MP Board Class 12th Special Hindi प्रायोजना कार्य

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अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अभाव में नवीन चिन्तन, नवीन विचार, नवीन धारणाएँ आकार नहीं ले पातीं, न कोई सृजन हो पाता है। छात्र इस स्तर तक आते – आते क्रमश: अपनी भाषा के विकास के क्रम में इतना सक्षम हो जाता है कि वह अपने सबसे प्रभावशाली साधन बोली का उपयोग करे। अपने अनुभव एवं अपने विचार व्यक्त करे। क्षेत्रीय बोली की कहावतें, चुटकुलों और लोकगीतों का संग्रह कर उनका परिचय प्राप्त करे। अपने क्षेत्र की पत्र – पत्रिकाओं का पाठ्य – पुस्तकों के अलावा अध्ययन करे।

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(1) भाषा के विविध क्षेत्रों का परिचय भाषा के चार मुख्य क्षेत्र हैं –

  1. सुनना – श्रवण,
  2. बोलना – भाषण,
  3. पढ़ना – पठन,
  4. लिखना – लेखन।

इस विषय का समावेश पाठ्यक्रम में इसलिए किया गया है कि बालक कक्षा 11वीं के स्तर तक भाषा के इन चारों स्तरों से भली – भाँति परिचित हो जाता है। अब उन्हें शिक्षकों द्वारा अपनी इन भाषायी योग्यता के विस्तार की प्रेरणा देना है। वह अपनी इस योग्यता से पाठ्य – पुस्तक के अतिरिक्त भी कुछ पढ़े लिखे और इस क्रिया में रुचि उत्पन्न करने के लिए शिक्षक छात्रों को यह गृह कार्य दें कि वे अपने – अपने क्षेत्र की बोली की कहावतें,चुटकुले और लोकगीतों का संग्रह करें। इसके अतिरिक्त छात्रों को कक्षा में तथा गृह कार्य के रूप में यह लेखन कार्य दिया जाये कि वे अपने क्षेत्र की पत्र – पत्रिकाओं को पढ़ें और उसमें उन्हें जो भी विवरण रोचक लगे उसे अपने शब्दों में लिखें। इससे उनका पठन – कौशल और लेखन – कौशल विकसित होगा।

छात्र के श्रवण कौशल को विकसित करने के लिए वह दूरदर्शन के रोचक कार्यक्रमों को सुने और उसे जो भी कार्यक्रम रुचिकर लगे उसे लिखे।

इस प्रकार छात्रों को पाठ्य – पुस्तक के अतिरिक्त अपनी भाषायी योग्यता विस्तार का अवसर प्राप्त होगा।

मध्य प्रदेश देश का सबसे बड़ा वह राज्य है जिसकी सीमाओं को सात प्रदेश घेरे हैं। अत: मध्य प्रदेश में सर्वाधिक क्षेत्रीय भाषा या बोलियाँ अस्तित्व में हैं।

शिक्षक अपने – अपने क्षेत्र की भाषा के लोकगीतों एवं कहावतों का संग्रह छात्रों से करवायें। हमारे प्रदेश में मुख्य रूप से मालवी, निमाड़ी, बुन्देलखण्डी, बघेलखण्डी, छत्तीसगढ़ी, मराठी, गुजराती,मारवाड़ी बोली जाती हैं, अतएव इनके चुटकुले, गीत,कविता,कहावतें एकत्रित करें। उदाहरण के तौर पर मालवा,निमाड़ क्षेत्र का मुख्य समाचार – पत्र है—’नई दुनियाँ’, जो इन्दौर से प्रकाशित होता है। उसमें प्रत्येक बुधवार को इस तरह की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। इस क्षेत्र के छात्र उनका संग्रह कर सकते हैं।

मध्य प्रदेश में चालीस से अधिक जनजातियाँ निवास करती हैं। जिनकी अलग – अलग बोलियाँ हैं। झाबुआ के निवासी भील हैं और इनकी भीली बोली में मुहावरों का अत्यधिक प्रचलन है। हम यहाँ कुछ भीली मुहावरे और उनका हिन्दी अर्थ दे रहे हैं। छात्र अपने अध्यापकों की सहायता से अपने आस – पास बसने वाले आदिवासियों की लोक कथाएँ, कविता, मुहावरे, कहावतें संकलित कर उनका हिन्दी अनुवाद करें।
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सुबह दोपहर, शाम समय की सूचना वाले मुहावरे
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भीली बोली पर मालवी, राजस्थानी, गुजराती भाषाओं का पर्याप्त प्रभाव है।

  • भीली कहावतें
  1. भूखला तो भूखला सूकला खरी – भूखा ही सही पर सुखी तो हूँ।
  2. भील भोला ने चेला – भील भोले होते हैं।
  3. खारड़ा माँ काँटो,भील माँ आटो – भील में बदले की भावना रहती है।
  4. पाली पपोली मनाव राखवू घणो मसकल है – भील को खुशामद से मनाना बहुत मुश्किल है।
  5. ढोली नौ सौरो गाद्यो नी मरे न भीलनुं सौरो रोद्यो नी मरे – ढोली का लड़का गाने से और भील का लड़का रोने से नहीं मरता – वे अभावों से जूझते रहते हैं।
  6. भील भाई ने डगले दीवो – भील भले ही अभावग्रस्त रहे, वह सदा निश्चिन्त रहता हैं।

कुछ बुन्देली बोली की कहावतें

  1. खीर सों सौजं,महेरी को न्यारे।
  2. पराई पातर को बरा बड़ो।
  3. पराये बघार में जिया मगन।
  4. देवी फिरै बिपत की मारी पण्डा कहै करो सहाय।
  5. रौन कुमरई की कुतिया (लोककथन)।
  6. नौनी के नौ मायके, गली – गली सुसरार।
  7. जौन डुकरिया के मारे न्यारे भए बई हिस्सा में परी।
  8. माँगे को मठा मोल पर गौ।
  9. कानी अपने टेण्ट तो निहारत नईया दूसरे की फुली पर पर के दैखत।
  10. कनबेरी देवो।
  11. मर गई किल्ली काजर खों।

(2) पहेलियाँ

1. भीली भाषा – उत्तर
1. गाय वाकड़ी ने बेटी डाकणी – तीर – कमान
2. धवल्या बुकड़ा ने बारेह खाल – प्याज
3. औंधे बाटके ने दही लटके – कपास
4. भूत्या हेलग्या ने पेटा में दाँत – कद्दू
5. छोटी – सी दड़ी,दगड़ – सी लड़ी – सुपारी

2. बुन्देली
1. थोड़ो सो सोनो,घर भर नोनो – दीपक
2. दीवार पर धरो टका,ऊको तुम उठा पाओ न बाप न कका – चन्द्रमा
3. ठाड़े हैं तो ठाड़े हैं, बैठे हैं तो ठाड़े हैं। – सींग

3. निमाड़ी
1. एक बाई असा कि सरकजड नी – दीवाल
2. काली गाय काँटा खाय,पाणी देखे बिचकी जाय – जूता

4. बघेली
अड़ी हयन,खड़ी हयन, लाख मोती जड़ी हयन बाबा करें बाग में दुशाला ओढ़े पड़ी हयन – भुट्टा मक्के का

5. छत्तीसगढ़ी
पेट चिरहा, पीठ कुबरा – कौड़ी

6. मालवी
नानो सो चुन्नू भाय, लम्बी सारी पूँछ नी चाल्या चुन्नू भाया,पकड़ी लाउ – सुई धागा

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(3) चुटकुले

(1) न्यायाधीश – तुम चार साल पूर्व भी एक ओवर कोट चुराने के अपराध में इस अदालत में आ चुके हो।
अपराधी – आप ठीक कहते हैं। लेकिन ओवर कोट इससे अधिक चलता भी कहाँ है।

(2) मजदूर क्या मालिक ! गधे के समान काम कराया और एक रुपया दे रहे हो। कुछ तो न्याय करना चाहिए।
मालिक – न्याय ! हाँ तुम ठीक कहते हो। मुनीम जी,इसका रुपया छीन लो और बाँध कर इसके सामने थोड़ी – सी घास डाल दो।

(3) पिता हमारा लड़का आजकल बहत तरक्की कर रहा है। पड़ौसी – अच्छा,कैसे?
पिता – पुलिस ने उस पर घोषित इनाम की रकम पाँच हजार से बढ़ाकर दस हजार कर दी है।

(4) लोकगीत

निमाड़ी कवाड़ा
बड़ा – बड़ा तो वई गया
ढोली कय कि पार उतार
वई का वई गया ना
उतरई की उतरई लगी
एकली कुतरी कई भुख
न कई कंसुऱ्या ले
फट्या कपड़ा बुड्डा ढोर
इनका दाम लई गया चोर
ऊँट थारो कई वाको
ऊँच कय सब वाको
थारी बइगण म्हारी छाछ
भली बघार म्हारी माय

प्रस्तुति : हरीश दुबे

साथन : निमाड़ी

‘मँहगई
एको राज ओको राज
हुया मँहगा अनाज।
काँ छे घोटालो,
समझ मज आव नी
उनकी वात।
हम, पाँच बरस तक
देखाँ, रामराज की वाट

– अखिलेश जोशी

विश्वास
आस बाँधी ने
दो कदम
चाल्यौ थो
कि
टाँग घैची लिदी !
पाछै
फरीने देख्यो आपणा वारा पे भी
विश्वास नी करनो कदी!!

– जगदीश सरगरा

वात कई कई
बैल गाड़ी की वात कई कयणुं
खेत वाड़ी की वात कई कयणुं
मीठा लागज जुवार का रोटा
नऽ अमाड़ी की वात कई कयणुं
जे खड़ बुनकर वणा व मयसर का
उनी साड़ी की वात कई कयणुं
दुध – घी की कमी नि होणऽ दे
भैस – पाड़ी की वात कई कयणुं
घर क राखज चगन – मगन केतरो
छोटी लाड़ी की वात कई कयणुं
गाँव मऽ उनको बड़ो नाव वजज
माय माता की वात कई कयणुं
वोली न अपणी जगा सब छे ‘हरिश’
पण निमाड़ी की वात कई कयणं

– हरीश दुबे

गजल हुण रे भाया म्हारी वात।
हद की दी मनखाँ की जात॥
जणीं जण्या पारया पोस्या,
अबे लंगावे वर्ण पे घात।
वा,दर – दर की माँगे भीख
जण के जीवे बेटा हात।
लाड्या की होरयां बारी,
मंगता अशो करयो उत्पाद।
मनखाँ ती वंची ने रो
झूठी कोनी या केवात।

– प्रमोद रामावत

फागुण का दोहा
फागुण का पगल्या पड्या,बदल्या सारा रंग।
ढोलक बजी चौपाल पऽ खडक्या खड़ – खड़ चंग।।
सरसों पीली हुई गई,महुवो वारऽ गन्ध।
फूल – फूल पऽ भैरा दौड़,पीणऽख मकरन्द।।
अम्बा भी बौरइ गया, फूल्या घणा पलास।
कोयलिया की कूक की,प्यारी लाग मिठास॥
अबीर गुलाल का साथ मँऽ,रंग की उड़ी फुहार।
हिली – मिली न मनवाँ, आवो यो तेव्हार ॥

– चन्द्रकान्त सेन

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एल्याँग ……. वोल्याँग
एल्यांग गुरुजी
पकावणऽ लग्या
दलिया न दाल
वोल्याँग हुई
शिक्षा – बे – हाल
शेर की सी उनकी नियति
एकाजऽ लेण
जिन्दगी अकेलीज बीती
वोटर सी पूछो
ईज सरकार रखोगा
कि बदलोगा?
बोल्या अगला
को काई भरोसा?
ऊ एतरी धाँधली
चलऽन दे कि नई?

– ललित नारायण उपाध्याय

ऊँचो मोल को है तमारो पसीनो
साथे लइलाँ हिम्मत ने हेली – मेली ताकत,
तमारा आगे माथो टेकी ऊबी रेगा आफत,
काय को डर धरती रो घर अन से भरया चालो।
चालो भरयां चालो, मरदाँ चालो।
घणो ऊँचों मोल को है तमारो पसीनो
आलसी के समझावो के कसो होय है जीनो
स्वास्थ छोड़ी मजदूरी री पूजा करदाँ चालो।
चलो मरदाँ,चालो, चालो मरदाँ चालो।
गाँवों में कबीर पंथ आज भी तो गावे है
परेम से तो मारा भाई दुनिया जीती जावे है
लड़ता – मरता आदमी ने आपण वरजाँ चालो
चालो मरदाँ चालो, चालो मरदाँ चालो
आदिवासी भाई मारा धणो दुःख पायो
नीचे को यो आदमी भी अपणी माँ को जायो
तो छापर वाली टापरी ने पक्की करदाँ
चालो चालो मरदाँ चालो, चालो मरदाँ चालो।

– मोहन अम्बर

सन्दर्भ : होली

कई हँसो बाबूजी !
यूँ दूर ऊबा
नाक सिकोड़ी के
कई हँसो ओ बाबूजी,
हमारे
कीचड़ का अबीर गुलाल से
होली खेलता देखि के।
हमारो तो
योज बड़ो तीवार है
यो
कीचड़ को जरूर है, बाबूजी
पणे
तमारी जग – मग दीवाली से
घणों अच्छो है,
देखिलो
दोल्यो /धुल्यो
दोड़ी – दोड़ी के
खाँकरा की केशूड़ी को
सन्तरिया रंग के
एक – दुसरा का ऊपर ढोलिरिया
मन का बन्द किमाड़
खोलीरिया
आत्मा से धीरणा को
कीचड़ धुइरिया है
काल तक जो प्यासा था
एक दूसरा का खून का
बाबूजी
आज ऊई पाछा
एक हुइरिया है।

– बंशीधर ‘बन्धु’

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अजगर से बड़ा साँपजी
थोडी – घणी लिखी या पाती.
आखी समजो बाप जी।
यो कई हुई रियो इनी दुनियाँ में,
कई करूँ इको जाप जी।
तम भी पड्या हो ईका चक्कर में
घणा ईमानदार था साबजी।
भेती गंगा में जो हाथ नी धोया तो
जनम भर होयगो भोत संतापजी।
तूज अकेली जेरीलो नी हे धरती पे,
बेठ्या हे, अजगर से बड़ा साँपजी।
घणी देर से सोया हो, अब तो जागो,
जगावा को कद से करि रियो हूँ अलापजी।
कई लाया था ने कई ली जावगा,
आता – जाता को मत करो विलापजी।

– हुकुमचन्द मालवीय

खोटो नरियल होली में !
मन में आदर भाव नी रियो, राम नी रियो बोली में,
नगद माल सब जेब हवाले,खोटो नरियल होली में।

स्वारथ आगे सब कईं भूल्या, कितरा कड़वा हुईग्या हो,
फिर भी थोड़ी तो मिठास है पाकी लीम लिम्बोड़ी में।

कई गावाँ कई ढोल बजावाँ, कई स्वागत सत्कार कराँ,
डण्डा – झण्डा साते लइने,नेता निकले टोली में।

कुरसी मिली तो मोटरगाड़ी से,तम नीचे नी उतरो,
नेताजी वी दन भूलीग्या,रेता था जद खोली में।

खून, पसीना, साँते बईग्यो,पेट पीठ से चोंटीग्यो,
सपनो हुईग्यो धान ने दलियो,टाबर रोवे झोली में।

कुल की लाज बहू ने बेटी, भूल्या सगली मरयादा,
बहू की जगे दहेज बठीग्यो, अब दुल्हन की डोली में।

नारी को सम्मान घणों है, भाषण लम्बा – चौड़ा दो,
पण मौका पे चूको नी तम, भावज बणाओ ठिठोली में।

– ओमप्रकाश पंड्या

तम देखी लेजो
बन्द कोठड़ी म
गरम गोदड़ी ओढ़ेल
सोचतो मनख;
कस लिखी सकग
ठण्ड न क कड़ायलां गीत,
फटेल चादरा का दरद
अन टूटेल झोपड़ा की वारता?
कसा कई सकग
फटेल हाथ – पाँव की
बिवई न में
खोयेल नरमई,
अन सियालां म
बगलेलो
डोलची दाजी को दम !
भई,
तम कोशिश करी न
देखी ले जो;
पन असली वात न क
कभी नी कई सकग ॥

– शरद क्षीरसागर

जीवन कँई हे?
जीवन एक मेंकतो
हुवो फूल हे
हवेरा, खिले अरु हाँजे
मुरजई जावे
समजी नी जिने
जीवन की परिभासा
ऊ कदी रोवे
कदी खिलखिलावे
जीवन पाणी को
ऊठतो हुवो बुलबुलो हे,
देखतां – देखतां
जिको नामो निसान मिटी जावे
फिर बी हम
जीवन को अरथ नी जाणां
तपतो हुवो सूरज बी
हाँजे ठण्डो वई जावे।

– कन्हैयालाल गौड़

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(5) लोक कथाएँ

लोक कथाओं में मानव का सुकोमल एवं हृदय को छू जाने वाला इतिहास अंकित है। आदमी ने जो कुछ किया, उसका लेखा – जोखा तो इतिहास में दर्ज है, लेकिन अपने मनोजगत् में उसने जो कुछ भी सोचा, विचारा, रंगीन कल्पनाओं का ताना – बाना बुना, सुन्दर सपने संजोए उन सबका विवरण इन लोक कथाओं में सुरक्षित है।

सदियों से ये लोक कथाएँ मनुष्य का मनोरंजन करती आयी हैं। इनमें कुछ भी असम्भव नहीं होता है। इनमें शेर और साँप भी दोस्ती निभाते,पक्षी सन्देश पहुँचाते और जरूरत पड़ने पर चित्र भी बोलने लगते हैं। इनमें मनुष्य सोचने के साथ ही सात समुद्र पार पहुँच जाता है,क्षण में पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है और किसी द्वीप की असीम सुन्दरी से शादी करता है।

इनकी जो सबसे बड़ी विशेषता है वह यह है कि ये मानवीय तत्वों से भरपूर हैं। इनमें देवी – देवता के माध्यम से भी मानव जीवन की कहानी कही गयी है। चाहे सूर्य हो या ब्रह्मा, सावित्री, वे सब यहाँ मानवीय स्वरूप लेकर और पारिवारिक प्रतीकों के सहारे सामाजिक जीवन को समृद्ध कर अपना योगदान देते हैं।

इन कथाओं में व्यक्ति, स्थान या समय,का कोई महत्त्व नहीं होता। इनकी उँगली पकड़ कर ही आदमी ने सदियों की दूरी को लाँघा, देश – विदेश की यात्राएँ की और सुदूर रेगिस्तान से लगाकर अपने खेत – खलिहान और घर के आँगन के सहारे सारी रात जागकर बिता दी है। इन्होंने निराशा के क्षणों में मनुष्य के मन में अमिट आशा का संचार किया है।

(क) छत्तीसगढ़ी कहानी
नियाय के गोठ

चैतू ठाकुर बिमार हावे। गाँव के सबो झन झोला देख देख के जावत हैं। तीर तिखार के गाँव के कतको सज्जन अऊ बड़े किसान किसनहा झोला देखे बार आता हे। आखर कावर नइ आही ओखर सुझाव सब झन बर गुरतर हावे दूरिहा दूरिया के मन ऐला जानाथे। चाहे कइसनो मुशकुल बात होय ठाकुर ओला दुइच छिन में निबटा देय। वइसे ओखर तीर कोनो बड़े जइदाद, नइहे नहिं सोना चाँदी के खजाना। ओखर तीर सिरिफ दुठन बांही के भरोसा हावे। एक छोटे असन घर बाड़ी थोरकिन खेत अउ गिनती ढोर डंगर। रात दिन मिहनत करना ओखर नियम है।

एक जमाना रिहिस के वोहा गरीब रिहिस। मजदूरी करके अपन पेट ला चलाय। तब वो हा परम संतोषी रिहिस अऊ आजो भी वोला। चिटिक मात्र घमण्ड नहीं हे यही कारण है कि गाँव ‘भर के मन वोला मानये।

आज वो ही हा बिमार हे त पुरा गाँव दखी है। सबो झन भगवान ले पराथना करत है कि ठाकुर जल्दी बने हो जाय।

ठाकुर परिवार में कुल चार पराणी हावे। ठाकुर ओखर घरवाली ओखर बेटा अउ अनाथ भांचा। हावो तो भांचा फेर ठाकुर बोला अपने बेटा ले चिटिक मात्र कमती नहीं समझे। ऊखर असन बेटा बीस बरस के लगभग अउ भांचा मोहन अठरह बरस के लगभग हावे। बड़ मिहनती हे। बलराम कोनो काम बूता म ओखर आगू नई टिकै।

बलराम के सगई होने। ठाकुर सोचे कि मोहन बर भी कहूँ बात चलाये जाय त दूनो के बिहाव एक संग निपट जाही। ठकुराइन के मन मां घलो यही बिचार उठे।

फेर एकोती बलराम बड़ा उलझन अउ उदंड होगे। न माँ के सुनय न बाप के सुनय। कभू भूले भटके खेत के मेड नहीं बूंदय न खलिहान में बैठय। लोगन कहिये कि बलराम ताश पत्ती खेले बर सीखेगे हे। कोनोन कहाय कि ससुराल वाला मन वोला बहिकाल फुसलात हावे। ससुराल वाला मन डरावत हे कि कहूँ मोहन का बलराम के हिस्सा में बाँटा झन ले लय।

चैतू ठाकुर ये सब चाल ल समझत हावे फिर मोहन ल ये पाय कि नइ भाय कि वा हा भांचा हे फेर ये पाय के चाहे कि ओखर माँ बाप गरगे हे, बल्कि ठाकुर ओखर मिहनत देख खुश होवय। खेती बारी के संगे वो हा घर के चेता सुरता रखथे। ठाकुर ठकुरइन की कतेक सेवा कर थे।

ये बात ठीक है कि बलराम ऊखर बेटा है फेर कतेक मुरुख। काम देखता बोला जर आ जाये। भेजबे उत्तर दिशा त वोहा जाये दक्षिण दिशा। वोहा ठीक से अपने चारों खेत ला छलख नई जानय कालि के दिन वोला खेत दे दिए जाय त का होही?

ठाकुर बीमार हावे। बलराम ला ओखर ससुरार वाला मन बलवा ले हय। अभी तक ले लहुट के नई आये हे। खबर भिजवाय गय हय, फिर ससुराल ले कोनो मनख नइ आये हे।

संझा के बेरा बलराम अपना दलदल के संग ठाकुर के आगु में अइस। राम राम के बाद ससुरार पक्ष के जन विहिस कि ठाकुर अब ये थोरे दिन के मेहमान हावस ऐखर सेती तोला अपन संपत्ति ला बलराम के नाम देना चाही।

ये सनके ठाकर ला कोनो अचंभा नइ होइस। अइसन बात के खियाल ओला आग ले रिहिस। बोलिन – “तुम्हार बात तो ठीक फिर बलराम अभी लइका है। काम धाम के सूझ अभी बने अइसन नइ हे।”

अतका सुनके रिहिस बलराम भड़क गये—बापू के त बुध सठिया गेहे। जब देख बेत मोला लइका समझते अऊ ये सब मोहन के सेती होवत हे। मांहा घलो ओखरे पक्ष ले थे। फेर बापू आज त तोला फइसला करेच बर पड़ ही।

ठाकुरहा जल्दी ले गाँव के पाँच पंच बुलबइस फिर ठकुराइन ले पुछिस मोहन कहाँ है? ठकुरइन बतइस – वो हा मंझनिया के जंगल चल दे हावे। एक ठन बइला बीमार हावे ले तेखर बर जड़ी बुटी लाने बर गये है।

ठाकुर हां पंच मन ला बलराम के मंशा बतलइस। सबला बड़ अचंभा होइस फेर बलराम के संग ओखर ससुरारी मन ला देख के चुप रहिगे। ठाकुर बाते बात में बलराम लातियारिस बेटा थोरकिन खलिहान में जाके देख आतो धान मिजाइ के कुछ उडल हे या नइ। बलराम भागत गइस अउ आके बतइस कि खलिहान म दूनों नौकर बइठे बीड़ी पियत हावे।

ठाकुर फेर विहिस – ऊखर ले पूछ नइ लेतेस बेटा के दौरी कतेक बेर म चल ही। बलराम हा आज्ञाकारी बेटा अइसन फेर गइस अऊ आके खबर दइस कि अभीत सबो बाइला नइ आये हे। ठाकुर पूछिस – “आखिर कतका बइला कमती पड़त हे?”

बलराम गल्ती कबलिस के बाप में तो गिनती करे बार भुला गये। अभीच जाके पता करथ हंव। बलराम लहुटके बड़ा घमण्ड करके बतइस दुबइला कमती है। अऊ तब ठाकुर हा पूछिस – “उहां अभी कुल कतका बइला हे।”
अऊ लोगन देखिन कि बलराम फेर बइका के गिनती करे बर भागिस। ओतकेच बार मोहन आगे। वे हा सब झन के पांव परिस अऊ चले ल धरिस। तब ठाकुर बोलिस – बेटा थोरकिन पता लगा के आ धान वे भिंजइ होही के नई।

तभेच बलराम आके बइला के संख्या बताय लगिस। सब चुप रहिन। थोरिक देर बाद मोहन आके बतइस कि कंगलू अउ मंगलू इनो मिल के पझ डार डाले हावे। ढेर लगा चुके है। दुबइला के कमी रिहिस त बहू झगरू देके गेहे। रात के खां पी के दौरी शुरू हो जाही। फिकर के कोनो बात नइहे।

ऐखर बाद कोनो कुर्छ नई बोलिन। ठाकुर पारी पारी से सबके मुंह ला देखे लगिस। अऊ आखिर में बलराम ले बोलिस कुछ समझ में आइस बेटा, तोर अऊ मोहन में का फरक हे? तें घंकभु ये समझे के कोशिश नई करेस के भुइयां ह मेहनत चाहथे। खेती – बारी करना हंसी – ठट्ठा नोहे। बड़ सूझ के काम हे। मोहन तो ले के छोटे हे फेर कतेक लायक हे अऊ तेहा कतेक नालयक पहिले मोर विचार रिहिस कि तुम दूनो ला संपत्ति के आधा – आधा हिस्सा दे दवं,फेर अब एक अ रास्त ये रही कि तोता ईमानदार किसान बने बर पड़ही जइसे ते मोहन ला देखत हस। तबहि तेहां आधा हिस्सा के हकदार होबे।

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ठाकुर के फइसला सबके समझ में आ गइस। आज ये फेर साबित होंगे कि ठाकुर हमेशा नियाय के ही बात कहिये। खड़ी बोली में अनुवाद न्याय की बात चैतू ठाकुर बीमार है। गाँव के सब लोग उन्हें देखकर जा चुके हैं। आस – पास के गाँवों से भी अनेक प्रतिष्ठित किसान उन्हें देखने आ रहे हैं। आखिर क्यों न हो? उनका व्यवहार सबके लिए इतना नम्र रहा है कि दूर – दूर तक लोग उन्हें जान गए हैं चाहे कैसी भी उलझी समस्या क्यों न हो,चैतू ठाकुर अपनी सूझ – बूझ से उसे आनन – फानन में सुलझा देते हैं। वैसे उनके पास लम्बी चौड़ी जायदाद नहीं हैं,न ही सोने – चाँदी के अनगिनत सिक्के हैं। उन्हें तो केवल अपनी बाँहों का भरोसा है। एक छोटा – सा घर है। बाड़ी है,कुछ खेत हैं और गिनती के ढोर – डांगर हैं। रात – दिन मेहनत करना ही उनका नियम है।

एक समय था कि वे गरीब थे। मजदूरी करके अपना पेट भरते थे। अब भी वे परम संतोषी हैं और आज भी घमण्ड उन्हें छु तक नहीं गया। यही कारण है कि गाँव के लोग उन्हें मानते हैं।

आज वे बीमार हैं, तो सारा गाँव दु:खी है। ईश्वर से सब के सब यही प्रार्थना कर रहे हैं कि वे जल्दी अच्छे हो जायें।

उनके परिवार में कुल चार प्राणी हैं। वे,उनकी पत्नी,उनका बेटा और अनाथ भांजा। है तो भांजा,पर वे उसे अपने बेटे से जरा भी कम नहीं मानते। उनका अपना बेटा बलराम लगभग बीस साल का है। भांजे का नाम है मोहन, यही कोई सत्रह – अठारह वर्ष का होगा। बड़ा मेहनती है। बलराम तो उसके किसी काम में भी नहीं ठहर सकता।

बलराम की सगाई हो चुकी है। ठाकुर सोचते हैं कि मोहन के लिए भी कहीं बात हो जाय तो दोनों का विवाह एक साथ ही निपटा दें। ठकुराइन के मन में भी यही बात है।

परन्तु बलराम इधर बड़ा मनमौजी हो गया है। न माँ की बात मानता है,न बाप की सुनता है। खेत पर कभी भूलकर भी नहीं जाता है और न ही खड़ी भर खलिहान में बैठता है। लोग कहते हैं कि बलराम आजकल ताश खेलने लगा है। कुछ लोगों का यह भी ख्याल है कि उसके ससुराल वाले उसे बहका रहे हैं। ससुराल वालों को शायद यह डर है कि कहीं मोहन बलराम का हिस्सा न बॅटा ले।

चैतू ठाकुर यह सब समझते हैं। वे मोहन को केवल इसलिए नहीं चाहते कि वह उनका भांजा है. उसके माँ – बाप मर गए हैं,बल्कि ठाकुर उसकी मेहनत देखकर खुश हैं। खेती – बारी के साथ – साथ वह घर का भी कितना ध्यान रखता है। उन दोनों की कितनी सेवा करता है।

ठीक है कि बलराम उनका बेटा है किन्तु कितना मूर्ख है। काम के नाम से ही ज्वर आ जाता है। भेजो उत्तर दिशा की ओर तो दक्षिण चला जाता है। उसे तो ठीक से अपने चार खेतों का भी ज्ञान नहीं है और कल यदि उसे सारे खेत दे दिये जाएँ तो क्या होगा?

ठाकुर बीमार है। बलराम को उसकी ससुराल वालों ने बुलवा लिया है। अभी तक वह लौटकर नहीं आया। सूचना भिजवाई गई थी,परन्तु उसकी ससुराल से भी कोई नहीं आया। दूसरे दिन सुबह बलराम आ गया। ठाकुर ने सुना कि उसके साथ कुछ लोग भी आए हैं, पर अभी तक कोई सामने नहीं आया।

शाम के समय बलराम अपने दल के साथ ठाकुर के सामने आया। राम – राम के बाद ससुराल पक्ष के एक आदमी ने कहा कि ठाकुर अब तो थोड़े ही दिन के मेहमान हैं, इसलिए उन्हें अपनी सम्पत्ति बलराम के नाम लिख देनी चाहिए।

यह सुनकर ठाकुर को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इस बात की कल्पना उन्हें पहले से ही थी। बोले – “बात तो ठीक है, किन्तु बलराम अभी बच्चा है। काम – धाम की सूझ अभी उसे नहीं इतना सुनना था कि बलराम उबल पड़ा – “बापू की तो बुद्धि सठिया गई है। जब देखो तब मुझे बच्चाही समझते हैं और यह सब उस मोहन के कारण ही है। माँ भी उसका ही पक्ष लेती है.लेकिन आज तो बाबू को फैसला करना ही पड़ेगा।”

ठाकुर ने शीघ्र ही गाँव के पंच बुलवा लिए। फिर ठकुराइन से पूछा “मोहन कहाँ है?” ठकुराइन बोली – “वह तो दोपहर से ही जंगल चला गया है एक बैल बीमार है,उसी के लिए कुछ जड़ी – बूटी चाहिए थी।”

ठाकुर ने पंचों से बलराम की इच्छा कह सुनाई। सबको बड़ा अचम्भा हुआ,परन्तु बलराम के साथ उसकी ससुराल वालों को देखकर चुप रह गए। ठाकुर ने बात ही बात में बलराम से कहा – “बेटे जरा खलिहान जाकर देख तो आओ धान मिजाई का कुछ डौल है या नहीं।”

बलराम भागकर गया और आकर बताया कि खलिहान में दो नौकर बैठे बीड़ी पी रहे हैं। . ठाकुर ने कहा, “उनसे पूछ नहीं लिया बेटा कि कितनी देर बाद दौरी चलेगी?”

बलराम एक आज्ञाकारी पुत्र की तरह फिर गया और जाकर उसने सूचना दी कि अभी तो पूरे बैल ही नहीं आये।

ठाकुर ने फिर पूछा – “आखिर कितने बैल कम पड़ते हैं?” बलराम ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहा – “बापू मैं तो गिनती करना ही भूल गया। अभी जाकर पता लगाता

बलराम ने लौटकर गर्व के साथ बताया कि दो बैल कम पड़ते हैं। तभी ठाकुर ने पूछ लिया – “वहाँ अभी कुल जमा बैल कितने हैं?”

और लोगों ने देखा कि बलराम बैलों की गिनती करने फिर खलिहान की ओर भागा जा रहा है।

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तभी मोहन आ गया। उसने सबके पाँव छुए और चलने लगा। ठाकुर बोले – “बेटे,जरा पता तो लगाओ कि आज धान की मिजाई हो सकेगी या नहीं।”

तभी बलराम आकर बैलों की संख्या बताने लगा। सब चुप रहे। जरा देर बाद मोहन ने आकर बताया कि कंगलू और मंगलू दोनों मिलकर पैर डाल चुके हैं, ढेर लगा चुके हैं, दो बैलों की कमी थी सो अभी झगरू दे गया है। रात को खा – पीकर दौरी शुरू हो जायेगी। चिन्ता की कोई बात नहीं।

इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला। ठाकुर बारी – बारी से सबका चेहरा देखने लगे और अन्त में बलराम से बोले कुछ समझ में आया बेटे,तुममें और मोहन में क्या फर्क है? तूने कभी यह समझने की कोशिश ही नहीं कि जमीन मेहनत माँगती है। खेती बारी करना कोई है। बड़ी सूझबूझ का काम है। मोहन तुझसे छोटा है, पर कितना लायक है और तू कितना मागता है। खाता बारा करना काइहसा – ठट्रानहा नालायक है। पहले मेरा विचार था कि तुम दोनों को मैं अपनी सम्पत्ति का आधा – आधा हिस्सा दे दूँ, किन्तु अब एक शर्त यह भी रहेगी कि तुझे ईमानदार किसान बनना होगा, जिस प्रकार तू मोहन को देख रहा है, तभी तू आधे हिस्से का हकदार होगा।

ठाकुर का फैसला सबकी समझ में आ चुका था। आज यह बात पूरी तरह से सिद्ध हो गयी कि ठाकुर हमेशा न्याय की ही बात कहते हैं।।

(ख) निमाड़ी लोक कथा
झूठी मंजरी

एक थी चिड़ई,एक थो कबूतर,एक थो कुत्तो और एक थी मांजरी। सबइ न विचार करयो कि अपुण खीर बणावा।

कोई लायो लक्कड़,कोई लायो पाणी,कोई लायो शक्कर,कोई लायो दूध उन खीर तैयार हुई गई।

कहयो चलो सब खाई लेवां,मांजरी न कहयो – म्हारा तो डोला आई गयाज। उन उ डोला न पर पट्टी बांधी न सोई गई।

सबन अपणे अपणा वाटड की खीर खाई न बचेल का ढाकी न धरी दियो।

सब अपणा, अपणा काम न पर चली गया, तंवज मांजरी उठी उन सबका वाय की खीर खाई न डोला न पर पट्टी बांधी न सोई गई। सांझ ख जंव सबई काम पर सी आया तो देख्यो खीर को बासरण खाली थो।।

एक एक सी पूछयो क्यों भाई तुम न खीर खाई ज। . सबई न न मना करी दियो। मांजरी से पूछयो तो वा बोलो हऊँ काई जाणु म्हारो तो डोला आयाज। हऊ दिन भर सी पट्टी बांधी न पड़ोज। सब न तै करयो कि एक सूखा कुआ पर झूलो बांध्यो सब ओपर बारी – बारी सी बढी न कहे कि मन खीर होय तो झूलो टूटी जाये। जेन खीर खाई हायेगा ओकी बखत झूला टूटी जायेगा। पहल चिड़ी बठी बोली – “ची,ची,मन खीर खाई हो तो झूलो टूटी जाय,झूलो नो टूटयो।”

फिर कबूतर बठ्यो बोल्यो गुटरू गूं – गुटर गूं, मन खीर खाई होय तो झूलो टूटी जाय। झूलो ना टूटयो।

फिरी कुतरो बठ्यो बोल्यो – भों – भों, मन खीर खाई होय तो झूलो टूटी जाय। झूलो ना टूटयो।

फिर मांजरी बठी बोली – म्यांउ म्यांउ मन खीर खाई होय तो झूलो टूटी जाय।

झूलो तो टूटी गयो अन मांजरी सूखा कूआ म पड़ी गई। खेल खतम पैसा हजम।

खड़ी बोली में अनुवाद

झूठी बिल्ली

एक थी चिड़िया, एक था कबूतर, एक था कुत्ता और एक थी बिल्ली। सबने मिलकर विचार किया कि अपनी खीर बनायें।
कोई लाया लकड़ी,कोई लाया पानी,कोई लाया शक्कर,कोई लाया दूध और खीर बनकर तैयार हो गयी।

कहा, चलो सब खा लें।
बिल्ली ने कहा – “मेरी तो आँखें आई हैं” और वह आँखों पर पट्टी बाँध कर सो गई। सबने अपने – अपने हिस्से की खीर खाई और शेष बची हुई खीर को शाम के लिए ढाँक कर रख दिया। सब अपने – अपने काम पर चले गये। तब,बिल्ली उठी और सबके हिस्से की खीर खाकर, फिर आँखों पर पट्टी बाँधकर सो गई। शाम को जब सब काम पर से आये,तो देखा,खीर का बरतन खाली था। हर एक से पूछा – “क्यों भाई तुमने खीर खायी है?” सबने इनकार किया।

बिल्ली से पूछा,वह भी बोली – “मैं क्या जानू? मेरी आँखें आयी हैं,सुबह से पट्टी बाँधे पड़ी हूँ।” तब सबने विचार किया कि एक सूखे कुएँ पर कच्चे धागे से झूला बाँधा जाये। सब बारी – बारी से उस पर बैठे और कहें – “मैंने खीर खायी हो तो झूला टूट जाये।” जिसने खीर खायी होगी,उसकी बार झूला टूट जायेगा।

पहले चिड़िया बैठी – “ची – ची, मैंने खीर खायी हो, तो झूला टूट जाय।”

झूला नहीं टूटा। फिर कबूतर बैठा, बोला – “गुटर गूं – गुटर – गूं, मैंने खीर खायी हो, तो झूला टूट जाय।”

झूला नहीं टूटा। फिर कुत्ता बैठा, बोला – “भौं – भौं,मैंने खीर खायी हो, तो झूला टूट जाय।” झूला नहीं टूटा। फिर बिल्ली बैठी, बोली – “म्याऊँम्याऊँ,मैंने खीर खायी हो तो झूला टूट जाय।”

झूला था सो टूट गया और बिल्ली थी सो सूखे कुएँ में गिर गयी। खेल खतम—पैसा हजम।

(ग) मालवी कहानी
पीपल – तुलसी

कणी गाम माय सासू अर बऊ रेती थी। एक दिन सासू ने बऊ तो कियो के मू तीरथ कारवा सारू जरूरी हूँ,तुम अपणे याँ जो दूध दही होवे है ऊ बेची – बेची के रुपया भेलाकर लीयो। अतरो कइके सासू चलीगी।

