MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे (कविता, बिहारी)

बिहारी के दोहे पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

बिहारी के दोहेलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्प, मोर, हिरण और सिंह कहाँ एक साथ रहते हैं?
उत्तर:
सर्प, मोर, हिरण और सिंह एक साथ तपोवन में रहते हैं।

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प्रश्न 2.
किस तिथि को सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं?
उत्तर:
अमावस्या तिथि को सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं।

प्रश्न 3.
पाप का बोध किसको अधिक होता है?
उत्तर:
पाप का बोध शक्तिहीन को अधिक होता है।

बिहारी के दोहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाज के माध्यम से कवि ने किसके आचरण को लक्षित किया है, और क्यों?
उत्तर:
बाज के माध्यम से कवि ने अपने आश्रयदाता महाराजा जयसिंह के आचरण । को लक्षित किया है कि उन्हें औरंगजेब के इशारे पर महाराजा शिवाजी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। यह इसलिए कि इसमें उनका अपना कोई लाभ नहीं है। दूसरी बात यह कि एक हिन्दू राजा द्वारा दूसरे हिन्दू राजा पर आक्रमण करना भी सजातीयता के बिल्कुल विपरीत और अनुचित है।

प्रश्न 2.
सज्जन के प्रेम की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
सज्जन के प्रेम की कई विशेषताएँ हैं –

  1. वह सदैव बना रहता है।
  2. वह अपने प्रेमी के बुरे दिन आने पर भी उसके प्रति पहले की तरह ही प्रेम करता है।
  3. वह लाभ-हानि की चिन्ता नहीं करता है।
  4. वह शुद्ध और अच्छे भावों से भरा होता है।
  5. वह चोल के रंग के समान जीवन भर प्रेम का निर्वाह करता रहता है।

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प्रश्न 3.
मित्रता सदैव चलती रहे, इस हेतु क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:
मित्रता सदैव चलती रहे, इस हेतु निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए –

  1. अपने हृदय को शुद्ध और खुला रखना चाहिए।
  2. लाभ-हानि का ध्यान नहीं देना चाहिए।
  3. संकट के समय भी मित्रता की भावना को फीका नहीं पड़ने देना चाहिए।
  4. किसी प्रकार के अहंकार के ताप से मित्रता को मुरझाने से बचाना चाहिए।
  5. मित्रता को एक आदर्श के रूप में बनाए रखने की भावना सदैव रखनी चाहिए।

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की वंशी इन्द्रधनुष के समान क्यों लगती है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की वंशी इन्द्रधनुप के समान लगती है। यह इसलिए कि श्रीकृष्ण के ओठों का रंग लाल है, आँखों का रंग सफेद और काला है, और उनका वस्त्र पीला है। इन सबके प्रभाव से हरे रंग वाली वंशी रंग का इन्द्रधनुष के समान हो उटना स्वाभाविक ही लगता है।

बिहारी के दोहे भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. बढ़त-बढ़त सम्पति, सलिलु, मन सरोज बढ़ि जाइ।
  2. दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यों न बढ़े दुःख-दंदु!
  3. बैठि रही अति सघन वन, पैठि सदन-तन माँहि।
    देखि दुपहरी जेठ की, छाँही चाहति छाँह।

उत्तर:

1. जिस प्रकार पानी के हमेशा बढ़ते रहने पर कमल की नाल भी हमेशा बढ़ती रहती है, पानी के घटने पर वह नाल घटती तो नहीं, लेकिन कुम्हलाकर नष्ट हो जाती है। टीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति की सम्पत्ति बढ़ती रहती है, तो उसके मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ जोर मारने लगती हैं, लेकिन जब उसकी सम्पत्ति घटने लगती है, तो केवल घटती ही नहीं, बल्कि मूलधन सहित वह नष्ट हो जाती है, अर्थात् उस व्यक्ति के पास कुछ भी शेष नहीं रह जाता है।

2. दो राजाओं के राज्य में, अर्थात् जिस राज्य के एक ही समय में दो राजा हों, उस राज्य की प्रजा को अनेक प्रकार के दुःख झेलने पड़ते हैं। कहने का भाव यह है कि सबल और शक्तिसम्पन्न लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए निर्बलों के सुख-दुःख को बिल्कुल ही भूल जाते हैं। शक्ति-सम्पन्न लोग अपनी शक्ति के प्रदर्शन अपने बराबर वालों से जहाँ करते हैं, वहाँ तक तो वे प्रशंसनीय हैं। लेकिन उनके इस शक्ति के प्रदर्शन से आम जनता को जो कष्ट होता है, वह निश्चय ही निन्दनीय है। अतएव अपने सुख-स्वार्थ के लिए हमें दूसरों के हितों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।

3. चूँकि गर्मी की ऋतु में भारत में सूर्य की किरणें तिरछी नहीं पड़ती हैं, बल्कि सीधी पड़ती हैं। उस समय सूर्य भूमध्य रेखा पर आ जाता है। उससे भारत के अनेक स्थान तपने लगते हैं। फलस्वरूप गर्मी का प्रकोप बहुत भयंकर हो जाता है। यह जेठ के माह में चरम सीमा पर होता है। यहाँ उपर्युक्त दोहे में जेठ माह की इसी भीषण गर्मी के उल्लेख से उसके असाधारण प्रभाव को बतलाया गया है कि उससे न केवल जीव-जन्तु ही, अपितु पेड़-पौधे भी समाप्त होने लगते हैं। फलस्वरूप कहीं भी किसी की छाया तक भी नहीं दिखाई देती है। इसी दशा से कवि ने यह संभावना व्यक्त करने का प्रयास किया है कि छाया को भी छाया की जरूरत है। इसलिए वह या . तो घने जंगलों में जाकर छिप गई है या घरों के अंदर।

बिहारी के दोहे भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पदु, दुराज, स्याम, जगत, दीरघ, छाँड़तु, रंग्यौ, मावस, सुम्रत्यौ शब्दों के शुद्ध हिन्दी मानक रूप लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए-नीलमणि, सज्जन, दुपहरी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 12 बिहारी के दोहे img-2

बिहारी के दोहे योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
रहीम के तीन नीतिपरक दोहे खोजकर लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
ग्रीष्म की दोपहरी का अनुभव आप अपने शब्दों में लिखिए। कक्षा में बताइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
आपने कभी किसी असहाय/निर्धन व्यक्ति की मदद की है, यदि हाँ तो आप उसकी सहायता के अनुभव की चर्चा अपने साथियों से कीजिए तथा ऐसे किसी विषय पर एकांकी को खोजकर उसका अभिनय कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

बिहारी के दोहे परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बिहारी के दोहे लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सर्प, मोर, हिरण और बाघ कब एक साथ रहते हैं?
उत्तर:
सर्प, मोर, हिरण और बाघ उस समय एक साथ रहते हैं जब चारों ओर जानलेवा गर्मी फैल जाती है। उससे सारा संसार एक तपोवन की तरह हो जाता है। उस समय अपनी जान बचाने के लिए सर्प, मोर, हिरण और बाघ परस्पर वैरभाव भूलकर एक साथ रहते हैं।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण की शोभा कब और अधिक बढ़ जाती है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की शोभा तब और अधिक बढ़ जाती है जब वे पीताम्बर धारण करते हैं।

प्रश्न 3.
दो राजाओं के एक ही राज्य में क्या होता है?
उत्तर:
दो राजाओं के एक ही राज्य में प्रजा को बेहद दुःख होता है।

बिहारी के दोहे दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अधर धरत हरि कै परत, ओठ-दीठि-पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष रंग होति।।
उपर्युक्त दोहे में किन भावों की व्यंजना हुई है।
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे में एक गोपी की अपनी एक प्रिय सखी से श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य के सम्बन्ध में कही गई बातों की व्यंजना हुई है। वह गोपी अपनी सखी से श्रीकृष्ण की साधारण वंशी की इन्द्रधनुष के रंग का होना कहकर यह व्यंजित करना चाहती है कि यदि वह उनके पास चलेगी, तो उसकी भी सुन्दरता रँगीली हो जाएगी। वह ओठ, आँख और वस्त्र की ज्योति से वंशी को इन्द्रधनुष के समान रंग वाली कहकर श्रीकृष्ण के ओठों की ललाई, आँखों की श्यामलता और वस्त्रों के पीलापन का अधिक चटक और प्रभा देने वाली होना भी व्यंजित करती है।

प्रश्न 2.
कहलाने एक बसत, अहि, मयूर, मृग बाघ।
जगत तपोवन सो कियौ, दीरघ-दाघ-निदाघ।।
उपर्युक्त दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त दोहे के द्वारा कवि ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि चारों ओर बेहद गर्मी पड़ रही है। उसके कारण यह सारा संसार एक तपोवन का रूप ले चुका है। जिस प्रकार तपोवन में हिंसक पशु अपने हिंसक भाव को छोड़कर मित्रभाव से रहने लगते हैं उसी प्रकार साँप, मोर, हिरण और बाघ रह रहे हैं। अर्थात् साँप ने मोर के प्रति और बाघ ने हिरण के प्रति अपने हिंसक भाव का परित्याग कर मित्र-भाव को अपना लिया है।

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प्रश्न 3.
‘बिहारी के दोहे’ के केन्द्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
केन्द्रीय भाव के अन्तर्गत बिहारी ने कृष्ण के स्वरूप का वर्णन उत्प्रेक्षा के माध्यम से किया है। कृष्ण एवं उनकी बाँसुरी का वर्णन करते हुए कवि ने वर्ण परिवर्तन को चमत्कारिक ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रकृतिपरक वर्णन में कवि का ग्रीष्म वर्णन महत्त्वपूर्ण है। ग्रीष्म के आतप से तापित वे पशु-पक्षी जो आपस में शत्रुभाव रखते हैं, एक-दूसरे के साथ मित्र-भाव से रह रहे हैं-यह तपोवन के रहवास का गुण है। ज्येष्ठ महीने की इतनी अधिक तपन है कि दोपहर में छाया भी छाया ढूँढ़ती फिरती है। नीतिपरक दोहों में बिहारी ने सज्जनों के अमिट प्रेम का, द्विराज में प्रजा के दुःख-दर्दो का, सम्पत्ति की क्षण-भंगुरता का, मित्र-धर्म की गहनता का, दुर्बल को दबाने वाली शक्तियों का तथा अपने सजातीय बन्धुओं पर अन्यथा प्रेरणा से प्रहार करने की मनाही का वर्णन किया है।

बिहारी के दोहे कवि परिचय

प्रश्न 1.
कविवर बिहारी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
कविवर बिहारी का जन्म ग्वालियर के पास बसुआ गोविन्द पुर गाँव में माना जाता है। इनके जीवन परिचय से संबंधित निम्नलिखित दोहा बहुत प्रसिद्ध है –

‘जनम ग्वालियर जानिए, खंड बुंदेल बाल।
तरुनाई आई सुघर, मथुरा बसि ससुराल।।’

(अर्थात् उनका जन्म ग्वालियर में, बचपन बुंदेलखंड में और युवावस्था ससुराल मथुरा में बीती थी।) उनका जन्म मथुरा के चौबे परिवार में हुआ था। उनके पिता केशवराय थे। वे ग्वालियर छोड़कर ओरछा चले गए थे। वहीं रहकर उन्होंने कवि केशवदास से काव्य-शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कविवर केशवदास के साहित्य का विस्तृत अध्ययन-मनन किया। इसकी छाप उनके दोहों में दिखाई देती है। इनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। वह यह कि वे जिस समय अपनी वृत्ति लेने के लिए जयपुर के राजा के दरबार में गए, उस समय वहाँ के राजा जयसिंह अपनी नई रानी के प्रेम में इतना फँसे हुए थे कि राजकाज देखने के लिए तनिक भी समय नहीं निकाल पाते थे। बिहारी ने उनकी आँखें खोलने के लिए यह दोहा लिखकर भेजा –

“नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।
अली कली ही सों कस्यो, आगे कौन हवा।।”

इस दोहा का राजा जयसिंह पर जादू-सा असर पड़ा। उन्होंने प्रसन्न होकर बिहारी को इसी प्रकार के सरस दोहे रचने के लिए आदेश दिया। उन्होंने उनके द्वारा रचे गए प्रत्येक दोहे पर एक-एक अशरफी देने का वचन दिया। बिहारी ने ऐसे सात सौ दोहों की रचना की, जो ‘बिहारी सतसई’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी मृत्यु 1663 में हुई।

रचना:
बिहारी ने ‘सतसई’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें सात सौ दोहे संकलित हैं।

साहित्य का महत्त्व:
बिहारी रीतिकाल के महाकवि हैं। उनकी रचना ‘सतसई’ मुक्तक काव्य की सुप्रसिद्ध रचना है। इनके दोहे शृंगार रस से लबालब भरे हुए हैं तो उनमें अलंकारों का चमत्कार देखते ही बनता हैं। उन्होंने ब्रजभाषा में शब्द-योजना और वाक्य-रचना बड़े व्यवस्थित रूप में की है। इस प्रकार उन्होंने अपने दोहों में ‘गागर में सागर’ भर दिया है।

बिहारी के दोहे पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
कविवर बिहारी विरचित दोहों का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बिहारी के दोहों के इस संकलन में तीन प्रकार के दोहे हैं-भक्तिपरक, प्रकृतिपरक और नीतिपरक। भक्ति संबंधित दोहों में कवि ने श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप का चित्रांकन किया है। श्रीकृष्ण के वस्त्र और उनकी मुरली, उनकी शारीरिक सुन्दरता को बड़ा ही अनूठा बनाकर मन को मोहने वाले हैं। प्रकृति संबंधी दोहों में ग्रीष्मकाल की भीषण तपन गहरे रूप में चित्रित है। नीति से संबंधित दोहों में सज्जनों के अमिट प्रेम का, द्विराज में प्रजा के दुखों का, संपत्ति की अस्थिरता का, मित्र-धर्म की गंभीरता का, दुर्बलों को कमजोर करने वाली शक्तियों का और अपने सजातीय बंधुओं पर अन्यथा प्रेरणा से प्रहार करने की अवरोध का वर्णन है।

बिहारी के दोहे संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

भक्ति:

प्रश्न 1.
सोहत ओटै पीतु पटु, स्याम सलौनैं गात।
मनौं नीलमनि-सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात।।

शब्दार्थ:

  • सोहत – शोभायमान।
  • ओढ़े – धारण करने पर।
  • पीतु – पीला।
  • पटु – वस्त्र।
  • मनौं – मानो।
  • आतप – धूप।
  • पर्यो – पड़ा।

प्रसंग:
यह दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी सामान्य भाग-1 में संकलित तथा कविवर बिहारी द्वारा विरचित ‘सतसई’ के ‘भक्ति’ शीर्षक से उद्धत है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के शारीरिक सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
श्रीकृष्ण सांवले हैं। उन्होंने पीताम्बर धारण किया है। उनको इस तरह देखकर ऐसा लगता है, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह-सुबह सूर्य की किरणें पड़ रही हैं। दूसरे शब्दों में पीताम्बर धारण किए हुए सांवले श्री कृष्ण सुबह की पड़ती हुई सूर्य की किरणों से सुशोभित नीलमणि पर्वत के समान बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं।

विशेष:

  1. चित्रात्मक शैली है।
  2. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  3. श्रीकृष्ण के अद्भुत सौन्दर्य का चित्रण है।
  4. श्रृंगार रस है।

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प्रश्न 2.
अधर धरत हरि कै परत, ओठ-ढीठि-पट-जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष-रंग होति।।

शब्दार्थ:

  • अधर – होंठ।
  • परत – पड़ती।
  • हरित – हरी।
  • ढीठि – नेत्र।
  • पट – वस्त्र।
  • ज्योति – चमक।

प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें कवि ने यह चित्रित करना चाहा है कि एक गोपी श्रीकृष्ण को बाँसुरी बजाते हुए देख आई है। वह राधिका जी से उनकी प्रशंसा कर उनको उन्हें दिखाने के बहाने से ले जाना चाहती है।

व्याख्या:
जब श्रीकृष्ण बाँसुरी को होंठों पर रखते हैं, तब उस पर उनके होंठों की, आँखों की और पीले वस्त्र की चमक पड़ती है। उससे वह हरे रंग की बाँसुरी इन्द्रधनुप की तरह रंग-बिरंगी (सतरंगी) हो उठती है। कहने का भाव यह है कि कृष्ण के होंठों का रंग लाल है, आँखों का रंग सफेद और काला है, और कपड़े का रंग पीला है। इन सबके प्रभाव से हरे रंग वाली बाँसुरी का रंग-बिरंगी (सतरंगी) हो उठना स्वाभाविक है।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. दोहा छंद है।
  4. श्रीकृष्ण के अनूठे सौन्दर्य का भावपूर्ण चित्रण है।
  5. शैली चित्रमयी है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. पीताम्बर धारण करने पर श्रीकृष्ण की शोभा कैसी हो जाती है?
  2. बाँसुरी श्रीकृष्ण के होंठों पर रखने पर कैसी दिखाई देती है?
  3. उपर्युक्त दोहों के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

  1. पीताम्बर धारण करने पर श्रीकृष्ण की शोभा सुबह की पड़ती हुई सूर्य की किरणों से सुशोभित नीलमणि पर्वत के समान मन को मोह लेने वाली हो जाती है।
  2. बाँसुरी श्रीकृष्ण के होंठों पर रखने से रंग-बिरंगी (सतरंगी) दिखाई देती है।
  3. उपर्युक्त दोहों का काव्य-सौन्दर्य अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से आकर्षक है। भाव, भाषा, प्रतीक-योजना, बिम्ब आदि प्रभावशाली हैं, शैली चित्रमयी है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. उपर्युक्त पद्यांशों का मुख्य भाव बताइए।

उत्तर:

  1. कवि-कविवर बिहारी, कविता-भक्ति।
  2. उपर्युक्त पद्यांशों का मुख्य भाव-श्रीकृष्ण के अद्भुत और मनमोहक रूप-सौन्दर्य का चित्रण करना है।

प्रकृति:

प्रश्न 3.
कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग, बाघ।
जगतु तपोवन सो कियौ, दीरघ दाघ निदाघ।।

शब्दार्थ:

  • कहलाने – किस कारण से।
  • एकत बसत – इकट्ठा रहते हैं।
  • अहि – साँप।
  • मयूर – मोर।
  • मृग – हिरण।
  • बाघ – शेर।
  • दीरघ – लम्बी।
  • दाघ – आग।
  • निदाघ-गर्मी की ऋतु।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा कविवर बिहारी विरचित ‘सतसई’ के ‘प्रकृति’ शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत दोहा में कवि ने ग्रीष्म ऋतु की अत्यधिक बढ़ती गर्मी का वर्णन किया है कि इससे परस्पर शत्रुभाव रखने वाले प्राणी भी इस संकट की घड़ी में साथ रहने लगे हैं।

व्याख्या:
अत्यधिक गर्मी में साँप और मोर तथा हिरण और बाघ को अपनी दुश्मनी भुलाकर एक ही स्थान पर रहते हुए देखकर एक पथिक दूसरे से पूछ रहा है-क्या कारण है कि जन्म से ही एक-दूसरे के प्रति शत्रुभाव रखने वाले साँप और मोर तथा हिरण और बाघ एक ही साथ दिखाई दे रहे हैं। उसकी जिज्ञासा को शान्त करते हुए दूसरा पथिक कह रहा है कि भयंकर गर्मी पड़ रही है। उसके कारण यह संसार एक तपोवन की तरह दिखाई दे रहा है। जैसे तपोयन में हिंसक पशु अपनी हिंसा की भावना को छोड़कर मित्रभाव से रहने लगते हैं। ठीक उसी प्रकार साँप ने मोर के प्रति और बाघ ने हिरण के प्रति अपनी हिंसा की दुर्भावना को त्याग दिया है।

विशेष:

  1. उपमा और अनुप्रास अलंकार है।
  2. दोहा छन्द है।
  3. भीषण गर्मी का उल्लेख है।
  4. संकट के समय शत्रुता मित्रता में बदल जाती है-इसे सुस्पष्ट करने का प्रयास है।
  5. शैली चित्रमयी है।

प्रश्न 4.
बैठि रही अति सघन वन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौ चाहति छाँह।।

शब्दार्थ:

  • पैठि – प्रवेश करके।
  • सदन – घर।
  • निरखि – देखकर।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे में कवि ने जेठ माह की गर्मी की ऋतु के अत्यधिक भयंकर प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
गर्मी की ऋतु के भयंकर रूप को देखकर कोई परेशान होकर कह रहा है कि जेठ माह की गर्मी की अधिकता इतनी बढ़ गई है कि कहीं कोई छाया भी नहीं दिखाई दे रही है, जिसका सहारा लेकर कोई इस जानलेवा गर्मी से छुटकारा पा सके। ऐसा इसलिए कि स्वयं छाया भी इस भयंकर गर्मी से आकुल-व्याकुल होकर छाया की खोज में या तो घने जंगलों में जाकर छिप गई है या घरों के ही भीतर जाकर बैठ गई है; अर्थात् घरों के कमरों के अंदर छिपकर अपनी जान बचा रही है।

विशेष:

  1. भाषा-ब्रजभाषा है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. छाया को मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है। इसलिए इसमें मानवीकरण अलंकार है।
  4. उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  5. जानलेवा गर्मी का सटीक चित्रण है।

पद्यांशों पर आधारित सौन्दर्य बोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. परस्पर हिंसा की दुर्भावना रखने वाले पशु हिंसा क्यों छोड़ दिए हैं?
  2. तपोवन से किसकी उपमा और क्यों दी गई है?
  3. छाँह-छाँह को क्यों चाह रही है?
  4. ‘प्रकृति’ शीर्षक दोहों के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

1. परस्पर हिंसा की दुर्भावना रखने वाले पशु हिंसा छोड़ दिए हैं। यह इसलिए कि जेठ माह की भीषण गर्मी के बढ़ते संकट के कारण उनमें स्वयं के बचाव की भावना ने किसी को हानि पहुँचाने की भावना को भुलाकर मित्रता की भावना को उत्पन्न कर दिया है।

2. तपोवन से संसार की उपमा दी गई है। यह इसलिए कि ऋषि-मुनियों के तपोवनों में हिंसक पशु भी अपनी हिंसा की दुर्भावना का परित्याग कर देते हैं।

3. छाँह-छाँह को चाह रही है। यह इसलिए कि स्वयं छाँह भी बढ़ती हुई जानलेवा गर्मी से कहीं नहीं दिखाई देती हैं। वह तो अपने बचाव के किसी सुरक्षित स्थान में जाकर छिप गई है।

4. प्रकृति शीर्षक दोहों में गर्मी के भीषण स्वरूप को उपमा, अनुप्रास, रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकारों से अलंकृत करके उन्हें भावात्मक और चित्रात्मक शैलियों में प्रस्तुत किया गया है। भाव-भाषा, प्रतीक और योजना आकर्षक है।

पद्यांशों पर आधारित विषय वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. उपर्युक्त दोहों का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

1. कवि-कविवर बिहारी। कविता-‘प्रकृति’।

2. उपर्युक्त दोहों में गर्मी की ऋतु के भयंकर प्रभाव का उल्लेख कर उससे प्रभावित जीव-जन्तुओं की दुखद दशा को स्पष्ट किया गया है। गर्मी की अधिकता इतनी है कि सारा संसार तपोवन में बदल. गया है। फलस्वरूप शत्रुभाव रखने वाले पशु मित्रभाव से एक साथ रह रहे हैं। दोपहर की गर्मी से परेशान होकर तो छाया भी छाया की तलाश कर रही है।

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नीति:

प्रश्न 5.
चटक न छाँड़तु घटत हूँ, सज्जन-नेहँ गंभीरू।
फीकौ परै न, बरु फटै, रँग्यौ चोल-रंग चीरू।।

शब्दार्थ:

  • चटक – चटकीलापन।
  • घटक हूँ – घटते हुए (प्रेम पात्र न होते हुए भी)।
  • बरु – चाहे।
  • चोल रंग – चोल, एक प्रकार की वह लकड़ी, जिसे औटाकर (खौलाकर) रंग निकाला जाता है। यह रंग बहुत पक्का होता है और कपड़े के फट जाने पर भी नहीं छूटता।

प्रसंग:
यह दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा कविवर बिहारी विरचित ‘सतसई’ के ‘नीति’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें कवि ने सज्जनों के प्रेम की अटलता और स्थिरता का उल्लेख किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि

व्याख्या:
सज्जनों का अटल प्रेम प्रेमपात्र के घटने पर भी अपनी अटलता नहीं छोड़ता है; अर्थात् सज्जन जिससे प्रेम करते हैं, वह चाहे अपनी भावना कम करने लगे या दुर्भावना करते हुए नीचे गिरने लगे। दूसरे शब्दों में प्रेम का निर्वाह करना छोड़ दे, तो भी सज्जनों के प्रेम में कोई कमी या अन्तर नहीं आता है। सज्जनों का प्रेम तो वैसे ही हमेशा बना रहता है, जैसे चोल के रंग में रंगा हुआ कपड़ा, भले ही फट जाए, लेकिन उसका रंग कभी भी फीका नहीं पड़ता है।

विशेष:

  1. ब्रजभापा की शब्दावली है।
  2. दोहा छन्द है।
  3. उपमा अलंकार।
  4. उपदेशात्मक शैली है।
  5. यह अंश भाववर्द्धक है।

प्रश्न 6.
दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यों न बढ़े दुख-दंद।
अधिक अँधेरौ जग करत, मिलि मावस रवि-चंदु।।

शब्दार्थ:

  • दुसह – दुसह्य, जो सहा न जा सके।
  • दुराज – दो राजाओं का राज।
  • दुख-दंदु – दुखों का द्वंद्व, विविध प्रकार के दुख।
  • मावस – अमावस्या।
  • रवि-चंदु – सूर्य और चन्द्रमा।

प्रसंग:
पूर्ववत्। दो राजाओं के राज में अर्थात् जिस राज्य के एक ही समय ‘ में दो राजा हों, अनेक प्रकार के दुःख होते हैं। इस बात को कवि ने इस दोहे में .. व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि –

व्याख्या:
किसी प्रकार से असहनीय, (न सहन किए जाने योग्य) दो राजाओं के राज्य में प्रजा को अनेक प्रकार के दुःख क्यों न होवे। अर्थात् जिस राज्य में एक समय में दो राजा होते हैं, वहाँ की प्रजा को अनेक प्रकार के भयंकर दुःख झेलने पड़ते हैं। यह ठीक उसी प्रकार से है, जैसे अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मिलकर एक साथ होने से संसार में बहुत अधिक (सबसे अधिक) अंधकार को बढ़ा देते हैं।

विशेष:

  1. दोहा छन्द है।
  2. भाषा ब्रजभाषा है।
  3. उपमा अलंकार है।
  4. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।
  5. दृष्टान्त शैली है।

प्रश्न 7.
बढ़त-बढ़त संपति-सलिलु, मन-ससेजु बढ़ि जाइ।
घटत-घटत सुन फिर घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ।।

शब्दार्थ:

  • संपत्ति-सलिलु – संपत्ति रूपी पानी।
  • मन-सरोज – मनरूपी कमल।
  • बरु – बल्कि, परन्तु।
  • समूल – जड़ सहित, मूलधन सहित।
  • कुम्हिलाइ – मुरझा जाता है, नष्ट हो जाता है।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने धन की चंचलता और नश्वरता का वर्णन करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
सम्पत्ति रूपी पानी के निरन्तर बढ़ते रहने से मन रूपी कमल भी बढ़ता जाता है। दूसरे शब्दों में संपत्ति आने-जाने से मन में अनेक प्रकार की लालसाएँ उत्पन्न होती जाती हैं। लेकिन सम्पत्ति रूपी पानी के घटने पर मन रूपी कमलं घटता ही नहीं, अपितु समूल (जड़ सहित) ही नष्ट हो जाता है। कहने का भाव यह है कि जिस प्रकार पानी के हमेशा बढ़ते रहने पर कमल की नाल भी निरन्तर बढ़ती रहती है। और पानी के घटने पर वह नाल घटती तो नहीं, लेकिन कुम्हलाकर नष्ट हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति की सम्पत्ति बढ़ती रहती है तो उसके मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। लेकिन जब उसकी सम्पत्ति घटने लगती है तो उसकी इच्छाएँ भी बिल्कुल समाप्त हो जाती हैं।

विशेष:

  1. ‘बढ़त-बढ़त’ और ‘घटत-घटत’ में पुनरुक्ति अलंकार है।
  2. ‘सम्पत्ति-सलिल’ और ‘मन-सरोज’ में रूपक अलंकार है।
  3. दोहा छन्द है।
  4. उपर्युक्त कथन यथार्थपूर्ण है।

प्रश्न 8.
जो चाहत, चटक न घटे, मैलो होई न चित्त।
रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह चीकने चित्त।।

शब्दार्थ:

  • चाहत – चाहते हैं।
  • चटक – चटकीलापन।
  • मैलो – मलिन।
  • नेह – प्रेम।
  • चीकने – पवित्र।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने प्रेम को पवित्र और निरन्तर बने रहने की युक्ति को बतलाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
एक सच्चा व्यक्ति यदि अपने प्रेम को निरंतर बनाए रखना चाहता है। इसके साथ ही यदि वह अपने प्रेम की पवित्रता के लिए अपने चित्त को और किसी प्रेम के लिए स्थान नहीं देना चाहता है, उसे चाहिए कि वह अपने अंदर किसी प्रकार का अहंकार न करे। ऐसा करने से उसका प्रेम उसके पवित्र चित्त में स्थायी रूप से रह सकेगा, अन्यथा नहीं।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  2. शैली उपदेशात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. दोहा छन्द है।
  5. यह दोहा प्रेरक रूप में है।

प्रश्न 9.
कहै यहै श्रुति सुम्रत्यौ, यहै सयाने लोग।
तीन दबावत निस कही, पातक, राजा, रोग।।

शब्दार्थ:

  • श्रुति – वेद।
  • सुम्रत्यौ – स्मृति भी।
  • सयाने – चतुर।
  • निस कही – शक्तिहीन को।
  • पातक – पाप।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे में कवि ने शक्तिहीनता के दोष पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
पाप, राजा और रोग-ये तीनों ही शक्तिहीनों को दबाते हैं। इस बात को बार-बार वेद, स्मृतियाँ और चतर लोग कहते हैं।

विशेष:

  1. पातक, राजा और रोग की ‘दंबावत’ एक क्रिया होने से दीपक अलंकार है।
  2. कथ्य को प्रमाण सहित कहने से प्रमाणालंकार है।
  3. दोहा छंद है।
  4. यह दोहा ज्ञानवर्द्धक है।
  5. दृष्टान्त शैली है।

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प्रश्न 10.
स्वारथ, सुकृत, न श्रम वृथा, देखि बिहंग, बिचारि।
बाज पराए पानि परि तू पच्छीनु न मारि।।

शब्दार्थ:

  • स्वारथ – निजी लाभ, मतलब।
  • सुकृतु – अच्छा काम।
  • श्रमु – परिश्रम।
  • बृथा – बेकार।
  • बिहंग – पक्षी।
  • पराएँ पानि परि – दूसरों के इशारे पर।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इस दोहे को कवि ने अन्योक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें कवि ने अपने आश्रयदाता जयसिंह को यह समझाने का प्रयास किया है कि उन्हें औरंगजेब के इशारे पर महाराज शिवाजी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए कि उसमें उनका कोई निजी लाभ तो है ही नहीं। एक हिन्दू राजा द्वारा दूसरे हिन्दू राजा पर आक्रमण करना उचित भी नहीं है। इस बात को कवि ने किसी वाज को संबोधित करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
अरे बाज! (महाराजा जयसिंह) तुम दूसरों (औरंगजेब) के इशारे पर जिस पक्षी (महाराज शिवाजी) को मारने जा रहे हो, उससे तुम्हारे किसी निजी लाभ की पूर्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि शिकार (शिवाजी) को तो वह शिकारी (औरंगजेब) ही लेगा, जिसके इशारे पर उस पक्षी को मारने जा रहे हो। कहने का भाव यह कि किसी दूसरे के इशारे पर और दूसरों की भलाई के लिए अपने सजातीय को मारना (हानि पहुँचाना) किसी प्रकार से ठीक नहीं है। इस दृष्टि से इससे होने वाला परिश्रम भी व्यर्थ ही होगा।

विशेष:

  1. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  2. दोहा छंद है।
  3. अन्योक्ति अलंकार है।
  4. उपदेशात्मक शैली है।
  5. यह दोहा प्रेरणादायक रूप में है।

पद्यांशों पर आधारित सौन्दर्यबोध संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सज्जनों का प्रेम कैसा होता है?
  2. नीति के दोहों का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  3. नीति के दोहों के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

1. सज्जनों का प्रेम बड़ा ही स्थायी और अमिट होता है। वह चोल के रंग के समान हमेशा ही बना रहता है।

2. नीति के दोहों में व्यक्त भावों की सस्लता, उपयुक्त, यथार्थता और स्पष्टता सराहनीय है। इन दोनों में कही गई बातें बिल्कुल सारपूर्ण और जीवन की सफलता के लिए अपेक्षित व समुचित कही जा सकती हैं। इस आधार पर ये अधिक विश्वसनीय और सार्थक सिद्ध होती हुई दिखाई दे रही हैं।

3. नीति के दोहों का काव्य-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी और रोचक है। जीवन को हद तक सार्थक बनाने में जीवन-नीति का महत्त्व कितना अधिक होता है, इसे दर्शाने के लिए कवि ने प्रस्तुत दोहों को अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों से अलंकृत किया है। फिर उन्हें वीर रस और शान्त रस में डुबोकर ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली को आकर्षक बनाया है। भावों में सरसता और प्रतीक-बिम्बों की सटीकता के द्वारा उन्हें हृदय-स्पर्शी बनाने में अद्भुत सफलता कायम की है।

पद्यांशों पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. दो राजाओं का राज्य कैसा होता है?
  3. सम्पत्ति के बढ़ने-घटने से क्या प्रभाव पड़ता है?
  4. स्मृतियाँ और चतुर लोग क्या मानते हैं?।
  5. बाज के माध्यम से कवि ने क्या सीख दी है?

उत्तर:

  1. कवि-कविवर बिहारी, कविता-नीति।
  2. दो राजाओं का राज्य प्रजा के लिए हर प्रकार से दुःखद और विपत्तिकारक होता है।
  3. सम्पत्ति के बढ़ने से मन में अनेक प्रकार की इच्छाएँ जोर मारने लगती हैं। इसके विपरीत सम्पत्ति के घटने से मन की इच्छाएँ लगभग समाप्त हो जाती हैं।
  4. स्मृतियाँ और चतुर लोग यह मानते हैं कि पाप, राजा और रोग, ये तीनों ही शक्तिहीनों को दबाते हैं।
  5. बाज के माध्यम से कवि ने यह सीख दी है कि हमें किसी दूसरे के बहकावे में आकर और दूसरों की भलाई के लिए अपने सजातीय को कोई दुःख या हानि नहीं पहुँचानी चाहिए।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय (विज्ञान कथा, डॉ. जयन्त नार्लीकर)

हिम-प्रलय पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

हिम-प्रलय लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
हिमपात का मुकाबला कौन-कौन से देश नहीं कर सके थे?
उत्तर:
हिमपात का मुकाबला जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र नहीं कर सके।

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प्रश्न 2.
डॉ. वसंत चिटणीस का कौन-सा सिद्धान्त विश्वविख्यात हुआ?
उत्तर:
डॉ. वसंत चिटणीस का यह सिद्धान्त विश्वविख्यात हुआ-“हिम प्रलय का आगमन-भारतीय वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी!”

प्रश्न 3.
राजीव शाह ने अपनी डायरी में क्या लिखा?
उत्तर:
राजीव शाह ने अपनी डायरी में लिखा:
हिम-प्रलय के आगमन की आशंका किसी को चिंतित नहीं कर रही थी। बंबई को भारत की अस्थायी राजधानी बनाने की बात सरकारी लाल फीताशाही में सिमट कर रह गई थी। “कुछ पराक्रमी राजाओं ने इन्द्र पर चढ़ाई की थी। ऐसी हमारी पौराणिक कथाओं में लिखा है। वही बात आज के आक्रमण को देखकर याद आ रही है। लेकिन क्या आज यह चढ़ाई सफल होगी?”

प्रश्न 4.
आकाश में ऊर्जा का वातावरण बनाना क्यों आवश्यक था?
उत्तर:
आकाश में ऊर्जा का वातावरण बनाना आवश्यक था। यह इसलिए कि प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया जा सके।

प्रश्न 5.
आकाश में अग्निबाणों की सफलता का पता कैसे चला?
उत्तर:
बटन दबाते ही एक के बाद एक अग्निबाण अंतरिक्ष की ओर लपक पड़े। इस बार इन अग्निबाणों का उद्देश्य तापमान पर नियंत्रण पाना था, न कि तापमान या मौसम का पूर्वानुमान बताना। इससे आकाश में अग्निदाणों की सफलता का पता चला।

हिम-प्रलय दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हिमपात से बचने की डॉ. चिटणीस की क्या योजना थी?
उत्तर:
हिमपात से बचने की डॉ. चिटणीस की यह योजना थी कि हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
डॉ. वसंत चिटणीस ने क्या चेतावनी दी थी?
“अबकी गर्मियों में इस बर्फ को भूलिए नहीं क्योंकि अगली सर्दियाँ इतनी भयंकर होंगी कि बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं लेगी। हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए।”

प्रश्न 3. अन्य वैज्ञानिकों ने डॉ. बसंत की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
उत्तर:
कुछ ऐसे वैज्ञानिक भी थे, जो अब भी यह मानते थे कि न तो यह हिम-प्रलय है और न ही उसका प्रारंभ । वसंत चिटणीस का सिद्धान्त उन्हें मान्य नहीं था। उनकी यही धारणा थी कि शीत लहर जैसे आई वैसी चली जाएगी और तापमान सामान्य हो जाएगा। किंतु ठंड की चपेट में आए देशों के गले यह बात उतारना कठिन था।

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प्रश्न 4.
डॉ. वसंत को टैलेक्स द्वारा क्या संदेश मिला?
उत्तर:
डॉ. वसंत को टेलैक्स द्वारा यह संदेश मिला:
“आपके कथनानुसार अंटार्कटिक में बर्फ के फैलाव में वृद्धि हुई है और वहाँ के पानी की परत का तापमान भी दो अंश कम पाया गया है। अपने सर्वेक्षण के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यह परिवर्तन पिछले दो वर्षों में हुआ है।”

प्रश्न 5.
डॉ. वसंत ने राजीव शाह को कहाँ और क्यों जाने की सलाह दी?
उत्तर:
डॉ. वसंत ने राजीव शाह को अगले साल इंडोनेशिया चले जाने की सलाह दी। यह इसलिए कि भूमध्य रेखा के पास ही बचने की कुछ गुंजाइश है।

हिम-प्रलय भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
इस बार की गर्मियाँ उस दीपक की भांति थीं, जो बुझने से पहले एक बार अधिक रोशनी देता है।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखक ने यह भाव प्रकट करना चाहा है कि अत्यंत भयंकर गर्मी के कारण सारा वातावरण अग्निमय हो जाता है। पृथ्वी की तपन को सूरज का प्रकाश अपनी चरम सीमा पर बढ़ाकर आग की लौ की तरह वातावरण को असह्य बना देता है। इस प्रकार के वातावरण को देखकर ऐसा लगने लगता है कि पूरा वातावरण एक ऐसे दीपक के समान है, जो रोशनी करते-करते बुझ रहा है। लेकिन वह बुझने से पहले अपनी पूरी शक्ति को एक बड़ी लौ के रूप में लगा देता है।

हिम-प्रलय भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
चार-चाँद लगाना, नाक रगड़ना, कलेजा काँपना, पसीना छूटना, पाँव पसारना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
हिम-प्रलय, समुद्र-विज्ञान, विश्वविख्यात, दुष्चक्र, वसंत ऋतु, हिमयुग।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-2

प्रश्न 3.
‘सत्य’ के पूर्व ‘अ’ उपसर्ग जोड़ने से ‘असत्य’ शब्द बनता है। ‘अ’ उपसर्ग से बनने वाले पाँच शब्द पाठ में से छाँटकर लिखिए?
उत्तर:
‘अ’ उपसर्ग से बनने वाले पाँच शब्द –

  1. अमल
  2. अस्थायी
  3. अप्रिय
  4. अमान्य
  5. अदावत।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय अलग कीजिए।
वैज्ञानिक, कीर्तिमान, तकनीकी, नैतिकता, भारतीय।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-3

प्रश्न 5.
पाठ में आए आगत (विदेशी) शब्दों को छाँटकर उनके मानक हिन्दी शब्द रूप लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 11 हिम-प्रलय img-4

हिम-प्रलय अपठित गद्यांश

विज्ञान एक दोधारी तलवार है। इसके अनगिनत लाभ हैं तो अनचाही हानियाँ भी। विज्ञान ने एक ओर मनुष्य को तमाम सुविधाएँ दी हैं तो दूसरी ओर उसके मन की शांति छीन ली है। यदि उत्पादन में वृद्धि हुई है तो वहीं मनुष्य के हाथ से काम छीनकर बेरोजगारी भी बढ़ाई है। संसार के निर्माण और ध्वंस की अपार शक्ति विज्ञान के पास है। विज्ञान ने मनुष्य के विवेक पर पर्दा डाल दिया है पर गहराई से देखा जाए तो इसमें दोष विज्ञान का नहीं है। दोप वस्तुतः मनुष्य की बुद्धि का है जो उसकी तृष्णाओं और इच्छाओं को विस्तार देकर विज्ञान का सदुपयोग करने के स्थान पर दुरुपयोग सिखा रही है। यदि विज्ञान विभीषिका से बचाता है तो मनुष्य को अपनी सोच में व्यापक परिवर्तन करना पड़ेगा।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
  2. गद्यांश का सार-संक्षेप अपने शब्दों में लिखिए?
  3. विज्ञान से होने वाली हानियों के लिए कौन दोषी है?
  4. वैज्ञानिक विभीषिकाओं से कैसे बचा जा सकता है?

