MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 10 न्यायमंत्री (सुदर्शन)
न्यायमंत्री अभ्यास प्रश्न
न्यायमंत्री लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
शिशुपाल के घर आने वाला अतिथि कौन था? उसकी बातों से शिशुपाल क्यों नाराज हो गये?
उत्तर
शिशुपाल के घर आने वाला अतिथि एक परदेशी था। उसकी बातों से शिशुपाल नाराज हो गए, क्योंकि उसने उनके पुत्र को सेवक कहा था।
प्रश्न 2.
‘गोबर में फूल खिला हुआ है।’ यह वाक्य किसके लिए कहा गया है और क्यों ?
उत्तर
‘गोबर में फूल खिला हुआ है।’ यह वाक्य उस परदेशी अतिथि द्वारा शिशुपाल के लिए कहा गया है। यह इसलिए कि उसके युक्तियुक्त और शासन पद्धति का इतना विशाल ज्ञान उस छोटे-से गाँव के ऐसे व्यक्ति में होने की उसने कल्पना भी नहीं की थी।
![]()
प्रश्न 3.
शिशुपाल महाराज अशोक के दरबार में जाने से क्यों घबरा रहे थे?
उत्तर
शिशुपाल महाराज अशोक के दरबार में जाने से घबरा रहे थे। यह इसलिए कि उनके मन में यह आशंका हो रही थी कि उनके शत्रओं ने महाराज से कोई शिकायत कर दी है। उन्हें हो सकता है कि प्राणदंड मिल जाए।
प्रश्न 4.
न्यायमंत्री को प्रहरी के हत्यारे का पता कैसे चला?
उत्तर
न्यायमंत्री को प्रहरी के हत्यारे का पता एक स्त्री के द्वारा गुप्त रूप से चला।
प्रश्न 5.
न्यायमंत्री ने महाराज को दंड किस तरह दिया?
उत्तर
न्यायमंत्री ने महाराज की सोने की मुर्ति को फाँसी पर लटकवाया और उनको चेतावनी देकर छोड़ दिया। इस प्रकार न्यायमंत्री ने महाराज को दंड दिया।
न्यायमंत्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
“शिशुपाल का न्याय अंपा और बहरा है।’ यह उक्ति किन संदर्भो में कही गई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘शिशुपाल का न्याय अंधा और बहरा है। यह उक्ति उन संदर्भो में कही गई है कि शिशुपाल ने न्यायमंत्री के अधिकार से पूरे पाटलीपुत्र नगर में न्याय और सप्रबंध की धूम मचा दी। उन्होंने चोर-डाकुओं को इस प्रकार वश में कर लिया था, जिस प्रकार बीन बजाकर सपेरा साँप को वश में कर लेता है। उन दिनों लोगबाग दरवाजे खुले छोड़ देते थे, फिर भी किसी की हानि नहीं होती थी। इस प्रकार शिशपाल का न्याय अंधा और बहरा था। जो न सूरत देखता था, न कोई सिफारिश सुनता था। वह तो केवल शिक्षाप्रद दंड ही देना जानता था।
![]()
प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर शिशुपाल के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
शिशुपाल के चरित्र में हमें निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं
1. आतिथ्य सत्कार की भावना-शिशुपाल अपने गाँव का घोर दरिद्र ब्राह्मण था। उसकी जीविका थोड़ी-सी भूमि पर चलती थी। फिर भी एक परदेशी को द्वार पर खड़ा देखकर उसका मुख खिल गया। वह मुस्कुर.कर कहता है कि यह मेरा सौभाग्य है। आइए, पधारिए अतिथि के चरणों से मेरा चौका पवित्र हो जाएगा। इस प्रकार उसमें अतिथि-सत्कार की भावना दिखाई देती है।
2. सच्चा न्यायप्रिय-शिशुपाल ब्राह्मण को शासन-पद्धति का पूरा-पूरा ज्ञान था। सम्राट अशोक ने उसे न्यायमंत्री बना दिया। शिशुपाल का न्याय अंधा और बहरा था जो न सूरत देखता था और न सिफारिश मानता था। वह तो केवल दंड देना जानता था। उसने प्रहरी की हत्या के अपराध में सम्राट अशोक को भी दंडित किया। वह एक सच्चा न्यायी था।
3. निर्भीक और साहसी-शिशुपाल पाटलिपुत्र का न्यायमंत्री था। वह सम्राट अशोक से भी भयभीत नहीं होता था। जब सम्राट अशोक प्रहरी की हत्या के अपराध में पकड़े जाते हैं तो शिशुपाल उनके हाथ में बड़े साहस के साथ हथकड़ी डलवा देता है और निर्भीकता से सम्राट को दंडित करता है।
4. कर्तब्ध-परायण-शिशुपाल ने एक बार कहा था कि अवसर मिले तो दिखा हूँ कि न्याय किसे कहते हैं। मुझसे कोई अपराधी दंड से नहीं बचेगा। मैं न्याय का डंका बजाकर बता दूंगा। और शिशुपाल ने ऐसा ही करके दिखा दिया। प्रहरी की हत्या का पता उसने तीन दिन में निकाल लिया ! उसके न्याय के आगे न राजा बड़ा है और न रंक। वह राजा अशोक को प्रहरी की हत्या के अपराध में बंदी बनाता है और उसे दंडित भी करता है।
प्रश्न 3.