चैत – बैसाख को माइनो आयो तो बऊ सगलो दूध – दई लई जई के पीपल अर तुलसी म सीची देती अर फेरी खाली बासन लइके घरे मेली देती। सास तीरथ करी के पीछो घरे अई तो बीने बऊती दूध अर दई का रुप्या मांग्या। बऊ ने क्यो के बई मूं तो सगलो दूध अर दई पीपल तुलसी म सींचती री हूँ,म्हारा कन रुप्या नी है। पण सासू ने कियो कई बी होवे जो – वी हो म्हारे तो रुप्या देणा पड़ेगा। तो बऊ पीपल अर तुलसी का कने जइके बैठीगी, अर वीनती बोलो के म्हारी सासू म्हार ती दूध दही का पइसा मागे है। पीपल – तुलसी ने कियो के बेटी – हम्हारा कन रुप्या – पइसा काँ है? इ भाटा कोंकरिया जरूर पड़िया है इनके भलाई – उठई के लई जा। बऊ सगला कोंकरिया भाटा उठई के घेर लई अर अई घरे लइके अपण कोठा माय मेली दिया। दूसरा दन सास ने फेरी रुप्या मांग्या तो बऊ ने अपणो कोठो खोल्यो। बऊ ने देख्यो कि सगला भले ही ले जाओ। सास कंकड़ – पत्थर लेकर खुशी – खुशी घर आयी और उसने कंकड़ – पत्थर लाकर अपने कमरे में रख दिये। दूसरे दिन जब कमरा खोला गया तो सास क्या देखती है कि सारा कमरा साँप और बिच्छुओं से भरा पड़ा है।

सास ने बहू से पूछा कि बहू, यह क्या बात है? तू जो कंकड़ – पत्थर उठाकर लायी थी। उनके तो हीरे – मोती बन गये और मैं जो कंकड़ – पत्थर उठाकर लायी। उनके साँप – बिच्छू बन गये? बहू ने सहज भाव से उत्तर दिया कि सास जी मैंने पीपल – तुलसी को शुद्ध मन से सींचा था, इसलिए कंकड़ – पत्थर के हीरे – मोती बन गये और आपने लालचवश ऐसा किया था अतः आपके लाये हुए कंकड़ – पत्थरों के साँप – बिच्छू बन गये।

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(6) दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रम दूरदर्शन

पर आजकल हर समय कोई न कोई कार्यक्रम दिखाया जाता है तथापि प्रमुख व लोकप्रिय कार्यक्रम इस प्रकार हैं –

सुबह सवेरे,समाचार,रंगोली,कृष्ण कथाएँ,मैट्रो समाचार, जय गणेश, चित्रहार, सांई बाबा, खिचड़ी,टॉम एण्ड जैरी,कलश,शांति, कृषि दर्शन,पोकेमॉन,विरासत,कुमकुम,शाका लाका बूम बूम, वाइल्ड डिस्कवरी, करम चन्द, कसौटी जिन्दगी की, कहानी घर – घर की, डिजनी जादू, सारे गा मा, हनुमान, सोनपरी,बूगी बूगी,ग्रेट इंडियन लामटा चेलेंज एवं अंताक्षरी। दूरदर्शन के कार्यक्रमों को देखकर छात्रों को उनका विवरण लिखने की प्रेरणा लिखित भाषा की शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य छात्रों को अपने भाव, विचार तथा अनुभवों को लिखित रूप में प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने योग्य बनाना है –

  1. छात्रों को सुन्दर, परिमार्जित एवं स्पष्टं लेख लिखने की प्रेरणा देना।
  2. छात्रों के शब्द – कोषं को सक्रिय रूप देना।
  3. छात्रों को विराम चिह्नों का उचित प्रयोग सिखाना और अपने भावों को अनुच्छेदों में सजाने का अभ्यास कराना।
  4. छात्रों की अवलोकन (निरीक्षण) शक्ति, कल्पना शक्ति और तर्क शक्ति का विकास करना।
  5. छात्रों की विचारधारा में परिपक्वता लाना।

दूरदर्शन एक ऐसा माध्यम है जिससे छात्रों की श्रवणेन्द्रिय के साथ दृश्येन्द्रियाँ भी क्रियाशील रहती हैं। छात्र दूरदर्शन में वार्ता सुनने के साथ कार्यक्रम में भाग लेने वालों को देख सकते हैं और वे उनके हाव – भाव के साथ बोलना, अभिनय करना,भाषण देना सीख कर स्वरों के उचित उतार – चढ़ाव के द्वारा बात को शीघ्र ग्रहण कर सकते हैं। वे दूरदर्शन के कार्यक्रमों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। क्योंकि दूरदर्शन ज्ञानवर्धन और मनोरंजन का सबल माध्यम है। वे सब कुछ समझकर अन्त में उस कार्यक्रम के समग्र प्रभाव की चर्चा करें।

शिक्षक छात्रों को दूरदर्शन के किसी विशिष्ट कार्यक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने को कहें। इससे वे लेखन – कौशल में तो पारंगत होंगे ही साथ ही उन्हें विवेचना और समीक्षा करने का भी अवसर मिलेगा। कार्यक्रम के गुण – दोष दोनों पर प्रकाश डालने के लिए छात्रों को स्वतन्त्र अवसर प्रदान करना होगा। इससे उनकी प्रतिभा के विकास के साथ चिन्तन,मनन एवं स्वाध्याय की प्रवृत्ति का पल्लवन तथा उन्नयन भी होगा।

(7) हिन्दी साहित्य का स्वतन्त्र पठन

मनुष्य का सबसे बड़ा अलंकार उसकी वाणी है। वाणी जितनी शुद्ध और परिष्कृत होती है, व्यक्ति उतना ही सुसंस्कृत समझा जाता है। सम्पूर्ण मानव समाज अपने भावों और विचारों को दो रूपों में व्यक्त करता है – मौखिक और लिखित। इन दोनों रूपों में भाषा उसका प्रमुख साधन है। यहाँ मौखिक अभिव्यक्ति सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकारों पर विचार करने हैं।

(i) टिप्पणियाँ
किसी सुने गए अथवा पढ़े गए भाषण, वार्तालाप, पत्र, लेख, कविता, ग्रंथ आदि देखे गए दृश्य तथा घटना पर अपना मत मौखिक अथवा लिखित रूप में प्रकट करना ही टिप्पणी कही जाती है। अकार की दृष्टि से टिप्पणी की यद्यपि कोई निश्चित सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, किन्तु संक्षिप्त टिप्पणी अच्छी समझी जाती है।

मोटे तौर पर टिप्पणियाँ तीन प्रकार की हो सकती-

(अ) कार्यालयीय टिप्पणी,
(ब) सम्पादकीय टिप्पणी,
(स) सामान्य टिप्प्णी।

(ii) प्रेरणाएँ
साहित्य में प्रेरणा से आशय उन रचनाओं अथवा कृतियों से है जो पाठक को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर उनका मार्गदर्शन करती हैं। इसके अन्तर्गत मुख्यतः उन कहानियों आदि को शामिल किया जाता है जो इस उद्देश्य को लेकर लिखी जाती हैं अथवा इस उद्देश्य को पूरा करती हैं। परन्तु इन कहानियों आदि के विषय में यह महत्त्वपूर्ण है कि ये इतनी बड़ी न हों कि पाठक पढ़ते – पढ़ते कहानी के उद्देश्य से भटक जाय। एक ही बैठक में पूरी पढ़ी जाने वाली कहानियाँ ही इसके लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

(8) हस्तलिखित पत्रिका तैयार करना

छात्र आपस में मिलकर हस्तलिखित पत्रिका तैयार कर सकते हैं जिसमें सर्वप्रथम सभी संकलित अथवा स्वयं के लिखे लेख,कहानियों,कविताओं के अतिरिक्त चुटकुले आदि भी हो सकते हैं,को सूचीबद्ध किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इस सूची में उसके लेखक अथवा उसके संकलनकर्ता का नाम दिया जा सकता है।।

इसके बाद सम्पादक की ओर से अपने साथियों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ पाठकों को इस पत्रिका से परिचित कराते हुए इसके लिखित अथवा संकलित लेखों आदि पर प्रकाश डाल सकते हैं। तत्पश्चात् इन लेखों आदि को बड़े रोचक रूप में समग्रता से प्रस्तुत किया जा सकता ध्यान रखने लायक बात है कि कोई भी लेख बहुत छोटा व बहुत ही बड़ा न हो जाय,जो पत्रिका में रोचकता समाप्त करे।

(9) क्षेत्रीय पत्र – पत्रिकाएँ

मालवा अंचल

  • इन्दौर – नई दुनिया,इन्दौर समाचार, नवभारत, दैनिक भास्कर, स्वदेश, भावताव, जागरण।
  • उज्जैन – विक्रम दर्शन, अवन्तिका, अग्नि बाण, भास्कर, प्रजादूत, जलती मशाल।
  • रतलाम – जनवृत,जनमत टाइम्स, प्रसारण, हमदेश।
  • नीमच – नई विधा। देवास – देवास दर्पण, देवास दूत।
  • मंदसौर – दशपुर दर्शन, कीर्तिमान, ध्वज।
  • शाजापुर – नन्दनवन।

बघेलखण्ड अंचल

  • रीवा – बांधवीय समाचार, आलोक, जागरण।
  • सतना – जवान भारत,सतना समाचार।
  • शहडोल – विंध्यवाणी, भारती समय,जनबोध।

बुन्देलखण्ड अंचल

  • कटनी – महाकौशल केशरी, भारती, जनमेजय।
  • सागर – न्यू राकेट टाइम्स, आचरण, राही, जन – जन की पुकार।
  • टीकमगढ़ – ओरछा टाइम्स।
  • छतरपुर – क्रान्ति कृष्ण,प्रचण्ड ज्वाला।
  • जबलपुर – नव भारत, नवीन दुनिया, युगधर्म, दैनिक भास्कर, नर्मदा ज्योति, देशबन्धु, लोकसेवा।

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निमाड़ अंचल

  • खण्डवा – विध्यांचल,लाजवाब।
  • बुरहानपुर – वीर सन्तरी।
  • बड़वानी – निमाड़ एक्सप्रेस।

छत्तीसगढ़ अंचल

  • बिलासपुर – लोकस्वर, नवभारत, भास्कर।
  • दुर्ग – ज्योति जनता, छत्तीसगढ़ टाइम्स।
  • रायपुर – देशबन्धु, नवभारत, भास्कर, स्वदेश।

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MP Board Class 12th Special Hindi पत्र-लेखन

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आधुनिक युग यद्यपि दूरभाष और मोबाइल संदेशों का है तथापि पत्र-लेखन का महत्त्व आज भी अक्षुण्ण है। आधुनिक युग में तो पत्र-लेखन ने एक कला का रूप धारण कर लिया है। पारिवारिक जीवन तथा सामाजिक जीवन के अनेक कर्तव्यों तथा उत्तर-दायित्वों का निर्वाह करने के लिए हमको प्रतिदिन अनेक प्रकार के पत्र लिखने पड़ते हैं। पारिवारिक पत्र स्नेह सम्बन्धों पर आधारित होते हैं तथा उनमें प्राय: अपनी व्यक्तिगत या परिवार सम्बन्धी बातें ही लिखी जाती हैं। अतः उनको लिखने में कोई कठिनाई नहीं होती तथा लिखने में विशेष सावधानियाँ भी नहीं रखनी पड़तीं। लेकिन जो पत्र सामाजिक, व्यावसायिक तथा व्यापारिक क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं, उनको लिखने में विशेष सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता होती है। पत्र हमारी भावनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति होता है। अभिव्यक्ति सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि (1) अपनी बात स्पष्ट रूप से लिखनी चाहिए। इसके लिए संक्षिप्तता पर ध्यान देना चाहिए। अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। आजकल प्रत्येक व्यक्ति व्यस्त है तथा वह समय का सदुपयोग करता है। अतः लम्बे पत्र पढ़ने का समय किसी के पास नहीं है। (2) सरल तथा प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग करना चाहिए। विद्वत्ता या पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए क्लिष्ट शब्दों या समास-प्रधान लम्बे-लम्बे वाक्यों का प्रयोग निरर्थक है। इससे लाभ होने की अपेक्षा हानि अधिक होने की सम्भावना होती है। वाक्य रचना ऐसी होनी चाहिए, जिससे पढ़ने वाला आपके आशय को अच्छी तरह से समझ सके।

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पत्र-लेखन की रूप-रेखा

  1. पत्र प्रेषक का पता और दिनांक।
  2. सम्बोधन।
  3. पत्र का विषय।
  4. अभिवादन।
  5. पत्र का मुख्य भाग।
  6. प्रेषक का आत्मबोधन (हस्ताक्षर से पूर्व प्रयुक्त शब्दावली)।
  7. प्रेषक के हस्ताक्षर और नाम।
  8. पता।

पत्र को ठीक से समझने के लिए उसे अग्रलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता

(1) पत्र प्रेषक का पता और दिनांक-इसके अन्तर्गत आप अपना पता और वह दिनांक लिखते हैं जिस दिन पत्र लिखा गया। ये दोनों बातें पत्र के दाहिने ओर सबसे ऊपर लिखी जाती हैं। अपना पता लिखते समय मकान का नम्बर एवं गली के नाम के बाद अल्प विराम (,) लगाना चाहिए तथा दूसरी पंक्ति में शहर या गाँव का नाम लिखना चाहिए और तब पूर्ण विराम लगाना चाहिए। पते के नीचे दिनांक लिखते समय दिनांक एवं महीना लिखकर अल्प विराम लगाना चाहिए। व्यापारिक पत्रों में इस सबको अब प्राय: बाईं ओर लिखा जाता है। जैसे-
MP Board Class 12th Special Hindi पत्र-लेखन img-1

(2) सम्बोधन-ये दो प्रकार के होते हैं—
(क) निजी अथवा व्यक्तिगत पत्रों के सम्बोधन,
(ख) अन्य पत्रों के सम्बोधन।

व्यक्तिगत पत्रों के लिए (बड़ों के लिए)-श्रद्धेय, परमपूज्य, आदरणीय, पूज्यपाद, माननीय मान्यवर; (स्त्रियों के लिए)-पूज्या, पूज्यपाद, पूजनीया,माननीया आदि।
सम्बोधन इस प्रकार भी लिखते हैं-श्रद्धेय गुरुवर,परमपूज्य पिताजी,आदरणीय माताजी, आदरणीय भ्रातृवर; (बराबर वालों को) -प्रियवर, प्रिय, भाई, मित्रवर, बन्धुवर; (बच्चों के लिए) -आयुष्मान, प्रियवर, परमप्रिय,प्रिय,चिरंजीव आदि।

व्यावसायिक एवं आधिकारिक पत्रों में पहले सम्बन्धित व्यक्ति का उल्लेख करते हैं, जिसको पत्र लिखा जाता है। जैसे

  • सेवा में,
  • प्रधानाचार्य,
  • शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
  • शिवपुरी।
  • इसके बाद नीचे महोदय, मान्यवर, प्रिय महोदय आदि लिखते हैं।

(3) पत्र का विषय-आधिकारिक पत्रों में प्रायः महोदय या प्रिय महोदय आदि के ऊपर पत्र का विषय लिखते हैं जिससे पत्र को सम्बन्धित व्यक्ति के पास भेजने में विभाग को सुविधा रहती है। अब व्यावसायिक पत्रों में भी इसका प्रयोग होने लगा है।

(4) अभिवादन-आधिकारिक एवं व्यावसायिक पत्रों में अभिवादन की परम्परा नहीं है। व्यक्तिगत पत्रों में; (बड़ों को) प्रणाम, सादर प्रणाम, चरण स्पर्श, सादर चरण स्पर्श, नमस्ते, नमस्कार आदि; (बराबर वालों को) नमस्ते, नमस्कार, जय राम जी की,जय हिन्द तथा; (छोटों को)-आशीर्वाद,शुभाशीष,प्रसन्न रहो, सौभाग्यवती रहो आदि लिखते हैं।

(5) पत्र का मुख्य भाग-पत्र का मुख्य भाग सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। व्यक्तिगत पत्रों में कुशल समाचार लिखने के बाद जो भी समाचार या सूचनाएँ देनी होती हैं,वे इसी भाग में होती हैं। व्यापारिक और (सरकारी) आधिकारिक पत्रों में संक्षेप में औपचारिकता का पूरा निर्वाह करते हुए अपनी बात कही जाती है। इस भाग की समाप्ति प्रायः कुछ वाक्यों या शब्दों से की जाती है। व्यक्तिगत पत्रों में ‘शेष फिर’, ‘शेष मिलने पर’, ‘प्रणाम सहित’, दर्शन की प्रतीक्षा में’;(बड़ों के लिए-आशीर्वाद सहित; (छोटों के लिए-साधुवाद आदि तथा व्यापारिक और आधिकारिक पत्रों में ‘सधन्यवाद’, धन्यवाद सहित’, ‘साभार’ आदि लिखते हैं।

(6) प्रेषक का आत्मबोधन (हस्ताक्षर से पूर्व प्रयुक्त शब्दावली)-निजी पत्रों में अपने सम्बन्ध के अनुसार पत्र लिखकर पत्र के अन्त में हस्ताक्षर से पूर्व एक या एक से अधिक सम्बन्ध द्योतक शब्दों का प्रयोग करते हैं। (बड़ों के लिए-आज्ञाकारी, विनीत, आपका दास, भवदीय, आपका सेवक, कृपाकांक्षी, स्नेहभाजन आदि; (बराबर वालों के लिए—आपका, आपका ही, तुम्हारा, सस्नेह तुम्हारा तथा (छोटों के लिए)-तुम्हारा शुभचिन्तक, शुभैषी, शुभेच्छु, शुभाकांक्षी आदि लिखते हैं। आवेदन पत्रों में भवदीय,प्रार्थी आदि लिखते हैं।

(7) प्रेषक के हस्ताक्षर और नाम बड़ों को लिखे गये पत्रों में विनम्रतापूर्वक प्रायः नाम लिखने की परम्परा है। नाम के साथ शर्मा, गुप्ता, तिवारी, सिंह आदि नहीं लिखा जाता। अन्य पत्रों में पूरा नाम लिखते हैं। व्यापारिक एवं आधिकारिक पत्रों एवं आवेदन-पत्रों में तो पूरा नाम अवश्य ही लिखा जाना चाहिए।

(8) पता-निजी पत्र के अन्त में पता नहीं लिखा जाता। अन्य पत्रों के अन्त में पता लिखा जाता है। पता ऊपर बताये अनुसार ही लिखें।

विभिन्न प्रकार के पत्रों में प्रयोग किये जाने वाले सम्बोधन, निवेदन आदि।
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यहाँ पर अभ्यास हेतु आवेदन-पत्रों, स्थानीय निकाय से सम्बन्धित पत्रों एवं सम्पादक के नाम पत्रों (अपनी रचना प्रकाशन हेतु, समसामयिक विषयों पर परिचर्चा तथा समसामयिक समस्याओं के समाधान हेतु पत्र) के कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं। इनके आधार पर विद्यार्थियों को पत्र-लेखन का अभ्यास करना चाहिए, जिससे वे इस कला में पारंगत हो सकें।

1. आवेदन-पत्र

प्रश्न 1.
किसी महाविद्यालय में व्याख्याता पद के लिए आवेदन-पत्र दीजिए।
उत्तर-
सेवा में,
प्राचार्य,
महात्मा गाँधी महाविद्यालय,
सागर (म.प्र)।

विषय : हिन्दी व्याख्याता पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन-पत्र।

मान्यवर,
दैनिक ‘नवभारत’ में दिनांक 11-4-20….. के अंक में प्रकाशित विज्ञापन के सन्दर्भ में आपके महाविद्यालय में हिन्दी व्याख्याता के रिक्त स्थान के लिए मैं आपकी सेवा में यह आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मैंने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है तथा विश्वविद्यालय की योग्यता-सूची में मुझे द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। इसी विश्वविद्यालय से मैंने पी-एच.डी.की उपाधि प्राप्त की है। मेरे शोध प्रबन्ध का विषय है—’नयी कविता के सन्दर्भ में मुक्तिबोध के काव्य का समग्र मूल्यांकन।’

मैं गत तीन वर्षों से जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय, जगदलपुर में हिन्दी व्याख्याता के पद पर कार्य कर रहा हूँ। यह स्थान मेरे गृह-नगर से अत्यधिक दूर है। अपनी पारिवारिक कठिनाइयों के कारण मैं सागर में ही कार्य करने का आकांक्षी हूँ।

मुझे विश्वास है कि मेरी शैक्षिक योग्यताएँ तथा अनुभव पर विचार करते हुए आप मुझे सेवा करने का अवसर प्रदान कर अनुग्रहीत करेंगे।

भवदीय
डॉ.सुरेन्द्र मोहन
50, इतवारी हिल्स, सागर (म.प्र)

दिनांक : 15-4-20….

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प्रश्न 2.
जिला शिक्षा अधिकारी को उसके अधीन सहायक शिक्षक के रिक्त पद पर नियुक्त किये जाने हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
जिला शिक्षा अधिकारी,
रायपुर (छत्तीसगढ़)।

विषय : सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन-पत्र।

महोदय,
दैनिक भास्कर’ में दिनांक 10-5-20…. को प्रकाशित विज्ञापन के सन्दर्भ में आपके अधीनस्थ सहायक शिक्षक पद के रिक्त स्थान पर नियुक्ति हेतु यह आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा मैंने वर्ष 20…. में रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से बी.ए. की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में 54% अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण की है।

मैंने वर्ष 20…. में बी.टी.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की है। मैं 23 वर्ष का एक स्वस्थ युवक हूँ तथा स्काउटिंग, रेडक्रास तथा प्राथमिक चिकित्सा में मैंने अनेक प्रमाण-पत्र प्राप्त किये हैं।

मुझे विश्वास है कि आप अपने अधीन सहायक शिक्षक पद पर मुझे नियुक्त कर सेवा करने का अवसर प्रदान कर अनुग्रहीत करेंगे।

भवदीय
जगदीश कुमार सिंह
363, मालवीय नगर,रायपुर

दिनांक : 17-5-20….

प्रश्न 3.
अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को निर्धन छात्र कोष से छात्रवृत्ति हेतु आवेदन-पत्र लिखिए। (2009, 12)
उत्तर-
सेवा में,
प्रधानाध्यापक,
महात्मा गाँधी विद्यालय,
रीवा।

विषय : निर्धन छात्र कोष से छात्रवृत्ति हेतु आवेदन-पत्र। महोदय,
आ है कि इस वर्ष विद्यालय द्वारा कक्षा 12 में पढ़ रहे कुछ निर्धन एवं मेधावी छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जायेंगी। इस सन्दर्भ में, मैं आपकी सेवा में अपना यह आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मैंने वर्ष 20…. में माध्यमिक शिक्षा मण्डल,मध्य प्रदेश की हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा विज्ञान तथा गणित विषयों में मैंने 80% से अधिक अंक प्राप्त किये हैं। कक्षा 11 की वार्षिक परीक्षा में मैंने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। मैं विद्यालय की ओर से जनपदीय क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में सक्रिय भाग लेता रहा हूँ।

मैं एक सामान्य कृषक परिवार से सम्बन्ध रखता हूँ। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मुझे पढ़ाने में मेरे पिताजी को कठिनाई हो रही है।

मुझे आशा है कि आप मेरे आवेदन-पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए छात्रवृत्ति प्रदान करने की महती कृपा करेंगे। इसके लिए मैं आपका आजीवन ऋणी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
राकेश मोहन तिवारी
कक्षा 12 (ब)

दिनांक : 10-7-20……

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय के प्राचार्य को विद्यालय में खेलों की समुचित व्यवस्था तथा पर्याप्त खेल-सामग्री उपलब्ध कराने के सम्बन्ध में आवेदन-पत्र लिखिए। [2013]
उत्तर-
सेवा में,
श्रीमान् प्राचार्य,
महात्मा गाँधी उच्च माध्यमिक विद्यालय,
इन्दौर (म.प्र)।

विषय : विद्यालय में खेलों की समुचित व्यवस्था तथा पर्याप्त खेल-सामग्री उपलब्ध कराने हेतु आवेदन-पत्र।

महोदय,
विनम्र निवेदन है कि हमारे विद्यालय में खेलों की व्यवस्था का हाल वर्तमान में काफी खराब है। न तो विद्यार्थी संख्या के अनुपात में खेल-सामग्री विद्यालय में मौजूद है और न ही विभिन्न खेलों के नियमित प्रशिक्षण की ही कोई व्यवस्था है। साथ ही, विद्यालय के शैक्षिक कैलेण्डर में भी खेलों के लिए कोई स्थान नहीं है। इसका दुष्परिणाम यह है कि विद्यार्थियों की खेल प्रतिभा का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है जबकि विद्यार्थी जीवन में खेलों के महत्व से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं।

अतएव आपसे नम्र प्रार्थना है कि आप अपने स्तर से क्रीडाध्यापक महोदय को आवश्यक निर्देश देते हुए विद्यालय में खेलों की समुचित व्यवस्था तथा पर्याप्त खेल-सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कहें। आपकी अति कृपा होगी।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रवेश सोलंकी
कक्षा 12 (अ)

दिनांक : 10-8-20…….

MP Board Solutions

प्रश्न 5.
सचिव माध्यमिक शिक्षा मण्डल, म.प्र., भोपाल को कक्षा 12वीं की अंक-सूची की द्वितीय प्रति भेजने के सम्बन्ध में आवेदन-पत्र लिखिए। (2009, 11, 15, 17)
उत्तर-
सेवा में,
सचिव, माध्यमिक शिक्षा मण्डल,म.प्र.,
भोपाल।

विषय : अंक-सूची की द्वितीय प्रति भेजने के सम्बन्ध में।

महोदय,
मेरी 12वीं परीक्षा 20….. की अंक-सूची खो गयी है। अतः मुझे द्वितीय प्रति भेजने का कष्ट करें। इसके लिए मैं 20 रुपये का बैंक ड्राफ्ट नं.37701 आपके नाम से भेज रहा हूँ।

मुझसे सम्बन्धित जानकारी निम्नानुसार है-
MP Board Class 12th Special Hindi पत्र-लेखन img-3

दिनांक : 17 जुलाई,20…..

विनीत
रवीन्द्र मोहन

प्रश्न 6.
पिता के स्थानान्तरण होने पर प्राचार्य को शाला त्याग-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
प्राचार्य,
आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,
टी.टी. नगर, भोपाल (म.प्र)।

विषय : शाला स्थानान्तरण-प्रमाण-पत्र (टी.सी) प्राप्त करने विषयक।

महोदय,
निवेदन है कि मेरे पिता का स्थानान्तरण भोपाल से छिंदवाड़ा हो गया है। अतः अब मैं वहीं पर अध्ययन करूँगा। आपसे प्रार्थना है कि मेरी शाला स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र शीघ्र देने की कृपा करें। मुझसे सम्बन्धित विवरण निम्नानुसार हैं
नाम : राजीव माथुर
पिता का नाम : श्री चन्द्रमोहन माथुर
कक्षा एवं वर्ग : 12 ‘ब’
प्रवेश वर्ष एवं कक्षा : 20….., 11वीं

दिनांक : 12-2-20…..

भवदीय
राजीव माथुर
7, हर्ष नगर,
भोपाल

प्रश्न 7.
अपने विद्यालय के प्राचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु आवेदन-पत्र लिखिए। [2010]
उत्तर-
सेवा में,
प्राचार्य, महात्मा गाँधी उच्च माध्यमिक विद्यालय
विदिशा (म.प्र)।

विषय : चरित्र प्रमाण-पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन-पत्र।

महोदय,
निवेदन है कि मेरा चयन पी.एम.टी. में हो गया है। प्रवेश के लिए आवश्यक कागजों में मुझे अन्तिम संस्था प्रमुख का चरित्र प्रमाण-पत्र लगाना आवश्यक है। मैंने इसी वर्ष आपके विद्यालय से 12वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। मेरा विस्तृत विवरण निम्नवत् है
नाम : संजय कुमार
कक्षा : 12 (स)
पिता का नाम : नीरज कुमार
छात्र रजिस्टर संख्या : 10/239

मैं कक्षा 6 से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता रहा हूँ। खेलों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं अन्य पाठ्य-सहगामी क्रिया-कलापों में भी मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता रहा हूँ और कई पुरस्कार जीतता रहा हूँ। मैंने सदैव अपने गुरुजनों,साथियों एवं विद्यालय के अन्य कर्मचारियों के साथ सम्मानित एवं भद्र व्यवहार किया है। मैं विद्यालय का एक अनुशासित छात्र रहा हूँ।

कृपया मुझे चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
संजय कुमार
75, मालवीय कुंज, विदिशा

दिनांक : 13-06-20…..

MP Board Solutions

प्रश्न 8.
उत्तर-पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन हेतु सचिव, माध्यमिक शिक्षा मण्डल, म. प्र., भोपाल को आवेदन-पत्र लिखिए। [2009, 12, 14, 16]
उत्तर-
सेवा में,
सचिव,
माध्यमिक शिक्षा मण्डल, म.प्र., भोपाल

विषय-उत्तर-पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन के सन्दर्भ में।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैंने हाल ही में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, भोपाल से कक्षा 10वीं की परीक्षा अनुक्रमांक 30708 के साथ अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की है किन्तु अंग्रेजी विषय में आशानुरूप अंक न आने के कारण मैं प्रथम श्रेणी नहीं पा सका हूँ। मेरी अंग्रेजी की परीक्षा काफी अच्छी हुई थी और मैंने शत-प्रतिशत प्रश्न हल किये थे। मेरे आंकलन के अनुसार मेरे कम-से-कम 90-95 अंक आने चाहिये थे, जबकि आये हैं मात्र 42.

अतः श्रीमान जी से विनम्र प्रार्थना है कि वे प्रार्थी की अंग्रेजी विषय की उत्तर-पुस्तिका खुलवाने व उसका पुनर्मूल्यांकन करवाने की व्यवस्था करें। आपकी अति कृपा होगी।

प्रार्थी
सौरभ सिंह
44, गाँधी कॉलोनी,
भोपाल

2. स्थानीय निकाय से सम्बन्धित
पत्र (शिकायती-पत्र)

शिकायती-पत्र साधारण जनता की ओर से सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों को लिखे जाते हैं। इसमें उनके अधीनस्थ कर्मचारियों की शिकायत की जाती है। यहाँ पर नमूने के लिए कुछ पत्र दिये जा रहे हैं।

प्रश्न 1.
नगर निगम अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिखिए, जिसमें मोहल्ले की नियमित सफाई न होने की बात कही गई हो। [2017]
उत्तर-
सेवा में,
अध्यक्ष,
नगर निगम, इंदौर।

विषय : मोहल्ले की सफाई के सम्बन्ध में।

महोदय,
निवेदन है कि मैं वार्ड क्रमांक चार का निवासी हूँ। इस मोहल्ले में सफाई का कार्य पूरीसरह से उपेक्षित है। नगर निगम के सफाई कर्मचारी 15 दिन में एक बार इस वार्ड में आते हैं। शेष दिनों में कूड़ा-कचरा गलियों तथा सड़कों पर बिखरा रहता है। इस मोहल्ले में नालियों की सफाई भी नियमित नहीं होती जिसके कारण मच्छरों के प्रकोप से बीमारियाँ फैलने का डर है। साथ ही स्थान- स्थान पर कूड़ा-कचरा फैला रहने से मोहल्ले की स्थिति नारकीय हो गई है।

आपसे विनम्र निवेदन है कि आप स्वयं इस मोहल्ले का निरीक्षण करें तथा सार्वजनिक हित में आप नगर निगम के कर्मचारियों को इस मोहल्ले की नियमित सफाई करने का निर्देश दें क्योंकि सफाई की उपेक्षा से मोहल्लेवासियों को बहुत कष्ट है तथा सफाई की समुचित व्यवस्था न होने पर वे आन्दोलन प्रारम्भ कर सकते हैं। कृपया इस शिकायत को प्राथमिकता के आधार पर निराकरण कराने का कष्ट करें। आपका अति आभारी रहूँगा।

भवदीय
रमेश साहू
54- शुभ कॉलोनी, इंदौर

दिनांक : 17 मार्च,20……

प्रश्न 2.
अपने नगर के पोस्ट मास्टर को मनीआर्डर न मिलने की शिकायत कीजिए।
उत्तर-
सेवा में,
पोस्ट मास्टर,
हैड पोस्ट ऑफिस,
होशंगाबाद।

विषय : मनीआर्डर न मिलने की शिकायत।

महोदय,
निवेदन है कि मैंने 20 अगस्त,20….. को 101:00 रुपये का मनीआर्डर अपनी बड़ी बहन श्रीमती आशारानी,54, सातवीं लाइन,इटारसी को भेजा था, जिसका रसीद क्रमांक 3370 है। यह मनीआर्डरदो माह बीत जाने पर भी उनको नहीं मिला। ऐसा लगता है कि आपके पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी की लापरवाही से वह मनीआर्डर खो गया है। रसीद मेरे पास सुरक्षित है। कृपया आप इस सम्बन्ध में छानबीन कीजिए अन्यथा जनता को पोस्ट ऑफिस की कार्य-प्रणाली पर सन्देह होगा। आप मनीआर्डर का भुगतान उपर्युक्त पते पर करायें,अथवा राशि मुझे लौटाने का कष्ट करें।

भवदीय
विष्णुकान्त तिवारी
नर्मदा मन्दिर मार्ग होशंगाबाद

दिनांक : 22-10-20…..

MP Board Solutions

प्रश्न 3.
परीक्षाकाल में ध्वनि विस्तारक यन्त्र (लाउडस्पीकर) के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु जिलाधीश को पत्र लिखिए। [2009, 15]
उत्तर-
सेवा में,
जिलाधीश,
उज्जैन (म.प्र)।

विषय : परीक्षा-अवधि में ध्वनि विस्तारक यन्त्र (लाउडस्पीकर) पर प्रतिबन्ध लगाने के सम्बन्ध में।

महोदय.
निवेदन है कि माध्यमिक शिक्षा मण्डल की परीक्षाओं का समय निकट है। हम छात्र अपने अध्ययन में व्यस्त हैं,परन्तु जगह-जगह लाउडस्पीकरों की आवाजों से हमारे अध्ययन में व्यवधान पड़ता है। इसके पूर्व महाविद्यालयों के छात्रों ने आपको एक प्रार्थना-पत्र इसी सम्बन्ध में दिया है। धार्मिक कार्यक्रमों,सभा और दुकानों पर निर्बाध रूप से लाउडस्पीकर बजाये जा रहे हैं। इससे ध्वनि-प्रदूषण होता है और हम एकाग्रचित्त होकर अध्ययन नहीं कर सकते। अतः नगर के हजारों छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए शीघ्रातिशीघ्र ध्वनि विस्तारक यन्त्रों के परीक्षा-अवधि में प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने सम्बन्धी आदेश जारी करें। आपकी अति कृपा होगी।

भवदीय
राजेश रावल
अध्यक्ष, छात्रसंघ
शास.बालक उ.मा.शाला, उज्जैन

दिनांक : 10 मार्च,20….

प्रश्न 4.
शिवपुरी के पोस्ट मास्टर को एक पत्र लिखकर कमलागंज मुहल्ले के डाकिए (पोस्टमैन) द्वारा नियमित डाक वितरण नहीं किये जाने की शिकायत कीजिए।
उत्तर-
सेवा में,
पोस्ट मास्टर, हैड पोस्ट ऑफिस,
शिवपुरी (म.प्र)।

विषय : कमलागंज मुहल्ले में डाक-वितरण की अनियमितता के सम्बन्ध में।

महोदय,
मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि मेरे मुहल्ले कमलागंज में क्षेत्र के पोस्टमैन द्वारा डाक का वितरण नियमित रूप से नहीं किया जा रहा है। इससे मुहल्लावासियों को अत्यधिक परेशानी हो रही है। आवश्यक पत्र देर से मिलने के कारण कभी-कभी बहुत नुकसान भी हो जाता है।

आशा है कि आप मुहल्लावासियों की परेशानी पर ध्यान देते हुए क्षेत्र के पोस्टमैन को . नियमित रूप से डाक वितरण किये जाने का निर्देश देंगे। आपकी अति कृपा होगी।

भवदीय
हरिशंकर वर्मा
105, कमलागंज, शिवपुरी

दिनांक : 15-2-20…..

प्रश्न 5.
नगरपालिका अध्यक्ष को जल की अनियमित पूर्ति के सम्बन्ध में शिकायती-पत्र लिखिए। [2013]
उत्तर-
सेवा में.
नगरपालिका अध्यक्ष,
सागर।

विषय : नगर में जल की अनियमित आपूर्ति के सम्बन्ध में।

महोदय,
मैं आपका ध्यान नगर की जल आपूर्ति की समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। गर्मी के इस मौसम में जबकि पानी की अधिक आवश्यकता होती है,नगर की जल आपूर्ति प्रायः ठप्प रहती है। प्रातः तथा सायं केवल एक-दो घण्टे ही नलों में पानी आता है तथा दबाव इतना कम होता है कि ऊँचे स्थानों पर रहने वालों को पानी मिल ही नहीं पाता। अनेक बार इस सम्बन्ध में पूर्व में भी अधिकारियों को लिखा गया, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। कृपया इस बार हमें निराश मत कीजिएगा। आपका आभारी रहूँगा।

भवदीय
नरेन्द्र कुमार
इतवारी बाजार, सागर

दिनांक : 15-5-20……

MP Board Solutions

प्रश्न 6.
नगर पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर सूचित कीजिए कि आपके मोहल्ले में चोरी की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, पुलिस गश्त बढ़ाई जाये। [2009, 11, 14]
उत्तर-
नगर पुलिस अधीक्षक,
ग्वालियर।

विषय : तानसेन नगर में चोरी की घटनाओं में वृद्धि के सम्बन्ध में।

महोदय,
मैं आपका ध्यान नवविकसित कॉलोनी तानसेन नगर में चोरी की घटनाओं की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। गत एक पखवाड़े से इस कॉलोनी में चोरी की अनेक घटनाएँ घट चुकी हैं तथा घटनाओं में कमी के स्थान पर निरन्तर वृद्धि ही होती जा रही है। इस कारण से कॉलोनी निवासी भय से त्रस्त हैं। चोरी की घटनाओं ने उनका रात-दिन का चैन छीन लिया है। . अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि कॉलोनी में रात्रिकालीन पुलिस गश्त को और अधिक सक्रिय बनाया जाये तथा पुलिसकर्मियों की पर्याप्त संख्या में तैनाती की जाये, जिससे हम नागरिक निश्चिन्त होकर अपना जीवन-यापन कर सकें।

भवदीय
पवन कुमार बंसल
सचिव, तानसेन नगर आवासीय संघ, ग्वालियर

दिनांक : 15 मार्च,20….

प्रश्न 7.
अपने जिले के जिलाधिकारी को अपने क्षेत्र में सिंचाई-सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए एक आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
जिलाधिकारी,
रीवा।

विषय : सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के सम्बन्ध में।

महोदय,
मैं आपका ध्यान जनपद के ग्रामीण क्षेत्र की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। चित्रकूट धार्मिक क्षेत्र होने के कारण पूरे देश में जितना प्रसिद्ध है,उतना ही आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में कृषि ही लोगों की आजीविका का एकमात्र साधन है, लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधाएँ न होने के कारण यह क्षेत्र कृषि में पिछड़ा हुआ है। क्षेत्र में यदि छोटे-छोटे बाँध तथा बड़े जलाशयों का निर्माण करके सिंचाई की अतिरिक्त सुविधाएँ उपलब्ध करा दी जायें तो इस क्षेत्र में कृषि की बहुत उन्नति होगी। इससे किसानों के साथ-साथ सरकार को भी राजस्व वृद्धि का लाभ प्राप्त होगा।

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप जिला योजना मण्डल तथा सिंचाई विभाग के अधिकारियों को क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं में विस्तार करने के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही प्रारम्भ करने का निर्देश प्रदान कर अनुगृहीत करें।

भवदीय
राजीव नारायण तिवारी
ग्राम सिबरी,तहसील रीवा

दिनांक : 23-1-20…..