उत्तर:

1. ‘विज्ञान और मनुष्य’।

2. विज्ञान के दो पहलू हैं-लाभ और हानि। विज्ञान से मनुष्य को अनेक लाभ हैं तो अनेक हानियाँ भी हैं। असल बात यह है कि विज्ञान ने मनुष्य के विवेक पर पर्दा डाल दिया है। इससे मनुष्य विज्ञान का सदुपयोग नहीं, अपितु दुरुपयोग करने लगा है। इससे बचने के लिए उसे अपनी सोच-समझ में बदलाव लाना ही होगा।

3. विज्ञान से होने वाली हानियों के लिए मनुष्य दोषी है।

4. वैज्ञानिक विभीषिका से बचने के लिए मनुष्य को अपनी सोच-समझ में व्यापक बदलाव लाना होगा।

हिम-प्रलय योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ के कारण और निदान विषय पर एक चार्ट तैयार कीजिए तथा कक्षा में उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
हिम-प्रलय की तरह जल-प्रलय भी एक वैज्ञानिक संभावना या पृथ्वी पर एक आसन्न संकट है। जल-प्रलय की स्थिति में उसका सामना कैसे किया जा सकता है? इस पृष्ठभूमि पर एक विज्ञान-कथा या फंतासी लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
पिछले दस वर्षों में भारत में कौन-कौन-सी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ आई हैं उनको वर्ष के क्रमानुसार सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से हल करें।

हिम-प्रलय परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

हिम-प्रलय लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
डॉ. वसंत चिटणीस के हर वक्तव्य, हर टिप्पणी को महत्त्व क्यों प्राप्त हो गया?
उत्तर:
डॉ. वसंत चिटणीस के हर वक्तव्य, हर टिप्पणी को महत्त्व प्राप्त हो गया। यह इसलिए कि सभी ने उनकी बात मान ली। सामान्य आदमी भी उनकी बातों का महत्त्व समझ रहा था।

प्रश्न 2.
डॉ. वसंत की चेतावनी लोगों को खोखली क्यों लगी?
उत्तर:
डॉ. वसंत की यह चेतावनी लोगों को खोखली लगी क्योंकि अप्रैल में वसंत ऋतु का आगमन ठीक समय पर हुआ था और जून-जुलाई में पृथ्वी की तपन बढ़ाने के लिए सूर्य-प्रकाश अपनी चरम सीमा पर था। सभी लोग मानकर चल रहे थे कि पिछली सर्दियाँ भले ही भयानक रही हों, लेकिन अब फिर वही हाल नहीं होगा।

प्रश्न 3.
डॉ. चिटणीस ने अपनी दराज से क्या निकाला?
उत्तर:
डॉ. चिटणीस ने अपनी दराज से एक टंकलिखित लेख निकाला, जिसका शीर्षक था-‘अभियान : इन्द्र पर आक्रमण’।

प्रश्न 4.
क्या इन्द्र पर आक्रमण सफल होगा? इस प्रश्न का उत्तर कब मिलने लगा था?
उत्तर:
सितम्बर में इस प्रश्न का उत्तर मिलने लगा था। उत्तरी हिन्दुस्तान में जमीन की बर्फ पिघलने लगी। फ्लोरिडा से कैलिफोर्निया के बीच की जमीन बर्फ के सफेद बुरखे से धीरे-धीरे झाँक रही थी। आखिर बर्फ पिघलने लगी थी।

हिम-प्रलय दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नवंबर माह में क्या घटना घटी?
उत्तर:
बंबईवालों ने 2 नवंबर को एक बहुत बड़ा अभूतपूर्व दृश्य देखा। वह यह कि आकाश में पूरे दिन पक्षी उड़ते रहे। वे वायुसेना की किसी कवायद की तरह बहुत ही अनुशासन में उड़ रहे थे। हर रोज की तरह उस दिन कौए गायब हो रहे थे। वे सभी पक्षी दक्षिण की ओर जा रहे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थिर अनेक उपग्रहों ने संदेश देने शुरू कर दिए थे कि पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है। इससे पहले पक्षियों को खतरे का अंदाज हो चुका था। वे भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

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प्रश्न 2.
हिमपात ने होम्स के विचार किस प्रकार बदल डाले थे?
उत्तर:
हिमपात ने होम्स के विचार भी बदल डाले थे। वरना राजीव की इस सूचना को वे तुरन्त अमान्य कर देते। वसंत चिटणीस तीन-चार सालों से जिस हिमप्रलय की पूर्व सूचना दे रहे थे, वह तो आन खड़ा था। इसलिए इससे बचने का उनके पास यदि उपाय है तो उस पर विचार होना ही चाहिए। होम्स ने बात मान ली और दो ही दिन बाद राजीव शाह को लेकर होम्स बांडुंग गए। लेकिन क्या हम वास्तव में इस विपदा पर विजय पा सकेंगे? उनके मन में अभी भी थोड़ी शंका थी।

प्रश्न 3.
डॉ. वसंत चिटणीस की दूसरी क्या सताने लगी थी?
उत्तर:
प्रकृति और इंसान के बीच छिड़े युद्ध में इंसान की जीत हुई थी, लेकिन अब उसे अनेक समस्याओं का सामना करना था। बर्फ पिघलने से ‘न भूतो न भविष्यति’ बाढ़ आने वाली थी। पृथ्वी की जनसंख्या आधी हो चुकी थी। अनेक बहुमूल्य चीजें इसी आक्रमण में नष्ट हो गई थीं। इस एकता का परिचय इंसान ने इंद्र पर आक्रमण के दौरान दिया था, क्या?

प्रश्न 4.
‘हिम-प्रलय’ विज्ञान-कथा के द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
इस विज्ञान कथा में प्रकृति असन्तुलन से उत्पन्न समस्या को आधार बनाया गया है। प्राकृतिक आपदाएँ कभी भी, किसी भी देश पर आ सकती हैं। ऐसी स्थित में यदि यथासमय उचित प्रयास नहीं किए गए तो महाविनाश की स्थिति निर्मित हो सकती हैं। विकसित कहे जाने वाले राष्ट्र भी इन आपदाओं से संघर्प करम में विफल हो सकते हैं। मानव जाति का अस्तित्व बचाए रखने के लिए सभी राष्ट्रों को आपसी मतभेद भुलाकर सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए। इस पाठ के माध्यम से लेखक हमें यही संदेश देना चाहता है।

हिम-प्रलय लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
डॉ. जयन्त नार्लीकर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
वैज्ञानिक लेखन के क्षेत्र में डॉ. जयन्त नार्लीकर का स्थान प्रमुख है। उनका जन्म महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 1938 में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रेड होयल के साथ खगोल सम्बन्धित क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया। इसके कुछ समय बाद उन्होंने भारत की शोध संस्था ‘टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फण्डामेन्टल रिसर्च’ में भी अनेक शोध कार्य किए।

रचनाएँ:
डॉ. जयन्त नार्लीकर ने अपने अनुसंधान कार्य के साथ-साथ हिन्दी और मराठी में अनेक विज्ञान कथाएँ और उपन्यास लिखे हैं। उनकी ‘आगन्तुक’ ‘धूमकेतु’ ‘विज्ञान’ : ‘मानव’, ब्रह्माण्ड’ आदि प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ हैं।

महत्त्व:
डॉ. जयन्त नार्लीकर को वैज्ञानिक खोजों के लिए ‘स्मिथ पुरस्कार’, ‘एडम्स पुरस्कार’ तथा ‘शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार द्वारा उनको ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया गया है।

हिम-प्रलय पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
डॉ. जयन्त नार्लीकर लिखित ‘हिम-प्रलय’ विज्ञान-कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. जयन्त नार्लीकर लिखित ‘हिम-प्रलय’ एक विज्ञान-कथा है। इसमें लेखक ने ‘हिम-प्रलय’ से होने वाले महाविनाश को रेखांकित करने का प्रयास किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि ‘हिम-प्रलय का आगमन-भारतीय वैज्ञानिक की भविष्यवाणी’ राजीव शाह के इस लेख की अधिक चर्चा हो रही थी। लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे हिम-प्रलय मानने को तैयार नहीं थे।

विदेशी पत्रकारों से एक भेटवार्ता में डॉ. वसंत चिटणीस ने चेतावनी दी थी-“अब की गर्मियों में इस बर्फ को भूलिए नहीं! क्योंकि अगली सर्दियाँ इतनी भयंकर होंगी कि बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं लेगी। हिम-प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह महंगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए।” लेकिन डॉ. वसंत की इस चेतावनी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

इसका मुख्य कारण था कि उस समय मौसम सुहावना था। हमेशा की तरह भारत में मानसून पूरे जोरों पर था। फिर भी डॉ. वसंत बार-बार चेतावनी दे रहे थे जिसे कोई नहीं सुन रहा था। केवल राजीव शाह ही उनके विश्लेषण से सहमत थे। जब डॉ. वसंत ने अपने नाम समुद्र-विज्ञान के एक विश्वविख्यात संस्थान के संचालक द्वारा भेजे गए संदेश को राजीव शाह को पढ़कर सुनाया। राजीव शाह उसे सुनकर हैरान हो गए। डॉ. वसंत ने राजीव शाह को सलाह दी कि वह आने वाले साल इंडोनेशिया चला जाए। ऐसा इसलिए कि भूमध्य रेखा के पास ही बचने की कुछ गुंजाइश है। वह तो बांडुंग जाने ही वाला है।

बम्बई वालों ने 2 नवंबर को आकाश का एक अपूर्व दृश्य देखा कि पूरे दिन आकाश में पक्षी उड़ते रहे। सभी पक्षी दक्षिण की ओर जा रहे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों ने संदेश दिया- “पृथ्वी के इर्द-गिर्द वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।” इससे पहले पक्षी खतरे का अनुमान लगाकर भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

अनेक शहरों में हुए भीषण हिमपात ने चारों ओर तबाही मचा दी। जापान, रूस, यूरोप, कनाडा जैसे विकसित देश भी इस तबाही से नहीं बच सके थे। अमेरिकी ऊर्जा समिति के सदस्य रिचर्ड होम्स ने राजीव शाह से डॉ. बसंत से मुलाकात की इच्छा व्यक्त करते हुए उनकी प्रशंसा की। दो दिन बाद वे राजीव शाह को लेकर डॉ. वसंत के पास बांडुंग पहुंचकर अपनी शंका बताए।

राजीव शाह ने डॉ. वसंत को कुछ टैलेक्स दिए। डॉ. वसंत ने पढ़ा-…”ब्रिटिश सरकार ने अपनी बची हुई जनता के 40 प्रतिशत लोगों को केनिया में स्थानान्तरित किया है। स्थानान्तरित करने का यह काम दो महीने में पूरा हो जाएगा।” “मास्को तथा लेनिनग्राद खाली किए जा चुके हैं-सोवियत प्रधानमंत्री की घोषणा”, “जमीन के नीचे बनाई बस्तियों में हम एक साल रह सकते हैं-इजरायली अध्यक्ष का विश्वास।”

“उत्तर भारत की सभी नदियाँ जम चुकी हैं।” डॉ. वसंत ने कहा- “यह तो केवल शुरुआत है। पिछले वर्ष सिर्फ इसकी झलक मिली थी। किंतु अगले साल पृथ्वी मनुष्यहीन हो जाएगी।” होम्स के यह पूछने पर कि क्या इससे बचाव का कोई उपाय है? डॉ. वसंत ने कहा कि “अब बहुत देर हो चुकी है। इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता।” इतना कहकर उन्होंने अपनी दराज से एक टंकलिखित लेख निकाला। उसका शीर्षक था-‘अभियान : इन्द्र पर आक्रमण।’

कन्या कुमारी से कुछ दूर स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र का अग्निबाण प्रक्षेपण स्थल पर अनेक वैज्ञानिक-विशेषज्ञ एकत्रित हुए थे। प्रकल्प के प्रमुख तंत्रज्ञ ने बटन दबाया। उससे अनेक अग्निबाण अंतरिक्ष की ओर गए। उनका उद्देश्य तापमान पर नियंत्रण पाना था। अनेक देशों से इस प्रकार के उपग्रह छोड़े जाने वाले थे लेकिन डॉ. वसंत ने सबसे पहले वातावरण पर हमला बोला था। भूमध्य रेखा पर स्थित कई देशों से छोड़े गए विशालकाय गुब्बारे और उपग्रह अंतरिक्ष में लपक रहे थे। इसके साथ ही ऊँची उड़ानें भरने वाले हवाई जहाजों ने भी उड़ानें भरीं। इस प्रकार चतुरंगी सेना ने वायुमंडल पर जबरदस्त हमला बोल दिया था।

अब प्रक्षेपण अस्त्रों से किए जाने वाले विस्फोटों के उपयोग ने उनकी विधायक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। अपनी सभी प्रकार की साधन-सामग्री को परस्पर तनाव को भूलकर सभी देशों ने दाँव पर लगा दिया था। फिर इस आक्रमण की सफलता के प्रति सभी सशंकित थे। इसका उत्तर मिलने लगा कि आखिर बर्फ पिघलने लगी थी। इसे देखकर मियासी से होम्स ने डॉ. वसंत को फोन करके बधाई दी। फिर भी डॉ. वसंत को चिन्ता यह होने लगी थी कि प्रकृति और इंसान की इस जीत के बावजूद इंसान को अनेक समस्याओं का सामना तो करना ही होगा। बर्फ पिघलने से बाढ़ आएगी। पृथ्वी की जनसंख्या आधी हो चुकी थी।

हिम-प्रलय संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थिर अनेक उपग्रहों से खतरे के संदेश आने लगे। “पृथ्वी के इर्द-गिर्द वायुमण्डल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं। अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।” एक तरफ देश-विदेश के मौसम विभाग अपनी इस पूर्व सूचना पर गर्व अनुभव कर रहे थे, लेकिन उनकी सूचना से पहले ही पक्षियों को खतरे का अंदाज आ चुका था और वे भूमध्य रेखा तक सुरक्षित पहुँच चुके थे।

शब्दार्थ:

  • अंतरिक्ष – आकाश।
  • इर्द-गिर्द – आस-पास।
  • हिमपात – बर्फ का गिरना।
  • आसार – आशा।
  • अंदाज-अनुमान।

प्रसंग:
यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा डॉ. जयन्त नार्लीकर द्वारा लिखित विज्ञान-कथा ‘हिम-प्रलय’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखक ने हिमपात होने के पहले की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हिमपात होने की जानकारी संबंधित वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता ली जा रही थी। इस दिशा में संसार के सभी वैज्ञानिक चौकन्ने हो गए थे। इससे पहले ही सभी दक्षिण दिशा की ओर बड़ी तेजी से भागते हुए दिखाई देने लगे थे। जैसे-जैसे हिमपात का समय आने लगा, वैसे-वैसे अंतरिक्ष में स्थिर उपग्रह संदेश भेजने लगे थे। 4 नवंबर को अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों ने हिमपात से होने वाले खतरों के विषय में संदेश भेजने शुरू कर दिए थे। उनका मुख्य रूप से यही संदेश था कि पृथ्वी के आस-पास के वायुमंडल में हिमपात होने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इस प्रकार आने वाले 24 घंटे और खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसा इसलिए कि इन 24 घंटों में कई जगह भीषण हिमपात होने की पूरी-पूरी संभावना है। इस तरह की सूचना देश के मौसम-विभाग ने पहले से ही देनी शुरू कर दी थी और इससे वह बहुत गर्व का अनुभव भी कर रहा था। लेकिन यह एक बड़ी अद्भुत बात थी कि मौसम विभाग की इस प्रकार की सूचना से पहले ही सभी पक्षियों को हिमपात से होने वाले खतरों का अनुमान हो चुका था। इसलिए वे भूमध्य रेखा के पास अच्छी तरह से जा चुके थे।

विशेष:

  1. हिमपात की भयंकरता पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भयानक रस का प्रवाह है।
  3. भाषा के शब्द मिश्रित हैं.।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. हिमपात से पहले की स्थिति क्या थी?
  2. पक्षियों को हिमपात के खतरे का अंदाज सबसे पहले होने का क्या आशय है?

उत्तर:

  1. हिमपात से पहले की स्थिति यह थी कि पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात होने के आसार दिखाई देने लगे थे।
  2. पक्षियों को हिमपात के खतरे का अंदाजा सबसे पहले होने का आशय यह है कि मनुष्य से कहीं अधिक ज्ञान पक्षियों को होता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. उपग्रहों से क्या-क्या संदेश आने लगे थे?
  2. पहले ही पक्षियों को क्या हो गया था?

उत्तर:

1. उपग्रहों से संदेश आने लगे थे कि –

  • पृथ्वी के आस-पास वायुमंडल में हिमपात के आसार नजर आ रहे हैं।
  • अगले चौबीस घंटों में जगह-जगह बर्फ गिरने की संभावना है।

2. पहले ही पक्षियों को हिमपात के खतरों का अनुमान हो चुका था।

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प्रश्न 2.
उनकी एकता और अनुशासन यदि मानव जाति में होती तो विभिन्न देशों में भारी भगदड़ न मची होती। तकनीकी लिहाज से जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र भी इस हिमपात का मुकाबला नहीं कर सके। अनेक शहरों में पाँच से छह मीटर तक बर्फ गिरी थी। इतने भीषण हिमपात ने चारों तरफ तबाची मचा दी। सिर्फ कुछ ही लोग इस तबाही से अपने आप को बचा सके थे। ये सभी लोग उन शेल्टरों में थे जो अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए थे। मध्य पूर्व एशिया, मैक्सिको जैसे देशों में ठंड का आघात कम था। लेकिन चूंकि उनके पास बचाव का कोई जरिया नहीं था इसलिए वहाँ भी जान-माल की भयंकर हानि हुई थी।

शब्दार्थ:

  • भगदड़ – अस्थिरता।
  • लिहाज – दृष्टि से।
  • प्रगत – प्रगतिशील, विकसित।
  • भीषण – भयंकर।
  • तबाही – बर्बादी।
  • सिर्फ – केवल।
  • शेल्टर – रक्षास्थान।
  • आघात – प्रहार।
  • जरिया – माध्यम, साधन।

प्रसंग:
पूर्ववत्! इसमें लेखक ने मानव जाति के परस्परं भेदभाव और दूरी को हानिकारक बतलाते हुए उसे पक्षियों से एकता और अनुशासन सीखने की सीख दी. है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
पक्षियों में एकता और अनुशासन होता है। इसी से वे आने वाले खतरों का अनुमान कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं, जबकि मनुष्य ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता है। यही कारण है कि यदि पक्षियों की तरह मनुष्य में एकता और अनुशासन का जीवन होता तो हिमपात के खतरों का अनुमान कर अलग-अलग देशों में भगदड़ नहीं मची होती। तकनीकी साधनों के बावजूद जापान, यूरोप, रूस, कनाडा, आदि संसार के अनेक विकसित देश भी हिमपात से हुए खतरों का सामना करने में असफल रहे। चूँकि हिमपात असाधारण और अभूतपूर्व हुआ था। उससे संसार के कई देशों के नगरों-महानगरों में पाँच से छः मीटर तक वर्क की ऊँची-ऊँची परतें पड़ी थीं।

इस प्रकार के भयंकर हिमपात के पड़ने से चारों ओर हाहाकार मच गया था। जान-माल के भारी नुकसान ने भयंकर तबाही मचा दी थी। इस तबाही से बहुत कम लोग ही बच पाए थे। अधिक-से-अधिक बर्बादी ने चारों ओर भयंकर दृश्य उपस्थित कर दिया था। जो लोग इस तबाही से बचे थे, वे अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए रक्षा-स्थान में रहने के कारण सुरक्षित रह सके थे।

लेखक-का पुनः कहना है कि हिमपात से होने वाली हानि से अनेक देश प्रभावित हुए थे। लेकिन वे समान रूप से नहीं प्रभावित हुए थे। किसी-किसी देश में तो इसका आघात बहुत अधिक था, तो किसी-किसी देश में बहुत कम था। मध्य-पूर्व एशिया, मैक्सिको जैसे देशों में इस हिमपात का आघात कम था तो और देशों में इसका आघात बहुत अधिक था। इस प्रकार जिन देशों के पास इससे बचाव के साधन अधिक और बड़े थे, वहाँ इसका आघात कम था। इसके विपरीत जिन देशों में इससे बचाव के साधन कम और छोटे थे, वहाँ इसका आघात बहुत था, इससे वहाँ जान-माल की बहुत बड़ी हानि हुई थी।

विशेष:

  1. हिमपात से होने वाली हानियों का उल्लेख है।
  2. हिमपात से बचने के लिए सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान शब्दों की है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ क्यों मच गई?
  2. कौन लोग भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे?

उत्तर:

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ मच गई। ऐसा इसलिए कि मानव जाति में पक्षियों की तरह एकता और अनुशासन की बहुत बड़ी कमी है।
  2. जो लोग अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए शेल्टरों (सुरक्षा-घरों) में चले गए थे, वे ही भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. चारों ओर तबाही क्यों मच गई?
  2. जान-माल की भयंकर हानि कहाँ और क्यों हुई थी?

उत्तर:

  1. चारों ओर तबाही मच गई। यह इसलिए कि अनेक देशों में पाँच-छ: मीटर तक भीषण हिमपात हुआ था।
  2. जान-माल की भयंकर हानि मध्यपूर्व एशिया, मैक्सिको आदि देशों में हई थी। यह इसलिए कि उनके पास बचाव के कोई साधन नहीं थे।

प्रश्न 3.
यही सवाल दुनिया के विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों को भी सता रहा था। इस योजना के तहत सूर्य की उष्णता को अपने में समाकर पृथ्वी तक पहुँचाने वाले असंख्य धातुकण वायुमण्डल में बिखरने वाले थे। वसंत का विचार था कि ज्वालामुखी द्वारा फैले उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे, और ये धातु कण उनका स्थान ले लेंगे। लेकिन यह काफी नहीं था। वातावरण में ऊर्जा-निर्मिति आवश्यक थी। ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी जरूरी था।

इसलिए प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया गया। उनकी विघातक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया। वैसे तो ये अस्त्र एक-दूसरे का नाश ही करते। लेकिन परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई। अपनी सारी साधन-सामग्री दाँव पर लगाकर, आपसी अदावत भुलाकर सभी देशों ने इस कार्य में मदद की थी। लेकिन फिर भी सभी इस कशमकश में उलझे थे कि क्या यह आक्रमण सफल होगा?

शब्दार्थ:

  • सता – चिन्तित कर।
  • प्रतिबंधक – रुकावट।
  • परिप्रेक्ष्य – संदर्भ।
  • अदावत – तनाव, ईर्ष्या, द्वेष।
  • कशमकश – खींचातानी, असमंजस।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने हिमपात को रोकने या नियंत्रित करने की कठिनाई को वैज्ञानिकों की चिन्ता का एक विषय बतलाते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हिमपात कैसे और किस प्रकार रोका जाए, इसकी चिन्ता संसार के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को बार-बार हो रही थी। हिमपात पर नियंत्रण रखने के लिए वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने जो योजना बनाई, वह सूर्य की गर्मी को अपने में रखकर पृथ्वी तक आने वाले अनेक धातुकण वायुमंडल में फैलने वाले थे। इस विपय में डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी की फैलती हुई जो गर्मी होगी उससे प्रतिबंधक कण नीचे तक आ जाएँगे। उनके स्थान पर धातुकण आ जाएँगे। फिर भी यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। ऐसा इसलिए कि वातावरण में ऊर्जा का निर्मित होना बेहद जरूरी था। दूसरी बात यह कि ‘हीरे की धूल को कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

लेखक का पुनः कहना है कि हिमपात को नियंत्रित करने के लिए संसार के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा विस्फोटों का उपयोग किया। लेकिन कुछ समय बाद उन विस्फोटों की एक विघातक शक्ति उत्पन्न हुई। फिर कुछ समय बाद उस शक्ति की जगह धीरे-धीरे आग को फेंकने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। ये सभी अस्त्र एक-दूसरे के लिए उपयोगी न होकर घातक और विध्वंसक होते हैं।

लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि संदर्भ और समय बदलते ही उनका महत्त्व और उनकी उपयोगिता भी वही नहीं रही। इसे सभी देशों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अपनी सोच और समझ को एकता का रूप देने का प्रयास किया। इससे पहले उन्होंने आपसी भेदभाव और अदावत को भुला दिया। फिर भी वे इस असमंजस में थे कि उनके द्वारा किए गए प्रयास सफल होंगे या असफल।

विशेष:

  1. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का परस्पर एकमत होने के उल्लेख प्रेरक रूप में हैं।
  2. वैज्ञानिक शब्दावली है।
  3. नए-नए वैज्ञानिक खोजों के विषय में प्रकाश डाला गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. वाक्य-गठन गंभीर अर्थमय है।
  6. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. किसको क्या सता रहा था?
  2. वसंत का क्या मानना था?
  3. प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का क्यों उपयोग किया गया?

उत्तर:

1. दुनिया के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को यह सवाल सता रहा था कि क्या इन्द्र पर वैज्ञानिक सफल होंगे?

2. डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी द्वारा कैसे उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे और धातुकण उनका स्थान ले लेंगे।

3. प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग इसलिए किया गया कि वातावरण में ऊर्जा बिल्कुल जरूरी थी। इसके साथ ही ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए भी वातावरण का अस्थायी रूप से गर्म होना भी बेहद जरूरी था। बहुत अधिक था। इस प्रकार जिन देशों के पास इससे बचाव के साधन अधिक और बड़े थे, वहाँ इसका आघात कम था। इसके विपरीत जिन देशों में इससे बचाव के साधन कम और छोटे थे, वहाँ इसका आघात बहुत था, इससे वहाँ जान-माल की बहुत बड़ी हानि हुई थी।

विशेष:

  1. हिमपात से होने वाली हानियों का उल्लेख है।
  2. हिमपात से बचने के लिए सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान शब्दों की है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ क्यों मच गई?
  2. कौन लोग भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे?

उत्तर:

  1. विभिन्न देशों में भगदड़ मच गई। ऐसा इसलिए कि मानव जाति में पक्षियों की तरह एकता और अनुशासन की बहुत बड़ी कमी है।
  2. जो लोग अणु-युद्ध से बचने के लिए बनाए गए शेल्टरों (सुरक्षा-घरों) में चले गए थे, वे ही भीषण हिमपात से अपने आपको बचा सके थे।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. चारों ओर तबाही क्यों मच गई?
  2. जान-माल की भयंकर हानि कहाँ और क्यों हई थी?

उत्तर:

  1. चारों ओर तबाही मच गई। यह इसलिए कि अनेक देशों में पाँच-छः मीटर तक भीषण हिमपात हुआ था।
  2. जान-माल की भयंकर हानि मध्यपूर्व एशिया, मैक्सिको आदि देशों में हुई । थी। यह इसलिए कि उनके पास बचाव के कोई साधन नहीं थे।

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प्रश्न 4.
यही सवाल दुनिया के विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों को भी सता रहा था। इस योजना के तहत सूर्य की उष्णता को अपने में समाकर पृथ्वी तक पहुँचाने वाले असंख्य धातुकण वायुमण्डल में बिखरने वाले थे। वसंत का विचार था कि ज्वालामुखी द्वारा फैले उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे, और ये धातु कण उनका स्थान ले लेंगे। लेकिन यह काफी नहीं था। वातावरण में ऊर्जा-निर्मिति आवश्यक थी। ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी जरूरी था।

इसलिए प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग किया गया। उनकी विघातक शक्ति का स्थान धीमी गति से आग उगलने वाले विस्फोटों ने ले लिया। वैसे तो ये अस्त्र एक-दूसरे का नाश ही करते। लेकिन परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई। अपनी सारी साधन-सामग्री दाँव पर लगाकर, आपसी अदावत भुलाकर सभी देशों ने इस कार्य में मदद की थी। लेकिन फिर भी सभी इस कशमकश में उलझे थे कि क्या यह आक्रमण सफल होगा?

शब्दार्थ:

  • सता – चिन्तित कर।
  • प्रतिबंधक – रुकावट।
  • परिप्रेक्ष्य – संदर्भ।
  • अदावत – तनाव, ईर्ष्या, द्वेष।
  • कशमकश – खींचातानी, असमंजस।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने हिमपात को रोकने या नियंत्रित करने की कठिनाई को वैज्ञानिकों की चिन्ता का एक विषय बतलाते हुए कहा है कि व्याख्या-हिमपात कैसे और किस प्रकार रोका जाए, इसकी चिन्ता संसार के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को बार-बार हो रही थी। हिमपात पर नियंत्रण रखने के लिए वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने जो योजना बनाई, वह सूर्य की गर्मी को अपने में रखकर पृथ्वी तक आने वाले अनेक धातुकण वायुमंडल में फैलने वाले थे।

इस विषय में डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी की फैलती हुई जो गर्मी होगी उससे प्रतिबंधक कण नीचे तक आ जाएँगे। उनके स्थान पर धातुकण आ जाएँगे। फिर भी यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता था। ऐसा इसलिए कि वातावरण में ऊर्जा का निर्मित होना बेहद जरूरी था। दूसरी बात यह कि ‘हीरे की धूल’ को कम करने के लिए वातावरण का अस्थायी तौर पर गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

लेखक का पुनः कहना है कि हिमपात को नियंत्रित करने के लिए संसार के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा विस्फोटों का उपयोग किया। लेकिन कुछ समय बाद उन विस्फोटों की एक विघातक शक्ति उत्पन्न हुई। फिर कुछ समय बाद उस शक्ति की जगह धीरे-धीरे आग को फेंकने वाले विस्फोटों ने ले लिया था। ये सभी अस्त्र एक-दूसरे के लिए उपयोगी न होकर घातक और विध्वंसक होते हैं।

लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि संदर्भ और समय बदलते ही उनका महत्त्व और उनकी उपयोगिता भी वही नहीं रही। इसे सभी देशों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अपनी सोच और समझ को एकता का रूप देने का प्रयास किया। इससे पहले उन्होंने आपसी भेदभाव और अदावत को भुला दिया। फिर भी वे इस असमंजस में थे कि उनके द्वारा किए गए प्रयास सफल होंगे या असफल।

विशेष:

  1. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का परस्पर एकमत होने के उल्लेख प्रेरक रूप में हैं।
  2. वैज्ञानिक शब्दावली है।
  3. नए-नए वैज्ञानिक खोजों के विषय में प्रकाश डाला गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. वाक्य-गठन गंभीर अर्थमय है।
  6. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. किसको क्या सता रहा था?
  2. वसंत का क्या मानना था?
  3. प्रक्षेपण अस्त्रों द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का क्यों उपयोग किया गया?

उत्तर:

1. दुनिया के सभी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को यह सवाल सता रहा था कि क्या इन्द्र पर वैज्ञानिक सफल होंगे?

2. डॉ. वसंत का यह मानना था कि ज्वालामुखी द्वारा कैसे उष्णता प्रतिबंधक कण नीचे आ जाएँगे और धातुकण उनका स्थान ले लेंगे।

3. प्रक्षेपण अस्त्रों के द्वारा किए जाने वाले विस्फोटों का उपयोग इसलिए किया गया कि वातावरण में ऊर्जा बिल्कुल जरूरी थी। इसके साथ ही ‘हीरे की धूल’ कम करने के लिए भी वातावरण का अस्थायी रूप से गर्म होना भी बेहद जरूरी था।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. एक अस्त्र दूसरे का विनाशक होने पर भी क्यों उपयोगी हो गए?
  2. सभी देशों की उलझन क्या थी?

उत्तर:

  1. एक अस्त्र दूसरे का विनाशक होने पर भी उपयोगी हो गए। यह इसलिए कि परिप्रेक्ष्य बदलते ही उनकी उपयोगिता भी बदल गई थी।
  2. सभी देशों की यही उलझन थी कि क्या इन्द्र पर आक्रमण सफल होगा?

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू (संस्मरण, महादेवी वर्मा)

राजेन्द्र बाबू पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

राजेन्द्र बाबू लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार कहाँ देखा?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को लेखिका ने प्रथम बार पटना के रेलवे स्टेशन पर देखा।

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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू पौत्रियों को प्रयाग क्यों लाए थे?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू अपनी पौत्रियों को प्रयाग लाए थे। यह इसलिए कि उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। वे लेखिका महादेवी वर्मा के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के छात्रावास में रहकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दे सकें। इससे उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को किस प्रकार मिला?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के निकट सम्पर्क में आने का अवसर लेखिका को सन 1937 में मिला। उस समय के कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में लेखिका के प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए। उनसे ज्ञात हुआ कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं, जिनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह अपने छात्रावास में रखकर उन्हें विद्यापीठ की परीक्षाओं में बैठा सकें तो उन्हें शीघ्र कुछ विद्या प्राप्त हो सकेगी।

प्रश्न 4.
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या क्यों नहीं भूल पातीं?
उत्तर:
महादेवी वर्मा, राजेन्द्र बाबू के साथ बिताई संध्या को नहीं भूल पातीं। यह इसलिए कि उसने उन्हें अर्थात् भारत के प्रथम राष्ट्रपति को सामान्य आसन पर बैठकर दिन भर के उपवास के बाद केवल कुछ उबले आलू खाकर पारायण करते देखा था। उसे भी वही खाते हुए देखकर उनकी दृष्टि से संतोष और होंठों पर बालकों जैसी सरल हँसी छलक उठी थी।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के उन कतिपय पहचान चिह्नों का उल्लेख कीजिए जो भारतीय जन की आकृति को व्यक्त करते हैं?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय जन की आकृति और गठन की छाया थी। इसलिए उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था। वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति और वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में भी साधारण भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशेषता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के गुणों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निम्नलिखित गुण थे –

  1. बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का उन्हें कभी न घमण्ड हुआ और न कोई मानसिक ग्रन्थि ही हुई।
  2. सबके प्रति वे समान ध्यान रखती थीं।
  3. राष्ट्रपति भवन में भी वे स्वयं भोजन बनाती थीं। पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही स्वयं भोजन करती थीं। इस प्रकार वह एक सामान्य भारतीय गृहिणी के समान ही रहती थीं।
  4. वह अपने पति के साथ सप्ताह में एक दिन उपवास किया करती थीं।

प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ हैं –

  1. उनकी शारीरिक बनावट बड़ी ही अदभुत थी। वह ऐसी विशेषता थी, जो पहली ही नजर में किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। उन्हें देखने वाला हर कोई यही मान लेता था कि उसने इस आकृति को अवश्य कहीं-न-कहीं देखा है।
  2. उनकी वेशभूषा ग्रामीणों की थी। उसमें भारतीयता की साफ झलक दिखाई देती थी।
  3. उनकी आकृति, वेशभूषा तो आकर्षक थी ही, उनका स्वभाव और रहन-सहन भी सामान्य भारतीय या भारतीय किसान की ही तरह था।
  4. उनकी प्रतिभा और बुद्धि उनकी सामान्यता को महत्त्व प्रदान करती थी।
  5. उनमें जीवन-मूल्यों को परखने की अद्भुत दृष्टि थी। इसी से उन्हें ‘देशरत्न’ का सम्मान दिया गया।
  6. उनके मन की सरल स्वच्छता ऐसी थी कि वे इन्हीं के आधार पर ‘अजातशत्रु’ के रूप सम्मानित होते रहे।
  7. उनके समान कठिन लेकिन कोमल चरित्र आज नहीं है।

प्रश्न 4.
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु किस सन्दर्भ में कहा जाता है?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु उस सन्दर्भ में कहा जाता है कि उनका मन बहुत ही सरल और स्वच्छ था। उनके इन गुणों से अत्यधिक प्रभावित होकर उनके सम्पर्क में आने वाला हर कोई उनका लोहा मान लेता था।

प्रश्न 5.
सामान्यतः हमारा उपवास कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः हमारा उपवास अधिक सस्ता और कामचलाऊ होता है। कम-से-कम खर्च से अल्पाहार करके हम उपवास करते हैं।

राजेन्द्र बाबू भाव विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.

