MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण भाव पल्लवन

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण भाव पल्लवन

विचारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम भाषा है। भाषा और अभिव्यंजना पक्ष पर असाधारण अधिकार रखने वाले व्यक्ति अपने भावों और विचारों को परिष्कृत, सुगठित प्रौढ़ भाषा में संक्षेप में अभिव्यक्त करते हैं। उनके संक्षिप्त कथन में विस्तृत विचारों और गंभीर भावों की अभिव्यक्ति निहित रहती है। उनमें भावों और विचारों की गहराई सूत्र रूप में पिरोई होती है। ये विचार-सूत्र समाज में उक्ति अथवा सूक्ति के रूप में प्रचलित हो जाते हैं। इनमें गागर में सागर भरा होता है। सामान्य जनों को इस प्रकार के गुंथे हुए सूत्रवत एक या एक से अधिक वाक्यों के भाव और विचार स्पष्ट नहीं होते हैं। अब समझने के लिए विचार-सूत्रों के वाक्य अथवा वाक्यों का अर्थ-विस्तार या भाव-विस्तार किया जाता है।

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किसी सुगठित एवं गुम्फित विचार अथवा भाव के विस्तार को पल्लवन कहते हैं।
किसी एक वाक्य या एक से अधिक वाक्यों का पल्लवन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. मूल वाक्य या अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए।
  2. वाक्य या अवतरण में कोई लोकोक्ति, मुहावरे, अलंकार, रस आदि हो सकते हैं, उन पर ध्यान दीजिए।
  3. पल्लवन काव्य पंक्ति अथवा गद्य पंक्ति किसी का भी किया जा सकता है। उसके केंद्रीय भाव या विचार को समझने का प्रयास कीजिए।
  4. भाव या विस्तार करते समय कथन की पुष्टि हेतु कुछ उदाहरण या तथ्य भी दिए जा सकते हैं।
  5. वाक्य छोटे-छोटे हों और भाषा सरल, स्पष्ट और व्यावहारिक हो।
  6. लेखक या कवि के मूल भाव का ही विस्तार करना उचित है। उसकी आलोचना नहीं करना चाहिए।
  7. पल्लवन हर स्थिति में अन्य पुरुष में कीजिए।
  8. अनावश्यक विस्तार से बचें।
  9. विरामचिह्नों पर ध्यान दें।
  10. पल्लवन हेतु शब्द-चयन सार्थक और प्रभावी है।
  11. पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।

उदाहरण
कर्ता से बढ़कर कर्म का स्मारक दूसरा नहीं।

पल्लवन-किसी कर्म का सबसे बड़ा स्मारक उस कर्म को करने वाला अर्थात कर्ता होता है। जब हम किसी कर्म की प्रशंसा करते हैं तो हमारी दृष्टि उस कार्य के कर्ता की ओर जाती है। कर्म को कर्ता से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता। जब हमें उसी प्रकार के कार्य करने का सुअवसर प्राप्त होता है तो मार्ग-दर्शन के लिए उसके कर्ता की ओर ध्यान चला जाता है। वह कर्ता हमारा आदर्श बन जाता है। कर्मों द्वारा ही समाज में कर्ता की स्थिति सुदृढ़ और आकर्षक बनती है। भारतीय संस्कृति की पताका विदेशों में फैलाने की चर्चा होती है तो स्वतः ही हमारा ध्यान स्वामी विवेकानंद की ओर आकर्षित हो जाता है। अतः कर्म का स्मारक कर्ता के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हो सकता है।

अन्य उदाहरण

1. महत्त्वाकांक्षा मनुष्य का असाध्य रोग है।
2. प्रेम में घनत्व अधिक है तो श्रद्धा में विस्तार।
3. आचरण सज्जनता की कसौटी है।
4. सद्भावना टूटे हृदय को जोड़ती है।
5. कर्ता से बढ़कर कर्म का स्मारक दूसरा नहीं।
6. मनुष्य जितना देता है, उतना ही पाता है। प्राण देने से प्राण मिलता है और मन देने से मन मिलता है।
7. आशा उस घास की भाँति है जो ग्रीष्म में ताप से जल जाती है।
8. सत्ता की भूख ज्ञान की वर्तिका को बुझा देती है।
9. लोभ सामान्योन्मुख होता है और प्रेम विशेषोन्मुख।
10. नियम जीवन-वाटिका की रक्षा-परिधि है।
11. बंधन सर्वत्र होते हैं किन्तु जो मनुष्य उन्हें शक्ति मानकर चलता है वही सबल होता है।
12. प्रसिद्धि मनुष्य की शांति की सबसे बड़ी शत्रु है जो उसके हृदय की कोमलता का हनन करती है।
13. विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहीं, पर अपनी भाषा सर्वोपरि है।
14. उपकार शील का दर्पण है।
15. प्रेम में घनत्व अधिक है तो श्रद्धा में विस्तार।
16. दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात।
17. दुःख की छाया एक तरह की तपस्या ही है, उससे आत्मा शुद्ध होती है।
18. मंदिर एक उपासना स्थल है, जहाँ मनुष्य अपने आपको ढूँढ़ता है।
19. विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि है।
20. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

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21. जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ।
22. होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
23. हिंसा बुरी चीज है, पर दासता उससे भी बुरी है।
24. तेते पाँव पसारिए जेती लांबी सौर।
25. लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत।
लीक छाँड़ि तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत॥
26. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
27. कायर भाग्य की और वीर पुरुषार्थ की बात करते हैं।
28. भाग्यवाद आवरण पाप का और शस्त्र शोषण का।
29. लघुता से प्रभुता मिले प्रभुता से प्रभु दूर।
30. जीवन का नियम स्पर्धा नहीं, सहयोग है।
31. आँखों में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों।
32. महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है।
33. भविष्य वर्तमान के द्वारा खरीदा जाता है।
34. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
35. करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
36. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
37. हम नदी के द्वीप हैं, धारा नहीं हैं।
हम बहते नहीं, क्योंकि बहना रेत होना है।
38. आनंद के झरने का उद्गम अपने भीतर है, बाहर नहीं।
39. आलस्य जीवित व्यक्ति का कफन है।
40. वाणी का भूषण ही भूषण है।
41. चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।
42. खोजी मनुष्य के लिए समुद्र सूख जाता है, पहाड़ झुक जाता है।
43. धर्म और जाति का भेद संकीर्ण विचारों के स्वार्थ की उपज है।
44. धर्म का भूषण वैराग्य है, वैभव नहीं।
45. राष्ट्रभाषा के अभाव से पराधीनता की याद ताजा बनी रहती है।
46. भाषा विचार की पोशाक है।
47. यह सत्य ही है, देवता उसी की सहायता करते हैं, जो परिश्रम करता है।

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48. युद्ध असभ्य लोगों का व्यापार है।
49. जीवन अमरता का शैशवकाल है।

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MP Board Class 11 General Hindi व्याकरण अशुद्ध गद्यांश की भाषा का परिमार्जन

MP Board Class 11 General Hindi व्याकरण अशुद्ध गद्यांश की भाषा का परिमार्जन

भाषा का शुद्ध और स्पष्ट लेखन उस समय तक सम्भव नहीं है, जब तक कि शब्दों और उनके अर्थ के विषय में पूर्ण ज्ञान न हो। शुद्ध वाक्य रचना के लिए अशुद्धियों पर ध्यान देना बड़ा आवश्यक है। अशुद्ध वाक्य उतना ही भद्दा और अरुचिपूर्ण लगता है जितना कि बेतरतीब बनाया हुआ भोजन। अतः अशुद्धियों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-

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1. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ – संज्ञा शब्दों में लिंग – परिवर्तन होता है; जैसे –
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2. वचन सम्बन्धी अशुद्ध याँ
1. वह किसके कलम है – वह किसकी कलम है।
2. उसका भाग्य फूट गया – उसके भाग्य फूट गए।
3. मेरे बटुआ उड़ गया – मेरा बटुआ उड़ गया।
4. क्या तेरा प्राण निकल रहा है क्या तेरे प्राण निकल रहे हैं।

3. समाज सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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4. संधि समास अशुद्धियाँ
1. निरस – नीरस (निः + उक्त)।
2. उपरोक्त – उपर्युक्त (उपरि + उक्त)।
3. सदोपदेश – सदुपदेश (सद् + उपदेश)।

5. कर्ता और क्रिया का समान न होना – कर्ता और क्रिया के वचन, लिंग और पुरुष समान होने चाहिए। यदि ऐसा न हुआ तो वाक्य अः शुद्ध हो जाता है। उदाहरण के लिए –
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6. शब्दों को यथा स्थान रखना – वाक्य में कर्ता, कर्म, करण, विशेषण, विशेष्य, क्रिया – विशेषण आदि के स्थान निश्चित होते हैं। यदि वे निश्चित स्थान पर न रखे
गए अथवा उनका स्थान बदल दिया गया तो वाक्य अशुद्ध हो जाता है।
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7. अनावश्यक शब्दों का प्रयोग
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8. वर्ण और मात्रा संबंधी अशुद्धियाँ
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महत्त्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्न

निम्नलिखित वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिए
1. इन्दिरा गाँधी की मृत्यु पर भारत में दुःख छा गया।
2. मैं कल आगरा से वापस लौटूंगा।
3. तुमने यह काम करना है।
4. कोप ही दण्ड का एक विधान है।
5, आग में कई लोगों के जल जाने की आशा है।
उत्तर –
1. इन्दिरा गाँधी की मृत्यु पर भारत में शोक छा गया।
2. मैं कल आगरा से लौटूंगा।
3. तुम्हें यह काम करना है।
4. दण्ड ही कोप का एक विधान है।
5. आग में कई लोगों के जल जाने की आशंका है।

निम्नलिखित अशुद्ध शब्दों को शुद्ध कीजिए-
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अभ्यास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(i) अभ्यास के लिए शुद्ध – अशुद्ध वाक्य।

1. संग्रहित
(क) संघरित (ख) संगृहीत (ग) संग्रहीत (घ) संघह्वीत
उत्तर –
(ख) संगृहीत।।

2. प्रथक
(क) पृथक् (ख) पिरथक (ग) परथिक (घ) पिर्थक
उत्तर –
(क) पृथक्।

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3. उज्जवल
(क) उजवल (ख) उज्ज्वल (ग) उजवल्य (घ) उज्जवल
उत्तर –
(ख) उज्ज्वल

4. प्रनाम
(क) पिरणाम (ख) पिरनाम (ग) पृणाम (घ) प्रणाम
उत्तर –
(घ) प्रणाम।।

5. भैंस और बैल खड़े हैं
(क) भैंस खड़ा और बैल खड़ी है। (ख) भैंस और बैल दोनों खड़ी हैं। (ग) भैंस और बैल खड़ा हुआ है। (घ) भैंस और बैल दोनों खड़े हैं।
उत्तर –
(घ) भैंस और बैल दोनों खड़े हैं।

6. आगरा के अन्दर हैजा का जोर है
(क) आगरा के अन्दर हैजा (ख) हैजा का जोर है आगरा में। का प्रकोप है। (ग) हैजा का प्रकोप है आगरा में। (घ) आगरा में प्रकोप है हैजा का।
उत्तर –
(घ) आगरा में प्रकोप है हैजा का।

7. उसे अनुत्तीर्ण होने की आशा है
(क) आशा है उसे अनुत्तीर्ण (ख) अनुत्तीर्ण होने की उसे आशंका होने की। (ग) उसे आशंका है अनुत्तीर्ण (घ) उसे अनुत्तीर्ण होने की आशंका होने की।
उत्तर –
(घ) उसे अनुत्तीर्ण होने की आशंका है।

(ii) शब्दों के क्रम संबंधी अशुद्धियों को शुद्ध कीजिए
अशुद्ध – राम, जो कल भूखा था, ने अभी तक कोई भोजन नहीं किया।
शुद्ध – राम, जो कल भूखा था अभी तक भोजन नहीं किया।
अशुद्ध – राम बाजार से फूलों की माला एक लाई।।
शुद्ध – राम बाजार से एक फूलों की माला लाया।
अशुद्ध – सब लड़कियाँ अपनी किताब और कल से लिख और पढ़ रहे थे।
शुद्ध – सब लड़कियाँ अपनी किताब और कलम से पढ़ ओर लिख रही थीं।