3. सम्पादक के नाम पत्र

इन पत्रों के अन्तर्गत किसी समाचार-पत्र अथवा पत्रिका के सम्पादक को अपनी रचना प्रकाशन हेतु, समसामयिक विषयों पर परिचर्चा हेतु, समसामयिक समस्याओं के समाधान हेतु, किसी विषय पर जनता को अपने विचारों से अवगत कराने हेतु,खेलों पर अपनी राय प्रकट करने हेतु,टिप्पणी या आलोचना करने हेतु अथवा फिल्म या फिल्म जगत के लोगों के बारे में जानकारी देने हेतु पत्र लिखे जाते हैं।

यहाँ नमूने के लिए कुछ पत्र दिये गये हैं

प्रश्न 1.
स्थानीय समाचार-पत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखिए जिसमें उनसे अपनी रचना के प्रकाशन हेतु निवेदन किया गया हो।
उत्तर-
सेवा में,
सम्पादक,
दैनिक नवभारत,
भोपाल (म.प्र)।

विषय : रचना के प्रकाशन के सम्बन्ध में।

महोदय,
आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम से मैं समाज में व्याप्त नारी की दुर्दशा पर एक लेख भेज रहा हूँ। आशा है आप इसे प्रकाशित करने की कृपा करेंगे।

धन्यवाद सहित,
दिनांक : 20-05-20….

भवदीय
संजय कुमार सीठा
महाराणा प्रताप नगर, भोपाल

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
किसी स्थानीय समाचार-पत्र के सम्पादक को ‘सम्पादक के नाम पत्र’ कॉलम में प्रकाशन हेतु एक पत्र लिखिये जिसमें बिजली संकट से उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करते हुए क्षेत्र के प्रभारी मन्त्री से समस्या के निदान हेतु शीघ्र कार्यवाही किये जाने का निवेदन किया गया हो।
उत्तर-
सेवा में,
सम्पादक, दैनिक भास्कर,
भोपाल (म.प्र)।

विषय : बिजली संकट से उत्पन्न कठिनाइयों के सन्दर्भ में।

महोदय,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के लोकप्रिय कॉलम ‘सम्पादक के नाम पत्र के माध्यम से क्षेत्रीय प्रभारी मन्त्री के संज्ञान में यह लाना चाहता हूँ कि तानसेन नगर, भोपाल में बिजली प्रायः गुल रहती है। गर्मी के भीषण मौसम में दिनचर्या को सुचारु रूप से चलाना भी अत्यन्त दुष्कर है। अनेक बार क्षेत्रीय अभियन्ता से शिकायत की जा चुकी है लेकिन परिणाम शून्य है।
अत: मन्त्री जी से सानुरोध प्रार्थना है कि जनता की परेशानी को ध्यान में रखकर सम्बन्धित अधिकारियों को उचित निर्देश देने की कृपा करें।

सधन्यवाद,
दिनांक : 12-09-20….

भवदीय
कनिष्क
तानसेन नगर, भोपाल

प्रश्न 3.
किसी समाचार-पत्र के सम्पादक को ‘सम्पादक के नाम पत्र’ कॉलम में प्रकाशन हेतु एक पत्र लिखिए जिसमें शासकीय चिकित्सालय में निर्धन रोगियों के प्रति हो रही उपेक्षा को लेकर क्षेत्र के प्रभारी सचिव से शिकायत दर्ज की गई हो तथा उनसे इस समस्या के शीघ्रताशीघ्र निवारण हेतु निवेदन किया गया हो।
उत्तर-
सेवा में,
सम्पादक, हिन्दुस्तान,
भोपाल (म.प्र)।

विषय : निर्धन रोगियों के प्रति हो रही उपेक्षा के सन्दर्भ में।

महोदय,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के लोकप्रिय कॉलम ‘सम्पादक के नाम पत्र’ के माध्यम से क्षेत्रीय प्रभारी सचिव, शासकीय चिकित्सालय, भोपाल (म.प्र) के संज्ञान में यह लाना चाहता हूँ कि शासकीय चिकित्सालय, भोपाल में निर्धन रोगियों की चिकित्सा की उपेक्षा की जाती है। उन्हें यथा-समय कोई भी सम्बन्धित चिकित्सक देखने नहीं आता है और न ही उन्हें उचित एवं आवश्यक औषधियाँ ही प्रदान की जाती हैं।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि उचित एवं त्वरित कार्यवाही करते हुए कृपया शीघ्रताशीघ्र पीड़ित रोगियों को पर्याप्त चिकित्सा-सेवा व देखभाल सुनिश्चित करने का कष्ट करें।

सधन्यवाद,
दिनांक 15-12-20….

भवदीय
मोहन राव, अरेरा कॉलोनी,
भोपाल

विविध पत्र

प्रश्न 1.
आपके मित्र की रचना विद्यालय की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित हुई है। अतएव उसे बधाई देते हुए पत्र लिखिए तथा प्रकाशित रचना की एक प्रति भेजने का भी अनुरोध कीजिए। [2010]
उत्तर-
10/105, राष्ट्रीय नगर,
हरदा (म.प्र)।

प्रिय मित्र किशोर,
सप्रेम प्रणाम।
विद्यालय की वार्षिक पत्रिका ‘वाणी’ में तुम्हारी रचना ‘राष्ट्र-दीप’ के प्रकाशित होने का समाचार सुनकर मुझे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। वास्तव में,मुझे तुम्हारी इस प्रतिभा का भान ही नहीं था। इस हेतु मेरी बधाई स्वीकार करो। साथ ही, मैं तुम्हारी उक्त कविता को पढ़ने के लिए बेहद उत्सुक हूँ, इसलिए कृपया मुझे उसकी एक प्रति भेज देना। माताजी व पिताजी को चरण स्पर्श व भावना को स्नेह।

तुम्हारा
कपिल वाष्र्णेय

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प्रश्न 2.
अपने बड़े भाई के विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिए मित्र को निमन्त्रण-पत्र लिखिए। [2016]
उत्तर-
26, माधव कुंज,
धार।
10 जनवरी,20…..

प्रिय मित्र संतोष,
सस्नेह नमस्कार,
शुभ समाचार यह है कि मेरे बड़े भैया हर्ष कुमार का शुभ विवाह दिनांक 20 जनवरी, 20….. को होना निश्चित हुआ है। तुम तो जानते ही हो कि ऐसे शुभ अवसर पर तुम्हारा आगमन मेरे लिए कितना सुखद और आनन्ददायक होगा। तुम्हें इस विवाह में कम से कम चार दिन पूर्व जरूर आना होगा। पत्र के साथ निमन्त्रण-पत्र संलग्न है। तुम्हें प्रत्येक कार्यक्रम में शामिल होना है। मुझे तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा रहेगी।

पिताजी और माताजी को चरण स्पर्श एवं छोटू को बहुत-सा प्यार।

तुम्हारा अभिन्न
जितेन्द्र कुमार

MP Board Class 12th Hindi Solutions

MP Board Class 12th Special Hindi भाषा-बोध प्रश्नोत्तर

MP Board Class 12th Special Hindi भाषा-बोध प्रश्नोत्तर

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  • बहु-विकल्पीय

प्रश्न
1. वाक्य के प्रमुख गुण होते हैं
(अ) एक, (ब) दो, (स) तीन, (द) चार।

2. ‘वे सज्जन पुरुष आये हैं’ का शुद्ध रूप है
(अ) वह सज्जन पुरुष आया है, (ब) वह सज्जन आया है, (स) वे सज्जन आया है, (द) वे सज्जन आये हैं।

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3. सही वर्तनी है
(अ) परन्तु, (ब) परतुं, (स) पंरतु, (द) परतु।

4. सही वर्तनी है [2013]
(अ) रिचा, (ब) रीचा, (स) ऋचा, (द) ऋिचा।

5. सही शब्द है [2015]
(अ) आशीवाद, (ब) आर्शीवाद, (स) आशिर्वाद, (द) आशीर्वाद।

6. सही शब्द है
(अ) उज्ववल, (ब) उज्ज्वल, (स) उज्बवल, (द) उजव्वल।

7. ‘हमें पानी दो’ का शुद्ध रूप है [2016]
(अ) हमें पानी चाहिए, (ब) हमें पानी पीना है, (स) मुझे पानी दो, (द) मुझे पानी पीना है।

8. निम्नलिखित में से ‘विस्मयादिबोधक चिह्न’ है
(अ) ?, (ब) 1, (स) ;, (द)!.

9. निम्नलिखित में से ‘अर्द्ध विराम’ का चिह्न है
(अ) ?, (ब)।, (द)!.

10. (“) चिह्न है
(अ) पुनरुक्ति बोध चिह्न, (ब) लाघव चिह्न, (स) आदेश चिह्न, (द) हंस पद।

11. रचना के अनुसार वाक्य-भेद के होते हैं
(अ) दो प्रकार, (ब) तीन प्रकार, (स) सात प्रकार, (द) आठ प्रकार।

12. ‘आप दिल्ली जायेंगे’ है, एक
(अ) मिश्रित वाक्य, (ब) सरल वाक्य, (स) नकारात्मक वाक्य, (द) प्रश्नवाचक वाक्य।

13. ‘वह अच्छा खेला, परन्तु हार गया है, एक
(अ) संयुक्त वाक्य, (ब) सरल वाक्य, (स) नकारात्मक वाक्य, (द) प्रश्नवाचक वाक्य।

14. ‘भाषा’ शब्द की मूल क्रिया है
(अ) भाष, (ब) भष, (स) भोष, (द) भए।

15. मध्य प्रदेश में रीवा, सतना, सीधी, शहडोल इत्यादि की प्रमुख बोली है- [2014]
(अ) मालवी, (ब) निमाड़ी, (स) ब्रज, (द) बघेली।

16. राष्ट्रभाषा के लिए प्रयुक्त किये जाने वाला शब्द है
(अ) राज्यभाषा, (ब) सम्पर्क भाषा, (स) मातृभाषा, (द) विभाषा।

17. ‘आसन डोलना’ मुहावरे का अर्थ है
(अ) ऊपर से नीचे आना, (ब) नीचे से ऊपर जाना, (स) चंचल होना, (द) एक जगह से दूसरी जगह जाना।

18. ‘सब धान बाईस पसेरी’ का अर्थ है
(अ) बहुत सस्ता होना, (ब) बहुत महँगा होना, (स) अधिक से सुविधा, (द) अच्छे-बुरे को समान समझना।

19. ‘मुँह में राम बगल में छुरी’ का अर्थ है
(अ) कठोर स्वभाव, (ब) कपटपूर्ण व्यवहार, (स) झूठा दिखावा, (द) प्रचार करना।

20. ‘तन पर नहीं लत्ता पान खाए कलकत्ता’ का अर्थ है
(अ) बुरी आदत में पड़ना, (ब) बहुत गरीब, (स) झूठा दिखावा, (द) प्रचार करना।

21. ‘शत्रुता’ शब्द का विपरीत अर्थ है [2010]
(अ) मधुरता, (ब) मित्रता, (स) सुन्दरता, (द) मनुष्यता।

22. “कपड़ा’ शब्द का पर्यायवाची क्या है? [2017]
(अ) वसन, (ब) कनक, (स) पाहन, (द) पावन।
उत्तर-
1. (स), 2. (द), 3. (अ), 4.(स), 5. (द), 6. (ब), 7. (स), 8.(द), 9. (स), 10. (अ), 11. (ब), 12. (ब), 13. (अ), 14. (अ), 15. (द), 16. (ब), 17. (स), 18. (द), 19. (ब), 20. (स),
21. (ब), 22. (अ)।

  • रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. क्या भोपाल सुन्दर शहर है …
2. आह ……..” दर्द असहनीय है।
3. रचना के आधार पर वाक्य ……… प्रकार के होते हैं। [2014]
4. ‘एक पंथ … ‘ प्रसिद्ध मुहावरा है।
5. ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ का अर्थ …… है। [2016]
6. ‘दाल न गलना’ मुहावरे का अर्थ … है। [2017]
7. ‘आम के आम …’ प्रचलित लोकोक्ति है।
8. ‘अनेकों’ का शुद्ध …. होता है।
9. माधुर्यता का शुद्ध रूप …… है।
10. ‘नलनी’ का शुद्ध रूप ……..” है।
11. ‘अनुसुइया’ का शुद्ध रूप ………. है।
12. ‘सामर्थ’ का शुद्ध रूप ……… है।
13. ‘प्रेयसि’ का शुद्ध रूप ……..” है।
14. ‘यदि वह आता तो मैं चला जाता यह वाक्य ……… वाक्य है। [2010]
15. एक भाषा-क्षेत्र में कई ……… होती हैं।
16. जब बोली किसी कारण से महत्त्व प्राप्त कर लेती है तब वह ……” कहलाती है। [2015]
17. प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र की एक सर्वसम्मत ……..होती है।
18. राष्ट्रभाषा के लिए ……… भाषा शब्द भी प्रयुक्त होता है।
19. विचार एवं भाव-विस्तार की क्रिया को ……… भी कहते हैं।
20. ‘टेढ़ी खीर’ मुहावरे का अर्थ …. है। [2012]
उत्तर-
1. ?, 2. !, 3. तीन, 4. दो काज, 5. आवश्यकता से कम वस्तु, 6. सफल न होना, 7. गुठलियों के दाम, 8. अनेक, 9. माधुर्य, 10. नलिनी, 11. अनुसूया, 12. सामर्थ्य, 13. प्रेयसी, 14. सन्देहवाचक, 15. उप-बोलियाँ, 16. भाषा, 17. राष्ट्र भाषा, 18. सम्पर्क, 19. पल्लवन, 20. कठिन कार्य करना।

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  • सत्य/असत्य

1. शब्दों का कोई भी समूह वाक्य कहलाता है। [2014]
2. यह (,) अल्प विराम का चिह्न है।
3. विस्मय के लिए (!) विराम चिह्न का प्रयोग होता है।
4. ‘नाक रगड़ना’ का अर्थ ‘खुशामद करना है’।
5. ‘चिराग तले अँधेरा’ का अर्थ है-‘चिराग के नीचे अँधेरा’। [2011]
6. ‘कान भरना’ का अर्थ ‘चुगली करना है।
7. काला अक्षर भैंस बराबर का अर्थ साक्षर होता है। [2015]
8. ‘टेढ़ी खीर’ मुहावरे का अर्थ ‘खीर खाना है’।
9. ‘उपर्युक्त टिप्पणी संगत है।’ शुद्ध वाक्य है।
10. ‘क्या आप खाना खा लिये हैं।’ वाक्य अशुद्ध है।
11. ‘महत्त्व’ शब्द की वर्तनी शुद्ध है।
12. ‘कवियत्री’ शुद्ध वर्तनी में नहीं है।
13. ‘क्या मधु आयी थी?’ एक प्रश्नवाचक वाक्य है।
14. ‘मेरा लड़का बुद्धिमान है’ का निषेधवाचक वाक्य ‘मेरा लड़का मूर्ख नहीं है।
15. भाषा का सम्बन्ध मनुष्य की ध्वनियों से होता है। [2009]
16. राष्ट्र भाषा को अंग्रेजी में ऑफिशियल लैंग्वेज’ कहते हैं। [2009]
17. हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है।
18. मुहावरे तथा लोकोक्तियाँ समान नहीं हैं।
19. ‘अपने मुँह मियाँ मिठू बनना’ का अर्थ है-अपने मुँह को मिठू जैसा बनाना। [2010]
20. विचार एवं भाव-विस्तार, आलोचना,टीका-टिप्पणी या व्याख्या से भिन्न है।
21. गगन का पर्यायवाची वसुंधरा है। [2016]
उत्तर-
1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. असत्य, 8. असत्य, 9. सत्य, 10. सत्य, 11. सत्य, 12. सत्य, 13. सत्य, 14. सत्य, 15. सत्य, 16. असत्य, 17. सत्य, 18. सत्य, 19. असत्य, 20. सत्य, 21. असत्य।

  • सही जोड़ी मिलाइए

I.
1. तुम घर मत जाओ। [2016] – (अ) विस्मयादिबोधक
2. ‘हे राम ! क्या-क्या सहना पड़ेगा।’ वाक्य है – (ब) आज्ञावाचक वाक्य
3. ‘दाँत खट्टे करना’ का अर्थ है – (स) वाक्य
4. ‘द्वन्द’ की शुद्ध वर्तनी है – (द) परास्त करना
5. पूर्ण विचार व्यक्त करने वाला शब्द [2009] – (इ) द्वन्द्व
उत्तर-
1.→ (ब),
2.→ (अ),
3.→ (द),
4.→ (इ),
5.→ (स)।

II.
1. तुम यहाँ आओ। [2017] – (अ) आज्ञावाचक
2. ‘एक मात्र सहारा’ के लिए मुहावरा है – (ब) बिखर जाना
3. ‘तीन तेरह होना’ का अर्थ है – (स) अन्धे की लकड़ी
4. ब्रज [2014] – (द) दर्शनशास्त्री
5. दर्शनशास्त्र को जानने वाला [2010, 15] – (इ) बोली
उत्तर-
1. → (अ),
2. → (स),
3. → (ब),
4. → (इ),
5. → (द)।

  • एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
जिस वाक्य में एक ही संज्ञा और क्रिया का प्रयोग होता है, उसे कौन-सा वाक्य कहते हैं? [2009]
उत्तर-
सरल या साधारण वाक्य।

प्रश्न 2.
जिस वाक्य में एक उद्देश्य तथा एक विधेय होता है, वह कैसा वाक्य कहलाता [2013]
उत्तर-
सरल या साधारण वाक्य।

प्रश्न 3.
‘जिसका कोई शत्रु न हो’ के लिए एक शब्द क्या है? [2011]
उत्तर-
अजातशत्रु।

प्रश्न 4.
‘प्रमाणिक’ का शुद्ध रूप क्या होगा?
उत्तर-
प्रामाणिक।

प्रश्न 5.
‘लक्ष्मीबाई एक तेजस्वी नारी थी’-यह वाक्य शुद्ध है अथवा अशुद्ध? [2011]
उत्तर-
अशुद्ध।

प्रश्न 6.
‘वह गुणवान महिला है’ का शुद्ध वाक्य क्या होगा? [2014]
उत्तर-
वह गुणवती महिला है।

प्रश्न 7.
‘राम घर पर है’ का सन्देहवाचक रूप क्या होगा?
उत्तर-
शायद राम घर पर है।

प्रश्न 8.
‘बच्चे सुन्दर चित्र बना रहे हैं’ का आज्ञावाचक रूप क्या होगा?
उत्तर-
बच्चो ! सुन्दर चित्र बनाओ।

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प्रश्न 9.
जब बोली किन्हीं कारणों से महत्त्व प्राप्त कर लेती है, तो क्या कहलाने लगती है?
उत्तर-
भाषा।

प्रश्न 10.
घर के सदस्य अपने विचारों का आदान-प्रदान किस भाषा में करते हैं? [2012]
उत्तर-
मातृभाषा में।

प्रश्न 11.
बघेली बोली किस क्षेत्र में बोली जाती है? [2016]
उत्तर-
बधेली बोली मध्य प्रदेश के रीवा,सतना, सीधी, बालाघाट, शहडोल इत्यादि क्षेत्रों में बोली जाती है।

प्रश्न 12.
मालवी बोली मध्य प्रदेश के किन-किन जिलों में बोली जाती है? कोई दो जिलों के नाम लिखिए। [2017]
उत्तर-
(1) देवास,
(2) रतलाम।

प्रश्न 13.
छोटे-छोटे वाक्यांश क्या कहलाते हैं?
उत्तर-
मुहावरे।

प्रश्न 14.
‘उल्टी गंगा बहाना’ का क्या अर्थ है? [2011]
उत्तर-
विपरीत काम करना।

प्रश्न 15.
‘गढ़े मुर्दे उखाड़ना’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
पुरानी बातें याद करना।

प्रश्न 16.
विचार एवं भाव-विस्तार की क्रिया को और क्या कहते हैं?
उत्तर-
पल्लवन।

प्रश्न 17.
जिसकी कल्पना न की जा सके। [2010]
उत्तर-
कल्पनातीत।

(ख) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए [2015]
कुसंग, अज्ञ, अभ्यस्त।
उत्तर-
कुसंग = सत्संग,अज्ञ = विज्ञ,अभ्यस्त = अनअभ्यस्त।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित तद्भव शब्दों को तत्सम में बदलिए। [2015]
पाथर, औगुन, मच्छी।
उत्तर-
पाथर = प्रस्तर, औगुन = अवगुण, मच्छी = मत्स्य।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक शब्द लिखिए [2015]
(i) जिसके आने की तिथि मालूम न हो।
(ii) आयुर्वेदिक औषधियों से इलाज करने वाला।
(iii) कविताएँ रचने वाला।
उत्तर-
(i) अतिथि,
(ii) वैद्य,
(iii) कवि।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
(1) आप लोग अपनी बात कहें।
(2) आपको चलना हो तो चलिए।
उत्तर-
(1) आप अपनी बात कहें।
(2) आपको अगर चलना है तो चलिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अवतरण को उचित विराम-चिह्न का प्रयोग करते हुए पुनः लिखिए
कैसा अकेला-सा एकटक देखता रहता है जानते हो क्यों नहीं जानते बात यह है कि एक बार रजनीबाला अपने प्रियतम प्रभात से मिलने चली गहरे नीले कपड़े पहनकर जिसमें सोने के तारे टँके थे?
उत्तर-
कैसा अकेला-सा एकटक देखता रहता है। जानते हो क्यों? नहीं जानते? बात यह है कि एक बार रजनीबाला अपने प्रियतम प्रभात से मिलने चली, गहरे नीले कपड़े पहनकर, जिसमें सोने के तारे टँके थे।

प्रश्न 6.
निम्न अवतरण में उचित विराम चिह्न लगाइए राम अरे भाई तुम बैठे-बैठे क्यों रो रहे हो श्याम लज्जित होकर अभी एक पत्र से पता चला है कि मैं परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहा राम क्यों निराश होते हो विश्वास रखो तुम निश्चय ही भविष्य में सफल होगे।
उत्तर-
राम-“अरे ! भाई तुम बैठे-बैठे क्यों रो रहे हो?” श्याम (लज्जित होकर)-“अभी एक पत्र से पता चला है कि मैं परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहा।” राम-“क्यों निराश होते हो? विश्वास रखो, तुम निश्चय ही भविष्य में सफल होगे।”

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प्रश्न 7.
निम्न अवतरण में उचित विराम चिह्न लगाइए हमदर्दी क्या ऐसे कहकर दिखायी जाती है हाय-हाय बेचारी के पिता को जेल हो गयी आपस में दबी-दबी जबान से कहती इतने बड़े लोग भी चोरी करते हैं तभी ठाठ थे आशाजी के मेरा जी होता कि चीख-चीख कर सबसे कहूँ कि पप्पा ने कुछ नहीं किया।
उत्तर-
हमदर्दी क्या ऐसे कहकर दिखायी जाती है। “हाय-हाय ! बेचारी के पिता को जेल हो गयी।” आपस में दबी-दबी जबान से कहती है-“इतने बड़े लोग भी चोरी करते हैं? तभी ठाठ थे आशाजी के !” मेरा जी होता, चीख-चीख कर सबसे कहूँ कि पप्पा ने कुछ नहीं किया।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों को उनके समक्ष दिये गये निर्देश के अनुसार परिवर्तित कीजिये
(1) सत्य की सदा जीत होती है। (प्रश्नवाचक)
(2) यह शाम कितनी सुहावनी है? (विस्मयबोधक)
उत्तर-
(1) क्या सत्य की सदा जीत होती है?
(2) अहा ! यह शाम कितनी सुहावनी है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए
(1) परिश्रमी व्यक्ति की सभी प्रशंसा करते हैं।
(2) वह विद्यालय आकर शिक्षक से मिला।
उत्तर-
(1) जो व्यक्ति परिश्रमी होता है, उसकी सभी प्रशंसा करते हैं।
(2) वह विद्यालय आया और शिक्षक से मिला।

प्रश्न 10.
निर्देशानुसार वाक्यों का परिवर्तन करो
(1) हमें चाहिए केवल बातें ही न बनाएँ अपितु कुछ करके भी दिखाएँ। (सामान्य वाक्य)
(2) सच्चरित्र व्यक्ति को सभी चाहते हैं। (मिश्र वाक्य में)
उत्तर-
(1) बातें न बनाते हुए हमें कुछ करके भी दिखाना चाहिए।
(2) जो व्यक्ति सच्चरित्र होता है,उसे सभी चाहते हैं।

प्रश्न 11.
हिन्दी की अतिरिक्त संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त दो भाषाओं के नाम लिखिए। उत्तर-(1) मराठी,(2) गुजराती। प्रश्न 12. विभाषा किसे कहते हैं?
उत्तर-
यह बोली का कुछ विकसित प्रारूप है। भाषा की अपेक्षा छोटे क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जाती है। जैसे-अवधी तथा ब्रजभाषा।

प्रश्न 13.
मध्य प्रदेश की दो प्रमुख बोलियों के नाम लिखिए। (2009, 12)
उत्तर-
(1) छत्तीसगढ़ी,
(2) मालवी।

प्रश्न 14.
बुन्देली एवं मालवी मध्य प्रदेश के किन-किन भागों में बोली जाती है? [2009]
उत्तर-
बुन्देली-दतिया, टीकमगढ़, सागर, छतरपुर, जबलपुर। मालवी-देवास, इन्दौर, धार,उज्जैन,रतलाम।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य प्रयोग कीजिए
(1) खाक छानना,
(2) पट्टी पढ़ाना।
उत्तर-
(1) नौकरी के लिए वह खाक छानता फिर रहा है।
(2) आपने राकेश को क्या पट्टी पढ़ा दी है, वह घर जाने का नाम ही नहीं लेता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित लोकोक्तियों के अर्थ लिखिए
(1) आँख के अंधे नाम नयनसुख,
(2) नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
उत्तर-
(1) आंख के अंधे नाम नयनसुख-गुण के विपरीत नाम।
(2) नाच न जाने आँगन टेढ़ा-काम न जानना और बहाना बनाना।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए
(1) अपना उल्लू सीधा करना,
(2) उन्नीस-बीस होना।
उत्तर-
(1) अपना उल्लू सीधा करना-अपना काम निकालना।
(2) उन्नीस-बीस होना-मामूली अन्तर।

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य प्रयोग कीजिए
(1) गाल बजाना,
(2) जान पर खेलना।
उत्तर-
(1) गाल बजाने से कुछ नहीं होता, काम तो करने से ही होता है।
(2) भारतीय सैनिक देश की रक्षा के लिए जान पर खेल जाते हैं।

प्रश्न 19.
‘नाक नचाना’ का अर्थ बताते हुए वाक्य में प्रयोग कीजिये
उत्तर-
नाक नचाना (तंग करना)-चिन्मय अपनी माँ को सारे दिन नाक नचाता है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित लोकोक्ति का अर्थ वाक्य प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए आगे नाथ न पीछे पगहा।
उत्तर-
तुम्हारे तो आगे नाथ न पीछे पगहा, इसीलिए घूमते रहते हो।

प्रश्न 21.
‘कान देना’ मुहावरे का अर्थ वाक्य प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शिक्षकों की बातों पर कान देना आवश्यक है।

प्रश्न 22.
‘सिर पीटना का वाक्य में प्रयोग करके अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अब सिर पीटने से क्या होता है,सास माल तो चला गया।

प्रश्न 23.
‘चाँदी का जूता मारना’ लोकोक्ति का सही अर्थ बताइये।
उत्तर-
चाँदी का जूता मारना-पैसे के बल पर काम कराना।

प्रश्न 24.
‘आग में घी डालना’ मुहावरे का अर्थ वाक्य प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
श्याम ने आग में घी डालकर झगड़ा बढ़ा दिया नहीं तो दोनों शान्त हो रहे थे।

प्रश्न 25.
भाव विस्तार से क्या आशय है?
उत्तर-
सूत्र रूप में कही गई बात को विस्तार से समझाना, भाव विस्तार कहलाता है।

प्रश्न 26.
भाव विस्तार की क्या उपयोगिता है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
भाव विस्तार से गूढ कथन का अर्थ उजागर होता है। उस कथन के सभी पक्ष समझ में आ जाते हैं।

(ग) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में निहित अशुद्धियों को दूर कर उनके व्याकरण-सम्मत शुद्ध रूप लिखिए
(1) कर्मचारी शासन के अधीनस्थ हैं।
(2) मैने खेलते हुए दो गायों को आते देखा।
(3) उसने उधर देखा और बोला।
उत्तर-
(1) कर्मचारी शासन के अधीन हैं।
(2) जब मैं खेल रहा था, तब मैंने दो गायों को आते देखा।
(3) उसने उधर को देखा और बोला।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिये
(1) तुमने अपना सभी काम समय पर करना चाहिए।
(2) आयातित वस्तु गिनती कर रखनी चाहिए।
(3) सुन्दरी बालिका से गाने को कहो।।
(4) यह परिमार्जित है, और व्याकरणसम्मत है।
उत्तर-
(1) तुम्हें अपना सभी काम समय पर करना चाहिए।
(2) आयातित वस्तुएँ गिनकर रखनी चाहिए।
(3) सुन्दर बालिका से गाने को कहा।
(4) यह परिमार्जित और व्याकरणसम्मत है।

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प्रश्न 3.
निम्नांकित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
(1) महादेवी वर्मा विद्वान् महिला थीं।
(2) गाँधीजी पक्के भक्त थे ईश्वर के।
(3) लड़के ने काम करके स्कूल गया।
(4) अनेक सिनेमा के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी।
उत्तर-
(1) महादेवी वर्मा विदुषी महिला थीं।
(2) गाँधीजी ईश्वर के पक्के भक्त थे।
(3) लड़के काम करके स्कूल गये।
(4) सिनेमा के अनेक कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश को समचित विराम चिह्न का प्रयोग करते हए लिखिए मेरी उपेक्षा से उस विदेशी को चोट पहुंची यह सोचकर मैंने अपनी नहीं को और अधिक कोमल बनाने का प्रयास किया मुझे कुछ नहीं चाहिए भाई चीनी भी विचित्र निकला हमको भाय बोला है तब जरूर लेगा जरूर हाँ होम करते हाथ जला वाली कहावत हो गयी विवश कहना पड़ा देखू तुम्हारे पास है क्या चीनी बरामदे में कपड़े का गट्ठर उतारता हुआ कह चला भोत अच्छा सिल्क लाता है सिस्तर चाइना सिल्क क्रेप बहुत कहने सुनने के उपरान्त दो मेजपोश खरीदना आवश्यक हो गया।
उत्तर-
मेरी उपेक्षा से उस विदेशी को चोट पहुँची, यह सोचकर मैंने अपनी ‘नहीं’ को और अधिक कोमल बनाने का प्रयास किया, “मुझे कुछ नहीं चाहिए भाई !” चीनी भी विचित्र निकला, “हमको भाय बोला है, तब जरूर लेगा-जरूर हाँ?’ ‘होम करते हाथ जला’ वाली कहावत हो गयी-विवश कहना पड़ा-‘देखू तुम्हारे पास है क्या?’ ‘चीनी बरामदे में कपड़े का गठ्ठर उतारता हुआ कह चला-“भोत अच्छा सिल्क लाता है सिस्तर ! चाइना सिल्क, क्रेप …… ” बहुत कहने-सुनने के उपरान्त दो मेजपोश खरीदना आवश्यक हो गया।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित गद्यांश को विराम-चिह्नों का समुचित प्रयोग करते हुए लिखिए छाया, यह काव्य बड़ी लगन का फल है कल मैं इसे सम्राट की सेवा में ले जाऊँगा और फिर जब मैं उस सभा में इसे सुनाना आरम्भ करूँगा तब सारी उज्जयिनी की आँखें मेरे ऊपर होंगी महाकाव्य महाकाव्य महाकाव्य उस समय सम्राट गदगद हो जायेंगे और छाया बरसों बाद दनिया पढ़ेगी कवि कुल शिरोमणि शेखर कृत भोर का तारा हा हा हा।
उत्तर-
“छाया ! यह काव्य बड़ी लगन का फल है। कल मैं इसे सम्राट की सेवा में ले जाऊँगा और फिर, जब मैं उस सभा में इसे सुनाना आरम्भ करूँगा, तब ………… तब सारी उज्जयिनी की आँखें मेरे ऊपर होंगी। महाकाव्य ! महाकाव्य !! महाकाव्य !!! उस समय सम्राट गद्-गद् हो जायेंगे और छाया ! बरसों बाद दुनिया पढ़ेगी-कविकुल-शिरोमणि शेखरकृत भोर का तारा हा ! हा !! हा !!!”

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिये
(1) श्याम धनी व्यक्ति है। (नकारात्मक)
(2) भाग्यवादी होने से काम नहीं चलता। (प्रश्नवाचक)
(3) यह सुहावना प्रातःकाल है। (विस्मयबोधक)
उत्तर-
(1) श्याम निर्धन व्यक्ति नहीं है।
(2) क्या भाग्यवादी होने से काम नहीं चलता?
(3) अहा ! यह कैसा सुहावना प्रातःकाल है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित वाक्यों को एक मिश्रित वाक्य में रूपान्तरित कीजिये
(1) सब पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हैं।
(2) वे दूसरों की स्वतन्त्रता में बाधक न हों।
(3) वे राजकीय नियमों का पालन करते रहें।
उत्तर-
सब पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हैं, जब तक दूसरों की स्वतन्त्रता में बाधक न हों और राजकीय नियमों का पालन करते रहें।।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्य-युग्मों को संज्ञा अथवा विशेषण उपवाक्य में बदलिए
(1) राष्ट्र के लिए यह आवश्यक नहीं है; उसके रहने वाले एक जाति व सम्प्रदाय के हों।
(2) गाँधीजी ने कहा, हमें सत्य और अहिंसा का पालन करना चाहिए।
(3) साम्प्रदायिकता बुरी है; मनुष्य-मनुष्य के बीच में वह भेदभाव उत्पन्न करे।
उत्तर-
(1) राष्ट्र के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके रहने वाले एक जाति व सम्प्रदाय के हों।
(2) गाँधीजी ने कहा है कि हमें सत्य और अहिंसा का पालन करना चाहिए।
(3) वह साम्प्रदायिकता बुरी है जो मनुष्य-मनुष्य के प्रति भेदभाव उत्पन्न करे।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिये
(1) मैं साकेत के कवि को नहीं जानता हूँ। (मिश्रित वाक्य)
(2) धातुओं में सोने से अधिक कीमती कोई धातु नहीं है। (विधिवाचक वाक्य)
उत्तर-
(1) साकेत के कवि कौन हैं,मैं नहीं जानता।
(2) धातुओं में सोना सबसे अधिक कीमती धातु है।

प्रश्न 10.
विभाषा किसे कहते हैं? किन्हीं दो विभाषाओं के नाम लिखिए।
अथवा
विभाषा किसे कहते हैं? विभाषा की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। [2009]
उत्तर-
विभाषा-बोली का कतिपय अधिक विकासमान रूप जिसके अन्तर्गत साहित्य का सृजन होता है,उसे विभाषा के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यथा-अवधी एवं ब्रज।

विशेषताएँ-
(1) विभाषा का क्षेत्र बोली से अधिक व्यापक होता है परन्तु भाषा से कम व्यापक होता है।
(2) यह किसी प्रदेश के बड़े हिस्से में सामाजिक व्यवहार या साहित्य में प्रयोग की जाती है।

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प्रश्न 11.
विभाषा एवं बोली में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) जब बोली किसी कारण महत्त्व प्राप्त करती है तो उसे भाषा कहा जाता है।
(2) प्रत्येक व्यक्ति की भाषा स्वतन्त्र होती है।
(3) एक भाषा के अन्तर्गत कई उप-बोलियाँ होती हैं।

प्रश्न 12.
मातृभाषा किसे कहते हैं एवं मातृभाषा का ज्ञान होना क्यों आवश्यक है? [2010, 14]
अथवा
मातृभाषा किसे कहते हैं? परिभाषा लिखिए। [2015]
उत्तर-
जिस क्षेत्र विशेष में जो भाषा बोली जाती है तथा बालक अपनी माँ के मुँह से जो सुनता,सीखता है,वही मातृभाषा है। सर्वप्रथम मातृभाषा ही शिशु के इस दुनिया में आँख खोलने के साथ ही कानों में पड़ती है। वास्तव में,मातृभाषा पालने की भाषा है,जो माता-पिता, परिवार और स्थानीय परिवेश में बोली जाती है।

मातृभाषा सीखने और समझने में सरल लगती है। इसके माध्यम से परिवार, समाज, रिश्तेदारों में बातचीत करना सरल होता है और भावों की अभिव्यक्ति सहज होती है। अतः मातृभाषा का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 13.
राजभाषा किसे कहते हैं? राजभाषा की दो विशेषताएँ लिखिए। [2013]
उत्तर-
राजकीय काम-काज में प्रयोग की जाने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है। राजभाषा राज्य के प्रशासनिक कार्यों में अपनाई जाती है। प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को राजभाषा का ज्ञान होना आवश्यक होता है। भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की राजभाषा है किन्तु जब तक सभी राज्यों को हिन्दी का पूरा ज्ञान न हो तब तक प्रदेश की भाषा के साथ-साथ हिन्दी का अनुवाद स्वीकार्य है।

राजभाषा की विशेषताएँ
(1) राजभाषा किसी भी देश के राजकीय काम-काज की भाषा होती है।
(2) राजभाषा की मान्यता मिलने से उस भाषा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 14.
राष्ट्रभाषा किसे कहते हैं? [2015]
राष्ट्रभाषा की विशेषताएँ लिखिए। [2009, 16]
उत्तर-
राष्ट्रभाषा प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र की एक सर्वसम्मत राष्ट्रभाषा होती है। राष्ट्रभाषा में राष्ट्र की संस्कृति, साहित्य और इतिहास की प्रेरणाएँ निहित होती हैं, जो जनजीवन को प्रभावित करती हैं। राष्ट्रभाषा के लिए सम्पर्क भाषा’ शब्द भी प्रयुक्त होता है। राष्ट्रभाषा उसी तरह महत्वपूर्ण होती है, जैसे-राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज अथवा राष्ट्रचिह्न। वह पूरे राष्ट्र की संस्कृति की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी भाषा से उस व्यक्ति,समाज व देश का व्यक्तित्व झलकता है।

राष्ट्रभाषा की विशेषताएँ
(1) राष्ट्रभाषा विकसित होती है।
(2) यह देश के बहुसंख्यक लोगों की भाषा होती है।
(3) राष्ट्र भाषा को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।
(4) देश की अन्य भाषाओं से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 15.
भाषा एवं विभाषा में कोई दो अन्तर लिखिए। (2000, 01, 02, 11)
उत्तर-
(1) भाषा का क्षेत्र विशद् होता है तथा इसके प्रचलन का क्षेत्र भी व्यापक होता है, जबकि विभाषा प्रान्त विशेष की परिधि तक संकुचित रहती है।
(2) भाषा का प्रयोग राजकार्य में होता है। विभाषा मात्र साहित्य एवं बोलचाल तक सीमित है।

प्रश्न 16.
भाषा और बोली में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2012, 14, 17]
उत्तर-
(1) भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है, जबकि बोली का क्षेत्र सीमित होता है।
(2) भाषा का साहित्य प्रचुरता में लिखित होता है, जबकि बोली का साहित्य अलिखित या न्यून होता है।
(3) भाषा में एक से अधिक बोलियाँ हो सकती हैं, जबकि बोली में भाषाओं का समावेश नहीं होता है।
(4) बोली का प्रयोग बोलचाल में होता है, जबकि भाषा का प्रयोग साहित्य तथा शासकीय कार्यों में होता है।

प्रश्न 17.
मुहावरे और लोकोक्ति में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ऐसा वाक्यांश, जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विशेष अर्थ का आभास दे, उसे मुहावरा कहते हैं। लोकोक्तियाँ किसी विशेष घटना या कहानी से निकलकर प्रचलित होती हैं। इनमें लोक अनुभव छिपा होता है।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए अन्धे की लकड़ी, ईद का चाँद होना, छप्पर फाड़ कर देना, पेट में चूहे कूदना।
उत्तर-
अन्धे की लकड़ी (एक ही सहारा) श्रवण कुमार अपने माता-पिता की अन्धे की लकड़ी थे।
ईद का चाँद होना (बहुत दिनों में दिखना)-श्याम, तुम्हें देखने को आँखें तरस गईं, तुम तो ईद का चाँद हो गये।
छप्पर फाड़कर देना (बिना परिश्रम के अनायास प्राप्ति) भगवान देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
पेट में चूहे कूदना (जोर से भूख लगना)-पेट में चूहे कूद रहे हैं, पहले कुछ खा लें तब काम निपटायेंगे।