  1. क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।
  2. कर्तव्य विलास नहीं कर्मनिष्ठा है।
  3. सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता।

उत्तर:
1. ‘क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु कोमल चरित्रों का आज बिलकुल अभाव हो गया है। यों तो आज भी अनेक महान पुरुष हैं, लेकिन उनके जैसे बेजोड़ और अद्भुत चरित्रों का आज अकाल पड़ा हुआ दिखाई देता है। इससे यह सहज ही प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है कि राजेन्द्र बाबू जैसे बेजोड़ चरित्रों को तैयार करने वाला समय का साँचा आज नहीं दिखाई दें रहा है। वास्तव में यह एक बहुत बड़ी ही दुखद और अफसोस की बात है।

2. ‘कर्तव्य विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि जीवन में महानता हासिल करने के लिए सुख-सुविधाओं को महत्त्क नहीं देना चाहिए। अगर ऐसा कोई करता है तो वह जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है। वह अपने उद्देश्य से भटक जाता है। इससे वह अपना महत्त्व खोने लगता है। इसके विपरीत जो परिश्रमी होकर उद्देश्यमय जीवन जीना चाहते हैं, वे अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटते हैं। वे उसे विलास के रूप में नहीं देखते हैं। वे तो उसे कर्मनिष्ठा ही समझकर आगे बढ़ते जाते हैं। ऐसे ही लोग युग-पुरुष के रूप में सम्मानित होकर सदैव याद किए जाते रहते हैं।

3. ‘सत्य में से कुछ घटाना या जोड़ना सम्भव नहीं रहता’:
उपर्युक्त वाक्य के द्वारा लेखिका ने यह कहना चाहा है कि सत्य अटल होता है। वह किसी दिशा में नहीं बदलता है। वह हमेशा अपने ही रूप में रहता है। इसलिए बदलने या इसे कुछ और रूप देने की कोशिश बिल्कुल व्यर्थ होती है। सत्य का यह अटल रूप परिश्रम, स्वभाव, चरित्र, सोच, विचार आदि कहीं और कभी देखा जा सकता है। इस प्रकार सत्य काल का अमर चिह्न और अमर पहचान कहा जा सकता है।

राजेन्द्र बाबू भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
पुरातन, सीमित, अनुपस्थित, संयम, अपेक्षा, विचलित, संकुचित
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग एवं प्रत्यय युक्त शब्दों को छाँटकर पृथक-पृथक लिखिए –
प्रसारित, विचित्र, प्रतिनिधित्व, विशिष्टता, सहधर्मिणी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
आँख, धरती, स्मृति, कृषक, सहधर्मिणी।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-3

प्रश्न 4.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं। इन शब्दों का पृथक-पृथक . अर्थों में प्रयोग कीजिए –
कोट, जान, भेंट, फल, सूप।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-4

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के भिन्नार्थक समोच्चरित शब्द लिखकर वाक्य बनाइए –
निर्वाण, चर्म, कच्छा, तुरंग, प्रासाद, वास, द्वीप, तरिण, आसन्न, परिधान, अनु, वाला।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-5

राजेन्द्र बाबू योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप किन महापुरुषों के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं, कारण सहित लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

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प्रश्न 2.
क्या आपके जीवन में कभी कोई ऐसा संस्मरण घटित हुआ जिसे आप अपने साथियों के साथ बाँटना चाहेंगे। यदि हाँ, तो संस्मरण को लिखकर कक्षा में सुनाइए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

प्रश्न 3.
रेल-यात्रा के लिए पूर्व में आरक्षण कराया जा सकता है। रेल यात्रा के आरक्षण तथा रद्दकरण हेतु आवेदन पत्र देना होता है। यहाँ दिए आरक्षण पत्र को भरिए तथा रेलवे की अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें (रेलवे आरक्षण फार्म का प्रतिरूप अगले पृष्ठ पर देखें)।

राजेन्द्र बाबू परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

राजेन्द्र बाबू लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को किसने बताया?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका को उसके भाई ने बताया।

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति देखकर ऐसा अनुभव होता था, मानो उन्हें पहले कहीं देखा है।
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 10 राजेन्द्र बाबू img-6

प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण राजेन्द्र बाबू को ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली।

राजेन्द्र बाबू दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा कैसी थी?
उत्तर:
उनकी वेशभूषा की ग्रामीणता तो दृष्टि को और भी उलझा लेती थी। खादी की मोटी धोती ऐसा फेंटा देकर बाँधी गई थी कि एक ओर दाहिने पैर पर घुटना छूती थी और दूसरी ओर बाएँ पैर की पिण्डली। मोटे, खुरदरे, काले बंद गले के कोट में ऊपर का भाग बटन टूट जाने के कारण खुला था और घुटने के नीचे का बटनों से बंद था। सरदी के कारण पैरों में मोजे-जूते तो थे, परन्तु कोट और धोती के समान उनमें भी विचित्र स्वच्छंदतावाद था। एक मोजा जूते पर उतर आया था और दूसरा टखने पर घेरा बना रहा था।

मिट्टी की पर्त से न जूतों के रंग का पता चलता था, न रूप का। गाँधी टोपी की स्थिति तो और भी विचित्र थी। उसकी आगे की नोक बाईं भौंह पर खिसक आई थी और टोपी की कोर माथे पर पट्टी की तरह लिपटी हुई थी। देखकर लगता था मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं, अतः जो जहाँ जिस स्थिति में अटक गया, वह वहीं उसी स्थिति में अटका रह गया।

प्रश्न 2.
जवाहरलाल और राजेन्द्र बाबू की अस्त-व्यस्तता में क्या अन्तर था?
उत्तर:
जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी किन्तु राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। दूसरे, यदि जवाहरलाल जी की अस्त-व्यस्तता देख लें तो उन्हें बुरा नहीं लगता था, परन्तु अपनी अस्त-व्यस्तता के प्रकट होने पर राजेन्द्र बाबू भूल करने वाले बालक के समान संकुचित हो जाते थे। एक दिन यदि दोनों पैरों में दो भिन्न रंग के मोजे पहने किसी ने उन्हें देख लिया तो उनका संकुचित हो उठना अनिवार्य था। परन्तु दूसरे दिन जब वे स्वयं सावधानी से रंग का मिलान करके पहनते तो पहले से भी अधिक बेमेल रंगों को पहन लेते।

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प्रश्न 3.
लेखिका राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के सम्पर्क में कव आयी? वह कैसी थीं?
उत्तर:
पहले बड़ी, फिर छोटी, फिर उनसे छोटी के क्रम से बालिकाएँ मेरे संरक्षण में आ गईं और उन्हें देखने प्रायः उनकी दादी और कभी-कभी दादा भी प्रयाग आते रहे। तभी राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के निकट सम्पर्क में आने का अवसर मिला। वे सच्चे अर्थ में धरती की पुत्री थीं साध्वी, सरल, क्षमामयी, सबके प्रति ममतालु और असंख्य सम्बन्धों की सूत्रधारिणी। ससुराल में उन्होंने बालिका-वधू रूप में पदार्पण किया था। संभ्रांत जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार उन्हें घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठना पड़ता था, परिणामतः उनकी रीढ़ की हड्डी इस प्रकार झुक गई कि युवती होकर भी वे सीधी खड़ी नहीं हो पाईं।

राजेन्द्र बाबू लेखिका परिचय

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में 26 मार्च, 1907 को हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्रयाग से प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से वह बहुत अधिक परिचित और प्रभावित होने लगीं। उन पर वह लगातार कविताएँ भी लिखने लगी थीं। अपने जीवन में आने वाले सामान्य और विशिष्ट दोनों लोगों के प्रति उनमें आत्मीयता और सहानुभूति की भावधारा आने लगी थी। उन्होंने राष्ट्रीय संकट के समय में अपनी व्यापक मानवीय संवेदना से भरी हुई साहित्यिक रचनाएँ राष्ट्र को दी। कुछ समय बाद वह प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या और फिर उपकुलपति रहीं। उनका निधन 11 सितम्बर, 1987 को हुआ।

रचनाएँ:
‘नीहार’, ‘नीरजा’, दीपशिखा, ‘यामा’ आदि महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्हें ‘यामा’ काव्य-संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्य की विशेषताएँ:
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री हैं। आपने द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, नैतिकता, पौराणिकता और उपदेशात्मकता के अतिरिक्त भावुक मन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियों को संगीतात्मक लय के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। भावुकता की अतिशयता के कारण उन्हें ‘वेदना की कवयित्री’ भी कहा • जाता है। आपके व्यक्तित्व पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

राजेन्द्र बाबू पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर:
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ एक हृदयस्पर्शी संस्मरण है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के प्रेरणादायक स्वरूपों पर प्रकाश डाला है। लेखिका के अनुसार-उसने एक गद्यात्मक वातावरण में जष राजेन्द्र बाबू को पहली बार देखा तो उनमें अकथनीय भावात्मक क्षणों के अनेक रूप झलकते हुए दिखाई दे रहे थे। उस समय वह प्रयाग में बी.ए. की छात्रा थी। शीतकाल में उसने अपने घर जब भागलपुर जाते समय अपने भाई से मिलने की प्रतीक्षा में पटना स्टेशन पर राजेन्द्र बाबू को देखा था। उनका व्यक्तित्व बहुत सहज होते हुए भी बड़ा असहज था। उनकी वेशभूषा बिलकुल देहाती थी। उन्हें देखकर लगता था, मानो वे किसी हड़बड़ी में चलते-चलते कपड़े पहनते आए हैं।

उनकी मुखाकृति को देखकर लगता था, मानो उन्हें कहीं देखा है। उनके शरीर के सारे गठन में एक साधारण भारतीय की आकृति और गठन की झलक थी। इसी प्रकार उनकी प्रतिभा, बुद्धि, स्वभाव और रहन-सहन भी थी। कुल मिलाकर वे भारतीय होने का ही प्रतिनिधित्व करते थे। उनकी अस्त-व्यस्तता जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता से अलग थी। जवाहर लाल जी की अस्त-व्यस्तता भी व्यवस्था से निर्मित होती थी, तो राजेन्द्र बाबू की सारी व्यवस्था ही अस्त-व्यस्तता का पर्याय थी। उनकी वेशभूषा की अस्त-व्यस्तता को ठीक करने में उनके निजी सचिव और सहचर भाई चक्रधर का योगदान सराहनीय रहा। उन्होंने वर्षों तक राजेन्द्र बाबू के पुराने कपड़े से अपने आपको प्रसाधित कर कृतार्थता का अनुभव किया था। इस प्रकार के गुरु-शिष्य या स्वामी-सेवक आज सचमुच में दुर्लभ हैं।

लेखिका का कहना है कि राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में आने का सुअवसर उसे सन् 1937 में प्राप्त हुआ। उस समय वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे और प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय के भवन का शिलान्यास करने प्रयाग आए थे। उन्होंने उसे बताया कि उनकी 15-16 पौत्रियाँ हैं। उनकी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यदि वह उन्हें अपने छात्रावास में रखकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ दिलवा सके, तो वे कुछ शिक्षित हो सकेंगी। इसे सहर्ष स्वीकार कर उसने उन्हें अपने संरक्षण में रख लिया। उसी समय उसे राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी से परिचय प्राप्त हुआ। वह सचमुच में धरती की पुत्री थीं। एक सरल, क्षमामयी, ममतामयी, साध्वी और उदार। सम्भ्रान्त जमींदार परिवार की परम्परा के अनुसार वह घण्टों सिर नीचा करके एकासन में बैठी रहती थीं। इससे

उनकी रीढ़ की हड्डी इतनी झुक गई थी कि वह युवती होने पर भी सीधी खड़ी नहीं हो पाती थीं। फिर भी उन्हें कोई अहंकार नहीं था। सबके प्रति उनकी आत्मीयता थी। संगम में वह स्नान-ध्यान करके बड़ी श्रद्धा से अधिक-से-अधिक दूध-फूल संगम को भेंट कर देती थीं। पंडों. को वह यथोचित दान-दक्षिणा दिया करती थीं। लेखिका का पुनः कहना है कि बालिकाओं के प्रति राजेन्द्र बाबू का स्पष्ट निर्देश था कि वे सामान्य बालिकाओं के साथ संयम और सादगी से रहें। इससे वे एक स्वयंसेविका की तरह सब कुछ कर लेती थीं। जब वे भारत के पहले राष्ट्रपति हुए तब उन्होंने लेखिका को लिखा था-“महादेवी बहन, दिल्ली मेरी नहीं है, राष्ट्रपति भवन मेरा नहीं है।

अहंकार से मेरी पोतियों का दिमाग खराब न हो जाए, तुम केवल इसकी चिन्ता करो। वे जैसी रहती आई हैं, उसी प्रकार रहेंगी। कर्त्तव्य-विलास नहीं, कर्मनिष्ठा है।” उनकी धर्मपत्नी में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वे अन्त तक भारतीय गृहिणी के समान पति, परिवार और परिजनों को खिलाने के बाद ही भोजन करती थीं। उन्होंने लेखिका को एक दर्जन सिरके के बने सूप दिल्ली लाने का आदेश दिया। प्रयाग से प्रथम श्रेणी के डिब्बे में टंग कर दिल्ली स्टेशन आए। फिर उन्हें बड़ी कार में लादा गया। राष्ट्रपति भवन के हर द्वार पर सलाम ठोकने वाले सिपाहियों की आँखें इसे देखकर हैरान हो गईं। सचमुच में ऐसी भेंट लेकर कोई अतिथि न वहाँ पहुँचा था और न पहुँचेगा।

लेखिका का अंत में कहना है कि राजेन्द्र बाबू और उनकी धर्मपत्नी सप्ताह में एक दिन उपवास करते थे। संयोग से वह उनके उपवास के दिन पहुँची तो उन्होंने उनका अतिथि-सत्कार किया। लेखिका भी उनके उपवास में शामिल हो गई। वह आज भी वह शाम नहीं भूल पाई कि किस प्रकार भारत के पहले राष्ट्रपति ने सामान्य आसन पर बैठकर उपवास के बाद कुछ उबले हुए आलू खाकर, पारायण किया था। उसे वही खाते हुए देखकर वे किस प्रकार संतोषकर बच्चों की सरल हँसी से खिल उठे थे। जीवन-मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली थी। उनके मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। जिज्ञासा होती है कि क्या वह साँचा टूट गया, जिसमें ऐसे कठिन-कोमल चरित्र ढलते थे।

राजेन्द्र बाबू संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
काले घने पर छोटे कटे हुए बाल, चौड़ा मुख, चौड़ा माथा, घनी भृकुटियों के नीचे बड़ी आँखें, मुख के अनुपात में कुछ भारी नाक, कुछ गोलाई लिए चौड़ी ठुड्डी, कुछ मोटे पर सुडौल होंठ, श्यामल झाँई देता हुआ गेहुआँ वर्ण, ग्रामीणों जैसी बड़ी-बड़ी मूंछे जो ऊपर के होंठ पर ही नहीं नीचे के होंठ पर भी रोमिल आवरण डाले हुए थीं। हाथ, पैर; शरीर सबमें लम्बाई की ऐसी विशेषता थी, जो दृष्टि को अनायास आकर्षित कर लेती थी।

शब्दार्थ:

  • भृकुटियों – भौंहों।
  • श्यामल – साँवला।
  • गेहुआ – गेहूँ के।
  • ग्रामीण – देहाती।
  • रोमिल – रोएँ।
  • आवरण – पर्दा।
  • दृष्टि – नज़र।
  • अनायास – अचानक।
  • आकर्षित – खींच लेती।

प्रसंग:
प्रस्तत गंद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सामान्य हिन्दी भाग-1’ में संकलित तथा श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा का चित्रण करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूपरेखा बड़ी ही अद्भुत थी। उनके सिर के बाल बहुत काले और घने थे। वे कटे हुए थे। इसलिए बहुत छोटे-छोटे थे। उनका मुँह और माथा चौड़ा था। उनकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं। वे भौंहों के बीच दिखाई देती थीं। उनके मुँह की तुलना में उनकी नाक बड़ी लगती थी। उनकी ठुड्डी गोल थी लेकिन चौड़ी थी। उनके मुँह की आकृति कुछ ऐसी थी कि उनके होंठ सुडौल तो थे, लेकिन भारी और मोटे थे। उनका पूरा शरीर गेहुएँ रंग का तो था, लेकिन वह पूरी तरह ऐसा नहीं था।

उसमें साँवलेपन की कुछ झलक अवश्य थी। उनकी मूंछे भी असाधारण थीं। वे छोटी-छोटी नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी थीं। उन्हें देखने से ऐसा लगता था कि वे किसी देहाती की मूंछों के समान थीं। वे ऊपर के होंठ पर होने के साथ-ही-साथ नीचे के भी होंठ पर रोएँ के पर्दा डाले हुए दिखाई देती थीं। उनके हाथ और पैर भी अद्भुत ही थे। वे लम्बे-लम्बे थे। इससे भी वे देखने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। कहने का भाव यह कि उनकी शारीरिक बनावट को देखकर हर कोई उनकी ओर अपने आप खिंचा चला जाता था।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू के अद्भुत शारीरिक स्वरूप का चित्रण किया गया है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. शब्द-योजना बिम्बात्मक।
  4. यह गद्यांश रोचक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका उल्लेख हुआ है?
  2. प्रस्तुत गद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बांबू का शारीरिक रूप-ढाँचा का चित्रांकन हुआ है।

2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व बड़ा ही सरल और आकर्षक था। वह सबको चकित करने वाला था। यों तो वह बहुत ही सरल और सहज था लेकिन उसका प्रभाव निश्चय ही अमिट और बेजोड़ था। कुल मिलाकर वह एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व था।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से कैसा था?
  2. राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की कौन-सी विशेषता थी?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू का बाहरी व्यक्तित्व मुख्य रूप से देहाती था।
  2. राजेन्द्र बाबू की शारीरिक रूप-रचना की मुख्य विशेषता वह थी, जो किसी को अनायास ही आकर्षित कर लेती थी।

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प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सम्पूर्ण गठन में एक सामान्य भारतीय जन की आकृति और गटन की छाया थी, अतः उन्हें देखने वाले को कोई-न-कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था और वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है। आकृति तथा वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन-सहन में सामान्य भारतीय या भारतीय कृषक का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशिष्टता के साथ-साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।

शब्दार्थ:

  • मुखाकृति – मुँह की बनावट।
  • जन – मनुष्य।
  • आकृति – बनावट।
  • स्मरण – याद।
  • कृषक – किसान।
  • प्रतिभा – तेज।
  • विशिष्टता – विशेषता।
  • संवेदना – गहरा प्रभाव।
  • गरिमा – महत्त्व।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का महत्त्वांकन करते हुए कहा है कि… व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की मुख की बनावट बिलकुल साधारण थी। उसमें भारतीयता की पूरी रूपरेखा दिखाई देती थी। इसी प्रकार उनका शारीरिक गठन भी था। यही कारण था कि उन्हें जो कोई देखता था, उसे यही लगता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं या कभी-न-कभी अवश्य देखा है। इस प्रकार अनुभव करने वाला उनसे अपनापन का भाव रखने का प्रयत्न करने लगता था। लेखिका का पुनः कहना है कि वे अपनी शारीरिक रचना और अपनी वेशभूषा के अनुसार ही अपने स्वभाव और जीवन-स्तर को भी ढाल चुके थे।

यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने स्वभाव और जीवन-स्तर के अनुकूल ही अपनी वेशभूषा को अपना लिया था। इस प्रकार वे अपने स्वभाव, शारीरिक गठन और रहन-सहन के आधार पर एक साधारण भारतीय लगते थे। दूसरे शब्दों में वे एक सच्चे भारतीय किसान के प्रमाण थे। इसी तरह वे अपनी तेज समझ और तीव्र बुद्धि की बहुत बड़ी विशेषता से सम्पन्न थे। इसके साथ-ही-साथ उनमें बहुत अधिक गम्भीरता थी। उस गम्भीरता से वे किसी बात की तह तक पहुँच जाते थे। उनकी इस प्रकार की साधारण विशेषता का महत्त्व सहज ही स्पष्ट हो जाता था।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
  2. यह गद्यांश प्रेरक रूप में है।
  3. भाषा उच्च स्तरीय है।
  4. शैली भावात्मक और वर्णनात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के किन पक्षों पर प्रकाश डाला गया है?
  2. इस गद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में राजेन्द्र बाबू के बाहरी और आन्तरिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. इस गद्यांश का मुख्य भाव है-राजेन्द्र बाबू के आन्तरिक और बाहरी पक्षों का चित्रण कर प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू को देखकर कोई उन्हें क्या समझता था?
  2. राजेन्द्र बाबू किसके द्वारा किसका प्रतिनिधित्व करते थे?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू को देखकर हर कोई यही समझता था कि उसने उन्हें कहीं-न-कहीं अवश्य देखा है।
  2. राजेन्द्र बाबू अपने स्वभाव और अपने रहन-सहन के द्वारा भारतीय या भारतीय किसान का ही प्रतिनिधित्व करते थे।

प्रश्न 3.
बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने का न उन्हें कभी अहंकार हुभा और न उनमें कोई मानसिक ग्रन्थि ही बनी। छात्रावास की सभी बालिकाओं तथा नौकर-चाकरों का उन्हें समान रूप से ध्यान रहता था। एक दिन या कुछ घण्टों ठहरने पर भी वे सबको बुला-बुलाकर उनका तथा उनके परिवार का कुशल-मंगल पूछना न भूलती थीं। घर से अपनी पौत्रियों के लिए लाए मिष्ठान्न में से प्रायः सभी बँट जाता था। देखने वाला यह जान ही नहीं सकता था कि वह सबकी इया, अइया अर्थात् दादी नहीं है।

शब्दार्थ:

  • स्वातंत्र्य – स्वतन्त्र।
  • अपराजेय – पराजित नहीं होने वाला।
  • अहंकार – घमण्ड।
  • मानसिक ग्रन्थि – मन सम्बन्धी दोष।
  • पौत्रियों – पोतियों।
  • मिष्ठान्न – मिठाई।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी के आकर्षक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी साधारण भारतीय महिला होने के बावजूद असाधारण थीं। वे बिहार के एक उच्च जमींदार परिवार की वधू थीं। इसके साथ ही वे स्वतन्त्र युद्ध के अपराजेय सेनानी राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी भी थीं। लेकिन अपनी इन अद्भुत विशेषताओं का न उन्हें कोई अनुभव था और न कोई घमण्ड ही था। इसके लिए उनके मन में कभी कोई विकार या दोष भी नहीं आया। दूसरी बात यह कि उनमें सबके प्रति समानता और अभेद की भावना थी। इसका प्रमाण एक यह भी था कि छात्रावास की सभी छात्राएँ और नौकर-चाकरों से उनका समान व्यवहार होता था।

वे उनके प्रति हमेशा समान व्यवहार करने को पहला महत्त्व दिया करती थीं। इस सन्दर्भ में यह कहना समुचित ही होगा कि जब कभी वे छात्रावास में आती थीं, तब वे सभी छात्राओं और नौकरों-चाकरों को अपने पास बुला लेती थीं। फिर उनका और उनके परिवार सहित उनके सगे-सम्बन्धियों का भी समाचार बड़े प्रेमपूर्वक अवश्य पूछती थीं। वे अपने पोतियों के लिए जो भी मिठाइयाँ लाती थीं, उन्हें सबके बीच उसी समय बाँट देती थीं। उस समय यहाँ जो कोई भी रहता, वह उनकी इस समानता की सोच-समझ और व्यवहार से चकित हो जाता था। फिर वह नहीं समझ पाता कि वह किसकी अपनी दादी हैं और किसकी नहीं।

विशेष:

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी की असाधारण विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
  2. वाक्य-गठन उच्चस्तरीय हैं।
  3. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  4. यह अंश रोचक और हृदयस्पर्शी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव कैसा था?
  2. प्रस्तुत गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:

1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी का स्वभाव बहुत ही सरल, सहज और उदार था। वह किसी को अपरिचित और पराया नहीं समझती थीं। वह सबके प्रति अपनापन का. भाव रखती थीं। इस प्रकार वह एक आदर्श भारतीय नारी थीं।

2. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा लेखिका ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी एक ऐसी आदर्श भारतीय नारी थीं, जिनके लिए अपने-पराये का कोई भेदभाव नहीं था। वह बहुत सरल, स्पष्ट, उदार और विनम्र थीं। उनकी समानता की विशेषता सबको प्रभावित कर मोह लेती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं?
  2. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी किस प्रकार समानता का व्यवहार करती थीं?

उत्तर:

  1. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी बिहार के जमींदार परिवार की वधू और स्वातंत्र्य युद्ध के अपराजेय सेनानी की पत्नी होने के अहंकार और मानसिक ग्रन्थि से दूर थीं।
  2. राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी सबका कुशल-मंगल पूछा करती थीं। अपनी कोई भी चीज वह सबको बाँट देती थीं। इस प्रकार वह समानता का व्यवहार करना कभी भी नहीं भूलती थीं।

प्रश्न 4.
जीवन मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि मिली और मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजातशत्रु बना दिया। अनेक बार प्रश्न उठता है, क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।

शब्दार्थ:

  • परख – पहचान।
  • उपाधि – सम्मान।
  • अजातशत्रु – शविहीन, जिसका कोई शत्रु न हो!
  • साँचा – वह साधन, जिसमें गीली वस्तु डालकर उसी के आकार की दूसरी और वस्तुएँ ढाली जाती हैं।

प्रसंग:
पूर्ववत्! इसमें लेखिका ने राजेन्द्र बाबू की महानता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि व्याख्या-राजेन्द्र बाबू की सबसे बड़ी महानता यह थी कि उन्हें जीवन-मूल्यों की बहुत बड़ी पहचान थी। इसी कारण उन्हें ‘देशरत्न’ की उपाधि देकर उनका बहुत बड़ा मूल्यांकन किया गया था। उनके व्यक्तित्व की दूसरी बहुत बड़ी विशेषता थी उनके मन की सरलता, सहजता, स्पष्टता और स्वच्छता। इसी विशेषता के बलबूते पर वे अजातशत्रु के रूप में याद किए जाते हैं। उनकी इस प्रकार की महानता और विशेषता की कमी आज के महापुरुषों में दिखाई देती है। इससे यह स्वाभाविक रूप से जिज्ञासा होती है कि इस प्रकार की विशेषता को तैयार करने वाला साँचा क्या आज नहीं है, जो राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन किन्तु सरल और सरस चरित्रों को ढाल सके।

विशेष:

  • राजेन्द्र बाबू की बेजोड़ व्यक्तित्व को स्पष्ट करने पर प्रयास किया गया है।
  • भाषा की शब्दावली तत्सम शब्दों की है।
  • भावात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोतर
प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को ‘देश रत्न’ को उपाधि क्यों मिली?
उत्तर:
राजेन्द्र बाबू में जीवन-मूल्यों की पहचान करने की अद्भुत दृष्टि थी। इसीलिए उन्हें देशरत्न’ की उणधि दी गई।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
आज किस साँचे का. अभाव दिखाई देता है?
उत्तर:
आज उस साँचे का अभाव दिखाई देता है, जिसमें राजेन्द्र बाबू जैसे कठिन और कोमल दोनों ही प्रकार के चरित्र ढलते थे।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत (कविता, भवानी प्रसाद मिश्र)

नई इबारत पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

नई इबारत लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने सोने से पहले कौन-से दो काम करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने सोने से पहले ‘कुछ लिख के और कुछ पढ़के’ ये दो काम करने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
खेलते समय कौन-सी सावधानी रखना है?
उत्तर:
खेलते समय समझ-बूझ करके और किसी प्रकार की जिद न करके खेलते जाने की सावधानी रखना है।

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प्रश्न 3.
कवि ने खेत की क्या विशेषता बताई है?
उत्तर:
कवि ने खेत की विशेषता बताई है कि वे खुले-फैले और धानी हैं। वे कभी-कभी हवा से डोलते हैं। वे कभी-कभी बरसात के झोकों से गद्गद हो उठते हैं। इस तरह वे कभी-कभी हर प्रकार की खुश्क और तर की शक्ति से प्रभावित होते रहते हैं।

नई इबारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर:
कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि हमें जीवन में आगे बढ़ते जाने के लिए हर समय कुछ-न-कुछ करते रहना चाहिए। इसके लिए कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों-प्रतिरूपों के उदाहरण देकर यह सिद्ध करना चाहा है कि प्रकृति कभी भी निष्कर्म नहीं रहती है। वह पल-पल कर्मरत रहती है। इससे वह आने वाले हर दुःखों और कठिनाइयों का सामना करती हुई हमेशा आगे बढ़ती जाती है। प्रकृति के इस प्रक्रिया से हमें प्रेरणा लेकर अपने जीवन को समुन्नत और महान बनाते रहने का हमेशा ही प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 2.
कविता में प्रकृति के माध्यम से कवि ने कुछ सन्देश व्यक्त किए हैं, उनमें से किन्हीं दो को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता में प्रकृति के माध्यम से कवि ने कुछ सन्देश व्यक्त किए हैं। उनमें दो इस प्रकार हैं –

  1. सूरज ने किरणों की कलम से इबारत लिखी।
  2. हवा ने मन-ही-मन कुछ गुनगुनाया।

1. सूरज ने किरणों की कलम से इबारत लिखी:
उपर्युक्त सन्देश के द्वारा कवि ने मनुष्य को अपने पुरुषार्थ और कड़ी मेहनत से अपने जीवन को सुखद बनाने का सन्देश दिया है।

2. हवा ने मन ही मन कुछ गुनगुनाया:
उपर्युक्त सन्देश के द्वारा कवि ने मनुष्य को अपने जीवन में आने वाले दुखों और कठिनाइयों को डटकर खुशी-खुशी और बेफिक होकर सामना करने का सन्देश दिया है।

प्रश्न 3.
निष्क्रियता के सम्बन्ध में कवि ने कैसे संकेत किया है?
उत्तर:
निष्क्रियता के सम्बन्ध में. कवि ने इस प्रकार संकेत किया है –
“बिना समझे बिना बूझे खेलते जाना,
एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना,
गलत है, बेसूद है, कुछ रचके सो, कुछ गढ़के सो।”

नई इबारत भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांश की व्याख्या कीजिए –

  1. “तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़ के सो।”
  2. “दिनभर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की।
    बन्द घर की खुले फैले खेत धानी की।”
  3. ‘एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना।’
  4. ‘जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी।’

उत्तर:

1. “तू जिस जगह जागा सबेरे, उस जगह से बढ़के सो”:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह प्रकट करना चाहा है कि हमें अपने दैनिक जीवन में कुछ-न-कुछ श्रेष्ठ और प्रशंसनीय कार्य करते रहना चाहिए। इससे हमारा जीवन सार्थक और सफल हो सकेगा। फलस्वरूप हमें सुख और शान्ति प्राप्त होगी। यह सुख और शान्ति दूसरे के लिए सन्देश-स्वरूप होगी। खासतौर से उलझे, मुरझाए, हारे, थके और असफल लोगों के लिए। ऐसा करके ही हम दिन-प्रतिदिन अपने जीवन को आगे बढ़ा हुआ पा सकते हैं। यह तभी सम्भव है, जब हम जो कुछ करें, सोच-विचार कर करें। दृढ़संकल्प लेकर करें।

2. “दिन-भर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की।
बन्द घर की खुले-फैले, खेत धानी की।”

उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि हमें अपने जीवन की एक-एक बातों का एक इबारत की तरह महत्त्व देना चाहिए। हमें अपने जीवन को सार्थक और उपयोगी बनाने के लिए प्रकृति के स्वच्छन्द स्वरूप को महत्त्व देते हुए उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दृष्टि से हमें पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले खेत धानी की स्वच्छन्दता को अपने अन्दर उतारकर हमेशा हौसला रखते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।

3. “एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए समझ-बूझ को साथ रखना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ हमें किसी बच्चे की तरह कोई जिद या हठ लेकर नहीं बैठ जाना चाहिए। इससे हमारा जीवन आगे न बढ़कर वहीं जाम हो जाता है। यह एक सुखद और सफल जीवन के लिए किसी प्रकार अनुकूल और उचित नहीं है।

4. “जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी”:
उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने यह भाव प्रकट करना चाहा है कि हमें जीवन में हमेशा ही आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि हम नदी पर मचलती हुई एक लहर की तरह बड़े ही स्वच्छन्द और उमंग के साथ सामने वाली हर कठिनाइयों का सामना करते चलें। इसी से हमारे जीवन की सार्थकता सिद्ध होगी।

नई इबारत भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
कविता में आए निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
खुश्क, उठा, बेसूद, जागना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 9 नई इबारत img-1

नई इबारत योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
कवि ने सोने से पहले आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है, क्या आप प्रतिदिन विचार करते हैं, आपने आज क्या प्राप्त किया जो आपके जीवन को लक्ष्य की ओर प्रेरित कर सके। उन विचारों को सोने के पूर्व डायरी विधा में लिखने की आदत विकसित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
इसी प्रकार की प्रेरणाप्रद कविताओं को संकलित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
प्रेरणा देने वाली ऐसी ही अन्य कविताओं का संकलन कर उसे सुस्पष्ट अक्षरों में लिखकर विभिन्न अवसरों पर अपने साथियों को भेंट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

नई इबारत परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

नई इबारत लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने जगने के बाद क्या काम करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने जगने के बाद उस जगह से आगे बढ़कर सोने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 2.
कवि ने कौन-सी इबारत के सुनहरे वर्क से मंन मढ़के सो जाने के लिए कहा है?
उत्तर:
कवि ने पेड़-पत्ती और पानी, बन्द घर की खुली-फैले खेत, धानी की, हवा की, बरसात की, हरेक खुश्क की, दिन-भर अपने और दूसरे की इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के सो जाने के लिए कहा है।

प्रश्न 3.
पंछी ने किसका नाम लेकर पुकारा?
उत्तर:
पंछी ने, सूरज ने अपने किरण की कलम से जो लिखा, उसी को पंछी ने नाम लेकर पुकारा।

नई इबारत दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने प्रकृति के किन-किन को किस रूप में चित्रित किया है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को चित्रित किया है। कवि द्वारा चित्रित ये रूप हैं-सुबह-शाम, पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले धानी खेत, हवा, बरसात, सूखा, नम, दैनिक क्रिया-व्यापार, सूरज, उसकी किरणें, पंछी, हवा, लहर, नदी आदि। इन्हें कवि ने प्रेरणादायक रूप में चित्रित किया है। यह इसलिए कि इनसे प्रेरणा लेकर मनुष्य अपने जीवन को महान बना सके।

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प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता में सुबह जागना और रात को सोना का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में सुबह जागना और रात को सोना का भाव प्रेरक रूप में है। ये दोनों ही भाव जीवन मे आगे बढ़ते जाने के लिए प्रयुक्त हुए हैं। इनके माध्यम से कवि ने हमारे जीवन में उत्साह को लाते हुए हमेशा अपने को महान बनाने का सुझाव दिया है। उसका यह कहना है कि जब रात को सोते हैं, उससे पहले कुछ अच्छा और सराहनीय काम करें। फिर सुबह जगने पर और कुछ पहले से सराहनीय करने का दृढ़ संकल्प लें।

प्रश्न 3.
‘नई इबारत’ कविता के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन में उत्साह का संचार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है। उनके अनुसार जिस स्थिति में हम सुबह जागते हैं, उसी स्थिति में यदि रात्रि को सो जाते, हैं, तो हमारा जीवन अर्थपूर्ण नहीं हो पाता है। निरर्थक जिद किए बगैर कुछ रचके, कुछ गढ़के ही जीवन को सृजनात्मक बनाया जा सकता है। प्रकृति का सम्पूर्ण कार्य-व्यापार जीवन के नए पृष्ठ खोलने वाला है। प्रकृति की इस कर्म-शीलता से प्रेरणा लेकर जीवन में कठिनाइयों का सामना किया जाना ही उपयुक्त है। इस तरह के दृढ़निश्चय से ही जीवन के महत्त्व को प्रतिपादित किया जा सकता है।

नई इबारत कवि-परिचय

प्रश्न 1.
भवानी प्रसाद मिश्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म मध्य-प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में 28 मार्च 1914 को हुआ था। उनका आरम्भिक जीवन बड़े संघर्षों में बीता। उन्होंने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की। 1942 के ‘भारत-छोड़ो’ आन्दोलन में उनका सक्रिय योगदान था। परिणामस्वरूप उन्हें तीन वर्ष का कारावास मिला। कारावास की अवधि में भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। सन् 1946 ई. से 1950 ई. तक उन्होंने वर्धा के महिला आश्रम में शिक्षण-कर्म किया। लगभग एक वर्ष तक “राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा” से सम्बद्ध रहे।

सन् 1952 से 1955 तक वे ‘कल्पना’ (हैदराबाद) के सम्पादन-विभाग से जुड़े रहे। इसके पश्चात् उन्होंने आकाशवाणी के बम्बई केन्द्र के “विविध भारती” कार्यक्रम का निर्देशन कार्य सँभाला। गाँधी जी के जीवन-दर्शन तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं से वे विशेष रूप से प्रभावित हुए। जीवन के अन्तिम दिनों तक वे “गाँधी स्मारक निधि व सर्वसेवा संघ” से जुड़े रहे।

रचनाएँ:
श्री भवानी प्रसाद की मुख्य रचनाएँ हैं-‘गीत फरोश’, ‘चकित है दुःख’, ‘अँधेरी कविताएँ’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘खुशबू के शिलालेख’, ‘कवितान्तर’, ‘त्रिकाल संध्या’ तथा ‘शतदल’ आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ:
मिश्रजी सदा सरल व सहज भाषा-प्रयोग के पक्षपाती रहे हैं। सादगी व सरलता उनकी शैली की एक प्रमुख विशेषता है। उनकी कविताओं में एक ओर तो गाँधीवादी विचारधारा की अभिव्यक्ति मिलती है तो दूसरी ओर प्रकृति की विभिन्न छवियों की सजीव व सचित्र अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी कविताओं में कहीं-कहीं आदर्शवाद व उपदेशात्मकता का भी स्वर मुखरित हुआ है।

नई इबारत पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
भवानी प्रसाद मिश्र विरचित कविता ‘नई इबारत’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भवानी प्रसाद मिश्र विरचित कविता ‘नई इबारत’ एक उत्साहबर्द्धक कविता है। इसमें कवि ने हमें हमेशा आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान किया है। कवि का कहना है कि हमें सोने से पहले कुछ लिख-पढ़कर ही रात को सोना चाहिए। इस प्रकार जब सुबह नींद खुले तो हम आगे बढ़ते हुए स्वयं को पाएं। एक बच्चे की तरह हमें बिना कुछ समझे-बूझे जिद करके बैठे रहना नहीं चाहिए। यह बिल्कुल ही गलत है। हमें तो जीवन में हमेशा ही कुछ रचते-गढ़ते रहना चाहिए। हमें तो दिनभर पेड़-पत्ती, पानी, खुले-फैले खेत, हवा, बरसात, नमी की इबारत के सुनहरे बर्फ से मन को मढ़कर रात को चुपचाप सो जाना चाहिए कि सवेरे नींद खुलने पर हम अपने को उस जगह से बढ़ा हुआ पा सकें।

कवि का पुनः कहना है कि सूरज ने किरणों की कलम से जो कुछ लिखा, उसे चिड़ियों ने पढ़ लिया। हवा ने जो कुछ गुनगुनाया, बरसात ने जो कुछ जल बरसाया और जो इबारत एक लहर की तरह नदी पर दिखाई दी, उस इबारत की यदि सीढ़िया हैं, तो हमें उस पर चढ़कर रात को ऐसे सो जाना चाहिए कि सुबह नींद खुलने पर हमें पहले से स्वयं को आगे बढ़ा हुआ पा सकें।

नई इबारत संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
कुछ लिखके सो कुछ पढ़के सो,
तू जिस जगह जागा सबेरे,
उस जगह से बढ़के सो।
जैसा उठा वैसा गिरा जाकर बिछौने पर,
तिफ्ल जैसा प्यार यह जीवन खिलौने पर,
बिना समझे बिना बूझे खेलते जाना,
एक जिद को जकड़ लेकर ठेलते जाना,
गलत है बेसूद है कुछ रचके सो कुछ गढ़के सो,
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।

शब्दार्थ:

  • तिफ्ल – बच्चा।
  • बेसूद – व्यर्थ, निरर्थक।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा विरचित कविता ‘नई इबारत’ शीर्षक से उद्धत है। इसमें कवि ने हमारे जीवन में उत्साह का संचार करते हुए हमें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हमें कुछ लिखकर और कुछ पढ़कर रात को सोना चाहिए। फिर सुबह नींद खुलने पर पहले से स्वयं को आगे बढ़ा हुआ पाना चाहिए। कहने का भाव यह है कि जीवन में हमें हमेशा कुछ-न-कुछ ऐसे महान कार्य करते रहना चाहिए, जिससे हम हमेशा विकास करते हुए आगे बढ़ते जाएँ। कवि का पुनः कहना है कि जिस प्रकार कोई बच्चा बिछौने पर उठता-गिरता है, वैसे ही यह हमारा प्यारा जीवन समय रूपी खिलौने पर मचलता रहता है। यह एक नासमझ बच्चे की तरह बिना कुछ समझे-बूझे खेलता रहता है। वह एक बच्चे की तरह एक जिद को जकड़कर ठेलते जाता है। यह सचमुच में गलत है और व्यर्थ है। हमें तो कुछ-न-कुछ रचके और गढ़ के ही रात को सोना चाहिए। सुबह जब नींद खुले तो हम अपने-आपको पहले से आगे बढ़ा हुआ पाएँ।

विशेष:

  1. भाव प्रेरक रूप में है।
  2. शैली प्रेरणादायक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।
  4. प्रगतिशील विचारधारा है।
  5. शब्द मिश्रित हैं।

पद्यांश आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
  3. कवि ने बच्चे के उदाहरण से कौन-सी समानता लाने का प्रयत्न किया है?

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि का कथन बड़ा ही सरस और हृदय को छूने वाला है। जीवन में हमेशा आगे बढ़ते जाने की कवि द्वारा प्रेरणा देना अधिक उत्साहबर्द्धक है। यह निराश, उदास और जीवन में हारे हुए व्यक्तियों के सोए हुए भावों को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रेरित करने वाला है। भाकों को जगाने के लिए कवि का मार्गदर्शन बड़े ही सटीक रूप में हुआ है। इस प्रकार यह पूरा पद्यांश अधिक सरस और भावबर्द्धक है।

2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना सरल और हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दों की है। तुकान्त शब्दावली के द्वारा वीर रस का संचार अधिक आकर्षक रूप में हुआ है। नपे-तुले भावों को नपे-तुले बिम्बों और प्रतीकों द्वारा प्रेरणादायक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इससे यह पद्यांश सराहनीय है।

3. कवि ने बच्चे के उदाहरण से जीवन में असफल और लापरवाह रहने वाले लोगों के निरर्थक जीवन की समानता लाने का प्रयास किया है। इससे कवि के कहने का आशय सुस्पष्ट और प्रभावशाली बन गया है।

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प्रश्न 2.
दिन-भर इबारत पेड़-पत्ती और पानी की
बन्द घर की खुले-फैले खेत धानी की
हवा की बरसात की हर खुश्क की तर की
गुजरती दिनभर रही जो आप की पर की
उस इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के सो
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।
लिखा सूरज ने किरन की कलम लेकर जो
नाम लेकर जिसे पंछी ने पुकारा सो
हवा जो कुछ गा गई बरसात जो बरसी
जो इबारत लहर बनकर नदी पर दरसी
उस इबारत की अगरचे सीढ़ियाँ हैं चढ़के सो
तू जिस जगह जागा सबेरे उस जगह से बढ़के सो।

शब्दार्थ:

  • इबारत – लेख, रचना।
  • खुश्क – शुष्क, सूखा।
  • तर – सरस, रसमय, भींगा।
  • पर की – दूसरों की।
  • वर्क – सोने या चाँदी का अत्यन्त पतला पत्तर।
  • दसी – दिखी।
  • अगरचे – यदि।

प्रसंग – पूर्ववत्!

व्याख्या:
दिन-भर पेड़-पत्ती और पानी बन्द घर की, खले-फैले खेत-धानी की. हवा की, बरसात की, हरेक सूखापन और नमी की, अपने पर दिन-भर बीती बातों की और ऐसी अनेक बातों की सुनहरे वर्क के समान रचना मन में गढ़ते हुए चुपचाप रात को सो जाना चाहिए। इस प्रकार हम जब सुबह जगें, तो हम अपने आपको पहले से बढ़ा हुआ पावें। कहने का भाव यह है कि हमें हमेशा ही कुछ-न-कुछ करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करना चाहिए। कवि का पुनः कहना है कि सूरज ने अपनी किरणों की कलम से जो कुछ लिखा, उसे पंछी ने उसी नाम से पुकारा। हवा ने जो कुछ गुनगुनाया, बरसात ने जो कुछ बरसाया और जो इबारत लहर बनकर नदी पर दिखाई दी, अगर उस इबारत की सीढ़ियाँ हैं, तो उस पर हमें चढ़कर रात को सो जाना चाहिए। फिर सुबह जब हम जगें तो हम अपने आपको पहले से कहीं आगे पावें। दूसरे शब्दों में, हमें हमेशा ही कुछ-न-कुछ करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए।

विशेष:

  1. प्रस्तुत पद्यांश भाववर्द्धक और आकर्षक है।
  2. शैली दृष्टान्त है।
  3. इस पद्यांश का मुख्य अलंकार मानवीकरण है।
  4. भाषा उर्दू के प्रचलित शब्दों और हिन्दी के सहज शब्दों की है।
  5. तुकान्त योजना है।
  6. वीर रस का संचार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव बतलाइए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि द्वारा मनुष्य ने निरन्तर कर्मरत होने का उत्साह-पूर्ण भाव भरने का प्रयास अधिक सराहनीय सिद्ध हुआ है। इसके लिए कवि ने खुली प्रकृति के प्रत्येक स्वरूप की कर्मशीलता का भावपूर्ण चित्रांकन किया है। उन भावों को ‘इबारत के सुनहरे वर्क से मन मढ़के’ कहने का दृष्टान्त निश्चय ही सोए हुए भावों को जगाने की दिशा में एक सफल प्रयास कहा जा सकता है। सूरज, पंछी, हवा, बरसात आदि के उपमान बड़े ही भाववर्द्धक और प्रेरक हैं।

2. प्रस्तुत पद्यांश की दृष्टान्त-योजना न केवल उत्साहवर्द्धक है, अपितु अधिक सटीक और विषय के अनुकूल है। इसे सार्थक, प्रभावशाली और भावपूर्ण बनाने के लिए भाषा के शब्द-चयन सरल और सुबोध हैं। सूरज, पंछी, हवा और बरसात को मनुष्य की तरह कर्मरत रहने का उल्लेख मानवीकरण अलंकार का अनूठा उदाहरण है। इसमें चित्रात्मकता नामक विशेषता आ गई है। वीर रस के प्रवाह से प्रेरणादायक शैली हृदयस्पर्शी रूप में प्रवाहित हुई है।

3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-मनुष्य के सोए हुए भावों को जगाकर उसे निरन्तर कर्मरत बनाकर विकास करते जाने का उत्साह प्रदान करना।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि ने किसे सुनहरे वर्क से मन को मढ़ने को कहा है?
  2. ‘जिस जगह जागा, सवेरे उस जगह से बढ़के सो’ का क्या आशय है?