आपकी दृष्टि में न्यायमंत्री कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हमारी दृष्टि में न्यायमंत्री सच्चा और निष्पक्ष होना चाहिए। उसमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए और उसका पालन करने की दृढ़ता होनी चाहिए। उसका न्याय दोषी और अपराधी के प्रति कठोर और सीधा होना चाहिए। उसे दंड-विधान का ज्ञान होना चाहिए। उसका दंड शिक्षाप्रद और सुधारप्रद होना चाहिए।
प्रश्न 4.
अपराधी घोषित होने पर भी महाराज अशोक का हृदय क्यों प्रफुल्लित वा?
उत्तर
अपराधी घोषित होने पर भी महाराज अशोक का हदय प्रफुल्लित था। यह इसलिए कि उन्होंने अपने गुप्त वेश में शिशुपाल की जो दृढ़ता सुनी थी, उसने उसे कर दिखाया। इस प्रकार शिशुपाल के न्याय को सुनकर उन्होंने प्रफुल्लित हदय से यह विचार किया कि यह मनुष्य सोना है, जो अग्नि में पड़कर कुंदन हो गया। ऐसे मनुष्यों पर जातियाँ अभिमान करती हुई अपने तन-मन को निछावर करने के लिए तैयार हो जाती हैं।
![]()
प्रश्न 5.
न्यायमंत्री की जगह यदि आप होते, तो किसी प्रकार का न्याय करते? लिखिए।
उत्तर
न्यायमंत्री की जगह यदि हम होते तो उचित-अनुचित का ध्यान रखकर न्याय करते। ‘राजा को ईश्वर माना गया है। ईश्वर ही दंड दे सकता है।’ इसे हम ध्यान में रखकर महाराज अशोक की मूर्ति को फाँसी पर लटकाए जाने का आदेश तो अवश्य देते, लेकिन उन्हें सम्मान देते, उन्हें सार्वजनिक रूप से चेतावनी नहीं देते।
प्रश्न 6.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) जिसका अंतःकरण कुढ़ रहा हो जिसके नेत्र आँसू बहा रहे हों, जिसका मस्तिष्क अपने आपे में नहीं, उसके होंठों पर हँसी ऐसी भयानक प्रतीत होती है, जैसे श्मशान में चाँदनी वरन् उससे भी अधिक।
(ख) उन्होंने चोर-डाकुओं को इस प्रकार वश में कर लिया था जिस प्रकार बीन बजाकर सपेरा सर्प को वश में कर लेता है।
उत्तर
उपर्युक्त कथन का आशय है कि शुष्क हृदय, शुष्क आँखों और अव्यवस्थित मन और मस्तिष्क में अचानक आशाओं को जगा देने से क्षणिक सुख का अनुभव अवश्य होता है। वह सुखद होकर भी भयानकता से बाहर नहीं दिखाई देता है। भाव यह है कि दुखमय जीवन में आने वाले सुखद क्षणों से पूरा जीवन हरा-भरा नहीं दिखाई देता है।
(ख) उपर्युक्त वाक्य का आशय यह है कि सुशासन और सुप्रबंध से अपराधियों के हौसले पस्त हो जाते हैं। जनता में प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ जाता है। भय और आतंक के पादल छंटने लगते हैं। चारों ओर अमन-चैन का माहौल बनने लगता है।
न्यायमंत्री भाषा-अध्ययन
1. वाक्य शुद्ध कीजिए
(क) मेरे को आपकी परीक्षा करना है।
(ख) मैं तुमही को जानमा हूँ।
(ग) हम लोग आपस में परस्पर हमेशा विचार विमर्श करने हैं।
(घ) मैं सोती नींद से उठ बैठा।
(ङ) कृपया उनका कार्य करने की कृपा करें।
2. दिए हुए शब्दों में से तत्सम, तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए
सर्प, चरण, आँखें, रक्त, कठिन, अश्रु, अंधा, मृत्यु, आग, कदाचित, बातचीत, सफल, नींद, ग्राम।