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प्रश्न 19.
“सब उन्नतियों का मूल धर्म है” का भाव-विस्तार कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कथन भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का है। उन्होंने देशोपकारिणी सभा में भाषण करते हुए भारतवासियों को राष्ट्र के प्रति सजग किया था। भारतेन्दु जी मानते थे कि सभी प्रकार की उन्नतियों का आधार धर्म होता है। धर्म में समाज गठन की अनेक नीतियाँ हैं। धार्मिक अनुष्ठान, त्यौहार आदि समाज को उन्नत बनाने के लिए हैं। हमारे यहाँ धर्म और समाज सुधार दूध तथा पानी के समान मिले हुए हैं। धर्म समाज सुधार के लिए होता है। धर्म समाज में अनुशासन, व्यवस्था तथा पवित्र भावनाओं का विकास करता है। अतः राष्ट्र,समाज तथा व्यक्ति का हित धर्म के अनुसार कार्य करने में है। मंगलकारी भावना से किए कार्य विकास की ओर ले जाने वाले होते हैं। ऐसे कार्यों से हमारा ध्यान समाज कल्याण तथा विश्व बन्धुत्व पर केन्द्रित होगा। इससे मानव मात्र का मंगल विधान होगा। इसीलिए धर्म को सभी प्रकार की उन्नतियों का मूल आधार माना गया है।

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MP Board Class 12th Special Hindi विचार एवं भाव-विस्तार

MP Board Class 12th Special Hindi विचार एवं भाव-विस्तार

विचार एवं भाव-विस्तार की क्रिया को ‘पल्लवन’ भी कहते हैं। यह वह क्रिया है, जिसके अन्तर्गत सूत्रों,सूक्तियों,लोकोक्तियों एवं महत्त्वपूर्ण कथन या भाव को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। यह संक्षेपण की प्रतिगामी प्रक्रिया है।

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भाव-विस्तार करते समय इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है :

  1. सूक्ति का अर्थ पूरी तरह से समझने के लिए उसका ध्यान से एवं विचारपूर्वक वाचन करना चाहिए। यदि सन्दर्भ के साथ ही सूत्र उपलब्ध हो सके तो सन्दर्भ के साथ उस सूत्र के अर्थ सम्बन्धों पर दृष्टि केन्द्रित रखते हुए वाचन करना चाहिए। वाचन के समय सूत्र के अर्थ मुख्य रूप से और शेष पदों के साथ उसके अर्थगत सम्बन्ध पर ध्यान रखना चाहिए।
  2. यह आलोचना. टीका-टिप्पणी या व्याख्या से भिन्न है। इसलिए इसमें निरर्थक सन्दर्भो और उदाहरणों का उल्लेख नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही इसे समास शैली और अलंकृत भाषा में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।
  3. भाषा-विस्तार करते समय पुनरावृत्ति और अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। केवल मूल भाव से सम्बद्ध बातें ही लिखनी चाहिए। जो भी कहा जाये वह सटीक और अपेक्षित हो।
  4. भाव-विस्तार करते समय सुस्पष्ट,सुग्राह्य, सरल और अर्थपूर्ण भाषा का प्रयोग करना चाहिए। छोटे-छोटे वाक्य बनाना चाहिए।
  5. भाव-विस्तार के लिए अन्य पुरुष की वाक्य-रचना का प्रयोग करना चाहिए। सामान्य प्रचलित शब्दों का उपयोग करना चाहिए।

यहाँ भाव-विस्तार के कुछ उदाहरण दिये गये हैं। –

(1) कउड़े की आग के ताप से दिपदिपाते चेहरों की प्रसन्नता अँधेरे में भी खनक जाती है [2009]

सर्दियों के मौसम में दिनभर कठोर परिश्रम करने के बाद लोग शाम को अलाव जलाकर उसकी गरमाई के चारों ओर बैठकर अपनी दिनभर की थकान उतारते हैं तथा वार्तालाप, हँसी-मजाक, समस्याओं के समाधान आदि से उनके चेहरे पर अन्धकार में भी छायी प्रसन्नता, उनकी बोली से स्पष्ट हो जाती है। यह सुख आज के वैज्ञानिक युग में समाप्त हो गया है।

(2) जवारों से पीताभ गेहूँ के पौधे क्या यह संदेश नहीं देते कि सृजन की यात्रा कभी रुकती नहीं [2009]

गेहूँ का पौधा बढ़कर मनुष्य को प्रेरणा देता है कि निर्माण सदैव विकास की ओर जाता है। सृजन को अँधेरे-बन्द कमरों में बन्द नहीं किया जा सकता है। जैसे-छोटे से दीपक की लौ दूर-दूर तक प्रकाश फैलाती है, उसी प्रकार सृजन का प्रकाश फैलता ही जाता है। व्यक्ति का आचरण,शील, विवेक,मेहनत, ईमानदारी,आस्था, निष्ठा आदि गुण सृजन की यात्रा को आगे की ओर ले जाते हैं। आले में अंकुरित गेहूँ के पौधे मनुष्य को यही प्रेरणा देते हैं।

(3) अपने सारे उजाले को लेकर भी क्या वह सूर्य यशोधरा के उस वियोगी सूने दिल के निराशपूर्ण अन्धकार को यत्किंचित् भी दूर कर सकता था

गौतम ने यशोधरा को त्यागकर उनके हृदय को सूना कर दिया है तथा यशोधरा को अब प्रियतम के मिलने की भी आशा नहीं है। ऐसे दुःख रूपी अन्धकार से भरे हृदय को सूरज, जो संसार के अन्धकार को मिटाकर उजाले से भर देता है,यशोधरा के हृदय को सुख रूपी प्रकाश से नहीं भर सकता अर्थात् सूर्य भी यशोधरा के सूने मन में प्रसन्नता का प्रकाश नहीं कर सकता।

(4) इस कालकूट को पीकर भी यशोधरा नील-कण्ठ नहीं हुई, कैलाशवासी शंकर भी यह देखकर लज्जा के मारे सकुचा गये
गौतम ने मानव के लिए चिर-सुख का अमृत ढूँढ़ने के लिए संसार को त्यागा था, तो यशोधरा के हिस्से में चिर-वियोग का हलाहल आया। उस विष को पीकर भी यशोधरा नील कण्ठा नहीं कहलायी। लेखक ने इस तुलना से यह स्पष्ट करना चाहा है कि समुद्र मंथन से अमृत व विष निकला। भगवान शंकर ने देवताओं की भलाई के लिए विष का पान किया और नीलकण्ठ कहलाये। यशोधरा के इस आजीवन त्याग को देखकर भगवान शंकर भी लज्जित हो गये,क्योंकि यशोधरा का त्याग भगवान शंकर के त्याग से बड़ा था।

(5) वह विरक्त तपस्वी न तो भौंरों की गुनगुनाहट ही सुनेगा और न मेघ के साथ भेजे गये सन्देश ही उस योगी तक पहुँच पायेंगे

गौतम इस संसार से उदासीन थे। इस कारण उन्हें भौंरों का मधुर संगीत यानि संसार की मधुर स्वर-लहरी सुनायी नहीं देती है। उन्हें अपना सन्देश भेजने के लिए यशोधरा यदि बादलों को अपना दूत बनाकर भेजती है, तो संन्यासी गौतम उसे भी सुन व समझ नहीं पायेंगे।

गद्य-काव्य की इस पंक्ति के माध्यम से डॉ. रघुवीर सिंह बताते हैं कि उस वैरागी-संन्यासी को संसार का सौन्दर्य तथा रिश्तों के बन्धन कभी नहीं बाँध सकते हैं।

(6) काले मतवाले हाथी पर सवार विद्युत-झण्डियों वाले वर्षाराज को देखते ही इन्द्रधनुष आँखों में छा जाता है
वर्षा ऋतु में आकाश में हाथी के काले रंग जैसे बादल तथा हाथी के विशालकाय जैसे बादल हाथी के समान झूमते हुए आकाश में विचरण करते हैं, उन बादलों के बीच चमकती बिजली हाथी पर सवार के हाथ में ली हुई विजय पताका के समान लहराती है। आकाश में इस दृश्य को देखकर वर्षा के थमने के बाद आकाश में छाये इन्द्रधनुष की याद आ जाती है। दूसरा भाव है कि इस दृश्य से आँखों में प्रसन्नता छा जाती है। यहाँ पर मतवाले हाथी काले-काले बादल हैं,झण्डियाँ बिजली का आकाश में लहराना है और इन्द्रधनुष मन का प्रसन्न होना है।

(7) रीतिकालीन कवियों की जिन्दादिली तो रंगबाजी में ही दिखाई पड़ती है [2016]
रीतिकाल के श्रृंगारी कवि नायिका के सौन्दर्य-वर्णन में रंगों का खुले हृदय से प्रयोग करते हैं। नायिका की एड़ी के लाल रंग को छुड़ाने के लिए नाइन गुलाब के झाँवे को रगड़ती है तो लाल खून ही निकल आता है। ब्रज की गोपियों को संसार,यमुना,कदम्ब-कुंज,घटा,वनस्पतियाँ सभी श्याममय अर्थात् काली ही दिखाई देती हैं। उनका रंग भेद नष्ट हो जाता है।

(8) कविता तो कोमल हृदय की चीज है [2011]
मानव-मन की कोमलतम भावनाओं की अभिव्यक्ति ही कविता है। कोमल, संवेदनशील और भावुक हृदय के भावना-तन्त्र जब झंकृत होते हैं, तब कविता का जन्म होता है। सामान्यजनों की अपेक्षा कवि अधिक संवेदनशील होता है। जीवन के सुख-दुःख के प्रति उसके कोमल हृदय की प्रतिक्रिया कविता के रूप में फूट पड़ती है। उसका कोमल हृदय अनजाने में ही कविता के रूप में बहने लगता है। संवेदनशीलता का गुण कोमल हृदय में ही पाया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि कविता हृदय की वस्तु है। जो व्यक्ति ज्ञान की गरिमा और विचारों से बोझिल होता है, वह कविता की रचना नहीं कर सकता। कठोर हृदय, संवेदन-शून्य तथा अरसिक व्यक्ति कविता-रचना करना तो दूर, उसकी अर्चना-आराधना भी नहीं कर सकता।

(9) आँखों के अन्धे नाम नयनसुख
संसार में नाम की ही महिमा है, क्योंकि व्यक्ति नाम से जाना-पहचाना जाता है। किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के गुणों और विशेषताओं के आधार पर ही उसका नाम रखा जाता है। लेकिन यह भी सत्य है कि कभी-कभी व्यक्ति का नाम उसके व्यक्तित्व और गुणों का परिचायक नहीं होता। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हमारे आस-पास मिल जाते हैं, जिसमें व्यक्ति का नाम उसके गुण और प्रकृति के विपरीत होता है। ऐसा व्यक्ति जिसका नाम के अनुरूप व्यक्तित्व नहीं होता, वह प्रायः समाज में हास्य-विनोद का आलम्बन बन जाता है। गुणों के विपरीत नाम की इसी विडम्बनापूर्ण स्थिति को देखकर ही यह कहा जाता है-आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।

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(10) दूर के ढोल सुहावने होते हैं
यह कहावत है कि ‘दूर के ढोल सुहावने होते हैं।’ इसका अभिधा अर्थ यह है कि यदि ढोल पास में बजे तो उसका शोर बड़ा कर्णकटु और कर्कश होता है। किन्तु यही ढोल की ध्वनि दर से आये तो बड़ी कर्णप्रिय होती है। दूर से आती ढोल की थाप सुनकर मानव-मन पुलकित हो जाता है और कल्पना करने लगता है कि कहीं कोई खुशी मनायी जा रही है। विवाह का ढोल है तो वह फौरन सोचता है कि जरूर उस घर में नववधू लाज से सिमटी सुनहरे सपने देख रही होगी। इस प्रकार की रमणीय कल्पना करके मन पुलकित होता है। इसी प्रकार जिन्दगी के प्रति बुजुर्गों का कहना है कि सचमुच जिन्दगी की कल्पना दूर के ढोल के समान सुहावनी होती है, क्योंकि जीवन का प्रारम्भ प्रेम से परिपूर्ण होता है। पर जब जीवन के कठोर यथार्थ के धरातल पर युवक को चलना पड़ता है तो अनेक कठिनाइयाँ और समस्याएँ सामने खड़ी रहती हैं, तब उसे जीवन की कटुता का अनुभव होता है। प्रेम का उसका कल्पित संसार न जाने कहाँ खो जाता है और वह जीवन-संग्राम से जूझता हुआ यह सोचता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

(11) धर्म पार्थक्य का नहीं, एकता का द्योतक है [2009]
इस विशाल संसार में अनेक धर्म हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति अपने विश्वास के साथ अपने धर्म का पालन करता है। अलग-अलग होते हुए भी प्रत्येक धर्म पार्थक्य का नहीं, एकता का द्योतक है। किसी भी धर्म में पृथकता या अलगाव की भावना नहीं है। प्रत्येक धर्म घृणा, विद्वेष तथा हिंसा के स्थान पर प्राणिमात्र को प्रेम,सदभाव,मैत्री,एकता और अहिंसा का सन्देश देता है। धर्म उस ईश्वर को पाने का एक साधन है जो सर्वव्यापक है,सबका रक्षक और पालनहार है। साधन भिन्न-भिन्न होते हुए भी प्रत्येक धर्म का साध्य एक है। अत: धर्म के नाम पर संघर्ष का होना बेईमानी है। धर्म के नाम पर वैमनस्य, ईर्ष्या,द्वेष और कटुता की भावना नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना’। इसलिए यह कथन सत्य है कि धर्म तोड़ता नहीं अपितु, जोड़ता है। धर्म पार्थक्य का नहीं अपितु एकता का द्योतक है।

(12) साहित्य को दिशा तो सृष्टा कलाकार ही देता है
साहित्य मानव-जीवन की अभिव्यक्ति है, उसका आख्यान है। जिस साहित्य में मानव जीवन की उदात्त और यथार्थ अभिव्यक्ति होती है, वही साहित्य श्रेष्ठ और स्थायी होता है। साहित्य को यह दिशा साहित्यकार द्वारा मिलती है। साहित्यकार सामान्य हृदय से अधिक संवेदनशील होता है। उसके पास कल्पना करने, विचार करने की अपूर्व क्षमता और उसको मूर्तरूप देने की प्रतिभा होती है। इसके द्वारा ही वह साहित्य की सर्जना करता है। साहित्यकार को किस प्रकार के साहित्य की रचना करनी चाहिए, इसका निर्णय केवल साहित्यकार ही कर सकता है। आलोचक तो मात्र उस साहित्य की समीक्षा कर केवल उसकी उपयोगिता या अनुपयोगिता बता सकता है। वह साहित्यकार को निर्देश नहीं दे सकता। क्योंकि साहित्य का सृजन नियम या निर्देश के आधार पर नहीं हो सकता। इसलिए यह मत समीचीन है कि साहित्य को दिशा तो सृष्टा कलाकार ही देता है।

(13) तुम देखते हो कि जीवन सौन्दर्य है, हम जागते रहते हैं और देखते रहते हैं कि जीवन कर्त्तव्य है

यह एक सैनिक और कवि के वार्तालाप का एक अंश है। सैनिक जीवन की कठोरता और वास्तविकता का तथा कवि जीवन की कल्पना का प्रतीक है। कवि सपनों के संसार में सोते हुए जीवन को सौन्दर्य मानता है,जबकि एक सैनिक यथार्थ के संसार में जागते हुए जीवन को कर्तव्य मानता है। कवि भावुक होता है, इसलिए वह अपनी भावना के द्वारा सौन्दर्य को ही जीवन समझता है तथा जीवन और संसार की वास्तविकता से दूर अपने बनाये हुए काल्पनिक संसार में मग्न रहता है। इसके विपरीत एक सैनिक सदैव चैतन्य रहता है और अपने कर्तव्य का पालन करता है। उसके लिए जीवन का दूसरा नाम ही कर्तव्य का पालन है। वास्तव में,संसार में अपने कर्तव्य का पालन करना ही जीवन है। जीवन सुन्दर है तथा उसकी उपयोगिता कर्त्तव्य-पालन में ही निहित है।

(14) ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं होता
यह बात पूर्णतः सत्य है,कि ईश्वर निर्गुण,निराकार,अखण्ड,अजन्मा तथा सर्वत्र व्याप्त है। उसे किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता है। ईश्वर ही परम पिता है। वह समस्त धर्मों का नियामक है। ईश्वर किसी धर्म या जाति का नहीं होता है। ईश्वर सभी पर दया बरसाता है।

(15) स्वावलम्बन की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष [2009]
अंग्रेजी की एक बड़ी सुन्दर कहावत है-‘God helps those who help themselves.” अर्थात् ईश्वर उन लोगों की सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। इस बात को एक उर्दू शायर ने इस प्रकार कहा है-“हिम्मते मर्दा मददे खुदा।” कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान और भाग्य भी केवल स्वावलम्बी व्यक्ति की ही सहायता करते हैं। स्वावलम्बी व्यक्ति आत्म-विश्वास और सफलता की जीती-जागती प्रतिमूर्ति होते हैं। स्वावलम्बन का जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। जीवन में केवल वही व्यक्ति सफल होते हैं,जो स्वावलम्बी होते हैं। स्वावलम्बी मनुष्य के सम्मुख संसार की सारी बाधाएँ सिर झुकाती हैं। स्वावलम्बन से व्यक्ति में आत्म-विश्वास और आत्म-गौरव की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं, जिनसे उसका व्यक्तित्व विकसित होता है। समाज में भी केवल ऐसा ही व्यक्ति आदर पाता है,जो अपने पैरों पर खड़ा हो। वास्तव में,यदि यह कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि व्यक्ति में स्वावलम्बन की झलक मात्र से उस पर कुबेर का खजाना तक न्यौछावर रहता है।

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(16) बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है [2010]
क्रोध यदि आम है तो बैर उसका अचार या मुरब्बा है। जिस प्रकार आम की अपेक्षा उसका अचार या मुरब्बा अधिक लम्बे समय तक उपयोग में लाया जा सकता है अर्थात् अधिक टिकाऊ होता है, उसी प्रकार बैर,क्रोध का स्थायी रूप है। वास्तव में,जो क्रोध तत्काल प्रदर्शित होने से रह जाता है, वह समय आने पर कुछ अवधि के बाद बैर बनकर प्रदर्शित होता है।

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MP Board Class 12th Special Hindi मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

MP Board Class 12th Special Hindi मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ

1. मुहावरे

ये ऐसे छोटे-छोटे वाक्यांश हैं जिनके प्रयोग से भाषा में सौन्दर्य, प्रभाव, चमत्कार और विलक्षणता आती है। मुहावरा वाक्यांश होता है, अतः इसका स्वतन्त्र प्रयोग न होकर वाक्य के बीच में उपयोग किया जाता है। मुहावरे के वास्तविक अर्थ का ज्ञान होने पर ही इसका सही उपयोग हो सकता है। इसका सामान्य अर्थ न लेकर इसके गूढ़ अर्थ या व्यंजना से अर्थ समझना चाहिए। इसका उपयोग करने में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

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(1) मुहावरे को पढ़कर उसमें छिपे अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए।
(2) उसी के अर्थ से मिलती-जुलती घटना या बात को चुनकर संक्षेप में लिखना चाहिए।
(3) मुहावरे को उसी वाक्य में मिलाकर उसी काल की क्रिया में रख देना चाहिए।
(4) यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि मुहावरा प्रयोग करने से अनेक रूप ले सकता है,क्योंकि उसमें थोड़ा परिवर्तन हो जाता है।
(5) मुहावरे के मूल अर्थ में ही उसका प्रयोग नहीं होता। जैसे-अंगारों पर पैर रखना = संकट में पड़ जाना। आई.ए. एस. की परीक्षा में बैठना और सफलता पाना अंगारे पर पैर रखने जैसा है। अंगारे पर पैर रखने में जितना कष्ट होता है,उतना ही प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी और परीक्षा उत्तीर्ण करने में होता है।

यहाँ कुछ मुहावरे,उनके अर्थ और प्रयोग क्रमशः दिये जा रहे हैं-
(1) अपना उल्ल सीधा करना (अपना मतलब सिद्ध करना)-ममता मेरी हिन्दी की कॉपी ले गयी, अपना उल्लू तो सीधा कर लिया, पर मैंने इतिहास की किताब माँगी तो मना कर दिया।
(2) अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धि भ्रष्ट हो जाना) परीक्षा के समय वह रोजाना दिन में सो जाती थी,मानो उसकी अक्ल पर पत्थर पड़ गये हों।
(3) अन्धे की लाठी (एकमात्र आश्रय)-राकेश अपने बूढ़े बाप की अन्धे की लाठी है। [2009]
(4) अन्धेरे घर का उजाला (एकमात्र पुत्र) दीपक शर्माजी के अन्धेरे घर का उजाला है।
(5) अक्ल चकराना (विस्मित होना, बात समझ में न आना)-रामबाबू के निधन का समाचार सुनकर तो अक्ल चकरा गयी।
(6) अलग-अलग खिचड़ी पकाना (सबसे अलग-अलग) संगीता और अनुराधा दिन भर न जाने क्या अपनी अलग-अलग खिचड़ी पकाती रहती हैं।
(7) अंगार उगलना (कटु वचन बोलना)-जीजी या तो बोलती नहीं, जब बोलेंगी तो अंगार उगलेंगी।
(8) अगर-मगर करना (टालने का प्रयत्न करना)-भाभी से जब भी कमला की शादी की बात करो, वे अगर-मगर करने लगती हैं।
(9) अंग-अंग ढीला हो जाना (थक जाना) आपरेशन होने के बाद से तो ऐसा लगता है कि अंग-अंग ढीले हो गये।
(10) अंकुश देना (वश में रखना)-पिताजी तीनों लड़कों पर सदैव अंकुश दिये रहते हैं।

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(11) अपने मुँह मियाँ मिट्ट बनना (अपनी प्रशंसा स्वयं करना)-अरुण हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ट बना रहता है। [2017]
(12) अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना (स्वयं की हानि करना) रश्मि पढ़ाई अधूरी छोड़कर चली गयी, उसने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
(13) अपना गला फँसाना (स्वयं को संकट में डालना)-मंजु की सगाई करके मैंने अपना गला फँसा दिया।
(14) अन्धे को दिया दिखाना (मूर्ख को उपदेश देना)-गाँव वालों से प्रौढ़ शिक्षा की बात करना अन्धे को दिया दिखाने जैसा है।
(15) अंगद का पैर होना (दृढ़ निश्चय से जम जाना) राजीव तो अंगद के पैर की तरह जम गये हैं।
(16) अँगूठा दिखाना (साफ मना करना)-रानी से काम करने को कहा तो वह अँगूठा दिखाकर भाग गयी।
(17) अक्ल के घोड़े दौड़ाना (अटकलें लगाना) जब माला से पूछा कि सप्तर्षि कहाँ हैं तो वह अक्ल के घोड़े दौड़ाने लगी।
(18) अक्लमन्द की दुम बनना (मूर्ख होकर बुद्धिमानी की बात करना)-कमल व्यवसाय के बारे में कुछ समझता तो है नहीं, फिर भी अक्लमन्द की दुम बना रहता है।
(19) अपना-सा मुँह लेकर रहना (असफल होकर लज्जित होना) जब मीनू निकी को छोड़कर सिनेमा चली गयी तो निकी अपना-सा मुँह लेकर रह गयी।
(20) अरण्यरोदन करना (निरर्थक बात करना)–नेताओं के वक्तव्य अरण्यरोदन की तरह हो गये हैं।

(21) आँखों का तारा (अत्यन्त प्रिय) रुचि अपनी मम्मी की आँख का तारा है। [2009]
(22) आँख का किरकिरा होना (सदा खटकते रहना)-सुधीर की जब से पदोन्नति हुई है, वह सबकी आँख का किरकिरा हो गया।
(23) आँखों में पानी न रहना (बेशर्म हो जाना)—वह दिन भर व्यर्थ ही घूमता रहता है, उसकी आँखों में पानी ही नहीं रहा।
(24) आँख मूंद लेना (उदासीन होना)-अपना मकान बन जाने के बाद बड़े भैया ने हम सबकी तरफ से आँखें मूंद लीं।
(25) आड़े हाथ लेना (भर्त्सना करना, फटकारना) इस बार जब सन्तोष फिर उपदेश देने लगा तो मैंने उसे आड़े हाथों लिया।
(26) आठ आँसू रोना (अधिक दुःखी होना)-शास्त्रीजी के निधन से देशवासी आठ आँसू रोये।
(27) आपे से बाहर होना (क्रोधित होना)-बिहारी छोटी-सी बात पर भी आपे से बाहर हो जाता है।
(28) आटा-दाल का भाव मालूम होना (विषम परिस्थितियों में यथार्थ ज्ञान मिलना)-सुरेशजी,शादी होने दो, फिर मालूम होगा आटे-दाल का भाव।
(29) आकाश के तारे तोड़ना (असम्भव कार्य करना) वह प्रीति को इतना प्यार करता है कि उसके लिए आकाश के तारे भी तोड़ सकता है।

(30) आसमान सिर पर उठाना (बहुत अधिक शोर) निष्ठा गुड़िया लेकर भागी तो जमाते ने रो-रोकर आसमान सिर पर उठा लिया।
(31) आकाश से बातें करना (बहुत ऊँचा होना) सौरभ की पतंग आकाश से बातें करने लगी तो वह बहुत खुश हो गया।
(32) आँखें लाल-पीली करना (क्रोध करना) उत्सव के मन की न हो तो वह प्रायः आँखें लाल-पीली करने लगता है।
(33) आँखें बिछाना (प्यार से स्वागत करना)-दीपावली पर सुधा ने लिखा; आओ, हम आँखें बिछाये बैठे हैं। .
(34) आँख का काजल निकालना (ठग लेना) प्रफुल्ल इतना चतुर है कि वह आँख का काजल निकाल ले और पता ही न चले।
(35) आग में घी डालना (क्रोध को और बढ़ाना)-जब माताजी को राजू समझाने लगा तो पिताजी बोले-अरे,क्यों आग में घी डालता है?
(36) आकाश-पाताल का अन्तर (अत्यधिक पार्क होना)-नीता और गीता की आदत में आकाश-पाताल का अन्तर है।
(37) उड़ती चिड़िया पकड़ना (मन की बात जानना)-शास्त्रीजी के पास जाओ, वे उड़ती चिड़िया पकड़ लेते हैं।
(38) कान का कच्चा (अफवाहों पर विश्वास करना) श्रीवास्तवजी कान के कच्चे हैं, तभी तो रावत की बातों को सत्य मान लेते हैं।
(39) कान में तेल डालना (अनसुनी करना) क्यों विमला, आज कान में तेल डालकर बैठी हो क्या?

(40) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबरा जाना) जब जयकुमार से पूछा-कहाँ से आ रहे हो तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
(41) हाथों के तोते उड़ जाना (होश उड़ना) विष्णु घर से क्या गया, नीलिमा के हाथों के तोते उड़ गये।
(42) न तीन में न तेरह में (अप्रासंगिक होना) विभाग की कार्यवाही में कितनी ही गड़बड़ हुई,पर रमेश को क्या वह न तीन में न तेरह में।
(43) सूरज को दीपक दिखाना (ज्ञानवान को ज्ञान देना) सन्ध्या जब हॉस्टल से घर आई तो नई-नई बातें बताकर सूरज को दीपक दिखा रही थी।
(44) पहाड़ टूट पड़ना (मुसीबत आ जाना)—पेट्रोल के दाम क्या बढ़े, जनता पर पहाड़ टूट पड़ा।
(45) ईद का चाँद होना (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) स्वाति जब छुट्टियाँ मनाकर आई तो नीलम बोली, अरे ! वाह तुम तो ईद का चाँद हो गयी।’
(46) हाथ कंगन को आरसी क्या? (प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं) रेखा की चित्रकला के लिए हाथ कंगन को आरसी क्या? पूरा घर चित्रों से भरा है।
(47) चोली-दामन का साथ (घनिष्ठ सम्बन्ध)-प्रूफ रीडर और प्रकाशक का तो चोली दामन का साथ है।
(48) जी चुराना (काम न करना,काम से डरना) काशीराम हमेशा काम से जी चुराता है।
(49) कलम तोड़ना (अच्छी रचना करना)-आकाश जी जब कविता लिखते हैं, कलम तोड़ देते हैं।

(50) धूप में बाल सफेद होना (अनुभवहीन ज्ञान)-दादी ने रोहन को डाँटकर कहा, तुम मेरी बात मानने को तैयार नहीं हो,क्या धूप में मेरे बाल सफेद हुए हैं?
(51) बाल-बाँका न होना (हानि न होना)-विपत्ति में पड़ने पर धैर्य नहीं खोना चाहिये, धैर्यवान व्यक्ति का कभी बाल-बाँका न होगा।
(52) सिर धुनना (पछताना) दीपक ने अपनी सारी आमदनी जुये में गँवा दी अब सिर धुन रहा है।
(53) सिर पर कफन बाँधना (मरने से न डरना)-देश के वीर सिपाही युद्ध के लिये सिर पर कफन बाँधकर चलते हैं। [2012]
(54) आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना) आजकल ठग आँखों में धूल झोंककर किसी भी व्यक्ति को आसानी से लूट लेते हैं।
(55) कान खड़े करना (सतर्क रहना) युद्ध स्थल में सैनिकों को सदैव कान खड़े रखना चाहिये।
(56) नाकों चने चबाना (तंग करना)-सीमा ने उधार के रुपये लौटाने में मुझे नाकों चने चबा दिये।
(57) मुँह की खाना (पराजित होना)–भारत को क्रिकेट विश्व कप में मुँह की खानी पड़ी।
(58) दाँत खट्टे करना (हरा देना) भारतीय सैनिकों ने कारगिल के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के दाँत खट्टे कर दिये। [2013, 17]
(59) छाती पर मूंग दलना (जान-बूझकर तंग करना)-सुरेश ने रमेश से कहा-तुम अपना काम देखो, व्यर्थ में मेरी छाती पर क्यों मूंग दल रहे हो?

(60) छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या करना) पड़ोसी की सम्पन्नता को देखकर उसकी छाती पर साँप लोट गया।
(61) पेट में चूहे दौड़ना (बहुत भूख लगना) रमेश ने गुरुजी से कहा, अब आप मुझे छुट्टी दे दें, मेरे तो पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
(62) हथेली पर सरसों उगाना (जल्दी करना) देवेन्द्र तुम कुछ देर प्रतीक्षा करो हथेली पर सरसों उगाने से क्या लाभ?
(63) हाथ पीले करना (विवाह सम्पन्न करना)-आधुनिक युग में दहेज प्रथा के कारण बेटी के हाथ पीले करना पिता के लिये कठिन समस्या है।
(64) हाथ धोकर पीछे पड़ना (बुरी तरह पीछे लगना) बहुत से लोगों की आदत होती है कि वे अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये व्यर्थ ही हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं।
(65) होम करते हाथ जलना (अच्छे काम में बदनामी) समाज सेवा ऐसा कार्य है जिसमें होम करते हाथ जलने की सम्भावना बनी रहती है।
(66) मुट्ठी गरम करना (भेंट देना/रिश्वत देना)-आजकल मुट्ठी गर्म किये बिना कोई भी कार्य नहीं होता है।
(67) टेढ़ी अँगुली से घी निकालना (सीधे काम नहीं बनता)-दुष्ट व्यक्ति से कोई भी कार्य टेढी अंगुली से घी निकालने के समान है।
(68) पाँचों अँगुलियाँ घी में (सब प्रकार से सुख)-लॉटरी निकलने के बाद रमेश की पाँचों अँगुलियाँ घी में हैं।
(69) कमर टूटना (थक जाना) श्रमिकों की घोर परिश्रम के कारण कमर टूट जाती है।

(70) फूंक-फूंककर पैर रखना (सावधानी से चलना)-आज की स्पर्धा के युग में व्यापारी को अपनी उन्नति के लिये फूंक-फूंककर पैर रखना चाहिये।
(71) आँख लगना (झपकी आना) टी. वी.देखते-देखते अचानक मेरी आँख लग गयी और चोर चोरी कर ले गये।
(72) आँखें दिखाना (क्रोध करना)-तुम मुझे आँखें दिखाकर भयभीत नहीं कर सकते।
(73) आँखों से गिर जाना (सम्मान खो देना) लोग झूठ बोलने के कारण दूसरों की आँखों से गिर जाते हैं।
(74) आग लगाना (भड़काना) कुछ लोगों की आदत आग लगाकर तमाशा देखने की होती है।
(75) आँसू पीना (दुःख में विवशता का अनुभव करना)-पुत्र की मृत्यु के बाद पिता को आँसू पीकर मौन रहना पड़ा।
(76) आँसू पोंछना (धीरज देना)-हमारा कर्तव्य है कि दुःख पड़ने पर सदैव दूसरों के आँसू पोंछने का प्रयास करें।
(77) आकाश कुसुम (अनहोनी, असम्भव बात) सीमा के लिये पूरे उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त करना आकाश कुसुम के समान प्रमाणित हुआ।
(78) आस्तीन का साँप (विश्वासघाती)-आज के युग में प्रत्येक क्षेत्र में आस्तीन के साँप विद्यमान हैं। अतः उनसे सतर्क रहने की आवश्यकता है। [2013]
(79) आब उतरना (इज्जत चली जाना) चोरी करने के फलस्वरूप मोहन की आब उतर गयी।

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(80) उल्टी गंगा बहना (विपरीत काम करना) यह कार्य मेरे वश के बाहर है, तुम तो सदैव उल्टी गंगा बहाते हो। [2009]
(81) उधेड़-बुन में पड़ना (दुविधा में पड़ना) कार्य का अत्यधिक बोझ होने के कारण दीपक उधेड़-बुन में पड़ा है कि कौन-सा कार्य पहले पूरा करे।
(82) उल्लू बनाना (मूर्ख बनाना)-सोहन ने मोहन से कहा तुम कैसे धोखा खा गये, तुम तो सबको उल्लू बनाने में माहिर हो।
(83) ऊँच-नीच समझना (भले-बुरे का विवेक होना) बुद्धिमान व्यक्ति ऊँच-नीच समझकर अपना कार्य सम्पन्न करते हैं।
(84) एक आँख से देखना (समदर्शी)–माता-पिता को पुत्र एवं पुत्री को एक आँख से देखना चाहिये।
(85) एक लाठी से हाँकना (अच्छे-बुरे का अन्तर न करना)-सज्जन एवं दुर्जन को एक लाठी से हाँकना अनुचित है।
(86) कगार पर खड़े होना (मृत्यु के समीप) व्यक्ति को कगार पर खड़े होने के समय ईश्वर याद आता है।
(87) कचूमर निकालना (अत्यधिक पिटाई करना)-पुलिस ने चोर को इतना प्रताड़ित किया कि उसका कचूमर निकल गया।
(88) कच्चा चिट्टा खोलना (पोल खोलना) हत्यारे को पकड़ लिये जाने पर उसने अपने अपराध का कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
(89) कदम चूमना (खुशामद करना) आजकल लोग आगे बढ़ने के लिये अधिकारियों के कदम चूमते हैं।

(90) कलेजा जलना (असन्तोष से दुःख होना)-दूसरों की प्रगति देखकर अपना कलेजा जलना मूर्खता है।
(91) कलेजा फटना (दुःखी होना) पति की मृत्यु के बाद सीमा का कलेजा फट गया।
(92) कलेजे पर पत्थर रखना (दु.ख में धैर्य रखना) व्यापार में घाटा आने पर मोहन ने कलेजे पर पत्थर रखकर नौकरी करना शुरू कर दी।
(93) कान कतरना (किसी से बढ़कर काम दिखाना)-प्रवीण की पुत्र-वधू इतनी निपुण है कि वह अच्छे-अच्छे के कान कतरती है।
(94) कान भरना (चुगली करना)-पड़ोसियों के कान भरना रीमा की पुरानी आदत है।
(95) कानाफूसी करना (आपस में चुपचाप सलाह करना)-विवाह में व्यवधान आने पर रोहित ने अपने सम्बन्धियों से कानाफूसी करना प्रारम्भ कर दी।
(96) कानों कान खबर न लगना (पता न लग पाना) जनता पार्टी के चुनाव में जीत जाने की किसी को कानों कान खबर न थी।
(97) कान पर जूं न रेंगना (तनिक भी प्रभाव न पड़ना) मालिक ने नौकर से कहा कि मैं तुम्हें इतनी देर से बुता रहा हूँ, पर तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगती।
(98) कुत्ते की मौत मरना (बुरी मौत मरना)-पुलिस मुठभेड़ में दुर्दान्त डाकू कुत्ते की मौत मारा गया।
(99) कोरा जवाब देना (स्पष्ट मना करना) विपत्ति के समय किसी को कोरा जवाब देना अच्छा नहीं है।

(100) काबैल (दिन-रात परिश्रम करना)-पिता ने पुत्र से कहा तुम इस नौकरी को छोड़ दो, दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह पिले रहते हो फिर भी कुछ नहीं मिलता।
(101) कौड़ी का न पूछना (तनिक भी सम्मान न करना)-आजकल के पुत्र वृद्ध होने पर माता-पिता को कौड़ी का भी नहीं पूछते हैं।
(102) कौड़ी-कौड़ी को मुहताज होना (अत्यधिक गरीब) मोहन के घर चोरी हो जाने पर वह कौड़ी-कौड़ी को मुहताज हो गया।
(103) खटाई में पड़ना (काम रुक जाना) चुनाव के कारण सड़क निर्माण का कार्य खटाई में पड़ गया।
(104) खाने को दौड़ना (क्रोध करना) राम ने अपने पड़ोसी से कहा तुम व्यर्थ ही खाने को दौड रहे हो मैंने तुमसे क्या कहा है
(105) खून खौलना (अत्यधिक क्रोधित होना)-पुत्र की शरारत को देखकर पिता का खून खौल गया।
(106) खयाली पुलाव पकाना (मन ही मन कल्पना करना)-खयाली पुलाव पकाने से कोई भी काम नहीं होता, परिश्रम सफलता की कुंजी है।
(107) गरम होना (क्रोध आना) आजकल के नवयुवकों में बात-बात पर गर्म होने की आदत है।
(108) गऊ होना (अत्यन्त सीधा होना)-रोहन का स्वभाव गऊ के समान है।
(109) गागर में सागर भरना (थोड़े में बहुत कहना) बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
(110) गाल बजाना (बकवास करना)-परिश्रम करने से फल मिलेगा. गाल बजाने से नहीं।

(111) गाल फुलाना (गुस्से में चुप होना)-सीमा ने गीता से कहा तुम तो हर समय गाल फुलाये रहती हो, तुमसे कौन बात करेगा?
(112) गूलर का फूल होना (दर्शन न होना)-आज के युग में आदर्श व्यक्ति एक प्रकार से गूलर के फूल के समान हो गये हैं।
(113) गुड़ गोबर करना (बना बनाया काम बिगाड़ देना) कार्य पूर्ण होने से पहले ही विनोद ने सब गुड़ गोबर कर दिया।
(114) गुल छर्रे उड़ाना (मौज मस्ती मारना) सोहन अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्ति से गुल छरें उड़ा रहा है।
(115) गोल-माल करना (घपला करना)-आजकल समाचार पत्रों में अधिकांश गोल-माल के समाचार निकलते रहते हैं।
(116) गुल खिलना (रहस्य पता चलना)-पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर पता चला कि देवेन्द्र ने कौन-कौन से गुल खिलाये थे।
(117) घड़ों पानी पड़ना (लज्जित होना)-अपने पुत्र की करतूतों को सुनकर सोहन के पिता पर घड़ों पानी पड़ गया।
(118) घर फँक तमाशा देखना (अपनी परिस्थिति से अधिक व्यय करना)-घर फॅक तमाशा देखने वाले कभी जीवन में सफल नहीं होते।
(119) घाव पर नमक छिड़कना (दुःख में और दुःखी करना)-राम ने मोहन से कहा मैं तो खुद ही परेशान हूँ। तुम मेरे घावों पर नमक क्यों छिड़क रहे हो?
(120) घास खोदना (व्यर्थ समय गँवाना) अध्यापक ने छात्र से कहा कि इतने सरल प्रश्न भी नहीं कर पा रहे हो,साल भर क्या घास खोदते रहे?