उत्तर:

  1. कवि ने दिन-भर पेड़, पत्ती, पानी, बन्द घर, खुले-फैले खेत धानी, हवा, बरसात, सूखा, नमी आदि की इबारत के सुनहरे वर्क से मन को मढ़ने को कहा है।
  2. ‘जिस जगह जागा, सवेरे उस जगह से बढ़के सो’ का आशय यह है कि हम जो आज हैं आने वाले कल से कहीं बेहतर हों।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम (निबंध, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

देश-प्रेम पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम का दावा कौन नहीं कर सकता?
उत्तर:
जो हृदय संसार की जातियों के बीच अपनी जाति की स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर सकता, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता।

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प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी कैसी दशा होगी?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी दशा अपनी परम्परा से सम्बन्ध तोड़कर नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों के समान होगी।

प्रश्न 3.
साँची की प्रसिद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
साँची की प्रसिद्धि का कारण है-बहुत सुन्दर छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर स्थित होना, जिसके नीचे छोटा-मोटा जंगल है।

प्रश्न 4.
लेखक ने किस मौसम में साँची की यात्रा की थी?
उत्तर:
लेखक ने वसन्त ऋतु में साँची की यात्रा की थी।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम क्यों कहा गया है?
उत्तर:
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम कहा गया है। यह इसलिए कि इसके बिना सच्चा देश-प्रेम सम्भव नहीं है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें हम बराबर अपनी आँखों से देखते रहते हैं, जिनकी बातें हम हमेशा सुनते रहते हैं। इस प्रकार जिनसे हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, उनसे हमारा गहरा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। यह सम्बन्ध स्थापित हो जाना ही साहचर्यगत प्रेम है।

प्रश्न 2.
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में क्या कहा है?
उत्तर:
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में यह कहा है –

“नैनन सों ‘रसखान’ जबै ब्रज के वन, बाग, तड़ाग निहारौं।
केतिक वे कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥”

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प्रश्न 3.
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने किन-किन बातों पर बल दिया है?
उत्तर:
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया है –

  1. घर से बाहर निकलकर और अपनी आँखें खोलकर देखना चाहिए कि खेतों में हरियाली कैसी लहलहा रही है।
  2. झाड़ियों के बीच नाले किस प्रकार कल-कल स्वर करते हुए बह रहे हैं।
  3. दूर-दूर तक पलाश के लाल-लाल फूल कैसे खिल रहे हैं और उनसे धरती कैसे लाल हो रही है।
  4. कछारों में पशुओं के झुण्ड चराते हुए चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं।
  5. आमों के बागों के बीच गाँव कैसे. झाँक रहे हैं। उन गाँवों के लोगों से किसी पेड़ की छाया में कुछ देर बैठकर बातें करें कि ये सब हमारे ही देश के हैं।

प्रश्न 4.
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन किस सन्दर्भ में कहा गया है?
उत्तर:
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन अपने देश का महत्त्व भूलकर दूसरे देश के महत्त्व को समझने वाले गुलामी मानसिकता के शिकार लोगों की सोच-समझ के सन्दर्भ में कहा गया है। इस कथन के द्वारा लेखक ने यह बतलाना चाहा है कि देश-प्रेम होना और स्वदेशीपन की पहचान रखना आजकल के शहरी बाबुओं के लिए लज्जा का एक विषय हो रहा है।

देश-प्रेम भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।
  2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
  3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।

उत्तर:
1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है:
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि स्वदेश-प्रेम स्वतन्त्र सत्ता के अनुभव बिना नहीं हो सकता है। जो जाति या प्राणी अपनी स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर पाता है, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता है। स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय अपने स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता ही है। इसलिए देश-प्रेम तभी सम्भव है, जब कोई देशवासी स्वतन्त्रतापूर्वक अपने देश के एक-एक रूप की स्वतन्त्रता की पहचान करे। उससे . लगाव रखे। उसके साथ रहे। उसे चाहभरी दृष्टि से देखे और उसकी याद में आँसू बहाए।

2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि देश-प्रेम विशुद्ध प्रेम होता है। उसमें किसी प्रकार के लाभ-हानि की सोच-समझ नहीं होती है। इस प्रकार की सोच-समझ रखने वाले देश-प्रेमी नहीं हो सकते हैं। वे तो अर्थशास्त्री हो सकते हैं, जो देश की दशा या प्रत्येक देशवासी की औसत आमदनी का परता बता सकते हैं। लेकिन देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार सच्चा देश-प्रेमी तो अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह देश के प्रत्येक स्वरूप के साथ हर घड़ी सम्बन्ध बनाए रहता है। उसके प्रति हित-चिन्तन किया करता है। इसके लिए वह किसी लाभ-हानि की बात वह तनिक भी नहीं सोचता समझता है। वह यह भलीभाँति जानता है उसका कर्तव्य है देश-प्रेम करना, हिसाब-किताब करना नहीं। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े के भी हो सकते हैं, लेकिन देश-प्रेम करने वाले भाड़े के कभी नहीं हो सकते हैं।

3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि परिचय से ही लगाव होता है। यह लगाव धीरे-धीरे प्रेम में बदल जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है। हम अपने दैनिक जीवन में यह देखते हैं कि पशु-बालक भी जिनके साथ रहते हैं। उनसे परच जाते हैं। इससे उनका परस्पर प्रेम हो जाता है। वह प्रेम बिना किसी लाभ-हानि का होता है। यह इसलिए परिचय से उत्पन्न हुआ प्रेम शुद्ध हृदय से ही होता है। यह बहुत ही टिकाऊ और सरस होता है।

देश-प्रेम भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
‘भव’ से पूर्व ‘अनु’ जोड़कर ‘अनुभव’ बना है। ‘अनु’ उपसर्व जोड़कर पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-1

प्रश्न 2.
‘देश-प्रेम’ में तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास के पाँच उदाहरण लिखिए।
उत्तर:

  1. भातृ-प्रेम
  2. हठयोग
  3. राजपुरुष
  4. राजपुत्र और
  5. दुख-सागर।

प्रश्न 3.
निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
आख, पेड़, वन, पर्वत, देहात।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-2

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार परिवर्तित कर लिखिए –

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल है। (निषेधात्मक)
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर नहीं है। (विधानवाचक)
  3. महुआ की महक आ रही है। (प्रश्नवाचक)
  4. किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है? (विस्मयादि बोधक)
  5. तुम चुपचाप काम करते हो। (आज्ञावाचक)

उत्तर:

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल नहीं है।
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर है।
  3. क्या महुआ की महक आ रही है?
  4. ओह! किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है।
  5. तुम चुपचाप काम करो।

देश-प्रेम योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के किसी प्राकृतिक स्थल के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख देशभक्तों के चित्रों का संकलन कर एक अलबम बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
“मातृभाषा प्रेम देश-प्रेम का द्योतक है।” विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
मध्यप्रदेश के लेखकों की देशभक्ति पूर्ण रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

देश-प्रेम परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र सत्ता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।

प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलकर ‘भारतवासियों ने क्या किया?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलकर भारतवासियों ने संसार में सुख-समृद्धि तो प्राप्त की लेकिन उदात्तवृत्तियों को उत्तेजित करने वाली बँधी-बँधाई परम्परा से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया और नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों में अपना नाम लिखाया।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सच्चे देश-प्रेमी की क्या पहचान होती है?
उत्तर:
सच्चे देश-प्रेमी की निम्नलिखित पहचान होती है –

  1. वह अपने देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, नाले, झरने आदि से प्रेम करेगा।
  2. वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखेगा।
  3. विदेश में होने पर वह अपने देश के स्वरूप को याद करके तरसेगा और आँसू बहाएगा।
  4. वह अपने देश के प्रत्येक दशा को जानने के लिए उत्सुक रहेगा।
  5. वह अपने देश के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझने का प्रयास करता रहेगा।

प्रश्न 2.
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
उत्तर:
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने इसलिए कहा कि आजकल के बाबुओं अर्थात् पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता में शिक्षित और अभ्यस्त लोगों को अपने देश के स्वरूप का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। उन्हें तो विदेशी स्वरूप और दशा का ही ज्ञान और पता होता है। इसलिए वे विदेशी स्वरूप को ही महत्त्व देते हैं। उसका ही गुणगान करते हैं। अगर उनके सामने कोई देश-प्रेम की बात करता है, तो उससे वे अपनी मानहानि समझकर उसे महत्त्वहीन सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे देश के स्वरूप से अनजान रहने या बनने में अपनी बड़ी शान समझते हैं।

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प्रश्न 3.
‘देश-प्रेम’ निबन्ध के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘देश-प्रेम’ निबन्ध आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का एक ज्ञानवर्द्धक निबन्ध है। इसमें लेखक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि देश-प्रेम हृदय का शुद्ध और पवित्र भाव है। यह उसी के हृदय में उत्पन्न होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप का परिचय और अनुभव प्राप्त होता है। अपने देश के लोक-जीवन के प्रति अनुराग (लगाव) और उसकी शान्ति और उन्नति के लिए हमेशा प्रयत्नशील होने वाला ही सच्चा देश-प्रेमी होता है। परिचय और साहचर्य ही प्रेम के प्रवर्तक होते हैं। इसलिए अपने देश के सभी प्राणियों और प्रकृति के साथ हमारा जितना घनिष्ठ सम्बन्ध होगा, उतना ही हमारा देश-प्रेम मजबूत और परिपूर्ण होगा। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि देश-प्रेम न कोई बाहरी दिखावा है और न कोई शाब्दिक हिसाब-किताब का विषय ही।

देश-प्रेम लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य की सूक्ष्म और परिपक्व रूप में देखने-परखने और मूल्यांकन की परम्परा रामचन्द्र शुक्ल ने दी। इस अभूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें आचार्य की उपाधि प्रदान की गई। इतिहास और काव्य के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल की भूमिका अधिक चर्चित है।

जीवन-परिचय:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार तथा समीक्षक हैं। आपका जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। विधिवत् शिक्षा तो वे इण्टरमीडिएट तक ही प्राप्त कर सके। शुक्लजी ने आरम्भ में मिर्जापुर के मिशन स्कूल में पढ़ाया। जब काशी में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘हिन्दी शब्द सागर’ का सम्पादन आरम्भ हुआ, तो शुक्लजी को वहाँ कार्य करने का मौका मिला फिर हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बने। शुक्लजी ने अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत तथा हिन्दी के प्राचीन साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया।

शुक्लजी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश ‘आनन्द-कादम्बिनी’ पत्रिका के सम्पादन से हुआ जिसका सम्पादन उन्होंने कई वर्षों तक कुशलतापूर्वक किया था। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी सभा में ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सहयोगी नियुक्त हुए थे। इसके बाद आपने ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका का कई वर्षों तक कुशलता के साथ सम्पादन किया। साहित्य-सेवा करते हुए शुक्लजी ने 8 फरवरी, 1941 को अन्तिम साँस ली।

रचनाएँ:
यों तो शुक्लजी प्रमुख रूप से निबन्धकार और समालोचक के रूप में ही सुविख्यात हैं लेकिन इसके साथ ही कवि भी रहे हैं। यह बहुत कम चर्चा में है। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

1. निबन्ध-संग्रह:

  • विचार-वीथी
  • चिन्तामणि भाग 1-2
  • त्रिवेणी।

2. समालोचना:

  • जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ।

3. इतिहास:

  • हिन्दी-साहित्य का इतिहास
  • काव्य में रहस्यवाद

4. कविता-संग्रह:

  • वसन्त
  • पथिक
  • शिशिर-पथिक
  • हृदय का मधुर भार
  • अभिमन्यु-वध।

5. सम्पादन:

  • हिन्दी शब्द-सागर
  • नागरी-प्रचारिणी पत्रिका
  • तुलसी
  • जायसी।

6. अनुवाद:

  • शशांक
  • बुद्ध-चरित
  • कल्पना का आनन
  • आदर्श-जीवन
  • मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन
  • राज्य प्रबन्ध-शिक्षा
  • विश्वप्रपंच।

भाषा-शैली:
शुक्लजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है। उसमें कहीं-कहीं तद्भव शब्द भी आए हैं। मुख्य रूप से आपकी भाषा गम्भीर, संयत, भावपूर्ण और सारगर्भित है। आपके शब्द चयन ठोस, संस्कृत और उच्च-स्तरीय हैं। उर्दू, अंग्रेजी और फारसी शब्दों के प्रयोग कहीं-कहीं हुए हैं। अधिकतर संस्कृत और सामाजिक शब्द ही आए हैं। शुक्लजी की शैली गवेषणात्मक, मुहावरेदार और हास्य-व्यंग्यात्मक है। इससे विषय का प्रतिपादन सुन्दर ढंग से हुआ है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि शुक्लजी की भाषा-शैली, विषयानुकूल होकर साभिप्राय और सफल है।

व्यक्तित्व:
शुक्लजी का व्यक्तित्व सर्वप्रथम कविमय व्यक्तित्व था जो उत्तरोत्तर समीक्षक और निबन्धकार सहित इतिहासकार के रूप में बदलता गया। इस प्रकार शुक्ल जी का व्यक्तित्व विविध है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि शुक्लजी युग-प्रवर्तक प्रधान व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं।

देश-प्रेम पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ एक भाववर्द्धक और प्रेरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के स्वरूप और उसकी विशेषताओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक के अनुसार देश-प्रेम एक ऐसा प्रेम है जो देश के स्वरूप से परिचित होने से प्राप्त होता है। देश के प्रत्येक स्वरूप को अर्थात् उसके मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि के बीच रहने, उसे हमेशा देखने, अनुभव आदि के द्वारा उसके प्रति लोभ या राग उत्पन्न होना ही देश-प्रेम है। यदि. यह नहीं है तो देश-प्रेम की बातें करना कोरी बकवाद है या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

इस प्रकार यदि किसी को अपने देश से सच्चा प्रेम होगा तो वह उसके प्रत्यके स्वरूप आदि की याद विदेशों में भी करते हुए उसके लिए तरसता रहेगा। इसीलिए कविवर ‘रसखान’ तो किसी की ‘लकुटी अरु कामरिया’ पर तीनों पुरी का राजसिंहसान तक त्यागने का तैयार थे। लेखक का पुनः कहना है कि पशु-पालक जिसके साथ रहते हैं, उससे परिचित हो जाते हैं। यह परचना ही, परिचय ही प्रेम का प्रवर्तक है। देश-प्रेम के लिए यह आवश्यक है कि हम बाहर निकलकर देखें कि कैसे खेत-बाग लहलहा रहे हैं। कछारों में चौपायों के झुण्ड कैसे इधर-उधर घूम रहे हैं और चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं। नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं। टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी सुन्दर लग रही है। अमराइयों के बीच झाँकते हुए गाँव में घुसिए, जो मिलें, उनके साथ किसी पेड़ की छाया में बैठकर कुछ बातें कीजिए।

उन्हें अपने देश का समझिए। इससे आपकी आँखों में देश का रूप समा जाएगा। आप उसके स्वरूप से परिचित हो जाएंगे। फिर आपके हृदय में सच्चा देश-प्रेम उत्पन्न हो जाएगा। लेखक का यह मानना है कि आजकल के पढ़े-लिखे लोग देश के स्वरूप से इस प्रकार परिचित होना लज्जा का विषय मान रहे हैं। ऐसे लोग किसी देहात शब्द को कहना या सुनना अपने बाबूपन में बड़ा भारी बट्टा लगना समझ रहे हैं। ऐसे लोगों को यह भी नहीं मालूम कि गेहूँ का पेड़ होता है या आम का।

देश-प्रेम संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बरावर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है। सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अन्तःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवाद या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

शब्दार्थ:

  • आलंबन – आधार।
  • सहित – साथ।
  • साहचर्यगत – साथ रहने से सम्बन्धित।
  • घड़ी – समय।
  • सान्निध्य – समीप, पास।
  • राग – प्रेम, लगाव।
  • अन्तःकरण – हृदय।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा सुप्रसिद्ध निबन्धकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ शीर्षक से है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम क्या है, इसे समझाते हुए कहा है कि व्याख्या-अगर हम यह जानना चाहते हैं कि देश-प्रेम किसे कहते हैं, तो इसका यह उत्तर है कि देश-प्रेम एक प्रकार का प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आधार पूरा देश होता है। दूसरे शब्दों में देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, नदी-नाले, . मैदान, वन, पर्वत आदि सहित देश की सारी धरती।

इन सबसे प्रेम करना ही देश-प्रेम है। यह प्रेम साथ-साथ रहने से ही प्राप्त होता है। यह प्रेम जिनके साथ हम रहते हैं, जिन्हें हम देखा करते हैं, जिनसे हम अपने भाव-विचार प्रकट करते हैं और जिनके भाव-विचार को हम ग्रहण करते हैं। कहने का भाव यह कि जिनसे हमारा सम्बन्ध हमेशा बना रहता है, उनसे हमारा लगाव हो जाता है। यह लगाव ही देश-प्रेम है। इसलिए देश-प्रेम यदि सचमुच में हृदय से निकला हुआ कोई भाव है तो यही लगाव है। अगर यह नहीं है, तो देश-प्रेम की बात करना बेकार है। यह किसी बनावटी भाव के लिए गढ़ा हुआ कोई शब्द ही होगा।

विशेष :

  1. देश-प्रेम के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. भाव सरस और रोचक हैं।
  5. यह अंश भाववर्द्धक और प्रेरक रूप में है।
  6. वाक्य गठन सारगर्भित है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. देश-प्रेम किसका आलंबन है?
  2. देश-प्रेम को साहचर्यगत प्रेम क्यों कहा गया है?
  3. देश-प्रेम किसका भाव है और क्यों?

उत्तर:

  1. देश-प्रेम सारे देश का आलंबन है।
  2. देश-प्रेम साहचर्यगत प्रेम है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम हो ही नहीं सकता।
  3. देश-प्रेम अन्तःकरण का भाव है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम की बातें करना बिलकुल व्यर्थ और मनगढ़त है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सारा देश से क्या अभिप्राय है?
  2. हमें किसका अभ्यास कब पड़ जाता है?
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. सारा देश से अभिप्राय है-देश का सम्पूर्ण स्वरूप अर्थात् सभी प्राणी, वन, पर्वत, नदी, नाले, मैदान, सारी धरती आदि।
  2. हमें अपने परिचितों के साथ रहने वाले का अभ्यास पड़ जाता है।
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय है-लगाव या प्रेम। जिनके साथ हम हमेशा रहा करते हैं, उनके प्रति हमारा लोभ या राग हो जाता है।

प्रश्न 2.
यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु-पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा; वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि दस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप-परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुःख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझें?

शब्दार्थ:

  • चाहभरी – लगावभरी।
  • सुध – याद।
  • प्रणय सौरभपूर्ण – प्रेम-सुगन्धित।
  • मंजरियों – बोरों।
  • परत-हिसाब।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के लिए आवश्यक तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए नकली देश-प्रेमियों पर तीखा व्यंग्य-प्रहार किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
यदि कोई व्यक्ति सच्चा देश-प्रेमी है, तो उसकी यही पहचान है कि वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होगा। उससे उसका अधिक लगाव होगा। कहने का भाव यह है कि अपने देश से प्रेम करने वाला अपने देश की सारी धरती, मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी, नाले, पर्वत, झरने, हवा, पानी, आसमान और वातावरण से जी भरकर लगाव रखेगा। वह इन सबके प्रति अपना सच्चा भाव और विचार रखेगा। इन सभी को बार-बार याद करता रहेगा। अगर वह अपने देश से दूसरे देश में चला जाएगा, तो वहाँ भी वह इन सबको चाहभरी दृष्टि से देखना चाहेगा! इन सबको याद करेगा। इनके अभाव में वह रोएगा और तड़पेगा। इसके विपरीत जो सच्चा देश-प्रेमी नहीं होगा, वह देश के स्वरूप से बिलकुल नहीं परिचित होगा। वह तो यह भी न जानेगा कि कोयल किसे कहते हैं।

चातक क्या है और वह क्या करता है। उसे बाग-खेत के लहलहाने का कुछ भी ज्ञान-ध्यान नहीं होता है। उसे आम के सुगन्धित बौर, खेतों की हरी-भरी फसलें, किसानों के झोपड़ों के भीतर की दीन-दशा आदि का कुछ भी पता नहीं होता है। इस प्रकार के ढोंगी और नकली देश-प्रमियों की देश-ज्ञान की बातें फजूल की होती हैं। ऐसा इसलिए कि उन्हें देश की दशा से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है। इसलिए अगर ऐसे लोग अपने को देश-प्रेमी कहते हैं तो उनसे यह जानना चाहिए कि देश के स्वरूप से परिचित हुए बिना वे किस आधार पर अपने को देश-प्रेमी कह रहे हैं। देश के स्वरूप से अनजान रहकर और उसकी आवश्यकताओं को अनदेखा कर भला कोई देश-प्रेमी कैसे कहा जा सकता है। अर्थात् नहीं कहा जा सकता है।

विशेष:

  1. सच्चे देश-प्रमियों की पहचान बतलायी गई है।
  2. भाषा सरल है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. ढोंगी देश-प्रेमियों पर व्यंग्य प्रहार है।
  5. यह अंश रोचक और भावप्रद है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चा देश-प्रेमी कौन होता है?
  2. नकली देश-प्रेमी कौन होता है?
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से किस प्रकार परिचित होना चाहिए?

उत्तर:

  1. सच्चा देश-प्रेमी वही होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से प्रेम होता है।
  2. नकली देश-प्रेमी वह होता है, जिसे अपने देश के स्वरूप से प्रेम-परिचय नहीं होता है। वह देश की दशा का हिसाब-किताब बताकर देश-प्रेमी होने की बड़ी-बड़ी बातें बनाता है।
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से भलीभाँति परिचित होना चाहिए। देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना चाहिए। उसकी याद में विदेश में होने पर ऑसू बहाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चे देश-प्रेमी और ढोंगी देश-प्रेमी में क्या अन्तर है?
  2. देश-प्रेम की पहली शर्त क्या है?

उत्तर:

1. सच्चा देश-प्रेमी अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह उससे हमेशा प्रेम करता है। अगर वह किसी कारणवश विदेश चला जाता है, तो वह वहाँ अपने देश की हरेक बातों को याद करता है। उसके लिए तरसता है। उसके अभाव में आँसू बहाता है। इसके विपरीत ढोंगी देश-प्रेमी न तो अपने देश के किसी भी स्वरूप से परिचित होता है और न उससे प्रेम करता है। यह भी वह अपने मित्रों के बीच देश की दशा का हिसाब-किताब की बातें करता रहता है।

2. देश-प्रेम की पहली शर्त है-अपने देश के स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना और उससे हमेशा प्रेम करना।

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प्रश्न 3.
पशु और बालक भी जिनके साथ अधिक रहते हैं, उनसे परच जाते हैं। यह परचना परिचय ही है। परिचय प्रेम का प्रवर्तक है, बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए। बाहर निकलिए तो आँख खोलकर देखिए कि खेत कैसे लहलहा रहे हैं, नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं, टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी लाल हो रही है, कछारों में चौपायों के झुण्ड इधर-उधर चरते हैं, चरवाहे तान लड़ा रहे हैं, अमराइयों के बीच गाँव झाँक रहे हैं; उनमें घुसिए, देखिए तो क्या हो रहा है।

जो मिलें उनसे दो-दो बातें कीजिए उनके साथ किसी पेड़ की छाया के नीचे घड़ी-आध-घड़ी बैठ जाइए और समझिए कि ये सब हमारे देश के हैं। इस प्रकार जब देश का रूप आपकी आँखों में समा जाएगा, आप उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित हो जाएँगे, तब आपके अन्तःकरण में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कि वह हमसे कभी न छूटे, वह सदा हरा-भरा और फला-फूला रहे, उसके धनधान्य की वृद्धि हो, उसके सब प्राणी सुखी रहें।

शब्दार्थ:

  • परच – परिचित होना।
  • प्रवर्तक – प्रतीक।
  • टेसू – पलाश।
  • कछार – नदी का छोड़ा हुआ स्थान, भाग।
  • तान लड़ाना – गीत गाना।
  • अमराइयों – आमों।
  • अंग-प्रत्यंग – प्रत्येक स्वरूप।
  • अन्तःकरण – हृदय।
  • धनधान्य – धन-वैभव।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश के स्वरूप से परिचय करने के विषय में कहा है कि व्याख्या-साथ-साथ रहने से परिचय हो जाता है। यह परिचय किसी के लिए भी सम्भव होता है। यह न केवल मनुष्य के लिए सम्भव होता है अपितु पशु-पक्षी के लिए भी सम्भव होता है। इस परिचय से ही प्रेम का प्रर्वतन होता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब तक परिचय नहीं होगा, तब तक प्रेम नहीं हो सकता है। इसलिए अगर हमें देश-प्रेम करना है या देश-प्रेमी बनना है तो हमें अपने शुद्ध हृदय से देश के एक-एक स्वरूप से परिचित होना है। इसकी आदत डालनी होगी। इसके लिए यह जरूरी है कि जब हम बाहर निकलें तो अपनी आँखें खोलकर देश के एक-एक स्वरूप को देखें। यह देखें कि खेतों में हरी-भरी फसलें कैसे लहलहा रही हैं।

झाड़ियों के कल-कल करते हुए नाले कैसे बह रहे हैं। पलाश के लाल-लाल फूलों से कैसे धरती रंगीन हो रही है। कछारों में पशुओं को चराते हुए चरवाहे एक-से-एक बढ़कर कैसे गाने छेड़ रहे हैं। आमों के बागों के बीच में गाँवों की झलक कैसी दिखाई दे रही है। फिर गाँवों में हम जाएँ। गाँव के लोगों से मिलें। उनका समाचार पूछे। उनके साथ कुछ देर तक रहें। उनसे भाईचारा की भावना से उनमें परस्पर दुःख-सुख की बातें करें। इससे देश के स्वरूप का पूरा ज्ञान हमको हो जाएगा। हम देश के एक-एक रूप से परिचित हो जाएँगे। जब हमारी ऐसी दशा हो जाएगी, तब हमारे हृदय में देश-प्रेम के सच्चे भाव खिल उठेंगे। उन्हें हम कभी नहीं भूलना चाहेंगे। इस प्रकार हम एक सच्चे देश-प्रेमी होकर देश के सुख-शान्ति और उसकी महानता के लिए हमेशा शुभकामना करते रहेंगे।

विशेष:

  1. देश-प्रेम के लिए आवश्यक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. देश के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  3. भाषा प्रभावशाली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. देश-प्रेम की प्रेरणा दी गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है क्यों?
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए क्या आवश्यक है?
  3. हमें किसका अभ्यस्त हो जाना चाहिए?

उत्तर:

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। यह इसलिए कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है।
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए आवश्यक है कि हम देश के अंग-प्रत्यंग से बखूबी परिचित हो जाएं।
  3. हमें देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लेखक ने सच्चे देश-प्रेम का भाव किसे माना है?
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता कैसे सम्भव है?

उत्तर:

  1. लेखक ने अपने देश के लोक-जीवन के प्रति लगाव और उसके सुख-शान्ति की कामना करते रहना ही सच्चे देश-प्रेम का भाव माना है।
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता अपने देश की प्रकृति के साथ गहरा सम्बन्ध और साहचर्य से ही सम्भव है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा (एकांकी, जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’)

प्रताप-प्रतिज्ञा पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रताप-प्रतिज्ञा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप का युद्ध किसके साथ और कहाँ हुआ?
उत्तर:
महाराणा प्रताप का युद्ध मुगल सम्राट अकबर के साथ हल्दी घाटी में हुआ था।

प्रश्न 2.
युद्ध-भूमि में महाराणा प्रताप को किस विकट स्थिति का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
युद्ध-भूमि में महाराणा प्रताप मुगल सेना से चारों ओर से घिर गए। उनके वास्से वे घायल हो गए। उनके शरीर से खून की धारा बहने लगी। तलवार चलाते-चलाते उनके दोनों हाथ थक गए। चेतक घोड़ा मृतप्राय हो गया। फिर भी उन्हें पागलों की तरह लड़ना पड़ा था।

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प्रश्न 3.
चन्द्रावत ने महाराणा को बचाने का क्या उपाय किया?
उत्तर:
चन्द्रावत ने महाराणा को बचाने के लिए उनकी तेजस्वी तलवार अपने हाथ में ले ली। फिर उनसे राजमुकुट लेकर अपने सिर पर धारण कर लिया। चन्द्रावत ने यह उपाय इसलिए किया ताकि अकबर की सेना उसे ही महाराणा प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े और राणा प्रताप युद्ध-भूमि से निकल जाने में सफल हो सकें।

प्रश्न 4.
शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप को मुगल सैनिकों से किस तरह बचाया?
उत्तर:
शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप को मुगल सैनिकों से बड़ी सावधानी से बचाया। उसने महाराणा प्रताप के घातक दोनों मुगल सैनिकों को मार डाला।

प्रताप-प्रतिज्ञा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए
उत्तर:
महाराणा प्रताप की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ हैं –

  1. जनता के प्रतिनिधि
  2. चित्तौड़ का उद्धारक
  3. संजीवनी शक्तिदाता
  4. प्रजा का विधाता
  5. स्वदेश की आशा
  6. महान वीर
  7. असाधारण योद्धा
  8. स्वाभिमानी और
  9. महान देश-भक्त।

प्रश्न 2.
शक्ति सिंह स्वयं को क्यों धिक्कारता है?
उत्तर:
शक्ति सिंह स्वयं को धिक्कारता है। यह इसलिए कि वह महाराणा प्रताप जैसे असाधारण योद्धा, देशभक्त, स्वाभिमानी और कर्तव्यनिष्ठ का भाई होकर देश का गद्दार है, स्वार्थी और पदलोलुप है।

प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप ने चेतक के प्रति अपनी संवेदना किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर:
महराणा प्रताप ने चेतक के प्रति अपनी संवेदना इस प्रकार व्यक्त की-“चेतक! प्यारे चेतक! तुम राह ही में चल बसे। तुम्हारी अकाल मृत्यु देखने के पहले ही ये आँखें क्यों न सदा को मुँद गईं। मेरे प्यारे सुख-दुःख के साथी, तुम्हें छोड़कर मेवाड़ में पैर रखने को जी नहीं करता। शरीर का रोम-रोम घायल हो गया है, प्राण कण्ठ में आ रहे हैं, एक कदम भी चलना दूभर है, फिर भी इच्छा होती है कि तुम्हारे शव के पास दौड़ता हुआ लौट आऊँ, तुमसे लिपटकर जी भरकर रो लूँ और वहीं चट्टानों से सर टकरा-टकराकर प्राण दे दूँ। अपने प्राण देकर प्रताप के प्राण बचाने वाले मूक प्राणी! तुम अपना कर्तव्य पूरा कर गए, पर मैं संसार से मुँह दिखाने योग्य न रहा। हाय, मेरे पापी प्राणों से तुमने किस दुर्दिन में प्रेम करना सीखा था। चेतक, चेतक प्यारे चेतक!

प्रश्न 4.
शक्ति सिंह के स्वभाव में परिवर्तन क्यों आया?
उत्तर:
शक्ति सिंह के स्वभाव में परिवर्तन आया। उसने आँखें खोलकर मेवाड़ के वीरों का बलिदान देखा। उससे समझ लिया कि उसका अहंकार व्यर्थ है। उससे कई गुना वीरता, कई गुनी देशभक्ति और कई गुना त्याग मेवाड़ के एक-एक सैनिक के हृदय में हिलोरें ले रहा है।

प्रश्न 5.
एकांकी के आधार पर सच्चा सैनिक किसे कहेंगे?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी के आधार पर सच्चा सैनिक हम चन्द्रावत को कहेंगे। ऐसा इसलिए कि उसने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उसके इस त्याग-समर्पण से देश-भक्ति की सच्ची प्रेरणा मिलती है।

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प्रश्न 6.
प्रताप की बातें शक्ति सिंह को हृदयवेधक क्यों लगीं?
उत्तर:
प्रताप की बातें शक्ति सिंह को हृदयवेधक लगीं। यह इसलिए कि उसने स्वयं को पापी, कायर, पथ के भिखारी, रण से विमुख आदि कहा था।

प्रश्न 8.
एकांकी के विकास-क्रम को समझाते हुए उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
संस्कृत रूपक के दस भेदों में से पाँच (भाषा, व्यायोग, अंक, वीथी और प्रहसन) एक-एक अंक वाले रूपक हैं। पर संस्कृत के एकांकी रूपक आधुनिक एकांकी की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। शिल्प की दृष्टि से आधुनिक एकांकी पश्चिम की देन है। आधुनिक शैली का प्रथम एकांकी जयशंकर प्रसाद का ‘एक चूंट’ माना जाता है। यद्यपि प्रसाद से पहले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी विषय विषमौषधम्’, ‘धनंजय विजय’, ‘वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति’, ‘अन्धेर नगरी’ एकांकी लिखे हैं। परन्तु शिल्प की दृष्टि से वे संस्कृत के भाण, वीथी आदि एक अंक वाले रूपकों के अधिक समीप हैं। वर्तमान एकांकी-कला की कसौटी पर वे पूरे नहीं उतर सके। भुवनेश्वर तथा डॉ. रामकुमार वर्मा के एकांकी-क्षेत्र में उतरने से इनका विकास तथा विस्तार हुआ।

हिन्दी में आधुनिक ढंग के पहले एकांकीकार भुवनेश्वर हैं। उनका ‘कारवाँ’ एकांकी संग्रह 1935 में प्रकाशित हुआ। ‘कारवां’ में छः एकांकी हैं। इसका विषय प्रेम का त्रिकोण है। भुवनेश्वर के एकांकी पश्चिम से प्रभावित हैं। बर्नाड शॉ का उन पर प्रभाव है। एकांकीकार अपने एकांकियों में समस्याएँ उठाना जानता है, पर उनका समाधान वह प्रस्तुत नहीं कर सका। भुवनेश्वर में बौद्धिकता की प्रधानता है, भावुकता को वह विष मानते हैं। उनके एकांकियों में यथार्थ के नग्न चित्र हैं।

भुवनेश्वर के बाद हिन्दी एकांकीकारों में डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम आता है। उनका पहला एकांकी है-‘बादल की मृत्यु’ इस एकांकी में कल्पना और काव्यमयता की अधिकता है। इसे ‘फेन्टेसी’ कहा जा सकता है। डॉ. वर्मा के एकांकियों की संख्या 100 के लगभग है, जो अलग-अलग एकांकी-संग्रहों में संकलित हैं। ‘पृथ्वीराज की आँखें’, ‘चारुमित्रा’, रेशमी टाई’, ‘सप्तकिरण’, ‘विभूति’, ‘दीपदान’, ‘रूपरंग’, ‘इन्द्रधनुष’, ‘ध्रुवतारिका’ आदि उनके एकांकी-संग्रह हैं। डॉ. वर्मा ने अधिकतर ऐतिहासिक और सामाजिक एकांकी लिखे हैं। ऐतिहासिक एकोकीकार के रूप में वह सबसे बड़े एकांकीकार हैं।

उदयशंकर भट्ट हिन्दी के एकांकीकारों में एकांकी-कला के प्रारम्भिक उन्नायकों में हैं। उनका पहला एकांकी-संग्रह ‘अभिनव एकांकी’ नाम से 1940 में प्रकाशित हुआ। भट्टजी के एकांकी मुख्य रूप से पौराणिक व सामाजिक हैं। ‘कालिदास’ आदि युग के एकांकी पौराणिक हैं तथा ‘स्त्री का हृदय’, ‘समस्या का अन्त’ आदि में सामाजिक एकांकी संगृहीत है। अपने पौराणिक एकांकियों में भट्टजी ने सामयिक समस्याओं की ओर भी संकेत किया है।

सेठ गोविन्ददास ने सामाजिक, राजनीतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक आदि सभी प्रकार के एकांकी लिखे हैं। उनके एकांकी-संग्रह हैं- ‘स्पर्धा’, ‘सप्तरश्मि’, ‘एकादशी’, ‘पंचभूत’, ‘अष्टदल’ आदि। शिल्प की दृष्टि से सेठ जी ‘उपक्रम’ और उपसंहार’ आदि अपने एकांकियों में प्रयोग करते हैं। उन्होंने ‘मोनो-ड्रामा’ भी लिखे हैं। ‘चतुरपथ’ में ऐसे एकांकी हैं। ‘शाप और वर’, ‘अलबेला’ इनके प्रसिद्ध (मोनोड्रामा) नाटक हैं।

उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ के एकांकियों में मध्यवर्गीय समाज की समस्याएँ हैं। ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘जोंक’, ‘अधिकार का रक्षक’ और ‘तौलिए’ इनके प्रसिद्ध एकांकी हैं। रंगमंच का सान ‘अश्क’ को हिन्दी एकांकीकारों में सबसे अधिक ख्याति प्राप्त है। उनके एकांकी गठन, प्रभाव तीव्रता और प्रवाह की दृष्टि से सफल हैं। विष्णु ‘प्रभाकर’ आधुनिक एकांकीकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सामाजिक, राजनीतिक, हास्य-व्यंग्य प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार के एकांकी विष्णु जी ने लिखे हैं, जिनमें ‘माँ’, ‘भाई’, ‘रहमान का बेटा’, ‘नया कश्मीर’, ‘मीना कहाँ है’ आदि प्रसिद्ध हैं।

जगदीश चन्द्र माथुर सामाजिक समस्याओं को लेकर एकांकी कला को सम्पन्न बनाने वाले कलाकार हैं। एकांकी-कला और रंगमंच का अध्ययन उनका गहरा है। ‘भोर का तारा’, ‘रीढ़ की हड्डी’, ‘उनके प्रसिद्ध एकांकी हैं। लक्ष्मीनारायण मिश्र के एकांकियों में बुद्धिवादिता, भारतीय-संस्कृति तथा समस्याएँ इन सभी का समावेश है। हरिकृष्ण प्रेमी के ‘मन-मन्दिर’ संग्रह के एकांकियों में गाँधीवादी आदर्श है। वृन्दावन लाल वर्मा के एकांकियों में यथार्थ और आदर्श का समन्वय है। इनके अतिरिक्त हिन्दी एकांकी कला की विकसित करने वाले रचनाकार हैं-सदगुरुशरण अवस्थी, गोविन्द बल्लभ पन्त, भगवती चरण वर्मा, लक्ष्मी नारायण लाल, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, प्रभाकर माचवे, नरेश मेहता, चिरंजीत आदि। इस प्रकार विकसित होती हुई आज रेडियो-रूपक, फेन्टेसी, मोनोड्रामा आदि रूपों में आगे बढ़ रही है।

एकांकी की परिभाषा:
कुछ आलोचक एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं। लेकिन यह बहुत हद तक सही नहीं है। वास्तव में नाटक और एकांकी दो भिन्न गद्य विधाएँ हैं। जिस नाटक की कथावस्तु केवल एक ही अंक में होती है, वह एकांकी नाटक कहलाता है।

प्रताप-प्रतिज्ञा भाव-विस्तार/पल्लवन

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प्रश्न 1.
“भातप्रेम का निर्मल झरना, विद्वेष की शिला से नहीं रुकता।” इस पंक्ति का पल्लवन करें।
उत्तर:
भातृप्रेम का प्रवाह बड़ा ही पवित्र और स्वच्छ होता है। जब वह हृदय के उच्च शिखर से प्रवाहित होता है, तब उसमें बहुत बड़ा वेग होता है। वह वेग बड़ा ही स्वतन्त्र और अद्भुत रूप से आगे बढ़ने लगता है। वह अपने सामने आने वाले किसी विद्वेष रूपी चट्टान को छिन्न-भिन्न करके अपना रास्ता बना लेता है। चूंकि उसमें इतना ओज, उत्साह और प्रबल भाव भरा होता है, उसे किसी प्रकार हीन और तुच्छ भाव रूपी बाधाएँ सेकने में असमर्थ हो जाती हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि भातृप्रेम का निर्मल झरना, विद्वेष की शिला से कभी नहीं रुकता है।

प्रताप-प्रतिज्ञा भाषा – अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
प्राणों की बाजी लगाना, पीठ दिखाना, आँखें फाड़कर देखना; काँटों का ताज पहनना, नजर करना, दो के चार होना।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों के विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
राजमार्ग, राजमुकुट, मुक्तिद्वार, प्रतिहिंसा।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img-2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि विच्छेद कीजिए।
आहुति, नराधम, उत्सर्ग, निश्चय, शोकाकुल, स्वाधीनता, रणोन्मत्त, समरांगण।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित विदेशी शब्दों के मानक हिन्दी शब्द लिखिए।
मगरूर, दोजख, यार, कैद, ईनाम, बुजदिल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img 4

चालान क्र………………. – तृतीय प्रति
(बैंक हेतु)

माध्यमिक शिक्षा मण्डल, मध्यप्रदेश

यूको बैंक हबीबगंज, भोपाल – शाखा-मधुकुल परिसर
1. संख्या का मान्यता क्रमांक (कोड नं.) ………………………………………………………………………………………………………………………………
संख्या का नाम, स्थान एवं जिला ……………………………………………………………………………………………………………………………………….
………………………………………………………………………………………………………………………………..
2. छात्र का नाम………………………………………….. परीक्षा का नाम ………………………………………….. वर्ग ……………………………………….
अनुक्रमांक …………………………………………………….केन्द्र क्रमांक ……………………………………………………………………………………………..
……………………………………………………………………………………………………………………………….