3. निम्नलिखित शब्दों को पढ़कर उनका सही उच्चारण कीजिए
दृढ़-संकल्प, निर्विवाद, हतोत्साह, निस्तब्धता, आत्मोत्सर्ग।
उत्तर
1. शुद्ध वाक्य
(क) मुझे आपकी परीक्षा करनी है।
(ख) मैं तुम्हें जानता हूँ।
(ग) हम लोग आपस में हमेशा विचार-विमर्श करते हैं।
(घ) मैं नींद से उठ बैठा।
(ङ) उनका कार्य करने की कृपा करें।
![]()
2. तत्सम शब्द तद्भव शब्द
सर्प – आँखें
चरण – कठिन
रक्त – अंधा
अश्रु – आग
मृत्यु – बातचीत
कदाचित – नींद
ग्राम – सफल।
3. निम्नलिखित शब्दों को पढ़कर उनका सही उच्चारण छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें
दृढ़-संकल्प, निर्विवाद, हतोत्साह, निस्तब्धता, आत्मोत्सर्ग।
न्यायमंत्री योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
बदलते परिवेश में शिशुपाल का चरित्र कितना प्रासंगिक है? इस संबंध में अपने आस-पास के अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्रित करें जिससे आप प्रभावित हैं।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
2. पाठ में आए शिशुपाल के संवार्दो को अभिनय के साथ कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
3. सम्राट अशोक से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं को एकत्र करें तश नाटिका या कहानी लिखें।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
न्यायमंत्री परीक्षापयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
शिशुपाल कौन था?
उत्तर
शिशुपाल बुद्ध गया नामक गाँव का सबसे अधिक निर्धन ब्राह्मण था। बाद में महाराज अशोक के दरबार में न्यायमंत्री बना।
प्रश्न 2.
अशोक कैसा था?
उत्तर
अशोक बहुत ही निष्ठुर और निर्दयी था। वह ब्राह्मणों और स्त्रियों को भी फाँसी पर चढ़ा दिया करता था।
प्रश्न 3.
अशोक ने शिशुपाल के न्याय की परीक्षा लेने के लिए क्या कहा?
उत्तर
अशोक ने शिशुपाल के न्याय की परीक्षा लेने के लिए कहा, “यह राजमुद्रा है, तुम कल प्रातःकाल से सूर्य की पहली किरण के साथ न्यायमंत्री समझे जाओगे। मैं देखूगा, तुम अपने-आपको किस प्रकार सफल शासक सिद्ध कर सकते हो?
![]()
प्रश्न 4.
न्यायमंत्री निरुत्तर क्यों हो गए?
उत्तर
न्यायमंत्री ने जब अशोक को उसकी मुद्रा लौटाते हुए कहा कि वे यह अपनी वस्तु सँभाले। वह अपने गाँव वापिस जाएगा, तब अशोक ने कहा, “आपका साहस मैं कभी नहीं भूलूँगा। यह बोझ आप ही उठा सकते हैं। मुझे कोई दूसरा इस पद के योग्य दिखाई नहीं देता।” अशोक की इन बातों को सुनकर न्यायमंत्री निरुत्तर हो गए।
न्यायमंत्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने राज्य में क्या व्यवस्था की थी?
उत्तर
न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने राज्य में व्यवस्था के लिए पुलिस और पहरेदारों को संगठित किया। पहरेदारों के कारण पहले तो अपराध होते ही नहीं थे। यदि अपराध हो जाए तो अपराधी को कठोर सजा मिलती थी। कुछ दिनों में सारे राज्य में शिशुपाल के न्याय की पताका फहरा उठी थी।
प्रश्न 2.