(121) चम्पत हो जाना (गायब हो जाना)-पुलिस को देखकर अपराधी चम्पत हो जाते हैं।
(122) चिकना घड़ा होना (किसी बात का असर न होना)–श्याम को कितना ही समझाओ लेकिन वह तो चिकना घड़ा हो गया है। किसी की बात सुनता ही नहीं।
(123) चिकनी-चुपड़ी बातें करना (बनावटी प्रेम दिखाना)-आजकल का युग चिकनी-चुपड़ी बातें करके काम बनाने का हो गया है। [2016]
(124) चित्त कर देना (हराना) हॉकी के खेल में सेन्ट पीटर्स स्कूल के छात्रों ने राधा बल्लभ स्कूल के छात्रों को चित्त कर दिया।
(125) चुल्लू भर पानी में डूब मरना (अत्यन्त लज्जित होना)-परीक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण होने पर पिता ने पुत्र से कहा तुम चुल्लू भर पानी में डूब मरो।।
(126) चेहरे का रंग उतरना (उदास होना)-चोरी पकड़े जाने पर सुरेश के चेहरे का रंग उतर गया।
(127) चैन की बंशी बजाना (सुखपूर्वक रहना) लॉटरी निकल आने पर महेश चैन की बंशी बजा रहा है।
(128) छक्के छूटना (पराजित होना) भारतीय सैनिकों के समक्ष पाकिस्तान की सेना के छक्के छूट गये।
(129) छक्के छुड़ाना (निरुत्साहित कर देना) लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये।
(130) छक्के पंजे करना (मौज मनाना)-पूँजीपति बिना श्रम के छक्के पंजे करते रहते

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(131) छठी का दूध याद आना (अत्यधिक परेशानी का अनुभव करना) पर्वतारोहियों को दुर्गम चढ़ाई चढ़ने में छठी का दूध याद आ गया।
(132) छिद्रान्वेषण करना (दोष ढूँढ़ना)-मित्रों का छिद्रान्वेषण करना उचित नहीं होता है।
(133) छापा मारना (छिपकर आक्रमण करना) विद्युत विभाग ने बड़े-बड़े व्यापारियों पर छापा मारना शुरू कर दिया।
(134) छींटाकशी करना (व्यंग्य करना) बहुत-से लोगों की प्रवृत्ति दूसरों पर छींटाकशी करके प्रसन्न होने की होती है।
(135) छाया करना (संरक्षण देना)-पिता पुत्र के निमित्त सदैव छाया बनकर रहता है।
(136) जबान में लगाम रखना (सम्भल कर बात करना)-बड़ों के समक्ष हमेशा जबान में लगाम रखकर बात करनी चाहिये।
(137) जबान चलाना (जरूरत से ज्यादा बोलना)- तुम चुप क्यों नहीं रहते व्यर्थ में जबान चला रहे हो।
(138) जबानी जमा खर्च (व्यर्थ की बातें विकास कार्य की योजनाएँ आजकल जबानी जमा खर्च तक सीमित रह गयी हैं।
(139) जमीन-आसमान एक करना (सीमा से अधिक कर गुजरना)-परीक्षा के समय विद्यार्थी जमीन-आसमान एक कर देते हैं।
(140) जमीन पर पाँव न रखना (अभिमान करना) अचानक धन प्राप्त होने पर महेश के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते।

(141) जली-कटी सुनाना (भली-बुरी कहना) नौकर के उचित प्रकार काम न करने पर मालिक ने उसे जली-कटी सुनाना प्रारम्भ कर दिया।
(142) जड़ खोदना (समूल नष्ट करना) चाणक्य ने अपनी कूटनीति से नन्दवंश की जड़ खोद दी।
(143) जड़ तक पहुँचना (कारण का पता लगा लेना) हमें बात की जड़ तक पहुँचे बिना किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिये।
(144) जहर बोना (दूसरे के लिये संकट उत्पन्न करना) बहुत से लोगों का स्वभाव जहर बोकर दूसरों को कष्ट पहुँचाने का होता है।
(145) जहर उगलना (उग्र बातें करना)-पाकिस्तानी शासक भारत के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं।
(146) जहर का यूंट पीना (क्रोध रोके रहना)-झगड़ा हो जाने पर रमेश जहर का घुट पीकर रह गया।
(147) जान पर खेलना (जोखिम का काम करना)-सुरेश ने अपनी जान पर खेलकर डूबते बच्चे की जान बचायी।
(148) जान में जान आना (भय टल जाना)—भूकम्प समाप्त होने पर लोगों की जान में जान आ गयी।
(149) जान के लाले पड़ना (संकट पड़ना)-अकालग्रस्त क्षेत्र में अन्न के अभाव के कारण जान के लाले पड़ जाते हैं।
(150) आपे से बाहर होना (क्रोध में होश खो बैठना) जगदीश ने श्याम से कहा मेरी जरा-सी भूल पर तुम आपे से बाहर क्यों हो रहे हो?

(151) जी हल्का होना (शान्ति प्राप्त होना)—पुत्र को रोग से मुक्त देखकर माँ का जी हल्का हो गया।
(152) जी छोटा करना (निराश होना)-रमेश ने मोहन से कहा मैं तुम्हारी सहायता के लिये तैयार हूँ, तुम जी छोटा क्यों करते हो?
(153) जी खट्टा होना (स्नेह कम होना)—पैतृक सम्पत्ति में विधिवत् विभाजन न होने पर भाइयों का आपस में जी खट्टा हो गया।
(154) जी का जंजाल (परेशानी का कारण) दुष्ट का संग जी का जंजाल होता है।
(155) जीती बाजी हारना (काम बनते-बनते बिगड़ जाना) सचिन के चोट लगने के कारण भारतीय टीम जीती बाजी हार गयी।
(156) झाँसा देना (धोखा देना)-अपराधी पुलिस वाले को झांसा देकर भाग गया।
(157) टकटकी बाँधना (लगातार देखना)-पपीहा स्वाति नक्षत्र के बादलों को टकटकी लगाकर देखता रहता है।
(158) टस से मस न होना (अड़े रहना)-रावण विभीषण के लाख समझाने पर भी टस से मस नहीं हुआ।
(159) टाँग अडाना (बाधा डालना)-पिता ने पुत्र को समझाते हुए कहा, बड़ों के बीच में टाँग अड़ाना अनुचित है।
(160) टाँग पसार कर सोना (निश्चिन्त होना) बेटी का विवाह सम्पन्न होने पर माता-पिता टॉग पसार कर सोते हैं।

(161) टोपी उछालना/पगड़ी उछालना (अपमान करना) बरात को लौटाकर वर पक्ष ने कन्या के पिता की टोपी उछालकर अच्छा नहीं किया। [2009]
(162) ठोकना बजाना (पूर्णतः परख के देखना)-आधुनिक युग में नौकरों को ठोक बजाकर ही काम पर रखना चाहिये।
(163) डंके की चोट पर कहना (निर्भीकतापूर्वक कहना)-निर्भीक लोग अधिकारियों की काली करतूतों को डंके की चोट पर उजागर करते हैं।
(164) डींग हाँकना (झूठी शेखी बघारना) बहुत से लोगों की व्यर्थ में ही डींग मारने की आदत होती है।
(165) ढिंढोरा पीटना (व्यर्थ प्रचार करना)–नौकरी मिलने से पूर्व ही मोहन ने ढिंढोरा पीटना प्रारम्भ कर दिया कि वह एक उच्च अधिकारी बन गया है।
(166) ढोल में पोल होना (सारहीन सिद्ध होना)-आजकल के नेताओं के कथन ढोल में पोल सिद्ध होते हैं।
(167) ढाल बनना (सहारा बनना)-पत्नी के लिये पति ढाल के समान होता है।
(168) ढुलमुल होना (अनिश्चय) व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करनी हो तो ढुलमुल नीति से नहीं चलना चाहिये।
(169) ढील देना (छूट देना)-माता-पिता द्वारा बच्चों को अधिक ढील देना हानिकारक
(170) तलवे चाटना (खुशामद करना) आजकल बहुत से लोग दूसरों के तलवे चाटकर अपना काम बना लेते हैं।

(171) तारे गिनना (नींद न आना)-सीताजी राम के विरह में तारे गिन-गिन कर अपना समय व्यतीत करती थीं।
(172) तिल का ताड़ बनाना (छोटी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना) राम ने मोहन से कहा तुमने तिल का ताड़ बनाकर बने बनाये काम को बिगाड़ दिया।
(173) तिलांजलि देना (पूरी तरह त्याग देना) झूठ को तिलांजलि देना सफलता का द्योतक है।
(174) तितर-बितर होना (अलग-अलग होना)-पुलिस को देखकर जुआरी तितर-बितर हो गये।
(175) तीन तेरह होना (तितर-बितर होना)-पिता की मृत्यु के उपरान्त सम्पूर्ण परिवार तीन तेरह हो गया।
(176) तूती बोलना (अधिक प्रभावशाली होना)-आजकल देश में आतंकवादियों की तूती बोल रही है। [2009]
(177) थूक कर चाटना (बात कहकर मुकर जाना)-पाकिस्तानी शासकों का स्वभाव थूक कर चाटने जैसा है।
(178) दम मारना (थोड़ा विश्राम करना)-परीक्षा समाप्त होने के उपरान्त विद्यार्थियों को दम मारने की फुरसत मिली।
(179) माथा ठनकना (पहले से ही विपरीत बात होने की आशंका)-पिता को अत्यधिक रोगग्रस्त देखकर मृत्यु की आशंका से पुत्र का माथा ठनक गया। [2014]
(180) कपाल क्रिया करना (मार डालना)-वीर युद्धभूमि में शत्रुओं की कपाल क्रिया करके ही चैन की साँस लेते हैं।

(181) भाग्य फूटना (दुर्भाग्य का आना)-एकमात्र पुत्र का निधन होने पर उसकी माँ के भाग्य ही फूट गये।
(182) नमक हलाली करना (ईमानदारी बरतना)-स्वामिभक्त सेवक नमक हलाली करके अपनी वफादारी का परिचय देते हैं।
(183) बाल-बाल बचना (परेशानी आने से बचना)-ट्रक की चपेट में आने पर वह बाल-बाल बच गया।
(184) नाक भौं सिकोड़ना (अप्रसन्नता प्रकट करना) जरा-जरा-सी बात पर नाक भौं सिकोड़ना उचित नहीं है।
(185) छोटे मुँह बड़ी बात (सीमा से अधिक कहना)-स्वामी ने नौकर से कहा छोटे मुँह बड़ी बात अच्छी नहीं होती।
(186) दाँतों तले उँगली दबाना (चकित होना) ताजमहल के सौन्दर्य को देखकर विदेशी दाँतों तले उँगली दबाते हैं। [2014]
(187) अँगुली उठाना (दोषारोपण करना) बिना सोचे-समझे दूसरों पर अंगुली उठाकर लोग अपने दोषों पर पर्दा डालते हैं।
(188) ऐड़ी-चोटी का पसीना एक करना (भरपूर परिश्रम करना) परीक्षा के समय छात्र ऐड़ी-चोटी का पसीना एक करके ही दम लेते हैं।
(189) गड़े मुर्दे उखाड़ना (बीती बातें याद करना) बहुत से लोगों का स्वभाव गढ़े मुर्दे उखाड़ना होता है।
(190) अंधेर मचाना (खुला अन्याय करना)-आजकल आतंकवादियों ने अंधेर मचा रखा है। [2009, 14]

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(191) अन्धा धुन्ध (बिना रोक-टोक के) अन्धाधुन्ध वाहन चलाने के कारण दुर्घटनाएँ घटित हो रही हैं।
(192) अपनी पड़ना (अपनी चिन्ता) भूकम्प आने पर सबको अपनी-अपनी पड़ रही थी।
(193) अचकचाना (भ्रमित होना)-मानसिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति प्रत्येक कार्य में अचकचाते रहते हैं।
(194) उखाड़-पछाड़ करना (आगे-पीछे की बातों को याद करके संघर्ष करना)-उखाड़-पछाड़ करने से झगड़ा शान्त होने के बजाय और बढ़ जाता है।
(195) उठान रखना (पूर्ण प्रया स करना)-विपत्ति के समय उठान रखकर ही व्यक्ति को विपत्ति से मुक्ति मिलती है।
(196) कलेजा मुँह को आना (अत्यधिक दुःखी होना) श्रवण कुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके माँ-बाप का कलेजा मुँह को आ गया।
(197) कलेजे पर हाथ रखना (अपने, आप विचार करना)-विपत्ति पड़ने पर मोहन ने सोहन से कहा कि तुम अपने कलेजे पर हाथ रखकर देखो तब पता चलेगा।
(198) कान खड़े होना (सतर्क होना)—पुलिस के आने पर चोरों के कान खड़े हो गये।
(199) काम आना (युद्ध में वीर गति को प्राप्त होना)-देश के वीर युद्धभूमि में काम आकर अमर हो जाते हैं।
(200) गुदड़ी का लाल (निर्धन परन्तु गुणवान व्यक्ति)–भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री गुदड़ी के लाल थे। [2009]
(201) पलकें बिछाना (आतुर होकर प्रतीक्षा करना) विश्व विजेता भारतीय क्रिकेट दल के सदस्यों की अगवानी हेतु उनके शहरवासी पलकें बिछाये बैठे थे। [2012]
(202) खून का यूंट पीना (चुपचाप अपमान सहन करना) सास द्वारा बहू को गलती न होने के बावजूद डाँटे जाने पर भी वह खून का यूंट पीकर रह गई। [2016]

2. लोकोक्तियाँ (कहावतें)

मनुष्य का जीवन अनुभवों से भरा है। कभी-कभी एक ही अनुभव कई लोगों को होता है और उनके मुँह से जो बातें निकलती हैं वे प्रचलित होकर कहावत बन जाती हैं। लोक + उक्ति = लोकोक्ति, लोगों द्वारा कहा गया कथन है। ये लोकोक्तियाँ प्रायः नीति, व्यंग्य, चेतावनी, उपालम्भ आदि से सम्बन्धित होती हैं। अपनी बात की पुष्टि के लिए लोग लोकोक्ति का सहारा लेते हैं। कभी-कभी बिना असली बात कहे हुए भी लोग लोकोक्ति बोल देते हैं और वास्तविक अर्थ प्रसंग से समझ लिया जाता है।

लोकोक्तियाँ मुहावरे की अपेक्षा विस्तृत होती हैं। ये क्रियार्थक नहीं होतीं। ये अविकारी होती हैं, इन्हें लिंग, वचन के अनुसार बदलते नहीं हैं। इन्हें वाक्यों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। ये वाक्यरूप में ही अपने आप में पूर्ण होती हैं। लोकोक्तियाँ लेखकों के लेखन या भाषणकर्ताओं से निसृत होकर प्रचलित होती हैं। लोकोक्ति साहित्य का गौरव है। इन्हें समझने के लिए इनका सही अर्थ जानना आवश्यक है, तभी इनका प्रयोग सफल होगा।

लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए
(1) लोकोक्ति पढ़ते-पढ़ते ऐसे विस्तृत अनुभव को पकड़ने का प्रयास करना चाहिए, जिसका प्रतिनिधि बनकर लोकोक्ति का शब्द और अर्थ प्रयोग में लाया जाये।
(2) उस अनुभव वाले अर्थ को संक्षिप्त में एक वाक्य में स्पष्ट कर देना चाहिए।
(3) वर्तमान परिस्थिति में उस अनुभव को घटित करने वाली घटना और लोकोक्ति के अनुभव वाले अर्थ को फिर देख लेना चाहिए कि दोनों समानता रखते हों।।
(4) अब उक्त घटना को एक या दो वाक्यों में लिखकर उसके अन्त में समर्थन रूप में लोकोक्ति लिखनी चाहिए।

कुछ लोकोक्तियाँ,उनके अर्थ और वाक्य प्रयोग इस प्रकार हैं-
(1) अपना हाथ जगन्नाथ (अपने हाथ से किया गया काम सबसे अच्छा होता है। माँ ने कहा इससे अच्छे आपके कपड़े में नहीं धो सकती। बेहतर हो आप स्वयं साफ करें। सुना है न-अपना हाथ जगन्नाथ।
(2) अपने मरे सरग दिखता है (स्वयं कार्य करने से ही काम बनता है)-सेठजी ने नौकर को जरूरी काम से बाजार भेजा परन्तु दो बार जाने के बाद भी वह उस काम को नहीं कर पाया। इस पर सेठजी ने कहा-अपने मरे ही सरग दिखता है।
(3) अपने लड़के को काना कौन कहता है (अपनी वस्तु सभी को सुन्दर लगती है। रोहित अपनी हर चीज की बहुत तारीफ करता है परन्तु दूसरों की चीजों में नुक्स निकालता है। सच ही कहा गया है-अपने लड़के को काना कौन कहता है।
(4) अपना दाम खोटा तो परखैया क्या करे (जब स्वयं में दोष हो तो दूसरे भी बुरा कहेंगे) रीना का छोटा बेटा बड़ा ही उद्दण्ड है, जब पड़ौसी से उसका झगड़ा हुआ तो रीना बोली-अपना दाम खोटा तो परखैया क्या करे।
(5) अपनी करनी पार उतरनी (अपने ही परिश्रम से सफलता मिलती है) नरेश नकल की उम्मीद में रहकर परीक्षा में फेल हो गया तो उसकी माँ ने उसे समझाते हुए कहा-अपनी करनी पार उतरनी। [2009]
(6) अपनी-अपनी ढपली अपना राग (अपनी ही बातों को महत्ता देना)-आजकल तो सभी लोग अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलापते हैं।
(7) अपने ही शालिग्राम डिब्बे में नहीं समाते (जो अपना ही काम पूरी तरह नहीं कर पाता, वह दूसरों की क्या मदद करेगा) नन्दू बड़ा ही कामचोर है,एक बार जब वह पड़ौसी की मदद के लिये गया तो पड़ौसी ने कहा-रहने दो, तुम्हारे तो अपने ही शालिग्राम डिब्बे में नहीं समाते।
(8) अन्या पीसे कुत्ता खाय (नासमझ के कामों का लाभ चतुर उठाते हैं) महेश बहुत ही नासमझ है, हर कोई उसे बेवकूफ बनाकर अपना काम निकाल लेता है, उसका तो वही हिसाब है-अन्धा पीसे कुत्ता खाए।
(9) अतिसय रगर करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन ते होई (अधिक परिश्रम से कठिन काम भी सिद्ध होते हैं या अधिक छेड़ने से शान्त पुरुष भी गरम हो जाता है) विकास ने रात-दिन मेहनत करके आई. ए. एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की तो उसकी दादी ने कहा-अतिशय रगर करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन ते होई।

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(10) अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गईं खेत (हानि होने से पहले रक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए)-सेठ करोड़ीमल ने कंजूसी के कारण अपने जर्जर हुए मकान की मरम्मत नहीं कराई। जब बरसात में उनका मकान गिर पड़ा तो उनकी पत्नी ने कहा-अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गईं खेत।
(11) अन्या क्या चाहे दो आँखें (मनचाही वस्तु देने वाले से और कुछ नहीं चाहिए) रामकिशन ने जब भिखारी को भोजन और कपड़ा दिया तो वह खुश हो गया। भई, अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
(12) अकल बड़ी कि भैंस (वयस = उम्र) (उम्र के बड़प्पन से बुद्धि की श्रेष्ठता अधिक अच्छी है) घण्टों से साइकिल ठीक करने में जुटे रमेश के पन्द्रह वर्षीय भतीजे ने पलक झपकते ही साइकिल की खराबी दूर कर दी। किसी ने ठीक ही कहा है-अकल बड़ी या भैंस।
(13) आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास (ऊँचे उद्देश्य की तैयारी करके साधारण काम में जुट जाना)-सुरेश गाँव छोड़कर शहर में डॉक्टर बनने के सपने लेकर आया था परन्तु बमुश्किल उसे छोटी सी नौकरी ही मिल सकी। किसी ने ठीक ही कहा है-आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
(14) आम के आम गुठलियों के दाम (किसी वस्तु से दुहरा लाभ होना)-ट्रॉली वाले मलबा उठाने तथा मलबा डालने,दोनों के पैसे लेते हैं। उनके तो आम के आम गुठलियों के दाम
(15) आँख का अन्धा गाँठ का पूरा (नासमझ धनी पुरुष जो ठगी में पड़कर हानि उठाता है) जीवन ने परिणाम जानते हुए भी रेल में बेटिकट यात्रा की और पकड़ा गया। इसे कहते हैं-आँख का अन्धा गाँठ का पूरा।
(16) आँख के अन्धे नाम नयनसुख (नाम के विपरीत गुण होना)-ताले ठीक करने वाले से एक साधारण से ताले की चाबी भी न बन सकी तब ऐसा लगा मानो आँख के अन्धे नाम नयनसुख वाली कहावत चरितार्थ हो रही हो।।
(17) आधी रात खाँसी आए, शाम से मुँह फैलाये (काम का समय आने के बहुत पहले ही चिन्ता करने लगना)-मुनिया की शादी में अभी पूरे छः माह पड़े हैं परन्तु रामलाल ने अभी से पूरे घर में हाय-तौबा मचा रखी है। ऐसा लगता है मानो आधी रात खाँसी आये, शाम से मुँह फैलाये।
(18) आधा तेल आधा पानी (ऐसी मिलावट जो अनुपयोगी हो)-दुकानदार ने अधिक मुनाफा कमाने की जुगत में देशी घी में डालडा घी मिलाकर बेचना चाहा परन्तु सफल न हो सका। इसे कहते हैं-आधा तेल आधा पानी।
(19) इधर कआँ उधर खाई (दविधा की स्थिति या दोनों तरफ से हानि की सम्भावना) चोटिल सचिन को फाइनल मैच में खिलाएँ अथवा नहीं, पूरी टीम यह सोचती रही क्योंकि सभी खिलाड़ी जानते थे कि इधर कुआँ है और उधर खाई।।
(20) ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ के (अकस्मात् अत्यधिक लाभ हो जाना)-सब्जी बेचने वाली की लॉटरी क्या लगी उसकी तो किस्मत ही बदल गई। किसी ने ठीक ही कहा है-ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़के।

नोट-आगे कुछ लोकोक्तियों के मात्र अर्थ दिये जा रहे हैं। विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे अर्थ को भली-भाँति समझकर इन लोकोक्तियों को वाक्यों में प्रयोग करने का अभ्यास करेंगे।
(1) उल्टा चोर कोतवाल को डॉट-अनुचित काम करके भी न दबना।
(2) ऊखल में सिर देकर मूसलों का क्या डर–एक बार किसी मार्ग पर चल पड़ो तो फिर संकटों से घबराना नहीं चाहिए।
(3) ऊसर में मसर-व्यर्थ ही बीच में अड़ना।
(4) एक साथै, सब सधै, सब साधै सब जाय-एक हो काम मन लगाकर करना चाहिए, यदि निश्चय डिग गया तो सब नष्ट हो जायेगा।
(5) एक चना क्या भाड़ फोड़ेगा-अकेला व्यक्ति बड़ी योजना सफल नहीं बना पाता।
(6) एक हाथ से ताली नहीं बजती-लड़ाई या मित्रता अकेले सम्भव नहीं।
(7) एक मछली तालाब को गन्दा करती है-एक के दुष्कर्म से सहकर्मी बदनाम होते हैं।
(8) ओछे की प्रीति बालू की भीति-तुच्छ व्यक्ति की मित्रता स्थायी नहीं होती।
(9) आधी छोड़ सबको धावै, आधी जाय न सबरी पावै-लालच व्यक्ति के हाथ छ नहीं आता।
(10) काठ के उल्लू-निकम्मा आदमी। किसी काम का नहीं ;

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(11) कर नहीं तो डर नहीं-बुरा न किया तो किसी से डरना कैसा।।
(12) कड़वा करेला नीम चढ़ा-दुष्ट व्यक्ति को दुष्ट की संगति मिल जाये तो वह और अधिक दुष्ट हो जाता है।
(13) कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा इधर-उधर की वस्तुओं से काम चलाना।
(14) काम परै कछु और है, काम सरै कुछ और-स्वार्थ पूरा होने पर आदमी बदल जाता है।
(15) काजी घर के चूहे सयाने–चतुर लोगों की संगति में छोटे लोग भी चतुराई सीख जाते हैं।
(16) काजर की कोठरी में कैसहू सयानो जाय, एक लीक काजर की लागि है सो लागि है कुसंगति से कुछ न कुछ हानि अवश्य होती है।
(17) कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर सभी को सभी से काम पड़ता है।
(18) खोदा पहाड़ निकली चुहिया–बड़े श्रम से थोड़ा लाभ।
(19) खरगोश के सींग असम्भव बात,जो न देखी न सुनी।
(20) गुरु गुड़ हो रहे चेला शक्कर हो गये जिससे कोई गुण सीखा हो, उसकी अपेक्षा अधिक चतुराई दिखाना।।
(21) घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध-समीप रहने वाले गुणी को लोग महत्त्व नहीं देते, दूर वाले को सम्मान करते हैं।
(22) गिलोय और नीम चढ़ी-दुर्गुणों में और वृद्धि हो जाना,दो-दो दुर्गुण।

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MP Board Class 12th Special Hindi बोली, विभाषा, मातृभाषा, राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा

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1. भाषा

‘भाषा’ शब्द की मूल क्रिया भाष’ है। भाष का अर्थ ‘बोलना’ या ‘कहना’ होता है। जिन ध्वनियों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है,उसकी समष्टि को भाषा कहते हैं। बोलते समय हमारे विचारों की पूर्ण अभिव्यक्ति ध्वनि-चिह्नों से नहीं होती, मदद के लिए हम इंगित का भी प्रयोग करते हैं; जैसे-मुखाकृति, नयनों के भाव, हाथों का संचालन आदि। इंगित की सहायता के बिना वाणी अभिव्यक्ति में अपूर्ण रह जाती है।

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परिभाषा-उच्चरित ध्वनि-संकेतों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अभिव्यक्ति भाषा है। भाषा के मुख के कण्ठ,तालु आदि उच्चारण अवयवों से बोली गयी वह ध्वनि है जिसके द्वारा किसी समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। भाषा के तीन पक्ष होते हैं-

(1) व्यक्तिगत,
(2) सामाजिक,
(3) सामान्य या सर्वव्यापक।

भाषा के उपयोग का सबसे व्यापक क्षेत्र व्यक्ति और समाज के सम्पर्क से उत्पन्न होता है। मनुष्य का अपने आप से या किसी दूसरे व्यक्ति से भाषा की दृष्टि से जो सम्बन्ध है, वह अपेक्षाकृत सीमित होता है। जिस प्रकार कोई कार्य करने के लिए अपने अंगों में समन्वय की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार व्यक्ति भी समाज के अंग होते हैं और परस्पर समन्वय तथा संगठन बनाये रखने के लिए भाषा का उपयोग अपेक्षित है। सामाजिक दृष्टि से भाषा के चार उपयोग हैं :
(1) सूचन,
(2) प्रेरण,
(3) रसन,
(4) चिन्तन।

(1) भाषा का बहुलांश सूचनात्मक होता है। तकनीकी विषय, विज्ञान, इतिहास, भूगोल और समाचार-पत्र का उद्देश्य किसी न किसी प्रकार की सूचना देना होता है।
(2) प्रेरण को भाषा का गत्यात्मक उपयोग,कह सकते हैं। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग जनमत के निर्माण या किसी वस्तु के पक्ष-विपक्ष में धारणा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
(3) सामाजिक दृष्टि से भाषा का तीसरा उपयोग रचनात्मक या रसास्वादन है, जिसमें भाषा का रमणीय पक्ष सामने आता है। इसका मुख्य लक्षण भावों को उद्दीपन करना है। जैसे—युद्ध आदि के अवसर पर वीर रस की कविताएँ या चुनाव-प्रचार के समय जोशीले भाषण जन-भावना को जगाने की दृष्टि से होते हैं। इसका प्रधान उद्देश्य सौन्दर्यबोध भी है।
(4) भाषा का अन्यतम सामाजिक उपयोग चिन्तन से सम्बद्ध है। हम अपनी कोई वैयक्तिक समस्या सुलझाने के लिए जो चिन्तन करते हैं, वह समाज-निरपेक्ष होता है। इसके विपरीत धर्म,दर्शन, अर्थनीति, राजनीति आदि का सैद्धान्तिक निरूपण समाज-सापेक्ष चिन्तन के अन्तर्गत आता है।

भाषा के इन उपयोगों में परस्पर संकीर्णता नहीं है, क्योंकि एक की सीमा दूसरे से मिल जाती है।

भाषा का प्रयोग कई अर्थों में होता है। भाषा शब्द का प्रयोग कभी व्यापक अर्थ में होता है तो कभी संकुचित। जैसे—मूक भाषा,पशु-पक्षियों की भाषा आदि। व्यक्त वाणी का अर्थ यह भी है कि स्पष्ट और पूर्ण अभिव्यंजना हो जो वाचिक भाषा के सूक्ष्म अर्थ की बोधक है।

2. बोली

शिक्षा, संस्कार, पालन-पोषण, व्यवसाय, सामाजिक स्थिति, वातावरण आदि के भेद से व्यक्ति की भाषा का निर्धारण होता है। प्रत्येक व्यक्ति की भाषा दूसरे से भिन्न होती है या प्रत्येक व्यक्ति की भाषा स्वतन्त्र बोली जाती है। उसकी अपनी भाषा की विशेषता दूसरों से भिन्न होती है। किन्तु एक व्यक्ति की भाषा सदा एकरूप नहीं होती।

एक भाषा-क्षेत्र में कई उप-बोलियाँ होती हैं। प्रकृति की दृष्टि से भाषा और बोली में अन्तर करना बहुत कठिन है। ‘बोली’ किसी भाषा के एक ऐसे सीमित क्षेत्रीय रूप को कहते हैं जो ध्वनि, रूप, वाक्य-गठन, अर्थ,शब्द-समूह तथा मुहावरों आदि की दृष्टि से उस भाषा के अन्य क्षेत्रीय रूपों से भिन्न होती है।

जब बोली किन्हीं कारणों से महत्त्व प्राप्त कर लेती है तो भाषा कहलाने लगती है।

  • मध्य प्रदेश की मुख्य बोलियाँ –
  • मालवी – देवास,इन्दौर, धार, उज्जैन,रतलाम। [2009]
  • निमाड़ी – खरगौन, बड़वानी, खंडवा,झाबुआ।
  • ब्रज – भिण्ड,मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना।
  • बुन्देली – दतिया, टीकमगढ़, सागर, छतरपुर, जबलपुर। [2009]
  • छत्तीसगढ़ी – सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग।
  • बघेली – रीवा, सतना, सीधी, बालाघाट, शहडोल।
  • खड़ी बोली–प्रायः पूरे प्रदेश में पढ़े – लिखे सुसंस्कृत लोगों की बोली है। इसमें संस्कृत के साथ अरबी, फारसी, अंग्रेजी के तद्भव शब्दों के रूप मिलते हैं।

3. विभाषा (उप-भाषा)

इसे उप-भाषा भी कहा जाता है। विभाषा का क्षेत्र भाषा से कम व्यापक एकं बोली से अधिक विस्तृत होता है। एक प्रदेश में अथवा प्रदेश के भाग में सामान्य बोल-चाल, साहित्य आदि के लिए प्रयुक्त होने वाली भाषा को विभाषा कहते हैं। इसे क्षेत्रीय भाषा भी कहते हैं। पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी,राजस्थानी, बिहारी एवं गढ़वाली आदि विभाषाएँ हैं।

हिन्दी की पाँच उप-भाषाएँ हैं और प्रत्येक उप-भाषा की निम्नलिखित बोलियाँ हैं
(1) शौरसेनी-पश्चिमी हिन्दी (ब्रजभाषा,खड़ी बोली,बाँगरू, कन्नौजी,बुन्देली)। राजस्थानी (मेवाती,मारवाड़ी,मालवी,जयपुरी)। गुजराती (सौराष्ट्री)।
(2) अर्द्धमागधी-पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी) मागधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली,बंगला,असमी,उड़िया।
(3) खस–पहाड़ी (गढ़वाली, कुमाऊँनी, गोरखाली)।
(4) ब्राचड़-पंजाबी, सिन्धी।
(5) महाराष्ट्री-मराठी,कोंकणी।

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4. मातृभाषा

जो जिस प्रान्त का होता है और उसके माता-पिता,विशेषकर माता जो बोली बोलती हैं,वह मातृभाषा कहलाती है। भारत में बोलियों के अलावा 15 भाषाएँ प्रमुख हैं,जो वहाँ के सम्बन्धित निवासियों की मातृभाषा है। हिन्दी,मराठी, गुजराती,बंगला, असमिया,तेलुगू, तमिल,मलयालम, कन्नड़,पंजाबी,सिन्धी,उड़िया,उर्दू-ये प्रमुख मातृभाषाएँ हैं। इनको संविधान में भी स्थान प्राप्त है। प्रायः इन सभी भाषाओं में साहित्य की रचना की गयी है। इसलिए इन्हें भाषा का दर्जा प्राप्त है।

5. राजभाषा

राजभाषा और राष्ट्रभाषा ये दोनों शब्द मिलते-जुलते हैं,पर इनमें सामान्य और पारिभाषिक शब्द भिन्न हैं। अंग्रेजी में इनको ‘ऑफिशियल लेंग्वेज’ और ‘नेशनल लेंग्वेज’ कहते हैं।

राजभाषा यानी सरकारी कामकाज की भाषा अथवा भारतीय संघ की भाषा है। भारत का संविधान बनाते समय हिन्दी को राजभाषा माना गया। सात राज्यों में हिन्दी राजभाषा है, शेष राज्यों में अपनी-अपनी प्रदेशों की भाषाएँ हैं। सिन्धी, संस्कृत, कश्मीरी किसी भी राज्य की राजभाषा नहीं है।

राजभाषा बनाने के लिए सरकारी कामकाज इसी भाषा में होना चाहिए। शिक्षा का माध्यम, कार्य के निर्णय,रेडियो और दूरदर्शन में राजभाषा का प्रयोग होना चाहिए। लेकिन अहिन्दी भाषी राज्यों की सुविधा को ध्यान कर भारतीय संविधान में अंग्रेजी का प्रयोग सीमित समय तक के लिए रखा गया है।

6. राष्ट्रभाषा

प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र की एक सर्वसम्मत राष्ट्रभाषा होती है। राष्ट्रभाषा में राष्ट्र की संस्कृति, साहित्य और इतिहास की प्रेरणाएँ निहित होती हैं,जो जनजीवन को प्रभावित करती हैं। बहुभाषी देशों में सभी भाषाओं को समान सम्मान मिलता है,लेकिन वहाँ सम्पर्क की एक ही भाषा होती है जो राष्ट्रभाषा कहलाती है। देश के विभिन्न प्रदेश अपने प्रदेश में अपनी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं, किन्तु जहाँ सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रश्न आता है, वहाँ वे अपनी राष्ट्र भाषा का ही प्रयोग करते हैं। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा का पद दिया गया है।

राष्ट्रभाषा उसी तरह महत्त्वपूर्ण होती है,जैसे-राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज अथवा राष्ट्र चिह्नी वह पूरे राष्ट्र की संस्कृति की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी भाषा से उस व्यक्ति,समाज, देश का व्यक्तित्व झलकता है।

राष्ट्रभाषा के लिए सम्पर्क भाषा शब्द भी प्रयुक्त होता है।

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हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रमुख कारण यह है कि देश में इसके बोलने वाले 52 प्रतिशत से अधिक हैं। यही एकमात्र ऐसी भाषा है जो सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में समझी जा सकती है। देश के सात हिन्दी राज्यों में हिन्दी मातृभाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। हिन्दी का उद्भव संस्कृत परम्परा से जुड़े होने के कारण समस्त आर्य-परिवार की प्रान्तीय भाषा-शब्दावली हिन्दी से जुड़ी प्रतीत होती है।

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MP Board Class 12th Special Hindi वाक्य-परिवर्तन

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किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्यों में, अर्थ का परिवर्तन किये बिना परिवर्तित करने की प्रक्रिया को वाक्य-रूपान्तरण या वाक्य-परिवर्तन कहते हैं। किसी भी वाक्य को दूसरे वाक्यों में बदला जा सकता है, किन्तु उसके मूल भाव या अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

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वाक्य-रूपान्तरण के कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा रहे हैं :
1. साधारण या सरल वाक्य से मिश्रित वाक्य में
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2. सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य
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3. मिश्रित वाक्य से सरल वाक्य में
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4. मिश्रित वाक्य से संयुक्त वाक्य में
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5. संयुक्त वाक्य से मिश्रित वाक्य में
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6. कर्तृवाचक वाक्य से कर्मवाच्य वाक्य में
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7. विधिवाचक वाक्य से निषेधवाचक वाक्य में
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8. विधिवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक वाक्य में
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9. विधिवाचक वाक्य से आज्ञावाचक वाक्य में
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निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दिये गये निर्देश के अनुसार रूपान्तरित कीजिये
1. वह मेरा मित्र है। (बिना भाव बदले निषेधात्मक)
[वह मेरा शत्रु नहीं है।

2. राम घर पर है। (सन्देहवाचक)
[शायद राम घर पर है।

3. आलसी व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता। (मिश्रित वाक्य)
[जो व्यक्ति आलसी होता है,वह उन्नति नहीं कर सकता।]

4. भाग्यवादी होने से काम नहीं चलता। (प्रश्नवाचक)
क्या भाग्यवादी होने से काम नहीं चलता?]

5. उसने ताजमहल देखा है। (प्रश्नवाचक) (2012, 14)
क्या उसने ताजमहल देखा है?]

6. मैं यहाँ के प्राचार्य को नहीं जानता हूँ। (मिश्रित वाक्य)
मैं नहीं जानता हूँ कि यहाँ के प्राचार्य कौन हैं?

7. देशभक्त देश की रक्षा करते हैं। (आदेशात्मक)
देशभक्तो ! देश की रक्षा करो।

8. मैंने वह मकान खरीदा, जो मोहन का था। (साधारण वाक्य)
मैंने मोहन का मकान खरीदा।]

9. राम मूर्ख नहीं है। (बिना भाव बदले विधिवाचक वाक्य)
राम चतुर है।

10. मेरा विचार है कि आज घूमने चलें। (साधारण वाक्य)
मेरा आज घूमने जाने का विचार है।]

11. मैं गीता के रचयिता को नहीं जानता। (मिश्रित वाक्य) [2011]
मैं नहीं जानता कि गीता का रचयिता कौन है?]

12. कितना अद्भुत दृश्य है। (विस्मयवाचक) (2010, 11)
[वाह ! कितना अद्भुत दृश्य है।]

13. राम बुद्धिमान है। (बिना भाव बदले नकारात्मक) [2010]
[राम मूर्ख नहीं है।

14. तुम कल जाओगे। (प्रश्नवाचक) [2010]
क्या तुम कल जाओगे?]

15. जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। (सरल वाक्य) [2009]
[परिश्रमी छात्रों को सफलता अवश्य मिलती है।।

16. मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। (प्रश्नवाचक) (2015)
क्या मोहन पुस्तक पढ़ रहा है?]