परीक्षा का नाम – (संबंधित परीक्षा के नाम पर सही का चिह्न लगाएं)

  1. हाईस्कूल/हायर सेकेण्डरी/हा.सं. व्यावसायिक पाठ्यक्रम नियमित/स्वाध्यायी मुख्य पूरक परीक्षा
  2. हाईस्कूल/हायर सेकेण्डरी/पत्राचार पाठ्यक्रम/मुख्य/पूरक परीक्षा
  3. डिप्लोमा इन एजूकेशन (नियमित/पत्राचार, प्रथम/द्वितीय वर्ग) मुख्य/पूरक परीक्षा
  4. पूर्व प्राथमिक प्रशिक्षण नियमित/स्वाध्यायी मुख्य/पूरक परीक्षा
  5. शारीरिक प्रशिक्षण (नियमित/स्वाध्याय) मुख्य/पूरक परीक्षा
  6. अन्य ……………………………………………………………………………………………………………..

शुल्क का विवरण मद विवरण

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img4
छात्रों द्वारा फीस भरने हेतु शीर्ष:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 7 प्रताप-प्रतिज्ञा img5
योग –
राशि शब्दों में ………………………………………………………………………………………………………………………………
(जमाकर्ता के हस्ताक्षर)
………………………………………………………………………………………………………..
(बैंक उपयोग हेतु)
बैंक कोड……………………….. – दिनांक ………………..
माध्यमिक शिक्षा मंडल के खाते में राशि रु ……………. जमा की।

प्रताप-प्रतिज्ञा योग्यता विस्तार – हस्ताक्षर/सील।

प्रश्न 1.
‘प्रताप प्रतिज्ञा’ एकांकी को कहानी रूप में लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
अपने आस-पास के उन वीरों के नामों की सूची बनाइए जिन्होंने देशभक्ति हेतु प्राणोत्सर्ग किया है।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले एकांकी/नाटक तथा रेडियो पर प्रसारित रूपक में क्या अन्तर परिलक्षित होता है? दोनों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कर अपनी लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
चालान फार्म को चार प्रतियों में भरा जाता है यहाँ चालान की तृतीय प्रति (बैंक हेतु) भरने को दी जा रही है। शेष तीन प्रतियाँ किस-किस के लिए होती हैं बैंक जाकर मालूम कीजिए तथा चालान आवेदन-पत्र एकत्रित कीजिए।
चलान फार्म-
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रताप-प्रतिज्ञा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रताप-प्रतिज्ञा लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी में प्रस्तुत पात्रों और गौण पात्रों को बताइए।
उत्तर:
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी में प्रस्तुत प्रमुख पात्र हैं-चन्द्रावत, महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह। – गौण पात्र हैं-दो मुगल सरदार।

प्रश्न 2.
चन्द्रावत ने महाराणा प्रताप से क्या माँगा?
उत्तर:
चन्द्रावत महाराणा प्रताप से राजमुकुट और तलवार माँगा।

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प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप ने क्या कहकर शक्ति सिंह को क्षमा किया?
उत्तर:
जब शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप से क्षमा माँगी तो प्रताप ने यह कह कर उसे क्षमा कर दिया-“क्षमा! क्षमा कैसी भाई! भ्रातृप्रेम का निर्मल झरना विद्वेष की शिला से नहीं रुक सकता। तुम्हारे एक ‘भैया’ सम्बोधन पर लाखों क्षमा निछावर हैं। भाई पुकारो तो शक्ति, पुकारो तो ‘भैया’, एक बार मुझे फिर प्यार से भैया कहकर पुकारो तो।

प्रताप-प्रतिज्ञा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेवाड़ का सर्वनाश किस प्रकार निकट आ गया था?
उत्तर:
मेवाड़ का सर्वनाश निकट आ गया था। स्वतन्त्र मेवाड़ का सौभाग्य सूर्य अस्त होने लगा था। ऐसा इसलिए कि मुगल सेना मेवाड़ के चारों ओर छा गई थी। बीच में अकेले बलिदानी वीर महाराणा प्रताप प्राणों की बाजी लगाकर दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे। वे घायल हो गए थे। उनके शरीर से खून की धारा निकल रही थी। तलवार चलाते-चलाते वे बुरी तरह से थक गए थे। उनका घोड़ा चेतक मृतप्राय हो गया था। हजारों नरमुण्डों से हल्दीघाटी पाट देने पर भी विजय की आशा व्यर्थ हो गई थी।

प्रश्न 2.
चन्द्रावत ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के प्रति अपना सच्चा और पवित्र प्रेमभाव किस प्रकार व्यक्त किया?
उत्तर:
चन्द्रावत ने अपनी मातृभूमि मेवाड़ के प्रति इस प्रकार अपना सच्चा और पवित्र प्रेमभाव व्यक्त किया-“चित्तौड़! जन्मभूमि! प्रणाम! तुम्हारा यह तुच्छ सेवक आज विदा लेता है। माँ, जीते जी तुम्हें स्वतन्त्र न देख सका, अब मरकर देखने की अभिलाषा है। अपने भग्नावशेषों के हाहाकारमय स्वर से एक बार आशीर्वाद दो, माँ हँसते-हँसते मरने की शक्ति प्रदान करो। जीवन के अन्तिम क्षणों में कर्त्तव्य-पालन करने का अवसर दो। जिस राजमुकुट को इन हाथों ने तुम्हारे हित के लिए, विलासी जगमल के सिर से उतारा था, उसी को ये फिर, तुम्हारे ही हित के लिए वीरवर प्रताप के मस्तक से उतारेंगे। तुम्हारे सम्मान की रक्षा के लिए आशालता को कुचलने से बचाने के लिए-आज महाराणा प्रताप के बदले यह चन्द्रावत प्राणों की आहुति देगा।”

प्रश्न 3.
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ एकांकी के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ महान एकांकीकार जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ की एक आदर्शवादी एकांकी है। इसमें महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हल्दी घाटी के भयंकर युद्ध का उल्लेख किया गया है। इसके लिए एकांकीकार ने चन्द्रावत, महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह इन तीन प्रमुख पुरुष पात्रों का चयन किया है, तो दो मुगल सैनिकों को गौण पुरुष पात्रों के रूप में लिया है। इन पात्रों के माध्यम से राजनीतिक संघर्ष को मार्मिक रूप में चित्रित करने का सुन्दर प्रयास किया है।

इसमें बाहरी द्वन्द्व को मुख्य स्वर देकर उससे मानसिक विक्षोभ को सामने लाने की पूरी कोशिश की है। हम देखते हैं कि चन्द्रावत का अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देना देश-भक्ति की प्रेरणा देता है। यह भी हम देखते हैं कि महाराणा प्रताप की अटल देश-भक्ति के लिए मरते दम तक वीरतापूर्ण कदम उठाने से शक्तिसिंह की प्रतिशोध की दुर्भावना भातृत्व प्रेम में बदल कर देश-भक्ति का गान।

प्रताप – प्रतिज्ञा लेखक – परिचय

प्रश्न 1.
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
हिन्दी के एकांकीकारों में श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ का स्थान प्रमुख है। उनका जन्म सन् 1907 ई. में मध्य-प्रदेश के मुरार ग्वालियर में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया। वहाँ से आपने साहित्य, इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र का गहरा अध्ययन-मनन किया।

‘मिलिन्द’ जी ने अपने स्वाध्याय से भी अनेक भाषाओं का अध्ययन-मनन किया। उन्होंने अपने स्वाध्याय से जिन भाषाओं का अध्ययन-मनन किया, उनमें हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के अतिरिक्त उर्दू, मराठी, बंगला और गुजराती प्रमुख हैं। इन भाषाओं के अध्ययन-मनन के पश्चात उन्होंने विश्वभारती, शान्ति निकेतन और महिला आश्रम, वर्धा में अध्यापन का कार्य किया।

रचनाएँ:
‘मिलिन्द’ जी की रचनाओं में विविधता है। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

  1. काव्य-संग्रह-‘जीवन-संगीत’, ‘नवयुग के गान’, ‘बलिपथ’ के गीत, ‘भूमि की अनुभूति’ और ‘मुक्तिका’।
  2. निबन्ध संग्रह-‘चिन्तन कण’ और ‘सांस्कृतिक प्रश्न’।
  3. व्यंग्य विनोद कथा-संग्रह-‘बिल्लो का नखछेदन’।
  4. नाट्य-कृतियाँ-‘समर्पण’, ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ और ‘गौतम नन्द’।

महत्त्व:
चूंकि ‘मिलिन्द’ जी बहुमुखी प्रतिमा-सम्पन्न साहित्यकार हैं, इसलिए उनका साहित्यिक योगदान उल्लेखनीय है। उनके साहित्य का प्रमुख स्वर देश-भक्ति और देश-प्रेम है। इस दृष्टि से भी आपका स्थान प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक है। फलस्वरूप आने वाली साहित्यिक अभिरुचि की पीढ़ी आपसे दिशाबोध प्राप्त करती रहेगी।

प्रताप-प्रतिज्ञा पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हल्दीघाटी युद्ध पर आधारित है। इसमें तीन प्रमुख पात्रों चन्द्रावत, प्रताप और शक्ति सिंह एवं दो गौण पुरुष पात्रों (दो मुगल सरदारों) के माध्यम से राजनीतिक संघर्ष को चित्रित किया गया है। चन्द्रावत प्रताप सिंह की वीरता का उल्लेख तो कर रहा है, लेकिन उसे मेवाड़ का सौभाग्य सूर्य अस्त होता हुआ दिखाई दे रहा है। उसी समय एक सभासद आकर महाराणा प्रताप के घायल होने का समाचार सुनाता है। चन्द्रावत उसे राजा के साथ मर-मिटने का आदेश देकर चित्तौड़ के प्रति अपनी देश-भक्ति की भावना को प्रकट करता है।

वह उससे आशीर्वाद माँगता है कि वह उसे हँसते-हँसते उसकी सेवा में मर-मिटने की शक्ति प्रदान करे। यह भी कि वह उसे ऐसा साहस दे कि वह महाराणा प्रताप के बदले अपने प्राणों की आहुति दे सके। उसी समय प्रताप आकर अपने प्राणों के बलिदान करने की घोषणा करता है। चन्द्रावत उसे समझाता है कि उसके प्राण इतने सस्ते नहीं हैं। उनमें संजीवनी शक्ति है। वह प्राणों का बलिदान न करें। उसके स्थान पर वह और सरदारों के साथ मर-मिटेगा। प्रताप उसे समझाता है कि वह उसे ऐसा नहीं करने देगा। वह युद्ध में पीठ दिखाकर कलंक का टीका नहीं लगने देगा। चन्द्रावत अपनी बात को दोहराता है कि वह उससे हठ न करें। उसके हठ से अखण्ड मेवाड़ पराधीन हो जाएगा।

लेकिन प्रताप उसकी एक नहीं सुनता है। वह वहाँ से बड़ी तेजी से निकल जाता है। चन्द्रावत ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसको रक्षा करे। शक्ति सिंह आकर घोर युद्ध का उल्लेख करता है कि किस प्रकार से मुगलों ने चन्द्रावत को महाराणा समझकर चारों ओर से घेर लिया है। फिर उसे मार डाला है। उसे स्वयं पर अफसोस है कि वह मेवाड़ के काम नहीं आया। उसी समय दो मुगलों का प्रवेश होता है। दोनों परस्पर बातें करते हैं। फिर प्रताप को मारकर अपने शाहजादा साहब से इनाम लेने की बात करते हुए वहाँ से प्रस्थान करते हैं। उसके बाद शक्ति सिंह आकर स्वयं से कुछ कर गुजरने की बात कहता है।

पट परिवर्तन होता है। प्रताप अकेले शोकाकुल बैठे हैं। चेतक के चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हैं। विकल होकर आँखें मूंद लेते हैं। इसके बाद दोनों मुगलों का प्रवेश होता है। दोनों परस्पर बातें करते हैं। दोनों पर प्रताप अपने वार की नाकामी पर अफसोस प्रकट करते हैं। उसी समय शक्ति सिंह आकर उन दोनों का काम तमाम कर देता है। फिर वह प्रताप को ‘महाराणा प्रताप सिंह’ शब्द से सम्मानपूर्वक पुकारता है। प्रताप आँखें खोलते हैं। शक्ति सिंह को देखकर चकित होते हैं। उससे वह पूछते हैं कि क्या वह बदला लेना ही चाहता है, तो ठीक है। आओ, और इस अन्त समय प्यारी मेवाड़ी कटारी भोंक दो। बड़ी शान्ति से मरूँगा, जल्दी करो। देर हो रही है। इसे सुनकर शक्ति सिंह कहता है-बज्रपात है भैया! कौन कहता है प्रताप कायर है। प्रताप तो वीरों का आदर्श है। भारत का अभिमान है। राजस्थान की शान है।

इसे सुनकर प्रताप चकित होता है। शक्ति सिंह अपने दुर्भाग्य पर अफसोस करता है कि वह मेवाड़ को भूलकर भारतीयता को खो बैठा था। उसे अब उसके अपराधों का फल अवश्य मिलना चाहिए। इससे ही उसकी आत्मा को शान्ति मिलेगी। वह उसके लिए देवता है। वह प्रताप को भैया कहते हुए पुनः कहता है-“भैया! क्या तुम मुझे क्षमा न करोगे? मेवाड़ को फिर एक बार बड़े प्यार से माँ कहने का अधिकार न दोगे?” इसे सुनकर प्रताप का भातृप्रेम का झरना फूट पड़ता है। वह कहता है कि उसके ‘भैया’ सम्बोधन पर लाखों क्षमा निछावर हैं। एक बार मुझे फिर प्यार से भैया कहकर पुकारो तो। शक्ति उसके पैरों पर ‘भैया, भैया मेरे’ कहकर गिर पड़ता है। बरसों बाद दोनों गले मिलते हैं।

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प्रताप-प्रतिज्ञा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
आ! काँटों के ताज! संकट के स्नेही! मेवाड़ के राजमुकुट ! आ! तुझे आज एक तुच्छ सैनिक धारण कर रहा है। इसलिए नहीं कि तू वैभव का राजमार्ग है बल्कि इसलिए कि आज तू देश पर मर मिटने वालों का मुक्तिद्वार है। आ! मेरी साधना के अन्तिम साधन! इस अवनत मस्तक को माँ के लिए कट-मरने का गौरव प्रदान कर।

शब्दार्थ:

  • तुच्छ – छोटा।
  • वैभव – सम्पत्ति, धन।
  • राजमार्ग – सड़क।
  • अवनत – झुकाव हुआ।
  • गौरव – मर्यादा, महत्त्व, प्रतिष्ठा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1’ में संकलित तथा जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ द्वारा लिखित एकांकी ‘प्रताप-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से है। इसमें लेखक ने चन्द्रावत् के द्वारा राजमुकुट हाथ में लेते हुए कथन पर प्रकाश डालना चाहा है।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि जब प्रताप कुर्ती से तलवार मुकुट रखकर चला जाता है, तब उसे चन्द्रावत बड़े प्रेम और आदर के साथ हाथ में ले लेता है। फिर वह कहता है–हे राजमुकुट! वैसे तो तुम काँटों के ताज हो, फिर भी संकट के समय एक सच्चे प्रेमी की तरह साथ निभाते हो। वास्तव में तुम मेवाड़ के राजमुकुट हो। इसलिए तुम्हारा महत्त्व असाधारण है। तुम्हें धारण करने की योग्यता मुझ जैसे तुच्छ सैनिक में नहीं है, फिर भी मैं तुम्हें धारण कर रहा हूँ। मैं तुम्हें इसलिए नहीं धारण कर रहा हूँ कि तुम वैभव का राजमार्ग हैं।

मैं तो तुम्हें इसलिए धारण कर रहा हूँ कि तुम्हीं देश की आन-बान पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने वालों के लिए मुक्तिदाता स्वरूप हो। इसलिए अब तुम मुझे अपना लो। मेरी युद्ध-साधना के तुम्ही एकमात्र आधार हो। तुम्ही एकमात्रं साधन हो। अब तुम मेरे इस झुके हुए मस्तक को मेरी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए मर-मिटने का महत्त्व प्रदान कर दो। तुमसे मेरी यही प्रार्थना है और यही उम्मीद है।

विशेष:

  1. मेवाड़ के राजमुकुट का असाधारण महत्त्व बतलाया गया है।
  2. मातृभूमि की महिमा को अधिक सम्मान दिया गया है।
  3. वीर रस की प्रभावशाली धारा प्रवाहित हुई है।
  4. भाषा-शैली में ओज और प्रभाव है।
  5. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति है?
  2. चन्द्रावत के मनोभाव किस प्रकार के हैं?

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के वीर सैनिक चन्द्रावत का मेवाड़ के राजमुकुट के प्रति है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रावत के मनोभाव बड़े ही आकर्षक और असाधारण हैं। उसके मनोभाव निरभिमानी, उदात्त, शिष्ट, विनम्र, आत्मीय और पवित्र हैं। इसलिए वे प्रेरक, हृदयस्पर्शी और भाववर्द्धक हैं।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के राजमुकुट की कौन-कौन-सी विशेषताएँ बतलायी गई हैं।
  2. प्रस्तुत गद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में मेवाड़ के राजमुकुट की कई आकर्षक विशेषताएँ बतलायी, गई हैं –

  • काँटों का ताज
  • देश पर मर-मिटने वालों का मुक्तिद्वार, और
  • साधना का अन्तिम साधन।

2. प्रस्तुत गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। देश की आजादी के खतरे में पड़ने पर हमें उसकी रक्षा के लिए बिना किसी संकोच के अपने तन, मन और धन को तुरन्त न्यौछावर कर देना चाहिए।

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प्रश्न 2.
तुम्हारी अकाल मृत्यु देखने के पहले ही ये आँखें क्यों न सदा को मुँद गईं। मेरे प्यारे सुख-दुःख के साथी, तुम्हें छोड़कर मेवाड़ में पैर रखने को जी नहीं करता। शरीर का रोम-रोम घायल हो गया है, प्राण कण्ठ में आ रहे हैं, एक कदम भी चलना भर है, फिर भी इच्छा होती है कि तुम्हारे शव के पास दौड़ता हुआ लौट आऊँ, तुमसे लिपटकर जी भरकर रो लूँ और वहीं चट्टानों से सर टकराकर प्राण दे दूँ। अपने प्राण देकर प्रताप के प्राण बचाने वाले मूक प्राणी! तुम अपना कर्त्तव्य पूरा कर गए, पर मैं संसार से मुँह दिखाने योग्य न रहा! हाय, मेरे पापी प्राणों से तुमने किस दुर्दिन में प्रेम करना सीखा था। चेतक, चेतक, प्यारे चेतक! (विकल हाकर आँखें मूंद लेते

शब्दार्थ:

  • अकाल मृत्यु – असमय मृत्यु।
  • मुँद गईं – बन्द हो गईं।
  • जी – मन।
  • रोम-रोम – प्रत्येक अंग।
  • कण्ठ में आना – निकल जाना।
  • दूभर – कठिन।
  • मूक – बेजबान।
  • दुर्दिन – बुरे दिन।

प्रसंग:
पूर्ववत् । इसमें लेखक ने राणा प्रताप के द्वारा अपने प्राणप्रिय चेतक के मर-मिटने पर विलाप किए जाने का उल्लेख किया है।

व्याख्या:
चेतक के मर-मिटने पर राणा प्रताप अपने को असहाय और अकेला समझकर विलाप कर रहा है। वह चेतक को सम्बोधित करते हुए कह रहा है कि तुम्हारे असमय चले जाने पर मेरी आँखें पहले ही क्यों नहीं बन्द हो गईं। अगर वे पहले ही बन्द हो गई होती तो मैं इतना दुःखी और विकल नहीं होता। इसलिए हे मेरे प्राण प्यारे चेतक! तुम्हीं तो मेरे हर दुःख-सुख के साथी और सहभागी थे। अब तुम्हारे सिवा मेरा और कोई नहीं है। इसलिए अब मैं मेवाड़ में नहीं जाना चाहता हूँ। तुम्हारे जाने के बाद मेरा पूरा शरीर थककर चूर हो गया है।

वह किसी प्रकार से कोई भी दुःख सहने योग्य नहीं रह गया है। लगता है कि अब मैं और नहीं जी पाऊँगा। अब तो मैं चलने-फिरने में भी असमर्थ हूँ। ऐसा होने के बावजूद अभी मेरे अन्दर तुम्हारे शव को देखने की ललक है। इसके लिए भीतर-ही-भीतर मेरी इच्छा उमड़ रही है। मेरा जी चाहता है कि तुम्हारे शव से लिपटकर जी भर आँसू बहाऊँ। रो-रोकर अपने पाश्चात्ताप को प्रकट करूँ। यही नहीं, यह भी जी करता है कि अपने सिर को किसी चट्टान से फोड़ डालूँ ताकि कुछ समय तक तो शान्ति मिल सके। प्रताप का पुनः कहना है-हे चेतक! तुमने प्राणों की बलि देकर अपने कर्तव्य को पूरा कर लिया है, लेकिन मैं तो इस संसार में किसी के सामने अपना मुँह दिखलाने का साहस नहीं कर पा रहा हूँ।

यह इसलिए कि तुमने अपनी वीरता दिखाते हुए सदैव याद करने योग्य मृत्यु को प्राप्त कर लिया है। दूसरी ओर मैं बुजदिल बनकर अपने किए पर लज्जित हूँ। इसलिए अपने को छिपाकर रखना ही एकमात्र विकल्प समझ रहा हूँ। वास्तव में मैं पापी और अधम कोटि का हूँ। फिर भी मुझे यह नहीं समझ में आ रहा है कि तुमने मुझे क्यों महत्त्व दिया। मुझमें तुझे कौन-सी अच्छाई दिखाई दी थी। यह मैं सच्चे मन से कह रहा हूँ। इसे तुम जहाँ भी हो, मेरे प्राण चेतक सुन लो।

विशेष:

  1. प्रताप का अपने प्राण प्यारे चेतक के प्रति अनन्य भाव व्यक्त हुए हैं।
  2. प्रताप का आत्मकथन में सच्चाई और विश्वसनीयता है।
  3. भाव हृदयस्पर्शी है।
  4. भाषा सरल है।
  5. काव्य रस का संचार है।
  6. शैली भावात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति है और क्यों?
  2. चेतक की विशेषताओं को लिखिए।
  3. प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव क्या है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में राणा प्रताप का कथन चेतक के प्रति है। यह इसलिए कि चेतक उनका प्राणप्रिय घोड़ा था। उसके समाप्त होने पर राणा प्रताप अपनी व्यथा को प्रकट किए बिना नहीं रह सके थे।

2. चेतक की कई विशेषताएँ थीं, जैसे

  • सुख-दुख का साथी
  • महान वीर
  • देशभक्त और स्वामिभक्त
  • कर्त्तव्यनिष्ठ, और
  • महान प्रेमी व आत्मीय।

3. प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव है-राणा प्रताप के प्राणप्रिय घोड़ा चेतक की अच्छाइयों पर प्रकाश डालना।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. मेवाड़ में किसका क्या नहीं करने का जी करता?
  2. चेतक के चले जाने पर राणा प्रताप की दशा कैसी हो गई है?
  3. राणा प्रताप की क्या इच्छा होती है?

उत्तर:

  1. मेवाड़ में राणा प्रताप का पैर रखने को जी नहीं करता।
  2. चेतक के चले जाने पर राणा प्रताप की दशा बड़ी दयनीय और निराशाजनक हो गई है। उनका रोम-रोम घायल हो गया है। उनके प्राण कण्ठ में आ रहे हैं। उन्हें एक कदम चलना कठिन हो गया है।
  3. राणा प्रताप की इच्छा होती है कि वह अपने प्राणप्रिय घोड़े चेतक के शव के पास दौड़ते हुए लौट आवें। उससे लिपटकर जी भरकर आँसू बहाएं। वहीं पर किसी चट्टान से अपने सिर को टक्कर मारकर मर जाएँ।

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प्रश्न 3.
आँखें खोलकर मेवाड़ी वीरों का बलिदान देखने से इस युद्ध ने कान मलकर मुझे बता दिया कि मेरा अहंकार व्यर्थ है। मुझसे कई गुनी वीरता, कई गुनी देशभक्ति और कई गुना त्याग मेवाड़ के एक-एक सैनिक के हृदय में हिलोरें ले रहा है। और आप! आप तो देव हैं भैया। मेवाड़ के सौभाग्य से यहाँ जन्म लेने आए हैं। आपकी यह क्षत-विक्षत देह और प्राणों की ममता छोड़कर भीषण संग्राम। आश्चर्य होता है भैया, और श्रद्धा उमड़ पड़ती थी। इच्छा होती थी कि तुम्हारे चरणों पर सिर रखकर समरांगण में सदा के लिए वीरों की नींद सोया जाए। भैया, क्या तुम मुझे क्षमा न करोगे? मेवाड़ को फिर एक बार बड़े प्यार से माँ कहने का अधिकार न दोगे? भैया, मुझे क्षमा करो।

शब्दार्थ:

  • बलिदान – त्याग।
  • कान मलकर बताना – बिल्कुल साफ-साफ कहना।
  • अहंकार – घमण्ड।
  • व्यर्थ – बेकार।
  • देव – देवता।
  • क्षत – विक्षत – घायल।
  • देह – शरीर।
  • ममता – लगाव।
  • भीषण – भयंकर।
  • संग्राम – युद्ध।
  • समरांगण – युद्धभूमि।

प्रसंग:
पूर्ववत्। प्रस्तुत गद्यांश में महाराणा प्रताप के शक्ति सिंह के आत्मपश्चात्ताप का उल्लेख किया गया है। शक्ति सिंह घायल राणा प्रताप के सामने आत्मपश्चात्ताप प्रकट करते हुए कह रहा है कि –

व्याख्या:
इस हल्दीघाटी के युद्ध में मुझे यह बड़ा ही स्पष्ट ज्ञान हो गया है कि मेरा घमण्ड निराधार है। मैं कुछ भी नहीं हूँ। मुझसे मेवाड़ का एक-एक सैनिक बहुत बड़ा वीर, देश-भक्त और त्यागी है। मुझमें तो कुछ भी वीरता, देश-भक्ति और प्राणों को न्यौछावर करने की भावना नहीं है, जबकि मेवाड़ के एक-एक सैनिक का हृदय इस प्रकार के पवित्र और महान भावों से भरा हुआ है।

शक्ति सिंह ने राणा प्रताप के प्रति अपने आत्मीय, पवित्र और उच्च भावों को रखते हुए कहा-भैया! आप तो हमारे लिए देवता समान हैं। आपका मेवाड़ में जन्म लेना मेवाड़ के लिए बड़े ही सौभाग्य और गौरव की बात है। जब-जब मैं आपको घायल होते हुए घनघोर युद्ध में अपने प्राणों की तनिक परवाह किए बिना देखता था, तब-तब मुझे घोर आश्चर्य होता। उससे मुझे अपार श्रद्धा की भावना आपके प्रति बढ़ जाती थी। फिर मेरी यही हार्दिक इच्छा होती थी कि काश! आपके चरणों पर अपने सिर को रखकर इस युद्ध-भूमि में एक सच्चे वीर की तरह अपने प्राणों का बलिदान कर दूं। इसलिए अब मुझे एक ही ललक और जिज्ञासा है कि क्या आप मुझे अपनी जन्मभूमि मेवाड़ को. माँ कह लेने को एक बार मौका नहीं देंगे। इसी प्रकार क्या आप मुझे अपना छोटा समझकर मेरी गलतियों को क्षमा नहीं कर देंगे।

विशेष:

  1. शक्ति सिंह का आत्मपश्चात्ताप प्रेरक रूप में है।
  2. देश-भक्ति की प्रबलधारा है।
  3. वीर रस का सुन्दर प्रवाह है।
  4. शैली सुबोध है।
  5. वाक्य-गठन भाववर्द्धक रूप में है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत गद्यांश में किसका कथन किसके प्रति ही?
  2. प्रस्तुत गद्यांश के मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
  3. शक्ति के कथन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

  1. प्रस्तुत गद्यांश में शक्ति सिंह का कथन राणा प्रताप के प्रति है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव है-शक्ति सिंह का राणा प्रताप के प्रति भातृत्व प्रेम को प्रकट करना।
  3. शक्ति सिंह के कथन का मुख्य उद्देश्य यही है कि राणा प्रताप उसे अपने भाई के रूप में पहले की तरह अपनाकर उसकी गलतियों को क्षमा कर दें।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 6 अपना देश सँवारें हम

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 6 अपना देश सँवारें हम (कविता, श्रीकृष्ण ‘सरल’)

अपना देश सँवारें हम पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर

अपना देश सँवारें हम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने सूरज को किसका प्रतीक बताया है?
उत्तर:
कवि ने सूरज को नई क्षमता का प्रतीक बताया है।

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प्रश्न 2.
कविता हमें किसका पोषक बनने का संकेत करती है?
उत्तर:
कविता हमें जन – समता का पोषक बनने का संकेत करती है।

प्रश्न 3.
प्रतिकूल हवाओं से हमें किसकी रक्षा करनी है?
उत्तर:
प्रतिकूल हवाओं से हमें अपने देश की रक्षा करनी है।

अपना देश सँवारें हम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सृजन के संवाहक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सृजन के संवाहक से तात्पर्य है – नई – नई आशाओं के अनुसार कार्य करते हुए आनेवाली पीढ़ी को मार्ग – दर्शन प्रदान करना। प्रस्तुत कविता में सृजन के संवाहक भारतीय’नवयुवकों को कहा गया है। उनसे ही कवि को ऐसी अनेक उम्मीदें हैं। जिनसे हमारे देश का नव – निर्माण सम्भव है।

प्रश्न 2.
चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए हमारी कैसी तैयारी हो?
उत्तर:
चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए हमारी तैयारी अधिक व्यापक होनी चाहिए। वह छोटी – बड़ी हर स्तर की होनी चाहिए। उसमें अपेक्षित ओज, शक्ति और क्षमता के भाव होने चाहिए। यही नहीं, उसमें भावों की सजगता, रोचकता और तत्परता भी होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
कर्म को कवि ने किन रूपों में व्यक्त किया है?
उत्तर:
कर्म को कवि ने विविध रूपों में व्यक्त किया है –

  1. कुदाल के रूप में
  2. हलों के फाल के रूप में
  3. तलवार के रूप में और देश की ढाल के रूप में।

प्रश्न 4.
कविता में निहित सन्देश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने राष्ट्र:निर्माण के लिए भारतीय नवयुवकों को संकल्पबद्ध होकर कर्त्तव्य मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा दी है। इसके लिए कवि ने नवयुवकों को निर्माण और विकास का संवाहक कहा है। कवि का यह मानना है कि आज नवयुवकों को अपने कर्म:पथ पर निरन्तर चलने का व्रत लेकर चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है। नवयुवक जन:समता को पोषित करते हुएं मानवता का मार्ग बाधारहित बनाते हुए अपने देश को सम्पन्न बना सकते हैं।

अपना देश सँवारें हम भाव – विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
“हमें देश की …….. गली:गली उजियारे हम।” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने देश के नवयुवकों को संकल्पबद्ध होकर नव:निर्माण में तन – मन से लग जाने का आहवान किया है। इसके लिए कवि देश के नवयुवकों को समुत्साहित करते हुए यह कहना चाहा है कि उन्हें संकल्पबद्ध होना चाहिए। उनका संकल्प होना चाहिए कि उन्हें हर प्रकार से कठिनाइयों का सामना करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। उनका यही ध्येय होना चाहिए कि उनसे देश का हर नगर, गाँव और गली अभावों से मुक्त होकर सम्पन्न और खुशहाल बन सके।

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प्रश्न 2.
“नए भगीरय बन वैचारिक गंगा नई उतारें हम” के भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“नए भगीरथ बन वैचारिक गंगा नई उतारें हम’ का भाव नए युग की माँग के अनुसार देश – समाज का कायाकल्प करना है। कवि का यह कहना है कि हमें देश और समाज के नव – निर्माण के लिए नए भाव, विचार और नए प्रयास करने चाहिए। इसे सभी देशवासियों को अपना पुनीत कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए।

प्रश्न 3.
“हम प्रतिरूप नए युग के हैं।” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“हम प्रतिरूप नए युग के हैं।” का आशय है – युग की आवश्यकतानुसार स्वयं को ढाल लेना। ऐसा करके ही नए युग की आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं। सभी देश – समाज का भला होगा। फिर देश:समाज के प्रति हमारी कर्तव्यपरायणता सफल और सार्थक होगी। तभी हम सच्चे देश – समाज:के सेवक, पोषक और पालक कहे जाएँगे।

अपना देश सँवारें हम भाषा – अध्ययन

प्रश्न:1.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
सृजन, संवाहक, प्रतिबद्ध, सन्नद्ध, चुनौती।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 6 अपना देश सँवारें हम img-1

प्रश्न:2.
निम्नलिखित शब्दों के तीन – तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए –
हवा, सूरज, पंथ, जन, गंगा
उत्तर:
हवा – वायु, समीर, पवन।
सूरज – सूर्य, रवि, दिनकर।
पंथ – पथ, राह, मार्ग।
जन – मनुष्य, मानव, मनुज।
गंगा – भागीरथी, सुरसरि, जाह्नवी।

अपना देश सँवारें हम योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
देश:भक्ति से सम्बन्धित एक नाटिका स्वयं बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
आप अपने देश की प्रगति के लिए क्या – क्या करना चाहेंगे? दस वाक्यों में लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
आप अपने विद्यालय/गाँव/शहर को सँवारने के लिए क्या – क्या प्रयास कर रहे हैं, लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

अपना देश सँवारें हम परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अपना देश सँवारें हम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने अपने देश की धरती को क्या कहा है?
उत्तर:
कवि ने अपने देश की धरती को पावन कहा है।

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प्रश्न 2.
कवि ने अपने देश के नवयुवकों को किन – किन विशेषणों से विश्लेषित किया है?
उत्तर:
कवि ने अपने देश के नवयुवकों को निम्नलिखित विशेषणों से विश्लेपित किया है –

  1. नए सृजन के संवाहक
  2. प्रगति पंथ के राही
  3. युग के प्रतिवद्ध पहरुए और
  4. सन्नद्ध सिपाही।

प्रश्न 3.
कवि ने देश के नवयुवकों को क्या साफ:सुथरा रखने की प्रेरणा दी है?
उत्तर:
कवि ने देश के नवयुवकों को अपना, सबका और मानवता का रास्ता साफ:सुथरा रखने की प्रेरणा दी है।

अपना देश सँवारें हम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने देश के नवयुवकों में किन – किन कर्मों का होना आवश्यक बतलाया है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने देश के नवयुवकों में निम्नलिखित कर्मों का होना आवश्यक बतलाया है –

  1. कुदाली
  2. हलों के फाल
  3. शत्रु के लिए तलवार
  4. देश की ढाल

उपर्युक्त कर्मों से नया भगीरथ बनकर देश की पवित्र धरती पर वैचारिक गंगा को उतारा जा सकता है।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता के केन्द्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने राष्ट्र – निर्माण की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने की प्रेरणा दी है। कवि ने नवयुवकों का आह्वान करते हुए सृजन और प्रगति का वाहक निरूपित किया है। आज नवयुवकों को कर्म:पथ पर सतत चलने का व्रत लेकर चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है। नौजवान जन समता को पोषित करते हुए मानवता का मार्ग बाधारहित बनाते हुए अपने देश को समृद्ध कर सकते हैं।

अपना देश सँवारें हम कवि-परिचय

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण ‘सरल’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय स्वाधीनता सेनानियों और क्रान्तिकारियों का यशगान करने वाले कवियों में श्रीकृष्ण ‘सरल’ का नाम अत्यन्त लोकप्रिय है। शहीदों के प्रति श्रद्धा-भाव रखने और प्राचीन भारतीय सभ्यता के अमर-गायक श्रीकृष्ण ‘सरल’ अत्यधिक प्रसिद्ध कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

जीवन-परिचय:
कविवर श्रीकृष्ण ‘सरल’ का जन्म मध्य-प्रदेश के गुना जिलान्तर्गत अशोक नगर में 1 जनवरी, 1919 को हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण वातावरण में ही हुई। आपका बालस्वरूप अत्यन्त स्वाभिमानी और स्वाध्यायी था। आपने अपने स्वाध्याय के द्वारा कई परीक्षाओं को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर लिया। शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त आपने अध्यापन क्षेत्र में प्रवेश लिया। इस अध्यापन-वृत्ति से आप आजीवन सम्बद्ध रहे। इसे आपने अत्यन्त सफलतापूर्वक निभाया। सन् 1976 में आप शिक्षा महाविद्यालय, उज्जैन से सेवा-निवृत्त हुए। तब से लेकर अब तक आप स्वतन्त्र रूप से लेखन-कार्य में व्यस्त हैं –

रचनाएँ:
श्रीकृष्ण ‘सरल’ ने काव्य और गद्य दोनों पर ही अपना समानाधिकार दिखाया है। आपकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

1. महाकाव्य:

  • भगत सिंह
  • चन्द्रशेखर आजाद
  • सुभाषचन्द्र बोस

2. काव्य-संकलन:

  • मुक्तिगान
  • स्मृति-पूजा।

3. बाल-साहित्य:

  • बच्चों की फुलवारी।

4. गद्य ग्रन्थ:

  • संसार की प्राचीन समस्याएँ
  • सुभाष-दर्शन आदि।

भाषा-शैली:
श्रीकृष्ण ‘सरल’ की भाषा उनके नाम के अनुरूप ही है। दूसरे शब्दों में उनकी भाषा सरल, सुबोध और सुस्पष्ट है। उसमें तद्भव और देशज शब्दावली की प्रधानता है। इस प्रकार की भाषा से भावाभिव्यक्ति को स्पष्ट होने में कठिनाई नहीं दिखाई देती। श्रीकृष्ण ‘सरल’ की शैली ओजमयी और प्रौढ़मयी है। वह अधिक सशक्त, पुष्ट और सबल है। गम्भीर-से-गम्भीर विषयों को अलंकृत शैली में प्रस्तुत करने की विशेषता प्रकट करने वाले श्रीकृष्ण ‘सरल’ में भाषा-शैली की प्रचुर क्षमता और योग्यता है।

व्यक्तित्व:
श्रीकृष्ण ‘सरल’ का व्यक्तित्व देशभक्त और क्रान्तिकारी व्यक्तित्व का है। उनके व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष है-भारतीय अतीत के प्रति आस्थावान और श्रद्धावान होना। इन दोनों प्रकार के व्यक्तित्व को जोड़कर एक पूरा और सफल व्यक्तित्व बना है – सफल और परिपक्व रचनाशील व्यक्तित्व। इस तरह से श्रीकृष्ण ‘सरल’ का व्यक्तित्व एक युगीन व्यक्तित्व सिद्ध होता है।

महत्त्व:
श्रीकृष्ण ‘सरल’ का राष्ट्रीय विचार-प्रधान रचनाकारों में विशिष्ट स्थान है। अतीत के सत्प्रेरक रूप में प्रस्तुत करने वाले साहित्यकारों में भी उनका स्थान सर्वोच्च है। भारतीय संस्कृति का महत्त्वांकन करने में जितनी बड़ी सफलता आपको मिली है, उतनी अन्यत्र कम ही दिखाई देती है।

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अपना देश सँवारें हम पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण ‘सरल’ रचित ‘अपना देश सँवारें हम’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्रीकृष्ण ‘सरल’ रचित ‘अपना देश सँवारें हम’ कविता राष्ट्र-निर्माण के संकल्प को पूरा करने की प्रेरणादायक कविता है। इसमें कवि ने युवकों को ललकारते और उत्साहित करते हुए उन्हें आने वाली कठिनाइयों से सावधान किया है। इस विषय में कवि ने नवयुवकों को उनकी पहचान बतलाते हुए कहा है कि वे नए युग के प्रतिरूप हैं। वे सूरज की तरह नयी क्षमता और नए क्षितिज के खोजी हैं। यही नहीं, वे तो जन समता को पोषित करते हुए और मानवता का रास्ता सरल बनाते हुए अपने देश को खुशहाल और सम्पन्न बना सकते हैं।

अपना देश सँवारें हम संदर्भ – प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
अपना देश सँवारें हम।
अपनी इस पावन धरती का आओ रूप निखारें हम।
अपना देश सँवारें हम………………….।
नए सृजन के संवाहक हम
प्रगति-पंथ के राही हैं,
हम प्रतिबद्ध पहरुए युग के
हम सन्नद्ध सिपाही हैं
जो भी मिले चुनौती, उत्तर दें उसको स्वीकारें हम।
अपना देश सँवारें हम ……………..।
कर्म हमारे बनें कुदाली
कर्म हलों के फाल बनें,
कर्म बनें तलवार शत्रु को
कर्म देश की ढाल बनें।
नए भगीरथ बन, वैचारिक गंगा नई उतारें हम।
अपना देश सँवारें हम ……………….।

शब्दार्थ:

  • पावन – पवित्र
  • सृजन – निर्माण
  • संवाहक – ढोने वाला (वहन करने वाला)।
  • प्रगति – विकास।
  • पंथ – रास्ता।
  • राही – मुसाफिर।
  • पहरुए – पहरेदार।
  • सन्नद्ध – तत्पर।
  • भागीरथ – अथक परिश्रम करने वाला (राजा दिलीप के सुपुत्र जो गंगा को पृथ्वी पर लाए थे)।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग – 1’ में संकलित तथा श्रीकृष्ण ‘सरल’ द्वारा रचित ‘अपना देश सँवारें हम’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने अपने देश के नवयुवकों को अपने देश के विकास के लिए पुकारते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
हे मेरे देश के नवयुवको! आओ, हम सब मिल-जुलकर अपने देश को विकसित करें। इस देश की धरती को और अधिक खुशहाल और उपजाऊ बनाएँ। कवि का पुनः कहना है कि हे मेरे देश के नवयुवको! हमें यह हमेशा याद रहना चाहिए कि हम सब नव-निर्माण के संवाहक हैं। प्रगति के रास्ते पर चलने वाले हैं। हम इस युग के प्रतिबद्ध पहरेदार सिपाही हैं। इसलिए हमें जो चुनौती मिले, हम उसे स्वीकार करके आगे बढ़ते रहेंगे।

कवि देश के नवयुवकों को ललकारते हुए कह रहा है कि हमें अपने कर्म को कुदाली, हल के फाल, तल और देश की ढाल के रूप में आगे बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्रकार हमें युग की माँग के अनुसार नए भगीरथ बन करके वैचारिक गंगा को इस धरती पर प्रवाहित करना चाहिए। इस प्रकार हमें अपने देश को विकास के रास्ते पर हमेशा आगे बढ़ाते जाना चाहिए।

विशेष:

  1. कवि ने देश के नवयुवकों को देश के नव-निर्माण के उत्तरदायित्व की ओर ध्यान दिलाया है।
  2. वीर रस का प्रवाह है।
  3. भाषा में ओज है।
  4. उच्चस्तरीय तत्सम शब्द है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य बड़ा ही आकर्षक है। इसमें कवि ने देश के नवयुवकों को समुत्साहित करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। उसने देश के नवयुवकों को सृजन के संवाहक, प्रगति पथ के राही, प्रतिबद्ध पहरुए, युग के सन्नद्ध सिपाही आदि विशेषणों से ललकारने का सुन्दर प्रयास किया है। उसने देश के नवयुवकों के कर्म को असाधारण बतलाते हुए उसे हर प्रकार से देश-हित और प्रगति का एकमात्र साधन माना है। उसने देश के युवकों को नए भगीरथ बनकर वैचारिक गंगा प्रवाहित करने की जो पुकार लगाई है, वह वास्तव में अत्यधिक प्रेरक है।

2. प्रस्तुत काव्यांश की भाषा उच्चस्तरीय तत्सम शब्दों की है। देश के नवयुवकों का अनेक विशेषणों से विभूषित करने का प्रयास प्रशंसनीय है। तुकान्त शब्दावली से युक्त प्रस्तुत पद्यांश गीतात्मक शैली में है। पूरा पद्यांश वीर रस से ओत-प्रोत है। शब्द और भाव-योजना अधिक आकर्षक रूप में है।

3. प्रस्तुत् पद्यांश का मुख्य भाव है-देश के नवयुवकों को देश को खुशहाल और सम्पन्न बनाने के लिए संकल्पवद्ध होकर उसे पूरा करने की प्रेरणा देना है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. किसने किसको क्या कहा है?
  3. देश का कायाकल्प करने के लिए कवि ने सबसे बड़ी कौन-सी आवश्यकता बताई है?