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(iii) प्रत्यय संबंधी अशुद्धियाँ दूर कीजिए
अशुद्ध – राम यह कार्य आवश्यकीय है।
शुद्ध – राम यह कार्य आवश्यक है।
अशुद्ध – आपकी सौजन्यता से मेरे पुत्र को नौकरी मिल गई।
शुद्ध – आपके सौजन्य से मेरे पुत्र को नौकरी मिल गई।
अशुद्ध – साधु के माथे पर रामानन्द तिलक है।
शुद्ध – साधु के माथे पर रामानन्दी तिलक है।

(iv) अनुस्वार एवं चन्द्र बिन्दु संबंधी अशुद्धियाँ शुद्ध कीजिए–
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MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 भू का त्रास हरो

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 भू का त्रास हरो (कविता, रामधारी सिंह ‘दिनकर’)

भू का त्रास हरो पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

भू का त्रास हरो लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार राजाओं से भी पूज्य कौन है?
उत्तर:
कवि के अनुसार राजाओं से भी पूज्य कवि, कलाकार और ज्ञानीजन हैं।

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प्रश्न 2.
कविता में नृप समाज का उल्लेख किस रूप में हुआ है?
उत्तर:
कविता में नृप-समाज का उल्लेख मदांध शासक के रूप में हुआ है।

प्रश्न 3.
कवि ज्ञानियों को क्या धारण करने का उपदेश देता है?
उत्तर:
कवि ज्ञानियों को मदांध शासकों को सबक सिखाने के लिए तलवार धारण करने का उपदेश देता है।

भू का त्रास हरो दीर्घउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि का भोगी भूप से क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का भोगी नृप से आशय है ऐसे अविचारी, विलासी और मदांध शासक से जो प्रजा की भलाई के लिए कुछ नहीं करता है। केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है।

प्रश्न 2.
कवि ने अविचारी नृप समाज के साथ कैसा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है?
उत्तर:
कवि ने अविचारी नृप समाज के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है। उसने उसको सबक सिखाने के लिए ज्ञानीजनों को यहाँ तक प्रेरित किया है कि जरूरत पड़े तो उन्हें तलवार भी उठाने से तनिक संकोच नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
‘आग में पड़ी धरती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आग में पड़ी धरती’ से कवि का तात्पर्य है-चारों ओर फैली अव्यवस्था, अजराकता, अभाव, अशान्ति, अमानवता और असुरक्षा का फैलता दूषित वातावरण। इस प्रकार के वातावरण का निकट भविष्य में कोई सुधार का उपाय दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए कवि ने ज्ञानियों को तलवार धारण कर सभी प्रकार के अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया है। ऐसा इसलिए कि संसार को उनसे ही यह आशा है और वे इसके लिए सक्षम और समर्थ हैं।

भू का त्रास हरो भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न.

  1. ‘जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलाएँगे’ का भाव पल्लवन कीजिए।
  2. ‘भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग भाषा को’ इस पंक्ति का अपने शब्दों में विस्तार कीजिए।
  3. निम्नांकित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए(क) “रोक-टोक से नहीं सुनेगा…..वह तुम त्रास हरो।”

उत्तर:
1. “जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलाएँगे” का भाव यह है कि जब तक अविचारी और विलासी शासक प्रजाहित में कार्य नहीं करेगा, तब तक कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों को मान-सम्मान प्राप्त नहीं होगा। चारों ओर अत्याचार और दुखद वातावरण बना रहेगा। उससे जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

2. “भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग की भाषा’ इस काव्य-पंक्ति के द्वारा कवि ने यह कहना चाहा है कि सत्ता से मदान्ध शासक निश्चित रूप से अविचारी और विलासी होता है। वह प्रजाहित में कुछ भी नहीं करता है। वह तो केवल तलवार की ताकत से ही अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है और इसी को ही महत्त्व देता है। फलस्वरूप वह कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों का अनादर करता है। इस प्रकार वह किसी की अच्छी बात नहीं सुनता है। उसे तो केवल ज्ञानीजन ही तलवार उठाकर सबक सिखा सकते हैं।

3. ‘रोक-टोक से नहीं सुनेगा…..वह तुम त्रास हरो।”
व्याख्या:
सुख-सुविधाओं में डूबा हुआ और सत्ता के मद से अंधा बना हुआ शासक वर्ग ज्ञानीजनों की सीख पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं देता है। दुखी प्रजा के विरोध करने पर भी यह अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आता है। इसलिए यह तो वास्तव में विचारहीन है। यह सत्ता के मद से इतना अंधा हो चुका होता है कि गर्दन काटनेवाली कुल्हाड़ी ही इसके सुधार का एकमात्र उपाय है। यह इसलिए भी इसका ही पात्र है। कवि का पुनः कहना है कि वह इसीलिए ज्ञानीजनों से अब कह रहा है कि ऐसे मदान्ध शासकों को सबक सिखाने के लिए उन्हें तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए उन्हें हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस तरह इस धरती पर फैले हुए दुख-अभाव को जो कोई भी हर न सका, उसे हरने के लिए उन्हें हर प्रकार से कमर कस लेनी चाहिए।

भू का त्रास हरो भाषा अध्ययन

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए –
(क) कविता की रचना करने वाला
(ख) विज्ञान में विशेष निपुण
(ग) कलाओं का सृजन करने वाला
(घ) अभिमान करने वाला।’
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 भू का त्रास हरो img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं, इन शब्दों के विभिन्न अर्थ दर्शाने वाले वाक्य बनाओ –
कनक, पद, पक्ष, विधि।
उत्तर:

  • कनक – धतूरा, सोना
  • पद – पैर, ओहदा
  • पक्ष – पन्द्रह दिन का समय, पंख
  • विधि – कानून, ढंग।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिएउज्ज्वल, मदान्ध, निष्ठुर, उद्धार।
उत्तर:
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भू का त्रास हरो योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपना आदर्श किसे मानते हैं? अपने आदर्श के प्रमुख गुणों को लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
यदि आपको अपने जीवन में समाज का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त होता है तो आप क्या-क्या कार्य करेंगे, लिखिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 3.
एक आदर्श नेता में आप किन-किन गुणों को देखना चाहते हैं, सूची बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

भू का त्रास हरो परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

भू का त्रास हरो लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जनता के हितों की अनदेखी कौन करता है?
उत्तर:
जनता के हितों की अनदेखी अविचारी और मदांध शासक करता है।

प्रश्न 2. अपमान सहकर भी मानवता की कौन चिन्ता करता है?
उत्तर:
अपमान सहकर मानवता की चिन्ता कवि, कलाकार और ज्ञानी करते हैं।

प्रश्न 3.
आज के कवि, कलाकार और ज्ञानी किस तरह का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं?
उत्तर:
आजकल के कवि, कलाकार और ज्ञानी भोजन-वस्त्र से हीन, अपमानित और दीनता का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।

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प्रश्न 4.
‘भू का त्रास’ आज तक कोई क्यों नहीं हर सका?
उत्तर:
भू का त्रास’ आज तक कोई नहीं हर सका, क्योंकि मदान्ध और अविचारी शासक का विरोध कर उसे सबक सिखाने वाला कोई नहीं है।

भू का त्रास हरो दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संसार किन विभूतियों को नहीं पहचान रहा है और क्यों?
उत्तर:
संसार कवि, कलाकार और ज्ञानीजन रूपी विभूतियों को नहीं पहचान रहा है। यह इसलिए कि इन विभूतियों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वह अविचारी और मदान्ध शासकों को मान रहा है। उसका ऐसा मानने के पीछे यह कारण है कि मदांध शासक अपनी मदान्धता के फलस्वरूप और किसी को कुछ भी नहीं समझता है।

प्रश्न 2.
‘ज्ञानियों खड्ग धरो’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ज्ञानियों खड्ग धरो’ का आशय है-कवि, कलाकार और ज्ञानी ही जनता के हितों की अनदेखी करने वाले अविचारी और विलासी मदान्ध शासकों को भली-भांति समझता है। वह जानता है कि यह शासक केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है। ऐसे शासक को वही सबक सिखा सकता है। इसलिए जब कभी ऐसी जरूरत पड़े तो उसे तलवार उठाने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। उससे ही संसार को इस प्रकार की अपेक्षा है और वह इसके लिए समर्थ है। ऐसा करके ही वह नीति विमुख राजसत्ता को सही रास्ते पर ला सकता है।

प्रश्न 3.
‘भू का त्रास हरो’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में अविचारी और विलासी शासकों की भर्त्सना की गई है। जो शासक प्रजाहित में कार्य नहीं करता है और केवल तलवार की ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित रखता है, ऐसे शासक का प्रतिकार उज्ज्वल चरित्र वाले कवि, कलाकार एवं ज्ञानीजन ही कर सकते हैं। सत्ता के मद में डूबे हुए शासक अपने जीवन-दर्शन को केवल शब्द सुनकर ही नहीं बदल सकते हैं। अतः उन्हें सबक सिखाने के लिए ज्ञानवान व्यक्तियों को तलवार भी उठाना पड़े तो इसके लिए उन्हें सदैव तैयार रहना चाहिए। संसार तभी सुख का अनुभव कर सकेगा जब समाज चरित्रवान कवि, कलाकारों और ज्ञानियों को इन मदांध शासकों से अधिक महत्त्वपूर्ण मानेगा। नीति विमुख राजसत्ता को समाज का बौद्धिक और कलाकार वर्ग ही मार्ग पर लाने में समर्थ है।

भू का त्रास हरो लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का संक्षित जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार राज्य के मुंगेर जिला के सिमरिया नामक गाँव में 30 सितम्बर, 1908 को एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता का साया उठ जाने के बाद आपकी विधवा माँ ने आपकी शिक्षा को आगे बढ़ाया। मोकामाघाट से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करके आपने पटना विश्वविद्यालय से सन् 1932 में बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। आप में बचपन से ही कविता के अंकुर फूट पड़े थे। यही कारण है कि आपने मिडिल स्कूल में पढ़ते समय ‘बीरबाला’ और हाईस्कूल में अध्ययन करते समय ‘प्रणभंग’ काव्यों की रचना की थी।

मोकामा में एक वर्ष तक प्रधानाचार्य रहने के बाद आप सन् 1934 में सब-रजिस्ट्रार हो गए। इसके बाद आप सन् 1943 में ब्रिटिश सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में निर्देशक के पद पर रहे। सन् 1952 से सन् 1963 तक आप राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होकर राज्यसभा के सदस्य रहे। सन् 1964 में आप भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद ‘दिनकर’ जी भारत सरकार के गृह-विभाग में हिन्दी-समिति के सलाहकार के रूप में कार्य करते रहे। इसके बाद आप आकाशवाणी के निदेशक के पद पर भी रहे। इस तरह से ‘दिनकर’ जी कई वर्षों तक हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। दिनकर जी का साहित्यिक-मूल्यांकन करते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार की उपाधियों-पुरस्कारों से समय-समय पर अलंकृत-पुरस्कृत किया जाता रहा। 24 अप्रैल, 1974 ई. को हिन्दी का यह ‘दिनकर’ सदा के लिए अस्त हो गया।

रचनाएँ:
‘दिनकर’ मुख्य रूप से कवि तो थे ही लेकिन उनका गद्य-साहित्य पर भी बेजोड़ अधिकार रहा। उनकी निम्नलिखित रचनाएँ हैं –

1. महाकाव्य:

  • कुरुक्षेत्र,
  • उर्वशी।

2. खण्डकाव्य:

  • प्रणभंग,
  • रश्मिरथी।

3. काव्य:

  • बारदोली-विजय
  • द्वन्द्वगीत
  • रसवंती
  • रेणुका
  • हुंकार
  • दिल्ली
  • नीलकुसुम
  • इतिहास के आँसू
  • नीम के पत्ते
  • सिपी और शंख
  • परशुराम की प्रतिज्ञा
  • सामधेनी, और
  • कलिंग-विजय।

4. गद्य-साहित्य:

  • मिट्टी की
  • संस्कृति के चार अध्याय
  • पंत, प्रसाद, गुप्त
  • हिन्दी साहित्य की भूमिका
  • अर्द्धनारीश्वर।

5. आलोचना:

  • शुद्ध कविता की खोज में आदि।

महत्त्व:
कविवर ‘दिनकर’ का महत्त्व निस्संदेह है। वह काव्य, दर्शन, चिन्तन और राष्ट्र की दृष्टि से निश्चय ही उपयोगी सिद्ध हुआ है और होता रहेगा। उन परवर्ती रचनाकारों को ‘दिनकर’ जी विशेष रूप से मिल के पत्थर का काम करेंगे, जो प्रगतिवादी चेतना के आग्रही हैं। इस प्रकार ‘दिनकर’ का महत्त्व हमारे समाज और राष्ट्र के लिए सदैव प्रेरक रूप में बना रहेगा।

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भू का त्रास हरो पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ विरचित कविता ‘भू का त्रास हरो’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
श्री रामधारी सिंह-विरचित कविता में भोगी-विलासी राजनेताओं और शासकों की निन्दा की गई है। दूसरी ओर ज्ञान, तप और त्याग की उपेक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। कवि इस प्रकार के तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहा है। इस विषय में कवि का कहना है कि जब तक भोगी-विलासी और कुविचारी शासक प्रजा के नेता बने रहेंगे, तब तक ज्ञान, त्याग और तप का महत्त्वांकन नहीं होगा। भोजन-वस्त्र से हीन, दीन-हीन जीवन जीने वाले, हर प्रकार से उपेक्षा और अपमान का चूंट पीकर मानवता की चिन्ता करने वाले, कवि; पंडित, विज्ञान के जानकार, कलाकार, ज्ञानी और पवित्र-चरित्र का स्वाभिमान रखनेवाले की पहचान संसार जब तक नहीं करेगा, वह राजनेताओं-शासकों से भी अधिक उन्हें जब तक नहीं पूज्य मानेगा, तब तक यह धरती आग में पड़ी हुई अकुलाती रहेगी।

लाख कोशिश के बावजूद वह दुखों से निजात नहीं पाएगी। ऐसा इसलिए राजनेता और शासक तो केवल तलवार की ही भाषा समझते हैं। वह किसी प्रकार की रोक-टोक से नहीं रुकने वाला है। ऐसा इसलिए कि यह समाज ही अविचारी और मुर्ख है। यह तो अपनी कुल्हाड़ी से किसी की गर्दन काटने में बड़ा ही निष्ठुर (कठोर) है। यह बहुत मदान्ध है। इसलिए तो मैं ज्ञानियों से यह कहना चाहता हूँ कि अब तुम ज्ञानोपदेश बंद करके अपने हाथ में तलवार ले लो। अब तक इस धरती के जिस दुख को किसी से नहीं दूर किया, उसे अब तुम दूर कर दो।

भू का त्रास हरो संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलायेंगे,
ज्ञान, त्याग, तप नहीं श्रेष्ठता का जब तक पद पायेंगे।
अशन-वसन से हीन, दीनता में जीवन धरनेवाले,
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले,

शब्दार्थ:

  • भोगी – सुख सुविधाओं में डूबे हुए।
  • भूप – राजा (राजनेता व प्रशासक)।
  • अशन-वसन – भोजन और वस्त्र।
  • दीनता – अभाव, गरीबी।
  • धरनेवाले – धारण करने वाले।
  • मनुजता – मनुष्यता।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सामान्य हिन्दी भाग-1’ में संकलित और महाकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा विरचित कविता ‘भू का त्रास हरो’ शीर्षक से उद्धृत है। इसमें कवि ने कुविचारी और सुख-सुविधाओं में डूबे हुए राजाओं (आजकल के राजनेताओं और प्रशासकों) के प्रति अपना क्रोध प्रकट करते हुए कहा है कि –

व्याख्या:
चूँकि आजकल भोगी-विलासी और सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं में डूबे हुए राजनेता और प्रशासक अधिक हो रहे हैं। इससे देश की जनता की नाना प्रकार की दुर्दशा हो रही है। इससे देश की स्थिति बिगड़ गई है। इसलिए यह ध्यान देने की बात है कि जब तक देश में इस प्रकार के भोगी-विलासी और अनेक प्रकार के सुख-सुविधाओं में डूबे हुए लोग जनता के नेता और प्रशासक बने रहेंगे, तब तक ज्ञान, त्याग और तप को न सम्मान मिलेगा और न महत्त्व।

भोजन-वस्त्र से हीन अर्थात् दाने-दाने को मोहताज और फटे-मैले कपड़ों से तन ढकने के लिए मजबूर, दीनता-हीनता की जिन्दगी जीने वाली तथा हर प्रकार की उपेक्षा-अपमान के घूट को पी-पीकर मानवता की रक्षा के लिए अड़ी हुई जनता की ओर ऐसे भोगी-विलासी राजनेताओं-प्रशासकों का ध्यान बिल्कुल जाता नहीं है। ऐसा इसलिए कि वे सुख-सुविधाओं में पड़कर इतने मदांध हो जाते हैं कि उन्हें सच्चाई दिखाई ही नहीं देती है।

विशेष:

  1. भाषा में ओज है।
  2. तत्सम शब्दावली है।
  3. प्रगतिवादी चेतना है।
  4. ‘त्याग तप’ और ‘अशन-घसन’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. यह अंश प्रेरक और भाववर्द्धक है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में भोगी-विलासी राजनेताओं-प्रशासकों के कारण ज्ञानी और त्यागी व्यक्तियों की हो रही उपेक्षा का उल्लेख धारदार शब्दों के द्वारा हुआ है। तुकान्त शब्दावली और कथन को स्पष्टता प्रदान करने वाली भाषा निश्चय ही प्रभावशाली है। ‘त्याग-तप’ और ‘अशन-वसन’ में अनुप्रास अलंकार का चमत्कार है तो शैली ओजस्वी

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य अद्भुत है। भोगी राजनेताओं-प्रशासकों की वास्तविकता को व्यक्त करने वाले भाव बिना किसी लाग-लपेट के हैं। इसीलिए विश्वसनीय हैं। विश्वसनीय होने के कारण हृदयस्पर्शी बन गए हैं।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न

  1. भोगी राजनेता-प्रशासक किसके श्रेष्ठता के बोधक हैं?
  2. आजकल राजनेताओं-प्रशासकों के दोष क्या हैं?

उत्तर:

  1. भोगी राजनेता-प्रशासक ज्ञान, त्याग और तप की श्रेष्ठता के पद के बोधक हैं।
  2. आजकल राजनेताओं-प्रशासकों के दोष हैं कि वे अनेक प्रकार के भोग-विलास और अनेक प्रकार की सुख सुविधाओं में पड़े हुए रहते हैं।

प्रश्न 2.
कवि, कोविंद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पंडित, ज्ञानी,
कनक नहीं, कल्पना, ज्ञान, उज्ज्वल चरित्र के अभिमानी,
इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा,
राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,
तब तक पड़ी आग में धरती, इसी तरह, अकुलायेगी,
चाहे जो भी करे, दुखों से छूट नहीं वह पायेगी।
थकी जीभ समझाकर, गहरी लगी ठेस अभिलाषा को,
भूप समझता नहीं और कुछ छोड़ खड्ग की भाषा को।

शब्दार्थ:

  • कोविद – जानकार, पंडित, विशेषज्ञ।
  • विज्ञान-विशारद – विज्ञान के जानकार।
  • कनक – सोना।
  • विभूति – दिव्य, अलौकिक शक्ति।
  • ठेस – हृदय पर लगी चोट।
  • अभिलाषा – इच्छा।
  • खड्ग – तलवार।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने महान चरित्रों के अनादर करने से होने वाली दुखद स्थिति पर प्रकाश डाला है। इस विषय में कवि का कहना है कि –

व्याख्या:
आजकल देश की दशा राजनेताओं और प्रशासकों के भोग-विलास और अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं में डूबे रहने के कारण बड़ी दुखद और चिन्ताजनक हो गई है। वह यह कि इनके कारण कवि, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार, पंडित और ज्ञानी धनवान न होते हुए स्वच्छंद चिंतन करने वाले ज्ञान और पवित्र चरित्र के अभिमानी हैं। कहने का भाव यह है कि कवि, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार, पंडित और ज्ञानी किसी प्रकार के धन-वैभव की परवाह न करते हुए अपने ज्ञान और पवित्र चरित्र का स्वाभिमान रखते हैं। इस प्रकार की अलौकिक शक्तियों की पहचान संसार नहीं करेगा, और जब तक इन्हें वह सुविधा-भोगी राजनेताओं और प्रशासकों से अधिक सम्मानित नहीं करेगा, तब तक यह धरती आग में पड़ी हुई अकुलाती ही रहेगी।

कहने का भाव यह है कि कवि, पंडित, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार और ज्ञानी जनों का महत्त्व आज जिस तरह से घट रहा है, उस तरह से इस धरती (संसार) का सुख-चैन समाप्त होता जा रहा है। इसलिए चाहे कोई कुछ भी करे, इस धरती (संसार) को वह दुखों से निजात नहीं दिला सकता है। मान-सम्मान की अभिलाषा रखने वाले महाविभूतियों के हृदय पर उस समय गहरी चोट लगती है, जब सत्ता के मद में डूबे हुए शासक को समझा-समझाकर उनकी वाणी थक जाती है, लेकिन वे उनकी बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं। यह इसलिए सत्ता और सुख-सुविधाभोगी प्रशासक और कुछ नहीं समझता है। वह तो तलवार की ताकत से ही अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना जानता-समझता है।

विशेष:

  1. भाषा में तीव्रता है।
  2. तत्सम शब्दावली है।
  3. मुहावरों (आग में पड़ना, जी.भटकना, ठेस लगना और तलवार की भाषा समझना) के प्रयोग सटीक हैं।
  4. वीर रस का संचार है।
  5. ‘कवि कोविद’ और ‘विज्ञान विशारद’ में अनुप्रास अलंकार है।
  6. भावात्मक शैली है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
  3. आज कौन किससे निरादृत हो रहा है और क्यों?

उत्तर:

1. प्रस्तुत गद्यांश में भोगी सत्ताधारियों के कारण निरादर को प्राप्त होने वाली विभूतियों के उल्लेख हैं। इसके साथ ही धरती की दुखद दशा के दोषी सत्ताधारियों के प्रति सीधा आक्रोश के भी स्वर हैं। इस प्रकार प्रस्तुत हुए इस पद्यांश के कथन को सीधी और सपाट भाषा के माध्यम से दर्शाने का प्रयास काबिलेतारीफ है। अनुप्रास अलंकार (कवि कोविद, और विज्ञान विशारद) के चमत्कार और वीर रस के संचार से प्रस्तुत पद्यांश की शैली ऐसी भावात्मक है, जो अधिक हृदयस्पर्शी और प्रेरक होकर अपना अनूठा प्रभाव दिखा रही है।

2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य यथार्थपूर्ण कथन की सजीवता और विश्वसनीयता से अधिक रोचक सिद्ध हो रहा है। भावों की तीव्रता, क्रमबद्धता और प्रासंगिकता की एक त्रिवेणी प्रवाहित हुई है, जो सरस, मर्मस्पर्शी और उत्साहवर्द्धक के रूप में फलित है। फलस्वरूप इसकी सार्थकता देखते ही बनती है।

3. आज कवि, कोविद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पंडित व ज्ञानी, जैसी विभूतियाँ सत्ता के मद में डूबे हुए और सुविधाभोगी शासकों से निरादृत हो रही है। यह इसलिए कि सत्ताधारी प्रशासक उनके हित-अनहित की कुछ भी चिन्ता नहीं करता है।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. धरती दुखों से छुटकारा कब पाएगी?
  2. ‘भूप समझता नहीं कुछ खड्ग की भाषा’ का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. धरती दुखों से छुटकारा तब पाएगी जब संसार उज्ज्वल चरित्र वाले कवि, कलाकार और ज्ञानीजनों का मान-सम्मान भोगी प्रशासकों से बढ़कर करेगा।
  2. ‘भूप समझता नहीं और कुछ खड्ग की भाषा’ का आशय है-भोगी शासक केवल तलवार की ताकत से अपने को सुरक्षित रखता है।

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प्रश्न 3.
रोक-टोक से नहीं सुनेगा, नृप-समाज अविचारी है,
ग्रीवाहार निष्ठुर कुठार का यह मदान्ध अधिकारी है।
इसीलिए तो मैं कहता हूँ, अरे ज्ञानियो खड्ग धरो,
हर न सका जिसको कोई भी, भू का यह तुम त्रास हरो।