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17. वर्षा होने पर हम बाहर नहीं जाते। मिश्रित वाक्य) [2009]
(जब वर्षा होती है, तब हम बाहर नहीं जाते हैं।

18. अच्छे विद्यार्थी परिश्रमी होते हैं। (मिश्रित वाक्य) [2009]
जो विद्यार्थी अच्छे होते हैं,वे परिश्रम करते हैं।

19. सूर्योदय होने पर पक्षी चहकने लगते हैं। (मिश्रित वाक्य) [2009]
[जब सूर्योदय होता है, तब पक्षी चहकने लगते हैं।]

20. गरीब (दरिद्र) होने पर भी वह ईमानदार है। (मिश्र वाक्य) [2009]
यद्यपि वह गरीब (दरिद्र) है,किन्तु ईमानदार है।

21. सत्य की सदा जीत होती है। (प्रश्नवाचक वाक्य) [2009]
क्या सत्य की सदा जीत होती है?]

22. यह काम कर दीजिए। (निषेधवाचक वाक्य) [2009]
यह काम मत कीजिए।

23. वह भोजन करके विद्यालय जाता है। (संयुक्त वाक्य) [2016]
वह भोजन करता है और विद्यालय जाता है।

24. कठोर बनकर भी सहदय बनो। (संयुक्त वाक्य) [2017]
कठोर बनें किन्तु सहृदय रहें।।

25. मयूर वन में नाचता है। (संदेहवाचक वाक्य) [2017]
[शायद मयूर वन में नाचता है।।

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MP Board Class 12th Special Hindi वाक्य-बोध, वाक्य-भेद

MP Board Class 12th Special Hindi वाक्य – बोध, वाक्य – भेद

1. वाक्य – बोध।

मनुष्य के भावों और अर्थों को भाषा के माध्यम से व्यक्त और स्पष्ट करना ही वाक्य का मुख्य प्रयोजन है। भाषा का सौन्दर्य और चमत्कार सुन्दर और सुगठित सुवाक्य रचना में होता है। वाक्य के तीन गुण प्रमुख होते हैं –
(i) आकांक्षा,
(ii) योग्यता और
(iii) सन्निधि।

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(i) आकांक्षा – वाक्य के एक पद को सुनकर आगे जानने की जिज्ञासा आकांक्षा है।
(ii) योग्यता – अन्वय करने के बाद वाक्य के अर्थबोध में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है,उसे योग्यता कहते हैं।
(iii) सन्निधि – योग्यता और आकांक्षा के साथ ही वाक्य के शब्दों में परस्पर सन्निधि आवश्यक है।

  • शुद्ध वाक्य के गुण
  1. स्पष्टता – वाक्य सरल और स्पष्ट होना चाहिए। उन्हें पढ़ते या सुनते समय बराबर विचारों का उद्रेक हो।
  2. समर्थता – पाठक या श्रोता की भावनाओं को जाग्रत करने में सुगठित वाक्य ठीक माना जाता है।
  3. अति मधुरता – रचना को प्रभावशाली बनाने के लिए उसमें ऐसे वाक्य होने चाहिए जो सुनने में मधुर लगें। ऐसे वाक्यों से युक्त रचना को पढ़ने से पाठक आनन्द का अनुभव करता है।
  • वाक्य – रचना में होने वाली सामान्य अशुद्धियाँ

लिखते और बोलते समय स्पष्ट बात कहने की बड़ी आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि बोला कुछ जाय, लिखा कुछ जाय और समझा कुछ और जाय। इन सब दोषों का मूल कारण होता है – वाक्य में भाषा का निर्वाह न करना। कभी – कभी असावधानी के कारण वाक्य – रचना में भ्रामकता का दोष आ जाता है। कभी – कभी दूसरी भाषा से प्रभावित होने के कारण लेखक शिथिल और अनावश्यक वाक्यों की रचना कर जाते हैं।
इन गुण – दोषों को ध्यान में रखकर बड़ी सावधानी से वाक्यों की शुद्ध रचना करनी चाहिए। वाक्य रचना में होने वाली सामान्य अशुद्धियाँ प्रायः इस प्रकार हैं

1. वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ – आदि, अनेक अथवा बहुवचन संज्ञा की क्रियाओं में प्रायः वचन सम्बन्धी त्रुटियाँ होती हैं। जैसे
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2. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ – विशेषण और विशेष्य का लिंग एक जैसा हो,समस्त पदों के सर्वनाम का लिंग एवं क्रिया का लिंग अन्तिम पद के अनुसार होना चाहिए। उदाहरण
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3. अर्थ सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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4. काल सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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5. पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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6. मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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7. अन्य अशुद्धियाँ
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1. वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्दों का प्रयोग

वर्तनी (Spelling) का तात्पर्य अक्षर – विन्यास से है। पहले इसके लिए ‘हिज्जे’ या ‘अक्षरी’ नाम प्रचलित थे। उच्चारण की शुद्धता के अनुसार एवं व्याकरण की दृष्टि के अनुरूप शब्दों को लिखना ही, वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्दों का प्रयोग कहलाता है।

इन अशुद्धियों के कारण होते हैं—अज्ञान, भ्रान्ति, असावधानी,बनकर बोलने की दुष्प्रवृत्ति और विदेशी प्रभाव।

शुद्ध लेखन के लिए शुद्ध वर्तनी अपेक्षित होती है। वर्तनी ही भाषा की प्रभाव – क्षमता बढ़ाती है। अतः वर्तनी के सुधार या शब्द – शुद्धिकरण के लिए नीचे कुछ अशुद्ध शब्दों के शुद्ध रूप दिये हैं-
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2. अर्थ की दृष्टि से सही शब्दों का चयन

हिन्दी में कतिपय ऐसे शब्द हैं जिन्हें ऊपर से देखने पर कोई अर्थ – भेद नहीं दिखाई देता है,पर सूक्ष्मतः उनमें अन्तर होता है। ऐसे शब्दों का ज्ञान आवश्यक है।
कुछ शब्दों का अर्थ तो एक ही रहता है, पर उनके प्रयोग में कुछ अन्तर रहता है। कभी – कभी सम्बद्ध शब्दों के प्रयोग से भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। जैसे
अशुद्ध वाक्य – शुद्ध वाक्य
(1) उसे व्यापार में हानि होने की आशा है। (1) उसे व्यापार में हानि होने की आशंका
(2) विनय को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की आशंका है। (2) विनय को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की आशा है।
(3) राम बुरी तरह प्रसिद्ध है। – (3) राम बुरी तरह बदनाम है।
(4) शोक है कि आपने मेरे पत्रों का उत्तर नहीं दिया। – (4) खेद है कि आपने मेरे पत्रों का उत्तर नहीं दिया।
(5) मैंने एक वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा देखी। – (5) मैंने एक वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा की।
(6) रमा एक मोतियों का हार गले में पहने – (6) रमा मोतियों का एक हार गले में पहने
(7) मीना चाचाजी के ऊपर विश्वास करती – (7) मीना चाचाजी पर विश्वास करती है।
(8) शब्द केवल संकेत मात्र होते हैं। – (8) शब्द संकेत मात्र होते हैं।
(9) आपके एक – एक शब्द तुले हुए होते – (9) आपका एक – एक शब्द तुला हुआ होता
(10) उसे अनेकों व्यक्तियों ने आर्शीवाद दिया। – (10) उसे अनेक व्यक्तियों ने आशीर्वाद दिया।

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(11) विंध्याचल पर्वत के दक्खिन में नर्मदा स्थित है। – (11) विंध्याचल के दक्षिण में नर्मदा स्थित
(12) मैं अपनी बात का स्पष्टीकरण करने के लिए तैयार हूँ। – (12) मैं अपनी बात का स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार हूँ।
(13) मैं अपने गुरु के ऊपर बहुत श्रद्धा करता – (13) मैं अपने गुरु पर बहुत श्रद्धा रखता हूँ।
(14) सौन्दर्यता सबको मोह लेती है। – (14) सुन्दरता सबको मोह लेती है।
(15) हवा चल रही है। – (15) हवा बह रही है।
(16) महादेवी वर्मा विद्वान महिला थी। – (16) महादेवी वर्मा एक विदुषी महिला थीं।
(17) श्रीकृष्ण के अनेकों नाम हैं। – (17) श्रीकृष्ण के अनेक नाम हैं।
(18) यह घी की शुद्ध दुकान है। – (18) यह शुद्ध घी की दुकान है।
(19) मोहन आटा पिसाकर लाया। – (19) मोहन अनाज पिसाकर लाया।
(20) वे सज्जन पुरुष कौन हैं? – (20) वे सज्जन कौन हैं?
(21) प्रत्येक वृक्ष फल देते हैं। – (21) प्रत्येक वृक्ष फल देता है।

अर्थ की दृष्टि से सही शब्दों का चयन करने के लिए सूक्ष्म अन्तर वाले शब्दों को जान लेना चाहिए जिससे सही अर्थ का ज्ञान हो तो हम सभी जगह उसका उपयोग कर सकें। जैसे

(1) अनुराग = स्त्री – पुरुष के बीच होने वाला स्नेह। प्रेम = स्नेह सम्बन्ध मात्र। वात्सल्य = छोटों के प्रति बड़ों का स्नेह। भक्ति = बड़ों के प्रति छोटों का श्रद्धायुक्त स्नेह।
(2) अस्त्र = जो फेंक कर मारा जाय; जैसे – तीर, भाला, बम। शस्त्र = जिससे काटा जाय; जैसे – तलवार, छुरा। आयुध = लड़ाई के सभी साधन आयुध कहलाते हैं। इसमें अस्त्र – शस्त्र के अतिरिक्त लाठी,गदा,छड़ आदि को भी ले सकते हैं। हथियार = हाथ से चलाये जाने वाले आयुध।
(3) अशुद्धि = अपवित्रता, मिलावट, लिखने अथवा बोलने में कमी, इन सभी को अशुद्धि कहते हैं। भूल = विस्मृति, जिसमें कर्ता की असावधानी प्रकट होती है। त्रुटि = वस्तु में किसी कमी का होना।
(4) अमूल्य = वस्तु जो मूल्य देकर प्राप्त न की जा सके। जैसे – विद्या, ज्ञान, प्रेम, सफलता, सुख, विश्वास। बहुमूल्य = जिसका अधिक मूल्य देना पड़े,जो वस्तु साधारण मूल्य की न हो। जैसे—सोना,प्लेटिनम,हीरा। महँगा = जिस वस्तु को बदलते बाजार भाव के कारण अधिक मूल्य देकर पाया जाये।
(5) अलभ्य = जिसे किसी उपाय से न पाया जाय। दुर्लभ = जिसे अधिक कष्ट उठाकर पाया जाय।
(6) अलौकिक = जो संसार में इन्द्रियों के द्वारा सुलभ न हो। असाधारण = जो सांसारिक होकर भी अधिकता से न मिलता हो। अस्वाभाविक = अप्राकृतिक, जो प्रकृति के नियमों से बाहर का प्रतीत हो।
(7) अर्पण = शरणगति का भाव लिए अर्पण। दान = धार्मिक भावना के साथ दूसरे का स्वत्व स्थापित करना; जैसे – जलदान, दीपदान, विद्यादान, गोदान, अन्नदान। प्रदान = सामान्य रूप से बड़ों के द्वारा छोटों को देना। वितरण = समाज में उत्पादित वस्तुओं के विभाजन की प्रणाली।
(8) अनुग्रह = बड़े की ओर से छोटों के अभीष्ट सम्पादन की स्नेहपूर्ण क्रिया अनुग्रह है। अनुकम्पा = दुःख दूर करने की चेष्टा से युक्त कृपा। दया = दुःख देखकर द्रवित होना। कृपा = दुःख – निवारण के सामर्थ्य से युक्त दया। सहानुभूति = दूसरे के दुःख में समभागी होने का भाव। करुणा = दुःख निवारण की व्याकुलता लिए हुए द्रवित होना। ममता = माता के समान किसी पर वत्सल भाव।
(9) अंग = (अवयव) भौतिक समष्टि का भाग; जैसे – शरीर का अंग, वृक्ष का अंग, शाखा आदि। देह = शरीर। आकृति = रेखाओं से बनी कोई समष्टि, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव।
(10) अमर्ष = द्वेष या दुःख जो तिरस्कार करने वाले के कारण होता है। क्रोध = प्रतिकूल आचरण के बदले में प्रतिकूल आचरण की प्रवत्ति। कलह = क्रोध को जब सक्रिय रूप दिया जाता है तो उससे होने वाला वाचिक या शारीरिक आचरण।

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(11) असुर = दैत्य या दानव – एक जाति विशेष, जो देवों के समकक्ष थी। राक्षस = यह अनुचित आचरण के कारण मनुष्य जाति के लिए आता है।
(12) अनुपम = बेजोड़ – जिसकी तुलना न हो सके। अपूर्व = जिसे पहले अनुभव न किया गया हो। अद्भुत = जो विस्मयजनक हो।
(13) आयु = जीवन के सम्पूर्ण समय को आयु कहते हैं। वयस् = जीवन के शरीर विकास सूचक भाग को वयस् कहा जाता है, जैसे – शैशव। अवस्था = दशा – जीवन के प्रसंग में बीते हुए जीवन का भाग। वयस् के अर्थ में भी चलता है, जैसे—युवावस्था, वृद्धावस्था।
(14) अबला = स्त्री की संज्ञा है जिससे उसकी कोमलता एवं निर्बलता का संकेत मिलता है। नारी = केवल नर जाति की स्त्री या मानवी। कान्ता = प्रिया, किसी पुरुष के स्नेह – सम्बन्ध से दिया हुआ स्त्री का नाम – जो चमक को भी प्रकट करता है। भार्या = वह स्त्री जो किसी पुरुष से अपने भरण – पोषण की प्राप्ति का अधिकार रखती हो। पत्नी = पति से सम्बद्ध धार्मिक कार्यों में पति का साथ देने वाली, जिसका धार्मिक रीति से विवाह सम्पन्न हुआ हो। वधू = विवाह के बाद नारी की संज्ञा। अंगना = अंगों की कोमलता तथा सुन्दरता की सूचक स्त्री की संज्ञा।
(15) आनन्द = समस्त मन, प्राण,शरीर, आत्मा के सम्मिलित सुखानुभूति को आनन्द कहते हैं, हर्षित,प्रसन्न। सुख = मन के अनुकूल किसी भी प्रतीति को सुख कहते हैं। हर्ष = सुख या आनन्द के कारण शरीर की रोमांचमयी अवस्था हर्ष है। उल्लास – उमंग = मन में सुख की वेगयुक्त अल्पकालिक क्रिया।

(16) भिज्ञ = विषय के ज्ञान से सम्पन्न। विज्ञ = विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला। बहुज्ञ = अनेक विषयों का ज्ञाता।
(17) अंश = मूर्त, अमूर्त तत्त्व का भाग। खण्ड = मूर्त पदार्थ का विभाजन।
(18) अन्न = मुख्य भोजन का धान्य विशेष। दाना = किसी भी वस्तु का गोलाई लिए छोटी इकाई का नाम। जैसे–माला का दाना,मोती का दाना, अनाज का दाना। शस्य = फसल, जो खेत में काटने हेतु लगी हो। खाद्य = सभी प्रकार का भोजन योग्य पदार्थ। पकवान = पका हुआ भोजन।
(19) आज्ञा = बड़ों द्वारा छोटों के प्रति काम की प्रेरणा। अनुज्ञा = श्रोता की इच्छा के समर्थन में स्वीकृतिसूचक कथन। अनुमति = बड़ों द्वारा सहमति अथवा किसी काम करने की इच्छा का समर्थन। आदेश = प्रायः कार्याधिकारी द्वारा दी हुई आज्ञा।
(20) अनुनय = किसी बात पर सहमत होने की प्रार्थना। विनय = निवेदन, शिष्टता. अनुशासन। प्रार्थना = किसी कार्यसिद्धि या वस्तु प्राप्ति के लिए विनययुक्त कथन। निवेदन = अपनी बात विनयपूर्वक रखना। आवेदन = अपनी योग्यता आदि के कथन द्वारा किसी पद या कार्य हेतु प्रस्तुत होना।
(21) आमन्त्रण – किसी अवसर पर सम्मिलित होने का बुलावा। निमन्त्रण = उत्सव के अवसर पर बुलाना। आह्वान = ललकारना, संघर्ष के लिए बुलाना।
(22) इच्छा = किसी वस्तु के प्रति मन का राग। आशा = इच्छा के साथ प्राप्ति की सम्भावना का सुख। उत्कण्ठा = जिज्ञासा। स्पृहा = उत्कृष्ट इच्छा। मनोरथ = अभिलाषा।
(23) उत्साह = बड़े कार्यों के प्रति प्रेरित करने वाला आनन्ददायक भाव। साहस = सहने की शक्ति को साहस कहते हैं।
(24) तेज = बाहरी प्रकाश। कान्ति = चमक। प्रकाश = किरण समूह।
(25) ईर्ष्या = दूसरे की उन्नति न सह पाना। स्पर्धा = दूसरे को उन्नत देखकर स्वयं उन्नति की होड़। असूया = दूसरे के गुणों में दोष ढूँढ़ना। द्वेष = दूसरे की बुराई की कामना।
बैर = बहुत दिनों का संचित क्रोध का रूप।
(26) खेद = अनिष्ट सूचना। अवसाद = मन – शरीर की निश्चेष्टता। क्लेश = मन – शरीर दोनों का पीड़ित होना। कष्ट = दुःखजनक स्थिति। व्यथा = पीड़ा। वेदना = पीड़ा का मानसिक अनुभव। यातना = दुःख भोगने की मनोदशा। यन्त्रणा = दुःख की दीर्घकालिक जकड़न।
(27) ऋतु = छ: ऋतुएँ होती हैं। मौसम = पारिस्थितिक भेद।

यहाँ पर उदाहरण के लिए कुछ अशुद्ध तथा शुद्ध वाक्य दिये गये हैं, जिनका सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। (पहला वाक्य अशुद्ध है तथा दूसरा वाक्य शुद्ध है।)
1. अनावृष्टि के कारण आगामी वर्ष पशुओं के आहार में भारी कमी की आशंका है।
[अनावृष्टि के कारण आगामी वर्ष में पशुओं के आहार में भारी कमी की सम्भावना है।]

2. अनुराधा ने अपने पति के गले में एक फूल की माला डाल दी।
[अनुराधा ने अपने पति के गले में फूलों की एक माला डाल दी।]

3. अनेकों विद्यार्थी उपाधि – वितरणोत्सव के समारोह में सम्मिलित नहीं हो सके। ”
[अनेक विद्यार्थी उपाधि – वितरण समारोह में सम्मिलित नहीं हो सके।।

4. अपने से बड़ों के प्रति स्नेह और छोटों के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त करना चाहिए।
[अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा और छोटों के प्रति स्नेह का भाव व्यक्त करना चाहिए।

5. आज का छात्र पढ़ने से अधिक फैशन को महत्व देते हैं।
[आज के छात्र पढ़ने से अधिक महत्त्व फैशन को देते हैं।]

6. आज शनिवार है और कल रविवार की छुट्टी है।
[आज शनिवार है और कल रविवार की छुट्टी होगी।

7. शीला आज्ञाकारी पत्नी है।
[शीला आज्ञाकारिणी पत्नी है।]

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8. हमारी देश की सरकार ईमानदार है।
[हमारे देश की सरकार ईमानदार है।

9. आपका पत्र धन्यवाद सहित मिला।
[आपका पत्र धन्यवादपूर्वक मिला।

10. आपका भवदीय। [2010]
[आपका या भवदीय ]

11. उसकी आँख से आँसू बह रहा है।
[उसकी आँख से आँसू निकल रहे हैं।]

12. हमें पानी दो।
[मुझे पानी दो।

13. आपका लिखावट बड़ा अच्छा है।
[आपकी लिखावट बड़ी अच्छी

14. आपकी सलाह ग्राह्य योग्य है।
[आपकी सलाह ग्राह्य है।)

15. कश्मीर की सौन्दर्यता दर्शनीय है।
कश्मीर का सौन्दर्य दर्शनीय है।।

16. वह लौटकर वापस आ गया।
[वह वापस आ गया। या वह लौटकर आ गया।

17. आपने वह प्रतिज्ञा न भूले होंगे।
[आप वह प्रतिज्ञा न भूले होंगे।

18. रामचरितमानस सबसे श्रेष्ठतम ग्रन्थ है। [2011]
[रामचरितमानस श्रेष्ठतम ग्रन्थ है।।]

19. यद्यपि वे सज्जन है लिन्तु क्रोधी है।
[यद्याचे वह सज्जन है, किन्तु क्रोधी है।]

20. वह धनी व्यक्ति है। (बिना अर्थ बदले नकारात्मक)
वह निर्धन व्यक्ति नहीं है।

21. उसके पास पाँच भूगोल की पुस्तकें हैं।
[उसके पास भूगोल की पाँच पुस्तकें हैं।]

22. सरोवर के अन्दर पानी भरा है। ,
सरोवर में पानी भरा है।।

23. पिता का पुत्र में विश्वास है।
पिता का पुत्र पर विश्वास है।।

24. कई ऑफिस के अधिकारी छुट्टी लेकर चले गए।
[ऑफिस के कई अधिकारी छुट्टी लेकर चले गए।

25. उनका बहुत भारी सम्मान हुआ।
[उनका बहुत सम्मान हुआ।]

26. उनके पूज्यास्पद पूज्य पिता चल बसे।
[उनके पूज्यास्पद (या पूज्य) पिता चल बसे।

27. उनका वहाँ जाने की इच्छा न थी।
उनकी वहाँ जाने की इच्छा न थी।

28. उसे मृत्यु – दण्ड की सजा मिली है।
[उसे मृत्यु – दण्ड मिला है।]

29. गाँधीजी का देश सदा आभारी रहेगा।
देश गाँधीजी का सदा आभारी रहेगा।

30. यह कार्य आवश्यकीय है।
यह कार्य आवश्यक है।।

31. मैं कल दिल्ली से वापस लौटूंगा।
[मैं कल दिल्ली से लौटूंगा।]

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32. उसने मेरे को कुछ नहीं बोला।
[उसने मुझे कुछ नहीं कहा।]

33. मैं आटा पिसवाने जा रहा हूँ।
मैं गेहूँ पिसवाने जा रहा हूँ।

34. वह गुणवान महिला है।
[वह गुणवती महिला है।

35. बन्दूक एक उपयोगी शस्त्र है।
[बन्दूक एक उपयोगी अस्त्र है।]

36. मेरी अंक सूची गुम हो गई है।
मेरी अंक सूची गुम गयी है।]

37. यदि परिश्रम करोगे तो अच्छे अंक प्राप्त करोगे।
[यदि परिश्रम करेंगे तब अच्छे अंक प्राप्त होंगे। [2010]

38. दोनों में यह उत्तमतर है।
दोनों में यह उत्तम है।]

39. उसके बाद फिर क्या हुआ?
[उसके बाद क्या हुआ?]

40. गाय बोलती है।
गाय रम्भाती है।

41. खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ।
(खरगोश को गाजर काटकर खिलाओ।

42. बच्चा दूध को रो रहा है।
[बच्चा दूध के लिये रो रहा है।।

43. महान् व्यक्ति सदा पूज्यनीय होते हैं।
[महान् व्यक्ति सदा पूजनीय होते हैं।

44. धातुओं में सोने से अधिक कीमती कोई धातु नहीं है।
सोना सबसे अधिक कीमती धातु है।।

45. वह बुद्धिमान लड़का है। (बिना अर्थ बदले नकारात्मक)
(वह मूर्ख लड़का नहीं है।।

46. यह एक उपयोगी पुस्तक है.उसे खरीद लो।
[यह एक उपयोगी पुस्तक है,इसे खरीद लो।

47. वह प्रतिदिन सबेरे के समय पढ़ता है।
[वह प्रतिदिन सुबह पढ़ता है।

48. भगवान के अनेकों नाम हैं।
भगवान के अनेक नाम हैं।]

49. उसने ऊपर को देखकर हँसा।
[वह ऊपर देखकर हँसा।]

50. रमेश प्रतिदिन हर रोज स्कूल जाता है।
[रमेश प्रतिदिन स्कूल जाता है।]

51. श्रीमती महादेवी वर्मा विद्वान् महिला हैं।
[श्रीमती महादेवी वर्मा विदुषी हैं।]

52. उसकी टाँग टूट गया।
[उसकी टाँग टूट गई।

53. उसके सामने एक गहरी समस्या है।
[उसके सामने एक गम्भीर समस्या है।

54. लक्ष्मीबाई एक तेजस्वी नारी थीं।
लक्ष्मीबाई एक तेजस्विनी नारी थीं।

55. वह सन्तान को लेकर दुःखी है।
वह सन्तान के कारण दुःखी है।] [2011]

56. जो कल आएगा सो पुरस्कार पाएगा।
जो कल आएगा वह पुरस्कार पाएगा।

57. गाँधी जी पक्के ईश्वर भक्त थे।
गाँधी जी सच्चे ईश्वर भक्त थे।

58. जंगल में शेर चिंघाड़ने लगा।
जंगल में शेर दहाड़ने लगा।

59. वह खाना खाकर के जाएगा।
वह खाना खाकर जाएगा।।

60. वे सज्जन पुरुष कौन हैं?
वे सज्जन कौन हैं?]

61. आप अपने मन से सोचें।
आप अपने मन में सोचें।।

62. भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए।
भारत की जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए।]

63. राम – श्याम के झगड़े का हेतु क्या हो सकता है?
[राम – श्याम के झगड़े का कारण क्या हो सकता है?]

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  • विराम चिह्नों का उपयोग

बोलना एक विशिष्ट कला है, जिसका आवश्यक गुण यह है कि सुनने वाला या सुनने वाले बोलने वाले के भाव को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए यह अनिवार्य है कि बोलने वाला बीच – बीच में आवश्यकतानुसार कुछ – कुछ ठहरकर बोले। यही क्रम बोलने में होता भी है। वह किसी पद,वाक्यांश या वाक्य को बोलते समय ठहरता जाता है ! इस विश्राम को व्याकरण में ‘विराम’ कहते हैं। लिखते समय ऐसे स्थानों पर कुछ चिह्न लगा दिये जाते हैं। इन चिह्नों को ‘विराम चिह्न’ कहते हैं। शाब्दिक अर्थ के अनुसार विराम’ का अर्थ है रुकाव, ठहराव अथवा विश्राम। बोलने में कहीं कम समय लगता है और कहीं ज्यादा। इसी दृष्टि से चिह्न भी कम समय और अधिक समय के अनुसार अलग – अलग होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी चिह्न होते हैं, जिनका अध्ययन साहित्य के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त अनिवार्य है।

चिह्नों का महत्त्व इतना अधिक है कि भूल से गलत स्थान पर चिह्न लगा देने से वाक्य का अर्थ बदल जाता है, अत: चिह्न लगाने में पूर्ण सावधानी रखना आवश्यक है,जैसे – –
रुको मत जाओ। (कोई चिह्न नहीं)
रुको मत जाओ। (जाने का निषेध)
रुको मत,जाओ। (रुकने का निषेध)

राष्ट्र भाषा हिन्दी में आजकल उसके विकास के साथ – साथ विराम चिह्नों की संख्या और प्रयोग बढ़ता जा रहा है। प्रमुख विराम चिह्न जिनका आजकल प्रयोग बहुतायत से होता है, निम्नानुसार हैं
1. अल्प विराम ( , )
2. अर्द्ध विराम (;)
3. पूर्ण विराम (।)
4. प्रश्न चिह्न (?)
5. विस्मयादि बोधक (!)
6. संयोजक चिह्न ( – )
7. निर्देशक चिह्न ( – )
8. कोष्ठक () []
9. उद्धरण या अवतरण चिह्न ‘ ‘ ” ”
10. लोप निर्देशक xxx …..
11. आदेश चिह्न : –
12. लाघव चिह्न °
13. हंस पद ^
14. बराबर सूचक चिह्न =
15. पुनरुक्ति बोध चिह्न (,,)
16. समाप्ति सूचक चिह्न – : x : –

(1) अल्प विराम (,)
यह चिह्न उस स्थान पर लगाया जाता है, जहाँ वक्ता बहुत ही थोड़े समय के लिए रुके।
जैसे –
हेमलता,शारदा, वेदश्री और जयश्री उज्जैन, देवास और महू होकर आज ही लौटी हैं। वह आयेगा, परन्तु रुकेगा नहीं।

(2) अर्द्ध विराम ( ; )
अर्द्ध विराम के चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि अल्प विराम से कुछ अधिक समय तक रुकना हो। इसका प्रयोग प्रायःदो स्वतन्त्र उपवाक्यों को अलग करने के लिए किया जाता है।

जैसे
मैंने गोली चलने की आवाज सुनी;
चार पक्षी फड़फड़ाकर जमीन पर गिर पड़े।

(3) पूर्ण विराम (।)
वाक्य पूरा होने पर कुछ अधिक समय के लिए रुकना होता है, इसलिए प्रत्येक वाक्य की पूर्णता पर इस चिह्न का प्रयोग करते हैं। जैसे
बांग्लादेश आजाद हो गया।

संकेत – कुछ लोग इस चिह्न को पूर्ण विराम के स्थान पर केवल ‘विराम’ कहते हैं और पूर्ण विराम के चिह्न दो खड़ी लकीर ( ॥) को मानते हैं। साधारणत: दो खड़ी लकीर वाले इस चिह्न
का प्रयोग पद्य की पूर्णता पर किया जाता है। जैसे

देख्यो रूप अपार, मोहन सुन्दर श्याम को।
वह ब्रज राजकुमार,हिय – जिय नैनन में बस्यो।

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(4) प्रश्न चिह्न (?)
प्रश्नवाचक चिह्न, प्रश्न सूचक वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर आता है। जैसे
1. यह किसका घर है?
2. वह कहाँ जा रहा है?

(5) विस्मयादिबोधक चिह्न (!)
इस चिह्न का प्रयोग विस्मयादि सूचक शब्दों या वाक्यों के अन्त में किया जाता है। सम्बोधन कारक की संज्ञा के अन्त में भी इसे लगाया जाता है। जैसे
1. अरे ! वहाँ कौन खड़ा है।
2. हाय ! इसका बुरा हुआ।
3. हे ईश्वर ! उसकी रक्षा करो।

(6) संयोजक चिह्न ( – )
इसे सामासिक चिह्न भी कहते हैं। इस चिह्न का प्रयोग सामासिक शब्दों के मध्य में होता है। जैसे
हे ! हर – हार – अहार – सुत,मैं विनवत हूँ तोय।

(7) निर्देशक चिह्न ( – ) (: – )
इस चिह्न का दूसरा नाम विवरण चिह्न भी है। इसका प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है, जबकि किसी वाक्य के आगे कई बातें क्रम से लिखी जाती हैं। इसे आदेश चिह्न भी कहते हैं।
निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा लिखो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया। कभी – कभी (: – ) इस चिह्न के स्थान पर डेश ( – ) का भी प्रयोग कर लिया जाता है।

(8) कोष्ठक () [ ]
कोष्ठक का प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है—
1. किसी विषय के क्रम बतलाने के लिए अक्षरों या अंकों के साथ इसका प्रयोग होता है। जैसे
(क) व्यक्ति वाचक संख्या। (ख) जाति वाचक संख्या।
(1) एशिया
(2) यूरोप

2. वाक्य के मध्य में किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे
हे कोन्तेय,(अर्जुन) तू क्लेव्यता (कायरता) को प्राप्त न हो।

3. नाटकों में अभिनय को प्रकट करने के लिए भी कोष्ठकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे
महाराणा प्रताप – क्रोध से) नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता।
मानसिंह – (नम्रता से) राणा ! हठ न करो। बात के मान लेने में तुम्हारा हित है।

(9) अधरण या अवतरण चिह्न (‘) (” “)
हिन्दी में इस चिह्न के अन्य नाम भी हैं। जैसे – उल्टा विराम,युगल – पाश,आदि। इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि किसी व्यक्ति की बात या कथन को उसी के शब्दों में लिखना होता है। यह चिह्न वाक्य के आदि और अन्त में लगाया जाता है। इकहरे और दोहरे चिह्नों में यह अन्तर है कि जब किसी उद्धरण को लिखना होता है तो दोहरे चिह्न लगाये जाते हैं, किन्तु वाक्य के मध्य में यदि आवश्यकता हुई तो इकहरे उद्धरण चिह्न को लगाया जाता है।

अकबर ने उस दिन प्रार्थना के स्वर में कहा, “हे विश्वनियन्ता ! तू सत्य है; तू ही राम; तू ही रहीम है।” उसने आगे कहा,“दुनिया में सच्चा ईमान ‘मानव धर्म’ है।”

(10) लोप निर्देशक चिह्न (xxx) (……)
इन चिह्नों का प्रयोग तब होता है, जबकि कोई लेखक किसी का उद्धरण देते समय कुछ अंश छोड़ना चाहता है। इनका प्रयोग निम्नांनुसार किया जाता है
1. उस स्थिति में जबकि लेखक किसी लम्बे विवरण को छोड़कर आगे की बात लिखना चाहता है,तब वह चार – पाँच ऐसे निशान लगा देता है। जैसे
आग का वह दृश्य क्या था,सर्वस्व नाश की विभीषिका थी। चारों ओर से लोग दौड़ रहे थे। xxx सम्पूर्ण गाँव जलकर स्वाहा हो गया।
2. जब कुछ शब्द या वाक्य छोड़ने होते हैं, तो ‘ इसका प्रयोग करते हैं। जैसे – बम्बई नगर है। रिक्त स्थान की पूर्ति करो।

(11) आदेश चिह्न (: – )
जब प्रश्न न पूछा जाकर आदेश दिया जाये वहाँ आदेश चिह्न लगाया जाता है, जैसे किन्हीं पाँच चीनी यात्रियों का नाम लिखिए :

(12) लाघव चिह्न (०)।
जब किसी प्रसिद्ध शब्द को पूरा न लिखकर संक्षेप में लिखा जाता है,तब उसका प्रारम्भिक अक्षर लिखकर लाघव चिह्न (०) लगा दिया जाता है। जैसे
हिन्दी साहित्य सम्मेलन – हि. सा. स.
मध्य प्रदेश राज्य – म. प्र. राज्य
नागरी प्रचारिणी सभा,काशी – ना० प्र० स० ,काशी

(13) हंस पद (.)
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि कोई शब्द या बात वाक्य लिखते समय मध्य में छूट जाय। उस स्थिति में नीचे इस चिह्न को लगाकर ऊपर वह शब्द लिख दिया जाता है। जैसे
वह
“मैंने पास जाकर देखा गुलाब का फूल था।”

(14) बराबर सूचक चिह्न (=)
इस चिह्न को तुल्यता सूचक चिह्न भी कहते हैं। इसका प्रयोग समानता दिखलाने के लिए किया जाता है। जैसे –
विद्या + आलय = विद्यालय

(15) पुनरुक्ति बोध चिह्न (,)
उस स्थिति में जबकि ऊपर कही हुई बात अथवा शब्द को नीचे की ओर उसी रूप में लिखना होता है, तो इस चिह्न को लगा देते हैं, जिसका मतलब होता है – यह वही शब्द है जो
ऊपर लिखा हुआ है। जैसे
5 आदमी एक काम 15 दिन में करते हैं
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(16) समाप्ति सूचक चिह्न ( – : x : – )
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है,जबकि कोई लेख अध्याय,परिच्छेद, पुस्तक आदि समाप्त हो गई हो। जैसे
और इस प्रकार भारत देश आजाद हुआ।
( – : x : – )

वाक्य – भेद

(1) रचना के अनुसार वाक्य के तीन भेद होते हैं :

  1. सरल,
  2. मिश्रित और
  3. संयुक्त वाक्य।

(i) जिस वाक्य में एक ही संज्ञा और क्रिया का प्रयोग होता है, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं।
(ii) जन मूल वाक्य के साथ एक या अधिक वाक्य और भी मिले होते हैं,तब वह वाक्य मिश्रित वाक्य कहलाता है।
(ii) जब कई सरल और मिश्रित वाक्य – समूह अव्ययों के द्वारा एक ही वाक्य में जुड़े रहते हैं, तब वह वाक्य संयुक्त वाक्य कहलाता है।

(2) अर्थ के अनुसार वाक्यों के प्रकार

  1. विधिवाचक – मधु मेरे घर आयी।
  2. निषेधवाचक – मधु मेरे घर नहीं आयी।
  3. आज्ञार्थक – मधु मेरे घर आये और मिले।
  4. प्रश्नवाचक क्या मधु आयी थी?
  5. विस्मयादिबोधक – हाय मधु आए तो कितना अच्छा !
  6. इच्छाबोध – अच्छा हो कि मधु मेरे घर आए।
  7. सन्देहसूचक – मधु जरूर मेरे घर आयी होगी।
  8. संकेतार्थक – यदि मधु जानती तो जरूर मेरे घर आती।

(3) क्रिया के अनुसार वाक्यों के भेद

  1. कर्तृ प्रधान,
  2. कर्म प्रधान,
  3. भाव प्रधान।

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MP Board Class 12th Special Hindi स्वाति लेखक परिचय (Chapter 6-11)

MP Board Class 12th Special Hindi स्वाति लेखक परिचय (Chapter 6-11)

6. डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’
[2010]

  • जीवन परिचय

साठोत्तरी हिन्दी नाटककारों में डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। आपका जन्म 8 फरवरी,सन् 1936 को उन्नाव (उत्तर प्रदेश) जिले के राजापुर गढ़ेवा ग्राम में हुआ था। आपने एम. ए. और पी-एच.डी. तक शिक्षा ग्रहण की है।

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  • साहित्य सेवा

डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ आधुनिक नाट्यशास्त्र को नई दिशा की ओर मोड़ने वाले एक प्रतिभासम्पन्न नाटककार के रूप में सुविख्यात हैं। आपने अब तक सोलह नाटक, चार एकांकी संग्रह,दो कविता-संग्रह,एक उपन्यास,आत्मकथा तथा समीक्षात्मक ग्रन्थ लिखे हैं। लेखन का यह तीव्र क्रम वर्तमान में भी जारी है।

  • रचनाएँ

इनकी अनेक रचनाएँ हैं, जिनमें ऐतिहासिक तथा समाज की विसंगतियों का सरलता से बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है। इनके द्वारा लिखे गये एकांकियों में ‘स्वप्न का सत्य’, ‘टूटते हुए’,’बहुरुपिए’, ‘मुखौटे बोलते हैं’, ‘गृह कलह’, कायाकल्प’,’समर्पण’,’प्रायश्चित’ आदि प्रमुख।

  • वर्ण्य विषय

इनके नाटक व एकांकी सम-सामायिक समाज की स्थिति तथा ऐतिहासिकता को लेकर रचे गये हैं, जिनके पात्र भी ऐतिहासिक व सत्य हैं। सामाजिक रचनाओं में इन्होंने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनैतिकता और अन्धविश्वास पर करारा व्यंग्य किया है।

  • भाषा

इनकी भाषा सरल, अभिनेय और मंचीय है। वाक्य छोटे होने के साथ बोधगम्य तथा सरल हैं। भाषा में प्रवाह है तथा वह संवाद तथा कथ्य को आगे बढ़ाने में पूर्णतः समर्थ है। कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। कथ्य को प्रभावशाली बनाने के लिए विदेशी, देशज इत्यादि शब्दों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है। भाषा में महावरों तथा कहावतों का प्रयोग भी देखने को मिलता है; जैसे—आस्तीन का साँप, इज्जत धूल में मिलाना इत्यादि। भाषा पात्रों के अनुकूल है।

  • शैली

जहाँ एक ओर आपने सामाजिक बुराइयों को उजागर कर उन्हें दूर करने के लिए व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया गया है वहीं दूसरी ओर आपने अपने समस्त नाटक नाट्य-शैली में प्रस्तुत किये हैं। संवादों की लघुता, भावों की गहराई का परिचय देती है। एकांकियों की शैली मंचीय है। व्यंग्यात्मक स्थानों में उद्धरण, व्याख्या, व्यास और सूक्ति शैली को अपनाया गया है।