उत्तर:

  1. कवि-श्रीकृष्ण ‘सरल’, कविता-‘अपना देश सँवारें हम’।
  2. कवि ने देश के नवयुवकों से देश के नव-निर्माण के लिए कमर कसकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।।
  3. देश का कायाकल्प करने के लिए कवि ने देश के नवयुवकों को यह आवश्यकता बताई है कि वे नए भगीरथ बनकर इस देश की धरती पर वैचारिक गंगा को प्रवाहित करें।

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प्रश्न 2.
हमें देश की रक्षा करनी
है प्रतिकूल हवाओं से,
हमको है घर – द्वार सजाने
नई – नई आशाओं से।
अन्धकार से जूझ, देश की गली-गली उजियारें हम।
अपना देश सँवारें हम …………….।
हम प्रतिरूप नए युग के हैं।
सूरज नूतन क्षमता के
नए क्षितिज के अन्वेषी हम
पोषक हम जन – समता को
अपना, सबका, मानवता का मिलजुल पंथ बुहारें हम।
अपना देश सँवारें हम ………………।

शब्दार्थ:

  • प्रतिकूल – विपरीत।
  • प्रतिरूप – समान रूप।
  • क्षितिज – वह काल्पनिक मिलन रेखा, जहाँ आकाश और पृथ्वी मिलते हुए दिखाई देते हैं।
  • अन्वेषी – खोजने वाला।
  • नूतन – नयी।
  • क्षमता – शक्ति।
  • पोषक – रक्षा करने वाला।
  • समता – समानता।
  • बुहारें – साफ करें।

प्रसंग – पूर्ववत्।

व्याख्या:
हे मेरे देश के नवयुवको! आओ, आज हम यह दृढ़ सकंल्प लें कि हमें अपने देश की रक्षा करनी है। इसके लिए हमें देश की रक्षा में विघ्न डालने वाली विपरीत हवाओं से टक्कर लेनी होगी। ऐसा करके ही हम अपने देश के प्रत्येक घर-द्वारं को सजा सकते हैं। फिर उसमें नई-नई उम्मीद की झड़ी लगा सकते हैं। इस पर हमें विघ्न-बाधाओं रूपी अन्धकार से जूझकर अर्थात् दूर करके अपने देश की हर सड़क, हर गाँव और गली में प्रकाश फैला सकते हैं। इस तरह आज हम यह दृढ़संकल्प लें कि अपने देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाते जाना है।

कवि अपने देश के नवयुवकों को उनकी महानता और विशिष्टता की याद दिलाते हुए उनसे यह कह रहा है कि हमें यह भलीभाँति जानना चाहिए कि हम आज के युग के प्रतिरूप हैं। नयी-नयी क्षमताओं के हम सूरज हैं। नए-नए क्षितिज के हम खोजी हैं। जन-समता के हम पालक-पोषक हैं। इस प्रकार हमें अपना ही नहीं, अपितु सभी का और पूरी मानवता का मिल-जुलकर देश के विकास के रास्ते पर आने वाली कठिनाइयों को दूर करते हुए आगे बढ़ते जाना है।

विशेष:

  1. कवि ने देश के नवयुवकों में स्वदेश के विकास के लिए दृढ़संकल्प करने का उत्साह दिया है।
  2. वीर रस का प्रवाह है।
  3. ‘नई-नई’ और ‘गली-गली’ में पुररुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘सूरज नूतन क्षमता के’ में मानवीकरण अलंकार है।
  5. उच्चस्तरीय तत्सम शब्द हैं।
  6. शैली गीतात्मक है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य ओजपूर्ण है। इसमें भारतीय नवयुवकों में दृढ़संकल्प भाव भरने का प्रयास बड़ा ही रोचक और उत्साहपूर्ण है। इसमें नवयुवकों में कुछ कर गुजरने का जोश आना स्वाभाविक लगता है। भावों की क्रमबद्धता और प्रभावमयता देखते ही बनती है। पूरा पद्यांश देश-हित के अनुकूल होकर कर्तव्यबोध को लाने में अनुकूल सिद्ध हो रहा है। नए-नए भावों को उत्साहवर्द्धक रूप में प्रस्तुत करने का कवि-प्रयास सचमुच में काबिलेतारीफ है।

2. प्रस्तुत पद्यांश भाव और भाषा-शैली की दृष्टि से अधिक सार्थक है। भारतीय नवयुवकों को संकल्पबद्ध हो देश के निर्माण के लिए कवि के प्रेरित भाव वीर रस के प्रवाह से प्रवाहित है। तत्सम शब्द उच्चस्तरीय होकर भी भावों के अनुसार है। विभिन्न प्रकार के अलंकारों से यह पद्यांश अलंकृत होकर चमत्कृत हो उठा है।

3. प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-भारतीय नवयुवकों को युग के अनुसार सचेत होकर बड़ी दृढ़तापूर्वक देश के नव-निर्माण के लिए प्रेरित करना।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
  2. देश की रक्षा करने में कौन-कौन-सी बाधाएँ हैं?
  3. भारतीय नवयुवकों की कौन-कौन विशेषताएँ हैं?

उत्तर:

  1. कवि-श्रीकृष्ण ‘सरल’, कविता-‘अपना देश सँवारें हम’।
  2. देश की रक्षा करने में कई बाधाएँ हैं, जैसे-प्रतिकूल परिस्थितियाँ, गरीबी, आबादी, अज्ञान, निराशा, असमानता आदि।
  3. भारतीय नवयुवकों की कई विशेषताएँ हैं, जैसे-नए युग के प्रतिरूप, नई क्षमता के सूरज, नए क्षितिज के खोजी, जन-समता के पोषक आदि।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला (कहानी, भगवती प्रसाद वाजपेयी)

मिठाईवाला पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

मिठाईवाला लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
खिलौने वाले की आवाज कैसी थी?
उत्तर:
खिलौने वाले की आवाज मादक और मधुर थी।

प्रश्न 2.
खिलौने वाले की आवाज सुनकर बच्चों पर उसका क्या प्रभाव पड़ता?
उत्तर:
खिलौने वाले की आवाज सुनकर बच्चों में हलचल मच जाती थी। वे इठलाते हुए खिलौने वाले को घेर लेते थे।

प्रश्न 3.
मुरलीवाले का व्यक्तित्व कैसा था?
उत्तर:
मुरलीवाले का व्यक्तित्व बड़ा सरल और रोचक था।

प्रश्न 4.
मुरलीवाले की आवाज सुनकर रोहिणी को किसका स्मरण हुआ?
उत्तर:
मुरलीवाले की आवाज सुनकर रोहिणी को खिलौनेवाले का स्मरण हुआ।

प्रश्न 5.
खिलौनेवाला प्रत्येक बार किस-किस तरह से आवाज लगाकर बच्चों को बुलाता था?
उत्तर:
खिलौनेवाला प्रत्येक वार बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला मधुर और मादक आवाज लगाकर बच्चों को बुलाता था।

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प्रश्न 6.
खिलौनेवाले, मुरलीवाले और मिठाईवाले में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
खिलौनेवाले, मुरलीवाले और मिठाईवाले में अपनापन और भाईचारा का सम्वन्ध था।

प्रश्न 7.
कहानी विधा के मूल तत्त्वों में से किसी एक तत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कहानी विधा के मूल तत्त्व 6 हैं-

  1. कथानक या कथावस्तु,
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. देशकाल या वातावरण
  4. कथोपकथन या संवाद
  5. भाषा-शैली, और
  6. उद्देश्य।

उद्देश्य :
कहानी विधा का अन्तिम तत्त्व है-उद्देश्य । कहानी के सभी तत्त्व अर्थात् . कथावस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण और भाषा-शैली सभी की सार्थकता की कसौटी उद्देश्य ही है। कहानी का उद्देश्य उपदेशात्मक तो होता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष अर्थात् कलात्मक ढंग से ही होता है। यहाँ यह ध्यान देना होगा कि सभी कहानियों के उद्देश्य अलग-अलग ढंग से दिखाई देते हैं। कुछ कहानियों के उद्देश्य स्पष्ट होते . हैं, तो कुछ के अस्पष्ट। नई कहानियों के उद्देश्य में परम्परा के प्रति विद्रोह वर्तमान से निराशा, कुण्ठा, घुटन, पराजय आदि प्रवृत्तियां कलात्मक ढंग से प्रस्तुत होती हैं।

मिठाईवाला दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुरलीवाले के भाव सुनकर विजय वाबू ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर:
मुरलीवाले के भाव सुनकर विजयबाबू ने अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने मुरलीवाले से कहा, “तुम लोगों को झूठ बोलने की आदत ही होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो।”

प्रश्न 2.
मुरलीवाले के अनुसार ग्राहकों के क्या दस्तूर हैं?
उत्तर:
मुरलीवाले के अनुसार ग्राहकों के दस्तूर हैं कि दुकानदार चाहे हानि ही उठाकर चीज क्यों न बेचे, पर ग्राहक यही समझते हैं-दुकानदार मुझे लूट रहा है। इस तरह ग्राहक दुकानदार का बिल्कुल विश्वास नहीं करता है।

प्रश्न 3.
“तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं हैं, अच्छा, तुम भी यह लो।” इस कथन से मुरलीवाले को किस स्वभावगत विशेषता का पता चलता है?
उत्तर:
“तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं हैं, अच्छा, तुम भी यह लो।” उपर्युक्त कथन से मुरलीवाले के आत्मीय और वात्सल्य स्वभाव की विशेषता का पता चलता है। इसके साथ ही यह कि वह बच्चों की खुशी में अपने बच्चों की खुशी का अनुभव करता था।

प्रश्न 4.
मिठाईवाला दादी को अपनी मिठाइयों की क्या-क्या विशेषताएँ बताता हैं?
उत्तर:
मिठाईवाला दादी को अपनी मिठाइयों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताता है-“ये नए तरह की मिठाइयाँ हैं-रंग-बिरंगी, कुछ-कुछ खट्टी, कुछ-कुछ मीठी, जायकेदार, बड़ी देर तक मुँह में टिकती हैं। जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे इन्हें बड़े चाव से चूसते हैं। इन गुणों के सिवा ये खाँसी भी दूर करती हैं। कितनी दूँ? चपटी, गोल, पहलदार गोलियाँ हैं। पैसे की सोलह देता हूँ।”

प्रश्न 5.
कहानी के आधार पर मिठाईवाले की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कहानी के आधार पर मिठाईवाले की चारित्रिक विशेषतएँ निम्नलिखित हैं-मिठाईवाला प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति था। उसके भी बच्चे और भरा-पूरा परिवार था। पर वह सब दुर्भाग्य से नष्ट हो गया था। अब वह अपने बच्चों को खिलौने आदि बेचते हए ढूँढ़ता फिरता था। इसलिए उसके स्वर में स्नेह और माधुर्य होता था। वह मुरली बजा-बजाकर, गाना सुना-सुनाकर मुरली बेचता था। इसलिए जब वह नगर में मुरलियाँ बेचने के लिए आया तो नगर-भर में उसके आने का समाचार फैल गया।

प्रश्न 6.
अन्य दुकानदारों और मिठाईवाले में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अन्य दुकानदारों और मिठाईवाले में बहुत बड़ा अन्तर है। अन्य दुकानदारों की अपेक्षा मिठाईवाले का बच्चों के प्रति बहुत अधिक प्यार और लगाव था। वह सौदा सस्ता बेचता है। इसके साथ ही वह भला’ और ईमानदार आदमी है। समय का मारा-मारा फिरने पर भी उसमें सरसता और विनम्रता है।

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प्रश्न 7.
मिठाईवाले ने रोहिणी से पैसे क्यों नहीं लिये?
उत्तर:
मिठाईवाले ने रोहिणी से पैसे नहीं लिये; क्योंकि उसके पास पैसे की कमी नहीं थी। दूसरी बात यह कि उसे रोहिणी के बच्चों में अपने खोए हुए बच्चों की एक झलक मिल गई, जिनकी खोज में वह वर्षों से निकला है।

प्रश्न 8.
कहानी के विकास-क्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

हिन्दी कहानी के विकास क्रम को छः भागों में इस प्रकार बाँटा जा सकता है-

  1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक)
  2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक)
  3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक)
  4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक)
  5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक)
  6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अब तक)।

1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) :
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’। यह काल हिन्दी कहानी का आरम्भिक काल कहा जाता है। इसके बाद चन्द्रधर शर्मा की ‘इन्दुमती’, बंग महिला की ‘दुलाईवाली’, रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ आदि कहानियाँ हिन्दी की आरम्भिक कहानियाँ मानी जाती हैं।

2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक) :
इस काल में जयशंकर प्रसाद महाकथाकार के रूप में उभड़कर आए। सन् 1911 में उनकी ‘ग्राम’ कहानी ‘इन्दु’ नामक.मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘इन्द्रजाल’ आदि कहानी-संग्रह प्रकाशितः हुए। उनके अतिरिक्त विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, ज्वालादत्त शर्मा, चतुरसेन शास्त्री, जे.पी. श्रीवास्तव, राधिकारमण प्रसाद सिंह आदि उल्लेखनीय कथाकार इसी काल की देन हैं।

3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक) :
इस काल को महत्त्व कथा साहित्य की दृष्टि से बहुत ही अधिक है। यह इसलिए कि इसी काल में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का आगमन हुआ। उन्होंने अपनी कहानियों में भारतीय समाज की ऐसी सच्ची तस्वीर खींची जो किसी काल के किसी भी कथाकार के द्वारा सम्भव नहीं हुआ। ‘ईदगाह’, ‘पंच-परमेश्वर’, बूढ़ी काकी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘मन्त्र’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दो बैलों की कथा’ आदि उनकी बहुत प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। इस काल के अन्य महत्त्वपूर्ण कथाकारों में सुदर्शन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शिवपूजन सहाय, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामकृष्ण दास, वृन्दावन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद बाजपेयी आदि हैं।

4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक) :
कहानी कला की दृष्टि से इस काल का महत्त्व इस दृष्टि से है कि इस काल की कहानियों ने विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक और प्रगतिवादी कथाकार इस काल में अधिक हुए। मनोवैज्ञानिक कथाकारों में इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र आदि हुए।

प्रगतिवादी कथाकारों में यशपाल, राहुल सांकृत्यायन; रांगेय राघव, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव आदि उल्लेखनीय हैं। विचार प्रधान कथाकारों में धर्मवीर भारती, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महिला कथाकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक) :
इस काल की कहानी को कई उपनाम मिले, जैसे-‘नई कहानी’, ‘आज की कहानी’, ‘अकहानी’ आदि। इस काल की कहानियों में वर्तमान युग-बोध, सामाजिक विभिन्नता, वैयक्तिकता, अहमन्यता : आदि की अभिव्यंजना ही मुख्य रूप से सामने आई। इस काल के कमलेश्वर, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, अमरकान्त, निर्मल वर्मा, मार्कण्डेय, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी. मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, रघुवीर सहाय, शैलेश मटियानी, हरिशंकर पारसाई, लक्ष्मीनारायण लाल, राजेन्द्र अवस्थी आदि कथाकारों के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं।

6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अव तक) :
इस काल को साठोत्तरी हिन्दी कहानी के नाम से जाना जाता है। इस काल के कहानीकार पूर्वापेक्षा नवी चंतना और शिल्प के साथ रचना-प्रक्रिया में जुटे हुए दिखाई देते हैं। इस काल की कहानी की यात्रा विभिन्न प्रकार के आन्दोलनों से जुड़ी हुई है, जैसे-नयी कहानी (कमलेश्वर, अमरकान्त, मार्कण्डेय, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, मोहन राकेश, शिव प्रसाद सिंह, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा आदि), अकहानी (रमेश बख्शी, गंगा प्रसाद ‘विमल, जगदीश चतुर्वेदी, प्रयाग शुक्ल, दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन आदि), सचेतन कहानी (महीप सिंह, योगेश गुप्त, मनहर चौहान, रामकुमार ‘भ्रमर’ आदि), समानान्तर कहानी (कामतानाथ, से.रा. यात्री, जितेन्द्र भाटिया, इब्राहिम शरीक, हिमांशु जोशी आदि), सक्रिय कहानी (रमेश बत्रा, चित्रा मुद्गल, राकेश वत्स, धीरेन्द्र अस्थाना आदि)।

इनके अतिरिक्त इस काल के ऐसे भी कथाकार हैं, जो उपर्युक्त आन्दोलनों से अलग होकर कथा-प्रक्रिया में समर्पित रहे हैं, जैसे-रामदरश मिश्र, विवेकी राय, मृणाल पाण्डेय, मृदुला गर्ग, निरूपमा सेवती, शैलेश मटियानी, ज्ञान प्रकाश विवेक, सूर्यबाला, मेहरून्निसा परवेज, मंगलेश डबराल आदि।

आज की कहानी शहरी-सभ्यता, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की नई अवधारणा, आपसी . सम्बन्धों के बिखराव, भय और असुरक्षा की भावना, चारित्रिक ह्रास, यौन कुण्ठा, घिनौनी मानसिकता, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष, औद्योगिकीकरण के दुष्प्रभाव से दम तोड़ती मानवता आदि को चित्रित करने में सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इसकी भाषा-शैली दोनों ही तराशती हुई और नए-नए तेवरों को प्रस्तुत करने की क्षमता प्रशंसनीय है।

मिठाईवाला भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) “मिलता भला क्या है। यही खाने भर को मिल जाता है, कभी नहीं भी मिलता है। पर हाँ, सन्तोष, धीरज और कभी-कभी असीम सुख जरूर मिलता है और यही मैं चाहता भी हूँ”।
शब्दार्थ :
असीम-अपार, जिसकी कोई सीमा न हो।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी द्वारा लिखित कहानी ‘मिठाईवाला’ से है। इसमें लेखक ने उस समय का उल्लेख किया है, जब रोहिणी ने मिठाईवाले से पूछा कि उसे इस व्यवसाय से भला क्या मिलता होगा? इसे सुनकर मिठाईवाले ने रोहिणी को बतलाया कि

व्याख्या :
उसे इस व्यवसाय में कुछ अधिक लाभ नहीं मिलता है। उसे जो कुछ मिलता है, उससे वह अपना पेट भर लेता है। जब कभी उसे कुछ लाभ नहीं होता है, तब वह चुपचाप रह जाता है। उस समय उसे सन्तोष, धीरज और असीम सुख-शान्ति का अवश्य अनुभव होता है। इसे वह बहुत बड़ा लाभ समझता है।

विशेष :

  1. यह अंश प्रेरक है।
  2. ‘सन्तोषः परं सुखम्’ सूक्ति का प्रयोग है।
  3. भाषा-शैली सरल है।

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मिठाईवाला भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निर्देशानुसार वाक्यों को परिवर्तित कीजिए-
(क) मुरलीवाला पहले खिलौने वेचा करता था (प्रश्नवाचक वाक्य)
(ख) मुझे खिलौने चाहिए। (आदेशात्मक वाक्य)
(ग) तुमको माँ ने मिठाई खरीदने के पैसे दिए हैं। (नकारात्मक वाक्य)
(घ) वह फिर इधर आएगा (अनिश्चयवाचक वाक्य)
उत्तर:
(क) मुरलीवाला पहले क्या बेचा करता था?
(ख) मुझे खिलौने दो।
(ग) तमको माँ ने मिठाई खरीदने के पैसे नहीं दिए हैं।
(घ) शायद वह फिर इधर आएगा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
विजय, निश्चय, पराक्रम, स्मरण, विश्वास, हर्ष, सन्तोष।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला img-1

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं शब्दों के दो-दो अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग. कीजिए
अर्थ, कल, पृष्ट, वर, हरि, अन्तर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला img-2

प्रश्न 4.
नीचे लिखे भिन्नार्थक समोच्चारित शब्दों की जोड़ी उदाहरण अनुसार बनाइए तथा उनके अर्थ लिखिए-
उदाहरण पथ = राह = पथ्य = रोगी को दिया जाने वाला आहार
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला img-3
उत्तर:
अंश = भाग = अंस = कन्धा
ग्रह = नक्षत्र = गृह = घर
मातृ = माता = मात्र = केवल
चर्म = चमड़ा = चरम = अन्तिम

मिठाईवाला योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपने परिवेश के जिस दुकानदार से प्रभावित हों उसकी विशेषताएँ अपने सहपाठियों के साथ बाँटिए? तथा उस पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
कहानी का नाटकीय रूपान्तरण करके शाला के किसी कार्यक्रम में अभिनय कीजिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
व्यवसायी अपने वचत का पैसा बैंकों में रखते हैं, क्या आपने कभी बैंक में जाकर जमा पर्ची आहरण या चालान भरकर राशि जमा की या निकाली है। यहाँ दी हुई जमा पर्ची का प्रारूप भरकर देखें व बैंक जाकर जमा-आहरण की अधिक जानकारी प्राप्त करिए तथा अन्य बैंक आवेदन पत्रों को एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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मिठाईवाला परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

मिठाईवाला लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मिठाईवाला’ मधुर ढंग से क्यों गाता था?
उत्तर:
मिठाईवाला मधुर ढंग से गाकर सुनने वालों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता था। इसीलिए वह मधुर ढंग से गाता था।

प्रश्न 2.
खिलौनों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
खिलौनों को देखते ही बच्चों का उत्साह बढ़ जाता था। वे पुलकित हो उठते थे और पैसे लाकर खिलौनों का मोल-भाव करने लगते थे।

प्रश्न 3.
मुरलीवाले की कितनी उम्र थी?
उत्तर:
मुरलीवाला ज्यादा बड़ा नहीं था। वह तीस-चालीस वर्ष का था।

प्रश्न 4.
‘मिठाईवाला’ किस-किस रूप में उस गली में आया था।
उत्तर:
मिठाईवाला उस गली में सबसे पहले तो खिलौनेवाले के रूप में आया था। उसके बाद वह मुरलीवाले के रूप में आया। अन्त में वह मिठाईवाला बनकर उस गली में आया था।

मिठाईवाला दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नगर-भर में मुरलीवाले के आने का समाचार क्यों फैल गया?
उत्तर:
मुरलीवाला प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति था। उसके भी बच्चे और भरा-पूरा परिवार था। पर वह सब दुर्भाग्य से नष्ट हो गया था। अब वह अपने बच्चों को खिलौने आदि बेचते हुए ढूँढ़ता फिरता था। इसलिए उसके स्वर में स्नेह और माधुर्य होता था। वह मुरली बजा-बजाकर, गाना सुना-सुनाकर मुरली बेचता था। इसलिए जब वह नगर में मुरलियाँ बेचने के लिए आया तो नगर-भर में उसके आने का समाचार फैल गया।

प्रश्न 2.
रोहिणी को मिठाईवाले का स्वर सुनकर खिलौनेवाले और मुरलीवाले का स्मरण क्यों हो आया?
उत्तर:
मिठाईवाला पहले भी कई बार उस गली में आया था जहाँ रोहिणी रहती थी। पहले वह खिलौने लेकर आया था। इसके बाद वह मुरलियाँ लेकर आया था। उसकी आवाज में मिठास होती थी। वह बच्चों के साथ घुल-मिल जाता था और उन्हें तरह-तरह की चीजें सस्ते दामों में बेचकर प्रसन्न होता था।

मिठाईवाले की आवाज में माधुर्य था। अतः जब उसने मिठाईवाले की मृदुल आवाज सुनी तो उसे खिलौनेवाले और मुरलीवाले का स्मरण हो आया।

प्रश्न 3.
रोहिणी को मिठाईवाले के सम्बन्ध में जानने की उत्सुकता क्यों थी?
उत्तर:
गली में अपनी चीजें बेचने के लिए कई फेरीवाले आते थे। पर उनकी आवाज में ऐसा कोई आकर्षण नहीं होता था। मिठाईवाले की आवाज में मिठास थी। इससे पहले वह खिलौने बेचने के लिए उस गली में आया था। एक बार वह मुरलियाँ बेचने के लिए भी यहीं आया था। वह बच्चों के साथ बड़े प्यार से बातें करता था और सौदा भी सस्ता बेचता था। वह भला आदमी जान पड़ता था और लगता था कि वह दुर्भाग्य से इस तरह मारा-मारा फिर रहा है। इसलिए मिठाईवाले के बारे में जानने के लिए वह उत्सुक हो उठी थी।

मिठाईवाला लेखक-परिचय

प्रश्न.
भगवती प्रसाद वाजपेयी के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय :
भगवती प्रसाद वाजपेयी का जन्म सन् 1899 ई. में कानपुर जिले के एक गाँव मंगलापुर में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। इस कारण वे पढ़ नहीं पाए। उन्होंने केवल आठवीं कक्षा तक ही नियमित शिक्षा प्राप्त की थी। अपनी आजीविका चलाने के लिए उन्होंने पशु चराना, खेती करना, छापेखाने में प्रूफरीडिंग आदि अनेक कार्य किए।

रचनाएँ :
वाजपेयीजी ने अनेक उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं। ‘प्रेम पथ’, ‘त्यागमयी’, मनुष्य और देवता’, ‘विश्वास का बल’ उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। उनके प्रमुख कथा-संग्रह हैं-मधुपर्क, हिलोर, दीप-मालिका, मेरे सपने, बाती और लौ तथा उपहार।

साहित्यक विशेषताएँ :
वाजपेयीजी प्रेमचन्द के बाद के युग के प्रमुख साहित्यकारों में से हैं। उन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता आदि अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की है। उन्होंने सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विषयों पर अनेक कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने इन कहानियों में मध्यम वर्ग के पात्रों को स्थान दिया है। उनकी भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और सरल है।

बालोपयोगी साहित्य और संपादन के क्षेत्र में भी उनका योगदान काफी महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने ‘उर्मि’ और ‘आरती’ नाम की पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था।

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मिठाईवाला पाठ का सारांश

प्रश्न.
‘मिठाईवाला’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस कहानी में लेखक ने एक ऐसे धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति की मानसिक दशा का वर्णन किया है जिसके बच्चों की मृत्यु हो गई थी। वह अपने बच्चों के खो जाने के दुख को मिठाई, मुरली आदि बेचकर भुलाने का प्रयत्न करता है। बच्चे उससे चीजें खरीदकर खुश होते हैं। उनकी खुशी में वह अपने बच्चों की खुशी का अनुभव करता है।

वह खिलौने लेकर गलियों में जाता और मधुर स्वर में बोलता-‘खिलौनेवाला, बच्चों को बहलाने वाला। बच्चे उसकी स्नेह से युक्त मधुर आवाज को सुनते ही उसके पास आ जाते। वह वहीं कहीं बैठकर खिलौनों की पेटी खोल देता। बच्चे खिलौने देखकर खुश हो जाते। वह बच्चों को देखता, उनकी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों और हथेलियों से पैसे लेकर उन्हें खिलौने दे देता। बच्चे खिलौने लेकर उछलने-कूदने लगते।

राय विजय बहादुर के दो बच्चों-चुन्नू और मुन्नू ने भी उससे खिलौने लिये। उनकी माँ रोहिणी को वे खिलौने बहुत सस्ते लगे। बच्चे खिलौनों से घर में उछल-कूद मचाने लगे।

छ: महीने के बाद वह मुरलियाँ लेकर बेचने आया। वह मुरली बजाकर, गाना सुनाकर मुरली बेचता था। वह भी दो-दो पैसे में। प्रतिदिन नगर की प्रत्येक गली में उसका मीठा-मीठा स्वर सुनाई पड़ता था। कई लोग उस मुरलीवाले की चर्चा करते थे। रोहिणी ने भी उस मुरलीवाले का स्वर सुना। उसे तुरन्त खिलौनेवाले का स्मरण हो आया।

मुरलीवाले की आवाज सुनकर बच्चों का झुण्ड इकट्ठा हो गया। उन्हें देख मुरलीवाला प्रसन्न हो उठा। उसने सभी बच्चों को प्रेमपूर्वक मुरलियाँ दीं। विजय बाबू ने भी अपने बच्चों के लिए दो मुरलियाँ लीं।

अपने मकान में बैठी हई रोहिणी मुरलीवाले की बातें सुनती रही। उसने महसूस किया कि बच्चों के साथ इस प्रकार प्यार से बातें करने वाला फेरीवाला पहले कभी नहीं आया।

आठ मास के वाद रोहिणी को फिर नीचे की गली में आवाज सुनाई दी-बच्चों को बहलाने वाला, मिठाईवाला। रोहिणी झट से नीचे उतर आई। उसने दादी से मिठाई वाले को बुलाने के लिए कहा। मिठाई वाला शीघ्र ही वहाँ आ गया। उसने कहा कि उसके पास कई तरह की मिठाइयाँ हैं। वे जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे इन्हें चाव से खाते हैं। इनसे खाँसी भी दूर होती है।

रोहिणी ने चार पैसे की मिठाइयाँ मिठाईवाले से लीं।

रोहिणी ने दादी से कहा कि वह मिठाईवाले से पूछे कि वह कहाँ रहता है और क्या पहले भी वह कभी इधर आया था।

रोहिणी को उसने बताया कि इस व्यवसाय से उसे खाने-भर को मिल जाता है। इससे उसे सन्तोष, धैर्य और असीम संख मिलता है। उसने रोहिणी को उसकी जिज्ञासा शान्त करने के लिए बताया कि उसका मकान, व्यवसाय, नौकर-चाकर, सभी कुछ था। सुन्दर स्त्री थी और बच्चे थे। सभी प्रकार की सुख-सुविधा उसे प्राप्त थी। पर दुर्भाग्य से सभी कुछ नष्ट हो गया था। वह उन बच्चों की खोज में निकला था जिनके कारण उसके आँगन में कोलाहल मचा रहता था। उनके न रहने से वह बहुत दुखी था। अपने दुख को भुलाने के लिए ही वह तरह-तरह की चीजें बच्चों के लिए लाया करता था। बच्चों को हँसता-खेलता देख उसे सन्तोष होता था क्योंकि उसे उन बच्चों में अपने बच्चों की झलक मिल जाती थी।

मिठाईवाला संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. मैं भी अपने नगर का प्रतिष्ठित आदमी था। मकान, व्यवसाय, घोड़े-गाड़ी, नौकर-चाकर, सभी कुछ था। बाहर सम्पत्ति का वैभव था, भीतर सांसारिक सुख का आनन्द । स्त्री सुन्दर थी, मेरी प्राण थी। बच्चे ऐसे सुन्दर थे जैसे सोने के सजीव खिलौने। उनकी अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था। समय की गति। विधाता की लीला। अब कोई नहीं है। बहन, प्राण निकाले नहीं निकले। इसलिए अपने उन: बच्चों की खोज में निकला हूँ।

शब्दार्थ :
प्रतिष्ठित-सम्मानित। वैभव-सम्पन्नता।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी द्वारा लिखित कहानी ‘मिठाईवाला’ से उद्धृत है। इसमें मिठाईवाला रोहिणी की जिज्ञासा के उत्तर में क्या कहता है-इस पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या :
रोहिणी से मिठाईवाला कह रहा है-मैं साधारण व्यक्ति नहीं हूँ। मेरा नगर में बहुत सम्मान था। मेरे पास मकान था। मेरा अपना काम-धन्धा था। मेरे पास सुख-सुविधा की सारी सामग्री थी। नौकर-चाकर थे। सम्पत्ति की कमी नहीं थी। हर प्रकार का सांसारिक सुख मुझे प्राप्त था। घर में भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। मेरी सुन्दर, प्रिय पत्नी थी। सुन्दर और सलोने नटखट बच्चे थे। उनसे घर में सारा दिन चहल-पहल रहती थी।

पर समय बहुत बलवान है। उसकी चाल कोई नहीं समझ सकता। विधाता के खेल निराले होते हैं। दुर्भाग्य से अब मेरा कोई नहीं है। पत्नी, बच्चे सभी का निधन हो गया। पर मेरे प्राण नहीं निकले। मैं अपने बच्चों की खोज में लगा हुआ हूँ।

विशेष :

  1. सारा कथन स्पष्ट रूप में है।
  2. भाव सरल और सीधे हैं।
  3. भावात्मक तथा वर्णानात्मक शैली है।
  4. यह अंश मार्मिक और हृदयस्पर्शी है।
  5. वर्णनात्मक शैली हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) मिठाईवाले ने रोहिणी को क्या बतलाया?
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर:
(i) मिठाईवाले ने रोहिणी को यह बतलाया कि वह अपने नगर का बहुत ही सम्पन्न और सम्मानित आदमी था। यही नहीं, उसका परिवार भरा-पूरा था। दुर्भाग्यवश वह सब कुछ बिखर गया। उसी की खोज में वह इधर-उधर भटक रहा है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय मिठाईवाले का रोहिणी से आपबीती जिन्दगी के बारे में उल्लेख करना है।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में समय के किस पहलू पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यांश का मुख भाव है-मनुष्य के जीवन की विडम्बना को दर्शाना।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में समय की अस्थिरता पर प्रकाश डाला गया है। विधाता की लीला बड़ी विचित्र होती है, वह कब और कैसे समय की गति को मोड़ दे, इसे कोई भी नहीं जान पाता है। इस तथ्य को भी प्रस्तुत गद्यांश में प्रकाशित करने का प्रयास किया गया है।

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2. वे सब अन्त में होंगे तो यही कहीं। आखिर, कहीं-न-कहीं जन्मे ही होंगे। उस तरह रहता तो घुल-घुल कर मरता। इस तरह सुख-सन्तोष के साथ मरूंगा। इस तरह के जीवन में कभी-कभी अपने उन बच्चों की एक झलक-सी मिल जाती है। ऐसा जान पड़ता है, जैसे वे इन्हीं में उछल-उछलकर हँस-खेल रहे हैं। पैसों की कमी थोड़े ही है, आपकी दुआ से पैसे तो काफी हैं। जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।

शब्दार्थ :
दुआ-आशीर्वाद।

प्रसंग :
पूर्ववत्!