शब्दार्थ:

  • नृप-समाज – राजा समाज अर्थात् सत्ताधारी वर्ग।
  • अविचारी – विचारहीन।
  • ग्रीवाहार – गर्दन काटने वाला।
  • कुठार – कुल्हाड़ी।
  • मदान्ध – मद से अंधा।
  • खड्ग – तलवार।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें कवि ने भोगी शासकों को सब सिखाने ज्ञानियों को तलवार उठाने का सुझाव दिया है। इस विषय में कवि का कहना है कि

व्याख्या:
सुख-सुविधाओं में डूबा हुआ और सत्ता के मद से अंधा बना हुआ शासक वर्ग ज्ञानीजनों की सीख पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं देता है। दुखी प्रजा के विरोध करने पर भी यह अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आता है। इसलिए यह तो वास्तव में विचारहीन है। यह सत्ता के मद से इतना अंधा हो चुका होता है कि गर्दन काटनेवाली कुल्हाड़ी ही इसके सुधार का एकमात्र उपाय है।

यह इसलिए भी इसका ही पात्र है। कवि का पुनः कहना है कि वह इसीलिए ज्ञानीजनों से अब कह रहा है कि ऐसे मदान्ध शासकों को सबक सिखाने के लिए उन्हें तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए उन्हें हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस तरह इस धरती पर फैले हुए दुख-अभाव को जो कोई भी हर न सका, उसे हरने के लिए उन्हें हर प्रकार से कमर कस लेनी चाहिए।

विशेष:

  1. सत्ता के मद में डूबे हुए शासक वर्ग की कड़ी निंदा की गई है।
  2. भाषा में गति और ओज है।
  3. प्रगतिवादी चेतना है।
  4. ‘दुख हरना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
  5. वीर रस का संचार हैं।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य लिखिए।
  3. उपर्युक्त पद्यांश में सत्ताधारी वर्ग के किन दुर्गुणों का उल्लेख हुआ है?

उत्तर:

1. प्रस्तुत पद्यांश में सत्ताधारी के अवगुणों को समाप्त करने के लिए ज्ञानीजनों को तलवार धारण करने की सीख दी गई है। इसकी प्रस्तुति के लिए आया हुआ अनुप्रास अलंकार ‘रोक-टोक’ और ‘ग्रीवाहार निष्ठुर’ का चमत्कार प्रसंगानुसार है। वीर रस के संचार से भाषा में न केवल ताजगी आई है अपितु उत्साहवर्द्धकता नामक विशेषता भी जुड़ गई है। तत्सम शब्दों का चयन और उनकी उपयुक्तता कवि की अद्भुत प्रतिभा को व्यक्त कर रही है।

2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव-योजना अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली है। सत्ता के मद में डूबे हुए शासक वर्ग के प्रमुख दुर्गुणों को तेज और संजीव भावों के द्वारा प्रस्तुत करना निश्चय ही अनूठा है। इस प्रकार इस पद्यांश के भावों में क्रमबद्धता और प्रासंगिकता दोनों ही ऐसी विशेषताएँ हैं, जो मन को छू लेती हैं।

3. उपर्युक्त पद्यांश में सत्ताधारी वर्ग के दो दुर्गुणों का उल्लेख हुआ है-विचारहीनता और मदान्धता।

पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. ज्ञानियों को तलवार उठाने के लिए कवि क्यों कहता है?
  2. ‘भू का त्रास’ क्या है?

उत्तर:

1. ज्ञानियों को तलवार उठाने के लिए कवि कहता है। यह इसलिए कि सत्ता के मद में डूबे हुए शासक तलवार की ही ताकत से अपनी सत्ता को सुरक्षित – रखता है। इसलिए वह तलवार की ही भाषा को समझता है। फलस्वरूप ऐसे शासक को सबक सिखाने के लिए ज्ञानियों को तलवार भी उठानी पड़े तो इसके लिए इन्हें तैयार रहना चाहिए।

2. भू का त्रास’ यह है कि चरित्रवान कवियों, कलाकारों और ज्ञानियों से कहीं अधिक सत्ता से मदांध शासकों को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे इस धरती पर अनेक प्रकार के दुख, अशान्ति और असुरक्षा का वातावरण फैलता जा रहा है।

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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण मुहावरे व लोकोक्तियाँ

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण मुहावरे व लोकोक्तियाँ

भाषा को प्राणवान और प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यकतानुसार मुहावरे और कहावतें (लोकोक्तियों) के प्रयोग किए जाते हैं। इनके प्रयोग से भाषा न केवल सार्थक और आकर्षक दिखाई देती है अपितु वह एक अद्भुत शक्ति से परिपूर्ण भी लगने लगती है, जो एक सफल और असाधारण रचना शिल्प व शिल्पकार की अभियोजना और उद्देश्य होता है। इस प्रकार मुहावरों और कहावतों के बिना भाषा प्राणहीन, अशक्त और प्रभावहीन बन जाती है।

मुहावरों और कहावतों से एक विशिष्ट भाषा, संस्कृति, जाति, सभ्यता, लोकजीवन, रहन – सहन, चेतना और भविष्य का पूरा पता लगता है। उसकी छाप सर्वत्र पड़ने लगती है। वह सबको समुन्नत दिशा की ओर अग्रसर करने लगती है।

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मुहावरों और कहावतों से भाषा एक वाक्यांश के रूप में प्रकट होकर एक विलक्षणता और रोचकता के रूप में अपने महान उद्देश्य की ओर रती है और अंततः पाठक – श्रोता वर्ग पर अपनी पूर्व नियोजित छाप छोड़ती है। यही कारण है कि विश्व की सभी भाषाओं में मुहावरों – कहावतों के प्रयोग होते हैं। इस मुहावरों और कहावतों का प्रयोग किसी भी भाषा. के लिए नितान्त आवश्यक है।

मुहावरे
प्रचलित मुहावरे और उनका प्रयोग
1. अपना ही राग अलापना – अपनी बातें ही करते रहना।
प्रयोग – मोहन दूसरे की बात सुनता नहीं है केवल अपना ही राग अलापता रहता है।

2. आँखों का तारा – बहुत प्यारा लगना।
प्रयोग – इकलौता पुत्र अपने माता – पिता की आँखों का तारा होता है।

3. अपना उल्लू सीधा करना – केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
प्रयोग – जो मनुष्य स्वार्थी होता है वह अपना ही उल्लू सीधा करता है।

4. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
प्रयोग – अभिमानी मनुष्य अपने मुँह मियाँ मिठू बनते हैं।

5. अन्धे को चिराग दिखाना – व्यर्थ का कार्य करना।
प्रयोग – किसी मूर्ख और पागल मनुष्य को उपदेश देना वास्तव में अन्धे को चिराग दिखाना है।

6. अन्धे की लकड़ी – समय पर काम आना।
प्रयोग – वृद्धावस्था में बेटा अन्धे की लकड़ी के समान होता है।

7. अँगूठा दिखाना – अपमानपूर्ण अवज्ञा करना।
प्रयोग – मैंने कल तुमसे पैसा लौटाने के लिए कहा था। आज तुम मुझको अँगूठा दिखा रहे हो।

8. अक्ल पर पत्थर पड़ना – अज्ञानता से काम करना।
प्रयोग – उस समय न जाने क्यों मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे तब मैंने अपने
बड़े भाई को कटु शब्द कहे थे।

9. अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना – स्वयं अपना नाश करना।
प्रयोग – राकेश ने अपनी जायदाद जुआ में हारकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।

10. आगबबूला होना – अधिक क्रोधित होना।
प्रयोग – जब पिता ने अपने पुत्र को घर में चोरी करते देखा तो वे.आगबबूला हो गए।

11. आसमान टूट पड़ना – अचानक विपत्ति आ जाना।
प्रयोग – मोटर दुर्घटना में अपने पुत्र का समाचार सुनकर माँ के हृदय पर जैसे आसमान टूट पड़ा हो।

12. ईद का चाँद होना – कठिनता से दिखाई देना।
प्रयोग – रमेश ने जब दो महीने बाद अपने मित्र को सामने आता हुआ देखा तो कहा कि आजकल तुम तो ईद के चाँद हो गये हो।

13. ईंट से ईंट बजाना – बिलकुल नष्ट करना।
प्रयोग – महाराज शिवाजी ने मुगल बादशाह की ईंट से ईंट बजा दी।

14. उल्टी गंगा बहाना – नियम के विरुद्ध काम करना।
प्रयोग – आजकल लोग नियमित काम न करके उल्टी गंगा बहा रहे हैं।

15. गाल बजाना – बक – बक करना।
प्रयोग – आजकल के नेता मंचों पर गाल बजाते हैं। ठोस काम करना नहीं जानते

16. गले का हार – प्रिय वस्तु।
प्रयोग – महात्मा तुलसीदास का रामचरितमानस हिन्दुओं के गले का हार है।

17. गड़े मुर्दे उखाड़ना – पुरानी बातें दोहराना।
प्रयोग – वृद्ध मनुष्य सबके सामने गड़े मुर्दे उखाड़कर दूसरों को लज्जित करते रहते हैं।

18. कुत्ते की मौत मरना – बुरी मौत मरना।
प्रयोग – देशद्रोही मनुष्य कुत्ते की मौत मारा जाता है।

19. काम तमाम करना – मार डालना।
प्रयोग – बन्दूक की एक गोली से मैंने डाकू का काम तमाफ कर दिया।

20. छाती पर साँप लोटना – ईर्ष्या होना।
प्रयोग – महेश ने जब से नई मोटर साइकिल खरीदी है, उसके पड़ोसी की छाती पर साँप लोटने लगे हैं।

21. नौ – दो ग्यारह होना – भाग जाना।
प्रयोग – पुलिस (सिपाही) को देखकर चोर नौ – दो ग्यारह हो गए।

22. दाँत खट्टे करना – – पराजित करना।
प्रयोग – भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के दाँत खट्टे कर दिए।

23. मुँह में पानी भर आना – ललचाना।
प्रयोग – मिठाई की दुकान को देखकर बालकों के मुँह में पानी भर आता है।

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24. फूला न समाना – बहुत प्रसन्न होना।
प्रयोग – बहुत दिनों से खोये हुए बालक को अचानक देखकर माँ का हृदय फूला न समाया।

25. हाथ – पाँव फूलना – भयभीत हो जाना।
प्रयोग – जंगल में शेर को देखकर मेरे हाथ – पाँव फूल गए।

26. लोहा मानना – प्रभाव स्वीकार करना।
प्रयोग – एशिया के सभी राष्ट्र भारत की शक्ति का लोहा मानते हैं।

27. हक्का – बक्का रह जाना – आश्चर्यचकित होना।
प्रयोग – ताजमहल की सुंदरता को देखकर लोग हक्के – बक्के रह जाते हैं।

28. हवा से बातें करना – बहुत वेग से चलना।
प्रयोग – महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा बुद्ध के मैदान में हवा से बातें करता था।

29. लकीर का फकीर होना – अंधविश्वासी होना।
प्रयोग – आदिवासी लोग लकीर के फकीर होते हैं।

30. सिर नीचा होना – लज्जित होना।
प्रयोग – अयोग्य पुत्र के अनुचित कार्यों को देखकर माता – पिता का सिर लज्जा से नीचा हो गया।

31. टेढ़ी – सीधी सुनना – खरी – खोटी सुनना।
प्रयोग – मेरे विलम्ब से घर पहुंचने पर पिताजी ने मुझे अनेक टेढ़ी – सीधी बातें सुना डालीं।

32. धूल में मिला देना – नष्ट करना।
प्रयोग – मोहन को परीक्षा में नकल करते हुए जब. अध्यापक ने पकड़ लिया तो उसकी सारी इज्जत धूल में मिल गयी।

33. सिर पटक लेना – दहाड़ मारकर रोना।
प्रयोग – अपने भाई की असफलता का समाचार सुनकर राकेश अपना सिर जमीन पर पटककर खूब रोने लगा।

34. त्यौरियाँ चढ़ जाना – क्रोधित होना।
प्रयोग – आजकल जरा – सी बात पर लोग अपनी त्यौरियाँ चढ़ा लेते हैं।

35. आसमान सिर पर उठाना – बहुत कोलाहल करना।
प्रयोग – जिस समय शिक्षक कक्षा में नहीं होता उस समय विद्यार्थी आसमान सिर पर उठा लेते हैं।