  • साहित्य में स्थान

नई पीढ़ी के नाटककारों में डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ को एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आपने नाटक,कहानी,एकांकी, कविता, उपन्यास, आत्मकथा तथा समीक्षात्मक विधाओं में हिन्दी साहित्य को अनुपम कृतियाँ प्रदान की हैं। कृतियों की मौलिकता के कारण डॉ.शक्ल अग्रणी साहित्यकारों में गिने जाते हैं।

7. पं. रामनारायण उपाध्याय
[2009, 11, 14, 17]

घर के विद्वत् वातावरण तथा संस्कृतनिष्ठ संस्कारों से युक्त पं. रामनारायण उपाध्याय ने मध्य प्रदेश की आदिवासी संस्कृति को साहित्य में उतारने का प्रशंसनीय कार्य किया है। उनका साहित्य ग्रामीण को उजागर करने में सफल रहा है। वह अपने पाठकों को अपनी बात बताने में सहजता की डोर पकड़े रहते हैं।

  • जीवन परिचय

पं.रामनारायण उपाध्याय का जन्म 20 मई,सन् 1918 को कालमुखी नामक ग्राम,जिला (खण्डवा) मध्य प्रदेश में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री सिद्धनाथ तथा माता का नाम दुर्गादेवी था। आपने साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्राप्त की और पण्डित कहलाने लगे। आपने अंग्रेजी-हिन्दी का विशद अध्ययन किया जिस कारण आपका जीवन दृष्टिकोण भी अति उदार तथा विशाल बना। आप ग्रामीण जीवन व माटी से जुड़े रहे। यही ग्रामीण वातावरण आपके साहित्य में परिलक्षित होता है। आप गाँधीवादी विचारधारा से पूरी तरह प्रभावित थे। आपकी लेखनी सत्य और मानव कल्याण के लिये थी। ग्राम संस्कृति के चितेरे पं.रामनारायण उपाध्याय 20 जून,सन् 2001 को स्वर्गवासी हए।

  • साहित्य सेवा

निमाडी लोक साहित्य के मर्मज्ञ पं. उपाध्यायजी जन्मजात प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। ‘ अत: लिखने के लिए एकान्त के अतिरिक्त उन्हें किसी वस्तु व साधन की आवश्यकता नहीं थी। वे ‘मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद्-भोपाल’ तथा ‘राष्ट्र भाषा परिषद भोपाल’ के संस्थापक सदस्य रहे। आपने अपनी पत्नी शकुन्तला देवी की स्मृति में ‘लोक-संस्कृति न्यास की स्थापना 27 नवम्बर, सन् 1989 को की। आपको लोक संस्कृति शोध संस्थान, चुरू (राजस्थान) द्वारा ‘निमाड़ का सांस्कृतिक इतिहास’ पर झवेर चन्द मेधाणी स्वर्णपदक (1982) में, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मान (1986) में, इंडियन फोकलोर सोसायटी, कलकत्ता द्वारा भोजपुरी सम्मेलन, रेणुकूट, वाराणसी में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ (1993) में,तथा मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा 11000 रुपये का भवभूति अलंकरण’ (1996) में प्राप्त हुआ। पंडितजी की प्रकाशित रचनाओं की संख्या चालीस से अधिक है। ‘कुंकुम-कलश और आम्रपल्लव’, ‘हम तो बाबुल तोरे बाग की चिड़िया’, ‘कथाओं की अन्तर्कथाएँ’, ‘चतुर चिडिया’ तथा ‘निमाड़ का लोक-साहित्य और उसका इतिहास’ उनकी पुरस्कृत रचनाएँ हैं।

  • रचनाएँ

पं. उपाध्याय जी ने साहित्य की विविध विधाओं; जैसे-व्यंग्य, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज,लघु कथाएँ आदि में लिखा।

  1. संस्मरण-कथाओं की अन्तर्कथाएँ’, जिन्हें भूल न सका।
  2. व्यंग्य–’बख्शीश नामा’, ‘घुघराले काँच की दीवार’।
  3. ललित निबन्ध–’जनम-जनम के फेरे’, ‘आओ अब घर चलें’ ‘आस्थाओं की जमीन’।
  4. लोक साहित्य-निमाड़ का सांस्कृतिक इतिहास’, ‘लोक जीवन में राम’।
  5. पत्र-संग्रह–’चिट्ठी-पत्री’।
  6. व्यक्तित्व-कृतित्व-‘मामूली आदमी’, ‘धरती का बेटा’। वर्ण्य विषय बहुमुखी प्रतिभा के धनी पं.उपाध्याय जी को अपने गाँव से ही साहित्य रचने की प्रेरणा मिली। उनकी सम्पर्क-शीलता, जनसाधारण से पत्र-व्यवहार और परिचय की व्यापकता ने

उन्हें साहित्य रचना का वर्ण्य-विषय प्रदान किया। निमाड़ी लोक-जीवन को साहित्य में उतारने का सराहनीय कार्य पंडितजी ने किया। एक सच्चे किसान की भावुकता,सहृदयता और क्रियाशीलता उनके साहित्य में सर्वज्ञ दिखाई देती है। गाँधीवादी जीवन और विचारधारा के साथ ग्राम और ग्राम्य संस्कृति उनकी रचनाओं के आधार हैं।

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  • भाषा

लोक साहित्यविद् पंडितजी की भाषा भी लोकभाषा ही है। लेकिन संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में विदेशी शब्द, जैसे-ऑर्डर, स्टेशन इत्यादि का प्रयोग है। साथ ही, साधारण बोलचाल के आंचलिक शब्दों का प्रयोग भाषा को मधुरता देता है। पंडितजी को शब्दों से मोह नहीं है। वह तो यन्त्र के पुजों की तरह फिट बैठने वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं। कहीं-कहीं वाक्यों में सूत्रता आ जाती है। अधिकतर वाक्य छोटे व विचारपूर्ण हैं। परन्तु लघु गद्यांश रूप में भी वाक्यों का प्रयोग करने में वे नहीं चूकते। इस प्रकार उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण तथा बोधगम्यतापूर्ण है।

  • शैली

पं.रामनारायण उपाध्याय जी की शैली में विविधता है। “मैं क्यों लिखता हूँ?” निबन्ध में उन्होंने आत्मपरक शैली को अपनाया। लोक साहित्य में वर्णनात्मक शैली को निभाया। इस शैली की भाषा सरल व प्रवाहपूर्ण है। अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए उन्होंने यत्र-तत्र सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। व्यंग्यात्मक निबन्धों में व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया तो संस्मरणों में भावात्मक शैली को। इस प्रकार लेखक ने समय के अनुसार विविध शैलियों का प्रयोग करके अपने साहित्य का कलेवर सजाया है।

  • साहित्य में स्थान

लोक-संस्कृति-पुरुष के रूप में पंडित जी ने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की है। हिन्दी साहित्य के भण्डार को विविध साहित्यिक विधाओं से भरने के कारण उनका एक विशिष्ट स्थान है। ग्रामीण जीवन की अभिव्यक्ति ने उनके साहित्य को अनुपम बना दिया है। हिन्दी गद्य साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा।

8. डॉ. रघुवीर सिंह [2009, 11, 12, 13]

इतिहास को साहित्य में पिरोने वाले डॉ.रघुवीर सिंह इतिहास एवं संस्कृति के प्रवक्ता के रूप में जाने जाते हैं। एक राजघराने में जन्म लेकर भी आप साहित्य-सृजन के कष्टपूर्ण और तपस्या के मार्ग पर बड़ी सफलता से आगे बढ़े। इनके भावात्मक निबन्धों के लिए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं-~-“ये हृदय के मर्मस्थल से निकले हैं और सहृदयों के शिरीष-कोमल अन्तस्तल में सीधे जाकर सुखपूर्वक आसन जमाएँगे।”

  • जीवन परिचय

डॉ. रघुवीर सिंह का जन्म सन् 1908 ई. में मन्दसौर जिले के सीतामऊ के राजघराने में हुआ था। इनके पिता मालवा की सीतामऊ रियासत के महाराज थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर तथा उच्च शिक्षा होल्कर कॉलेज, इन्दौर में हुई। आपने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा एल. एल. बी. की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। ‘मालवा में युगान्तर’ नामक शोधग्रन्थ पर आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी.लिट. की उपाधि प्रदान की। सन् 1991 में इनका निधन हो गया।

  • साहित्य सेवा

राजघराने से सम्बन्धित होते हुए भी रघुवीर सिंह ने साहित्य-साधना के कठिन मार्ग को अपनाया। ये प्रमुख रूप से निबन्ध लेखक थे। इनके निबन्धों की शैली सजीव एवं ओजपूर्ण है। ‘शेष स्मृतियाँ’ इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक है। ‘ताज’, ‘फतेहपुर सीकरी’ पर आलंकारिक शैली में निबन्ध लिखकर इन्होंने पर्याप्त ख्याति अर्जित की।

• रचनाएँ
(1) इतिहास सम्बन्धी रचनाएँ–’पूर्व मध्यकालीन भारत’, ‘मालवा में युगान्तर’, ‘पूर्व आधुनिक राजस्थान’।
(2) साहित्यिक कृतियाँ-‘शेष स्मृतियाँ’, ‘सप्तदीप’,’बिखरे फूल’ तथा ‘जीवन कण’।

• वर्ण्य विषय
रघुवीर सिंह प्रसिद्ध इतिहास लेखक तथा गद्यकाव्य सर्जक हैं। ‘मध्य युग का इतिहास’ उनके साहित्य का विषय था। इतिहास के ज्ञाता होने के साथ-साथ तथा सहृदय सौन्दर्य उपासक होने के कारण वे साहित्य में भी अपनी गहरी पैठ बना सके। आप हिन्दी साहित्य में ऐतिहासिक निबन्धकार के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसी कारण इनके साहित्यिक निबन्धों में भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का आश्रय विद्यमान है, जिसमें तत्कालीन युग-जीवन मुखर है। सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक ‘शेष स्मृतियाँ’ ऐतिहासिक आधार पर लिखे गये भावात्मक निबन्धों का संग्रह है।

  • भाषा

डॉ. रघुवीर सिंह की भाषा सरल, स्पष्ट और सुबोध है। यद्यपि भाषा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से युक्त है तथापि यथावसर उर्दू शब्दों के प्रयोग से भी परहेज नहीं किया गया है। इसी कारण विषय-प्रतिपादन में प्रवाह और प्रभावोत्पादकता आ गई है। भाषा ललित हो गई है जो सहज ही पाठक को भाव-प्रवण और संवेदनशील बना देती है। तत्सम शब्दों की प्रधानता है, जैसे-द्युति, स्मृति, विरक्त, तृप्त आदि। कहावतों,मुहावरों और अलंकारों के प्रयोग ने भाषा को गति प्रदान की है। ‘प्यार की ठण्डी दुलारी बयार’ जैसे शब्द-समूहों के प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है। भावों की अभिव्यक्ति के लिए कहावतों,मुहावरों का सटीक चयन किया गया है।

  • शैली

डॉ. रघुवीर सिंह की शैली की प्रमुख विशेषता-रोचकता, चित्रात्मकता, भावुकता तथा अलंकार योजना है।

  1. भावात्मक शैली–अधिकांश निबन्ध भावात्मक शैली में हैं जिनकी भाषा काव्यात्मक एवं सरस हो गई है; जैसे- “दिवस भर के उत्थान के बाद संध्या समय अपने पतन पर क्षुब्ध मरीत्तिमाली जब प्रतीची के पादप पुंज में अपना मुख छिपाने को दौड़ पड़ते हैं और विदा होने से पूर्व अश्रुपूर्ण नेत्रों से जब वे उस अमर करुण कहानी की ओर एक निराशपूर्ण दृष्टिं डालते हैं तब तो वह पुराना किला रो पड़ता है।”
  2. चित्रात्मक शैली इस शैली का सहारा लेकर एक चित्रकार की भाँति इन्होंने अपने भावों को पाठकों के समक्ष रखा है; जैसे-“सन्दरता में ताज का प्रतियोगी. एत्मादोला का मकबरा, भाग्य की चंचलता का मूर्तिमान रूप है।”
  3. आलंकारिक शैली-आलंकारिक शैली के प्रयोग से इनके निबन्धों में सजीवता तथा प्रभावोत्पादकता आ गई है। उपमा, रूपक, अतिश्योक्ति इत्यादि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है। विरोधाभास अलंकार का उदाहरण देखिए-यशोधरा कहती है, “हिमालय की छाँह में रहकर भी मेरा यह ताप किसी प्रकार घटता नहीं है।”
  4. विचारात्मक शैली-गम्भीर विषयों की विवेचना में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सहारा लिया गया है; जैसे-“मानव जीवन एक पहेली है और उससे भी अधिक अनबूझ वस्तु है विधि का विधान।”
  5. वर्णनात्मक शैली इतिहासकार होने के कारण आपकी रचनाओं में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग स्वाभाविक ही है।

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  • साहित्य में स्थान

रघुवीर सिंह मुख्यतः ऐतिहासिक विषयों के निबन्धकार माने जाते हैं। इनके निबन्ध दार्शनिक चिन्तन,शोधपरक अनुसन्धान और सांस्कृतिक आलोचना की छत्र-छाया माने जाते हैं। इनकी इस शोध चिन्तन एवं सांस्कृतिक साहित्यिक अभिरुचि का मूर्तरूप ‘नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ’ है। यहाँ साहित्य, इतिहास एवं संस्कृति में शोध की अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इनके निबन्धों को वर्णन, चित्र एवं भाव-निरूपण की दृष्टि से अमूल्य समझा जाता है। हिन्दी साहित्य में इनकी उत्कृष्ट कृतियों के कारण इन्हें प्रतिभाशाली साहित्यकार के रूप में माना जाता है।

9. जैनेन्द्र कुमार

आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य में उपन्यास एवं कहानियों के लेखन में जैनेन्द्रजी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। ये प्रेमचन्दोत्तर युग के श्रेष्ठ कथाकार माने जाते हैं। ये हिन्दी साहित्य में मनोविश्लेषणात्मक लेखन के पुरोधा हैं।

  • जीवन परिचय

गहन चिन्तनशील जैनेन्द्र कुमार का जन्म अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक कस्बे में सन् 1905 ई.में हुआ। इनके पिता का नाम श्री प्यारेलाल और माता का नाम श्रीमती रामदेवी था। पिता की मृत्यु के समय ये मात्र दो वर्ष के थे। इनका पालन-पोषण माताजी तथा नानाजी ने किया। इनका बचपन का नाम आनन्दीलाल था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल “ऋषि ब्रह्मचर्य आश्रम” में हुई और यहीं इनका नाम जैनेन्द्र कुमार रखा गया। सन् 1912 में गुरुकुल छोड़कर 1919 में पंजाब से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और काशी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। सन् 1921 में पढ़ाई छोड़कर असहयोग आन्दोलन तथा स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा। इन्होंने माताजी की सहायता से व्यापार भी किया परन्तु असफल होने पर साहित्य क्षेत्र में प्रवेश किया। दिल्ली में रहकर स्वतन्त्र रूप से साहित्य सेवा करते हुए 24 दिसम्बर, सन् 1988 को इनका देहान्त हो गया।

  • साहित्य सेवा

इनकी प्रथम कहानी ‘खेल’ सन् 1928 ई.में ‘विशाल भारत’ में छपी थी। सन् 1929 में इनका पहला उपन्यास ‘परख’ प्रकाशित हुआ जिस पर साहित्य अकादमी ने 500 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। जीवन-पर्यन्त साहित्य साधना में संलग्न रहकर जैनेन्द्र जी ने हिन्दी साहित्य को उपन्यास,कहानी, निबन्ध,संस्मरण, अनुवाद और विविध विधाओं की रचना से धनी बनाया।

  • रचनाएँ

प्रेमचन्द के बाद जैनेन्द्र ही कथा साहित्य के सरताज हैं। परन्तु यश उन्हें निबन्ध के क्षेत्र में ही मिला।

  1. कहानी-संग्रह–फाँसी’, ‘एक रात’, ‘स्पर्धा’, ‘पाजेब’, ‘वातायण’, ‘नीलम देश की राजकन्या’, ‘ध्रुवयात्रा’, ‘दो चिडिया’ आदि। ‘जैनेन्द्र की कहानियाँ’ नाम से दस भागों में आपकी कहानियाँ संगृहीत हैं।
  2. उपन्यास-परख’, ‘सुनीता’, ‘त्याग-पत्र’, कल्याणी’, ‘विवर्त’, ‘सुखदा’ ‘व्यतीत’, ‘मुक्तिबोध’।
  3. निबन्ध-संग्रह–’प्रस्तुत प्रश्न’, पूर्वोदय’, ‘जड़ की बात’,’साहित्य का श्रेय और प्रेम’, ‘मन्थन’,’गाँधी-नीति’,’काम-प्रेम और परिवार’ आदि।
  4. संस्मरण ‘ये और वे’।
  5. अनुवाद–’मंदालिनी’ (नाटक), पाप और प्रकाश’ (नाटक), प्रेम और भगवान’ (कहानी)।
  • वर्ण्य विषय

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जैनेन्द्र जी ने कहानी, उपन्यास, निबन्ध,संस्करण, अनुवाद आदि अनेक गद्य विधाओं को अपना वर्ण्य विषय बनाया। एक ओर उनकी रचनाओं में पात्रों के अन्तर्मन एवं बाह्य रूप की झाँकी में दार्शनिकता मिलती है तो दूसरी ओर मानव जीवन के वर्तमान समय में उपस्थित विविध प्रश्नों के साथ-साथ उसकी शाश्वत समस्याओं का उद्घाटन भी मिलता है। उनके निबन्धों का वर्ण्य विषय साहित्य,समाज,राजनीति, धर्म,संस्कृति आदि है। आपका दृष्टिकोण मानवतावादी है। मनोवैज्ञानिकता आपकी रचनाओं का आधार थी। हाड़-माँस के पात्र जो अच्छाइयों और बुराइयों के समवेत पुंज हैं, इनकी रचनाओं के वर्ण्य विषय हैं। इन पात्रों के चरित्र की आधारशिला बुद्ध की करुणा, महावीर की अहिंसा और महात्मा गाँधी की सहनशीलता है। इसी कारण इनकी कथावस्तु संक्षिप्त और पात्र कम होते हैं। इनकी तुलना प्रेमचन्द से की जाती है। प्रेमचन्द का रचना-क्षेत्र ग्रामीण समाज और उसके शोषण पर केन्द्रित था, परन्तु जैनेन्द्र शहरी समाज की मनोवैज्ञानिक ग्रन्थियों पर कलम चलाते हैं।

  • भाषा

उनकी भाषा के कई रूप हैं—पहला, उनके उपन्यासों और कहानियों में है। जो सरल, सुबोध और संस्कृतनिष्ठ है। दूसरा रूप निबन्धों में है जिसमें गम्भीरता व दुरूहता आ गई है। इनकी भाषा विषय के अनुकूल परिवर्तित हो जाती है। भाषा की गम्भीरता के समय वाक्य बड़े तथा तत्सम शब्दावली से युक्त हैं। वर्णनात्मकता के समय वाक्य छोटे और अन्य भाषाओं के शब्दों से युक्त हैं, जैसे-“वायसरायगिरी करते हैं जो बेहद जिम्मेदारी का काम है।” दूसरी भाषाओं, जैसे-अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत के शब्दों को अपनाने में उदारता है। भाषा में प्रभाव व चमत्कार उत्पन्न करने के लिए मुहावरे और कहावतों का भी प्रयोग है, जैसे-दर-दर भटकना, ठन-ठन गोपाल होना,पूँछ हिलाना आदि।

  • शैली

जैनेन्द्रजी की शैली के निम्नलिखित तीन रूप देखने को मिलते हैं

  1. विचार-प्रधान विवेचनात्मक शैली-इनका रूप निबन्धों में देखने को मिलता है, जिसमें विचारों की गम्भीरता और चिन्तन की दुरूहता है। “पर अहंकार हवा में थोड़े उड़ जाता है। साधना से उसे धीमे-धीमे हल्का और व्यापक बनाना होता है।”
  2. मनोविश्लेषणात्मक शैली कहानी और उपन्यास के पात्रों के अन्तर्द्वन्द्व और बहिर्द्वन्द्व की अनुभूतियों को स्पष्ट करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया गया है।
  3. व्यावहारिक शैली कथा में जीवन्तता लाने के लिए इस शैली का प्रयोग किया गया है। वार्तालाप के माधुर्य और सहज व्यंग्यात्मकता के कारण इसमें रोचकता आ गयी है। प्रसादगुण इस शैली की विशेषता है। इसमें वाक्य छोटे व सहज हैं।
  • साहित्य में स्थान

गहन चिन्तनशील जैनेन्द्रजी ने मनोवैज्ञानिकता प्रधान उपन्यास और कहानी की एक विशेष धारा प्रारम्भ की थी। आपके चिन्तन तथा नवीन शैली विधान ने हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की है। आपका सरल, सुबोध अभिव्यक्ति-कौशल, कथा को मार्मिक और प्रभावपूर्ण बनाता है। अपने इसी विशिष्ट रचना-कौशल और सामाजिक सम्बद्धता के बल पर आपने हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया है।

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10. डॉ. शिवप्रसाद सिंह
[2009]

प्रेमचन्द की परम्परा को पुनः जीवित करके उसे आधुनिक मान देने वाले डॉ. शिवप्रसाद सिंह हिन्दी साहित्य में अपनी बहुमुखी प्रतिभा और लेखन-सामर्थ्य का परिचय देने वाले हैं।

  • जीवन परिचय

डॉ.शिवप्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त,सन् 1929 ई.में वाराणसी जनपद के एक कृषक परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा वाराणसी के उदय प्रताप विद्यालय और हिन्दू विश्वविद्यालय में सम्पन्न हुई। इन्होंने एम. ए. करने के पश्चात् पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर पद पर अध्यापन कार्य किया तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे और उसी पद से सेवानिवृत्त हुए।

  • साहित्य सेवा

डॉ. शिवप्रसाद सिंह का लेखन-क्षेत्र बहुत व्यापक है। इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक,जीवनी, आलोचना एवं सम्पादन इत्यादि सभी विधाओं में लेखन-कार्य किया है। आपको ‘नीला चाँद’ उपन्यास के लिए 1992 में व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया। ‘अलग-अलग वैतरणी’ उपन्यास ने उन्हें साहित्य जगत् में चर्चा का केन्द्र बनाया। उनकी कहानियाँ चरित्र-प्रधान होने के साथ-साथ अतीत से प्रेरणा ग्रहण करती हैं। उनके ललित निबन्धों में उनकी संवेदनशील आध्यात्मिक व्यक्तित्व की छवि है।

  • रचनाएँ

डॉ.शिवप्रसाद सिंह ने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं

  1. कहानी-‘आर-पार की माला’, ‘कर्मनाशा की हार’, ‘मुरदा सराय’, इन्हें भी इन्तजार है’, भेड़िया’ तथा ‘अंधेरा हँसता है’ प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
  2. उपन्यास–अलग-अलग वैतरणी’, ‘गली आगे मुड़ती है’, ‘वैश्वानर’, ‘चाँद फिर उगा’, ‘नीला चाँद’ आदि प्रमुख उपन्यास हैं।
  3. नाटक-‘घंटिया गूंजती हैं।
  4. निबन्ध-संग्रह-‘शिखरों के सेतु’,’चतुर्दिक’, कस्तूरी मृग’ इत्यादि निबन्ध-संग्रह हैं।
  5. समीक्षा-‘कीर्तिलता’, विद्यापति’, लेखन और नवालेखन’ आदि आलोचनाएँ हैं।
  6. सम्पादन–आपने ‘शिवालिक’ और ‘कल्पना’ का सम्पादन भी किया।
  • वर्ण्य विषय

बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ.शिवप्रसाद सिंह ने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर लेखनी चलाई। कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, समीक्षा, सम्पादन आदि सभी पर लिखा। मनुष्य और मनुष्यता के विविध सन्दर्भ और रूप उनके लेखन को व्यापकता प्रदान करते हैं। मनुष्य और प्रकृति का तादात्म्य उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। यथार्थ के उद्घाटन में व्यंग्य का धरातल है। कहानियों में ग्राम्य कथानक के साथ सामाजिक समस्याओं का भी समाधान है। डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपने साहित्य-सृजन में बदलते मूल्यों को स्वीकार किया है।

  • भाषा

डॉ.शिवप्रसाद सिंह की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है,जिसमें मुहावरों का सटीक प्रयोग विद्यमान है; जैसे-रंग जमता है,रंग उखड़ता है,रंग चढ़ता है,दाल में काला होना,खाक छानना इत्यादि। संस्कृत शब्दावली के प्रयोग से भाव-ग्रहण में कहीं-कहीं क्लिष्टता आ गई है; जैसे-स्निग्धाभिन्नाञ्जनाभा, विद्रुमभंगलोहित, श्वेत-तुषार-मण्डित। उर्दू के भी प्रचलित शब्दों का प्रयोग है; जैसे—मजेदार, चीजें, खूब, सैलाब, हौसला आदि। आंचलिक अथवा ग्रामीण शब्दावली है; जैसे–मानुष,डीह,टेस, बिरबा, चौरा आदि।

इस प्रकार भाषा में विभिन्न शब्दों के प्रयोग से प्रसंगों को जीवन्त और प्रवाहपूर्ण बनाते हुए भाषा को सजीवता प्रदान की गई है।

  • शैली

डॉ.शिवप्रसाद सिंह ने शैली के निम्नलिखित कई रूपों को अपनाया है-

  1. उद्धरण शैली-डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्थान-स्थान पर संस्कृत व हिन्दी के लेखकों के अनेकों उदाहरण दिये हैं; जैसे-तुलसी-‘गिरा अनयन नयन बिनु पानी’। इसमें लघु वाक्यों का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
  2. सामासिक पद शैली-इनकी शैली में सामासिक पद शैली के द्वारा विचारों को स्पष्ट करने का सफल प्रयास परिलक्षित होता है; जैसे—“रंग-भ्रान्ति और रंग-परिवर्तन विर-वर्णनों में स्वभावतः अधिक दिखाई पड़ते हैं।” इस शैली के माध्यम से वाक्य की संक्षिप्तता सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक है।
  3. भावात्मक शैली-इस शैली का प्रयोग कहानियों में किया गया है। इस शैली में भाषा अपेक्षाकृत कठिन हो जाती है। ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी में भावात्मक शैली के दर्शन होते हैं।
  • साहित्य में स्थान

कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबन्धकार एवं समीक्षक डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपनी प्रबल लेखनी के जाद से हिन्दी गद्य साहित्य को एक नया रूप प्रदान किया है। आपने अब तक अनछुए विषयों पर लिखकर अपनी लेखन कुशलता का परिचय दिया है। रचनाओं की मौलिकता तथा अभिव्यक्ति के कारण डॉ.शिवप्रसाद सिंह वर्तमान युग के अग्रणी साहित्यकार माने जाते हैं।

11. आचार्य विनोबा भावे

  • जीवन परिचय

आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर,1895 को महाराष्ट्र में कोंकण क्षेत्र के एक छोटे से गाँव नागोदा में हुआ था। आपका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। माता का नाम रुक्मिणी था जो एक विदुषी तथा धार्मिक महिला थीं तथा पिता नरहरि भावे को गणित एवं विज्ञान के प्रति गहन अनुराग था। माँ उन्हें प्यार से विन्या पुकारती थीं। आपने सन् 1915 में हाईस्कूल पास किया। बम्बई में इण्टर करने गये परन्तु पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। माँ से भक्ति-आध्यात्म चिन्तन मिला,पिता से वैज्ञानिक सूझ-बूझ तो गुरु रामदास,संत ज्ञानेश्वर तथा शंकराचार्य से ब्रह्मचर्य पालन व संन्यास की प्रेरणा मिली और सन्त विनोबा बने। आपने किसानों के लिए एक स्वप्न देखा कि प्रत्येक किसान के पास एक जमीन का टुकड़ा हो। इसके लिए आपने एक ‘भूदान आन्दोलन’ शुरू किया। आप एक आदर्श नेता एवं संगठनकर्ता भी थे। जीवन का संध्याकाल पुनार (महाराष्ट्र) के आश्रम में गुजारते हुए आप 15 नवम्बर,1982 को अनन्त में विलीन हो गए।

  • साहित्य सेवा

विनोबा भावे एक आदर्श छात्र, विचारक, लेखक, दर्शनशास्त्री, प्रवचनकर्ता थे तो एक अनुवादक तथा भाषाविद भी थे। संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद के द्वारा आपने दर्शन को आम आदमी तक पहुँचाया। मराठी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत एवं कन्नड़ पर उनका पूर्ण अधिकार था। कन्नड़ को वह सभी भाषाओं की रानी कहते थे। उन्होंने भगवद्गीता को अपने जीवन की सास मानते हुए उसकी व्याख्या व आलोचना की तथा उसके दर्शन को जनता तक पहुंचाया। आपने आदिगुरु शंकराचार्य, बाईबिल तथा कुरान पर भी कार्य किया। संत ज्ञानेश्वर की कविताओं पर गहन अध्ययन किया। ‘गीता प्रवचन’ तथा ‘संतप्रसाद’ जैसी पुस्तकें उनकी मौलिकता का परिचय देती हैं। सन् 1931 में माँ के कहने पर आपने गीता का मराठी में अनुवाद किया। आपने वर्धा आश्रम में ‘महाराष्ट्र धर्म’ पत्रिका का सम्पादन किया। आप देवनागरी को सम्पर्क लिपि के रूप में विकसित करने के पक्षधर थे। इस हेतु आपने ‘नागरी लिपि संगम’ की स्थापना की। इस प्रकार साहित्य जगत में मूल रूप से न रहते हुए भी आपने साहित्य की अनुपम सेवा की।

  • रचनाएँ

भगवद्गीता, बाईबिल तथा कुरान जैसे अनेक धार्मिक ग्रन्थों पर कार्य करके उनके दर्शन व रहस्य को बताने वाले विनोबा भावे ने अनेक पुस्तकें लिखीं तथा संस्कृत की अनेक पुस्तकों का मराठी में अनुवाद किया। हिन्दी में निबन्ध लिखे। आपकी रचनाएँ निम्नवत् हैं ‘गीता प्रवचन’, गीता का मराठी में अनुवाद, संतप्रसाद’, ‘गीताई’, ‘महाराष्ट्र धर्म’ पत्रिका का सम्पादन, The Essence of Quran (कुरान का सार), The Essence of Christian Teachings (ईसाई शिक्षाओं का सार), Thoughts of Education (शिक्षा पर विचार), ‘स्वराज्य शास्त्र’।

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  • वर्ण्य विषय

आध्यात्म चेतना के साधक विनोबा भावे का प्रिय विषय दर्शनशास्त्र था। कशाग्र बद्धि विनोबा भावे ने गणित, कविता तथा आध्यात्म को अपना वर्ण्य विषय बनाया। संन्यासी जीवन व्यतीत करते हुए अपरिग्रह, अस्तेय,निस्पृह, निर्लिप्त जीवन की व्याख्या उनके निबन्धों में मिलती है। गीता उन्हें बचपन से कण्ठस्थ थी, अत : गीता का मराठी में अनुवाद, हिन्दी में निबन्ध तथा प्रवचन साधारण मनुष्य को जीवन का संदेश देते हैं। उन्होंने ब्रह्म-जगत-सत्य-संन्यास पर चर्चा की। मात्र 21 वर्ष की अल्पायु में अद्वैतवाद पर बहस की। आदर्श समाज सुधारक के रूप में ‘भूदान आन्दोलन’ चलाया। भारतीय दर्शन की सरल भाषा में व्याख्या करके आपने उसे सामान्य जनता तक पहुँचाया। इसी कारण से आपके निबन्ध, व्याख्या, आलोचना, कविता, अनुवाद, प्रवचन, सम्पादन आदि भारतीय जन को प्रभावित करते हैं।

  • भाषा

एक सरल हृदय विचारक की भाषा भी सरल ही होती है। मराठी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत तथा कन्नड़ भाषाओं पर आपको अद्भुत अधिकार प्राप्त था। इसी कारण आपको भाषाविद् भी कहा जाता है। आपकी भाषा में संस्कृत शब्दों का बाहुल्य है। इसकी वजह से भाषा क्लिष्ट तथा गंभीर हो गई है। अनेक स्थानों पर आपकी भाषा काव्यमयी हो गई है। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए आपने मुहावरों का प्रयोग कर भाषा को सजीव व चुटीला बनाया है। स्वजनासक्ति जैसे संस्कृत के सामासिक शब्दों के प्रयोग के साथ रूपक व उपमा अलंकार के प्रयोग ने आपके गद्य को भी काव्यमय बना दिया है। लघु वाक्य सूत्र का सा आभास देते हैं। इस प्रकार आपकी भाषा में अपार प्रवाह युक्त आकर्षण है।

  • शैली

कलम के धनी विनोबा जी की शैली व्याख्यात्मक तथा उदाहरण शैली का नमूना है। आपने निबन्धों में विवरणात्मक शैली को अपनाया है। उर्दू आदि के शब्द प्रयोग से शैली में सरलता आ गई है। अति सूक्ष्म रूप में उपदेशात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है। वाक्य भावों के अनुरूप अति लघु व विस्तृत हो गए हैं। दर्शन और आलोचनात्मक निबन्धों में गवेषणात्मक शैली के दर्शन होते हैं। विनोबा भावे चिन्तनशील निबन्धकार हैं। आपकी रचनाओं में विचार प्रधान, पांडित्यपूर्ण, प्रौढ़ एवं परिमार्जित शैली विद्यमान है। चिन्तन की उदात्तता पाठक को प्रभावित किए बिना नहीं रहती।

  • साहित्य में स्थान

आचार्य विनोबा भावे अनेक भाषाओं के विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ, मर्मज्ञ साहित्यकार, भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के ज्ञाता, गम्भीर विचारक तथा जागरूक समाज सुधारक के रूप में सामने आते हैं। उनके नाम पर हजारी बाग (झारखण्ड) में विनोबा भावे विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है। केरल राज्य में उन्होंने स्वयं 7 ‘विनोबा भावे आश्रम’ तथा 7 ‘विनोबा निकेतन’ स्थापित किए। सम्पादन के क्षेत्र में आपका अद्वितीय स्थान है। आपकी कृतियों में चिन्तन,मनन और अनुशीलता के बिम्ब दृष्टिगोचर होते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मूलतः साहित्यकार न होते हुए भी विनोबा भावे का साहित्य में उच्च स्थान है

महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  • बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म हुआ था
(अ) आगरा में, (ब) अगोना में, (स) अजमेर में, (द) अलीगढ़ में।

2. ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ सर्वप्रथम लिखा
(अ) मोहन राकेश ने, (ब) श्यामसुन्दर दास ने, (स) रामचन्द्र शुक्ल ने. (द) डॉ. रघुवीर सिंह ने।

3. उषा प्रियंवदा ने इस विद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की है
(अ) सागर विश्वविद्यालय, (ब) अम्बेडकर विश्वविद्यालय, (स) इलाहाबाद विश्वविद्यालय, (द) दिल्ली विश्वविद्यालय।

4. ‘पचपन खम्भे लाल दीवार’ किसकी रचना है [2012]
(अ) महादेवी वर्मा की,
(ब) मृणाल पाण्डे की, (स) शिवानी की, (द) उषा प्रियंवदा की।

5. सन् 1923 में जीविका की तलाश में उदयशंकर भट्ट गये
(अ) लाहौर, (ब) चटगाँव, (स) इस्लामाबाद, (द) शक्करपुर।

6. उदयशंकर भट्ट ने नागपुर और जयपुर रेडियो केन्द्रों पर इस रूप में कार्य किया
(अ) न्यूज रीडर, (ब) प्रोड्यूसर, (स) स्क्रिप्ट राइटर, (द) संवाददाता।

7. शरद जोशी प्रसिद्ध हैं [2011]
(अ) कवि के रूप में, (ब) गजलकार के रूप में, (स) व्यंग्यन लेखक के रूप में, (द) इतिहासकार के रूप में।

8. प्रसिद्ध व्यंग्य संग्रह ‘जीप पर सवार इल्लियाँ’ किस लेखक की रचना है?
(अ) हरिशंकर परसाई, (ब) शरद जोशी, (स) धर्मवीर भारती, (द) निर्मल वर्मा।

9. डॉ. श्यामसुन्दर दुबे की लगभग कितनी पुस्तकें प्रकाशित हैं?
(अ) पाँच, (ब) पच्चीस, (स) पाँच सौ, (द) सौ।

10. डॉ. श्यामसुन्दर दुबे के लेखन का इस संस्कृति से गहरा तादात्म्य था
(अ) नागरीय संस्कृति, (ब)लोकसंस्कृति, (स) पाश्चात्य संस्कृति, (द) पूर्वी संस्कृति।

11. डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ ने मूलत: हिन्दी साहित्य की इस विधा को अपनी लेखनी का
विषय बनाया (अ) उपन्यास, (ब) संस्मरण, (स) नाटक, (द) रिपोर्ताज।

12. डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ द्वारा लिखित ‘तात्या टोपे’ किस प्रकार का एकांकी है?
(अ) सामाजिक, (ब) ऐतिहासिक, (स) राजनैतिक, (द) आर्थिक।

13. ‘निमाड़ी लोक साहित्य’ के मर्मज्ञ गद्य-लेखक कौन थे?
(अ) प्रेमचन्द, (ब) शिवप्रसाद सिंह, (स) जैनेन्द्र, (द) रामनारायण उपाध्याय।

14. रामनारायण उपाध्याय इस महापुरुष के जीवन व विचारधारा से प्रभावित थे
(अ) गाँधीजी, (ब) कार्ल मार्क्स, (स) हिटलर, (द) विनोबा भावे।

15. प्रसिद्ध गद्यकाव्य लेखक हैं
(अ) जैनेन्द्र, (ब) रामचन्द्र शुक्ल, (स) शरद जोशी, (द)डॉ.रघुवीर सिंह।

16. डॉ. रघुवीर सिंह इस विषय के प्रवक्ता के रूप में जाने जाते हैं
(अ) हिन्दी, (ब) इतिहास, (स) गणित, (द) संस्कृत।

17. जैनेन्द्र कुमार की तुलना किस महान् गद्य लेखक से की जाती है?
(अ) प्रेमचन्द, (ब) बाबू गुलाबराय, (स) हजारी प्रसाद द्विवेदी, (द) वियोगी हरि।

18. प्रसिद्ध उपन्यास ‘परख’ के लेखक हैं
(अ) जैनेन्द्र कुमार, (ब) यशपाल, (स) भीष्म साहनी, (द) अमरकान्त।

19. डॉ. शिवप्रसाद सिंह किस विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे?
(अ) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, (ब) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, (स) अम्बेडकर विश्वविद्यालय, (द) दिल्ली विश्वविद्यालय।

20. ललित निबन्ध ‘रंगोली’ के लेखक हैं
(अ) डॉ.शिवप्रसाद सिंह, (ब) हजारी प्रसाद द्विवेदी, (स) महादेवी वर्मा, (द) वासुदेवशरण अग्रवाल।

21. ‘महाराष्ट्र धर्म’ पत्रिका का सम्पादन किया
(अ) विनोबा भावे, (ब)रामचन्द्र शुक्ल, (स) धर्मवीर भारती, (द) डॉ.रघुवीर सिंह।

22. ‘गीता प्रवचन’ के लेखक हैं
(अ) वाल्मीकि, (ब) तुलसीदास, (स) आचार्य विनोबा भावे, (द) महर्षि रमण।
उत्तर-
1.(ब), 2. (ब), 3. (स), 4. (द), 5. (अ), 6. (ब), 7. (स), 8. (ब), 9.(ब), 10. (ब), 11. (स), 12. (ब), 13. (द), 14. (अ), 15. (द), 16. (ब), 17. (अ), 18. (अ), 19. (ब), 20. (अ), 21. (अ), 22. (स)।