व्याख्या :
मिठाईवाले ने रोहिणी से अपने विश्वास को व्यक्त करते हुए कहा कि यों तो उसका परिवार उससे बिछुड़ गया है, लेकिन उसे पूरी उम्मीद है कि वह यहीं कहीं आस-पास ही उसे अवश्य मिल जाएगा। अगर वह अपने परिवार के साथ रहता, उसके साथ वह अपने हर दुःख और अभाव को बाँटकर चैन से अपनी जिन्दगी बिता लेता। उसे यही सुख-सन्तोष होता। अब भी यही सुख-सन्तोष उसे है कि वह अपने परिवार की खोज करते हुए उसे पाने की पूरी उम्मीद लगाए हुए है। इससे वे अपने खोए हुए बच्चों की एक झलक देख लेता है। रह-रहकर उसे ऐसा लगता है, मानो वह इन बच्चों की ही तरह पूरी तरह खुश हैं और इन्हीं की तरह बेफिक्र होकर खेल-कूद रहे हैं। यह सच है कि उसे पैसे-रुपए की कोई कमी नहीं है, उसे ईश्वर की कृपा से बहुत धन प्राप्त है जो उसके पास नहीं है, उसे भी वह अपने बच्चों की तलाश करते हुए पा ही लेता है।

विशेष :

  1. मिठाईवाले की सच्ची भावना प्रकट हुई है।
  2. सम्पूर्ण उल्लेख स्वाभाविक है।
  3. भापा सरल है।
  4. ‘घुल-घुलकर मारन’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) ‘वे सब अन्त में होंगे तो यही कहीं’ प्रस्तुत कथन किसका और किसके प्रति है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
(i) ‘वे सब अन्त में होंगे तो यहीं कहीं’ प्रस्तुत कथन मिठाईवाले रोहिणी के प्रति है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि मिठाईवाले को पूरा विश्वास था कि उसकी खोज सफल होगी। इससे वह अपने अपार दुःख को पार कर रहा है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) मिठाईवाले के किन भावों को व्यक्त किया गया है?
(ii) मिठाईवाला दुखी होकर भी क्यों सुख का अनुभव करता है?
उत्तर:
(i) मिठाईवाले के आशा और विश्वास के साथ आत्मीयता के भावों को व्यक्त किया गया है।
(ii) मिठाईवाला दुःखी होकर सुख का अनुभव करता है। यह इसलिए कि अपने बिछड़े हुए परिवार को याद करके दुःखी है, लेकिन उसके मिलने की उसे पूरी आशा है। इससे वह सुख का अनुभव करता है।

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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 4 ग्राम-श्री

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 4 ग्राम-श्री (कविता, सुमित्रानन्दन पन्त)

ग्राम-श्री पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

ग्राम-श्री लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ में आई पंक्तियों के आधार पर सही जोड़ी बनाइए
(क) हरियाली – बालू के साँपों-सी
(ख) रवि के किरणें – मोती के दानों-से
(ग) आम्र-तरु – मखमल-सी
(घ) गंगा की रेती – चाँदी की-सी.
(ङ) हिमकन – रजत स्वर्ण मंजरियों-से
उत्तर:
(क) हरियाली – मखमल-सी
(ख) रवि की किरणें – चाँदी की-सी
(ग) आम्र-तरु – रजत स्वर्ण मंजरियों-से
(घ) गंगा की रेती – बालू के साँपों-सी
(ङ) हिमकन – मोती के दानों-से।

प्रश्न 2.
खेतों पर पड़ती हुई सूर्य की किरणें कैसी प्रतीत हो रही हैं?
उत्तर:
खेतों पर पड़ती हुई सूर्य की किरणें चाँदी की उजली जाली-सी प्रतीत हो रही हैं।

प्रश्न 3.
कवि ने सोने की किंकणियाँ किसको कहा है?
उत्तर:
कवि ने सोने की किंकणियाँ अरहर और सनई की पकी हुई फलियों को कहा है।

प्रश्न 4.
हरे-हरे तिनके कैसे दिखाई दे रहे हैं?
उत्तर:
हरे-हरे तिनके हरे खून की तरह दिखाई दे रहे हैं।

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ग्राम-श्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता में वर्णित खेतों के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खेतों का सौन्दर्य बड़ा ही अनूठा दिखाई दे रहा है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान कोमल हरियाली फैली हुई दिखाई दे रही है। उस पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब वह चाँदी के समान चमक उठती है। हरे-हरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब हरे खून की तरह झलकते हुए दिखाई देते हैं। अरहर और सनई की पकी हुई फलियाँ घुघरू की तरह सुन्दर ध्वनि करती हैं। सरसों के पीले-पीले फूलों से तेल से युक्त सुगन्ध उड़ रही है। तीसी (अलसी) की कली हरी-भरी धरती पर झाँकती हुई दिखाई दे रही है। उधर खेतों में दूर-दूर तक पालक लहलहा रहे हैं, धनिया महक रही है, लौकी और सेम की फली मखमल की तरह लाल टमाटर और मिरचों की बड़ी हरी थैली दिखाई दे रही है।

प्रश्न 2.
भू पर आकाश उतरने का अनुभव कब होता है?
उत्तर:
भू पर आकाश उतरने का अनुभव उस समय होता है, जब चारों ओर घना कोहरा छा जाता है। सूर्य की किरणें कुहरे में उछलकर रह जाती हैं। फलस्वरूप अँधेरा और धुन्ध फैल जाता है। इससे कोई दूर की वस्तु साफ-साफ नहीं दिखाई देती है। सारा वातावरण झिलमिलाते हुए सुबह से शाम तक बना रहता है। इस प्रकार का दृश्य सचमुच बड़ा ही रोचक और अद्भुत लगता है।

प्रश्न 3.
कवि ने ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से क्यों की है?
उत्तर:
कवि ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से की है। यह इसलिए कि गाँव के चारों ओर कुहरे का साम्राज्य फैला हुआ है। इससे धुन्धमय सारा वातावरण हो जाता है। इस प्रकार के धुन्धमय वातावरण पर सूरज का जब प्रकाश पड़ता है, और उलझकर रह जाता है, तव वह धुन्धमय वातावरण नीलमणि के समान चमक उठता है। इसे ही लक्ष्य करके कवि ने ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से की है।

ग्राम-श्री भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांश की व्याख्या कीजिए-
(क) रोमांचित-सी लगती वसुधा ………… शोभाशाली॥
(ख) अब रजत स्वर्ण-मंजरियों से …………. मतवाली॥
उत्तर:
(क) शब्दार्थ :
तलक-तक। रवि-सूर्य, सूरज। हरित्-हरा। रुधिर-खून। श्यामल-सविला। भूतल-धरती। फलक-विस्तृत (फैला हुआ) भाग। रोमांचित-प्रसन्न। वसुधा-धरती। किंकिणियाँ-छोटे-छोटे घुघरू।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित काव्य-रचना ‘ग्राम श्री’ से ली गई है। इसमें महाकवि पन्त ने गाँव की शोभा बढ़ाने वाली खेतों की हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा है। इस विषय में महाकवि पन्त का कहना है कि

व्याख्या :
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल और सुन्दर लग रही है। उस पर सूर्य का प्रकाश जब पड़ता है, तब वह चाँदी के समान सफेद होकर मन को अपनी ओर खींच लेती है। हवा से हिलते हुए हरे-भरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब ऐसा लगता है कि मानो हरा खून झलक रहा है। इस प्रकार की धरती को देखकर ऐसा लगता है कि नीला आकाश आकर धरती पर झुक गया है। वह अपने सफेद और नीलिमा का विस्तार पूरी धरती पर करते। हुए अधिक सुन्दर लग रहा है। इस प्रकार खेतों में जौ, गेहूँ की जब बालियाँ आती हैं, तब उनसे सजकर सारी धरती अधिक. सुन्दर दिखाई देने लगती है। सोने की चमक-दमक के समान अरहर और सनई की फलियाँ घुघरू की तरह आवाज करती हुई बहुत अधिक अच्छी लगती हैं।

विशेष :

  1. खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा गया है।
  2. ‘मखमल-सी’ चाँदी की-सी और रोमांचित-सी में उपमा अलंकार है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  4. शृंगार रस का प्रवाह है।

(ख) शब्दार्थ :
भीनी-भीगी हुई। हरित-हरा। धरा-धरती। नीलम-नीला। रजत-चाँदी। आम्र-आम। मंजरियों-बौरों। तरु-पेड़। ढाक-पलाश। कोकिला-कोयल। मुकुलित-खिले हुए। दाडिम-अनार।

प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
अब खेतों में तेल की सुगन्ध से भीगी हई सरसों पीले-पीले रंगों में फूल गई है। दूसरे शब्दों में अब खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल दिखाई देने लगे हैं। उनकी सुगन्ध तेल से भीगी हुई होकर चारों ओर फैल रही है। हरी-भरी धरती पर तीसी (अलसी) के नीली-नीली कली खिल रही है। उसे देखने से ऐसा लगता है, मानो वह चुपचाप कुछ देख रही है। इसी प्रकार अब आम की डालियाँ सोने-चाँदी की तरह बौरों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पत्ते झड़ रहे हैं। प्रकृति की इस चंचलता और सुन्दरता से मदमस्त होकर कोयल इधर-उधर कूकने लगी है। बागों में कटहल की सुगन्ध फैल रही है, तो जामुन खिली हुई सुन्दर लग रही है। झरबेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। इस प्रकार आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली खिलते हुए मन को छू रहे हैं।

विशेष :

  1. भाषा मिश्रित शब्दों की है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. प्रकृति का सुखद चित्र उपस्थित किया गया है।
  4. वसन्त ऋतु का स्वाभाविक उल्लेख है।
  5. ‘पीली-पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

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ग्राम-श्री भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखो।।
रवि, धरती, जंगल, वृक्ष, आकाश।
उत्तर:
पर्यायवाची शब्द
रवि – सूर्य, सूरज, दिनकर, दिवाकर।
धरती – धरा, भू, पृथ्वी, अवनि।
जंगल – वन, विपिन।
वृक्ष – पेड़, पादप, तरु।
आकाश – नभ, गगन, आसमान।

प्रश्न 2.
कविता में आए हुए देशज शब्द छाँटकर उनके मानक हिन्दी शब्द लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 4 ग्राम-श्री img-1

ग्राम-श्री योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्बन्धिते चित्रों को खोजकर उसका अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

प्रश्न 2.
नदियाँ निरन्तर प्रदूषित हो रहीं हैं, नदियों के प्रदूषण के कारण और निदान को चित्रों के माध्यम से बनाइए तथा उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

प्रश्न 3.
आपको शहर अच्छा लगता है या गाँव, इस विषय पर कारण सहित अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

ग्राम-श्री परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

ग्राम-श्री लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
धरती पर कौन झुका हुआ लग रहा है?
उत्तर:
धरती पर आकाश का स्वच्छ नीला फलक झुका हुआ लग रहा है।

प्रश्न 2.
भीनी तैलाक्त गन्ध किसकी उड़ रही है?
उत्तर:
भीनी तैलाक्त गन्ध सरसों के पीले-पीले फूलों से उड़ रही है।

प्रश्न 3.
नदी के किनारे पर कौन सोई रहती है?
उत्तर:
नदी के किनारे पर मगरौठी (एक चिड़िया विशेष) सोई रहती है।

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ग्राम-श्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता में वर्णित बागों के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ में बागों के सौन्दर्य का वर्णन स्वाभाविक होने के साथ-साथ अधिक रोचक है। कवि के अनुसार वागों में आम के पेड़ की डालें वीरों से लद गए हैं। वे सोने-चाँदी की तरह चमकती हुई सुन्दर लग रही हैं। पलाश और पीपल के पके हुए पत्ते झर रहे हैं। इस प्रकार के दृश्य से कोयल मतवाली होकर कू-कू की मधुर ध्वनि करने लगी है। दूसरी ओर कटहल की सुगन्ध फैल रही है। पकी हुई जामुन मन को छू रही है। जंगली झरवेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। आड़ फूल रहे हैं। इसी प्रकार नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैगन और मूली भी। पीले-पीले मीठे अमरूदों पर पड़ी हुई लाल-लाल चित्तियाँ खूब सुन्दर लग रही हैं। पके हुए बेर सुनहरे और मधुर लग रहे हैं। इस प्रकार बगिया के छोटे-छोटे पेड़ों पर छोटे-छोटे छाजन मन को अपनी ओर खींच रहे हैं।

प्रश्न 2.
कोयल कब मतवाली हो उठती है?
उत्तर:
कोयल तब मतवाली हो उठती है, जब वसन्त ऋतु का आगमन होने लगता है। बागों में आमों की डालियाँ चाँदी-सोने जैसी चमक वाली मंजरियों (बौरों) से लद जाती हैं। ढाक और पीपल के पेड़ अपने-अपने पुराने पत्ते रूपी कपड़े उतार-उतार कर नए पत्ते रूपी कपड़ों को पहनने लगते हैं। इस प्रकार का. मदमस्त कर देने वाले वातावरण में कोयल मतवाली होकर कू-कू की अपनी मधुर तान छोड़ने लगती है।

प्रश्न 3.
कुहरे में कौन-कौन सुन्दर लगते हैं और क्यों?
उत्तर:
कुहरे में खेत, बाग, घर और वन बहुत सुन्दर लगते हैं। ऐसा इसलिए कि कुहरे से जब खेत, बाग, घर और वन ढक जाते हैं, तब उन पर सूरज की रोशनी सीधी नहीं पड़ती है। वह तो कुहरे से उलझकर रह जाती है। इससे खेत, बाग, घर और वन पर पड़ा हुआ कुहरा सतरंगी होकर बहुत सुन्दर लगने लगता है। इसे ही लक्ष्य करके कवि ने कहा है कि कुहरे में खेल, बाग, घर और वन बहुत ही सुन्दर लगते हैं।

ग्राम-श्री कवि-परिचय

प्रश्न.
श्री सुमित्रानन्दन पन्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय :
श्री सुमित्रानन्दन पन्त प्रकृति के सुकुमार और मानवतावाद के प्रमुख कवि हैं। पन्त जी का जन्म उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में 20 मई, 1910 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में हुई। इसके बाद की शिक्षा राजकीय स्कूल, अल्मोड़ा में हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा काशी के जयनारायण स्कूल में हुई। आपने उच्चशिक्षा के लिए प्रयाग के म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया लेकिन गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण 1921 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और स्वतन्त्र रूप से विभिन्न भाषा-साहित्य का अध्ययन किया। पन्तजी पर महात्मा गाँधी, कार्लमार्क्स, अरविन्द और विवेकानन्द के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 1950 में आप आकाशवाणी के निदेशक नियुक्त हुए। आपकी साहित्यिक प्रतिभा का मूल्यांकने करके आपको ‘सहित्य-वाचस्पति’, ‘ज्ञानपीठ’, ‘पद्मभूषण’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 28 दिसम्बर, 1977 में 65 वर्ष की अल्पायु में ही पन्त जी इस संसार से सदा के लिए विदा होकर अमर हो गए।

काव्य :
i. महाकाव्य-लोकायतन।
ii. खण्ड-काव्य-ग्रन्थि।
iii.काव्य-संग्रह :
1. युगपथ, 2. उत्तरा, 3-वीणा, 4. पल्लव, 5. गुंजन, 6. उच्छ्वास, 7. युगान्त, 8. ग्राम्या, 9. रजत-रश्मि, 10. शिल्पी, 11. कला और बूढ़ा चाँद, 12. ऋता, 13. युगवाणी, 14. स्वर्ण-किरण, 15. स्वर्ण-धूलि, 16. अमिता, 17. वाणी, 18. सौ वर्ण, 19. चिदम्बरा और 20. पल्लविनी।

उपन्यास :
हार
कहानी :
संग्रह-पाँच कहानियाँ
अनुवाद :
मधुज्वाल
नाटक :
ज्योत्सना, परी, क्रीड़ा और रानी!
इनके अतिरिक्त पन्त जी ने गद्य-लेखन की आलोचना भी की है।

भाषा-शैली :
पन्त जी की भाषा सरल, सुस्पष्ट और मधुर है। उनकी भाषा की सर्वप्रधान विशेषता है-सरसता और प्रवाहमयता। इस प्रकार की भाषा में सामान्य और विशिष्ट शब्दों के मेल हुए हैं। कविवर जयशंकर प्रसाद की तरह आपकी भाषा अत्यन्त प्रौढ़ और गम्भीर न होकर सुकुमार, स्वाभाविक, ललित और भावप्रद है।

पन्तजी की शैली छायावादी शैली है। वह अलंकृत, गेय और बोधगम्य है। संगीत और नाद के अद्भुत मेल से वह झंकृत और मुखर हो उठी है। इस तरह कविवर पन्त की भाषा-शैली रोचक और अर्थपूर्ण सिद्ध होती है।

व्यक्तित्व :
पन्त जी मूलरूप से कवि रहे। उनका व्यक्तित्व इसीलिए काव्यात्मक कहा जा सकता है। उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को ‘ज्ञानपीठ’, ‘साहित्य-वाचस्पति’ और ‘पद्मभूपण’ उपाधियों से अलंकृत किया गया। पन्तजी के व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष है-‘सौभाग्यता’ और सौन्दर्य। पन्त अत्यन्त सरल और सहज स्वभाव के थे। उनका ‘बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक और मोहक रहा। वे सुदर्शन व्यक्तित्व वाले हिन्दी के अनोखे कवि के रूप में जाने गए।

महत्त्व :
पन्तं जी का साहित्यिक महत्त्व तब भी था और आज भी है। छायावादी स्तम्भों के वे एक महान स्तम्भ के रूप में युग-युग तक याद किए जाते रहेंगे। उनकी काव्य-चेतना की दार्शनिक उपलब्धियाँ भी एक महत्त्वपूर्ण देन के रूप में स्वीकार की जाती रहेंगी।

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ग्राम-श्री भाव सारांश

प्रश्न.
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ एक रोचक और हृदयस्पर्शी है। इसमें प्रकृति की सुन्दरता का कई रूपों में चित्रण किया गया है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल की तरह हरियाली फैली हुई है। उस पर सूर्य की किरणें पड़कर चाँदी की तरह दिखाई देती हैं। हरे-हरे तिनके की झलक अधिक सुन्दर लगती है। अरहर, सनई, जौ और गेहूँ की बालियों से लदी हुई यह धरती अधिक प्रसन्न हो रही है। चारों ओर तेल से युक्त गन्ध उड़ रही है। पीले रंग का फूल सरसों और नीले रंग की तीसी भी अपनी सुन्दरता को फैला रही है। चाँदी और सोने की तरह आम में बौर आ चुके हैं, ढाक और पीपल के पत्तों को झरते हुए देखकर मतवाली कोयल बोल रही है, कटहल, जामुन, झरबेरी, आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैगन, मूली, अमरूद, बेर, पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर और मिर्ची खेतों में बढ़ते, फूलते और फलते हुए मन को अपनी ओर खींच रहे हैं। सुबह-सुबह ऐसी ओस पड़ती है कि मानो धरती पर आसमान आ गया है। इस प्रकार सारा ग्रामीण अंचल नीलमणि के डिब्बे में बन्द हुआ दिखाई देता है। उसकी यह अद्भुत सुन्दरता सबको बाग-बाग कर देती है।

ग्राम-श्री संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल-सी कोमल हरियाली।
लिपटी जिससे रवि की किरणें,
चाँदी की-सी उजली जाली ॥1॥

तिनके के हरे-हरे नन’ पर,
हिल हरित् रुधिर है रहा झलक।
श्यामत भूतल पर झुका हुआ,
नभ का चिर निर्मल नील फलका ॥2॥

रोमांचित-सी लगती वसुधा,
आई जौ-गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की,
किंकिणियाँ है शोभाशाली ॥3॥

शब्दार्थ :
तलक-तक। रवि-सूर्य, सूरज। हरित्-हरा। रुधिर-खून। श्यामल-सविला। भूतल-धरती। फलक-विस्तृत (फैला हुआ) भाग। रोमांचित-प्रसन्न। वसुधा-धरती। किंकिणियाँ-छोटे-छोटे घुघरू।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित काव्य-रचना ‘ग्राम श्री’ से ली गई है। इसमें महाकवि पन्त ने गाँव की शोभा बढ़ाने वाली खेतों की हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा है। इस विषय में महाकवि पन्त का कहना है कि

व्याख्या :
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल और सुन्दर लग रही है। उस पर सूर्य का प्रकाश जब पड़ता है, तब वह चाँदी के समान सफेद होकर मन को अपनी ओर खींच लेती है। हवा से हिलते हुए हरे-भरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब ऐसा लगता है कि मानो हरा खून झलक रहा है। इस प्रकार की धरती को देखकर ऐसा लगता है कि नीला आकाश आकर धरती पर झुक गया है। वह अपने सफेद और नीलिमा का विस्तार पूरी धरती पर करते । हुए अधिक सुन्दर लग रहा है। इस प्रकार खेतों में जौ, गेहूँ की जब बालियाँ आती हैं, तब उनसे सजकर सारी धरती अधिक. सुन्दर दिखाई देने लगती है। सोने की चमक-दमक के समान अरहर और सनई की फलियाँ घुघरू की तरह आवाज करती हुई बहुत अधिक अच्छी लगती हैं।

विशेष :

  1. खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा गया है।
  2. ‘मखमल-सी’ चाँदी की-सी और रोमांचित-सी में उपमा अलंकार है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  4. शृंगार रस का प्रवाह है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।।
(iii) ‘नभ का चिर निर्मल नील फलक’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में महाकवि पन्त ने खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का रोचक चित्रण किया है। मखमल की तरह कोमल दूर-दूर तक फैली हरियाली के रूप बड़े ही आकर्षक हैं। उस पर पड़ता हुआ सूर्य का प्रकाश उसे कई आकर्षक रूपों में ढाल देता है। इससे वह कभी चाँदी के समान दिखाई देता है, तो कभी झलकते हुए हरे खून के समान दिखाई देती है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा तत्सम शब्दों की है। ‘मखमल-सी’, ‘चाँदी की-सी’ और रोमांचित-सी’ में उपमा अलंकार है। ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति अलंकार है। शृंगार रस के प्रवाह में बिम्ब-प्रतीक संजीव हो उठे हैं। चित्रात्मक शैली अधिक हृदयस्पर्शी बन गई है।

(iii) ‘नभ का चिर निर्मल नील फलक’ में कवि ने प्रकृति का भाववर्द्धक चित्रण किया है। इससे आकाश का मनमोहक स्वरूप उजागर हुआ है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न:
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) ‘हरित रुधिर है रहा झलक’ पद्यांश में किसका रुधिर झलक रहा है और क्यों?
(iii) ‘मखमल-सी कोमल हरियाली’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’!
(ii) ‘हरित रुधिर है रहा झलक’ में हरे-हरे तन अर्थात् हरियाली का रुधिर झलक रहा है। यह इसलिए कि सूर्य की किरणें जब ओस पड़ी हुई हरियाली पर सुबह-सुबह पड़ती हैं, तब वह खून की तरह झलकने लगती है।
(iii) ‘मखमल-सी कोमल हरियाली’ का भाव-सौन्दर्य अधिक आकर्षक है। हरियाली को मखमल के समान कोमल कहकर कवि ने प्रकृति की सुकुमारता और सुन्दरता को प्रस्तुत किया है। इससे कवि का प्रकृति के प्रति अधिक लगाव स्पष्ट हो रहा है।

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2. उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध,
फूली सरसों पीली-पीली। जो,
हरित धरा से झाँक रही,
नीलम की कलि तीसी नीली ॥4॥

अब रजत स्वर्ण-मंजरियों से,
लद गई आम्र तरु की डाली।
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला, मतवाली ॥5॥

महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेली झूली।
फूले आडू, नीबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैगन, मूली ॥6॥

शब्दार्थ :
भीनी-भीगी हुई। हरित-हरा। धरा-धरती। नीलम-नीला। रजत-चाँदी। आम्र-आम। मंजरियों-बौरों। तरु-पेड़। ढाक-पलाश। कोकिला-कोयल। मुकुलित-खिले हुए। दाडिम-अनार।

प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
अब खेतों में तेल की सुगन्ध से भीगी हई सरसों पीले-पीले रंगों में फूल गई है। दूसरे शब्दों में अब खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल दिखाई देने लगे हैं। उनकी सुगन्ध तेल से भीगी हुई होकर चारों ओर फैल रही है। हरी-भरी धरती पर तीसी (अलसी) के नीली-नीली कली खिल रही है। उसे देखने से ऐसा लगता है, मानो वह चुपचाप कुछ देख रही है। इसी प्रकार अब आम की डालियाँ सोने-चाँदी की तरह बौरों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पत्ते झड़ रहे हैं। प्रकृति की इस चंचलता और सुन्दरता से मदमस्त होकर कोयल इधर-उधर कूकने लगी है। बागों में कटहल की सुगन्ध फैल रही है, तो जामुन खिली हुई सुन्दर लग रही है। झरबेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। इस प्रकार आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली खिलते हुए मन को छू रहे हैं।

विशेष :

  1. भाषा मिश्रित शब्दों की है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. प्रकृति का सुखद चित्र उपस्थित किया गया है।
  4. वसन्त ऋतु का स्वाभाविक उल्लेख है।
  5. ‘पीली-पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(iii) ‘हो उठी कोकिला मतवाली’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश की भावयोजना सरल और साधारण है। उससे अर्थ सहज में ही स्पष्ट हो रहा है। चूंकि वसन्त ऋतु का आगमन हो चुका है। फलस्वरूप प्रकृति अपने रूप-प्रतिरूप को सँवारती हुई नई दुल्हन के समान अपने प्रियतम वसन्त के आने की प्रतीक्षा कर रही है। इससे उसका अंग-प्रत्यंग अधिक सुन्दर और आकर्षक दिखाई दे रहा है। विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की सजावट को इसी अर्थ में देखा जा सकता है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा सरल और सुबोध है। इसको प्रभावशाली बनाने के लिए कवि ने उपमा, रूपक और पुनरुक्ति अलंकारों का यथोचित प्रयोग किया है। ‘हरित धरा से झाँक रही, नीलम की कलि तीसी नीली।’ में प्रकृति का मानवीकरण करके कवि ने इस पद्यांश को और अधिक सजीव बना रहा है। श्रृंगार इसका सुन्दर प्रवाह है।

(iii) ‘हो उठी. कोकिला मतवाली’ में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। इससे प्रकृति में आए हुए वसन्त ऋतु के असाधारण प्रभाव का सहज ही अनुमान हो जाता है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) तेल से युक्त किसकी सुगन्ध उड़ रही है?
(iii) इस पद्यांश में किस ऋतु का चित्रण हुआ है?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) तेल से युक्त सुगन्ध सरसों के पीले-पीले फूलों से चारों ओर उड़ रही है।
(iii) इस पद्यांश में वसन्त ऋतु का चित्रण हुआ है।

3. पीले मीठे अमरूदों में अब,
लाल-लाल चित्तियाँ पड़ी।
पक गए सुनहरे मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी ॥7॥

लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी और सेमफली फैली।
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली ॥8॥

बगिया के छोटे पेड़ों पर,
सुन्दर लगते छोटे छाजन।
सुन्दर गेहूँ की बालों पर,
मोती के दानों-से हिमकन ॥9॥

शब्दार्थ :
बगिया-वाग। हिमकन-बर्फ के ओस की बूंदें।

प्रसंग :
पूर्ववत्। इसमें कवि ने वसन्तकालीन वागों की सुन्दरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या :
इस समय बागों में लाल-लाल चित्तियों वाले पीले-मीठे अमरूद खिल रहे हैं। उधर सुनहले रंग वाली हुई बेर बहुत ही मधुर हो रही है और अँवली से पेड़ की डाल जड़ी हुई है। अब खेतों में पालक लहलहा रहे हैं, धनिया की महक चारों ओर फैल रही है। इसी प्रकार लौकी और सेमफली फैल रही है। लाल-लाल टमाटर मखमल की तरह सुन्दर लग रहे हैं तो मिरचों की सुन्दरता बड़ी हरी थैली की तरह दिखाई देती है। कवि का पुनः कहना है कि बागों के छोटे-छोटे पेड़ों पर जो छोटे-छोटे छाजन हैं, वे मन को छू रहे हैं। खेतों में फैली हुई गेहूँ की बालों पर पड़ी हुई ओस की बूंदें मोती के दानों के समान चमक रहे हैं।

विशेष :

  1. वसन्तकालीन खेतों और बागों की सजावट का चित्रण है।
  2. सरल शब्द हैं।
  3. चित्रात्मक शैली है।
  4. ‘मोती के दानों-से हिमकन’ में उपमा अलंकार है और लाल-लाल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिये।
(iii) ‘मखमली टमाटर हुए लाल’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में वसन्तकालीन प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। इसके लिए कवि ने बागों में पक रहे फलों और खेतों में पक रही फसलों का यथार्थपूर्ण चित्रांकन किया है। इस प्रकार के ये दोनों चित्र कल्पना से रंगीन होकर यथार्थ से दूर नहीं हैं। इनसे उत्पन्न हुई सजीवता और बोधगम्यता इस पद्यांश को सार्थक बना रही है। इससे कवि का गहरा प्रकृति-प्रेम साफ-साफ प्रकट हो रहा है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य भाषा, शैली, अलंकार, बिम्ब, प्रतीक योजना आदि से सज्जित है। इस पद्यांश की भाषा सरल है, तो इसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकार हैं। तुकान्त शब्दावली का प्रयोग भावों को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

(iii) ‘टमाटर’ की कोमलता और सुन्दरता को दर्शाने के लिए उन्हें मखमली कहना बड़ा ही सटीक लगता है। हरा से लाल होने पर भी टमाटर की कोमलता और सुन्दरता ज्यों-की-त्यों बनी रहती है, यह कवि का अनुभव बड़ा गहरा और सराहनीय है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में प्रकृति के किस विशेष रूप को चित्रित किया गया. है और क्यों?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने प्रकृति के वसन्तकालीन विशेष रूप को चित्रित किया है। प्रकृति का यह विशेष रूप सर्वाधिक आकर्पक, सरस और हृदयस्पर्शी है। ‘कवि ने इसे ही ध्यान में रखा है।

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4. प्रातः ओझल हो जाता जग,
भू पर आता ज्यों उतर गगन।
सुन्दर लगते फिर कुहरे,
उठते से खेत, बाग, गृह, वन ॥10॥

बालू के साँपों से अंकित,
गंगा की संतरंगी रेती।
सुन्दर लगती सरपत छाई,
तट पर तरबूजों की खेती ॥11॥

अँगुली की कंघी से बगुले,
कलंगी सँवारते हैं कोई।
तिरते जल में सरखाव,
पुलिन पर मगरौठी रहती सोई ॥12॥

मरकत-डिब्बे-सा खुला ग्राम,
जिस पर नीलम नभ आच्छादन।
निरुपम हिमांत में स्निग्ध-शान्त,
निज शोभा से हरता जन-मन ॥13॥

शब्दार्थ :
प्रातः-सुबह ओझल-छिप जाना, साफ न दिखाई देना। गगन-आसमान। कुहरे-ओस। सरपत-एक प्रकार का पौधा, झाड़ी। तट-किनारा। सुरखाव-एक पक्षी। मगरौठी-एक पक्षी। मरकत-नीलमणि। नभ-आकाश। आच्छादन-ढक्कन।

प्रसंग :
पूर्ववत्। इसमें कवि ने जाड़े के प्रातःकालीन दृश्य का चित्रांकन करते हुए कहा है कि

व्याख्या :
जाड़े की सुबह पड़ी हुई ओस से सारा ढका हुआ ऐसा लगता है, मानो धरती पर आसमान उतर आया है। कुहरे में खेत, बाग, घर और जंगल जगकर उठते हुए बहुत सुन्दर दिखाई देते हैं। गंगा नदी की रेत सात रंगों में सांपों से चिह्नित दिखाई देती है। उसके किनारे-किनारे तरबूजों की खेती सरपत से छाई हुई मन को अपनी ओर खींच लेती है।

कवि का पुनः कहना है कि सुबह-सुबह कहीं बगुले अपनी कलंगी सँवारते हुए ऐसे दिखाई देते हैं, मानो वे अपनी अंगुलियों से कंघी कर रहे हैं। कहीं सुरखाब पक्षी जल में तैर रहे हैं, तो कहीं किनारे पर मगरौठी पक्षी सोया हुआ दिखाई देता है। सुबह-सुबह नीलमणि के डिब्बे के समान गाँव खुला हुआ दिखाई देता है, अर्थात् सुबह-सुबह गाँवों की चंचलता दिखाई देती है। चूंकि पूरे गाँव को ओस ढके रहता है, जिससे उस पर आसमान का नीलापन बड़ा ही आकर्षक लगता है। उस समय उसकी जो शान्तिमय शोभा होती है, उस पर सारा जन-मन निछावर हो जाता है।

विशेष :

  1. प्रातःकालीन ओस से लिपटे गाँवों का चित्रांकन किया गया है।
  2. शैली वर्णनात्मक और चित्रात्मक दोनों है।
  3. उच्चस्तरीय शब्दों के प्रयोग हैं।
  4. मुख्य रूप से उपमा अलंकार है।
  5. अभिधा शब्द-शक्ति है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(iii) अँगुली की कंधी से बगुले, कलंगी सँवारते हैं कोई।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में शीतकालीन सुबह का भावपूर्ण चित्रण है। रात की पड़ी हुई ओस से सारा ग्रामीण अंचल किस प्रकार सतरंगी होकर मन को छू रहा है, इसका आलंकारिक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इससे आकाश का नीलापन धरती पर मानो उतर आया है। बगुले, सुरखाब और मंगरौठी का नदी के किनारे अलग-अलग दिखाई देना भी कम आकर्षक नहीं है। इस प्रकार सारा ग्रामीण अंचल ओस की बूंदों से ढका हुआ अपनी अद्भुत शोभा को बढ़ा रहा है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा मिश्रित शब्दों की है। उपमा, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, रूपक और मानवीकरण अलंकारों का चयन बड़े ही सटीक हैं । चित्रात्मक और वर्णनात्मक शैली के द्वारा शृंगार रस का प्रवाह अधिक सरस हो गया है। बिम्ब और प्रतीक यथास्थान प्रयुक्त हुए हैं।

(iii) अँगुली की कंघी से बगुले कलंगी सँवारते हैं कोई।’ का भाव-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी है। बगुले का अपनी कलंगी को अपनी अंगुली रूपी कंघी से सँवारना मानवीय व्यापार की ओर संकेत कर रहा है। इसमें प्रयुक्त हुआ यह बिम्ब बड़ा ही सजीव और रोचक है। भावों को प्रस्तुत करने वाली भाषा की सहजता सराहनीय हैं।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) प्रातः कौन किससे ओझल हो जाता है?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का प्रमुख विषय है-शीतकालीन सुवह का भावपूर्ण प्रकृति का चित्रांकन करना। इसको कवि ने विभिन्न प्रकार से आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।
(iii) प्रातः संसार कहरे से ओझल हो जाता है।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी  (कहानी, मुंशी प्रेमचन्द)

दो बैलों की कथा-कहानी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

दो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के बैल किस नस्ल के थे?
उत्तर:
झूरी के बैल पछाई नस्ल के थे।

प्रश्न 2.
झूरी ने गोई को कहाँ भेज दिया?
उत्तर:
झूरी ने गोई को ससुराल भेज दिया।

प्रश्न 3.
झूरी की ससुराल जाते समय बैलों ने क्या समझा?
उत्तर:
झूरी की ससुराल जाते समय बैलों ने यह समझा कि मालिक ने उन्हें बेच दिया है।

प्रश्न 4.
गोई को ले जाते समय गया को पसीना क्यों आ गया?
उत्तर:
गोई को ले जाते समय गया को पसीना आ गया। यह इसलिए कि वे वहाँ जाना नहीं चाहते थे। अगर गया उन्हें पीछे से हाँकता तो वे दोनों इधर-उधर, भागने लगते थे। पगहिया पकड़कर आगे खींचने पर पीछे की ओर जाने लगते थे। मारने पर वे दोनों मुंह नीचे करके हँकारने लगते थे।

प्रश्न 5.
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह क्यों नहीं डाला?
उत्तर:
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह नहीं डाला। यह इसलिए कि उनका अपना घर छूट गया था। यह तो पराया घर था। वहाँ के लोग उन्हें बेगाने लग रहे थे। उन्हें वहाँ का खाना-पीना और रहना तनिक भी रास नहीं आया।

प्रश्न 6.
‘क’ स्तम्भ में पात्रों के नाम और ‘ख’ स्तम्भ में कथन दिए गए हैं-पात्रों के साथ सही कथन जोडिए?
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उत्तर:
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दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के घर प्रातःकाल लौटे-बैलों का किसने स्वागत किया? और कैसे प्रातःकाल झूरी के घर वापस आने पर बैलों का स्वागत किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
प्रातःकाल लौटे बैलों को देखकर झूरी गद्गद हो गया। दौड़कर उसने उन्हें गले लगा लिया। फिर वह उन्हें चूमने लगा। झूरी के घर प्रातःकाल लौटे बैलों का घर और गाँवों के लड़कों ने तालियाँ बजा-बजाकर स्वागत किया। उनमें से किसी ने अपने घरों से रोटियाँ लाकर खिलाया तो किसी ने गुड़। इसी प्रकार किसी ने चोकर लाकर दिया तो किसी ने भूसी। इस प्रकार उन्होंने उन दोनों बैलों का बड़े ही स्नेहपूर्वक स्वागत किया।

प्रश्न 2.
गया के घर से भाग आने पर बैलों के साथ कैसा व्यवहार किया गया?
उत्तर:
गया के घर से भाग आने पर बैलों के साथ झूरी की पत्नी ने बड़ा ही दुर्व्यवहार किया। उसने उन्हें खली और चोकर देना बन्द कर दिया। उसने यह निश्चय कर लिया कि वह अब उन्हें सूखे भूसे के सिवा और कुछ नहीं देगी। वे खाएँ या मरें। उसने मजूर को बड़ी ताकीद कर दी कि वह बैलों को खाली सूखा भूसा ही दे। इस प्रकार उनके प्रति बड़ी बेरहमी की गई।

प्रश्न 3.
दोनों बैलों ने आजादी के लिए क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर:
दोनों बैलों ने आजादी के लिए निम्नलिखित प्रयास किए-

  1. दो-चार बार गाड़ी को सड़क की ख़ाई में गिराना चाहा।
  2. हल में जोतने पर जैसे पाँव उठाने की कसम खा ली थी। गया मारते-मारते थक गया, लेकिन उन्होंने पाँव न उठाया।
  3. हीरा की नाक पर जब गया ने खूब डण्डे बरसाए तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। वह हल लेकर ऐसा भागा कि उससे हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट-टाटकर बरावर हो गया।
  4. एक दिन चुपके से भैरो की लड़की के द्वारा रस्सी खोल दिए जाने पर वहाँ से ऐसे भाग निकले कि गया की पकड़ में नहीं आ पाए।

प्रश्न 4.
हीरा-मोती के पारस्परिक प्रेम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
झरी के दोनों बैलों हीरा और मोती में बहुत ही अधिक पारस्परिक प्रेम था। बहुत दिनों से दोनों एक ही साथ रहते थे। इसलिए दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों एक-दूसरे की मौन-भाषा समझ लेते थे। इसी में वे परस्पर विचार-विनिमय भी किया करते थे। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे। वे इसे किसी प्रकार के विरोध भाव से नहीं करते थे, अपितु विनोद और आत्मीयता के भाव से किया करते थे। इससे उनका पारस्परिक प्रेम और मजबूत दिखाई देता था।

प्रश्न 5.
भैरो की लड़की की बैलों से आत्मीयता क्यों हो गई थी?
उत्तर:
भैरो की लड़की की माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसें मारती रहती थी। इस प्रकार उसको अपना ऐसा कोई नहीं दिखाई देता था, जिससे वह अपनी भावना को प्रकट कर सके। इसके लिए उसने अपने बैलों को ही चुना। वह उन्हें रातःको चुपके से रोटी खिलाती थी। उनके प्रति सहानुभूति दिखाती थी। इसलिए उन बैलों से उसे बड़ी आत्मीयता हो गई थी।

प्रश्न 6.
दोनों बैल दढ़ियल आदमी को देखकर क्यों काँप उठे?
उत्तर:
दोनों बैल दढ़ियल आदमी को देखकर काँप उठे। यह इसलिए कि-

  1. उसकी आँखें लाल-लाल की।
  2. उसकी मुद्रा बहुत ही कठोर थी।
  3. उसने उन दोनों बैलों के कूल्हों में अपनी उँगली गोद दी।
  4. उसका चेहरा बड़ा ही भयानक था।
  5. वह बड़ा ही जुल्मी और कसाई दिखाई दे रहा था।

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प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि कहानी अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है।
उत्तर:
मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ में मनुष्य और पशु के परस्पर व्यवहार को दर्शाया गया है। इस कहानी में झूरी के दोनों बैलों के भीतर जागृत होने वाले कई प्रकार के भावों को व्यक्त किया गया है। इस प्रकार पशुओं के साथ मनुष्य द्वारा किए जाने वाले आत्मीय और भाईचारा के व्यवहार का जहाँ उल्लेख हुआ है, वहीं दूसरी ओर उनके प्रति की जाने वाली क्रूरता और स्वार्थपरता का भी चित्रण हुआ है। इस प्रकार. यह कहानी मनुष्य की तरह पशुओं के भी सुख-दुख और अपने-पराए के बोध को प्रकट करती है। इस प्रकार की विशेषताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मुंशी प्रेमचन्द लिखित प्रस्तुत कहानी ‘दो बैलों की कथा’ अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है।

प्रश्न 8.
कहानी के विकास क्रम पर प्रकाश डालते हुए कहानी की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी के विकास क्रम को छः भागों में इस प्रकार बाँटा जा सकता है-

  1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक)
  2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक)
  3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक)
  4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक)
  5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक)
  6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अब तक)।

1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) :
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’। यह काल हिन्दी कहानी का आरम्भिक काल कहा जाता है। इसके बाद चन्द्रधर शर्मा की ‘इन्दुमती’, बंग महिला की ‘दुलाईवाली’, रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ आदि कहानियाँ हिन्दी की आरम्भिक कहानियाँ मानी जाती हैं।

2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक) :
इस काल में जयशंकर प्रसाद महाकथाकार के रूप में उभड़कर आए। सन् 1911 में उनकी ‘ग्राम’ कहानी ‘इन्दु’ नामक.मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘इन्द्रजाल’ आदि कहानी-संग्रह प्रकाशितः हुए। उनके अतिरिक्त विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, ज्वालादत्त शर्मा, चतुरसेन शास्त्री, जे.पी. श्रीवास्तव, राधिकारमण प्रसाद सिंह आदि उल्लेखनीय कथाकार इसी काल की देन हैं।

3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक) :
इस काल को महत्त्व कथा साहित्य की दृष्टि से बहुत ही अधिक है। यह इसलिए कि इसी काल में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का आगमन हुआ। उन्होंने अपनी कहानियों में भारतीय समाज की ऐसी सच्ची तस्वीर खींची जो किसी काल के किसी भी कथाकार के द्वारा सम्भव नहीं हुआ। ‘ईदगाह’, ‘पंच-परमेश्वर’, बूढ़ी काकी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘मन्त्र’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दो बैलों की कथा’ आदि उनकी बहुत प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। इस काल के अन्य महत्त्वपूर्ण कथाकारों में सुदर्शन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शिवपूजन सहाय, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामकृष्ण दास, वृन्दावन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद बाजपेयी आदि हैं।

4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक) :
कहानी कला की दृष्टि से इस काल का महत्त्व इस दृष्टि से है कि इस काल की कहानियों ने विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक और प्रगतिवादी कथाकार इस काल में अधिक हुए। मनोवैज्ञानिक कथाकारों में इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र आदि हुए।

प्रगतिवादी कथाकारों में यशपाल, राहुल सांकृत्यायन; रांगेय राघव, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव आदि उल्लेखनीय हैं। विचार प्रधान कथाकारों में धर्मवीर भारती, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महिला कथाकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक) :
इस काल की कहानी को कई उपनाम मिले, जैसे-‘नई कहानी’, ‘आज की कहानी’, ‘अकहानी’ आदि। इस काल की कहानियों में वर्तमान युग-बोध, सामाजिक विभिन्नता, वैयक्तिकता, अहमन्यता : आदि की अभिव्यंजना ही मुख्य रूप से सामने आई। इस काल के कमलेश्वर, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, अमरकान्त, निर्मल वर्मा, मार्कण्डेय, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी. मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, रघुवीर सहाय, शैलेश मटियानी, हरिशंकर पारसाई, लक्ष्मीनारायण लाल, राजेन्द्र अवस्थी आदि कथाकारों के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं।

6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अव तक) :
इस काल को साठोत्तरी हिन्दी कहानी के नाम से जाना जाता है। इस काल के कहानीकार पूर्वापेक्षा नवी चंतना और शिल्प के साथ रचना-प्रक्रिया में जुटे हुए दिखाई देते हैं। इस काल की कहानी की यात्रा विभिन्न प्रकार के आन्दोलनों से जुड़ी हुई है, जैसे-नयी कहानी (कमलेश्वर, अमरकान्त, मार्कण्डेय, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, मोहन राकेश, शिव प्रसाद सिंह, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा आदि), अकहानी (रमेश बख्शी, गंगा प्रसाद ‘विमल, जगदीश चतुर्वेदी, प्रयाग शुक्ल, दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन आदि), सचेतन कहानी (महीप सिंह, योगेश गुप्त, मनहर चौहान, रामकुमार ‘भ्रमर’ आदि), समानान्तर कहानी (कामतानाथ, से.रा. यात्री, जितेन्द्र भाटिया, इब्राहिम शरीक, हिमांशु जोशी आदि), सक्रिय कहानी (रमेश बत्रा, चित्रा मुद्गल, राकेश वत्स, धीरेन्द्र अस्थाना आदि)। इनके अतिरिक्त इस काल के ऐसे भी कथाकार हैं, जो उपर्युक्त आन्दोलनों से अलग होकर कथा-प्रक्रिया में समर्पित रहे हैं, जैसे-रामदरश मिश्र, विवेकी राय, मृणाल पाण्डेय, मृदुला गर्ग, निरूपमा सेवती, शैलेश मटियानी, ज्ञान प्रकाश विवेक, सूर्यबाला, मेहरून्निसा परवेज, मंगलेश डबराल आदि।

आज की कहानी शहरी-सभ्यता, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की नई अवधारणा, आपसी . सम्बन्धों के बिखराव, भय और असुरक्षा की भावना, चारित्रिक ह्रास, यौन कुण्ठा, घिनौनी मानसिकता, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष, औद्योगिकीकरण के दुष्प्रभाव से दम तोड़ती मानवता आदि को चित्रित करने में सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इसकी भाषा-शैली दोनों ही तराशती हुई और नए-नए तेवरों को प्रस्तुत करने की क्षमता प्रशंसनीय है।