न्यायमंत्री ने अपनी कार्यकुशलता का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर
सम्राट अशोक के बुलाने पर शिशुपाल सामने आए। महाराज ने पूछा-“घातक का पता लगा?” न्यायमंत्री ने कहा, “हाँ, लग गया।” न्यायमंत्री ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर दृढ़ संकल्प के साथ कहा, “मेरी आज्ञा है, सम्राट अशोक को गिरफ्तार कर लो।” इस पर अशोक क्रोध से लाल हो गए। उन्होंने ब्राह्मण से कहा-“ब्राह्मण! तुममें इतनी शक्ति है कि जो तुम मुझ तक बढ़ आए” किंतु शिशुपाल ने सम्राट अशोक की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। शिशुपाल ने फिर दोहराया, “मैं आज्ञा देता हूँ गिरफ्तार कर लो। यह घातक है। इसे मेरी अदालत में पेश करो।”
धनवीर ने अशोक को हथकड़ी लगा दी और शिशुपाल की अदालत में सम्राट अशोक को बंदी के रूप में पेश किया। शिशपाल ने धीरे से कहा, “सम्राट तुम पर एक पहरेदार की हत्या का अपराध है। तुम इसका क्या उत्तर देते हो?” सम्राट अशोक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। परंतु उन्होंने उसे उद्दण्डता के कारण मारा था। शिशुपाल ने कहा, “अशोक! तुमने एक राजकर्मचारी की हत्या की है। मैं तुम्हारे वध की आज्ञा देता हूँ।”
प्रश्न 3.
लोग शिशुपाल के किस न्याय पर मुग्ध हो गए?
उत्तर
जब न्यायमंत्री ने खड़े होकर कहा, “महाशय! यह सच है कि एक राजकर्मचारी की हत्या की गई है। उसका दंड अवश्यंभावी है। परंतु शास्त्रों में राजा को ईश्वर माना गया है। उसे ईश्वर ही दंड दे सकता है। यह काम न्यायमंत्री की शक्ति के बाहर है, अतएव मैं आज्ञा देता हूँ कि महाराज को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए और उनकी मूर्ति फाँसी पर लटकाई जाए जिससे लोगों को शिक्षा मिले।”न्यायमंत्री का जय-जयकार हुआ। लोग इस न्याय पर मुग्ध हो गए।
![]()
प्रश्न 4.
शिशुपाल और महाराज अशोक में तुम किसे श्रेष्ठ समझते हो और क्यों?
उत्तर
शिशुपाल और महाराज अशोक में हम शिशुपाल को श्रेष्ठ समझते हैं। यह इसलिए कि उसमें निष्पक्ष न्याय करने की योग्यता थी। वह अपराधी सिद्ध होने पर सम्राट अशोक को भी फाँसी की सजा देने से नहीं हिचकता है। वह परम न्यायी है। उसे न्याय के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता है जबकि सम्राट अशोक न्याय के नाम पर क्रोधित हो जाते हैं। लेकिन वह निडर होकर अपने न्याय पर ही डटा रहता है।
प्रश्न 5.
सुदर्शन-लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’ का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
न्यायमंत्री’ शीर्षक कहानी महान कथाकार सुदर्शन की एक श्रेष्ठ और चर्चित कहानी है। इस कहानी में यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में शिशुपाल एक निर्धन ब्राह्मण था। इसके साथ ही वह एक न्यायप्रिय, निर्भीक तथा लोकप्रिय व्यक्ति भी था। शिशुपाल के यहाँ अतिथि के रूप में रहकर सम्राट अशोक ने उसकी उस अद्भुत योग्यता को परखा। उससे प्रभावित होकर उसे न्यायमंत्री के पद पर नियुक्त किया। उसने न्यायमंत्री बनते ही राज्य में सुख-शांति का वातावरण फैला दिया। अपने न्याय के बल पर उसने एक परिवार की रक्षा करते पहरेदार की हत्या के आरोप में सम्राट अशोक को ही दोषी सिद्ध कर दिया। फिर उन्हें मृत्युदंड के रूप में सजा सुना दिया। उसकी न्यायप्रियता और राज्यभक्ति वर्तमान समय में भी अनुकरणीय है।
न्यायमंत्री लेखक-परिचय
प्रश्न
श्री तुदर्शन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश झलिए।
उत्तर