36. आस्तीन का साँप होना – विश्वासघात करना।
प्रयोग – चीन के आक्रमण के समय अनेक लोग देश के आस्तीन के साँप बन गए।

37. आठ – आठ आँसू रोना – फूट – फूटकर रोना।
प्रयोग – माँ की मृत्यु के समय राम आठ – आठ आँसू रोया।

38. कसौटी पर कसना – परीक्षा लेना।
प्रयोग – सोने की कसौटी पर कसकर उसके खरे – खोटे की पहचान की जाती है।

39. कंगाली में आटा – गीला होना – कष्ट पर कष्ट आना।
प्रयोग – इधर मोहन के घर में आग लगी, उधर चोरी में सारा सामान चला गया, उसकी कंगाली में आटा गीला हो गया।

40. कान में तेल डालकर सोना – बात सुनने की चेष्टा न करना।
प्रयोग – मैं तुम्हें कब से बुला रहा हूँ और तुम हो कि कान में तेल डालकर बैठे हो।

41. कलई खुलना – भेद खुलना।
प्रयोग – जब मोहन का झगड़ा राकेश से हुआ तो मोहन ने राकेश की सारी कलई खोल दी।

42. गर्दन पर छुरी फेरना – अत्याचार करना।
प्रयोग – ठेकेदार गरीब मजदूरों के पैसे काटकर उनकी गर्दन पर छुरी फेरते हैं।

43. गोबर गणेश – बिलकुल मूर्ख।
प्रयोग – वह कभी परीक्षा पास नहीं कर सकता, वह तो पूरा गोबर गणेश है।

44. घी के चिराग जलाना – खुशियाँ मनाना।
प्रयोग – जब भगवान श्री राम चौदह वर्ष के बाद वनवास से अयोध्या लौटकर
आये तब पूरी प्रजा ने घी के चिराग जलाए।

45. घोड़ा बेचकर सोना – निश्चित रहना।
प्रयोग – जब परीक्षा समाप्त हो जाती है, तो विद्यार्थी घोड़े बेचकर सोते हैं।

46. छप्पर फाड़कर देना – बिना मेहनत के धन मिलना।
प्रयोग – भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।

47. टेढ़ी खीर होना – कठिन कार्य होना।
प्रयोग – हिमालय पार करना टेढ़ी खीर है।

48. दाँतकाटी रोटी होना – गहरी दोस्ती होना।
प्रयोग – पहले हम दोनों में दाँतकाटी रोटी थी किंतु जब से झगड़ा हुआ है तब से हम दोनों एक – दूसरे के शत्रु बन गए हैं।

49. कलेजा मुँह को आना – बहुत दुःखी होना।
प्रयोग – अचानक पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर कलेजा मुँह को आ गया।

50. चकमा देना – धोखा देना।
प्रयोग – एक लड़का दुकानदार को चकमा देकर सामान लेकर भाग गया।

51. हाँ में हाँ मिलाना – चापलूसी करना।
प्रयोग – छोटे कर्मचारी अपनी पदोन्नति के लिए बड़े अधिकारियों की दिन – रात हाँ में हाँ मिलाते हैं।

52. सिर धुनना – पश्चात्ताप करना।
प्रयोग – हायर सेकेण्ड्री की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर मोहन ने अपना सिर धुन लिया।

53. बाल – बाल बचना – बड़ी हानि होने से बचना।
प्रयोग – वह कुएं में गिरने से बाल – बाल बच गया।

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54. कफन सिर पर बाँधना – बलिदान के लिए तैयार रहना।
प्रयोग – वीर सैनिक युद्ध के दौरान कफन सिर पर बाँध लेते हैं।

55. लहू सूखना – शक्तिहीन होना। (म.प्र. 1991)
प्रयोग – साँप को सामने देखते ही उसका लहू सूख गया।

56. बाल बाँका न होना – कुछ भी नुकसान न होना। (म.प्र. 1991)
प्रयोग – प्रहलाद को बार – बार कष्ट देने का प्रयास करके भी हिरण्यकशिपु उसका बाल बाँका न कर सका।

57. काया पलट होना – रूप – परिवर्तन होना। (म.प्र. 1992)
प्रयोग – बड़े – बड़े सिद्ध – पुरुष मनचाही काया पलट कर लेते हैं।

58. मिट्टी में मिलाना – बरबाद करना। (म.प्र. 1992)
प्रयोग – भारत ने पाकिस्तान से युद्ध करके पूर्वी पाकिस्तान को मिट्टी में मिला दिया।

59. नेत्र लाल होना – क्रोधित होना। (म.प्र. 1993)
प्रयोग – छात्र के अशिष्टाचार से अध्यापक के नेत्र लाल हो गए।

60. हाथ के तोते उड़ना – कीमती वस्तु का खो जाना। (म.प्र. 1993)
प्रयोग – परीक्षा में भूल से कुछ प्रश्नों के छूटने पर उसने घर आते ही कहा कि मेरे हाथ के तोते उड़ गए।

61. नोन, तेल, लकड़ी के फेर में पड़ना – रोजी – रोटी के लिए परेशान होना।
प्रयोग – शादी होते ही वह नोन, तेल, लकड़ी के फेर में पड़ गया।

62. टूट जाना – बरबाद होना।। (म.प्र. 1994)
प्रयोग – मजदूर जीवनपर्यंत कड़ी मेहनत करते – करते टूट जाते हैं।

63. मौके की तलाश में रहना – स्वार्थ साधना। (म.प्र. 1994)
प्रयोग – स्वार्थी हरदम मौके की तलाश में रहते हैं।

64. भाषण की दुकान खोलना – बतंगड़ी का अड्डा होना। (म.प्र. 1994)
प्रयोग – आजकल तो जगह – जगह भाषण की दुकानें खुल गई हैं।

65. आँखें खोलना – सजग करना। (म.प्र. 1994)
प्रयोग – निंदक अक्सर आँखें खोल देते हैं।

लोकोक्तियाँ
भाषा को प्रभावशाली एवं सारगर्भित बनाने के लिए मुहावरों की भाँति लोकोक्तियों का प्रयोग किया जाता है। लोकोक्ति पारिभाषिक रूप से ऐसा मुहावरेदार वाक्य होता है जिसे व्यक्ति अपने कथन की पुष्टि में प्रमाण – स्वरूप प्रयोग करता है। लोकोक्ति . अपने में एक संपूर्ण वाक्य है और उसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता है।

प्रचलित लोकोक्तियाँ और उनका प्रयोग

1. अपना हाथ जगन्नाथ – बड़ी स्वच्छन्दता से किसी वस्तु को ग्रहण करना।
प्रयोग – महावीर को आज भोजन – गृह का मालिक बना दिया है, अब तो उसका अपना हाथ जगन्नाथ है।

2. अपनी ढपली अपना राग – जब सभी लोग मिलकर काम न करें।
प्रयोग – वह संस्था अधिक दिनों तक चल नहीं सकती क्योंकि उसके सभी सदस्य अपनी ढपली अपना राग वाले हैं।

3. ऊँची दुकान फीका पकवान – दुकान तो बड़ी प्रसिद्ध परंतु माल घटिया।
प्रयोग – नगर के सबसे धनाढ्य सेठ की दुकान में घटिया मिष्टान्न देखकर वह बोला – ऊँची दुकान फीका पकवान।

4. एक हाथ से ताली नहीं बजती – कोई भी कार्य में दो पक्षों का होना आवश्यक है।
प्रयोग – मैं यह बात तुम्हारी मान ही नहीं सकता कि तुम्हें पुलिस ने बिना कसूर पीटा है। यह सम्भव नहीं, एक हाथ से ताली नहीं बजती।

5. अंधों में काना राजा – अयोग्य लोगों में अल्पबुद्धि वाला मनुष्य ही योग्य माना जाता है।
प्रयोग – ग्रामों में अधिकतर सभी लोग अशिक्षित होते हैं; किंतु जरा – सा पढ़ा – लिखा व्यक्ति ही उनके लिए अंधों में काना राजा के समान है।

6. काला अक्षर भैंस बराबर – बिलकुल निरक्षर होना।
प्रयोग – अशिक्षित लोग वेद – पुराणों की बातें क्या जाने उनके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर होता है।

7. एक अनार सौ बीमार – वस्तु थोड़ी किंतु माँग अधिक।
प्रयोग कार्यालय में एक स्थान रिक्त है किंतु सौ से भी अधिक आवेदन – प., आने पर अधिकारी कहने लगा कि एक अनार सौ बीमार।

8. घर का भेदी लंका ढाहे – घर का भेद बताने वाला ही सबसे बड़ा शत्रु होता है।
प्रयोग – आजकल देश को बड़ी सावधानी की आवश्यकता है क्योंकि घर का भेदी लंका ढहाना चाहता है।

9. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता – निर्लज्ज व्यक्ति पर किसी बात का प्रभा. नहीं पड़ता।
प्रयोग – तुम अपने भाई को चार दिन से समझाते – समझाते थक गए किंत उसने
अपनी आदत सुधारी नहीं; सच है कि चिकने घड़े पर पानी ठहरता नहीं है।

10. दूर के ढोल सुहावने – जितनी प्रसिद्धि सुनी वैसा पाया नहीं।
प्रयोग – लखनऊ के दशहरी आम जब स्वादिष्ट न निकले तो मेरा भाई वो दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

11. थाली के बैंगन – अस्थिर बुद्धिवाला।
प्रयोग – मैं तो उसकी मित्रता पर कोई भरोसा नहीं करता। वह तो थाली का बैंगन है, कभी इधर तो कभी उधर।।

12. थोथा चना बाजे घना – आडम्बरयुक्त व्यक्ति सारहीन होता है।
प्रयोग – वह हायर सेकंडरी तक पढ़ा नहीं है लेकिन वह बी.ए. पास होने तक की शेखी बघारता है। सच है – थोथा चना बाजे घना वाली कहावत है।

13. एक पंथ दो काज – एक साथ दो कार्य पूर्ण होना।
प्रयोग – प्रयाग पहुँचने पर गंगा स्नान भी किया और कुम्भ का मेला भी देखा; इस तरह एक पंथ दो काज पूरे हुए।

14. का वर्षा जब कृषि सुखानी – समय निकल जाने पर प्रयत्न करना व्यर्थ है।
प्रयोग – जब शहर में डाकू लोग उपद्रव और लूटपाट करके चले गए तब बहुत देर बाद वहाँ पुलिस पहुंची तो सब लोग बोले, का वर्षा जब कृषि सुखानी।

15. मुख में राम बगल में छुरी – कपटपूर्ण व्यवहार।
प्रयोग – रामनरेश सामने तो खुशामद करता फिरता है पर पाडे से वह सबकी बुराई करता है। उसका व्यवहार मुख में राम बगल में छुरी के समान है।

16. सावन सूखा न भादों हरा – सदा एक समान रहना।
प्रयोग – वीरेन्द्र नाथ को हमने जबसे देखा है वह एक समान दिखाई देता है, सच है वह न सावन सूखा न भादों हरा।

17. बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा – अचानक किसी वस्तु का प्राप्त होना।
प्रयोग – एक निर्धन व्यक्ति को अचानक मार्ग में रुपयों का भरा थेला मिल गया, वह बहुत खुश हुआ, उसे ऐसा लगा जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा हो।

18. गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है – बड़े के साथ में उसके सहारे रहने वाले को भी कष्ट होता है।
प्रयोग – जब बड़े लोग चोरी में पकड़े जाते हों तो उनके साथ नौकर – चाकर भी पुलिस के हाथ पकड़े जाते हैं। सच है – गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।

19. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का किसी काम का न होना।
प्रयोग – कोई काम न करूं तो भूखा मरता हूँ और जब काम करता हूँ तो बीमार हो जाता हूँ। इस समय मेरी स्थिति ठीक इस प्रकार है, जैसे – धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

20. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – अयोग्य व्यक्ति ज्ञान की बातें नहीं जानता।
प्रयोग – अशिक्षित लोगों के सामने छायावादी कविता सुनाने से क्या लाभ, बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद

21. हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं।
प्रयोग – तुमने कल मेरी बात का विश्वास नहीं किया, आज दैनिक समाचार – पत्र में वह घटना प्रकाशित हुई है। अब तो आप विश्वास करेंगे। हाथ कंगन को आरसी क्या?