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  • रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रारम्भिक शिक्षा …….. में हुई।
2. सूत्रात्मक शैली के प्रणेता ……. हैं। [2013]
3. ‘रुकोगी नहीं राधिका’ उपन्यास की लेखिका ……… हैं।
4. ‘फिर बसन्त आया’ ……. का कहानी संग्रह है। [2009]
5. रेडियो प्रसारण की दृष्टि से उदयशंकर भट्ट के ……. अत्यधिक सफल हुए हैं।
6. उदयशंकर भट्ट का जन्म उत्तर प्रदेश के ……..” नगर में हुआ।
7. व्यंग्य नाटक ‘एक था गधा’ के लेखक ……. हैं।
8. शरद जोशी हिन्दी के सुप्रसिद्ध ……… लेखक हैं।
9. डॉ.श्यामसुन्दर दुबे शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पद से सेवानिवृत्त हुए।
10. ‘कालमृगया’ डॉ.श्यामसुन्दर दुबे का …… संकलन है।
11. डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ का जन्म ……… के राजापुर गढ़ेवा गाँव में हुआ था।
12. ‘मुखौटे बोलते हैं’,एकांकी के लेखक …….. हैं।
13. ……… रामनारायण उपाध्याय की पुरस्कृत कृति है।
14. ……… में एक सच्चे किसान की सी भावुकता एवं कर्मठता थी।
15. डॉ.रघुवीर सिंह ……. एवं संस्कृति के प्रवक्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं।
16. …… “डॉ. रघुवीर सिंह का उच्चकोटि का गद्यकाव्य है।
17. जैनेन्द्र कुमार की प्रथम कहानी ….. है।
18. जैनेन्द्र कुमार ने अपनी रचनाएँ …. आधार पर लिखी हैं।
19. आधुनिक प्रेमचंद ………. को कहते हैं। [2014]
20. ‘कस्तूरी मृग’ डॉ.शिवप्रसाद सिंह का प्रसिद्ध ……… है।
21. साहित्य में चर्चा का केन्द्र ……… उपन्यास है।
22. विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर ……. को हुआ था।
23. गीता का मराठी भाषा में अनुवाद ………….” ने किया।
उत्तर-
1. हमीरपुर, 2. रामचन्द्र शुक्ल, 3. उषा प्रियंवदा, 4. उषा प्रियंवदा, 5. गीतिनाट्य, 6. इटावा, 7. शरद जोशी,
8. हास्य-व्यंग्य, 9. प्राचार्य, 10. ललित निबन्ध, 11. उन्नाव जिले, 12. डॉ. सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’, 13. चतुर चिड़िया,
14. रामनारायण उपाध्याय, 15. इतिहास, 16. यशोधरा, 17. खेल, 18. मनोवैज्ञानिक, 19. जैनेन्द्र कुमार,
20. निबन्ध संग्रह, 21. अलग-अलग वैतरणी, 22. 1895, 23. आचार्य विनोबा भावे।

  • सत्य/असत्य

1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी शब्द सागर का सम्पादन कार्य किया।
2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1940 में हुआ।
3. उषा प्रियंवदा का स्वदेश की संस्कृति से तनिक भी लगाव न था।
4. उषा प्रियंवदा के उपन्यासों में निम्न-मध्यवर्गीय समाज की विसंगतियाँ देखने को मिलती
5. उदयशंकर भट्ट आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।
6. 14 वर्ष की अल्पायु में ही उदयशंकर भट्ट अनाथ हो गये।
7. शरद जोशी प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं। [2009]
8. 1990 में शरद जोशी को पदमश्री से विभूषित किया गया।
9. ललित निबन्ध ‘तिमिर गेह में किरण-आचरण’ में बताया गया है कि आदमी का सदआचरण और श्रम उसे पतन की ओर ले जाता है।
10. मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘वागीश्वरी’ पुरस्कार डॉ. श्यामसुन्दर दुबे को मिला।
11. साठोत्तरी हिन्दी नाटककारों में डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ का अपना विशिष्ट स्थान है।
12. डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ के एकांकी कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टि से नीरस हैं।
13. रामनारायण उपाध्याय ने ‘लोक संस्कृति’ न्यास की स्थापना अपने माता-पिता की मधुर स्मृति में की।
14. उपाध्यायजी की रचनाएँ ग्राम और ग्राम संस्कृति से पूर्ण नहीं थीं।
15. डॉ.रघुवीर सिंह ने इतिहासपरक रचनाएँ लिखीं।
16. ‘मालवा में युगान्तर’ डॉ. रघुवीर सिंह की एक व्यंग्य रचना है।
17. जैनेन्द्र कुमार की शिक्षा-दीक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई।
18. ‘फाँसी’ जैनेन्द्र का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है।
19. ‘रंगोली’ डॉ.शिवप्रसाद सिंह का प्रसिद्ध ललित निबन्ध है।
20. ‘कीर्तिलता’ तथा ‘विद्यापति’ डॉ.शिवप्रसाद सिंह की समीक्षात्मक कृतियाँ हैं।
21. आचार्य विनोबा भाबे की शैली व्यंग्यात्मक थी।
22. कुरान का सार (The Essence of Quran) आचार्य विनोबा भावे कृत रचना है।
उत्तर-
1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. सत्य, 8. असत्य, 9. असत्य,10. सत्य,11. सत्य,12. असत्य,13. असत्य,14. असत्य,15. सत्य, 16. असत्य, 17. असत्य, 18. असत्य, 19. सत्य, 20. सत्य, 21. असत्य, 22. सत्य।

  • सही जोड़ी मिलाइए

I. ‘क’
(1) रुकोगी नहीं राधिका – (अ) एकांकी
(2) रामचन्द्र शुक्ल [2011] – (ब) विक्रम और बेताल
(3) समस्या का अन्त – (स) बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार
(4) शरद जोशी – (द) उपन्यास
(5) डॉ.श्यामसुन्दर दुबे – (इ) चिन्तामणि
उत्तर-
(1) → (द),
(2) → (इ),
(3) → (अ),
(4) → (ब),
(5) → (स)।

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(1) डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’ – (अ) लोक-संस्कृति पुरुष
(2) आधुनिक युग का प्रेमचन्द (2012, 15) – (ब) ऐतिहासिक निबन्धकार
(3) रामनारायण उपाध्याय – (स) गृह कलह
(4) डॉ.शिवप्रसाद सिंह – (द) जैनेन्द्र कुमार
(5) डॉ.रघुवीर सिंह – (इ) आदर्श अध्यापक
(6) आचार्य विनोबा भावे – (ई) समाज सुधारक एवं दर्शनशास्त्री
उत्तर-
(1) → (स),
(2) → (द),
(3) → (अ),
(4) → (इ),
(5) → (ब),
(6) → (ई)।

  • एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल किस विश्वविद्यालय में कार्यरत थे?
उत्तर-
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय।।

प्रश्न 2.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबन्धों में किन दो निबन्ध शैलियों का समन्वय है?
उत्तर-
भारतीय एवं पाश्चात्य।

प्रश्न 3.
उषा प्रियंवदा लिखित किसी एक कहानी का नाम क्या है?
उत्तर-
वापसी।

प्रश्न 4.
उषा प्रियंवदा के शोध ग्रन्थ का क्या नाम है?
उत्तर-
आधुनिक अमरीकी साहित्य।।

प्रश्न 5.
उदयशंकर भट्ट लाहौर के एक विश्वविद्यालय में कौन-से विषय पढ़ाते थे?
उत्तर-
हिन्दी और संस्कृत।

प्रश्न 6.
उदयशंकर भट्ट ने अपने नाटकों के लिए किस प्रकार के परिवारों की समस्याओं को चुना है?
उत्तर-
निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार।

प्रश्न 7.
शरद जोशी ने मध्य प्रदेश सूचना विभाग में कितने वर्षों तक सेवा की?
उत्तर-
10 वर्षों तक।

प्रश्न 8.
शरद जोशी लिखित नाटक ‘अन्धों का हाथी’ साहित्य की किस विधा के अन्तर्गत आता है?
उत्तर-
व्यंग्य नाटक।

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प्रश्न 9.
डॉ. श्यामसुन्दर दुबे की रचना ‘दाखिल खारिज’ साहित्य की किस विधा को दर्शाती है?
उत्तर-
उपन्यास।

प्रश्न 10.
‘तिमिर गेह में किरण आचरण’ ललित निबन्ध के लेखक कौन हैं? [2009]
उत्तर-
डॉ.श्यामसुन्दर दुबे।।

प्रश्न 11.
‘तात्या टोपे’ रचना लेखन की कौन-सी विधा है?
उत्तर-
एकांकी।

प्रश्न 12.
‘स्वप्न का सत्य’ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
डॉ.सुरेश शुक्ल ‘चन्द्र’।

प्रश्न 13.
‘निमाड़ी लोक-साहित्य’ रचना के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
रामनारायण उपाध्याय।

प्रश्न 14.
रामनारायण उपाध्याय की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
दुर्गावती।

प्रश्न 15.
डॉ. रघुवीर सिंह का जन्म कहाँ हुआ? \
उत्तर-
सीतामऊ।

प्रश्न 16.
डॉ. रघुवीर सिंह की शोध, चिन्तन एवं साहित्यिक अभिरुचि का मूर्त रूप क्या है?
उत्तर-
नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ।

प्रश्न 17.
आधुनिक युग का प्रेमचन्द किसे कहा जाता है? [2011]
उत्तर-
जैनेन्द्र कुमार को।

प्रश्न 18.
जैनेन्द्र कुमार ने किस समाज की ग्रन्थियों को खोला है?
उत्तर-
शहरी समाज।

प्रश्न 19.
‘कर्मनाशा की हार’ कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
डॉ.शिवप्रसाद सिंह।

प्रश्न 20.
डॉ. शिवप्रसाद सिंह किस विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे?
उत्तर-
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।

प्रश्न 21.
आचार्य विनोबा भावे के नाम पर स्थापित ‘विनोबा भावे विश्वविद्यालय’ कहाँ स्थित है?
उत्तर-
हज़ारी बाग (झारखण्ड)।

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प्रश्न 22.
‘गीता प्रवचन’ तथा ‘संतप्रसाद’ पुस्तकों के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
आचार्य विनोबा भावे।

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MP Board Class 12th Special Hindi स्वाति लेखक परिचय (Chapter 1-5)

MP Board Class 12th Special Hindi स्वाति लेखक परिचय (Chapter 1-5)

1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल [2009, 10, 12, 15, 17]

  • जीवन परिचय

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 11 अक्टूबर,सन् 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के अगोना ग्राम में हुआ था। आपके पिता पं. चन्द्रबलि शुक्ल सुपरवाइजर कानूनगो थे। शुक्लजी ने एफ.ए.(इण्टर) तक की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा समाप्ति पर जीविकोपार्जन के लिए मिर्जापुर के मिशन स्कूल में ड्राइंग के शिक्षक हो गये। इस समय तक इनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। जब नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा ‘हिन्दी शब्द सागर’ नाम से शब्द-कोश के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया,तब शुक्लजी मात्र छब्बीस वर्ष की अवस्था में उसके सहायक सम्पादक नियुक्त किये गये। उसके बाद हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी में आप हिन्दी विभाग में प्राध्यापक हो गये। सन 1937 में आप वहाँ हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हो गये। 2 फरवरी,सन् 1940 को आपका निधन हो गया।

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  • साहित्य सेवा

आचार्य शुक्लजी की प्रतिभा बहुमुखी थी। वे कवि, निबन्धकार, आलोचक, सम्पादक तथा अनुवादक अनेक रूपों में हमारे सामने आते हैं। आपने ‘हिन्दी शब्द सागर’ और ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन किया। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में हिन्दी को उच्चकोटि के निबन्ध, वैज्ञानिक समालोचनाएँ,साहित्यिक ग्रन्थ एवं सरल कविताएँ प्रदान की। शुक्ल जी ने हिन्दी में समालोचना और निबन्ध कला का उच्च आदर्श स्थापित किया। उनसे पहले की समालोचनाओं में गुण-दोष विवेचन की ही प्रधानता थी। उन्होंने वैज्ञानिक ढंग की व्याख्यात्मक आलोचना-पद्धति की नींव डाली और जायसी,तुलसी तथा सूर के काव्यों पर उत्कृष्ट व्याख्यात्मक आलोचनाएँ लिखीं। आपने करुणा, उत्साह,क्रोध,श्रद्धा और भक्ति आदि मनोविकारों पर सुन्दर निबन्ध लिखे। उनके निबन्ध ‘चिन्तामणि’ नामक पुस्तक में संग्रहीत हैं। ‘चिन्तामणि’ पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से आपको ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ। उन्होंने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ नामक गवेषणापूर्ण प्रामाणिक ग्रन्थ लिखा, जिस पर हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रयाग ने पुरस्कार प्रदान किया।

  • रचनाएँ

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रमुख रचनाएँ अग्र प्रकार हैं
(1) निबन्ध-संग्रह-‘चिन्तामणि, ‘विचार-वीथी’।
(2) आलोचना-‘त्रिवेणी, ‘रस-मीमांसा’।
(3) इतिहास–’हिन्दी साहित्य का इतिहास’।

  • वर्ण्य विषय

साहित्य के समस्त क्षेत्रों को स्पर्श करने वाली शुक्लजी की प्रतिभा समालोचना एवं निबन्ध के क्षेत्र में भी प्रखरता के साथ परिलक्षित होती है। निबन्ध एवं आलोचना दोनों ही क्षेत्रों में शुक्लजी ने लोक मंगल एवं नैतिक आदर्श को प्रमुख स्थान दिया है। निबन्ध-रचना के क्षेत्र में उन्होंने सामाजिक उपयोगिता से सम्बन्धित मानव-मनोभावों पर सुन्दर निबन्ध लिखे। शुक्लजी ने मनोभावों सम्बन्धी निबन्धों के साथ ही समीक्षात्मक एवं सैद्धान्तिक निबन्धों की भी रचना की।

  • भाषा

आचार्य शुक्लजी की भाषा परिष्कृत, प्रौढ़ एवं साहित्यिक खड़ी बोली है। इस भाषा में सौष्ठव है तथा उसमें गम्भीर विवेचन की अपूर्व शक्ति है। शुक्लजी की भाषा में व्यर्थ का शब्दाडम्बर नहीं मिलता। भाव और विषय के अनुकूल होने के कारण वह सर्वथा सजीव और स्वाभाविक है। गूढ़ विषयों के प्रतिपादन में भाषा अपेक्षाकृत क्लिष्ट है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। वाक्य-विन्यास भी कुछ लम्बे हैं। सामान्य विचारों के विवेचन में भाषा सरल एवं व्यावहारिक है। कहावतों एवं मुहावरों के प्रयोग से उसमें सरसता आ गयी है। शुक्लजी की भाषा व्यवस्थित तथा पूर्ण व्याकरण सम्मत है तथा उसमें कहीं भी शिथिलता देखने को नहीं मिलती। भाषा की इसी कसावट के कारण उसमें समास शक्ति पायी जाती है तथा कहीं-कहीं तो भाषा सूक्तिमयी बन गयी है; जैसे—“बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।”

  • शैली

शुक्लजी अपनी शैली के स्वयं निर्माता थे। उनकी शैली समास के रूप से प्रारम्भ होकर व्यास शैली के रूप में समाप्त होती है अर्थात् एक विचार को सूत्र रूप में कहकर फिर उसकी व्याख्या कर देते हैं। मुख्य रूप से शुक्लजी की शैली चार प्रकार की है-

  1. समीक्षात्मक शैली-शुक्लजी ने व्यावहारिक, समीक्षात्मक एवं समालोचनात्मक निबन्धों में इस शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में वाक्य छोटे,संयत एवं गम्भीर हैं। इसमें विषय का प्रतिपादन सरलता के साथ इस प्रकार किया गया है कि सहज ही हृदयंगम हो जाता है।
  2. गवेषणात्मक-अनुसन्धानपरक तथा सैद्धान्तिक समीक्षा सम्बन्धी तथा तथ्यों के विश्लेषण-निरूपण में शुक्लजी ने इस शैली का प्रयोग किया है। यह शैली गम्भीर तथा कुछ सीमा तक दुरूह है। शब्द-विन्यास क्लिष्ट तथा वाक्य-विन्यास जटिल है। यह शैली सामान्य पाठकों के लिए बोधगम्य नहीं है।
  3. भावात्मक शैली-इस शैली में वाक्य कहीं छोटे तथा कहीं लम्बे हैं तथा भाषा कुछ-कुछ अलंकारिक हो गयी है। इसमें भावनाओं का धाराप्रवाह रूप मिलता है।
  4. हास्य-विनोद एवं व्यंग्य प्रधान शैली-इस शैली के दर्शन मनोविकारों तथा समीक्षात्मक निबन्धों में यत्र-यत्र ही होते हैं, क्योंकि हास्य तथा व्यंग्य शुक्लजी के निबन्धों का मुख्य विषय नहीं है, फिर भी इस शैली के प्रयोग से निबन्धों में रोचकता आ गयी है।
  • साहित्य में स्थान

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी असाधारण प्रतिभा द्वारा साहित्य की अनेक विधाओं में सृजन किया। लेकिन उनकी विशेष ख्याति निबन्धकार, समालोचक तथा इतिहासकार के रूप में है। उन्होंने हिन्दी में वैज्ञानिक आलोचना-प्रणाली को जन्म दिया, निबन्ध-साहित्य को समृद्ध किया तथा हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन के लिए एक आधार प्रदान किया। शुक्लजी की भाषा तथा शैली आने वाले साहित्यकारों के लिए आदर्श रूप है। वे युग प्रवर्तक निबन्धकार हैं।

2. उषा प्रियंवदा
[2016]

  • जीवन परिचय

यथार्थ के बेजोड़ अंकन में शीर्षस्थ स्थान रखने वाली कहानीकार उषा प्रियंवदा का जन्म 24 दिसम्बर,सन् 1931 को इलाहाबाद में हुआ। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् पी-एच.डी.करके आपने अपनी योग्यता को और आगे बढ़ाया। अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी से भी आपका अनुराग लगातार बना रहा और आप हिन्दी में भी निरन्तर लिखती रहीं। हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू तथा संस्कृत पर आपका समान व पूर्ण अधिकार रहा है। लेखन के साथ-साथ आपका मुख्य कार्यक्षेत्र अध्यापन ही रहा है। आपने ‘आधुनिक अमरीकी साहित्य’ पर इंडियाना विश्वविद्यालय से शोधकार्य किया। आप संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कांसिन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्षा रहीं। हिन्दी की सेवा में आपके उत्कृष्ट योगदान को प्रमाणित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको सम्मानित किया।

  • साहित्य सेवा

साहित्यिक रुचि सम्पन्न उषा प्रियंवदा ने मुख्यतः उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं। उनके साहित्य में भारतीय और अमरीकी संस्कृति का समन्वय स्पष्ट दिखाई देता है। उनकी प्रथम कहानी ‘लाल चूनर’ थी। लम्बे समय तक अमरीका में निवास होने के कारण आपके चिन्तन में तुलनात्मक दृष्टि नजर आती है। स्वतन्त्रता के पश्चात् के भारतीय जीवन की विश्रृंखलताएँ आपके साहित्य में स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

  • रचनाएँ

उषा प्रियंवदा मूलत: एक कहानीकार एवं उपन्यासकार रही हैं। आपकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  1. उपन्यास-पचपन खम्भे लाल दीवारें’ [1961]: इस उपन्यास का प्रदर्शन दूरदर्शन पर होने के कारण यह अत्यधिक प्रसिद्ध रहा, ‘रुकोगी नहीं राधिका’ [1968], ‘शेष यात्रा’ [1984]।
  2. कहानी-संग्रह ‘जिन्दगी और गुलाब’ [1961], ‘फिर बसन्त आया’ [1961], ‘एक कोई दूसरा’ [1966], ‘कितना बड़ा झूठ’ [1973], ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’ [1974]।
  • वर्ण्य विषय

कथा साहित्य की प्रेमिका उषा प्रियंवदा की कहानियों के पीछे एक बीज जरूर होता है,जो उनके एक विचार, एक इमेज, एक अनुभव या अनुभूति को लेखन के रूप में साकार करता है। चुनौतियाँ उन्हें उत्साहित करती हैं, ‘डेड लाइन्स’ उन्हें प्रेरित करती हैं। इन्हीं चुनौतियों और ‘डेड लाइन्स’ के सम्बन्ध और प्रतिध्वनियाँ उनके वर्ण्य विषय हैं। आधुनिक भौतिकवादी, वैयक्तिक तथा एकान्तिक विचारधारा ने भारतीय समाज व परम्पराओं को तोड़कर विसंगतियों तथा मानसिक कुण्ठाओं के साथ पारिवारिक विघटन की नींव डाली है,यह सब मनोवैज्ञानिक परिवर्तन उनकी कहानियों व उपन्यासों में स्पष्ट झलकता है। नई पीढ़ी की टीस पाठक को व्यथित कर देती है। मानव मूल्यों की अनदेखी करना उनकी कहानियों की मार्मिक पहचान है। उनकी रचनाओं का विषय अधिकतर निम्न मध्यवर्गीय समाज की पीड़ा तथा नारी-पुरुष के आयु भेद रहे है।

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  • भाषा

उषा प्रियंवदा ने सरल, सुस्थिर, संयत एवं बोधगम्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है। संस्कृत की ज्ञाता लेखिका आकांक्षी,कुण्ठित,अस्थायित्व जैसे शब्दों का प्रयोग कर भाषा को और अधिक सुन्दर बनाती हैं। मर्तबान,कनस्तर,खटिया जैसे प्रचलित शब्द भाषा को सहज बनाते हैं। रिटायर, क्वार्टर, पैसेन्जर जैसे शब्दों के प्रयोग से लेखिका का प्रवास झलकता है। वाजिब, जिम्मेदार, सिर्फ जैसे उर्दू के शब्द भाषा को बोधगम्य बनाने में पूर्णतः सक्षम हैं। लघु वाक्य-विन्यास,कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग भाषा का सरल रूप है। शब्दों के सामासिक प्रयोग से उषा प्रियंवदा के साहित्य की भाषा में कसावट विद्यमान रहती है।

  • शैली

उषा प्रियंवदाजी की शैली भावात्मक विवरणात्मक तथा व्यंग्यात्मक है। उनके उपन्यासों में विवरण शैली के दर्शन होते हैं,तो कहानियों में भावात्मकता तथा व्यंग्य परिलक्षित हैं। उनकी सहज कथन शैली तथा यथार्थ का चित्रण बेजोड़ है। भावुकता,माधुर्य और प्रवाह उनकी शैली की विशेषता है। उनके व्यंग्य चुटीले व सार्थक हैं, जिनमें विदेशी शब्दों की सहायता से पीड़ा व कराहट का अनुभव होता है। इस प्रकार उनकी शैली वर्ण्य-विषय के सर्वथा अनुकूल है।

  • साहित्य में स्थान

हिन्दी कथा साहित्य में लेखिका का विशिष्ट स्थान होने का प्रमुख कारण है-वर्तमान में नष्ट होते हुए भारतीय मूल्यों का सटीक चित्रण।

वर्तमान जीवन की विसंगतियों और उनकी विशृंखलताओं का सामाजिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर यथार्थ व सजीव चित्रण करके लेखिका हिन्दी कथा साहित्य में अपना उच्च स्थान स्वयं निर्धारित करती हैं। उनकी कथाएँ पारिवारिक विघटन को रोकने का संदेश देती हैं। सच्चे अर्थों में उषा प्रियंवदा आधुनिक समाज की एक आदर्श कथाकार हैं।

3. उदयशंकर भट्ट [2014, 16]

  • जीवन परिचय

एकांकी और नाटक के सिद्धहस्त लेखक उदयशंकर भट्ट का जन्म 3 अगस्त, सन् 1898 में उत्तर-प्रदेश के इटावा नगर में हुआ था। इटावा में आपकी ननिहाल भी थी। आपका परिवार साहित्यिक गतिविधियों में गहरी रुचि रखता था। आपने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी की शिक्षा इटावा में ही प्राप्त की। जब ये मात्र चौदह वर्ष की अल्पायु के थे, इनके सिर से माँ-बाप का साया उठ गया। आपने काशी विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् पंजाब से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात आपने कलकत्ता से काव्यतीर्थ की उपाधि अर्जित की। 1923 में जीविका की तलाश में आप लाहौर चले गये तथा वहाँ संस्कृत और हिन्दी का अध्यापन-कार्य किया। साथ ही, इस दौरान आप अपने अध्ययन में भी रत रहे। जब भारत का बँटवारा हुआ तो भट्टजी लाहौर छोड़कर दिल्ली आकर बस गये। आपने आकाशवाणी में सलाहकार के पद को सुशोभित किया। कुछ वर्षों तक आप आकाशवाणी के नागपुर और जयपुर केन्द्रों पर ‘प्रोड्यूसर’ रहे। सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपने स्वतन्त्र रूप से कहानी, उपन्यास, आलोचना और नाटक इत्यादि का लेखन कार्य किया। 22 फरवरी,1966 को आपका देहावसान हो गया।

  • साहित्य सेवा एवं रचनाएँ

भट्टजी का प्रथम एकांकी संग्रह, अभिनव एकांकी’ के नाम से सन् 1940 में प्रकाशित हुआ था। इसके पश्चात् इन्होंने सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि अनेक विषयों पर एकांकियों की रचना की, जिनमें ‘समस्या का अन्त’, ‘परदे के पीछे’, ‘अभिनव एकांकी’, ‘अस्तोदय’, ‘धूपशिखा’, ‘वापसी’, ‘चार एकांकी’ इत्यादि आपके प्रतिनिधि एकांकी संग्रह माने जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी उदयशंकर भट्टजी ने नाटक, कविता तथा उपन्यासों की रचना की है।

  • वर्ण्य विषय

भट्टजी ने पौराणिक, समस्या-प्रधान, हास्य-प्रधान, प्रतीकात्मक एवं सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित एकांकियों की रचना की है। आपने वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक की भारतीय जीवन संवेदना को चित्रित किया है। आपकी रचनाओं में विभिन्न समस्याओं को जीवन्त रूप से उजागर किया गया है। युग की प्रवृत्तियों और सामाजिक परिवर्तनों से आपने सदैव संगति बनाए रखी।

  • भाषा व शैली

भट्टजी ने अपने साहित्य सृजन में सरल, स्थिर व चुलबुली बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। भाव व पात्रों के अनुसार उनकी भाषा का रूप बदलता रहता है। उनकी भाषा में उर्दू के शब्दों का बाहुल्य है; जैसे-ओफ, फ़ायदा, बेहद, हर्ष इत्यादि। संस्कृत शब्दावली का प्रयोग यत्र-तत्र दिखाई पड़ता है; जैसे-गृहस्थ,सुसंस्कृति, निर्दयी इत्यादि। संवाद सरल व छोटे-छोटे वाक्यों वाले हैं। भट्टजी की लेखन-शैली की एक विशेषता प्रश्नों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति है; जैसे-क्या छत तुम्हारे लिए है ? कहो तो मैं कहूँ ? क्या फ़ायदा ? इत्यादि। कहीं-कहीं वाक्य सूक्ति का-सा आभास कराते हैं।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भट्टजी की भाषा सरल व शैली व्याख्यात्मक है।

  • साहित्य में स्थान

एक सफल नाटककार के रूप में अपनी विशिष्ट छवि बनाने वाले उदयशंकर भट्ट प्रख्यात एकांकीकार भी हैं। उन्होंने युग के अनुरूप चरित्र-सृष्टियों की रचना की है। उनके एकांकी रंगमंचीय होने तथा जीवन की मौलिक समस्याओं से सम्बन्धित होने के कारण मर्मस्पर्शी हैं। आधुनिक हिन्दी एकांकीकारों में भट्टजी का एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। हिन्दी एकांकी साहित्य उनके योगदान को सदैव याद रखेगा।

4. शरद जोशी
[2009, 13, 15]

चाय की दुकान से लेकर राष्ट्रपति भवन तक अपनी लेखनी की आवाज को पहुँचाने वाले शरद जोशी को साधारण व्यक्ति से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक अपना समझता है। इसी कारण उनकी तुलना कबीर और मार्क ट्वेन से की गई है।

  • जीवन परिचय

हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक शरद जोशी का जन्म 23 मई,सन् 1931 को उज्जैन में मगर मुहे की गली में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास और माता का नाम शान्ति था। विद्यार्थी जीवन से ही इनकी रुचि लेखन में थी। इन्होंने होल्कर कॉलेज, इन्दौर से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1958 में इन्होंने इरफाना सिद्दिकी से प्रेम-विवाह किया। एक स्क्रिप्ट राइटर के रूप में आप आकाशवाणी इन्दौर से लम्बे समय तक जुड़े रहे तथा मध्य प्रदेश सूचना विभाग में दस वर्षों तक जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में सेवारत रहे। तत्पश्चात् वे बम्बई चले गये और वहाँ पर सतत् लेखन कार्य करते हुए आपने 5 सितम्बर, सन् 1991 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।

  • साहित्य सेवा

राजनीतिज्ञों पर लगातार करारे व्यंग्य और प्रहार करने वाले शरद जोशी की 18 पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने 1953-54 में लोगों के बीच एक लेखक के रूप में अपनी जगह बना ली। उनका सबसे पहला व्यंग्य लेख ‘नई दुनिया के ‘परिक्रमा’ स्तम्भ में छपा था। उनके लघु व्यंग्य-लेख नई दुनिया, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बरी, ज्ञानोदय आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपते थे। नवभारत टाइम्स के प्रतिदिन’ नामक स्तम्भ के लिए आपने 7 वर्षों तक लिखा। ‘जीप पर सवार इल्लियाँ’ उनका सरकारी अफसरों द्वारा सरकारी वाहनों पर की गई सवारी पर करारा व्यंग्य है। उन्होंने लगभग 35 वर्षों तक गद्य को कवि-सम्मेलन के मंच पर जोर-शोर से जमाये रखा। शरद जोशी को भारत सरकार ने सन् 1990 में पद्मश्री से विभूषित कर सम्मानित किया। शरदजी के कई नाटक जापान में वहाँ की स्थानीय भाषा में अनुवादित होकर मंचित किये गये।

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  • रचनाएँ

शरद जोशी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. व्यंग्य रचनाएँ-‘पिछले दिनों’, ‘तिलिस्म’, ‘रहा किनारे बैठ’, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ’, ‘किसी बहाने’, ‘यथासम्भव’, ‘नावक के तीर’ आदि अनेक प्रसिद्ध व्यंग्य संग्रह हैं।
  2. लघु उपन्यास–’मैं-मैं और केवल मैं’ उनका लोकप्रिय लघु उपन्यास है।
  3. नाटक ‘अन्धों का हाथी’, ‘एक था गधा उर्फ अलादत खान’।
  4. संवाद-शरद जी ने कई फिल्मों के लिए संवाद-लेखन का कार्य भी किया-‘छोटी सी बात’, ‘क्षितिज’, ‘साँच को आँच क्या’, ‘गोधूलि’, ‘उत्सव’, ‘नाम’, ‘चमेली की शादी’, मेरा दामाद’, ‘दिल है कि मानता नहीं’, ‘उड़ान’ आदि।
  5. टी. वी. सीरियल्स-श्याम तेरे कितने नाम’, ‘ये जो है जिन्दगी’, ‘विक्रम और बेताल’, ‘वाह जनाब’, ‘दाने अनार के’, ‘श्रीमती जी’,’सिंहासन बत्तीसी’, ‘ये दुनिया है गजब की’, ‘प्याले में तूफान’, ‘मालगुढी डेज’, गुलदस्ता आदि।
  • वर्ण्य विषय

जोशीजी ने साहित्य की व्यंग्य विधा को अपना विशेष क्षेत्र बनाया। उनके व्यंग्य में हास्य भी मिश्रित था। शरद जोशी एक व्यक्ति नहीं विचारधारा का नाम है। उनकी व्यंग्य विधा को पैनी धार धर्मयुग’ और ‘धर्मवीर भारती’ जैसे साप्ताहिकों-पत्रिकाओं ने दी। उनके व्यंग्य-लेखन के प्रमुख विषय थे-आपातकाल, नौकरशाही, अखबार, राजनीति, सरकारी अफसर, चिन्तन के नाम पर राजनेताओं की ऐय्याशी, पुलिस-हड़ताल, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री इत्यादि। इन्दिरा गाँधी से लेकर जयप्रकाश नारायण तक सभी उनके व्यंग्य-बाणों के निशाने पर रहे हैं। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली विसंगतियों का मार्मिक चित्रण कर शरदजी ने पाठकों को स्तम्भित कर दिया है।

  • भाषा

शरदजी की भाषा अत्यन्त सरस व सरल है। शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में सहजता है। देशज व विदेशी शब्दों के प्रयोग से भाषा बोधगम्य बन गई है। भाषा में एक विशिष्ट प्रवाह है। शब्दों का चयन सटीक है। स्थान-स्थान पर मुहावरों के प्रयोग से भाषा में हास्य व चंचलता आ गई है। शरदजी व्यंग्य के भाषागत सौन्दर्य को अपनी छोटी-छोटी उक्तियों के माध्यम से प्रभावशाली बनाने में सफल रहे हैं। उनकी भाषा में सरसता के साथ-साथ चुटीलापन भी दृष्टिगोचर होता है।

  • शैली

शरदजी की शैली मुख्य रूप से हास्य-व्यंग्य प्रधान है। उन्होंने सामाजिक विडम्बनाओं और उसके अन्तर्विरोधों को आधार मानकर व्यंग्य किये हैं। वे अपनी चमत्कारिक उत्प्रेक्षाओं से व्यंग्य की सर्जना करते हैं। भेटवार्ता जैसे प्रसंगों पर संवाद शैली में गुदगुदाने वाला हास्य और उसके परोक्ष में छिपा व्यंग्य,श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर देता था। उनकी आलोचनात्मक शैली भी व्यंग्य से पूर्ण है। वे राजनीतिज्ञों की आलोचना में भी व्यंग्य करने से नहीं चूकते। उनके हर व्यंग्य में ओज का पुट मौजूद मिलता है। इसीलिए बुद्धिजीवी उनके तर्क,शब्द-शैली, भाषा-शैली और विचारों की पकड़ का लोहा मानते हैं।

  • साहित्य में स्थान

शरदजी के ओजपूर्ण व्यंग्यों ने अपने समय में लोकप्रियता की चरम सीमा को पार किया। उन्होंने अनेक पत्रिकाओं के माध्यम से सारे देश को एकसूत्र में जोड़ दिया था। जोशीजी ने हिन्दी के गम्भीर व्यंग्य को लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँचाया। इस प्रकार हिन्दी गद्य साहित्य शरद जोशी को सदैव याद रखेगा।

5. डॉ. श्यामसुन्दर दुबे

  • जीवन परिचय

ललित निबन्धों में परम्परा और आधुनिकता को निभाने वाले डॉ. श्यामसुन्दर दुबे का जन्म 12 दिसम्बर, सन् 1944 को मध्यप्रदेश (हटा, दमोह) के बर्तलाई ग्राम में हुआ था। आपने एम. ए. पी-एच.डी. तक शिक्षा प्राप्त की है। ग्रामीण अंचल आपकी रचनाओं का स्रोत रहा है। आप हिन्दी साहित्य के समर्थ निबन्धकार,कवि, आलोचक होते हुए एक कुशल अध्यापक भी हैं। आप मध्यप्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में लम्बे समय तक प्राध्यापक पद पर रहे हैं। शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर वर्तमान में आप निदेशक, मुक्तिबोध सृजनपीठ डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर में कार्यरत हैं।

  • साहित्य सेवा

डॉ. श्यामसुन्दर दुबे साहित्यिक अभिरुचि रखने के कारण एक श्रेष्ठ गद्यकार माने जाते हैं। डॉ. दुबे को उनकी विभिन्न रचनाओं पर अनेक सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का ‘बालकृष्ण शर्मा नवीन’ पुरस्कार,मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी’ पुरस्कार, छत्तीसगढ़ शासन का ‘लोक-संस्कृति’ केन्द्रित सम्मान, डॉ. शम्भूनाथ सिंह रिसर्च फाउण्डेशन, वाराणसी का ‘डॉ. शम्भूनाथ सिंह अखिल भारतीय नवगीत’ पुरस्कार इत्यादि पुरस्कारों से आपको सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में भी आप हिन्दी साहित्य की सेवा में सागर विश्वविद्यालय के माध्यम से रत् हैं।

  • रचनाएँ

डॉ. श्यामसुन्दर दुबे ने निबन्ध, कथा, आलोचना और लोकविद् साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी लगभग 25 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं

  1. ललित निबन्ध संकलन-कालमृगया’, ‘विषाद बांसुरी की टेर’, ‘कोई खिड़की इसी दीवार से।
  2. काव्य संकलन-रीते खेत में बिजूका’, ऋतुएँ जो आदमी के भीतर हैं’, ‘धरती के अनन्त चक्करों में’।
  3. उपन्यास–’दाखिल खारिज’, ‘मरे न माहुर खाये’।
  4. लोक संस्कृति के रूप में-‘लोक : परम्परा, पहचान एवं प्रवाह’, ‘लोक चित्रकला : परम्परा और रचना दृष्टि’, ‘लोक में जल’, भारत की नदियाँ’।
  • वर्ण्य विषय

लोक संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाले डॉ.दुबे की समस्त रचनाओं में भारतीयता के उन तत्वों का समावेश है,जिनकी आज के वैज्ञानिक युग में महती आवश्यकता है। आधुनिक जीवन को जीते हुए भी भारतीय ग्रामीण जीवन से अपना सम्बन्ध बनाये रखना ही उनके साहित्य का मूल विषय है। इसी को आधार मानकर डॉ.दुबे ने स्वयं को साहित्य की विभिन्न विधाओं में उतारा। आपने ललित निबन्ध, आत्माभिव्यंजना प्रधान निबन्ध, कविताएँ, कहानियाँ, आलोचना आदि रचनात्मक विधाओं के अतिरिक्त ग्रामीण लोक-संस्कृति को लोक साहित्य के आंचल में बाँधा है। इनकी विद्वता पाठक के हृदय पर गहरा प्रभाव डालती है।

  • भाषा

आपने देशज शब्दों से युक्त संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग किया है। प्रकृति के सौन्दर्य का अंकन करते समय आपकी भाषा जगह-जगह काव्यमयी हो गई है,जैसे-“हलदिया पीलापन ऊर्ध्वमुखी होकर अंधेरे में दिपदिपा रहा था।”…..”अब जलाओ दिया,… करो प्रकाश”। डॉ. दुबे ने शब्दों के प्रयोग में स्वच्छन्दता बरती है तथा चतेवरी, पहलौरी जैसे देशज शब्दों; ट्रेक्टर, ट्रांजिस्टर, टी. वी. जैसे प्रचलित अंग्रेजी शब्दों; इज्जत-आबरू, दाँव जैसे उर्दू शब्दों तथा वानस्पतिक, उल्लास, वंचित जैसे संस्कृत शब्दों के प्रयोग से भाषा को सजाया है। वाक्यों में लघुता के कारण उनका प्रभाव चिरस्थायी हो उठा है।

  • शैली

डॉ. श्यामसुन्दर दुबे व्यास-शैली तथा उद्धरण शैली के माध्यम से विषय को स्पष्ट करते हैं। उनके द्वारा लिखित कहानियों व निबन्धों में विवरणात्मक शैली देखने को मिलती है। बीच-बीच में प्रचलित महावरों, जैसे-ढाक के तीन पात आदि का भी प्रयोग किया गया है। अति सूक्ष्म रूप में उपदेशात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है, जैसे-“बस इसी तरह जगमगाओ”…… “अपनी ज्योति का स्पर्श दो” आदि। यत्र-तत्र व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग भी देखने को मिलता है।

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  • साहित्य में स्थान

बुद्धि और संवेदना के स्वस्थ समन्वय ने डॉ.दुबे को हिन्दी साहित्य में उच्च स्थान दिलाया है। उन्हें लोक-संस्कृति के प्रचारक के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई है। डॉ. दुबे की रचनाओं में कवि हृदय की भावात्मक अनुभूति एवं कथात्मक अभिव्यक्ति के दर्शन होने के कारण हिन्दी के क्षेत्र में उनका एक विशिष्ट स्थान है।

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