दो बैलों की कथा-कहानी की परिभाषा

कहानी की परिभाषा पश्चिमी और भारतीय समीक्षकों ने अलग-अलग रूप में दी है
I. पाश्चात्य समीक्षक

  1. पश्चिमी विद्वान एडगर रलन पो ने कहानी को रसोद्रेक करने वाला. एक ऐसा आख्यान माना है, जो एक ही बैठक में पढ़ा जा सके।
  2. एच.जी. वेल्स का कहना है कि कहानी तो बस वही है, जो लगभग बीस मिनट में साहस और कल्पना के साथ पढ़ी जाए।
  3. हडसन कहानी में चरित्र की अभिव्यक्ति मानते हैं।

II. भारतीय समीक्षक

  1. डा. श्याम सुन्दर दास के अनुसार-“आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लक्षित करके लिखा गया नाटकीय आख्यान है।”
  2. मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार-“कहानी एक रचना है, जिसमें जीवन के किसी अंश या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सब उसी एक भाव की पुष्टि करते हैं। यह एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।”
  3. इलाचन्द जोशी के अनुसार-“जीवन का एक चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष में उल्टा-सीधा चलता रहता है। इस सुवृहत् चक्र की विशेष परिस्थितियों का प्रदर्शन ही कहानी होती है।”
  4. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय के अनुसार-“छोटी कहानी एक सूक्ष्मदर्शक यन्त्र है, जिसमें मानवीय अस्तित्व के मर्मस्पर्शी दृश्य खुलते हैं।”

दी गई उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है-
कहानी, जीवन के किसी एक विशेष मनोभाव या अंश का एक ऐसा प्रतिबिम्ब है, जो सम्भवतया संक्षिप्त नाटकीय शैली में विश्वसनीय कथा के रूप में प्रस्तुत होता है।

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दो बैलों की कथा-कहानी भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए
(क) “भागे इसलिए कि……..खाएँ चाहे मरें।”
(ख) “दोनों दिन भर जोते जाते……..विद्रोह भरा हुआ।”
(ग) “हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था।”
(घ) “दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।”
(ङ) “बैल का जन्म लिया है तो मार से कहाँ तक बचेंगे।”
उत्तर:
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या :
(क) भागे इसलिए कि वे लोग तुम्हारी तरह बैलों को सहलाते नहीं। खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखू? कहाँ से खली और चोकर मिलता है। सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूंगी, खाएँ चाहे मरें।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने झरी को अपनी ससुराल से अपने दोनों बैलों हीरा और मोती के भागकर आने पर उन्हें सही ठहराया, तो उसकी पत्नी ने उसका विरोध करते हुए कहा कि

व्याख्या :
गया ‘के यहाँ वे दोनों बैल नहीं टिक सके। इसका मुख्य कारण यह है कि वह बैलों को खिलाता है डटकर काम लेने के लिए, उन्हें उसकी तरह आराम देने के लिए नहीं। वह उन्हें खिलाता है, तो वह उनसे काम लेना भी जानता है। उन्हें खिलाकर उन्हें बड़े ही कड़ाई से हल में सुबह से शाम तक जोतता है। इन्हें तो बैठकर खाना चाहिए। ये काम करने से भागते हैं। इसलिए उसने जब इनसे डटकर काम लेना शुरू किया तो ये भागकर यहाँ चले आए। अब देखना है कि इन्हें खली और चोकर कौन खिलाता है। मैं इन्हें सूखा ही भूसा-चारा दूंगी। उसे ये खाएं या न खाएं, मेरी बला से।

विशेष :

  1. झूरी की पत्नी का आक्रोश उसकी कठोरता को प्रकट कर रहा है।
  2. भाव बड़े ही निष्ठुर हैं।
  3. शैली प्रवाहमयी है।
  4. यह अंश स्वाभाविक है।

(ख) “दोनों दिन भर जोते जाते……..विद्रोह भरा हुआ।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती की मेहनत और सहनशीलता को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी के दोनों बैल हीरा और मोती उसके साले के यहाँ कड़ी मेहनत करने लगे। उसका साला गया उनसे खूब डटकर काम लेता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। उन पर जोर-जोर से डण्डे . बरसाता था। इससे वे दोनों क्रोधित होकर उसका बार-बार विरोध करते थे। फिर भी वह उनके प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाता था। इस प्रकार उनसे डटकर काम लेने के बाद वह उन्हें उनके रहने-बैठने की जगह पर बाँध देता था। रात होने पर पहले की तरह उसकी लड़की उन्हें चुपके से दो रोटियाँ खिलाकर चली जाती थी। दोनों उसके द्वारा दी हुई उन रोटियों को प्रसाद की तरह बड़े ही प्रेमभाव से लेते थे। उससे उन्हें एक ऐसी अद्भुत सहनशक्ति मिलती थी कि वे रूखा-सूखा भूसा-चारा खाकर भी अपनी कमजोरी कुछ भी अनुभव नहीं करते थे। ऐसा होने पर भी गया के प्रति उनके मन में अधिक घृणा और विरोध भरा हुआ था।

विशेष :

  1. बैल जैसे कड़ी मेहनत करने वाले पशुओं के प्रति मनुष्य की कठोरता का उल्लेख है।
  2. बाल स्वभाव पशु-प्रेम का उल्लेख रोचक रूप में है।
  3. उर्दू-हिन्दी की शब्दावली है।
  4. शैली भावात्मक है।
  5. भाषा मुहावरेदार है।

(ग) “हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था।”
प्रसंग :
पूर्ववत! इसमें कहानीकार ने हीरा और मोती के अपने मालिक झूरी के प्रति शिकायत के भावों को व्यक्त करते हुए कहना चाहा है कि

व्याख्या :
हीरा और मोती को लगा कि उनके मालिक झूरी ने अपने साले गया को उन्हें बेच दिया। उन्हें यह नागवार लगा। वे तो अपने मालिक झूरी की सच्चे तन-मन से सेवा कर रहे थे, फिर उसने उन्हें उसे क्यों बेच दिया। वे तो उसकी सेवा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़े थे। वे तो यह निश्चय कर लिये थे कि उन्हें उसके यहाँ ही जीना है और उसके यहाँ ही मर जाना है।

विशेष :

  1. बैलों की स्वामिभक्ति प्रकट की गई है।
  2. यह अंश प्रेरक रूप में है।
  3. भाषा सजीव है।

(घ) “दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने गया की लड़की के द्वारा दोनों बैलों को रात के समय चुपके से रोटियों के खिलाने से प्रभाव उन दोनों बैलों के एहसानमन्द होने का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि जब रात के समय चुपके से झूरी के साले गया की लड़की दोनों बैलों को रोटियाँ खिलाती थी, तब उन दोनों को बड़ी शान्ति और तसल्ली होती थी कि इस गया नामक जालिम के यहाँ भी कोई उनके दुख को समझने वाला और उसमें हाथ बँटाने वाला है। इस प्रकार उन्हें मन-ही-मन कुछ ही देर के लिए सही यह अवश्य खुशी होती थी कि किसी दुर्जन के यहाँ भी कोई सज्जन रहता है।

विशेष :

  1. भाषा सरल है।
  2. कथन मार्मिक है।
  3. शैली सुबोध है।

(ङ) “बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती में से हीरा की सहनशीलता और अपनी जाति-धर्म की समझ का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि हीरा और मोती झूरी की कठोरता से तंग आकर उसका विरोध करने लगे थे। एक दिन दोनों गया द्वारा हल में जोतने का कड़ा विरोध किया। वे जब टसमस न हुए तो उसने उनको खूब मारा। वह मारते-मारते थक गया। फिर उसने हीरा की नाक पर जमकर डण्डे जमाए। इससे मोती बेकाबू होकर ऐसा भागा कि हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट-टाटकर बराबर हो गया। उसे हीरा ने समझाया तो मोती ने कहा कि अब की बड़ी मार पड़ेगी। हीरा ने उससे कहा कि उन्हें मार पड़ने से नहीं डरना चाहिए। ऐसा इसलिए कि बैल का जन्म मार खाने के लिए होता है। इसे समझकर उसे मार से बचने या डरने की बात न सोचकर उसको डटकर सहना चाहिए, उससे भागना नहीं चाहिए।

विशेष :

  1. हीरा के स्वधर्म और स्वजाति की समझ प्रेरक रूप में है।
  2. यह वाक्य प्रभावशाली है।
  3. भाषा सजीव है।

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दो बैलों की कथा-कहानी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाइए-
मारता-पीटता, भूखा-प्यासा, जल-भुन गई, रूखा-सूखा, आगे-पीछे।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग छाँटिए-
विश्वास, अभिनन्दन, निर्दयी, अनुमान, दुर्बल, अनाथ।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी img-4

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सामासिक पदों का समास विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए
संध्या-समय, प्रातःकाल, बाल-सभा, पशुवीर, दोपहर, गाय-बैल।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी img-5

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिए-
मनोहर, स्वागत, सज्जन, अन्तान।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी img-6

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए

  1. संध्याकाल के समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे।
  2. गाँव के इतिहास में ऐसी अभूतपूर्व घटना कभी नहीं पाई थी।
  3. दो बैल का ऐसा अपमान कभी नहीं हुआ।
  4. पहाड़ से उतरते हुए उसका पैर रपट गया।

उत्तर:

  1. संध्या-समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे।
  2. गाँव के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना थी।
  3. दोनों बैलों का एसा अपमान कभी न हुआ था।
  4. पहाड़ से उतरते समय उसका पैर रपट गया।

दो बैलों की कथा-कहानी योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
यह कहानी आपको कैसी लगी? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
दो बैलों की कहानी नामक चलचित्र का अवलोकन कर उसकी समीक्षा लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
हल में जोते जाने के अतिरिक्त बैलों से कौन-कौन से कार्य लिए जा सकते हैं। सचित्र कथा तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
आपके घर में यदि कोई पालतू जानवर है तो उसके प्रति आपका व्यवहार कैसा रहता है, लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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दो बैलों की कथा-कहानी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

दो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के बैलों के क्या नाम थे?
उत्तर:
झूरी के बैलों के नाम हीरा और मोती थे।

प्रश्न 2.
दोनों बैलों ने अपनी मूक भाषा में क्या सलाह की?
उत्तर:
दोनों बैलों ने अपनी मूक भाषा में यह सलाह की कि गाँव में सोता पड़ जाने पर पगहे तुड़ाकर अपने घर की ओर भाग चलेंगे।

प्रश्न 3.
मजूर को क्या ताकीद कर दी गई?
उत्तर:
मजूर को यह ताकीद कर दी गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।

प्रश्न 4.
बैलों का कैसा अपमान कभी न हुआ था?
उत्तर:
बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था कि मार खाने के बाद भी उन्हें सूखा ही भूसा दिया गया।

प्रश्न 5.
झूरी ने कौन-सा सबूत दिया की वे बैल उसके ही हैं? –
उत्तर:
झूरी ने यह सबूत दिया कि वे बैल उसके ही द्वार पर खड़े हैं। इसलिए वे उसके ही हैं।

दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के दोनों बैलों में किस प्रकार घनी दोस्ती हो गई थी?
उत्तर:
झूरी के दोनों बैलों में बहुत अधिक भाईचारा हो गया था। दोनों बहुत दिनों से एक ही साथ रहते थे। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम-भाव प्रकट, किया करते थे। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विरोध के भाव से नहीं, अपितु मनोरंजन और आत्मीयता के ही भाव से।

जब वे दोनों हल या गाड़ी में जोते जाते और गर्दन हिला-हिलाकर चलते तो उस समय दोनों की यही कोशिश होती थी कि अधिक-से-अधिक भार मेरी ही गर्दन पर रहे। दिन-भर के वाद दोपहर या शाम को खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान दूर किया करते थे। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने पर दोनों एक ही साथ उठते। एक ही साथ नाँद में मुँह डालते। अगर एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था।

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प्रश्न 2.
झूरी के प्रति बैलों की कौन-कौन-सी आत्मीयता के भाव प्रकट किए थे?
उत्तर:
झूरी के प्रति उसके बैलों ने निम्नलिखित आत्मीयता के भाव प्रकट किए थे-

  1. वह उन गरीबों को अपने घर से क्यों निकाल रहा है?
  2. क्या उन्होंने उसकी सेवा करने में कोई कमी की?
  3. अगर वे कम मेहनत करते थे, तो वह और उन से काम ले लेता।
  4. उन्हें तो उसकी ही सेवा में मरना-जीना कबूल था।
  5. उन्होंने तो उससे कभी भी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। उसने उन्हें जो कुछ भी खिलाया उसे इन्होंने चुपचाप खा लिया। ऐसा होने के बावजूद वह उन्हें गया नामक इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया है।

प्रश्न 3.
लड़की द्वारा गराँव खोल दिए जाने पर बैलों ने क्या किया?
उत्तर:
लड़की द्वारा गराँव खोल दिए जाने पर बैलों ने तेजी से झूरी के घर की ओर भागना शुरू किया। वे सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक उन्हें रास्ते का कुछ भी पता नहीं चला। वे जिस परिचित रास्ते से आए थे, उसे भूल गए। अब उनके सामने नया रास्ता और नए-नए स्थान आने लगे। तब वे एक खेत के किनारे खड़े हो गए। खेत में मटर थी। उससे अपनी भूख मिटाने लगे थे। रह-रहकर आहट लेते थे कि कोई आता तो नहीं। जब पेट भर गया तो दोनों मस्त होकर उछलने लगे।

प्रश्न 4.
दढ़ियल आदमी से छुटकारा पाने के लिए बैलों ने क्या किया?
उत्तर:
दढ़ियल आदमी से छुटकारा पाने के लिए बैलों ने भागना शुरू किया। रास्ते में ही वे अपने मालिक झूरी के खेत-कुएँ आदि को भली-भाँति पहचान गए थे, इससे उनमें और तेजी आ गई। दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की तरह ल्ले ले करते हुए अपने मालिक झूरी के घर आ गए। फिर अपने थान पर आकर खड़े हो गए।

प्रश्न 5.
झूरी के सामने जब दढ़ियल बैलों को पकड़ने चला तो मोती ने क्या किया?
उत्तर:
झूरी के सामने जब दढ़ियल बैलों को पकड़ने चला तो मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल अपने बचाव के लिए पीछे हटा। मोती ने उसका पीछा किया तो वह भागने लगा। वह गाँव से बाहर ही जाकर खड़ा हो गया। उसे इस तरह देखकर मोती उसको देखता रहा। दढ़ियल इस समय धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ दे रहा था और पत्थर फेंक रहा था। मोती शूरवीर की तरह उसका रास्ता रोके खड़ा था। जब वह दढ़ियल चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौट आया।

दो बैलों की कथा-कहानी लेखक-परिचय

प्रश्न.
मुंशी प्रेमचन्दं का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय-कथा साहित्य के युग-निर्माता के रूप में मुंशी प्रेमचन्द अत्यन्त लोकप्रिय हैं।

जन्म एवं शिक्षा :
मुंशी प्रेमचन्दजी का जन्म सन् 1880 ई. में काशी के पास पाण्डेयपुर नामक गाँव में हुआ था। आपका असली नाम धनपतराय था। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त आप एक विद्यालय में अध्यापक हो गए। कुछ समय बाद आपने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और सब डिप्टी इन्सपेक्टर बन गए। आपने अपने विद्यार्थी जीवन-काल से ही कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं। आपका निधन सन् 1936 ई. में हो गया।

रचनाएँ :
मुंशी प्रेमचन्द जी ने मुख्य रूप से कथा-साहित्य की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी आपने नाटक, निबन्ध और आलोचना साहित्य की संवृद्धि.की. है। आपकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

उपन्यास :
सेवासदन, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गबन, निर्मला और गोदान। आपने ‘मंगलसूत्र’ नामक उपन्यास भी लिखना शुरू किया था।

कहानी :
संग्रह-प्रेम-पचीसी, प्रेम-पूर्णिमा, प्रेम-प्रसून, सन्त-सरोज, मानसरोवर आदि। नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की बेदी।

भाषा-शैली :
मुंशी प्रेमचन्द की भाषा-शैली सम्बन्धित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. भाषा :
मुंशी प्रेमचन्द जी की भाषा सरल, सपाट और धाराप्रवाह है। उसमें उर्दू के शब्दों की प्रधानता है। कहीं अंग्रेजी और अरबी-फारसी के भी शब्द हैं।
2. शैली :
मुंशी प्रेमचन्द जी की शैली विविध है। वह कहीं वर्णनात्मक है. और! कहीं चित्रात्मक है। बोधगम्यता आपकी शैलीगत सर्वप्रधान विशेषता है। कहावतों और मुहावरों के अधिक प्रयोग से शैली सशक्त, बोधगम्य और प्रवाहमयी हो गई है।

महत्त्व :
मुंशी प्रेमचंदजी का हिन्दी कथा-साहित्य में बेजोड़ स्थान है। आपने इस क्षेत्र में अपनी लेखनी से भारतीय समाज का आदर्शमय और अत्यन्त प्रभावशाली चित्र खींचकर इसको प्रेरणादायक बना दिया है।

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दो बैलों की कथा-कहानी पाठ का सारांश

प्रश्न.
प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ का सारांश अपने शब्दों! में लिखिए।
उत्तर:
मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दों बैलों की कथा” में पशुओं के प्रति मनुष्य द्वारा किए जाने वाले आत्मीय और कठोर व्यवहार का रोचक चित्र प्रस्तुत किया गया है। कहानी के अनुसार झूरी के हीरा और मोती दो बैल थे। दोनों सुन्दर और चौकस थे। उनमें परस्पर बहुत प्रेम था। दोनों एक-दूसरे की बात समझ लेते थे। उनमें इतनी घनिष्ठ दोस्ती थी कि वे दो शरीर एक प्राण थे। वे दिनभर काम करने के बाद नाँद में एक ही साथ मुँह डालते थे और एक ही साथ मुँह हटा लेते थे। दोनों एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान मिटाते थे। एक दिन झूरी ने उन दोनों को अपनी ससुराल भेज दिया। उन्होंने समझ लिया कि वे बेच दिए गए हैं।

इसलिए उन्होंने उन्हें ले जाने वाले झूरी के साले गया का विरोध किया। उन्हें घर तक ले जाने में उसे दाँतों पसीना आ गया। दिन-भर के भूखे रहने पर भी उन्होंने वहाँ कुछ भी खाया-पीया नहीं। रात को सबके सो जाने पर वे पगहे तुड़ाकर भागते हुए झूरी के घर वापस आ गए। झूरी ने दौड़कर उन्हें गले लगाया। गाँव के लोगों ने तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत किया। लेकिन झूरी की पत्नी से. यह नहीं देखा गया। उसने क्रोध में आकर कहा कि वे दोनों बैल नमकहराम हैं कि बिना काम किए ही भाग आए हैं। इन्हें अब सूखे भूसे ही खाने को दिया जाएगा। झूरी ने इसका विरोध तो किया, लेकिन उसकी एक न चली।

दूसरे दिन आकर झूरी का साला बैलों को ले गया। उन्हें गाड़ी में जोता। मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा तो हीरा ने उसे सँभाल लिया। शाम को झूरी ने बदले की भावना से उन्हें मोटी रस्सियों से बाँधकर उनके सामने सूखा भूसा डाल दिया। उन दोनों ने उसे सूंघा तक नहीं। उसने अपने बैलों को खली-चूनी सब कुछ दी। दूसरे दिन उसने उन्हें हल में जोता तो उन्होंने अपने पाँव नहीं बढ़ाए। उसे देखकर गया क्रोध से पागल हो उठा। उसने उन दोनों पर जमकर डण्डे बरसाए। दोनों हल सहित सब कुछ तोड़कर भाग उठे। गया को दो आदमियों के साथ दौड़कर आते हुए देखकर हीरा ने मोती को समझाया कि अब भागना व्यर्थ है। हीरा मोती की बात मानकर चुपचाप खड़ा हो गया। गया उन दोनों को पकड़कर घर ले गया। उसने फिर वही सूखा भूसा उन दोनों के सामने रख दिया। दोनों ने उसे देखा तक नहीं। रात को एक छोटी-सी लड़की उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती थी।

वे प्रसाद की तरह उन्हें खाकर चुपचाप पड़े रहते थे। एक दिन उस लड़की ने उन दोनों की मोटी-मोटी रस्सियों को खोलकर उन्हें भाग जाने का मौका दिया। फिर उसने जोर से चिल्लाते हए कहा-“ओ दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो” इसे सुनकर गया उनको पकड़ने चला। वे दोनों और भागने लगे तो गया भी उनके पीछे तेजी से दौड़ने लगा। यह देख वह गाँव के कुछ लोगों को साथ लेने के लिए लौटा तो वे दोनों और सरपट भागने लगे। इससे उन्हें अपने परिचित रास्ते का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा। वे रास्ता भूल भटककर किसी के मटर के खेत में चरने लगे। भरपेट मटर चर लेने के बाद वे इठलाने लगे। उन्हें वहाँ देखकर काजी हाउस में बन्द कर दिया गया। एक सप्ताह तक वे वहाँ विना चारे के बन्द रहे। उन्हें दिन भर में एक बार पानी पिलाया जाता था। इससे वे जिन्दा तो रहे, लेकिन उनसे उठा तक न जाता था।

एक सप्ताह के बाद उनको नीलाम कर दिया गया। एक दढ़ियल आदमी ने उन्हें खरीद लिया। वह बहुत कठोर था। नीलाम होने के बाद दोनों (हीरा और मोती) को वह दढ़ियल लेकर चला। उस समय दोनों भय से थर-थर काँप रहे थे, लेकिन वे मजबूर थे। अचानक उन्हें लगा कि वे परिचित रास्ते पर ही चल रहे हैं। गया उन्हें इसी रास्ते से ले गया था। इसी कुएँ पर वे पुर चलाने आया करते थे। अब हमारा घर पास ही आ गया है। इससे दोनों छलाँग लगाते हुए झूरी के घर की ओर दौड़ने लगे। वहाँ पहुँचकर वे अपने-अपने थान पर खड़े हो गए। उनके पीछे-पीछे दौड़ते हुए वह दढ़ियल भी वहाँ पहुँच गया। झूरी उन दोनों को देखकर प्रसन्नता से झूम उठा। उसने उन्हें गले लगाया। उस दढ़ियल ने कहा-‘मैंने इन्हें मवेशीखाने से नीलाम लिया है।

इसलिए ये मेरे बैल हैं। झूरी ने कहा -‘ये मेरे बैल हैं, क्योंकि ये मेरे द्वार पर खड़े हैं। किसी को मेरे बैलों को नीलाम करने का कोई भी हक नहीं है। लेकिन उस दढ़ियल ने झूरी की एक न सुनी। उसने उन्हें बलपूर्वक पकड़ना चाहा तो मोती ने उसे सींग चलाकर गाँव से बाहर कर दिया। इससे वह हारकर चला गया। मोती अकड़ता हुआ लौट आया। गाँव के लोग यह देखकर बाग-बाग हो गए। झूरी ने उन दोनों के नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया। उन्हें दोनों प्रसन्नतापूर्वक खाने लगे। झूरी उन्हें सहला रहा था।

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दो बैलों की कथा-कहानी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. झरी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाई जाति के थे। देखने में सुन्दर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक-दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते में नहीं। केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्टता होते ही धोल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।

शब्दार्थ :
पछाई-पश्चिम प्रदेश का। चौकस-चौकन्ना। विनिमय-लेन-देन, आदान-प्रदान। मूक-मौन। गुप्त-छिपी हुई। वंचित-न पाना, असमर्थ। विग्रह-झंगड़ा, तकरार। विनोद-मनोरंजन। आत्मीयता-लगाव, अपनापन। घनिष्ठता-निकटता। धोल-धप्पा-खुलापन। फुसफुसी-अस्थिर, कामचलाऊ।’

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1′ में संकलित तथा मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने पछाई जाति के दो बैलों की अद्भुत विशेषताओं को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी नामक किसी आदमी के पास पछाई जाति के दो विशेष बैल थे। एक का नाम था हीरा तो दूसरे का नाम था मोती। दोनों की सुन्दरता बहुत अधिक थी। उनका शारीरिक गठन और रूप मन को बार-बार छू लेने वाला था। वे देखने में सुन्दर तो थे ही, अपने काम को पूरा करने में तत्पर रहते थे। वे काम करते समय तनिक भी जी नहीं चुराते थे। वे एक-साथ कई सालों से रह रहे थे। इससे दोनों में बहुत गहरा प्रेम हो गया था। वे अपनी मौन भाषा में परस्पर अपना विचार व्यक्त करते रहते थे। इससे दोनों एक-दूसरे की बातों को खूब अच्छी तरह से समझ जाते थे। उन्हें इस तरह देखकर सबको हैरानी होती थी कि वे कैसे आपस की बातों को समझ लेते हैं। यह अनुमान ही लगाया जा सकता है कि मनुष्य दुर्लभ उनमें कोई अवश्य ही गुप्त शक्ति थी।

कहानीकार का पुनः कहना है हीरा और मोती का परस्पर प्रेम-व्यवहार खुला हुआ था। वे एक-दूसरे के पास बैठते-रहते। एक-दूसरे को चाटते-सूंघते थे। एक-दूसरे को सींग मिलाते थे। उनका यह परस्पर व्यवहार किसी भी दशा में परस्पर लड़ने-झगड़ने की मंशा से नहीं होता था। यह तो उनके परस्पर लगाव को मनोरंजन के रूप में बढ़ाने के लिए ही होता था। इस प्रकार उनकी दोस्ती बहुत घनी हो गई थी। उसमें खुलापन आ गया। उससे वह और टिकाऊ होने लगी थी। सच-मुच में इसके बिना दोस्ती ऐसी हल्की-हल्की-सी बनी रहती है, जिसके समाप्त होने की शंका बनी रहती है।

विशेष :

  1. पछाई जाति के बैलों का रोचक उल्लेख है।
  2. सच्ची दोस्ती की विशेषताओं को बतलाया गया है।
  3. ‘कुछ हल्की -सी’ में उपमा अलंकार है।
  4. सामाजिक शब्दावली है।
  5. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) पछाई जाति के बैलों की क्या विशेषताएँ होती हैं?
(iv) किस दोस्ती पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-पछाई जाति के बैलों की विशेषताएँ बतलाना। लेखक ने इसे बड़े ही रोचक और सरस रूप में व्यक्त किया है। इससे आकर्षक जानकारी मिलती है।
(iii) पछाई जाति के बैलों की अनेक रोचक विशेषताएँ होती हैं. जैसे-देखने में सुन्दर, काम में चौकस, ऊँचे डीलडौल, परस्पर भाईचारा, घनी दोस्ती आदि।
(iv) जिस दोस्ती में आत्मीयता की कमी और भेदभाव हो, उस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दोनों बैलों में भाईचारा क्यों हो गया था?
(ii) मनुष्य से वे दोनों वैल क्यों श्रेष्ठ थे?
(iii) दोनों बैलों में किस प्रकार की दोस्ती थी?
उत्तर:
(i) दोनों बैल बहुत दिनों से एक ही साथ रहते थे। इसलिए उनमें भाईचारा हो गया था।
(ii) दोनों बैल मूक भाषा में एक-दूसरे से विचार-विनिमय किया करते थे। ऐसी अद्भुत शक्ति जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाले मनुष्य में नहीं थी। इस दृष्टि से वे दोनों बैल मनुष्यों में श्रेष्ठ थे।
(iii) दोनों बैलों में घनी और पक्की दोस्ती थी।

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2. संयोग की बात, झूरी ने एक बार मोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों – बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे को जाने लगते। मारता तो दोनों नीचे करके हँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं . उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें . तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथों क्यों बेच दिया।

शब्दार्थ :
संयोग-अचानक। गोई-दो बैलों की जोड़ी। दाँतों पसीना आना-(मुहावरा)-अत्यधिक मेहनत करना। दाएँ-बाएँ-इधर-उधर। पगहिया-पशुओं के गले में बाँधनेवाली रस्सी। हँकारते-हुँकारते, जोर की आवाज करते। वाणी-जबान। कसर-कमी। चाकरी-नौकरी। कबूल-मंजूर, स्वीकार। जालिम-अत्याचारी, जुल्मी, निर्दयी।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने पछाई जाति के दो बैलों की सच्ची भावनाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि एक दिन अचानक झूरी ने अपने उन प्यारे दोनों बैलों हीरा और मोती को अपनी ससुराल भेज दिया। उसका साला गया जब उन दोनों को लेकर चला, तो वे दोनों यह बिलकुल ही नहीं समझ पा रहे थे कि वे अपने मालिक झूरी के पास से क्यों दूसरे मालिक के पास भेजे जा रहे हैं? क्या उनके मालिक ने उन्हें बेच दिया है या और कोई बात है। अगर उनके मालिक ने उन्हें बेच दिया है तो यह उनके लिए बहुत ही अफसोस की बात है। उन्हें इस बात का बेहद दुख है। इस प्रकार सोच-समझ कर वे अपने मालिक के साले गया के साथ जाना अनुचित समझ लिये। फलस्वरूप वे उसके साथ जाने से कतराने लगे। जब वह उन्हें आगे बढ़ाने के लिए पीछे से हाँकता तो वे इधर-उधर होने लगते। पगहिया पकड़कर आगे खींचता तो वे पीछे की ओर भागने लगते। उसके मारने पर वे दोनों जोर-जोर से हुँकारते। इस तरह उसे उन दोनों को अपने घर ले आने में नाकों चने चबाना पड़ा।

कहानीकार का पुनः कहना है कि झूरी के वे दोनों बैल हीरा और मोती अपने मालिक की इस अचानक बेरहमी को बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहे थे कि वह अब उन्हें बेसहारा क्यों बना रहा है? अगर वे कुछ बोल पाते, तो वे उससे यह अवश्य पूछते कि क्या उन्होंने उसके काम सच्चाई से नहीं किए। अगर नहीं तो वह उनसे फिर से और सारे काम लेता। वे तो उसका ही काम सच्चाई से करते हुए अपनी पूरी-की-पूरी जिन्दगी बिता देना चाहते थे। उन्होंने तो उससे कभी भी खाने-पीने की कुछ भी शिकायत नहीं की। उन्हें जो कुछ मिला, चुपचाप स्वीकार कर लिया। फिर उनसे ऐसी कौन-सी गलती हुई कि उसने इस बेरहम के गले लगा दिया।

विशेष :

  1. पछाई जाति के बैलों की सच्चाई पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. मार्मिक कथन है।
  4. मुहावरों के सटीक प्रयोग हैं।
  5. यह अंश अधिक रोचक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) किसने किसे और क्यों ससुराल भेज दिया?
(iv) गया को घर तक गोई को ले जाने में दाँतों पसीना क्यों आ गया?
(v) दोनों बैलों को अपने मालिक से क्या शिकायत थी?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-पछाई जाति के दो बैलों का अपनी स्वामि-भक्ति के भावों को प्रकट करना।
(iii) झूरी ने अपने दोनों बैल हीरा और मोती को अपनी ससुराल अपने साला गया के कहने पर भेज दिया।
(iv) गया को घर तक गोई को ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। ऐसा इसलिए कि गोई किसी प्रकार से वहाँ जाने में राजी नहीं थे। वे इधर-उधर या आगे-पीछे भाग-भागकर गया को काफी परेशान कर डाले थे।
(iv) दोनों बैलों को अपने मालिक झूरी से कई शिकायत थीं-क्या उन दोनों ने उसके काम ईमानदारी से नहीं किए। अगर कोई कमी थी तो और काम लेते। उन्होंने उससे कभी कोई शिकायत नहीं की। वे तो जीवनभर उसी के यहाँ काम करते हुए मर जाना अच्छा समझते थे। उसने जो कुछ खिलाया, वे चुपचाप खा लिये। फिर उसने इस निर्दयी के गले में क्यों डाल दिया।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) बैलों ने क्या समझा?
(ii) बैलों ने गया का विरोध क्यों किया?
(iii) बैलों की झूरी से शिकायत में कौन-से भाव थे?
उत्तर:
(i) बैलों ने यह समझा कि उनके मालिक ने उन्हें किसी जालिम के हाथ बेच दिया है।
(ii) बैलों ने गया का विरोध किया। ऐसा इसलिए कि वे उसके साथ बिलकल ही नहीं जाना चाहते थे।
(iii) बैलों की अपने मालिक झूरी से शिकायत में सच्ची स्वामि-भक्ति के भाव भरे थे। उनके वे भाव बड़े ही आत्मीय, सरस और मेल-मिलाप के थे।

3. दोनों दिन-भर जोते जाते, डण्डे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए। जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती। प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल भूसा खाकर भी दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।

शब्दार्थ :
अड़ते-विरोध करते। थान-बूँटा, बैलों के रहने या बैठने का स्थान।। प्रसाद-भेंट। बरकत-शक्ति। दुर्बल-कमजोर। विद्रोह-विरोध।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती की मेहनत और सहनशीलता को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी के दोनों बैल हीरा और मोती उसके साले के यहाँ कड़ी मेहनत करने लगे। उसका साला गया उनसे खूब डटकर काम लेता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। उन पर जोर-जोर से डण्डे बरसाता था। इससे वे दोनों क्रोधित होकर उसका बार-बार विरोध करते थे। फिर भी वह उनके प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाता था। इस प्रकार उनसे डटकर काम लेने के बाद वह उन्हें उनके रहने-बैठने की जगह पर बाँध देता था। रात होने पर पहले की तरह उसकी लड़की उन्हें चुपके से दो रोटियाँ खिलाकर चली जाती थी। दोनों उसके द्वारा दी हुई उन रोटियों को प्रसाद की तरह बड़े ही प्रेमभाव से लेते थे। उससे उन्हें एक ऐसी अद्भुत सहनशक्ति मिलती थी कि वे रूखा-सूखा भूसा-चारा खाकर भी अपनी कमजोरी कुछ भी अनुभव नहीं करते थे। ऐसा होने पर भी गया के प्रति उनके मन में अधिक घृणा और विरोध भरा हुआ था।

विशेष :

  1. बैल जैसे कड़ी मेहनत करने वाले पशुओं के प्रति मनुष्य की कठोरता का उल्लेख है।
  2. बाल स्वभाव पशु-प्रेम का उल्लेख रोचक रूप में है।
  3. उर्दू-हिन्दी की शब्दावली है।
  4. शैली भावात्मक है।
  5. भाषा मुहावरेदार है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(iii) ‘प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी’ ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव यह है कि मनुष्य बैल जैसे बेजुबान पशुओं के प्रति अपने स्वार्थ में अंधा होकर उनकी स्वामि-भक्ति को नहीं देख पाता है। उसे तो बच्चों की निःस्वार्थमयी आँखें देख और समझकर उनसे सहानुभूति रहती है।
(iii) प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी’ ऐसा लेखक ने इसलिए कहा। है कि बालिका द्वारा खिलाई गई उन दो रोटियों से उन दोनों बैलों को अद्भुत आत्मीयता का अनुभव होता था। उससे उनमें गया की कठोरता को सह लेने की पूरी-पूरी ताकत आ जाती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दोनों बैलों पर गया किस प्रकार जुल्म करता था?
(ii) दोनों बैलों के प्रति कौन तथा कैसे सहानुभूति प्रकट करता था?
(iii) दोनों बैलों की आँखों में किसके प्रति विद्रोह भरा था?
उत्तर:
(i) दोनों बैलों पर झूरी का साला गया खूब जुल्म करता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। इसके बावजूद वह उन पर जोरों से डण्डे बरसाता था। शाम होने पर वह उनको रूखा-सूखा चौरा-भूसा डाल देता था।
(ii) दोनों बैलों के प्रति गया की लड़की चुपके से रात को दो रोटियाँ खिलाकर अपनी सहानुभूति प्रकट करती थी।
(iii) दोनों बैलों की आँखों में गया के प्रति अधिक विद्रोह भरा हुआ था।

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4. गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

शब्दार्थ :
हड़बड़ाकर-घबड़ाकर। ज्ञान-पता। परिचित-जाना-पहचाना

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने गया के घर हीरा और मोती के भागने और उनके भटक जाने का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि गया की लड़की ने रात को हीरा और मोती के गले में बँधी हुई रस्सियों को खोलकर उन्हें चुपके से भाग जाने के लिए कहा। इसे सुनते ही दोनों वहाँ से भाग खड़े हुए। इसके बाद उस लड़की ने जोर से चिल्लाते हुए कहा कि दोनों बैल भागे जा रहे हैं। इसे सुनकर गया हड़बड़ाकर भीतर से दौड़ा। उसने उन दोनों बैलों को पकड़ने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे उससे दूर निकलने लगे। गया ने थोड़ा और जोर लगाया तो वे और तेजी से भागने लगे।

अपनी पकड़ से उन दोनों को बाहर होते हुए देखकर उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया। उसकी आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े उसके पास आ गए। उसने कुछ आदमियों को अपने साथ लेकर उन दोनों बैलों का पीछा किया। इतने समय में वे दोनों काफी दूर निकल गए। वे इतनी तेजी से भाग रहे थे कि वह सही-गलत रास्ते का चुनाव नहीं कर पाए। यहाँ तक कि वे झूरी के घर से जिस रास्ते से होकर आए थे, उससे भी भटक गए। अब उनके सामने सब कुछ नया-नया और अनजान था। इससे वे घबड़ा गए। आगे अब क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, इस सोच-विचार में वे एक खेत के किनारे खड़े हो गए।

विशेष :

  1. सारा वर्णन स्वाभाविक रूप में है।
  2. भाषा सरल है।
  3. बोधगम्य शैली है।
  4. अभिधा शब्द-शक्ति है।
  5. वाक्य-गठन छोटे-छोटे हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) दोनों बैल किस सोच-विचार में पड़ गए?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम- ‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-झूरी के दोनों बैलों की खटाई में पड़ी हुई आजादी का उल्लेख।
(iii) दोनों बैंल अपने जाने-पहचाने रास्ते से भटक गए थे। अब वे इस सोच-विचार में पड़ गए कि वे अब किधर जाएँ और. क्या करें।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
(i) गया दोनों बैलों को क्यों नहीं पकड़ पाया?
(ii) दोनों बैल अपने परिचित रास्ते से क्यों भटक गए?
(iii) दोनों बैल किस निष्कर्ष पर पहुँचे?
उत्तर:
(i) गया दोनों बैलों को नहीं पकड़ पाया। यह इसलिए कि वे दोनों झांनी तेजी से भाग गए कि वे उसकी पकड़ से बाहर हो गए।
(i) दोनों बैल परिचित रास्ते से इसलिए भटक गए कि झूरी का साला गया। उन्हें पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा जिससे गाँव के कई लोग इकट्ठा होकर उन्हें पकड़ने के लिए दौड़े। जल्दी भागने के चक्कर में वे रास्ता भटक गए।
(iii) दोनों बैल इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अब उन्हें अच्छी तरह से सोच-विचार कर ही कदम बढ़ाने चाहिए।

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5. सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई सन्देह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।

शब्दार्थ :
सहसा-अचानक। मुद्रा-भाव। गोदकर-घुसाकर। अन्तर्ज्ञान-आत्मज्ञान, भीतरी ज्ञान। भीत-डरे हुए।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने मवेशीखाने से दोनों बैलों के नीलाम होने के समय का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि मवेशीखाना में पड़े हुए झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती को एक सप्ताह हो गया। एक दिन उनकी नीलामी होने लगी। यों तो उन्हें खरीदने के लिए कई लोग आए। उन्हें कमजोर और मरियल देखकर किसी की हिम्मत उन्हें खरीदने की नहीं होती थी। उनमें से एक दाढ़ीवाला आदमी आया। उसकी आँखें लाल-लाल थीं। उसकी मुद्रा बड़ी कठोर और डरावनी थी। आते ही उसने उन दोनों के कूल्हों में अपनी उँगली को घुसा दिया। फिर वह उनको ख़रीदने के लिए मवेशीखाने के मुंशी से बातें करने लगा। वे दोनों उस दाढ़ीवाले आदमी को देखकर डर गएं। उन्होंने अपने आत्मज्ञान से उसकी बेरहमी को समझ लिया। वे यह भी समझ गए कि वह उनका क्या करेंगा? उसकी मंशा क्या है? अपने ऊपर आने वाली किसी विपदा का अनुमान कर दोनों एक-दूसरे को डरी-डरी आँखों से देखा। फिर इशारों-इशारों में उसे भगवान भरोसे छोड़कर सिर को झुका लिया।

विशेष :

  1. बैलों की बेबसी का उल्लेख है।
  2. भयानक रस का प्रवाह है
  3. भावात्मक शैली है।
  4. देशज शब्दों के प्रयोग हैं।
  5. शब्द-प्रयोग सरल है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय प्रया है?
(iii) दढ़ियल आदमी कैसा था?
(iv) दोनों बैलों ने दढ़ियल आदमी को क्या समझा?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय. किसी जुल्मी द्वारा झूरी के दोनों बैलों की नीलामी किए जाने के कारणं दोनों की मजबूरी का उल्लेख करना है।
(iii) दढ़ियल आदमी बड़ा ही भयानक और कठोर था।
(iv) दोनों बैलों ने दढ़ियल आदमी को कसाई समझा।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दढ़ियल आदमी ने हीरा और मोती को किस प्रकार टटोला?
(ii) दोनों मित्रों के दिल क्यों काँप उठे?
(iii) किस बात का दोनों मित्रों को कोई सन्देह नहीं हुआ?
उत्तर :
(i) दढ़ियल आदमी ने हीरा और मोती को उनके कूल्हों में उँगली गोदकर टटोला।
(ii) दोनों मित्रों ने अपने अन्तर्ज्ञान से यह समझ लिया कि वह दढ़ियल आदमी बहुत ही कठोर है।
(iii) दोनों मित्रों को इस बात का कोई सन्देह नहीं हुआ कि वह दढ़ियल आदमी उन्हें मार डालेगा।

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