22. साँच को आँच नहीं – सच्चे व्यक्ति को कोई भय नहीं होता।
प्रयोग – आप चाहे मुझे फाँसी पर चढ़ा दें, मुझे मार डालें लेकिन मैं बात सही – सही कहूँगा। साँच को आँच नहीं।

23. यह मुँह और मसूर की दाल – अपनी स्थिति से अधिक इच्छा करना।
प्रयोग – पास में नहीं है फूटी कौडी भी और चले हैं बाजार में मारुति कार खरीदने। कहावत सही है – यह मुँह और मसूर की दाल।

24. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी – दुष्ट व्यक्ति को एक – न – एक दिन सजा अवश्य मिलेगी।

प्रयोग – चोर कब तक बचा रहेगा। एक – न – एक दिन पुलिस के हाथों पकड़ा जाएगा। आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी।

25. नौ सौ चूहे मार के विल्ली हज को चली – जीवनभर पाप किया, मरने के वक्त साधु बन गए।
प्रयोग – जवानी में तो सदा दूसरों को ठगते रहे और जब बुढ़ापा आ गया तब राम – राम का नाम लेने गए। आखिर नौ सौ चूहे मार के बिल्ली हज को चली।

26. अधजल गगरी छलकत जाय – छोटा और ओछा आदमी दिखावा अधिक करता है।
प्रयोग – सुरेश की जबसे लॉटरी खुली है तब से वह घमण्ड में ही रहता है, जैसे अधजल गगरी छलकत जाय।

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27. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – कारण न होने पर कोई नहीं हो सकता।
प्रयोग – जब से रमेश ने दुकान खोली है तब से घर में झगड़ा ही होता रहता है। अब उसने अपनी दुकान बन्द कर दी, न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

28. हाथी के दाँत दिखाने के और, और खाने के और – दिखावटी होना।
प्रयोग – महेश का रूप ऐसा है जैसे – हाथी के दाँत खाने के और, और दिखाने के और।

29. नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनाई नहीं पड़ती – बड़ों के सामने छोटों की बात नहीं सुनी जाती।
प्रयोग – जब बड़े लोग बोल रहे थे तब मेरी बात तो किसी ने सुनी ही नहीं। नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनाई नहीं पड़ती।

30. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – एक व्यक्ति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।
प्रयोग – मैं अपने घर में अकेला व्यक्ति हूँ, जो बनता है वह करता हूँ। आखिर अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।

31. मान न मान मैं तेरा मेहमान – जवरदस्ती किसी के गले पड़ना।
प्रयोग – एक अपरिचित व्यक्ति रात के समय घर आकर बोला, में यहाँ ठहरूँगा। मान न मान मैं तेरा मेहमान।

32. अकल बड़ी कि भैंस – शारीरिक शक्ति से मानसिक शक्ति बड़ी होती है।
प्रयोग – उस आदमी ने बुद्धि बल से एक पहलवान को पटक दिया। वास्तव में भैंस से अक्ल बड़ी होती है।

33. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है – एक को देखकर दूसरे के विचारों में परिवर्तन होना।
प्रयोग – एक शराबी को नशे में झूमता हुआ देखकर दूसरा शराबी भी झूम – झूमकर नाचने लगा। सच ही है खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।

34. आम के आम गुठलियों के दाम – दोनों हाथ में लाभ होना।
प्रयोग – रमेश को सरकारी नौकरी मिली साथ ही अमेरिका जाने का निमंत्रण भी मिला। आम के आम गुठलियों के दाम।

35. खोदा पहाड़ निकली चुहिया – खूब परिश्रम किया लेकिन फल थोड़ा – सा मिला।
प्रयोग – एक व्यक्ति ने पुराना गड़ा हुआ धन मिलने की लालच में सारा घर खोद डाला किंतु उसे केवल पीतल के कुछ पुराने बर्तन ही हाथ लगे; यह तो वही बात हुई, खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

36. ऊँट के मुँह में जीरा – अधिक की तो आवश्यकता है और दिया थोड़ा।
प्रयोग – एक व्यक्ति की खुराक दस रोटी है लेकिन जब वह खाने वैटा तो केवल दो रोटी ही दी; यह तो ऊँट के मुंह में जीरे के समान है।

37. सिर मुंड़ाते ओले पड़े – काम शुरू करते ही संकट आ गया।
प्रयोग – रात को दुकान का शुभारम्भ हुआ और सुबह होते ही उसमें आग लग गई, यह तो सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ गए।

38. ओखली में सिर दिया फिर मूसर से क्या डरना – जब जान की बाजी लगाना है तो फिर डरना क्या।
प्रयोग – जब युद्ध के मैदान में आ गया तो गोली से क्या डरना। जब ओखली में सिर दिया तो मूसर से क्या डरना।

39. आँखों का अंधा नाम नैनसुख – नाम और गुणों में अंतर।
प्रयोग – नाम तो करोड़ीमल है लेकिन पास में एक पैसा नहीं अर्थात् आँखों का अंधा और नाम नैनसुख।

40. घर की मुर्गी दाल बराबर – गुणवान् की इज्जत घर में नहीं होती है। (म.प्र. 1990)
प्रयोग – अमेरिका में भाषण देने से पहले स्वामी विवेकानंद भारतीयों के लिए घर की मुर्गी दाल बराबर थे।

41. अंधा पीसे कुत्ता खाए – मूर्ख का धन चालाक के हाथ में आना। (म.प्र. 1990)
प्रयोग – मोहन दिन – रात कड़ी मेहनत करता है लेकिन उसके बेटे मौज उड़ाते हैं। सच है अंधा पीसे कुत्ता खाए।

42. पहाड़ खड़ा होना – बड़ी मुसीबत पड़ना। (म.प्र. 1991)
प्रयोग – परीक्षा के समय मोहन को बुखारग्रस्त देखकर मैंने कहा, यार – यह बुखार क्या आया, यह तो तुम्हारे लिए पहाड़ खड़ा हो गया है।

43. बंदर के हाथ में मोतियों की माला होना – अयोग्य के हाथ में मूल्यवान वस्तु का होना। (म.प्र. 1991)
प्रयोग – आजकल तो ऐसे अनेक सरकारी पदाधिकारी हैं जो पद का दुरुपयोग … कर रहे हैं। जिन्हें आए दिन विरोधी बंदर के हाथ में मोतियों की माला होने का उदाहरण देते रहते हैं।

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अभ्यास के लिए मुहावरे व लोकोक्तियाँ
1. हवा खाना।
2. फूंक – फूंककर कदम रखना।
3. पेट में चूहे कूटना।
4. एक थैली के चट्टे – बट्टे होना।
5. अमरौती खा के आना।
6. गट्टा – सी सुना देना।
7. कब्र में पाँव लटकाए होना।
8. चार दिन के पाहुन।
9. टेढ़ी – सीधी सुनाना।
10. सिर पटक लेना।
11. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।
12. कहे खेत की सुने खलिहान की।
13. लंकाकाण्ड।
14. हजारों हथौड़े सहकर मूर्ति बनती है।
15. देखो ऊँट किस करवट बैठता है।
16. मूंछों पर ताव देना।
17. करवटें बदलना।
18. गाजर – मूली समझना।
19. कान में तेल डालना।
20. आटे – दाल का भाव मालूम होना।
21. कीचड़ उछालना।
22. जिधर बोले बम उधर हम।

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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण अनेक शब्दों के लिए एक शब्द या वाक्यांश बोध शब्द

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण अनेक शब्दों के लिए एक शब्द या वाक्यांश बोध शब्द

परीक्षा में कभी–कभी वाक्यांश देकर उनके लिए एक शब्द पूछे जाते हैं। कुछ शब्द तथा अर्थ नीचे दिए जा रहे हैं–
1. जो क्षमा न किया जा सके – अक्षम्य
2. जहाँ पहुँचा न जा सके – अगम्य
3. जिसे पहले गिनना उचित हो – अग्रगण्य
4. जिसका जन्म न हो। – अजन्मा
5. ऐसी वस्तु जिसका कोई मूल्य न हो – अमूल्य
6. जो दूर की बात सोचे। – दूरदर्शी
7. जो दूर की बात न सोचे – अदूरदर्शी
8. जिसका पार न हो – अपार
9. जो दिखाई न दे। – अदृश्य
10. जिसके समान कोई न हो – अद्वितीय

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11. जिसका पता न हो – अज्ञात
12. जो थोड़ा जानता हो। – अल्पज्ञ
13. जो सब कुछ जानता हो – सर्वज्ञ
14. जो सब कुछ नहीं जानता हो – अज्ञ
15. जो कभी बूढ़ा न हो – अजर
16. जो वेतन पर काम करे – वैतनिक
17. जो ऊपर कहा गया हो – उपर्युक्त
18. जो आशा से कहीं बढ़कर हो – आशातीत
19. जिसका कोई आधार न हो – निराधार
20. जो नष्ट न हो सके – अक्षय
21. चारों ओर चक्कर काटना – परिक्रमा
22. जो उचित समय पर न हो – असामयिक
23. जिसका पति मर चुका हो – विधवा
24. जिसकी पत्नी मर चुकी हो – विधुर
25. काँसे का बर्तन बनाने वाला – कसेरा
26. जिसे कर्त्तव्य नहीं सूझ रहा हो – किंकर्तव्यविमूढ़
27. जो उपकार को माने – कृतज्ञ
28. जो उपकार को न माने – कृतघ्न
29. जो आँखों के सामने हो – प्रत्यक्ष
30. जो आँखों के सामने न हो – परोक्ष.

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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण अनेकार्थक शब्द

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण अनेकार्थक शब्द

प्रश्न 1.
अनेकार्थक शब्द की परिभाषा सोदाहरण दीजिए।
उत्तर –
प्रसंगानुसार भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होने वाले अनेकार्थक शब्द कहलाते हैं;

जैसे –
काम – कामदेव, इच्छा, कार्य।
अम्बर – आकाश, वस्त्र।
उत्तर – हल, उत्तर दिशा, जवाब, बाद में।

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महत्त्वपूर्ण अनेकार्थ शब्द

1. अंक – गोद, चिह्न, नाटक का अंक, संध्या, पुण्य, अध्याय।
2. अंग – भाग, एक देश, शरीर का होई हिस्सा।
3. अनंत – अंतहीन, आकाश, विष्णु।
4. अर्क – सूर्य, काढ़ा या तत्त्व, आक का पौधा।
5. अर्थ – धन, मतलब, कारण, लिए, प्रयोजन।
6. अक्ष – आँख, सर्प, शान, धुरी, रथ, आत्मा, कील, मण्डल।
7. अज – बकरा, मेष राशि, दशरथ के पिता, ब्रह्मा, शिव, जीव।
8. अहि – सूर्य, साँप, कष्ट।
9. अक्षर – ब्रह्मा, विष्णु ‘अ’ आदि अक्षर, शिव, धर्म, मोक्ष ।
10. अच्युत – अविनाशी, स्थिर, कृष्ण, विष्णु।
11. आम – आम का फल, सर्वसाधारण, सामान्य।
12. अंतर – अवधि, आकाश, अवसर, मध्य, छिद्र।
13. अरुण – लाल, सूर्य, सूर्य का सारथि, सिन्दूर, वृक्ष, संध्या, राग।
14. अमृत – जल, दूध, अन्न, पारा।
15. अतिथि – मेहमान, साधु, यात्री, अपरिचित, राम का पोता या कुश का बेटा।
16. अपवाद – नियम के विरुद्ध, कलंक।
17. आपत्ति – मुसीबत, एतराज।
18. अलि – भौ .., पंक्ति, सखी।
19. अशोक – शोकरहित, एक प्रसिद्ध राजा, एक वृक्ष ।
20. अयन – घर, मार्ग, स्थान, आधा वर्ष ।
21. आराम – बाग, विश्राम, शांति।
22. आली – पंक्ति, सखी।
23. अर्थी – इच्छुक, मुर्दा रखने का तख्ता, याचक
24. अचल – पर्वत, स्थिर।
25. अवस्था – आयु, दशा।
26. ईश्वर – मालिक, धनी, परमात्मा।
27. इन्दु – चन्द्र, कपूर, नाम।
28. उत्तर – एक दिशा, जवाब, हल।
29. कंद – मिश्री, वह जड़ जो गुद्देदार और बिना रेशे के हो।
30. कनक – धतूरा, सोना।

