है कि वह बहुत कुछ प्राप्त नहीं कर सकता है। उसे तो इस बात का गर्व है कि वह किसी प्रकार के दुखों को सहने के लिए आकाश के समान अपनी छाती फैलाकर रखा है।

विशेष-

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. वीर रस का संचार है।

सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

(क) भाव-सौंदर्य
प्रश्न 1.
उपर्युक्त गज़ल के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।।
उत्तर
उपर्युक्त गज़ल की भाव-योजना मार्मिक है। जीवन की त्रासदी से उबरने और उसका सामना करने के लिए दिए आधार अधिक रोचक और भावों को जगाने वाले हैं। इससे प्रस्तुत गज़ल आकर्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।

(ख) शिल्प-सौंदर्य
प्रश्न 1.
उपर्युक्त गज़ल के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
उपर्युक्त गजल का शिल्प-सौंदर्य असाधारण है। इसके प्रमुख आधार हैं-सामान्य और सुपरिचित शब्द-योजना, वीर रस के छींटे, उपमा अलंकार और . रूपक-अलंकार सहित सजीव बिम्बों और प्रतीकों का सुंदर विधान।