श्री सुदर्शन प्रेमचंदकालीन कहानीकारों में एक प्रमुख कहानीकार हैं।
जीवन-परिचय-श्री सुदर्शन जी का असली नाम पंडित बदरीनाथ था। आपका जन्म सन् 1896 ई. में स्यालकोट में हुआ था। आपने हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू जादि भाषाओं का सम्यक अध्ययन किया। आपकी प्रवृत्ति लेखन की ओर आरंभ से ही थी। प्रेमचंद की तरह आपने उर्दू के बाद हिंदी में कच्ची उम्र में ही लिखना शुरू किया था।
रचनाएँ-‘तीर्थ-यात्रा’, ‘पनघट’, ‘फूलवती’, ‘भाग्यचक्र’, ‘सिकंदर’ आदि आपकी लोकचर्चित रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त आपने नाटक और बाल-साहित्य भी रचा है।
भाषा-शैली-श्री सुदर्शन जी की भाषा-शैली सरस और प्रवाहमयी है, आपकी भाषा शैली संबंधित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
![]()
1. भाषा-श्री सुदर्शनजी की भाषा में उर्दू-फारसी और अरबी के प्रचलित शब्द स्थान-स्थान पर दिखाई देते हैं। उसमें जगह-जगह कहावतों और मुहावरों के भी प्रयोग हुए हैं। इससे आपकी भाषा सुबोध भाषा कही जा सकती है।
2. शैली-श्री सुदर्शन जी की शैली में बोधगम्यता नामक विशिष्ट गुण है। वह सर्वत्र रोचक और हदयस्पर्शी है। मार्मिकता उसकी प्रमुख पहचान है। स्थान-स्थान पर उद्धरणों और कथा-सूत्रों को प्रयुक्त करके विषय को स्पष्ट करने के प्रयास अधिक आकर्षक लगते हैं। महत्त्व-श्री सुदर्शनजी का स्थान मुंशी प्रेमचंद के बाद है ये उनके अनुवर्ती हैं, उर्दू से हिंदी में लिखने वाले आप मुंशी प्रेमचंद के बाद सर्वप्रमुख हैं। कथा-साहित्य में आपने प्रेमचंद के बाद अत्यधिक भूमिका निभाई है।
न्यायमंत्री कहानी का सारांश
प्रश्न
श्री सुदर्शन लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’ का तारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री सुदर्शन लिखित कहानी न्यायमंत्री एक शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कहानी है। इस कहानी का सारांश इस प्रकार है आज से 2500 साल पहले बुद्ध गया नामक गाँव में एक बहुत गरीब शिशुपाल नामक ब्राह्मण रहता था। उसके यहाँ एक परदेशी रहा। उस परदेशी की शिशुपाल ने यथाशक्ति आदर-सत्कार किया। उससे वह परदेशी बहुत खुश था। उसने उसकी खूब प्रशंसा की। उससे उसने यह भी कहा-“मुझे ख्याल भी न था कि गोबर में फूल खिलाहुआ है। महाराज अशोक को पता लग जाए तो कोई बड़ी-सी ऊँची पदवी पर नियुक्त कर दें।”
शिशुपाल ने उस परदेशी की बातें सुनकर मुस्कुरा दिया। कुछ देर बाद उसने उस परदेशी से कहा, “आजकल के बढ़ रहे अन्याय को देखकर मेरा रक्त उबलने लगता है। अगर मुझे अवसर मिले तो कोई अन्याय नहीं होने दूंगा और कोई अपराधी दंड से नहीं बचेगा।” परदेशी ने हँसते हुए कहा, “यदि मैं अशोक होता तो आपकी इच्छा पूरी कर देता।” . दूसरे दिन महाराज अशोक ने जब शिशुपाल को दरबार में बुलाया तो लोगों ने अशोक की कठोरता-निर्दयता को याद कर यह समझ लिया कि अब शिशुपाल जीवित नहीं लौटेगा।
शिशुपाल अपने पुत्र-स्त्री को समझाकर पाटलीपुत्र पहुँचा तो उसके मन में तरह-तरह की आशका होने लगी। उसे यह भी आशंका हुई कि कहीं वह परदेशी ही हो, यह उसी की लगाई हुई हो। इस प्रकार की आशंकाओं से उसका कलेजा धड़कने लगा। उसी समय महाराज अशोक ने राजकीय ठाठ से कमरे में आकर उससे पूछा कि क्या उसने उसे पहचान लिया? उसने कहा कि उसे पता होता कि वही महाराज हैं, तो वह उतनी स्वतंत्रता से बात नहीं करता। महाराज ने उससे कहा कि उसने कहा था कि उसे अवसर दिया जाए तो वह न्याय का डंका बजा देगा। महाराज ने उससे आगे कहा कि इसके लिए अब उसे एक परीक्षा देनी होगी। कल प्रातः से वह न्यायमंत्री के रूप में कार्य करेगा। उसके अधीन पुलिस अधिकारी होंगे। उसका उत्तरदायित्व पाटलीपुत्र में शांति रखने का होगा। यह देखा जाएगा कि वह स्वयं को किस प्रकार सफल शासक सिद्ध करता है। एक माह बीतते ही न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल ने अपने कड़े शासन की चारों ओर धूम मचा दी। इससे नगर की दशा में आकाश-पाताल का अंतर पड़ गया।