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31. कला – किसी कार्य को करने की कुलशता, अंश, चन्द्र का सोलहवाँ भाग, शिल्प आदि विद्या।
32. कटाक्ष – तिरछी नजर, व्यथा, आक्षेप।
33. कसरत – व्यायाम, अधिकता।
34. काम – कामदेव, इच्छा, कार्य।
35. केतु – पताका या ध्वजा, एक ग्रह, पुच्छल तारा।
36. कृष्ण – काला, भगवान कृष्ण, वेद व्यास।
37. केवल – एकमात्र, विशुद्ध नाम।
38. कर – हाथ, लँड, किरण, टैक्स, करने की आज्ञा।
39. कोट – किला, पहनने का कोट ।
40. कोटि – करोड़, धनुष का सिरा, श्रेणी।
41. कषाय – कसैला, गेरू के रंग का।
42. कौरव – गीदड़, धृतराष्ट्र।
43. कुशल – खैरियत, चतुर ।
44. कबंध – एक राक्षस विशेष, पेटी (कमरबंध), राहु, धड़।
45. कल – कल आने वाला, दूसरा दिन, बीता हुआ दूसरा दिन, मशीन, सुंदर, चैन, ध्वनि।
46. काल – समय मृत्यु, यम, शिव, अकाल ।
47. केश – बाल, बादल, शुण्ड, बृहस्पति का बेटा।
48. कुम्भ – हाथी का मस्तक, राक्षस का नाम, तीर्थस्थल।
49. खर – गधा, दुष्ट, तीक्ष्ण, तिनका।
50. खल – दुष्ट, धतूरा, दवा आदि कूटने का खल।
51. गुण – रस्सी, विशेषता, तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण।
52. गौ – भूमि, दिशा, वाणी, नेत्र, स्वर्ग, आकाश, शब्द

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53. गुरु – आचार्य, बड़ा, भारी, दो मात्राओं का अक्षर, देवताओं के गुरु बृहस्पति।
54. गण – समूह, भूत – प्रेतादि, शिव के सेवक।
55. गति – चाल, हालत, मोक्ष।

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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण विलोम शब्द

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण विलोम शब्द

प्रश्न 1.
विलोम शब्द की परिभाषा सोदाहरण दीजिए।
उत्तर-
एक-दूसरे के विपरीत या उल्टा, अर्थ बतलाने वाले शब्द विलोम शब्द कहलाते हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संज्ञा शब्द का विलोम या विपरीत शब्द संज्ञा ही होगा और विशेषण शब्द का विलोम शब्द विशेषण शब्द ही होगा;

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जैसे-
अनुराग = विराग,
आकाश = पाताल,
आज = कल आदि।

महत्त्वपूर्ण विलोम शब्द
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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द

प्रश्न 1.
समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द से क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
हिन्दी में ऐसे अनेक शब्द प्रयुक्त होते हैं जिनका उच्चारण मात्रा या वर्ण के हल्के हेर-फेर के सिवा प्रायः समान होते हैं, किन्तु अर्थ में भिन्नता होती है, उन्हें समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द या युग्म शब्द कहा जाता है।

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इनके उदाहरण इस प्रकार हैं-

1. अंस = कंधा
अंश = भाग

2. अग = जड़, अगतिशील
अघ = पाप

3. अनल = आग
अनिल = वायु

4. अन्न = अनाज
अन्य = दूसरा

5. अपेक्षा = तुलना में, आवश्यकता
उपेक्षा = अवहेलना

6. अलि = भौंरा
आली = सखी

7. अवलम्ब = सहारा
अविलम्ब = शीघ्र

8. अविराम = निरंतर
अभिराम = सुन्दर

9. आकर = खान
आकार = रूप

10. आदि = आरंभ
आदी = अभ्यस्त

11. आवरण = ढकना
आभरण = अलंकरण

12. आहत = घायल
आहट = आवाज

13. आहुत = हवन किया गया
आहूत = निमंत्रित

14. उद्योत = प्रकाश
उद्योग = प्रयत्न

15. उद्धार = मुक्ति
उधार = ऋण

16. कर्म = काम
क्रम = बारी, सिलसिला

17. कलि = कलयुग
कली = फूल की कली

18. कन = वंश
कुल = किनारा

19. कोप = खजाना
कोस = दूरी का माप (दो मील)

20. क्षति = हानि
क्षिति = पृथ्वी

21. गृह = घर
ग्रह = तारे (बुध, शुक्र आदि)

22. चरम = अंतिग।
चर्म = खाल

23. चीर = वस्त्र
चीड़ = एक वृक्ष का नाम

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24. छात्र = विद्यार्थी.
क्षात्र = क्षत्रिय-संबंधी

25. जलज = कमल
जलद = बादल

26. तरणि = सूर्य
तरणी = नाव

27. दूत = संदेश पहुँचाने वाला
द्यूत = जुआ

28. नगर = शहर
नाग = सर्प हाधी

29. निर्वाण = मुक्ति
निर्माण = रचन

30. नीड़ = घोंसला
नीर = पानी

31. पानी = जल
पाणि = हाथ

32. पालतू = पाला हुआ
फालतू = व्यर्थ

33. पुरुष = आदमी
परुष = कठोर

34. प्रणाम = नमस्कार
प्रमाण = सबूत

35. प्रवाह = बहाव
प्रभाव = असर

36. प्रसाद = देवता को चढ़ाया भोग, कृपा
प्रासाद = महल

37. बात = कथन
वात = वायु

38. बेर = एक फल
बैर = शत्रुभाव

39. मध्य = बीच
मद्य = शराब

40. मनोज = कामदेव
मनोज्ञ = सुन्दर

41. मूल = जड़
मूल्य = कीमत

42. याम = पहर
जाम = प्याला

43. रीति = प्रथा
रीती = खाली

44. रेखा = पंक्ति
लेखा = हिसाब

45. लक्ष्य = निशाना
लक्ष = लाख

46. वसन = वस्त्र
व्यसन = कुटेव

47. शुक्ल = स्वच्छ, सफेद
शुल्क = फीस

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48. शूर = योद्धा
सूर = सूरदास, अंधा

49. संकर = मिश्रित
शंकर = शिव

50. सकल = पूरा
शकल = टुकड़ा

51. सर = तालाब
शर = बाण

52. सुत = बेटा
सूत = सारथी, कच्चा धागा

53. स्वेद = पसीना
श्वेत = सफेद

54. हर = शिव
हरि = विष्णु

समरूपी भिन्नार्थक शब्द-
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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण प्रत्यय

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण प्रत्यय

जो शब्दांश किसी शब्द या धातु के अन्त में जुड़कर नए अर्थ का ज्ञान कराते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे–कड़वाहट, लकड़पन, सज्जनता। ‘हट’, ‘पन’, ‘ता’ ये सभी प्रत्यय के रूप हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शब्द के अंत में प्रत्यय लगने से उनके अर्थ में विशेषता एवं भिन्नता उत्पन्न हो जाती है।

प्रत्यय के दो प्रकार हैं–

  1. कृदन्त,
  2. तद्धित।

1. कृदन्त प्रत्यय
कृदन्त प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं, जो धातुओं (क्रियाओं) के अन्त में लगाए जाते हैं। हिन्दी में कृदन्त प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं।

1. कृतवाचक कृदन्त–जो प्रत्यय कर्ता का बोध कराते हैं, वे कृतवाचक कृदन्त होते हैं।
जैसे
(क) राखन + हारा = राखनहारा।
(ख) पालन + हारा = पालनहारा।
(ग) मिलन + सार = मिलनसार।

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उदाहरण के लिए कुछ कृदन्त प्रत्यय इस प्रकार हैं
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण प्रत्यय img-1
2. कर्मवाचक–ये वे कृदन्त हैं, जो सकर्मक क्रिया में ना, नी, प्रत्यय लगाने से बनते हैं।

जैसे –
नि – चाटना–चटनी, सूंघनी, ओढ़नी।
ना – ओढ़ना–ओढ़ना।
हुआ – लिखना–लिखा

3. क्रिया बोधक–जो क्रिया के अर्थ का बोध कराते हैं, वे क्रिया बोधक कृदन्त कहलाते हैं।
जैसे-
सोता + हुआ = सोता हुआ।
पंच + आयत = पंचायत।
गाता + हुआ = गाता हुआ।
आढ़त + इया = आढ़तिया।

4. करण वाचक–जो क्रिया के साधन का बोध कराते हैं, वे करण वाचक कृदन्त कहलाते हैं। जैसे
कूट + नी = कूटनी।।
चास + नी = चासनी।

उदाहरण के लिए कुछ करण वाचक प्रत्यय–
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण प्रत्यय img-2

5. भाववाचक कृदंत–वे कृदंत हैं जो किसी भाव या क्रिया के व्यापार का व्रोध कराते हैं।

जैसे–
थक + आवट = थकावट।
मिल + आवट = मिलावट ।
धुल + आई = धुलाई।

उदाहरण के लिए कुछ भाववाचक कृदन्त
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण प्रत्यय img-3

2. तद्धित प्रत्यय

तद्धित प्रत्यय वे होते हैं, जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और अव्यय के पीछे लगाए जाते हैं। तद्धित प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं, जैसे–..
1. कृतवाचक–तद्धित जो कर्ता का बोध कराते हैं, कृतवाचक तद्धित कहलाते हैं,
जैसे –
सोना + आर = सुनार
तेल + इया = तेलिया
गाड़ी + वाला = गाड़ीवाला
माला + ई = माली
घोड़ा + वाला = घोड़ावाला
लकड़ + हारा = लकड़हारा
लोहा + आर = लुहार
भाँग + एड़ी = भँगेड़ी

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2. भाववाचक–जिनसे किसी प्रकार का भाव प्रकट होता है, उसे भाववाचक प्रत्यय कहते हैं,

जैसे–
ममता + त्व = ममत्व
बुनाई + वट = बुनावट
बूढ़ा + पा = बुढ़ापा
लड़का + पन = लकड़पन
कड़वा + हट = कड़वाहट
मीठा + स = मिठास

3. अपत्य वाचक–वे तद्धित जो सन्तान के अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें अपत्य वाचक तद्धित कहतें हैं।
जैसे–
अ – वसुदेव, मनु–मानव, रघु–राघव।
इ – मारुत–मारुति।
ई – रामानन्द–समानन्दी, दयानंद–दयानंदी, आयन–नर–नारायण, रामा–रामायण, एव–गंगा–गांगेय, राधा–राधेय।

4. गुण वाचक–जिससे किसी का गुण मालूम हो, उसे गुंण वाचक तद्धित कहते हैं।

जैसे–
गुण + वान = गुणवान
भूख + आ = भूखा
बुद्धि + वान = बुद्धिवान
भ + ई = लोभी
प्यास + आ = प्यासा
चचा + एरा = चचेरा
घर + ऊ = घरू.

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5. ऊन वाचक–ऊन वाचक संज्ञाओं में वस्तु की लघुता, ओछापन, हीनता आदि का भाव व्यक्त किया जाता है

जैसे–
लोटा + इया = लुटिया
पहाड़ + ई = पहाड़ी
खाट + इया = खटिया
कोठ + री = कोठरी

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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास

MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास

जब परस्पर संबंध रखने वाले शब्दों को मिलाकर उनके बीच आई विभक्ति आदि का लोप करके उनसे एक पद बना दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया को समास कहते हैं। जिन शब्दों के मूल से समास बना है उनमें से पहले शब्द को पूर्व पद और दूसरे शब्द को उत्तर पद कहते हैं। जैसे–पालन–पोषण में ‘पालन’ पूर्व पद है और ‘पोषण’ उत्तर पद है। और ‘पालन–पोषण’ समस्त पद है।

समास में कभी पहला पद प्रधान होता है, कभी दूसरा पद और कभी कोई अन्य पद प्रधान होता है जिसका नाम प्रस्तुत सामासिक शब्द में नहीं होता और प्रस्तुत सामासिक शब्द तीसरे पद का विशेषण अथवा पर्याय होता है।

कुछ समासों में विशेषण विशेष्य के आधार पर और कुछ में संख्यावाचक शब्दों के आधार पर और कहीं अव्यय की प्रधानता के आधार पर तो कुछ समासों में विभक्ति चिह्नों की विलुप्तता के आधार पर तो कुछ समासों में विभक्ति चिहों की विलुप्तता के आधार पर इस बात का निर्णय किया जाता है कि इसमें कौन–सा समास है।

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विग्रह–समस्त पद को पुनः तोड़ने अर्थात् उसके खंडों को पृथक् करके पुनः विभक्ति आदि सहित दर्शाने की प्रक्रिया का नाम विग्रह है।

जैसे–
गंगाजल शब्द का विग्रह होगा गंगा का जल।
इस तरह तत्पुरुष समास के छः भेद होते हैं।
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-1

1. अव्ययीभाव समास
इन शब्दों को पढ़िए–
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-2

इन सामाजिक शब्दों में प्रथम पद अव्यय और प्रधान या उत्तर पद संज्ञा, विशेषण या क्रिया है।

जिन सामासिक शब्दों में प्रथम पद प्रधान और अव्यय होता है, उत्तर पद संज्ञा, विशेषण या क्रिया–विशेषण होता है वहाँ अव्ययीभाव समास होता है।

2. तत्पुरुष समास
इन शब्दों को पढ़िए–
“शरणागत, तुलसीकृत, सत्याग्रह, ऋणमुक्त, सेनापति, पर्वतारोहण।
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-3

उपर्युक्त सामासिक शब्दों में ‘को’, ‘द्वाय’, के लिए, से, का, के, की, ‘पर’ संयोजक शब्द बीच में छिपे हुए हैं जो कारक की विभक्तियाँ हैं। दोनों शब्दों के बीच में कर्ता तथा संबोधन कारकों की विभक्तियों को छोड़कर अन्य कारकों की विभक्तियों का लोप होता है।

जिन सामासिक शब्दों के बीच में कर्म है. लेकर अधिकरण कारक की विभल्लियों का लोप होता है तथा उत्तर पद प्रधान होता है, वे तत्पुरुष समास कहलाते है

(i) कर्म तत्पुरुष समास–
उदाहरण–यशप्राप्त, आशातीत, जेबकतरा, परिलोकगमन।
MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-4
जिस समस्त पद में कर्म कारक की विभक्ति (को) का लोप होता है उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं।

(ii) करण तत्पुरुष–इन उदाहरणों को देखिए
शब्द – विग्रह
शोकातुर – शोक से आतुर।
मुँहमाँगा – मुँह से माँगा।

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जिस समस्त पद में करण कारक (से) की विभक्ति का लोप होता है उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
(ii) सम्प्रदान तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
विद्यालय – विद्या के लिए घर।
गौशाला – गौ के लिए शाला।
डाक व्यय – डाक के लिए व्यय।

जिसं समस्त पद में सम्प्रदान कारक (के लिए) की विभक्ति का लोप होता है, उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं।

(iv) अपादान तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
शक्तिविहीन – शक्ति से विहीन।
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट।
जन्मांध – जन्म से अंधा।
धर्मविमुख – धर्म से विमुख।

जिस सामासिक शब्द में अपादान कारक (से) की विभक्ति का लोप होता है, उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
नोट–तृतीया विभक्ति करण कारक और पंचमी विभक्ति अपादान कारक की विभक्तियों के चिह्न ‘से’ में एकरूपता होते हुए भी अर्थ में भिन्नता है। करण कारक का ‘से’ का प्रयोग संबंध जोड़ने के अर्थ में प्रयुक्त होता है और अपादान का ‘से’ संबंध–विच्छेद के अर्थ में प्रयुक्त होता है।

(v) संबंध तत्पुरुष समास–
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
रामकहानी – राम की कहानी।
प्रेमसागर – प्रेम का सागर।
राजपुत्र – राजा का पुत्र।
पवनपुत्र – पवन का पुत्र।
पराधीन – पर के अधीन।

अर्थात्
जिस सामासिक शब्द में संबंध कारक की विभक्तियों (का, के, की) का लोप . होता है उसे संबंध तत्पुरुष समास कहते हैं।

(vi) अधिकरण तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
शरणागत – शरण में आया।
घुड़सवार – घोड़े पर सवार।
लोकप्रिय – लोक में प्रिय।

अर्थात्
जिस सामासिक शब्द में अधिकरण (में, पे, पर) कारक की विभक्तियों का लोप होता है उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

3. कर्मधारय समास
महात्मा, शुभागमन, कृष्णसर्प, नीलगाय ।
महात्मा – महान है जो आत्मा।
शुभागमन – जिसका आगमन शुभ है।
कृष्णसर्प – सर्प जो काला है।
नीलगाय – गाय जो नीली है।

उपयुक्त सामासिक शब्दों में पहला पद विशेषण है दूसरा पद विशेष्य अर्थात् दूसरे पद की विशेषता पहला पद बता रहा है।

इन शब्दों को पढ़िए–

शब्द – विग्रह
कनकलता – कनक के समान लता।
कमलनयन – कमल के समान नयन।
घनश्याम – घन के समान श्याम।
चंद्रमुख – चंद्र के समान मुख।
मृगलोचन – मृग के समान नेत्र।

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इन शब्दों में पहले पद की तुलना दूसरे पद से की है। अर्थात् पहला पद उपमान और दूसरा पद उपमेय है।

जब सामासिक शब्द में विशेषण विशेष्य का भाव हो या उपमेय उपमान का भाव हो तब कर्मधारय समास होता है।

इस आधार पर कर्मधारय समास भी दो प्रकार के होते हैं
1. विशेषण विशेष्य कर्मधारय–जैसे– नीलकंठ, महाजन, श्वेताम्बर, अधपका।
2. उपमेयोपमान कर्मधारय–जैसे–करकमल, प्राणप्रिय, पाणिपल्लव, हंसगाभिनी।

4. दिगु समास –
इन शब्दों को पढ़िए
पंचतंत्र, शताब्दी, सप्ताह, त्रिभुवन, त्रिलोक, नवरत्न, दशानन, नवनिधि, चतुर्भुज, . दुराहा। इनका विग्रह इस प्रकार होगा– .

शब्द – विग्रह
पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समूह या समाहार।
शताब्दी – सो वर्षों का समाहार या समूह।
सप्ताह – सात दिनों का समूह।
त्रिभुवन – तीन भवनों का समूह।
त्रिलोक – तीन लोकों का समूह।
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह।
दशानन – दस मुखों का समूह।
नवनिधि – नौ निधियों का समूह।

इस प्रकार के शब्दों में पहले पद में संख्यावाचक शब्द का प्रयोग हुआ है।
जिस समास में प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण हो और समस्त पद के द्वारा समुदाय का बोध हो, उसे द्विगु समास कहते हैं।

5. द्वन्द्व समास–इन शब्दों को पढ़िए–
सीता–राम – सीता और राम।
धर्मा–धर्म – धर्म या अधर्म।

दोनों पद प्रधान होते हैं। सामासिक शब्द में मध्य में स्थित योजक शब्द और अथवा, वा का लोप हो जाता है उसे द्वन्द्व समास कहते हैं।’
इन समासों को पढ़िए माता–पिता, गंगा–यमुना, भाई–बहिन, नर–नारी, रात–दिन, हानि–लाभ
समास विग्रह

शब्द – विग्रह
माता–पिता – माता और पिता।
गंगा–यमुना – गंगा और यमुना।
भाई–बहिन – भाई और बहिन।
रात–दिन – रात और दिन।

उपर्युक्त शब्दों में दोनों पद प्रधान हैं, सामासिक शब्द के बीच में योजक शब्द ‘और’ लुप्त हो गया है। कुछ शब्द इस प्रकार हैं
शब्द – विग्रह
भला–बुरा – भला या बुरा।
छोटा–बड़ा – छोटा या बड़ा।
थोड़ा–बहुत – थोड़ा या बहुत।
लेन–देन – लेन या देन।

इन शब्दों में ‘या’ अथवा ‘व’ योजक शब्दों का लोप रहता है। उपर्युक्त शब्द परस्पर विरोधीभाव के बोधक होते हैं।
इन शब्दों को पढ़िए–

दाल–रोटी – दाल और रोटी।
कहा–सुनी – कहना और सुनना।
रुपया–पैसा – रुपया और पैसा।
खाना–पीना – खाना और पीना।

इन शब्दों में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का अर्थ साथ वाले पद से सूचित होता है। उपर्युक्त उदाहरणों में हमने तीन तरह की स्थितियाँ देखीं।

पहले उदाहरणों में दोनों पद प्रधान हैं, ‘और’ योजक शब्द का लोप हुआ है। इसे इतरेतर द्वन्द्व कहते हैं।
दूसरे उदाहरणों में दोनों पद प्रधान होते हुए परस्पर विरोधी भाव के बोधक हैं, ‘और’ योजक शब्द से जुड़े हैं। इसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते हैं। .
तीसरे उदाहरणों में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का अर्थ द्वितीय पद से सूचित होता है। इसे समाहार द्वन्द्व कहते हैं।

6. बहुब्रीहि समास

इन शब्दों को पढ़िए
1. गिरिधर – गिरि को धारण करने वाला अर्थात् ‘कृष्ण’।
2. चतुर्भुज – चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् ‘विष्णु’ ।
3. गजानन – गज के समान आनन (मुख) है जिसका अर्थात् ‘गणेश’।
4. नीलकंठ – नीला है कंठ, जिसका अर्थात् ‘शिव’ ।
5. पीताम्बर – पीले वस्त्रों वाला ‘कृष्ण’ । उपर्युक्त सामासिक शब्दों में दोनों पद प्रधान नहीं हैं। दोनों पद तीसरे अर्थ की ओर संकेत करते हैं।

जैसे–
अर्थात् – कृष्ण।
अर्थात् – विष्णु।

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जिन सामासिक शब्दों में दोनों पद किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं उन्हें बहुब्रीहि समास कहते हैं।

बहुब्रीहि और कर्मधारय समास में अन्तर–
कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है और पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।

उदाहरण के लिए–
नीलकंठ का विशेषण है नीला–कर्मधारय। नीलकंठ–नीला है कंठ जिसका अर्थात ‘शिव–बहुब्रीहि समास बहुब्रीहि समास में दोनों पद मिलकर तीसरे पद की विशेषता बताते हैं।

बहुब्रीहि और द्विगु में अंतर–जहाँ पहला पद दूसरे पद की विशेषता संख्या में बताता है। वहाँ द्विगु समास होता है। जहाँ संख्यावाची पहला पद और दूसरा पद मिलकर तीसरे पद की विशेषता बताते हैं वहाँ बहुब्रीहि समास होता है।

जैसे–
चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह – द्विगु समास।
चतुर्भुज – चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् ‘विष्णु’– बहुब्रीहि समास

समास को पहचानने के कुछ संकेत–

  1. अव्ययी भाव समास – प्रथम पद प्रधान और अव्यय होता है।
  2. तत्पुरुष समास – दोनों पदों के बीच में कारक की विभक्तियों का लोप होता है और उत्तम पद प्रधान होता है।
  3. कर्मधारय समास प्रथम पद विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है। या उपमेय उपमान का भाव होता है।
  4. द्विगु समास – प्रथम पद संख्यावाचक।
  5. द्वन्द्व समास – दोनों पद प्रधान होते हैं और समुच्चय बोधक शब्द से जुड़े होते हैं।
  6. बहुब्रीहि समास – दोनों पद को छोड़कर अन्य पद प्रधान होता है।

1. अव्ययी भाव समास
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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-6

संधि और समास में अन्तर
सन्धि और समास में मख्य रूप से अन्तर यह है कि सन्धि दो वर्णों (अ. आ. इ, क, च आदि) में होती हैं, जबकि समास दो या दो से अधिक शब्दों में होता है। सन्धि में शब्दों को तोड़ने की क्रिया को ‘विच्छेद’ कहते हैं और समास में सामासिक पद को तोड़ने की क्रिया को ‘विग्रह’ कहते हैं। ..

2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष के भेद

(i) कर्म तत्पुरुष
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(ii) करण तत्पुरुष
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(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष
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(iv) अपादान तसुरुष
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(v) संबंध तत्पुरुष
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(vi) अधिकरण तत्पुरुष
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MP Board Class 11th General Hindi व्याकरण समास img-14

एकाधिक शब्दों का लोप-
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3. कर्मधारय समास
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उपमेयोपमान कर्मधारय समस्त
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4. द्विगु समास
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5. द्वन्द्व समास
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6. बहुब्रीहि समास
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