एक रात को एक अमीर ने एक विशाल भवन के द्वार को खटखटाकर खुलवाना चाहा, लेकिन उसके अंदर से किसी स्त्री ने खोलने से मना कर दिया। उसने उस स्त्री को धमकाया तो उसने उससे कहा कि शिशुपाल का राज्य है। कोई किसी को तंग नहीं कर सकता। लेकिन उस अमीर ने उसकी एक न सुनी और तलवार निकालकर दरवाजे पर आक्रमण कर दिया। अचानक आकर एक पहरेदार ने उसका हाथ थामकर उसे फटकारा। पूछने पर उस पहरेदार ने उसे बताया कि उसे न्यायमंत्री ने नियुक्त किया है। उसने यह प्रण किया है कि उसके तन में जब तक प्राण और खून की अंतिम बूँद है, वह अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटेगा। इसलिए अगर इस समय महाराज अशोक भी आ जाएँ तो भी वह नहीं टलेगा। उस अमीर ने उसकी बातों को अनसुना कर उस पर तलवार लेकर झपटा। उसका सामना करते हुए वह पहरेदार मारा गया। उसकी लाश को एक ओर करके वह अमीर वहाँ से भाग निकला।
इस घटना को सुनकर सब हैरान थे कि शिशुपाल के शासन में ऐसी घटना! शिशु की नींद हराम हो गई। वे खाना-पीना सब भूलकर उस घातक का पता न लगा सके। महाराज उनसे बार-बार पूछते-“घातक पकड़ा गया…कब तक पकड़ा जाएगा।” न्यायमंत्री उन्हें तसल्ली देते-“जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा।” एक दिन महाराज ने क्रोध में आकर यह चेतावनी दे दी, “तुम्हें तीन दिन की अवधि दी जाती है। यदि इस बीच घातक न पकड़ा गया तो तुम्हें फाँसी दे दी जाएगी।” इस समचार से पूरे नगर में
हलचल मच गई। तीसरे दिन आने पर शिशुपाल नगर के घने बाजार में घूम रहे थे। एक स्त्री ने उन्हें खिड़की से देख लिया। उसने उन्हें अंदर बलाकर उस बीती घटना के बारे में सब कुछ बता दिया। दूसरे दिन दरबार में आते ही महाराज अशोक के पछने पर शिशुपाल ने कहा कि घातक का पता लग गया है और वह घातक तुम हो। तुम पर पहरेदार की हत्या का अपराध है। तुम इसका क्या उत्तर देते हो? महाराज अशोक ने कहा कि वह उइंड था। इसलिए उन्होंने उसको मार डाला। न्यायमंत्री शिशुपाल ने उन्हें एक राजकर्मचारी का वध करने के अपराध में उनके वध की आज्ञा दी।
![]()
उसे सुनकर लोगों ने शिशुपाल को गाली दी। लेकिन अशोक ने उन्हें शांत रहने का संकेत किया। अशोक ने उपेक्षापूर्वक कहा कि वे इस आज्ञा के विरुद्ध कछ नहीं बोल सकते। न्यायमंत्री के आदेश पर एक मनुष्य अशोक की सोने की मूर्ति लेकर उपस्थित हुआ। न्यायमंत्री ने खड़े होकर कहा, “महाशय! यह सच है कि राजकर्मचारी की हत्या की गई है। उसका दंड अवश्यंभावी है। परंतु शास्त्रों में राजा को ईश्वर माना गया है। ईश्वर ही दंड दे सकता है। यह काम न्यायमंत्री की शक्ति से बाहर है। अतएव मैं आज्ञा देता हूँ कि महाराज को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए और उनकी मूर्ति को फाँसी दे दी जाए, जिससे लोगों को शिक्षा मिले।” इसे सुनकर सभी ने न्यायमंत्री की जय-जयकार की।
रात को न्यायमंत्री ने राजमहल में जाकर अशोक को उसकी अंगठी और मद्रा देते हुए अपने गाँव वापिस जाने की बात कही। अशोक ने उसे सम्मानभरी आँखों से देखते हुए कहा कि अब यह संभव नहीं है। वह उसके साहस को नहीं भूल सकता है। दूसरा. इस पद के योग्य उसे कोई नहीं दिखाई देता।
न्यायमंत्री संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, अर्थ-ग्रहण संबंधी व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. महाराज ने सिर झुका दिया। इस समय उनके हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें मार रहा था। सोचते थे, यह मनुष्य स्वर्ण है, जो अग्नि में पड़कर कुंदन हो गया। कहता था मेरा न्याय अपनी पूम मचा देगा, यह वचन झूठा न था। इसने अपने कहने की लाज रख ली है। ऐसे ही मनुष्य होते हैं जिन पर जातियाँ अभिमान करती हैं और जिन पर अपना तन-मन निष्ठावर करने को उद्धृत हो जाती हैं।
शब्दार्थ-ब्रह्मानंद-ब्रह्म का आनंद । लाज-इज्जत। निछावर-बलिदान।
संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश महाकथाकार श्री सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘न्यायमंत्री’
प्रसंग-इस गद्यांश में कहानीकार ने इस तथ्य पर प्रकाश डालना चाहा है कि जब शिशुपाल ने अपराधी का पता लगा लिया और यह पाया कि अपराधी स्वयं सम्राट अशोक ही हैं तो शिशुपाल ने अपराधी होने के कारण उन्हें फाँसी की सजा दे दी। इस पर सम्राट अशोक की क्या प्रतिक्रिया हुई।
व्याख्या-जब फाँसी की सजा को न्यायमंत्री शिशुपाल ने सुनाया तब सम्राट अशोक का सिर झुक गया। उस समय उनके हृदय में स्वर्ग के आनंद की लहर उठ रही थी। ऐसा इसलिए कि उन्हें अपने एक सच्चे और निर्भीक न्यायमंत्री का न्याय देखकर आनंद आ रहा था। वे मन-ही-मन सोच रहे थे कि शिशुपाल वास्तव में सच्चा स्वर्ण-मानव था जो कत्र्तव्यरूपी अग्नि में पड़कर शुद्ध हो गया था। वह कहा करता था कि उसके न्याय की धूम मचेगी यह बात निःसंदेह सच ही निकली। उसने जो कुछ कहा था उसको पूरा कर दिया। शिशुपाल जैसे मनुष्य जो सच्चे और साहसी होते हैं उन पर आने वाली पीढ़ियाँ गर्व करती हैं और ऐसे ही लोगों पर अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने के लिए वे तत्पर भी हो उठती हैं।
विशेष-
- सत्य और निष्पक्ष न्याय के महत्त्व को प्रदर्शित किया गया है।
- भाषा सरल और स्पष्ट है।
- ‘धूम मचाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- शैली सुबोध है।
- संपूर्ण अंश प्रेरणादायक है।
1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) महाराज ने सिर क्यों झुका लिया?
(ii) महाराज के हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें क्यों मार रहा था? .
उत्तर
(i) महाराज ने सिर झुका लिया। यह इसलिए कि उन्हें न्यायमंत्री शिशुपाल ने अपराधी सिद्ध कर दिया था। उसे सिर झुकाकर स्वीकार कर लेना उन्होंने अपना कर्तव्य समझ लिया था।
(ii) महाराज के हृदय में ब्रह्मानंद का समुद्र लहरें मार रहा था। यह इसलिए कि उनसे शिशुपाल ने कहा था कि उसका न्याय धूम मचा देगा तो उसने आज सचमुच यह कर दिखाया है। इस प्रकार उसने उनको झूठे वचन न देकर उनके विश्वास को कायम रखा था।
2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) जातियाँ किन पर अभिमान कर अपना तन-मन निछावर करने को उद्यत हो जाती हैं?
(ii) उपर्युक्त गयांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) जातियाँ कथनी-करनी में अंतर न रखने वालों पर अपना तन-मन निछावर करने को उद्यत हो जाती हैं।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-किसी को दिए गए वचन को झूठा न होने देना। किसी भी परिस्थिति में अपने कहने की लाज रखना।